बुधवार, 23 अप्रैल 2014

चाइना का रिकार्ड तोड़ेगा म्हारा मूर्ति कलाकार

वर्ल्ड रिकार्ड बनाने के लिए आठ फुट की केतली बना रहा कालवा का रामकिशन
इससे पहले चाइना के नाम है सबसे बड़ी केतली बनाने का रिकार्ड 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। पिल्लूखेड़ा खंड के गांव कालवा निवासी मूर्ति कलाकार रामकिशन (43) हस्तकला में चाइना का रिकार्ड तोडऩे जा रहा है। रामकिशन मिट्टी से आठ फुट की केतली बनाकर वर्ल्ड रिकार्ड बना कर गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज करवाने की तैयारी कर रहा है। इससे पहले यह रिकार्ड चाइना के नाम है। चाइना के सनबाओ क्सू ने 2006  में 5  फुट 10  इंच ऊंची तथा 60 किलोग्राम की केतली बनाकर यह रिकार्ड अपने नाम किया था। अब रामकिशन 60 किलोग्राम वजन में ही 8 फीट की केतली तैयार कर चाइना के इस रिकार्ड को तोड़कर वर्ल्ड रिकार्ड को अपने नाम करने जा रहा है। रामकिशन 7 घंटे में आठ फीट की केतली तैयार करेगा। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स लंदन द्वारा जारी की गई गाइड लाइन के अनुसार रामकिशन द्वारा केतली के निर्माण की बकायदा वीडियो रिकार्डिंग भी करवाई जा रही है। इससे पहले रामकिशन अंगूठे के नाखून पर 05 सेंटीमीटर की मट्टी बनाकर भी खुब सुॢखयां बटोर चुके हैं।
हस्तकला में महारत हासिल कर चुका गांव कालवा निवासी रामकिशन डीएवी स्कूल थर्मल पानीपत में फाइन आर्ट के अध्यापक हैं और उन्हें वर्ल्ड रिकार्ड बनाने की यह प्रेरणा डीएवी संस्था के निदेेशक डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी से ही मिली है। डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी की प्रेरणा से प्रेरित होकर रामकिशन ने हस्तकला में नया रिकार्ड बनाने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स लंदन को ईमले भेजकर अप्लाई किया था। गिनीज बुक ऑफ  वर्ल्ड रिकार्ड के इवा नोरोय जो इस रिकार्ड को निर्देशित कर रहे हैं ने रामकिशन को नया रिकार्ड बनाने की अनुमति दे दी। गिनीज बुक में अब तक यह रिकार्ड चाइना के नाम है। 
वर्ल्ड रिकार्ड के लिए 8 फुट की केतली तैयार करता कालवा निवासी रामकिशन।
चाइना के सनबाओ क्सू ने 2006 में 5  फुट 10 इंच ऊंची और 60 किलोग्राम भार की चाय की केतली बनाकर यह रिकार्ड बनाया था। इस बर्तन में एक साथ 10 किलोग्राम सुखी चाय आ सकती है। गांव कालवा निवासी रामकिशन अब 60 किलोग्राम भार में 8 फुट ऊंची चाय की केतली बनाकर चाइना के इस रिकार्ड को तोडऩे जा रहा है। यदि रामकिशन इस रिकार्ड को तोड़ देता है तो विश्व के मानचित्र पर जींद जिले ही नहीं बल्कि हरियाणा का नाम सुनहरी अक्षरों में लिखा जाएगा। 

केतली के निर्माण के लिए अलग से किया 4 फुट का चॉक

रामकिशन ने वर्ल्ड रिकार्ड के लिए 8 फुट की केतली के निर्माण के लिए अलग से स्पेशल सीमेंट का 4 फुट का चॉक तैयार किया है। रामकिशन द्वारा 40 किलो मिट्टी से यह 8 फुट की केतली तैयार की जाएगी। केतली के निर्माण के लिए रामकिशन द्वारा कोई स्पेशल मिट्टी का प्रबंध नहीं किया गया है, बल्कि साधारण मिट्टी से ही रामकिशन द्वारा यह केतली तैयार की जा रही है।

इससे पहले अंगूठे पर मटकी बना कर सुर्खियां बटोर चुका है रामकिशन 

वैसे तो हस्तकला में रामकिशन को कोई मुकाबला नहीं है। देश के बड़े-बड़े क्रांतिकारियों, महापुरुषों, नेताओं, खिलाडिय़ों सहित रामकिशन भिन्न-भिन्न किस्म की मूर्तियां बना चुका है लेकिन रामकिशन ने अंगूठे पर 0.5  सेंटीमीटर की मटकी बनाकर खूब सुर्खियां बटोरी थी।


वर्ल्ड रिकार्ड के लिए 8 फुट की केतली तैयार करता कालवा निवासी रामकिशन।


वर्ल्ड रिकार्ड्स लंदन द्वारा जारी किये गए अनुमति पत्र को दिखाता रामकिशन। 





गूंजने से पहले ही शांत हो रही किलकारियां

जननी एवं शिशु सुरक्षा योजना पर लगा सवालिया निशान
आरटीआई से मिली सूचना से हुआ खुलासा

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले में शिशु मृत्युदर का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। अगर स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो स्वास्थ्य विभाग शिशु मृत्यु दर को कम करने में नाकाम साबित हो रहा है। शिशु मृत्युदर के मामलों में हो रही बढ़ौतरी के कारण स्वास्थ्य विभाग द्वारा शुरू की गई जननी एवं शिशु सुरक्षा योजना पर सवालिया निशान लग गया है।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा डिलिवरी के दौरान महिला तथा शिशु की मृत्युदर के मामलों में कमी लाने के लिए जननी एवं शिशु सुरक्षा योजना शुरू की गई थी। जननी शिशु सुरक्षा योजना के तहत सरकारी अस्पताल में डिलिवरी के लिए आने वाली गर्भवती महिलाओं को सभी स्वास्थ्य सुविधाएं निशुल्क मुहैया करवाई जाती हैं लेकिन स्वास्थ्य विभाग लाख प्रयास के बावजूद भी शिशु मृत्युदर के मामलों में कमी लाने में नाकाम साबित हो रहा है। आरटीआई कार्यकत्र्ता सुरेश पूनिया द्वारा आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना के तहत स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए गए आंकड़े वास्तव में चौंकाने वाले हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों पर यदि नजर डाली जाए तो सामान्य अस्पताल में डिलिवरी के दौरान शिशु मृत्युदर का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। इससे स्वास्थ्य विभाग की जननी एवं शिशु सुरक्षा योजना पर सवाल उठने लगे हैं।
 जींद के सामान्य अस्पताल का फोटो।

जिले के सरकारी अस्पतालों में नहीं नर्सरी की सुविधा

जिले में जींद, नरवाना तथा सफीदों में तीन सामान्य अस्पताल हैं लेकिन तीनों अस्पतालों में कहीं पर भी नवजात बच्चों के उपचार के लिए नर्सरी की सुविधा नहीं है। जींद के सामान्य अस्पताल में कागजों में तो नर्सरी तैयार हो चुकी है लेकिन अभी तक इस नर्सरी में बच्चों के उपचार का कार्य शुरू नहीं हो पाया है। सरकारी अस्पतालों में नर्सरी की सुविधा नहीं होने के कारण परिजनों को नवजात बच्चों के उपचार के लिए या तो पीजीआई में जाना पड़ता है या फिर शहर के निजी अस्पतालों का रूख करना पड़ता है।

जींद के सामान्य अस्पताल में नवजात शिशुओं के लिए यह नहीं हैं सुविधाएं 

जींद के सामान्य अस्पताल में नवजात शिशुओं के उपचार के लिए कृत्रिम श्वांस, सैंटर लाइन ऑक्सिजन, नवजात शिशुओं के मुख्य टैस्टों तथा बच्चों के अल्ट्रासाऊंड की सुविधा नहीं है। सामान्य अस्पताल में यह सुविधाएं नहीं होने के कारण भी शिशु मृत्युदर के मामलों में लगातार बढ़ौतरी हो रही है।

