रविवार, 1 जुलाई 2012

...ये है देश की अनोखी पाठशाला

देश की आर्थिक रीड को मजबूत करने के लिए यहां दी जाती है कीटों की तालीम

नरेंद्र कुंडू
किसान पाठशाला के दौरान कपास की फसल में कीटों की पहचान करते किसान।
जींद। आप ने ऐसी पाठशालाएं तो बहुत देखी होंगी, जहां देश के कर्णधारों को क, ख, ग की तालीम देकर उनके भविष्य को उज्जवल बनाने के प्रयास किए जाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी ऐसी पाठशाला देखी या सुनी है जहां कीटों की तालीम देकर देश की आर्थिक रीड (यानि किसानों) को सुदृढ़ करने के सपने बुने जा रहे हों। जी हां हम बात कर रहे हैं जींद जिले के निडाना गांव में चल रहे कीट साक्षरता केंद्र की। यहां हर मंगलवार को किसान पाठशाला का आयोजन किया जाता है और किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाए जाते हैं। यह एक अजीब तरह की पाठशाला है। इस पाठशाला में पेड पर लकड़ी का बोर्ड लगाया जाता है और खेत की मेड पर ही बैठकर किसान अपने अनुभव सांझा करते हैं। इस पाठशाला की सबसे खास बात यह है कि यहां न ही तो कोई अध्यापक है और न ही कोई स्टूडेंट है। यहां तो किसान खुद ही अध्यापक हैं और खुद ही स्टूडेंट। इस पाठशाला में किसान स्वयं मेहनत करते हैं और कागजी ज्ञान की बजाए व्यवहारिक ज्ञान अर्जित करते हैं। निडाना के खेतों में चलने वाली यह एक अनोखी पाठशाला है। इसमें किसान सिर्फ और सिर्फ फसल में मौजूद मासाहारी व शाकाहारी कीटों पर बहर करते हैं और फिर उससे जो परिणाम निकल कर सामने आते हैं उन्हें ही अपना हथियार बनाते हैं। इस पाठशाला के कीट कमांडों किसानों का मुख्य उद्देश्य कीटनाशकों के प्रयोग को कम कर मनुष्य की थाली को जहर मुक्त करना है। अपने आप में किसानों द्वारा शुरू की गई यह एक अनोखी पहल है। जिसके चर्चा प्रदेश से बाहर भी चलने लगे हैं और दूसरे प्रदेशों के किसान ही नहीं कृषि अधिकारी भी इन्हें अपना रोल मॉडल मानकर यहां प्रशिक्षण लेने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं। अभी लगभग एक पख्वाड़ा पहले भी पंजाब के होशियारपुर जिले के मुख्य कृषि अधिकारी डा. सर्वजीत कंधारी व यहीं के एक प्रगतिशील किसान अशोक कुमार ने भी इस कीट साक्षरता केंद्र का दौरा कर यहां के किसानों से रु-ब-रु हुए थे।

ग्रुप बनाकर करते हैं तैयारी

निडाना कीट साक्षरता केंद्र के किसान पाठशाला के दौरान चार-चार किसानों के अलग-अलग ग्रुप बनाते हैं और फिर ग्रुप के अनुसार ही खेत को अलग-अलग भागों में बांट दिया जाता है। इस प्रकार ये किसान ग्रुप अनुसार फसल में घुसकर लैंसों की सहायता से पौधों के पत्तों पर मौजूद कीटों की पहचान कर उसके जीवन चक्र के बारे में जानकारी जुटाते हैं। इतना ही नहीं लगातार कई-कई घंटे कड़ी धूप में फसल में बैठकर कीटों पर कड़ा अध्यान करते हैं तथा फसल में किस-किस तरह के कीट हैं तथा उनकी तादाद का पूरा लेखा-जोखा कागज पर तैयार करते हैं। इन किसानों को कीटों के बारे में इतनी ज्यादा जानकारी हो चुकी है कि ये कीट को देखते ही उसकी पूरी पीढ़ी के बारे में बता देते हैं। कीट प्रबंधन के बारे में अगर बात की जाए तो बड़े-बडे कृषि विज्ञानिकों के पास भी इनके सवालों का तोड़ नहीं है।  

मिड-डे-मील व मनोरंज का भी रखते हैं ख्याल

कीट साक्षरता केंद्र के किसान पाठशाला के दौरान खूब मेहनत करते हैं, लेकिन साथ-साथ खाने-पीने व मनोरंजन का पूरा ध्यान रखते हैं। सप्ताह के हर मंगलवार को लगने वाली इस पाठशाला में किसान हर बार अलग-अलग किसान को खाने-पीने के सामान की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी सौंपते हैं। इस प्रकार जिस भी किसान को खाने-पीने की व्यवस्था की जिम्मेदारी मिलती है वह किसान अपने घर से सभी किसानों के लिए हलवा, दलिया या अन्य प्रकार का व्यंजन तैयार करवा कर लेकर आता है। कड़ी मेहनत करते-करते कहीं किसान उब ना जाएं इससे बचने के लिए बीच-बीच में चुटकले के माध्यम से मनोरंज करते रहते हैं।  

पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं किसान

निडाना कीट साक्षरता केंद्र के किसान पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं। खेत से हासिल किए गए अपने अनुभवों को ये किसान ब्लॉग या फेसबुक के माध्यम से अन्य लोगों के साथ सांझा करते हैं। अपना खेत अपनी पाठशाला, कीट साक्षरता केंद्र, महिला खेत पाठशाला, चौपटा चौपाल, निडाना गांव का गौरा, कृषि चौपाल, प्रभात कीट पाठशाला सहित एक दर्जन के लगभग ब्लॉग बनाए हुए हैं और इन ब्लॉगों पर ये किसान पूरी ठेठ हरियाणवी भाषा में अपने विचार प्रकट करते हैं। इन ब्लॉगों की सबसे खास बात यह है कि ये ब्लॉग हरियाणा ही नहीं अपितू दूसरे देशों में भी पढ़े जाते हैं। दूसरे प्रदेशों के किसान ब्लॉग के माध्यम से इन किसानों से सवाल-जबाव करते हैं और अपनी समस्याएं इन किसानों के समक्ष रखकर उनका समाधान भी पूछते हैं।


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