मंगलवार, 19 मार्च 2019

देश की सबसे बड़ी पंचायत में महिलाओं की नहीं हो पा रही भागीदारी

50 साल में लोकसभा तक पहुंच पाई केवल पांच महिलाएं  

जींद, 18 मार्च (नरेंद्र कुंडू):- हरियाणा में नारी सशक्तीकरण के दावों के बीच लोकसभा चुनावों का इतिहास करारा झटका देने वाला है। देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में महिलाओं को भेजने के लिए न तो सियासी दलों ने कोई खास तवज्जो दी और न ही मतदाताओं ने दरियादिली दिखाई। यहां पिछले 50 वर्षों में केवल पांच महिलाएं ही लोकसभा तक पहुंच पाई हैं। वह भी पारिवारिक सियासी रसूख और राष्ट्रीय दलों के टिकट के बल पर।
निर्दलीय कोई महिला आज तक हरियाणा से संसद नहीं पहुंची है। कांग्रेस की चंद्रावती, कुमारी सैलजा और श्रुति चौधरी, भाजपा की सुधा यादव और इनेलो की कैलाशो सैनी ही हरियाणा गठन (एक नवंबर 1966) के बाद इस दौरान लोकसभा में पहुंच पाईं। प्रदेश से पहली महिला सांसद बनने का गौरव जनता पार्टी की चंद्रावती के नाम है। उन्होंने 1977 में चौधरी बंसीलाल को हराया था। इस दौरान प्रदेश से चुने गए 151 सांसदों में (जब यह पंजाब का हिस्सा था, तब से) महिलाओं को केवल आठ बार ही चुना गया। करनाल, रोहतक, हिसार, फरीदाबाद, गुरुग्राम और सोनीपत ने आज तक एक बार भी किसी महिला को संसद में नहीं भेजा है। सबसे ज्यादा तीन बार कांग्रेस की कुमारी सैलजा संसद पहुंची। वह दो बार अंबाला और एक बार सिरसा आरक्षित सीट पर चुनी गईं। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के टिकट पर कैलाशो सैनी दो बार कुरुक्षेत्र से जीती तो पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पौत्री श्रुति चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ और भाजपा की सुधा यादव महेंद्रगढ़ से एक-एक बार लोकसभा पहुंचने में सफल रही। कैलाशो अब कांग्रेस में हैं।
1951 में पहले आम चुनाव के दौरान भी संयुक्त पंजाब में करनाल, रोहतक और हिसार सीटें मौजूद थी। जबकि फरीदाबाद, गुरुग्राम और सोनीपत की सीटें 1977 में अस्तित्व में आईं। 1999 में हरियाणा की जनता ने पहली बार दो महिलाओं महेंद्रगढ़ से भाजपा की सुधा यादव और कुरुक्षेत्र से इनेलो की कैलाशो सैनी को लोकसभा भेजा। महिलाओं के लिए 2014 सबसे निराशाजनक रहा, जब एक भी महिला प्रदेश से संसद नहीं पहुंच पाई। पिछले आम चुनाव में भाजपा ने एक भी महिला उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा।

इसलिए महिलाओं पर दांव नहीं खेलते सियासी दल

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महिलाओं की जीत की संभााना काफी कम होती है। इसीलिए दल उनसे परहेज करते हैं। यही वजह है कि सियासी गलियारों में महिला सशक्तीकरण एक दूर का सपना है। 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओÓ के नारे के फलीभूत होने के बाद अब हरियाणा में जरूरत राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की है।

ग्राम पंचायतों में 42 फीसद महिलओं की ताजपोशी से बढ़ी उम्मीदें 

पहली बार ग्राम पंचायतों में महिलाओं को निर्धारित कोटे से कहीं अधिक पंच-सरपंच बना कर उन्हें पलकों पर बैठाने वाले हरियाणा में अब सभी की नजरें लोकसभा चुनावों पर हैं। प्रदेश में पहली बार लोगों ने जिस तरह पंचायतों में 33 फीसद आरक्षित सीटों के बदले 42 फीसद पर महिलाओं की ताजपोशी की, उससे देश की सबसे बड़ी पंचायत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढऩे की उम्मीद जगी है। मौजूदा समय में प्रदेश की कुल मतदाताओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़कर 46.35 फीसद तक पहुंच गई है जिसके चलते सियासी दलों के लिए उनकी अनदेखी करना मुमकिन नहीं होगा।

विधानसभा में पहली बार पहुंची रिकॉर्ड 13 महिलाएं 

2014 के लोकसभा चुनावों में भले ही प्रदेश से महिला सांसद नहीं बन पाई, लेकिन विधानसभा में पहली बार महिलाएं पहुंची। हालांकि विधानसभा की 90 सीटों के लिए मैदान में उतरी 116 महिलाओं में से 93 को हार का मुंह देखना पड़ा। विधानसभा में सत्तारूढ़ भाजपा से सर्वाधिक आठ विधायक जीती, जबकि कांग्रेस की तीन और इनेलो व हजकां की एक-एक महिलाओं को विधायक चुना गया।

देश में सत्ता परिवर्तन की धुरी बना था हरियाणा

1989 में कांग्रेस के किले को तोड़ तत्कालीन सीएम चौ. देवीलाल ने देश में किया था सत्ता परिवर्तन 
चौधरी देवीलाल ने विपक्षी दलों को एकजुट कर कांग्रेस को किया था सत्ता से बाहर

जींद, 18 मार्च (नरेंद्र कुंडू):- 10 लोकसभा सीटों वाला छोटा सा प्रदेश हरियाणा राजनीति में अपना एक विशेष स्थान रखता है। जब भी देश में सत्ता परिवर्तन हुआ है उसमें हरियाणा का विशेष योगदान रहा है। राजनीति के इतिहास में 1989 में देश में हुए सत्ता परिवर्तन की धुरी महज 10 लोकसभा सीटों वाला हरियाणा प्रदेश बना था। प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल ने देश में पूरे विपक्ष को एकजुट कर केंद्र से राजीव गांधी और कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बाहर करने में अहम भूमिका निभाई थी। 
यहां बताते चलें कि 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने पूरे देश में क्लीन स्वीप करते हुए भारत के संसदीय चुनावों की सबसे बड़ी जीत हासिल की थी। राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने थे और 5 साल बाद 1989 में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी और राजीव गांधी को संयुक्त विपक्ष के सामने करारी हार का सामना करना पड़ा था। इसके लिए जमीन हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौ. देवीलाल ने तैयार की थी। चौ. देवीलाल ने तब एक-एक कर विपक्ष के तमाम नेताओं को तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के खिलाफ एकजुट किया था। विपक्ष को एकता के सूत्र में पिरोने वाले केवल चौ. देवीलाल ही थे और इसके लिए उन्होंने तब हरियाणा में अपने मुख्यमंत्री होने का पूरा फायदा उठाया था। दिल्ली स्थित हरियाणा भवन तब विपक्षी नेताओं के जमावड़े का सबसे बड़ा केंद्र बना था। विपक्ष की तमाम अहम बैठक हरियाणा भवन में ही होती थी। भाजपा से लेकर लोकदल और दूसरे तमाम विपक्षी दलों को चौधरी देवीलाल ने एक मंच पर लाने का काम किया था। कई विपक्षी दलों को मिलाकर चौ. देवीलाल ने जनता दल बनाया और 1989 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो जनता दल ने कांग्रेस और राजीव गांधी को केंद्र की सत्ता से बाहर कर दिया। 1989 में हुए लोकसभा चुनावों में केंद्र में इतना बड़ा सत्ता परिवर्तन हुआ तो इसकी धुरी हरियाणा बना था। हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौ. देवीलाल ने हरियाणा समेत उत्तर भारत में अपनी जबरदस्त लोकप्रियता और इसके दम पर पूरे विपक्ष को कांग्रेस के खिलाफ एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई थी। प्रदेश के भूगोल ने इसमें चौ. देवीलाल की भरपूर मदद की। देश की राजधानी दिल्ली को हरियाणा तीन तरफ से घेरता है। जब भी तत्कालीन विपक्ष को दिल्ली में कांग्रेस की तत्कालीन सरकार और उसके प्रधानमंत्री राजीव गांधी को घेरने के लिए बड़े शक्ति प्रदर्शन की जरूरत पड़ी तो चौ. देवीलाल ने हरियाणा से लाखों लोगों को दिल्ली ले जाकर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के पैर उखाडऩे का काम किया था। 

शनिवार, 16 मार्च 2019

आसान नहीं है हिसार संसदीय क्षेत्र की जनता की तासीर को समझना

--कभी लाखों में तो कभी कड़े मुकाबले में हुआ है जीत का फैसला
--सन् 1967 से 2014 तक 4 बार जीत का फासला रहा लाख से ज्यादा

जींद, 16 मार्च (नरेंद्र कुंडू):- हिसार संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं ने कभी एक तरफा चुनावी जीत की ईबारत लिखी तो कभी इतने कड़े मुकाबले बना दिए कि मतगणना के अंतिम दौर में जाकर जीत तय हो पाई। इस संसदीय क्षेत्र में 1967 से 2014 तक हुए चुनावों में 4 बार जीत का फासला एक लाख मतों से ज्यादा रहा तो कई बार जीत का फासला 10 हजार से भी कम मतों का रहा। इस संसदीय क्षेत्र के मतदाता कभी राजनीतिक आंधी के साथ चलते नजर आए तो कभी उन्होंने मुकाबले को इतना फंसा दिया कि सब चुनावी नतीजे देखकर हैरान रह गए। जब हिसार के मतदाता राजनीतिक आंधी के साथ चले तो यहां जीत का फासला लाखों मतों तक पहुंच गया और जब उन्होंने चुनाव को फंसाया तो ऐसा फंसाया कि जीत का फासला विधानसभा चुनावों की तरह महज कुछ हजार मतों पर आकर सिमट गया। हिसार संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं की यही तासीर अब 12 मई को होने वाले लोकसभा चुनावों में यहां के चुनावी दंगल में उतरने वाले प्रत्याशियों और उनके दलों की धड़कनें बढ़ाने का काम अभी से कर रही है।

1977 में सबसे बड़ी जीत इंद्र सिंह श्योकंद के नाम

हिसार संसदीय क्षेत्र के इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी जीत जनता पार्टी के प्रत्याशी इंद्र सिंह श्योकंद के नाम है। इंद्र सिंह श्योकंद 1977 में हिसार से जनता पार्टी के प्रत्याशी थे। वह जींद जिले के डूमरखां गांव के थे। उनका मुकाबला कांग्रेस के जसवंत सिंह से हुआ था और तब इंद्र सिंह श्योकंद ने कांग्रेस के जसवंत सिंह को 2,43,384 मतों के अंतर से पराजित किया था। यह हिसार संसदीय क्षेत्र के इतिहास की सबसे बड़ी जीत है और इस रिकार्ड को बाद में किसी भी दल का कोई भी प्रत्याशी नहीं तोड़ पाया। 1977 में हुए इस चुनाव में इंद्र सिंह श्योकंद को 80.31 प्रतिशत और कांग्रेस के जसवंत सिंह को 19.69 प्रतिशत वोट मिले थे। तब जनता पार्टी के प्रत्याशी इंद्र सिंह श्योकंद और कांग्रेस के जसवंत सिंह के बीच मुकाबला आमने-सामने का था। चुनावी दंगल में केवल यही 2 प्रत्याशी थे। हिसार संसदीय क्षेत्र के चुनावी इतिहास में यह पहला और अंतिम चुनाव था, जिसमें चुनावी दंगल में केवल 2 ही प्रत्याशी थे। इस संसदीय क्षेत्र में इंद्र सिंह श्योकंद के अलावा किसी और प्रत्याशी को  80.31 प्रतिशत वोट नहीं मिले हैं।

लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही अपने-पराये के उठने लगे स्वर


सोनीपत संसदीय क्षेत्र की जनता ने 9 बार जाट तो 2 बार गैर जाट नेताओं को दिया मौका
सोनीपत लोकसभा सीट पर निर्दलिय उम्मीदवार के तौर पर अरविंद्र शर्मा के नाम है जीत का रिकार्ड

जींद, 16 मार्च (नरेंद्र कुंडू):-  लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही एक बार फिर 'अपने' और 'पराये' की चर्चा तेज हो चली है। जाट बहुल सोनीपत लोकसभा क्षेत्र में अब तक ज्यादातर जाट उम्मीदवार ही सांसद बने हैं लेकिन निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज करने वाले अरविंद शर्मा और निवर्तमान सांसद रमेश कौशिक के रूप में दो सांसद ऐसे भी हैं जो गैर-जाट होते हुए भी जीत दर्ज कर पाए। ऐसी बात भी नहीं है कि केवल जातिवाद के दम पर ही यहां पर कोई उम्मीदवार सांसद बन गया, लेकिन काफी हद तक यह फैक्टर अपना असर जरूर दिखाता है। सोनीपत लोकसभा क्षेत्र में अब तक 11 बार चुनाव हुए हैं जिसमें से 9 बार जाट उम्मीदवार को ही जीत मिली है। 1996 में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार अरविंद शर्मा को जीत मिली थी। इस चुनाव में अरविंद शर्मा को 2 लाख 31 हजार 552 और रिजक राम को 1 लाख 82 हजार 201 वोट मिले थे। 1998 में यहां से हरियाणा लोकदल के किशन सिंह सांगवान को 2 लाख 90 हजार 299 वोट और एच.वी.पा. के अभय राम दहिया के पक्ष में 1 लाख 52 हजार 975 वोट मिले थे। 1999 में हुए चुनाव में भाजपा के किशन सिंह सांगवान को 4 लाख 57 हजार 056 वोट और कांग्रेस के चिरंजी लाल को 1 लाख 90 हजार 918 वोट हासिल हुए थे। 2004 में सोनीपत से भाजपा के किशन सिंह सांगवान को 2 लाख 33 हजार 477 और कांग्रेस के धर्मपाल मलिक को 2 लाख 25 हजार 908 वोट हासिल हुए थे, वहीं 2009 की बात करें तो कांग्रेस के जितेंद्र मलिक को 3 लाख 38 हजार 795 और भाजपा के किशन सिंह सांगवान को 1 लाख 77 हजार 511 वोट मिले थे। सोनीपत लोकसभा सीट से ताऊ देवीलाल भी दो बार चुनाव लड़े थे जिसमें एक बार उन्हें जीत मिली थी जबकि दोबारा हार का सामना करना पड़ा था। 

जातिवादी कार्ड खेलना पड़ेगा भारी, होगा बड़ा एक्शन

दोष साबित होने पर छह महीने से दो साल के लिए जेल की हवा

जींद, 16 मार्च (नरेंद्र कुंडू):- हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हिंसा और डेरा सच्चा सौदा प्रकरण को लोकसभा चुनाव में भुनाने की रणनीति पर चल रहे सियासी दलों पर चुनाव आयोग की नजर टेढ़ी हो गई है। आम चुनाव में अगर किसी भी प्रत्याशी ने जाट बनाम गैर जाट या फिर जातिवाद और धर्म का कार्ड खेला तो उसकी उम्मीदवारी खत्म हो सकती है। दोष साबित होने पर छह महीने से दो साल तक के लिए जेल की हवा भी खानी पड़ेगी। प्रदेश की सियासत में जब-तब जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हिंसा का मामला तूल पकड़ता रहा है। लोकसभा चुनाव का शेड्यूल जारी होते ही एक बार फिर से विभिन्न सियासी दलों से जुड़े दिग्गज एक-दूसरे पर हिंसा का ठीकरा फोड़ते हुए अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश में जुट गए हैं। इस पर संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग ने ऐसे नेताओं पर निगरानी बढ़ा दी है। कहीं भी जाति, धर्म, नस्ल, समुदाय या भाषा के आधार पर कोई प्रत्याशी या राजनेता मतदाताओं को प्रभावित करता दिखा तो इसे आचार संहिता का उल्लंघन माना जाएगा। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 (3) के तहत किसी उम्मीदवार का दोष साबित होने पर निर्वाचन आयोग चुनाव तक रद्द कर सकता है। इसके अलावा आयोग संबंधित उम्मीदवार पर भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) के तहत आपराधिक मामला भी दर्ज कराएगा जिसके तहत दो साल तक की सजा का प्रावधान है। अगर कोई उम्मीदवार किसी धर्म गुरु को अपने पक्ष में धर्म, भाषा, जाति इत्यादि के आधार पर वोट मांगने के लिए सहमति देता है तो चुनाव आयोग उस पर एक्शन ले सकता है। उम्मीदवार का दोष साबित होने पर आयोग को चुनाव तक रद्द करने का अधिकार है। वहीं, आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों को फॉर्म-26 भरते हुए सारी जानकारी इंटरनेट पर डालनी होगी। साथ ही तीन बार अखबार और टीवी पर विज्ञापन जारी कर अपने खिलाफ दर्ज मामलों की जानकारी सार्वजनिक करनी पड़ेगी। नियम तोडऩे वाले दलों पर मान्यता खत्म होने का खतरा रहेगा। अगर कोई उम्मीदवार जाति, धर्म, नस्ल, समुदाय या भाषा के आधार पर वोट मांगता है तो कोई भी व्यक्ति इसका वीडियो बनाकर सी-विजिल एप पर डाल सकता है। शिकायत के 20 मिनट के भीतर चुनाव आयोग की टीम मौके पर पहुंचकर मामले की पड़ताल कर एक्शन लेगी। इसके अलावा जिला निर्वाचन अधिकारियों के पास भी आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत की जा सकती है।

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

इस बार हरियाणा में रोचक होंगे चुनावी मुकाबले

खेल जगत, फिल्मी सितारे व केंद्रीयी मंत्री चुनावी रण के लिए तैयार 

जींद, 15 मार्च (नरेंद्र कुंडू): - राष्ट्रीय राजनीति में अपना पूरा दखल रखने वाले हरियाणा में इस बार रोचक चुनावी मुकाबले होने के आसार हैैं। छठे चरण में चुनाव की वजह से हालांकि राजनीतिक दल अपनी-अपनी पार्टियों के उम्मीदवारों का ऐलान देर से कर सकते हैैं, लेकिन टिकट के तलबगारों ने अपने प्रयासों में कोई कमी नहीं छोड़ रखी है। इस बार के चुनाव में कई बड़े चेहरे हरियाणा में वोट मांगते दिखाई दे सकते हैैं। इनमें खेल जगत और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी हस्तियां भी शामिल हैैं। राज्य की 10 लोकसभा सीटों पर 12 मई को वोट पड़ेंगे। नामांकन भरने की आखिरी तारीख 23 अप्रैल है। फिलहाल सात लोकसभा सीटों पर भाजपा, एक पर कांग्रेस, एक इनेलो और एक सीट पर जननायक जनता पार्टी (पूर्व में इनेलो) का कब्जा है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा और हजकां के बीच राजनीतिक गठजोड़ था, जो विधानसभा चुनाव में टूट गया था। भाजपा के हिस्से में तब आठ लोकसभा सीटें आई थी, जिनमें से वह रोहतक छोड़कर बाकी सात सीटें जीत गई थी और हजकां अपने हिस्से की हिसार व सिरसा लोकसभा सीटें हार गई थी। रोहतक में कांग्रेस के दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने बाजी मारी। हिसार में जेजेपी के दुष्यंत चौटाला और सिरसा में इनेलो के चरणजीत सिंह रोड़ी सांसद हैैं। भाजपा इस बार किसी भी दल के साथ गठबंधन के मूड में नहीं है। मिशन 2019 फतेह करने के लिए वह 10 में से आठ सीटों पर नए चेहरे उतारेगी। गुरुग्राम से केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत और फरीदाबाद से केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर का चुनाव लडऩा तय है। केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी की निगाह इस बार करनाल लोकसभा सीट पर है। कुरुक्षेत्र में अपनी पार्टी के सांसद राजकुमार सैनी के बागी हो जाने की वजह से भाजपा उन्हें यहां से चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है, लेकिन मेनका की पसंद करनाल है। पूर्व में सुषमा स्वराज भी करनाल से चुनाव लड़ चुकी हैैं, मगर जीती नहीं। यहां भाजपा नेता चंद्रप्रकाश कथूरिया, शशिपाल मेहता और संजय भाटिया के नाम भी प्रमुख हैैं। केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह अपने आईएएस बेटे बृजेंद्र सिंह को सोनीपत लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ाना चाहते हैैं। पहलवान योगेश्वर दत्त भाजपा और कांग्रेस दोनों के संपर्क में हैैं, जबकि कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अथवा उनकी धर्मपत्नी आशा हुड्डा के भी चुनाव लडऩे की चर्चाएं चल रही हैैं। सीएम के मीडिया सलाहकार राजीव जैन भी सोनीपत लोकसभा सीट पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं। 

रोहतक में दीपेंद्र हुड्डा को घेरने के लिए भाजपा रच रही चक्रव्यूह

रोहतक लोकसभा सीट सभी दलों के लिए काफी अहम हैैं। यहां से कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा मोदी लहर में भी दूसरी बार सांसद बने। भाजपा में पूर्व सेना प्रमुख दलबीर सुहाग, क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग और अभिनेता रणदीप हुड्डा के नाम चल रहे हैैं। सहवाग चुनाव नहीं लडऩे का संकेत दे चुके हैैं। कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा के मुकाबले भाजपा राज्य मंत्री मनीष ग्रोवर, ओमप्रकाश धनखड़ अथवा वीर कुमार यादव में से किसी एक को उतार सकती है।

भिवानी में जनरल वीके सिंह और गीता फौगाट के नाम

भिवानी लोकसभा सीट पर भाजपा केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह के नाम पर विचार कर रही है। जननायक जनता पार्टी की ओर से खेल प्रकोष्ठ के अध्यक्ष महावीर फौगाट की बेटी गीता फौगाट को भिवानी के रण में उतारा जा सकता है। कांग्रेस यहां पूर्व सांसद श्रुति चौधरी के साथ-साथ उनकी मां विधायक दल की नेता किरण चौधरी के नाम पर भी विचार कर रही है। हिसार के चुनावी रण में हालांकि जेजेपी से दुष्यंत चौटाला के लडऩे की संभावनाएं जताई जा रही हैैं, मगर दुष्यंत या दिग्विजय की बजाय उनकी विधायक मां नैना सिंह चौटाला के यहां दस्तक देने की अधिक चर्चाएं चल रही हैैं। कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार कुलदीप बिश्नोई के मुकाबले नैना काफी मजबूत स्थिति में होंगे। हालांकि कुलदीप चाहते हैैं कि उनके बेटे भव्य बिश्नोई हिसार से चुनाव लड़ें।

सिरसा व अंबाला में हंसराज हंस, सैलजा और तंवर के नाम

सिरसा सुरक्षित लोकसभा पर भाजपा में कृष्ण बेदी, सुनीता दुग्गल और सूफी गायक हंसराज हंस के नाम चल रहे हैैं, जबकि अंबाला में मौजूदा सांसद रतनलाल कटारिया की पत्नी बंतो कटारिया का नाम है। यहां से कांग्रेस कुमारी सैलजा को मैदान में उतार सकती है, जबकि सिरसा में अशोक तंवर पर दांव खेला जा सकता है।

हिसार संसदीय क्षेत्र में आज तक नहीं खिला 'कमल'

भाजपा के लिए बंजर जमीन रहा है हिसार संसदीय क्षेत्र 
7-7 बार कांग्रेस और देवीलाल के परिवार वाली पार्टी को जीत हुई हासिल 

जींद, 15 मार्च (नरेंद्र कुंडू):- प्रदेश में सिरसा के बाद हिसार ऐसा संसदीय क्षेत्र है जिसमें आज तक कमल का फूल कभी नहीं खिला है। इस संसदीय क्षेत्र में अब तक हुए चुनावों में 7 बार कांग्रेस और 7 बार चौधरी देवीलाल के परिवार वाली पार्टी को जीत हासिल हुई है। बीच में हरियाणा विकास पार्टी और जनहित कांग्रेस को भी हिसार के मतदाताओं ने मौका देने का काम किया लेकिन इस सीट पर भाजपा एक बार भी जीत हासिल नहीं कर पाई है। हिसार, भिवानी और जींद जिले में फैला हिसार संसदीय क्षेत्र कांग्रेस तथा चौधरी देवीलाल के परिवार वाली पाॢटयों का ही मजबूत राजनीतिक गढ़ रहा है। इस संसदीय क्षेत्र में 1952 से 2014 तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में ज्यादातर में मुकाबले कांग्रेस पार्टी तथा चौधरी देवीलाल के परिवार वाली पाॢटयों के बीच ही हुए हैं। पहले जनसंघ और उसके बाद बनी भारतीय जनता पार्टी इस संसदीय क्षेत्र में कभी भी खुद को साबित नहीं कर पाई और इस संसदीय क्षेत्र में कभी जनसंघ का दीपक नहीं जल पाया और बाद में भारतीय जनता पार्टी का कमल का फूल भी नहीं खिल पाया। यह संसदीय क्षेत्र अब तक हुए 16 चुनावों में भाजपा के लिए एक तरह से राजनीति की बंजर जमीन ही साबित हुआ है। 2014 में भाजपा ने हजकां के साथ गठबंधन भी किया लेकिन तब भी उसके गठबंधन में हजकां प्रत्याशी के रूप में हिसार से चुनावी दंगल में उतरे कुलदीप बिश्रोई लोकसभा में नहीं पहुंच पाए थे। इस नाते हिसार संसदीय क्षेत्र अब 12 मई को होने वाले लोकसभा चुनावों मेें प्रदेश में सत्तारूढ़ दल भाजपा के लिए बहुत बड़ी राजनीतिक चुनौती साबित होगा। सत्तारूढ़ दल भाजपा के सामने हिसार में 16 संसदीय चुनावों के लगातार चले आ रहे सूखे को समाप्त करने की चुनौती होगी। 
हिसार संसदीय क्षेत्र में भले ही ज्यादातर चुनावी मुकाबले कांग्रेस पार्टी और चौधरी देवीलाल के परिवार वाली पार्टियों के बीच हुए हैं और इन दोनों को 7-7 बार हिसार में जीत मिली है लेकिन बीच में हिसार के मतदाताओं ने इन दोनों दलों को नकार कर तीसरों पर भी भरोसा जताया है। 1996 में हुए संसदीय चुनावों में हिसार से हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) के जयप्रकाश उर्फ जे.पी. तथा 2009 में हुए संसदीय चुनावों में कांग्रेस से अलग होकर अपना अलग दल बनाने वाले पूर्व सी.एम. भजनलाल की हजकां (हरियाणा जनहित कांग्रेस) ने भी जीत का स्वाद चखा है। जयप्रकाश उर्फ जे.पी. ने हलोदरा के लाला गौरी शंकर को पराजित कर लोकसभा में दस्तक दी थी तो पूर्व सी.एम. भजनलाल ने इनैलो के डॉ. अजय सिंह चौटाला को पराजित किया था।

क्या इस बार मतदान में टूटेगा 1977 का रिकॉर्ड!

हरियाणा में इस बार मतदान के पुराने रिकॉर्ड टूटने के आसार हैं। 10 संसदीय सीटों वाले हरियाणा में इस बार सात प्रमुख दल चुनावी ताल ठोक रहे हैं। इसके अलावा पिछले चुनाव की तुलना में इस बार लोकसभा चुनाव एक माह देरी से हैं। हरियाणा में 1967 से लेकर 2014 तक 13 चुनावों में सर्वाधिक मतदान 1977 में 73.26 फीसदी मतदान हुआ था। हरियाणा में इस बार के चुनाव में करीब 1 करोड़ 74 लाख 48 हजार 293 वोटर्स हैं। इनमें से करीब 93 लाख 97 हजार 153 पुरुष जबकि 80 लाख 51 हजार 140 महिला मतदाता हैं। सियासी पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस बार सत्तासीन भाजपा, मुख्य विपक्षी दल इनैलो के अलावा कांग्रेस, जजपा, लोसुपा-बसपा, शिरोमणि अकाली दल सक्रिय हैं। सभी दलों ने लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी की हुई है। आमतौर पर हरियाणा में अतीत के चुनाव में तीन बड़े दल ही चुनाव लड़ते रहे हैं। इस बार चूंकि सात दल चुनाव लड़ रहे हैं तो तमाम लोकसभा क्षेत्रों में सघन प्रचार अभियान चलेगा। चुनाव को भी करीब दो माह का समय है। इसके अलावा आम मतदाता अब पहले से जागरूक भी हुआ है। ऐसे में सियासी पंडितों का आंकलन है कि इन सब पहलुओं के चलते इस बार मतदान का नया रिकॉर्ड कायम हो सकता है।



गुरुवार, 14 मार्च 2019

हिसार लोकसभा सीट पर इस बार राजनेताओं की होगी अग्निपरीक्षा

इस बार हिसार लोकसभा में बदले राजनीतिक समीकरण  
हजकां-कांग्रेस एक साथ तो इनेलो दो टुकड़ों में बंटी, भाजपा भी कमल खिलाने के लिए लगाएगी एडी-चोटी का जोर
2014 में भजन लाल व देवीलाल परिवारों की प्रतिष्ठा थी दाव पर, भजन लाल परिवार को हार का करना पड़ा था सामना

जींद, 14 मार्च (नरेंद्र कुंडू):- हरियाणा में लोकसभा चुनाव में रोहतक के बाद सबसे ज्यादा हॉट सीट हिसार की है। हालांकि पिछले लोकसभा चुुनाव में हिसार संसदीय सीट सबसे ज्यादा हॉट सीट थी और यहां पर कई राजनीतिक परिवारों की प्रतिष्ठा दांंव पर लग गई थी। यहां पर इनेलो के दुष्यंत चौटाला ने जीत दर्ज की थी, दुष्यंत चौटाला ने हाल ही में अपनी नई पार्टी जेजेपी बनाई है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो हिसार में चौटाला परिवार और भजनलाल परिवार के बीच सीधी टक्कर थी। इस बार फिर से यहां पर टक्कर कांटे की होने की संभावना है। पिछले चुनाव में हिसार में चुनावी दंगल में कांग्रेस सांसद की दौड़ से बाहर हो गई थी और जमानत भी नहीं बचा पाई थी। दरअसल 2004 के परिसीमन के बाद हिसार लोकसभा का स्वरुप बहुत बदल गया था। पहले पूरा जींद जिला इस लोकसभा में था जिसमें से अब सिर्फ उचाना ही रह गया था। कैथल जिले की कलायत विधानसभा सीट भी पहले हिसार लोकसभा का हिस्सा थी जिससे कुरुक्षेत्र से जोड़ दिया गया था। भिवानी जिले का बवानीखेड़ा इसमें जोड़ा गया और आदमपुर भी हिसार लोकसभा का हिस्सा बन गया। कुल मिलाकर हिसार सीट पर जींद क्षेत्र से मजबूत जयप्रकाश और सुरेंद्र बरवाला जैसे नेताओं की पकड़ ढीली पड़ गई और भजनलाल परिवार का दबदबा इस सीट पर बढ़ गया। इस बात को चौटाला परिवार ने जल्दी ही समझ लिया था और चौटाला परिवार से दुष्यंत चौटाला को मैदान में उतार दिया गया था, लेकिन कांग्रेस कहीं न कहीं चूक कर गई। हिसार लोकसभा सीट जाट बहुल सीट रही है और यहां पर 1977 से 2004 तक जाट नेता ही सांसद रहे हैं जिसमें मनीराम बागड़ी, चौ. बीरेंद्र सिंह, जयप्रकाश, सुरेंद्र बरवाला जैसे नेता रहे हैं। सबसे ज्यादा तीन बार सांसद जयप्रकाश यहां पर रहे हैं और 1989 में यहीं से जीतकर वो केंद्रीय मंत्री बने थे। भजनलाल परिवार से खुद भजनलाल 2009 में और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई 2011 में यहां से उपचुनाव में सांसद चुने गए थे। ओमप्रकाश चौटाला, ओपी जिंदल, संपत सिंह और अजय सिंह चौटाला ने भी यहां पर किस्मत आजमाई लेकिन हिसार ने उन्हें लोकसभा नहीं भेजा। चौधरी ओमप्रकाश चौटाला ने तो यहां पर एकमात्र लोकसभा चुनाव हिसार से ही 1984 में लड़ा था और उसी में वो कांग्रेस के चौधरी बीरेंद्र सिंह से हार गए थे। राजनीतिक परिदृश्य से हिसार की सीट हमेशा से ही हॉट सीट रही है और 2014 में यहां की सरगर्मी अपने चरम पर थी। राज्य के दो बड़े राजनीतिक परिवारों के युवराज अपनी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए यहां पर चुनाणी रण में उतरे हुए थे। यह दूसरा मौका था जब चौटाला परिवार और भजनलाल परिवार दूसरी बार आमने-सामने थे। 2011 में भजनलाल के निधन के बाद उपचुनाव में चौटाला परिवार की तरफ से अजय सिंह चौटाला और भजनलाल परिवार की तरफ से कुलदीप बिशनोई मैदान में थे। जिसमें कुलदीप बिश्नोई ने अजय सिंह को करीब 6300 वोटों से हरा दिया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में यह सीट हजकां और बीजेपी के गठबंधन के तहत हजकां के पाले में थी। लोकसभा चुनाव में हजकां की तरफ से कुलदीप बिश्नोई का चुनाव लडऩा तय था, क्योंकि वो 2011 में सांसद चुनकर आए थे। कुलदीप बिश्नोई 2004 में भिवानी लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए थे तब उन्होंने हविपा के सुरेंद्र सिंह और इनेलो के अजय सिंह चौटाला को हराया था। वे 1998 उपचुनाव और 2009 के आदपुर से चुनाव जीतकर विधानसभा के सदस्य बने थे। कुलदीप बिश्नोई हरियाणा जनहित के सुप्रीमो थे। चौधरी भजनलाल के स्वर्गवास के बाद वो ही चुनाव लड़ रहे थे। 2014 के चुनाव में हजकां और भाजपा का गठबंधन था और भाजपा 8 सीटों पर और हजकां दो सीटों पर चुनाव लड़ रही थी। हजकां के हिस्से में हिसार और सिरसा लोकसभा क्षेत्र थे। नरेंद्र मोदी की उस वक्त लहर थी लेकिन नरेंद्र मोदी उस वक्त हिसार और सिरसा के लिए वक्त नहीं निकाल पाए थे, हालांकि हरियाणा की अन्य लोकसभा सीटों पर उन्होंने रैलियां की थी। फतेहाबाद में हजकां-भाजपा की नरेंद्र मोदी की रैली रखी गई थी लेकिन वो रद्द कर दी गई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई करीब 30 हजार वोटों से पिछड़ गए थे। कुलदीप बिश्नोई को आदमपुर, हिसार, बरवाला और हांसी विधानसभा क्षेत्रों से बढ़त मिली थी लेकिन उचाना, नारनौंद और उकलाना की सीटों पर काफी नुक्सान हुआ था और इनेलो ने यहां पर बड़ी बढ़त बनाई थी। इन तीन हलकों को मिली इनेलो को बढ़त को वो छह हलकों में भी तोड़ नहीं पाए थे। कुलदीप बिश्नोई को इस मतदान में 40 फीसदी वोट मिले थे जबकि 2009 में भजनलाल को यहां पर 30 फीसदी वोट ही मिले थे। 2009 से पहले हिसार लोकसभा सीट पर भजनलाल परिवार चुनाव नहीं लड़ता था। क्योंकि तब इस सीट में पूरा जींद जिला आता था और भजनलाल का पैतृक इलाका आदमपुर इसका हिस्सा नहीं था लेकिन परिसीमन के बाद इस लोकसभा क्षेत्र का स्वरुप ही बदल गया था और भजनलाल परिवार की इस लोकसभा सीट पर भागीदारी बढ़ गई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में चौधरी देवीलाल परिवार की चौथी पीढ़ी चुनावी दंगल में थी। यहां पर युवा चेहरे दुष्यंत चौटाला को चुनाव में उतारा गया था। विदेश से पढ़कर आए दुष्यंत चौटाला ने विकट परिस्थितियों में राजनीति में कदम रखा था उनके पिता अजय सिंह चौटाला और दादा ओमप्रकाश चौटाला के जेबीटी शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में जेल हो चुकी थी, ऐसे में महज 25 साल की उम्र में ही दुष्यंत चौटाला राजनीति में कूद गए थे। दुष्यंत चौटाला का यहां पर कदम मजबूती के साथ रखा और जीत के साथ आगे बढ़े। 2014 लोकसभा चुनाव में हिसार को जीतना इनेलो के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई थी क्योंकि साल 2011 के उपचुनाव में अजय सिंह की हार हुई थी। अजय सिंह चौटाला यहां पर 6223 वोटों से कुलदीप बिश्नोई से हारे हुए थे। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने उचाना, नारनौंद और उकलाना विधानसभा सीटों पर जबरदस्त जीत दर्ज की, हालांकि वो छह विधानसभा क्षेत्रों में कुलदीप बिश्नोई से पिछड़ गए थे लेकिन फिर भी कुलदीप बिश्नोई उनकी जीत को नहीं रोक पाए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने कुल 4 लाख 94 हजार 478 वोट हासिल किये थे जोकि मतदान का कुल 42 फीसदी से ज्यादा था, जबकि 2009 में यहां पर इनेलो के उम्मीदवार संपत सिंह ने 29 फीसदी वोट ही हासिल किए थे। इस चुनाव में इनेलो कार्यकर्ताओं ने दुष्यंत के पक्ष में पूरी ताकत झोंक दी थी। लोकसभा चुनाव के वक्त उचाना और नारनौंद में ही इनेलो के विधायक थे, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में इनेलो ने नलवा, बरवाला और उकलाना सीट पर जीत दर्ज की। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने संपत्त सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया था। संपत्त सिंह उस वक्त नलवा से विधायक थे और उन्ही को कांग्रेस की तरफ से चुनावी मैदान में उतारा गया था। संपत्त सिंह का ज्यादा लंबा राजनीतिक सफर लोकदल के साथ ही रहा था वो चौधरी देवीलाल के निजी सचिव के रुप में राजनीति में आए थे और संपत्त सिंह ने पहला चुनाव 1980 में लड़ा था जब ताऊ देवीलाल के संसद चले जाने पर भट्टू विधानसभा सीट खाली हो गई थी। 1982 में वे पहली बार विधानसभा पहुंचे थे और 1987 में दोबारा चुने गए और कई विभागों के मंत्री भी उस वक्त रहे। साल 1991 में भट्टू सीट से ही चुनाव जीतकर भजनलाल सरकार के सामने नेता प्रतिपक्ष के रुप में रहे। इसके बाद संपत्त सिहं ने 1998 में उपचुनाव में जीतकर फिर से विधानसभा पहुंचे। 2000 में फिर से वो भट्टू से जीते और चौटाला सरकार में वित्तमंत्री रहे। संपत्त सिंह ने एक चुनाव फतेहाबाद और एक उपचुनाव आदमपुर से भी लड़ा था लेकिन वो यहां पर जीत नहीं पाए थे। 2009 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद संपत्त सिंह का चौटाला परिवार के साथ मनमुटाव हो गया था और उन्होने इनेलो छोड़ कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। कांग्रेस ने संपत्त सिंह को नलवा से प्रत्याशी बनाया जहां पर वो जीतकर छठी बार विधानसभा पहुंचे। 2009 के विधानसभा चुनाव में संपत्त सिंह ने स्वं. भजनलाल की पत्नी जस्मा देवी को हराया था। यह भजनलाल परिवार के लिए हरियाणा विधानसभा के चुनावों में पहली हार थी। हालांकि लोकसभा चुनाव में 1999 में भजनलाल खुद करनाल लोकसभा सीट से हारे थे। इसके अलावा 2014 के विधानसभा चुनाव में भी जस्मा देवी, चंद्र मोहन बिश्नोई और 2014 के लोकसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई को हार का सामना करना पड़ा था। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जयप्रकाश के कांग्रेस की टिकट पर मना करने के बाद कांग्रेस ने संपत्त सिंह को टिकट थमा दी थी। संपत्त सिंह अपनी राजनीतिक पारी का दूसरा लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। इससे पहले 2009 में इनेलो की तरफ से वो हिसार में ही चुनाव लड़े थे लेकिन हार गए थे अब कांग्रेस ने उन पर दांव खेला था। 2014 के लोकसभा चुनाव में हिसार में चौटाला परिवार और भजनलाल परिवार के आमने-सामने आने के बाद टक्कर में हो गया और कांग्रेस के संपत्त सिंह पिछड़ गए। संपत सिंह ने अपना प्रयास जारी रखा था लेकिन फिर भी वो अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे। उनको करीब एक लाख वोट मिले थे लेकिन उस वक्त लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी का यह सबसे खराब प्रदर्शन रहा था। इस बार के लोकसभा चुनाव में अब सभी राजनीतिक समीकरण बदल चुके हैं। हजकां और कांग्रेस एक साथ हो चुकी है तो इनेलो से एक नई पार्टी जेजेपी निकल चुकी है वहीं इस बार लोकसभा चुनाव में हिसार से बीजेपी भी ऐडी चोटी का जोर लगा रही है।

लोकसभा में जींद के नेताओं के लिए "लक्ष्मण रेखा" बनी परिसीमन

तीन लोकसभा क्षेत्रों में बंटे होने के कारण लोकसभा में कम हुआ जींद जिले का महत्व

जींद, 13 मार्च (नरेंद्र कुंडू):- लोकसभा में जींद के नेताओं के लिए परिसीमन एक तरह से 'लक्ष्मण रेखा' बनी हुई है। जींद जिले के तीन लोकसभा क्षेत्रों में बंटा होने के कारण जींद जिले के नेता इस परिसीमन की इस लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघ पा रहे हैं। 2004 के लोकसभा चुनावों के बाद लागू हुए परिसीमन ने जींद जिले के नेताओं की लोकसभा में एंट्री पूरी तरह से रोक दी है। नए परिसीमन में जिले को तीन संसदीय क्षेत्रों में बांट दिए जाने से लोकसभा चुनावों में जींद जिले का राजनीतिक महत्व कम हो गया है। जिले के 5 विधानसभा क्षेत्रों को नए परिसीमन में सिरसा, हिसार और सोनीपत संसदीय क्षेत्रों में बांट हुआ है। नए परिसीमन के बाद हुए लोकसभा चुनावों में जींद जिले के नेताओं को प्रमुख दलों ने अपनी टिकट देने से लगभग परहेज ही किया और किसी दल ने टिकट दे भी दी तो उस दल की बात लोकसभा चुनाव में नहीं बन पाई। साल 2004 में नए परिसीमन से पहले हुए लोकसभा चुनावों तक जींद जिले के नेता लोकसभा में निश्चित रूप से दस्तक देते थे। हिसार संसदीय क्षेत्र से 1977 से 2004 तक जितने भी सांसद बने, वे जींद जिले से थे। वजह यह थी कि तब हिसार संसदीय क्षेत्र में जींद जिले के 5 विधानसभा क्षेत्र जींद, उचाना, नरवाना, राजौंद और कलायत आते थे। 5 विधानसभा क्षेत्रों के चलते तमाम प्रमुख दल जींद जिले से ही अपने प्रत्याशी हिसार लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतारते थे। केवल 1980 में हुए लोकसभा चुनावों में हिसार जिले के मनीराम बागड़ी लोकदल की टिकट पर हिसार से सांसद चुने गए थे। 1977 में जींद जिले के इंद्र सिंह श्योकंद जनता पार्टी की टिकट पर हिसार से सांसद बने थे। 1984 में हुए लोकसभा चुनावों में जींद जिले के बीरेंद्र सिंह हिसार से कांग्रेस टिकट पर सांसद चुने गए थे। 1989 में जींद के जयप्रकाश उर्फ जे.पी. जनता दल की टिकट पर हिसार से सांसद बने थे तो 1991 में जींद के ही मास्टर नारायण सिंह कांग्रेस की टिकट पर हिसार से सांसद चुने गए थे। 1996 में जींद के जयप्रकाश उर्फ जे.पी. हिसार से हविपा की टिकट पर सांसद बने थे तो 1998 और 1999 में हुए लोकसभा चुनावों में जींद के सुरेंद्र सिंह बरवाला हिसार से इनैलो की टिकट पर सांसद चुने गए थे। 2004 में हुए लोकसभा चुनावों में जींद के जयप्रकाश उर्फ जे.पी. तीसरी बार हिसार से सांसद चुने गए थे और तब वह कांग्रेस के प्रत्याशी थे। इसके बाद 2009 में हिसार लोकसभा से हजकां प्रत्याशी कुलदीप बिश्रोई सांसद बने और 2014 में इनैलो की टिकट पर दुष्यंत चौटाला सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे। 

सोनीपत व हिसार संसदीय क्षेत्र से जींद के इन नेताओ को मिल सकता है मौका

चुनावों में सोनीपत और हिसार संसदीय क्षेत्र से इस बार जींद के कुछ नेताओं को मौका मिलने के आसार बन रहे हैं। केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के आई.ए.एस. बेटे बृजेंद्र सिंह को सोनीपत से भाजपा टिकट के मजबूत दावेदारों में माना जा रहा है। इसके लिए बीरेंद्र सिंह खुद चुनावी राजनीति से सन्यास तक लेने की बात कह रहे हैं। भाजपा युवा मोर्चा के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता राजू मोर भी सोनीपत से भाजपा टिकट के दावेदारों में शामिल हैं। वहीं हिसार संसदीय क्षेत्र से पूर्व सांसद सुरेंद्र बरवाला को भी भाजपा द्वारा टिकट दिए जाने की चर्चाएं तेज हैं। यह सभी नेता जींद जिले से हैं। नई बनी जजपा द्वारा भी अपने जींद जिले के प्रधान कृष्ण राठी को सोनीपत संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाए जाने की संभावनाएं काफी प्रबल हैं।