मरीजों को समय पर नहीं मिल पाता उपचार 

अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण सामान्य अस्पताल में डिलिवरी के लिए आने वाली गर्भवती महिलाओं को समय पर पूरी सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। मरीज इलाज के लिए भटकते रहते हैं। सामान्य अस्पताल में जच्चा-बच्चा के लिए आधुनिक सुविधाएं नहीं हैं। सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों की भारी कमी है लेकिन जितना भी स्टाफ यहां फिलहाल मौजूद है, वह भी अच्छे तरीके से अपनी ड्यूटी नहीं निभाता है। यहां पर मौजूद स्टाफ मरीज का सही तरीके से उपचार करने की बजाए मरीज को यहां से रैफर करने में ज्यादा विश्वास रखता है। सही समय पर पूरा उपचार नहीं मिल पाने के कारण ही सरकारी अस्पतालों से लोगों का विश्वास दिन-प्रतिदिन कम हो रहा है और लोग मजबूरीवश निजी अस्पतालों का रुख करने पर मजबूर हैं।
सुरेश पूनिया
आरटीआई कार्यकर्ता  

आरटीआई के तहत प्राप्त जुलाना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के आंकड़े

वर्ष कुल डिलिवरी लड़के लड़कियां मृत बच्चे
2012  1935  1024     911       21 
2013  1725  927       798        20

आरटीआई के तहत प्राप्त सामान्य अस्पताल जींद के आंकड़े

वर्ष कुल डिलिवरी लड़के  लड़कियां मृत बच्चे 
2010      2381  1341     1102        62
2011      2809  1359     1286        18
2012      2532  1325     1169  77
2013      3381  1809      1522  79

आरटीआई के तहत प्राप्त सामान्य अस्पताल नरवाना के आंकड़े

वर्ष कुल डिलिवरी      लड़के  लड़कियां मृत बच्चे 
2010         1098  615          483            18 
2011         1350   727  623             26 
2012         1408   747  661            19  
2013         1657           854  775            28

आरटीआई के तहत प्राप्त सामान्य अस्पताल सफीदों के आंकड़े

वर्ष कुल डिलिवरी लड़के  लड़कियां मृत बच्चे
2010 1481 774 707      15
2011   731 391          340 5
2012   804 429          375      5
2013   659 345            14 5




शनिवार, 19 अप्रैल 2014

कागजों में ही सिमटी पायका खेल योजना

ऐसे में कैसे तैयार होंगे खिलाड़ी
जिला खेल कार्यालय द्वारा 2009 -10 में ग्राम पंचायतों को भेजा गया था खेल का सामान
चार साल बाद भी मैदान में नहीं लग पाए बास्केट बाल और वालीबाल के पोल

नरेंद्र कुंडू
जींद। भारत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई पंचायत युवा क्रीडा योजना (पायका) कागजों तक ही सिकुड कर रह गई है। जिला खेल कार्यालय द्वारा 2009-10 में ग्राम पंचायतों को भेजे गए बास्केट बाल तथा वालीबाल के पोल आज तक मैदान में नहीं लग पाए हैं। जिला खेल विभाग तथा ग्राम पंचायतों की बेरुखी के चलते चार साल से बास्केट बाल तथा वालीबाल के पोल जमीन पर ही जंग की भेंट रहे हैं लेकिन न तो ग्राम पंचायतें इनकी सुध ले रही हैं और न ही खेल विभाग इन पोलों को मैदान में लगवाने में रुचि दिखा रहा है। जिला खेल विभाग की लापरवाही के चलते ग्रामीण क्षेत्र के खिलाडिय़ों को सरकार की इस योजना का कोई लाभ नहीं मिल पाया है।
भारत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में छिपी खेल प्रतिभाओं को निखार कर ग्रामीण आंचल से अच्छे खिलाड़ी तैयार करने के उद्देश्य से पंचायत युवा क्रीड़ा योजना (पायका) शुरू की है। सरकार की इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिए सभी गांवों में कोच व खेल किटें उपलब्ध करवाई जा रही हैं। सरकार खेल प्रतिभाओं को बढ़ाने के लिए पायका योजना के माध्यम से करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। पायका योजना के तहत खेल विभाग द्वारा गांवों में खिलाडिय़ों के लिए खेल का सामान उपलब्ध करवाने के लिए प्रत्येक गांव में एक-एक लाख रुपए खर्च कर बास्केट बाल, वालीबाल, रेसलिंग मैट तथा वेट ट्रेनिंग सेट दिए जा रहे हैं। पायका योजना के तहत 2009-10 में जिले से 50 गांवों को चुना गया था। खेल विभाग द्वारा इन 50 गांवों में खिलाडिय़ों के लिए खेल का सामान उपलब्ध करवाने के लिए 35 गांवों को वालीवाल व बास्केटबाल का सामान तथा 15 गांवों को रेसलिंग के मैट दिए गए थे। इसके अलावा इन सभी 50 गांवों में वेट ट्रेनिंग सैट भी दिए गए थे।

यह था प्रावधान

पायका योजना के तहत 2009-10 में गांवों को भेजे गए बास्केट बाल तथा वालीबाल के पोलों को मैदान में सैट करवाने की जिम्मेदारी खेल विभाग ने गांव के लिए नियुक्त किए गए कोच, गांव के सरकारी स्कूल के मुख्याध्यापक तथा ग्राम पंचायत को सौंपी थी। बास्केट बाल तथा वालीबाल के पोल को मैदान में सैट करवाने के बाद कोच व ग्राम पंचायत को इस पर आने वाले खर्च का बिल तैयार करवाकर जिला खेल कार्यालय को देना था। इसके बाद जिला खेल कार्यालय द्वारा इस खर्च का भुगतान किया जाना था लेकिन न तो कोच व ग्राम पंचायत ने इस तरफ ध्यान दिया और न ही खेल विभाग ने। कुछ गांवों में तो कोच व ग्राम पंचायत ने अपने स्तर पर इन पोलों को मैदान में लगवा दिया लेकिन विभाग की अनदेखी के चलते ज्यादातर गांवों में आज भी बास्केट बाल तथा वालीबाल के यह पोल खुले आसमान के नीचे जंग खा रहे हैं।

 विभाग की लापरवाही के कारण पिल्लूखेड़ा खंड के भूराण गांव में पड़ा बास्केट बाल का पोल। 



अनाज मंडी में आढ़तियों की दया पर रहेगा किसानों का पीला सोना

46 एकड़ की अनाज मंडी में महज 2 शैड
इस बार किसानों के अरमानों पर पानी फेर सकती है बरसात
बरसात के कारण गेहूं की फसल को नुकसान

नरेंद्र कुंडू
जींद। इस बार अनाज मंडी में गेहूं की फसल लेकर आने वाले किसानों का पीला सोना आढ़तियों की दया पर रहेगा। क्योंकि मार्केटिंग बोर्ड प्रबंधन द्वारा अनाज मंडी में बिक्री के लिए आने वाले गेहूं को बरसात से बचाने के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं की गई। 46 एकड़ की अनाज मंडी में महज 2 शैड ही हैं। एक शैड की गेहूं स्टाक की क्षमता महज 50 लाख क्विंटल की है। जबकि अनाज मंडी में आवक इससे कई गुणा ज्यादा है। इसके अलावा बोर्ड द्वारा किसान की 6 माह की मेहनत को बरसात से बचाने की कोई ओर व्यवस्था नहीं है। ऐसे में यदि मौसम इसी तरह खराब रहा तो किसानों के अरमानों पर पानी फिर सकता है। अनाज मंडी में गेहूं बिक्री के लिए आने वाले किसानों को अपनी फसल को बरसात से बचाने के लिए या तो खुद ही व्यवस्था करनी होगी या फिर किसानों को आढ़तियों से सहारा लेना होगा। 
खेतों में खड़ी गेहूं की फसल।
गेहूं की कटाई का कार्य शुरू हो चुका है जल्द ही गेहूं की फसल अनाज मंडियों में पहुंचनी शुरू हो जाएगी लेकिन मौसम के बिगड़ते मिजाज को देखते हुए मंडी में पहुंचने के बाद भी किसान की मेहनत पानी में मिल सकती है। क्योंकि मंडी में गेहूं की फसल की खरीद-फरोखत से लेकर किसानों के लिए मूलभूत सुविधाओं का दम भरने वाले मंडी मार्केटिंग बोर्ड द्वारा किसानों की गेहूं की फसल को बरसात से बचाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है। इस समय अनाज मंडी में सिर्फ 2 शैड ही हैं, जिनकी क्षमता महज 50-50 लाख क्विंटल की ही है। जबकि गेहूं की आवक इससे कई गुणा ज्यादा होती है। यदि पिछले सीजन पर नजर डाली जाए तो जींद अनाज मंडी में 60 लाख क्विंटल गेहूं की आवक हुई थी। गेहूं के सीजन के दौरान यदि बरसात का मौसम इस तरह से चलता रहा तो अनाज मंडी में पहुंचने के बाद गेहूं की फसल को बरसात से बचाने के लिए किसान को या तो खुद ही व्यवस्था करनी पड़ेगी या फिर आढ़ती पर आश्रित होना पड़ेगा। शैड के अलावा मंडी में आने वाली गेहूं की फसल को बरसात से बचाने के लिए मंडी बोर्ड के पास कोई इंतजाम नहीं है। 

