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मंगलवार, 15 नवंबर 2022

भारतीय वैवाहिक व्यवस्था विश्व की सर्वश्रेष्ठ वैवाहिक व्यवस्था क्यों है


- डॉ उमेश प्रताप वत्स

भारतीय समाज में विवाह संबंधों को प्राण से भी बढ़कर महत्वपूर्ण माना जाता है। विश्व के अन्य देशों के लोग यह जानकर आश्चर्य चकित हो जाते हैं कि भारत के लोग किस तरह एक ही साथी के साथ पूरा जीवन गुजार देते हैं तभी तो यहाँ साथी को जीवन साथी कहकर बुलाया जाता है। 

यदि भावना से अलग होकर आकलन किया जाये तो सामाजिक जीवन में वैवाहिक परम्परा दो ज्ञात-अज्ञात महिला-पुरुष को इतने निकट संबंध में लेकर आता है कि बाकि सब संबंध गौण हो जाते हैं। यद्यपि माता-पिता, भाई-बहन व पुत्र-पुत्रियों का भी प्रगाढ़ अटूट संबंध है जिनका महत्व कदापि कम नहीं हो सकता और ये संबंध रक्त के साथ-साथ भावनात्मक भी है तथापि रचनात्मक रूप से विचारे तो मात-पिता का झुकाव अन्य बच्चों की ओर भी हो सकता है। भाई-बहन विवाह उपरांत अपने परिवार में ध्यान देने लगते हैं और बच्चें अपना परिवार होने पर व्यस्त हो जाते हैं। बस! एक पत्नी अथवा पति ही मरते दम तक गाड़ी के दो पहिये की तरह एक साथ मिलकर चलते हुए अपने जीवन की गाड़ी को अपने सपनों की दुनिया में ले जाने का अथक, अविराम निरंतर प्रयास करते ही रहते हैं। हिन्दुस्थान की वैवाहिक परम्पराओं का यदि अध्ययन किया जाये तो यह पृथ्वी लोक पर सर्वाधिक अद्भुत, सांस्कृतिक, परम्परागत, पवित्र, मनोरंजक एवं सामाजिक सुदृढ़ीकरण का सुन्दर संगम है एवं विश्व के लिए मार्गदर्शक भी।परिवार की सर्वाधिक सुदृढ़ कड़ी है भारतीय वैवाहिक व्यवस्था। फिर इस व्यवस्था को ओर अधिक प्रभावी, सुदृढ़ बनाने के लिए हमारे मनिषी, विद्वान महान आत्माओं ने सहस्रों वर्षों से अपना पूरा, ज्ञान, जीवन समर्पित कर दिया। पश्चिम व अन्य देशों में पुरुष को महिला के लिए तथा महिला को पुरुष के लिए आवश्यकता मानकर संबंधों को विकसित किया गया है जबकि हमारे देश में दोनों ससम्मान एक दूसरे के लिए जीवन-भर एक साथ जीने-मरने अर्थात् किसी भी मुसीबत का एक साथ मिलकर सामना करने हेतु संबंध में स्थापित हो जाते हैं। वैवाहिक संबंध पारिवारिक व्यवस्था के लिए आर्थिक प्रावधान के रूप में, आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, भावनात्मक आधार के रूप में, एक प्रभावशाली समूह के रूप में और सामाजिक विनियमन के एक साधन के रूप में देखा जा सकता है। भारतीय परिवार व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण विशेषता संयुक्त परिवार प्रणाली का अस्तित्व है जो विशुध्द वैवाहिक संबंधों से ओर अधिक दृढ़ होती है। संयुक्त परिवार की विशालता, संयुक्त संपत्ति का स्वामित्व, निवास साझा करना आदि व्यवस्थाएं एक संस्कारी दम्पत्ति पर ही निर्भर है। संयुक्त परिवार में यदि किसी भी दंपति से कोई त्रुटि हो जाये तो अन्य दम्पत्ति उसे तुरंत सुधार लेते हैं तभी संयुक्त परिवार हंसते-हंसते सफलतापूर्वक जीवन की गाड़ी को सरलता से लक्ष्य की ओर ले जाते हैं। परंपरा प्रधान समाज में विवाह एक ऐसी धार्मिक और सामाजिक संस्था है जो किसी भी महिला और पुरुष को एक साथ जीवन व्यतीत करने का अधिकार देने के साथ-साथ दोनों को कुछ महत्वपूर्ण कर्तव्य भी प्रदान करती है। हमारे देश में विभिन्न प्रकार के विवाहों का बड़े पैमाने पर पालन किया जाता है। जैसे-जैसे समाज उन्नत हुआ है, विवाह विभिन्न परिवर्तनों से गुजरा है, जबकि कुछ चीजें स्थिर रहती हैं। यहां तक कि इससे जुड़े मूल्यों में भी अभूतपूर्व बदलाव आया है। समय परिवर्तनीय है तो इसका असर हर युग काल की गति के साथ वैवाहिक परम्पराओं पर पढऩा भी निश्चित था। किंतु भावनाएं नहीं बदलती। भारतीय महिला सतयुग में भी पति का हित चाहती थी, उसके सुख की कामना करती थी, अपने रिश्ते की पवित्रता का महत्व समझती थी और वर्तमान में आज भी वे सर्वप्रथम अपने पति के हित की, सुख की कामना करती हैं। निसंदेह भारत में विवाह और परिवार व्यवस्था में परिवर्तन और अविच्छिन्नता और वैश्वीकरण का प्रभाव देखने को मिलता है। वैश्वीकरण ने लोगों की अधिक गतिशीलता, और विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के बीच अधिक बातचीत को जन्म दिया है, जिससे लोगों के मूल्यों और संस्कृति पर प्रभाव पड़ा है। लोगों ने परम्परागत मर्यादाओं को लाँघने का प्रयास किया है। फलस्वरूप अधिकांश परिणाम भी नकारात्मक दिखाई दे रहे हैं। उदाहरण के लिए बड़े शहरों दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, बैंगलोर आदि में लिव-इन रिलेशनशिप विवाह पूर्व एक नया चलन है, ताकि साथी चुनते समय बेहतर निर्णय लिया जा सके। लिव-इन रिलेशनशिप में शारीरिक वासना की संतुष्टि हो सकती है। एक-दूसरे को समझने का अवसर भी मिल जाता है किंतु यदि एक-दूसरे को समझने के बाद विचार भिन्नता अथवा सामंजस्य न बैठाने की समस्या के कारण संबंध विच्छेद करने का निर्णय लेना पड़े तब अन्य किसी दूसरे संबंधों में भी सामंजस्य की समस्या उत्पन्न हो सकती है और फिर से ऐसा होने पर असुरक्षा की भावना बढ़ जाती है। फलस्वरूप पार्टनर तनाव, विषाद का जीवन जीने लगते हैं। 

आज युवा शैक्षिक अवसरों की तलाश में तथा कैरियर के लिए परिवारों से दूर होते जा रहे हैं। 

युवा वर्ग की इस गतिशीलता ने पारिवारिक संबंधों को कमजोर कर दिया है। युवा अपने माता-पिता, घर में रह रहे बुजुर्गों का ध्यान नहीं रख पा रहे हैं। इससे आदर्श परिवार की धारणा टूटती दिखाई दे रही है। विदेशों की ओर भी युवाओं के रूख में आश्चर्यजनक वृद्धि दिखाई दे रही है। परिवार के ताने-बाने को विदेशों में जाने की यह ईच्छा छिन्न-भिन्न करती दिखाई दे रही है। यह विवाह प्रणाली के परिवर्तन में परिलक्षित हो रहा है। महिलाएं अब अधिक शिक्षित हैं एवं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं, इसलिए घरेलू निर्णयों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यहां वैश्वीकरण के प्रभाव को आईटी से संबंधित नौकरियों में उत्कर्ष के रूप में देखा जा सकता है। महिलाएं इस क्षेत्र का एक बड़ा भाग हैं। शहरी क्षेत्रों में अच्छी तरह से नियोजित महिलाओं को आजीविका कमाने के साथ-साथ घर के कामों के दोहरे कर्तव्य को संभालने के लिए बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ता है।

दाम्पत्य संबंध और माता-पिता के बच्चे के संबंध- विवाहित पुरुष और महिलाएं अपनी रोजगार के कारण भिन्न स्थानों पर अलग-अलग रह रहे हैं। समाज में एकल माता-पिता भी पाए जाते हैं। न केवल वैवाहिक संबंध बल्कि माता-पिता-बच्चों के संबंधों में भी उल्लेखनीय परिवर्तन आया है। अधिकांश कामकाजी दंपति परिवारों में, माता-पिता अपने बच्चों से मिलने और बातचीत करने के लिए समय नहीं दे पाते हैं, क्योंकि वें देर रात तक निजी कंपनियों में काम कर रही हैं। भौतिकता की इस दिशाहीन दौड़ में वें भी सम्मिलित हैं। 

