मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

किसान-कीट विवाद को सुलझाने का प्रयास

न्यायिक कमेटी के सदस्यों ने खाप चौधरियों को भेजी रिपोर्ट

रिपोर्ट में कीट ज्ञान की मुहिम को देश में लागू करने का किया समर्थन

न्यायिक कमेटी के निर्णय से खाप पंचायत के फैसले को मिली मजबूती

किसान-कीट विवाद सुलझाने के लिए फरवरी माह में निडाना में हुई थी खाप पंचायत

नरेंद्र कुंडू
जींद।
किसानों और कीटों के बीच दशकों से चली आ रही अंतहीन जंग में दोनों पक्षों के बीच समझौता करवाने के लिए गत 20 फरवरी को निडाना में आयोजित हुई सर्व खाप महापंचायत की न्यायिक कमेटी ने खाप प्रतिनिधियों को अपनी रिपोर्ट भेज दी है। न्यायिक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जींद जिले के किसानों द्वारा चलाई जा रही कीट ज्ञान की मुहिम को देश में लागू करवाने तथा पेस्टीसाइड कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है। न्यायिक कमेटी द्वारा खाप प्रतिनिधियों के पक्ष में दी गई इस रिपोर्ट से खाप पंचायत के फैसले को भी मजबूती मिली है। न्यायिक कमेटी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के आधार पर अब खाप प्रतिनिधि केंद्रीय तथा प्रदेश के मंत्रियों को ज्ञापन भेजकर इस मुहिम को कृषि नीति में शामिल करने की मांग करेंगे। ताकि दूषित हो रहे खान-पान को बचाकर थाली को जहरमुक्त बनाया जा सके।
निडाना गांव में आयोजित खाप पंचायत के दौरान सेवानिवृत न्यायधीश को कीटों की जानकारी देती महिला किसान।

यह है पूरा मामला

फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे पेस्टीसाइड के कारण दूषित हो रहे खान-पान को बचाने के लिए कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल ने वर्ष 2008 में निडाना गांव से कीट ज्ञान की मुहिम शुरू की थी। इस मुहिम के तहत डॉ. सुरेंद्र दलाल ने किसानों के साथ मिलकर फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों पर बारिकी से शोध किया था। शोध के दौरान यह सामने आया कि कीट मांसाहारी और शाकाहारी दो प्रकार के होते हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार कीटों को बुलाते हैं। उत्पादन बढ़ाने में कीटों का अहम योगदान है लेकिन किसान अज्ञानतावश अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग कर कीटों को मार रहे हैं। जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग हुआ है, वहां-वहां कीटों ने ईटीएल लेवल पार किया है। जागरूकता के अभाव में किसानों व कीटों के बीच यह जंग छिड़ी हुई है। इस विवाद को सुलझाने के लिए 26 जून 2012 को कीटाचार्य किसानों ने खाप प्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंपकर यह विवाद सुलझाने की गुहार लगाई थी। ज्ञापन के बाद खाप प्रतिनिधियों ने तीन वर्षों तक किसानों के साथ मिलकर कीटों पर शोध किया था। इसके बाद इस विवाद को सुलझाने के लिए 20 फरवरी 2015 को निडाना गांव में सर्व खाप महापंचायत का आयोजन किया गया था। विवाद को सुलझाने में खाप प्रतिनिधियों से कोई चूक नहीं हो इसके लिए अलग से एक न्यायिक कमेटी गठित की गई थी। महापंचायत में कीटाचार्य किसानों ने कीटों का पक्ष रखा था। खाप प्रतिनिधियों तथा ज्यूरी ने दोनों पक्षों को ध्यान से सुना था। इसके बाद ज्यूरी इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए खाप प्रतिनिधियों से समय मांगा था। अब ज्यूरी ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर खाप प्रतिनिधियों को सौंप दी है। 

