रविवार, 29 जनवरी 2012

हमेटी को जल्द मिलेगी सोलर सिस्टम की सौगात

विभाग द्वारा सोलर सिस्टम पर खर्च किए जाएंगे 15 लाख
सोलर लाइटों से रात के अंधेरे में भी जगमगाएगा प्रशिक्षण केंद्र
वाटर हीटिंग सिस्टम के बारे में जानकारी देते डायरेक्टर बीएस नैन।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
रोहतक रोड स्थित हमेटी को जल्द ही सोलर सिस्टम की सौगात मिलेगी। हमेटी में प्रशिक्षण के लिए आने वाले किसानों को खान-पान व रहन-सहन संबंधी सुविधाएं अब सोलर आधारित मिलेंगी। यह सोलर सिस्टम काफी हाईटेक होगा। सर्दी के मौसम में किसानों को गर्म पानी उपलब्ध करवाने के लिए सोलर वाटर हीटिंग सिस्टम व 65 सोलर लाइटें भी लगाई जाएंगी। सोलर लाइटें लगने से हमेटी रात के अंधेरे में भी जगमगाएगी। हमेटी में सोलर सिस्टम लगने के बाद बिजली व पानी की बचत के साथ-साथ विभाग को लाखों रुपए के राजस्व का लाभ भी  होगा। विभाग द्वारा सोलर सिस्टम पर 15 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए यहां पर प्रशिक्षण के लिए आने वाले लोगों को भी सोलर सिस्टम के बारे में विस्तार से जानकारी देकर प्रेरित किया जाएगा।
हमेटी में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले किसानों को सोलर सिस्टम पर आधारित सभी सुविधाएं मिलेंगी। कड़ाके की ठंड में भी किसानों को 24 घंटे गर्म पानी उपलब्ध होगा। विभाग द्वारा हमेटी में 2 हजार लीटर की क्षमता वाला वाटर हीटिंग सिस्टम लगाया जाएगा। इसमें एक हजार लीटर क्षमता का वाटर हीटिंग सिस्टम तो लगाया जा चुका है। कभी-कभार अगर धूंध के कारण सूर्य उदय नहीं होगा तो भी ज्यादा चिंता की बात नहीं है, क्योंकि वाटर हीटिंग सिस्टम से गर्म किया गया पानी टंकी में कम से कम दो दिनों तक गर्म रह सकता है। इससे  इसके अलावा केंद्र के प्रांगण में जल्द ही सोलर लाइटें भी लगाई जाएंगी। वाटर हीटिंग सिस्टम से मेस में खाना बनाने में भी इसी पानी का प्रयोग किया जाएगा। जिससे खाना भी जल्द ही तैयार हो जाएगा। इसके अलावा वाटर हीटिंग सिस्टम के साथ रीप सिस्टम लगने से पानी भी बर्बाद होने से बच जाएगा। यहां पर कृषि प्रशिक्षण के साथ-साथ किसानों को सोलर सिस्टम से होने वाली बचत के बारे में जानकारी देकर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए भी प्रेरित किया जाएगा। ताकि अधिक से अधिक लोग सोलर सिस्टम का लाभ ले सकें। प्रशिक्षण केंद्र में सोलर सिस्टम लगने से बिजली व पानी की बचत के साथ-साथ विभाग को हर साल लाखों रुपए के राजस्व का भी लाभ होगा।
क्या है वाटर हीटिंग सिस्टम
वाटर हीटिंग सिस्टम छत पर रखी पानी की टंकी पर लगाया जाता है। यह सिस्टम सूर्य की किरणों से ऊर्जा लेकर टंकी के पानी को गर्म कर देता है। इसके अलावा इस सिस्टम के साथ रीप सिस्टम भी लगाया जाता है। रीप सिस्टम सोलर एनर्जी पर बेस्ड सिस्टम है और यह आम सोलर पैनल की तरह नहीं है। आम सोलर पैनल जहां सोलर एनर्जी से बिजली बनाता है और इसे बैटरी में स्टोर करता है, वहीं रीप सिस्टम सूरज की रोशनी से एनर्जी लेकर उसका इस्तेमाल सीधे जमीन के अंदर से पानी को खींचने में करता है। अगर पानी किसी पाइपलाइन के जरिये आ रहा है तो रीप सिस्टम से बिना बिजली खर्च किए उसे ओवरहेड टैंक तक पहुंचाया जा सकता है। जैसे ही टैंक भरेगा, रीप सिस्टम काम करना बंद कर देगा। फिर टैंक से पानी का लेवल कम होने के बाद वह दोबारा काम करना शुरू करेगा और टैंक को फिर भर देगा। इस तरह यह सिस्टम अंडरग्राउंड वॉटर और पाइपलाइन से आ रहे पानी की बर्बादी को भी रोकेगा। इसके इस्तेमाल से पानी व बिजली दोनों की बचत होगी।
सोलर सिस्टम से रोशन होगा हमेटी।
किसान प्रशिक्षण केंद्र में अब लाइट की समस्या नहीं रहेगी। शहर में ओर कहीं लाइट रहे या न रहे, लेकिन हमेटी में लाइट जरूर रहेगी। सोलर सिस्टम लगने से हमेटी में चौबिसों घंटे लाइट रहेगी। हमेटी में बिजली से होने वाले सभी कार्य सोलर सिस्टम पर आधारित होंगे। हमेटी प्रांगण में एनर्जी सेविंग वाली 65 एलईडी सोलर लाइटें लगाई जाएंगी। यह पूरी तरह से आटोमेटीक होंगी। शाम होते ही अपने आप लाइटें जल जाएंगी और सुबह होते ही अपने आप बंद जाएंगी। इस प्रकार हमेटी में सोलर सिस्टम शुरू होने के बाद कोई भी काम प्रभावित नहीं होगा।
ऊर्जा की बचत करना है उद्देश्य
विभाग द्वारा सोलर सिस्टम पर 15 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। प्रशिक्षण केंद्र में सोलर सिस्टम शुरू होने से लाइट व पानी की बचत होगी। जिससे विभाग को हर माह लाखों रुपए की बचत होगी। प्रशिक्षण केंद्र में इस सिस्टम को लगवाने के पीछे उनका उद्देश्य एनर्जी सेविंग करना है। इस योजना को जल्द से जल्द अमल में लाने के लिए सभी कागजी कार्रवाई पूरी कर रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजी जा चुकी है।
बीएस नैन
डायरेक्टर, हमेटी, जींद


अब कृषि विज्ञानिकों से सीधे रूबरू होंगे किसान

      हमेटी में जल्द शुरू होगा वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम
हमेटी में लगाया गया वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
कृषि विभाग अब किसानों को हाईटेक करने की तैयारी कर रहा है। किसानों को समय-समय पर सभी आधुनिक जानकारियां उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से रोहतक रोड स्थित किसान प्रशिक्षण केंद्र (हमेटी) में विभाग द्वारा वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम लगाया जाएगा। वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम के माध्यम से किसान कृषि वैज्ञानिकों के साथ सीधे रूबरू होकर सवाल-जवाब कर सकेंगे। सिस्टम के शुरू होने से जहां किसानों को नवीनतम जानकारियां उपलब्ध होंगी, वहीं उनके समय व पैसे की बचत भी होगी।
खेती किसानों के लिए लगातार घाटे का सौदा साबित हो रही है। जिस कारण किसान खेती से अपना मुहं मोड़ रहे हैं। किसानों को समय-समय पर खेती की आधुनिक जानकारियां उपलब्ध न होना भी इसका मुख्य कारण है। लेकिन अब किसानों की इस समस्या का समाधान करने के लिए कृषि विभाग ने एक खास योजना तैयार की है। इस योजना के तहत हमेटी में वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम लगाया जाएगा। प्रशिक्षण केंद्र में वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम लगाने का 90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। विभाग द्वारा हमेटी में लगवाए गए इस वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम पर 5 से 6 लाख रुपए तक खर्च आने का अनुमान है। सिस्टम के शुरू होते ही हमेटी में प्रशिक्षण पर आने वाले किसानों को विभाग द्वारा समय-समय पर कृषि संबंधि सभी आधुनिक जानकारियां वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये दी जाएंगी। इस सिस्टम के तहत किसान चंडीगढ़ व दिल्ली के कृषि विज्ञानिकों के साथ जुड़कर अपने सवाल-जवाब कर सकेंगे। अब किसानों को अपनी छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों पर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उनकी सभी  समस्याओं का समाधान कृषि विज्ञानिकों द्वारा वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से किया जाएगा। किसानों को फसल में अपने वाली बीमारियों व उनकी रोकथाम की पूरी आधुनिक जानकारी समय पर उपलब्ध होने से किसान खेती से अधिक से अधिक लाभ अर्जित कर आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो सकेंगे। सिस्टम के शुरू होने के बाद किसानों को आधुनिक खेती के लिए प्रेरित करने के लिए कृषि विभाग को ज्यादा दौड़-धूप नहीं करनी पड़ेगी। वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम से कृषि विज्ञानिकों व किसानों को समय व पैसे की बचत भी होगी।
वीसी सिस्टम से विभाग को भी होगा लाभ
किसान प्रशिक्षण केंद्र में वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम शुरू होने से किसानों के साथ-साथ विभाग को भी काफी लाभ होगा। सिस्टम शुरू होने के बाद हमेटी में ट्रेनिंग के लिए आने वाले एडीओ व सेकेंड क्लाश के अधिकारियों को चंडीगढ़ मुख्यालय से अधिकारी सीधे संपर्क कर दिशा-निर्देश दे सकेंगे। सिस्टम के माध्यम से ही मुख्यालय में बैठे-बिठाए उच्च अधिकारी अपना लेक्चर ट्रेनिंग पर आने वाले एडीओ व अन्य अधिकारियों को दे सकेंगे। वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम शुरू होने से विभाग को समय व पैसे दोनों की बचत होगी।
किसानों को जल्द मिलेगी वीसी की सौगात
हमेटी में वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम शुरू करने के पीछे विभाग का उद्देश्य किसानों को समय-समय पर आधुनिक जानकारियां उपलब्ध करवाना है। यह सिस्टम शुरू होने से किसान कृषि विज्ञानिकों के साथ सीधे रूबरू होकर अपने सवाल जवाब कर सकेंगे। इस योजना से विभाग एवं किसानों को समय व पैसे दोनों की बचत होगी। हमेटी में वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम लगाने का 90 प्रतिशत कार्य पूरा किया जा चुका है। बाकि की बची प्रक्रिया को जल्द ही पूरा कर वीडियो कांफ्रेसिंग सिस्टम को शुरू किया जाएगा।
बीएस नैन
डायरेक्टर, किसान प्रशिक्षण केंद्र, जींद


अब लघु सचिवालय से छिड़ेगी सौर ऊर्जा की मुहिम


साढ़े दस लाख की लागत से तैयार किया जाएगा साढ़े चार केजी वॉट का संयत्र
 सौर ऊर्जा संयत्र का फाइल फोटो।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन ने कमर कस ली है। लोगों को सौर ऊर्जा के लिए जागरूक करने की मुहिम अब लघु सचिवालय से छेड़ी जाएगी। इस मुहिम को सिरे चढ़ाने के लिए जिला प्रशासन ने लघु सचिवालय में प्रदर्शन के रूप में एक सौर ऊर्जा बिजली संयत्र लगाने का निर्णय लिया है। साढ़े दस लाख रुपए की लगात से तैयार होने वाले इस साढ़े चार किलो वॉट के बिजली संयत्र से हर माह एक हजार यूनिट बिजली का उत्पादन होगा। लघु सचिवालय के सभी मुख्य कार्यालयों को इस प्लांट से जोड़ा जाएगा। इस प्रोजेक्ट के परवान चढ़ने के बाद लघु सचिवालय सौर ऊर्जा से जगमगाएगा। इस संयत्र से जहां बिजली की बचत होगी, वहीं यह पर्यावरण के भी अनुकूल होगा।
बिजली किल्लत के कारण सरकारी कामकाज प्रभावित होने से लघु सचिवालय में आने वाले लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई-कई दिनों तक उनके काम लटकते रहते हैं। लघु सचिवालय के बार-बार चक्कर काटने से उनका समय व पैसे दोनों बर्बाद होते हैं। लेकिन अब इन परेशानियों से बचने के लिए जिला प्रशासन ने एक खास योजना तैयार की है। इस योजना के तहत लघु सचिवालय में एक सौर ऊर्जा बिजली संयत्र लगाया जाएगा। सौर ऊर्जा संयत्र लगने के बाद लघु सचिवालय में बिजली की किल्लत के कारण कोई कार्य प्रभावित नहीं होंगे। कोई भी कर्मचारी बिजली न होने का बहाना बनाकर टरका नहीं सकेगा। सौर ऊर्जा प्लांट से लघु सचिवालय के सभी मुख्य कार्यालयों को जोड़ा जाएगा। इससे सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ आम आदमी को भी काफी राहत मिलेगी। यहां बिजली संयत्र लगने के बाद जहां बिजली किल्लत दूर होगी, वहीं सौर ऊर्जा को भी बढ़ावा मिलेगा। सौर ऊर्जा को बढ़ाने की इस मुहिम को अब लघु सचिवालय से शुरू किया जाएगा। क्योंकि लघु सचिवालय में हर रोज सरकारी कामकाज से हजारों लोग यहां आते हैं, इसलिए यहां लगने वाले इस संयत्र को लोगों के सामने मॉडल के तौर पर प्रस्तुत किया जाएगा। ताकि अधिक से अधिक लोग प्रेरित हों और सौर ऊर्जा को बढ़ावा मिले। लघु सचिवालय में लगने वाले साढ़े चार किलो वॉट के सौर ऊर्जा बिजली संयत्र पर साढ़े दस लाख रुपए की लागत आएगी। साढ़े चार केजी वॉट के इस संयत्र से हर माह एक हजार यूनिट बिजली पैदा की जा सकेगी। संयत्र लगने के बाद बिजली की बचत तो होगी ही साथ-साथ प्रशासन को हर माह लाखों रुपए के राजस्व का भी लाभ होगा। इस संयत्र की सबसे खास बात यह है कि इन उपकरणों की लाइफ बहुत ज्यादा है और यह आसानी से खराब भी नहीं होते हैं। अक्षय ऊर्जा विभाग के अधिकारियों की मानें तो इन उपकरणों की लाइफ 35 साल से भी ज्यादा होती है। अधिकारियों का कहना है कि कई जगह तो लोग इस तरह के प्लांट लगाकर सरकार को बिजली बेच रहे हैं।
वातावरण पर नहीं होगा दूष्प्रभाव
थर्मल पॉवर प्लांट में एक यूनिट बिजली बनाने पर एक किलो कार्बन वातावरण में फैल जाती हैं, जिससे वातावरण दूषित होता है। कोयले से बिजली बनाने पर जहां हमारे वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, वहीं कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधन भी सिकुड़ रहे हैं। जिससे भविष्य में हमारे सामने गंभीर परिणाम हो सकते हैं। लघु सचिवालय में लगने वाला सौर ऊर्जा बिजली संयत्र वातावरण के अनुकूल होगा। इस संयत्र से किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं होगा। यह संयत्र सूर्य की किरणों से बिजली पैदा करेगा। इस तरह काफी हद तक वातावरण दूषित होने से बचेगा।
प्रदर्शन के तौर पर लगाया जाएगा संयत्र
लघु सचिवालय में सरकारी कामकाज के सिलसिले में हर रोज हजारों लोग आते हैं। इसलिए इस संयत्र को लघु सचिवालय में प्रदर्शन के तौर पर लगाया जाएगा, ताकि अधिक से अधिक लोगों को जागरूक किया जा सके। इस संयत्र से किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता है। क्योंकि यह सूर्य की किरणों से बिजली पैदा करता है। यह पूरी तरह से वातावरण के अनुकूल है और यह लंबे समय तक चलने वाला प्लांट है। इस पर किए गए प्रयोगों से लगातार सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं।
ओडी शर्मा
प्रोजेक्ट आफिसर, अक्षय ऊर्जा विभाग, जींद

बुधवार, 25 जनवरी 2012

प्रशासन सुस्त, शराब माफिया चुस्त


ग्रामीण क्षेत्रों में जमा चुके हैं जड़ें
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले में शराब माफिया पूरी तरह बेकाबू हैं। शराब माफिया एक्साइज के नियमों को धत्ता बताकर विभाग को हर माह लाखों रुपए के राजस्व का चूना लगा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध शराब की बिक्री धड़ल्ले से जारी है। बार-बार शिकायतें मिलने के बावजूद भी आबकारी विभाग व पुलिस प्रशासन शराब मफियाओं पर शिकंजा कसने में नाकामयाब हैं। विभाग अब तक 310 लोगों पर ही हाथ डाल पाया है और इनसे जुर्माने के तौर पर लगभग 12 लाख रुपए ही वसूले गए हैं। अगर विभाग सख्ती से कार्रवाई करने पर राजस्व का आंकड़ा इससे ज्यादा बढ़ सकता है। विभाग की सुस्ती से यह साफ होता है कि विभाग शराब माफियाओं के सामने पूरी तरह से नतमस्तक हो चुका है। इस प्रकार प्रशासन की सह में ही अवैध शराब का कारोबार फल-फुल रहा है। 
जिले में शराब माफियाओं ने पूरी तरह से अपना जाल फैला रखा है। अवैध शराब के इस कारोबार से अच्छी कमाई होने के कारण शराब माफियाओं का मोह इस धंसे से कम नहीं हो रहा है। शराब माफियाओं के निशाने पर सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्र रहते हैं। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र में शराब माफियाओं के विश्वस्त सूत्र होते हैं, जो इनके इस काम को अंजाम देने में इनका पूरा सहयोग करते हैं। यहां पर शराब माफियाओं को पुलिसया कार्रवाई का डर भी कम होता है तथा पुलिस का शिकंजा कसे जाने पर यहां से बच निकलना भी आसान होता है। अगर विश्वस्त सूत्रों की मानें तो शराब माफियाओं के तार आबकारी व पुलिस विभाग से भी जुड़े होते हैं, जो रेड से पहले ही इनको सचेत कर देते हैं। जिस कारण शराब माफिया रेड से पहले ही अपना ठिकाना बदलकर आसानी से बच निकलते हैं। आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो आबकारी विभाग अब तक सिर्फ 310 लोगों पर ही अपना शिकंजा कसने में कामयाब हो पाया है। विभाग द्वारा पकड़े गए लोगों से जुर्माने के तौर पर लगभग 12 लाख रुपए वसूले गए हैं। अगर आबकारी विभाग व पुलिस प्रशासन पूरी मुस्तैदी से काम करे तो यह आंकड़ा इससे कई गुणा बढ़ सकता है। विभाग को बार-बार शिकायतें मिलने के बाद भी विभाग द्वारा कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जाती। जिस कारण शराब माफियाओं के हौंसले काफी बुलंद हैं। कभी-कभार अगर मामला ज्यादा तूल पकड़ता दिखाई दे या ग्रामीणों का दबाव प्रशासन पर बढ़े तो विभाग कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति कर देता है।
कानून के लचीलेपन के कारण भी शराब माफिया का मोह नहीं हो रहा कम
आबकारी एक्ट में शराब माफियाओं पर सख्त कार्रवाई का प्रावधान न होने के कारण भी शराब माफियाओं के हौंसले बुलंद रहते हैं। धंधा है पर गंदा है, लेकिन यह तो चंगा है की कहावत यहां स्टीक बैठती है। इस धंधे में आमदनी ज्यादा व जुर्माना नामात्र होने के कारण शराब माफियाओं का मोह इस धंधे से कम नहीं हो रहा है। आबकारी विभाग द्वारा अवैध शराब के साथ पकड़े जाने पर सजा का कोई प्रावधान नहीं है। विभाग शराब माफियाओं पर केवल जुर्माना लगा सकता है। विभाग जुर्माने के तौर पर पकड़े गए आरोपी पर बोतल के हिसाब से 50 से 500 रुपए का जुर्माना कर सकता है। लेकिन शराब माफिया पकड़े जाने पर विभाग के अधिकारियों के साथ सांठ-गांठ कर कम से कम जुर्माना अदा कर आसानी से बच निकलते हैं।
निडानी गांव में उठ चुका है कई बार विवाद
खेल गांव निडानी में पिछले कई सालों से अवैध शराब का कारोबार लगातार अपनी जड़ें फैला रहा है। गांव में अवैध शराब के बढ़ते कारोबार के कारण ग्रामीणों का कई बार शराब माफियाओं के साथ विवाद हो चुका है। गांव से अवैध खुर्द बंद करवाने की मांग को लेकर ग्रामीण कई बार जिला प्रशासन से भी गुहार लगा चुके हैं, लेकिन स्थिति वही जस की तस है। जिससे ग्रामीण आबकारी विभाग व पुलिस प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं। गांव के सरपंच अशोक कमार, सुरेश पूनिया, रामेश्वर, शमशेर, कृष्ण, संजय, मनोज, नरेश ने बताया कि गांव में सरकार की तरफ से शराब का ठेका या सबबैंड अधिकृत नहीं किया गया है। गांव में शराब का ठेका या सबबैंड अधिकृत न होने के बावजूद भी गांव में शराब तस्करों द्वारा खुलेआम शराब बेची जाती है। ग्रामीणों ने बताया कि वे कई बार इसकी शिकायत आबकारी विभाग व पुलिस प्रशासन को कर चुके हैं। ग्रामीण सुरेश पूनिया ने बताया वे खुद भी दो बार 19-7-2011 व 21-12-11 को रजिस्ट्री के माध्यम से पुलिस अधीक्षक व उपायुक्त के नाम शिकायत भेज चुका हूं, लेकिन आज तक एक बार भी शराब तस्करों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। ग्रामीणों ने बताया कि कई बार तो शराब ठेकेदार व अवैध रूप से खुर्दा चलाने वालों में अपनी-अपनी शराब की बिक्री को लेकर विवाद भी  हो जाता है। जिससे गांव का माहोल खराब हो रहा है।
शिकायत मिलने पर की जाती है कार्रवाई
विभाग को शिकायत मिलने पर तुरंत कार्रवाई की जाती है। इसके अलावा भी विभाग की टीमें रूटीन में छापेमारी करती है। पकड़े गए आरोपी से कानून के अनुसार कार्रवाई कर जुर्माना वसूला जाता है। पकड़े गए आरोपी के साथ किसी प्रकार की ढिलाई नहीं बरती जाती है। लेकिन कई बार ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के सहयोग के कारण शराब विक्रेता बच कर   निकल जाते हैं। 
कृष्ण कुमार
इंस्पेक्टर उप आबकारी एवं कराधान, जींद

रेडक्रॉस की राशि पर पंचायतों ने मारी कुंडली

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सामाजिक कार्यों के लिए पंचायती फंड से रेडक्रॉस को दी जाने वाली रकम पर ग्राम पंचायतें कुंडली मारे बैठी हैं। पिछले कई वर्षों से ग्राम पंचायतों द्वारा रेडक्रॉस में यह राशि जमा नहीं करवाई जा रही है। संस्था की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण सामाजिक कार्यों पर ब्रेक लगना भी लाजमी है। रेडक्रॉस द्वारा पंचायतों के खाते से रकम जमा करवाने के लिए बीडीपीओ कार्यालय को कई बार-बार पत्र लिखे जा चुके हैं, लेकिन बीडीपीओ कार्यालय द्वारा रकम जमा करानी तो दूर की बात संस्था के इन पत्रों का जवाब भी नहीं दिया जा रहा है। वर्ष 2011 में पूरे जिले से सिर्फ एक पंचायत ने 60 हजार रुपए की राशि संस्था में जमा करवाई है।
रेडक्रॉस की माली हालत को सुधारने तथा सामाजिक कार्यों में गति लाने के लिए सरकार ने 1986 में ग्राम पंचायत कंट्रीब्यूशन योजना तैयार की थी। इस योजना में प्रावधान किया गया था कि पंचायतें अपनी आय का कुछ  प्रतिशत हिस्सा रेडक्रॉस को देंगी। यह राशि पंचायतों को बीडीपीओ कार्यालय में जमा करवानी तय की गई थी। रेडक्रॉस को पंचायती खाते से मिलने वाली इस ग्रांट को सामाजिक कार्यों के लिए प्रयोग करना था। कुछ  सालों तक राशि जमा होने का सिलसिला ठीक चला, लेकिन बाद में अचानक यह राशि रास्ते में गोल होनी शुरू हो गई। कुछ पंचायतों ने तो यह राशि जमा करवानी ही बंद कर दी। इसके अलावा जो पंचायतें संस्था के लिए राशि देती थी उन्होंने भी राशि में कटोती करनी शुरू कर दी। विभागीय सूत्रों की मानें तो जो पंचायतें संस्था को पहले लाख से ज्यादा की वितीय सहायता देती थी, उन पंचायतों ने अपनी रकम में कटोती कर 50 से 60 हजार रुपए की रकम ही संस्था को दी है। संस्था के अधिकारियों द्वारा बीडीपीओ कार्यालयों को रकम जमा करवाने के लिए कई बार पत्र लिखी चुकी है, लेकिन बीडीपीओ कार्यालयों की ओर से रकम जमा करवानी तो दूर की बात संस्था के पत्रों का जवाब भी नहीं दिया जा रहा है।
2011 में एक पंचायत ने ही जमा करवाई रकम
सरकार द्वारा शुरू की गई ग्राम पंचायत कंट्रीब्यूशन योजना में पंचायतों द्वारा रूचि न लेने के कारण संस्था को ज्यादा लाभ नहीं मिल पा रहा है। जींद जिले में 299 पंचायतें हैं। वर्ष 2011 में 299 पंचायतों में से सिर्फ एक ही पंचायत ने 60 हजार रुपए की रकम संस्था में जमा करवाई है। इस प्रकार खंड विकास एवं पंचायत अधिकारियों की लापरवाही के कारण संस्था को पंचायती खाते से मिलने वाली वितीय सहायता बंद हो गई है।
उपायुक्त  के आदेशों की भी नहीं हो रही पालना
संस्था को समय पर वितीय सहायता उपलब्ध करवाने के लिए उपायुक्त डा. युद्धवीर सिंह ख्यालिया ने सभी बीडीपीओ को जल्द से जल्द सारी रकम की रिकवरी कर रेडक्रॉस में जमा करवाने के निर्देश जारी किए थे। लेकिन उपायुक्त के आदेशों के बावजूद भी अभी तक किसी पंचायत की ओर से संस्था में रकम जमा नहीं करवाई गई है। इस प्रकार खंड विकास एवं पंचायत अधिकारियों पर उपायुक्त के आदेशों का भी कोई असर नहीं है।

 बीडीपीओ की ओर से नहीं मिल रहे सकारात्मक परिणाम
सरकार द्वारा शुरू की गई ग्राम पंचायत कंट्रीब्यूशन योजना के तहत पंचायतों की आय से कुछ  प्रतिशत हिस्सा रेडक्रॉश में जमा करवाने का प्रावधान था। लेकिन पिछले कई वर्षों से पंचायतों द्वारा समय पर यह राशि संस्था में जमा नहीं करवाई जा रही है। इसके लिए उनके द्वारा संबंधित बीडीपीओ को पत्र लिखकर राशि जमा करवाने के लिए अवगत भी करवाया जाता है, लेकिन संस्था को बीडीपीओ की ओर से कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहे हैं।
रणदीप श्योकंद
सचिव रेडक्रॉस सोसायटी, जींद


हमेटी को जल्द मिलेगी सोलर सिस्टम की सौगात

 सोलर सिस्टम पर खर्च किए जाएंगे 15 लाख
नरेंद्र कुंडू
जींद।
रोहतक रोड स्थित हमेटी को जल्द ही सोलर सिस्टम की सौगात मिलेगी। हमेटी में प्रशिक्षण के लिए आने वाले किसानों को खान-पान व रहन-सहन संबंधी सुविधाएं अब सोलर आधारित मिलेंगी। यह सोलर सिस्टम काफी हाईटेक होगा। सर्दी के मौसम में किसानों को गर्म पानी उपलब्ध करवाने के लिए सोलर वाटर हीटिंग सिस्टम व 65 सोलर लाइटें भी लगाई जाएंगी। सोलर लाइटें लगने से हमेटी रात के अंधेरे में भी जगमगाएगी। हमेटी में सोलर सिस्टम लगने के बाद बिजली व पानी की बचत के साथ-साथ विभाग को लाखों रुपए के राजस्व का लाभ भी होगा। विभाग द्वारा सोलर सिस्टम पर 15 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए यहां पर प्रशिक्षण के लिए आने वाले लोगों को भी सोलर सिस्टम के बारे में विस्तार से जानकारी देकर प्रेरित किया जाएगा।
हमेटी में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले किसानों को सोलर सिस्टम पर आधारित सभी सुविधाएं मिलेंगी। कड़ाके की ठंड में भी किसानों को 24 घंटे गर्म पानी उपलब्ध होगा। विभाग द्वारा हमेटी में 2 हजार लीटर की क्षमता वाला वाटर हीटिंग सिस्टम लगाया जाएगा। इसमें एक हजार लीटर क्षमता का वाटर हीटिंग सिस्टम तो लगाया जा चुका है। कभी-कभार अगर धूंध के कारण सूर्य उदय नहीं होगा तो भी ज्यादा चिंता की बात नहीं है, क्योंकि वाटर हीटिंग सिस्टम से गर्म किया गया पानी टंकी में कम से कम दो दिनों तक गर्म रह सकता है। इससे  इसके अलावा केंद्र के प्रांगण में जल्द ही सोलर लाइटें भी लगाई जाएंगी। वाटर हीटिंग सिस्टम से मेस में खाना बनाने में भी इसी पानी का प्रयोग किया जाएगा। जिससे खाना भी जल्द ही तैयार हो जाएगा। इसके अलावा वाटर हीटिंग सिस्टम के साथ रीप सिस्टम लगने से पानी भी बर्बाद होने से बच जाएगा। यहां पर कृषि प्रशिक्षण के साथ-साथ किसानों को सोलर सिस्टम से होने वाली बचत के बारे में जानकारी देकर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए भी प्रेरित किया जाएगा। ताकि अधिक से अधिक लोग सोलर सिस्टम का लाभ ले सकें। प्रशिक्षण केंद्र में सोलर सिस्टम लगने से बिजली व पानी की बचत के साथ-साथ विभाग को हर साल लाखों रुपए के राजस्व का •ाी ला•ा होगा।
वाटर हीटिंग सिस्टम के बारे में जानकारी देते डायरेक्टर बीएस नैन।
क्या है वाटर हीटिंग सिस्टम
वाटर हीटिंग सिस्टम छत पर रखी पानी की टंकी पर लगाया जाता है। यह सिस्टम सूर्य की किरणों से ऊर्जा लेकर टंकी के पानी को गर्म कर देता है। इसके अलावा इस सिस्टम के साथ रीप सिस्टम भी लगाया जाता है। रीप सिस्टम सोलर एनर्जी पर बेस्ड सिस्टम है और यह आम सोलर पैनल की तरह नहीं है। आम सोलर पैनल जहां सोलर एनर्जी से बिजली बनाता है और इसे बैटरी में स्टोर करता है, वहीं रीप सिस्टम सूरज की रोशनी से एनर्जी लेकर उसका इस्तेमाल सीधे जमीन के अंदर से पानी को खींचने में करता है। अगर पानी किसी पाइपलाइन के जरिये आ रहा है तो रीप सिस्टम से बिना बिजली खर्च किए उसे ओवरहेड टैंक तक पहुंचाया जा सकता है। जैसे ही टैंक भरेगा, रीप सिस्टम काम करना बंद कर देगा। फिर टैंक से पानी का लेवल कम होने के बाद वह दोबारा काम करना शुरू करेगा और टैंक को फिर भर देगा। इस तरह यह सिस्टम अंडरग्राउंड वॉटर और पाइपलाइन से आ रहे पानी की बर्बादी को भी रोकेगा। इसके इस्तेमाल से पानी व बिजली दोनों की बचत होगी।
सोलर सिस्टम से रोशन होगा हमेटी।
किसान प्रशिक्षण केंद्र में अब लाइट की समस्या नहीं रहेगी। शहर में ओर कहीं लाइट रहे या न रहे, लेकिन हमेटी में लाइट जरूर रहेगी। सोलर सिस्टम लगने से हमेटी में चौबिसों घंटे लाइट रहेगी। हमेटी में बिजली से होने वाले सभी कार्य सोलर सिस्टम पर आधारित होंगे। हमेटी प्रांगण में एनर्जी सेविंग वाली 65 एलईडी सोलर लाइटें लगाई जाएंगी। यह पूरी तरह से आटोमेटीक होंगी। शाम होते ही अपने आप लाइटें जल जाएंगी और सुबह होते ही अपने आप बंद जाएंगी। इस प्रकार हमेटी में सोलर सिस्टम शुरू होने के बाद कोई भी काम प्रभावित नहीं होगा।
ऊर्जा की बचत करना है उद्देश्य
विभाग द्वारा सोलर सिस्टम पर 15 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। प्रशिक्षण केंद्र में सोलर सिस्टम शुरू होने से लाइट व पानी की बचत होगी। जिससे विभाग को हर माह लाखों रुपए की बचत होगी। प्रशिक्षण केंद्र में इस सिस्टम को लगवाने के पीछे उनका उद्देश्य एनर्जी सेविंग करना है। इस योजना को जल्द से जल्द अमल में लाने के लिए सभी कागजी कार्रवाई पूरी कर रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजी जा चुकी है।
बीएस नैन
डायरेक्टर, हमेटी, जींद


गुरुजियों के ये कैसे आदर्श

नरेंद्र कुंडू
जींद।
उत्तर भारत ने कोहरे और बर्फ की चादर ओढ़ ली है। पहाड़ी इलाकों से आने वाली गलन भरी हवाओं ने लोगों को घरों के अंदर कैद कर दिया है। लोग पिछले कई दिनों से ठंड के तीखे तेवर झेल रहे हैं। ठंड के साथ-साथ कोहरा भी कोहराम मचा रहा है। लेकिन उधर स्कूलों में बचपन ठंड में ठिठुर रहा है और शिक्षा विभाग मौन धारण किए हुए है। स्कूलों में अध्यापक खुद पर तो जमकर रहम कर रहे हैं, जबकि विद्यार्थियों पर सितम ढाह रहे हैं। कड़ाके की ठंड में विद्यार्थियों पर शॉल, स्कार्फ व मफलर पहनने पर बैन लगाया जा रहा है, जबकि अध्यापक खुद शॉल, चदरों, मफलरों में लिपटकर स्कूल में पहुंचते हैं। स्कूलों में चदर व मफलर ओढ़कर न आने के नियम सिर्फ बच्चों के लिए बनाए गए हैं। अध्यापकों के लिए इस तरह का कोई नियम नहीं बनया गया है।
 छात्राओं के पीछे शॉल ओढ़कर स्कूल आती अध्यापिका।

ठंड में ठिठुरती स्कूली छात्राएं।
हर रोज ठंड शबाब पर पहुंच रही है। दिनों दिन कोहरे व ठंड का कहर बढ़ रहा है। जनजीवन पूरी तरह से अस्तव्यस्त है। लोग बेहाल हैं और घर से निकलते ही लोगों की कंपकपी बंध रही है। इस सर्दी से बचने के लिए लोग गर्म कपड़ों व अलाव का सहारा भी ले रहे हैं। तापमान लुढ़क कर 3 डिग्री तक पहुंच गया है। अब दिन में भी ठंड का असर दिखाई दे रहा है। लेकिन इस हाड़ कंपकंपाने वाली सर्दी में बच्चे ठिठुरते स्कूलों में पहुंच रह हैं। कहते हैं कि विद्यार्थी जीवन में अध्यापक का दर्जा गुरु से भी बड़ा होता जाता है। क्योंकि अध्यापक विद्यार्थी को भगवान से मिलने का रास्ता दिखाता है। अध्यापक विद्यार्थियों के सामने अपने आप को आदर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं। लेकिन यहां पर तो अध्यापक अपने लिए अलग नियम बनाकर विद्यार्थियों को अलग ही शिक्षा दे रहे हैं। स्कूल प्रबंधन द्वारा स्कूलों में बच्चों को शॉल, चदर, मफलर व स्कार्फ पहने पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। जिससे बच्चे जुकाम, खांसी व अन्य बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं और उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है। सरकारी स्कूलों में शॉल व चदर ओढ़ने पर बैन सिर्फ बच्चों पर ही लगाया गया है। इस तरह का बैन अध्यापकों पर नहीं लगाया गया है। अध्यापक खुद शॉल व चदरों में लिपट कर स्कूल में पहुंच रहे हैं। छात्रा नेहा, रेखा, संतोष, सोनिया, अनिता, ममता, रेनू, सुमन, ने बताया कि स्कूल में शॉल, मफलर या स्कार्फ पहनने पर प्रतिबंध लगया गया है। अगर वे शॉल या स्कार्फ पहनकर स्कूल में आती हैं तो अध्यापक उनकी पिटाई करते हैं। जिस कारण उन्हें मजबूरन बिना शॉल या स्काप में आना पड़ता है और पूरा दिन ठंड में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है। छात्राओं ने बताया कि अध्यापक उन्हें तो बिना चदर या स्कार्फ के स्कूल में आने को मजबूर करते हैं, लेकिन अध्यापक स्वयं स्कूल में चदर व मफलर ओढ़कर आते हैं।
क्या है पेरेंट्स की राय
ठंड में सुबह-सुबह छोटे बच्चों को स्कूल जाने से बीमार होने की आशंका बनी रहती है। ठंड को देखते हुए शिक्षा विभाग द्वारा छोटे बच्चों की छुट्टियां कर देनी चाहिए। इसके अलावा बड़े बच्चों पर स्कूल में शॉल, चदर या मफलर इत्यादि पहन कर आने पर पाबंदी नहीं लगानी चाहिए। अगर स्कूल में बच्चों पर चदर, शॉल या मफलर पहनने पर पाबंदी लगा दी जाएगी तो ठंड के कारण बच्चे बीमारी की चपेट में आ जाएंगे, जिससे बच्चों को शारीरिक परेशानी तो होगी ही, साथ-साथ उनकी पढ़ाई भी बाधित होगी। ठंड के मौसम के देखते हुए स्कूल में शॉल, चदर या मफलर पर पाबंदी लगाना सरासर गलत है।


