रविवार, 18 दिसंबर 2011

उपेक्षा का दंश झेल रहा रानी का ऐतिहासिक कुआं

सोम तीर्थ पर स्थित रानी का कुआं। 
जींद। पिंडारा गांव स्थित सोमतीर्थ पर प्रशासन भले ही करोड़ों रुपए खर्च करने के दावे कर रहा हो, लेकिन तीर्थ पर ही मौजूद रानी के ऐतिहासिक कुएं  के जीर्णोदार के लिए एक फुटी कौड़ी भी  खर्च नहीं हुई है। प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेल रहा रानी का ऐतिहासिक कुआं अपना अस्तित्व खो चुका है। रानी के कुए व रानी घाट का निमार्ण जींद के राजा गणपत सिंह ने 1785 ई. में वास्तु शास्त्र के अनुसार करवाया था। इस तीर्थ पर यह एकमात्र सबसे प्राचीन कुआं है। जिला प्रशासन, पुरातात्विक विभाग, सामाजिक व धार्मिक संगठनों को इस प्राचीन धरोहर की सुध लेने तक की फुर्सत नहीं है।
पिंडारा गांव में मौजूद सोम तीर्थ की प्रदेश में एक अलग ही पहचान है। इस तीर्थ का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। इस ऐतिहासिक तीर्थ पर जींद के राजा गणपत सिंह द्वारा 1785 ई. में रानी के लिए कुएं व एक घाट का निर्माण करवाया गया था। कुएं व घाट का निर्माण वास्तु शास्त्र के अनुसार करवाया गया था। कुएं की गहराई 50 मीटर से •भी ज्यादा थी। जिस कारण इसका पानी बहुत मीठा होता था। इस तीर्थ पर रानी घाट व रानी कुआं सबसे प्राचीन धरोहर हैं। रानी घाट व कुएं के निर्माण से पहले इस तीर्थ पर एक शिव जी का मंदिर होता था। इस मंदिर को सोमेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता था। इस मंदिर में ही पांडवों ने 12 वर्षों तक तपस्या की थी। इसके बाद जींद के राजा गणपत सिंह ने यहां रानी के लिए घाट व कुएं का निर्माण करवाया था। जब भी रानी तीर्थ पर स्रान करने के लिए आती थी तो इस कुए से पानी निकाल कर रानी को स्रान करवाया जाता था। कुए का पानी मीठा होने के कारण लोग इस पानी का प्रयोग दूध में भी करते थे। तीर्थ पर स्थित रानी घाट व कुआं इस तीर्थ पर सबसे प्राचीन व ऐतिहासिक धरोहर हैं। जिला प्रशासन व कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड की तरफ से तीर्थ के सौंदर्यकरण के लिए लगभग अढ़ाई करोड़ रुपए की ग्रांट खर्च की जा चुकी है। लेकिन तीर्थ पर ही स्थित रानी के ऐतिहासिक कुएं पर इस ग्रांट से एक फुटी कौड़ी भी खर्च नहीं हुई है। प्रशासन व विकास बोर्ड की अनदेखी के कारण आज यह ऐतिहासक कुआं अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। अब कुएं को चारों ओर से जंगली घास ने ढक लिया है। कुए पर बनी छत्तरी व चारदीवारी में दरार आ चुकी है। कुएं से पानी का प्रयोग बंद होने के कारण कुआं ठप हो चुका है।
तीर्थ पर नहीं रहेगी पीने के पानी की कमी
ऐतिहासिक तीर्थ होने के कारण यहां हर अमावस्या पर दूर-दूर से श्रद्धालु पिंडदान करने के लिए आते हैं। लेकिन तीर्थ पर श्रद्धालुओं के लिए पीने के पानी की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। अगर प्रशासन कुएं को दोबारा से रिपेयर करवार इसका प्रयोग शुरू कर दे तो तीर्थ पर स्रान करने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं व ग्रामीणों के लिए तीर्थ पर पीने के पानी की कमी नहीं रह सकेगी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें