रविवार, 2 अक्तूबर 2016

किसानों के लिए फायदे की खेती है सरसों

कम खर्च में किसान को मिलता है अधिक मुनाफास्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभप्रद है सरसों का तेल

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रबी की फसलों में सरसों की खेती किसानों के लिए सबसे फायदेमंद है। सरसों की खेती में किसान को कम खर्च में अधिक मुनाफा होता है। सरसों की खेती के उत्पादन के लिए किसान को शारीरिक श्रम भी काफी कम करना पड़ता है और कीड़ों व बीमारी के मामले में भी यह फसल काफी सुरक्षित है। वहीं सरसों से निकलने वाला तेल भी स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद होता है। इसलिए किसान सरसों की खेती को अपना कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

यह है सरसों की बिजाई का उपयुक्त समय

सरसों की बिजाई का सबसे उपयुक्त समय 25 सितंबर से 15 अक्तूबर का समय सबसे उपयुक्त है। ड्रील मशीन व हाथ की छांट से भी सरसों की बिजाई की जा सकती है। बिजाई के दौरान 25 किलो यूरिया तथा 40 किलो सिंगल सुपर फासफोर्स खाद डालें। इसके बाद सरसों की फसल में पहला पानी लगाने के बाद 25 किलो यूरिया खाद डालें।

इन-इन किस्मों की कर सकते हैं बिजाई

अधिक पानी वाले क्षेत्र में किसान हिसार कृषि विश्वविद्यालय की आरएच 749, लक्ष्मी व वरूण किस्म की बिजाई कर सकते हैं। कम पानी वाले क्षेत्र में हिसार कृषि विश्वविद्यालय की आरएच 406 व करनाल की 30 नंबर किस्म की बिजाई कर सकते हैं। जहां पर जमीनी पानी खारा है वहां पर किसान करनाल की 88 नंबर किस्म की बिजाई कर सकते हैं। 88 नंबर किस्म में अन्य किस्मों की बजाए तेल की मात्रा अधिक है। वहीं प्राइवेट क्षेत्र की भी कई किस्में इस समय बाजार में हैं। इनमें बायर कंपनी की 5444 व 5450 किस्म, श्रीराम कंपनी की रानी किस्म तथा माइको कंपनी की माइको बोल्ड किस्म भी अच्छी है।

कीटों व बीमारियों के मामले में भी सुरक्षित है सरसों की फसल

रबी की दूसरी फसलों में जहां कीटों व बीमारियों के प्रकोप का ज्यादा भय किसान को रहता है, वहीं सरसों की फसल कीटों व बीमारियों के मामले में काफी सुरक्षित है। क्योंकि सरसों की फसल में कीट व बीमारियां नामात्र ही आती हैं। सरसों की बजाई के समय पेंटिड बग (धोलिया) का थोड़ा बहुत प्रभाव हो सकता है लेकिन सरसों में महज राख का छिड़काव करने से यह कीट अपने आप नियंत्रित हो जाता है।

स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभप्रद है सरसों का तेल

सरसों का तेल स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद माना जाता है। क्योंकि इस फसल में सबसे कम कीटनाशकों का प्रयोग होता है और खाने में सरसों का तेल लेने से शरीर स्वस्थ रहता है। वहीं हार्ट के मरीजों के लिए भी सरसों का तेल काफी लाभदायक है।

सरसों की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद

सरसों की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद है। क्योंकि इस फसल में रबी की दूसरी फसलों से नामात्र खर्च होता है और मुनाफा अधिक होता है। गेहूं की फसल में जहां एक एकड़ में आठ से नौ हजार रुपये का खर्च आता है तो सरसों की फसल में महज तीन से चार हजार रुपये का ही खर्च आता है। कीटों व बीमारियों के मामले में भी यह फसल काफी सुरक्षित है। किसान को इस फसल में शारीरिक मेहनत भी काफी कम करनी पड़ती है। इसलिए किसानों को सरसों की खेती की तरफ अपना रूझान बढ़ाना चाहिए।
डॉ. कमल सैनी, कृषि विकास अधिकारी
जींद। 

रविवार, 25 सितंबर 2016

'यूपी में भाजपा के चुनावी मुद्दे को रोशन करेगा जींद का दीपक'

