शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

जहरमुक्त खेती की मुहिम को शिखर पर पहुंचाने के लिए निस्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं किसान : डा. सिहाग


विधिवत रूप से हुआ साप्ताहिक बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला का समापन

कहा, रंग लाने लगी डा. सुरेंद्र दलाल की मुहिम 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कृषि विभाग जींद के उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए कीटनाशक रहित खेती की जो मुहिम शुरू की थी कीट कमांडों किसान उस मुहिम को सफलता के शिखर पर पहुंचाने के लिए निस्वार्थ भाव से दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि आज उनकी यह मुहिम रंग लाने लगी है और जींद जिले के साथ-साथ दूसरे जिलों के किसान भी इन किसानों से कीट ज्ञान हासिल कर जहरमुक्त खेती की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। डा. सुरेंद्र दलाल ने जहरमुक्त थाली का जो सपना देखा था बहुत जल्द वह सपना साकार होगा और जहरयुक्त भोजन से होने वाली शारीरिक बीमारियों से लोगों को छुटकारा मिलेगा, वहीं कीटनाशकों पर अनावश्यक रूप से बढ़ते खर्च से भी किसानों को निजात मिलेगी। डा. सिहाग वीरवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला के समापन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। राजपुरा भैण गांव के पूर्व सरपंच टेकराम ने डा. सिहाग को पगड़ी पहनाकर तथा स्मृति चिह्न भेंट कर किसानों को दिए जा रहे योगदान के लिए उनका आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर उनके साथ बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा, भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के उप-प्रधान बिल्लू खांडा, जिला प्रधान महेंद्र घीमाना, ईश्वर भी मौजूद थे।
कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने बताया कि 22 जून से इस पाठशाला का शुभारंभ हुआ था और हर सप्ताह के शनिवार को पाठशाला का आयोजन किया जाता था। 18 सप्ताह तक चलने वाली इस पाठशाला में दूसरे जिलों के किसानों के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिकों ने भी इस पाठशाला का भ्रमण कर किसानों की मुहिम में अपनी भागीदारी दर्ज करवाई है। डा. सैनी ने पाठशालाओं में किसानों द्वारा किए गए कार्यों तथा पौधों का कीट के साथ क्या रिश्ता है और कीट फसल में क्यों आते हैं आदि विषयों पर विस्तार से जानकारी दी। डा. सैनी ने कहा किकीटों को काबू करने की जरुरत नहीं है। अगर जरुरत है तो कीटों को पहचाने और उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हासिल करने की और यह काम किसानों को खुद ही करना होगा। राजपुरा भैण के किसान रामस्वरूप ने पाठशाला में अपना अनुभव रखते हुए बताया कि उसने कपास का एक एकड़ पाठशाला को समॢपत किया हुआ है और कीट कमांडों किसानों की मानकर उसने अपने इस एक एकड़ में एक छटांक भी जहर का प्रयोग नहीं किया है, जबकि उसके साथ लगते कपास की 2 एकड़ फसल में उसने कीटनाशकों का प्रयोग किया है लेकिन आज भी बिना जहर की कपास की फसल से दूसरी फसलों के बराबर का उत्पादन मिल रहा तथा इस एक एकड़ पर उसका दूसरी फसलों से खर्च भी काफी कम हुआ है। पाठशाला के समापन पर बाहर से आए सभी गणमान्य लोगों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सभी किसानों को अपनी खेती का लेखा-जोखा रखने के लिए डायरी तथा पैन भी भेंट किए गए।

सुप्रीम कोर्ट ने भी लगाई किसानों की मुहिम पर मोहर

बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने एक अंग्रेजी न्यूज पेपर का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कीट कमांडों की मुहिम पर अपनी मोहर लगाई है। ढांडा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जनता को जहर रहित खाना उपलब्ध करवाना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार को इस तरफ प्रयास करने की जरुरत है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि देश में पेस्टीसाइड एक्ट की पालना नहीं हो रही है और इस सब के लिए सरकार जिम्मेदार है। ढांडा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह साबित हो गया है कि जींद के किसान जिस मुहिम को पिछले 6 वर्षों से अपने बलबूते पर चला रहे हैं, वह एक दिन बहुत बड़ी क्रांति की शुरूआत है और देश को इसकी बहुत जरुरत है।