मंगलवार, 24 जनवरी 2012

फाइलों में दफन 5 हजार बच्चों का भविष्य

दो वर्ष बाद भी अमल में नहीं आ सकी योजना
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार एक तरफ तो शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के दावे कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ सरकार के ये आसमानी दावे हकीकत में जमीन सुंघते नजर आते हैं। सरकार द्वारा राष्टÑीय बाल विकास नीति 2010 के तहत जिला बाल कल्याण परिषद के माध्यम से अनाथ व गरीब बच्चों को शिक्षा भत्ता देने के लिए आवेदन मांगे थे। इस योजना के तहत गरीब व बेसहारा बच्चों को हर माह 500 से 1500 रुपए शिक्षा भत्ता दिया जाना था। इसमें जिलेभर से 5 हजार बच्चों ने आवेदन किये थे, लेकिन अब हरियाण राज्य बाल कल्याण निदेशालय द्वारा इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। विभाग की अनदेखी के कारण 5 हजार बच्चों का भविष्य फाइलों में दफन हो गया है।
सरकार अनाथ व गरीब बच्चों के उत्थान के लिए हर रोज नई-नई योजनाएं तैयार कर रही है। सरकार द्वारा इन योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भी ये योजनाएं फाइलों से बाहर नहीं निकल पाती हैं। सरकार शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर सबको शिक्षा का हक दिलवाने के दावे कर रही है। लेकिन उधर स्वयं सरकार द्वारा तैयार की गई रास्ट्रीय बाल विकास नीति 2010 फाइलों में ही दफन होकर रह गई है। हरियाणा राज्य बाल कल्याण परिषद निदेशालय ने जिला बाल कल्याण परिषद को पत्र क्रमांक 37048-102 के माध्यम से एक दिसंबर 2010 को अनाथ व बेसहारा बच्चों के आवेदन जमा करवाने के निर्देश जारी किए थे। जिसके तहत जिला बाल कल्याण परिषद ने विज्ञापन जारी कर गरीब, बेसहारा, अनाथ व असहाय बच्चों से आवेदन मांगे थे। जिसके बाद जिला बाल कल्याण परिषद को जिले से 5 हजार आवेदन प्राप्त हुए थे। जिला बाल कल्याण परिषद ने प्राथमिकता के आधार पर पात्र व्यक्तियों से आवेदन प्राप्त कर और सभी औपचारिकताएं पूरी कर आवेदन निदेशालय को भेज दिए। निदेशालय को आवेदन प्राप्त होने के दो वर्ष बाद भी यह योजना अमल में नहीं आ पाई है। आवेदक आज भी विभाग से आर्थिक सहायता की आश लगाए बैठे हैं। योजना के ठंडे बस्ते में चले जाने से 5 हजार बच्चों के सपने फाइलों में ही दम तोड़ गए हैं।
क्या थी योजना
सरकार ने गरीब, बेसहारा, अनाथ व असहाय बच्चों को शिक्षा भत्ता देने के लिए रास्ट्रीय बाल विकास नीति 2010 नाम से एक योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत पात्र व्यक्तियों को 18 वर्ष तक 500 से लेकर 1500 रुपए तक भत्ता दिया जाना था। योजना का लाभ लेने के लिए पात्र व्यक्ति को एक सादे कागज पर अपना आवेदन तैयार कर संबंधित सरपंच या एमसी से सत्यापित करवाकर जिला बाल कल्याण परिषद को देने थे। इस योजना के तहत हरियाणा राज्य बाल कल्याण निदेशालय, चंडीगढ़ द्वारा पात्र आवेदकों के खाते खुलवाकर हर माह भत्ता उनके खाते में जमा करवाने का प्रावधान था। इस योजना के माध्यम से जिला बाल कल्याण परिषद को 5 हजार आवेदन प्राप्त हुए थे।  


हरियाणा राज्य बाल कल्याण निदेशालय द्वारा दिसंबर 2010 में जिला बाल भवन के माध्यम से अनाथ व गरीब बच्चों को शिक्षा भत्ता देने के लिए रास्ट्रीय बाल विकास नीति के तहत पात्र व्यक्तियों के आवेदन मांगे गए थे। इस योजना के तहत पात्र व्यक्तियों को 18 वर्ष तक 500 से 1500 रुपए शिक्षा भत्ता दिया जाना था। योजना के तहत जिला बाल भवन को 5 हजार आवेदन प्राप्त हुए थे। उन्होंने आवेदन प्राप्त कर सभी औपचारिकताएं पूरी करवा निदेशालय को आवेदन भेज दिये थे। लेकिन सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने के बाद विभाग ने इस योजना को बंद कर दिया। जिस कारण आवेदकों को योजना का लाभ नहीं मिल सका।
सुरजीत कौर आजाद
जिला बाल कल्याण अधिकारी, जींद

बजट के बिना कैसे खिलेगा बचपन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
बाल भवन को सरकारी स्कूलों से मिलने वाला चाइल्ड वेलफेयर फंड बंद होने के बाद अब जिला बाल कल्याण परिषद का खजाना खाली होने लगा है। खजाने में आय का स्त्रोत कम होने से बाल भवन में चलने वाली गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। बाल कल्याण विभाग को सरकारी स्कूलों से चाइल्ड वेलफेयर फंड मिलता था। इसी फंड से बाल भवन में होने वाली गतिविधियों का खर्चा उठाया जाता था। जिले में पहले प्रतिवर्ष सरकारी स्कूलों से लगभग 9 लाख रुपए चाइल्ड वेलफेयर फंड हो जाता था, लेकिन अब सिमटकर लगभग दो से तीन लाख रुपए रह गया है। बाल कल्याण परिषद की पोटली में आय कम होने से बहुत से गतिविधियां बंद हो चुकी है और कुछ बंद होने की कगार पर हैं। बाल भवन के खजाने में पैसे की कमी के चलते कर्मचारियों को समय पर वेतन भी  नहीं मिल पा रहा है। इस फंड का कुछ हिस्सा बाल भवन तथा कुछ हिस्सा मुख्यालय भेजा जाता था। सरकारी स्कूलों से चाइल्ड वेलफेयर फंड बंद होने पर बाल भवन की गतिविधियों को सुचारू रूप से जारी रखने के लिए इन खर्चों का बोझ निजी स्कूल के विद्यार्थी पर डालने की योजना बनाई थी। इसके लिए जिला शिक्षा विभाग की तरफ से सभी खंड शिक्षा अधिकारियों को पत्र जारी करते हुए उनके ब्लाक में स्थित स्थायी व अस्थायी मान्यता प्राप्त स्कूलों से 50 रुपए प्रति छात्र वार्षिक लेकर उसे स्कूलों द्वारा बाल कल्याण अधिकारी कार्यालय में जमा कराने के निर्देश जारी किए गए थे। लेकिन निजी स्कूलों के संचालकों द्वारा इस योजना से हाथ पिछे खिंचने के कारण यह योजना भी सिरे नहीं चढ़ पाई।
शिक्षा का अधिकार कानून बना रास्ते का रोड़ा
सरकार ने अप्रैल 2010 से शिक्षा का अधिकार लागू होने के बाद पहली से आठवीं तक निशुल्क शिक्षा लागू कर दी। जिसके बाद से बच्चों से फीस व फंड लिए जाने बंद कर दिए गए। पहले ये फंड दस से बीस रुपए तक लिए जाते थे। जिले के सभी स्कूलों से लगभग 9 लाख रुपए का चाइड वेलेफेयर फंड एकत्रित होता था। जिसे बाद में छोटे बच्चों के विकास के लिए चलाई जाने वाली गतिविधियों पर खर्च किया जाता था। लेकिन अब यह फंड केवल कक्षा नौंवी से 12 तक के छात्रों के कंधों पर ही सिमटकर रह गया है। पहली से आठवीं तक सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या अधिक होने के कारण इनसे ज्यादा फंड मिलता था। लेकिन नौवीं से 12वीं तक छात्रों की संख्या घट जाती है। नौवीं से 12वीं के छात्रों से प्रत्येक माह दो रुपए प्रति बच्चा लिया जाता है। जिस कारण यह फंड अब दो से तीन लाख रुपए तक सिमटकर रह गया है।
सरकारी स्कूलों की गतिविधियां भी प्रभावित
चाइल्ड वेलफेयर फंड बंद होने से बाल कल्याण परिषद के साथ-साथ सरकारी स्कूलों की गतिविधियां भी प्रभावित हुई हैं। बाल कल्याण परिषद में जहां इस फंड के माध्यम से घुमंतू जाति के बच्चों को पढ़ाई का खर्च उठाने व बच्चों के मानसिक विकास के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर खर्च किया जाता था। बच्चों से मिलने वाले इसी फंड से सरकारी स्कूलों में बच्चों के खेलकूद प्रतियोगिताएं, स्कूल की अन्य गतिविधियों पर खर्च होता था। लेकिन फंड बंद होने के कारण सरकारी स्कूलों की गतिविधियां भी प्रभावित हुई हैं।
गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने का किये जा रहे हैं प्रयास
पहले बाल भवन की गतिविधियां सरकारी स्कूलों से मिलने वाले चाइल्ड वेलफेयर फंड से चलाई जाती थी, जिसमें कुछ हिस्सा स्टेट हैड व कुछ उनके पास रहता था। सरकार ने पहली से आठवीं तक निशुल्क शिक्षा करने के बाद फंड समाप्त कर दिए हैं, जिससे खर्चों में दिक्कत आ रही है। बाल भवन की गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए जिला प्रशासन ने स्थायी व अस्थायी निजी स्कूलों के विद्यार्थियों से भी यह फंड लेने की योजना बनाई थी। लेकिन निजी स्कूल संचालक फंड देने के लिए तैयार नहीं हुए। बाल कल्याण परिषद के पास अब आय के ज्यादा स्त्रोत नहीं हैं, जिस कारण कुछ गतिविधियां प्रभावित हुई हैं, लेकिन फिर भी बाल कल्याण परिषद बच्चों की गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने का प्रयास कर रहा है।
सुरजीत कौर आजाद
जिला बाल कल्याण अधिकारी, जींद


आगाज से पहले ही दम तोड़ गई योजना

सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण फाइलों में दफन है योजना
नरेंद्र कुंडू
जींद। रास्ट्रीय उपभोक्ता दिवस पर उपभोक्ताओं को अधिकारों के प्रति जागरूक करने वाले सरकारी अधिकारी स्वयं ही उपभोक्ताओं के हितों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए जिला स्तर पर बनाई जाने वाली उपभोक्ताओं सरंक्षण परिषद आज भी फाइलों से बाहर नहीं आ सकी है। सरकारी अधिकारी एनजीओज न मिलने का बहाना बनाकर हाथ खड़े कर रहे हैं। सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण योजना आगाज से पहले ही दम तोड़ गई है। परिषद का गठन न होने के कारण दुकानदार उपभोक्ताओं के अधिकारों पर खुलेआम डाका डाल रहे हैं।  
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने व मिलावट खोरों पर शिकंजा कसने के लिए प्रदेश सरकार ने जिला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद का गठन करने की योजना तैयार की थी। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना तथा उपभोक्ताओं को सही मात्रा व शुद्ध सामान उपलब्ध करवाना ही परिषद का मुख्य उद्देश्य था। उपभोक्ताओं के हितों के साथ-साथ गैस एजेंसियों पर सिलेंडरों व बुकिंग को लेकर होने वाले झगड़ों को रोकने की जिम्मेदारी भी परिषद को सौंपी जानी थी।इसके लिए प्रदेश सरकार द्वारा नवंबर माह में सभी जिला उपायुक्तों को पत्र क्रमांक सीए-1-2011/26067 के माध्यम से जिला स्तर पर उपभोक्त संरक्षण परिषदों का गठन करने के निर्देश दिए गए थे। परिषद का गठन दो वर्ष के लिए किया जाना था, जिसमें कुल 30 सदस्य नियुक्त करने थे, इनमें 14 सरकारी तथा 16 गैर सरकारी सदस्यों को शामिल किया जाना था। परिषद का अध्यक्ष उपायुक्त तथा उपाध्यक्ष अतिरिक्त उपायुक्त को नियुक्त किया जाना था। इसके अलावा जिला परिषद, नगर परिषद के अध्यक्ष सहित सरकारी विभगों से 14 कर्मचारियों, 10 सदस्य पंजीकृत सामाजिक संगठनों से नियुक्त करने तथा 2 महिला प्रतिनिधि, 2 युवा व 2 सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना था। परिषद का मुख्य उद्देश्य बाजार में मिलने वाले सामान के मूल्य, गुणवत्ता व मात्रा की जांच कर उपभोक्ताओं को सही सामान उपलब्ध करवाने के साथ-साथ उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान करना तथा शिकायतों की जांच करना और उन पर कार्रवाई करना भी था। लेकिन योजना को सिरे चढ़ाने के लिए सरकारी अधिकारियों ने किसी प्रकार की कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अधिकारियों की लापरवाही व एनजीओज न मिलने के कारण योजना आज तक फाइलों से बाहर नहीं आ सकी है।
क्या थी योजना
उपभोक्ताओं के हितो की रक्षा तथा उप•ाोक्ता को सही मात्रा तथा शुद्ध सामान उपलब्ध करवाने के लिए सरकार ने जिला स्तर पर उपभोक्ता सरंक्षण परिषद गठन करने का निर्णय लिया था। परिषद में कुल 30 सदस्य नियुक्त करने थे, जिनमें 14 सरकारी तथा 16 गैर सरकारी सदस्यों को शामिल किया जाना था। परिषद का गठन दो वर्ष की अवधि के लिए किया जाना था। परिषद के गठन का उद्देश्य उपभोक्ताओं की समस्याओं का निवारण तथा शिकायतों की जांच करना और उन पर कार्रवाई करना था। इसके लिए प्रदेश सरकार द्वारा सभी जिला उपायुक्तों को पत्र के माध्यम से परिषद का गठन करने के निर्देश दिए गए थे। समय-समय पर परिषद के प्रतिनिधियों को दिशा-निर्देश देने के लिए वर्ष में दो बार परिषद की बैठक होनी निश्चित थी।
क्या कहती हैं डीएफएससी
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए जिला स्तर पर पहली बार उपभोक्ता संरक्षण परिषद का गठन किया जाना था। परिषद के लिए 30 सदस्य नियुक्त किए जाने था, जिनमें कुछ एनजीओज को भी शामिल करना था। लेकिन एनजीओज की कमी के कारण अभी तक परिषद का गठन नहीं हो पाया है। एनजीओज द्वारा परिषद के सदस्य बनने के लिए तैयार होने के बाद ही परिषद का गठन हो सकेगा।
अनिता खर्ब
जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक, जींद

