गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

एससी वर्ग की छात्राओं को मिलेगी छात्रावास की सौगात

जींद जिले में होगा 15 छात्रावास का निर्माण

नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्रदेश की एससी वर्ग की छात्राओं के लिए एक अच्छी खबर है। एससी वर्ग की छात्राओं को अब जल्द ही छात्रावास की सौगात मिलने जा रही है। इसके लिए प्रदेश के 19 जिलों के एससी बहुल क्षेत्र में जल्द ही महिला छात्रावास बनाए जाएंगे। छात्रावास के निर्माण से पहले हर खंड में पांच से दस ऐसे गांवों का चयन किया जाएगा, जिसमें अनुसूचित जाति की जनसंख्या कम से कम 40 प्रतिशत हो। ये सभी भवन बाबू जगजीवन राम छात्रावास योजना के तहत बनाए जाएंगे। प्रत्येक छात्रावास में माध्यमिक व उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर रही सौ छात्राओं को दाखिला दिया जाएगा। छात्रावास के निर्माण के लिए कम से कम दो एकड़ जमीन होनी अनिवार्य है। इस योजना के तहत जींद जिले में 15 छात्रावासों का निर्माण किया जाएगा। योजना को अमल में लाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान ने प्रारंभिक स्तर पर जमीन तलाशने का कार्य शुरू कर दिया गया है।
एससी वर्ग की छात्राएं अब जल्द ही छात्रावास की सुविधा का लाभ ले सकेंगी। हरियाणा प्राथमिक शिक्षा परियोजना परिषद ने बाबू जगजीवन राम छात्रावास योजना के तहत प्रदेश के 19 जिलों का चयन किया है। परिषद द्वारा चयनित पंचकुला, अंबाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, पानीपत, सोनीपत, जींद, फतेहाबाद, सिरसा, हिसार, भिवानी, रोहतक, झज्जर, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, गुड़गांव व फरीदाबाद जिलों के एससी बहुल खंडों के गांवों में छात्रावास खोले जाएंगे। विभाग ने 40 प्रतिशत से अधिक एसएसी बहुल क्षेत्रों की सूची भेजी है। सर्वशिक्षा अभियान के जिला परियोजना समन्वयक को भेजे गए पत्र क्रमांक 39906 के अनुसार छात्रावास के लिए चयनित की जाने वाली जमीन शिक्षा विभाग या ग्राम पंचायत की होनी चाहिए तथा इस जमीन पर छात्रावास के निर्माण के लिए ग्राम पंचायत की सहमति होनी अनिवार्य है। छात्रावास के निर्माण से पहले हर खंड में पांच से दस ऐसे गांवों का चयन किया जाएगा, जिनमें अनुसूचित जाति की जनसंख्या कम से कम 40 प्रतिशत हो। प्रत्येक छात्रावास में सौ माध्यमिक व उच्चत्तर शिक्षा प्राप्त कर रही सौ छात्राओं को दाखिला दिया जाएगा। विभाग की तरफ  से प्रत्येक छात्राओं को चारपाई, टेबल व कुर्सी खरीदने के लिए 2400 रुपए की सहायता राशि भी दी जाएगी। एसएसए की इस योजना के तहत जींद जिले में 15 महिला छात्रावासों का निर्माण किया जाना है। योजना को अमल में लाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान ने प्रारंभिक स्तर पर जमीन तलाशने का कार्य शुरू कर दिया है। जमीन पर सहमती बनने के बाद विभाग छात्रावास के निर्माण के लिए बजट तैयार कर एसएसए को भेज देगा।
जारी है जमीन तलाशने का कार्य
बाबू जगजीवन राम छात्रावास योजना के तहत जींद जिले में 15 महिला छात्रावास का निर्माण किया जाएगा। छात्रावास के निर्माण के लिए जमीन तलाशने का कार्य किया जा रहा है। जमीन की तलाश पूरी होने के बाद विभाग को प्रपोजल भेजा जाएगा। ताकि जिले में जल्द से जल्द छात्रावास का निर्माण किया जा सके।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना समन्वयक
एसएसए, जींद

उन गांवों का नाम जहां छात्रावास का निर्माण किया जाएगा।
गांव का नाम              संख्या प्रतिशत में
  1. दातासिंगवाला                        40.92
  2.  किमाखेड़ी                          40.25
  3.  जींद ग्रामीण                        41.09
  4.  बिघाना                           41.33
  5.  राजगढ़ ढोबी                       42.27
  6.  जुलाना ग्रामीण                     44.63
  7.  बहादुरपुर                         45.09        
  8. कटवाल                           46.39
  9.  डिंडढोली                         47.83
  10.  गोबिंदपुरा                         47.63
  11. छपार                              46.60
  12.  मांडी खुर्द                         49.91
  13.  खेड़ी तलोड़ा                       52.43
  14.  सूरजाखेड़ा                        53.64
  15.  खातला                          76.27


‘फार्मर टू फार्मर’ योजना बनेगी किसानों का सहारा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
घटती कृषि जोत व बढ़ती लागत के कारण घाटे का सौदा साबित हो रही खेती से किसानों को उबारने के लिए कृषि विभाग ने कमर कस ली है। किसानों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने के लिए कृषि विभाग ने ‘फार्मर टू फार्मर’ योजना तैयार की है। इस योजना के तहत कृषि विभाग अब किसानों को तकनीकी खेती के लिए प्रेरित करेगा। इसके लिए विभाग ने टीमों का गठन कर जिले में सर्वे करवाया है। सर्वे के अनुसार प्रगतिशील व पिछड़े किसानों के बीच के अंतर के जो आंकड़ें निकल कर सामने आएंगे विभाग उस अंतर को मिटाने के लिए पिछड़े किसानों को प्रेरित करेगा। इसके लिए विभाग ‘फार्मर टू फार्मर’ योजना पर काम करेगा। इस योजना के तहत विभाग द्वारा प्रगतिशील किसानों के खेतों पर कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा। इस कार्यशाला में प्रगतिशील किसान पिछड़े किसानों को तकनीकी खेती के टिप्स देंगे। इस योजना के माध्यम से विभाग प्रगतिशील व पिछड़े किसानों के बीच बनी इस खाई को पाटने का काम करेगा। इसके लिए विभाग ने जिले के पिछड़े किसानों की सूची भी तैयार कर ली है। 
आज कृषि जोत घटने व खेती पर लागत अधिक बढ़ने के कारण खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। इसके पीछे किसानों में तकनीकी खेती के प्रति जागरुकता न होना भी एक मुख्य कारण है। अब किसानों को जागरुक करने के लिए कृषि विभाग ने ‘फार्मर टू फार्मर’ योजना तैयार की है। इस योजना के तहत कृषि विभाग पिछड़े किसानों को तकनीकी खेती के लिए प्रेरित करने के लिए प्रगतिशील किसानों से मिलवाएगा। इसके लिए प्रगतिशील किसानों के खेत पर समय-समय पर किसान गोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा। इस गोष्ठियों के माध्यम से प्रगतिशील किसान पिछड़ने किसानों को तकनीकी खेती के गुर सीखाएंगे। खेती की बिजाई से लेकर कटाई तक अपनाई जाने वाली विधियों के बारे में किसानों को बारिकी से जानकारी देंगे। योजना को मूर्त रूप देने के लिए कृषि विभाग ने योजना पर अमल शुरू कर दिया है। इसके लिए विभाग ने जिले में सर्वे करवाया है। विभाग द्वारा सर्वे के लिए गठित की गई टीमों ने सफीदों ब्लॉक में रत्ताखेड़ा, जींद में गुलकनी व नरवाना में कोयल गांव में सर्वे किया गया है। सर्वे के दौरान विभाग की टीम ने गांव की औसत पैदावार, गांव के सबसे टॉप के किसानों व सबसे पिछड़े किसानों की पहचान कर उनके द्वारा खेती में प्रयोग की जाने वाली खाद व बीज तथा खेती करने के तरीके के बारे में जानकारी जुटाई है। अब विभाग प्रगतिशील किसानों व पिछड़े किसानों के बीच की खाई को पाटने के लिए प्रगतिशील किसानों का सहारा लेगा। प्रगतिशील किसान पिछड़े किसानों को तकनीकी खेती के टिप्स देंगे। ताकि अन्य किसान भी नई तकनीकों को अपना कर आर्थिक रूप से सुदृढ़ बन सकें तथा खेती को व्यवसाय के रूप में अपना कर अधिक से अधिक मुनाफा ले सकें। गेहूं कटाई के बाद फसल की बुआई का सीजन शुरू होते ही विभाग योजना पर अमल करेगा।
किसानों को तकनीकी खेती के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से उठाया कदम
किसानों में जागरुकता लाने तथा तकनीकी खेती के लिए प्रेरित करते के उद्देश्य से कृषि विभाग ने यह कदम उठाया है। विभाग ने इसके लिए सर्वे टीम का गठन कर जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में सर्वे करवाया है। सर्वे टीम ने डोर टू डोर सर्वे कर गांव की औसतन पैदावार निकाल कर गांव के सबसे अच्छे प्रगतिशील किसानों तथा पिछड़े किसानों की पहचान कर उनके खेती करने के तरीके की जानकारी जुटाई है। खेती की बुआई का सीजन शुरू होते ही टीम सेमिनारों का आयोजन कर किसानों को जागरुक करने का काम करेगी।
डा. रामप्रताप सिहाग
उप कृषि निदेशक, जींद


पेयजल आपूर्ति के नाम पर अधिकारी बुझा गए ‘प्यास’

जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा दी गई सूचना।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जनस्वास्थ्य विभाग द्वारा पानी की सप्लाई के लिए अहिरका गांव में बिछाई गई पाइप लाइन में हुआ फर्जीवाड़ा सामने आया है। जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा अहिरका गांव में बिछाई गई पाइप लाइन पिछले दो सालों से कागजों में ही चल रही है। लेकिन इस पाइप लाइन से आज तक गांव में पानी की सप्लाई शुरू नहीं हो सकी है। विभाग ने पाइप लाइन बिछाने पर लाखों रुपए का बजट भी खर्च कर दिया है। लेकिन लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद भी ग्रामीणों को इसका लाभ नहीं मिला है। मामले का खुलासा अहिरका गांव के एक व्यक्ति द्वारा जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना में हुआ। विभाग द्वारा व्यक्ति को दी गई सूचना में स्पष्ट लिखा हुआ है कि इस पाइप लाइन के जरिए गांव में 2010 से पानी की सप्लाई चालू है। लेकिन वास्तविकता कुछ ओर ही है। ग्रामीणों की प्यास बुझाने के नाम पर मंजूर हुई ग्रांट में गड़बड़झाला कर विभाग के अधिकारियों ने अपनी प्यास बुझाई है। योजना में हुए इस भ्रष्टाचार के कारण ग्रामीणों के सामने पेयजल संकट गहरा गया है।
सरकारी योजनाओं में फर्जीवाड़ा रह-रहकर सामने आ रहा है। यहां फर्जीवाड़े के रिकार्ड दर रिकार्ड टूट रहे हैं। अब यहां जन स्वास्थ्य विभाग में पेयजल संकट को मिटाने के लिए बिछाई गई पाइप लाइन में हुआ फर्जीवाड़ा सामने आया है। अहिरका गांव में दो साल पहले पानी की सप्लाई के लिए नई पाइप लाइन बिछाने का ठेका दिया गया था। ठेकेदार ने गांव में पाइप लाइन तो बिछा दी, लेकिन आज तक भी इस पाइप लाइन से गांव में पानी की सप्लाई शुरू नहीं हो सकी है। जबकि विभाग के रिकार्ड में पिछले दो साल से इस पाइप लाइन से ही गांव में पानी की सप्लाई की जा रही है। लेकिन वास्तविकता यह है कि इस पाइप लाइन से पानी की सप्लाई तो दूर की बात आज तक ग्रामीणों के कैनेक्शन भी इससे नहीं जोड़े गए हैं। मामले का खुलास उस समय हुआ जब गांव के ही राजेश भोला नामक एक व्यक्ति ने जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत विभाग से इसकी जानकारी मांगी। विभाग के अधिकारियों ने मामले को गंभीरता से न लेते हुए राजेश को गोलमोल सा जवाब दे दिया। विभाग के अधिकारियों के जवाब से संतुष्ट न होने पर राजेश ने 20 जुलाई 2011 को विभाग के अधीक्षक अभियंता से दोबारा से इसकी सूचना मांगी। अधीक्षक अभियंता ने राजेश को पत्र क्रमांक 17963 के माध्यम से 5 अगस्त 2011 को जो जवाब दिया उसे देखकर राजेश दंग रह गया। अधीक्षक अभियंता द्वारा दी गई जानकारी में स्पष्ट लिखा था कि विभाग द्वारा अहिरका गांव में पानी की सप्लाई के लिए पाइप लाइन बिछाने का कार्य ठेकेदार को दिया गया था और इस पर 17 लाख 35 हजार रुपए का खर्च आया था। इस पाइप लाइन को विभाग द्वारा 3 अप्रैल 2010 को शुरू करना था। अधीक्षक अभियंता द्वारा दी गई इस जानकारी के बाद पाइप लाइन बिछाने के कार्य में हुआ फर्जीवाड़ा सामने आया। ग्रामीण राजेश ने बताया कि पाइप लाइन से पानी की सप्लाई तो दूर आज तक इस पाइप लाइन से ग्रामीणों के कैनेक्शन भी नहीं जोड़े गए हैं। गांव में पानी की सप्लाई शुरू न होने के कारण ग्रामीणों के समाने पेयजल संकट गहरा गया है। विभाग द्वारा लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद भी ग्रामीणों की प्यास नहीं बुझा सका है।
टंकियां तो मिली, लेकिन पानी नहीं
सरकार द्वारा बीपीएल परिवारों के लिए शुरू की गई मुफ्त टंकी योजना के तहत दो साल पहले बीपीएल परिवारों को पानी की टंकियां दी गई थी। गांव में बिछाई गई पाइप लाइन से इन परिवारों को पानी का कैनेक्शन दिया जाना था। लेकिन पाइप लाइन बिछाने के कार्य में हुए फर्जीवाड़े के कारण आज तक बीपीएल परिवारों को पानी का कैनेक्शन नहीं मिला है। विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण इन परिवारों के लिए सरकार की मुफ्त टंकी योजना लाभदाय सिद्ध नहीं हो सकी। सरकार की योजना के तहत इन्हें टंकियां तो मिल गई, लेकिन पानी आज तक नहीं मिल सका है।
ठेकेदार से की जाएगी जवाब-तलबी
गांव में पाइप लाइन बिछाने का कार्य ठेकेदार को सौंपा गया था। वि•ााग ने रिकार्ड के अनुसार ही जानकारी उपलब्ध करवाई है। इस संबंध में ठेकेदार को बुलाकर जवाब-तलब किया जाएगा। अगर इस दौरान इस तरह का कोई मामला सामने आया तो ग्रामीणों की समस्या का जल्द से जल्द समाधान किया जाएगा।
डीपी मित्तल, एक्सईएन
जन स्वास्थ्य विभाग, जींद


कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों के भविष्य पर लटकी तलवार

117 रुपए प्रतिदिन मेहनताने से कर रहे हैं गुजारा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार एक तरफ तो सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा लागू कर शिक्षा स्तर को ऊंचा उठाने तथा बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने के दावे कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ बच्चों को कम्प्यूटर शिक्षा उपलब्ध करवाने वाले अध्यापकों तथा लैब सहायकों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। सरकारी स्कूलों में आऊटर्सोसिंग कंपनी द्वारा सरेआम श्रम कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं तथा कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों का शोषण किया जा रहा है। कंपनी कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों के साथ नियुक्ती के समय किए गए 5 साल के अनुबंध को बीच में ही तोड़ कर उसमें फेर बदल कर इनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। कंपनी के तानाशाही रवैये के कारण कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायक असमंजस में हैं। कंपनी द्वारा उठाए गए इस कदम से प्रदेश भर के लगभग 6 हजार कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायकों के भविष्य पर तलवार लटक रही है। हरियाणा कम्प्यूटर अध्यापक संघ व लैब सहायक संघ अब अपने रोजगार को बचाने के लिए आंदोलन की रणनीति तैयार कर रहा है।
प्रदेश सरकार ने सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2009 में पांच साल के अनुबंध पर कम्प्यूटर शिक्षक व लैब सहायकों की भर्ती के लिए एचसीएल कंपनी  से कॉन्ट्रेक्ट दिया था। एचसीएल कंपनी ने यह कॉन्ट्रेक्ट एनआईसीटी कंपनी को दे दिया। एनआईसीटी कंपनी  ने आऊटर्सोसिंग नीति के प्रदेश भर में लगभग 6 हजार कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायकों की भर्त्ती की थी। कंपनी ने ज्वार्इंनिग के समय अध्यापकों के साथ 5 साल का अनुबंध किया था। एनआईसीटी कंपनी ने कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों को प्रतिदिन 117 रुपए मेहनताना देने का अनुबंध किया था। लेकिन अब कंपनी  ने इस कॉन्ट्रेक्ट को रद्द कर नए सिरे से कॉन्ट्रेक्ट तैयार किया है। कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों ने कंपनी पर आरोप लगाया है कि कंपनी उनसे जिस नए कॉन्ट्रेक्ट पर साईन करवा रही है उसमें काफी खामिया हैं। नए कॉन्ट्रेक्ट पर कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायक के पद पर नियुक्ती का जिक्र करने की बजाए स्वयं सेवक के तौर पर नियुक्ती का जिक्र किया गया है। उन्होंने कहा कि कंपनी उनकी नियुक्ती कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायक के स्थान पर स्वयं सेवक के रूप में दिखाना चाहती है। अगर वे कंपनी द्वारा तैयार किए गए नए कॉन्ट्रेक्ट पर साईन करते हैं तो वे भविष्य में अपने हक के लिए आवाज नहीं उठा सकेंगे। कंपनी ने जानबुझ कर उनका शोषण करने के उद्देश्य से यह कदम उठाया है। उन्होंने आरोप लगाए के कंपनी के अधिकारी पुराने अध्यापकों व लैब सहायकों को हटाकर उनकी जगह पैसे लेकर चोर दरवाजे से नई भर्ती कर रही है। कम्प्यूटर अध्यापकों का कहना है कि उनसे स्कूल में बच्चों को कम्प्यूटर शिक्षा देने के अलावा अध्यापकों की ई-सैलरी व एससी, बीसी के बच्चों के खाते तैयार करने का कार्य भी लिया जाता है। कंपनी मात्र 117 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मेहनताना देकर उनका शोषण कर रही है। कंपनी के तानाशाही रवैये के चलते ही हरियाणा अध्यापक संघ व लैब सहायक संघ आंदोलन की रणनीति तैयार कर रहा है।
मात्र 117 रुपए से गुजारा चलाना मुश्किल
मात्र 117 रुपए प्रतिदिन के मेहनताने से आज की महंगाई में गुजारा होना मुश्किल है। इसलिए वे अपने मेहनताने में वृद्धि करवाने के लिए कंपनी से मांग कर रहे थे। इसके लिए वे सभी प्रशासनिक अधिकारियों व सरकारी नुमाइंदों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन उन्हें कहीं से भी न्याय की उम्मीद नजर नहीं आ रही है। अब कंपनी ने उनकी आवाज को दबाने के उद्देश्य से नया कॉन्ट्रेक्ट तैयार किया है। उनसे जबरदस्ती नए कॉन्ट्रेक्ट पर हस्ताक्षर करए जा रहे हैं। कंपनी उनकी नियुक्ती कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायक के पद की बजाए स्वयं सेवक के पद पर दिखाना चाहित है, ताकि वे भविष्य में अपने हक के लिए आवाज न उठा सकें। कंपनी पुराने कर्मचारियों को हटा कर पैसे लेकर चोर दरवाजे से नई भर्ती कर रही है।
देवेंद्र सिंह, जिला प्रधान
हरियाणा कम्प्यूटर अध्यापक
संघ, जींद
सरकार हर साल मांगती है नया एग्रीमेंट
कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों के साथ जो कॉन्ट्रेक्ट किया गया है, वह 5 साल के लिए ही है। सरकार हर साल नया एग्रीमेंट मांगती है। इसलिए सभी कम्प्यूटर अध्यापकों व लैब सहायकों से नए एग्रीमेंट पर साईन करवाए जा रहे हैं। कंपनी ने जो कॉन्ट्रेक्ट पहले तैयार किया था, वही कॉन्ट्रेक्ट इस बार भी है। पैसे लेकर चोर दरवाजे से भर्ती के इलजाम बेबुनिया हैं।
अशोक शर्मा, जिला कोर्डिनेटर
एनआईसीटी, जींद


निजी स्कूल लूट रहे खून-पसीने की कमाई

नरेंद्र कुंडू
जींद।
शहर के निजी स्कूलों की कमीशनखोरी ने अभिभावकों की जेबें खाली कर दी हैं। नया शैक्षिक सत्र शुरू होते ही निजी स्कूल संचालकों ने अपनी जेबें भरनी शुरू कर दी हैं। जहां पहले दाखिले के नाम पर अभिभावकों से मोटी फीस वसूली जा रही है, वहीं इन निजी स्कूलों ने वर्दी से लेकर किताबों तक कमीशन निर्धारित किया हुआ है। निजी स्कूलों में किताबों की चिट बनाकर अभिभावकों के हाथों में थमा दी जाती है। निजी स्कूल संचालकों द्वारा दी गई चिट में बकायदा बुक डिपो का नाम व पूरा पता लिखा होता है। इन बुक डिपो संचालकों के साथ निजी स्कूल संचालकों का कमीशन निर्धारित होता है। किताब-कापियों के लिए फिक्स दुकानों एवं मनमानी कीमत ने मजबूर अभिभावकों की खून पसीने की कमाई लूट ली है। प्रकाशक से लेकर दुकानदार तक सब सेट हैं और असहाय अभिभावकों बच्चों के भविष्य की चिंता में खामोश हैं। शासन, प्रशासन को निजी स्कूलों के इस लूटतंत्र पर कार्रवाई करने की फुरसत नहीं है। प्रशासन की लापरवाही के चलते निजी स्कूल शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
हर साल नए शैक्षिक सत्र के दौरान किताबों व ड्रेस के नाम पर निजी स्कूल अभिभावकों की जेबें ढीली कर मोटा मुनाफा वसूलते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है। शैक्षिक सत्र में सबसे ज्यादा लूट किताबों को लेकर मचती है। इन दिनों शहर के कुछ  दुकानों एवं स्कूलों में बाजार से कई गुनी कीमत पर किताबें, कापियां एवं ड्रेस बेचे जा रहे हैं। इस पूरे कारोबार में एक संगठित गिरोह काम कर रहा है। पूरा खेल नए शिक्षा सत्र के साथ ही फिर से शुरू हो गया है। इसमें स्कूल प्रबंधन से लेकर प्रकाशक और दुकानदार जुड़े हैं। ये शिक्षा के नाम पर अभिभावकों को लूट रहे हैं और मुनाफे का बंटवारा आपस में कर रहे हैं। किताबों से हर साल स्कूल से लेकर पुस्तक विक्रेता तक लाखों रुपए कमाते हैं। सत्र शुरू होने से पहले ही विक्रेता बिचौलियों की भूमिका में आ जाते हैं। प्रकाशकों को लेकर स्कूलों तक विक्रेता स्वयं पहुंचते हैं। उसके बाद स्कूल वाले उसी प्रकाशक की किताबें स्कूलों में लगाते हैं फिर शुरू हो जाता है अभिभावकों की जेब तराशी का दौर। एनसीईआरटी की ओर से जो किताबें पैटर्न में दी जाती है उसके साथ ही जरुरी न होते हुए भी हेल्पिंग बुक लगा दी जाती हैं। अंग्रेजी की किताब के साथ हैंड राइटिंग सुधारने, ग्रामर की किताब दी जाती है। छोटी-छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चे एक ही किताब नहीं पढ़ पाते हैं, तो दूसरी किताबें केवल बोझ बढ़ाने के लिए होती हैं। निजी स्कूल संचालकों द्वारा अभिभावकों को किताबों के लिए खास दुकान बताई जाती है। अभिभावकों को स्कूल द्वारा किताबों की जो लिस्ट दी जाती है उस लिस्ट पर बुक डिपो का नाम व पूरा पता होता है। इस दुकान के अलावा वे पुस्तकें किसी अन्य दुकान पर नहीं मिलती। अभिभावकों बेचारे क्या करें बच्चों की पढ़ाई का सवाल है, वहीं से किताबें खरीदनी पड़ती हैं। हर अभिभावकों अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देना चाहता है। ऐसे में वे सरकारी स्कूलों से पहले निजी स्कूलों को तरजीह देते हैं। इन सब के बीच निजी स्कूलों ने अपनी दुकानदारी चला रखी हैं। अभिभावकों से किस तरह से अधिक से अधिक पैसे लिए जा सकते हैं, सत्र शुरू होने के साथ ही इसके उपाय ढूंढ निकालते है। मिशनरी एवं अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूल इसमें कुछ ज्यादा ही आगे हैं। ये स्कूल प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तरीके से अभिभावकों पर दबाव बनाते हैं कि वे संबंधित दुकान से ही किताब खरीदें। लेकिन जिला प्रशासन इस ओर से आंखें बंद किए बैठा है और निजी स्कूल संचालकों द्वारा खुलेआम शिक्षा अधिकार कानून की धज्जियां उडाई जा रही हैं।

कैसे चलता है कमीशन का धंधा

प्रकाशन से जुड़े जानकारों का कहना है कि इस कारोबार में भारी मुनाफा होता है। पुस्तकों पर 15 से 80 प्रतिशत तक मुनाफा होता है। प्रकाशक से वितरक व वितरक से थोक व्यवसायी तक मुनाफा एमआरपी के दो से दस प्रतिशत तक होता है। पुस्तक विक्रेता विद्यालय प्रबंधन के समक्ष मुनाफे में एक तय हिस्सा देने का आफर करता है। इसके अलावा प्रकाशक भी अलग सुविधा देते हैं। यह सुविधा किताबों की स्वीकृति मिलने पर दी जाती है।

हर साल बदल जाती हैं किताब

विद्यालय प्रबंधनों से बातचीत करने पर यह बात भी सामने भी आई कि हर साल किताब बदल जाती है। इसके पीछे कारण होता है प्रकाशक द्वारा अतिरिक्त कमीशन प्रबंधन को दिया जाना। हालांकि कई स्कूल तर्क देते हैं कि एडीशन बदलने से किताब बदलना मजबूरी है।
शिकायत मिलने पर होगी कार्रवाई

निजी स्कूल संचालक शिक्षा की आड़ में अपनी दुकानदारी चलाते हैं। यह सरासर गलत है। बुक डिपो संचालक के साथ निजी स्कूल संचालकों का कमीशन तय होता है और अपने कमीशन के लिए स्कूल संचालक एनसीईआरटी के पैटर्न  के अलावा भी अलग से सिलेबस लगवाते हैं। अगर कोई अभिभावक उनके पास इसकी शिकायत करता है तो वो उस स्कूल संचालक के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। बिना शिकायत के कार्रवाई नहीं की जा सकती।
साधू रोहिला
जिला शिक्षा अधिकारी, जींद


...अब किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाएंगी गाँव की गौरी

 कार्यशाला के दौरान महिलाओं को कीटों की पहचान करवाती मास्टर ट्रेनर महिला।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
अब निडाना व आस-पास के गांवों के किसान निडाना की महिलाओं से खेती व कीट प्रबंधन के गुर सीखेंगे। ये महिलाएं अब चूल्हे-चौके के साथ-साथ कीट प्रबन्धन के काम-काज को भी संभालेंगी। इस तरह पर्दे की आड़ में रहने वाले ये चेहरे अब टीचर की भूमिका में नजर आएंगे। राष्ट्रीय कृषि ओर ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड)द्वारा किसानों के उत्थान के लिए शुरू की गई किसान क्लबों के गठन की योजना के तहत जींद जिले के तीन गांवों में महिला किसान क्लबों का भी गठन किया गया है। निडाना,  भैरवखेड़ा व ललितखेड़ा में गठित किए गए ये महिला किसान क्लब प्रदेश के पहले महिला किसान क्लब हैं। इन महिला किसान क्लबों के संचालन की जिम्मेदारी कीट साक्षरता केंद्र की मास्टर ट्रेनर महिलाओं को सौंपी गई है। ये मास्टर ट्रेनर महिलाएं क्लब के माध्यम से किसानों को तकनीकी खेती के साथ-साथ कीट प्रबंधन के गुर भी सिखाएंगी। इन क्लबों के गठन से इन्हें अपने कीट साक्षरता अभियान को तो शिखर तक पहुंचाने का मौका मिलेगा ही, साथ-साथ ये महिलाएं अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बनेंगी।
कृषि, बागवानी, पशु पालन व ग्रामीण विकास के लिए नाबार्ड और केंद्र सरकार ने विभिन्न योजनाएं शुरू की है। इन योजनाओं को गांवों तक पहुंचाने व उनका लाभ उठाने के लिए प्रत्येक गांव में किसान क्लबों का गठन किया जा रहा है। इसी कड़ी के तहत जींद जिले के निडाना, भैरवखेड़ा व ललितखेड़ा गांवों में महिला किसान क्लबों का गठन किया गया है। निडाना गांव के महिला किसान क्लब के लिए अनिता को कोर्डिनेटर तथा अंग्रेजो देवी को सहकोर्डिनेटर नियुक्त किया गया है। भैरवखेड़ा के  महिला किसान क्लब के लिए संतोष को कोर्डिनेटर तथा कविता को सहकोर्डिनेटर नियुक्त किया गया है। ललितखेड़ा गांव में सविता मलिक को कोर्डिनेटर तथा मनीषा शर्मा को सहकोर्डिनेटर की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कृषि विभाग के अधिकारियों ने महिला किसान क्लबों के लिए इन महिलाओं का चयन कर तथा सभी औपचारिकताएं पूरी कर उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट भेज दी है। गांव में क्लब का गठन होने से इन महिलाओं की मंजिल ओर भी आसान हो गई है। अब ये महिलाएं गांव में क्लब की बैठक कर किसानों को तकनीकी खेती के साथ-साथ कीट प्रबंधन के गुर भी सिखाएंगी। ये मास्टर ट्रेनर महिलाएं अब खेतों में जाकर किसानों को कीटों की पहचान करवाएंगी। कीट प्रबंधन को बढ़ावा देने के पीछे इन महिलाओं का मुख्य उद्देश्य खाने को जहर मुक्त बनाना है। इनका मानना है कि अगर किसान फसल में मौजूद माशाहारी व साकाहारी कीटों की पहचान कर फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग को बंद कर दे तो मनुष्य की थाली में बढ़ते जहर को कम किया जा सकता है।

क्या है योजना

किसानों को खेती के साथ-साथ तकनीकी खेती के लिए प्रेरित करने के लिए नाबार्ड ने 1982 में किसान क्लबों के गठन की शुरूआत की थी। शुरूआत में प्रचार के अभाव के कारण प्रदेश में इस योजना को अच्छा रिस्पांश नहीं मिला था। नाबार्ड द्वारा प्रकाशित किसान क्लब कार्यक्रम पुस्तिका के आंकड़ों के अनुसार 2010 तक प्रदेश में केवल 899 किसान क्लबों का गठन ही हो पाया है। इसके बाद अब 2012 में इस योजना को सफल बनाने के लिए नाबार्ड ने इस योजना के प्रचार पर जोर दिया है। इस योजना को सफल बनाने की जिम्मेदारी प्रदेश में कृषि विभाग को सौंपी है। कृषि विभाग योजना को मूर्त रूप देने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी है। क्लब में कम से कम 10 सदस्य होने अनिवार्य हैं। इन क्लबों का सदस्य उसी किसान को बनाया जाएगा, जो किसान बैंक में नियमित रूप से लेन-देन करता है और बैंक द्वारा उसे डिफाल्टर घोषित नहीं किया गया हो।
महिलाओं ने की थी क्लब के गठन की मांग
निडाना गांव में कीट साक्षरता केंद्र चलाने वाली महिलाएं कीट प्रबंधन में पूर्ण तौर पर पारंगत हो चुकी हैं। इसलिए इन महिलाओं ने अन्य किसानों को जागरुक करने के लिए गांव में महिला किसान क्लब के गठन की मांग की थी। इन महिलाओं के हौंसले को देखते हुए पास के गांव भैरवखेड़ा तथा ललितखेड़ा की महिलाओं ने भी निडाना की तर्ज पर गांव में महिला किसान क्लब के गठन की मांग की थी। इन महिलाओं के हौंसले को देखते हुए ही इन गांवों में महिला किसान क्लब के गठन की प्रक्रिया शुरू की गई है। उन्होंने क्लब के गठन संबंधि सभी औपचारिकताएं पूरी कर आगामी कार्रवाई के लिए उच्च अधिकारियों के पास भेज दी है।
डा. सुरेंद्र दलाल
एडीओ, कृषि विभाग


ऊर्जा संरक्षण के लिए आईएसआई मार्क के उपकरणों को बनाया हथियार

आईटी विलेज बीबीपुर ने शुरू की एक अनुठी पहल
नरेंद्र कुंडू
जींद। आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत ने ऊर्जा संरक्षण के लिए एक अनोखा कदम उठाया है। सीएफएल ट्यूब युक्त गांव का दर्जा हासिल करने के लिए छेड़ी गई मुहिम के साथ-साथ अब सिर्फ गांव में आईएसआई या आईएसओ 9001 अनुपात 2000 के  मार्क वाले बिजली उपकरणों का प्रयोग करने का निर्णय लिया है। क्योंकि यह उपकरण अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार होते हैं। जिस कारण इन उपकरणों की क्वालिटी बहुत अच्छी होती है और इनमें जल्द खराबी आने की संभावनाएं भी कम ही होती हैं। इसके अलावा आईएसआई मार्क वाले उपकरणों में बिजली की खपत भी साधारण उपकरणों की बजाए काफी कम होती है। ग्रामीणों को इस क्षेत्र में जागरुक करने के लिए पंचायत ने एक सर्वे टीम का गठन किया है। इस टीम के सदस्य सुबह-सांय घर-घर जाकर घर में प्रयोग होने वाले साधारण बिजली उपकरणों तथा आईएसआई मार्क वाले उपकरणों की रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। रिपोर्ट तैयार करने के बाद सर्वे टीम घर के सभी सदस्यों को आईएसआई मार्क वाले उपकरणों के लाभ के बारे में भी विस्तार से जानकारी देती है। गांव के अलावा टीम खेतों में जाकर ट्यूबवैल पर प्रयोग होने वाली बिजली मोटरों की जांच भी  करती है। पंचायत द्वारा शुरू की गई इस मुहिम के बाद 60 प्रतिशत ग्रामीण आईएसआई मार्क वाले उपकरणों का प्रयोग करने लगे हैं।
आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत ने गांव को पूर्ण रूप से सीएफएल ट्यूब युक्त बनाने की मुहिम के साथ ही अब अच्छी क्वालिटी के बिजली उपकरणों के प्रयोग पर जोर दिया है। इसके लिए पंचातय द्वारा लोगों को केवल आईएसआई व आईएसओ के मार्क वाले उपकरणों का ही प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया जाता है। पंचायत द्वारा शुरू की गई इस मुहिम का मुख्य उद्देश्य ऊर्जा संरक्षण के साथ-साथ ग्रामीणों को अच्छी क्वालिटी के उपकरणों के प्रयोग के लिए जागरुक करना है। ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए पंचायत ने एक सर्वे टीम का गठन किया है। यह टीम घर-घर जाकर घर में प्रयोग होने वाले साधारण व आईएसआई के मार्क वाले उपकरणों का रिकार्ड तैयार कर रही है। इसके अलावा टीम के सदस्य खेतों में ट्यूबवैल पर चलने वाली बिजली की मोटरों की भी जांच कर रही हैं। टीम के सदस्यों द्वारा आईएसआई मार्क वाले उपकरणों में सबसे ज्यादा जोर चक्की मोटर व कृषि के क्षेत्र में ट्यूबवैल पर प्रयोग होने वाली मोटर पर दिया जा रहा है। क्योंकि लाईट में अचानक आने वाले फालट का सबसे ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव चक्की व ट्यूबवैल की मोटरों पर ही पड़ता है और इनकी रिपेयर में खर्च भी अन्य उपकरणों से कई गुणा ज्यादा आता है।

60 प्रतिशत ग्रामीण करते हैं आईएसआई मार्क वाले उपकरणों का प्रयोग

ग्राम पंचायत द्वारा इस मुहिम के बाद करवाए गए सर्वे में जो आंकड़े निकल कर सामने आए हैं, वह इस अभियान की सफलता को साफ दर्शाते हैं। पंचायत द्वारा इस मुहिम की शुरूआत से पहले 80 प्रतिशत लोग सस्ते के चक्कर में बिना आईएसआई के मार्क वाले बिजली उपकरणों का प्रयोग करते थे। लेकिन अब 60 प्रतिशत लोग आईएसआई व आईएसओ के मार्क वाले उपकरणों का प्रयोग करते हैं। गांव में फिलहाल 311 के लगभग पंपों व चक्की की मोटर  हैं। जिनमें से 94 सबमर्सिबल पंप, 41 दूसरे पंप व 52 चक्की की मोटरें आईएसआई मार्क वाली ही हैं। इसके अलावा जो 124 के लगभग पंप व मोटर बची हैं वह बिना आईएसआई मार्क की हैं। पंचायत ने बची हुई 40 प्रतिशत की इस खाई को जल्द से जल्द पाटने के लिए गांव के सभी बिजली मिस्त्रियों को भविष्य में किसी भी ग्रामीण को कोई भी बिजली उपकरण की खरीद करवाते समय बिना आईएसआई या आईएसओ के मार्क वाले उपकरण न दिलवाने के लिए प्रेरित किया है।

ऊर्जा संरक्षण व आर्थिक परेशानी से बचने के लिए उठाया कदम

आईएसआई मार्क वाले उपकरण अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार होते हैं। जिस कारण इनकी क्वालिटी लोकल उपकरणों से ज्यादा अच्छी होती है। लोकल उपकरणों के प्रयोग से बिजली की अधिक खपत होती है और ये उपकरण जल्द ही खराब हो जाते हैं। जिस कारण ग्रामीणों को काफी आर्थिक नुकसान वहन करना पड़ता है। ऊर्जा संरक्षण तथा ग्रामीणों को आर्थिक परेशानी से बचाने के लिए ही पंचायत ने यह कदम उठाया है। आईएसआई मार्क वाले उपकरण के प्रयोग से बिजली की बचत तो होती ही है और इनकी लाइफ लोकल उपकरणों से काफी ज्यादा होती है।
सुनील जागलान सरपंच
ग्राम पंचायत, बीबीपुर


केजीबीवी स्कूलों में जल्द शुरू होंगी स्मार्ट क्लास

प्रदेश में सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लास शुरू करने वाला पहला जिला होगा जींद

नरेंद्र कुंडू
जींद।
‘ज्ञानेन शोभतेश्ण’ के नारे को साकार करने के लिए अब कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों को हाईटेक बनाने की योजना तैयार की गई है। योजना के तहत उचाना के खेड़ी सफा व नरवाना के फुलिया खुर्द दोनों कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (केजीबीवी) जल्द ही स्मार्ट क्लास रूम से सुसज्जित होंगे। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए सर्व शिक्षा अभियान ने यह कदम उठाया है। प्रदेश के सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लास शुरू करने वाला प्रदेश का यह पहला जिला है। इन स्कूलों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अंबाला मुख्यालय से जोड़ा जाएगा। एनिमेशन के जरिए कठिन चैप्टर भी बच्चों को समझने में आसानी होगी। इससे इन स्कूलों में शिक्षा में काफी सुधार होगा। एसएसए ने इन स्कूलों में स्मार्ट क्लास शुरू करने के इसके लिए हरी झंडी दे दी है।
प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर अब कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय भी स्मार्ट क्लास रूम से सुसज्जित होंगे। इस योजना की शुरूआत प्रदेश में सबसे पहले जींद जिले के उचाना के खेड़ी सफा व नरवाना के फुलिया खुर्द स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय से की जाएगी। प्रदेश में सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लास शुरू करने वाला यह प्रदेश का पहला जिला है। आने वाले दो-तीन माह में इन स्कूलों को स्मार्ट क्लास रूम की सौगात मिल जाएगी। एसएसए द्वारा उठाए गए इस कदम से इन स्कूलों के स्तर में काफी सुधार आएगा। प्रदेश में सूचना एवं प्रौद्योगिकी के दौर को देखते हुए एसएसए ने यह कदम उठाया है। इन स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राएं इसी वर्ष से स्मार्ट क्लास का लाभ ले सकेंगी। सर्व शिक्षा अभियान ने इसके लिए हरी झंडी दे दी है। छठी से दसवीं कक्षा के सिलेबस आडियो व वीडियो विजुअल मोड में स्क्रीन पर उपलब्ध होंगे। एनिमेशन के जरिए कठिन चैप्टर भी  छात्राओं को समझने में आसानी होगी। एसएसए द्वारा उठाए गए इस कदम का मुख्य उद्देश्य आर्थिक तंगी या अन्य किसी परेशानी के चलते पढ़ाई छोड़ चुकी इन छात्राओं को समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है। योजना को सिरे चढ़ाने के लिए गत दिनों अतिरिक्त उपायुक्त अरविंद मलहान ने जिले में चल रहे स्मार्ट क्लास वाले स्कूलों का दौरा भी किया है। स्मार्ट क्लास के जरिए इन स्कूलों को अंबाला से जोड़ा जाएगा। अंबाला में बैठे विशेषज्ञ छात्राओं को समय-समय पर शिक्षा में होने वाले नए-नए प्रयोगों की जानकारी उपलब्ध करवाएंगे।
कौशल का मिलेगा प्रशिक्षण
नए शिक्षा सत्र से कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में पढ़ने वाले छात्राओं को अंग्रेजी पर पकड़ बनाने के लिए उच्चारण कौशल का भी विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रशिक्षण के दौरान छात्राओं को कंप्यूटर शिक्षा की बारीकियों से भी अवगत कराया जाएगा। एसएसए का मकसद प्रशिक्षण कार्यक्रम के जरिए छात्राओं को कौशल दक्षता में पारंगत बनाना है।
कैसा होगा स्मार्ट स्कूल
स्मार्ट स्कूल पूरी तरह है टेक्नो लेवल पर डवलप होता है। इसमें क्लास रूम आॅडियो-वीडियो सुविधाओं वाला होगा। स्मार्ट क्लास रूम कम्प्यूटराइज होगा। इसे इंटनेट के माध्यम से अन्य कार्यालयों से जोड़ा जाएगा। छात्राएं स्मार्ट क्लास के माध्यम से स्कूल व पढ़ाई से जुड़ी सभी जानकारी आन लाइन ले सकेंगी। स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर्स भी आईटी एक्सपर्ट होंगे। इससे छात्राएं समय-समय पर पढ़ाई के क्षेत्र में आने वाली सभी नवीनतम जानकारियां उपलब्ध कर सकेंगी।
सरकारी खर्चे पर हाईटेक शिक्षा
केजीबीवी विद्यालयों में स्मार्ट क्लास शुरू करने पर विचार किया जा रहा है। अगर यह योजना सिरे चढ़ती है तो प्रदेश में जींद जिला सबसे पहला ऐसा जिला है जहां सरकारी स्कूल में ई-क्लास रूम शुरू किए जाएंगे। इन स्कूलों में ई-स्मार्ट क्लास रूम शुरू होने से छात्राएं समय-समय पर शिक्षा के क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों की जानकारी लेकर अपडेट हो सकेंगी। योजना को मूर्त रूप मिलते ही सरकारी खर्च पर इन स्कूलों की छात्राएं स्मार्ट क्लास रूम में शिक्षा हासिल कर सकेंगी।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी
एसएसए, जींद

