रविवार, 20 मई 2012

कम्प्यूटर शिक्षा के नाम पर मजाक!

आधा सत्र बीत जाने के बाद भी स्कूलों में नहीं पहुंची कम्प्यूटर की पुस्तकें

नरेंद्र कुंडू 
जींद। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के साथ कम्प्यूटर शिक्षा के नाम पर मजाक किया जा रहा है। शैक्षणिक सत्र आधा बीत चुका है, लेकिन अभी  तक सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों तक कम्प्यूटर की किताबें ही नहीं पहुंची हैं। ऐसे में बिना पुस्तकों के विद्यार्थी किस तरह पढ़ाई कर पाएंगे। समय पर पुस्तकें न मिलने के कारण विद्यार्थी सटीक नालेज की बजाय कम्प्यूटर पर गेम खेलकर अपना टाइम पास कर रहे हैं और अध्यापक मजबूर हैं, क्योंकि सरकारी तंत्र को नींद से जगाना उनके बूते की बात नहीं है। इससे यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा व पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाने वाली कंपनी द्वारा विद्यार्थियों के भविष्य के साथ सीधे तौर पर खिलवाड़ किया जा रहा है। कंपनी के अधिकारियों की लापरवाही के कारण प्रदेश सरकार व शिक्षा विभाग द्वारा सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा देकर विद्यार्थियों को हाईटेक बनाने के दावे बेमानी साबित हो रहे हैं।
शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को कम्प्यूटर शिक्षा उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से एनआईसीटी कंपनी को कॉन्ट्रेक्ट दिया था। शिक्षा विभाग के साथ हुए कॉन्ट्रेक्ट के अनुसार स्कूलों में विद्यार्थियों के लिए कम्प्यूटर उपलब्ध करवाने तथा सभी पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी एनआईसीटी कंपनी को ही दी गई थी। इसकी एवज में सरकार द्वारा कंपनी को हर वर्ष लाखों रुपए की वितिय सहायता दी जाती है। लेकिन फिर भी कंपनी अपने वायदे पर खरी नहीं उतर रही है। कंपनी के अधिकारियों की लापरवाही के कारण रह-रहकर कंपनी की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लग रहे हैं। इस बार भी आधा शैक्षणिक सत्र गुजर चुका है, लेकिन अभी तक स्कूलों में विद्यार्थियों तक कम्प्यूटर की पुस्तकें नहीं पहुंच पाई हैं। जबकि नियम के अनुसार शैक्षणिक सत्र के आरंभ होते ही विद्यार्थियों को पुस्तकें उपलब्ध करवानी अनिवार्य होती हैं। लेकिन कंपनी सरकार के किसी भी  नियम को पूरा नहीं कर पा रही है। विद्यार्थियों को समय पर पुस्तकें न मिलने के कारण उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है और विद्यार्थी सटीक नालेज की बजाय कम्प्यूटर पर गेम खेलकर अपना टाइम पास कर रहे हैं। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि कंपनी द्वारा कम्प्यूटर शिक्षा के नाम पर विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।

पिछले वर्ष भी समय पर नहीं पहुंची थी पुस्तकें

स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा उपलब्ध करवाने वाली कंपनी की कार्य प्रणाली हर वर्ष डावांडोल होती जा रही है। जिस कारण विद्यार्थी व अध्यापक बार-बार विरोध करने पर मजबूर हो रहे हैं। इस वर्ष की भाति पिछले वर्ष भी विद्यार्थियों को समय पर पुस्तकें नहीं मिली थी। पिछले वर्ष लेटलतिफी के बाद भी कंपनी सभी विद्यार्थियों को पुस्तकें उपलब्ध नहीं करवा पाई थी। जिस कारण विद्यार्थियों को बिना पुस्तकों के ही काम चलाना पड़ा था। इससे यह बात साफ है कि पिछले वर्ष हुई गलती से इस बार भी कंपनी ने सीख नहीं ली है और यह इसी का परिणाम है कि आधा सत्र बीत जाने के बाद भी स्कूलों में पुस्तकें नहीं पहुंच पाई है।

विद्यार्थियों की पढ़ाई हो रही है बाधित

स्कूलों में कम्प्यूटर के प्रेक्टीकल अभयास के साथ-साथ विद्यार्थियों को पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाने की सारी जिम्मेदारी एनआईसीटी कंपनी की है। लेकिन आधा सत्र बीत जाने के बावजूद भी कंपनी ने स्कूलों में पुस्तकें नहीं भेजी हैं। जिस कारण विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित हो रही है। पिछले वर्ष भी कंपनी सभी विद्यार्थियों को पुस्तकें उपलब्ध नहीं करवा पाई थी। कंपनी के अधिकारियों की लापरवाही के कारण विद्यार्थियों का भविष्य खतरे में है।
देवेंद्र सिंह, जिला प्रधान

हरियाणा कम्प्यूटर अध्यापक व लैब सहायक संघ, जींद

छुट्टियों तक उपलब्ध करवा दी जाएंगी पुस्तकें
पिछले वर्ष सभी स्कूलों में समय पर पुस्तकें उपलब्ध करवा दी गई थी। इस वर्ष के लिए कंपनी द्वारा पुस्तकों की खरीद की जा रही है। गर्मियों की छुट्टियों तक सभी स्कूलों में पुस्तकें उपलब्ध करवा दी जाएंगी। विद्यार्थियों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
अशोक शर्मा, जिला कोर्डिनेटर
एनआईसीटी, जींद

पंचायत भवन पर विभागीय अधिकारियों ने जमाया कब्जा

पंचायत एसोसिएशन ने मुख्य संसदीय सचिव को दी शिकायत

नरेंद्र कुंडू
जींद।
शहर में पंचायत प्रतिनिधियों की सुविधा के लिए डीआरडीए में बनाए गए पंचायत भवन पर आबकारी विभाग, जिला आयुर्वेदिक अधिकारी व पंचायती राज के अधिकारियों ने कुंडली मारी हुई है। पंचायत भवन पर यह कुंडली दशकों से जारी है और आबकारी विभाग सहित अन्य अधिकारी पंचायत भवन को खाली करने को तैयार नहीं है। पंचायत भवन पर विभागीय अधिकारियों के कब्जे के कारण सरपंचों, पंचों व दूसरे जन प्रतिनिधियों को बिना भवन के ही काम चलना पड़ रहा है। अब पंचायत प्रतिनिधि इसको खाली करवाने की कवायद में लग गए हैं। पंचायत प्रतिनिधियों ने पंचायत भवन को खाली करवाने के लिए इसकी शिकायत मुख्य संसदीय सचिव को भी  की है। पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा पंचायत भवन को खाली करवाने की कवायद शुरू करने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों के पसीने छूटने लगे हैं। प्रशासनिक अधिकारी पंचायत प्रतिनिधियों को अलग से भवन बनवाने का लालीपॉप देकर मामले को शांत करने में जुटे हुए हैं।
डीआरडीए में पंचायत भवन का निर्माण सरपंचों, पंचों व दूसरे जनप्रतिनिधियों के ठहरने व रिफ्रेशमेंट के मकसद से किया गया था। लेकिन आबकारी विभाग द्वारा पंचायत भवन पर कब्जा जमाए जाने के कारण यह योजना शुरू होने से पहले ही दम तोड़ गई। पंचायत भवन पर आबकारी विभाग कई वर्षों से कुंडली मारे हुए है। इस भवन में आबकारी विभाग के अलावा जिला आयुर्वेदिक अधिकारी व एक्सईएन पंचायती राज का कार्यालय भी चल रहा है। पंचायत भवन पर विभागीय अधिकारियों के कब्जे के कारण सरपंचों, पंचों व दूसरे जन प्रतिनिधियों को बिना भवन के ही काम चलाना पड़ रहा है। शहर में पंचायत भवन के अभाव के कारण पंचायत व अन्य जनप्रतिनिधियों के लिए बैठने के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं है। पंचायत भवन न होने के कारण बाहर से आने वाले जन प्रतिनिधियों के लिए रात को ठहरने के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है। लेकिन अब पंचायत प्रतिनिधियों ने पंचायत भवन के लिए अपनी मांग उठानी शुरू कर दी है। पंचायत भवन की मांग को लेकर पंचायत प्रतिनिधियों ने मुख्य संसदीय सचिव को भी शिकायत की है। पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा पंचायत भवन की मांग उठाए जाने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों के पसीने छूटने लगे हैं। लेकिन पंचायत प्रतिनिधियों ने अब अपनी पंचायत भवन की मांग को पुरजोर से उठाना शुरू कर दिया है। लेकिन प्रशासनिक अधिकारी पंचायत प्रतिनिधियों को अलग से भवन बनवाने का लालीपॉप थमा कर शांत करने में जुटे हुए हैं।

पहले भी उठ चुकी है मांग

पूर्व जिला पार्षद शमशेर ढाठरथ ने बताया कि जिला परिषद के सदस्यों ने 2009 में चेयरपर्सन सीमा बिरोली के नेतृत्व में पंचातय भवन की मांग को लेकर आवाज उठाई थी। उन्होंने डीआरडीए में स्थित जिला परिषद की इस बिल्डिंग से सरकारी कार्यालयों को खाली करवा कर पंचायत व अन्य जन प्रतिनिधियों के ठहरने के लिए पंचायत भवन का निर्माण करवाने की मांग की थी, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों से उन्हें झूठे आश्वासन के सिवाए कुछ हासिल नहीं हुआ है। प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा आज तक पंचायत भवन के निर्माण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।

मुख्य संसदीय सचिव के समक्ष रखी मांग

शहर में सरपंचों, पंचों व अन्य जनप्रतिनिधियों के लिए बैठने व रात को ठहरने के लिए किसी तरह की व्यवस्था नहीं है। हालांकि उपायुक्त द्वारा अस्थाई तौर पर सरपंचों को मीटिंग इत्यादि के लिए कुछ जगह उपलब्ध करवाई गई है, लेकिन यह जगह ज्यादा उपयुक्त नहीं है। सरकार द्वारा जनप्रतिनिधियों के लिए शहर में जो पंचायत भवन बनाया गया है, उस भवन में विभागीय अधिकारियों ने कब्जा जमाया हुआ है। इसलिए पंचायत भवन को खाली करवाने की मांग को लेकर पंचायत प्रतिनिधियों ने अपनी मांग उठाई है। जिला स्तरीय पंचायती सम्मेलन के दौरान भी सरपंच एसोसिएशन की तरफ से उन्होंने पंचायत भवन की मांग को मुख्य संसदीय सचिव के समक्ष रखा था। मुख्य संसदीय सचिव ने प्रशासनिक अधिकारियों को जल्द से जल्द पंचायत भवन उपलब्ध करवाने के निर्देश जारी किए हैं।
सुनील जागलान, प्रधान
सरपंच एसोसिएशन,जींद

ग्रांट के लिए सरकार को भेजा जाएगा एस्टीमेट

 डीआरडीए में स्थित पंचायत भवन की बिल्डिंग जिसमें सरकारी कार्यालय चल रहे हैं।
डीआरडीए में जिस बिल्डिंग में आबकारी विभाग व अन्य सरकारी कार्यालय चल रहे हैं, वह जगह जिला परिषद की है, लेकिन बिल्डिंग डीआरडी की है। जिला परिषद ने इस बिल्डिंग को किराए पर दे रखा है। सरपंच एसोसिएशन की मांग को देखते हुए पंचायत भवन के लिए एस्टीमेट तैयार कर सरकार को भेजा जाएगा। सरकार की तरफ से ग्रांट मिलते ही पंचायत भवन का निर्माण शुरू करवा दिया जाएगा।
अरविंद मल्हान
अतिरिक्त उपायुक्त, जींद

गुरुवार, 17 मई 2012

गुजरात के किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाएंगे म्हारे किसान

नरेंद्र कुंडू
जींद। जींद जिले के बाद अब जल्द ही दूसरे प्रदेशों में भी  कीटनाशक रहित खेती की गुंज सुनाई देगी। जिले के किसान अब गुजरात के किसानों को भी कीटनाशक रहित खेती के गुर सीखाएंगे। फसल में कीटनाशकों के प्रयोग को कम करने के लिए मित्र कीटों को हथियार  बनाया जाएगा। कीट प्रबंधन के मास्टर ट्रेनर किसान गुजरात के किसानों को फसल में मौजूद माशाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान करवाएंगे। इसके लिए गुजरात के ‘आवाद दे फाउंडेशन’ ने यहां के चौ. छोटूराम किसान क्लब घिमाना के सदस्यों को आमंत्रित किया है। फाउंडेशन के निमंत्रण पर किसानों का एक जत्था जून माह में गुजरात के लिए रवाना होगा। इस जत्थे के आने-जाने व रहने का खर्च फाउंडेशन स्वयं उठाएगी। चौ. छोटू राम किसान क्लब के पदाधिकारियों ने जत्थे की रवानगी के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस जत्थे में क्लब की ओर से 5-6 मास्टर ट्रेनर किसानों का चयन किया जाएगा।
निडाना के कीट साक्षरता केंद्र की तर्ज पर घिमाना में चल रहे चौ. छोटू राम किसान क्लब के सदस्य गुजरात के किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाएंगे। इसके लिए गुजरात के बडोदरा से आए ‘आवाज दे फाउंडेशन’ के पदाधिकारियों ने किसान क्लब के सदस्यों को गुजरात के लिए निमंत्रण दिया है। फाउंडेशन के सदस्य मार्च 2012 में जींद जिले के घिमाना गांव के दौरे पर पहुंचे थे। इस दौरान किसान क्लब द्वारा शुरू की गई कीटनाशक रहित खेती की मुहिम को देख कर फाउंडेशन के पदाधिकारियों ने गुजरात में भी इस मुहिम को शुरू करने की इच्छा जाहिर की थी। फाउंडेशन के पदाधिकारियों के निमंत्रण पर चौ. छोटू राम किसान क्लब के मास्टर ट्रेनरों का एक जत्था जून माह में गुजरात के लिए रवाना होगा। इस जत्थे में क्लब के 5-6 मास्टर ट्रेनरों को शमिल किया जाएगा। क्लब के पदाधिकारी कार्य के आधार पर ही जत्थे में जाने वाले मास्टर ट्रेनरों का चयन करेंगे। इन मास्टर ट्रेनरों का आने-जाने व रहने का खर्च फाउंडेशन द्वारा उठाया जाएगा। क्लब के मास्टर ट्रेनर गुजरात के किसानों को फसल में मौजूद शाकाहारी व मासाहारी कीटों की पहचान करवाएंगे। मास्टर ट्रेनरों द्वारा किसानों को मासाहारी व शाकाहारी कीटों के जीवन चक्र के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाएगी। ताकि अधिक से अधिक किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सीखा कर फसल में बढ़ रहे कीटनाशकों के प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सके। कीट प्रबंधन के साथ-साथ मास्टर ट्रेनर किसानों को फसल की बिजाई के आधुनिक तरीके भी बताएंगे। कीटनाशकों के प्रयोग पर अंकुश लगाने के लिए जींद जिले के किसानों ने यह एक अनोखी मुहिम छेड़ी है और किसानों को इस मुहिम से काफी सकारात्मक परिणमा भी मिल रहे हैं।

जून में रवाना होगा क्लब का जत्था

फसल में किसानों द्वारा कीटनाशकों के अंधाधुध प्रयोग के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ रहा है और इससे पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है। इंसान की थाली से इस जहर को कम करने तथा पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए किसानों ने इसका तोड़ कीट प्रबंधन में ढुंढ़ा है। गुजरात की आवाज दे फाउंडेशन के निमंत्रण पर ही क्लब ने एक जत्थे को गुजरात भेजने का निर्णय लिया है। जून माह में क्लब के 5-6 किसानों का एक जत्था गुजरात के लिए रवाना होगा।
सुनील आर्य, सलाहकार
चौ. छोटू राम किसान क्लब, घिमाना

नालियों को ही डकार गए अधिकारी

गली बनाई पर नालियां नहीं, गली के साथ ही प्रस्तावित था नालियों के निर्माण का कार्य

नरेंद्र कुंडू
जींद।
पंचायती राज विभाग पर रह-रहकर भ्रष्टाचार के छींटे पड़ रहे हैं। विभाग द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य सवालों के घेरे में रहते हैं। पंचायती राज विभाग की देखरेख में शहर के सामान्य अस्पताल में निर्माणाधीन आयुष विभाग की बिल्डिंग के निर्माण कार्य में हो रहे फर्जीवाड़े के बाद अब पिल्लूखेड़ा खंड के गांव भूरायण में तैयार की गई गली के निर्माण पर सवालिया निशान लग गया है। यहां पर विभाग द्वारा 2008 में 10,82110 रुपए की राशि खर्च कर गली का निर्माण करवाया गया था। विभाग ने गांव में गली का निर्माण तो करवा दिया, लेकिन यहां पर गंदे पानी की निकासी के लिए नालियों का निर्माण नहीं करवाया, जबकि विभाग द्वारा कागजों में नालियां तैयार की गई हैं। नियमों के अनुसार गलियों से पहले नालियां बनाना जरूरी होता है, लेकिन विभाग ने यहां पर गली का निर्माण करवाते समय सभी नियमों का ताक पर रख दिया।
पंचायती राज विभाग में भ्रष्टाचार अपनी जड़ें गहरी कर चुका है। यह इसी का परिणाम है कि विभाग द्वारा करवाए जा रहे निर्माण कार्यों से बार-बार फर्जीवाड़े की बू आती रहती है। पिल्लूखेड़ा खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी की देखरेख में भूरायण गांव में करवाए गए गली के निर्माण कार्य में हुए फर्जीवाड़े से अब विभाग की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है। विभाग द्वारा भूरायण गांव में पेयमेंट आफ स्ट्रीट स्कीम के तहत 2008 में इंटर लोकिंग गली का निर्माण करवाया गया था। गली के निर्माण का कार्य विभाग ने ठेके पर दिया था। इस गली के निर्माण पर 10,82110 रुपए की राशि खर्च की गई थी। विभाग ने यहां पर गली का निर्माण तो करवा दिया, लेकिन गली में गंदे पानी की निकासी के लिए नालियां ही नहीं बनाई। जबकि नियम के अनुसार गली के निर्माण से पहले नालियां बनानी जरुरी होती हैं। नियम के अनुसार ही इस गली के निर्माण से पहले भी यहां नालियां बनाना प्रस्तावित था। लेकिन विभाग के अधिकारियों ने ठेकेदार के साथ मिलीभगत कर बिना नालियों के निर्माण के ही गली पास कर ठेकेदार को 10,82110 रुपए की पेमेंट भी कर दी। गली के निर्माण के चार वर्ष बाद भी विभाग यहां नालियों का निर्माण नहीं करवा सका। विभाग की इस लापरवाही का खामियाजा अब ग्रामीणों को भूगतना पड़ रहा है। गली में गंदे पानी की निकासी के लिए नाली न होने से गंदा पानी गली में ही इकट्ठा हो रहा है।

कैसे हुआ मामले का खुलासा

आरटीआई कार्यकर्त्ता द्वारा पिल्लूखेड़ा खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी से सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत गली निर्माण के बारे में सूचना मांगी गई। सूचना में विभाग से पूछा गया कि गली के निर्माण पर किस योजना के तहत करवाया गया है तथा इसके निर्माण पर कितनी राशि खर्च की गई है। गली के निर्माण में गंदे पानी की निकासी के लिए नालियां बनाना प्रस्तावित था या नहीं। विभाग की तरफ से आवेदक को दिए गए जवाब में बताया गया कि गली का निर्माण पेयमेंट आफ स्ट्रीट स्कीम के तहत करवाया गया है। इसका निर्माण कार्य ठेके पर दिया गया था और इसके लिए विभाग की तरफ से 10,82110 रुपए की राशि खर्च की गई है। गली के निर्माण के दौरान नालियां बनाना प्रस्तावित था। विभाग अपने रिकार्ड में तो गली में नालियों के निर्माण करवाने की बात स्वीकार कर रहा है, लेकिन उधर विभाग द्वारा गली में नालियों का निर्माण करवाया ही नहीं गया है। इस प्रकार गली के निर्माण में हुए फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ।

विभाग की कार्यप्रणाली पर उठ रहे हैं सवाल

गली के निर्माण कार्य में हुए फर्जीवाड़े से खंड विकास एवं पंचायत कार्यालय सवालों के घेरे में है। इसमें सबसे पहला सवाल तो यही उठता है कि जब गली के निर्माण के दौरान नालियां बनाना प्रस्तावित था तो नालियां क्यों नहीं बनाई गई। दूसरा सवाल यह है कि नालियां प्रस्तावित होने के बाद भी जब ठेकेदार ने नालियां नहीं बनाई तो विभाग के अधिकारियों ने गली को पास कर ठेकेदार को पेमेंट क्यों की गई। इन सब सवालों से यह बात तो साफ है कि गली के निर्माण कार्य में जमकर फर्जीवाड़ा किया गया है और इस फर्जीवाड़े में खंड विकास एवं पंचायत कार्यालय के अधिकारी भी बराबार के हिस्सेदार हैं।

मैं अभी ट्रेफिक में हूं

इस बारे में जब पिल्लूखेड़ा खंड के बीडीपीओ नरेंद्र मल्होत्रा से उनके मोबाइल पर संपर्क कर इस बारे में जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने कहा कि अभी में ट्रेफिक में हूं, 10 मिनट बाद बात करना। लेकिन जब उनसे दोबारा संपर्क किया गया तो उन्होंने फोन ही नहीं उठाया।
भूरायण गांव में बिना नाली के बनाई गई गली।




रविवार, 13 मई 2012

प्रशासन के गले की फांस बने ‘फांस’


खेतों में अवशेष जलाने के बाद सड़क किनारे जले पेड़-पौधे।
खेतों में अवशेष जलाने के लिए लगाई गई आग।
प्रशासन द्वारा नियमों का उल्लंघन करने वाले किसानों के खिलाफ नहीं उठाए गए ठोस कदम
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले में किसानों द्वारा खुलेआम खेतों में फसल के बचे हुए अवशेषों को आग के हवाले कर प्रशासनिक अधिकारियों के आदेशों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, लेकिन प्रशासनिक अधिकारी नियमों को ठेंगा दिखाने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई करने से गुरेज कर रहे है। किसानों की मनमर्जी के कारण प्रशासनिक अधिकारियों के आदेश अवशेषों के साथ आग में जलकर राख हो रहे हैं। किसानों द्वारा अवशेष जलाने के लिए खेतों में लगाई गई आग से अब तक हजारों पेड़-पौधे भी  जलकर दम तोड़ चुके हैं। हालांकि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व कृषि विभाग द्वारा हर वर्ष किसानों को जागरुक करने के लिए जागरुकता अभियानों पर लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन किसानों की सेहत पर विभाग द्वारा चलाए जा रहे जागरुकता अभियानों का भी कोई असर नहीं है। राज्य प्रदूषण बोर्ड व जिला प्रशासन द्वारा खेतों में अवशेष जलाने वाले किसानों के खिलाफ जुर्माने व सजा का प्रावधान किया हुआ है, लेकिन आज तक इस कानून की अवहेलना करने वाले किसानों को जुर्माना नहीं किया गया है।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व कृषि विभाग किसानों को अवशेष न जलाने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से जागरुकता अभियानों पर दोनों हाथों से पैसे लूटा रहा है। विभाग द्वारा किसानों को जागरुक करने के उद्देश्य से हर वर्ष लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं। लेकिन विभाग के सारे अभियान केवल कागजों तक ही सीमित रहते हैं। किसानों पर विभाग के इन प्रयासों का कोई असर नहीं होता है। किसान उपजाऊ क्षमता की बर्बादी की परवाह किये बगैर तमाम किसान कटाई के बाद खेतों में आग लगा रहे है। सरकार द्वारा खेतों में अवशेष जलाने के कार्य को गैर कानूनी घोषित किए जाने के बावजूद भी किसान इस गैर कानूनी कार्य को अंजाम देकर खुलेआम कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं। लेकिन ताज्जूब की बात तो यह है कि विभाग द्वारा ऐसे किसानों के खिलाफ किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। जुर्माने व सजा के प्रावधान के बाद भी विभाग द्वारा किसी किसान के खिलाफ किसी तरह का जुर्माना नहीं किया गया है।
जुर्माने व सजा का भी है प्रावधान
खेतों में गेहूं के अवशेष जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा हुआ है। लेकिन सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद भी किसान अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं। इसके लिए पर्यावरण प्रदूषण एक्ट के तहत दोषी व्यक्ति को सजा के साथ-साथ एक लाख रुपए तक का जुर्माना भी हो सकता है।
बंजर हो जाती है जमीन
कृषि विभाग के एसडीओ डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि खेत में फसल के बचे हुए अवशेष जलाना गैर कानूनी है। इसलिए किसानों को गैर कानूनी कार्य कर कानून की उल्लंघना नहीं करनी चाहिए। गेहूं की कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेषों को जलाने से जमीन को नुकसान होता है। दलाल ने बताया कि खेतों में आग लगाने से कार्बनिक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं। साथ ही मित्र कीट व सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं और जमीन की उर्वरा शक्ति कमजोर हो जाती है, जिस कारण फसलों में बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसके अलावा खुले में लगी आग किसी बड़े हादसे का कारण भी बन सकती है। इससे दूसरे किसानों को भी नुकसान हो सकता है। आग से फैलने वाले धुएं से बड़ी मात्रा में पर्यावरण भी प्रदूषित होता है।

