मंगलवार, 1 मई 2012

यहां तो लूटवा रहे 'भगवान'

 चिकित्सक द्वारा लिखी गई बाहर की दवाई दिखाते मरीज।
सरकारी अस्पताल में चिकित्सक लिखते हैं बाहर की दवाइयां
नरेंद्र कुंडू
जींद। शहर का सामान्य अस्पताल पूरी तरह से कमीशनखोरी का अड्डा बन चुका है। अस्पताल में भ्रष्टाचार पूरी तरह से अपनी जड़ें जमा चुका है। सरकारी अस्पताल में लोगों को मुफ्त में बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाने के सरकार के सारे दावे बेमानी साबित हो रहे हैं। शहर के सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों द्वारा खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यहां तो भगवान का दर्जा हासिल करने वाले चिकित्सक ही अपने कमीशन के फेर में गरीबों को दवा माफियाओं के हाथों में लूटवा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के सख्त आदेशों के बवाजूद भी चिकित्सक मरीजों को बाहर की दवा खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं। चिकित्सक मरीजों को अस्पताल में उपलब्ध दवाइयां न लिखकर बाहर की महंगी दवाइयां लिख रहे हैं। जिस कारण मरीजों को मजबूरन बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं। सामान्य अस्पताल में खुलेआम दलाली का यह खेल चल रहा हैं और अस्पताल प्रशासन चुपचाप तमाशबीन बना हुआ है। अस्पताल प्रशासन की चुपी व चिकित्सकों की कमीशनखोरी के कारण अस्पताल में गरीबों के आंसू पौंछने वाला कोई नहीं है।
एक तरफ तो सरकार लोगों को मुफ्त में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने के दावे कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों के लिए सरकार के ये दावे बेमानी साबित हो रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा सभी सरकारी अस्पतालों को हिदायत दी गई है कि उनके यहां काम करने वाले चिकित्सक बाहर की दवाइयां न लिखें और जितना हो सके अस्पताल की सरकारी दवाइयों से ही रोगी का उपचार करें। लेकिन सामान्य अस्पताल में सरेआम स्वास्थ्य विभाग के आदेशों की धज्जियां उडाई जा रही हैं। विभाग के यह आदेश बेमानी साबित हो रहे हैं। बड़ी संख्या में मरीज प्रतिदिन अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन उनको यहां पर सरकारी दवाइयां उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं। मरीजों का कहना है कि सस्ते उपचार के लिए वे सामान्य अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन यहां चिकित्सक महंगी दवाइयां लिख देते हैं। इसके कारण उन्हे आर्थिक समस्या झेलनी पड़ती है। शायद ही कोई ऐसा मरीज होगा, जिसको अस्पताल से सभी सरकारी दवाइयां मिल पाती हों। अस्पताल में इस स्थिति के चलते गरीब लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। खास बात यह है कि सामान्य अस्पताल के डॉक्टर जो दवाइयां बाहर की लिखते हैं, वे दवाइयां केवल अस्पताल के नजदीक खुले मेडिकल स्टोरों पर ही उपलब्ध होती हैं। जबकि शहर के अन्य मेडिकल स्टोरों पर सामान्य अस्पताल के डॉक्टरों की ओर से लिखी दवाइयां नहीं मिलती हैं। इससे साफ जाहिर है कि सामान्य अस्पताल में कमीशन का फंडा जोरों पर चला हुआ है। बुखार के इलाज के लिए अस्पताल आए छान्ने गांव निवासी योगेश, गले के इलाज के लिए आए हाऊसिंग बोर्ड निवासी खुर्शिद, स्कीन के इलाज के लिए आए बराह खुर्द निवासी सुनील, पेट दर्द के इलाज के आए करसिंधू निवासी कृष्ण तथा महिला डाक्टर से जांच करवाने आई जींद निवासी प्रिया ने बताया कि जब चिकित्सक द्वारा लिखी गई दवा लेने के लिए वे खिड़की पर पहुंचे तो खिड़की पर मौजूद कर्मचारी ने एक-दो दवा देने के बाद कहा कि बाकी की दवा बाजार से मिलेंगी। उन्होंने बताया कि चिकित्सक द्वारा बाहर की जो दवा पर्ची पर लिखी गई हैं वह काफी महंगी होती हैं। चिकित्सकों द्वारा बाहर की दवा लिखने के कारण मरीज अपने आप को ठगा सा महसूस करते हैं। अगर कोई मरीज चिकित्सक से उस दवा के बदले कोई सस्ती दवा लिखने की गुहार लगाए तो चिकित्सक मरीज को यह कह कर टाल देता है कि दूसरी दवा के बदले यही दवा ज्यादा जल्दी असर करेगी, क्योंकि महंगी दवा में चिकित्सक को कमीशन जो ज्यादा मिलता है। अस्पताल में चल रहे इस कमीशनखोरी के खेल को अस्पताल प्रशासन भी चुपचाप देख रहा है।   

शिकायत मिलने पर की जाएगी कार्रवाई

स्वास्थ्य विभाग के सख्त आदेश हैं कि कोई भी डॉक्टर सामान्य अस्पताल के दवा केंद्र में मौजूद दवाइयों के अलावा बाहर की दवाई नहीं लिख सकता है। अगर कोई डॉक्टर इस तरह का कार्य करता है या उनके पास कोई मरीज लिखित में शिकायत देता है तो उस चिकित्सक के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी।
डा. धनकुमार
सिविल सर्जन, जींद

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