शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

‘लाडो’ के जीवनदान के लिए उठे कदमों में अधिकारियों ने डाली लापरवाही की बेड़ियां

पंचायती राज विभाग के अधिकारियों ने तैयार नहीं किए बीबीपुर गाँव के विकास कार्यों के एस्टीमेट

नरेंद्र कुंडू
जींद।
उत्तर भारत की खाप पंचायतों को एक मंच पर लाकर ‘लाडो’ को जीवनदान दिलवाने की अलख जागाने वाले आईटी विलेज बीबीपुर के विकास कार्यों पर प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही का ग्रहण लग गया है। कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ मोर्चा खोल कर इस सामाजिक कुरीति को जड़ से उखाड़ने का आह्वान करने पर जहां मुख्यमंत्री ने बीबीपुर पंचायत को एक करोड़ की राशि देकर सम्मानित किया था, वहीं अब जिला प्रशासनिक अधिकारियों ने बीबीपुर गांव के विकास के लिए एस्टीमेट तैयार न कर एक करोड़ रुपए की राशि पर कुंडली मारी ली है। पंचायत विभाग के तकनीकि विंग ने दो माह बीत जाने के बाद भी विकास कार्यों के एस्टीमेट प्रदेश सरकार को नहीं भेजे हैं। जिस कारण गांव के सभी विकास कार्यों पर ब्रेक लग गए हैं। विभाग के अधिकारी एस्टीमेट भेजने का कार्य कार्यालय का बताकर अपने हाथ खड़े कर रहे हैं।
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ प्रदेश की अन्य पंचायतों को राह दिखाने वाली आईटी विलेज बीबीपुर के विकास पर जिला प्रशासनिक अधिकारियों की काली छाया पड़ चुकी है। जिला प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही से पर्दा उस समय उठा जब बीबीपुर गांव के सरपंच सुनील जागलान ने गत बुधवार को चंडीगढ़ जाकर गांव के विकास कार्यों के एस्टीमेटों के बारे में जानकारी जुटाई। अधिकारियों ने सरपंच को बताया कि उनके गांव के विकास कार्यों से संबंधित कोई भी एस्टीमेट अभी तक चंडीगढ़ नहीं पहुंचा है। हालांकि मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ मोर्चा खोलने पर बीबीपुर की पंचायत को गत् 15 जुलाई को एक करोड़ रुपए देने की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री की घोषणा को धरातल पर उतारने के लिए एचआरडीएफ बोर्ड ने जींद प्रशासन के पंचायत विभाग को गांव की जरूरतों के अनुसार एक करोड़ के विकास कार्यों के एस्टीमेट जल्द से जल्द तैयार करके बोर्ड को भेजने के आदेश जारी किए थे। लेकिन मुख्यमंत्री की घोषणा हुए दो माह से ज्यादा का समय बीत चुका है और जींद प्रशासन के पंचायती राज विभाग के तकनीकि विंग ने अभी तक बोर्ड को एक करोड़ रुपए के एस्टीमेट नहीं भेजे हैं। सरपंच सुनील जागलान ने बताया कि इस प्रकार पंचायती राज विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण गांव के विकास कार्यों की रफ्तार पर अधिकारियों की लापरवाही के ब्रेक लग गए हैं। गांव के विकास कार्यों के लिए राशि जारी न होने से विकास कार्य पूरी तरह से पटरी से उतर गए हैं।
बीबीपुर पंचायत का कहना है कि पंचायत ने संबंधित एसडीओ व जेई को गांव की जरुरत के अनुसार करवाए जाने वाले विकास कार्यों के प्रस्ताव भेज दिए थे। लेकिन इसके बावजूद भी तकनीकि विंग ने एस्टीमेट तैयार करके उच्चाधिकारियों के पास नहीं भेजे हैं। सरपंच का कहना है कि पंचायत द्वारा भेजे गए प्रस्ताव में एक करोड़ रुपए की राशि से गांव की गलियों व फिरनियों को सीमेंट के ब्लॉकों से पक्का करवाने का जिक्र किया गया है। प्रस्ताव तैयार करने के बाद खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी कार्यालय जींद को यह प्रस्ताव भेजा चुका है।

चंडीगढ़ जाकर की थी जांच पड़ताल

बीबीपुर गांव के सरपंच सुनील कुमार जागलान ने बताया कि गत् 26 सितंबर को उन्होंने चंडीगढ़ जाकर पंचायती राज विभाग के अधिकारियों से गांव के एस्टीमेटों के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि एस्टीमेट चंडीगढ़ पहुंचे ही नहीं हैं। जागलान ने बताया कि पंचायत विभाग के तकनीकि विंग को गांव की गलियां व फिरनियों को पक्का करने के एस्टीमेट बनाने के लिए प्रस्ताव एक माह पहले  ही भेज दिया गया था।

क्या कहते हैं अधिकारी

एस्टीमेट तैयार करने का मैटर कार्यालय का है। किसी कारणवश एस्टीमेट बनाने में देरी हो सकती है। एस्टीमेट तैयार होने के तुरंत बाद सरकार को भेज दिए जाएंगे।
नरेंद्र दलाल, कार्यकारी अभियंता
पंचायती राज विभाग, जींद

 तैयार किया जा रहा है  एस्टीमेट

बीबीपुर ग्राम पंचायत के विकास के लिए एक करोड़ के एस्टीमेट तैयार करने का कार्य किया जा रहा है। जैसे ही एस्टीमेट तैयार होंगे उन्हें पंचायत विभाग के मुख्यालय भेज दिए जाएगें। विभाग द्वारा एस्टीमेट बनाने में किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं की जा रही है।
अरविंद बैनिवाल, एसडीओ
पंचायती राज विभाग, जींद


गुरुवार, 27 सितंबर 2012

खाप चौधरियों ने की किसान-कीट मुकद्दमें की सुनवाई


जींद। कीटों व किसान के मुकद्दमे की सुनवाई के लिए मंगलवार को गांव निडाना में चौहदवीं खाप पंचायत का आयोजन किया गया। जिसमें 72 खाप जींद के प्रधान केके मिश्रा, जेवड़ा बरवाला खाप  सूबेसिंह भ्याणा, कृषि विशेषज्ञ डा. करतार सिंह, पशु चिकित्सक डा. राजबीर सिंह ने कीटों की पहचान की। खेत पाठशाला में किसानों ने कीट सर्वेक्षण के बाद कपास की फसल में मौजूद पर्णभक्षी कीटों पर चर्चा की। कीट सर्वेक्षण के बाद किसानों ने कीट बही-खाता भी तैयार किया। कीट-बही खाते में निडाना, निडानी, ललीतखेड़ा सहित अन्य गांवों के किसानों ने भाग लिया। गांवों से आए किसानों ने अपने-अपने खेत से तैयार किए गए कीटों के आंकड़े भी दर्ज करवाए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बाहरा बारह खाप के अध्यक्ष कुलदीप सिंह ढांडा ने कहा कि किसान बेवजह कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। जिसका फसलों को तनिक भी लाभ नहीं हो रहा है। उन्होंने बताया कि पिछले एक दशक में कीटनाशकों का प्रयोग अत्याधिक बढ़ा है। जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है। खाप चौधरियों ने कॉटन फसल में उन कीटों की पहचान की। जो फसल को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। फसल में चुरड़ा कीट नहीं पाया गया। सफेद मक्खी की संख्या प्रति पौधा काफी कम मिली। तेले की संख्या भी फसल में इतनी नहीं है कि वह फसल को नुकसान पहुंचा सके।खाप चौधरियों ने पाया कि एक पौधे पर टिंडे की संख्या इस समय 76 है। जो पिछली पंचायत में गिने गए टिंडों से चार कम पायी गई है। इसके बावजूद चौधरियों का मानना है कि कॉटन की पैदावार पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ेगा।

 कीटों का सर्वेक्षण करते किसान।

समय पर पौधों को पर्याप्त खुराक देकर पैदावार में की जा सकती है बढ़ोतरी


नरेंद्र कुंडू 
जींद। ललीतखेड़ा गांव में बुधवार को पूनम मलिक के खेत में महिला किसान पाठशाला का आयोजन किया गया। महिलाओं ने पाठशाला में कीट सर्वेक्षण के बाद कीट बही खाता तैयार किया। कीट सर्वेक्षण के साथ-साथ महिलाओं ने कपास के पौधों, फूलों, टिंडों व बोकियों की गिनती कर पौधों का भी बही खाता तैयार किया। महिलाओं ने 6 ग्रुप बनाकर 10-10 पौधों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के बाद महिलाओं ने जामुन के पेड़ के नीचे बैठकर चार्ट पर अपना बही खाता तैयार किया। मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने सर्वेक्षण के बाद तैयार किए गए आंकड़ों की तरफ इशारा करते हुए बताया कि कपास के इस खेत में इस सप्ताह शाकाहारी कीटों की संख्या नामात्र है। इस सप्ताह फसल में लाल व काला बानिया ही नजर आए हैं। पूनम मलिक ने महिलाओं को बताया कि उन्होंने कीट सर्वेक्षण के दौरान खेत में लाल व काला बानिए के अंडे भी देखे हैं। पूनम ने बताया कि लाल बानिया अपने अंड़े कपास के पौधे के पास गले-सड़े पत्तों के नीचे व जमीन के ऊपर देता है तथा काला बानिया कपास के खिले हुए टिंडों के अंदर देता है। सविता ने महिलाओं द्वारा किए गए कपास के पौधों के सर्वेक्षण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस प्रयोगधीन खेत में एक पौधे पर औसतन 80 टिंडे, 2 फूल व 22 बोकियां मिली हैं। सविता ने बताया कि अगर इस समय पौधों को पर्याप्त खुराक मिल जाए तो बोकियों, फूलों व टिंडों को अच्छी तरह विकसित कर अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। मीना मलिक ने बताया कि पाठशाला में आने वाली महिलाओं को अभी तक अपने खेत में एक बूंद भी कीटनाशक के प्रयोग की जरुरत नहीं पड़ी है। महिलाओं ने बताया कि उनके लिए बड़ी खुशी की बात है कि उन्होंने अपनी मेहनत के बलबूते खुद का ज्ञान पैदा कर कीटनाशकों को धूल चटा दी है। 

टीवी के माध्यम से सिखाएंगी जहर से मुक्ति के गुर

 पाठशाला में मास्टर ट्रेनर के साथ विचार-विमर्श करती महिलाएं।

: कपास की फसल में कीट सर्वेक्षण करती महिलाएं। 
महिला किसान पाठशाला के अलावा महिलाएं टीवी के माध्यम से भी किसानों के साथ अपने अनुभव बांटेंगी। वीरवार को लोकसभा चैनल पर सायं 5.30 बजे ‘ज्ञान दर्पण’ कार्यक्रम में, शुक्रवार को सायं 5.30 बजे ‘सार्इंस दिस वीक’ कार्यक्रम में तथा सोमवार को डीडी नैशनल चैनल पर सायं 6.30 बजे ‘कृषि दर्शन’ कार्यक्रम में किसानों को कीट नियंत्रण के माध्यम से जहर से छुटकारा पाने के गुर सिखाएंगी। 


बुधवार, 19 सितंबर 2012

कीट विज्ञान से ही किसानों ने पैदा किया है कीट ज्ञान


  किसान पाठशाला में खाप चौधरियों ने की किसान-कीट विवाद की सुनवाई

नरेंद्र कुंडू 
जींद। ज्ञान, विज्ञान और तकनीक देश के विकास की धूरी होती हैं। ज्ञान व विज्ञान को जनता पैदा करती और यह जनता के ही काम आता है। लेकिन तकनीक व्यापार को ध्यान में रखकर पैदा की जाती है और तकनीक जनता की बजाए पैदा करने वाले के ही काम आती है। यह बात कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने मंगलवार को निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में खाप पंचायत की 13वीं बैठक में कही। बैठक की अध्यक्षता सर्वखाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने की। इस अवसर पर बैठक में कुंडू खाप कालवा के प्रधान सुभाष कुंडू, प्रसिद्ध समाजसेवी देवव्रत ढांडा, बागवानी विभाग से डीएचओ डा. बलजीत भ्याणा व पेहवा से आए प्रगतिशील किसान शीतल राम भी मौजूद थे।
डा. दलाल ने कहा कि देश में 26 से भी ज्यादा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटियां हैं और इन यूनिवर्सिटियों की स्थापना देश में तकनीक को बढ़ावा देने के लिए ही की गई थी। डा. दलाल ने कहा कि आज कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों का जो प्रयोग बढ़ रहा है वह भी तकनीक का ही एक हिस्सा है। लेकिन निडाना के किसानों ने कोई नई तकनीक अपनाने की बजाए कीट विज्ञान को अपना कर अपना खुद का कीट ज्ञान पैदा किया है। उन्होंने कहा कि कीट ज्ञान का मतलब फसल में कीटों के क्रियाकलापों को समझना व कीटों का परखना है। पाठशाला की शुरूआत फसल में कीट सर्वेक्षण से की गई। कीट कमांडो किसानों ने कीटों का सर्वेक्षण कर खाप प्रतिनिधियों के सामने फसल में मौजूद कीटों का आंकड़ा रखा। इस दौरान आस-पास के गांवों से आए किसानों ने कीट बही खाते में अपने-अपने कपास के खेत से तैयार किए गए फल, फूल व बोकी का आंकड़ा भी दर्ज करवाया। किसानों द्वारा दर्ज करवाए गए आंकड़े में फल की प्रति पौधा औसत 60 से 80, फूल की 1 से 3 तथा बोकी की 7 से 12 की औसत आई। र्इंटल कलां से आए किसान चतर सिंह ने बताया कि इस समय पौधे को फूल व बोकी की बजाए फल की ज्यादा चिंता रहती है। ताकि भविष्य में भी उसकी वंशवृद्धि हो सके। इसलिए पौधा बोकी व फूल की बजाए फल की तरफ ज्यादा ध्यान देता है। इस समय पौधे को ज्यादा खुराक की जरुरत होती है। इसलिए किसानों को इस समय पौधे को पर्याप्त मात्रा में खुराक देने के लिए जिंक, यूरिया व डीएपी का छिड़काव करना चाहिए। किसान अजीत ने बताया कि जिंक, यूरिया व डीएपी के छिड़काव का प्रभाव चार घंटे में ही नजर आने लगता है, जबकि जमीन में डाले गए खाद का प्रभाव तीन से चार दिन बाद नजर आता है। अलेवा से आए किसान जोगेंद्र ने बताया कि उसकी पोली हाऊस में लगी शिमला मिर्च की फसल में ग्रास होपर का प्रकोप काफी बढ़ गया था। जिससे भयभीत होकर उसने फसल में कीटनाशक का स्प्रे किया, लेकिन कीटनाशक से भी अच्छा परिणाम नहीं मिला। इसके बाद उसने पोली हाऊस में मकड़ियां छोड़ दी और मकड़ियों ने बड़ी आसानी से ग्रास होपर को कंट्रोल कर लिया। किसान सुरेश ने बताया कि उन्होंने रामकली व चाबरी गांव में कीटनाशक रहित 57 एकड़ धान की फसल में 307 पौधों का निरीक्षण किया था। जिसमें से मात्र सात पौधों पर ही गोभ वाली सुडियां थी। जबकि जिन किसानों ने कीटनाशकों का प्रयोग किया है उनकी फसल में इन सुडियों की तादात ज्यादा है। किसानों ने बैठक में आए खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न देकर उनका स्वागत किया गया।

चैनल की टीम ने भी किसानों के अनुभव को किया कैमरे में कैद

लोकसभा चैनल दिल्ली की टीम ने मंगलवार को किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर किसानों के अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। चैनल की असिस्टैंट डायरेक्टर प्रिंयका ने एडिटर अमल, प्रोडेक्शन एसिस्टेंट शनि व कैमरामैन मुन्ना के साथ गुरुवार को प्रसारित होने वाले विज्ञान दर्पण तथा शुक्रवार को प्रसारित होने वाले साइंस दिस विक कार्यक्रम की शूटिंग के लिए यहां पहुंची थी। चैनल की टीम ने सुबह आठ से 12 बजे तक निडाना में किसान खेत पाठशाला के किसानों तथा 12 बजे से दोपहर दो बजे तक ललीतखेड़ा में महिला किसानों के क्रियाकलापों व उनके अनुभव की रिकार्डिंग की।



 कीट सर्वेक्षण के बाद बही खाते में कीटों के आंकड़े दर्ज करवाते किसान।  

 खाप प्रतिनिधि को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान।

 महिला किसान खेत पाठशाला में कार्यक्रम के लिए शूटिंग करती चैनल की टीम।

 चैनल की टीम को स्मृति चिह्न भेंट करती महिलाएं।


धान की फसल पर पाइरिला के डंक का कहर


 कृषि विभाग के अधिकारी कीटनाशकों की बजाए खाद के स्प्रे के प्रयोग की दे रहे हैं सलाह 

नरेंद्र कुंडू
जींद। धान की फसल में पाइरिला के निम्प (अल्ल) की दस्तक के कारण धरतीपुत्रों के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ने लगी हैं। पाइरिला के डंक ने किसानों के सपनों में सेंध लगा दी है। फिलहाल पाइरिला ने ज्वार व गन्ने की फसलों के आस-पास की धान की फसलों में दस्तक दी है। फसल में पाइरिला के प्रकोप के कारण किसानों को फसल की सुरक्षा की चिंता सताने लगी है। किसान अचानक धान की फसल में हुए पाइरिला के निम्प के प्रकोप से इजाद पाने की तरकीब ढुंढ़ रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारी किसानों को धान की फसल को पाइरिला के निम्प के प्रकोप से बचाने के लिए किसी प्रकार के कीटनाशक की बजाए पोटास, यूरिया व जिंक के मिश्रण के स्प्रे का प्रयोग करने की सलाह दे रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि धान की फसल में मौजूद मासाहारी कीट ही पाइरिला के लिए कीटनाशक का काम करते हैं। 
किसान रामकुमार, दयाकिशन, रामकरण ने बताया कि पाइरिला के निम्प ने उनकी फसल में दस्तक दे दी है। पाइरिला के आक्रमण के कारण उनकी धान की फसल सुखने लगी है। किसानों का कहना है कि पाइरिला कीट को धान की फसल में वो पहली बार देख रहे हैं। इससे पहले उन्होंने इस कीट को ज्वार व गन्ने की फसल में देखा है। किसानों का कहना है कि अभी तक यह कीट केवल ज्वार व गन्ने की फसल के आस-पास वाले धान के खेतों में नजर आया है।

रस चूसक कीट है पाइरिला

कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि पाइरिला के प्रौढ़ व बच्चे दोनों ही शाकाहारी कीट हैं। इस कीट के पीछे दो पूंछ होती हैं और इसके मुहं के स्थान पर डंक होता है, जिसकी सहायता से यह पत्तों का रस चूसकर अपना जीवनचक्र चलाता है। इस कीट का रंग सफेद होता है और यह बिल्कुल मच्छर के आकार का होता है। पाइरिला कीट ज्वार व गन्ने की फसल में ज्यादा पाया जाता है। इस समय ज्वार की फसल के पत्ते सुख जाने के कारण उनमें रस कम रह जाता है। इसलिए यह अपनी वंशवृद्धि के लिए दूसरी फसल की तरफ अपना रूख कर लेता है। 

क्या करें किसान

: धान के पौधों पर मौजूद पाइरिला कीट। 
कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने बताया कि किसानों को इस कीट से डरने की जरुरत नहीं है। इस कीट को कंट्रोल करने के लिए धान की फसल में काफी संख्या में मासाहारी कीट मौजूद होते हैं। धान की फसल में मौजूद परजीवी कीट इसकी पीठ पर बैठकर इसका खून पी कर इसका खात्मा कर देते हैं। इसके अलावा धान की फसल में मौजूद लोपा, तुलसा व डायन मक्खियां इसके प्रौढ़ व इसके शिशुओं का उड़ते हुए शिकार करती हैं। पाइरिला कीट पंख वहिन होता है और यह फुदक कर एक जगह से दूसरी जगह जाता है। इसलिए धान की फसल में मौजूद मासाहारी कीट पाइरिला के प्रौढ़ व शिशुओं का बड़ी आसानी से शिकार कर लेते हैं। पाइरिला के प्रकोप के कारण धान के पौधों में केवल रस की कमी हो सकती है और रस की कमी के कारण ही पौधा सुखता है। किसान पौधों में रस की कमी को पूरा करने के लिए अढ़ाई किलो पोटास, अढ़ाई किलो यूरिया व आधा किलो जिंक का 100 लीटर पानी में घोल तैयार कर धान की फसल में स्प्रे करें। इससे पौधों में रस की कमी पूरी हो जाएगी और धान की फसल पर पाइरिला के अटैक का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। 


शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

जाटों ने आरक्षण की मांग को लेकर खींची एलओसी


नरेंद्र कुंडू
जींद। पिछले चार वर्षों से आरक्षण की मांग को लेकर सरकार के साथ चल रही खिंचतान के बाद आखिरकार वीरवार को जाटों ने आरक्षण के लिए 15 दिसंबर तक का अल्टीमेटम देकर सरकार के समक्ष जाटों को आरक्षण देने की एलओसी (लाइन आॅफ कंट्रोल) यानि नियंत्रण रेखा खींच दी है। सर्वखाप जाट महापंचायत के नेतृत्व में नरवाना के दनौदा गांव स्थित बिनैन खाप के ऐतिहासिक चबूतरे पर एकत्रित हुए सात प्रदेशों के जाटों ने सरकार के समक्ष यह एलओसी खींच कर सरकार को आरक्षण के लिए तीन माह का समय दिया है। यदि इन तीन माह के अंदर सरकार ने प्रदेश में जाटों को आरक्षण देकर केंद्र सरकार से भी जाटों को आरक्षण देने की सिफारिश नहीं की तो 16 दिसंबर को जाट आरक्षण के लिए जंग की रणभेरी बजाते हुए मैदान में उतर आएंगे। और जाटों की इस जंग में इनका अगला पड़ाव होगा प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गृहक्षेत्र रोहतक या सोनीपत जिला। 

आरक्षण के लिए जाटों को एक मंच पर लाने के लिए नरवाना के दनौदा गांव के ऐतिहासिक चबूतरे पर वीरवार को हुई सर्वखाप जाट महापंचायत ने आरक्षण को लेकर प्रदेश सरकार के समक्ष एलओसी खींच दी है। सर्वजातीय 
आंदोलन के दौरान शहीद हुए तीनों वीरों को पुष्पार्पित करते खाप प्रतिनिधि।

सर्वखाप पंचायत के प्रधान नफे सिंह नैन की अध्यक्षता में बिनैन खाप के ऐतिहासिक चबूतरे से आरक्षण के लिए होने वाली इस पंचायत में अकेले हरियाणा ही नहीं बल्कि सात प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। पंचायत की शुरूआत आंदोलन के दौरान शहीद हुए सुनील श्योरण, विजय कड़वासरा, संदीप कड़वासरा को श्रद्धा सुमन अर्पित कर की। इन प्रतिनिधियों ने भरी पंचायत में सर्वखाप जाट महापंचायत को अपना पूरा समर्थन देने का ऐलान किया। इतना ही नहीं खाप पंचायत ने आरक्षण के लिए सरकार के साथ पिछले चार वर्षों से जद्दोजहद करने वाले जाटों के चारों संगठनों को एक मंच प्रदान किया है। इससे चार वर्षों से रेंग रहे जाट आरक्षण के मुद्दे को खाप पंचायत ने अब पहिये लगाकर रफ्तार देने का काम भी किया है। विभीन्न खापों से आए खाप प्रधान व प्रतिनिधियों ने मंच से ऐलान करते हुए कहा कि अगर प्रदेश सरकार ने 15 दिसंबर तक प्रदेश में जाटों को आरक्षण देकर केंद्र सरकार से भी आरक्षण देने की सिफारिश नहीं की तो खाप पंचायत को मजबूरीवश 16 दिसंबर 
 मंच पर मौजूद विभिन्न खापों से आए प्रतिनिधि।

से आरक्षण की मांग को लेकर जंग का ऐलान करना पड़ेगा। आरक्षण के मुद्दे पर अगर खाप पंचायत को सरकार का रवैया नकारात्मक नजर आया तो खाप पंचायत नवंबर माह में बैठक कर अपने आंदोलन की अगली रणनीति भी  तैयार कर सकते हैं। हालांकि खाप प्रतिनिधियों साथ-साथ यह भी स्पष्ट कर दिया है कि उनका यह आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक रहेगा, लेकिन इस दौरान अगर फिर भी किसी तरह की अनहोनी घटना घटी तो उसके लिए सारी जिम्मेदारी सरकार की होगी। खाप प्रधानों ने सरकार को चेताते हुए कहा कि 16 दिसंबर के बाद वह अपनी जंग की शुरूआत प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गृहक्षेत्र से करेंगे। रोहतक जिले से आए हुड्डा खाप के कार्यकारी अध्यक्ष व सोनीपत 360 के प्रधान ने  भी खाप पंचायत को उनके इस आंदोलन में पूरा सहयोग करने का आश्वासन दिया। खाप पंचायत में खाप प्रतिनिधियों ने खाप के लिए एक झंडा बनाने की मांग भी की। पंचायत में दलजीत पंघाल ने पिछले चार वर्षों के दौरान आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन में घायल हुए लोगों को 21-21 हजार रुपए देने की घोषण  भी की। 

पंचायत में ये रखे गए प्रस्ताव

महापंचायत में सर्वजातीय सर्वखाप पंचायत हरियाणा के प्रवक्ता सूबे सिंह समैण ने चार प्रस्ताव रखे। पंचायत में रखे प्रस्ताव में खाप प्रतिनिधियों ने मांग की कि प्रदेश सरकार 15 दिसंबर तक जाटों को आरक्षण दे तथा इसको 
पंचायत में मौजूद पुरुष व महिलाएं।

तुरंत प्रभाव से लागू करें। इस दौरान हरियाणा सरकार केन्द्रीय सेवाओं में जाटों को आरक्षण देने के लिए केंद्र सरकार से  भी सिफारिश करे। अन्यथा 16 दिसंबर को सर्व जाट खाप पंचायत के नेतृत्व में स भी जाटों को साथ लेकर प्रदेश व केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा। दूसरे प्रस्ताव में केंद्र सरकार से मांग की है कि हरियाणा तथा अन्य प्रदेशों के जाटों को शीघ्र आरक्षण देने की घोषणा करे अन्यथा सभी राज्यों के जाट संयुक्त रुप से आंदोलन करेंगे। तीसरे प्रस्ताव में कहा गया कि जाट कौम शुरू से ही न्यायप्रिय रही है और न्याय के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानियां दी है। लेकिन आज तक देश के सर्वोच्च न्यायालय में कोई भी जाट कौम का न्यायाधीश नहीं बनाया गया है। इसलिए केन्द्र सरकार से मांग है कि सर्वोच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय में जाट कौम के किसी सुयोग्य अधिवक्ता को न्यायाधीश बनाएं। इसके अलावा राष्ट्रीय की सुरक्षा में बलिदान देने वाले शहीदों में जाट कौम के लोगों की सबसे बड़ी संख्या रही है। लेकिन इस कौम का हमेशा ही दुर्भाग्य रहा है कि सेना की तीनों कमानों में आज तक कोई  भी जाट कौम से संबंध रखने वाला व्यक्ति सेना प्रमुख नहीं बना है। इसलिए इनकी नियुक्ति में भेदभाव को खत्म किया जाए और भविष्य में जाट कौम के व्यक्ति को भारतीय सेना के प्रमुख पद पर नियुक्त किया जाए। इसके अलावा केन्द्र सरकार में जाट कौम का कोई भी मंत्री नहीं है, इसलिए जाट कौम से संबंध रखने वाले किसी सांसद 
पंचायत में मौजूद पुरुष।

को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाए। चौथे प्रस्ताव   में विधि आयोग के सदस्य अमरजीत सिंह द्वारा खापों को डैकेत कहने पर रोष जताया और कहा कि डैकेत कहना बड़ी गैर संसदीय भाषा है। जिससे उत्तर भारतीय के सभी जाति के लोगों को गहरी ठेस पहुंची है। इसलिए केन्द्र सरकार विधि आयोग के सदस्य अमरजीत सिंह को तुरंत प्रभाव से हटाए। पंचायत में मौजूद स भी खाप प्रतिनिधियों ने हाथ उठाकर इन चारों प्रस्तावों का समर्थन किया।

आंदोलनकर्त्ताओं पर दर्ज हुए मामले वापिस ले सरकार

महापंचायत में खाप प्रतिनिधियों ने पिछले चार सालों के दौरान आरक्षण की मांग को लेकर हुए आंदोलन करने वाले आंदोलनकर्त्ताआें पर दर्ज हुए मामलों को वापिस लेने की मांग की। अखिल भारतीय जाट संघर्ष समिति के प्रदेशाध्यक्ष धर्मपाल छौत ने कहा कि आरक्षण उनका हक है और वे इसे लेकर रहेंगे। छौत ने कहा कि पिछले चार वर्षों के दौरान आरक्षण की मांग को लेकर उनके द्वारा किए गए स भी आंदोलन शांतिपूर्वक थे, लेकिन फिर  भी सरकार ने आंदोलनकर्त्ताओं को परेशान करने के लिए उन पर झूठे मुकद्दमे दर्ज करवा दिए हैं। जिसे तुरंत वापिस लिया जाए। 

चार वर्ष पहले जींद से ही हुआ था आंदोलन का शंखनाद

सर्व जातीय सर्व खाप पंचायत के प्रवक्ता सूबे सिंह समैन ने कहा कि 14 मार्च 2008 को जींद से ही जाट आरक्षण का शंखनाद हुआ था। जिसके बाद प्रदेश में कई बार जाटों ने आरक्षण के लिए संघर्ष किया। लेकिन उस वक्त जाट एकजूट नहीं थे, जिस कारण आंदोलन सफल नहीं हो सके। लेकिन अब जाट आरक्षण के लिए संघर्षरत चारों गुट एकजुट हो गए हैं और जिनकी बागडोर खाप पंचायत ने अपने हाथ में ले ली है। जाटों के एकजुट होने के बाद अब दोबारा फिर जींद से ही आंदोलन की शुरूआत हुई है। इसलिए अब इस आंदोलन को कोई  भी ताकत नहीं रोक सकती। 
दनौदा गांव के ऐतिहासिक चबूतरे का प्रवेश द्वार 

किसी राजनैतिक रैली से कम नहीं थी खाप पंचायत की बैठक

दनौद गांव के ऐतिहासिक चबूतरे पर हुई सर्वखाप जाट महापंचायत की बैठक किसी राजनैतिक रैली से कम नहीं थी। रैली में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी मौजूद थी। रैली में लगभग दस हजार लोगों की उपस्थिति का अनुमान लगाया जा रहा है। खाप पंचायत द्वारा लोगों की सुविधा के लिए किए गए इंतजाम काबिले तारीफ थे। पंचायत में खान-पान की स भी सुविधाएं पूरी व्यवस्थित थी। इसमें सबसे खास बात यह थी कि पंचायत में वालिइंटियर की जिम्मेदारी छोटे-छोटे बच्चों ने संभाल रखी थी। 









किसान को फायदा या नुकशान पहुंचाने नहीं अपना जीवनचक्र चलाने के लिए फसल में आते हैं कीट


नरेंद्र कुंडू 
जींद। जिले के ललीतखेड़ा गांव में बुधवार को महिला किसान पूनम मलिक के खेत में महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में ललीतखेड़ा, निडाना व निडानी गांव की महिलाओं ने भाग लिया। पाठशाला की शुरुआत महिलाओं ने कपास कीट सर्वेक्षण के साथ की। महिलाओं ने कपास की फसल में लगभग एक घंटे तक कीट अवलोकन व निरीक्षण किया। कीट सर्वेक्षण के बाद महिलाओं ने कीट बही खाता तैयार किया। इसके साथ-साथ महिलाओं ने कपास की फसल में मौजूद पर्णभक्षी कीटों व मासाहारी कीटों के क्रियाकलापों के बारे में भी अपने-अपने अनुभव पाठशाला में रखे।  
 कपास के खेत कीटों का अवलोकन करती महिलाएं।

 कपास की फसल में मौजूद कीटों का बही खाता दर्ज करती महिलाएं। 
मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने बही खाते में दर्ज आंकड़ों की तरफ इशारा करते हुए महिलाओं को बताया कि आंकड़ों के अनुसार अभी तक इस कपास की फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं है। सुदेश ने महिलाओं को बताया कि कोई भी कीट हमारा मित्र या दुश्मन नहीं होता। इसलिए हमें कीटों को मित्र या दुश्मन कीटों के नजरिए से नहीं देखना चाहिए। शाकाहारी कीट पौधों पर अपना जीवन यापन करने के लिए आते हैं और पौधों के पत्ते, फूल इत्यादि खाकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं। मासाहारी कीटों को अपना जीवन यापन करने के लिए मास की जरुरत होती है। इसलिए वे अपना पेट भरने के लिए मास की तलाश में शाकाहारी कीटों के साथ-साथ पौधों पर आ जाता हैं। कोई भी कीट किसानों को नुकसान व लाभ पहुंचाने के लिए पौधों पर नहीं आता है। कमलेश ने बताया कि फिलहाल कपास के पौधों को पर्णभक्षी कीटों की सबसे ज्यादा जरुरत है। क्योंकि पर्णभक्षी कीट पौधों के ऊपरी हिस्सा के पत्तों में छेद कर नीचे के पत्तों के लिए प्रकाश संशलेषण का रास्ता तैयार करते हैं। इससे नीचे के पत्ते पौधे के लिए पर्याप्त भेजन बनाने में सक्षम हो जाते हैं। जिससे पौधे पर भरपूर मात्रा में फल आता है। लेकिन अधिकतर किसान पत्तों को कटा देखकर घबरा जाता हैं और कीटनाशकों के माध्यम से कीटों को कंट्रोल करने का प्रयास करते हैं। किसानों की इस जद्दोजहद में शाकाहारी कीटों के साथ-साथ मासाहारी कीट भी मारे जाते हैं। जिससे आगे चलकर फसल पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए हमें कीटों को कंट्रोल नहीं पहचानने की जरुरत है।
फोटो कैप्शन