विभाग द्वारा रखी जाती है कड़ी नजर

वैसे इस तरह के मामलों में कार्रवाई का अधिकार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को ही है, लेकिन विभाग भी खेतों में आग लगाने वालों पर कड़ी नजर रख रहा है। अपने खेत में आग लगाने वाले व्यक्ति के खिलाफ  शिकायत मिलने पर विभाग द्वारा पुलिस में मामला दर्ज करवाया जाएगा। गेहूं के अवशेषों में आग लगाने से धीरे-धीरे जमीन की उत्पादकता कम होती चली जाती है। इसलिए हमें तुरंत अवशेष जलाने से किसानों को रोकना होगा। विभाग द्वारा किसानों को खेती की जानकारी उपलब्ध करवाते समय साथ-साथ खेतों में बचे हुए अवशेष न जलाने के लिए भी प्रेरित किया जाता है।
आरपी सिहाग, उप कृषि निदेशक
कृषि विभाग, जींद

हवा हो गए साहब के आदेश

स्कूल की छुट्टी के बाद स्कूटी से घर लौटते स्कूली बच्चे

यातायाता नियमों को ताक पर रखकर बाइक चलाते स्कूली बच्चे।

सड़कों पर मौत लिए दौड़ रहे माइनर
नरेंद्र कुंडू
जींद।
पुलिस की सुस्ती से साहब के आदेश हवा हो गए हैं। पुलिस अधीक्षक के आदेशों के 6 माह बाद भी पुलिस किसी नाबालिग वाहन चालक या उसके अभिभावकों के खिलाफ किसी प्रकार की कोई कार्रवाई अमल में नहीं ला सकी है। पुलिस की इस लापरवाही से उसके अपने ही नियम कायदे ताक पर रखे जा रहे हैं। सड़कों को सुरक्षित रखने के लिए पुलिस ने बाल चालकों को सड़कों से हटाने की नीति बनाई थी। इसके लिए एसपी ने वाहन चलाने वाले बाल चालकों के चालान काटने तथा अभिभावकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के आदेश जारी किए थे। लेकिन जिला पुलिस द्वारा आज तक एक भी अभिभावक पर नकेल नहीं कसी गई है। स्कूली बच्चे सभी नियमों को दरकिनार करके तेज रफ्तार से दुपहिया वाहनों को दौड़ाते हुए नजर आते हैं। बाल वाहन चालक सड़कों पर दूसरे वाहन चालकों के लिए खतरा बनकर दौड़ रहे हैं। 

6 माह बाद भी फाइलों में दफन हैं एसपी के आदेश

बड़ रहे सड़क हादसों पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस से खास नीति बनाई थी। नाबालिग वाहन चालकों की लापरवाही से बढ़ रहे हादसों को देखते हुए पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार ने 17 नवंबर 2011 को नाबालिग बच्चों के अभिभावकों के खिलाफ भी कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। एसपी ने अपने निर्देश में स्पष्ट किया था कि अगर कोई भी बच्चा वाहन का प्रयोग करते पकड़ा गया तो उसके अभिभावकों के खिलाफ मामला दर्ज कर कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। इसके अलावा स्कूल टाइम में वाहन का प्रयोग करने वाले बच्चों के साथ-साथ स्कूल संचालकों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। लेकिन एसपी के आदेशों के 6 माह बाद भी पुलिस द्वारा किसी अभिभावक व स्कूल संचालकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
दूसरों के लिए भी खतरा बन रहे हैं नाबालिग वाहन चालक
सड़कों पर तेज गति से दौड़ते नाबालिग वाहन चालक दूसरों के लिए भी खतरा बन रहे हैं। यातायात नियमों की जानकारी के अभाव व एक-दूसरे से वाहन आगे निकालने के हौड़ में नाबालिग वाहन चालक दुर्घटना को निमंत्रण दे देते हैं। तेज गति होने के कारण वाहन आउट आफ कंट्रोल हो जाते हैं और सड़क पर जा रहे अन्य वाहन के साथ टकरा कर दुर्घटना को अंजाम दे देते हैं। इस प्रकार नाबालिग वाहन चालक दूसरों के लिए भी खतरा बन रहे हैं।

अभिभावक भी हैं बराबर के दोषी

इसे अभिभावकों की लापरवाही कहें या उनका लाड-प्यार, जो बिना सोचे-समझे ही बच्चों के हाथों में मौत की चाबी थमा देते हैं। स्कूली बच्चे सड़कों पर बिना हेलमट के बेखौफ होकर मौत की डोर हाथों में थामे हुए इधर-उधर दौड़ते नजर आते हैं। अभिभावक बिना किसी रोक टोक के बच्चों के हाथों में वाहनों की चॉबी थमा रहे हैं और बच्चे अपने परिजनों के इस लाड-प्यारा का जमकर दुरुपयोग कर रहे हैं। बच्चे यातायात नियामों की धज्जियां उडाते हुए सड़कों पर वाहनों को सरपट दौड़ा रहे हैं। वाहन चलाते समय ये बच्चे न तो हेलमट का प्रयोग करते हैं और न ही इन बच्चों के पास लाइसेंस होता है। कई बार तो बाइकों पर एक की बजाय तीन-तीन, चार-चार बच्चे बैठ कर एक साथ कई-कई बाइकों की लंबी कतारें बनाकर बाइकों की रेश लगाते हैं, जिससे दुर्घटना होने का खतरा ओर भी बढ़ जाता है। बच्चों की इस गलती में अभिभावक भी बराबर के दोषी हैं।
मौके पर बुलाकर अभिभावकों को दिए जाते हैं सख्त निर्देश
एसपी के आदेशानुसार सभी स्कूल संचालकों को निर्देश दिए गए हैं कि अगर कोई भी नाबालिग विद्यार्थी बाइक लेकर स्कूल आता है तो उसे तुरंत स्कूल से बाहर कर दिया जाए। स्कूल में बाइक लेकर आने वाले विद्यार्थियों को स्कूल में प्रवेश नहीं करने दिए जाए। इसके अलावा अगर कोई बच्चा शहर में बाइक लेकर घुमता है तो तुरंत उस बच्चे के अभिभावकों को मौके पर बुला कर समझाया जाता है तथा भाविष्य में दोबारा पकड़े जाने पर बच्चे का चालान काट कर उनके अभिभावकों के खिलाफ भी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।
धूप सिंह
जिला यातायात प्रभारी, जींद



अब विश्व में लहराएगा हरियाणा का परचम

हरियाणा के गौरव पूर्ण इतिहास की विश्व में पहचान बनाने के लिए तीन भाषाओं में किया वेबसाइट का निर्माण
नरेंद्र कुंडू
इंटरनेट पर निडाना हाईटस के नाम से तैयार की गई वेबसाइट का फोटो।
जींद। हरियाणवी संस्कृति को विश्व में पहचान दिलाने तथा इंटरनेट पर भी हरियाणवी विश्वकोष बनाने के उद्देश्य से जींद जिले के एक होनहार ने विदेश में बैठकर एक वेबसाइट तैयार की है। फ्रांस के लीली शहर में ई-विपणन और वेब प्रबंधन सलाहकार के पद पर नौकरी कर रहे फूलकुमार ने डब्ल्यूडब्ल्यूडब्लयू डॉट निडानाहाईटस डाट कॉम वेबसाइट पर निडाना के गौरवशाली इतिहास व जींद जिले की उपलब्धियों के अलावा हरियाणवी संस्कृति से जुड़ी सभी जानकारियां उपलब्ध करवाई हैं। वेबसाइट का निर्माण अंग्रेजी, हिंदी व हरियाणवी तीन भाषाओं में किया गया है। इस वेबसाइट की सबसे खास बात यह है कि इस वेबसाइट पर हरियाणवी संस्कृति के अलावा किसानों के लिए मौसम व कृषि संबंधि जानकारी, पाठकों के लिए ई-लाइब्रेरी, विद्यार्थियों के लिए नौकरियों से संबंधित जानकारी, हरियाणवी मुहावरे, हरियाणवी संस्कृति, तीज-त्योहारों से संबंधित जानकारियां, मनोरंजन के लिए हरियाणवी रागनियां तथा कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियों के प्रति लोगों में जागरुकता लाने के लिए संदेश डाले गए हैं। इस प्रकार इस होनहार की सोच से लोगों को एक ही वेबसाइट पर काफी जानकारियां उपलब्ध हो जाएंगी। विद्यार्थियों के अलावा किसानों को भी  इस वेबसाइट से काफी लाभ मिलेगा। फूलकुमार ने वेबसाइट तैयार करने की शुरूआत 23 जनवरी 2012 को सुभाष चंद्र बोस की जयंती से की और 19 अप्रैल 2012 को पहली बार इंटरनेट पर परीक्षण के लिए अपलोड किया गया। वेबसाइट के प्रति लोगों में अच्छा रूझान बना हुआ है। इसी का परिणाम है कि मात्र 18 दिन में इस वेबसाइट को 5693 लोग देख चुके हैं। फूलकुमार द्वारा तैयार की गई इस वेबसाइट से अब निडाना गांव भी हाईटेक हो गया है। वेबसाइट तैयार होने के बाद लोगों को एक ही जगह पर कई प्रकार की जानकारियां तो मिलेंगी ही, साथ-साथ हरियाणवी संस्कृति का परचम भी अब विश्व में लहराएगा।
कैसे मिली प्रेरणा
जींद जिले के निडाना गांव निवासी फूलकुमार का बचपन गांव में ही बीत तथा पढ़ाई-लिखाई भी ग्रामीण आंचल में ही हुई। फूलकुमार को हरियाणवी संस्कृति के प्रति प्रेम व लगाव की भावना अपने स्वर्गीय दादा फतेह सिंह मलिक व स्वर्गीय दादी धनकौर से विरास्त में मिली है। गांव में पढ़ाई-लिखाई करने के बाद 2005 में नौकरी के लिए फूलकुमार फ्रांस में चला गया। इसके बाद वहां से नवंबर 2011 में अपनी बहन की शादी में शरीक होने के लिए फूलकुमार वापिस गांव में आया। गांव में कृषि विभाग के एडीओ डा. सुरेंद्र दलाल के सानिध्य में चल रही महिला कीट साक्षरता केंद्र में महिलाओं की उपलब्धियों को देखकर ही फूलकुमार को अपनी संस्कृति को विश्व में पहचान दिलाने की प्रेरणा मिली।

वेबसाइट के लिए कैसे जुटाई जानकारी

अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए फूलकुमार ने डा. सुरेंद्र दलाल से संपर्क किया। डा. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में वेबसाइट के लिए हरियाणवी संस्कृति से संबंधित व अन्य जानकारियां जुटाने के लिए निडाना हाईटस सलाहकार बोर्ड कोर टीम तथा निडाना हाईटस सलाहकार बोर्ड सहायता टीम का गठन किया गया। सहायता बोर्ड टीम के सदस्यों ने वेबसाइट के बारे में अपनी राय कोर टीम के सदस्यों के समक्ष रखी। इसके बाद कोर टीम के सदस्यों ने इनकी राय पर विचार-विमर्श कर इनमें सुधार कर वेबसाइट के लिए उपयोगी जानकारियां फूलकुमार को दी। इसके बाद फूलकुमार ने टीम के सदस्यों से मिली जानकारी व सामग्री की मदद से वेबसाइट का निर्माण शुरू किया। वेबसाइट का डिजाइन फूलकुमार ने स्वयं तैयार कर रहा है। विश्व में हरियाणवी संस्कृति की पहचान बनाने के लिए फूलकुमार ने इस वेबसाइट को अंग्रेजी, हिंदी व हरियाणवी तीन भाषाओं में तैयार किया है। ताकि विश्व में हरियाणवी संस्कृति को अलग से पहचान मिल सके और हमारी आने वाली पीढ़ी भी इस वेबसाइट से हमारी प्राचीन संस्कृति के बारे में जानकारी जुटा सके। वेबसाइट को समय-समय पर अपडेट भी किया जाएगा।

क्या है वेबसाइट की विशेषता

निडाना हाईटस के नाम से तैयार इस वेबसाइट पर लोगों को एक साथ सभी प्रकार की सुविधाएं मिल सकेंगी। इस वेबसाइट पर हरियाणा के गौरव पूर्ण इतिहास के अलावा हरियाणवी रीति-रिवाज, हरियाणवी मुहावरे, मनोरंजन के लिए रागनियां, हरियाणवी गीत, हरियाणवी फिल्म, पाठकों के लिए ई-लाइब्रेरी, किसानों के लिए खेती व मौसम संबंधि जानकारी, नौकरियों से संबंधित जानकारियां उपलब्ध करवाई गई हैं। कन्या भ्रूण हत्या व अन्य सामाजिक कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए वेबसाइट पर संदेश भी डाले गए हैं। लोगों से राय लेने के लिए कॉमेंट का आपशन भी दिए गया है। ताकि लोग वेबसाइट के लिए अपनी राय उन तक पहुंचा सकें।


अब जिला पुस्तकालयों की कमान जनसंपर्क विभाग के हवाले

नरेंद्र कुंडू
जींद। उच्चतर शिक्षा विभाग की देखरेख में चल रहे पुस्तकालयों में पाठकों की घटती संख्या को देखते हुए सरकार ने राज्य केंद्रीय पुस्तकालय, जिला पुस्तकालय व उपमंडल स्तर पर चल रहे पुस्तकालयों की कमान लोक जनसूचना एवं सांस्कृतिक विभाग (डीपीआईआर) के हाथों में सौंपने का निर्णय लिया है। अब इन पुस्तकालयों में पाठकों का जुगाड़ करने की जिम्मेदारी लोक जनसूचना एवं सांस्कृतिक विभाग को करनी होगी। सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम के बाद अब डीपीआईआर के कर्मचारी पुस्तकालयों में पाठकों की संख्या बढ़ाने के लिए सरकारी योजनाओं के प्रचार के साथ-साथ गांवों में जाकर पुस्तकालयों के महत्व के बारे में भी प्रचार करेंगे। पुस्तकालयों में व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा अलग से कर्मचारियों की नियुक्ती की जाएगी। उच्चतर शिक्षा विभाग ने फिलहाल पुस्तकालयों में काम कर रहे कर्मचारियों से पत्र लिखकर उनके स्थानांतरित के लिए आपशन मांगा है।
कर्मचारियों से मांगे गए हैं आपशन
सरकार के इस निर्णय के बाद महानिदेशक उच्चतर शिक्षा विभाग ने सभी पुस्तकालय के कर्मचारियों को पत्र लिखकर उनके स्थानांतरित के आपशन मांगें हैं। महानिदेशक उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा जिला जींद पुस्तकालय के कर्मचारियों को लिखे पत्र क्रमांक 9/16-2009 पु./(4) में उनसे जवाब मांगा है कि वे उच्चतर शिक्षा विभाग हरियाणा में रहना चाहते हैं या डीपीआईआर में जाना चाहते हैं। डीपीआईआर को यह जिम्मेदारी सौंपने के बाद पुस्तकालयों के लिए पाठकों की संख्या की व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी डीपीआईआर के कर्मचारियों की होगी।

क्यों सौंपी डीपीआईआर को पुस्तकालयों की जिम्मेदारी

उच्चतर शिक्षा विभाग के सानिध्य में राज्य केंद्रीय पुस्तकालय, जिला पुस्तकालय व उपमंडल स्तर पर चल रहे पुस्तकालयों में कम हो रही पाठक संख्या को बढ़ाने के लिए सरकार ने यह निर्णय लिया है। क्योंकि जन कल्याणकारी नीयितों के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी डीपीआईआर के कर्मचारियों की होती है। डीपीआईआर के कर्मचारी जनता व सरकार  के बीच एक कड़ी का काम करते हैं और इनके पास लोगों के बीच जाकार प्रचार करने के सभी साधन उपलब्ध होते हैं। डीपीआईआर के कर्मचारी जन कल्याणकारी नीतियों के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ लोगों के बीच जाकार पुस्तकालयों के महत्व के बारे में प्रचार-प्रसार कर सकेंगे। इससे पुस्तकालयों में पाठकों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। इसलिए सरकार ने डीपीआईआर को यह जिम्मेदारी सौंपी है।
फिलहाल क्या है पुस्तकालय में व्यवस्था
जिला पुस्तकालय में इस वक्त 43487 पुस्तकें मौजूद हैं। इन किताबों में जनरल नालेज, धार्मिक, स्वास्थ्य वर्धक, ग्रंथ, साहित्य, इतिहास, मनोरंजक व अन्य सभी प्रकार की पुस्तकें मौजूद हैं। पुस्तकों के अतिरिक्त पुस्तकालय में 14 मैगजिन व 12 अखबार आते हैं। इस वक्त जिला पुस्तकालय के पास 3469 मैम्बर हैं। इन मैम्बरों में विद्यार्थियों व सीनियर सिटीजन के अलावा 40 से 50 घरेलू महिलाएं तथा 80 से 90 छात्राएं भी   पुस्तकालय की मैम्बर हैं। युवाओं को रोजगार संबंधी जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए रोजगार समाचार की व्यवस्था भी है।

जिले में दम तोड़ रही स्वास्थ्य सेवाएं

बिना डाक्टरों के कैसे होगा इलाज

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार भले ही हर गांव तक बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के दावे करती हो, लेकिन जिला जींद में स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा शहर के सामान्य अस्पताल में भी  स्वास्थ्य सेवाएं लचर प्रणाली के सहारे चल रही हैं। सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों की कमी के चलते मरीजों को इलाज के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता है। मुख्य विशेषज्ञों की कमी के कारण मरीजों को निजी अस्पतालों का रूख करना पड़ता है। सरकारी अस्पतालों में लचर स्वास्थ्य सेवाओं और विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण झोला छाप डाक्टरों की संख्या न केवल तेजी से बढ़ रही है, बल्कि धड़ल्ले से मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ भी किया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में बनाए गए अस्पतालों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के हाथों में ही लोगों की इलाज करने की कमान थमाई गई है।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के दावे किए जाते हैं, लेकिन जींद जिला स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में पूरी तरह से पिछड़ चुका है। जिले के सामान्य अस्पताल के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भी मुख्य विशेषज्ञों की कमी बनी हुई है। सिविल अस्पताल में फिजिशियन भी  नहीं है, जिससे मरीजों को रोहतक रेफर करना पड़ता है। जिले में शहरों और कस्बों के अलावा 307 गांव हैं। सरकार जिले के 158 गांवों में सब सेंटर, पांच में सीएचसी व 28 में पीएचसी की सुविधा उपलब्ध करवा पाई है। जिले के करीब सवा सौ गांव आजादी मिलने के कई दशक से अधिक समय बीतने पर भी स्वास्थ्य सेवाओं से महरूम हैं। इस प्रकार की अव्यवस्थाओं के चलते स्वस्थ समाज की कल्पना करना एक सपने के समान है। स्वास्थ्य विभाग जिले में प्रेक्टिस कर रहे मुन्नाभाई एमबीबीएस पर कार्रवाई करने के नाम से भी गुरेज करता है। जिस कारण जिले में धड़ल्ले के साथ में झोला छाप डाक्टरों की फौज खड़ी हो रही है। जिला सामान्य अस्पताल में डिप्टी सिवल सर्जन के कुल 7 पद सृजित हैं, जिसमें से 4 पद खाली हैं। एसएमओ के कुल 12 पद सृजित हैं, जिनमें से 2 पद खाली हैं। इसके अलावा एमओ के कुल 114 पद सृजित हैं, जिसमें से 53 पद खाली हैं। सफीदों में 9 में से 1 और नरवाना में 11 में से 8 की नियुक्ति है। इसी प्रकार से सीएचसी कालवा में 6 में से 1, जुलाना में 5 में से 1, पद खाली है। यदि बात नरवाना सिविल अस्पताल की जाए तो यहां पर जरनल सर्जन, फिजिशियन, ईएनटी, बाल रोग विशेषज्ञ और अल्ट्रासोनोलिस्ट की कमी है। वहीं बच्चों के लिए शुरू की जाने वाली नर्सरी भी पूरी तरह से तैयार नहीं हो सकी है। उधर कालवा सामुदायिक केंद्र में महिलाए बाल रोग विशेषज्ञ के अलावा सर्जन की कमी खलती रहती है। उपकरण भी आधुनिक नहीं है। सफीदों सिविल अस्पताल में तो व्यवस्था बिल्कुल खराब हो चुकी है। यहां 9 में से मात्र एक ही मेडिकल आफिसर है।

घंटों इंतजार करते रहते हैं मरीज

उपचार के लिए सिविल अस्पताल में आने वाले मरीजों को घंटों लाइन में खडे होकर इंतजार करना पड़ता है। अस्पताल में सुबह डाक्टर तो बैठे मिल जाते हैं, लेकिन जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ता जाता है तो सीट पर डाक्टर नदारद होते चले जाते हैं। अधिकतर डाक्टर तो ड्यूटी के दौरान सिफारशियों को प्राथमिकता देते हैं। जिस मरीज की सिफारिश अच्छी है उसका नंबर जल्दी आ जाता है, लेकिन बिना सिफारिश वाले मरीजों को तो कमरों के बाहर बैठकर घंटों नंबर का इंतजार करना पड़ता है।
धूल फांक रही मशीनें
जिले के किसी भी सरकारी अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की सुविधा नहीं हैं। यहां मशीनें तो हैं, लेकिन डाक्टर नहीं। जींद के सामान्य अस्पताल में लगभग 12 लाख रुपए की लागत तथा सामान्य अस्पताल नरवाना में लगभग 6 लाख रुपए की अल्ट्रासाउंड मशीन होने के बावजूद भी यहां के मरीजों को इधर-उधर धक्के खाने पड़ रहे हैं। इसके अलावा सफीदों में भी अल्ट्रासाउंड की कोई सुविधा नहीं है। अल्ट्रासाउंड डाक्टर नहीं होने के कारण मशीन से किसी भी मरीज का अल्ट्रासाउंड नही किया जा रहा है। अल्ट्रासाउंड करवाने वाले मरीजों को अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए प्राइवेट अस्पतालों में जाना पड़ रहा है। लोगों को अल्ट्रासाउंड के लिए निजी अस्पतालों में 500 से 600 रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। सामान्य अस्पताल में अल्ट्रासाउंड नही होने से मरीजों में काफी रोष है।

उच्चाधिकारियों को किया जा चुका है सूचित

सामान्य अस्पताल में डाक्टरों की कमी है। डाक्टरों की कमी के चलते स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। इसके लिए विभाग के उच्चाधिकारियों को सूचित किया जा चुका है। अस्पताल प्रशासन द्वारा सभी डाक्टरों व अन्य कर्मचारियों से अस्पताल में अनुशान बनाए रखने के सख्त निर्देश दिए गए हैं। उनकी तरफ से अस्पताल में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
डा. धनकुमार, सिविल सर्जन
सामान्य अस्पताल, जींद

आईटी विलेज ने राष्टÑीय पक्षी को बचाने के लिए शुरू किया अभियान

नरेंद्र कुंडू
जींद। सूचना एवं प्रौद्यागिकी के क्षेत्र में धूम मचाने के बाद आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत ने राष्ट्रीय  पक्षी मोर के संरक्षण के लिए कदम बढ़ाए हैं। मोरों के अस्तित्व पर मंडराते खतरे को लेकर आईटी विलेज की पंचातय गंभीर है। विलुप्त होती मोर प्रजाति को बचाने के लिए पंचायत ने ‘मोर बचाओ अभियान’ शुरू किया है। इस मुहिम को धरातल पर लाने के लिए पंचायत ने गांव में दो टीमों का गठन कर गांव में जागरुकता अभियान चलाया है। टीम के सदस्य जागरुकता अभियान के साथ-साथ सर्वे कर मोरों की संख्या का पता भी  लगाएंगे। लोगों को जागरुक करने के लिए पंचायत ने बैनर भी तैयार करवाएं हैं। लोगों का ध्यान मोर बचाओ अभियान की ओर आकर्षित करने के लिए बैनरों पर मार्मिक स्लोगन लिखवाए गए हैं। इसके अलावा पंचायत ने मोर संरक्षण के लिए डिप्टी कमीश्नर की मार्फत वन्य जीव विभाग को भी मोर संरक्षण के लिए विशेष कदम उठाने के लिए एक प्रस्ताव भेजा है। पंचायत ने प्रस्ताव में विभाग से उत्तरांचल की तर्ज पर गांव में एक शैड का निर्माण करने की मांग की है। ताकि विलुप्त हो रही मोर की प्रजाति को बचाया जा सके।
विलुप्त हो रही राष्ट्रीय पक्षी मोर की प्रजाति को बचाने के लिए आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत ने ‘मोर बचाओ अभियान’ शुरू किया है। वन्य जीवों को बचाने के लिए पंचायत द्वारा शुरू की गई यह एक अनोखी पहल है। पूरे प्रदेश में यह एकमात्र पंचायत है, जिसनें राष्ट्रीय पक्षी मोर को बचाने के लिए पहल की है। पंचायत ने पूरी प्लानिंग के तहत यह मुहिम शुरू की है। लोगों को जागरुक करने के लिए पंचायत ने गांव में 24 बच्चों के दो ग्रुप बनाएं हैं। पंचायत ने दोनों ग्रुपों को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी है। एक टीम के सदस्य मोरों की सुरक्षा के लिए लोगों को घर-घर जाकर खेतों में कीटनाशकों का प्रयोग न करने के लिए प्रेरित करेंगे तो दूसरे गु्रप के सदस्य बैनरों के माध्यम से लोगों को मोर संरक्षण के लिए जागरुक करेंगे। जागरुकता अभियान के साथ-साथ ये बच्चे मोरों की संख्या की संख्या का पता लगाएंगे। बिजली की चपेट में आकर आकस्मिक काल का ग्रास बनने वाले मोरों को बचाने के लिए पंचायत द्वारा बिजली निगम से भी सहायता ली जाएगी। पंचायत ने बिजली निगम के अधिकारियों से मोरों के एरिए से गुजरने वाले बिजली के तारों पर प्लास्टिक लगाने की मांग की है। इसके अलावा पंचायत ने डिप्टी कमीश्नर के माध्यम से वन्यजीव विभाग को भी मोर संरक्षण के लिए पंचायत का सहयोग करने का प्रस्ताव  भेजा है। पंचायत ने वन्य जीव विभाग को प्रस्ताव में उत्तरांचल की तर्ज पर गांव में मोरों के रहने के लिए एक शैड का निर्माण करने की मांग की है। ताकि लगातार घट रही मोरों की संख्या पर अंकुश लगाकर राष्ट्रीय पक्षी मोर को बचाया जा सके।

मोरों को बचाने के लिए शुरू की पहल

पहले गांवों में मोरों की संख्या 60-70 के करीब थी। लेकिन खेतों में कीटनाशकों के ज्यादा प्रयोग व अन्य आपदाओं के कारण मोरों की संख्या लगातार घट रही है। पंचायत ने विलुप्त हो रही मोरों की प्रजाति को बचाने के लिए ही मोर बचाओ अभियान शुरू किया है। लोगों को जागरुक करने के लिए गांव में दो गु्रपों का गठन किया गया है। इसके अलावा गांव में शैड का निर्माण करवाने के लिए वन्य जीव विभाग को प्रस्ताव भेजा गया है। शैड के निर्माण के लिए पंचायत द्वारा जगह का चयन भी किया गया है।
सुनील जागलान, सरपंच
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद
 

विभाग को भेजा  प्रस्ताव 

बीबीपुर की पंचायत की तरफ से गांव में मोरों की संख्या घटने की सूचना मिली है। पंचायत ने गांव में मोर संरक्षण के लिए शैड के निर्माण के लिए भी प्रस्ताव भेजा है। पंचायत द्वारा शैड के लिए जगह देने के बाद गांव में शैड का निर्माण किया जाएगा। विभाग द्वारा बीबीपुर के अलावा बहबलपुर में भी मोरों को बचाने के लिए शैड का निर्माण किया जाएगा। विभाग द्वारा मोरों व अन्य वन्य जीवों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
राजबीर सिंह, निरीक्षक
वन्य जीव विभाग, जींद्

फाइलों से बाहर नहीं आ रही जांच

सरकार के निर्मल भारत के सपने को लगा झटका

नरेंद्र कुंडू
जींद।
नियमों को ताक पर रखकर गंदगी से अटे पड़े गांवों को निर्मल गांव का दर्जा दिलवाने का मामला प्रशासनिक अधिकारियों के गले की फांस बन गया है। मामला उजागर होने के बाद स्वच्छता अभियान से जुड़े अधिकारियों में हड़कंप मच गया है और अधिकारी किसी न किसी तरह इस मामले पर पर्दा डालने की कोशिश में जुटे हैं। प्रशासनिक अधिकारी अब जांच का आश्वासन देकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। मामला उजागर होने के तीन दिन बाद भी  जांच एक कदम आगे भी नहीं बढ़ पाई है। जांच के नाम पर केवल कागजी कार्रवाई ही की जा रही है। प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही से केंद्र सरकार द्वारा भारत को निर्मल बनाने के सपने को तो करारा झटका लगा ही है, साथ-साथ सरकार द्वारा स्वच्छता अभियान पर खर्च किए जा रहे करोड़ों रुपए भी पानी में व्यर्थ बह गए हैं। ऐसे में स्वच्छता अभियान के नाम पर सरकारी बाबूओं का भी बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आ गया है। अधिकारियों द्वारा इस मामले पर जवाब देते नहीं बन रहा है।
सरकार देश को स्वच्छ बनाने का सपना संजोए हुए है। अपने इस सपने को साकार करने के लिए सरकार हर वर्ष अरबों रुपए खर्च कर रही है। इसके लिए सरकार द्वारा प्रदेश के प्रत्येक जिले में स्वच्छता अभियान चलाकर लोगों को जागरुक करने का काम किया जा रहा है। कागजों में अभियान की सफलता को देखते हुए सरकार आगामी दस वर्षों में पूरे भारत को निर्मल बनाने के बड़े-बड़े दावे कर रही है। लेकिन अगर धरातल पर देखा जाए तो वास्तविकता कुछ ओर ही है। जिला स्तर पर प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस अभियान की प्रगति रिपोर्ट केवल कागजों तक ही सीमित रहती है। अभियान को सफल बनाने के लिए अधिकारियों द्वारा फील्ड वर्क पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण ही सरकार द्वारा अरबों रुपए खर्च करने के बावजूद भी वर्षों बाद भी स्वच्छता अभियान जमीन पर नहीं उतर पा रहा है। हाल ही में करनाल में आयोजित राज्यस्तरीय निर्मल पुरस्कार 2011 वितरण समारोह में भी फर्जी तरीके से ऐसे गांवों को निर्मल घोषित करवा दिया गया, जो गांव वास्तव में स्वच्छता अभियान से कोसों दूर हैं। इस समारोह में जींद जिले के आठ गांवों को निर्मल गांव घोषित किया गया है, जबकि इन गांवों में निर्मल गांव की एक भी  सुविधा नहीं हैं। इन गांवों में सभी परिवारों के पास न तो शौचालय हैं और न ही किसी भी गांव में अभी तक मैला ढोने की कूप्रथा समाप्त हुई है। इन गांवों में न तो पीने के स्वच्छ पानी की व्यवस्था है और न ही किसी भी गांव से गंदगी पूर्ण रूप से खत्म हुई है। जिला प्रशासनिक अधिकारियों ने केवल अपनी इज्जत बचाने की फेर में इन गांवों को निर्मल गांव का दर्जा दिलवाया है। मामला उजागर होने के बाद अधिकारियों के गले की फांस बन गया है। अधिकारी जांच की आड़ लेकर मामले से बचने का प्रयत्न कर रहे हैं। लेकिन तीन दिन बाद भी जांच एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई है। इससे प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं।

किन-किन गांवों को मिला है निर्मल गांव का दर्जा

हाल ही में करनाल में आयोजित राज्यस्तरीय निर्मल पुरस्कार 2011 वितरण समारोह में जींद जिले से 8 गांवों को यह पुरस्कार दिया गया है। जिसमें जींद खंड में जीवनपुर, निडानी, रामगढ़, अलेवा खंड में बुलावाली खेड़ी, जुलाना में खेमाखेड़ी, नरवाना में रेवर, सफीदों में पाजू कलां तथा पिल्लूखेड़ा में भूरायण गांव को निर्मल गांव का दर्जा दिया गया है। लेकिन सरकार द्वारा घोषित किए गए ये आठों गांव वास्तव में निर्मल ग्राम पंचायत योजना के नियमों पर खरे नहीं उतर रहे हैं।

जांच के बाद आगामी कार्रवाई पर किया जाएगा अमल

मामला उनके नोटिस में आ चुका है। जल्द ही अपने कार्यालय के अधिकारियों की बैठक बुलाकर इस मामले पर गौर किया जाएगा। अधिकारियों को सर्वे के लिए दोबारा निर्देश दिए जाएंगे। जांच के बाद जो तथ्य सामने आएंगे उनके अनुसार आगामी कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
अरविंद मल्हान
अतिरिक्त उपायुक्त, जींद

सर्वे टीम ने किया था गांवों का निरीक्षण

इस तरह के कार्यक्रम में सारा का सारा काम फील्ड से संबंधित होता है। अभियान की सफलता के लिए जिन टीमों का गठन किया जाता है वह टीमें गांव-गांव जाकर लोगों को जागरुक करती हैं। गांव में सफाई की जिम्मेदारी ग्रामीणों की होती है। ग्रामीणों को भी इस तरह के कार्यक्रमों में अपना सहयोग देना चाहिए। निर्मल पुरस्कार के लिए गांवों का चयन करने से पहले सर्वे टीम ने सभी गांवों का निरीक्षण कर रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट के अनुसार ही इन गांवों को पुरस्कार के लिए चुना गया था।
डा. युद्धवीर सिंह ख्यालिया
उपायुक्त, जींद

....यहां कागजों में तैयार होते हैं निर्मल गांव

निर्मल गाँवों में लगे हैं गंदगी के ढेर

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार द्वारा देश को स्वच्छ बनाने के लिए हर वर्ष अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन वास्तविकता इसके विपरित ही है। सरकार ने जिन ग्राम पंचायतों के बल पर भारत को निर्मल बनाने का सपना देखा है उसकी बुनियाद ही कच्ची है। जिस कारण एक झटके में ही सरकार का यह सपना चकनाचुर हो सकता है। सरकार द्वारा शुरू की गई निर्मल ग्राम योजना केवल कागजों में ही दौड़ रही है। इस योजना ने आज तक धरातल पर कोई खास प्रगति नहीं की है। प्रशासनिक अधिकारी अपनी खाल बचाने के चक्कर में कागजों में ही इस योजना को शिखर में पहुंचा देते हैं। हाल ही में सरकार ने जिले के जिन आठ गांवों को निर्मल गांवों का दर्जा दिया है, वास्तव में वे गांव निर्मल गांव कहलाने के लायक ही नहीं हैं। इन आठों गांवों में सफाई व्यवस्था का जनाजा निकला हुआ है तथा ये निर्मल ग्राम पंचायत योजना के किसी भी मानक पर खरे नहीं उतर रहे हैं। जिला प्रशासनिक अधिकारियों ने केवल अपनी इज्जत बचाने की फेर में पूरी प्लानिंग के तहत इस कार्रवाई को अंजाम दिया है। जिले से ऐसे आठ गांवों का चयन किया गया है, जिनकी आबादी कम है तथा जो मुख्य मार्ग से हटकर लिंक रोड पर स्थित हैं, ताकि सरकार की आंखों में धूल झौंक कर अपने आप को गाज गिरने से बच सकें। इस प्रकार प्रशासनिक अधिकारियों ने निर्मल गांव की घोषणा में जमकर फर्जीवाड़ा किया गया है। इन आठों गांवों में से किसी भी गांव में सभी परिवारों के पास न तो शौचालय हैं,  न ही किसी भी गांव में अभी  तक मैला ढोने की कूप्रथा समाप्त हुई है, न ही किसी भी गांव में पीने के स्वच्छ पानी की व्यवस्था है और न ही किसी भी गांव से गंदगी पूर्ण रूप से खत्म हुई है। आठों गांवों में से कोई भी गांव नियमों पर खरा नहीं उतरने के बावजूद भी इन गांवों को निर्मल गांव का दर्जा दिलवाने से प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में खड़ी हो रही है। आखिर प्रशासनिक अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रख कर इन गांवों का नाम निर्मल गांव के लिए क्यों प्रस्तावित किया।

किन-किन गांवों को मिला है निर्मल गांव का दर्जा

हाल ही में करनाल में आयोजित राज्यस्तरीय निर्मल पुरस्कार 2011 वितरण समारोह में प्रदेश के 330 गांवों को निर्मल गांव घोषित किया गया है, जिनमें से जींद जिले से 8 गांवों को यह पुरस्कार दिया गया है। जिसमें जींद खंड में जीवनपुर, निडानी, रामगढ़, अलेवा खंड में बुलावाली खेड़ी, जुलाना में खेमाखेड़ी, नरवाना में रेवर, सफीदों में पाजू कलां तथा पिल्लूखेड़ा में भूरायण गांव को निर्मल गांव का दर्जा दिया गया है। लेकिन सरकार द्वारा घोषित किए गए ये आठों गांव वास्तव में निर्मल ग्राम पंचायत योजना के नियमों पर खरे नहीं हैं। जींद जिले के आठों गांव शहर के मुख्य मार्गों से हटकर लिंक रास्ते पर स्थित हैं।

क्या है निर्मल ग्राम पुरस्कार

समग्र स्वच्छता अभियान के क्रियान्वयन को और गति प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने निर्मल ग्राम पुरस्कार योजना आरंभ की है, जो पूरी तरह से स्वच्छ और खुले में शौच मुक्त ग्राम पंचायत विकास खंडों तथा जिलों को दिया जाता है। समग्र स्वच्छता अभियान का उद्देश्य खुले में शौच से मुक्ति हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता सुविधाओं को व्यापक बनाना है तथा लोगों के स्वास्थ्य एवं जीवन स्तर को बेहतर बनाना है।
पुरस्कार के लिए पात्रता
1.    खुले में शौच रहित पंचायत।
2.    सभी परिवारों के पास शौचालय सुविधा।
3.    सभी विद्यालयों में छात्र व छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय एवं मूत्रालय।
4.    आंगनबाड़ी केंद्रों में बाल उपयोगी शौचालय।
5.    शौचालयों का उपयोग एवं नियमित रखरखाव।
6.    ग्राम में पर्यावरणीय स्वच्छता।
7.    ग्राम में मैला ढोने की कूप्रथा की समाप्ति।
8.    गांव में सौ प्रतिशत शौचालय व सबके लिए स्वच्छ पेयजल उपलब्ध होना चाहिए।



दोबारा करवाया जाएगा गांव का सर्वे
 निर्मल गाँव भूरायण में गली में जमा कीचड़
निर्मल गाँवजीवनपुर गांव में फैली गंदगी

 निर्मल गांव रामगढ़ के बीच में बना गंदे पानी का तालाब।

निर्मल गाँवरामगढ़ गांव में सरकारी स्कूल के पास लगे गंदगी के ढेर।
निर्मल गाँव रामगढ़ गांव में गली में जमा गंदगी।
निर्मल गांव के लिए नाम प्रस्तावित किए जाने के बाद सर्वे टीम ने जिले के आठों गांवों का दौरा किया था। सर्वे टीम ने खुद इन गांवों में जाकर सभी औपचारिकताएं पूरी की थी और उसके बाद ही सरकार को इन गांवों के नाम पुरस्कार के लिए भेजे गए थे। अगर सर्वे के दौरान किसी प्रकार की गड़बड़ी हुई है तो वे दोबारा से टीमें भेज कर इसकी जांच इन गांवों की जांच करवाएंगे। 
 निर्मल गाँव भूरायण में गली में  गांव में फैली गंदगी।
अरविंद महलान
अतिरिक्त उपायुक्त, जींद
निर्मल गांव जीवनपुर  में गली में जमा कीचड़।





बुधवार, 9 मई 2012

पंचायत सशक्तिकरण को बढ़ावा देते हुए आईटी विलेज ने की मिशाल कायम

नरेंद्र कुंडू
जींद।
देश की पहली हाईटेक पंचायत बीबीपुर ने अन्य पंचायतों के सामने एक और मिसाल कायम कर दी है। आईटी विलेज की पंचायत ने देश की पंचायतों को सशक्तिकरण की राह दिखाई है। पंचायत ने रिकार्ड कायम करते हुए 21 माह में 88 बैठकें कर 274 प्रस्ताव पारित कर दिखाए हैं। एक तरफ जहां अन्य पंचायतें अपने पूरे कार्याकाल में विधिवत रूप से एक भी ग्राम सभा का आयोजन नहीं कर पाती वहीं आईटी विलेज की पंचायत ने इन 21 माह में 88 बैठकों के अलावा 12 ग्राम सभाएं कर अन्य पंचायतों तथा प्रशासन के सामने एक उदहारण पेश किया है। पंचायत ने एचआरडीएफ स्कीम के तहत 2, वैट स्कीम के तहत 4, मनरेगा स्कीम के तहत 11, पीआरआई स्कीम के तहत 16, सामान्य कार्यवाही के तहत 173, नई कार्यवाही के तहत 14 तथा 12 ग्राम सभाओं में 54 प्रस्ताव पास कर गांव को प्रगति की ओर अग्रसर किया है। पंचायत ने ग्राम सभा में सरपंच के अलावा 14 मैंबरों तथा गांव की कूल वोटर संख्या के 10 प्रतिशत आबादी के समक्ष गांव में होने वाले विकास कार्यों के प्रस्ताव पास कर विधिवत रूप से ग्राम सभा की वीडियो रिकार्डिंग करवा कर प्रशासनिक अधिकारियों को भी इसकी रिपोर्ट भेजी है।
आईटी विलेज बीबीपुर की पंचायत ने एक ओर मिशाल कायम करते हुए पंचायत सशक्तिकरण को बढ़ावा देने का कार्य किया है। बीबीपुर की पंचायत ने लीक से हटकर नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए अन्य पंचायतों को भी विकास की ओर अग्रसर होने के लिए राह दिखाई है। पंचायत ने 27 जुलाई 2010 से 27 अप्रैल 2012 यानि मात्र 21 माह में 88 बैठकें कर 274 प्रस्ताव पारित कर यह साबित कर दिया है कि अगर गांव में विकास की गंगा बहाने के लिए सरकार के खजाने से ग्रांट निकलवानी है तो विधिवत रूप से बैठकों में प्रस्ताव पास कर सरकारी अधिकारियों को ग्रांट देने पर विवश किया जा सकता है। क्योंकि पंचायत ने बैठक कर जितने भी प्रस्ताव पास किए हैं सभी प्रोजेक्टों को सरकार की तरफ से मंजूरी मिल चुकी है। एक तरफ जहां अपने पूरे कार्यकाल में ग्राम पंचायत एक भी ग्राम सभा  नहीं कर पाती वहीं आईटी विलेज की पंचायत ने 21 माह में पूरे विधिवत तरीके से 12 ग्राम सभाएं कर कुल 54 प्रस्ताव भी पास किए हैं। इन ग्राम सभाओं में पास किए गए कार्यों की वीडियो रिकार्डिंग करवा प्रशासनिक अधिकारियों को भी इसकी रिपोर्ट भेजी है।

किस-किस स्कीम के तहत किए प्रस्ताव पास

आईटी विलेज की पंचायत ने 27 जुलाई 2010 से 27 अप्रैल 2012 यानि 21 माह में ग्राम सभा सहित कुल 88 बैठक कर 274 प्रस्ताव पास किए हैं। जिसमें एचआरडीएफ स्कीम के तहत 2, वैट स्कीम के तहत 4, मनरेगा स्कीम के तहत 11, पीआरआई स्कीम के तहत 16, सामान्य कार्यवाही के तहत 173, नई कार्यवाही के तहत 14 तथा 12 ग्राम सभाओं में कुल 54 प्रस्ताव पास किए हैं।
कार्य शुरू करवाने के लिए रेजूलेशन तैयार करना जरुरी
गांव में किसी भी प्रकार का विकास कार्य करवाने के लिए रेजूलेशन तैयार करना जरुरी होता है। रेजूलेशन तैयार करने के लिए पंचायत के सभी सदस्यों की विधिवत रूप से बैठक बुलाई जाए। बैठक में मौजूद पंचायत के सभी सदस्यों के समक्ष विकास कार्य के लिए रेजूलेशन तैयार कर उस पर सभी पंचायत सदस्यों के हस्ताक्षर करवा मंजूरी के लिए जिला प्रशासन के पास भेजा जाए। पंचायत ने लीक से हटकर कुछ ऐसे रेजूलेशन पास किए हैं, जो अन्य पंचायतें नहीं करवाती। गांव में होने वाले विकास कार्यों में ग्राम सचिव राजेश कुमार का अहम योगदान रहा है।
सुनील जागलान, सरपंच
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद

क्या-क्या करवाए विकास कार्य

रेजूलेशन डालकर गांव की वेबसाइट तैयार करवाना।
गांव में अन्न भंडारण के लिए केंद्रीय भंडारण निगम को गोदाम के निर्माण के लिए रेजूलेशन •ोजना।
अनाथ व बेसहारा बच्चों को आसरा देने के लिए बाल व सुधार गृह के निर्माण के लिए रेजूलेशन देना।
बैठक में रेजूलेशन तैयार कर गांव में राजीव गांधी सेवा केंद्र का निर्माण करवाना।
पंचायत घर का निर्माण करवाने के लिए रेजूलेशन तैयार करना।
सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए 15 अगस्त व 26 जनवरी पर सौर ऊर्जा की लाइटें वितरित करने के लिए प्रस्ताव पास करना।
रेजूलेशन तैयार कर पाइलेट प्रोजैक्ट के तहत गांव में पानी संरक्षण सिस्टम का निर्माण करवाना।
ठोस कचरा प्रबंधन के निर्माण के लिए प्रस्ताव पास करना।
मनरेगा के तहत सभी गलियों की सफाई करवाने के लिए प्रस्ताव पास करना।
मनरेगा के तहत प्रस्ताव पास कर वाटर कंजर्वेशन एंड हारवेस्टिंग सिस्टम का निर्माण करवाना।
पीआरआई स्कीम के तहत रेजूलेशन डाल कर हाई मास्क लाइट लगवाना।
रेजूलेशन तैयार कर गांव के तालाबों व सार्वजनिक स्थलों पर  सिक्स सिटर चेयर लगवाना।
पक्षियों के संरक्षण की पहल करने के लिए प्रस्ताव पास करना।
मुर्राह नस्ल को बढ़ावा देने के लिए प्रस्ताव पास कर मुर्राह नस्ल के भैसें खरीदना।
 


लूट खसोट पर नहीं अधिकारियों का कंट्रोल

मिली भगत से चलता है दलाली का गौरख धंधा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
हाईकोर्ट ने गाड़ियों की स्पीड को नियंत्रित करने के लिए गाड़ी में स्पीड गवर्नर लगाने के आदेश तो दे दिए, लेकिन सराकरी अधिकारी गाड़ी में स्पीड गवर्नर लगाने की आड़ में चलने वाली दलाली को नियंत्रित करने के लिए किसी भी प्रकार का नियम तय नहीं कर पा रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारी इस गौरख धंधे को अंजाम देने वाले दलालों पर नकेल डालने में नाकाम हैं। ताज्जूब की बात तो यह है कि इन दलालों द्वारा गाड़ी में स्पीड गर्वनर लगाने से लेकर पासिंग तक की पूरी जिम्मेदारी ले ली जाती है। पासिंग के लिए तय नियमों पर खरी न उतरने के बावजूद भी गाड़ी की पासिंग करवाना इनके बायें हाथ का खेल है। इस धंधे में जुटे डीलर गाड़ी पासिंग व स्पीड गवर्नर लगाने के नाम पर वाहान चालकों की जेब तराश कर मोटी चांदी कूट रहे हैं। डीलर वाहन चालकों से स्पीड गवर्नर के नाम पर रुपए ज्यादा ऐंठते हैं तथा बिल कम राशि का थमा देते हैं। इतना ही नहीं गाड़ी में जो स्पीड गवर्नर लगाया जाता है, वह क्षेत्रिय प्राधिकरण द्वारा मान्य ही नहीं होते हैं। गाड़ी पासिंग के दौराना ऐसा ही एक मामला गत वीरवार को भी प्रशासनिक अधिकारियों के सामने आया था। लेकिन प्रशासनिक अधिकारी इस मामले पर कार्रवाई करने की बजाए इसे दबाने में जुटे हुए हैं। जिला प्राधिकरण के अधिकारी इस मामले को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला बताकर दलालों पर कार्रवाई से हाथ पीछे खींच रहे हैं।
सफीदों रोड बाईपास स्थित सेक्टर नौ में हर सप्ताह के वीरवार को गाड़ी पासिंग के दौरान खुलेआम दलालों की दुकानें सजती हैं। दलाल वाहन चालक से गाड़ी में स्पीड गवर्नर लगाने से लेकर गाड़ी पासिंग तक का पूरा ठेका ले लेते हैं। ये दलाल पासिंग के लिए वाहन चालक को इतने ज्यादा नियम गिनवा देते हैं कि वाहन चालक इन झंझटों से बचने के लिए बड़ी आसानी से इनके चुंगल में फंस जाता हैं। शिकार के जाल में फंसते ही शुरू होता है इनका लूट-खशौट का खेल। वाहन के मालिक द्वारा पासिंग के लिए हामी भरते ही दलाल बड़ी आसानी से उनकी जेब तराशने का काम शुरू कर देते हैं और पासिंग के लिए आए वाहनों के मालिक जानकारी के अभाव में चुपचाप इनके जाल में उलझते चले जाते हैं। ऐसा ही एक मामला गत वीरवार को भी सामने आया था। मामले के तूल पकड़ने के बाद भी मौके पर मौजूद संबंधित अधिकारियों ने उक्त फर्म के मालिक के खिलाफ किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की। इतना ही नहीं मामला उजागर होने के दो दिन बाद भी अधिकारी मामले की जांच करने की बजाए मामले से अपने हाथ पीछे खींच रहे हैं। अधिकारी इस मामले को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला बताकर मामले को दबाने के प्रयास में जुटे हैं। सूत्रों की माने तो यह सब खेल अधिकारियों की मिलीभगत से ही चल रहा है। इन दलालों के साथ अधिकारियों की सांठ-गांठ पक्की होती है।

क्या था मामला

गत वीरवार को सफीदों रोड बाईपास स्थित सैक्टर नौ में गाड़ी पासिंग के दौरान वाहन मालिकों तथा गाड़ी में स्पीड गवर्नर लगाने वाले दलाल के बीच तू-तड़ाक का एक मामला सामने आया था। आटो की पासिंग के लिए आए झांझ गांव निवासी रोहताश तथा बीबीपुर निवासी अशोक ने बताया था कि उन्होंने आटो की पासिंग के लिए आटो में नवनीत एंटरप्राइजिज फर्म से स्पीड गवर्नर लगवाया था। रोहताश व अशोक ने बताया कि इस फर्म का स्पीड गवर्नर बेचने वाले एक व्यक्ति आटो में स्पीड गवर्नर लगाने के नाम पर 3500 रुपए ऐंठ लिए तथा बिल दो हजार का थमा दिया था। उन्होंने बताया था कि बाजार में इसकी कीमत मात्र 900 रुपए है। इसके अलावा उनकी आटो में जो स्पीड गवर्नर लगाया गया है उसे प्राधिकरण के एमवीआई ने भी अथोराइज्ड नहीं बताया था। जिसके बाद वाहन के मालिकों व उक्त फर्म के दलाल के बीच काफी देर तक खींचतान भी चली थी।

विभाग डीलर के खिलाफ नहीं कर सकता कार्रवाई

इस बारे में जब जिला क्षेत्रीय प्राधिकरण अधिकारी गिरीश अरोड़ा से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र में है ही नहीं। इस मामले में वे कुछ नहीं कर सकते। अरोड़ा ने कहा कि विभाग किसी भी डीलर को स्पीड गवर्नर बेचने की इजाजत नहीं देता है और न ही उनके खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकता है। विभाग का मौके पर मौजूद अधिकारी को केवल इतना ही देखना होता है कि गाड़ी में लगाया गया स्पीड गवर्नर मान्य है या नहीं। अगर स्पीड गर्वनर मान्य नहीं है तो उस गाड़ी की पासिंग नहीं हो सकती।

खतरे में गम्बुजिया, मलेरिया के खिलाफ कैसे बनेगा हथियार


 फिश हैचरी में भरा गंदा पानी।
नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले का स्वास्थ्य विभाग मलेरिया से लड़ने के लिए गम्बूजिया को हथियार बनाने की कवायद में लगा हुआ है। अपने इस अभियान को सफल बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग बड़े-बडे दावे कर रहा है। लेकिन वास्तविकता कुछ ओर ही बयां कर रही है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण विभाग की यह योजना इस वर्ष आगाज से पहले ही दम तोड़ चुकी है। सामान्य अस्पताल में बनाए गए प्रजनन केंद्र में गम्बूजिया खुद ही बेमौत मर रही हैं। गम्बूजिया का आशियाना बदहाल है और उस पर निरंतर खतरा मंडरा रहा है। गम्बूजिया की रक्षा के लिए फिश हैचरी के ऊपर लगाया गया जाल पूरी तरह से तहस-नहस हो चुका है। इतना ही नहीं तालाब में स्वच्छ पानी भी नहीं है, जो गम्बूजिया के लिए काफी जरूरी होता है। जिसके दम पर सामान्य अस्पताल प्रशासन मलेरिया के खिलाफ अभियान छेड़कर लोगों का जीवन बचाने का दम भर रहा है अभी तक अस्पताल प्रशासन ने उसकी रक्षा के लिए ही कोई कदम नहीं उठाए हैं।
फिश हैचरी के ऊपर से टूटा पड़ा जाल।

मलेरिया के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग का हथियार बनने वाली गम्बुजिया को आज खुद ही अपनी रक्षा की आवश्यकता है। उपायुक्त के आदेशों के बावजूद भी अस्पताल प्रशासन ने गम्बुजिया के प्रजजन के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। अस्पताल प्रशासन की उपेक्षा के कारण गम्बूजिया खुद ही गमगीन है। मलेरिया से लड़ने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा गम्बूजिया मछली को तैयार किया गया था। इस योजना को सिरे चढ़ाने के मलेरिया विभाग के सामने फिश हैचरी बनाई गई और इस पर लाखों रुपए बहाए गए। गम्बूजिया को पालने के लिए सामान्य अस्पताल में 2005 में मलेरिया विभाग के सामने एक तालाब बनाया गया था। कौवे, बाज व अन्य पक्षी गम्बूजिया के दुश्मन माने जाते हैं और ये पलक झपकते ही गम्बूजिया का शिकार कर लेते हैं। इन दुश्मनों से गम्बूजिया को बचाने के लिए तालाब के ऊपर जाल लगा पूरे तालाब को इस जाल से कवर कर दिया गया था। कुछ समय तक यहां पर गम्बूजिया ठाठ से रही, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया गम्बूजिया के बुरे दिन शुरू होते गए। गम्बूजिया के सरवाइव करने के लिए सभी जरूरी सभी बुनियादी सुविधाएं दम तोड़ने लगी। गम्बूजिया स्वच्छ पानी को तरस रही है, क्योंकि इसके तालाब का पानी दूषित होकर हरा हो चुका है। तालाब में  गंदगी भी गम्बूजिया के साथ हिलोरे मार रही है। गम्बुजिया को पक्षियों से बचाने के लिए तालाब के ऊपर लगाया गया जाल तहस-नहस हो चुका है। कटे-फटे जाल के महज चंद अंश ही बचे हैं। तालाब की सही कवरिंग नहीं होने से कौवे, बाज व दूसरे पक्षी गम्बूजिया पर जानलेवा हमला कर रहे हैं। इससे तालाब में गम्बूजिया की तादाद सिकुड़ती जा रही है। साफ है कि दूसरों का जीवन बचाने वाली गम्बूजिया इन दिनों स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी की भेट चढ़ रही है। मौत उसके ऊपर तांडव कर रही है और विभाग बेखबर है। यदि अस्पताल प्रशासन ऐसे ही आंखें मूंदे बैठा रहा तो जल्द ही मलेरिया के खात्म के लिए तैयार किए गए गम्बूजिया नामक इस हथियार का नामोनिशान मिट जाएगा।

मलेरिया से कैसे लड़ती है गम्बूजिया

मलेरिया पर लगाम के लिए गम्बूजिया काफी कारगर मानी जाती है। गंबुजियां एवं गप्पी इस प्रकार की मछलियां है जो हर प्रकार के वातावरण के अनुसार ढलकर मच्छर के लारवा को समाप्त करने में सक्षम है। गप्पी किस्म की मछली प्रतिदिन 80 से 100 मच्छर के लारवा को अपना भेजन बना लेती है। गंबुजियां मछली मच्छर के लारवा को खाने में गप्पी मछली से कहीं अधिक सक्षम है। यह मछली प्रतिदिन 300 मच्छर के लारवा को खा सकती है। यह मछलियां पूर्ण रूप से मांसाहांसी होती है। इन मछलियों की खास बात यह है कि जिस प्रकार से मच्छर पानी की ऊपरी सतह पर अपना लारवा देता है। उसी प्रकार यह मछली भी पानी की ऊपरी सतह पर अधिक एवं कम तापमान पर रहकर लरवा को खत्म कर सकती है। जिस प्रकार से मच्छर एक दिन में असंख्य लारवा पैदा करता है, उसी प्रकार ये विशेष मछलियां भी असंख्य प्रजनन करती है जो मच्छर के लारवा के बढ़ने के साथ-साथ बढ़ते है और उसी हिसाब से मच्छर के लारवा को नियंत्रित करती है।

गम्बूजिया के बचाव के लिए तालाब के ऊपर जाल काफी जरूरी होता है। इसके लिए स्वच्छ पानी की जरुरत नहीं होती। गम्बुजिया गंदे पानी में भी अपना जीवनचक्र चला सकती है। गम्बुजिया के रखरखाव व देखभाल के लिए मलेरिया विभाग के डिप्टी सिविल सर्जन डा. सुरेश चौहान को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
डा. धनकुमार
सिविल सर्जन, जींद

मंगलवार, 1 मई 2012

यहां तो लूटवा रहे 'भगवान'

 चिकित्सक द्वारा लिखी गई बाहर की दवाई दिखाते मरीज।
सरकारी अस्पताल में चिकित्सक लिखते हैं बाहर की दवाइयां
नरेंद्र कुंडू
जींद। शहर का सामान्य अस्पताल पूरी तरह से कमीशनखोरी का अड्डा बन चुका है। अस्पताल में भ्रष्टाचार पूरी तरह से अपनी जड़ें जमा चुका है। सरकारी अस्पताल में लोगों को मुफ्त में बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाने के सरकार के सारे दावे बेमानी साबित हो रहे हैं। शहर के सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों द्वारा खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यहां तो भगवान का दर्जा हासिल करने वाले चिकित्सक ही अपने कमीशन के फेर में गरीबों को दवा माफियाओं के हाथों में लूटवा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के सख्त आदेशों के बवाजूद भी चिकित्सक मरीजों को बाहर की दवा खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं। चिकित्सक मरीजों को अस्पताल में उपलब्ध दवाइयां न लिखकर बाहर की महंगी दवाइयां लिख रहे हैं। जिस कारण मरीजों को मजबूरन बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं। सामान्य अस्पताल में खुलेआम दलाली का यह खेल चल रहा हैं और अस्पताल प्रशासन चुपचाप तमाशबीन बना हुआ है। अस्पताल प्रशासन की चुपी व चिकित्सकों की कमीशनखोरी के कारण अस्पताल में गरीबों के आंसू पौंछने वाला कोई नहीं है।
एक तरफ तो सरकार लोगों को मुफ्त में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने के दावे कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों के लिए सरकार के ये दावे बेमानी साबित हो रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा सभी सरकारी अस्पतालों को हिदायत दी गई है कि उनके यहां काम करने वाले चिकित्सक बाहर की दवाइयां न लिखें और जितना हो सके अस्पताल की सरकारी दवाइयों से ही रोगी का उपचार करें। लेकिन सामान्य अस्पताल में सरेआम स्वास्थ्य विभाग के आदेशों की धज्जियां उडाई जा रही हैं। विभाग के यह आदेश बेमानी साबित हो रहे हैं। बड़ी संख्या में मरीज प्रतिदिन अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन उनको यहां पर सरकारी दवाइयां उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं। मरीजों का कहना है कि सस्ते उपचार के लिए वे सामान्य अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन यहां चिकित्सक महंगी दवाइयां लिख देते हैं। इसके कारण उन्हे आर्थिक समस्या झेलनी पड़ती है। शायद ही कोई ऐसा मरीज होगा, जिसको अस्पताल से सभी सरकारी दवाइयां मिल पाती हों। अस्पताल में इस स्थिति के चलते गरीब लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। खास बात यह है कि सामान्य अस्पताल के डॉक्टर जो दवाइयां बाहर की लिखते हैं, वे दवाइयां केवल अस्पताल के नजदीक खुले मेडिकल स्टोरों पर ही उपलब्ध होती हैं। जबकि शहर के अन्य मेडिकल स्टोरों पर सामान्य अस्पताल के डॉक्टरों की ओर से लिखी दवाइयां नहीं मिलती हैं। इससे साफ जाहिर है कि सामान्य अस्पताल में कमीशन का फंडा जोरों पर चला हुआ है। बुखार के इलाज के लिए अस्पताल आए छान्ने गांव निवासी योगेश, गले के इलाज के लिए आए हाऊसिंग बोर्ड निवासी खुर्शिद, स्कीन के इलाज के लिए आए बराह खुर्द निवासी सुनील, पेट दर्द के इलाज के आए करसिंधू निवासी कृष्ण तथा महिला डाक्टर से जांच करवाने आई जींद निवासी प्रिया ने बताया कि जब चिकित्सक द्वारा लिखी गई दवा लेने के लिए वे खिड़की पर पहुंचे तो खिड़की पर मौजूद कर्मचारी ने एक-दो दवा देने के बाद कहा कि बाकी की दवा बाजार से मिलेंगी। उन्होंने बताया कि चिकित्सक द्वारा बाहर की जो दवा पर्ची पर लिखी गई हैं वह काफी महंगी होती हैं। चिकित्सकों द्वारा बाहर की दवा लिखने के कारण मरीज अपने आप को ठगा सा महसूस करते हैं। अगर कोई मरीज चिकित्सक से उस दवा के बदले कोई सस्ती दवा लिखने की गुहार लगाए तो चिकित्सक मरीज को यह कह कर टाल देता है कि दूसरी दवा के बदले यही दवा ज्यादा जल्दी असर करेगी, क्योंकि महंगी दवा में चिकित्सक को कमीशन जो ज्यादा मिलता है। अस्पताल में चल रहे इस कमीशनखोरी के खेल को अस्पताल प्रशासन भी चुपचाप देख रहा है।   