रविवार, 22 जनवरी 2012

अब नहीं होगा गरीबों का इलाज

नरेंद्र कुंडू
जींद। गरीबों के लिए शुरू की गई रास्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना दम तोड़ती नजर आ रही है। बीमा कंपनी व निजी अस्पतालों की खींचतान में गरीब लोग पिस रहे हैं। निजी अस्पतालों में कार्ड पर इलाज न होने के कारण सरकार द्वारा बनाए गए स्मार्ट कार्ड जरूरतमंदों के लिए बेकार साबित हो रहे हैं। निजी अस्पताल पिछले 8 माह से बीमा कंपनी द्वारा इलाज की राशि का भुगतान न करने की बात कहकर हाथ खड़े कर रहे हैं। इस प्रकार बीमा कंपनी समय पर निजी अस्पतालों को इलाज की राशि का भुगतान न करके सरकार को भी चूना लगा रही है। कार्ड धारकों के लिए निजी अस्पतालों के दरवाजे बंद होने के कारण इन्हें इलाज के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर होना पड़ रहा हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जिला ईकाइ के सदस्य दो बार उपायुक्त से इलाज की राशि की रिकवरी की गुहार लगा चुके हैं।
सरकार द्वारा बीपीएल परिवारों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के उद्देश्य से रास्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की गई थी। सरकार द्वारा प्रदेश में सरकारी अस्पतालों के अलावा निजी अस्पतालों को भी स्मार्ट कार्ड धारकों के इलाज के लिए नेटवर्क में लिया। विभागिय सूत्रों की मानें तो जिले में 75 हजार के करीब स्मार्ट कार्ड धारक हैं। इन स्मार्ट कार्ड धारकों के इलाज के लिए जिले में सरकारी अस्पतालों के अलावा 14 निजी अस्पताल भी निर्धारित किए गये। शुरूआत में तो योजना कार्ड धारकों के लिए काफी फायदेमंद साबित हुई, लेकिन बाद में बीमा कंपनी व निजी अस्पतालों की खिंचतान के कारण योजना कार्ड धारकों के लिए गले की फांस बन गई। निजी अस्पतल संचालकों की मानें तो उन्हें बीमा कंपनी से पिछले 8 माह से बीपीएल परिवारों को इलाज करवाने के लिए सरकार की तरफ से मिलने वाली पेमेंट ही नहीं मिल पा रही है। ऐसे में निजी अस्पतालों ने योजना से हाथ पीछे खिंचते हुए इन बीपीएल परिवारों का इलाज करना ही बंद कर दिया।
निजी अस्पताल में स्मार्ट कार्ड धारकों का इलाज न करने बारे लगाया गया नोटिस।
सरकार को भी लग रहा है चूना
सरकार द्वारा शुरू की गई रास्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत निजी अस्पतालों को इलाज पर खर्च की जाने वाली राशि के भुगतान के लिए बीमा कंपनी को जिम्मेदारी सौंपी गई है। सरकार द्वारा बनाए गए स्मार्ट कार्ड पर एक साल तक कार्ड धारक का इलाज किया जाता है। सरकार पात्र बीपीएल परिवारों की पहचान कर बीमा कंपनी को एक साल की पेमेंट कर देती है। अब निजी अस्पतालों द्वारा कार्ड धारकों का इलाज बंद कर देने से बीपीएल परिवारों के लिए कार्ड बेकार साबित हो रहे हैं। क्योंकि कुछ ही महीनों के बाद इनकी निर्धारित अवधि समाप्त हो जाएगी। इस प्रकार सरकार द्वारा बीमा कंपनी को दी गई राशि बीमा कंपनी ही हजम कर सरकार को चूना लगा रही है।
क्या है स्मार्ट कार्ड योजना
रास्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत बीपीएल परिवार के स्मार्ट कार्ड धारकों और उसमें दर्ज परिवार के किसी भी सदस्य के अस्पताल में भर्ती होने पर तीस हजार रुपए तक के इलाज की सुविधा निशुल्क मिलती है। इस योजना के तहत मरीज के भर्ती होने से डिस्चार्ज होने तक तीस हजार तक का खर्च नेटवर्क से जुड़े निजी अस्पताल या सरकारी अस्पताल वहन करते हैं। मरीज के डिस्चार्ज होने के बाद अस्पताल इसके भुगतान के लिए सरकार को मरीज के खर्च का रिकार्ड भेजती है, जिससे अस्पताल को सरकार बीमा कंपनी के माध्यम से भुगतान राशि मिलती है, लेकिन काफी दिनों से भुगतान बंद होने के कारण नेटवर्क से जुड़े निजी अस्पतालों का रुपया फंस गया है। इसके कारण निजी अस्पतालों द्वारा स्मार्ट कार्ड धारकों का इलाज करने की बजाय हाथ पीछे खींचने शुरू कर दिए हैं।
क्या कहते हैं मेडिकल एसोसिएशन के सदस्य
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जिला प्रधान डा. सुरेश जैन, सचिव डा. अजय गोयल व मीडिया प्रभारी डा.सुशील मंगला का कहना है कि स्मार्ट कार्ड धारकों का नर्सिग होम में इलाज किया जाता था। उनके पास हर रोज 6 से 7 मरीज इलाज के लिए आते थे। लेकिन जून 2011 से बीमा कंपनी कि ओर से उन्हें कार्ड धारकों पर खर्च होने वाली राशि का भुगतान नहीं किया जा रहा है। बीमा कंपनी से समय पर राशि का भुगतान करवाने के लिए वे दो बार उपायुक्त को भी ज्ञापन दे चुके हैं, लेकिन स्थिति ज्यों कि त्यों है। इसलिए उन्होंने अब मजबूरीवश स्मार्ट कार्ड धारकों का इलाज करना बंद कर दिया है। इस बारे में नोडल अधिकारी से डा. अतुल गिल से संपर्क किया गया तो उनसे संपर्क नहीं हो सका।


रविवार, 15 जनवरी 2012

अब जिला पुस्तकालयों का डाटा होगा कम्प्यूटरीकृत


उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा पुस्तकालयों पर खर्च किए जाएंगे 75 लाख
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिला पुस्तकालयों में कर्मचारियों पर बढ़ते काम के बोझ को कम करने तथा पाठकों को पुस्तकालयों में विशेष सुविधा मुहैया करवाने के उद्देश्य से महानिदेशक उच्चतर शिक्षा विभाग हरियाणा द्वारा पुस्तकालयों के रिकार्ड को कम्प्यूटरीकृत करने का निर्णय लिया गया है। पुस्तकालयों को कम्प्यूटरीकृत करने के लिए कोलकाता स्थित राजा राम मोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान द्वारा प्रदेश के सभी जिला पुस्तकालयों पर 75 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। प्रतिष्ठान द्वारा महानिदेशक उच्चत शिक्षा विभाग हरियाणा को पत्र लिख कर जल्द से जल्द सभी जिला पुस्तकालयों से कम्प्यूटरों की कुटेशन मांगी गई है। इस योजना के तहत जिला पुस्तकालयों में पुस्तकों को एक साफ्टवेयर में सूचीबद्ध कर डाटा बेस तैयार किया जाएगा। पुस्तकों का सूचीबुद्ध डाटा तैयार होने के बाद किताबों के रख-रखाव व पाठकों के लिए किताबें तलाशना काफी सुविधाजनक हो जाएगा। उच्चत शिक्षा विभाग तथा प्रतिष्ठान द्वारा उठाए गए इस कदम से पुस्तकालय के कर्मचारियों को भी काफी राहत मिलेगी।
प्रदेश के जिला पुस्तकालयों पर पिछले काफी समय से कर्मचारियों का भारी टोटा है। कर्मचारियों की कमी के कारण पुस्तकालयों का काम-काज भी प्रभावित हो रहा है। लेकिन अब कर्मचारियों पर काम के दबाव को कम करने के लिए राज राम मोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान व उच्चतर शिक्षा विभाग ने जिला पुस्तकालयों को कम्प्यूटरीकृत करने का निर्णय लिया है। विभाग द्वारा तैयार की गई इस योजना से पुस्तकालयों का सारा रिकार्ड कम्प्यूटरीकृत किया जाएगा। पुस्तकालयों को कम्प्यूटरीकृत करने के लिए कोलकाता स्थित राजा राम मोहन राय ट्रस्ट द्वारा प्रदेश के उच्चतर शिक्षा विभाग को 75 लाख रुपए की राशि दी जाएगी। योजना को जल्द से जल्द अमल में लाने के लिए ट्रस्ट द्वारा उच्चतर शिक्षा विभाग से प्रत्येक जिले से कम्प्यूटरों पर आने वाले खर्च की कुटेशन मांगी गई है। विभाग ने भी योजना में दिलचस्पी दिखाते हुए सभी जिला पुस्तकालयों से मान्यता प्राप्त कम्प्यूटर इंस्टीच्यूट से कुटेशन तैयार करवाकर विभाग को भेजने के निर्देश दिए हैं। सभी जिला पुस्तकालयों पर कम्प्यूटर उपलब्ध करवाने के बाद एक साफ्टवेयर के माध्यम से पुस्तकों को सूचीबद्ध कर डाटा बेस तैयार किया जाएगा। पुस्तकों का सूचीबद्ध डाटा तैयार होने के बाद पुस्तकालय के कर्मचारियों को काफी राहत मिलेगी। पुस्तकों का डाटा कम्प्यूटरीकृत होने के बाद कर्मचारियों को पुस्तकों के  रख-रखाव में मदद मिलेगी तथा पाठकों के लिए पुस्तक तलाशना भी काफी सुविधाजनक हो जाएगा।
पुस्तकालय के कामकाज में लगे कर्मचारी
कम्प्यूटर के साथ-साथ पुस्तकालय को मिलेंगी अन्य सुविधाएं
जिला पुस्तकालय के सीनियर लाइब्रेरियन बलबीर चहल ने बताया कि महानिदेशक उच्चत शिक्षा विभाग द्वारा भेजे गए पत्र क्रमांक नंबर 9/8-2007 पु. (4) पुस्तकालय को राजा राम मोहन राय प्रतिष्ठान द्वारा 3 लाख रुपए की ग्रांट देने का जिक्र किया गया है। पत्र के माध्यम से उनसे जल्द से जल्द मान्यता प्राप्त कम्प्यूटर सेंटर से कम्प्यूटरों पर आने वाली लागत की कुटेशन मांगी गई थी। उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त कम्प्यूटर सेंटर से कुटेशन तैयार करवा कर विभाग को भेज दी है। ट्रस्ट द्वारा पुस्तकालय को दी जाने वाली तीन लाख की ग्रांट से पुस्तकालयों में पाठकों की सुविधा के लिए कम्प्यूटर के अलावा कूलर, वाटर कूलर व पीने के पानी को शुद्ध करने के लिए आरओ भी लगवाया जाएगा।

पुस्तकालय का नाम                      राशि
 केंद्रीय पुस्तकालय अंबाला कैंट         6 लाख
जिला पुस्तकालय सिरसा                 लाख
जिला पुस्तकालय कुरुक्षेत्र                5 लाख
जिला पुस्तकालय पंचकूला              5 लाख
जिला पुस्तकालय हिसार                 4 लाख
जिला पुस्तकालय गुड़गांव                4 लाख
जिला पुस्तकालय नारनौल               4 लाख
जिला पुस्तकालय रोहतक                4 लाख
जिला पुस्तकालय सोनीपत              3 लाख
जिला पुस्तकालय करनाल               3 लाख
जिला पुस्तकालय भिवानी               3 लाख
जिला पुस्तकालय कैथल                 3 लाख
जिला पुस्तकालय यमुनानगर          3 लाख
जिला पुस्तकालय पानीपत              3 लाख
जिला पुस्तकालय जींद                   3 लाख
जिला पुस्तकालय रेवाड़ी                 3 लाख
जिला पुस्तकालय फतेहाबाद           3 लाख
जिला पुस्तकालय झज्जर               2 लाख
जिला पुस्तकालय नूह                     2 लाख
जिला पुस्तकालय फरीदाबाद           2 लाख
उपमंडल पुस्तकालय आदमपुर         1 लाख
उपमंडल पुस्तकालय हांसी                1 लाख
उपमंडल पुस्तकालय मंडी डबवाली     1 लाख
उपमंडल पुस्तकालय गोहाना             1 लाख
उपमंडल पुस्तकालय चरखी दादरी     1 लाख
कुल                                             75 लाख

चिकित्सक नदारद, मरीज परेशान

9:22 बजे अस्पताल के एमरजेंसी वार्ड में खाली पड़ी चिकित्सक की कुर्सी
9:25 बजे नेत्र चिकित्सक कक्ष में खाली पड़ी चिकित्सक की कुर्सी
9:33 बजे महिला वार्ड में खाली पड़ी लेडी डाक्टर की कुर्सी।
9:41 बजे टीका कक्ष में चिकित्सक की कुर्सी पर बैठा बच्चा।