भैंस बेच कर उतारा कीटनाशकों पर किए गए खर्च का कर्ज

पाठशाला में अपने अनुभव किसानों के साथ सांझा करते हुए गांव निडाना के किसान सुरेंद्र ने भावूक होते हुए कहा कि एक वह समय था जब उसने अपनी भैंस बेचकर कीटनाशकों पर किए गए खर्च का कर्ज उतारा था। सुरेंद्र ने बताया कि वह पैदावार बढ़ाने के लिए फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करता था। वर्ष 2002 में एक एकड़ कपास की फसल में उसका खर्च 16 हजार था लेकिन इतने ज्यादा कीटनाशकों के प्रयोग के बाद भी उसकी पैदावार महज 10 से 12 मण की होती थी। फसल में अधिक खर्च होने तथा पैदावार कम होने के कारण उस पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रही था। इसी से परेशान होकर उसने फसल में कीटनाशकों का प्रयोग छोड़ दिया था। सुरेंद्र ने बताया कि वर्ष 2012 में वह कीट कमांडों किसानों के संपर्क में आया। अब वह पूरी तरह से जहरमुक्त खेती करता है और उसकी पैदावार भी लगातार बढ़ रही है।

याद आए डा. सुरेंद्र दलाल

पाठशाला के समापन अवसर पर किसान डा. सुरेंद्र दलाल को याद कर भावूक हो गए थे। किसानों ने बताया कि जिस कीट ज्ञान की बदौलत आज उन्होंने जहरमुक्त खेती को अपना कर कीटनाशकों पर होने वाले खर्च से मुक्ति पाई है, उस कीट ज्ञान की खोज डा. सुरेंद्र दलाल ने की थी। सरकारी पद पर रहते हुए उन्होंने कभी भी अपनी नौकरी और स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर किसानों को कीट ज्ञान की तालीम देकर उन्हें जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित किया और आज उनकी यह मेहनत रंग ला रही है।
 पाठशाला के समापन अवसर पर किसानों को सम्बोधित करते डी.डी.ए. डा. रामप्रताप सिहाग।

 डा. कमल सैनी को पगड़ी पहनाकर तथा किसान को डायरी पैन देकर सम्मानित करते बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा। 


सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

अज्ञानता के कारण कृषि से भंग हो रहा है किसानों का मोह

कहा, कृषि पर आधारित है देश की जी.डी.पी. और रोजगार  

कपास को कहते हैं कीड़ों का स्वर्ग

नरेंद्र कुंडू
जींद। सफीदों के लैंडमोरगेज बैंक के चेयरमैन एवं नव वैदिक कन्या विद्यापीठ के संस्थापक बलबीर आर्य ने कहा कि देश को 20 प्रतिशत जी.डी.पी. तथा 65 प्रतिशत रोजगार कृषि देती है लेकिन इसके बावजूद भी कृषि बुरे दौर से गुजर रही है और किसानों का कृषि से मोह भंग हो रहा है। कोई भी किसान अपनी फसल की पैदावार से संतुष्ट नहीं है, क्योंकि पैदावार बढ़ाने के लिए उसने खेती पर होने वाले खर्च को भी बढ़ाया है। बलबीर आर्य शनिवार को राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर पाठशाला में बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, चहल खाप के प्रतिनिधि दलीप सिँह चहल, भनवाला खाप के प्रधान महा सिँह भनवाला, जोगेंद्र कुंडू तथा कैथल जिले के कुछ किसान भाग लेने पहुंचे थे। 
बलबीर आर्य ने कहा कि खेती पर खर्च बढऩे का प्रमुख कारण किसान का भयभीत तथा भ्रमित होना है। पहले तो किसान को कीटों का भय दिखाकर उसे भयभीत किया जाता है और फिर उसे भिन्न-भिन्न किस्म के कीटनाशकों से उसकी समस्या के समाधान का सपना दिखाकर उसे भ्रमित किया जाता है। कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि कपास की फसल को कीड़ों का स्वर्ग कहा जाता है। क्योंकि कपास की फसल में कीड़ों के लिए हर किस्म का भोजन उपलब्ध होता है। डा. सैनी ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने यह सिद्ध करके दिखा दिया है कि बिना कीटनाशक के कपास की फसल हो सकती है। जब कपास की फसल 
 कृषि अधिकारी के साथ सवाल-जवाब करते लैंड मोरगेज बैंक के चेयरमैन व किसान।
बिना कीटनाशक के हो सकती हैं तो फिर दूसरी फसलें भी बिना कीटनाशकों के पैदा हो सकती हैं। डा. सैनी ने कहा कि इसी समय धान की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशक प्रयोग करने की बजाए किसान खेत में नमी की मात्रा बरकरार रखें। इससे बीमारियों को आगे बढऩे का मौका नहीं मिल पाएगा। क्योंकि बीमारियों को फैलाने में कीड़े नहीं जीवानु, विषाणु और फफुंद तथा तापमान सहायक हैं। पाठशाला के अंत में सभी खाप प्रतिनिधियों व अतिथिगणों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। 