चित्रकार दीपक के व्यंगात्मक कार्टूनों को भाजपा ने प्रचार सामग्री में किया शामिल
चित्रकार दीपक ने यूपी बचाओ नाम से तैयार की है कार्टून पुस्तिका 
कार्टूनिस्ट दीपक प्रधानमंत्री के अच्छे दिनों पर भी प्रकाशित कर चुके हैं दो पुस्तकें 

नरेंद्र कुंडू
जींद। उत्तरप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में जींद के युवा चित्रकार दीपक कौशिक के कार्टून अपनी छाप छोड़ेंगे। चुनाव के इस दंगल में विरोधियों को घेरने के लिए भाजपा दीपक कौशिक द्वारा यूपी में हुए भ्रष्टाचार पर तैयार किए गए व्यंगात्मक कार्टूनों को अपनी चुनाव प्रचार सामग्री में शामिल करने जा रही है। चित्रकार दीपक कौशिक द्वारा यूपी बचाओ के नाम से यह कार्टून पुस्तिका तैयार की गई है।   
भजपा के राट्रीय महासचिव अरुण सिंह, भाजपा के उत्तरप्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल और भाजपा के प्रदेश मंत्री गोविंद नारायण शुक्ल उर्फ  राजा बाबू के साथ हुई दीपक कौशिक की मुलाकात के बाद पार्टी पदाधिकारियों ने दीपक के कार्टूनों को चुनाव सामग्री में शामिल करने का फैसला लिया है। भाजपा द्वारा इस पुस्तिका की लाखों प्रतियां तैयार करवाई जाएंगी। 
पुस्तक के लिए कार्टून तैयार करते चित्रकार दीपक
चित्रकार दीपक कौशिक द्वारा कार्टून पुस्तिका में उत्तरप्रदेश की वर्तमान व पूर्वोत्तर सरकार की जन विरोधी नीतियों पर कार्टूनों के माध्यम से व्यंग किए गए हैं। इस पुस्तिका में यूपी के कैराना कांड, मथूरा कांड, रामवृक्ष कांड, यूपी की खस्ता हाल सड़कों, बिजली-पानी की समस्या पर कटाक्ष किए गए हैं। दीपक कौशिक ने बताया कि इस पुस्तिका में विरोधी दलों पर निशाना साधने के साथ-साथ मोदी सरकार की विकासकारी सोच को भी दर्शाया गया है। कौशिक ने बताया कि एक सप्ताह पूर्व दिल्ली के अशोका रोड स्थित भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय में भजपा के राट्रीय महासचिव अरुण सिंह, भाजपा के उत्तरप्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल और भाजपा के प्रदेश मंत्री गोविंद नारायण शुक्ल उर्फ  राजा बाबू के साथ चुनाव प्रचार कैम्पेनिंग के लिए हुई बैठक में पार्टी पदाधिकारियों ने इस पुस्तिका को चुनाव सामग्री में शामिल करने का निर्णय लिया है। 
 भाजपा पदाधिकारियों को पुस्तक भेंट करते चित्रकार दीपक कौशिक।

अच्छे दिनों पर भी लिख चुके हैं पुस्तक

चित्रकार दीपक कौशिक इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के एक साल पूरा होने पर 'अच्छे दिन' और दो साल पूरा होने पर 'अच्छे दिन-2' का प्रकाशन कर चुके हैं। अब यूपी में भी इन पुस्तकों को प्रकाशित किया जाएगा। 

हरियाणा की स्वर्ण जयंती पर निकालेंगे म्हारा हरियाणा पुस्तक

दीपक कौशिक ने बताया कि 'यूपी बचाओ' पुस्तक के प्रकाशन होने के बाद उनकी चौथी पुस्तक के प्रकाशन का काम भी अन्तिम दौर में है। 'म्हारा हरियाणा' नाम से प्रकाशित होने वाली यह पुस्तक विशेष तौर पर हरियाणा की स्वर्ण जयंती वर्षगांठ के उपलक्ष्य में तैयार की जा रही है, जिसमें प्रदेश की कला-संस्कृति, राजनीति, जन-जीवन को महत्व दिया गया है। इस पुस्तक में कार्टूनों के माध्यम से जहां इन सब विषयों को उकेरा गया है। 





65 वर्षीय ओमपति ने 45 लाख खर्च कर बुझाई गांव की प्यास

गांव में पानी की किल्लत को दूर करने के लिए 10 किलोमीटर दूर से दबवाई पाइप लाइन
पाइप लाइन दबाकर घर-घर दिया कनेक्शन

नरेंद्र कुंडू
जींद। छतीसगढ़ के धमतरी जिले की 104 वर्षीय कुंवरबाई द्वारा जहां अपनी बकरियां बेचकर गांव में शौचालय का निर्माण करवाकर एक मिशाल पेश की गई है, वहीं जींद जिले के गोहाना रोड पर स्थित लुदाना गांव निवासी 65 वर्षीय वृद्धा ओमपति ने अपनी पूंजी से 40 से 45 लाख रुपये खर्च कर गांव की प्यास बुझा कर एक नई मिशाल पेश की है। ओमपति ने गांव से 10 किलोमीटर दूर स्थित सुंदर ब्रांच नहर से पाइप लाइन दबाकर गांव के लोगों को पीने के लिए पानी मुहैया करवाया है। ओमपति ने गांव तक पाइप लाइन दबवाने के अलावा निशुल्क घर-घर कनेक्शन दिए हैं। इतना ही नहीं पास के गांव मालश्रीखेड़ा, भंभेवा व मोरखी गांव से होकर गुजर रही पाइप लाइन पर भी कई जगह हैंडपंप भी लगवाए गए हैं, ताकि राहगीर व पास के गांव के लोग भी इनसे अपनी प्यास बुझा सकें। 
पाइप लाइन दबाने के बाद गांव में बनाया गया पानी का टैंक।
जींद जिले के लुदाना गांव में भूमिगत पानी खराब होने के कारण गांव में पानी की भारी किल्लत थी। ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए दूर-दराज के क्षेत्र का रूख करना पड़ता था। गांव की पानी की किल्लत को देखते हुए गांव की 65 वर्षीय ओमपति ने ग्रामीणों को इस किल्लत से निजात दिलवाने का संकल्प लिया। ओमपति ने अपने खर्च से सुंदर ब्रांच नहर की सिवाना माल हैड से गांव तक पाइप लाइन दबवाई। सुंदर ब्रांच नहर से गांव तक दबी लगभग 10 किलोमीटर लंबी इस पाइप लाइन पर ओमपति के 40 से 45 लाख रुपये खर्च हुए। इतना ही नहीं ओमपति ने गांव तक पाइप लाइन दबवाने के साथ-साथ घर-घर तक पानी का कनेक्शन भी दिया। प्रत्येक घर तक पानी का कनेक्शन होने के बाद गांव से पानी की किल्लत दूर हो गई। 
टुंटियों से पानी भरती ग्रामीण महिलाएं।

हर घर तक पानी पहुंचाने के लिए गांव को 24 ब्लॉक में बांटा 

छह हजार की आबदी वाले इस गांव में प्रत्येक घर को पीने के लिए पानी मिल सके इसके लिए गांव को 24 ब्लॉक में बांटा गया है। प्रत्येक ब्लॉक को 20 से 25 मिनट तक पानी की सप्लाई की जाती है। पानी की बर्बादी नहीं हो इसके लिए सीमित समय तक ही पानी की सप्लाई की जाती है। 

पेयजल सप्लाई की देखरेख के लिए दो युवकों 

टुंटियों से पानी भरती ग्रामीण महिलाएं।

को दिया रोजगार

गांव में सही तरीके से पेयजल की सप्लाई सुचारू रूप से हो सके इसके लिए ओमपति ने गांव के ही दो युवकों को जिम्मेदारी दी है। यह दोनों युवक गांव में पेयजल की सप्लाई की देखरेख करते हैं। इससे गांव के दो युवकों को रोजगार मिला है। 

भरापूरा है ओमपति का परिवार

समाजसेवी महिला ओमपति के परिवार में राजकुमार, अनिल व शमशेर नाम के तीन बेटे हैं। तीनों बेटे शादीशुदा हैं। इसके अलावा ओमपति के पांच पौत्री व तीन पौत्र भी हैं। ओमपति के पति बलबीर सिंह का देहांत हो चुका है। 
अपने परिवार के साथ मौजूद वृद्धा ओमपति।