बरसात फेर सकती है किसानों के अरमानों पर पानी

गेहूं की फसल पककर तैयार हो चुकी है। किसान कटाई के कार्य में लग चुके हैं लेकिन गत रात्रि से शुरू हुई बरसात ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। यदि गेहूं की कटाई के दौरान बरसात इसी तरह अटखेलियां करती रही तो किसानों की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस बरसात से गेहूं और सरसों की फसल को भारी नुकसान होगा। बरसात के कारण गेहूं की फसल के उत्पादन पर भारी प्रभाव पड़ेगा। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उत्पादन के साथ-साथ किसानों के सामने चारे का संकट भी खड़ा हो सकता है क्योंकि बरसात के मौसम को देखते हुए किसान हाथ से गेहूं की कटाई करने की बजाए कम्बाइन से कटाई को प्राथमिकता दे सकते हैं। यदि कम्बाइन की कटाई के रकबे में वृद्धि हुई तो किसानों के सामने पशुओं के चारे का संकट खड़ा हो सकता है। 

शैडों के नीचे पड़ी है सरसों और कपास की फसल 

गेहूं की कटाई शुरू हो चुकी है जल्द ही अनाज मंडी में फसल पहुंचनी शुरू हो जाएगी लेकिन बरसात के मौसम को देखते हुए किसानों को मंडी में गेहूं की फसल के बारिश में भीगने का डर सता रहा है। क्योंकि अनाज मंडी में बरसात के दौरान गेहूं की फसल को भीगने से बचाने के लिए मंडी में कोई व्यवस्था नहीं है। 46 एकड़ में बनी अनाज मंडी में महज २ शैड हैं और इस समय इन शैडों के नीचे भी कपास और सरसों की फसल पड़ी हुई है। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि यदि मंडी में गेहूं की आवक के दौरान बरसात दस्तक देती है तो ऐसी स्थिति में मंडी प्रशासन के पास गेहूं की फसल को बरसात से बचाने की क्या व्यवस्था है। 

अनाज मंडी में शैड के नीचे पड़ी कपास तथा सरसों की फसल






शनिवार, 5 अप्रैल 2014

जहरीले पानी से मुक्ति दिलवाने की तैयारी

नहरी पानी मुहैया करवाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग ने तैयार किया प्रारुप

पानी में बढ़ते फ्लोराइड व टीडीएस के कारण लिया फैसला 

नरेंद्र कुंडू
जींद। अंधाधुंध भूजल दोहन के कारण जहरीले हो रहे पेयजल से शहर के लोगों को मुक्ति दिलवाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग ने कवायद शुरू कर दी है। इसके लिए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर के लोगों को नहरी पानी सप्लाई की योजना तैयार की जा रही है। शहर के लोगों को नहरी पानी मुहैया करवाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर के बीचोंबीच से गुजर रही हांसी ब्रांच नहर के पास 106 एकड़ में बूस्टिंग स्टेशन तैयार किया जाएगा। योजना को अमल में लाने के लिए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा इसका प्रारूप तैयार किया जा रहा है। प्रारूप तैयार होते ही इसकी मंजूरी के लिए विभाग के उच्च अधिकारियों को भेजा जाएगा। उच्चाधिकारियों से मंजूरी मिलते ही योजना पर अमल शुरू कर दिया जाएगा। शहर में नहरी पानी की सप्लाई शुरू होने पर शहर के लोगों को पानी में बढ़ रहे फ्लोराइड तथा टीडीएस से निजात मिल जाएगी। 
इस समय शहर की आधी से अधिक आबादी को पेयजल मुहैया करवाने का जिम्मा जन स्वास्थ्य विभाग के कंधों पर है। खुलेआम हो रही जल की बर्बादी तथा दिन-प्रतिदिन बढ़ती पानी की मांग के कारण हो रहे भूजल के दोहन के कारण भूमिगत पानी लगातार जहरीला हो रहा है। पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा बढऩे के कारण भूमिगत जल पीने लायक नहीं बचा है। इसी कारण लोगों में हड्डियों तथा जोड़ों की बीमारियां बढऩे के मामले भी लगातार सामने आने लगे हैं। पानी में बढ़ती फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा के कारण भविष्य में पेयजल से होने वाले खतरे को भांपते हुए अब जन स्वास्थ्य विभाग शहर के लोगों को इस जहरीले पानी से निजात दिलाने की कवायद में जुट गया है।  जन स्वास्थ्य विभाग अब शहर में नहरी पानी की सप्लाई की योजना तैयार कर रहा है। इसके लिए विभाग द्वारा शहर के बीचों-बीच से गुजर रही हांसी ब्रांच नहर के पास 106 एकड़ में बूस्टिंग स्टेशन तैयार किया जाएगा। बूस्टिंग स्टेशन से अंडर ग्राऊंड पाइप लाइन के माध्यम से शहर में पानी की सप्लाई की जाएगी। इसके लिए विभाग द्वारा प्रारूप तैयार किया जा रहा है। प्रारूप तैयार होते ही योजना को अमल में लाने के लिए विभाग ग्रांट की मंजूरी के लिए इसे उच्चाधिकारियों के पास भेजेगा। उच्चाधिकारियों से मंजूरी मिलते ही योजना पर अमल शुरू किया जाएगा। 

47 ट्यूब्वैल और 13 हजार कनैक्शन

जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर में पेयजल की सप्लाई के लिए 47 ट्यूब्वैल लगाए गए हैं। इस समय जन स्वास्थ्य विभाग के पास शहर में कुल 13 हजार कनैैक्शन हैं। इन 47 ट्यूब्वैल के सहारे शहर के दो लाख से अधिक लोगों को पानी की सप्लाई किया जा रहा है। खुलेआम पानी की बर्बादी तथा पानी की अधिक मांग के कारण भूमिगत पानी का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। इससे जमीनी पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा बढ़ रही है और पानी पीने लायक नहीं बचा है।  

पेयजल में बढ़ते फ्लोराइड और टीडीएस से मिलेगी निजात

जमीनी पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा लगातार बढ़ रही है। इससे जमीनी पानी पीने योग्य नहीं बचा है। इसको देखते हुए जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहर में नहरी पानी की सप्लाई शुरू करने की योजना बनाई जा रही है। योजना के सिरे चढऩे के बाद शहर के लोगों को फ्लोराइड तथा टीडीएस से निजात मिलेगी। 

यह है पानी में फ्लोराइड व टीडीएस की मात्रा 

पानी में फ्लोराइड की मात्रा एक मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए। जबकि शहर में इसकी मात्रा चार से पांच मिलीग्राम प्रति लीटर है। शहर में पानी का टीडीएस भी ज्यादा है। 200 टीडीएस तक का पानी पीने लायक होता है। इससे अधिक टीडीएस के पानी से बीमारियां होने का खतरा बन जाता है। जबकि शहर के पानी में टीडीएस की मात्रा 500 से 800 से तक है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। 
जन स्वास्थ्य विभाग के कार्यालय का फोटो।

बढ़ जाते हैं पेट व हड्डियों के रोग

सामान्य रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश भोला का कहना है कि पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस (टोटल डिजोलड सालट) की मात्रा बढऩे से पेट के रोग बढ़ जाते हैं। इससे पत्थरी तथा पेट में इंफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती हैं। यदि पानी में फ्लोराइड ज्यादा मात्रा में होता है तो इससे हड्डियों व दांतों के रोग भी हो जाते हैं। हड्डियां कमजोर होने के कारण जोड़ों के दर्द हो जाते हैं और दांत कमजोर तथा पीले पडऩे लगते हैं। पीने लायक पानी में टीडीएस की मात्रा 80 से 100 के बीच होती है। 

गोहाना बाइपास की तरफ की कालोनियों के हालात सबसे खतरनाक 

शहर के गोहाना बाइपास की तरफ की कालोनियों के हालात सबसे खतरनाक हैं। इस क्षेत्र में पानी में टीडीएस की मात्रा दो से ढाई हजार टीडीएस तक पहुंच चुकी है। जबकि 200 टीडीएस तक का पानी पीने लायक होता है। इससे यहां पर बीमारियों के ज्यादा फैलने का खतरा बन रहा है। 

पानी में फ्लोराइड तथा टीडीएस की मात्रा लगातार बढ़ रही है। इससे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लोगों को इससे निजात दिलवाने के लिए विभाग द्वारा शहर में नहरी पानी की सप्लाई का प्रारूप तैयार किया जा रहा है। प्रारूप तैयार होते ही इसकी मंजूरी के लिए विभाग के उच्चाधिकारियों के पास भेजा जाएगा। प्रारूप के अनुसार हांसी ब्रांच नहर के पास ही 106 एकड़ में बूस्टिंग स्टेशन तैयार करने की योजना है। 
दलबीर सिंह दलाल
एक्सईएन, जन स्वास्थ्य विभाग, जींद

हांसी ब्रांच नहर का फोटो, जिसके पास बूस्टिंग स्टेशन का निर्माण किया जाना है।





स्टाफ ना अधिकारी कैसे बुझेगी आग

 दमकल विभाग के पास कर्मचारियों का भारी टोटा
 जींद में दमकल विभाग के पास महज एक शिफ्ट का स्टाफ
 कर्मचारियों के अभाव में खड़ी हैं दमकल विभाग की गाडिय़ां

नरेंद्र कुंडू
जींद। गेहूं की कटाई का सीजन शुरू होने के कारण आगजनी की घटनाएं बढऩे का अंदेशा भी बना रहता है। ऐसे में आगजनी की घटनाओं से निपटने की पूरी जिम्मेदारी दमकल विभाग के कंधों पर होती है लेकिन स्टाफ की कमी के कारण जींद के दमकल विभाग का दम निकल चुका है। दमकल विभाग के पास गाडिय़ां तो हैं लेकिन स्टाफ नहीं है। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि बिना कर्मचारियों के आखिरी दमकल विभाग आगजनी की घटनाओं से कैसे निपटेगा। यही नहीं जींद में तो दमकल विभाग के पास गाडिय़ों में पानी भरने के लिए हाईडैंट या टैंक की भी कोई व्यवस्था नहीं है। यही कारण है कि आगजनी की घटना घटने के बाद घटना स्थल पर पहुंचने में दमकल विभाग की गाडिय़ों को अकसर देरी हो जाती है। क्योंकि गाडिय़ों में पानी भरने की प्रक्रिया में दमकल विभाग के कर्मचारियों का काफी समय खराब हो जाता है। इतना ही नहीं जींद जिले में पूरे दमकल विभाग के पास एक भी फायर स्टेशन अधिकारी नहीं है। सभी स्टेशनों पर फायर स्टेशन अधिकारी का पद खाली है।

गाडिय़ां चार स्टाफ एक का भी पूरा नहीं 

जींद दमकल विभाग के पास आगजनी से निपटने के लिए चार गाडिय़ां हैं लेकिन स्टाफ एक गाड़ी का भी पूरा नहीं है। इस समय यहां पर एक एएफएसओ तथा 15  कर्मचारियों का स्टाफ है। इसमें 5 चालक तथा 10 फायरमैन हैं। एक गाड़ी के साथ एक चालक, एक लीडिंग फायरमैन तथा चार फायरमैन की ड्यूटी होती है। इस तरह यहां पर 24 कर्मचारियों के स्टाफ की जरूरत है। स्टाफ की कमी के चलते यहां पर ड्यूटीरत कर्मचारियों को 12 -12 घंटे ड्यूटी देनी पड़ती है। इस बीच यदि किसी कर्मचारी को कोई एमरजैंसी हो जाती है तो यहां तैनात कर्मचारियों को 24 घंटे भी ड्यूटी करनी पड़ती है। यहां पर कर्मचारियों की कमी के बावजूद भी नगर परिषद द्वारा दमकल विभाग के 5 कर्मचारियों को यहां से हटाकर नगर परिषद का काम लिया जा रहा है। इस प्रकार बिना स्टाफ के आखिरी आगजनी की घटनाओं से कैसे निपटा जा सकता है।

स्माल फायर वाटर इंजन की भी नहीं व्यवस्था

जींद दमकल विभाग के पास इस वक्त चार बड़ी गाडिय़ां हैं लेकिन स्माल फायर वाटर इंजन नहीं है। शहर के बाजार की गलियां काफी तंग हैं और बाजार में अकसर भीड़-भड़ाका रहता है। ऐसे में आगजनी की घटना घटने के बाद बड़ी गाडिय़ां बाजार में नहीं जा पाती। बाजार में आगजनी की घटना से निटपने के लिए दमकल विभाग को स्माल फायर वाटर इंजन की जरूरत है लेकिन पिछले काफी लंबे समय से दमकल विभाग के पास यह व्यवस्था नहीं है।

बिना पानी के कैसे बुझेगी आग

फायर ब्रिगेड के पास गाडिय़ों में पानी भरने के लिए हाईडैंट या टैंक की कोई व्यवस्था नहीं है। इस कारण आगजनी की घटना के वक्त गाडिय़ों में पम्प इत्यादि से पानी भरने में दमकल विभाग के कर्मचारियों का काफी समय बर्बाद हो जाता है। दमकल विभाग के पास पानी के स्टॉक के लिए कोई टैंक नहीं होने के कारण दमकल विभाग की गाडिय़ां पानी के लिए ज्यादातर लाइट पर निर्भर रहती हैं। ऐसे में अगर आगजनी की घटना के समय शहर में लाइट व्यवस्था जवाब दे जाती है तो दमकल विभाग के कर्मचारियों के पास लाइट का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं है।

नगर परिषद के दमकल विभाग की सबसे बुरी हालत

जींद जिले में दमकल विभाग दो भागों में बंटा हुआ है। जींद तथा नरवाना में मार्केट कमेटी तथा नगर परिषद दोनों के दमकल विभाग के अलग-अलग कार्यालय हैं। इसके अलावा जुलाना, उचाना तथा सफीदों में दमकल विभाग मार्केट कमेटी के अधीन है। जींद तथा नरवाना में नगर परिषद के अधीन आने वाले दमकल विभाग का सबसे बुरा हाल है। जींद के दमकल विभाग के पास कर्मचारियों का टोटा है तो नरवाना के दमकल विभाग के पास गाड़ी का अभाव है। नरवाना के दमकल विभाग के पास दो गाडिय़ां हैं। इनमें से एक गाड़ी चालू हालत में है तो दूसरी गाड़ी कल-पुर्जों के अभाव में खस्ता हालत में खड़ी है।

कच्चे कर्मचारियों के कंधों पर है सफीदों का भार

सफीदों में आगजनी की घटनाओं से निपटने की पूरी जिम्मेदारी कच्चे कर्मचारियों के कंधों पर है। सफीदों में दमकल विभाग के पास कुल 15 कर्मचारियों का स्टाफ है। इनमें 9 फायरमैन, 3 लीडिंग फायरमैन तथा 3 चालक हैं। यह सभी कर्मचारी कच्चे कर्मचारी हैं। सफीदों में दमकल विभाग के पास एक भी पक्का कर्मचारी नहीं है। यहां तो स्थित यह है कि पिछले कई वर्षों से फायर स्टेशन अधिकारी (एफएसओ) ही नहीं है।

उचाना में नहीं एक भी गाड़ी

उचाना में दमकल विभाग के पास एक भी गाड़ी नहीं है। ऐसे में यदि उचाना या अलेवा में आगजनी की कोई घटना घटती है तो उससे निपटने के लिए जींद या नरवाना से गाड़ी बुलानी पड़ेगी। वहीं उचाना में स्टाफ की भी कमी है। इस वक्त उचाना में सिर्फ चार कर्मचारियों का ही स्टाफ है।
बॉक्स
स्थान का नाम गाडिय़ों की संख्या गाडिय़ों की जरुरत
जींद     4  2
नरवाना     2  
उचाना कोई गाड़ी  नहीं 2
जुलाना     1  1
सफीदों     1  1
 दमकल विभाग के कार्यालय में खड़ी गाडिय़ां।


कर्मचारियों की कमी को देखते हुए लगभग 2 -3  माह पहले डीसी रेट पर नए कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए प्रोजल तैयार कर जिला प्रशासन को भेजा गया था लेकिन अभी तक डीसी रेट पर नए कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हो पाई है। जैसे ही प्रशासन की तरफ से डीसी रेट पर नए कर्मचारियों की नियुक्ति के निर्देश मिलेंगे उसके तुरंत बाद नए कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी।
जगदीशचंद
एएफएसओ, जींद  



बाजार में गैर प्रमाणिक बीटी की किस्मों की भरमार, किसान परेशान

कृषि विभाग नहीं कर पा रहा बीटी की किसी भी किस्म की सिफारिश
कृषि विश्वविद्यालय की नहीं मंजूरी, पर्यावरण मंत्रालय का सहारा

नरेंद्र कुंडू
जींद। गेहूं की फसल की कटाई के बाद कपास की बिजाई का सीजन शुरू होने जा रहा है। किसान गेहूं की कटाई की तैयारियों के साथ-साथ कपास की बिजाई की तैयारियों में भी जुटे हुए हैं लेकिन बीटी कॉटन के बीज की किस्म के चयन को लेकर किसान पूरी तरह से असमंजस की स्थिति में हैं, क्योंकि बाजार में बीटी के भिन्न-भिन्न किस्मों के बीजों की भरमार है। इस समय बाजार में 600 से भी ज्यादा बीटी की किस्में बाजार में आ चुकी हैं, लेकिन हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार इनमें से किसी की सिफरिश नहीं कर रहा है। बीटी के बीज के चयन को लेकर किसान विकट परिस्थितियों में फंसा हुआ है कि आखिरकार वह अपने खेत में बीटी की किस किस्म की बिजाई करें। इसमें सबसे खास बात यह है कि आज बाजार में बीटी की जितनी भी किस्में हैं, उनमें से कोई भी किस्म कृषि विश्वविद्याल द्वारा प्रमाणित नहीं है। इस कारण कृषि विभाग के अधिकारी भी किसानों को बीटी की किसी भी किस्म की बिजाई की सिफारिश नहीं कर पा रहे हैं। कृषि विभाग द्वारा बीटी की किसी भी किस्म की सिफारिश नहीं किए जाने तथा बीटी के बीज को लेकर किसानों के पास विभिन्न विकल्प होने के कारण आज किसान कपास के उत्पादन तथा इसमें आने वाली बीमारियों की तरफ से संतुष्ट नहीं हो पा रहा है।  बीटी बीज निर्माणता कंपनियों ने पर्यावण मंत्रालय की मंजूरी तो ले ली है, लेकिन इससे किसानों का भ्रम जस का तस बना हुआ है। किसान किस किस्म और कंपनी के बिज का चुनाव करें इस पर स्थिति साफ नहीं है।

बीटी के कारण बाजार में आई कीटनाशकों की बाढ़

कपास के क्षेत्र में बीटी की भिन्न-भिन्न किस्मों के साथ-साथ कीटनाशकों की बाढ़ भी आ गई है। बीटी की बिजाई से कपास में सुंडियों से बचाव के लिए होने वाले कीटनाशकों का प्रयोग कम हुआ हो लेकिन दूसरी तरफ पिछले तीन-चार साल से अन्य कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ भी लगातार बढ़ता जा रहा है।

हरियाणा में 200 करोड़ का कारोबार

इसमें कोई शक नहीं है कि बीटी से कपास के युग में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है और इससे उत्पादन में काफी बढ़ौतरी हुई है लेकिन बीटी अपने साथ बीज और कीटनाशकों का एक बहुत बड़ा बाजार भी लेकर आई है। कृषि विभाग के अनुसार बीज और कीटनाशकों के क्षेत्र में अकेले हरियाणा प्रदेश में 200 करोड़ से भी ज्यादा का कारोबार होता है। क्योंकि हरियाणा में लगभग 5.5 लाख हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में कपास की खेती होती है, जिसमें लगभग 95 फीसदी क्षेत्र में बीटी की बिजाई होती है और बीटी की सभी किस्में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अधीन हैं। आज दो दर्जन से ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियां बीटी का बीज तैयार कर रही हैं और बीटी की 600 से ज्यादा किस्में बाजार में उपलब्ध हैं।

एक किस्म तैयार करने में लगता है 9-10 वर्ष का समय

कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसी भी बीज की सिफारिश करने से पहले उस बीज पर लगभग 9-10 साल तक रिसर्च होता है। इस 9-10 साल के लंबे सत्र के दौरान कृषि वैज्ञानिक नई किस्म के उत्पादन तथा फसल में आने वाली बीमारियों व नुकसान पर गहन रिसर्च करते हैं। इसके बाद ही वह कृषि विभाग को बीज की सिफारिश करते हैं। 9-10 साल के लंबे रिसर्च के बाद एक किस्म ईजाद हो पाती हैं। जबकि बाजार में आज बहुराष्ट्रीय कंपनियां आए दिन लुभान्वित नामों से नई-नई किस्में उतार रही हैं।
बीटी के बीज की खरीदारी करने के दौरान बीज विक्रेता से विचार-विमर्श करते किसान। 

बीटी के बीज पर विश्वास करना संभव नहीं 

जितनी भी बीटी की किस्में आई हुई हैं किसी भी किस्म की कृषि विश्वविद्यालय सिफारिश नहीं करता है, क्योंकि बीटी का बीज कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रमाणित नहीं है। बीटी के बीज तैयार करने वाली कंपनियों द्वारा कृषि विश्वविद्यालय से बीज की बिक्री की अनुमति लेने की बजाए उत्तर भारत पर्यावरण मंत्रालयों से सीधी अनुमति ली जाती है। इसलिए बीटी के बीजों पर विश्वास नहीं किया जा सकता और इसके नुकसान या फायदे के बारे में भी कुछ कह पाना संभव नहीं है। बीटी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए किसानों को अपने सभी खेतों में बीटी की अलग-अलग किस्मों की बिजाई करनी चाहिए या बीटी के साथ-साथ बीच-बीच से देशी कपास की भी बिजाई किसान कर सकते हैं।
डॉ. यशपाल मलिक, कृषि वैज्ञानिक
कृषि विज्ञान केंद्र, पांडू पिंडारा, जींद




बेपरवाह बैंक प्रबंधन, उपभोक्ता परेशान

शाम होते ही बंद हो जाते हैं एटीएम के दरवाजे 

नरेंद्र कुंडू
जींद। बैंक प्रबंधन बेपरवाह है और उपभोक्ता परेशान हैं। पुलिस के निर्देश भी बैंक प्रबंधन पर बेअसर साबित हो रहे हैं। पुलिस द्वारा एटीएम पर गार्ड तैनाती के निर्देश के बाद भी बैंक प्रबंधन द्वारा एटीएम पर गार्ड की तैनाती नहीं की जा रही है। एटीएम में हो रही लूटपाट जैसी घटनाओं से बैंक प्रबंधन कोई सबक नहीं ले रहा है। बिना गार्ड वाले एटीएम को पुलिस द्वारा बंद करवाए जाने के कारण बैंक प्रबंधन की लापरवाही का खामियाजा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है। शाम होते ही शहर के ज्यादातर एटीएम के शटर बंद हो जाते हैं, जिस कारण रात के समय में जरूरत पडऩे पर उपभोक्ता एटीएम का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। बैंक प्रबंधन द्वारा उपभोक्ताओं को दी जा रही एटीएम की सुविधा का उपभोक्ताओं को लाभ नहीं मिल पा रहा है।   
एटीएम में बढ़ी चोरी व लूटपाट की घटनाओं को देखते हुए जिला पुलिस ने लगभग दो माह पहले जिले के उन एटीएम को बंद करवा दिया था, जिन एटीएम पर गार्ड तैनात नहीं थे। पुलिस प्रशासन ने बैंक प्रबंधन को अपने-अपने एटीएम पर गार्ड तैनात करने के निर्देश दिए थे। 1 माह का समय बीत जाने के बाद बैंक प्रबंधन ने एटीएम पर गार्ड तैनात करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं। बैंक प्रबंधन की इस लापरवाही के चलते शहर के ज्यादातर एटीएम बंद पड़े हैं। एटीएम बंद रहने के कारण उपभोक्ताओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