पहले माता-पिता या अभिभावक बच्चों के लिए जीवन साथी का चयन करते थे किंतु वर्तमान में उदार मूल्यों के प्रभाव में, व्यक्तियों ने अपनी पसंद और नापसंद के अनुसार अपने स्वयं के साथी का चुनाव प्रारम्भ कर दिया है।

जीवन साथी के चयन की प्रक्रिया में एक नया चलन उभर रहा है जिसमें सोशल मीडिया डेटिंग साइटों का व्यापक रूप से संगत भागीदारों को खोजने के लिए उपयोग किया जा रहा है।

पहले अंतर्जातीय विवाह निषिद्ध थे। अब इसे कानूनी रूप से अनुमति प्रदान की गई है। युवा यह भी मानने लगे कि विवाह बाध्यात्मक नहीं है। कुछ पुरुष और महिलाएं प्राचीन धार्मिक मूल्यों में विश्वास नहीं करते हैं, और इसलिए विवाह को आवश्यक नहीं मानते हैं। सह-शिक्षा, महिला शिक्षा और समानता और स्वतंत्रता के लोकतांत्रिक आदर्श की वृद्धि, अंतर्जातीय वैवाहिक प्रात: के मजबूत कारक माने जाते हैं। पहले विवाह को एक पुरुष के लिए एक पूर्ण जीवन जीने का कर्तव्य माना जाता था। 1955 में तलाक के लिए प्रावधान किया गया। 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम ने कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में तलाक की अनुमति प्रदान कर हिंदू विवाह की संस्था में एक महत्वपूर्ण बदलाव प्रस्तुत किया है। इसके उपरांत भी हिंदुओं के बीच विवाह एक सामाजिक अनुबंध मात्र नहीं है, यह मान्यता सर्वमान्य है। यह अभी भी हिंदुओं के लिए एक संस्कार है। साथी के प्रति समर्पण को आज भी विवाह का सार माना जाता है।

सभी प्रयोगों के बाद अधिकतर युवा यही मानते हैं कि परिवार के समझदार सदस्य वैवाहिक व्यवस्था को भलीप्रकार समझते हैं वे उनके सुझावों का सम्मान करते हैं एवं कालांतर में परिवार के वरिष्ठ सदस्यों में भी एक बड़ा बदलाव आया है कि वे अब व्यर्थ ही अपने निर्णय बच्चों पर नहीं थोपते अपितु बच्चों की बातों का सम्मान करते हुए ही निर्णय लिये जा रहे हैं जो भारतीय वैवाहिक व्यवस्था में सुधारिकरण के लिए बड़ा कदम है। अच्छे संकेत है। 

पायल अक्सर अपनी सहेली जिया से चर्चा करती थी कि तुम बहुत खुशकिस्मत हो जो सब काम अपनी मर्जी से करती हो। मैं तो अपनी मर्जी से बाजार भी नहीं जा सकती। मेरे पापा तो पूरी दिनचर्या बनाकर बैठे रहते हैं कि इस समय यह कार्य करना है, इस समय यह। जिया कहने लगी, हाँ भई! इस मामले में तो मेरे पापा बहुत खुले विचारों के हैं। मैं कहां जाती हूँ, किसके साथ जाती हूँ, उन्हें इसके लिए कोई परेशानी नहीं है बल्कि मम्मी तो मुझे यदा-कदा बिन मांगे पैसे भी दे देती है। पायल को लगता है कि वह कैसे परिवार में फंस गई। सारा दिन या तो पढ़ाई करो और यदि कहीं जाना हैं तो पापा खुुद छोडऩे जायेंगे। एक दिन पायल को पता लगता है कि जिया किसी लड़के साथ लिव- इन-रिलेशनशिप में रहती थी, जो जिया का सबकुछ लुटपाट कर भाग गया। अब जिया डिप्रेशन में चली गई। उसे तुरंत ध्यान आया कि परिवार की जिन मर्यादाओं को वह बंदिश मान चली थी वास्तव में वहीं तो उसकी सुरक्षा चक्र है जिसके सहारे वह निर्भय, स्वछंद जीवन की उड़ान भर सकती है। तब से वह अपने मात-पिता का पहले से भी अधिक सम्मान करने लगी। उसके व्यवहार में एक जबरदस्त बदलाव देखने को मिला। भारतीय संस्कार उसे मर्यादाओं में रहते हुए आगे बढऩे की प्रेरणा दे रहे थे।