मंगलवार, 6 अगस्त 2013

...यहां चलती हैं देश की अनोखी पाठशालाएं

ककहर की बजाए दी जाती है कीट ज्ञान की तालीम

नरेंद्र कुंडू

जींद। आप ने ऐसी पाठशालाएं तो बहुत देखी होंगी, जहां चारदीवारी के अंदर बैठाकर देश के कर्णधारों को क, ख, ग की तालीम देकर उनके भविष्य को उज्जवल बनाने के प्रयास किए जाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी ऐसी पाठशाला देखी या सुनी है जहां खुले आसमान के नीचे लगने वाली कक्षाओं में कीटों की तालीम देकर देश की आर्थिक रीड (यानि किसानों) को सुदृढ़ करने के प्रयास किए जा रहे हों। जी हां हम बात कर रहे हैं जींद जिले में चल रहे कीट साक्षरता केंद्रों की। यहां प्रति दिन अलग-अलग गांवों में किसान पाठशालाओं का आयोजन किया जाता है। कीट ज्ञान की मुहिम को जिले में फैलाने के लिए फिलहाल जींद जिले के आधा दर्जन गांवों में किसान खेत पाठशालाओं का आयोजन किया जा रहा है और इन आधा दर्जन पाठशालाओं में 2 दर्जन से भी ज्यादा गांवों के किसान कीट ज्ञान की तालीम लेने के लिए आते हैं। इस मुहिम को आगे बढ़ाने में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। कीट कमांडो किसानों द्वारा पाठशाला में आने वाले अनट्रेंड किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाकर जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित किया जाता है। इन पाठशालाओं में किसानों को मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के क्रियाकलापों तथा फसल पर पडऩे वाले उनके प्रभाव और कीटों के जीवनचक्र के बारे में पूरी बारिकी से जानकारी दी जाती है। अपने आप में यह अजीब तरह की पाठशालाएं है। इन पाठशालाओं में एक पेड पर बोर्ड लगाकर किसानों को कीटों ज्ञान के साथ-साथ कीट बही खाता तैयार करने, फसल में लागत को कम कर अधिक उत्पादन लेने तथा अपने खेत की मेढ़ पर बैठकर अपने फैसले खुद लेने की शिक्षा दी जाती है। खुले आसमान के नीचे लगने वाली इन पाठशालाओं में किसान खेत की मेढ़ पर बैठकर एक-दूसरे के साथ अपने अनुभव सांझा करते हैं। इन पाठशालाओं की सबसे खास बात यह है कि यहां न ही तो कोई अध्यापक है और न ही कोई स्टूडैंट है। यह पाठशालाएं किसानों द्वारा किसानों के लिए ही आयोजित की जाती हैं। यहां तो किसान खुद ही अध्यापक हैं और खुद ही स्टूडैंट हैं। इन पाठशालाओं में किसान स्वयं मेहनत करते हैं और कागजी ज्ञान की बजाए व्यवहारिक ज्ञान अर्जित करते हैं। इन पाठशालाओं में किसान फसल में मौजूद मांसाहारी व शाकाहारी कीटों पर खुलकर बहस करते हैं और फिर उस बहस से जो निष्कर्ष निकल कर सामने आता है किसान उस निष्कर्ष को ही अपना हथियार बनाकर फसल पर उसके प्रयोग करते हैं। इन पाठशालाओं में किसानों द्वारा कीटों पर शोध करने का मुख्य उद्देश्य फसलों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग को कम कर मनुष्य की थाली को जहर मुक्त करना तथा बेवहज मारे जा रहे बेजुबान कीटों रक्षा कर नष्ट हो रही प्रकृति को बचना है। जींद जिले के किसानों द्वारा शुरू की गई यह मुहिम देश में सबसे अनोखी मुहिम है। आज इसके चर्च प्रदेश ही नहीं बल्कि देश से बाहर भी चलने लगे हैं। इसका जीता-जागता प्रमाण यह है कि इंटरनैट पर ब्लाग के माध्यम से विदेशों के किसान भी इनके साथ जुड़ रहे हैं और यहां के किसानों द्वारा ब्लाग पर डाली जा रही जानकारी को पूरी रुचि के साथ पढ़ रहे हैं। देश के दूसरे प्रदेशों के किसान तथा कृषि अधिकारी भी इन किसानों से कीट ज्ञान के टिप्स लेने के लिए समय-समय पर इनके पास आते रहते हैं। यहां के किसानों के प्रयोगों को देखकर पंजाब के कई जिलों के किसान तो इन्हें अपना रोल मॉडल मानकर इनके पदचिह्नों पर चलते हुए जहरमुक्त खेती का अच्छा उत्पादन ले रहे हैं।  