स्टेट बैंक ऑफ पटियाला के एटीएम का बुरा हाल

शहर में स्टेट बैंक ऑफ पटियाला की के एटीएम का बुरा हाल है। स्टेट बैंक ऑफ पटियाला के किसी भी एटीएम पर गार्ड की तैनात नहीं है। स्टेट बैंक ऑफ पटियाला में दिन में ड्यूटी करने वाले गार्ड पर ही एटीएम की सुरक्षा का जिम्मा रहता है। रात में एटीएम में गार्ड की ड्यूटी नहीं होने के कारण एटीएम को बैंक के बंद होने के साथ ही बंद कर दिया जाता है। रात के समय स्टेट बैंक ऑफ पटियाला के सभी एटीएम बंद रहने के कारण इसके उपभोक्ताओं को सबसे ज्यादा परेशानी होती है। 

कई एटीएम में गार्ड से लिया जाता है दोहरा काम 

पुलिस के निर्देश के बाद कुछ बैंकों में एटीएम की सुरक्षा के लिए महज रात के समय गार्ड की तैनाती है तो कुछ बैंकों ने एटीएम में 24 घंटे गार्ड तैनात किए हैं। कई जगह बैंकों में एक गार्ड से दोहरा काम लिया जा रहा है तो कुछ बैंकों की एटीएम में गार्ड की तैनाती ही नहीं है। 24 घंटे की ड्यूटी देने वाले गार्डों से बैंक प्रबंधन द्वारा दोहरा काम लिया जा रहा है।
 बिना गार्ड के बंद पड़ा एटीएम।

पंजाब नेशनल बैंक के पास भी नहीं एक भी गार्ड 

जींद शहर में पंजाब नेशनल की कुल १८ एटीएम हैं लेनिक किसी भी एटीएम में गार्ड नहीं है। पंजाब नेशनल बैंक के पास एटीएम के लिए गार्ड नहीं होने के कारण शाम होते ही पंजाब नेशनल बैंक के सभी एटीएम बंद हो जाते हैं। पंजाब नेशनल बैंक के हालत तो इनते बुरे हैं कि इसकी मेन ब्रांच के एटीएम में भी कोई गार्ड नहीं है। पीएनबी की मेन ब्रांच की इस एटीएम से काफी लोग पैसा निकलवाते हैं लेकिन यहां गार्ड की तैनाती नहीं होने के कारण यहां पर आने वाले लोगों की सुरक्षा राम भरोसे हैं। 

निजी बैंकों में 24 घंटे एटीएम में गार्ड की तैनाती

जींद में निजी क्षेत्र के एक्सिस, आईसीआईसीआई, एचडीएफसी, यस बैंक के एटीएम की सुरक्षा व्यवस्था सरकारी क्षेत्र के बैंकों की सुरक्षा व्यवस्था से कहीं बेहतर है। जींद में इन बैंकों की शाखाओं के साथ बने एटीएम में 24 घंटे गार्ड की ड्यूटी रहती है। इन बैंकों में रात के समय अलग गार्ड और दिन के समय अलग गार्ड तैनात रहते हैं।  

एसबीआई के एटीएम में पैसे निकलवाने के साथ-साथ जमा करवाने की व्यवस्था भी

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मैनेजर अमित वर्मा ने बताया कि शहर में उनकी 4 ब्रांच हैं और उनके सभी एटीएम पर 24 घंटे गार्ड की तैनाती रहती है। उनके सभी एटीएम पर डबल गार्ड की व्यवस्था है। अमित वर्मा ने बताया कि उनके एटीएम में पैसे निकलवाने के साथ-साथ पैसे जमा करवाने की मशीन की भी व्यवस्था है। 

उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा एटीएम सुविधा का फायदा

उपभोक्ता अनिल, राजेश, सोमबीर, विकास, राकेश ने बताया कि पुलिस ने लुटपाट की घटनाओं को देखते हुए बिना गार्ड वाले एटीएम को बंद करवा दिया है लेकिन बैंक प्रबंधन द्वारा गार्ड की नियुक्ति के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। अगर उन्हें पैसे निकालने के लिए बैंक में ही जाना पड़ेगा तो फिर बैंक द्वारा दी जा रही एटीएम सुविधा का क्या फायदा। उपभोक्ताओं की परेशानी को देखते हुए बैंक प्रबंधन को जल्द से जल्द एटीएम पर गार्ड की तैनाती की जानी चाहिए।
 बिना गार्ड के खुला स्टेट बैंक ऑफ पटियाला का एटीएम। 
 

उच्च अधिकारियों के पास लिखित में भेजी गई है शिकायत

पुलिस प्रशासन के निर्देश के कारण बिना गार्ड के एटीएम को बंद किया गया है। उपभोक्ताओं की परेशानी को देखते हुए बिना गार्ड वाले एटीएम को दिन के समय खोला जाता है लेकिन पुलिस के निर्देशानुसार रात के समय बंद कर दिया जाता है। एटीएम पर गार्ड की तैनाती के लिए उच्च अधिकारियों के पास लिखित में शिकायत भेजी गई है। बिना उच्च अधिकारियों के निर्देश के गार्ड की नियुक्ति नहीं की जा सकती। 
बीएस देशवाल
लीड बैंक मैनेजर


 बिना गार्ड के बंद पड़ा पीएनबी का एटीएम। 

  




बालिकाएं आज भी बन रही हैं वधू

बाल विवाह का चलन जारी
लड़कियों के प्रति नहीं बदल रही लोगों की सोच 

नरेंद्र कुंडू
जींद। 21वीं सदी में भी बाल विवाह जैसी कूप्रथा रह-रहकर सिर उठा रही है। बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए बाल विवाह अधिनियम के बावजूद भी बाल विवाह का चलन रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं। जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध कार्यालय से प्राप्त हुए एक वर्ष के आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो बाल विवाह के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। अप्रैल 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी के पास अब तक 9 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से ज्यादातर मामले पुलिस के माध्यम से तो एक मामला इस कूप्रथा का शिकार होने वाली नाबालिग की सूझबुझ से पहुंचा है। जिला महिला एवं बाल विवाह निषेध कार्यालय से मिले आंकड़ों से यह साफ हो रहा है कि आज भी जागरूकता के अभाव या मजबूरी में बालिकाएं वधू बन रही हैं।
देश में सदियों से चली आ रही बाल विवाह जैसी परम्परा को खत्म करने के लिए सरकार द्वारा सख्त कदम उठाते हुए बाल विवाह अधिनियम बनाया गया है। इस कुरीति को जड़ से खत्म करने के लिए समय-समय पर जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं लेकिन सरकार तथा विभाग के लाख प्रयासों के बावजूद भी बाल विवाह का चलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इसे जागरूकता का अभाव कहा जाए या लोगों की मजबूरी जिस कारण 21वीं सदी में भी बालिकाएं वधू बन रही हैं। जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध कार्यालय में अप्रैल 2013 से दिसम्बर 2013 तक बाल विवाह के 4 मामले सामने आए हैं। वहीं जनवरी 2014 में 2 और फरवरी 2014 में कुल 3 मामले महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंचे हैं। 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंचे मामलों में 8 मामले तो पुलिस के माध्यम से पहुंचे हैं और एक मामला खुद इस कूप्रथा का शिकार हो रही बालिका द्वारा दिया गया है।

लड़की को आज भी समझा जाता है जिम्मेदारी

समाज में लड़कियों को लड़कों के बराबर का दर्जा दिलवाने तथा लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदलने के लिए सामाजिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर चलाए जा रहे अभियानों के बाद भी लोगों की सोच में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हो रहा है। जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी के पास पहुंच रहे बाल विवाह के ज्यादातर मामलों में यह सामने आया है कि परिवार के लोगों ने लड़की को जिम्मेदारी समझ कर बाल अवस्था में ही लड़की को विवाह के बंधन में बांधा जाता है।

दो साल की सजा का है प्रावधान

बाल विवाह अधिनियम के तहत बाल विवाह करवाने के आरोप में दो साल की सजा का प्रावधान है।
लड़कियों के प्रति लोगों की सोच नहीं बदली है। आज भी लोग लड़की को एक जिम्मेदारी समझते हैं और इस जिम्मेदारी को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए ही वह बाल विवाह जैसी कूप्रथा के चलन को जारी रखे हुए हैं। लोगों को सबसे पहले अपनी सोच बदलनी होगी। बिना सोच बदले इस कूप्रथा को रोक पाना संभव नहीं है। लोगों को जागरूक करने के लिए उनके द्वारा समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
कृष्णा चौधरी
जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी, जींद
फोटो कैप्शन
जिला महिला संरक्षण अधिकारी व पुलिस टीम। 






रास्ते से भटकी परिवहन समिति की बसें

यातायात सुविधा से महरूम सैकड़ों गांव
हर रोज रोडवेज को लाखों का चूना लगा रही सहकारी समितियों की बसें

नरेंद्र कुंडू
जींद। हरियाणा रोडवेज की अनदेखी लोगों पर भारी पड़ रही है। सहकारी परिवहन समितियों की बसें निर्धारित रूट पर नहीं चल रही और इसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। सहकारी परिवन समितियों की इस मनमानी का दंश लोगों के साथ-साथ रोडजेव को भी झेलना पड़ रहा है। ये बसें रोडवेज को प्रतिदिन लाखों रुपये का चूना लगा रही हैं। रोडवेज कर्मचारियों की मानें तो प्रशासन ने इन्हें अपनी मौन स्वीकृति दे रखी है।
हरियाणा रोडवेज बेड़े में बसों की कमी को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर परिवहन सेवाएं मुहैया करवाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए परिवहन समितियों को परमिट जारी किए गए थे। 1999 में दिए गए परमिटों के अनुसार परिवहन विभाग ने गांवों के लोगों के लिए निजी बसें रोड पर उतारी थी। इसके अनुसार ही रोडवेज की बसों को भी ग्रामीण रूटों से हटा लिया गया। फिलहाल जिले में 48 निजी बसें चल रही हैं। इन सभी निजी बसों के रूट ग्रामीण क्षेत्रों में तय किए गए हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर निजी बस चालक निर्धारित रूटों पर अपनी सेवाएं देने की बजाए सीधे रूटों पर चल रहे हैं। निजी बस चालक अपने मूल रूटों पर चलने की बजाए निमयों को ठेंगा दिखाकर सीधे रूटों पर बसों को दौड़ा रहे हैं। निजी बस चालकों की इस मनमर्जी के कारण हर रोज रोडवेज विभाग को लाखों रुपए का चूना तो लग ही रहा है साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों की यातायात व्यवस्था प्रभावित हो रही है। इससे ग्रामीण क्षेत्र के यात्रियों व विद्याॢथयों को सबसे ज्यादा परेशानी उठानी पड़ रही है। रोडवेज विभाग व जिला परिवहन प्राधिकरण को बार-बार शिकायतें मिलने के बावजूद भी इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। इस तरफ से विभागीय अधिकारियों की मौन स्वीकृति इन निजी बस चालकों को खुलकर नियमों की धज्जियां उडाने की छूट दे रही है।

विभागीय अधिकारी नहीं कर रहे हैं कार्रवाई

हरियाणा रोडवेज कर्मचारी यूनियन के राज्य सह-सचिव अजीत ङ्क्षसह नेहरा ने बताया कि जींद में चल रही निजी समितियों की सभी बसें अपने मूल रूटों पर चलने की बजाए सीधे रूटों पर चल रही हैं। नेहरा ने कहा कि कैथल से नरवाना रूट पर चार गाडिय़ां अवैध रूप से चल रही हैं। वहीं सफीदों, गोहाना तथा जुलाना रूट पर चलने वाली निजी बसें भी अपने मूल रूटों पर नहीं चल रही हैं। इसके बारे में वे कई बार जिला प्राधिकरण अधिकारी को लिखित में शिकायत भी दे चुके हैं लेकिन निजी बस संचालकों के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। रोडवेज तथा जिला परिहवन प्राधिकरण के अधिकारियों की लापरवाही के कारण ही निजी बस चालक मूल रूटों पर चलने की बजाये सीधे रूटों पर चल रहे हैं। नेहरा ने कहा कि निजी बस चालक रोडवेज कर्मचारियों के साथ झगड़ा करने पर उतारु रहते हैं। बार-बार शिकायत देने के बावजूद भी निजी बस चालकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। निजी बसों के मूल रूट पर नहीं चलने के कारण 100 से ज्यादा गांवों की परिवहन सुविधाएं बाधित हो रही हैं। ऊपर से सरकार भी रोडवेज का निजीकरण करने पर तुली हुई है।

यह है जुर्माने का प्रावधान

जिला परिवहन प्राधिकारण विभाग के नियमों के तहत पहली बार ओवर रूट पर बस पकड़े जाने पर 3500 रुपए, दूसरी बार पकड़े जाने पर सात हजार व तीसरी बार पकड़े जाने पर 10 हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। इसके बाद भी अगर निजी बस चालक अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है तो उसका परमिट भी रद्द किया जा सकता है।

इन गांवों की परिवहन सेवाएं हो रही हैं बाधित

नरवाना तथा कैथल रोड पर निजी बसों के मूल रूट पर नहीं चलने के कारण धनखड़ी, छात्तर, घोघडिय़ां, बड़ोदी, काकड़ोद, जुलाना रूट पर गतौली, अनूपगढ़, बिरोली, शामलो तथा सफीदों रूट पर मलार, पिल्लूखेड़ा, हाट, बिटानी और गोहाना रोड पर गांव भावड़, घड़वाल, निजापुर इत्यादि गांवों की परिवहन सुविधाएं बाधित हो रही हैं। इस गांवों से आने वाले लोगों तथा विद्याॢथयों को शहर में आने के लिए निजी वाहनों का सहारा लेना पड़ता है।

सहकारी परिवहन ऑपरेटरों के प्रति तालीबानी रवैया अपनाते हैं रोडवेज कर्मचारी

रोडवेज कर्मचारी सहकारी परिवहन ऑपरेटरों के प्रति तालीबानी रवैया अपनाते हैं। जिले की अधिकतर सहकारी बसें अपने तय रूटों पर चल रही हैं। सफीदों रूट वाली बस को अदालत से स्टे मिला हुआ है। रोडवेज कर्मचारी बस ऑपरेटों को परेशान करते हैं।
सुरेंद्र श्योकंद, महासचिव, हरियाणा को-ओपरेटिव ट्रांस्पोर्ट सोयासयटी वेल्फेयर एसोसिएशन
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31 से शुरू किया जाएगा अभियान

निजी बसों के मूल रूटों से हटकर सीधे रूटों पर चलने की शिकायत अकसर उनके पास आती रहती हैं। मूल रूटों से हटकर चलने वाली निजी बसों के समय-समय पर चालान भी किये जाते हैं। मूल रूट से हटकर चलने वाली निजी बसों के चालकों पर शिकंजा कसने के लिए ३१ मार्च से स्पेशल ड्राइव अभियान चलाया जाएगा, जो भी निजी बस मूल रूट को छोड़कर सीधे रूट पर चलती मिलेगी उसके चालक के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
एसके चहल
क्षेत्रिय परिवहन प्राधिकरण अधिकारी, जींद
सामान्य बस स्टैंड पर निजी बसों के लिए अलग से बनाए गए बूथ।




सामान्य बस स्टैंड पर निजी बसों के लिए अलग से बनाए गए बूथ। 




सामान्य बस स्टैंड पर रोडवेज की बसों के बूथों पर खड़ी निजी सोसायटी की बसें।


शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

आधुनिकता की चकाचौंध में टूट रहे परिवार

एकल परिवार तथा पति-पत्नी के बीच अविश्वसनियता के चलते दाम्पत्य जीवन में बढ़ रही दरार

नरेंद्र कुंडू
जींद। आधुनिकत्ता की चकाचौंध व भाग दौड़ भरी जिंदगी के कारण विवाहिक जीवन में दरार बढ़ रही है। परिवारिक कलह के कारण महिला संरक्षण कार्यालय में मामलों की संख्या लगातार बढ़ी जा रही है। महिला संरक्षण कार्यालय के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो जिले में हर माह दो दर्जन परिवार दहेज व घरेलू कलह की आग से झुलस कर टूट रहे हैं। यह आधुनिकता के इस दौर का ही परिणाम है कि हर माह 40 से 50 मामले न्याय की तलाश में महिला संरक्षण तथा महिला सैल के दरवाजे पर पहुंच रहे हैं। पिछले लगभग एक साल में महिला संरक्षण कार्यालय में 217 मामले आ चुके हैं। महिला सैल कार्यालय में पहुंच रहे मामलों में सबसे ज्यादा मामले पत्नी-पत्नि के बीच आपसी कलह, मार पिटाई तथा मानसिक व शारीरिक हरासमैंट के होते हैं।
आधुनिकता की चकाचौंध व भाग दौड़ भरी जिंदगी के कारण आज दाम्पत्य जीवन में दरार लगातार बढ़ रही है। परिवारिक कलेह, दाम्पत्य जीवन में बढ़ती अविश्वसनियता व दहेज प्रताडऩा से विवाहिक जीवन में दरार बढ़ रही है। आधुनिकता के कारण सामाजिक तानाबाना टूटने तथा महिलाओं व उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून में लचिलेपन के कारण परिवार लगातार टूट कर बिखर रहे हैं। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो हर माह दहेज व घरेलू कलेह की आग में झुलस कर 40 से 50 मामले महिला संरक्षण कार्यालय तथा महिला सैल के पास आ रहे हैं। दाम्पत्य जीवन में बढ़ रही कड़वाहट के कारण सैंकड़ों परिवार अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। टूटते हुए परिवारों को बचाने के लिए सरकार द्वारा प्रत्येक जिले में जिला महिला संरक्षण तथा पुलिस महिला सैल का गठन किया गया है। ताकि टूटते परिवारों में अपसी सुलह करवाकर उन्हें एक नए सिरे से जीवन बसर करने के लिए प्रेरित किया जा सके। महिला संरक्षण तथा पुलिस महिला सैल की परिवारों को जोडऩे की मुहिम काफी हद तक सफल रहती है तो कुछ परिवारों में सहमति नहीं बन पाने के कारण कुछ परिवारों की डोर टूट जाती है। पिछले लगभग ११ माह में अब तक जिला महिला संरक्षण कार्यालय में २१७ मामले आए हैं। इन 217 मामलों में से कुछ मामलों में तो समझौते हो चुके हैं और कुछ मामले अभी जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास विचाराधीन हैं तो कुछ मामले समझौता नहीं होने के कारण अदालत के दरवाजे पर पहुंच गए हैं।

टूट रहा परिवारों का तानाबाना

जिला महिला संरक्षण कार्यालय तथा महिला सैल में पहुंचने वाले ज्यादात्तर मामलों में महिलाओं की एकल परिवार में रहने की इच्छा से विवाद शुरू होता है लेकिन बाद में यह दहेज प्रताडऩा के मामले बनकर अदालत तक पहुंच जाते हैं। एकल परिवार में रहने की इच्छा के कारण संयुक्त परिवार लगातार टूटते जा रहा हैं। संयुक्त परिवारों का चलन समाज में गिने-चूने जगह पर ही दिखाई देता है। संयुक्त परिवार से टूटकर मोतियों की तरह बिखरे एकल परिवार अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, जिससे एकल परिवार के बच्चों में भी संस्कारों की कमी भी दिखाई देने लगी है।

अप्रैल 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंच 238 मामले

अप्रैल 2013 से फरवरी 2014 तक जिला महिला संरक्षण के पास कुल 238 मामले आए हैं। इनमें से 68 मामले अदालत द्वारा भेजे गए हैं। 14 मामले पुलिस द्वारा तथा १५६ मामले सीधे महिला संरक्षण अधिकारी के पास पहुंचे हैं और एक मामला एनजीओ के माध्यम से आया है। महिला संरक्षण अधिकारी के पास सीधे पहुंच रहे मामलों की संख्या को देखते हुए यह साफ हो रहा है कि महिला अधिकारों के प्रति महिलाओं में जागरूकता बढ़ रही है और वह किसी कोर्ट-कचहरी या पुलिस के चक्कर में पडऩे की बजाए सीधे महिला संरक्षण कार्यालय पहुंच रही हैं।

समझौता करवा दोबारा से टूटे परिवारों को जोडऩे का किया जाता है काम

दहेज प्रताडऩा व घरेलु कलह के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। इसका मुख्य कारण लोगों की छोटी मानसिकता है। छोटी-छोटी बातों को तूल देकर बड़ी समस्या का रूप दे दिया जाता है। उनके पास आने वाले ज्यादातर मामलों में पति-पत्नी के बीच आपसी अनबन रहना तथा विचारों का मतभेद होना रहता है। उनके पास आने वाले दंपत्तियों के परिवारों को दोबारा जोडऩे का हर संभव प्रयास किया जाता है। सबसे पहले दोनों पक्षों में सुलह करवाने की कोशिश की जाती है अगर किसी कारण से दोनों पक्षों में सुलह नहीं हो पाती तो मामले की गहण जांच की जाती है। इसके बाद आगामी कार्रवाई के लिए मामले को अदालत में भेजा दिया जाता है।
कृष्णा चौधरी
जिला महिला संरक्षण एवं
बाल विवाह निषेध अधिकारी
महिला संरक्षण अधिकारी कृष्णा चौधरी का फोटो। 



नेताओं के दल बदलने से बदली राजनीति की फिजा

प्रदेश में त्रिकोणिय नहीं बहुकोणिय हुआ लोकसभा चुनाव का मुकाबला

नरेंद्र कुंडू 
जींद। प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान नेताओं के दल बदलने के चलन से प्रदेश में राजनीति की फिजा पूरी तरह से बदल चुकी है। अब प्रदेश में लोकसभा चुनाव का मुकाबला त्रिकोणिय नहीं होकर बहुकोणिय हो गया है। नेताओं के इस दल बदलने के चलन से प्रदेश के राजनीतिक समीकरण भी पूरी तरह से बदल गए हैं। टिकट और अच्छे भविष्य की चाह में नेता कपड़ों की तरह पाॢटयां बदल रहे हैं। प्रदेश में गर्मा रहे चुनावी माहौल को देखते हुए कुछ पार्टियों ने दल-बदलुओं को हाथों हाथ ले लिया है। नेताओं के इस ट्रेंड से एक तरह से वोटरों में भी मायूसी का माहौल तैयार हो रहा है। वहीं चुनावी माहौल को देखते हुए हरियाणा में सभी राजनीतिक दलों द्वारा भी टिकट वितरण में जात, गौत्र तथा ऐरिया का विशेष ध्यान रखा गया है।   
प्रदेश में चुनाव से कुछ माह पहले तक कांग्रेस, इनेलो तथा भाजपा-हजकां गठबंधन के बीच त्रिकोणिया मुकाबले के कयास लगाए जा रहे थे। प्रदेश में पार्टी के विपक्ष में बन रहे माहौल को देखते हुए चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस पार्टी ने जाट आरक्षण का दाव खेल कर जाट वोट बैंक को लुभाने का प्रयास किया है। वहीं भाजपा पार्टी द्वारा प्रदेश में आठ में से पांच लोकसभा सीटों पर कुछ दिनों पहले ही दल बदलकर आए नेताओं को टिकट दिए जाने से खफा भाजपा कार्यकत्र्ताओं द्वारा पार्टी के पदाधिकारियों पर टिकट वितरण में धांधली के आरोप लगाकर हंगामा करने के बढ़ते मामलों ने लोकसभा चुनाव में भाजपा की राह में भी रोड़ा अटकाने का काम किया है। इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला तथा अजय चौटाला के जेबीटी प्रकरण में जेल में होने के कारण इनेलो के नए नेता भी अभी तक मतदाताओं का विश्वास हासिल करने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रहे हैं। हरियाणा अध्यन केंद्र के निदेशक डॉ. एसएस चाहर का मानना है कि भाजपा द्वारा कांग्रेस छोड़कर हाल ही में भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं को टिकट देना भाजपा के लिए आत्मघाती हो सकता है। वहीं भाजपा द्वारा चंद्रमोहन को पहले करनाल से टिकट देना और फिर टिकट वापिस लेकर नए चेहरे को टिकट दिए जाने के मामले से गठबंधन में भी रार पैदा हुई है। डॉ. चाहर का कहना है कि इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला तथा अजय चौटाला के जेल में होने के कारण इनेलो के कार्यकत्र्ताओं में भी मायूसी है। मतदाता इनेलो के नए नेताओं पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। डॉ. चाहर का मानना है कि नेताओं के इस दल बदलने चलन के कारण प्रदेश की राजनीति की फिजा बदल गई है। इस समय प्रदेश में त्रिकोणिय मुकाबला नहीं होने की बजाये लोकसभा चुनाव में बहुकोणिय मुकाबले के आसार बने हुए हैं।