शिकायत मिलने पर की जाएगी कार्रवाई

स्वास्थ्य विभाग के सख्त आदेश हैं कि कोई भी डॉक्टर सामान्य अस्पताल के दवा केंद्र में मौजूद दवाइयों के अलावा बाहर की दवाई नहीं लिख सकता है। अगर कोई डॉक्टर इस तरह का कार्य करता है या उनके पास कोई मरीज लिखित में शिकायत देता है तो उस चिकित्सक के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी।
डा. धनकुमार
सिविल सर्जन, जींद

रंग लाने लगी हाइटेक पंचायत की ऊर्जा संरक्षण मुहिम

ऊर्जा संरक्षण मुहिम से पंचातय को हर वर्ष होगी तीन लाख यूनिट बिजली की बचत

नरेंद्र कुंडू
जींद।
हाइटेक पंचायत बीबीपुर द्वारा शुरू की गई ऊर्जा संरक्षण की मुहिम रंग लाई है। पंचायत द्वारा गांव में ऊर्जा संरक्षण के लिए एक विशेष मुहिम शुरू की गई है। इस मुहिम को सफल बनाने के लिए पंचायत ने गांव में 2700 सीएफएल ट्यूब लाइट लगवाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। पंचायत ने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए गांव में शुरू की गई ऊर्जा संरक्षण मुहिम के तहत 100 वॉट के 1713 बल्बों को हटवाकर उनके स्थान पर 20 वॉट की 1713 सीएफएल ट्यूब लगवा दी हैं। गांव में 100 वॉट के बल्बों की जगह 20 वॉट की 1713 सीएफएल लगने के बाद गांव में हर माह लगभग 25 हजार यूनिट बिजली की खपत में कमी आई है। इस प्रकार पंचायत द्वारा एक वर्ष में लगभग तीन लाख यूनिट बिजली की बचत की जाएगी। जिससे पंचायत को हर वर्ष लगभग नौ लाख रुपए की बचत होगी। जिस कारण पंचायत हाईटेक पंचायत का दर्जा हासिल करने के बाद ऊर्जा संरक्षण के मामले में भी देश में अपनी अलग पहचान बना लेगी।
आईटी विलेज बीबीपुर की पंचातय द्वारा शुरू की गई ऊर्जा संरक्षण मुहिम रंग लाने लगी है। पंचातय द्वारा शुरू की गई ऊर्जा संरक्षण मुहिम से जहां बिजली निगम को हर वर्ष लाखों यूनिट बिजली की बचत होगी, वहीं बिल में कमी होने के कारण ग्रामीणों को भी लाखों रुपए की बचत होगी। पंचायत ने ऊर्जा संरक्षण अभियान के तहत गांव में 2700 सीएफएल ट्यूब लगवाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। अपनी इस मुहिम को सफल बनाने के लिए पंचायत ने गांव में सर्वे के लिए चार टीमें तैयार की हैं। लगभग 70 विद्यार्थियों को गांव में सर्वे का कार्यभार सौंपा गया है। सर्वे टीम के सदस्य ग्रामीणों को ऊर्जा संरक्षण के लिए जागरुक कर रहे हैं। यह सर्वे टीम की मेहनत का ही परिणाम है कि टीम ने गांव में 100 वॉट के 1713 बल्बों को हटवाकर उनके स्थान पर 20 वॉट की सीएफएल ट्यूब लाइट लगवा दी हैं। 1713 सीएफएल लगने के बाद गांव में हर माह लगभग 25 हजार यूनिट बिजली की खपत में कमी आएगी। इस प्रकार गांव में एक वर्ष में लगभग तीन लाख बिजली यूनिट की खपत में कमी आएगी। जिससे पंचायत को लगभग हर वर्ष 9 लाख रुपए की बचत होगी। 

ऊर्जा संरक्षण के लिए पंचायत द्वारा उठाए गए कदम

1.    स्वच्छता अभियान में सहयोग देने वाले 31 प्रतिभागियों को पंचायत की तरफ से 25 हजार रुपए के ईनाम के रूप में सौलर लालटेन वितरित की गई हैं।
2.    15 अगस्त व 26 जनवरी को सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा परीक्षा में प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले बच्चों को सौलर लालटेन वितरित की गई हैं।
3.    ऊर्जा संरक्षण विषय पर गांव में दो बार संगोष्ठी का आयोजन किया जा चुका है, जिसमें पहले तीन स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को भी सौलर लालटेन ईनाम के रूप में दी गई हैं।
4.    ग्रामीणों में जागरुकता फैलाने के लिए गांव में अक्षय ऊर्जा विभाग की तरफ से प्रदर्शनी का आयोजन करवाया गया है।
5.    गांव में 6-7 गोबर गैस प्लांट लगाने की योजना तैयार की जा रही है।
6.    गांव के स्कूल में रेन कंजर्वेशन एंड हायर्वेस्टींग सिस्टम लगाया गया है।
7.    फेसबुक पर सौलर उपकरणों से संबंधित व ऊर्जा संरक्षण से जुड़ी बातों को शेयर किया जाता है।
8.    गांव में पीआरआई स्कीम के तहत साढ़े तीन लाख रुपए की राशि से सीएफएल ट्यूब लाइट खरीद कर दी गई हैं।
9.    गांव के जो बच्चे ऊर्जा संरक्षण में सहयोग कर रहे हैं, उन बच्चों के नाम गांव की चौपाल में ‘गांव के सितारे’ के रूप में लिखे जाते हैं।
10.    गांव में ऊर्जा संरक्षण की जागरुकता फैलने से पहले व बाद में हुई बिजली की खपत की फीडर से रिपोर्ट मांगी गई है।

ऊर्जा संरक्षण संरक्षण जरुरी 

दिन-प्रतिदिन ऊर्जा की बढ़ती खपत के कारण ऊर्जा के हमारे प्राकृतिक स्त्रोतो सिकुड रहे हैं। जिस कारण भविष्य में हमारे सामने ऊर्जा संकट पैदा हो सकता है। ऊर्जा की खपत को देखते हुए ऊर्जा संरक्षण आज हमारे लिए बहुत जरुरी हो गया है। ऊर्जा संरक्षण को हमें अपनी आदत में शामिल करना चाहिए। ताकि भविष्य में हमारे सामने ऊर्जा संकट पैदा न हो सके। हमें ऊर्जा की बचत करने के लिए ज्यादा से ज्यादा सौलर उपकरणों तथा घरों में बल्बों के स्थान पर सीएफएल ट्यूब लाइट का प्रयोग करना चाहिए। ताकि अधिक से अधिक ऊर्जा की बचत की जा सके।
सुनील जागलान, सरपंच
ग्राम पंचायत बीबीपुर, जींद

आईसीपीएस से मिलेगा अनाथों को 'माँ-बाप' का प्यार

नरेंद्र कुंडू
जींद।
इंटीग्रेटीड चाइल्ड प्रोटैक्शन सोसायटी प्रदेश में अनाथ बच्चों का सहारा बनेगी। महिला एवं बाल विकास विभाग ने योजना को मूर्त रूप देने के लिए इंटीग्रेटीड चाइल्ड प्रोटैक्शन सोसायटी (आईसीपीएस) का गठन किया है। आईसीपीएस के सदस्य जिला स्तर पर सर्वे करेंगे तथा अनाथ व लावारिस बच्चों की पहचान कर उन्हें आश्रय देकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का कार्य करेगें। आईसीपीएस अनाथ बच्चों की पहचान कर उनके लिए शिक्षा व सिर पर छत की व्यवस्था भी करेगी। विभाग द्वारा इस तरह के बच्चों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए इनको हर माह मिल रहे भत्ते में भी बढ़ोत्तरी करने के लिए विचार किया जा रहा है। अगर उच्च अधिकारियों की तरफ से भत्ते में बढ़ोत्तरी की मांग को हरी झंडी मिल गई तो इनका मासिक भत्ता 500 से बढ़कर 1500 रुपए प्रति माह भत्ता हो जाएगा। इसके अलावा आईसीपीएस के सदस्य बाल श्रम करवाने वालों पर भी पैनी नजर रखेंगे। इसके लिए विभाग ने एक हैल्पलाइन भी शुरू की है।
बेसहारा, अनाथ बच्चों को सहारा देने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग ने एक खास कवायद शुरू की है। बेसहारा बच्चों को सहारा देने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आईसीपीएस का गठन किया गया है। निराश्रित, अनाथ बच्चे, जिनके माता-पिता दोनों की मृत्यु हो चुकी हो या उनको न्यायिक आदेशों के तहत मृत्यु दंड या आजीवन कारावास की सजा हो चुकी हो अथवा बच्चे के माता-पिता की मृत्यु के बाद बच्चे किसी रिश्तेदार के पास पल रहे हों तथा रिश्तेदार उनके अच्छा व्यवहार नहीं करता है, तो उनको इंटीग्रेटीड चाइल्ड प्रोटैक्शन सोसायटी सहारा देगी। आईसीपीएस अनाथ बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था तथा रहने के लिए छत का इंतजाम करेगी। ताकि बच्चे को पढ़ा-लिखा कर आत्म निर्भर बनाया जा सके। इसके अलावा आईसीपएस बाल श्रम को रोकने के लिए भी विशेष मुहिम चलाएगी। सोसायटी बाल मजदूरी करवाने वालों पर भी पैनी नजर रखेगी। इसके लिए सोसायटी ने शहर का सर्वे करवा कर दुकानों व ढाबों पर काम कर रहे बाल मजदूरों की रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेज दी है। जिला स्तर पर प्रोटैक्शन आफिसर व जिला चाइल्ड प्रोटैक्शन आफिसर की देखरेख में सोसायटी काम कर रही है। योजना को सफल बनाने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग ने एक टीम का गठन किया है। इस टीम के सदस्य ब्लॉक अनुसार गांवों का दौरा कर बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक कर रहे हैं तथा अनाथ व लावारिश बच्चों की पहचान कर उनके लिए शिक्षा व रहने की व्यवस्था भी कर रहे हैं। इसके लिए  सदस्यों को इसके लिए बाकायदा विशेष ट्रेनिंग भी दी गई है। बेसहार व अनाथ बच्चों की सूचना देने के लिए सोसायटी द्वारा 1098 नंबर पर चाइल्ड हैल्प लाइन भी  शुरू की गई है। हैल्प लाइन के माध्यम से भी अनाथ व बेसहारा बच्चों की सूचना सोसायटी को दी जा सकती है। विभाग द्वारा इस तरह के बच्चों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए इनको हर माह मिल रहे भत्ते में भी  बढ़ोत्तरी करने के लिए विचार किया जा रहा है। अगर उच्च अधिकारियों की तरफ से भत्ते में बढ़ोत्तरी की मांग को हरी झंडी मिल गई तो इनका मासिक भत्ता 500 से बढ़कर 1500 रुपए प्रति माह भत्ता हो जाएगा। इसके अलावा आईसीपीएस के सदस्य बाल श्रम करवाने वालों पर भी पैनी नजर रखेंगे।
 क्या कहती हैं अधिकारी
आईसीपीएस के सदस्य बच्चों को संरक्षण देकर उन्हें अत्याचारों से मुक्त करवाएंगे। बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करने के लिए सोसायटी द्वारा गांवों में जाकर सेमिनारों का आयोजन भी किया जा रहा। इसके लिए सोसायटी के सभी सदस्यों को विशेष ट्रेनिंग दी गई है, ताकि विभाग द्वारा शुरू की गई इस योजना का लाभ अधिक से अधिक बच्चों को मिल सके। सोसायटी के सदस्यों के साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारी भी सेमिनारों में भाग लेकर बच्चों को प्रेरित करेंगे। इस तरह के बच्चों को मिलने वाले मासिक भत्ते में भीबढ़ोतरी का विचार किया जा रहा है।
सरोज वर्मा
जिला चाइल्ड प्रोटैक्शन आफिसर