नरेंद्र कुंडू
जींद।
मरीजों के लिए चिकित्सक ही भगवान होते हैं, लेकिन अगर भगवान ही भक्त को अपने हाल पर तड़फता छोड़ दे तो भक्त का क्या हाल होगा, इसका अंदाजा आप लगा ही सकते हैं। ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है शहर के सामान्य अस्पताल में। अस्पताल में मरीजों की लंबी लाइनें लगी रहती हैं, लेकिन मरीजों के भगवान यानि चिकित्सक अस्पताल से नदारद रहते हैं। समय पर उपचार न मिलने के कारण मरीज चिकित्सा कक्ष के बाहर ही तड़फते रहते हैं। ये बात अलग है कि अस्पताल में चिकित्सकों की भारी कमी है, लेकिन मौजूदा चिकित्सक भी समय पर ड्यूटी पर नहीं पहुंच रहे हैं। जिस कारण मरीजों कोभारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
एक तरफ प्रदेश सरकार सरकारी अस्पतालों में लोगों को बेहतर चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध करवाने के दावे कर रही है। सरकार की तरफ से गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त चिकित्सा सुविधा मुहैया करवाई जा रही है। लेकिन सरकार के ये दावे सिर्फ कागजों तक ही समित रहते हैं। अस्पताल में ईलाज के लिए जाने वाले मरीजों को ईलाज की जगह दर्द के सिवाय कुछ नहीं मिलता है। यहां चिकित्सकों की लापरवाही इन गरीब व लाचार लोगों पर भरी पड़ती है। चिकित्सकों का अस्पताल में न तो आने का कोई समय है और न ही जाने का। मरीज अगर चिकित्सकों के आने के बारे में अगर किसी कर्मचारी से पूछते हैं तो कर्मचारी भी चिकित्सक के राऊंड पर जाने की बात कह कर मरीजों को टरका देते हैं और मरीज के पास चुपचाप लाइन में लगकर इंतजार करने के अलावा ओर कुछ चारा नहीं होता। शहर के सामान्य अस्पताल की ऐसी ही शिकायतें आज समाज को पिछले कई दिनों से मिल रही थी। शिकायतों को संज्ञान में लेते हुए टीम सामान्य अस्पताल पहुंची तो वहां का नजारा वाकई ही चौंकाने वाला था। सर्दी के मौसम में चिकित्सकों का अस्पताल में पहुंचने का समय है सुबह 9 बजे निर्धारित है। टीम ने सुबह 9:20 मिनट पर सामान्य अस्पताल में प्रवेश किया। इसके बाद 9:22 पर टीम पहुंची अस्पताल के एमरजेंसी वार्ड में वहां पर सिर्फ दो स्टाफ नर्स ही मौजूद थी, एमरजेंसी वार्ड की चिकित्सक की कुर्सी खाली पड़ी थी। टीम ने यहां के चित्र को कैमरे में कैद किया और आगे बढ़ गई। टीम 9:25 मिनट पर पहुंची नेत्र जांच कक्ष में यहां मरीज तो थे, लेकिन चिकित्सक नदारद थे। इसके बाद टीम 9:33 मिनट पर पहुंची महिला वार्ड। यहां भी मरीजों की लंबी लाइन और लेडी डाक्टर की कुर्सी खाली पड़ी थी। वहां ईलाज करवाने आई सुमन, राजबाला, संतरो ने बताया कि वे काफी देर से यहां बैठी हैं, लेकिन अभी तक लेडी डाक्टर का कोई अता-पता नहीं है। इसके बाद 9:41 पर टीम सीधे पहुंची टीकाकरण कक्ष। टीका कक्ष में चिकित्सक की कुर्सी पर एक बच्चा बैठा हुआ था। बच्चे के अलवा वहां पर एक महिला भी मौजूद थी। संवाददाता ने जब महिला से बातचीत की तो महिला ने बताया कि वह तो अपने बच्चे को टीका लगवाने आई है और 9:30 बजे से यहां बैठी, लेकिन अभी तक किसी  ने उसकी सुध नहीं ली है। टीम ने बच्चे के इस अंदाज को कैमरे में कैद किया और हड्डी रोग कक्ष की तरफ चल दी। यहां पर चिकित्सक के मौजूद न होने के कारण मरीज कमरे में ताक-झाक कर वापिस जा रहे थे। टीम ने 9:45 पर हड्डी रोग कक्ष में प्रवेश किया और यहां भी नजारा वही था। टीम जब कक्ष में पहुंची तो वहां बैठे एक बुजुर्ग ने संवाददाता को ही चिकित्सक समझ कर अपने ईलाज के लिए मिन्नतें करनी शुरू कर दी। टीम ने जब बुजुर्ग से अपना परिचय दिया और उससे पूछा तो बुजुर्ग ने बताया कि उसके हाथ में दर्द है और वह ईलाज के लिए यहां काफी देर से बैठा है। लेकिन अभी तक चिकित्सक का कहीं अता-पता नहीं है।
सिफारशि को मिलती है प्राथमिकता
चिकित्सकों की लेट लतिफी के कारण मरीजों की लंबी लाइनें लग जाती हैं। जिस कारण ईलाज के लिए मरीजों को काफी देर तक इंतजार करना पड़ता है। चिकित्सक के कक्ष में प्रवेश करते ही सिफारशियों का तांता लगना शुरू हो जाता है। जिसके चलते लाइन में लगे मरीजों का इंतजार ओर लंबा हो जाता है। क्योंकि चिकित्स लाइन में लगे मरीजों को प्राथमिकता न देकर सिफारशियों की जांच पहले करते हैं। अगर कोई मरीज इस बात पर ऐतराज जताता है तो चिकित्सक के तेवर ओर उग्र हो जाते हैं और चिकित्सक मरीज के साथ अभद्र व्यवहार पर उतर आता है।







अब दूधिया रोशनी से जगमगाएगा हर्बल पार्क

सौर ऊर्जा लाइटों पर खर्च होंगे 16 लाख
हर्बल पार्क का फोटो
नरेंद्र कुंडू
जींद।
हर्बल पार्क में सैर करने वालों के लिए एक अच्छी खबर है। अब शहर के लोग पार्क में देर रात्रि तक सैर कर सकेंगे, क्योंकि हर्बल पार्क रात्रि के समय सौर ऊर्जा की दूधिया लाइटों से जगमगाएगा। पार्क में सौर ऊर्जा की लाइटें लगाने के लिए वन विभाग ने एक खास योजना तैयार की है। जिला प्रशासन की तरफ से वन विभाग द्वारा तैयार की गई इस योजना पर मोहर लगा दी गई है। इस योजना के तहत पार्क में 200 के करीब लाइटें लगाई जाएंगी। सौर ऊर्जा विभाग द्वारा लाइटों पर आने वाले खर्च का बजट तैयार कर वन विभाग को भेज दिया गया है। अक्षय ऊर्जा विभाग द्वारा वन विभाग को भेजे गए खर्च के ब्यौरे के अनुसार इस योजना पर 16 लाख रुपए खर्च होने का अनुमान है। विभाग द्वारा अब जल्द ही योजना को अमीलजामा पहना दिया जाएगा।
हर्बल पार्क के सौंदर्यकरण के लिए अब जिला प्रशासन ने कमर कस ली है। हर्बल पार्क को चकाचक बनाने के लिए उपायुक्त ने वन विभाग के उच्चाधिकारियों को सख्त निर्देश जारी किए हैं। वन विभाग द्वारा हर्बल पार्क में अब हर प्रकार की सुविधा मुहैया करवाई जाएगी। फिलहाल पार्क में लाइट की व्यवस्था के लिए एक खास योजना तैयार की गई है। योजना के तहत पार्क में सौर ऊर्जा की 200 के करीब लाइटें लगाई जाएंगी। जिससे रात के समय में पार्क दूधिया रोशनी से जगमगाएगा। पार्क में सौर ऊर्जा की दूधिया रोशनी से पार्क की फिजा को चार चांद लग जाएंगे। लाइट व्यवस्था के बाद पार्क में देर रात तक चहलकदमी नजर आएगी। जिला प्रशासन द्वारा वन वि•ााग के इस फैसले पर मोहर लगा दी गई है। योजना को सिरे चढ़ाने की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। वन विभाग द्वारा सौर ऊर्जा विभाग को प्रपोजल भेज कर योजना पर होने वाले खर्च की जानकारी मांगी गई थी। सौर ऊर्जा विभाग ने लाइटों पर आने वाले खर्र्च का बजट तैयार कर वन विभाग को भेज दिया है। सौर ऊर्जा विभाग द्वारा वन विभाग को भेजे गए बजट के अनुसार पार्क में लाइट व्यवस्था पर 16 लाख रुपए तक का खर्च आने का अनुमान है।
पगडंडियां भी होंगी पक्की
वन विभाग द्वारा हर्बल पार्क का कायाकल्प किया जा रहा है। इस दौरान हर्बल पार्क की सुंदरता को बनाए रखने के लिए वन विभाग द्वारा पार्क की पगडंड़ियों को भी पक्का करवाने का निर्णय लिया गया है। वन विभाग जल्द ही इस योजना पर भी अमल करेगा। पार्क में सैर करने वाले लोगों को कच्ची पगडंडियों के कारण बरसात के दिनों में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब वन विभाग पार्क की सभी पगड़ंडियों को पक्का करवाएगा। पार्क की पगडंडियों के लिए वन विभाग द्वारा अलग से बजट तैयार किया जाएगा।
योजना पर जल्द होगा अमल
हर्बल पार्क के सौंदर्यकरण व पार्क में सैर करने वाले लोगों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए यह योजना तैयार की गई है। उपायुक्त की ओर से भी योजना को हरी झंडी मिल चुकी है। लाइटों पर आने वाले खर्च का रिकार्ड तैयार करवाने के लिए सौर ऊर्जा विभाग को प्रपोजल भेजा गया है। सौर ऊर्जा विभाग की ओर से योजना पर खर्च का एस्टिमेट तैयार होते ही योजना को मूर्त रूप दे दिया जाएगा।
सुनील कुंडू रेंज फोरेस्ट आफिसर, जींद
9जेएनडी21 : शहर का हर्बल पार्क जहां सौर ऊर्जा की लाइटें लगाने का प्रपोजल तैयार किया गया है।

वेतन न मिलने से कड़की में गुरुजी

इधर-उधर से उधार लेकर कर रहे हैं आटा-दाल का इंतजाम
नरेंद्र कुंडू
जींद।
6 से 8 हैड के तहत कार्यरत अध्यापकों को पिछले कई माह से वेतन नहीं मिल रहा है। कई माह से वेतन अटकने के कारण गुरुजी कड़की में हैं। अध्यापक संघ द्वारा बार-बार ज्ञापनों के बावजूद भी अध्यापकों को वेतन नहीं मिल रहा है। इस वजह से घर का गुजारा मुश्किल हो गया है। भूखे पेट भजन नहीं होत गोपाला वाली कहावत यहां साफ जाहिर हो रही है। अगर अध्यापकों के सामने ही रोटी के लाले पड़ जाएंगे तो ये बच्चों को किस तरह शिक्षा दे पाएंगे। अध्यापक इधर-उधर से उधार लेकर आटा-दाल का इंतजाम कर रहे हैं। करियाना दुकानदार से लेकर दूध वाले तक जल्द हिसाब करने के लिए आंखें दिखाने लगे हैं। हालत यह हो गई है कि अध्यापक यूनियनों को आंदोलन का रास्ता अख्तियार करना पड़ रहा है।
जिले में 6 से 8 हैड में कार्यरत हजारों अध्यापकों को पिछले कई माह से वेतन नहीं मिल रहा है। पिछले कई माह से वेतन न मिलने के कारण इस महंगाई के दौर में गुरु जी कड़की में हैं। समय पर वेतन न मिल पाने के कारण करियाना दुकान वाले ने राशन व दूध वाले ने दूध की सप्लाई बंद कर दी। महंगाई ने वैसे ही कमर तोड़ रखी है। ऐसे में देर से वेतन मिलना मुश्किलों को बढ़ा रहा है। अध्यापक यूनियन के पदाधिकारियों का कहना है कि सरकार को पक्के नियम बनाने चाहिएं और सभी को समय पर वेतन देना चाहिए।
सरकार बताये कैसे चलाएं घर का खर्च
हरियाणा अध्यापक संघ के सचिव संजीव सिंगला ने बताया कि 6 से 8 हैड के तहत कार्यरत हजारों अध्यापकों को पिछले कई माह से वेतन न मिल पाने के कारण घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है। दोस्तों-रिश्तेदारों से उधार लेकर करियाना व दूध वाले का भुगतना करना पड़ रहा है। घर के बड़े.बुजुर्गो की दवा का इंतजाम भी मुश्किल हो गया है। सिंगला ने कहा कि हर साल वेतन भुगतान में देरी होती है। बार-बार ज्ञापन देने के बावजूद भी समय पर वेतन नहीं जारी होता। अधिकारी हर बार एक्सपेंडेशन न मिलने का बहाना बनाकर अपना पल्ला झाड़ देते हैं। अब सरकार ही बता दे कि इस महंगाई के दौर में घर का खर्च कैसे चलाएं।
जल्द हो सकता है आंदोलन का शंखनाद
6 से 8 हैड के तहत कार्यरत अध्यापकों का पिछले कई माह से वेतन अटका पड़ा है। जिससे अध्यापक वर्ग में रोष पनप रहा है। संघ द्वारा जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी से कई बार समय पर वेतन देने की मांग की जा चुकी है, लेकिन अधिकारी उनकी समस्या की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। अगर जल्द से जल्द अध्यापकों को वेतन नहीं दिया गया तो संघ जल्द ही आंदोलन का शंखनाद कर देगा।
महताब मलिक
राज्य उपप्रधान, हरियाणा अध्यापक संघ

समय पर नहीं मिलती एक्सपेंडेशन
स्कूलों द्वारा अध्यापकों की एक्सपेंडेशन तैयार कर विभाग को नहीं भेजी जा रही हैं। जिस कारण अध्यापकों को वेतन देने में देरी होती है। स्कूलों से एक्सपेंडेशन तैयार करवाकर विभाग को देने की जिम्मेदारी बीईओ की होती है। सभी बीईओ को समय पर एक्सपेंडेशन तैयार करवा कर विभाग को देने के सख्त निर्देश दिए गए हैं।
साधू राम रोहिला
जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी, जींद