रविवार, 8 अप्रैल 2012

‘नौकरी’ मिली, लेकिन नहीं मिला रोजगार

1716 परिचालकों को अभी ओर करना पड़ेगा इंतजार, बिना वेतन के ही करना पड़ेगा गुजारा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
हरियाणा रोडवेज में परिचालक पद के लिए चयनित हुए 3504 में से 1716 उम्मीदवारों को अभी 6 माह तक ओर सीटी व थैले का इंतजार करना पड़ेगा। नौकरी मिलने के बाद भी परिचालकों के हाथ ज्वाईनिंग लेटर के लिए तरस रहे हैं। हरियाणा ट्रांस्पोर्ट डिपार्टमेंट द्वारा फिलहाल 3504 चयनित परिचालकों में से सिर्फ 1788 परिचालकों को ही डिपो अलाट करवाए गए हैं। इससे काऊंसलिंग के माध्यम से शुरू की गई अलाटमेंट प्रक्रिया पर भी सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं। बाकी बचे हुए परिचालक काऊंसलिंग कमेटी पर अपने चहेतों को ही डिपो अलाट करवाने के आरोप लगा रहे हैं। अपने उज्जवल भविष्य के सपने बुनने वाले इन परिचालकों के सपनों पर काऊंसलिंग कमेटी की काली छाया का ग्रहण लगा गया है। जिस कारण इन्हें अब चयन होने के बावजूद भी कई माह बिना वेतन के ही अपना गुजारा करना पड़ेगा। आयोग द्वारा शुरू की गई इस नई प्रक्रिया से इनकी सांसें अटकी हुई हैं। चयन प्रक्रिया से निराश हो चुके ये परिचालक अब अदालत का दरवाजा खटखटाने के का मन बना रहे हैं। इन्हे ‘नौकरी’ तो मिल गई है, लेकिन रोजगार  नहीं मिला   
हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के तहत 3837 परिचालकों के पदों के लिए साक्षात्कार लिए गए थे। जिनमें से 3504 उम्मीदवार इसमें सफल हुए थे। इसके बाद हरियाणा ट्रांस्पोर्ट डिपार्टमेंट ने खाली पदों से अधिक परिचालकों का चयन होने का बहाना बना कर चयनित परिचालकों को मैरिट के आधार पर काऊंससिंलग के माध्यम से डिपो अलाट करवाने की प्रक्रिया शुरू करने की योजना तैयार की।इस पहली काउंसलिंग के तहत 1902 उम्मीदवारों को डिपो अलाट करने के लिए बुलाया गया था, लेकिन डिपार्टमेंट ने इनमें से भी केवल 1788 परिचालकों को नियुक्त किया है। इनमें से भी 114 परिचालकों को भी बिना ज्वाईनिंग लेटर के वापिस घर लौटना पड़ा। चयनित परिचालक प्रदीप, सुशील, अशोक, ओमप्रकाश, शमशेर, दलबीर, कृष्ण ने बताया कि1788 उम्मीदवारों को डिपो अलाट करने के बाद डिपार्टमेंट ने उन्हें दूसरी काउंसलिंग के लिए अभी तक कोई सूचना नहीं दी गई है। उन्होंने कहा कि अगर अनुसूचित जाति के 20 प्रतिशत उम्मीदवारों को आरक्षण दिया गया तो इनकी संख्या ही 358 बन जाएगी। पर पहली काउंसलिंग में ऐसे 135 उम्मीदवार ही बुलाए गए हैं। बाकी 223 उम्मीदवारों को किस आधार पर छोड़ गया है, यह भी अभी  तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। इससे उन्हें काऊंसलिंग कमेटी की नीयत में खोट नजर आ रहा है। इस प्रकार काऊंसलिंग कमेटी की जालसाजी के कारण उनके सामने असमंजस की स्थिति बनी हुई है। नौकरी मिलने के बाद भी उनके हाथ ज्वाईनिंग लेटर के बिना खाली हैं। उन्होंने कहा अब तो उन्हें मजबूरन अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा।
किस-किस तारीख को हुई है काऊंसलिंग 
काऊंसलिंग कमेटी द्वारा चयनित परिचालकों को डिपो अलाट करवाने के लिए रोहतक स्थित छोटू राम स्टेडियम में मैरिट के आधार पर बुलाया गया था। जिसमें मैरिट संख्या 1 से 700 तक के उम्मीदवारों को 2 अप्रैल को और मैरिट संख्या 701 से 1400 तक के उम्मीदवारों को 3 अप्रैल को काऊंसलिंग के लिए बुलाया गया था। इसी प्रकार मैरिट संख्या 1401 से 1902 तक के उम्मीदवारों को 4 अप्रैल को बुलाया गया था। काऊंसलिंग के इस पहले दौर में मैरिट सूची के केवल पहले 1902 उम्मीदवारों को काऊंसलिंग के लिए बुलाया गया था। लेकिन इनमें से भी  केवल 1788 उम्मीदवारों को ही डिपो दिए गए हैं। इनके अलावा बाकी बचे हुए परिचालकों को ज्वाइनिंग के लिए अभी ओर इंतजार करना होगा।
जल्द से जल्द करवाई जाएगी ज्वाईन
31 मार्च 2012 तक सेवानिवृत्ति के बाद डिपार्टमेंट में केवल 1788 परिचालकों के पद खाली  हुए थे। खाली पद कम होने तथा उम्मीदवार अधिक होने के कारण डिपार्टमेंट ने काऊंसलिंग कमेटी के माध्यम से मैरिट सूची के आधार पर परिचालकों को डिपो अलाट करवाए हैं। अभी रोडवेज बेडेÞ में कुछ नई बसें शामिल होनी हैं तथा अगले महीनों में होने वाली रिटार्यमेंट के बाद कुछ पद खाली होंने हैं। जिसके बाद बचे हुए परिचालकों को तुरंत ज्वाईनिंग करवा दी जाएगी। लगभग 6 माह के अंदर-अंदर सभी परिचालकों को ज्वाईन करवा दिया जाएगा।
जोगेंद्र सिंह, महाप्रबंधक
रोहतक डिपो एवं सदस्य काऊंसलिंग कमेटी

किस डिपो को कितने मिले परिचालक
जिले का नाम    पदों की संख्या

  • अंबाला                       98
  • भिवानी                       69
  • चंडीगढ़                      156
  •  दादरी                      17
  • दिल्ली                       98
  • फरीदाबाद                   364
  • फतेहाबाद                   18
  • गुड़गांव                      175
  • हिसार                       27
  • जींद                          29
  • झज्जर                      71
  • कुरुक्षेत्र                      41
  • करनाल                      62
  • कैथल                         19
  • नारनौल                      53
  • पानीपत                      50
  • रोहतक                       78
  • रेवाड़ी                         79
  • सोनीपत                     89
  • सिरसा                        07
  • यमुनानगर                    90
  • आईएसबीटी दिल्ली             98
कुल                                  1788

....ताकि खिलता रहे बचपन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
महिला एवं बाल विकास विभाग ने बचपन को संरक्षण देने की कवायद शुरू की है। योजना को सफल बनाने के लिए विभाग द्वारा एक टीम का गठन किया जाएगा। टीम के सदस्य गांव-गांव जाकर बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करेंगे। टीम के सदस्यों द्वारा ब्लॉक अनुसार गांवों का दौरा किया जाएगा तथा गांवों की चौपालों में सेमिनारों का आयोजन कर बच्चों को उनके अधिकार व संरक्षण के बारे में जानकारी दी जाएगी। विभाग द्वारा तैयार की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य बच्चों पर हो रहे अत्याचारों को रोकना तथा अनाथ व बेसहारा बच्चों को सहारा देकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है।        
बच्चे ही देश के  भविष्य हैं, बच्चों की अच्छी देखरेख एवं उचित वातावरण ही उन्हें अच्छा और जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए प्रेरित कर सकता है। अगर बच्चों को समय पर सही मार्गदर्शन मिल जाए तो देश का भविष्य उज्जवल हो जाएगा। लेकिन दिन-प्रतिदिन बच्चों पर बढ़ते अत्याचारों व अधिकारों की जानकारी के अभाव के कारण देश के भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। बढ़ते अत्याचारों व मार्गदर्शन के अभाव में देश के ये कर्णधार समाज से की धारा से कट रहे हैं। लेकिन अब बचपन को संरक्षण देने का बीड़ा उठाया है महिला एवं बाल विकास विभाग ने। इसके लिए विभाग एक योजना तैयार कर रहा है। उच्च अधिकारियों की तरफ से इस योजना को हरी झंडी मिलते ही विभाग योजना को मूर्त रूप देने की कवायद शुरू कर देगा। योजना को सफल बनाने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग एक टीम का गठन करेगा। इस टीम के सदस्य ब्लॉक अनुसार गांवों का दौरा करेंगे। इस दौरान टीम द्वारा प्रत्येक गांव में सार्वजनिक स्थल पर सेमिनार लगाए जाएंगे। कैंप के दौरान ये सदस्य बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक कर उन पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित करेंगे। इसके लिए ब्लॉक और गांव लेवल पर भी समिति का गठन किया जाएगा। इस समिति के सदस्य इस योजना के तहत लावारिस, मानसिक रोग से ग्रसित और विकलांग बच्चों को संरक्षण देकर उनको उनके अधिकारों के बारे में विस्तार से जानकारी मुहैया करवाएंगे। विभाग द्वारा योजना को सफल बनाने के लिए सामाजिक संस्थाओं से भी सहयोग लिया जाएगा। विभाग द्वारा शुरू की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य बच्चों पर हो रहे शोषण को खत्म कर संरक्षण देना तथा बच्चों को उनके अधिकारों की जानकारी देकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है। ताकि बच्चों को पढ़ा-लिखा कर आत्म निर्भर बनाया जा सके। जिला स्तर पर प्रोटैक्शन आफिसर व जिला चाइल्ड प्रोटैक्शन आफिसर की देखरेख में कमेटी काम करेगी। इसके लिए जिला स्तर पर सभी तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं। सोसायटी के सदस्यों को इसके लिए बाकायदा विशेष ट्रेनिंग भी दी गई है।
बच्चों को जागरूक करने के लिए उठाया कदम
महिला एवं बाल विकास विभाग बच्चों को संरक्षण देकर उन्हें अत्याचारों से मुक्त करवाएगा। बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करने के लिए विभाग द्वारा गांवों में जाकर सेमिनारों का आयोजन भी किया जाएगा। इसके लिए सोसायटी के सभी सदस्यों को विशेष ट्रेनिंग दी गई है, ताकि विभाग द्वारा शुरू की गई इस योजना का लाभ अधिक से अधिक बच्चों को मिल सके। सोसायटी के सदस्यों के साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारी भी सेमिनारों में भाग लेकर बच्चों को प्रेरित करेंगे। इसके लिए विभाग ने जिला प्लान के तहत योजना तैयार की है।
सरोज वर्मा
जिला चाइल्ड प्रोटैक्शन आफिसर

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

....ताकि थाली से कम हो सके जहर

कृषि पंचायत के बाद खेतों में कीटों की पहचान करते किसान।
  हर माह के अखिरी शनिवार को गांवों में किया जाएगा कृषि पंचायतों का आयोजन
नरेंद्र कुंडू
जींद। कीट साक्षरता केंद्र निडाना के किसान अब गांव-गांव जाकर कीट प्रबंधन की अलख जगाएंगे।  अपने इस मिशन को सफल बनाने के लिए कीट साक्षरता केंद्र के किसानों ने एक कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी में कीट प्रबंधन में पूर्ण रूप से दक्षता हासिल कर चुके किसानों को शामिल किया गया है। कीट साक्षरता केंद्र के ये मास्टर ट्रेनर किसान हर माह के आखिरी शनिवार को गांवों में जाकर कृषि पंचायत का आयोजन करेंगे। ये मास्टर ट्रेनर कृषि पंचायत में किसानों के साथ कीट प्रबंधन पर विचार-विमर्श करने के बाद किसानों को खेतों में ले जाकर व्यवहारिक ज्ञान भी देंगे, ताकि अधिक से अधिक किसानों को फसल में मौजूद मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान करवाई जा सके। किसानों को कीटों की पहचान होने से किसान कीटनाशक रहित खेती को अपना कर दूसरे किसानों के सामने उदहारण प्रस्तुत कर सकेंगे। कीट साक्षरता केंद्र के किसानों द्वारा छेड़ी गई इस मुहिम का मुख्य उद्देश्य फसलों में बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग पर अंकुश लगाकर मनुष्य की थाली को जहर मुक्त करना है।
लेपटॉप पर कीटों की पहचान करवाते मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक
फसलों में अंधाधूंध रासायनिक पदार्थों के प्रयोग के कारण आज हमारा भोजन विषेला हो चुका है। जिस कारण इंसान हर रोज नई-नई बीमारियों की चपेट में आ रहा है। यह इन रासायनिक पदार्थों का ही परिणाम है कि आज मनुष्य का शरीर कई ऐसी बीमारियों की चपेट में आ चुका है, जिसका ईलाज संभव ही नहीं है। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में कीटनाशक तैयार करने वाली कंपनियां भी हर रोज नए-नए कीटनाशक बाजार में उतार रही हैं। जिसका मनुष्य के स्वास्थ्य पर तो प्रतिकूल प्रभाव पड़ ही रहा है साथ-साथ किसान को भी आर्थिक रूप से मोटी चपत लग रही है। लेकिन अब किसानों को जागरुक करने के लिए निडाना कीट साक्षरता केंद्र के किसानों ने एक विशेष मुहिम छेड़ी है। इस मुहिम के तहत कीट कमांडो के नाम से जाने जाने वाले कीट साक्षरता केंद्र के किसान गांव-गांव जाकर कीट प्रबंधन की अलख जगाएंगे। इसके लिए इन किसानों ने एक कमेटी तैयार की है। इस कमेटी में ईगराह से मनबीर रेढू, कुलदीप, राजपुरा से बलवान सिंह, ललित खेड़ा से रामदेवा, रमेश, निडाना से रणबीर मलिक व राममेहर ने मास्टर ट्रेनर की कमान संभाली है। ये मास्टर ट्रेनर किसान हर माह के आखिरी शनिवार को अलग-अलग गांवों में जाकर कृषि पंचायत का आयोजन करेंगे। कृषि पंचायत में किसानों के साथ कीट प्रबंधन पर चर्चा करने के बाद किसानों को खेतों में ले जाकर फसल में पाए जाने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान करवाई जाएगी। इस अभियान की सबसे खास बात यह है कि ये किसान गांवों में आने-जाने का सारा खर्च स्वयं उठाएंगे तथा कृषि पंचायत के दौरान किसानों को लेपटॉप पर भी फोटो के माध्यम से कीटों की पहचान करवाएंगे। काबिले गौर है कि कीट साक्षरता केंद्र को ये लेपटॉप जाट धर्मशाला द्वारा पुरस्कार के रूप में दिए गए हैं। कीट साक्षरता केंद्र के किसानों ने 31 मार्च से इसकी शुरूआत भी कर दी है। इन किसानों ने अभियान की शुरुआत 31 मार्च को निडानी गांव से कर दी है। निडानी गांव में दलीप सिंह की बैठक में किसानों ने अपनी पहली कृषि पंचायत का आयोजन किया। इस पंचायत का संचालन महाबीर पूनिया ने किया। इस दौरान कृषि विभाग की तरफ से डा. कमल सेनी व डा. सुरेंद्र दलाल ने किसानों का मार्गदर्शन किया। कृषि पंचायत के बाद कीट प्रबंधन के मास्टर ट्रेनरों ने किसानों को खेतों में ले जाकर गेहूं की फसल में मौजूद कीटों की पहचान करवाई। इस दौरान किसानों ने गेहूं की फसल में अल को खाते हुए विभिन्न प्रकार के लेडी बीटल व सिरफड मक्खी के बच्चे देखे। किसानों द्वारा शुरू की गई इस मुहिम का मुख्य उद्देश्य कीटनाशकों के प्रयोग पर अंकुश लगाना है, ताकि मनुष्य की थाली में बढ़ते जहर को कम किया जा सके।



गैस एजेंसियां खुलेआम बांट रही हैं मौत का सामान


स्कीम नंबर 5 में ट्रॉली में ऊपर से सिलेंडर गिराता कंपनी का कर्मचारी।

स्कीम नंबर 5 में ट्रॉली से सिलेंडर लेकर जाते उपभोक्ता। 
 आवासीय कॉलोनी में सिलेंडर वितरित करते गैस एजेंसी के कर्मचारी।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले में गैस एजेंसियां सरेआम मौत का सामान बांट रही हैं। नियमों को ताक पर रखकर एजेंसियों द्वारा घनी आबादी वाले क्षेत्रों में सप्लाई वितरित की जा रही है। भरे हुए सिलेंडरों को बेतरतीब रखा जाता है और ट्राली से सिलेंडर उतारते समय सिलेंडर को काफी ऊंचाई से पटक दिया जाता है। इस तरह सिलेंडर पटकने से कभी  भी कोई भी बड़ा हादसा हो सकता है। जिससे जान व माल की बड़ी हानि हो सकती है। लेकिन यहां इन्हें ऐसा करने से रोकने वाला कोई नहीं है। जिला प्रशासन आंखें बंद किए किसी बड़े हादसे के इंतजार में बैठा है।   
शहर की घरेलू गैस एजेंसियों को न तो किसी की जान की परवाह है और न ही नियम-कायदों की। रसूखदार एजेंसी संचालकों ने सारे नियम-कायदे ताक पर रख कर शहर की सड़कों को गोदाम बना लिया है। यह सब स्थानीय प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों को सड़कों पर चलित गोदाम दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। चौंकाने वाली बात तो यह है कि जिन स्थानों पर गैस सिलेंडरों से भरे ट्रक व ट्रॉली खाली हो रही हैं, उनसे थोड़ी ही दूरी पर पान, सिगरेट की दुकाने हैं, जहां गैस सिलेंडर बांटते वक्त भी आग जलती और बुझती रहती है। जिन सड़कों पर भारी ट्रैफिक हैं, वहां भी सिलेंडरों की सप्लाई की जाती है। इस तरह गैस एजेंसी संचालक मौत को खुलेआम बुलावा दे रहे हैं। भाड़े के पैसे बचाने के लिए एजेंसी संचालक जनता के जीवन की चिंता नहीं कर रहे हैं। जबकि नियम के अनुसार गैस सिलेंडर गोदाम से सीधे ग्राहकों के घरों में पहुंचाना चाहिए, लेकिन बीच चौराहा, सड़कों पर सिलेंडरों से भरे वाहन खड़े करने के अड्डे बनाकर यहां से सिलेंडर पहुंचाए जा रहे हैं। अगर यहां थोड़ी सी भी चुक हो जाए तो कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। इस तरह अचानक हुई आगजनी की घटना पर काबू पाने के लिए किसी प्रकार के यंत्र इनके पास उपलब्ध नहीं होते। जिस कारण काफी जान व माल की हानि हो सकती है।
कहां-कहां होती है गैस की सप्लाईशहर के कौशिक नगर, रामराये गेट, रोहतक रोड स्थित चौड़ी गली, कृष्णा कॉलोनी, भारत सिनेमा, विद्यापीठ मार्ग, स्कीम नंबर 5, गुरुद्वारा कॉलोनी, माया देवी अस्पताल के पास, अर्बन एस्टेट कॉलोनी सहित अन्य कई आवासिय कॉलोनियों में भी खुलेआम सिलेंडरों की सप्लाई की जाती है।
क्या है नियम
भारत पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा तय किए गए नियम लिकविड फाईड पेट्रोलियम गैस (रेगुलेशन आफ सप्लाई एंड डिस्ट्रीब्यूशन) आर्डर 2000 के तहत गैस सिलेंडर को स्टोरेज या सप्लाई के दौरान सीधा रखा जाना चाहिए। गाड़ी से सिलेंडर उतारते समय ऊपर से नहीं गिराना चाहिए। सिलेंडर को टेड़ा करने पर गैस रिसाव हो सकती है, जिससे किसी प्रकार का हादसा हो सकता है। गैस एजेंसी द्वारा सिलेंडर की सप्लाई घर पर की जानी चाहिए। सप्लाई के दौरान डिलिवरी ब्यॉय ड्रेस में होना चाहिए तथा ड्रेस पर एजेंसी का नाम व डिलिवरी ब्यॉय का नाम लिखा होना चाहिए। उपभोक्ता के सामने सिलेंडर का वजन कर उसकी सील खोली जानी चाहिए। उपभोक्ता की रसोई में सिलेंडर पहुंचाने व कनेक्शन करने की जिम्मेदारी भी डिलिवरी ब्यॉय की ही होती है।
आवाज नहीं आ रही है
इस बारे में जब डीएफएससी अनिता खर्ब से बात की गई तो उन्होंने फोन तो रिशिव कर लिया। इसके बाद उनको बताया गया कि समाचार पत्र से बोल रहे हैं तो उन्होंने आवाज नहीं आने की बात कहकर फोन काट दिया। थोड़ी देर बाद जब उनसे दोबारा से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने फोन ही रिशिव नहीं किया।
डीएफएससी की होती है जिम्मेदारी
इस तरह के मामले में कार्रवाई की जिम्मेदारी डीएफएससी की होती है। अगर डीएफएससी कोई कार्रवाई नहीं करती तो उपायुक्त मामले को संज्ञान में लेकर उन्हें कार्रवाई के आदेश जारी कर सकते हैं। उपायुक्त द्वारा उन्हें जिस प्रकार की कार्रवाई के आदेश जारी किए जाएंगे, उसके अनुसार वो कार्रवाई करने के लिए तैयार हैं।
जीएल यादव
एसडीएम, जींद



खामियों के कारण पटरी पर नहीं आ रही ‘मनरेगा’