राख से हुई थी कीटनाशकों की खोज


पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित करते किसान

डा. सैनी ने कहा कि 1934 में भारत में पेस्टीसाइड का पहला कारखाना स्थापित हुआ था। इससे पहले पेस्टीसाइड दूसरे देशों से मंगवाया जाता था। डा. सैनी ने कहा कि पहले किसान फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए फसल में राख का प्रयोग करते थे। पौधों पर राख डालने से पत्तों का टेस्ट चेंज हो जाता था, जिस कारण कीट पत्तों को नहीं खाते थे। इसके अलावा राख से पौधे को काफी मात्रा में पोषक तत्व भी मिलते थे। यहीं से कीटनाशक की खोज हुई और कृषि वैज्ञानिकों ने राख में मिलाकर फसल में डालने वाली बी.एच.सी. की खोज की थी। यह एक जहरीला कीटनाशक था, जो पौधे में कड़वास पैदा कर देता था। बाद में स्प्रे के माध्यम से कीटनाशकों का छिड़काव फसलों में किया जाने लगा। 1965 के बाद खेती में बाजार का हस्तक्षेप बढ़ता चला गया।

पंजाब बना कैंसर की राजधानी

किसान चतर ङ्क्षसह, बलवान, महाबीर, कृष्ण ने कहा कि खेती की क्षेत्र में दूसरे प्रदेशों की बजाए पंजाब प्रदेश एडवांस है। खेती में जो भी नई तकनीक आई, पंजाब ने सबसे पहले उस तकनीक को अपनाया। चाहे वह कीटनाशकों का प्रयोग हो या नई-नई मशीनरी का प्रयोग। इसके चलते ही पंजाब में फसलों में कीटनाशकों का खूब प्रयोग हुआ और आज परिणाम हमारे सामने हैं। कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण ही आज पंजाब में कैंसर के मरीजों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज देश में पंजाब को कैंसर की राजधानी के नाम से जाना जाता है। अगर कीटनाशकों के प्रयोग का सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो बहुत जल्द यही हालात हरियाणा में भी होने वाले हैं।  

कपास में यह-यह कीट थे मौजूद 

पाठशाला के आरांभ में कीटाचार्य किसानों ने कपास की फसल का अवलोकन किया और फसल में मौजूद कीटों का आकलन कर उनकी संख्या को अपनी बही में दर्ज किया। कीटों के आकलन के दौरान कपास की फसल में सफेद मक्खी की संख्या 0.9, हरा तेला 0.6 तथा चूरड़ा शून्य था, जो कि नुक्सान पहुंचाने के आॢथक कागार से काफी नीचे है। इसके अलावा शाकाहारी कीटों को खाने वाले मांसाहारी कीटों में हथजोड़ा, लेडी बर्ड बीटल, मकड़ी, क्राइसोपा, अंगीरा, इरो, इनो भी काफी संख्या में फसल में मौजूद थी। 


शौक पूरा के लिए सरकारी नौकरी को मार दी ठोकर

आई.टी.बी.पी. की नौकरी छोड़ मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है सिवाहा का रोहताश

नरेंद्र  कुंडू
जींद। महंगाई व बेरोजगारी के इस दौर में लोग जहां नौकरी की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं और अपने शौक के विपरित भी जाकर काम करने को मजबूर हैं, वहीं एक शख्स ऐसा भी है, जिसने अपने शौक को पूरा करने के लिए सरकारी नौकरी को ही ठोकर मार दी। जींद जिले के सिवाहा गांव निवासी रोहताश ने मूर्ति कला के अपने शौक को पूरा करने के लिए आई.टी.बी.पी. की नौकरी छोड़ दी। 
मूर्ति कला के क्षेत्र में रोहताश का आज कोई शानी नहीं है। अपने शौक को पूरा करने के साथ-साथ रोहताश अपनी कला के दम पर ही अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा है। 43 वर्षीय रोहताश पिछले 22 वर्षों से मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है और रोहताश द्वारा निर्मित बहुत सी मूर्तियां तो आज जींद जिले ही नहीं बल्कि जींद जिले से बाहर के मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं।   
गांव सिवाहा निवासी रोहताश को पढ़ाई के  दौरान मूर्ति निर्माण का शौक लगा था। रोहताश के अंदर छिपे एक मूर्ति कलाकार को निखाकर बाहर निकालने में उसकी मदद की उसके ड्राइंग अध्यापक महेंद्र भनवाला ने। रोहताश ने छठी कक्षा में पढ़ाई के दौरान अपने गुरु महेंद्र भनवाला से ड्राइंग की बारीकियों को सीखा और अपने अंदर के कलाकार को पहचान कर कागज के टुकड़ों पर मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया। कागज के टुकड़ों के बाद रोहताश ने कच्चे रंगों से मूर्तियों का निर्माण शुरू किया लेकिन जैसे-जैसे समय ने करवट ली और मिट्टी का स्थान सीमैंट ने लेना शुरू किया तो रोहताश ने भी अपने कार्य में परिवर्तन करते हुए सीमैंट से मूर्तियां बनाना शुरू कर दिया। 12वीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी करने के बाद 1989 में रोहताश ने आई.टी.बी.पी. में सिपाही के पद पर नौकरी ज्वाइन कर ली लेकिन रोहताश के अंदर बैठे मूर्ति कलाकार को यह रास नहीं आया। आई.टी.बी.पी. में एक साल तक देश सेवा करने के बाद 1990 में रोहताश ने नौकरी छोड़ दी। सरकारी नौकरी छोडऩे के बाद रोहताश ने अपने शौक को पूरा करने के लिए मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू कर दिया। 43 वर्षीय रोहताश पिछले 22 वर्षों से मूर्तियों का निर्माण कर रहा है लेकिन इस दौरान रोहताश को कभी भी अपने
मूर्ति को अंतिम रुप देता मूर्ति कलाकार रोहताश सिंह।