मंगलवार, 6 सितंबर 2016

अध्यापकों की नर्सरी बना जींद जिले का ईक्कस गांव

2700 की आबादी वाले गांव में लगभग प्रत्येक घर में है सरकारी नौकरी, गांव में 100 से भी अधिक हैं अध्यापक

गांव में है सीनियर सेकेंडरी स्कूल व शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान 

शिक्षा के साथ-साथ खेलों में भी गांव की विशेष पहचान

अर्जुन अवार्ड भी हासिल कर चुका है गांव का बास्केटबाल कोच

 गांव के बारे में जानकारी देते हरपाल व अन्य ग्रामीण।
नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले से महज आठ किलोमीटर की दूरी पर हिसार रोड पर स्थित ईक्कस गांव प्रदेश के लिए अध्यापकों की नर्सरी बन चुका है। महज 2700 की आबादी वाले इस गांव में लगभग प्रत्येक घर में एक अध्यापक है। गांव में शिक्षा का अच्छा प्रसार होने के कारण लगभग प्रत्येक घर में सरकारी नौकरी है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या अध्यापकों की है। ईक्कस गांव में 100 से भी अधिक अध्यापक हैं। गांव से निकलने वाले यह अध्यापक आज प्रदेश के भिन्न-भिन्न स्कूलों में अपनी सेवाएं दे कर विद्यार्थियों को शिक्षा व संस्कार देने का काम कर रहे हैं। शिक्षा के साथ-साथ खेलों के क्षेत्र में भी ईक्कस की विशेष पहचान है। इस गांव से राष्ट्रीय स्तर के कई खिलाड़ी भी निकल चुके हैं। इस गांव के एक खिलाड़ी को खेलों के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल करने पर अर्जुन अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। गांव में शिक्षा का स्तर अच्छा होने के कारण जहां ग्रामीणों में आपसी प्यार-प्रेम व भाईचारा बना हुआ है, वहीं गांव का युवा वर्ग में भी जागरूकता होने के कारण वह नशे जैसी सामाजिक कुरीति से दूर है। गांव में शिक्षा के विस्तार का मुख्य कारण यह है कि आजादी से कई वर्ष पहले ही इस गांव में स्कूल की स्थापना हो चुकी थी और आजादी के बाद 1987-88 में ग्रामीणों के प्रयास से गांव में
डिस्ट्रिक इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर की नींव रखी गई थी। यह इसी सेंटर का परिणाम है कि गांव में सरकारी नौकरियों में सबसे ज्यादा संख्या अध्यापकों की है। 

1927 में ग्रामीणों ने चंदे से बनवाई थी स्कूल की बिल्डिंग   

ग्रामीण हरपाल सिंह का कहना है कि गांव में आजादी से कई वर्ष पहले ही शिक्षा का अच्छा प्रभाव है। वर्ष 1927 में ग्रामीणों ने चंदा एकत्रित कर स्कूल की बिल्डिंग बनवाई थी। गांव में स्कूलबनने के बाद गांव में शिक्षा को काफी बढ़ावा मिला। इसके बाद 1987-88 में गांव में डिस्ट्रिक इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर की नींव रखी गई थी।

खेलों में भी है गांव की विशेष पहचान

गांव में शिक्षा के विस्तार के बारे में जानकारी देते मास्टर धज्जाराम।
ग्रामीणों ने बताया कि शिक्षा के साथ-साथ खेलों के क्षेत्र में भी गांव की विशेष पहचान है। मास्टर ओम सिंह, मास्टर धज्जा सिंह, मास्टर भीम सिंह, मास्टर गज सिंह, मास्टर सतबीर सिंह ने कई वर्ष तक हरियाणा व पंजाब की कबड्डी की टीम में खेलते हुए टीम का मार्गदर्शन किया। इस गांव से कबड्डी व स्वीमिंग के कई अच्छे खिलाड़ी निकल चुके हैं।

लड़कों के साथ लड़कियों को भी मिला पढ़ाई का अवसर 

सेवानिवृत्ति मास्टर धज्जाराम का कहना है कि उन्होंने 1963  में गांव के स्कूल में प्राइमरी अध्यापक के तौर पर नौकरी ज्वाइन की थी। उस समय ग्रामीण क्षेत्र में लड़कियों की शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता नहीं थी लेकिन उनके गांव में ही स्कूल होने के कारण गांव की ज्यादातर लड़कियां पढ़ाई के लिए स्कूल आती थी। गांव के लड़कों के साथ-साथ लड़कियों ने भी शिक्षित होकर गांव का नाम रोशन किया।

परिवार से मिली अध्यापक बनने की प्रेरणा

गणित अध्यापिका राजलक्ष्मी का फोटो।
मुझे अध्यापक बनने की प्रेरणा मेरे परिवार से ही मिली। मेरे नाना जी भी अध्यापक थे और मेरे पिता जी भी अध्यापक थे। इसके बाद से ही हमारा पूरा परिवार अध्यापन की लाइन में है। मेरे भाई व भाभी भी अध्यापक हैं। मैं खुद भी गणित अध्यापिका हूं और पास के ही गांव ईंटल कलां के स्कूल में कार्यरत हूं। हमारे गांव में इस समय 100 से भी अध्यापक हैं। 
राजलक्ष्मी, गणित अध्यापिका

शिक्षा का हब बन चुका है गांव

अध्यापिका शालिन्दा का फोटो।
पूरे गांव में शिक्षा के प्रति अच्छा माहौल है। एक तरह से देखा जाए तो पूरा गांव एक तरह से एजुकेशन का हब बन चुका है। गांव में सबसे अधिक सरकारी नौकरी हैं। मेरे पति भी अध्यापक हैं।
शालिन्दा, अध्यापिका

खेलों के क्षेत्र में तराश रहे युवाओं का भविष्य

स्वीमिंग कोच मनोज का फोटो।
गांव के ही डीपीई मनोज कुमार तथा हरियाणा पुलिस में एएसआई के पद पर कार्यरत अशोक कुमार खेलों के क्षेत्र में युवाओं का भविष्य संवार रहे हैं। डीपीई मनोज कुमार स्वीमिंग के कोच हैं तो एएसआई अशोक कुमार कबड्डी के कोच हैं और खेल कोटे से ही पुलिस में भर्ती हुए हैं। गांव से निकल कर जींद शहर में जाने के बावजूद भी यह दोनों कोच प्रतिदिन शाम को गांव में जाकर युवाओं को खेलों का निशुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं। 150  के करीब खिलाड़ी इनसे खेलों का प्रशिक्षण ले रहे हैं। यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर कई खिलाड़ी राज्य व नेशनल स्तर की प्रतियोगिताओं में अपना दमखम दिखा चुके हैं।

अर्जुन अवार्ड हासिल कर चुके हैं कोच ओमप्रकाश

बास्केटबाल कोच ओमप्रकाश का फोटो।
बास्केट बाल कोच ओमप्रकाश ढुल ने बताया कि उन्होंने लगभग साढ़े 22 वर्ष तक आर्मी में सेवा दी और अब जींद में बास्केट बाल के कोच के तौर पर सेवा दे रहे हैं। सेना में रहते हुए 1970-80 तक वह इंडिया टीम में खेले। 1975 में उनकी टीम एशिया की टॉप स्कोरर रही। सेना की तरफ से खेलते हुए लगातार 12 वर्ष तक उनकी टीम इंडिया में पहले स्थान की टीम रही। खेलों में उनकी उपलब्धि को देखते हुए उन्हें 1979-80 में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके बाद १९८५ में राष्ट्रपति द्वारा वशिष्ठ सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया।