महज 44 दिनों में टूटे 6 साल के रिकार्ड

जरूरतमंद को रक्त देते ब्लड बैंक के कर्मचारी
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिलेभर में चल रही ब्लड डोनेशन की मुहिम जबरदस्त रंग ला रही है। ब्लड डोनेशन के मामले में मात्र 44 दिनों में ही पिछले 6 सालों के रिकार्ड टूट गए हैं। जिस तरह से जिले के लोग रक्तदान के लिए सामने आ रहे हैं, उसकी उम्मीद खुद स्वास्थ्य विभाग व जिला प्रशासन को भी नहीं थी। 44 दिनों में 2050 यूनिट रक्त जमा हो चुका है। जिले का ब्लड बैंक ‘ब्लड’ से मालामाल हो गया है। अब स्थिति यह हो गई है कि जिले के ब्लड बैंक के पास ब्लड रखने के लिए जगह नहीं है। इस कारण अब शिविरों में एकत्रित किए गए रक्त को आस-पास के जिलों में भेजा जा रहा है। ब्लड बैंक अच्छी स्थिति में होने के कारण अब जरूरतमंद से ब्लड के बदले ब्लड नहीं लिया जा रहा है।
रक्तदान के प्रति युवाओं में आ रही जागृति ने ब्लड बैंक को ब्लड से मालामाल कर दिया है। युवाओं में इस तरह की जागृति लाने के पीछे रेड क्रॉस, नेहरू युवा केंद्र व सामान्य अस्पताल की ब्लड बैंक की टीम अपना विशेष सहयोग दे रही है। रेड क्रॉस से ईश्वर सांगवान, ब्लड बैंक के इंचार्ज जेके मान व नेहरू युवा केंद्र के कोर्डिनेटर प्रदीप युवाओं को रक्तदान के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। इस टीम का नेतृत्व कर रहे हैं उपायुक्त डा. युद्धवीर सिंह ख्यालिया। उपायुक्त डा. युद्धवीर सिंह ख्यालिया के सानिध्य में शुरू की गई इस मुहिम ने जबरदस्त रंग दिखाया है। जिले में कुल 308 गांव हैं और रक्तदान शिविरों का आयोजन करने वाली इस टीम द्वारा 308 गांवों में 365 दिनों तक लगातार रक्तदान शिविरों का आयोजन करने की योजना तैयार की गई है। टीम द्वारा एक दिसंबर 2011 से शुरू की गई मुहिम ने महज 44 दिनों में ही पिछले 6 साल के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए हैं। 44 दिनों में 44 रक्तदान शिविरों के माध्यम से 2050 यूनिट रक्त एकत्रित किया जा चुका है और ब्लड डोनेशन की यह मुहिम अब रूकने का नाम नहीं ले रही है। रेड क्रॉस को युवाओं से मिल रहे अच्छे रिस्पोंस के कारण रेड क्रॉस ने रक्तदान शिविरों का मार्च तक का शैड्यूल तैयार कर लिया है। ब्लड डोनेशन की यह मुहिम इतनी गति पकड़ चुकी है कि रेड क्रॉस द्वारा रविवार को भी कैंपों का आयोजन किया जा रहा है। सामान्य अस्पताल का ब्लड बैंक ब्लड से लबालब हो चुका है। ब्लड बैंक में ब्लड के लिए जगह न होने के कारण अब आस-पास के जिलों से मदद ली जा रही है। जींद के अलावा कैथल, करनाल व रोहतक पीजीआई के ब्लड बैंक की टीमें भी ब्लड के लिए जींद पहुंच रही हैं। 
ब्लड के बदले नो रिप्लेशमेंट
ब्लड बैंक में रक्त की कमी न रहने के कारण ब्लड बैंक द्वारा जरूरतमंद से ब्लड के बदले ब्लड नहीं लिया जा रहा है। ब्लड बैंक द्वारा ब्लड के बदले मरीज से सिर्फ सरकारी चार्ज ही लिए जा रहा है। प्राइवेट अस्पताल में एडमिट मरीज को 500 रुपए में एक यूनिट ब्लड तथा सरकारी अस्पताल में एडमिट मरीज से एक यूनिट के बदले 250 रुपए चार्ज लिया जा रहा है। इसके अलावा सरकारी अस्पताल में एडमिट बीपीएल कार्ड धारक मरीज को मुफ्त में ब्लड दिया जा रहा है।
26 जनवरी पर किया जाएगा सम्मानित
ब्लड डोनेशन की इस मुहिम को आगे बढ़ाने व अन्य युवाओं को भी इस मुहिम में शामिल करने के लिए उपायुक्त ने एक विशेष फैसला लिया है। 26 जनवरी पर उपायुक्त या संबंधित मंत्री द्वारा सबसे ज्यादा रक्तदान करने वाले रक्तदाता व सबसे ज्यादा रक्तदान शिविर लगाने वाली संस्था को सम्मानित किया जाएगा।
वर्ष       कैंप लगे    यूनिट रक्त
2006         30        1570
2007         29        1570
2008         29        1255
2009         43        2096
2010         52        2546
नवंबर 2011   54   2997
1 दिसंबर 2011 से
13 जनवरी 2012 तक  44        2050   

रविवार, 8 जनवरी 2012

पशु तस्करों के लिए सुरक्षित गलियारा बना जींद

 नरेंद्र कुंडू
जींद।
पशु तस्करों के लिए जींद जिला सुरक्षित गलियारा साबित हो रहा है। पशु तस्कर पंजाब के क्षेत्रों से सस्ता पशुधन खरीदकर इसे यूपी में महंगे दामों पर बूचड़खानों में बेच रहे हैं। इसके लिए पशु तस्करों को केवल जींद जिले की सीमाओं को ही लांघना होता है। बस जींद क्षेत्र पार किया और पंजाब से झट यूपी में प्रवेश कर जाते हैं। इस तरह से जींद जिला पशु तस्करों के लिए आसान व सुरक्षित गलियारा बन गया है। इसका प्रमाण मिल रहा है दिन-प्रतिदिन यहां सामने आ रहे पशु तस्करी के मालमों से।
पशुतस्करी का धंधा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। ठंड बढ़ने के साथ ही पशु तस्करों की गतिविधियां भी बढ़ जाती हैं। इन तस्करों के निशाने पर सबसे ज्यादा पंजाब व हरियाणा रहता है। पशु तस्कर पंजाब से सस्ता पशुधन खरीद कर उसे महंगे दामों पर बेचने के लिए हरियाणा के रास्ते यूपी के बुचड़खानों में ले जाते हैं। पशु तस्करी के लिए इन तस्करों ने हरियाणा के जींद जिले को अपना सबसे सुरक्षित गलियारा बनाया हुआ है, क्योंकि पंजाब से यूपी जाने के लिए यह सबसे छोटा रास्ता है। पशु तस्करी के दौरान इन्हें रास्तों को लेकर किसी प्रकार की परेशानियों का सामना न करना पड़े, इसलिए ये तस्कर पंजाब की सीमा से सटे क्षेत्र में अपने विश्वस्त सहायक तैयार कर लेते हैं। पशु तस्करी को अंजाम देते समय ये तस्कर यहां पर मौजूद अपने सहायकों का सहारा लेते हैं। जब इन्हें कभी गंभीर परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है तो साथ में मौजूद इनका लोकल सहयोगी इन्हें रास्तों से अवगत करवा कर आसानी से बचा कर निकाल देता है।
पुलिस पार्टी पर हमले से भी नहीं चुकते
ये तस्कर रात के समय पशुओं की तस्करी करते हैं यदि पुलिस से इनकी मुठभेड़ हो भी जाए तो ये तस्कर हर प्रकार के हथकंडे अपना लेते हैं। पहले तो ये पुलिस से सांठ-गांठ करने की कोशिश करते हैं। यदि पुलिस के साथ इनकी सांठ-गांठ नहीं हो पाती तो ये पुलिस पार्टी पर हमला करने से भी नहीं चुकते हैं। इस दौरान यदि इनको गोली भी चलानी पड़े तो ये बेखौफ  होकर पुलिस पर गोली बारी करके फरार हो जाते हैं।
स्थानीय लोगों के साथ भी हो चुकी है झड़प
अकेले नरवाना क्षेत्र में पिछले एक माह में पशु तस्करी के एक दर्जन से भी ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। अधिकतर मामलों में पशु तस्करों ने भागने के लिए पुलिस व स्थानीय लोगों के साथ झड़प भी की है। लगभग एक पख्वाड़ा पहले भी नरवाना में पशु तस्करों ने पीछा कर रहे स्थानीय लोगों पर हमला बोल दिया था। जिसके बाद गुस्साए लोगों ने पकड़े गए ट्रक को आग के हवाले कर दिया था और तस्करों की जमकर पिटाई की थी।
कानून में नहीं सख्त सजा का प्रावधान
पशु तस्करी के मामले में सख्त कानूनी प्रक्रिया का प्रावधान न होने के कारणा इन तस्करों के हौंसले काफी बुलंद हैं। पशु तस्करी के आरोप में पकड़े जाने पर अधिकतर मामलों में थोड़ा बहुत जुर्माना लगा कर छोड दिया जाता है और इस तरह के मामले में जमानत भी साथ के साथ मिल जाती है। कानून में सख्त सजा का प्रावधान न होने के कारण ही पशु तस्करी के मामले कम नहीं हो रहे हैं। 
ट्रक से मुक्त करये 14 बैल
 तस्करों के कब्जे से बैलों को मुक्त करवाते स्थानीय लोग। 
शहर थाना पुलिस ने दिल्ली पटियाला राष्ट्रीय राजमार्ग पर आईटीआई के पास अलसुबह गौकशी के लिए ले जाए जा रहे बैलों से भरे एक ट्रक को काबू कर उससे 14 बैलों को मुक्त करवाया। पुलिस ने बैलों को मुक्त करवा स्थानीय गौशाला में छोड़ दिया। पुलिस को रात्रि गस्त के दौरान सूचना मिली थी कि पंजाब से एक ट्रक में बैलों को भर कर नरवाना के रास्ते यूपी ले जाया जा रहा है। पुलिस ने सूचना मिलते ही शहर में नाकेबंदी कर चेकिंग शुरू कर दी। इस दौरान उन्होंने पंजाब की तरफ से आ रहे एक ट्रक को रूकवाकर तलाशी ली तो ट्रक में बैलों को ठूंस-ठूंस कर भरा हुआ था। पुलिस ने ट्रक से 14 बैलों को मुक्त करवा कर स्थानीय गौशाला में छोड़ दिया। पुलिस ने मुज्जफरनगर निवासी दिलसाज व साजैव को हिरासत में लेकर उनके खिलाफ गौकशी अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है।


शनिवार, 7 जनवरी 2012

शिकायत देने के बाद गवाही से मुकरे तो खैर नहीं

धारा 182 के तहत दर्ज होगा मामला
नरेंद्र कुंडू 
जींद।
अब विजीलेंस ब्यूरो रिश्वतखोरों के साथ-साथ उन शिकायतकर्त्ताओं पर शिकंजा कसने जा रहा है, जो शिकायत देकर बाद में गवाही के दौरान मुकर जाते हैं। गवाही के दौरान मुकरने वाले शिकायतकर्त्ता के खिलाफ धारा 182 के तहत मामला दर्ज किया जाएगा। अधिकतर मामलों में शिकायतकर्त्ता द्वारा गवाही के दौरान मुकर जाने के कारण विजीलेंस द्वारा रंगे हाथों पकड़ा गया कर्मचारी बच निकलता था और कोर्ट में विजीलेंस की फजीहत होती थी। सरकार द्वारा जारी इन आदेशों के बाद अब शिकायतकर्त्ता मुकर नहीं सकेगा और रिश्वत के आरोप में धरे गए कर्मचारी का बचना मुश्किल हो जाएगा।
सरकारी कार्यालयों से रिश्वतखोरी को मिटाने के लिए विजीलेंस का गठन किया गया था। लेकिन विजीलेंस की लाख कोशिशों के बावजूद भी आरोपी कर्मचारी बच निकलते थे। रिश्वत के आरोप में धरे गए कर्मचारी को बचाने में खुद शिकायतकर्त्ता ही उसकी ढाल बनता था। अधिकतर मामलों में पकड़े गए कर्मचारी द्वारा शिकायतकर्त्ता को पैसे देकर या सामाजिक दबाव बनाकर समझौता कर लिया जाता था। जिस के बाद शिकायतकर्त्ता कोर्ट में गवाही के दौरान मुकर जाता था। शिकायतकर्त्ता द्वारा गवाही से मुकर जाने के बाद विजीलेंस द्वारा रंगे हाथों पकड़ा गया कर्मचारी बच निकलता था। इससे कोर्ट में विजीलेंस की फजीहत होती थी। लेकिन अब शिकायतकर्त्ता गवाही के दौरान मुकर नहीं सकेगा। अगर गवाही के दौरान शिकायतकर्त्ता मुकरता है तो उसके खिलाफ धारा 182 के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी। सरकार द्वारा जारी किए गए इन आदेशों के बाद अब शिकायतकर्त्ता के गवाही से मुकरने के चांस बहुत कम हो गए हैं। इन आदेशों के बाद अब विजीलेंस को तो राहत मिलेगी ही साथ-साथ रिश्वतखोरों पर भी विजीलेंस का शिकंजा कसेगा।
सरकारी कार्यालयों के बाहर लिखवाए जा रहे हैं नंबर
अन्ना हजारे व बाबा रामदेव द्वारा शुरू की गई भ्रष्टाचारी विरोधी मुहिम का असर विजीलेंस ब्यूरो की कार्यप्रणाली पर भी देखने को मिल रहा है। अब विजीलेंस रिश्वतखोरों पर शिकंजा कसने तथा लोगों को जागरूक करने के लिए हर सरकारी विभाग के बाहर बोर्ड लगा रहा है, इसमें विजीलेंस के कॉन्टेक्ट नंबर दर्शाए गए हैं। किसी कर्मचारी द्वारा रिश्वत मांगने पर तुरंत इन नंबरों पर शिकायत दी जा सकेगी। विभाग ने अभियान को सफल बनाने के लिए सभी सरकारी कार्यालयों के बाहर अपने नंबर लिखवा दिए हैं। किसी कर्मचारी द्वारा रिश्वत मांगने पर 9991411155 व 01681-245358 पर संपर्क कर शिकायत की जा सकती है।
विजीलेंस द्वारा पकड़े गए कर्मचारियों का ब्यौरा
महिना        विभाग का नामजनवरी 2011    बीडीपीओ
फरवरी 2011    पब्लिक हैल्थ से एक्सईएन
जुलाई 2011    बिजली निगम से जेई
अगस्त 2011    हुडा विभाग से क्लर्क
सितंबर 2011    नहरी विभाग से जेई
अक्तूबर 2011    सामान्य अस्पताल से क्लर्क