यह-यह लोग थे न्यायिक कमेटी में शामिल

महापंचायत में गठित की गई न्यायिक कमेटी में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय चंडीगढ़ के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन अग्रवाल, खाद्य एवं व्यापार नीति विश्लेषक देेवेंद्र शर्मा, हरियाणा किसान आयोग के सदस्य सचिव डॉ. आरएस दलाल को शामिल किया गया था।  बॉक्स

यह है ज्यूरी की सिफारिश 

1. किसानों को कीटनाशियों के छिड़काव के कीटों पर पडऩे वाले बुरे प्रभाव के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है। इसलिए डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा जिन 183 व्यक्तियों को यह ज्ञान दिया गया है उन्हें जागरूकता फैलाने के लिए परिवर्तन एजेंट बनाया जा सकता है।
2. कीटनाशी निर्माता कंपनियां किसानों को गुमराह करती हैं। इसलिए इन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया जाए।
3. कृषि विश्वविद्यालयों में अनुसंधान अनुशंसित किया जाना चाहिए, ताकि वे अपनी प्रयोगशाला में अनुसंधान कर सकें और इस विचार को ओर बल मिल सके।

ज्यूरी का निष्कर्ष

ज्यूरी ने यह अनुभव किया कि 20 फरवरी 2015 को जींद जिले के निडाना गांव में विभिन्न समूहों द्वारा उनके समक्ष किए गए प्रस्तुतीकरण इस मामले में अनूठे थे कि उनसे कीटों के बारे में बहुत कुछ सीखा जा सकता है। ज्यूरी यह सिफारिश करता है कि डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को बिना किसी देरी के किसानों के बीच पहुंचाया जाना चाहिए, ताकि राज्य में जल्दी से जल्दी किसानों के हित में कीटनाशियों के उपयोग को रोका जा सके। ऐसा करके बहुत थोड़े से खर्च से राज्य एक ऐसा क्रांतिकारी कदम उठाने में समर्थ होगा,  जिससे राज्य को पूरे देश में विशेष सम्मान प्राप्त होगा।

खाप प्रतिनिधि चलाएंगे अभियान

खाप पंचायत में दोनों पक्षों को सुनने के बाद खाप पंचायत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि कीट बेजूबान हैं और किसान भोला है। इसलिए किसी तीसरे पक्ष ने किसानों को गुमराह कर इस अंतहिन लड़ाई की शुरूआत की है। महापंचायत के इस फैसले को वैज्ञानिक तौर पर मान्यता दिलवाने के लिए पंचायत में ज्यूरी का गठन किया गया था। ज्यूरी द्वारा पंचायत के पक्ष में रिपोर्ट देने से पंचायत के फैसले को बल मिला है। अब खाप प्रतिनिधि इस लड़ाई को खत्म करवाने के लिए गांव स्तर पर कमेटियों का गठन कर कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कीटाचार्य किसानों की मदद से अभियान चलाएंगे। इसके अलावा सरकार से भी इस महिम को पूरे प्रदेश में लागू कर प्रदेश को रसायनमुक्त घोषित करने की मांग की जाएगी।
कुलदीप ढांडा, संयोजक सर्व खाप महापंचायत



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रविवार, 19 अप्रैल 2015

जिला कारागार में मिल्ट्री की तर्ज पर बनेगी कैंटीन

अब जेल में बंद कैदियों व बंदियों के लिए परिजन बाहर से नहीं पहुंचा सकेंगे सामान
पूरी तरह से कैशलैस होगी कैंटीन, प्रत्येक कैदीं व बंदीं का कैंटीन में खुलेगा खाता
बॉयोमैट्रीक सिस्टम से कैदियों को मिलेगा कैंटीन से सामान 


नरेंद्र कुंडू 

जींद। जिला कारागार में बंद कैदी व बंदी जल्द ही कैंटीन की सुविधा ले सकेंगे। जिला कारागार में मिल्ट्री की तर्ज पर कैंटीन का निर्माण किया जा रहा है। आगामी एक मई से जिला कारागार में कैंटीन की सुविधा शुरू हो जाएगी। जेल में कैंटीन की सुविधा शुरू होने के बाद यहांं बंद कैदियों व बंदियों से मुलाकात के लिए आने वाले वाले परिजन बाहर से लाया गया सामन जेल के अंदर नहीं पहुंचा सकेंगे। जेल प्रबंधन की तरफ से कैदियों व बंदियों के लिए परिजनों द्वारा बाहर से लेकर आने वाले सामान पर पूरी तरह से रोक लगाने का निर्णय लिया है। आगामी एक मई से जिला कारागार में पूरी तरह से यह नियम लागू हो जाएगा। मिल्ट्री की कैंटिन की तर्ज पर तैयार हो रही कैंटीन से उचित रेट पर कैदी व बंदी अपनी जरूरत का सामान खरीद सकेंगे। जिला कारागार की यह कैंटीन पूरी तरह से कैशलैस होगी। प्रत्येक कैदी व बंदी के कैंटीन में अलग-अलग खाते खोले जाएंगे। बॉयोमैट्रिक सिस्टम के जरिए कैंटीन से कैदियों व बंदियों को सामान दिया जाएगा। कैंटीन में एमआरपी सहित प्रत्येक सामान की लिस्ट लगाई जाएगी। कैंटीन से सामान खरीदते समय डिस्पले बोर्ड पर बकायदा सामान की मात्रा तथा राशि दर्शाई जाएगी। ताकि कैंटीन की बिक्री प्रक्रिया में पूरी तरह से पारदर्शिता बनी रहे।

इस तरह चलेगी कैंटीन की प्रक्रिया 

जिला जेल प्रशासन द्वारा कैंटीन से सामान खरीदने के लिए जेल में बंद प्रत्येक कैदी व बंदी का अलग-अलग खाता खोला जाएगा। मुलाकात के लिए आने वाले कैदी के परिजन कैदी को बाहर की खाद्य वस्तुएं देने की बजाए रुपये दे सकेंगे। परिजनों की तरफ से कैदी व बंदी को मिलने वाले रुपये जेल प्रशासन द्वारा कंप्यूटर के माध्यम से उसके खाते में ट्रांसफर कर दिए जाएंगे। अपने खाते में जमा रुपयों से वह कैंटीन से अपनी जरूरत का सामान खरीद सकेगा। कैंटीन की पूरी प्रक्रिया कम्प्यूटरीकृत होगी। ताकि किसी कैदी व बंदी के साथ धोखाधड़ी नहीं हो। इसके साथ-साथ कैंटीन में बॉयोमैट्रिक सिस्टम लागू होगा। कैदी व बंदी द्वारा बॉयोमैट्रिक सिस्टम पर अंगूठा लगाने के बाद कैंटीन में लगे कंप्यूटर में उसकी फोटो सहित उसका खाता खुल जाएगा और इसके बाद वह अपने खाते से सामान खरीद सकेगा। इसके लिए बकायदा एक विशेष सॉफ्टवेयर तैयार करवाया गया है। कैंटीन के निर्माण पर लगभग चार लाख रुपये की राशि खर्च की गई।

जेल में बंद होगा कूपन सिस्टम 

जिला कारागार में अभी तक रुपयों के स्थान पर कूपन सिस्टम चलता था। कैदी को जेल प्रशासन की तरफ से रुपयों के बदले कूपन मुहैया करवाए जाते थे। कैदी व बंदी इन कूपनों से ही अपनी जरुरत के अनुसार सामान खरीद सकते थे लेकिन अब कैंटीन सिस्टम शुरू होने के बाद जेल में कूपन सिस्टम बंद हो जाएगा।

एक मई के बाद अंदर नहीं जा सकेगा बाहर का सामान 



कैंटीन प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते जेल अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा व उप अधीक्षक सेवा सिंह।