रविवार, 28 अगस्त 2016

गांव की सरपंच को भी भा गई महिला किसान खेत पाठशाला

अब बगैर कीटनाशकों के खेती के लिए महिलाओं को करेंगी प्रेरित

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रधाना गांव में चल रही अमर उजाला फाउंडेशन व डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन द्वारा चलाई जा रही महिला किसान खेत पाठशाला अब गांव की सरपंच को भा गई है। महिला सरपंच मंजु प्रत्येक शनिवार को लगने वाली इस पाठशाला में कीट ज्ञान की ताल्लीम ले रही हैं।
रधाना गांव के खेतों में लगी पाठशाला में उपस्थित महिलाएं।
शनिवार को लगी पाठशाला में कीटाचार्य महिला किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन किया। खेत पाठशाला के दौरान महिला कीटाचार्यों ने शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का गिनती कर चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार किया। पिछले सप्ताह की ही तरह इस बार भी फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा मिला। महिला किसान शीला, सविता, शकुंतला, सुदेश, सुषमा, अंग्रेजो, नवीन, प्रमिला, यशवंती, असीम ने बताया कि शाकाहारी और मांसाहारी कीट दोनों ही फसल को फायदा पहुंचाते हैं। शाकाहारी कीट कपास की फसल के पत्तों को काटकर उनमें सुराग बना देते हैं। पत्तों में सुराग होने से नीचे वाले पत्तों पर भी चली जाती है, जो पत्तों द्वारा भोजन तैयार करने में सहायक होती है। किसान के जानकारी के अभाव में फसल पर कीटों को देखकर कीटनाशक स्प्रे कर देते हैं, जिसका उत्पादन पर भी विपरीत असर पड़ता है।

गांव की महिलाओं को भी करुंगी प्रेरित

दूसरी बार महिला किसान खेत पाठशाला में पहुंची रधाना गंाव की सरपंच मंजु ने बताया कि पिछले साल सफेद मक्खी की वजह से उनके यहां प्रति एकड़ दो क्विंटल कपास का उत्पादन हुआ था। महंगे कीटनाशक स्पे्र करने के बावजूद कोई फायदा नहीं हुआ। इस पाठशाला में आकर कीटों के बारे में पता चला है, जिसके बारे में वह गांव की ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को बताएंगी। 

रधाना गांव की सरपंच मंजू का फोटो।  





मंगलवार, 9 अगस्त 2016

'बिग बॉस में शिरकत करेगी म्हारी रेसलर हार्ड केडी'

ग्रेट खली की तर्ज पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डब्ल्यूडब्ल्यूई में तिरंगा लहराना है लक्ष्य
जालंधर में ग्रेट खली की अकेडमी में ले रही है प्रशिक्षण
रेसलिंग की नेशनल खिलाड़ी बुलबुल को रिंग में चटा चुकी है धूल 
कविता की बढ़ती लोकप्रियता को देख बिग बॉस से मिला ऑफर 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। राष्ट्रीय स्तर पर नौ वर्षों तक वेटलिफ्टिंग में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन करने वाली जींद जिले के गांव मालवी निवासी वेट लिफ्टिर कविता दलाल अब कांटीनेंटल वेटलिफ्टर इंटरटेरमेंट (सीडब्ल्यूई) में रेसलर के रूप में धूम मचा रही है। कविता दलाल महज तीन के ही प्रशिक्षण के दौरान दिल्ली की मशहूर रेसलर बुलबुल की चुनौती को स्वीकार कर बुलबुल को रिंग में धूल चटा चुकी है। सीडब्ल्यूई के रिंग में कविता दलाल अब हार्ड केडी के नाम से अपनी एक नई पहचान बना चुकी है। कविता दलाल का अब अगला लक्ष्य देश के मशहूर रेसलर दा ग्रेट खली की तर्ज पर वल्र्ड रेसलिंग इंटरटेनमेंट (डब्ल्यूडब्ल्यूई) में तिरंगा लहराना है। यदि कविता दलाल अपने इस मुकाम तक पहुंचने में कामयाब हो जाती हैं तो वह देश की पहली महिला रेसलर बन जाएंगी। इसके लिए कविता दलाल ने अक्तूबर में दा ग्रेट खली द्वारा गुरुग्राम में आयोजित करवाई जा रही सीडब्ल्यूई में भाग लेने वाले विदेशी रेसलरों को भी चुनौती दी है। डब्ल्यूडब्ल्यूई के रिंग में फाइट करने के लिए कविता जालंधर में स्थित खली की अकेडमी में प्रशिक्षण ले रही है और इसके लिए कविता प्रतिदिन आठ घंटे कठिन अभ्यास कर रही है। सीडब्ल्यूई में लगातार बढ़ रही कविता की लोकप्रियता को देख बिग बॉस के घर में शामिल होने के लिए कविता को निमंत्रण मिल चुका है। कविता ने बिग बॉस के इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है। 
 खली की अकेडमी में एक रेसलर के साथ पंजा लड़ाती कविता।