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

शूटिंग रेंज के अभाव में दम तोड़ रही खेल प्रतिभाएं

शूटिंग रेंज के लिए 2008 में भेजा गया था मुख्यमंत्री को ज्ञापन 
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले में पिछले चार साल से उठ रही शूटिंग रेंज की आवाज के बाद भी आज तक शूटिंग रेंज अस्तित्व में नहीं आ पाई है। जिला प्रशासन बिना शूटिंग रेंज व सुविधाओं के अभाव में ही खिलाड़ियों से मैडलों की आश लगाए बैठा है। शूटिंग रेंज के अभाव के कारणा एनसीसी कैडेट्स व होमगार्ड के जवानों को फायरिंग की ट्रायल देने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जिले में फिलहाल पांडू पिंडारा गांव के पास अस्थायी शूटिंग रेंज चल रही है, जिससे जान व माल का बड़ा खतरा रहता है। खुले में चल रही शूटिंग रेंज के कारणा यहां कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
जिले में शूटिंग रेंज न होने के कारण खेल प्रतिभाएं दम तोड़ रही हैं। खिलाड़ियों को मजबूरन जिले से बाहर प्राइवेट शूटिंग रेंज में जाकर अपने खर्च पर अभयास करना पड़ रहा है। प्राइवेट शूटिंग रेंज में प्रशिक्षण का खर्च ज्यादा होने के कारण खिलाड़ियों को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, जिस कारण खिलाड़ी खेल से मुहं मोड़ रहे हैं। खिलाड़ियों के अलावा एनसीसी कैडेट्स व होमगार्ड के जवानों को भी प्रशिक्षण के दौरान काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जिले में हर साल एनसीसी के दो एनुअल ट्रेनिंग कैंप लगते हैं। इन कैंपों में जींद के अलावा रोहतक जिले के कैडेस भी भाग लेते हैं। इन कैंपों में कैडेस को फायरिंग का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। लेकिन जिले में शूटिंग रेंज के अभाव के कारण कैडेस को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा होम गार्ड के जवानों को भी साल में कई बार फायरिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है। लेकिन जिले में शूटिंग रेंज की व्यवस्था न होने के कारण जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर दूर स्थित पांडू पिंडारा गांव में अस्थाई तौर पर शूटिंग रेंज तैयार की गई है। जिले में स्थाई तौर पर शूटिंग रेंज न होने के कारण यहां होमगार्ड के जवानों से खुले में ही फायरिंग करवाई जाती है। खुले में फायरिंग होने के कारण यहां कभी  भी बड़ा हादसा हो सकता है। लेकिन जिला प्रशासन को इससे कोई सरोकार नहीं है। जिले के खिलाड़ियों द्वारा शूटिंग रेंज के लिए जिला प्रशासन व मुख्यमंत्री से कई बार गुहार लगाई गई है, लेकिन आज तक जिले में स्थाई रूप से कहीं पर भी शूटिंग रेंज की कोई व्यवस्था नहीं की गई। जिले में शूटिंग के खले को बढ़ावा देने के लिए खेल गांव निडानी व पड़ाना गांव की पंचायत जिला प्रशासन को शूटिंग रेंज स्थापित करने के लिए गांव की शामलात जमीन देने को तैयार हैं। इसके लिए दोनों गांव की पंचायतों ने 2008 में खिलाड़ियों के साथ मिलकर उपयुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी  भेजा था। लेकिन पंचायत के इस प्रपोजल की तरफ जिला प्रशासन और सरकार का  कोई ध्यान नहीं है।
निशुल्क प्रशिक्षण देकर प्रतिभाशाली शूटर तैयार करने की है तमन्ना
जिले से सीनियर राज्य शूटिंग प्रतियोगिता में भाग लेने वाले जिले के एकमात्र खिलाड़ी सुरेश पूनिया भी शूटिंग रेंज स्थापित करने की मांग को लेकर कई बार जिला अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री तक गुहार लगा चुके हैं। सुरेश पूनिया स्वयं निशुल्क प्रशिक्षण देकर जिले के कई प्रतिभाशाली शूटरों को तैयार करना चाहते हैं, लेकिन शूटिंग रेंज न होने के कारण खुले में फायरिंग करना खतरनाक साबित हो सकता है।
शूटिंग रेंज जिले की जरूरत
जिले में शूटिंग रेंज होना अनिवार्य ही नहीं, अपितू जिले की जरूरत भी  है। जिले में एक एनसीसी कॉम्पलेक्स बना कर उसी कॉम्पलेक्स में शूटिंग रेंज स्थापित की जानी चाहिए। जिले में एनसीसी कॉम्पलेक्स बनने के बाद एक पंथ दो काज हो सकते हैं। यहां पर एनसीसी के एनुअल कैंप के साथ-साथ कैडेट्स व अन्य खिलाड़ियों को फायरिंग का प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है।
मेजर महताब एनसीसी, जींद
अस्थाई तौर पर की गई है शूटिंग रेंज की व्यवस्था
जिले में शूटिंग रेंज न होने के कारण पांडू पिंडारा गांव में अस्थाई तौर पर शूटिंग रेंज की व्यवस्था की गई है और इस रेंज पर होमगार्ड के जवानों को फायरिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है। होमगार्ड के जवानों को प्वाइंट टूटू राइफल से प्रशिक्षण दिया जाता है, लेकिन राज्य स्तर की शूटिंग प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए रिवाल्वर, पिस्टल व अन्य हथियारों का अभयास होना अति आवश्यक है। लेकिन इन हथियारों के प्रशिक्षण के लिए जिले में कोई रेंज नहीं है।
बीरबल कुंडू जिला कमांडेंट होमगार्ड, जींद

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

प्रदेश की पंचायतों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनी बीबीपुर की पंचायत

ई डिजीटल पंचायत का निर्माण कर अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर लहराया परचम

बीबीपुर पंचायत का इंटरनेट पर बनाये गई वेबसाइट
नरेंद्र कुंडू
जींद।
एक तरफ जहां ग्रामीण क्षेत्र विकास कार्यों में पिछड़ रहे हैं, वहीं जिले का एक गांव ऐसा भी है, जिसने विकास के सारे रिकार्ड तोड़ते हुए छोटे से लेकर बड़े प्रोजैक्ट में अपनी भागीदारी दर्ज करवाई है। आदर्श गांव का दर्जा प्राप्त करने के साथ-साथ डिजीटल पंचायत बनाकर देश की प्रथम हाईटेक पंचायत की सूची में अपना नाम दर्ज करवाया है। जिले के बीबीपुर गांव की पंचायत राष्टÑीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर भी अपनी पहचान बना चुकी है। बीबीपुर गांव की पंचायत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर प्रदेश की पंचायत के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गई है। ताज्जुब की बात तो यह है कि बीबीपुर गांव की पंचायत को आज तक प्रदेश सरकार की तरफ से एक भी ग्रांट नहीं मिली है। गांव में सारे विकास कार्य जिला प्लानिंग के तहत मिलने वाली ग्रांट व पंचायती फंड से करवाए गए हैं। 
जिला जींद जहां विकास कार्यों में पिछड़ने के कारण अपनी पहचान खो रहा है, वहीं जिले का गांव बीबीपुर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी जिले का प्रतिनिधित्व कर जिले को गौरवांतित कर रहा है। अपने विकास कार्यों के बलबुते ही गांव की पंचायत अक्षय ऊर्जा अवार्ड सहित अन्य कई पुरस्कार जीत कर पूरे वर्ष सुर्खियों में रही है। गांव को इस मुकाम तक पहुंचाने में गांव के युवा व जागरूक सरपंच सुनील जागलान ने अहम भूमिका निभाई है। अपने थोड़े से कार्यकाल में ही गांव का कायाकल्प करते हुए गांव की पंचायत को पूरे प्रदेश की पहली हाईटेक पंचायत का दर्जा दिलवाकर अपनी सुझबुझ का परिचय दिया। विकास कार्यों में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए डिजीटल पंचायत का निर्माण किया गया। जिससे गांव के विकास कार्यों में तो पारदर्शिता आई ही, साथ-साथ गांव को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान भी  मिली। गांव की उपलब्धियों को देखते हुए अब तक 18 देशों के लोग गांव में विजिट कर चुके हैं। इसके अलावा इंग्लैंड की ओआरसीबीटी संस्था गांव को गोद लेने के लिए कई बार गांव की विजिट कर चुकी है। गत माह मिनिस्ट्री आफ रूरल डेवलपमेंट एवं डिजीटल फाऊंडेशन इंडिया द्वारा इंडिया हेबिटेट सेंटर नई दिल्ली में आयोजित डिजीटल पंचायत समिट में गांव के सरपंच सुनील कुमार ने हरियाणा प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया था। इस समिट में 8 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।
प्रदेश सरकार की ओर से नहीं मिली कोई ग्रांट
बीबीपुर गांव भले ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा चुका हो, लेकिन ताज्जूब की बात तो यह है कि गांव को प्रदेश सरकार द्वारा आज तक कोई ग्रांट नहीं मिली है। गांव में सभी विकास कार्य वल्ड बैंक द्वारा जिला प्लानिंग योजना के तहत भेजे जाने वाले पैसे व पंचायती फंड से करवाए जा रहे हैं। गांव की पंचायत ने गांव में नरेगा योजना के तहत सबसे अधिक कार्य करवाए हैं।
थाने नहीं जाते गांव के लोग
बीबीपुर गांव के लोग थाने-तहसील में ज्यादा विश्वास नहीं रखते हैं। इसलिए गांव में हुए आपसी विवादों को पंचायत के माध्यम से ही निपटा लेते हैं। गांव में आज तक मात्र दो केस ही थाने तक पहुंचे हैं। पंचायत द्वारा 77 केसों का निपटारा गांव की चौपाल में बैठकर किया जा चुका है। यह भी अपने-आप में एक विशेष उपलब्धि है।
खेलों को भी दिया जा रहा है बढ़ावा
विकास कार्यों के साथ-साथ बीबीपुर गांव में खेलों को •ाी बढ़ावा दिया जा रहा है। ग्राम पंचायत की तरफ से सभी  खेलों की टीमें बनाई गई हैं। गांव में पंचायत द्वारा खिलाड़ियों को खेल की सभी  सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही हैं। समय-समय पर गांव में खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन भी  किया जाता है। पंचायत के सहयोग व खिलाड़ियों की अथक मेहनत के बलबुते गांव की हैंडबाल की टीम राज्य स्तर पर दो बार गोल्ड मैडल जीत चुकी है।
एचयूबीएन से वसूले 74 लाख 66 हजार
गांव की पंचायत द्वारा हरियाणा उत्तरी बिजली वितरण निगम को बिजली बोर्ड के लिए जमीन दी गई थी। लेकिन निगम द्वारा जमीन के बदले में गांव को किसी तरह की कोई सुविधा या कोई शुल्क नहीं दिया जा रहा था। बाद में गांव की पंचायत ने कोर्ट के माध्यम से निगम से जमीन के बदले 74 लाख 66 हजार रुपए की राशि वसूली, जिसे गांव के विकास कार्यों में प्रयोग किया जाएगा।
सुनील जागलान, सरपंच बीबीपुर
इस वर्ष क्या-क्या होने हैं विकास कार्य
गांव को सिंचाई आपूर्ति के लिए पानी उपलब्ध करवाने के लिए नहर का निर्माण होगा, जिसके लिए दो हजार एकड़ भूमि रिकवायर की गई है।
अन्न भंडारण के लिए केंद्रीय भंडारण निगम द्वारा गोदाम का निर्माण किया जाएगा।
अनाथ व बेसहारा बच्चों को आसरा देने के लिए बाल ग्रह का निर्माण किया जाएगा।
पंचायत घर का निर्माण किया जाएगा।
सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए 26 जनवरी पर 18 बच्चों को सौर ऊर्जा की लाइटें वितरित की जाएंगी।
पाइलेट प्रोजैक्ट के तहत गांव में पानी संरक्षण सिस्टम का निर्माण किया जाएगा।