मूर्ति कलाकार रोहताश द्वारा निर्मित शिव की मूॢतयां।
नौकरी छोडऩे के फैसले पर रतीभर भी अफशोस नहीं हुआ। रोहताश अपने शौक को पूरा करने के साथ-साथ आज अपनी इसी कला के दम पर अपने परिवार का पालन-पोषण भी अच्छे तरीके से कर रहा है। इतना ही नहीं रोहताश हर किस्म की मूर्तियां बनाने का एक्सपर्ट है। 

एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का लग जाता है समय  

मूर्ति कलाकार रोहताश का कहना है कि मूर्ति निर्माण का कार्य काफी बारिकी से करना पड़ता है। मूर्ति के निर्माण में सीमैंट का प्रयोग होने के कारण मूर्ति का थोड़ा-थोड़ा निर्माण करना पड़ता है। इसलिए एक मूर्ति के निर्माण में काफी समय लग जाता है। एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का समय लग जाता है। 

मुनाफे के नहीं लागत के आधार पर तय होती है कीमत 

मूर्ति कलाकार रोहताश का कहना है कि वह मुनाफे के लिए नहीं बल्कि अपने शौक को पूरा करने के लिए मूर्तियों का निर्माण करता है। रोहताश का कहना है कि शौक की कोई कीमत नहीं होती। इसलिए वह अपनी मूर्तियों की कीमत मुनाफा लेने के लिए नहीं सिर्फ लागत पूरी करने के लिए लागत के आधार पर ही मूर्ति की कीमत तय करता है। 
 


अंधाधुंध कीटनाशकों के इस्तेमाल से बढ़ रहा है कैंसर का प्रकोप

फसल में नुक्सान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से कोसों दूर हैं शाकाहारी कीट

नरेंद्र कुंडू 
जींद। हाल ही में हुए एक ताजा सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में कपास बैल्ट वाले क्षेत्र में हर रोज औसतन 18 लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बन रहे हैं। हरियाणा में तो स्वास्थ्य विभाग के पास कैंसर के वास्तुविक स्थिति का सही रिकार्ड ही नहीं है। यू.एस.ए. की पर्यावरण संरक्षण एजैंसी के अनुसार दुनिया में विभिन्न किस्म के पेस्टीसाइडों में से 68 किस्म के ऐसे फंजीनाशक, फफुंदनाशक, खरपतवार नाशक और कीटनाशकहैं जो कैंसर कारक सिद्ध हो चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी भारत में इन पेस्टीसाइडों का धड़ले से प्रयोग हो रहा है। यह बात कीटाचार्य किसान सुरेश अहलावत ने राजपुरा भैण गांव में चल रही डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर कीटाचार्य किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन भी किया।
अहलावत ने कहा कि तम्बाकू को कैंसरकारक बताकर लोगों को गुमराह किया जा रहा है। जबकि वास्तविकता कुछ ओर ही है। उन्होंने कहा कि पंजाब में तो तम्बाकू का सेवन बिल्कुल नहीं होता और वहां की महिलाएं तो तम्बाकू के सेवन से कोसों दूर हैं लेकिन फिर भी वहां कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसमें पुरुषों की बजाए महिलाओं की संख्या ज्यादा है। पंजाब में एक लाख लोगों के पीछे 359 महिलाएं और 325 पुरुष कैंसर से पीडि़त हैं। किसान सत्यवान ईगराह, कृष्ण ईंटल, प्रकाश भैण, सुरेंद्र निडाना, रणबीर ईगराह, दिनेश रधाना ने फसल में कीटों के अवलोकन के बाद बताया कि कपास के इस खेत में सफेद मक्खी की औसतन संख्या 1.9, हरेतेले की संख्या 0.6 और चूरड़े की संख्या शून्य है, जो कि फसल में नुक्सान पहुंचाने के स्तर से कोसों दूर है। उन्होंने बताया कि इन शाकाहारी कीटों को कंट्रोल करने के लिए इस समय फसल में क्राइसोपा के बच्चे, इनो, इरो, सिंगु बुगड़ा, बिन्दुआ, दीदड़ बुगड़ा, हथजोड़ा, भूरी पुष्पक, बीटल, मकड़ी सिरफड़ मक्खी के बच्चे मौजूद हैं। इसकेअलावा शाकाहारी सूबेदार मेजर कीटों में मिलीबग, अल, माइट, लाल व काला बानिया तथा तम्बाकु वाली सूंडी भी मौजूद हैं। किसानों ने बताया कि सफेद मक्खी के प्रकोप के बाद फसल के पत्ते ऊपर से मुड़ जाते हैं और पत्तों का रंग पीला पड़ जाता है। हरे तेले के प्रकोप से पत्ते नीचे की तरफ मुड़ जाते हैं और पत्ते के चारों तरफ लाल रंग के निशान दिखाई देने लगते हैं। उन्होंने कहा कि आज किसानों के सामने कई गंभीर समस्याएं हैं। जब तक किसान को खुद का ज्ञान नहीं होगा, तब तक किसान इन समस्याओं से पार नहीं पा सकता। इसलिए किसान को खुद का ज्ञान पैदा करना होगा और खुद के ही बीज तैयार करने होंगे।

 फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान। 

कीटों की मास्टरनियां अब गीतों के माध्यम से किसानों को देंगी जहरमुक्त खेती का संदेश

दूरदर्शन पर गीत गाती नजर आएंगी कीटों की मास्टरनियां 

दूरदर्शन की टीम ने गीतों की रिकार्डिंग के लिए महिलाओं को दिया निमंत्रण

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीटों की मास्टरनियां अब गीतों के माध्यम से देश के किसानों को जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित करेंगी। इसके लिए इन मास्टरनियों द्वारा कीटों के पूरे जीवनचक्र पर आधा दर्जन के करीब मार्मिक गीतों की रचना की गई हैं। महिलाओं के गीतों की रिकार्डिंग के लिए दूरदर्शन हिसार के निदेशक द्वारा महिलाओं को हिसार स्थित दूरदर्शन के स्टूडियो में आमंत्रित किया गया है। गीतों की रिकार्डिंग के लिए रविवार को निडानी, निडाना व ललितखेड़ा गांव से 2 दर्जन के करीब महिलाएं स्टूडियों में जाएंगी।
जींद जिले में पिछले लगभग 7-8 वर्षों से जहरमुक्त खेती की मुहिम चल रही है। इस मुहिम को आगे बढ़ाने में पुरुष किसानों के साथ-साथ महिला किसान भी अहम भूमिका निभा रही हैं। निडानी, निडाना, ललितखेड़ा व रधाना गांव से लगभग 100 से भी ज्यादा महिलाएं इस मुहिम के साथ जुड़ी हुई हैं। जींद जिले के लोग इन वीरांगनाओं को कीटों की मास्टरनियों के नाम से जानते हैं। जींद जिले में चल रही जहरमुक्त खेती का मुख्य उद्देश्य किसानों को कीटों के बारे में जानकारी देकर कम खर्च से अधिक पैदावार देने के साथ-साथ खाने की थाली को जहरमुक्त करना है। इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कीटों की इन मास्टरनियों द्वारा कीटों पर अधारित लगभग आधा दर्जन गीत तैयार किए गए हैं। इन गीतों में महिलाओं ने कीट हमारे खेत में क्यों आते हैं?, कीटों का फसल में क्या महत्व है?, कीटों के पूरे जीवनचक्र तथा क्रियाकलापों का विस्तार से वर्णन किया गया है। कीटाचार्या अंग्रेजो, राजवंती, सविता, शीला, नारो, सुषमा, नीलम का कहना है कि किसानों द्वारा जानकारी के अभाव में फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है। इसके चलते आज मानव जाति पर एक बहुत बड़ा खतरा मंडराने लगा है। मनुष्य को भिन्न-भिन्न किस्म की गंभीर बीमारियों ने अपनी चपेट में ले लिया है। कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी के बढऩे के पीछे भी फसलों में पेस्टीसाइड का अधिक प्रयोग करना पाया गया है। उन्होंने बताया कि फसलों में अधिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से जहां हमारा खान-पान व वातावरण दूषित हो रहा है, वहीं किसान के सिर पर फसलों में मौजूद लाखों किस्म के बेजुबान कीटों की हत्या के पाप का बोझ भी बढ़ रहा है। किसान यह सब इसलिए कर रहा है क्योंकि किसान इस चीज की जानकारी नहीं है। किसान के पास आज खुद का ज्ञान नहीं है और दूसरों के ज्ञान केे बूते ही किसान आज इस अंतहीन जंग के मैदान में डटा हुआ है। महिला किसानों का कहना है कि हमारी संस्कृति में महिलाओं के गीतों का बहुत महत्व है। विवाह-शादी जैसे शुभ कार्यों में महिलाओं द्वारा मंगल गीत गाए जाते हैं। बिना महिलाओं के गीतों के इस तरह के शुभ कार्य अधुरे से नजर आते हैं। जींद जिले के किसानों द्वारा जहरमुक्त खेती की जो मुहिम चलाई गई है, वह एक जनहित का कार्य है। इस मुहिम में समस्त मानव जाति की भलाई छिपी हुई है। जनहित के कार्य से शुभ कोई कार्य नहीं होता। इसलिए उन्होंने इस शुभ कार्य को पूरा करने के लिए इन गीतों की रचना की है। गीतों के माध्यम से वह देश के किसानों को जहरमुक्त खेती का संदेश देना चाहती हैं। ताकि अधिक से अधिक किसानों को प्रेरित कर इस मुहिम से जोड़ा जा सके।

यह है महिलाओं द्वारा रचित गीत

'पिया जी तेरा हाल देख कै मेरा कालजा धड़कै हो, तेरे कांधे ऊपर जहर की टंकी मेरै कसुती रड़कै हो'। 'किडय़ां का कट रहया चालाए ए' मैनै तेरी सूं देखया ढंग निराला ए मैनै तेरी सूं'। 'म्हारी पाठशाला में आईए हो-हो नंनदी के बीरा तैनै न्यू तैनै न्यू मित्र कीट दिखाऊं हो हो नंनदी के बीरा'। 'मैं बिटल हूं मैं किटल तुम समझो मेरी महता को'। 'ए बिटल म्हारी मदद करो हामनै तेरा एक सहारा है, जमीदार का खेत खालिया तनै आकै बचाना है'। 'निडाना-खेड़े की लुगाइयां नै बढ़ीया स्कीम बनाई है, हमनै खेतां में लुगाइयां की क्लाश लगाई है'।  'अपने वजन तै फालतु मास खावै वा लोपा माखी आई है' इत्यादि।

दूरदर्शन के इतिहास में जुड़ेगा नया अध्याय 

जींद जिले के किसानों ने एक अनोखी मुहिम शुरू की है। इस मुहिम में महिलाओं का अहम योगदान हैं। महिलाओं द्वारा आज तक जितने भी गीत गाए जाते थे, वह सभी हमारे आम जीवन पर आधारित थे लेकिन यहां की महिलाओं ने कीटों के जीवन पर गीत लिखकर एक अलग तरह की शुरूआत की है। इन गीतों में महिलाओं ने यह दर्शाया है कि कीटों का हमारी फसलों में क्या महत्व है। महिलाओं की जनहित की भावना को देखते हुए दूरदर्शन ने उन्हें गीतों की रिकार्डिंग के लिए आमंत्रित किया है। इस तरह के गीतों की रिकार्डिंग कर दूरदर्शन के इतिहास में भी एक नया अध्याय जुड़ेगा। इसेस पहले दूरदर्शन पर इस तरह के किसी कार्यक्रम की रिकार्डिंग नहीं की गई है।
जिले सिँह जाखड़, डायरैक्टर
दूरदर्शन, हिसार 

विदेश से आई हिंदी कवि को तर्क-वितर्क की खुली चुनोती

कुमार विश्वास द्वारा फेसबुक पर जाट समुदाय और खापों के प्रति की जा रही हैं गलत टिप्पणियां