बेरोजगारी मिटाने में अचूक अस्त्र बन सकती है ‘मनरेगा’
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार गरीबों के उत्थान के लिए तमाम योजनाएं बनाती है, जो अगर ठीक ढंग से लागू की जाएं तो उनके जीवन में वाकई चमत्कारी बदलाव लाए जा सकते हैं। लेकिन अफसोस ये कि ये योजनाएं जरुरतमंदों तक पहुंचती ही नहीं हैं। योजना में खामियों के कारण योजनाएं रास्ते में ही दम तोड़ देती हैं। बेरोजगारी के समय में कर्मशील मजदूरों की ‘मां’ माने जानी वाली महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) भी खामियों के कारण पटरी पर नहीं चढ़ पा रही है। मनरेगा की सफलता में सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है मॉडल एस्टीमेट व लंबी प्रक्रिया। सही ढंग से मॉडल एस्टीमेट तैयार न होने के कारण मजदूरों को समय पर मजदूरी के पैसे नहीं मिल पाते हैं। बीडीपीओ कार्यालय में अधिकारियों की कमी के कारण समय पर कागजी कार्रवाई पूरी नहीं हो पाती। जिस कारण मनरेगा का कार्य सही ढंग समय पर शुरू नहीं हो पाता है। मनरेगा की कार्यप्रणाली में अगर थोड़ा सा सुधार कर दिया जाए तो, वाकई में यह योजना कर्मशील मजदूरों को कभी भी बेरोजगार नहीं होने देगी। 
क्या है मनरेगा से कार्य शुरू करवाने की मौजूदा प्रक्रिया
मनरेगा से कार्य शुरू करवाने के लिए सरपंच द्वारा ग्राम सभा में प्रस्ताव पास कर बीडीपीओ के माध्यम से एडीसी को भेजा जाता है। एडीसी द्वारा कार्य को मंजूरी देने के बाद प्रस्ताव वापिस बीडीपीओ के माध्यम से सरपंच को भेजा जाता है। इसके बाद सहायक मजदूरों की कार्य डिमांड भरकर बीडीपीओ को भेजता है, फिर विभाग द्वारा ई-मस्ट्रोल जारी किया जाता है। इसके बाद कार्य शुरू किया जाता है। कार्य शुरू होने के बाद जेई द्वारा एमबी तैयार कर बीडीपीओ के पास भेजा जाता है। उसके बाद मजदूरों के खाते में पैसे डाले जाते हैं। 15 दिन में दो दिन की छुट्टी की जाती है। मजदूरों को छुट्टी का कोई पैसा नहीं दिया मिलता। ई-मस्ट्रोल भी योजना में बाधक है। ई-मस्ट्रोल जारी होने के बाद बीच में काम करने वाले इच्छुक मजदूर को सरपंच काम उपलब्ध नहीं करवा सकता। इस प्रकार मजदूर को काम शुरू करने के लिए 15 दिन तक इंतजार करना पड़ता है।
मनरेगा में क्या किए जा सकते हैं सुधार
जिला सरपंच एसोसिएशन के प्रधान सुनील जागलान का कहना है कि सीमांत किसान जो भी फसल लगाना चाहते हैं उसके अनुसार एक एकड़ पर फसल की बुआई से लेकर कटाई तक के पूरे चक्र की मजदूरी को जोड़कर मिट्टी की प्रकृति या कार्य के अनुसार पूरे वर्ष का मॉडल एस्टीमेट तैयार किया जाए।  कार्य के अनुसार मॉडल एस्टीमेट तैयार होने के बाद अधिकारियों को उस काम पर आने वाले खर्च के लिए बार-बार मॉडल एस्टीमेट तैयार करने की जरुरत नहीं पड़ेगी। मनरेगा से कार्य शुरू करवाने में जेई, एसडीओ व एक्सईएन की अहम भूमिका होती है, क्योंकि कार्य शुरू करने से लेकर खत्म होने तक की जो भी कागजी कार्रवाई होती है सारी इन्हे ही पूरी करनी होती है। लेकिन बीडीपीओ कार्यालयों में अधिकारियों की कमी के कारण भी कार्य समय पर शुरू नहीं हो पाते हैं। इसलिए प्रशासन को चाहिए कि मनरेगा के लिए जेई, एसडीओ व एक्सईएन की नियुक्ती अलग से की जाए, ताकि ग्राम पंचायत द्वारा प्रस्ताव डालते ही कार्य को शुरू करवाया जा सके। कार्य के दौरान जो छुट्टी की जाती है, मजदूरों को उन छुट्टियों का पैसा दिए जाए। ई-मस्ट्रोल की जगह हाथ से सूची बनाई जाए, ताकि कार्य शुरू होने के बाद अगर कोई मजदूर काम मांगने के लिए सरपंच के पास आए तो सरपंच कार्य शुरू होने के बाद मजदूर को काम दे सके और जितने दिन वह मजदूर काम करता है, उसके अनुसार उसे पैसे दिए जा सकें।
किन-किन कार्यों को किया गया है मनरेगा में शामिल
आज के समय में मनरेगा के तहत 66 स्कवेयर फीट मिट्टी खोदने पर मजदूर को 191 रुपए की मजदूरी मिलती है। सरपंच गांव में खेती, बागवानी व पशु पालन, गलियों की सफाई व पौधा रोपण के काम भी कर सकता है। मनरेगा से कंजर्वेशन आॅफ वाटर एंड हारवेस्टिंग सिस्टम भी लगाया जा सकता है। सरकार ने योजना में संशोधन कर तीस नए कार्यों को शामिल किया है। इसमें 27 कार्य कृषि से जुड़े हुए हैं। साथ ही गरीबों के लिए इंदिरा आवास योजना, आईएवाई के तहत बनाए जाने वाले मकानों का निर्माण भी मनरेगा के जरिए किए जाने की सरकार ने मंजूरी दे दी है। नक्सल प्रभावित जिलों में स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय बनाने की योजना को भी मनरेगा में शामिल किया गया है। योजना में संसोधन किए जाने के बाद इसे दो अप्रैल से प्रभावी तरीके से लागू किया गया है। इसमें जोड़े गए 90 फीसदी कार्य कृषि से संबंधित हैं। मनरेगा की नई सूची में 30 कार्यों को जोड़ा गया है। जिसमें 27 कार्य कृषि से जुड़े हुए हैं। इसमें पशु, मुर्गी व मछली पालन से जुड़े कार्य भी शामिल हैं।



रविवार, 1 अप्रैल 2012

‘अतिथि’ तुम कब जाओगे

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सुप्रीम कोर्ट के शिक्षा विभाग में नियमित नियुक्तियां न होने तक अतिथि अध्यापकों से शिक्षण कार्य जारी रखने के फैसले के बाद प्रदेश में आंदोलनरत 15 हजार अतिथि अध्यापकों ने राहत की सांस ली है। लेकिन उधर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद पात्र अध्यापकों में मायूसी छा गई है। अतिथि अध्यापकों पर हुई सरकार व अदालत की मेहरबानी से पात्र अध्यापकों के साथ-साथ वर्ष 2000 में भर्ती हुए 3206 जेबीटी अध्यापकों ने भी सरकार पर उनके साथ भेदभाव के आरोप लगाए हैं। क्योंकि एक तरफ तो सरकार कोर्ट में केश चलने के बावजूद भी अतिथि अध्यापकों को सर्विस बुक लागू कर उनके वेतन में बढ़ोतरी कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ सरकार जांच की आड़ में जेबीटी अध्यापकों की प्रमोशन व अन्य सुविधाएं रोक कर उनके साथ शौतेला व्यवहार कर रही है।
देश के भविष्य को ज्ञान की रोशनी से उज्जवल करने वाले अध्यापकों का भविष्य आज स्वयं ही अंधकार में है। दूसरों को राह दिखाने वाले गुरुजी आज सरकार की राजनीति का शिकार होकर खुद ही राह भटक चुके हैं। एक तरफ तो सरकार अतिथि अध्यापकों के पक्ष में कोर्ट में केश लड़ रही है और दूसरी तरफ नियमित भर्ती करने की बजाय अनुबंध के आधार पर अध्यापकों की नियुक्तियां कर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। इस प्रकार सरकार की दोहरी नीति के कारण आज प्रदेश का अध्यापक वर्ग दो फाड हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षा विभाग में नियमित नियुक्तियां न होने तक अतिथि अध्यापकों से ही शिक्षण कार्य जारी रखने के फैसले के बाद अतिथि अध्यापकों में खुशी का माहौल है। लेकिन उधर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद प्रदेश के 80 हजार पात्र अध्यापकों में मायूशी छा गई है। पात्र अध्यापकों के साथ-साथ वर्ष 2000 में भर्ती हुए 3206 जेबीटी अध्यापकों ने भी सरकार पर शौतेले व्यवहार का आरोप लगाया है। इस प्रकार सरकार के इस दोहरे रवैये ने पात्र व जेबीटी अध्यापकों की राह में रोड़ा अटका दिया है, वहीं अध्यापक वर्ग के सामने भी असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। प्रदेश सरकार ने वर्ष 2000 में नियुक्त हुए जेबीटी अध्यापकों की जांच की आड़ लेकर उनकी प्रमोशन व अन्य सुविधाएं बंद कर दी हैं। वहीं अतिथि अध्यापकों के पक्ष में फैसला होने से पात्र अध्यापक स्थायी नौकरी से महरूम हैं और अतिथियों की विदाई की बाट जोह रहे हैं। 
गलत तरीके से की गई है अतिथि अध्यापकों की नियुक्ती
प्रदेश सरकार द्वारा गलत तरीके से अतिथि अध्यापकों की नियुक्ती की गई है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से भी यह साबित हो चुका है कि दो से अढ़ाई हजार अतिथि अध्यापक गलत तरीके से नियुक्त किए गए हैं। कोर्ट में मामला विचाराधीन होने के बावजूद भी सरकार ने अतिथि अध्यापकों की सर्विस बुक लागू कर दी और उनके वेतन में भी बढ़ोतरी कर दी है, लेकिन दूसरी तरफ सरकार ने वर्ष 2000 में नियुक्त किए गए 3206 जेबीटी अध्यापकों की जांच की आड़ में उन्हें सभी सुविधाओं से महरुम किया हुआ है। जेबीटी अध्यापकों के जीपीएफ तो काटे जा रहे हैं, लेकिन उनकी प्रमोशन बंद करने के साथ-साथ लोन व अन्य सुविधाएं बंद की गई हैं, जो सरासर गलत है। एलआर ब्रांच ने भी जेबीटी अध्यापकों की पदोन्नति में किसी प्रकार की परेशानी न होने संबंधि रिपोर्ट सरकार के समक्ष पेश कर दी है, लेकिन उसके बावजूद भी सरकार जेबीटी अध्यापकों की पदोन्नति रोके हुए है।
दीपक गौस्वामी, राज्य महासचिव
हरियाणा प्राथमिक शिक्षक संघ

क्वालिफाइड अध्यापकों की हो नियुक्ती
स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए क्वालिफाइड अध्यापकों को ही नियुक्त किया जाना चाहिए। अतिथि अध्यापकों की नियुक्ती गलत तरीके से की गई है। कई-कई बार पात्रता परीक्षा देने के बावजूद भी अधिकतर अतिथि अध्यापक टेस्ट पास करने में सफल नहीं हो पाएं हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि अधिकतर अतिथि अध्यापक क्वालिफाइड नहीं हैं। इससे सरकारी स्कूलों में शिक्षा स्तर में सुधार की गुंजाइश संभव नहीं है।
प्रेम अहलावत, प्रदेश प्रवक्ता
हरियाणा पात्र अध्यापक संघ
अध्यापक संघ शुरू करेगा आंदोलन
सुप्रीम कोर्ट का फैसला राहत देने वाला है। लेकिन सरकार को अनुबंध के आधार पर भर्ती करने की बजाय स्थाई भर्ती करनी चाहिए। जिससे भविष्य में इस तरह के विवाद से बचा जा सके। सरकार जब जेबीटी अध्यापकों का जीपीएफ काट रही है तो उन्हें प्रमोशन व अन्य सभी सुविधाएं दी जानी चाहिए। अध्यापकों के हक के लिए अध्यापक संघ जल्द ही आंदोलन का शंखनाद करने जा रहा है।
संजीव सिंगला, जिला सचिव
हरियाणा अध्यापक संघ

....ताकि तैयार हो सकें वैज्ञानिक

जिले से 700 बच्चों को मिलेगा टूर का लाभ


नरेंद्र कुंडू

जींद।
सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा करने के उद्देश्य से सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) द्वारा जिले के प्रत्येक ब्लॉक से दो-दो टूर भेजे जाएंगे। टूर के लिए सभी स्कूलों से बच्चों के चयन की जिम्मेदारी बीईओ को सौंपी गई है। सभी बीईओ अपने-अपने ब्लॉक के सरकारी स्कूलों से दोनों टूरों के लिए 50-50 बच्चों का चयन करेंगे। बच्चों का चयन करने के बाद टूर पर भेजने की सारी व्यवस्था बीईओ द्वारा स्वयं की जाएगी, लेकिन टूर पर खर्च होने वाली राशि का भुगतान एसएस द्वारा किया जाएगा। एसएसए द्वारा प्रत्येक टूर के लिए बीईओ को 25 हजार रुपए की राशि दी जाएगी। एसएसए द्वारा तैयार की गई इस योजना से जिले से 700 बच्चों को टूर का लाभ मिलेगा। टूर के दौरान विद्यार्थियों के साथ 5 अध्यापक को भी मौजूद रहेंगे, जिनमें एक साईंस अध्यापक होना अनिवार्य है, ताकि टूर के दौरान विद्यार्थियों के मन में विज्ञान से संबंधि पैदा होने वाली शंका का समाधान साथ की साथ किया जा सके।

एसएसए ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में सार्इंस के प्रति रुचि पैदा करने के उद्देश्य से विद्यार्थियों को एक दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण पर भेजने का निर्णय लिया है। एसएसएस द्वारा तैयार की गई इस योजना के तहत जिले के सभी ब्लॉकों से दो-दो टूर भेजे जाएंगे। जिसके तहत जिले के सातों खंडों से कुल 14 टूर रवाना होंगे। टूर के लिए प्रत्येक बैच में 50 बच्चों को शामिल किया जाएगा। इस प्रकार पूरे जिले से 700 बच्चे टूर का लाभ ले सकेंगे। एसएसए की इस योजना के तहत 31 मार्च से पहले-पहले बच्चों को यह शैक्षणिक भ्रमण करवाया जाएगा। इसके लिए एसएसए ने सभी ब्लॉक के बीईओ को बच्चों के चयन की जिम्मेदारी सौंपी है। बीईओ को अपने स्तर पर बच्चों का चयन कर उनके टूर पर भेजने की व्यवस्था करनी है। टूर के दौरान आने वाले खर्च का भुगतान एसएसए वहन करेगा। टूर के दौरान एसएसए द्वारा प्रत्येक बैच पर 25 हजार रुपए की राशि खर्च की जाएगी। इस टूर की सबसे खास बात यह है कि टूर पर बच्चों के साथ जाने वाले 5 अध्यापकों में एक सार्इंस का अध्यापक होना अनिवार्य है, ताकि भ्रमण के दौरान बच्चों के जहन में पैदा होने वाली विज्ञान संबंधि शंका का समाधान साथ की साथ किया जा सके। भ्रमण के लिए विद्यार्थियों को कुरुक्षेत्र स्थित कल्पना चावला पनोरमा तथा सार्इंस सिटी कपूरथला ले जाया जाएगा और यहां बच्चों को विज्ञान से संबंधित सभी जानकारियां बारिकी से दी जाएंगी, ताकि बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा की जा सके और देश के लिए भावि अब्बदुल कलाम तैयार किए जा सकें।

साइंस के प्रति बच्चों में रुचि पैदा करना है उद्देश्य

सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में सार्इंस के प्रति रुचि पैदा करने के उद्देश्य से उन्हें एक दिवसीय टूर पर भेजा जाएगा। इसके लिए जिले के सातों खंडों से दो-दो टूर भेजे जाएंगे। प्रत्येक बैच में 50 बच्चों को शामिल किया जाएगा। बच्चों के चयन की जिम्मेदारी बीईओ को सौंपी गई है। बीईओ अपने स्तर पर बच्चों का चयन कर उनके टूर पर जाने का सारा इंतजाम स्वयं करेंगे। लेकिन टूर के दौरान बच्चों पर खर्च होने वाली राशि का भुगतान एसएसए द्वारा किया जाएगा। भ्रमण पर विद्यार्थियों के साथ जाने वाले 5 अध्यापकों में एक अध्यापक सार्इंस का होना अनिवार्य है। 31 मार्च से पहले-पहले विद्यार्थियों को यह भ्रमण करवा दिया जाएगा।

भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी

एसएसए, जींद


सरकारी कार्यालयों में उड़ रही नियमों की धज्जियां

सरकार के आदेशों के वाजूद भी आवेदकों से लिए जा रहे हैं शपथ पत्र

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के लगभग तमाम सरकारी कार्यालयों में कायदे-कानूनों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। सरकार द्वारा सरकारी विभागों में आम आदमी से शपथ पत्र न लेने के आदेशों के बावजूद भी सभी सरकारी कार्यालयों में शपथ पत्र लेने का सिलसिला बदस्तुर जारी है। सरकारी अधिकारियों पर सरकार के आदेशों का कोई असर नहीं है। इससे आम जनता को आर्थिक व मानसिक परेशानी उठानी पड़ रही है। ताज्जुब की बात तो यह है कि आम आदमी द्वारा साधारण कागज पर जो शपथ पत्र दिए जा रहे हैं कार्यालय में बैठके कर्मचारी उन्हें भी नोटरी से सत्यापित करवा कर लाने के फरमान जारी करते हैं, जो सरासर नियमों के विरुद्ध है। इस प्रकार सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण शपथ पत्र विक्रेता जमकर चांदी कूट रहे हैं। 
हरियाणा सरकार ने 28 अप्रैल 2010 को पत्र क्रमांक-62/09/2010-6जीएसआई में सभी सरकारी विभागों व संस्थाओं के मुखियाओं को आदेश जारी किए थे कि किसी भी सरकारी कार्यालय में सरकारी कार्य के लिए आम आदमी से शपथ पत्र नहीं लिए जाएंगे। आदेशों में यह स्पष्ट किया गया था कि सरकार ने निर्णय अनुसार एक जून 2010 से किसी भी हरियाणा सरकार के विभाग व संस्थान में केवल उस स्थिति को छोड़कर जहां कानूनन शपथ पत्र देना बाध्यता है, अन्य किसी भी स्थिति में आवेदक से आवेदन के साथ किसी भी सूरत में शपथ पत्र नहीं लिया जाएगा। इससे जहां आवेदकों को मानसिक व आर्थिक परेशानी होती है, वहीं दफ्तर के रिकार्ड में भी बेवजह इजाफा होता है। सरकार ने अपने आदेश में यह भी व्यवस्था दी थी कि अब सभी आवेदन पत्रों में स्व घोषणा का एक कालम होगा, जिसमें आवेदक यह घोषणा करेगा कि आवेदन पत्र में दिए गए सभी तथ्य सच्चे हैं और उसमें कुछ भी छिपाया नहीं गया है। तथ्य झूठे पाए जाने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 182/415/417/420 आदि के तहत कानूनी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है। सरकार के आदेशों के दो वर्ष बाद अभी भी सरकार के इन आदेशों पर पूरी तरह से अमल नहीं हुआ है और लगभग सभी सरकारी विभागों में आवेदनकर्त्ताओं से शपथ पत्र लिए जा रहे हैं, जिससे एक तरफ जहां आम जनता को वित्तीय व अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं सरकारी आदेशों की भी सरेआम धज्जियां उड़ रही है। आज तक किसी भी विभाग ने कार्यालय के बाहर आवेदन के साथ शपथ पत्र न लेने संबंधी कोई नोटिस बोर्ड भी नहीं लगाया है। ताज्जुब की बात तो यह है कि अगर आवेदकों द्वारा साधारण कागज पर कोई शपथ पत्र दिया जाता है तो सरकारी कर्मचारी उस शपथ पत्र को भी नोटरी से सत्यापित करवाते हैं, जो सरासर गलत है।
सरकारी विभागों के कार्यालय के बाहर लगाया जाए बोर्ड
इस मामले में आरटीआई कार्यकर्ता विनोद बंसल एडवोकेट ने बताया कि वे स्वयं लगभग 20 सरकारी विभागों के मुखियाओं को पत्र व्यवहार कर शपथ पत्र न लेने संबंधि बोर्ड कार्यालयों के बाहर लगाने के बारे में अपील कर चुके हैं। लेकिन आज तक एकाध कार्यालय को छोड़कर किसी भी कार्यालय के बाहर इस तरह का कोई नोटिस बोर्ड नहीं लगाया गया है। बंसल ने बताया कि उन्होंने उपायुक्त से मांग की है कि इस मामले में कानून की पालन सुनिश्चित करें व सभी विभागों को तुरंत आदेश दें कि वे आम जनता से उनके कार्यों के लिए प्रत्येक आवेदन पत्र के साथ शपथ पत्र की मांग न करें और इन आदेशों की अनुपालना न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें, ताकि आम जनता को परेशानियों से मुक्ति मिल सके।
जरूरी नहीं है शपथ पत्र देना : एडीसी
छोटे-छोटे कार्यों के लिए शपथ पत्र देना जरूरी नहीं है। आवेदक द्वारा आवेदन पत्रों में स्व घोषणा का एक कालम होता है, जिसे भरकर वह दे सकता है। इसके बाद शपथ पत्र की जरूरत नहीं होती है। कई बार आवेदक स्वयं शपथ पत्र ले आते हैं तो वह ले लिए जाते हैं। सिर्फ कानून शपथ देना जहां बाध्यता है, वहीं शपथ पत्र दिए जाने जरूरी होते हैं।
अरविंद मलहान
अतिरिक्त उपायुक्त, जींद