जेल विभाग के महानिदेशक के आदेशानुसार जिला कारागार में मिल्ट्री की कैंटीन की तर्ज पर कैंटीन का निर्माण किया जा रहा है। जिला कारागार में कैंटीन शुरू होने के बाद कैदियों व बंदियों से मिलने के लिए आने वाले परिजन कपड़ों व जूते इत्यादि के अलावा बाहर से कोई अन्य सामान अंदर नहीं पहुंचा सकेंगे। एक मई से जिला कारागार में यह नियम पूरी तरह से लागू हो जाएगा। पारदर्शिता बनाए रखने के लिए कैंटीन को पूरी तरह से कंप्यूटरीकृत किया गया है। मेरे तथा जेल उप अधीक्षक की निगरानी में कैंटीन की पूरी प्रक्रिया रहेगी। कंप्यूटर के माध्यम से हम अपने कार्यालय से ही कैंटीन की प्रत्येक गतिविधि पर नजर रख सकेंगे। कंप्यूटर में मौजूद साफ्टवेयर में प्रत्येक खाते का पूरा विवरण दर्ज होगा।

डॉ. हरीश कुमार रंगा, अधीक्षक

जिला कारागार, जींद 

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

अंधेरी कोठरी में अक्षर ज्ञान का जला रहे दीप

जिला कारागार में इग्रू का सेंटर शुरू कर कैदियों व बंदियों को दिया जा रहा शिक्षा का ज्ञान
आत्म निर्भर बनने के लिए महिला कैदी भी सीख रही हाथ का हुनर 
पढ़ाई के लिए इस वर्ष 268 कैदियों ने किया आवेदन 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जेल की अंधेरी कोठरी को जेल अधीक्षक ज्ञान के दीप से उज्जवल करने में लगे हुए हैं। जिला कारागार की बैरिकों ने कक्षाओं का रूप धारण कर लिया है। जिला कारागार में बंद कैदियों व बंदियों को अक्षर ज्ञान दिया जा रहा है। शिक्षा से लगाव रखने वाले कैदी व बंदी ओपन यूनिवर्सिटी के जरिए डिस्टेंस एजुकेशन से अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं। इस वर्ष जिला कारागार में बंद 268 कैदी व बंदी पढ़ाई कर अपने भविष्य को उज्जवल बनाने में लगे हुए हैं। जेल अधीक्षक डॉ. हरिश कुमार रंगा स्वयं बैरिकों में कैदियों व बंदियों को पढ़ाते हैं। पुरुष कैदियों के साथ महिला कैदियों को भी आत्म निर्भर बनाने के लिए हाथ का हुनर सिखाया जा रहा है। ताकि यहां से निकलने के बाद पुरुष व महिला कैदी समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें। 
जिला कारागार का फोटो।
जाने-अनजाने में अपराध की दलदल में फंसकर जिला कारागार में अपने गुनाहों की सजा भुगत रहे कैदियों को एक बार फिर से एक अच्छा नागरिक बनाकर समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए जेल प्रशासन द्वारा अच्छी पहल की जा रही है। जेल प्रशासन द्वारा यहां बंद कैदियों व बंदियों के लिए इग्नू, सर्व भारत शिक्षा मिशन के माध्यम से डिस्टेंश एजुकेशन की व्यवस्था की गई है। ताकि जेल से बाहर निकलने के बाद यह सिर उठाकर अपना जीवन यापन कर सकें। स्वयं जेल अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा कैदियों व बंदियों को पढ़ाते हैं। इसके अलावा एक अन्य अध्यापक की भी यहां नियुक्ति की गई है। इस वर्ष जिला कारागार में बंद 268 कैदियों व बंदियों ने पढ़ाई के लिए आवेदन किया है। जेल पाठशाला के 200 कैदी-बंदी सर्व भारत शिक्षा मिशन के तहत प्राइमरी से पांचवीं तक की पढ़ाई कर रहे हैं। वहीं दसवीं, 12वीं करने वालों की संख्या भी कम नहीं है। 33 कैदी दसवीं, 18 कैदी 12वीं, 15 कैदी बीए, दो कैदी बीपीपी की पढ़ाई कर रहे हैं। जेल में चल रही इस पाठशाला का परिणाम यह रहा कि 268 कैदी-बंदी पढ़ाई के माध्यम से अपना भविष्य संवारने में लगे हुए हैं। सामान्य स्कूल की तरह कैदियों व बंदियों को पढ़ाई के साथ-साथ नैतिकता व अनुशासन का पाठ भी सिखाया जा रहा है।