नरेंद्र कुंडू 
जींद। मशहूर हिंदी कवि एवं आप पार्टी के कार्यकर्त्ता कुमार विश्वास द्वारा रोहतक में हुई ऑनर किलिंग के मामले में सोशल नैटवॢकंग साइट फेशबुक पर जाट समुदाय और खाप पंचायतों पर की जा रही उल-जुलुल टिपणियों के खिलाफ कड़ा संज्ञान लेते हुए फ्रांस में ई-मार्कीटिंग कंसलटैंट के पद पर कार्यरत जींद जिले के गांव निडाना निवासी फूलकुमार ने कुमार विश्वास को पब्लिक स्टेज पर तर्क-वितर्क के लिए आमंत्रित किया है। फूलकुमार का कहना है कि किसी परिवार विशेष की गलती के कारण पूरे समुदाय के खिलाफ गलत टिपणियां ठीक नहीं हैं।
फूलकुमार ने फ्रांस से इंटरनैट के माध्यम से भेजी एक ई-मेल में कहा कि वह न तो प्रेम विवाह के खिलाफ  हैं और न ही ऑनर किलिंग के समर्थक हैं लेकिन जब समाज में एक सभ्य छवि तथा महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले कुमार विश्वास जैसे कविता पाठक, जिसके वह खुद कायल हैं भी ऐसे गैर जिम्मेदाराना ब्यान-बाजी कर रहे हैं तो, वह खुद को उन्हें खुले तौर पर तर्क-वितर्क से रोक नहीं पाए। फूलकुमार ने कहा कि पिछले दिनों रोहतक में हुई एक ऑनर किलिंग की घटना पर कुमार विश्वास द्वारा फेसबुक पर जाट समुदाय और खापों के खिलाफ गलत टिप्पणियां की जा रही हैं। रोहतक में हुई ऑनर किलिंग समाज के लिए बेहद शर्मनाक है लेकिन इस तरह की घटना के साथ किसी जात या किसी समुदाय को जोडऩा उससे भी ज्यादा शर्मनाक है।
 फूलकुमार का फोटो।   
फूलकमार ने देश की राजधानी दिल्ली में हुए आरुषी हत्याकांड तथा विगत वर्ष पानीपत में हुई इंदू शर्मा की ऑनर किलिंग के मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि यह दोनों कांड भी तो ऑनर किलिंग थे, जो अभी तक अदालत में विचाराधीन है। शायद यह दोनों घटनाएं एक समाज विशेष में नहीं हुई। इसलिए इनको ले किसी ने जाति या सामाजिक संस्थाओं पर टिप्पणी नहीं की। उक्त दोनों घटनाओं से यह साफ हो रहा है कि ऑनर किलिंग जैसी घटना किसी विशेष कास्ट या वर्ग की नहीं बल्कि छोटी मानसिकता या मामले का सही तरीके से नहीं संभाल पाने का परिणाम है। अगर इस तरह के मामालों को ठंडे दिमाग व सही सोच से निपटाने की कोशिश की जाए तो इसका आसानी से हल निकाला जा सकता है। उन्होंने कहा कि रोहतक में हुई ऑनर किलिंग की घटना न तो जाट समुदाय की देन है और न ही किसी खाप पंचायत की। यह घटना दोनों परिवारों की अपनी अल्पमति और मामले को ठीक से नहीं संभाल पाने का नतीजा है। जाट समाज और खाप पंचायतें प्रेम विवाह के खिलाफ नहीं हैं। किसी परिवार विशेष की नादानी के कारण पूरे जाट समाज या खापों को बदनाम करना कहां तक ठीक है? फूलकुमार ने कुमार विश्वास को चैलेंज करते हुए कहा कि अगर वह वास्तव में प्रेम विवाह के पक्षधर हैं और ऑनर किलिंग के खिलाफ हैं तो विवाह के समय लड़का-लड़की की कुंडली मिलाने और गौत्र मिलाने की रीति-रिवाज को, समाचार पत्रों में ब्याह-शादी के जाति धर्म की प्राथमिकता के आधार पर दिए जाने वाले विज्ञापनों को क्यों नहीं बंद करवाते। फूलकुमार ने कहा कि कुमार विश्वास किसी भी समय, किसी भी माध्यम से उसके साथ तर्क-वितर्क कर सकते हैं। वह हर वक्त इसके लिए तैयार हैं। निडाना हाइट्स वैबसाइट के ऑनर फूलकुमार ने कहा कि खाप पंचायतों का एक सामाजिक चेहरा भी है। अगर खाप पंचायतों के इतिहास पर नजर डाली जाए तो खापों ने बड़े-बड़े विवादों को भी सुलझाया है। खाप पंचायतों का पूरा इतिहास उन्होंने अपनी वेबसाइट पर भी डाला हुआ है। खाप एक संस्था नहीं, बल्कि एक सामाजिक गुण भी है, ऐसा गुण कि जो बुद्धिजीव जनता की नब्ज पकडऩे का हुनर रखते हैं। उन्होंने कहा कि जनता की इस नब्ज को पकडऩे के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तक सारी उम्र शोध करते रह जाते हैं लेकिन कभी पकड़ नहीं पाते।