ग्रुप बनाकर करते हैं तैयारी


किसान खेत पाठशालाओं में आने वाले किसान किसी भी प्रयोग को उसके अंतिम चरण तक पहुंचाने के लिए पूरी लग्र व मेहनत से उस पर कार्य करते हैं तथा हर पहलु से उस प्रयोग पर बहस करते हैं। प्रयोग में किसी प्रकार की चूक न रहे इसके लिए यह किसान 5-5 किसानों के अलग-अलग ग्रुप बनाते हैं और फिर ग्रुप बनाकर खेत में अपना शोध शुरू करते हैं। यह किसान ग्रुप अनुसार फसल में घुसकर सुक्ष्मदर्शी लैंसों की सहायता से पौधों के पत्तों व टहनियों पर मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान कर उसके जीवन चक्र के बारे में बारिक से बारिक जानकारी जुटाते हैं। कई-कई घंटे कड़ी धूप में फसल में बैठकर कीटों पर कड़ा अध्यान करने के बाद फसल में किस-किस तरह के कीट हैं तथा उनकी तादाद का पूरा लेखा-जोखा कागज पर उतारा जाता है। इन किसानों को कीटों के बारे में इतनी ज्यादा जानकारी हो चुकी है कि ये कीट को देखते ही उसकी पूरी पीढ़ी का लेखाजोखा खेलकर रखदेते हैं। कीटों पर अगर चर्चा की जाए तो बड़े-बड़े कीट वैज्ञानिकों के पास भी इनके सवालों का जवाब नहीं है।  

                                                                                       पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं किसान


डा. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता केंद्र के किसान पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं। खेत से हासिल किए गए अपने अनुभवों को ये किसान ब्लॉग या फेसबुक के माध्यम से अन्य लोगों के साथ सांझा करते हैं। अपना खेत अपनी पाठशाला, कीट साक्षरता केंद्र, महिला खेत पाठशाला, चौपटा चौपाल, निडाना गांव का गौरा, कृषि चौपाल, प्रभात कीट पाठशाला सहित इन किसानों ने इंटरनैट पर एक दर्जन के लगभग ब्लाग बनाए हुए हैं और इन ब्लागों पर ये किसान ठेठ हरियाणवी तथा हिंदी भाषा में अपने विचार प्रकट करते हैं। इन किसानों द्वारा संचालित इन ब्लागों की सबसे खास बात यह है कि ये ब्लॉग हरियाणा ही नहीं अपितू दूसरे देशों में भी पढ़े जाते हैं। दूसरे प्रदेशों के किसान ब्लाग व फेसबुक के माध्यम से इन किसानों से अपने सवाल-जबाव करते हैं और अपनी समस्याएं इन किसानों के समक्ष रखकर उनका समाधान भी पूछते हैं। 

कीट वैज्ञानिक भी लगा चुके हैं इनके अनोखे शोध पर सहमती की मोहर

कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा वर्ष 2008 में निडाना गांव के खेतों से शुरू की गई कीट ज्ञान क्रांति की लौ आज इतनी तेजी से देश में फैलने लगी है कि प्रदेश से बाहर भी इनके चर्चे शुरू हो चुके हैं। इन किसानों की सबसे बड़ी सफलता यह है कि जो कीट वैज्ञानिक आज से पहले कीटों को नियंत्रित करने के लिए किसानों को कीटनाशकों का प्रयोग करने का सुझाव देते थे आज वही वैज्ञानिक इन किसानों के बीच पहुंचकर इनके अनोखे शोध की सराहना कर कीटों को नियंत्रित करने की नहीं, बल्कि कीटों को पहचानने तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाने की नसीहत देते हैं। 



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