सीआरएसयू को भी भेजा गया है प्रपोजल

कैदियों व बंदियों को डिस्टेंस से शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए जींद के चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय से भी मदद मांगी गई है। जेल प्रशासन की तरफ से सीआरएसयू को इसके लिए प्रपोजल भेजा गया है। जिला कारागार अधीक्षक द्वारा स्वयं सीआरएसयू के उप कुलपति मेजर जनरल डॉ. रणजीत सिंह से जेल में डिस्टेंस एजुकेशन शुरू करवाने के लिए बातचीत की गई है और उन्हें विश्वविद्यालय की तरफ से इस बारे में सकारात्मक परिणाम की उम्मीद है।

महिला कैदियों को सिखाया जा रहा है ब्यूटीशन व कटींग टेलरिंग का हुनर

जिला कारागार में बंद महिला कैदियों व बंदियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अलग से कोर्स शुरू करवाया गया है। जिला कारागार में महिला कैदियों के लिए ब्यूटीशियन तथा कटींग-टेलरिंग का कोर्स करवाया जा रहा है। इसके लिए रोहतक आईटीआई का एक सेंटर जिला कारागार में स्थापित किया गया है। महिलाओं को प्रशिक्षण देने के लिए दो महिला ट्रेनरों को नियुक्त किया गया है। ब्यूटीशियन तथा कटींग टेलरिंग का प्रशिक्षण पूरा होने पर प्रशिक्षु महिला कैदियों को रोहतक आईटीआई की तरफ से डिपलोमे भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। 

इच वन टीच वन के नारे को लेकर बढ़ रहे हैं आगे

सुधार गृह में बंद कैदी व बंदियों को जेल के अंधकार में उजाला हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है। हम इच वन टीच वन के नारे के साथ आगे बढ़ रहे हैं। इस प्रयास के अंतर्गत शिक्षा का सहारा लिया है। शिक्षा से लगाव रखने वाले कैदी ओपन यूनिवर्सिटी के जरिए डिस्टेंस एजुकेशन से अपनी अधूरी पढ़ाई पूरा करने में लगे हैं। कैदियों को पढ़ाई के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी दिए जा रहे हैं। ताकि यहां से निकलने के बाद वह समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें। किसी भी व्यक्ति को अपराध की दलदल से निकालने के लिए शिक्षा ही एकमात्र माध्यम है। क्योंकि अज्ञानतावश ही कोई भी व्यक्ति अपराध के दलदल में कदम रखता है। कैदियों व बंदियों को सुधार ग्रह में पढ़ाई का पूरा माहौल दिया जा रहा है। सभी को निशुल्क शिक्षा उपलब्ध करवाई जा रही है। 
डॉ. हरीश कुमार रंगा, अधीक्षक
जिला कारागार, जींद  
जेल अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा का फोटो। 





बुधवार, 8 अप्रैल 2015

कैसे मिलेगा मुआवजा आधे से ज्यादा रकबे की नहीं हुई गिरदावरी

विभाग के पास पटवारियों का टोटा
स्टाफ की कमी से ज्यादातर कागजों में ही हो रही है गिरदावरी 
गेहूं की कटाई शुरू होने से असमंजस में किसान 

नरेंद्र कुंडू
जींद। बेमौसमी बरसात ने किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। प्रदेश सरकार किसानों के जख्मों पर मुआवजे का मरहम लगाने का प्रयास कर रही है लेकिन गिरदावरी सरकार की राह में रोड़ा बनी हुई है। सरकार बार-बार मुआवजा जारी करने की तिथि निर्धारित कर रही है लेकिन जिले में अभी तक आधे से ज्यादा रकबे की गिरदावरी ही नहीं हो पाई है। विभाग के पास पटवारियों का टोटा है। इसके चलते जिले में गिरदावरी का काम रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। इस समय राजस्व विभाग के पास पटवारियों के आधे से भी ज्यादा पद खाली पड़े हैं। वहीं कृषि विभाग के पास भी कृषि विकास अधिकारियों का भारी टोटा है। कृषि विभाग में भी कृषि विकास अधिकारियों के आधे से ज्यादा पद खाली होने के कारण विभाग भी खराब फसलों की सही तरीके से सर्वे रिपोर्ट तैयार कर सरकार के पास नहीं भेज पा रहा है। स्टाफ की कमी के चलते निर्धारित समयावधि में गिरदावरी का काम पूरा नहीं हो पा रहा है। काम के बढ़ते बोझ और स्टाफ की कमी के चलते पटवारी कागजों में ही गिरदावरी का काम पूरा करने को मजबूर हैं। वहीं सरकार द्वारा किसानों को दी जा रही मुआवजा राशि भी ऊंट के मुंह में जीरा है।
 फसल खराब होने पर खेत में बैठकर अफसोस जाहिर करता किसान।

मुआवजा ऊंट के मुहं में जीरा

बरसात ने तो पूरी तरह से बर्बाद करके रख दिया है। रही-सही कसर सरकार ने पूरी कर दी है। सरकार द्वारा जो मुआवजा दिया जा रहा है। वह ऊंट के मुहं में जीरे के समान है। गेहूं की कटाई का कार्य शुरू हो चुका है लेकिन अभी तक गिरदावरी नहीं हो पाई है। गिरदावरी नहीं होने के कारण गेहूं की कटाई का कार्य भी शुरू नहीं कर पा रहा हूं। क्योंकि यदि गिरदावरी से पहले गेेहूं की कटाई की तो फसल की गिरदावरी नहीं हो पाएगी और बिना गिरदावरी के मुआवजा नहीं मिल पाएगा। 
सुशील, किसान 

दो लाख 15 हजार हैक्टेर में है गेहूं का रकबा

जिले में लगभग दो लाख 15 हजार हैक्टेयर में गेहूं की बिजाई का रकबा है। अगर मौसम खराब नहीं होता तो इस वर्ष कृषि विभाग द्वारा जिले में लगभग 9678 टन गेहूं के उत्पादन की उम्मीद जताई जा रही थी लेकिन बरसात से गेहूं की फसल को हुए नुकसान को देखते हुए कृषि विभाग जिले में लगभग तीन से चार प्रतिशत पैदावार कम होने की संभावना जता रहा है। कृषि विभाग के आंकलन के अनुसार यदि चार प्रतिशत का नुकसान होता है तो जिले में लगभग 387 टन गेहूं की पैदावार कम होगी। कृषि विभाग के अनुमानित आंकलन के अनुसार बरसात से हुए नुकसान के बाद जिले में  9288 टन गेहूं की पैदावार होने की उम्मीद है। 
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तहसील का नाम कृषि योग्य भूमि बिना कृषि योग्य भूमि कुल रकबा
जींद                        72239                         9030                             79269
नरवाना                   103534 11457 114991
सफीदों                     47090 5888 52978
जुलाना                     24132 2654     26786
कुल रकबा             244995 29029                          274024

तसहील का नाम मौजूद पटवारियों की संख्या        स्वीकृत पद        गांव की संख्या 
जींद                                         26                                  51                     98
जुलाना                                     10                                  16                       30
सफीदों                                      19                                 34 71
नरवाना                                     26                                   71                   108
कृषि विभाग के पास भी एडीओ की भारी कमी है। इसके चलते कृषि विभाग को भी फसलों के सर्वे में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
ब्लॉक का नाम एडीओ की संख्या  स्वीकृत पद
नरवाना 7 12
जुलाना                        6 7
सफीदों                        1 6
पिल्लूखेड़ा                   1 5
अलेवा                         0                                5
जींद                          6 9

किसान भी करें गिरदावरी में पटवारियों का सहयोग  

काम ज्यादा और पटवारियों की संख्या काफी कम है लेकिन इसके बावजूद भी पटवारी सभी गांवों में जाकर गिरदावरी करने का प्रयास कर रहे हैं। बार-बार बारिश के कारण गिरदावरी में परेशानी हो रही है। रूटीन की गिरदावरी का कार्य पूरा कर लिया गया है। फसल खराब होने की गिरदावरी चल रही है। अभी तक ५० प्रतिशत गिरदावरी का कार्य पूरा कर लिया गया है। जल्द ही प्रत्येक गांव में जाकर गिरदावरी का कार्य पूरा कर लिया जाएगा। किसानों को भी गिरदावरी में पटवारियों का सहयोग करना चाहिए। 
जसबीर दलाल, जिला प्रधान
पटवारी एसोसिएशन, जींद 








खेत से पेट तक पहुंच रहा जहर

फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशकों से थाली में बढ़ रहा जहर का स्तर
कैंसर के मरीज बढ़ा रहे हैं कीटनाशक

नरेंद्र कुंडू
जींद। देश में हरित क्रांति के साथ ही कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों ने भी दस्तक दे दी थी लेकिन किसानों को इनके प्रयोग की सही मात्रा तथा इनके अधिक प्रयोग से होने वाले दूष्प्रभाव की जानकारी नहीं होने के कारण दिनों-दिन फसलों में इनका प्रयोग बढ़ता चला गया। किसानों द्वारा अधिक उत्पादन की चाह में फसलों में प्रयोग किए जा रहे कीटनाशक व रासायनिक उर्वरकों से थाली के जहर का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। फसलों में अत्याधिक कीटनाशकों के प्रयोग से जहर खाद्य वस्तुओं के माध्यम से खेत से हमारे पेट तक पहुंच रहा है। दूषित हो रही खान-पान, वायु व जल प्रदूषण के कारण आज भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियों ने भी मनुष्य के शरीर को अपनी चपेट में ले लिया है। इसी का कारण है कि आज स्वास्थ्य पर खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। चिकित्सकों का मानना है कि यदि खान-पान व वातावरण को दूषित होने से बचा लिया जाए तो बहुत सी बीमारियां तो स्वयं ही खत्म हो जाएंगी और यह तभी संभव है जब किसान इस बारे में जागरूक होंगे।
खेत में कीटनाशक का प्रयोग कर रहे किसान का फाइल फोटो।

76 लाख लोग कैंसर के कारण बन रहे हैं काल का ग्रास

आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियां जन्म ले रही हैं। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो हर वर्ष लगभग छह करोड़ लोगों की मौत होती है और इनमें से अकेले 76 लाख लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बनते हैं। इसके अलावा दो लाख 20 हजार लोग प्रति वर्ष पेस्टीसाइड प्वाइजङ्क्षनग के कारण यानि जहर के सेवन से मरते हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार कैंसर जैसी बीमारी के फैलने का मुख्य कारण भी फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशक हैं। देश में फसलों पर हर वर्ष 25 लाख टन पेस्टीसाइड का प्रयोग होता है। इस प्रकार हर वर्ष 10 हजार करोड़ रुपए खेती में इस्तेमाल होने वाले पेस्टीसाइडों पर खर्च हो जाते हैं।

जहरीला हो रहा खान-पान, जल व वातावरण

कीटनाशियोंं के फसलों पर अधिक प्रयोग से न केवल फसलें प्रभावित होती हैं बल्कि वह जमीन भी कीटनाशियों के जहरीले प्रभाव से प्रभावित होती है जहां इनका छिड़काव किया जाता है। धीरे-धीरे यह प्रभाव जमीन में गहरा होता चला जाता है और अंतत: यह उस जमीनी जल तक पहुंच जाता है। कीटनाशियों के अधिक प्रयोग से वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है।

पशुओं पर भी पड़ रहा दूष्प्रभाव

पशु चिकित्सक डॉ. राजेंद्र चहल के अनुसार कीटनाशी हरे चारे/घास को भी जहरीला बना देते हैं। इससे पशुओं के शरीर व उनका दूध भी प्रभावित हो रहा है। परिणामस्वरूप कीटनाशियों का जहरीला प्रभाव मवेशियों व पशुओं के शरीर पर पड़ता है तथा भैंसों और गायों से मिलने वाला दूध भी कीटनाशियों से प्रभावित हो जाता है। कीटनाशक पशुओं व मनुष्य के शरीर के लिए घातक हैं।

दूषित हो रहे खान-पान के कारण बढ़ रही हैं बीमारियां

कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के बढऩे का मुख्य कारण दूषित हो रहा खान-पान है। फसलों में अधिक कीटनाशकों के प्रयोग से स्तन, यकृत, लीवर, अग्राश्य, फेफड़ों के कैंसर, हड्डियों का कमजोर होना, चमड़ी के रोग, शुगर, लकवा, सैक्स समस्या, पेट दर्द, आंखों में परेशानी, श्वास संबंधि बीमारी, मानसिक परेशानी सहित अनेक बीमारियां हमारे शरीर में घर कर रही हैं। इतना ही नहीं गर्भवति महिलाओं के शरीर में कीटनाशकों के अंश पहुंचने के कारण गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी इसके दूष्प्रभाव पड़ रहे हैं। इससे जन्मजात बच्चों में विकृतियों का रिस्क बढ़ जाता है।
डॉ. पालेराम कटारिया, डिप्टी सिविल सर्जन
सामान्य अस्पताल, जींद 

क्या-क्या बरतें सावधानियां 

बीमारियों से बचने के लिए खान-पान में विशेष सावधानियां बरतनी चाहिएं। नियमित रूप से योग, मोर्निंग वॉक, व्यायाम करने चाहिएं। रेसेदार फल व सलाद पर विशेष ध्यान देना चाहिए। तली हुई चटपटी वस्तुओं से परहेज रखें, खाद्य वस्तुओं में मेदे का भी प्रयोग कम से कम करना चाहिए। बिना छाने आटे का प्रयोग करना चाहिए, पौष्टीक खाद्य पदार्थों पर विशेष जोर देना चाहिए।

किसानों में जागरूकता की कमी से बढ़ रहा कीटनाशकों का प्रयोग 

किसानों द्वारा फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करने का मुख्य कारण किसानों में जागरूकता की कमी है। पेस्टीसाइड कंपनियों ने किसानों में यह भ्रम फैला रखा है कि अधिक कीटनाशकों व रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उत्पादन बढ़ता है। जबकि वास्तविकता यह है कि उत्पादन जमीन की उर्वरा शक्ति, उस क्षेत्र का पानी, वातावरण, खेत में पौधों की संख्या इत्यादि संसाधनों पर निर्भर करता है। किसानों को कीटों की पहचान नहीं होने के कारण किसान कीटों को बेवजह मार रहे हैं। जबकि कीट तो उत्पादन बढ़ाने में सहायक हैं। किसानों को कीटों को नियंत्रित करने की नहीं कीटों की पहचान करने की जरूरत है। पौधे कीटों को अपनी जरूरत के अनुसार बुलाते हैं। जब तक किसानों को कीटों की पहचान नहीं होगी फसल में उनके क्रियाकलापों से क्या प्रभाव पड़ा है इसकी जानकारी नहीं होगी तब तक किसानों को कीटनाशकों के इस चक्रव्यूह से बाहर निकालन अंसभव है।
शकुंतला रधाना, कीटाचार्य किसान
कीटाचार्य महिला किसान शकुंतला का फोटो।