रविवार, 18 दिसंबर 2011

मत्स पालन विभाग को अब मिश्रित मछली पालन योजना का सहारा


नरेंद्र कुंडू
जींद।
कृषि व्यवसाय किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा था, जिससे प्रदेश के किसान बेहाल हो गए थे। प्रदेश के किसानों को आर्थिक तौर पर मजबूत करने और किसानों को नई दिशा देने के उद्देश्य से सरकार ने श्वेत क्रांति व हरित क्रांति के बाद प्रदेश में नीली क्रांति लाने की योजना बनाई थी।लेकिन सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी जिले में मछली पालन व्यवसाय खड़ा नहीं हो पा रहा था। इसलिए अब जिले में नीली क्रांति को परवान चढ़ाने के लिए विभाग द्वारा मिश्रित मछली पालन को अपनाया जा रहा है। इस बार जिले में 645 हैक्टेयर में मछली पालन का कार्य किया जा रहा है। जिले में 409 तालाबों में 220 लाख मछली का बीज डाला गया है। इस वर्ष जनवरी से अगस्त माह तक यानि 8 माह में जिले में 1758 टन मछली का उत्पादन हुआ है। जिले में एक हजार से ज्यादा लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं तथा हजारों नौजवानों को भी इसमें रोजगार मिल रहा है।
सरकार द्वारा एक दशक पहले शुरू की गई मछली पालन व्यवसाय की योजना से किसानों को ज्यादा फायदा नहीं मिल रहा है। क्योंकि इस योजना के तहत तालाब में सिर्फ एक ही किस्म की मछली पाली जाती थी। तालाब में एक किस्म की मछली होने के कारण अधिकतर मछली बीमारी की चपेट में आकर मर जाती थी। जिससे मछली पालक को काफी नुकसान हो जाता था। लेकिन अब मछली पालन विभाग किसानों की आमदनी को  बढ़ाने तथा किसानों को नीली खेती के प्रति आकर्षित करने के लिए किसानों को मिश्रित मछली पालन के लिए प्रेरित कर रहा है। बाजार में इन मछलियों की अन्य मछलियों से ज्यादा मांग होती है। एक साथ तालाब में 6 किस्म की मछली तैयार होने से किसान को एक साथ अच्छी पैदावार मिलती है। जिससे किसान को काफी लाभ मिलता है।
क्या है मिश्रित मछली पालन
पहले मछली पालक तालाब में सिर्फ एक ही किस्म की मछली का बीज डालते थे, जिससे मछली पालक को ज्यादा लाभ नहीं होता था। लेकिन अब मछली पालन विभाग द्वारा मिश्रित मछली पालन की जो योजना तैयार की गई है वो किसानों के लिए काफी कारगर सिद्ध हो रही है। इस योजना के तहत एक तालाब में 6 किस्म की मछलियां पाली जा सकती हैं। तालाब में एक साथ पाली जाने वाली मछली की नस्ल सामान्य तौर पर कतला मछली, रोहु, मिरगल, कामन कार्प, ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प सबसे ज्यादा फायदेमंद हैं। इन मछलियों की सबसे खास बात यह है कि सभी मछलियां पानी में अलग-अलग स्तह पर रहती हैं और इनका फीड भी  अलग-अलग होता है। अलग-अलग स्तह पर रहने के कारण ये मछली किसी दूसरी किस्म की मछली को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा सकती हैं। बाजार में इन मछलियों की मांग भी अन्य मछलियों से ज्यादा होती है। बाजार में ज्यादा मांग होने व तालाब में एक साथ कई किस्म की मछलियां तैयार होने से किसान को अच्छी आमदनी मिल जाती है।
विभाग की तरफ से क्या मिलती हैं सुविधाएं
मछली पालन विभाग के एफएफडीए वाईएस सांगवान ने बताया कि मछली पालन व्यवसाय किसानों के लिए आमदनी का अच्छा साधन है। इस व्यवसाय को मुर्गी पालन, डेयरी व अन्य दूसरे व्यवसाय के साथ-साथ भी  किया जा सकता है। क्योंकि मुर्गी व पशुओं के मलमूत्र से मछली को फीड मिल जाता है। सांगवान ने बताया कि मछली पालन पर विभाग द्वारा काफी सुविधाएं दी जाती हैं। विभाग की तरफ  से मछली पालन के लिए समय-समय पर निशुल्क ट्रेनिंग कैंप का आयोजन किया जाता है तथा किसानों को तकनीकि सहायता भी  दी जाती है। इसके अलावा बैंकों से कर्जा देने के साथ सब्सिडी भी  उपलब्ध करवाई जाती है। इसमें 3 से 15 लाख रुपए तक के कर्ज की व्यवस्था रहती है। सजावटी मछली की हेचरी पर 15 लाख का ऋण व डेढ़ लाख का अनुदान तथा सादी मछली की हेचरी पर 12 लाख रुपए का ऋण व 1 लाख 20 हजार रुपए का अनुदान देने का प्रावधान है। इसके अलावा नीजि भूमि में तालाब बनाने पर 3 लाख रुपए का ऋण व 60 हजार रुपए का अनुदान दिया जाता है। उन्होंने बताया कि मछली के बीज पर भी सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। इस स्कीम के तहत जनरल को 20 प्रतिशत तथा एससी व एसटी को 25 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है। विभाग द्वारा 65 रुपए में एक हजार बीज दिया जाता है तथा तालाब की मिट्टी व पानी की जांच के लिए भी लैब की सुविधा दी जाती है। किसान लैब में 10 रुपए का नामात्र खर्च कर पानी व मिट्टी की जांच करवा सकता है।

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