अब दूरदर्शन में भी सुनाई देगा जींद के किसानों का जहरमुक्त खेती का संदेश

दूरदर्शन की टीम ने किसानों के अनुभव की रिकार्डिंग के कार्यक्रम को दिया फाइनल टच

नरेंद्र कुंडू  
जींद। जिले के किसानों द्वारा शुरू की गई जहरमुक्त खेती की मुहिम से देशभर के किसानों को रू-ब-रू करवाने के लिए कीटाचार्य किसानों के अनुभव को कैमरे में कैद करने के लिए जींद पहुंची दिल्ली दूरदर्शन की टीम ने राजपुरा भैण गांव के खेतों में जाकर कीटाचार्य किसानों के अनुभवों और क्रियाकलापों को शूट किया। इस दौरान किसानों ने दूरदर्शन की टीम को कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों क्रियाकलाप भी दिखाए। जींद जिले के किसानों द्वारा शुरू की गई इस अनोखी मुहिम को देखकर दिल्ली दूरदर्शन की टीम भी इन किसानों की कायल हो गई। इस अवसर पर कृषि विभाग से सेवानिवृत्त एस.डी.ओ. राजपाल सुरा भी हांसी से किसानों की एक टीम के साथ यहां पहुंचे थे।
जींद जिले के किसानों द्वारा कीट ज्ञान के दम पर की जा रही जहरमुक्त खेती के चर्चे सुनकर दिल्ली दूरदर्शन की टीम प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना के नेतृत्व में वीरवार को ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची। यहां पर टीम के सदस्यों ने महिलाओं से कीटों के बारे में विस्तार से चर्चा की और उनके क्रियाकलापों को कैमरे में कैद किया। इसके बाद टीम शनिवार को राजपुरा भैण गांव के खेतों में पहुंची और यहां कीटाचार्य किसानों से भी कीट ज्ञान पर चर्चा की। टीम के सदस्यों ने शनिवार देर सायं तक किसानों के क्रियाकलापों को सांझा करते हुए दर्जनभर से भी ज्यादा किसानों के अनुभवों को कैमरे में कैद किया। कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक, मनबीर ईगराह, बलवान, ईंटलकलां के जयभगवान, रणधीर सिंह ने बताया कि वह पिछले 5 वर्षों से कीटनाशक रहित खेती कर रहे हैं। बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए उनकी पैदावार उन किसानों से ज्यादा आ रही है, जो कीटनाशकों का
कीटों का बही खाता तैयार करते टीम के सदस्य। 
अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस तरह वह कम खर्च से अधिक पैदावार तो ले ही रहें हैं, साथ-साथ अपने परिवार की थाली से जहर के स्तर को कम करने का प्रयास भी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह अब तक 204 किस्म के कीटों की पहचान कर चुके हैं, जिनमें 43 किस्म के शाकाहारी तथा 161 किस्म के मांसाहारी शामिल हैं। फसल में शाकाहारी कीटों की तादाद मांसाहारी कीटों से काफी कम होने के कारण मांसाहारी कीट अपने खुद ही शाकाहारी कीटों को कंट्रोल कर लेते हैं। इसलिए उन्हें फसल में कीटनाशकों के प्रयोग की जरुरत नहीं है। किसानों ने बताया कि कीटनाशकों का व्यापार भय व भ्रम के दम पर चल रहा है। पहले तो किसान को कीटों से फसल में होने वाले नुक्सान का झूठा भय दिखाया जाता है और फिर उन्हें भ्रमित कर फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल करना सिखाया जाता है लेकिन जींद जिले के लगभग 2 दर्जन गांवों के किसानों ने अपना खुद का ज्ञान पैदा कर इस भय व भ्रम के जाल को तोडऩे का काम किया है। आज जींद जिले में 200 से ज्यादा पुरुष किसान और 100 से ज्यादा महिला किसान इस मुहिम के साथ जुड़ी हुई हैं। जींद जिले में एक हजार एकड़ कपास और एक हजार एकड़ के लगभग धान की ऐसी खेती की जा रही है, जिसमें एक छटांक भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया गया है। कीट ज्ञान के बल पर उन्होंने यह सिद्ध कर के दिखा दिया है कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। सिरसाखेड़ी गांव से आए किसान कर्मबीर ने बताया कि वह भी इस वर्ष से इस मुहिम के साथ जुड़ा है और उसने इन पाठशालाओं में आकर ऐसी काफी ज्ञानवर्धक जानकारियां हासिल की हैं, जिनके बारे में एक आम किसान कभी सोच भी नहीं सकता। इस दौरान किसानों ने दूरदर्शन की टीम को कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के क्रियाकलाप भी दिखाए। बाद में टीम के सभी सदस्यों को स्मृति चिह्न भेंट कर जींद पहुंचने पर उनका आभार व्यक्त किया।
 कीटाचार्य किसानों के अनुभव शूट करते दूरदर्शन की टीम के सदस्य।