यह है कविता के जीवन का सफर

जींद जिले के मालवी गांव निवासी कविता ने जुलाना के सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं की कक्षा पास की। इसी दौरान कविता के बड़े भाई संजय ने कविता को वेट लिफ्टिंग के खेल के लिए प्रेरित किया। वर्ष 2002 में कविता ने फरीदाबाद में वेट लिफ्टिंग का प्रशिक्षण लेना आरम्भ किया। वर्ष 2003 में कविता ने प्रशिक्षण के लिए बरेली साईं हॉस्टल में दाखिला लिया लेकिन यहां के प्रशिक्षण से कविता संतुष्ट नहीं थी। इसके बाद वर्ष 2004 में कविता ने लखनऊ से अपना प्रशिक्षण शुरू किया, जो 2007 तक जारी रहा। प्रशिक्षण के साथ-साथ कविता ने अपनी पढ़ाई का सफर भी जारी रखा। 2005 में कविता ने बीए की पढ़ाई पूरी की। वर्ष 2008 में कविता ने एसएसबी में बतौर कांस्टेबल के पद पर नौकरी ज्वाइन की। वर्ष 2009 में कविता की शादी बाडौत (उत्तरप्रदेश) निवासी गौरव से हुई। गौरव भी एसएसबी में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं और वालीबाल के अच्छे खिलाड़ी हैं। नौकरी के दौरान वर्ष 2010 में कविता ने विभाग से कॉमनवैल्थ गेम्स की तैयारी के लिए 
सूट सलवार में दिल्ली की रेसलर बुलबुल की चुनौती स्वीकार करती कविता।
बाहर से प्रशिक्षण दिलवाने की गुहार लगाई लेकिन विभाग की तरफ से उसे कोई सहयोग नहीं मिला। इससे निराश होकर कविता ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कविता यूपी में अपनी ससुराल में रहने लगी। इसके बाद कविता के पति गौरव ने कविता को फिर से खेलों के लिए प्रेरित किया। पति से मिले सहयोग के बाद कविता ने फिर से वेटलिफ्टिंग में अपना अभ्यास शुरू कर दिया। 


ग्रेट खली की अकेडमी में अभ्यास करती कविता दलाल।

वेटलिफ्टिंग में यह रही कविता दलाल की उपलब्धियां

1. वर्ष 2006 में ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। 
2. वर्ष 2007 में नेशनल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता। 
3. वर्ष 2008 में नेशनल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता।
4. वर्ष 2010 में नेशनल वुशू चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता।
5. वर्ष 2011 में राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
6. वर्ष 2013 में नेशनल भारोत्तोलन में स्वर्ण जीता।
7. वर्ष 2014 में नेशनल भारोत्तोलन में स्वर्ण जीता।
8. वर्ष 2015 में केरल में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण जीता।
9. वर्ष 2016 में गुहाटी में आयोजित साऊथ एशियन गेम में स्वर्ण जीता। 

प्रति दिन आठ घंटे अभ्यास करती है कविता दलाल 

वेटलिफ्टिंग के बाद कविता दलाल अब सीडब्ल्यूई के रिंग में कठोर परिश्रम कर रही है। कविता दिन में आठ घंटे अभ्यास करती है। रिंग में उतरने से पहले जिम व एक्सरसाइज करती है। इसके बाद सुबह व शाम को दो से तीन घंटे खली की निगरानी में रिंग में अभ्यास करती है। 
अभ्यास के दौरान कविता का फोटो।

