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गुरुवार, 30 अगस्त 2012

भय व भ्रम की भूल भूलैया से बाहर निकलने के लिए कीट ज्ञान ही एकमात्र द्वार

खाप पंचायत की 10वीं बैठक में मौजूद खाप प्रतिनिधियों ने किसान-कीट विवाद पर किया मंथन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
हमारे बुजुर्गों से हमें जो मिला है, क्या वह सब कुछ हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को दे पाएंगे? आज यह सवाल हमारे सामने एक चुनौति बनकर खड़ा है। अगर फसलों में पेस्टीसाइड का प्रयोग इसी तरह बढ़ता रहा तो हम आने वाली अपनी पुस्तों को बंजर जमीन व दूषित पानी के साथ-साथ कई प्रकार की लाइलाज बीमारियां पैतृक संपत्ति के तौर पर देकर जाएंगे। देश में बीटी के प्रचलन से पहले किसान के पास देसी कपास की 34 किस्में होती थी। लेकिन 2002 में बीटी के प्रचलन के बाद से अब तक इन 10 वर्षों में हमे अपनी देसी कपास की इन 34 किस्मों को खो चुके हैं। जो भविष्य में हमारे सामने आने वाली एक भयंकर मुसिबत की आहट है। यह बात अखिल भारतीय जाट महासभा के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह ने मंगलवार को निडाना गांव के खेतों में किसान खेत पाठशाला के दौरान पंचायत में किसान-कीट विवाद की सुनवाई के दौरान कही। पंचायत की अध्यक्षता बरहा कलां बारहा के प्रधान एवं सर्व खाप महापंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने की। इस अवसर पर पंचायत में अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष ओमप्रकाश मान, दिल्ली 360 पालम के प्रधान रामकरण सौलंकी, महम चौबिसी के प्रधान धर्मबीर केशव, प्रसिद्ध समाजसेवी देवव्रत ढांडा, राममेहर मलिक, प्रगतिशील किसान क्लब के सदस्य राजबीर कटारिया भी विशेष रूप से मौजूद थे।
पंचायत की शुरूआत के साथ ही किसानों ने अपने रुटीन  के कार्य को जारी रखते हुए कपास के पौधों पर कीटों की गिनती कर कीट बही खाता तैयार किया। आस-पास के गांवों से आए सभी कीट मित्र किसानों ने भी अपने-अपने खेत में मौजूद कीटों का आंकड़ा बही खाते में दर्ज करवाया। किसानों ने बही खाता तैयार कर पंचायत के समक्ष प्रस्तुत किया। बही खाते में दर्ज आंकड़ों के आधार पर कोई भी कीट अभी तक फसल में नुकसान पहुंचाने की आर्थिक स्थित के कागार से कोसों दूर हैं। किसान रामदेवा ने बताया कि कपास की फसल में कृषि वैज्ञानिक रस चूसने वाले कीट सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़े को सबसे खतरनाक मानते हैं। लेकिन अगर वास्तविकता पर नजर डाली जाए तो ये तीनों मेजर कीट कपास के पौधे से सिर्फ रस ही चूसते हैं, जिससे कपास की फसल पर कोई ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। इन कीटों को कंट्रोल करने के लिए किसी कीटनाशक की आवश्यकता नहीं है। इन कीटों को खाने के लिए कपास की फसल में कई किस्म के मासाहारी कीट मौजूद होते हैं। सिवाहा से आए किसान अजीत ने बताया कि किसान भय व भ्रम का शिकार है और इसीलिए भ्रमित होकर डर के मारे फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करता है। इस भय व भ्रम को दूर करने के लिए किसानों को कीटों की पहचाना होना जरुरी है। जब तक किसानों के पास अपना खुद का अनुभव या ज्ञान नहीं होगा तब तक किसान कीटनाशकों की इस भूल भूलैया से बाहर नहीं निकल पाएगा। इसी दौराना किसानों ने अपने प्रयोग को आगे बढ़ाते हुए पाठशाला में आए सभी खाप प्रतिनिधियों से पांच पौधों के तीसरे हिस्से के पत्ते कटवाए। पाठशाला के समापन पर सभी खाप प्रतिनिधियों को पगड़ी बांधकर व स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया।

आकाशवाणी की टीम ने भी बांटे किसानों के अनुभव

खाप प्रतिनिधि को स्मृति चिह्न देते किसान 

कपास के पोधे के पत्ते काटे खाप प्रतिनिधि 

आकाशवाणी रोहतक से आए सीनियर अनाउंसर सम्पूर्ण भाई डा दलाल से बातचीत करते हुए 
निडाना के किसानों की आवाज को देश के अन्य किसानों तक पहुंचाने के लिए आकाशवाणी रोहतक की टीम भी किसानों के बीच पहुंची। पंचायत के समापन के बाद आकाशवाणी रोहतक से आए सीनियर अनाउंसर सम्पूर्ण भाई ने सभी किसानों से उनके अनुभव पर बातचीत की। आकाशवाणी ने इस पूरे कार्यक्रम का रेडियो पर 50 मिनट तक लाइव चलाकर देश के अन्य क्षेत्र के किसानों को भी इस मुहिम से रू-ब-रू करवाया। निडाना व ललीतखेड़ा से आई महिलाओं ने कीटों पर तैयार किए गए गीत सुनाकर सभी श्रोताओं का मनोरंजन भी किया और उन्हें भी बिना कीटनाशक रहित खेती के लिए प्रेरित किया। 50 मिनट के इस कार्यक्रम के दौरान निडाना के किसानों ने फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी व मासाहारी कीटों पर गहनता से चर्चा की।

गुरुवार, 16 अगस्त 2012

‘असी तवाड़े प्यार नू कदे भी नहीं भूल पावांगे’

निडाना के ग्रामीणों के अतिथि सत्कार से गदगद हुए पंजाब के किसान

कीट ज्ञान के साथ-साथ निडाना के ग्रामीणों का प्यार साथ लेकर गए पंजाब के किसान

नरेंद्र कुंडू
जींद।
निडाना दे किसाना नूं साडा जो आदर-सत्कार किता सी, असी ओना दे इस प्यार नू कदे वी नहीं भूल पावांगे। यह शब्द बयां कर रहे थे पंजाब के किसानों के जज्बात को, जो निडाना के ग्रामीणों के अतिथि सत्कार से खुश होकर बार-बार उनकी जुबान पर आ रहे थे। ये किसान आए तो थे निडाना के किसानों से कीट प्रबंधन के गुर सीखने, लेकिन यहां के ग्रामीणों की मेहमान नवाजी से इतने खुश हुए कि उसका जिक्र किए बिना नहीं रह पा रहे थे। पंजाब के किसान यहां के किसानों से कीट प्रबंधन के साथ-साथ अतिथि सत्कार के नए गुर भी सीख कर गए। ग्रामीणों ने पंजाब के किसानों को यह महशूस ही नहीं होने दिया कि ये यहां किसी टूर पर आए हुए हैं। ग्रामीणों ने पंजाब के किसानों को किसी, मंदिर, धर्मशाला में न ठहराकर अपने-अपने घरों में ही इनके रुकने की व्यवस्था की। निडाना के किसानों ने अपनी मेहमान नवाजी से पंजाब के किसानों के दिलो-दिमाक पर प्यार की एक अमीट छाप छोड़ दी।
पंजाब कृषि विभाग द्वारा आत्मा स्कीम के तहत जिला नवां शहर से 6 कृषि अधिकारियों के नेतृत्व में 38 किसानों का एक दल कीट प्रबंधन के गुर सीखने के लिए दो दिवसीय अनावरण यात्रा पर जींद जिले के निडाना गांव में भेजा था। निडाना के ग्रामीणों में भी पंजाब से आने वाले किसानों को लेकर खासा उत्साह था। इसलिए निडाना के ग्रामीणों ने इनके आदर-सत्कार के लिए पूरी तैयारी की हुई थी। निडाना के ग्रामीणों ने पंजाब के किसानों को किसी मंदिर, चौपाल या धर्मशाला में ठहराने की बजाए, इन्हें चार-चार के ग्रुप में बांटकर गांव में ही दस घरों में ठहराने व खाने-पीने का पूरा इंतजाम किया था। पंजाब के किसान ग्रामीणों द्वारा किए गए इस प्रबंध से गदगद हुए बिना नहीं रह सके। रात को खाना खाने के बाद पंजाब के किसानों ने इनके परिवार के साथ बैठकर बातचीत की व इनसे खेती के नए-नए नुस्खे सीखे। सुबह नाशता करने के बाद ये किसान गांव के खेतों में चल रही किसान खेत पाठशाला में पहुंचे और यहां के कीट मित्र किसानों से कीट प्रबंधन के गुर सीखे। इसके साथ ही इन किसानों ने कीट बही खाता तैयार करना, पौधों की भाषा सीखना व कीटों के क्रियाकलापों के बारे में भी जानकारी जुटाई। इसी दौरान पंजाब के किसानों ने इन कीट मित्र किसानों से खुलकर बहस की व अपनी समस्याओं के समाधान भी करवाए। पंजाब से आए किसानों ने बताया कि पंजाब कृषि क्षेत्र में हरियाणा से आगे है, जिस कारण यहां कीटनाशकों का प्रयोग भी काफी ज्यादा है। जिसके परिणाम स्वरूप ही पंजाब में कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों के मरीजों की तादात भी काफी बढ़ी है। उन्होंने कहा कि वे भी इस जहर से छुटकारा पाना चाहते हैं, परंतु उन्हें इससे बचने का कोई रास्ता ही नजर नहीं आ रहा था। लेकिन अब निडाना के किसानों ने उन्हें एक नया रास्ता दिखाया है। उन्होंने कहा कि यहां से उन्होंने जो कुछ सीखा है उसे वे अपने क्षेत्र के किसानों को भी सिखाएंगे, ताकि लोगों की थाली में बढ़ रहे इस जहर को कम किया जा सके। निडाना के किसानों के कीट ज्ञान को देखकर पंजाब के किसान चकित रह गए। इसके बाद पंजाब के किसानों ने निडानी गांव में लंच किया। निडानी के ग्रामीणों ने भी इनके आदर-सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां से ये किसान अलेवा  के लिए रवाना हुए और अलेवा में कीटनाशक रहित धान व कीटनाशकों के प्रयोग वाली धान की तुलना की। इसके बाद शाम को यहां से ये किसान वापिस पंजाब के लिए रवाना हुए।

यहाँ के लोगों से खूब आदर-सत्कार मिला 

पंजाब से आए किसानों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते निडाना के किसान।
निडाना के ग्रामीणों ने उनका खूब आदर-सत्कार किया है। उनके इस प्यार को वह व उनके साथ आए किसान कभी भी भूला नहीं पाएंगे। यहां आने से पहले उनके दिमाक में यहां के किसानों के खेती करने व कीट प्रबंधन के बारे में कई प्रकार के सवाल थे, लेकिन यहां आकर सब कुछ साफ हो गया है। यहां के किसानों द्वारा शुरू की गई इस मुहिम को वे अपने राज्य में भी शुरू करेंगे और खाने में बढ़ रहे इस जहर को कम करेंगे, ताकि आने वाली जरनेशन उनसे यह सवाल न करे कि उन्होंने उनके लिए क्या किया है।
डा. सुखजींद्र पाल
प्रोजैक्ट डायरेक्टर आत्मा स्कीम
कृषि विभाग, पंजाब

सोमवार, 13 अगस्त 2012

‘कीड़ों’ की पढ़ाई पढ़ने के लिए निडाना आएंगे पंजाब के किसान

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के निडाना गांव के कीट मित्र किसानों की मेहतन अब रंग लाने लगी है। निडाना गांव के खेतों से शुरू हुई जहरमुक्त खेती की गुंज अब जिले ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों में भी सुनाई देने लगी है। जिससे प्रेरित होकर दूसरे प्रदेशों के किसान भी अब कीटनाशक रहित खेती के गुर सीखने के लिए निडाना की ओर रूख करने लगे हैं। सोमवार को जिला नवां शहर (पंजाब) के 35 किसानों का एक दल कृषि अधिकारियों के साथ दो दिवसीय अनावरण यात्रा पर निडाना की 12 ग्रामी किसान खेत पाठशाला में पहुंच रहा। इस दौरान किसानों का यह ग्रुप निडाना के कीट मित्र किसानों से कीट प्रबंधन पर चर्चा करेगा तथा कीट नियंत्रण व किसान खेत पाठशाला के तौर तरीके सीखेगा। इन किसानों के रहने व खाने का प्रबंध भी निडाना गांव के किसानों द्वारा खुद अपने स्तर पर किया जाएगा। इस दौरान इनके बीच विश्व प्रसिद्ध कीट वैज्ञानिक डा. सरोज जयपाल भी मौजूद रहेंगी।
किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सीखा कर लोगों की थाली में बढ़ते जहर को कम करने के लिए निडाना गांव के किसानों द्वारा शुरू की गई यह मुहिम दूसरे प्रदेशों में भी फैलने लगी है। निडाना के खेतों से शुरू हुई कीटनाशक रहित खेती की इस क्रांति को पंजाब में फैलाने का बीड़ा अब जिला नवां शहर के किसानों ने उठाया है। इस क्रांति को पंजाब में सफल बनाने के लिए पंजाब का कृषि विभाग भी किसानों का पूरा सहयोग कर रहा है। वहां के कृषि विभाग के अधिकारियों ने नवां शहर के किसानों को कीट प्रबंधन तथा कीटनाशक रहित खेती की ट्रेनिंग दिलवाने के लिए 35 किसानों के एक दल का गठन किया है। यह दल अब सोमवार को दो दिवसीय ट्रेनिंग के लिए निडाना में पहुंच रहा है। इस दल में शामिल किसानों के रहने व खाने का प्रबंध खुद निडाना गांव के किसानों द्वारा अपने स्तर पर किया गया है। इसमें खास बात यह है कि पंजाब से आने वाले इन किसानों का रात को ठहरने का प्रबंधन किसी चौपाल, स्कूल या धर्मशाला में नहीं बल्कि निडाना के किसानों ने खुद अपने ही घर में किया है। निडाना के ग्रामीणों द्वारा इन किसानों का चार-चार, पांच-पांच का समूह बनाकर एक-एक घर में ठहराया जाएगा। ताकि नवां शहर के ये किसान खाना खाने के बाद रात को निडाना के किसानों के परिवार के साथ बैठकर उनके खेती के तौर-तरीकों व कीट प्रबंधन पर उनके साथ खुल कर चर्चा कर इसे अच्छी तरह से समझ सकें।

किस-किस किसान के घर में होगा रात्रि ठहराव

पंजाब से आने वाले किसानों के रात्रि ठहराव व खाने की व्यवस्था की जिम्मेदारी निडाना गांव के दस किसानों को सौंपी गई है। जिसमें वीरेंद्र मलिक, रतन सिंह, रघुवीर सिंह, सत्यवान, कप्तान, राजेंद्र सिंह, रमेश मलिक, बलराज, विनोद, राजवंती। रात्रि के भोजन के पश्चात इन किसानों को कीटों की पहचान के लिए लैपटॉप पर कीटों के चित्र भी दिखाए जाएंगे।

क्या रहेगा किसानों का शैड्यूल

दो दिवसीय यात्रा पर आने वाले किसानों का समय व्यर्थ न जाए इसके लिए निडाना के किसानों ने पहले से ही पूरा शैड्यूल तैयार कर रखा है। पंजाब के किसान सोमवार सायं 5-6 बजे के करीब निडाना पहुंचेगे। यहां पहुंचने के बाद रात को खाना खिलाने के बाद इन किसानों को लैपटॉप पर कीटों की पहचान के लिए कीटों के चित्र दिखाए जाएंगे। इसके बाद मंगलवार सुबह आठ बजे ये किसान निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में कीट सर्वेक्षेण में भाग लेंगे तथा यहां कीट-बही खाता तैयार करना सीखेंगे। इसके बाद निडानी गांव के किसानों के घर लंच करेंगे। यहां पर लंच के बाद निडानी के जयभगवान व महाबीर पूनिया के खेतों का सर्वेक्षण कर इनके द्वारा बोई गई कपास व मुंग की मिश्रित खेती तथा घर से तैयार कर बोई गई बीटी कपास की फसल का निरीक्षण करेंगे। इसके बाद अलेवा में प्रगतिशील किसान जोगेंद्र सिंह लोहान के खेत में जाकर कीटनाशक रहित धान की फसल की तुलना आस-पड़ोस की फसलों के साथ करेंगे। यहां पर जलपान कर वापिस पंजाब के लिए रवाना होंगे।

मुख्य कृषि अधिकारी ने पहले स्वयं किया था निरीक्षण

निडाना गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला के चर्चे सुनने के बाद नवां शहर (पंजाब) के मुख्य कृषि अधिकारी डा. सर्वजीत कलंदरी मई माह में यहां स्वयं निरीक्षण के लिए आए थे। ताकि इस पाठशाला की वास्तविकता को परखा सकें। मुख्य कृषि अधिकारी ने निडाना के किसानों के कीट ज्ञान को खुब झाड़-परखने के बाद ही अपने जिले के किसानों की टीम को यहां भेजने का निर्णय लिया था।

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

बुंदाबांदी के मौसम में भी महिलाओं ने किया कीट अवलोकन व निरीक्षण

महिलाओं ने तेलन नामक कीट के क्रियाकलापों पर किया मंथन

नरेंद्र कुंडू 
जींद। ललीतखेड़ा गांव की किसान पूनम मलिक के खेत में चल रही महिला किसान पाठशाला में बुधवार को महिलाओं ने बुंदाबांदी के मौसम में भी कीट अवलोकन एवं निरीक्षण किया। कीट निरीक्षण के दौरान पाया गया कि अभी तक कपास की फसल में मौजूद रस चूसक कीट सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़ा फसल में आर्थिक कागार को पार नहीं कर पाए हैं। प्रेम मलिक ने पाठशाला में मौजूद महिला किसानों के समक्ष कपास के खेत में मौजूद तेलन के प्रति अपनी आशंका जताते हुए पूछा की तेलन कपास की फसल में क्या करती है। क्योंकि प्रेम मलिक पिछले सप्ताह अपनी कपास की फसल में तेलन नामक कीट के क्रियाकलापों को देखकर चिंतित थी। प्रेम मलिक ने महिलाओं को तेलन के क्रियाकलापों का जिकर करते हुए बताया कि तेलन कपास के पौधों पर बैठकर कपास के फूलों को खा रही थी। जिससे कारण उसे फसल के उत्पादन की चिंता सता रही है। महिलाओं ने प्रेम मलिक की समस्या का समाधान करने के लिए फसल में मौजूद तेलन के क्रियाकलापों को बड़े ध्यान से देखा। महिलाओं ने पाया कि तेलन द्वारा अधिकतर कपास के फूलों की पुंखडि़यों व फूल के नर पुंकेशर ही खाए हुए थे, जबकि स्त्री पुंकेशर सुरक्षित था। महिलाओं ने महिला किसान की समस्या का समधान धान करते हुए कहा कि जब तक फूल में स्त्री पुंकेशर सुरक्षित है तब तक फसल के उत्पादन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। बल्कि तेलन इस प्रक्रिया में परागन करवाने की भूमिका भी निभाएगी। मीना मलिक ने बताया कि तेलन अपने अंडे जमीन में देती है और इसके अंडों में से निकलने वाले बच्चे दूसरे कीटों के अंडों व बच्चों को खाकर अपना गुजारा करते हैं। इनमें खासकर टिडे के बच्चे शामिल हैं। इसलिए जिस वर्ष कपास में तेलन की संख्या ज्यादा होगी उस वर्ष टिडे कम मिलेंगे। रणबीर मलिक ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह तेलन पिछले वर्ष उसकी देसी कपास में भी आई थी। जिसे देखकर उसके माथे पर भी चिंता की लकीरे पैदा हो गई थी, लेकिन यह जल्द ही कपास के फूलों को छोड़कर जंतर (ढैंचा) के फूलों पर चली गई थी। लेकिन इसमें ताज्जुब की बात यह है थी कि तेलन द्वारा जंतर पर चले जाने के बाद भी जंतर की एक भी फली खराब नहीं हुई। सुषमा मलिक ने बताया कि कपास की फसल का जीवन चक्र 170 से 180 दिन का होता है और अब फिलहाल कपास की फसल 100 दिन के लगभग हो चुकी है। लेकिन अब तक पाठशाला में आने वाली किसी भी महिला को अपनी फसल में एक छटांक भी कीटनाशक के प्रयोग की जरुरत नहीं पड़ी है। इसलिए तो कहते हैं कीट नियंत्रणाय कीट हि: अस्त्रामोघा। अर्थात कीट नियंत्रण में कीट ही अचूक अस्त्र हैं।
कपास के फूलों की पुंखडि़यों को खाती तेलन 
 कपास की फसल का निरीक्षण करती महिला किसान।

खेत में कीटों का अवलोकन करती महिलाएं 



किसान-कीट की जंग में जीत के लिए किसानों को पैदा करना होगा खुद का ज्ञान

किसानों ने ढुंढ़े कपास की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले तीन मेजर कीट

नरेंद्र कुंडू
जींद।
किसान-कीट के विवाद की सुनवाई के लिए मंगलवार को निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में खाप पंचायत की सातवीं बैठक हुई। बैठक की अध्यक्षता बराह कलां बारहा खाप के प्रधान एवं सर्व खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने की। इस अवसर पर बैठक में मलिक खाप के प्रधान दादा बलजीत मलिक, चौपड़ा खाप नरवाना के प्रधान अजमेर सिंह चौपड़ा तथा सतरोल खाप के प्रधान सूबेदार इंद्र सिंह विशेष रूप से मौजूद रहे। बैठक की अध्यक्षता करते हुए कुलदीप ढांडा ने कहा कि जिस तरह इंसानों के पास अपनी सुरक्षा के लिए वायु सेना व थल सेना हैं, ठीक उसी प्रकार कीटों के पास भी वायु सेना व थल सेना हैं। कीटों की थल सेना में दीमक की पूरी फौज है। जो जमीन के अंदर रहकर अपनी लड़ाई लड़ती है और रही बात वायु सेना की हवाई सेना में टिड्डी हैं। अगर खुदा न खास्ता कीटों की वायु सेना ने हमला कर दिया तो दूर-दूर तक कुछ नहीं बेचेगा। टिड्डियां जहां से गुजरती हैं वहां फसल, पेड़-पौधे सब कुछ खत्म हो जाता है। इसलिए कीटों का पलड़ा भारी है और किसान-कीट की इस जंग में जीत भी कीटों की ही निश्चित है। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि किसानों के पास अपना खुद का ज्ञान नहीं है तथा कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर किसानों में भय व भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। जिस कारण किसान समय पर स्वयं निर्णय नहीं ले पाता और किसान को अपनी समस्या के समाधान के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए किसानों को इस जंग में जीत हासिल करने के लिए खुद का ज्ञान पैदा करना होगा। डा. दलाल ने कहा कि कीटों पर काम कर रहे किसानों ने अब तक 43 किस्म के शाकाहारी कीटों की पहचान की है। इन कीटों को चार भागों में बांटा गया है। पहले भाग में रस चूसने वाले, दूसरे भाग में पर्णभक्षी तथा तीसरे भाग में फूलाहारी व चौथे भाग में फलाहारी कीटों को रखा गया है। इन 43 कीटों में से सिर्फ तीन किस्म के ही ऐसे मेजर कीट हैं, जो फसल का रस चूसते हैं और फसल को इनसे सबसे ज्यादा नुकसान का खतरा रहता है। इसलिए इस पाठशाला में कीटों का पक्ष रखने के लिए हर सप्ताह नए-नए प्रयोग किए जाते हैं और फसल में मौजूद इन तीनों मेजर कीटों की गिनती करवा कर कीट-बही खाता तैयार किया जाता है। अब तक तैयार किए गए कीट बही खाते से प्राप्त आंकड़ों से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि अब तक कपास की फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं है। जिस खेत में यह प्रयोग चल रहा है वह फसल भी अभी  तक पूरी तरह से स्वस्थ है। राजपुरा भैण से आए किसान बलवान ने बताया कि कीटों की पढ़ाई शुरू करने से पहले उनके गांव के किसान कपास की भस्मासुर के नाम से मशहूर मिलीबग से ज्यादा डरते थे। फसल में मिलीबग की दस्तक के साथ ही अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करते थे। लेकिन जब से किसानों को कीटों की पहचान होने लगी है तब से किसानों का मिलीबग के प्रति जो भय था वो निकल गया है। अब उनके गांव के किसानों ने फसल में कीटनाशकों की जगह डीएपी, यूरिया व जिंक का छिड़काव करते हैं। पाठशाला में चल रहे पत्ते काटने के प्रयोग को आगे बढ़ाते हुए खाप प्रतिनिधियों से पत्ते कटवाए गए। इसके साथ ही किसानों ने फसल में अवलोकन के दौरान देखे दर्शयों को किसानों के साथ सांझा किया। मलिक खाप के प्रधान दादा बलजीत मलिक ने किसानों द्वारा शुरू किए गए इस अनोखे कार्य की सरहाना की। इस अवसर पर पाठशाला में निडाना, निडानी, ललीतखेड़ा, चाबरी, सिवाहा, ईगराह, खरकरामजी, र्इंटलकलां, राजपुरा भैण सहित कई गांवों के किसान मौजूद थे।
पंचायत में मौजूद खाप प्रतिनिधि व किसान।
खाप प्रतिनिधियों से पत्ते कटवाते हुए किसान।
 खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान।



शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

किसान-कीट मुकदमे की सुनाई में खाप पंचायतों के साथ पहुंचे कृषि अधिकारी



 किसानों के सामने अपने विचार रखते कृषि विभाग के अधिकारी।
 कृषि विभाग के उपनिदेशक को स्मृति चिह्न भेंट करते निडाना के किसान।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
कीट-किसान मुकदमे की सुनवाई के लिए मंगलवार को निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में खाप पंचायत की तरफ से नौगाम खाप के प्रधान कुलदीप सिंह रामराये, लोहाना खाप के प्रतिनधि रामदिया तथा पूनिया खाप की तरफ से जोगेंद्र सिंह पहुंचे। खाप पंचायतों के अलावा हिसार के कृषि उपनिदेशक डा. रोहताश, बीएओ डा. महीपाल, एडीओ डा. मांगेराम भी विशेष रूप से मौजूद थे। खाप पंचायतों व कृषि अधिकारियों ने नरमे के खेत में बैठकर कीट मित्र किसानों के साथ कीटों की पढ़ाई पढ़ी। कीट मित्र किसान रणबीर रेढू ने बताया कि पहले उन्हें कपास की फसल में पाए जाने वाले सिर्फ 109 कीटों की पहचान थी। जिसमें 83 कीट मासाहारी तथा 26 कीट शाकाहारी थे। लेकिन अब उन्होंने कपास की फसल में 140 कीटों की पहचान कर ली है। जिसमें 43 कीट शाकाहारी तथा 97 कीट मासाहारी हैं। रेढू ने बताया कि शाकहारी कीटों में 20 किस्म के रस चूसक, 13 प्रकार के पर्णभक्षी, तीन प्रकार के फलाहारी तथा तीन प्रकार के पुष्पाहारी कीट मौजूद हैं। इसके बाद किसानों ने फसल में किए गए अवलोकन के आंकड़े दर्ज करवाए। किसानों ने बताया अवलोकन के दौरान उन्होंने कपास की फसल में कातिल बुगड़ा, लेडी बिटल, 5 तहर की मकड़ी, दिखोड़ी, फलेहरी बुगड़ा, डायन मक्खी, बुगड़े, हथजोड़ा, क्राइसोपा के अंडे व बच्चे, मकड़ी मकड़ी व टिडे का शिकार करते देखी। इसके अलावा मकड़ी द्वारा सफेद मक्खी का शिकार करते देखा गया। किसान रमेश ने अपने अनुभव के बारे में बताते हुए कहा कि उसने 24 जुलाई को सिंगुबुगड़े अंडे देते हुए पकड़ा था। रमेश ने बताया कि सिंगुबुगड़े के अंडे से बच्चे बनने में 115 घंटे यानि चार-पांच दिन का समय लगता है। उसने बताया कि इसके बाद बच्चे तीन दिन में एक बार कांजली भी  उतारते हैं। रमेश ने बताया कि 25 जुलाई को उसने कातिल बुगड़ा नामक कीट को पकड़ा था। कातिल बुगड़े ने 24 घंटे के दौरान 6 सलेटी भूडों को चट कर दिया। रमेश ने खाप प्रतिनिधियों को समझाते हुए कहा कि कातिल बुगड़े के अंडों से बच्चे निकलने में 113 घंटे लगते हैं। पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल ने कहा कि कपास की फसल में परपरागण में कीटों की अहम भूमिका होती है। इसका प्रमाण किसान 2001 में देख चुके हैं। 2001 में किसानों ने कपास की फसल में 40 के लगभग स्प्रे किए थे। यानि के किसान तीन दिन में एक बार कपास की फसल में कीटनाशक का छिड़काव करते थे। डा. दलाल ने कहा कि जब कीटों के बच्चों को अंडे से निकलने में चार से पांच दिन का समय लगता है और किसान तीन दिन में एक बार स्प्रे का प्रयोग करते थे। यानि के किसान बच्चों को पैदा होने से पहले ही लपेटे में ले लेते थे। फसल में कीटों की मौजूदगी न होने के कारण परागण प्रक्रिया भी  नहीं हो सकी। जिसका सीधा प्रभाव पैदावार पर पड़ा। इससे यह बात सिद्ध होती है कि अगर फसल में कीट होंगे तो परागण क्रिया होगी नहीं तो परागण क्रिया पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। जिससे उत्पादन भी कम होगा। बराह कलां बाराह के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि जिस क्षेत्र में कॉटन की अधिक पैदावार होती है, वहां कैंसर के मरीजों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है। क्योंकि कॉटन की फसल में सबसे ज्यादा कीटनाकशें का प्रयोग होता है। ढांडा ने पंजाब के भठिंडा का उदहारण देते हुए कहा कि भठिंडा में कॉटन की ज्यादा पैदावार होती है और वहां कैंसर के मरीजों की संख्या भी काफी ज्यादा है। भठिंडा में 10 में से 9 लोग कैंसर से पीडि़त हैं। हिसार से आए एडीओ डा. मांगे राम ने बताया कि 2003 में उसने तीन एकड़ में देसी कपास की फसल लगाई थी। इस दौरान उसने एक बार भी अपनी फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया और फिर भी उसे 19 मण प्रति एकड़ की पैदावार मिली। पाठशाला में लाडवा (हिसार) व बहादुरगढ़ के किसान भी विजिट के लिए पहुंचे थे।
निडाना के किसानों ने एक अनोखी पहल की है। इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए वे अपने क्षेत्र के किसानों को यहां पर ट्रेनिंग के लिए भेजेंगे। आज उनके साथ जो कृषि अधिकारी आए हैं, उन्हें भी अपने-अपने क्षेत्र में इस तरह की पाठशाला चलाने के लिए प्रेरित करेंगे। ताकि इस मुहिम को आगे बढ़ाकर देश के कोने-कोने तक पहुंचाया जा सके और थाली से जहर को कम किया जा सके।
डा. रोहताश
कृषि उपनिदेशक, हिसार

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

कीटों की ‘कलाइयों’ पर भी सजा बहनों का प्यार

‘हो कीड़े भाई म्हारे राखी के बंधन को निभाना’ 

राखी बांधकर कीटों से शुगुन के तौर पर मांगी फसलों की सुरक्षा

नरेंद्र कुंडू
जींद।
भाई व बहन के प्यार के प्रतीक रक्षाबंधन के त्योहार पर आप ने बहनों को भाइयों की कलाइओं पर राखी बांधते हुए तो खूब देखा होगा, लेकिन कभी देखा या सुना है कि किसी लड़की या किसी महिला ने कीट को राखी बांधकर अपना भाई माना हो और कीट ने उसे राखी के बदले कोई शुगुन दिया हो नहीं ना। लेकिन निडाना व ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं ने रक्षाबंधन के अवसर पर कीटों की कलाइयों पर बहन का प्यार सजाकर यानि राखी बांधकर ऐसी ही एक नई रीति की शुरूआत की है। महिलाओं ने कीटों के चित्रों पर प्रतिकात्मक राखी बांध कर इन्हें अपने परिवार में शामिल कर इनको बचाने का संकल्प लिया है। कीट मित्र महिला किसानों ने बुधवार को ललीतखेड़ा गांव में पूनम मलिक के खेतों पर आयोजित महिला किसान पाठशाला में रक्षाबंधन के अवसर पर मासाहारी कीटों के चित्रों पर राखी बांध कर कीटों को भाई के रूप में अपना लिया। इसके साथ ही इन अनबोल मासाहारी कीटों ने भी इन महिला किसानों को शुगुन के रूप में उनकी थाली से जहर कम करने का आश्वासन दिया। रक्षाबंधन के आयोजन से पहले महिला किसान पाठशाला की रूटिन की कार्रवाई चली। महिला किसानों ने कपास की फसल का अवलोकन कर कीट बही-खाता तैयार किया।
निडाना व ललीतखेड़ा की महिला किसान पाठशाला की महिलाओं ने भाई-बहन के प्यार के प्रतिक रक्षाबंधन के पर्व पर कीटों को राखी बांधकर नई परंपरा की शुरूआत की है। इन महिला किसानों द्वारा शुरू की गई इस नई परंपरा से जहां कीटों को तो पहचान मिलेगी ही, साथ-साथ हमारे पर्यावरण पर भी इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे। कीट मित्र महिला किसानों ने बुधवार को महिला किसान पाठशाला में मासहारी कीट हथजोड़े को राखी बांधकर सभी मासाहारी कीटों को अपना भाई स्वीकार कर उन्हें अपने परिवार का अंग बना लिया। महिलाओं ने राखी बांधकर यह संकल्प लिया कि वे फसल में मौजूद कीटों की सुरक्षा के लिए अपनी फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं करेंगी। इसके साथ-साथ महिलाओं ने ‘हो कीड़े भाई म्हारे राखी के बंधन को निभाना’ गीत गाकर कीटों से राखी के शुगुन के तौर पर उनकी फसल की सुरक्षा करने की विनित की। महिलाओं ने रक्षाबंधन की पूरी परंपरा निभाई तथा कीटों के चित्रों को राखी बांधने के बाद उनकी आरती भी उतारी। इसके अलावा महिलाओं ने ‘ऐ बिटल म्हारी मदद करो हामनै तेरा एक सहारा है, जमीदार का खेत खालिया तनै आकै बचाना है’, ‘निडाना-खेड़ा की लुगाइयां नै बढ़ीया स्कीम बनाई है, हमनै खेतां में लुगाइयां की क्लाश लगाई है’, ‘अपने वजन तै फालतु मास खावै वा लोपा माखी आई है’ आदि भावुक गीत गाकर किसानों को झकझोर कर रख दिया। अंग्रेजो, गीता मलिक, बिमला मलिक, कमलेश, राजवंती, मीना मलिक ने बताया कि किसान जानकारी के अभाव में अपनी फसल के रक्षकों के ही भक्षक बन जाते हैं। उन्होंने बताया कि फसल में दो प्रकार के कीट होते हैं एक शाकाहारी व दूसरे मासाहारी। मासाहारी मास खाकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं। शाकाहारी फसल के फूल, पत्ते खाकर व इनका रस चूसकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। खान-पान के अधार पर शाकाहारी कीट भी दो प्रकार के होते हैं। एक डंक वाले व दूसरे चबाकर खाने वाले। पाठशाला की शुरूआत के साथ ही महिलाओं ने अपने रूटिन के कार्य पूरे किए। महिलाओं ने फसल का अवलोकन कर कीट बही-खाता तैयार किया। बही-खाते में दर्ज रिपोर्ट के आधार पर फसल में अभी तक किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं थी। इस अवसर पर पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल के साथ खाप पंचायतों के संयोजक कुलदीप ढांडा, कीट कमांडो किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढू, रमेश सहित अन्य किसान भी मौजूद थे।  

140 पर पहुंची कीटों की गिनती

 कीटों को राखी बांधने से पहले थाली सजाती महिलाएं।

 कीटों को राखी बांधने से पहले थाली सजाती महिलाएं।

हथजोड़ा नामक कीट के चित्र की आरती उतारती महिलाएं।

हथजोड़ा नामक कीट के चित्र पर तिलक करती महिलाएं

बहना की कलाई पर राखी बंधवाने पहुँचा - मटकू बुग्ड़ा
महिलाओं ने बताया कि उन्हें अब तक 109 किस्म के कीटों की ही पहचान थी, लेकिन अब उन्हें 140 किस्म के कीटों की पहचान हो चुकी है। इनमें 43 शाकाहारी व 97 मासाहारी कीट होते हैं। मासाहारी कीटों की संख्या शाकाहारी कीटों से काफी ज्यादा है। जहां पर शाकाहारी कीट मौजूद होंगे वहां पर मासहारी कीट भी अपने आप आ जाएंगे। मासाहारी कीट अपने पालन-पोषण के लिए शाकाहारी कीटों को अपना भेजन बनाते हैं। इस प्रकार शाकाहारी व मासाहारी कीटों के जीवनचक्र में किसान को लाभ मिल जाता है।