बुधवार, 12 सितंबर 2012

कीट ज्ञान के साथ-साथ पौधों की भाषा भी सीखें किसान


किसान-कीट विवाद की सुनवाई के दौरान किसानों ने पर्णभक्षी कीटों पर गहनता से की चर्चा


नरेंद्र कुंडू 
जींद। जिले के निडाना गांव में मंगलवार को किसान-कीट विवाद की सुनवाई के लिए खाप पंचायत की 12वीं बैठक का आयोजन किया गया। बैठक की अध्यक्षता बराह कलां बारहा खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने किया। इस अवसर पर किसान खेत पाठशाला में अलेवा खाप के प्रतिनिधि राजेंद्र दलाल तथा राज्यान खाप के प्रतिनिधि राजबीर सिंह राज्यान विशेष रूप से मौजूद रहे। खेत पाठशाला में किसानों ने कीट सर्वेक्षण के बाद कपास की फसल में मौजूद पर्णभक्षी कीटों तथा कपास की फसल में हुई अल्ल की शुरुआत पर गहनता से चर्चा की। कीट सर्वेक्षण के बाद किसानों ने कीट बही-खाता भी तैयार किया। कीट-बही खाते में निडाना, निडानी, ललीतखेड़ा, चाबरी, खरक रामजी, ईगराह, राजपुरा, सिवाहा सहित आस-पास के 12 गांवों से आए किसानों ने अपने-अपने खेत से तैयार किए गए कीटों के आंकड़े भी दर्ज करवाए।

खाप प्रतिनिधियों के समक्ष कीट-बही खाता प्रस्तुत करते किसान।


 बैठक में मौजूद किसान।

बैठक में किसान-कीट विवाद की सुनावाई के दौरान राजपुरा गांव से आए किसान बलवान ने खाप प्रतिनिधियों के समक्ष कीटों का पक्ष रखते हुए बताया कि कीटों के बिना पौधों की वंशवृद्धि संभव नहीं है। पौधों को अपना जीवनचक्र चलाने के लिए शाकाहारी व मासाहारी दोनों प्रकार के कीटों की जरुरत होती है। इसलिए हमें कीट ज्ञान के साथ-साथ पौधों की भाषा भी सीखने की भी जरुरत है। बलवान ने बताया कि पौधे समय-समय पर अपनी जरुरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की सुगंध छोड़कर मासाहारी व शाकाहारी कीटों को अपनी सुरक्षा के लिए बुलाते हैं। किसान सुरेश ने बताया कि हमें अपनी फसल में आने वाले शाकाहारी व मासाहारी कीटों की गतिविधियां व उनके क्रियाकलापों को गहनता से समझना चाहिए। सुरेश ने बताया कि यहां के किसान अब तक पत्ते खाने वाले 13 किस्म के पर्णभक्षी कीटों की पहचान कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि फिलहाल कपास की फसल में पत्ते खाने वाले (पर्ण क्षी) कीटों की तादात बढ़ रही है, क्योंकि इस समय कपास के पौधों को पर्णभक्षी कीटों की मदद की सबसे ज्यादा जरुरत है। सुरेश ने बताया कि इस समय कपास की फसल काफी विकसित हो चुकी है और फसल में फूल व फल भी आने लगा है। इसलिए पौधों को फल व फूलों के लिए पर्याप्त भेजन उपलब्ध करवाने के लिए अधिक भेजन की आवश्यकता पड़ती है और पत्ते पौधे के लिए भेजन बनाने का कार्य करते हैं। पत्तों को भेजन बनाने के लिए धूप की सबसे ज्यादा जरुरत होती है। किसान महाबीर ने बताया कि इस समय कपास के पौधे काफी विकसित हो चुके हैं, जिस कारण पौधे के नीचे के पत्तों को ऊपरी भाग के पत्तों ने पूरी तरह से ढक लिया है और नीचे के पत्तों तक पर्याप्त मात्रा में धूप नहीं पहुंच पाती है। जिस कारण नीचे के पत्ते पौधे के लिए भेजन नहीं बना पा रहे हैं। इसलिए पौधे ने नीचे के पत्तों तक धूप पहुंचाने के लिए पर्णभक्षी कीटों से मदद की गुहार लगाई है। पर्णभक्षी कीट पौधे के ऊपरी पत्तों को बीच से खा कर उसमें छेद कर देते हैं और इस छेद से नीचे के पत्तों तक धूप पहुंच जाती है। इस प्रकार पर्णक्षी कीटों की मदद से नीचे के पत्तों पर भी सही ढंग से प्रकाश संशलेषण होता है। जिस कारण नीचे व ऊपरी भाग के पत्ते मिलकर पौधे के लिए भेजन बनाते हैं। जिससे फल व फूलों को पूरी खुराक मिलती है और इससे उत्पादन में इजाफा होता है। खरकरामजी के किसान रोशन ने बताया कि इस समय कपास की फसल में अल्ल की शुरुआत हो चुकी है। रोशन ने बताया कि अल्ल बिल्कुल छोटे प्रकार का शाकाहारी कीट होता है और इसके पिछवाड़े पर दो सिंग भी होते हैं। लेकिन किसानों को इससे डरने की जरुरत नहीं है, क्योंकि अल्ल के साथ-साथ उसके खात्मे के लिए फसल में लेडी बिटल व सिरफड मक्खियां अपने आप ही पहुंच जाएंगी। बर्शत किसान ने अपनी फसल में किसी प्रकार के कीटनाशक का इस्तेमाल ना किया हो। किसानों ने बैठक में अपने अनुभव रखते हुए बताया कि उन्होंने सर्वेक्षण के दौरान मकड़ी द्वारा पुष्पाहारी तेलन, इंजनहारी, सलेटी भूड, लाल बाणिया को खाते हुए देखा। हथजोड़ा तेलन, सलेटी भूड, मिलीबग व सुंडियों को चट कर रहा था। लोपा मक्खी पतंगा व मच्छरों का खात्मा कर रही थी। पाठशाला के समापन के बाद किसानों ने विभिन्न खापों से आए प्रतिनिधियों को हथजोड़े का चित्र स्मृति चिह्न के तौर पर देकर उनका स्वागत किया।  

शनिवार, 8 सितंबर 2012

खेलों की नई तकनीकों से लैस होंगे गुरुजी


नरेंद्र कुंडू
जींद। प्रदेश में खेलों के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) ने अब गुरु जी यानि पीटीआई अध्यापकों को नई तकनीकों से लैस करने की योजना बनाई है। एसएसए की इस योजना के तहत पीटीआई अध्यापकों के लिए 11 सितंबर से 17 सितंबर तक सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जा रहा है। इसके लिए एसएसए द्वारा पूरे प्रदेश में 14 ट्रेनिंग सैंटर बनाए गए हैं। इस शिविर के प्रथम बैच में प्रदेशभर से 1645 पीटीआई अध्यापकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
पीटीआई अध्यापकों को तकनीकी गुर व खेलों की बारिकियां सीखाने के लिए एसएसए द्वारा सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। इस सात दिवसीय शिविर में मास्टर ट्रेनरों द्वारा पीटीआई अध्यापकों को खेलों की बारिकियों के साथ-साथ खेल के क्षेत्र में आने वाले नए-नए तकनीकी गुर भी सीखाए जाएंगे। एसएसए द्वारा इन शिविरों के आयोजन का मुख्य उद्देश्य पीटीआई अध्यापकों को खेलों के नए तकनीकी गुर सिखाना है। ताकि पीटीआई अध्यापक तकनीकी गुरों से लैस होकर स्कूलों से पढ़ाई के साथ-साथ अच्छे खिलाड़ी भी तैयार कर सकें। एसएसए ने पीटीआई अध्यापकों को ट्रेंड करने के लिए प्रदेश में 14 प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए हैं। इन शिविरों में वालीबाल, फुटबाल, बास्केटबाल, कबड्डी, खो-खो, बैडमिंटन, एथलेटिक्स, हैंडबाल, कुश्ती के सभी पीटीआई अध्यापक भाग लेंगे। खेलों की कटेगरी के अनुसार ही अलग-अलग स्थानों पर प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गया है। इन शिविरों में प्रदेशभर से 1645 पीटीआई अध्यापक भाग लेंगे। शिविर में रहने व खाने की पूरी व्यवस्था एसएसए द्वारा की जाएगी। लेकिन पीटीआई अध्यापकों को बर्तन व बिस्तर की व्यवस्था स्वयं करनी होगी।

प्रशिक्षण केंद्र के शहर का नाम भाग लेने वाले अध्यापकों की संख्या

नरवाना 132
अंबाला 105
कुरुक्षेत्र 124
करनाल 112
सोनीपत 117
रोहतक 124
फरीदाबाद 76
नारनौल 122
भिवानी         164
झज्जर 110
गुड़गांव 95
रेवाड़ी 101
सिरसा 151
कैथल 112
कुल       1645
पीटीआई अध्यापकों को खेलों के तकनीकी गुर सीखाने के लिए एसएसए द्वारा इस सात दिवसीय शिविर का आयोजन किया जा रहा है। एसएसए ने खेलों के अनुसार अलग-अलग प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए हैं। एसएसए द्वारा पीटीआई अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए दो शिविर लगाए जाएंगे। प्रथम शिविर में प्रदेशभर से 1645 पीटीआई अध्यापक भाग लेंगे। 
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी
सर्व शिक्षा अभियान, जींद

लड़की के जन्म पर भी निभाई जाएंगी लड़के वाली परंपराएं


‘लाडो’ को बचाने के लिए सात को युवा संगठन डालेगा अपनी पहली आहूति 

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले में कन्या भ्रूणहत्या के खिलाफ चली रही मुहिमों का असर सामने आने लगा है। जनसाधारण में अब बेटी बचाओ के लिए माहौल बनने लगा है। निडानी गांव के भगत सिंह क्रांतिकारी युवा संगठन द्वारा लाडो को बचाने के लिए शुरू की गई जंग में अब संगठन के सदस्य अपनी पहली आहूति देने जा रहा हैं। युवा संगठन के सदस्य गांव में एक पिछड़े वर्ग से संबंधित परिवार में जन्मी बेटी का स्वागत बैंड बाजों के साथ करेंगे। संगठन के सदस्यों द्वारा सात सितंबर को धूमधाम से लड़की की छट्टी मनाई जाएगी तथा 11 सितंबर को गाजे-बाजे के साथ इस कन्या का कुआं पूजन किया जाएगा। इसके लिए संगठन के सदस्यों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। संगठन के सदस्यों द्वारा कुआं पूजन पर जिला प्रशासन के आला अधिकारियों को भी निमंत्रण भेजा जा रहा है।
निडानी गांव के भगत सिंह क्रांतिकारी युवा संगठन के सदस्यों ने गिरते लिंगानुपात को देखते हुए ‘लाडो’ को बचाने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाए थे। संगठन द्वारा एक जुलाई को कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ इस मुहिम का शंखनाद किया गया था। इन युवाओं ने एक जुलाई को लड़की के जन्म पर भी लड़के के जन्म की तरह जश्न मनाने का ऐलान किया गया था। इन नौजवानों ने गांव में इस अनोखी पहल को धरातल पर उतारने के लिए लड़की के कुआं पूजन पर बैंड-बाजे का इंतजाम करने का दायित्व स्वयं अपने कंधों पर उठाया था। युवाओं के इस ऐलान के बाद 2 अगस्त को पहली बार गांव में संदीप प्रजापत के घर एक कन्या का जन्म हुआ। इसलिए संगठन के सदस्यों ने अपने संकल्प को दोहराते हुए कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ शुरू की गई इस जंग में अपनी पहली आहूति डालने का अवसर मिला है। जिसके तहत संगठन के सदस्यों द्वारा पिछड़े वर्ग में जन्मी इस पहली कन्या की छट्टी भी लड़के की तरह ही मनाई जाएगी। सात सिंतबर को लड़की की छट्टी पर लड़के के जन्म वाली सभी परंपराएं निभाई जाएंगी और गांव में मिठाई भी बांटी जाएगी। इसके बाद 11 सितंबर को गाजे-बाजे के साथ इस लड़की का कुआं पूजन करवाया जाएगा। कुआं पूजन के दौरान संगठन द्वारा जिला प्रशासन के आला अधिकारियों को भी बुलाया जाएगा। इसके लिए संगठन के सदस्यों द्वारा तैयारियों शुरू कर दी गई हैं। संगठन के सदस्यों द्वारा जिला प्रशासन के अधिकारियों से मिलकर उन्हें कुआं पूजन के लिए अमंत्रित किया जा रहा है।

ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की सोच में आएगा बदलाव

ग्रामीण क्षेत्र में लड़की के जन्म पर खुशी मनाने की परंपरा नहीं है। गांव में सिर्फ लड़के के जन्म पर ही खुशियां मनाई जाती हैं और मिठाइयां बांटी जाती हैं। लेकिन संगठन ने ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की सोच को बदलने के लिए यह पहल की है। संगठन के सदस्यों द्वारा कुआं पूजन के दौरान बैंड-बाजे का इंतजाम स्वयं अपने खर्च पर किया जाएगा। संगठन की इस पहल से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की सोच में बदलाव आएगा।
सुरेश पूनिया, चेयरमैन
भगत सिंह क्रांतिकारी युवा संगठन, निडानी

लाइसेंस बनाने की आड में चल रहा लूट का खेल


आवेदकों वसूली जा रही है मनमर्जी की फीस, फीस लेने के बाद नहीं दी जाती स्लीप

नरेंद्र कुंडू
जींद। सफीदों प्रशासन ने अपने तहसील कार्यालय में मौजूद कर्मचारियों को लूट की खुली छूट दे रखी है। यहां कर्मचारियों द्वारा परिचालक व ड्राइविंग लाइसेंस बनाने व नवीनीकरण के नाम पर खुलेआम आवेदकों की जेबें तरासी जा रही हैं और प्रशासनिक अधिकारी इस ओर से चुपी साधकर उनकी इस लूट पर अपनी मोहर लगा रहे हैं। तहसील परिसर में स्थित एसडीएम कार्यलय की लाइसेंस नवीनीकरण शाखा में मौजूद कर्मचारी ड्राइविंग व परिचालक लाइसेंस बनाने व लाइसेंस नवीनीकरण के नाम पर आवेदकों से मनमर्जी की फीस वसूल रहें। इतना ही नहीं आवेदकों से फीस वसूलने के बाद इन कर्मचारियों द्वारा आवेदकों को किसी तरह की स्लीप भी नहीं दी जाती है। इस प्रकार इन कर्मचारियों द्वारा आवेदकों की जेबें तरासने के साथ-साथ  सरकार को भी चूना लगाया जा रहा है।
सफीदों की तहसील परिसर में स्थित एसडीएम कार्यालय की लाइसेंस नवीनीकरण शाखा आज-कल भ्रष्टाचार का अड्डा बनी हुई है। इस शाख में मौजूद कर्मचारियों के लिए न तो कोई नियम है और न ही कोई कायदे कानून। इस शाखा में तैनात कर्मचारियों ने सभी नियमों को ताक पर रखकर सरेआम अपना लूट का खेल शुरू कर रखा है। ये कर्मचारी नए ड्राइविंग व परिचालक लाइसेंस बनाने तथा लाइसेंस नवीनीकरण की आड में अपनी जेबें गर्म कर रहे हैं। यहां पर परिचालक का लाइसेंस रिन्यू करने के लिए आवेदकों से 300 व इससे ज्याद की फीस वसूली जा रही है। जबकि सरकारी फीस व कम्प्यूटर चार्चज सहित यह फीस सिर्फ 150 रुपए है। इसी प्रकार ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के नाम पर भी आवेदकों से मनमर्जी की फीस वूसली जा रही है। इतना ही नहीं इनके इस खेल का पर्दाफास न हो इसके लिए भी इन्होंने पूरा बंदोबस्त किया हुआ है। आवेदकों से मनमर्जी की फीस वसूलने के बाद इन कर्मचारियों द्वारा आवेदकों को किसी तरह की स्लीप भी नहीं दी जाती। जबकि नियम के अनुसार फीस लेने के बाद आवेदक को स्लीप देनी अनिवार्य है। इस प्रकार इन कर्मचारियों द्वारा आवेदकों की जेबें तरासने के साथ-साथ सरकार को भी चूना लगाया जा रहा है तथा नियमों की भी धज्जियां उडाई जा रही हैं। लेनिक यहां के प्रशासनिक अधिकारी इन कर्मचारियों पर नकेल डालने में नाकाम साबित हो रहे हैं। इस तरह प्रशासनिक अधिकारियों की यह चुपी उनकी इस लूट पर अपनी मोहर लगा रही है और ये कर्मचारी बड़े आराम से आवेदकों की जेबें काट कर अपनी जेबें भर रहे हैं।

कितनी है लाइसेंस बनवाने की सरकारी फीस

सरकारी फीस कम्प्यूटर फीस   एमसी कमेटी की फीस कुल फीस 
नए परिचालक लाइसेंस की फीस   100   100       0 200 रुपए
परिचालक लाइसेंस रिन्यू करवाने की फीस   50     100         0 150 रुपए
नया ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने की फीस   350     100               100 550 रुपए

क्या कहते हैं अधिकारी

इस तहर का मामला अभी तक उनकी जानकारी में नहीं है। लाइसेंस की फीस लेने के बाद आवेदक को स्लीप देनी जरुरी है। अगर उनके कार्यालय में इस तरह का मामला है तो वे लाइसेंस शाखा में मौजूद कर्मचारियों को बुलाकर इसके बारे में पूछताछ करेंगे तथा फीस लेने के बाद स्लीप देने के लिए कर्मचारियों को निर्देश दिए जाएंगे।
उमेद सिंह मोहन, एसडीएम
सफीदों

अज्ञान के कारण चक्रव्यूह में फंस रहे किसान : शर्मा

खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ ने किसान-कीट विवाद पर किसानों के साथ की चर्चा

नरेंद्र कुंडू 
जींद। आज हमारे देश के किसनों  की हालत भी पांडू पुत्र अभिमन्यू की तरह है, जिसे चक्रव्यूह में प्रवेश करना तो आता था, लेकिन उसे उस चक्रव्यूह से बाहर निकलना नहीं आता था। वैसा ही हाल हमारे किसानों का है, जिन्हें कृषि क्षेत्र में नई-नई तरीकब अपना कर एक ऐसे चक्रव्यूह में फंसाया जा रहा है, जिसमें किसान दाखिल तो आसानी से हो जाते हैं, लेकिन उस चक्रव्यूह से बाहर निकलना उनके बस की बात नहीं है। यह बात विश्व विख्यात खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ डा देवेंद्र शर्मा ने मंगलवार को निडाना गांव में आयोजित किसान खेत पाठशाला में किसान-कीट विवाद पर किसानों के साथ चर्चा करते हुए कही। इस अवसर पर पाठशाला में खाप पंचायत की तरफ  से ढुल खाप प्रधान इंद्र सिह ढुल, खटकड खेड़ा खाप के प्रधान दलेल खटकड़, जाटू खाप प्रधान संदीप ढांड़ा, 84 खाप प्रधान भिवानी से राज सिंह घणघस, किसान क्लब के प्रधान फूल सिंह श्योकंद, बागवानी विभाग से डीएचओ डा. बलजीत सिंह  भयाणा, मिट्टी एवं संरक्षण विभाग जींद से डा. मीना सिहाग भी विशेष रूप  से मौजूद थी। पंचायत का संचालन खाप पंचायत के संचालक कुलदीप सिंह ढांडा ने किया।
डा देवेंद्र शर्मा ने कहा कि ज्यों-ज्यों कीटनाशकों का प्रयोग अधिक होता है, त्यों-त्यों कुदरत कीटों को भी उन कीटनाशकों से बचाव के लिए अधिक ताकत प्रदान कर देती है, जिससे दो-चार वर्ष बाद कीटनाशक बेअसर हो जाते हैं और कंपनियों फिर से उन कीटों को मारने के लिए नए कीटनाशक तैयार करती है। इस प्रकार नए-नए कीटनाशक व बीज तैयार कर कुछ मुनाफाखोर किसानों की जेबों पर डाका डाल रहे हैं।  इस प्रकार पूरी प्लांनिग के तहत किसानों को इस चक्रव्यूह में धकेला जाता है। डा. शर्मा ने आंध्रप्रदेश का उदहारण देते हुए बताया कि कई वर्ष पहले आंध्रप्रदेश के किसानों ने भी निडाना के किसानों की तरह कीटनाशक रहित खेती की मुहिम चलाई थी। जिसके परिणामस्वरूप आज आंध्रप्रदेश के 21 जिलों में 35 लाख  एकड में कीटनाशक रहित खेती होती और इस दौरान उनकी पैदावार घटने की बजाए बढ़ी है। अब तो वहां की सरकार भी किसानों के पक्ष में उतर आई है। सरकार ने किसानों की इस मुहिम को अपने हाथ में लेते हुए 2013 में 100 एकड जमीन में कीटनाशक रहित खेती करने का टारगेट रखा है। शर्मा ने बताया कि आंध्रप्रदेश के किसानों द्वारा शुरू की गई इस मुहिम में वहां के कुछ एनजीओ भी आगे आए हैं। वहां के  एक स्वयं सेवी महिला समूह ने किसानों कि  इस मुहिम के लिए पांच हजार करोड रूपए कीराशि एक त्रित की है। उन्होंने बताया कि हमारी ·माई का 40-50 प्रतिशत पैसा तो हमारी बीमारी पर ही खर्च हो जाता है। डा. शर्मा ने कहा कि 1990-91 में जब अमेरिका बीटी को भारत में लाना चाहते थे तो उस समय अमेरिका ने बीटी के बीज की कीमत सिर्फ चार करोड़ रुपए मांगी थी, लेकिन 2004 से अब तक अमेरिका बीटी के बीज के माध्यम से देश के किसानों से 6 हजार करोड़ रुपए कमा चुका हैं। डा. शर्मा ने कहा कि थाली को जहर मुक्त करने की इस लडाई में आने वाले युग में निडाना के किसानों को याद किया जाएगा। कुलदीप ढांडा ने पाठशाला में आए किसानों व खाप प्रतिनिधियो पर सवाल दागते हुए कहा कि क्या आप पूरे दृढ़ निश्चय के साथ यह कह सकते हैं कि आपके परिवार या रिश्तेदारी में कोई कैंसर का मरीज नहीं है? ढांडा ने कहा कि कीटनाशकों के अंधाधूंध प्रयोग के कारण आज कैंसर जैसी घातक बीमारी भी काफी तेजी से फैल रही है। ढांडा ने बताया कि गांव चिडोठ जिला भिवानी में हर पांचवें घर में तथा भटिंडा (पंजाब) की गली नंबर दो के 10 घरों में से 9 घरों में कोई ना कोई व्यक्ति कैंसर का मरीज है। किसान रमेश ने बताया कि किसान कीटनाशक के माध्यम से कीटों पर जैसे ही अटैक करता है तो कीट अपना जीवनकाल छोटा करना शुरू कर देते हैं तथा बच्चे पैदा करने की क्षमता को बढ़ा लेते हैं। इससे खेत में कीटों की संख्या कम होने की बजाए ओर अधिक बढ़ जाती है। किसान अजीत ने बताया कि अंगीरा, जंगीरा, फंगीरा अकेले ही 98 प्रतिशत मिलीबग को कंट्रोल कर लेते हैं। किसान मनबीर ने बताया कि हमें पौधो की भाषा सीखने की जरुरत है। जब पौधों पर किसी शाकाहारी कीट का आक्रमण होता है तो पौधे मासाहारी कीटों को बुलाने के लिए एक अलग तरह की सुगंध छोडते हैं और मासाहारी कीट उस सुगंध के कारण फसल में शाकाहारी कीटों को खाने के लिए पहुंच जाते हैं। इस अवसर पर खाप प्रतिनिधियों ने पांच पौधों के पत्ते काट कर प्रयोग को आगे बढ़ाया। पाठशाला के समापन पर सभी खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया।

कृषि विशेषज्ञ से की मार्गदर्शन की अपील

खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ डा. देवेंद्र शर्मा से इस विवाद का निपटारा करने के लिए नवंबर में होने वाली खाप पंचायत में पहुंचकर उनका मार्गदर्शन करने की अपील की। डा. शर्मा ने खाप पंचायत की अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि खाप पंचायतों से फैसला सुनाते वक्त कोई चूक न हो, इसके लिए वे नवंबर में होने वाली सर्व खाप महापंचायत में अपने साथ-साथ हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश को भी साथ लेकर आएंगे। ताकि किसानों की इस मुहिम पर कानूनी मोहर भी लग सके।
किसानों को सम्बोधित करते डा. देवेंद्र शर्मा।
 डा. देवेंद्र शर्मा को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान।


रविवार, 2 सितंबर 2012

‘गांव’ की धरती से ‘जहान’ में उठेगी एक नई क्रांति की लहर

कीटनाशकों की दलदल में धंसता जा रहा किसान

उग्र हो रही है किसान-कीट की जंग

नरेंद्र कुंडू

जींद। आज फसलों में अंधाधूंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण मानव व पशु जगत पर जो खतरा मंडरा रहा है, वह किसी से छुपा नहीं है। अगर पिछले 40 सालों के इतिहास पर नजर डाली जाए तो इन 40 वर्षों में हर वर्ष कीटनाशकों के प्रयोग का ग्राफ लगातार ऊपर की तरफ बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पेश की गई एक रिपोर्ट के मृत्युदर के आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो उसमें 13 प्रतिशत लोग अकेले कैंसर के कारण मौत के मुहं में समा रहे हैं। इसी संगठन की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार फसल की सुरक्षा के लिए कीटनाशक का छिड़काव करते हुए हर वर्ष 20 हजार किसान काल का ग्रास बन रहे हैं। इस प्रकार पिछले 40 वर्षों में किसानों व कीटों की इस जंग में आठ लाख किसान अनामी शहीद हो चुके हैं। इसके अलावा विषायुक्त भेजन खाने के कारण कैंसर, शुगर, हार्ट फेल व सैक्स संबंधि बीमारियों के मरीजों की तादात भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। काटन व काजू बैलट में कीटनाशकों के अधिकतम इस्तेमाल के कारण इस बैलट में कैंसर के मरीजों की तादात में बढ़ोतरी हो रही है। इसलिए तो भठिंडा से बीकानेर जाने वाली एक्सप्रेस ट्रेन को कैंसर ट्रेन के नाम से पहचाना जाता है। क्योंकि इस ट्रेन में कैंसर के मरीजों व उनके सहयोगियों के अलावा सिर्फ कुछेक ही सवारियां होती हैं। अब तो पंजाब के फरीदकोट, फिरोजपुर, भठिंडा व मानसा जिले से हर रोज कैंसर का उपचार करवाने जाने वालों
 कपास की फसल में मौजूद नई किस्म की लोपा मक्खी।
की सालम सवारियों के रूप में गाड़ियां भी बुक होती हैं। क्योंकि इन क्षेत्रों में किसान अधिक उत्पादन के लालच में फसलों में अंधाधूंध कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग में बढ़ोतरी होने का प्रमुख कारण किसानों में भय व भ्रम की स्थिति होना। किसान आज भी लदी-लदाई सोच का शिकार हैं और बुजुर्गों से विरासत में मिले ज्ञान के आधार पर ही खेती करते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी खेती करने के बाद भी किसान खुद का ज्ञान पैदा नहीं कर पाए हैं। कुछ मुनाफाखोर लोगों ने इसका भरपूर फायदा उठाते हुए किसानों में भय व भ्रम की स्थिति पैदा कर इन्हे गुमराह कर दिया। इन मुनाफाखोरों ने किसानों को पैदावार बढ़ाने का लालच देकर इन्हें कीटनाशकों के दलदल में धकेल दिया और ऐसा धकेल दिया कि अब इस दलदल से निकल पाना इनके बस की बात नहीं। ज्ञान के अभाव के कारण किसान आज कीटनाशकों के इस दलदल में धंसता ही जा रहा है। कोई भी किसान आज इस बात को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं हैं कि बिना कीटनाशक के भी खेती हो सकती। लेकिन हरियाणा प्रदेश के जींद जिले के गांव निडाना के किसानों ने इन मुनाफाखोरों को चुनौति देते हुए कीट प्रबंधन के माध्यम से कीटनाशकों का तोड़ ढूंढ़ निकाला है। इसलिए निडाना के किसानों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि किसान-कीट की इस जंग में दुश्मन की पहचान सबसे जरुरी है। जब तक हमें दुश्मन की पहचान ही नहीं होगी, तब तक जंग में जीत निश्चित नहीं हो सकती। इस लड़ाई में जीत हासिल करने के लिए निडाना के किसानों ने ‘कीट नियंत्रणाय कीटा: हि:अस्त्रामोघा’ के स्लोगन को अपनाते हुए कीटों को अपना अचूक अस्त्र बना लिया है।  इस निष्कर्ष के बाद ही निडाना के इतिहास में वर्ष 2009 में एक नया अध्याय जुड़ गया। 2009 में यहां के 30 किसानों ने 500-500 रुपए अपनी जेब से खर्च कर एक कीट साक्षरता केंद्र के नाम से एक पाठशाला की शुरूआत
किसानों को जानकारी देते कृषि अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल।
की और इसके लिए इनका मार्गदर्शन किया कृषि विभाग के कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने। निडाना के खेतों में सप्ताह के हर मंगलवार को चलने वाली यह एक अनोखी पाठशाला है। इस पाठशाला में कीटों की तालीम देकर देश की आर्थिक रीड (यानि किसानों) को सुदृढ़ करने के सपने बुने जा रहे हैं। यहां पर किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सिखाए जाते हैं और किसान यहां खेत की मेड पर ही बैठकर अपने अनुभव सांझा करते हैं। इस पाठशाला की सबसे खास बात यह है कि यहां न ही तो कोई अध्यापक है और न ही कोई स्टूडेंट है। यहां तो किसान खुद ही अध्यापक हैं और खुद ही स्टूडेंट। इस पाठशाला में किसान स्वयं मेहनत करते हैं और कागजी ज्ञान की बजाए व्यवहारिक ज्ञान अर्जित करते हैं।
कपास के पौधे पर मचान लगाकर बैठी मासाहारी डायन मक्खी।
कीटों की पहचान करने, परखने व इनके क्रियाकलापों को समझने के लिए किसान पूरी सिद्दत के साथ इस पाठशाला में भाग लेते हैं। अपनी कठोर मेहनत के बलबूत ही इन किसानों ने कपास की फसल में आए भस्मासुर (मिलबग) का तोड़ भी निकाल लिया। क्योंकि किसानों को सबसे ज्यादा खतरा मिलीबग से ही था और मिलीबग का नाम सुनकर बड़े-बड़े किसानों की भी पेंट गिली हो जाती थी। पाठशाला के दौरान निडाना के किसानों ने कीट नियंत्रण पर नजर दौड़ाई तो पाया कि 20वीं सदी के अंतिम व 21वीं सदी के प्रथम वर्ष में जितना कीटनाशकों का प्रयोग कपास की फसलों पर हुआ, इतना कभी भी किसी फसल पर नहीं हुआ। कई जगह तो किसानों ने कीटों का नियंत्रित कर अधिक उत्पादन लेने के चक्कर में कपास की फसल पर 40-40 स्प्रे प्रयोग किए। बाद में जो परिणाम किसानों के सामने आए उसने सबको चौंका दिया। क्योंकि इस दौरान उत्पादन बढ़ने की बजाये मुहं के बल गिरा है। फिलहाल ये किसान 152 किस्म के मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान कर चुके हैं। जिसमें 43 किस्म के शाकाहारी व 109 किस्म के मासाहारी कीट हैं। शाकाहारी कीटों में कपास की फसल में 20 किस्म के रस चूसक, 13 किस्म के पर्णभक्षी, 3 किस्म के पुष्पाहारी, 3 किस्म के फलाहारी व 4 अन्य किस्म के कीट हैं। इन किसानों ने मासाहारी कीटों को भी अलग-अलग कैटेगरी में बांटा हुआ है। जिसमें 12 किस्म के परपेटिये कीट हैं। ये ऐसे कीट हैं जो दूसरों के पेट में अपने अंडे देते हैं। 3 किस्म के ऐसे कीट हैं जो दूसरे कीटों के अंडों में अपने अंड़े देते हैं। एक किस्म के परजीवी, 5 किस्म के कीटाणु व विषाणु तथा 88 किस्म के परभक्षी कीट हैं। परभक्षी में दूसरे कीटों का खून पीने वाले 9 किस्म के बुगड़े, 12 किस्म की लेडीबिटल, 19 किस्म की मक्खियां, 10 किस्म की भिरड़, ततैये, 7 किस्म की भू बिटल, 8 किस्म के हथजोड़े, 2 किस्म के क्राइसोपा, 2 किस्म के जारजटिया, 4 किस्म के अन्य तथा 16 किस्म की मक्ड़ियां शामिल हैं। जींद जिले के अलावा रोहतक जिले के भी कुछ
 बारिश में भी छाता लेकर कीट अवलोकन करती महिलाएं।
किसान इस मुहिम से जुड़ चुके हैं। निडाना में तो कई ऐसे परिवार हैं, जिनकी तीन-तीन पीढ़ियां इसी काम में लगी हुई हैं और उनको इसके सुखद परिणाम मिल रहे हैं। निडाना गांव में रणबीर मलिक, जोगेंद्र, महाबीर, ललीतखेड़ा में रामदेवा, रमेश, कृष्ण, निडानी में जयभगवान, महाबीर, ईगराह में मनबीर रेढू का पूरा परिवार इसी काम में जुटा हुआ है। इन किसानों की मेहनत भी अब रंग लाने लगी है। धीरे-धीरे यह मुहिम अन्य गांवों में भी अपनी जड़ें जमाने लगी है। निडाना के साथ-साथ अब निडानी, चाबरी, ललीतखेड़ा, ईगराह, राजपुरा-भैण, सिवाहा, शामलोखुर्द, अलेवा, खरकरामजी आदि गांवों से हजारों किसान अब कीटनाशक मुक्त खेती करते हैं और भरपूर उत्पादन ले रहे हैं। निडाना गांव के खेतों से कीटनाशकों के विरोध में उठी क्रांति की एक छोटी सी चिंगारी अब जल्द ही ज्वालामुखी का रूप धारण करने जा रही है। क्योंकि पिछले चार दशकों से किसानों व कीटों के बीच चले आ रहे इस झगड़े को निपटाने का जिम्मा अब चुटकियों में बड़े-बड़े विवादों को निपटाने के लिए मशहूर उत्तर भारत की खाप पंचायतों ने अपने हाथों में ले लिया है। इस झगड़े में निष्पक्ष फैसला सुनाया जा सके इसके लिए खाप पंचायतों ने इस विवाद की गहराई में जाने के लिए पहले खेत में कीटों व पौधों के बीच बैठकर इस मुकद्दमे पर गहन मंथन करने का निर्णय लिया। जिसके तहत सप्ताह के हर मंगलवार को खाप पंचायतों के कुछ प्रतिनिधि निडाना के खेतों में चल रही किसान खेत पाठशाला में
महिला किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधि के साथ बातचीत करती महिलाएं।
पहुंचकर इस मुकद्दमे की सुनवाई करते हैं। खाप पंचायत के प्रतिनिधि जमीनी हकीकत को जानने के लिए कीटों व पौधों की भाषा सीख रहे हैं और कीट मित्र किसान पंचायत के सामने बेजुबान कीटों का पक्ष रखते हैं। ताकि पंचायत से फैसला सुनाते वक्त कीटों के साथ किसी प्रकार का अन्याय न हो सके। 18 पंचायतों के बाद अक्टूबर माह में 19वीं सर्व खाप पंचायत निडाना गांव में आयोजित होगी और यहां पर इस झगड़े का निपटारा कर एक ओर इतिहास लिखा जाएगा।

किसान-कीट जंग में क्यों कमजोर पड़ रहे हैं किसान

कपास के फूल को खाती तेलन कीट।
कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग से यह बात तो साफ हो चुकी है कि पिछले चार दशकों में किसानों व कीटों के बीच जो जंग चली आ रही है, वह खत्म होने की बाजये उग्र रूप धारण करती जा रहा है। कीट मित्र किसानों का मानना है कि किसान व कीटों की इस जंग में कीट सेना को कोई क्षति हुई है या नहीं, लेकिन मानव जाति इस जंग में जरुर कमजोर पड़ती जा रही है। क्योंकि किसानों के पास तो केवल अस्त्र ही हैं और कीटों के पास तो अस्त्र व शस्त्र दोनों प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं, जो जंग जीतने के लिए अनिवार्य हैं। इंसान के पास तो केवल एक जोड़ी पैर व एक जोड़ी
 तेलन कीट द्वारा कपास के फूल के नर पुंकेशर खाने के बाद सुरक्षित बचा मादा पुंकेशर।
हाथ हैं। लेकिन कीटों के पास तो तीन-तीन जोड़ी पैरों के अलावा उड़ने के लिए पंख भी हैं। जब किसान कीटनाशक की सहायता से इन पर काबू पाने का प्रयत्न करता है तो, ये खतरा महशूस होने पर उड कर आसानी से दूर भाग सकते हैं। इसके अलावा कीटों के पास एक ऐसी ताकत है, जिसका किसान के पास कोई तोड़ नहीं है और वह है इनकी प्रजजन क्षमता अर्थात बच्चे पैदा करने की शक्ति। कीट अपने छोटे से जीवनकाल में एक साथ हजारों बच्चे पैदा कर सकते हैं। जिससे इनकी बीजमारी संभव नहीं है। कीटों के पास लड़ाई के लिए हवाई सेना
के रूप में टिड्डी व थल सेना के रूप में दीमक की फौज भी है, जो पलभर में ही सबकुछ तबाह कर सकती है।

कीट बही-खाता किया जा रहा है तैयार

महिला किसान पाठशाला में कीटों का आंकड़ा तैयार करती महिलाएं।
कीटों व किसानों के इस झगड़े में पंचायत सही न्याय कर सके इसके लिए कीट साक्षारता केंद्र के किसानों द्वारा पूरी योजना तैयार की गई है। पंचायत के समक्ष कीटों के पक्ष में सभी साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए किसानों के 5 ग्रुप बनाए गए हैं। कीट प्रबंधन के मास्टर ट्रेनर को प्रत्येक ग्रुप का लीडर बनाया गया है। प्रत्येक ग्रुप 10-10 पौधों की गिनती करता है और एक पौधे पर मौजूद सभी पत्तों व उन पर मौजूद कीटों की पहचान कर उनका आंकड़ा तैयार करता है। सभी ग्रुपों द्वारा गिनती की जाने के बाद उनका अनुपात निकाला कर कीट बही-खाते में दर्ज किया जाता है। ये किसान हवा में बाते करने की बजाये जमीनी हकीकत पर आजमाई गई विधियों को  प्रयोग के साथ दूसरे किसानों के समक्ष रखते हैं।

पाठशाला बनी प्रयोगशाला

दशकों से चली आ रही इस लड़ाई में खाप पंचायत से फैसले में किसी प्रकार की चूक न हो इसके लिए कीट कमांडो किसानों ने किसान खेत पाठशाला को प्रयोगशाला बना दिया। शाकाहारी कीटों के पत्तों को खाने से फसल के उत्पादन पर कोई फर्क पड़ता है या नहीं इसको आजमाने के लिए किसानों ने एक फार्मुला अपनाया है। इसके लिए किसानों द्वारा खेत में खड़े कपास के पांच पौधों के प्रत्येक पत्ते का तीसरा हिस्सा कैंची से कटा जाता है। किसानों का मानना है कि उन द्वारा जितना पत्ता काटा जा रहा है, उतना पत्ता कोई भी कीट नहीं खा सकता। पाठशाला के संचालक डा. दलाल का कहना है कि फसल तैयार होने के बाद कटे हुए पत्तों वाले पौधों व दूसरे पौधों के उत्पादन की तुलान की जाएगी। अगर दोनों पौधों से बराबर का उत्पादन मिलता है तो इससे यह सिद्ध हो जाएगा कि कीटों द्वारा अगर फसल के पत्तों को खा लिया जाए तो उससे उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वहीं दूसरी तरफ किसानों ने कपास के पांच पौधों से पौधे की 25 प्रतिशत बोकी तोड़ने का प्रयोग भी शुरू कर दिया है। इस प्रयोग से किसान यह देखाना चाहते हैं कि कपास की फसल में बोकी खाने वाले कीटों से उत्पादन पर कोई प्रभाव होता है या नहीं। इस पाठशाला में 28 दिन बाद पांच पौधों की 25 प्रतिशत बोकी तोड़ी जाती हैं। वही बोकी बार-बार न टूटें इसलिए 28 दिन बाद पौधे की बोकी तोड़ी जाती हैं, क्योकि बोकी से फूल बनने में 28 दिन का समय लगता है।

खाद डालने की विधि सीखें किसान

 पाठशाला के दौरान पौधों का अवलोकन करते खाप प्रतिनिधि।
पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल का कहना है कि किसानों को फसल में खाद की अवश्यकता व डालने की विधि भी सीखने की जरुरत है। क्योंकि किसान फसल में जो यूरिया खाद डालता हैं, उसका 11 से 28 प्रतिशत ही पौधों को मिलता है। बाकि का खाद वेस्ट ही जाता है। इसके अलावा डीएपी खाद में से सिर्फ 5 से 20 प्रतिशत ही खाद पौधों को मिलता है। बाकि की खाद की मात्रा जमीन में चली जाती है। इस तरह बिना जानकारी के व्यर्थ होने वाले खाद को बचाने के लिए खाद जमीन में डालने की बजाए सीधा पौधों को ही दिया जाए।

महिलाएं भी निभा रही हैं पूरी भागीदारी

पौधों पर मौजूद कीटों का आंकड़ा दर्ज करती महिलाएं।
निडाना गांव के खेतों से पेस्टीसाइड के विरोध में उठी इस आंधी को रफ्तार देने में निडाना गांव की गौरियां भी पुरुषों के बाराबर अपनी भागीदारी दर्ज करवा रही हैं। निडाना गांव की महिलाएं जहर मुक्त खेती को बढ़ावा देने के लिए पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। कीट मित्र किसानों ने जहां इस मुहिम को सफल बनाने के लिए खाप पंचायतों का दामन थाम है, वहीं गांव की महिलाओं ने भी इस मुहिम पर रंग चढ़ाने के लिए आस-पास के गांवों की महिलाओं को जागरुक करने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए निडाना की महिलाओं द्वारा पास के गांव ललीतखेड़ा में महिला किसान पूनम मलिक के खेत में हर बुधवार को महिला किसान पाठशाला शुरू की है। पाठशाला के दौरान महिलाएं घंटों कड़ी धूप के बीच खेतों में बैठकर लैंस की सहायता से कीटों की पहचान में जुटी रहती हैं। अक्षर ज्ञान के अभाव का रोड़ा भी इन महिलाओं की रफ्तार को कम नहीं कर पा रहा है। मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो देवी, गीता मलिक , कमलेश, मीना मलिक, सुदेश मलिक, राजवंती को कीटों की इतनी गहरी परख है कि ये कीट को देखते ही उसके पूरे खानदान का पौथा खोलकर रख देती हैं। इसलिए तो लोग अब इन महिलाओं को कीटों की मास्टरनी व वैद्य के नाम से जानने लगे हैं।

                                                                                                                    कीटों पर तैयार किए हैं गीत

 कपास के पौधों पर कीटों की गिनती करती महिलाएं।
कीटों की ये मास्टरनी केवल अध्यापन का कार्य ही नहीं करती। अध्यापन के साथ-साथ ये महिलाएं लेखक व गीतकार की भूमिका भी निभाती हैं। अन्य लोगों को प्रेरित करने के लिए इन महिलाओं ने कीटों के पूर जीवन चक्र की जानकारी जुटाकर उनपर गीतों की रचना भी की हैं। जिनमें प्रमुख गीत हैं ‘किड़यां का कट रहया चालाए ऐ मैने तेरी सूं देखया ढंग निराला ऐ मैने तेरी सूं’। ‘म्हारी पाठशाला में आईए हो हो नंनदी के बीरा तैने न्यू तैने न्यू मित्र कीट दिखाऊं हो हो नंनदी के बीरा’। ‘मैं बिटल हूं मैं किटल तुम समझो मेरी महता’। ‘हो कीड़े भाई म्हारे राखी के बंधन को निभाना’। ‘ऐ बिटल म्हारी मदद करो हामनै तेरा एक सहारा है, जमीदार का खेत खालिया तनै आकै बचाना है’। ‘निडाना-खेड़ा की लुगाइयां नै बढ़ीया स्कीम बनाई है, हमनै खेतां में लुगाइयां की क्लाश लगाई है’। ‘अपने वजन तै फालतु मास खावै वा लोपा माखी आई है’। इन गीतों को सुनने वाला न चाहते हुए भी इस तरफ आकर्षित हुए बिना नहीं रह पाता।

कीटों को राखी बांध कर लिया रक्षा का संकल्प

रक्षा बंधन पर कीटों को राखी बांधती महिलाएं।
निडाना व ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं ने रक्षाबंधन के अवसर पर कीटों की कलाइयों पर बहन का प्यार सजाकर यानि राखी बांधकर ऐसी ही एक नई रीति की शुरूआत की है। महिलाओं ने कीटों के चित्रों पर प्रतिकात्मक राखी बांध कर इन्हें अपने परिवार में शामिल कर इनको बचाने का संकल्प लिया है। महिलाओं ने रक्षाबंधन की पूरी परंपरा निभाई तथा कीटों के चित्रों को राखी बांधने के बाद उनकी आरती भी उतारी। इन महिला किसानों द्वारा शुरू की गई इस नई परंपरा से जहां कीटों को तो पहचान मिलेगी ही, साथ-साथ हमारे पर्यावरण पर भी इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे।
कीटों की आरती उतारती महिलाएं।

विदेशों में भी जगा रहे हैं  कीटनाशक रहित खेती की अलख

निडाना कीट साक्षरता केंद्र के किसान पूरी तरह से हाईटैक हो चुके हैं। खेत से हासिल किए गए अपने अनुभवों को ये किसान ब्लॉग या फेसबुक के माध्यम से अन्य लोगों के साथ सांझा करते हैं। अपना खेत अपनी पाठशाला, कीट साक्षरता केंद्र, महिला खेत पाठशाला, चौपटा चौपाल, निडाना गांव का गौरा, कृषि चौपाल, प्रभात कीट पाठशाला सहित एक दर्जन के लगभग ब्लॉग बनाए हुए हैं और इन ब्लॉगों पर ये किसान पूरी ठेठ हरियाणवी भाषा में अपने विचार प्रकट करते हैं। इन ब्लॉगों की सबसे खास बात यह है कि ये ब्लॉग हरियाणा ही नहीं अपितू दूसरे देशों में भी पढ़े जाते हैं। इस प्रकार ये किसान विदेशों में भी ब्लॉग की सहायता से कीटनाशक रहित खेती की अलख जगा रहे हैं। लाखों लोग इनके ब्लॉग को पढ़ कर कीट ज्ञान अर्जित करते हैं। दूसरे प्रदेशों के किसान ब्लॉग के माध्यम से इन किसानों से सवाल-जबाव करते हैं और अपनी समस्याएं इन किसानों के समक्ष रखकर उनका समाधान भी पूछते हैं। इसके अलावा यू ट्यूब पर भी इन्होंने कीट साक्षरता के नाम से अपना चैनल बनाया हुआ है और इस चैनल पर फसल में कीटों के क्रियाकलापों की वीडियो डाली जाती हैं।

ट्रेनिंग लेने के लिए दूसरे राज्यों से भी यहां पहुंच रहे हैं किसान

खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते किसान।
इन किसानों के चर्चे सुनकर दूसरे राज्यों के किसान भी इनसे प्रेरित हो चुके हैं। इसलिए कीटनाशक रहित खेती के लिए कीट प्रबंधन के गुर सीखने के लिए पंजाब व गुजरात के किसानों ने निडाना में दस्तक देनी शुरू कर दी है। अभी हाल ही में 14 अगस्त को पंजाब के नवां शहर जिले से 35 किसानों का एक दल दो दिवसीय अनावरण यात्रा पर निडाना में पहुंचा था। निडाना के किसानों का ज्ञान देखकर ये किसान अचंभित रह गए थे। इसलिए पंजाब के किसानों ने भी इनकी तर्ज पर अपने जिले में भी इस तरह की पाठशाला शुरू करने का संकल्प लिया था। इसके बाद अब कीटों की पढ़ाई पढ़ने के लिए गुजरात से भी किसानों का एक दल यहां आएगा।















गुरुवार, 30 अगस्त 2012

अब विदेशों में भी जलेगी कीट ज्ञान की मशाल

दूरदर्शन की टीम ने शूटिंग को दिया अंतिम रूप, 165 देशों में होगा प्रशारण

नरेंद्र कुंडू
जींद।
बेजुबान कीटों को बचाने के लिए जिले के निडाना गांव की धरती से उठी आवाज अब विदेशों में भी गुंजेगी। किसानों की आवाज को दूसरे देशों तक पहुंचाने में दिल्ली दूरदर्शन की टीम इनका माध्यम बनी है। दिल्ली दूरदर्शन की टीम अपने कृषि दर्शन कार्यक्रम की रिकार्डिंग के लिए मंगलवार को निडाना गांव के किसानों के बीच पहुंची थी। टीम ने मंगलवार को निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला तथा बुधवार को ललीतखेड़ा की महिला किसान खेत पाठशाला की गतिविधियों को कैमरे में शूट किया। बुधवार को हुई बूंदाबांदी के बीच भी कार्यक्रम की शूटिंग चली और ललीतखेड़ा की महिला किसान खेत पाठशाला में शूटिंग को अंतिम रुप देकर टीम अपने गंतव्य की तरफ रवाना हो गई। दिल्ली दूरदर्शन द्वारा 4 सितंबर को सुबह 6.30 बजे कार्यक्रम का प्रसारण किया जाएगा और यह कार्यक्रम 165 देशों में प्रसारित होगा।
निडाना गांव के किसानों द्वारा जलाई गई कीट ज्ञान की मशाल अब देश ही नहीं बल्कि विदेश के किसानों की राह का अंधेरा दूर कर उन्हें एक नया रास्ता दिखाएगी। इस रोशनी को विदेशों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की टीम पिछले दो दिनों से अपने पूरे तामझाम के साथ निडाना में डेरा डाले हुए थी। दूरदर्शन की इस टीम में रिपोर्टर विकास डबास, कैमरामैन सर्वेश व राकेश के अलावा 84 वर्षीय वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान भी मौजूद थे। कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान ने मंगलवार को निडाना गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर कीट कमांडो किसानों के साथ सीधे सवाल-जवाब किए और दूरदर्शन की टीम ने उनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। अलेवा से आए किसान जोगेंद्र ने कृषि वैज्ञानिक को अपने अनुभव के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वह 1988 से खेतीबाड़ी के कार्य से जुड़ा हुआ है। खेतीबाड़ी के कार्य से जुड़ने के साथ ही उसने अपने खेतीबाड़ी के सारे खर्च का रिकार्ड भी रखना शुरू किया हुआ है। 1988 से लेकर 2011 तक वह अपने खेतों में 70 लाख के पेस्टीसाइड डाल चुका है। लेकिन इस बार उसने निडाना के किसानों के साथ जुड़ने के बाद अपने खेत में एक छंटाक भी कीटनाशक नहीं डाला है और अब वह खुद भी कीटों की पहचान करना सीख रहा है। निडानी के किसान जयभगवान ने बताया कि वह 14 वर्ष की उम्र से ही खेती के कार्य में लगा हुआ है। जयभगवान ने बताया कि उनके एक रिश्तेदार की पेस्टीसाइड की दुकान है और वह हर वर्ष उससे कंट्रोल रेट पर दवाइयां खरीदता था। कंट्रोल रेट पर दवाइयां मिलने के बाद भी उसका हर वर्ष दवाइयों पर 80 हजार रुपए खर्च हो जाता था। लेकिन पिछले दो वर्षों से उसने इस मुहिम से जुड़ने के बाद कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल बंद कर दिया है। खरकरामजी के किसान रोशन ने बताया कि वह 10-12 एकड़ में खेती करता है, लेकिन वह अपने खेत में सुबह पांच बजे से आठ बजे तक सिर्फ तीन घंटे ही काम करता है। इसके बाद अपनी ड्यूटी पर चला जाता है। रोशन ने बताया कि अधिक पेस्टीसाइड के प्रयोग से पैदावार में बढ़ोतरी नहीं होती। पैदावार बढ़ाने में दो चीजें सबसे जरुरी हैं। पहला तो सिंचाई के लिए अच्छा पानी और दूसरा खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या। अगर खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या होगी तो अच्छी पैदावार निश्चित है। सिवाहा से आए किसान अजीत ने बताया कि वह अपनी जमीन ठेके पर देता था। जिस किसान को वह ठेके पर जमीन देता था, वह फसल में अंधाधूंध कीटनाशकों का प्रयोग करता था। जहरयुक्त भेजन के कारण कैंसर की बीमारी ने उसे अपने पंजों में जकड़ लिया और पिछले वर्ष उसकी मौत हो गई। इसलिए इस वर्ष उसने अपने खेत ठेके पर नहीं देकर स्वयं खेती शुरू की है और उसने भी कीट ज्ञान अर्जित कर अपने खेत में एक बूंद भी कीटनाशक नहीं डाला है। उसके खेत में इस वर्ष शाकाहारी व मासाहारी कीट भरपूर संख्या में मौजूद हैं। लेकिन इन कीटों से उसकी फसल को रत्ती भर भी नुकसान नहीं हुआ है। इसके बाद बुधवार को टीम ललीतखेड़ा गांव में महिला किसान पाठशाला में पहुंची और यहां महिलाओं से भी उनके अनुभव के बारे में जानकारी जुटाई। महिलाओं ने कीटों पर लिखे गीत सुनाकर टीम का स्वागत किया। टीम ने महिलाओं द्वारा लिखे गए तीन गीतों की भी रिकार्डिंग की। इस दौरान टीम ने निडाना के किसान रणबीर द्वारा चार एकड़ में बोई गई देसी कपास के शॉट भी लिए।
किसानों से सवाल करते कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान।

किसानो से बातचीत करते कृषि 

कृषि दर्शन कार्यक्रम के लिए किसानों के अनुभव को शूट करते टीम के सदस्य।
कृषि वैज्ञानिक को उपहार भेंट करती महिला 

कृषि वैज्ञानिक ने थपथपाई किसानों की पीठ

टीम के साथ आए कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान ने किसानों द्वारा शुरू किए गए इस कार्य की खूब सराहना की। किसानों की पीठ थपथपाते हुए सांगवान ने कहा कि उनकी यह मुहिम एक दिन जरुर शिखर पर पहुंचेगी और दूसरे किसानों को राह दिखाएगी। उन्होंने कहा कि इंसान को प्रकृति के साथ छेडछाड़ नहीं करनी चाहिए। आज मौसम में जो परिवर्तन आ रहे हैं, वह सब प्रकृति के साथ हो रही छेड़छाड़ का ही नतीजा है।