पहली ही फाइट में नेशनल रेसलर को कर दिया चित

कविता दलाल ने सीडब्ल्यूई के रिंग में महज तीन दिन के प्रशिक्षण के बाद ही नेशनल रेसलर बुलबुल की चुनौती को स्वीकार कर लिया। नेशनल रेसलर बुलबुल ने जब रिंग में खड़े होकर फाइट करने के लिए रेसलरों को ललकारा तो ऑडियंश में बैठी कविता ने बुलबुल की चुनौती स्वीकार की। कविता सूट सलवार में ही रिंग में कूद पड़ी। रिंग में सूट सलवार में उतरी कविता को देख सभी दर्शक हैरान थे। कविता ने अपनी पहली फाइट में नेशनल रेसलर बुलबुल को रिंग में चित कर दिया। कविता द्वारा सूट सलवार में रिंग में उतर कर की गई फाइट ने कविता को पूरे देश में प्रसिद्धी दिलवा दी। कविता की इस फाइट का एक विडियो कई दिनों तक सोशल मीडिया पर भी छाया रहा। 

बिग बॉस में भी करूंगी हरियाणा का नाम रोशन

सीडब्ल्यूई से मुझे एक नई पहचान मिली है और इस खेल में मेरी बढ़ती प्रसिद्धी को देखते हुए मुझे बिग बॉस में शामिल होने का ऑफर मिला है। मैने बिग बॉस के ऑफर को स्वीकार कर लिया है। जैसे ही बिग बॉस से कार्यक्रम का शैड्यूल मिलेगा मैं इसमें शामिल होकर यहां पर अपने हरियाणा का नाम रोशन करूंगी। 
कविता दलाल
रेसलर, सीडब्ल्यूई

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करेगी कविता 

कविता बहुत ही मेहनती लड़की है। एक बार यह जो लक्ष्य निर्धारित कर लेती है, फिर उसे पूरा करके ही दम लेती है। वेटलिफ्टिंग के बाद कविता का लक्ष्य सीडब्ल्यूई में विदेशी रेसलरों को धूल चटाकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करना है। हमें उम्मीद है कि जल्द ही कविता इस लक्ष्य को पूरा करेगी। अभी कविता को बिग बॉस में शामिल होने का ऑफर मिला है। बिग बॉस में भी कविता जरूरी विजयी रहेगी। 
संजय दलाल, भाई




फसल में नुकसान पहुंचाने से कोसों दूर है शाकाहारी कीटों की संख्या

रधाना गांव में हुआ महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रधाना गांव में शनिवार को अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन द्वारा महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में महिला किसानों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। पाठशाला के आरंभ में कीटाचार्य महिला किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन किया। इसके बाद शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का गिनती कर चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार किया। आंकड़े में यह साफ नजर आया कि फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा मिला। 
  फसल में कीटों की संख्या का अवलोकन करती  महिला किसान।
कीटाचार्या महिला किसान शीला, सविता, शकुंतला, सुदेश, सुषमा, नवीन, प्रमिला, यशवंती, असीम ने बताया कि पिछले तीन-चार वर्षों से कपास की फसल में सफेद मक्खी का काफी प्रकोप सामने आया था लेकिन इस बार कपास की फसल में शाकाहारी कीटों की संख्या काफी कम है। फसल में नुकसान पहुंचाने वाली सफेद मक्खी, हरा तेले व चूरड़े की संख्या नामात्र है। उन्होंने बताया कि सफेद मक्खी 0.5, हरा तेला 0.9, चूरड़ा 0.8 रही, जो कि फसल को नुकसान पहुंचाने के आर्थिक हानि कागार से काफी दूर है। वहीं नुकसान पहुंचाने वाले सूबेदार मेजर लाल बानिया, माइट, मिलीबग, चेपा, पत्ते खाने वाले शाकाहारी में स्लेटी भूंड, टिड्डा तथा फूल खाने वाले में तेलन, भूरी पुष्पक कीट भी मिले लेकिन इनकी संख्या भी नामात्र ही मिली। वहीं मांसाहारी में डाकू बुगड़ा, हथजोड़ा, दीदड़ बुगड़ा, क्राइसोपा, बिंदुआ चूरड़ा, लफड़ो मक्खी, सुनहेरी मक्खी, लोपा मक्खी, लाल माइट, मकड़ी लालड़ो बिटल, लफड़ो बिटल भी कपास की फसल में मिली। कीटाचार्या महिला किसानों ने बताया कि फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा है। इससे यह साफ है कि मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को रोकने में एक तरह से कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं।