रविवार, 25 अक्तूबर 2015

उम्र 19 और 50 से ज्यादा प्रतियोगिताओं में मनवा चुकी है लोहा

हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी की कनिष्का ने पेंटिंग में हासिल किया गवर्नर अवार्ड
कन्या भ्रूण हत्या व नशाखोरी है मुख्य विषय 
माता-पिता को भी है अपनी बेटियों पर नाज

नरेंद्र कुंडू
जींद। कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। इस कहावत को सिद्ध कर रही है शहर की हाऊङ्क्षसग बोर्ड कॉलोनी निवासी कनिष्का। कनिष्का बहुमुखी प्रतिभा की धनी है और पेटिंग के क्षेत्र में काफी महारत हासिल कर चुकी है। राजकीय प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी महिला महाविद्यालय की बीएससी अंतिम वर्ष की छात्रा कनिष्का महज 19 वर्ष की उम्र में 50 के करीब प्रतियोगिताओं में प्रतिभागिता कर चुकी है। तीसरी कक्षा से ही कनिष्का ने प्रतियोगिताओं में प्रतिभागिता शुरू कर दी थी। अपनी प्रतिभा के दम पर कनिष्का ने वर्ष 2014 में राज्य स्तर पर आयोजित हुई पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर गवर्नर अवार्ड भी हासिल किया था। पेंटिंग के साथ-साथ पढ़ाई के क्षेत्र में भी कनिष्का काफी रुचि है। कनिष्का की एक खास बात यह भी है कि पेंटिंग प्रतियोगिताओं में उसका सबसे खास विषय कन्या भ्रूण हत्या तथा नशाखोरी रही है। कनिष्का अपनी पेंटिंग के माध्यम से  कन्या भ्रूण हत्या तथा नशाखोरी पर कटाक्ष करती रहती है। कनिष्का के परिवार में माता-पिता के साथ-साथ उसकी एक छोटी बहन राधिका भी है। कनिष्का के पिता नरेश तायल शहर में एक कॉरियर कंपनी चलाते हैं, वहीं इसकी मम्मी मीनू तायल शहर के ही गोपाल स्कूल में साइंर्स टीचर है। 

तीसरी कक्षा से ही शुरू हो गया था प्रतियोगिताओं में शामिल होने का सफर

कनिष्का का कहना है कि बचपन से ही उसकी पेंटिंग के प्रति काफी रुचि रही है। जब वह गोपाल स्कूल में तीसरी कक्षा की छात्रा थी तो उस समय जिला स्तर पर आयोजित हुई पेंटिंग प्रतियोगिता में उसने पहली बार भाग लिया था। इस प्रतियोगिता में उसने जिलेभर में प्रथम स्थान हासिल किया था। इसके बाद पांचवीं कक्षा में उसने क्वीज प्रतियोगिता में राज्य स्तर पर प्रथम, सातवीं कक्षा में साईंस प्रतियोगिता में जोन स्तर पर तीसरा, योग प्रतियोगिता में प्रदेश में प्रथम स्थान हासिल किया था। इसके बाद तो कनिष्का की सफलता का सफर शुरू हो गया। कनिष्का ने बताया कि प्रतियोगिताओं में भाग लेना उसे काफी पसंद है और वह अभी तक पेंटिंग, डिबेट, पोस्टर मेकिंग, स्लोगन, साइंर्स, क्वीज, योग जैसे इवेंट में 50 के करीब प्रतियोगिताओं में शामिल हो चुकी है। प्रत्येक प्रतियोगिता में उसे कोई ने कोई स्थान जरुर मिला है। कॉलेज में भी वह समय-समय पर आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में भाग लेती रहती है। 
  कन्या भ्रूण हत्या पर पेंटिंग तैयार करती छात्रा कनिष्का।

पेंटिंग के बल पर हासिल किया गवर्नर अवार्ड 

इलेक्शन कमीशन द्वारा वर्ष 2014 में राज्य स्तर पर पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। कनिष्का ने भी इस प्रतियोगिता में भाग लिया था। इस प्रतियोगिता में कनिष्का ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और इलेक्शन कमीशन द्वारा कनिष्का की पेंटिंग को गवर्नर अवार्ड के लिए चुना गया। तत्कालीन राज्यपाल महामहिम जगननाथ पहाडिया द्वारा कनिष्का को गवर्नर अवार्ड से सम्मानित किया गया था। कनिष्का ने बताया कि उसकी सफलता का श्रेय उसके माता-पिता तथा उसके ड्राइंर्ग अध्यापक दीपक कौशिक को जाता है। दीपक कौशिक ने उसकी प्रतिभा को पहचान कर निखारने का काम किया है। 

माता-पिता को है बेटियों पर है नाज 

कनिष्का की मां मीनू तायल व पिता नरेश तायल का कहना है कि उन्हें दो बेटियां हैं। उन्हें इस बात का भी कतई मलाल नहीं है कि उनके पास बेटा नहीं है। क्योंकि उन्हें अपनी बेटियों पर गर्व है। उनकी बेटियों ने कभी उन्हेें बेटे की कमी महशूस नहीं होने दी। वे अपनी दोनों बेटियों को बेटों से भी बढ़कर प्यार करते हैं तथा दोनों बेटियों का पालन-पोषण बिल्कुल बेटों की तरह कर रहे हैं। नरेश तायल व मीनू तायल ने बताया कि आज उनकी दोनों ही बेटियां उनका नाम रोशन कर रही है। बड़ी बेटी कनिष्का जहां गवर्नर अवार्ड हासिल कर चुकी है, वहीं उनकी छोटी बेटी राधिका भी बड़ी बहन के पदचिह्नों पर चलते हुए राष्ट्रपति को पेंटिंग भेंट कर चुकी है।  



ममता सोधा ने जिद्द से फतेह किया एवरेस्ट

लोगों के ताने सुन कर किया एवरेस्ट फतेह करने का इरादा
चिकित्सकों की सलाह की परवाह किए बिना लहराया एवरेस्ट पर तिरंगा

नरेंद्र कुंडू
 डीएसपी ममता सौदा का फोटो।
जींद। 'सपने उनके ही पूरे होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है, अकेले पंखों से कुछ नहीं होता हौंसलों से ही उडान होती है।" इन पंक्तियों को सच कर दिखाया है एवरेस्ट विजेता डीएसपी ममता सोधा ने। समाज से मिल रहे ताने व परिवार की आर्थिक कमजोरी भी उसकी राह का रोड़ा नहीं बन पाई। 2003 में पर्वतारोहण के दौरान हुए हादसे में बुरी तरह से घायल होने के बाद भी ममता ने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी और चिकित्सकों की सलाह को नजरअंदाज कर जान पर खेलते हुए एवरेस्ट फतेह करने का काम किया। एवरेस्ट पर तिरंगा लहरा कर पर्वतारोही ममता सोधा ने यह साबित कर दिया है कि नारी अबला नहीं सबला है। इतना ही नहीं ममता सोधा ने पिता की मौत के बाद अपना लक्ष्य पूरा करने के साथ-साथ परिवार के मुखिया का भी फर्ज अदा किया। परिवार में सभी भाई-बहनों में बड़ी होने के कारण पिता की मौत के बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी ममता के कंधों पर आ गई थी। परिवार के पास आय का कोई दूसरा साधन नहीं होने के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई थी। परिवार की आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए ममता सोधा ने बीच में ही अपना प्रशिक्षण छोड़ अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाई। परिवार के सिर से दुख के बादल छटने के बाद दोबारा से ममता ने अपना प्रशिक्षण शुरू कर देश की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट को फतेह कर अंतर्राष्ट्रीय पटल पर देश का नाम रोशन किया। एवरेस्ट फ़तहे करने के बाद सरकार ने ममता सोधा को हरियाणा पुलिस में डीएसपी के पद पर नौकरी दी।

बचपन में ही दिमाग में घर कर गई थी माउंटेन की पिक्चर

डीएसपी ममता सोधा ने बताया कि जब वह छोटी थी तो उसी समय माउंटेन के प्रति उसकी रुचि पैदा हो गई थी। उसके घर में लगी पहाड़ों की एक तस्वीर ने पहाड़ों के प्रति उसकी उत्सुकता को बढ़ा दिया था। आठवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान जब वह परिवार के साथ माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए कटरा गई तो वहां पहली बार उसने पहाड़ों को देखा था। इसके बाद तो पहाड़ों के प्रति उसकी उत्सकता ओर भी बढ़ गई। 

बीए की पढ़ाई के दौरान लिया पर्वतारोहण का प्रशिक्षण

कैथल के आरकेएसडी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही ममता ने पर्वतारोहण का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। इसके बाद कुरुक्षेत्र से एमफील की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान ममता ने पैराग्राइडिंग, पैरा सैलिंग, माउंटेनिंग, सरवाइवर, साइकिलिंग, रिवर राफ्टिंग, माउंटेनिंग का बेसिक व एडवांस कोर्स ए ग्रेड के साथ पूरा किया। ममता ने पर्वतारोहण का प्रशिक्षण उत्तरकाशी स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ  माउंटेनियरिंग से लिया। 

मां छिपाकर खिलाती थी घी, दूध

डीएसपी ममता सोधा ने बताया कि उसके माता-पिता ने बड़े नाज से उसका पालन-पोषण किया है। घर में उसका पालन-पोषण बिल्कुल लड़कों की तरह हुआ है। उसके माता-पिता ने बेटा व बेटी में कोई फर्क नहीं किया लेकिन उसकी दादी थोड़ी पुराने विचारों की थी। इसलिए वह उसकी बजाए उसके भाई को खाने के लिए घी-दूध ज्यादा देती थी लेकिन उसकी मां उसकी दादी से छिपाकर उसे भी घी-दूध खाने के लिए देती थी।

समाज ने उड़ाया था मजाक और चिकित्सकों ने दी थी माउंटेनिंग छोड़ने की सलाह 

वर्ष 2003 में ममता अपनी सहेलियों के साथ मनाली में पर्वतारोहण के लिए गई थी। पर्वतारोहण के दौरान वहां हुए हादसे में उसका पैर टूट गया और उसे उपचार के लिए चंडीगढ़ ले जाया गया। इस हादसे के बाद वह दो साल तक बैड पर रही। चिकित्सकों ने उसे माउंटेनिंग छोड़ने की सलाह दी। दूसरे लोग भी उसे ताने कसने लगे थे और उसका मजाक उड़ाते थे  लेकिन उसकी मां मेवा देवी ने उसकी पूरी सहायता की और उसका हौंसला बढ़ाया। समाज से मिले तानों ने उसे झकझोर कर रख दिया और उसने हर हाल में अपना लक्ष्य पूरा करने का संकल्प लिया और 2010 में एवरेस्ट फतेह कर अपना सपना पूरा किया।  

पिता की मौत के बाद टूट गया था परिवार

ममता सोधा ने बताया कि उसके पिता लक्ष्मण दास सोधा खाद्य एवं पूर्ति विभाग में इंस्पेक्टर थे और 2004 में बीमारी के कारण उसके पिता की मौत हो गई थी। पिता की मौत के बाद एक वर्ष तक विभाग या सरकार की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिली। परिवार पूरी तरह से आर्थिक संकट से जूझ रहा था। वह एकदम से निराश हो चुकी थी। इसके बाद ममता सोधा ने हरियाणा टूरिज्म में नौकरी शुरू की। पांच साल यहां नौकरी करने के बाद फतेहाबाद कॉलेज में तीन वर्षों तक प्राध्यापिका के पद पर नौकरी की। 

2010 में एवरेस्ट पर लहराया तिरंगा

पिता की मौत के बाद नौकरी के साथ-साथ 2007 में दोबारा से ममता ने प्रशिक्षण शुरू किया। बिना कोच के ही वह अकेली अभ्यास करती थी। ममता का कहना है कि हरियाणा टूरिज्म के तत्कालीन इंचार्ज राजीव मिढ़ा ने उनकी बहुत सहायता की। 2009 में एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए आवदेन किया और इसमें उसका चयन हुआ। चयन के बाद परिवार के सामने सबसे बड़ी चिंता थी कैंप के लिए रुपयों की व्यवस्था की। इसके लिए उसे 21 लाख रुपये की जरूरत थी लेकिन परिवार के पास एक पैसा भी नहीं था। इसके बाद उसने कैथल की तत्कालीन डीसी अमित पी कुमार से संर्पक किया। ममता सौदा ने बताया कि प्रशासन, सामाजिक लोगों तथा मीडिया ने उसकी काफी मदद की। इसके बाद उसकी फीस के लिए रुपयों का इंतजाम हो पाया था। 

कदम-कदम पर खड़ी थी मौत

डीएसपी ममता सोधा ने बताया कि एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान उसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बीच-बीच में कई शव भी मिले, जिन्हें देखकर कई बार उसका मनोबल कमजोर पड़ा। पैर में दर्द होने के कारण उसके लिए यह सफर ओर भी कठिन हो गया था। सफर के दौरान कई बार शरीर भी जवाब दे गया लेकिन उसने हिम्मत नहीं जारी। ममता ने बताया कि एवरेस्ट से चंद किलोमीटर पहले हिलरी स्टेप को देखकर वह बुरी तरह से डर गई थी। क्योंकि इस रास्ते के दोनों तरफ गहरी खाई थी और उस खाई में कई शव भी पड़े हुए थे। इसके बाद जब उसने एवरेस्ट की चोटी को सामने देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। एक पल के लिए उसे लगा कि वक्त उसके लिए ठहर सा गया है। इसके बाद उसने एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया और आधे घंटे वहां रूककर वापस नीचे लौट आई।  




सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

हॉकी के दम पर राजरानी ने देश में बनाई पहचान

परिस्थितियों से हार मानने वाली लड़कियों के लिए मिशाल बनी राजरानी
रियालटी शो की विजेता बन चुकी है राजरानी 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। संसाधनों के अभाव में जो लड़कियां अपना लक्ष्य छोड़कर परिस्थितियों से समझौता कर लेती हैं राजरानी उन लड़कियों के लिए एक मिशाल है। हॉकी खिलाड़ी राजरानी ने ग्रामीण क्षेत्र से निकल कर देश के मानचित्र पर अपने जिले व प्रदेश का नाम रोशन करने का काम किया है। राजरानी ने खेल ही नहीं  बल्कि छोटे पर्द पर भी अपनी सफलता की पहचान छोड़ी है। उचाना क्षेत्र के खेड़ीसफा गांव में किसान बारूराम के घर में जन्मी राजरानी ने वर्ष 2012 में स्टार प्लस चैनल पर आयोजित रियालटी शो 'सरवाइवर इंडिया' की विजेता बनकर शो में शामिल बड़े-बड़े स्टार को हरियाणा के दूध-दही की ताकत का ऐहसास करवाया था। टीवी चैनल व राष्ट्रीय स्तर पर खेलों के क्षेत्र में अपना नाम रोशन करने वाली राजरानी अब चंडीगढ़ में एक फिटनेश सेंटर पर लोगों को फिटनेश का प्रशिक्षण देती है। फिटनेश सेंटर से फ्री होने के बाद राजरानी शाम के समय स्टेडियम में जाकर खिलाडिय़ों को हॉकी के टिप्स भी सिखाती है।
रियालटी शो की विजेता राजरानी ट्राफी के साथ।
खेड़ीसफा निवासी राजरानी ने बताया कि परिवार में चार बहनें व एक भाई है। वह सभी भाई-बहनों में सबसे छोटी है। उसके पिता बारू राम खेती कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं और मां कृष्णा देवी गृहणी है। राजरानी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव से ही शुरू की। इसके बाद राजरानी ने आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए नरवाना के राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल में दाखिला लिया। पढ़ाई के साथ-साथ राजरानी ने खेलों के क्षेत्र में भी रुचि दिखाई। हॉकी राजरानी का पसंदीदा खेला था। हॉकी में पूरी तरह से पारंगत होने के लिए वह घंटों मैदान पर पसीना बहाती थी लेकिन घर की आर्थिक परिस्थिति मजबूत नहीं होने के कारण उसे अपनी पढ़ाई व खेल को आगे बढ़ाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बाद में खेलों के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के बाद खेल विभाग की तरफ से राजरानी को आर्थिक सहायता मिलनी शुरू हुई तो राजरानी ने तेजी से अपने लक्ष्य की तरफ कदम बढ़ाए। 27 वर्षीय राजरानी ने बताया कि स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की तरफ से उसको आर्थिक सहायता मुहैया करवाई गई। इसके बाद उसने पंजाब विश्वविद्यालय से बीए की पढ़ाई पूरी की।

सुबह लिफ्ट मांगकर गांव से शहर में जाती थी अभ्यास करने 

हॉकी खिलाड़ी राजरानी पर खेल का जुनून इस कदर सवार था कि वह सुबह जल्दी उठकर अभ्यास करने के लिए नरवाना जाती थी। राजरानी ने बताया कि गांव से शहर के लिए सुबह-सुबह कोई साधन नहीं होने के कारण उसे दूसरे वाहनों से लिफ्ट मांगनी पड़ती थी। शुरू-शुरू में तो कोई उसे लिफ्ट नहीं देता था लेकिन जब बाद में लोगों को उसके खेल के बारे में पता चला तो लोग उन्हें लिफ्ट देने लगे।

राजरानी ने इंडिया कैंप में बनाई जगह 

स्कूली खेलों से ही राजरानी ने मैदान पर अपनी हॉकी का जादू बिखेरना शुरू कर दिया था। इसी की बदौलत राजरानी ने स्कूल नेशनल, जूनियर नेशनल, सीनियर नेशनल ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी में कई पदक प्राप्त किए। इसके बाद वर्ष 2007-08 में राष्ट्रीय खेलों में भी राजरानी ने पदक प्राप्त किया। अपनी कड़ी मेहनत व उत्कृष्ट प्रदर्शन के दम पर ही राजरानी ने इंडिया कैंप में अपने लिए जगह बनाई।

सरवाइवर इंडिया में दिखाया हरियाणा के दूध-दही का जोश

वर्ष 2012 में स्टार प्लस चैनल पर शुरू हुए रियालटी शो सरवाइवर इंडिया में राजरानी के साथ-साथ कई बड़े स्टार इस शो में शामिल हुए। इस शो में शामिल प्रतिभागियों को आयोजकों द्वारा कठिन से कठिन टास्क दिए जाते थे। इन टॉस्क के दौरान बड़े-बड़े स्टार भी अपना हौंसला छोड़ कर हार मानने पर मजबूर हो जाते थे। शो के दौरान कई-कई दिनों तक जंगलों में भूखी रहकर भी राजरानी ने हिम्मत नहीं खोई। कठिन से कठिन टास्क को भी राजरानी ने अपनी हिम्मत व हौंसले से पूरा किया। रियालटी शो की विजेता बनकर कर राजरानी ने शो में शामिल बड़े-बड़े स्टारों को भी हरियाणा के दूध-दही का जोश दिखाया।





जिंदगी के गुणा-भाग ने बना दिया गणित टीचर

अमरेहड़ी की रितू ने विपरीत परिस्थितियों से जूझ पाया मुकाम
पिता की मौत के बाद संघर्ष कर पूरी की पढ़ाई

नरेंद्र कुंडू
जींद। आंखें खोलते ही जिंदगी में आई मुसीबतों ने ऐसा उलझाया कि मुसीबतों के गुणा-भाग से प्रेरणा लेकर वह गणित की टीचर बन गई। यह कहानी है अमरेहड़ी निवासी 23 वर्षीय रितू की। रितू ने विपरित रिस्थितियों से जूझ कर मैथ से एमएससी की अपनी पढ़ाई पूरी की। अब रितू हिंदू कन्या महाविद्यालय में मैथ की प्राध्यापिका के तौर पर अपनी सेवाएं दे कर परिवार का पालन-पोषण करने के साथ-साथ दूसरी छात्राओं का जीवन संवार रही है। मैथ प्राध्यापिका रितू अब दूसरी छात्राओं के लिए पे्ररणा स्त्रोत बन चुकी है। रितू का अगला लक्ष्य अब नेट की परीक्षा पास करना है। रितू अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रही है। इसके लिए वह कॉलेज से घर जाने के बाद गांव में बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती है। रितू की मां कृष्णा देवी तथा उसकी बड़ी बहन संगीता भी उसके सपने को पूरा करने के लिए उसका पूरा सहयोग कर रही है। अमरेहड़ी निवासी रितू ने बताया कि वह डेढ़ वर्ष की थी जब उसके पिता राजकपूर की मौत हो गई थी। पिता की मौत ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया। रितू तथा उसकी बड़ी बहन संगीता के पालन-पोषण की पूरी जिम्मेदारी अब उसकी मां कृष्णा देवी के कंधों पर आ गई। परिवार के पास आय का कोई दूसरा साधन नहीं होने के कारण परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया। रितू ने बताया कि परिवार के सामने आए आर्थिक संकट के चलते उसकी मां ने आंगनवाड़ी में काम कर परिवार का पालन-पोषण किया।
 अपनी मां व बहन के साथ मौजूद रितू। 
 परिवार के पास पूर्वजों की लगभग डेढ़ एकड़ जमीन थी। इस जमीन को ठेकेपर देकर जो थोड़ी बहुत आमदनी होती थी उससे रितू व उसकी बहन संगीता की पढ़ाई का खर्च चलता था। इस प्रकार विषम परिस्थितियों में रितू व उसकी बहन संगीता ने अपनी पढ़ाई पूरी की। रितू व उसकी बहन संगीता ने दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई तो गांव के सरकारी स्कूल से पूरी की। इसके बाद रितू ने 12वीं कक्षा जींद के एसडी स्कूल और मैथ ऑनर्स से बीए की पढ़ाई हिंदू कन्या महाविद्यालय से पूरी की। इसके बाद रितू ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से बीएड व एमएससी की पढ़ाई पूरी की। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से मैथ से एमएससी की पढ़ाई पूरी कर रितू अब हिंदू कन्या महाविद्यालय में मैथ प्राध्यापिका के तौर पर अपनी सेवाएं दे रही है। वहीं रितू की बड़ी बहन संगीता आर्ट एंड क्राफ्ट का कोर्स करने के बाद अब जेबीटी कर रही है। पिता की मौत के बाद रितू ने बिल्कुल विपरित परिस्थितियों में अपनी पढ़ाई पूरी की और अब रितू अपने परिवार का सहारा बन चुकी है। 

मां से मिली प्रेरणा

रितू का कहना है कि आज वह जो कुछ भी है उसके पीछे उसकी मां कृष्णा देवी का पूरा योगदान है। परिवार की विपरित परिस्थितियों में भी उसकी मां ने उसकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। अपनी मां से प्रेरणा लेकर ही उसने अपनी पढ़ाई का सफर जारी रखा। रितू ने बताया कि उसको आगे बढ़ाने में उसके ताऊ के लड़के दीपक ने भी पूरा सहयोग किया। भाई दीपक से मिले सहयोग ने भी उसके अंदर उर्जा का संचार करने का काम किया। 

गांव की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी बेटी होने पर है गर्व

रितू आज अपने गांव की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की है। गांव में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी होने के कारण ही उसे 15 अगस्त पर गांव के स्कूल में तिरंगा लहराने का अवसर हासिल हुआ। रितू ने बताया कि जब सरकार की बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ अभियान के तहत स्कूल की तरफ से सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी होने पर 15 अगस्त पर गांव के स्कूल में तिरंगा लहराने के लिए निमंत्रण भेजा गया तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इस दिन उसे अपनी पढ़ाई व परिवार पर गर्व हुआ। 



शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

'व्हाइटफ्लाई की रफ्तार पर ड्रेगनफ्लाई ने लगाये ब्रेक'

मांसाहारी कीट खुद ही कर लेते हैं शाकाहारी कीटों को नियंत्रित
जींद जिले में एक हजार एकड़ कपास की फसल में नहीं सफेद मक्खी का प्रकोप 

नरेंद्र कुंडू
जींद। इस बार हरियाणा तथा पंजाब में व्हाइट फ्लाई (सफेद मक्खी) का प्रकोप बहुत ज्यादा देखने को मिला। सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण पंजाब तथा हरियाणा में लाखों हैक्टेयर कपास की फसल पूरी तरह से तबाह हो गई। महंगे से महंगे कीटनाशक भी सफेद मक्खी को नियंत्रित करने में बेअसर साबित हुए। किसानों द्वारा अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करने के बावजूद भी सफेद मक्खी की संख्या कम होने की बजाए उलटा बढ़ती चली गई। कई जगह तो ऐसे हालात पैदा हो गए की किसानों को अपनी खराब हुई कपास की फसलों को मजबूरन ट्रैक्टर से जोतना पड़ा। इस वर्ष कपास की फसलों पर बड़ी तेजी के साथ सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ा लेकिन जींद जिले के कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े कीटाचार्य किसानों ने ड्रेगनफ्लाई (तुलसामक्खी) व अन्य मांसाहारी कीटों की मदद से सफेद मक्खी की इस रफ्तार पर ब्रेक लगा दिए और परिणाम यह रहे कि इन किसानों की फसलों को सफेद मक्खी से किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हुआ। जींद जिले में लगभग एक हजार एकड़ ऐसा रकबा है जहां पर सफेद मक्खी से कपास की फसल में कोई नुकसान नहीं हुआ है। पिछले सात-आठ वर्षों से यहां के किसान बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किए सभी फसलों की अच्छी पैदावार ले रहे हैं। कपास की फसल को नुकसान पहुंचाने में मेजर कीट मानी जाने वाली सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए इन किसानों को किसी प्रकार के कीटनाशकों के प्रयोग की भी जरूरत नहीं पड़ती है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट अपने आप ही शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। वर्ष 2008 में कृषि विकास अधिकारी डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में यहां के किसानों ने कीटों पर शोध शुरू किया था और इसके बाद से ही यह किसान इस मुहिम से जुड़े हुए हैं।
कपास की फसल को दिखाते किसान।

इस प्रकार फसल को नुकसान पहुंचाती है सफेद मक्खी    

सफेद मक्खी एक शाकाहारी कीट है। सफेद मक्खी का आकार पेन की नौक के आकार जितना होता है।  यह पौधे के पत्तों से रस चूसकर अपना गुजारा करती है। सफेद मक्खी कपास की फसल में लीपकरल (मरोडिया) के फैलाने में सहायक का काम करती है। लीपकरल का वायरस सफेद मक्खी के थूक में मिलकर एक पौधे से दूसरे पौधे तक पहुंचता है। यदि खेत में एक भी पौधे में लीपकरल है तो 10 सफेद भी उस लीपकरल के वायरस को पूरे खेत में फैला सकती हैं। सफेद मक्खी के पेशाब में शुगर होता है। जिस भी पत्ते पर सफेद मक्खी का पेशाब पड़ता है उस पत्ते पर फफूंद लग जाती है और वह पत्ता भोजन बनाना बंद कर देता है।

यह कीट हैं सफेद मक्खी के कुदरती कीटनाशी 

ड्रेगनफ्लाई (तुलसा मक्खी) तथा छैल मक्खी उड़ते हुए सफेद मक्खी के प्रौढ़ का शिकार करती हैं। इनो, इरो नामक मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के सबसे बड़े दुश्मन हैं और यह सफेद मक्खी को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इनो और इरो दोनों ही परपेटिये कीट हैं और यह सफेद मक्खी के बच्चों के पेट में अपने अंडे देते हैं। इनो व इरो के बच्चे सफेद मक्खी को अंदर ही अंदर से खाकर खत्म कर देते हैं। सफेद मक्खी के बच्चे पंख विहिन होते हैं। इसलिए बीटल क्राइसोपा के बच्चे तथा मकडिय़ां इनके बच्चों का आसानी से भक्षण कर देती हैं।

पौधों को दें पर्याप्त खुराक

कीटाचार्य किसान प्रमिला रधाना
फसल में शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट पर्याप्त संख्या में मौजूद होते हैं। मांसाहारी कीट अपने आप ही फसल को नुकसान पहुंचाने वाले शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। इसलिए फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाए पौधों को पर्याप्त खुराक देनी चाहिए। इसके लिए ढाई किलो यूरिया, ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक का घोल तैयार कर 100 लीटर पानी में फसल पर इसका छिड़काव करें। पिछले कई वर्षों से हम इस पद्धति से खेती कर रहे हैं और हर बार अच्छा उत्पादन ले रहे हैं।
प्रमिला रधाना, कीटाचार्य किसान

ऐसे बढ़ती है शाकहारी कीटों की संख्या 

कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक
कई प्रकार के मांसाहारी कीट ऐसे हैं जो शाकाहारी कीटों के पेट में अपने बच्चे या अंडे देते हैं। वहीं कई प्रकार के मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों से छोटे आकार के होते हैं। जब किसान फसल पर कीटनाशक का प्रयोग करते हैं तो शाकाहारी कीट के पेट में पनप रहे मांसाहारी कीट के बच्चे व छोटे आकार वाले मांसाहारी कीट मर जाते हैं। इस प्रकार फसल में कुदरती कीटनाशियों की संख्या कम होने के कारण शाकाहारी कीटों की संख्या बढ़ जाती है और इससे फसल को नुकसान पहुंचता है। पिछले सात-आठ वर्षों से जींद जिले के दर्जनभर गांव के किसान कीटों पर अपना शोध कर रहे हैं।
रणबीर मलिक, कीटाचार्य किसान