रविवार, 2 दिसंबर 2012

अधिकारियों की लापरवाही के कारण जंग की भेंट चढ़ रहे हैं लाखों के कृषि यंत्र



विभाग के पास नहीं  है कृषि यंत्रों के उचित रख-रखाव की व्यवस्था

नरेंद्र कुंडू

जींद। यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के चलते कृषि कार्यों को बढ़ावा देने वाली लाखों रुपए की मशीनें जंग की भेंट चढ़ रही हैं लेकिन विभाग के अधिकारियों के पास इनकी देखरेख के लिए फुरस्त नहीं है। इस प्रकार विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण कृषि विभाग द्वारा किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू की जाने वाली योजनाएं बीच रास्ते में ही दम तोड़ रही हैं। सरकारी उपकरणों के प्रति विभागीय अधिकारियों की इस बेरूखी का खामियाजा किसानों के साथ-साथ विभाग को भी भुगतना पड़ रहा है। किसानों को जहां सही समय पर विभाग की योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिलता है तो मशीनें खराब होने के कारण विभाग को भी लाखों रुपए का नुक्सान उठाना पड़ता है। अधिकारियों द्वारा मशीनों के उचित रख-रखाव की व्यवस्था नहीं करने के कारण लाखों रुपए की मशीनें खुले आसमान के नीचे ही जंग की भेंट चढ़ रही हैं और अधिकारी इन मशीनों को ठीक करवाने की बजाए मुक दर्शक बने हुए हैं। अधिकारी मशीनों के रख-रखाव के लिए विभाग के पास पैसे की कमी का रोना रो रहे हैं।

क्या है विभाग की योजना

कृषि विभाग ने कृषि कार्यों में पानी की बचत कर किसानों को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ कृषि कार्यों को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2009 में प्रमोशन एंड स्ट्रैथिंग ऑफ एग्रीकल्चर मैकाइनजैशन स्कीम शुरू की थी। इस स्कीम के तहत किसानों को कृषि कार्यों में पानी की बचत के लिए लेजर टैक्नोलाजी से चलने वाली लेजर लैंड लेवलर मशीन के साथ जमीन को समतल करने के लिए प्रेरित किया जाना था। इससे उबड़-खाबड़ जमीन को भी आसानी से समतल कर कृषि योज्य बनाया जा सकता है। इससे किसान को समय के साथ-साथ लगभग 40 प्रतिशत पानी की बचत भी होती है। 

किसानों को ढीली करनी पड़ रही है जेब  

कृषि यांत्रिकी विभाग कार्यालय के बाहर पड़ी मशीनें। 

विभाग द्वारा अधिक से अधिक किसानों तक इस योजना को पहुंचाने के लिए किसानों को 10 घंटे के लिए 1 हजार रुपए पर मशीन उपलब्ध करवाई जाती है। इसके अलावा विभाग द्वारा किसान से 3 रुपए प्रति किलोमीटर व ट्रैक्टर का डीजल भी लिया जाता है। विभागीय अधिकारियों की मानें तो एक एकड़ पर किसान को लगभग 350 रुपए प्रति घंटे का खर्च आता है, जबकि प्राइवेट ट्रैक्टर चालक किसान से 600 से 700 रुपए प्रति घंटा वसूल रहे हैं। विभाग द्वारा टारगेट कम करने व मशीनें खराब होने के कारण किसानों को मजबूरीवश अपनी जेब ढीली कर प्राइवेट ट्रैक्टर चालकों का सहारा लेना पड़ रहा है। 
 टै्रक्टर जिसकी हवा निकली हुई है 

घट रहा है विभाग का टारगेट

सरकार द्वारा लेजर लैंड लेवलर के माध्यम से जमीन को समतल करने के लिए कृषि यांत्रिकी विभाग को 2 ट्रैक्टर व 9 लेजर लैंड लेवलर मशीनें उपलब्ध करवाई गई थी। सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम का मुख्य उद्देश्य कृषि कार्यों में पानी की बचत करना था। ताकि किसान को समय के साथ-साथ पैसे की बचत भी हो। अधिक से अधिक किसानों को इस योजना के तहत लाभ देने के लिए कृषि विभाग द्वारा कृषि यांत्रिकी विभाग को हर वर्ष टारेगट दिया जाता था। लेकिन विभाग पैसे की कमी बताकर हर बार इस टारगेट को कम कर रहा है। विभाग द्वारा इन मशीनों के माध्यम से वर्ष 2009 से अब तक जिलेभर में सिर्फ 8 हजार एकड़ जमीन को ही समतल किया गया है। इस योजना के तहत कृषि यांत्रिकी विभाग को 2011 में 4 हजार एकड़ का टारगेट दिया गया था। योजना को किसानों से मिल रहे अच्छे रिस्पांश के कारण विभाग ने 2011 में समय रहते इसे पूरा कर लिया लेकिन विभाग द्वारा 2012 में इस टारगेट को बढ़ाने की बजाए कम कर दिया गया और 4 हजार की बजाए सिर्फ 3 हजार एकड़ का टारगेट विभाग को दिया गया। लेकिन विभाग के नकारा कृषि यंत्रों के कारण किसानों ने भी सरकारी मशीनों से मुहं मोड़ कर प्राइवेट मशीनों की तरफ अपना रूख कर लिया। किसानों की बेरूखी के कारण विभाग अब तक 3 हजार एकड़ के टारगेट तक नहीं पहुंच पाया। अब तक विभाग 3 हजार में से सिर्फ 2500 एकड़ का टारगेट ही पूरा कर पाया है। 

लाखों रुपए की मशीनरी हो रही है खराब 

कृषि यांत्रिकी विभाग के पास लेजल लैंड लेवलर को चलाने के लिए 2 ट्रैक्टर व 9 लेजर लैंड लैवलर मशीनें हैं। इसके अलावा विभाग के पास वैजीटेबल वाशर व अन्य कृषि यंत्र भी हैं लेकिन विभाग के अधिकारियों की लापरवाही से लाखों रुपए के यह यंत्र जंग की भेंट चढ़ रहे हैं। यहां विभाग के पास कृषि यंत्रों के लिए सबसे बड़ी कमी शैड की है। विभाग के पास यंत्रों को रखने के लिए शैड नहीं है। इस कारण यंत्र खुले आसमान के नीचे ही पड़े रहते हैं। लोहे के ये यंत्र खुले आसमान के नीचे पड़े रहने के कारण धूल व पानी लगने के कारण जंग की भेंट चढ़ रहे हैं। अधिकारियों द्वारा मशीनों के सही रख-रखाव की उचित व्यवस्था नहीं करवाने के कारण लेजर लैंड लेवलर मशीन को चलाने के लिए जो ट्रैक्टर विभाग के पास हैं वह भी खराब हो रहे हैं। इन दोनों ट्रैक्टरों में से एक ट्रैक्टर के टायरों की हवा निकली हुई है। इससे हजारों रुपए कीमत के टायर खराब हो रहे हैं।

शैड के निर्माण के लिए उच्चाधिकारियों को भेजा जाएगा प्रपोजल

इस बारे में कृषि यांत्रिकी विभाग के सहायक कृषि इंजीनियर जिले सिंह वर्मा से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि जल्द ही कृषि यंत्रों को ठीक करवाने का काम किया जाएगा। बजट के अभाव के कारण शैड का निर्माण नहीं हो पाया है। शैड के निर्माण के लिए विभाग के उच्चाधिकारियों को प्रपोजल तैयारकर भेजा जाएगा। 



फाइलों में ही दम तोड़ गई जिला प्रशासन की गौ रक्षक योजना


डी.सी. के आदेशों के 10 माह बाद भी नप ने योजना पर नहीं किया अमल

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले में गऊ कल्याण योजना फाइलों में ही सिमटकर रह गई। उपायुक्त के आदेशों के लगभग 10 माह बाद भी योजना पर अमल नहीं हुआ है। शहर में आवारा घूम रही पूजनीय गऊ माता की दुर्गति हो रही है। प्रशासन की तरफ से जिले में आवारा घूम रही गायों के लिए योजना बनाकर नगर परिषद को इसका जिम्मा सौंपा गया था। लेकिन नगर परिषद तक यह योजना पहुंचते ही फैल हो गई और नप की तरफ से इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया। नगर परिषद की इस लापरवाही का फायदा गौ तस्कर उठा रहे हैं और रात्रि के समय बेजुबान इन गायों को वाहनों में भरकर गौकसी के लिए लेकर जा रहे हैं। ऐसे में प्रशासन की इस लापरवाही से गौभक्तों में लगातार विरोध हो रहा है। हालांकि शहर में आवारा गायों की तदाद बढऩे से सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि होने की आशंका भी बनी रहती है। ऐसे में सड़क दुर्घटनाएं के एक मुख्य कारण को जनाने के बावजूद भी प्रशासन केवल गऊ माता के कल्याण की योजनाएं बनाने तक ही सीमित रह गया है और योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। हालांकि आवारा घूम रही इन गायों में सबसे ज्यादा दुधारू गायें हैं। जिनके मालिक सुबह व शाम के वक्त इन गायों का दूध निकालकर बाहर घूमने के लिए छोड़ देते हैं। बाद में गाय शहर में फल फ्रूट व सब्जी का कार्य करने वालों के लिए परेशानी बढ़ा देती हैं।

10 माह बाद भी उपायुक्त के आदेशों पर नहीं हुआ अमल

 शहर की सड़कों पर आवारा घूम रही गायें।
जिले में गऊ माता के बढ़ रहे अनादर को देखते हुए फरवरी 2011 को उपायुक्त डा. युद्धबीर ख्यालिया ने जिले के गऊशालाओं प्रबंधकों व नगर परिषद के अधिकारियों की बैठक लेकर इन आवार गायों को पकड़कर गऊशाला में छोडऩे के आदेश दिए थे। आदेशों में कहा गया था कि आवारा घूमने वाले पशुओं को गऊशालाओं में छुडवाएं। पकड़ी हुई गायों को जो भी मालिक छुड़वानें के लिए आएगा उसे 3 हजार रुपए की राशि जुर्माने अथवा खर्च के रूप में अदा करनी होगी और यदि गाय का मालिक बार-बार गायों को आवारा छोड़ता है तो उसके खिलाफ आपराधिक मामला भी दर्ज किया जाएगा। इसमें भिवानी रोड पर स्थित श्री गऊशाला ने आवारा गायों को अपनी गऊशाला में रखने का जिम्मा दिया गया था लेकिन लगभग 10 माह बीत जाने के बावजूद भी उपायुक्त के आदेशों की आज तक पालना नहीं हुई है। 

गौ संरक्षण के लिए प्रशासन को उठाने चाहिएं ठोस कदम

बजरंग दल गऊ रक्षा संघ के जिला प्रमुख नरेन्द्र शर्मा ने कहा कि सर्दी के साथ ही जिले में गऊओं की तस्करी के मामले बढऩे लगे हैं। तस्करी पर लगाम लगाने के लिए 4 दिसम्बर को हिसार में संगठन की बैठक होगी। बैठक में गौ तस्करी को रोकने के लिए रणनीति तैयार की जाएगी। उन्होंने बताया कि संगठन द्वारा धुंध का मौसम शुरू होते ही जगह-जगह पर नाके लगाकर वाहनों की जांच की जाती है और तस्करी के लिए जा रही गायों से भरे हुए वाहनों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया जाता है। लेकिन पुलिस प्रशासन की तरफ से उन्हें सहयोग नहीं मिलता है। गायों की तस्करी के कारण इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। अगर इसी प्रकार चलता रहा तो 15 से 20 वर्षों में गाय का नामो-निशान ही मिट जाएगा। इसलिए प्रशासन की तरफ से गायों की संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।



..यह सफर नहीं आसान


कंडम सामान के सहारे दौड़ रही हैं रोडवेज की बसें

नरेंद्र कुंडू
जींद। आरामदेह एवं सुखद यात्रा का दम भरने वाले हरियाणा रोडवेज विभाग की बसें कंडम स्पेयर पार्ट्स के सहारे चल रही हैं। कंडम बसों के लिए नया स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध नहीं होने के कारण वर्कशॉप में कल-पूर्जों का भारी टोटा बना हुआ है। स्पेयर पार्ट्स की कमी के चलते नई बसों में तकनीकि खराबी आने पर कंडम बसों के स्पेयर पार्ट का सहारा लिया जा रहा है। रोडवेज विभाग की इस लापरवाही का खामियाजा यात्रियों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ सकता है। रोडवेज की कार्यशाला में समय पर स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध न होने के कारण बसें कई-कई दिनों तक कार्यशाला में ही खड़ी रहती हैं। इससे रोडवेज को लाखों रुपए के राजस्व का चूना लग रहा है। 

ज्यादातर किस सामान का होता है प्रयोग

कार्यशाला में समय पर नया स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध नहीं होने के कारण मैकेनिकों को मजबूरन कंडम स्पेयर पार्ट्स का सहारा लेना पड़ रहा है। सूत्रों के अनुसार कंडम बसों से बैरंग, गियर बक्सा, इंजन का सामान, हैड, डिफैंसर, धूर्रा, कमानी, डैनमो, एस्टीलेटर, लाइट, स्टेयरिंग, टायर, रिम, बॉडी पार्ट और जो प्रयोग के लायक हो उस बस की बैटरी भी बदल कर प्रयोग में ले ली जाती है। 

2 माह से वर्कशॉप में ही खड़ी है बस

मामले की पूरी सच्चाई जानने के लिए जब टीम ने वर्कशॉप का मुआयना किया तो वर्कशॉप में काम कर रहे कर्मचारियों ने डिपो की बस एच.आर. 37 सी 1953 में लगभग 2 माह पहले रोहतक बस स्टैंड के बाहर वायरिंग शॉट के कारण आग लग गई थी। इसके बाद बस को यहां वर्कशॉप में रिपेयरिंग के लिए लाया गया था लेकिन वर्कशॉप में सामान की कमी के कारण यह बस पिछले 2 माह से इसी तरह खड़ी है। 

 सामान के अभाव में पिछले 2 माह से वर्कशॉप में खड़ी बस। 


पुराने सामान का लिया जाता है सहारा : नेहरा 

प्रधान अजीत नेहरा। 
रोडवेज कर्मचारी यूनियन के डिपो प्रधान अजीत नेहरा ने कहा कि कार्यशाला में समय पर नया स्पेयर पार्ट्स  पलब्ध नहीं होने के कारण मजबूरीवश कंडम बसों से स्पेयर पार्ट्स निकाल कर प्रयोग में लाया जाता है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों की लापरवाही के कारण रोडवेज को लाखों रुपए का चूना लग रहा है। स्टोर में स्पेयर पार्ट्स पलब्ध नहीं होने के कारण बस कई-कई दिनों तक कार्यशाला में खड़ी रहती है। नेहरा ने आरोप लगाते हुए कहा कि विभाग के अधिकारी अपनी जेब भरने के चक्कर में आवश्यकता के अनुसार सामान नहीं खरीदते हैं। पुराने सामान का प्रयोग कर कागजों में नया दिखाकर विभाग को चूना लगा रहे हैं। 
 वर्कशॉप में खड़ी कंडम बसें जिनका स्पेयर पार्ट्स निकाला गया है।

स्पेयर पार्ट्स की नहीं है कमी : डब्ल्यू.एम.

इस बारे में जब वर्कशॉप मैनेजर (डब्ल्यू.एम.) से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि वर्कशॉप के स्टोर में किसी भी स्पेयर पार्ट्स की कमी नहीं है। किसी भी बस को स्पेयर पार्ट्स की कमी के कारण वर्कशॉप में खड़ा नहीं रहने दिया जाता। अगर स्टोर में कोई स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध नहीं हो पाता तो समय रहते मुख्यालय पर उसके लिए प्रपोजल भेज कर जल्द से जल्द उसको मंगवा लिया जाता है। यूनियन के पदाधिकारी जानबुझकर रोडवेज के अधिकारियों को बदनाम करने की साजिश रचते रहे हैं। 

अधिकारियों को बदनाम करने की रच रहे हैं साजिश

इंटक यूनियन के डिपो सचिव वीरेंद्र कुमार ने कहा कि वर्कशॉप में किसी भी सामान की कमी नहीं है। रोडवेज यूनियन का डिपो प्रधान व उसके कुछ साथ जान बुझकर अधिकारियों को बदनाम करने की साजिश रचते रहते हैं। यूनियन के पदाधिकारी अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कर्मचारियों को गुमराह करते रहते हैं। 
 डिपो सचिव वीरेंद्र कुमार




दुकानदारों के सामने बौना साबित हो रहा फूड सेफ्टी एक्ट


विभाग के पास अभी तक पहुंचे महज 100 आवेदन

नरेंद्र कुंडू 
जींद।जिले के दुकानदारों के सामने फूड सेफ्टी एक्ट बौना साबित हो रहा है। दुकानदारों के लिए यह एक्ट बेमानी साबित हो रहा है। लोगों की सेफ्टी के लिए फूड सेफ्टी एक्ट तो बन गया और लागू भी हो गया लेकिन जनता की सेफ्टी अभी तक नहीं हो सकी है। एक्ट के प्रति न तो अधिकारी ही रुचि दिखा रहे और न ही दुकानदार परवाह कर रहे हैं। इस एक्ट को लागू हुए एक साल से ऊपर चुके हैं, लेकिन अभी तक महज 100 लाइसैंस के लिए आवेदन पहुंचा है। अधिकारियों की लापरवाही व जागरुकता के अभाव से यह एक्ट बेमौत मरने के कगार पर है। अगस्त 2011 में केन्द्र व राज्य सरकार ने खाद्य वस्तुओं में बढ़ रही मिलावट को रोकने तथा लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले लोगों पर लगाम कसने के लिए फूड सेफ्टी कानून बनाया। इसके तहत एक दूध विक्रेता से लेकर खाद्य वस्तुओं का बड़ा कारोबार करने वाले तक लाइसैंस बनाना अनिवार्य किया गया है। जिसका मुख्य मकसद खाद्य वस्तुओं की बिक्री करने वाले दुकानों व अन्य उत्पादों का निर्माण करवाने वाले प्रतिष्ठानों की पहचान करना था, ताकि समय-समय पर उनकी जांच की जा सके। लेकिन जिले में इस एक्ट का कोई असर होता दिखाई नहीं दे रहा है। जिले में इस समय खाद्य वस्तु से संबंधित लगभग सात हजार से अधिक दुकानें चल रही है, लेकिन केवल 100 दुकानदारों ने ही इस एक्ट के प्रति रूचि दिखाई है। जिले में फूड सेफ्टी एक्ट केवल कागजों में ही सिमटकर रह गया है। हालांकि केन्द्र सरकार ने लाइसैंस बनाने की इस प्रक्रिया को मार्च 2012 माह तक पूरा करने के दिए थे, लेकिन इस दौरान कार्य पूरा न होने के चलते बाद में इसकी तिथि को बढ़ाकर अगस्त 2012 तक का समय दे दिया था। लेकिन एक्ट को लागू होने के एक साल तीन माह बीत गए है, लेकिन लाइसैंस बनाने की जो रफ्तार नहीं पकड़ी। शहर के खाद्य विक्रेता पंजीकरण से दूर रहना चाहते हैं। 

7 हजार से अधिक चलती है दुकानें

सरकारी आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो जिले में सात हजार से अधिक दुकानों के अलावा हजारों ऐसे लोग हैं, जो दूध बेचने से लेकर दूसरी खाद्य वस्तुओं की बिक्री बड़े से छोटे स्तर पर कर रहे हैं। लेकिन मात्र 100 दुकानदार ही ऐसे है, जिसने फूट सेफ्टी एक्ट का समर्थन करते हुए लाइसैंस लिया है। खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 31 के तहत सभी खाद्य कारोबार करने वालों को लाइसैंस अथवा पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। अधिनियम के प्रावधान के अनुसार खाद्य कारोबार चाहे लाभ के लिए हो या न हो, सार्वजनिक व निजी रूप से खाद्य पदार्थों का निर्माण, पैकेज, भंडारण, वितरण या आयात करता है तो इस अधिनियम के तहत लाइसैंस या पंजीकरण जरूरी है। इसके अतिरिक्त खाद्य सेवा कैटङ्क्षरग खाद्य संघटक की बिक्री भी पंजीकरण के प्रावधानों में है। छोटा फुटकर विक्रेता, फेरी वाला, अस्थायी स्टाल धारक, कैटरर, कार्यक्रम में खाद्य वस्तुओं के वितरण को भी इस अधिनियम के तहत शामिल किया गया है।

क्यों जरूरी है लाइसैंस

राज्य और केन्द्र सरकार की ओर से फूड सेफ्टी एक्ट के तहत फूड लाइसैंस देने का प्रावधान है, ताकि संबंधित व्यापारी से यह गारंटी ली जा सके कि वह ऐसी कोई खाने, पीने की चीजें नहीं बेचेगा जो तय मापदंडों पर खरी नहीं उतरती, मिलावटी और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो। अगर खानपान का व्यापार करने वाला कोई भी व्यापारी मसलन परचून वाले, होटल, रेस्तरां, दुकानें आदि यह लाइसैंस नहीं लेता है तो फूड सेफ्टी एक्ट के सेक्शन 63 के अनुसार उसके 5 लाख रुपए तक का जुर्माना और छह महीने तक की जेल हो सकती है।

फूड सेफ्टी एक्ट की कैटेगरी

1. सालाना 12 लाख से कम का टर्नओवर या फिर प्रतिदिन 100 किलोग्राम से कम की सेल वाले छोटे व्यापारियों के लिए 100 रुपए का डी.डी. देकर रजिस्ट्रेशन। 
2.  12 लाख से ज्यादा के टर्नओवर या प्रतिदिन सौ किलोग्राम से ज्यादा की सेल करने वाले व्यापारियों को लाइसैंस के लिए 2 हजार रुपए का डी.डी.।
3.  उत्पादन के लिहाज से 1 हजार किलोग्राम से कम उत्पादन करने वाले व्यापारियों के लिए 3 हजार रुपए का डी.डी.।
4.  एक हजार किलो से ज्यादा उत्पादन करने वालों के लिए 5 हजार रुपए का डिमांड ड्राफ्ट।
5.  जिन व्यापारियों का 2 हजार किलो से ज्यादा का उत्पादन है, उन्हें लाइसेंस देने का अधिकार केन्द्र सरकार का है। इसके लिए डिमांड ड्राफ्ट भी 7 हजार रुपए का होगा।

चलाया जाता है जागरूकता अभियान

जे.एफ.आई. एन.डी. शर्मा ने कहा कि खाद्य पदार्थों की बिक्री करने वाले सभी दुकानदारों लाइसैंस लेना अनिवार्य है। अब तक उनके पास केवल 100 दुकानदार का ही लाइसैंस बनवाने के लिए आवेदन किया है। सरकार ने अब रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए फरवरी 2013 तक का समय दिया गया है। इसके लिए विभाग की तरफ से विशेष जागरूकता अभियान चलाया जाएगा और प्रत्येक दुकानदार को रजिस्ट्रेशन करने के लिए प्रेरित किया जाएगा। अगर उसके बाद भी कोई दुकानदार रजिस्ट्रेशन नहीं करवाता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।

रविवार, 25 नवंबर 2012

जनता क्या बदना चाहती है सत्ता या व्यवस्था?


नरेंद्र कुंडू

जींद। जैसे-जैसे यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के मामले एक-एक करके पर्दे से बाहर आ रहै है, वैसे-वैसे ही राजनीति के गलियारों की हलचल भी बढ़ती जा रही हैं। देश में परिवर्तन के नाम की आंधी उठने लगी है। कहीं विपक्षी पाॢटयां सत्ता परिवर्तन की आवाज बुलंद कर रही हैं तो कहीं सामाजिक संगठन या अन्य दल पूरी व्यवस्था के परिवर्तन पर जोर दे रहे हैं। सत्तासीन सरकार के माथे पर भ्रष्टाचारी सरकार का लेबल चसपाकर देश में मध्यावर्ति चुनाव का माहौल तैयार किया जा रहा है। सत्ता परिवर्तन के लिए सभी राजनैतिक दल पूरे जोर-शोर से तैयारियों में जुटे हुए हैं। फिर से देश में रैलियों का दौर शुरू हो चुका है। टिकट के दावेदारों द्वारा अपनी ताकत का ऐहसास करवाने के लिए रैली में अधिक से अधिक भीड़ जुटाकर अपने आकाओं की नजरों में अपना कद बढ़ाने की पूरजोर कोशिश की जा रही है। राजनैतिक पार्टियों के बीच वाक युद्ध का दौर पूरे यौवन पर है। मंच रूपी रथ पर सवार होकर शब्द रूपी बाणों से नेता एक-दूसरे का सीना छलनी कर रहे हैं। अपने दाग को छुपाने के लिए दूसरों के दामन पर कीचड़ उछाला जा रहा है। राजनैतिक दल जनता-जर्नादन का समर्थन पाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। रैलियों में प्रचार-प्रसार के नाम पर करोड़ों रुपया बर्बाद किया जा रहा है लेकिन रैली में जो पैसा खर्च हो रहा है उस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता है। कोई ये पुछने वाला नहीं है कि रैली में जो पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है आखिर वह किसका है, कहां से आया है और क्यों बर्बाद किया जा रहा है? ये इस देश का दुर्भाग्य कहें या उन सफेदपोश नेताओं का सौभाग्य जो जनता की आंखों पर स्वार्थ की पट्टी बांधकर बड़े आराम से अपना काम निकाल कर जनता के बीच से गायब हो जाते हैं और जनता को उस झूठे आश्वासन रूपी मायाजाल के पीछे छिपे इतने बड़े देश का अहित भी नजर नहीं आता। जनता भी इस बात को नहीं समझना चाहती है कि जिस कुर्सी के लिए इतना पैसा उस पर लुटाया जा रहा है आखिर वह वापिस भी तो उसे अपनी ही जेब से करना है। 
सुरशामुखी की तरह बढ़ रही महंगाई व आए दिन सरकार के मंत्रियों पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण देश की जनता भी निराश हो चुकी है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब जनता किसी पार्टी की जनविरोधी नीतियों के कारण इस तरह से निराश हुई हो। ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है लेकिन परिणाम क्या निकला जिस उम्मीद से सत्ता परिर्वतन कर दूसरे हाथों में देश की बागडोर सौंपी वह भी अपने वायदों पर खरे नहीं उतर पाए। उन्होंने भी सत्ता में आते ही जनता का चीरहरण शुरू कर दिया। इसी फेरबदल में अगर कुछ बदला तो वह था सिर्फ पार्टी का नाम व कुर्सी पर बैठने वाले नेता का चेहरा लेकिन विचार तो वही पहले वाले थे। यह खेल तो सदियों से चलता आ रहा है और तब तक चलता रहेगा जब तक इस देश की जनता जागृत नहीं होगी। व्यवस्था परिवर्तन के इस फेर में न जाने कितने भगत सिंह शहीद हो गए। भगत सिंह अंग्रेजों के खिलाफ नहीं थे वे तो उनकी व्यवस्था के खिलाफ थे। भगत सिंह  की लड़ाई केवल देश की आजादी के लिए नहीं थी। उनकी लड़ाई तो पूरी व्यवस्था के खिलाफ थी। उनकी लड़ाई तो मानव द्वारा मानव के शोषण के खिलाफ थी। वे साम्राज्यवाद की नहीं समाजवाद की स्थापना करना चाहते थे लेकिन जनता उनके विचारों की गहराइयों को नहीं समझ पाई और बिना जनता के सहयोग के नतीजा क्या निकला। गौरे अंग्रेज चले गए तो काले अंग्रेजों ने अपना शासन जमा लिया। गुलामी के उन 250 सालों में और आजादी के इन 65 सालों में क्या बदला है। पूरा का पूरा सिस्टम वही है जो अंग्रेजी हुकूमत में चलता था। आजादी के इन 65 सालों में अमीर व गरीब के बीच की खाई कम होने की बजाए ओर बढ़ी है। गरीब गरीब होता जा रहा है तथा अमीर ओर अमीर होता जा रहा है। आज देश में समाजवादी व्यवस्था नहीं पूंजीवाद व्यवस्था का बोलबाल है। इसका कारण है देश की जनता में चेतना न होना। अगर व्यवस्था परिवर्तन करना है तो सबसे पहले गरीब तबके को परिवर्तन की मशाल उठानी होगी, उसे खुद अपने अधिकारों के प्रति जागृत होना होगा। सत्ता में बैठे नेताओं से अपना हिसाब मांगना होगा। क्योंकि अमीर आदमी को तो सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है नहीं, मध्यम वर्ग के पास इसके लिए फुर्सत नहीं है और गरीब वर्ग इसे बदलना नहीं चाहता है। अब इसका फैसला तो खुद जनता की अदालत को ही करना है कि वह क्या बदलना चाहती है सत्ता या व्यवस्था? 

बदलना होगा चुनावी सिस्टम। 

अगर इस देश में व्यवस्था परिवर्तन करना है तो सबसे पहले चुनाव के इस सिस्टम को ही बदलना होगा। चुनाव के इस सिस्टम को बदल कर ऐसा सिस्टम खड़ा करना होगा, जिसमें उम्मीदवार का व्यक्तिगत कोई खर्च न हो। अगर उम्मीदवार चुनाव प्रचार पर लाखों रुपए खर्च करेगा तो यह जाहिर है कि वह सत्ता में आने के बाद उन लाखों के बदले करोड़ों कमाएगा भी। इससे समाजवाद की नहीं पूंजीवाद की ही नींव रखी जाएगी। इसके बाद जरूरत है कठोर कानून प्रक्रिया की। अगर भ्रष्टाचार को रोकना है तो सबसे पहले भ्रष्टाचार में दोषी पाए जाने वाले के खिलाफ कानून में कठोर दंड व उसकी सारी संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान होना भी अनिवार्य है। बिना कठोर कानून के भ्रष्टाचार रूपी राक्षस का खात्मा संभव नहीं है लेकिन यह तभी संभव है जब निचले तबके के लोग उठकर आगे आएंगे क्योंकि मौजूदा सत्तासीन लोग कठोर कानूनी कार्रवाई के पक्षधर कभी नहीं होंगे, क्योंकि वे जानते हैं कि अगर परिर्वतन की लहर उठी तो उसमें सबसे पहले वो खुद ही बह जाएंगे। 

चने की खेती से मुहं मोड़ रहे जिले के किसान


साल-दर-साल सिकुड़ता जा रहा चने की खेती का रकबा

नरेंद्र कुंडू


जींद। कृषि विभाग किसानों को तिलहन व दलहन फसलों के लिए प्रेरित करने के लिए चाहे कितने भी प्रयास क्यों न कर रहा हो लेकिन विभाग के लाख प्रयास के बावजूद भी किसान तिलहन व दलहन फसलों की तरफ रूख नहीं कर रहे हैं। तिलहन व दलहन फसलों का रकबा लगातार कम हो रहा है और गेहूं व धान की फसलों के रकबे में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। अगर पिछले 4 दशकों के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो साल-दर-साल चने की खेती का रकबा सिकुड़ रहा है। दलहन फसलों का यह आंकड़ा सिर के बल गिर है। फिलहाल जिले में चने की खेती का रकबा सिर्फ 500 हैक्टेयर के लगभग ही बचा है जबकि वर्ष 1967-68 के समय में जिले में अकेले चने की खेती का रकबा 1 लाख हैक्टेयर के लगभग था। 
कृषि विभाग किसानों को दलहन व तिलहन फसलों के प्रति प्रेरित करने के लिए हर वर्ष विशेष अभियान चलाकर लाखों रुपए खर्च करता है लेकिन विभाग के तमाम प्रयासों के बावजूद भी किसान तिलहन व दलहन फसलों को नहीं अपना रहे हैं। विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जिले में दलहन फसलों में सबसे ज्यादा कमी चने की खेती के रकबे में हुई है। चने की खेती के रकबे में जहां कमी आई है वहीं गेहूं व धान की खेती के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। जिले में इस समय कृषि योज्य जमीन का रकबा लगभग 2 लाख 40 हजार हैक्टेयर है। इसमें से रबी फसलों के सीजन में अकेले 2 लाख 17 हजार हैक्टेयर में गेहूं की फसल और साढ़े 6 हजार में सरसों की फसल होती है। इस समय जिले में सिर्फ 500 हैक्टेयर में ही चने की खेती होती है। बाकी बची जमीन में हरा चारा व अन्य फसलों की खेती होती है। इसके अलावा खरीफ के सीजन में 1 लाख 6 हजार हैक्टेयर के लगभग में धान की खेती होती है। इस प्रकार जिले में चने की खेती का रकबा लगातार कम हो रहा है। अब जिले के किसान फसल चक्र को बदलने की बजाए सिर्फ धान व गेहूं की खेती की तरफ ही आकॢषत हो रहे हैं। दलहन व तिलहन की खेती से किसानों का मोह भंग होने व फसल चक्र में बदलाव नहीं होने के कारण जमीन में जरूरी पोषक तत्वों की भी भारी कमी हो रही है। 

क्यों कम हो रहा है चने की खेती का रकबा

कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो पहले फसलों की सिंचाई के लिए भूजल की बजाए बरसात व नहरी पानी पर ही ज्यादातर किसान आधारित होते थे। किसानों के पास भूमिगत जल के स्त्रोत भी नामात्र के ही होते थे। भू जल का दोहन कम होने के कारण भूजल चने की खेती के लिए उपयुक्त भी होता था। लेकिन अब सभी किसानों के पास सिंचाई के पर्याप्त साधन हैं। लगभग सभी किसानों के पास ट्यूबवैल की सुविधा है। सिंचाई के साधनों के बढऩे से भूजल का दोहन भी काफी बढऩे लगा और इससे भूमिगत पानी खराब होने लगा। भूमिगत जल खराब होने के कारण जमीन में नमक की मात्रा बढऩे लगी जो चने की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। इससे चने के उत्पादन में भारी कमी आई और चने की खेती से किसानों का मोह भंग होने लगा। अब गेहूं व धान की खेती के प्रति ही किसानों का रूझान बढ़ रहा है लेकिन फसल चक्र में बदलाव नहीं होने के कारण जमीन में जरूरी पोषकतत्वों की कमी भी हो रही है। 

नए किस्म के बीज किए जा रहे हैं तैयार

इस बारे में जब कृषि विभाग के जिला उपनिदेशक आर.पी. सिहाग से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि विभाग द्वारा किसानों को तिलहन व दलहन फसलों की खेती के लिए प्रेरित किया जाता है। ज्यादातर किसान चने की फसल में ट्यूबवैल का पानी लगाते हैं लेकिन जमीनी पानी चने की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। जमीनी पानी में कुछ ऐसे साल्ट हैं जिन्हें चने की फसल सहन नहीं कर पाती। विभाग द्वारा चने की खेती करने वाले किसानों को ज्यादा से ज्यादा नहरी पानी लगाने के सुझाव दिए जाते हैं। इसके अलावा विभाग द्वारा किसानों को दलहन व तिलहन फसलों के प्रति किसानों को प्रेरित करने के लिए अनुदान पर बीज भी मुहैया करवाया जाता है। दलहन व तिलहन फसलों की कम हो रही जोत के प्रति विभाग ङ्क्षचतित है। इसलिए ऐसे बीज तैयार किए जा रहे हैं जो जमीनी पानी के साल्ट को सहन कर सकें। 

वर्ष चने की पैदावार हैक्टेयर में 

1966-67 85 हजार
1967-68 1 लाख 1 हजार
1968-69 99 हजार
1969-70 98 हजार
1970-71 95 हजार
1971-72 96 हजार
1972-73 90 हजार
1973-74 88 हजार
1974-75 76 हजार
1975-76 70 हजार
1976-77 65 हजार
1977-78 63 हजार
1978-79 65 हजार
1979-80 65 हजार
1980-81 81 हजार
1981-82 85 हजार
1982-83 32 हजार
1983-84 44 हजार
1984-85 49 हजार
1985-86  37 हजार
1986-87 9 हजार
1987-88 38 हजार
1988-89 28 हजार
1989-90 31 हजार
1990-91 10 हजार
1991-92 8 हजार
1992-93 14 हजार
1993-94 14 हजार
1994-95 12 हजार
1995-96 11 हजार
1996-97 10 हजार
1997-98 7 हजार 
1998-99 2 हजार 
1999-2000 1 हजार
2000 के बाद यह आंकड़ा कम होकर 500 हैक्टेयर के लगभग रह गया। 

हर रोज रोडवेज को लाखों का चूना लगा रही प्राइवेट समितियों की बसें


निर्धारित रूटों पर नहीं चल रही हैं प्राइवेट समितियों की बसें

नरेंद्र कुंडू
जींद। हरियाणा रोडवेज के अधिकारियों की अनदेखी विभाग को भारी पड़ रही है। हर रोज प्राइवेट समितियों की बसें विभाग को प्रति दिन लाखों रुपए का चूना लगा रही हैं। प्राइवेट बस चालक रोजाना नियमों को ठेंगा दिखाकर निर्धारित रूट से विपरित चल रहे हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों की यातायात व्यवस्था प्रभावित हो रही है। प्राइवेट बस चालकों द्वारा समय पर निर्धारित गांव में बस नहीं चलाने के कारण ग्रामीण क्षेत्र के यात्रियों व विद्यार्थियों को भारी परेशानियां उठानी पड़ रही हैं। रोडवेज व जिला परिवहन प्राधिकरण विभाग को बार-बार निजी बस चालकों के खिलाफ शिकायत मिलने के बावजूद भी अधिकारी इनके खिलाफ कार्रवाई करने की बजाए इन्हें अपनी मौन स्वीकृति दे रहे हैं।
हरियाणा रोडवेज बेड़े में बसों की कमी को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर परिवहन सेवाएं मुहैया करवाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए परिवहन समितियों को परमिट अलाट किए गए थे। फिलहाल जिले में 48 निजी बसें चल रही हैं। लगभग इन सभी 48 बसों के रूट ग्रामीण क्षेत्रों में तय किए गए हैं लेकिन इनमें से लगभग कोई भी निजी बस चालक निर्धारित रूटों पर अपनी सेवाएं नहीं दे रहा है। निजी बस चालक ग्रामीण क्षेत्रों की  बजाए निमयों को ठेंगा दिखाकर सीधे रूटों पर बसों को दौड़ा रहे हैं। निजी बस चालकों की इस मनमर्जी के कारण हर रोज रोडवेज विभाग को लाखों रुपए का चूना तो लग ही रहा है साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में यातायात व्यवस्था प्रभावित हो रही है। इससे ग्रामीण क्षेत्र के यात्रियों व विद्यार्थियों को सबसे ज्यादा परेशानी उठानी पड़ रही है। रोडवेज विभाग व जिला परिवहन प्राधिकरण को बार-बार शिकायतें मिलने के बावजूद भी इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। इस तरफ से विभागीय अधिकारियों की मौन स्वीकृति इन निजी बस चालकों को खुलकर नियमों की धज्जियां उडाने की छूट दे रही है। 

बिना परमिशन के निजी बसों को बुकिंग पर लगाना नियमों के खिलाफ

जिला परिवहन प्राधिकरण के पास हर रोज ग्रामीण क्षेत्रों से शिकायत आ रही हैं कि उनके क्षेत्र में चलने वाली प्राइवेट बसों के चालक बस को बुकिंग पर चलाते हैं। इससे उनके गांव में यातायात व्यवस्था प्रभावित होती है। हरियाणा रोडवेज वर्कर्स यूनियन के राज्य उप प्रधान रामकुमार नैन ने बताया कि प्राइवेट बस चालकों को बुकिंग लेने से पहले परिवहन प्राधिकरण विभाग से परमिशन लेनी होती है लेकिन ज्यादातर बस चालक बिना परमिशन के ही बसों को बुकिंग पर ले जाते हैं जो सरासर नियमों के खिलाफ है। 

विभागीय अधिकारी नहीं कर रहे हैं कार्रवाई

हरियाणा रोडवेज वर्कर्स यूनियन के प्रधान ईश्वर तालू ने बताया कि कैथल से नरवाना रूट पर 4 गाडिय़ां अवैध रूप से चल रही हैं। इसके बारे में वे कई बार जिला प्राधिकरण अधिकारी को लिखित में शिकायत भी दे चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। तालू ने बताया कि इसके अलावा भी जिले में जितनी भी प्राइवेट बस चल रही हैं कोई भी अपने निर्धारित रूट पर नहीं चल रही है। प्रधान ने रोडवेज के महाप्रबंधक व जिला परिहवन प्राधिकरण अधिकारी पर आरोप लगाते हुए कहा कि दोनों अधिकारी पूरी तरह से भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं। अधिकारियों की लापरवाही के कारण ही निजी बस चालक ओवर रूटों पर चल रहे हैं। बार-बार शिकायत मिलने के बावजूद भी निजी बस चालकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। ऊपर से सरकार  भी रोडवेज का निजीकरण करने पर तुली हुई है। 

यह है जुर्माने का प्रावधान

जिला परिवहन प्राधिकारण विभाग के नियमों के तहत पहली बार ओवर रूट पर बस पकड़े जाने पर 3500 रुपए, दूसरी बार पकड़े जाने पर 7 हजार व तीसरी बार पकड़े जाने पर 10 हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। इसके बाद भी अगर निजी बस चालक अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है तो उसका परमिट भी रद्द किया जा सकता है। 

नियम तोडऩे वालों पर होगी कार्रवाई

हरियाणा रोडवेज के महाप्रबंधक राहुल जैन ने बताया कि बिना रुट की बसों को स्टैंड परिसर में नहीं आने दिया जाता। अन्य अवैध सवारी वाहनों पर समय-समय पर अभियान चला कर कार्रवाई की जाती है। इसके अलावा बगैर परमिट सड़क पर दौड़ रहे वाहनों पर कार्रवाई करने का अधिकार जिला परिवहन प्राधिकरण अधिकारी का होता है। इसके लिए बार-बार जिला परिवहन प्राधिकरण अधिकारी को लिखित में शिकायत भी दी जाती है। इस बारे में जिला परिवहन प्राधिकरण अधिकारी सतीश जैन से संपर्क साधा गया तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया। 

निर्धारित रूट पर चल रही हैं बसें 

इस बारे में ढिगाना कोप्रेटिव सोसायटी के प्रधान हरपाल से बात की गई तो उन्होंने बताया कि उनकी बस निर्धारित रूट पर चल रही है। उनके पास तो जींद से नरवाना का रूट मिला हुआ है। लगभग सभी बस चालक अपने निर्धारित रूटों पर चल रही हैं। बसों की बजाए क्रूजर व जीपें अवैध रूप से चल रही हैं। 

पिछले वर्ष हुई गलती से सबक ले रहा है कृषि विभाग


गेहूं की पछेती बिजाई के बाद भी अच्छे उत्पादन के लिए विशेष किस्मों पर दिया जा रहा है जोर

नरेंद्र कुंडू
जींद। पिछले वर्ष कपास की फसल की चुगाई का सीजन काफी लंबा चलने के कारण लेट हुई गेहूं की बिजाई से इस बार कृषि विभाग ने सबक लिया है। इस बार कृषि विभाग गेहूं की लेट बिजाई के बाद भी किसानों को अच्छी पैदावार दिलवाने के लिए विशेष किस्मों पर जोर दे रहा है। हालांकि कृषि विभाग गेहूं की बिजाई के अपने लक्ष्य से अभी भी दूर है। इसके अलावा विभाग द्वारा गेहूं की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए किसानों को बीजोपचार के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है। 

पिछले वर्ष कपास की फसल की चुगाई का सीजन दिसंबर माह के अंतिम सप्ताह तक चला था। कपास का सीजन लंबा चलने के कारण गेहूं की बिजाई का कार्य काफी लेट हो गया था। इसके चलते कृषि विभाग के अधिकारियों को गेहूं की बिजाई के अपने टारगेट तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी थी। गेहूं की बिजाई लेट होने के कारण किसानों को भी पैदावार में काफी नुक्सान उठाना पड़ा था लेकिन इस बार कृषि विभाग ने अपनी पिछले वर्ष की गलती को सुधारने के लिए गेहूं की पछेती किस्मों की बिजाई पर जोर दिया है। इसके लिए विभाग द्वारा किसानों को गेहूं की इन स्पैशल किस्मों की बिजाई के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इस बार विभाग के अधिकारियों द्वारा गेहूं की 343 किस्मों की बजाए एच.डी. 2851 व 2894 किस्मों की बिजाई के लिए प्रेरित किया जा रहा है। विभाग के अधिकारियों का मानना है कि गेहूं की इन किस्मों की बिजाई लेट करने के बाद भी ये अच्छी पैदावार देती हैं। विभाग द्वारा गेहूं की इन स्पैशल किस्मों की बिजाई के लिए किसानों को प्रेरित करने का मुख्य उद्देश्य किसानों को गेहूं की पछेती बिजाई के बावजूद भी अच्छी पैदावार दिलवाकर आॢथक रूप से समृद्ध करना है। 

बीज उपचार के लिए भी किया जा रहा है प्रेरित

कृषि विभाग द्वारा गेहूं की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए इस बार किसानों को बीजोपचार के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है। कृषि अधिकारियों का मानना है कि बीजोपचार के बाद गेहूं की बिजाई करने से फसल में करनल बंट व लूज समट जैसी बीमारियां आने की आशंका काफी कम हो जाती है। बीजोपचार की इस योजना को कारगर बनाने के लिए किसानों को बिजाई के लिए जो बीज दिया जा रहा है उसके साथ बीजोपचार के लिए दवाई के पाऊच दिए जा रहे हैं। इसके अलावा किसानों को पैदावार में बढ़ौतरी करने के लिए संतुलित खाद की सलाह भी दी जा रही है।

गेहूं की बिजाई के लिए  5 से 25 नवंबर तक है उपयुक्त समय 

कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा 25 अक्तूबर से 5 नवंबर तक गेहूं की बिजाई को अगेती तथा 5 नवंबर से 25 नवंबर तक के बीच के समय उपयुक्त माना गया है। इसके बाद 25 नवंबर से 15 दिसंबर तक की बिजाई के समय को विभाग के अधिकारी पछेती बिजाई मानते हैं। इसलिए इस बार विभाग द्वारा किसानों को 343 की बजाए एच.डी. 2851 व 2894 की बिजाई के लिए प्रेरित कर रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह बीज पछेती बिजाई होने पर भी अच्छी पैदावार देता है। 

1 लाख 5 हजार हैक्टेयर में हो चुकी है गेहूं की बिजाई

कृषि विभाग के अधिकारी सुनील ने बताया कि जींद जिले में रबी की फसलों की बिजाई का कुल क्षेत्र 2 लाख 40 हजार हैक्टेयर है। इसमें से अकेले 2 लाख 17 हजार हैक्टेयर में गेहूं की फसल की पैदावार होती है। बाकी बचे क्षेत्र में सरसों, हरे चारे व अन्य फसलों की पैदावार होती है। अभी तक विभाग द्वारा गेहूं के कुल रकबे में से 1 लाख 5 हजार हैक्टेयर के लगभग क्षेत्र में गेहूं की बिजाई तथा साढ़े 6 हजार हैक्टेयर में सरसों की बिजाई करवाई जा चुकी है। इस बार जिले में 343 की बजाए एच.डी. 2851 व 2894 की बिजाई ज्यादा हुई है। 

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

...ताकि रबी की फसल के सीजन के दौरान न हो नकली बीज की बिजाई


नकली बीज व दवाइयों की बिक्री को रोकने के लिए कृषि विभाग ने चलाया अभियान

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रबी की फसल की बिजाई के दौरान नकली बीज, खाद व दवाइयों की बिक्री को रोकने के लिए जिला कृषि विभाग ने कमर कस ली है। नकली बीज, खाद व दवाइयों की बिक्री को रोकने के लिए विभाग द्वारा सैंपङ्क्षलग के लिए विशेष अभियान चलाया गया है। इसके लिए विभाग द्वारा एस.डी.ओ. क्यू.सी.आई., ए.पी.पी.ओ. व प्रशासन के अधिकारियों के नेतृत्व में बीज व खाद की दुकानों पर जाकर सैंपल लिए जा रहे हैं। रबी की फसलों की बिजाई तक विभाग का यह अभियान जारी रहेगा। 
प्रदेश में रबी की फसल की बिजाई का सीजन जोरों पर है। इस दौरान नकली बीज, खाद व दवाइयों का बाजारा भी गर्म हो चुका है। नकली बीज, खाद व दवाइयों के विक्रेता किसानों को नकली बीज व दवाइयों की सप्लाई कर मोटा मुनाफा कमाने की फिराक में रहते हैं। किसानों को इसकी पहचान नहीं होने के कारण भोले-भाले किसान इनके चुंगल में आसानी से फंस जाते हैं। नकली बीजों की बिजाई के कारण किसानों की हजारों रुपए की फसल खराब हो जाती है और इससे किसानों को काफी आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ता है लेकिन अब कृषि विभाग ने नकली बीज व दवाइयों के विक्रेताओं पर नकेल कसने के लिए विशेष अभियान शुरू किया है। इसके लिए विभाग के एस.डी.ओ., क्यू.सी.आई., ए.पी.पी.ओ. व जिला प्रशासन के अन्य अधिकारियों के नेतृत्व में बीज व खाद की दुकानों पर जाकर बीज व दवाइयों के नमूने लेकर जांच के लिए लैबोरेटरी में भेजे जा रहे हैं। अगर लैब से आई रिपोर्ट में किसी भी बीज व दवाइयों के सैंपलों की रिपोर्ट नकारात्मक आती है तो उसके खिलाफ विभाग द्वारा सख्त कार्रवाई की जाएगी। विभाग द्वारा शुरू किए गए इस अभियान का उद्देश्य रबी की फसल की बिजाई के दौरान नकली बीजों की बिक्री को रोकना है, ताकि  समय रहते किसानों को नकली बीज की बिजाई करने से रोक कर उन्हें आर्थिक नुक्सान उठाने से बचाया जा सके। 

रबी की फसलों की बिजाई खत्म होने तक चलेगा अभियान

विभाग द्वारा नकली बीज व दवाइयों की बिक्री को रोकने के लिए जो अभियान चलाया गया है वह रबी की फसलों की बिजाई पूरी होने तक चलेगा। ताकि नकली बीज व दवाइयां बेचने वालों पर पूरी तरह से नकेल कसकर उनके मनसूबों पर पानी फेर कर किसानों को आर्थिक नुक्सान उठाने से बचाया जा सके। 

फसल की बिजाई के दौरान अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में नकली बीज व दवाइयां बेचने वाले लोग सक्रीय हो जाते हैं। किसानों को इनके चुंगल से बचाने के लिए जिला कृषि उपनिदेशक के निर्देशानुसार बीज व खाद की दुकानों पर जाकर सैंपल लेने का अभियान शुरू किया गया है। इस अभियान के तहत पूरे जिले की सभी बीज व खाद की दुकानों पर जाकर सैंपल लिए जा रहे हैं।
अनिल नरवाल, ए.पी.पी.ओ. कृषि विभाग, जींद

चली आओ म्हारे देश 'लाडो'


गर्भ में मारी गई अजन्मी कन्याओं की आत्मा की शांति के लिए हवन में आहुति डालकर दिलवाते हैं शपथ 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए लोगों को जागरूक करने के अलावा जिले के युवाओं द्वारा एक अनोखी मुहिम शुरू की गई है। 'बेटी बचाओ सृष्टि बचाओ अभियान' के तहत युवाओं द्वारा लोगों को कन्या भ्रूण हत्या नहीं करवाने के लिए जागरूक करने के लिए जागरूकता रैली निकाली जाती है। रैली के समापन पर गर्भ में मारी गई अजन्मी कन्याओं की आत्मा की शांति के लिए लोगों से हवन में आहुति डलवाकर उन्हें कन्या भ्रूण हत्या नहीं करवाने की शपथ दिलवाई जाती है। इस मुहिम की खास बात यह है कि अधिक से अधिक लोगों को इस मुहिम से जोडऩे के लिए इसमें किसी व्यक्ति विशेष का प्रचार नहीं कर 'आप और हम' के स्लोगन के साथ इसे आगे बढ़ाया जा रहा है। जींद जिले में इस अभियान को सफल बनाने के बाद इनका अगला टारगेट प्रदेश स्तर पर इस अभियान को चलाकर पूरे प्रदेश में अपनी टीमें तैयार करना है।  
 शहर में रैली निकाल कर लोगों का जागरूक करते युवा
'लाडो' को बचाने के लिए जिले में पिछले काफी समय से मुहिम चली हुई है। भिन्न-भिन्न सामाजिक संगठनों व संस्थाओं द्वारा कार्यक्रमों का आयोजन कर भ्रूण हत्या को रोकने के लिए लोगों को जागरूक करने का काम किया जा रहा है। कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा तो कन्या भ्रूण हत्या की इस मुहिम को कारगर बनाने के लिए सोशल साइटों को भी हथियार बनाया गया है लेकिन इन कार्यक्रमों में कहीं न कहीं किसी व्यक्ति विशेष का नाम जुड़ा होने के कारण लोग इस सामाजिक कार्य को भी उस व्यक्ति के पर्सनल हित के साथ जोड़कर देखते हैं। अजन्मी कन्या को बचाने की इस मुहिम में लोगों को व्यक्तिगत हित नजर आने के कारण लक्ष्य से इनका निशाना चुक जाता है। लेकिन अब जिले के युवाओं ने लाडो को बचाने की इस मुहिम को अपने लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए अलग रास्ता अपनाया है। इसके लिए जिले में 'बेटी बचाओ सृष्टि बचाओ अभियान' चलाया गया है। इस अभियान से जुड़े युवाओं द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को महत्व न देकर 'आप और हम' के स्लोगन के साथ इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा रहा है। इस अभियान के तहत कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए गांवों, कस्बों व शहरों में लोगों से संपर्क साधा जा रहा है। लोगों को जागरूक करने के लिए पहले तो जागरूकता रैली निकाली जाती है और रैली के समापन के बाद गर्भ में मारी गई कन्याओं की आत्मा की शांति के लिए हवन का आयोजन किया जाता है। हवन में लोगों से आहुति डलवाकर उन्हें कन्या भ्रूण हत्या नहीं करवाने की शपथ दिलवाई जाती है। इस अभियान से जुड़े युवाओं का मानना है कि उनका उद्देश्य अपनी व्यक्तिगत पहचान बनाना नहीं है। उनका उद्देश्य तो इस सामाजिक बुराई को जड़ से मिटाना है। इनका मानना है कि एक दिन इस मसले पर कार्यक्रम का आयोजन करने से यह बुराई मिटने वाली नहीं है। इसके लिए तो गली-गली, गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करना होगा। इन युवाओं द्वारा जींद, नरवाना व पिल्लुखेड़ा हलकों में जागरूकता रैली निकालकर हजारों लोगों को इस मुहिम के साथ जोड़ा है। इसके अलावा इन युवाओं द्वारा गांवों में युवा संगठनों का गठन किया जा रहा है और संगठन के सदस्यों को उनके क्षेत्र में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। जिले के सभी हलकों में अपनी टीम तैयार करने के बाद इनका अगला टारगेट पूरे प्रदेश में जागरूकता रैलियां निकाल कर अपनी टीम तैयार करना है। 

कन्या के हत्यारों को पकड़ वालों को मिलेगा 50 हजार का ईनाम

बेटी बचाओ सृष्टी बचाओ अभियान से जुड़े इन युवाओं ने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कन्या भ्रूण हत्या करवाने वालों को पकड़वाने वालों के लिए ईनाम की घोषणा भी की गई है। कन्या के हत्यारों को पकड़वाने वालों को इन युवाओं द्वारा 50 हजार रुपए का ईनाम दिया जाएगा। 


प्रतिबंध दवाइयां बेचने वाले मैडीकल स्टोर संचालकों के खिलाफ विभाग ने खोला मोर्चा


एक दर्जन से ज्यादा लाइसैंस किए रद्द 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। ड्रग कंट्रोल विभाग ने जिले में नशे के खिलाफ विशेष मुहिम छेड़ी है। विभाग द्वारा इस मुहिम के तहत मैडीकल स्टोरों पर प्रतिबंधित दवाइयां बेचते हुए पकड़े जाने वाले स्टोर संचालकों के लाइसैंस रद्द किए जा रहे हैं। विभाग ने इस कड़ी के तहत अभी तक एक दर्जन से ज्यादा मैडीकल स्टोर संचालकों के लाइसैंस रद्द कर उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की है। इसके अलावा विभाग द्वारा झोला छाप डाक्टरों पर भी शिकंजा कसा है।
मैडीकल स्टोरों पर नशीली व प्रतिबंधित दवाइयां बेचने वाले मैडीकल स्टोर संचालकों को सबक सिखाने के लिए ड्रग कंट्रोल विभाग द्वारा सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। विभाग द्वारा शुरू की गई इस मुहिम का मुख्य उद्देश्य नशीली दवाइयों की बिक्री पर रोक लगाकर जिले को नशा मुक्त बनाना है। जिला कंट्रोल विभाग द्वारा सीनियर ड्रग कंट्रोल अधिकारी परङ्क्षजद्र ङ्क्षसह के निर्देशानुसार यह अभियान चलाया गया है। विभागीय अधिकारियों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार अभी तक विभाग ने अपने इस अभियान के तहत मैडीकल स्टोर पर नशील दवाइयां बेचते पाए जाने पर 12 से अधिक मैडीकल स्टोरों के लाइसैंस रद्द किए हैं। लाइसैंस रद्द करने के अलावा कई मैडीकल स्टोर संचालकों के खिलाफ तो अधिकारियों ने विभागीय कार्रवाई भी की है। इसके अलावा शहर के गोहाना रोड पर स्थित 2 मैडीकल स्टोर संचालकों के खिलाफ लगातार मिल रही शिकायतों के आधार पर दोनों मैडीकल स्टोरों को बंद करवा दिया है।

झोला छाप डाक्टरों पर भी कसा शिकंजा

ड्रग कंट्रोल विभाग ने जिले में झोला छाप डाक्टरों पर भी अपना शिकंजा कसना शुरू किया है। इसके लिए विभाग द्वारा टीम तैयार कर समय-समय पर ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया जा रहा है। विभाग द्वारा इस मुहिम के तहत रामराये गांव में पकड़े गए एक झोला छाप डाक्टर के खिलाफ ड्रग एक्ट 27 के तहत मामला दर्ज किया गया है। विभाग द्वारा शुरू की गई इस मुहिम से झोला छाप डाक्टरों में हड़कंप मचा हुआ है।

विभाग द्वारा मैडीकल स्टोरों पर प्रतिबंधित व नशीली दवाइयां बेचने वाले स्टोर संचालकों पर नकेल कसने के लिए यह अभियान चलाया गया है। कई मैडीकल स्टोर संचालक स्टोर की आड़ में अपना नशीली दवाइयों का कारोबार चला रहे थे। इसके अलावा विभाग द्वारा लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ करने वाले झोला छाप डाक्टरों पर भी शिकंजा कसा जा रहा है। नियमों की उल्लंघना करने वालों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी की जा रही है।
डा. सुरेश चौधरी
जिला ड्रग कंट्रोल अधिकारी

महिला पाठशाला की मानीटरिंग के लिए ललीतखेड़ा पहुंची कृषि विभाग के अधिकारियों की टीम


कहा: अगले वर्ष प्रदेश स्तर से शुरू होगी जहर से मुक्ति दिलवाने की मुहिम

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कृषि विभाग की आत्मा स्कीम के तहत ललीतखेड़ा गांव में चल रही प्रदेश की एकमात्र महिला पाठशाला की निगरानी व पर्यवेक्षण के लिए शनिवार को कृषि मंत्रालय से अवर सचिव आर.एस. वर्मा तथा कृषि विस्तार प्रबंधन राष्ट्रीय संस्थान हैदराबाद की उप निदेशक डा. लक्ष्मी मूर्ति ललीतखेड़ा पहुंची। पाठशाला की मानिटङ्क्षरग के लिए पहुंचे दोनों अधिकारी पाठशाला की महिलाओं व मास्टर ट्रेनरों से रू-ब-रू हुए। महिलाओं की उपलब्धियों को देखते हुए विभागीय अधिकारियों ने महिलाओं व मास्टर ट्रेनरों की पीठ थपथपाई, वहीं पाठशाला की महिलाएं भी विभागीय अधिकारियों को अपने बीच पाकर गदगद थी। इस अवसर पर उनके साथ उपमंडल अधिकारी सुरेंद्र मलिक, खंड कृषि विकास अधिकारी डा. जे.पी. शर्मा, डा. सुरेंद्र दलाल व विषय विशेषज्ञ दीपिका भनवाला भी मौजूद थी। 
अधिकारियों को जानकारी देते ललीतखेड़ा की महिलाएं।

 महिलाओं से बातचीत करते विभागीय अधिकारी। 
महिला किसान मिनी, सविता, अंग्रेजो, यशवंती, सविता, शीला ने विभागीय अधिकारियों को पाठशाला के दौरान खोजे गए 119 मासाहारी व 43 शाकाहारी कीटों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। महिला किसानों ने बताया कि किसानों को बीमारी व कीटों के बीच के अंतर के बारे में जानकारी नहीं है। किसान पथभ्रष्ट होकर कीटनाशकों के माध्यम से कीटों को नियंत्रण करना चाहते हैं। महिलाओं ने बताया कि 'कीट नियंत्रणाय कीटा हि: अस्त्रामोघा' अर्थात कीट ही कीटों को नियंत्रण करने में सहायक हैं। कीटों को नियंत्रण करने के लिए कीटनाशकों की आश्यकता नहीं है। अनिता मलिक ने बताया कि उसने अपनी 7 कनाल जमीन पर बिना कीटनाशक का प्रयोग किए धान की 1121 किस्म की 40 मण की पैदावार ली है। महिलाओं ने बताया कि आज कोई भी किसान यह मानने को तैयार नहीं है कि बिना कीटनाशकों के भी खेती हो सकती है लेकिन पाठशाला में आने वाली अन्य महिलाओं ने ऐसे किसानों के इस सवाल का जवाब प्रमाण के साथ दिया है। उन्होंने इस बार बिना कीटनाशकों के कपास व धान की अच्छी पैदावार ली है। महिलाओं ने बताया कि कृषि विभाग द्वारा सिर्फ 6 सत्र के लिए पाठशाला चलाने की योजना थी लेकिन यहां की महिलाओं ने विभाग पर बिना कोई अतिरिक्त बोझ डाले कपास की फसल के पूरे सीजन इस पाठशाला को चलाया है। विभागीय अधिकारियों ने महिलाओं की उपलब्धियों को देखते हुए उनकी इस मुहिम को अगले वर्ष प्रदेश स्तर पर चलाकर पूरे प्रदेश में फैलाने का आश्वासन दिया, ताकि प्रदेश के अन्य किसान भी जहर से मुक्ति पा सकें। इस अवसर पर उनके साथ मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक व मनबीर रेढ़ू भी मौजूद थे। 

अधिक उत्पादन के लिए खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या व सिंचाई के लिए नहरी पानी जरूरी

सविता ने विभागीय अधिकारियों को बताया कि आज किसान पथभ्रष्ट होकर अधिक उत्पादन की चाह में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर रहा है। इससे हमारा खान-पान व पर्यावरण दूषित हो रहा है। उन्होंने बताया कि अच्छे उत्पादन के लिए खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या के साथ-साथ ङ्क्षसचाई के लिए नहरी पानी की अहम भूमिका होती है। सविता ने बताया कि ललीतखेड़ा व आस-पास के गांवों का भूमिगत पानी खेती के योज्य नहीं है और यहां के किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त नहरी पानी नहीं मिल पाता है। नहरों में थोड़ा बहुत जो पानी आता है वह चोरी हो जाता है। ऐसे में सीमांत व छोटे किसानों के लिए विकराल समस्या पैदा हो चुकी है।  



शनिवार, 17 नवंबर 2012

सबसिडी के बाद भी बाजार से कम रेट पर नहीं मिल रहा है गेहूं का बीज


सरकार द्वारा सबसिडी के नाम पर हरियाणा बीज विकास निगम को दिए जाते हैं करोड़ों रुपए

नरेंद्र कुंडू
जींद। सरकार द्वारा गेहूं के बीज पर सबसिडी दिए जाने के बावजूद भी किसानों को गेहूं का बीज बाजार से कम रेट पर नहीं मिल पा रहा है। हरियाणा बीज विकास निगम (एच.एस.डी.सी.) किसानों को जिस रेट पर बीज उपलब्ध करवा रहा है, उसी रेट पर किसानों को बाजार में गेहूं का बीज मिल रहा है। जबकि निगम द्वारा सबसिडी देकर किसानों को यह बीज बाजार से कम भाव पर मुहैया करवाना होता है। निगम द्वारा किसानों को दिए जा रहे सबसिडी व बिना सबसिडी के बीज के भाव लगभग एक समान हैं। इस प्रकार निगम सरकार से बीज पर सबसिडी लेने के बाद भी किसानों को बाजार से कम रेट पर बीज मुहैया नहीं करवा रही है। 
 निगम की वेबसाइट पर दर्शाया गया सबसिडी वाले बीज का रेट चार्ट।
सरकार द्वारा किसानों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने के लिए किसानों को उन्नत किस्म की फसलों के लिए प्रेरित किया जा रहा है। किसानों को अच्छी किस्म के गेहूं का बीज उपलब्ध करवाने के लिए सरकार द्वारा वर्ष 2012-13 के लिए हरियाणा बीज विकास निगम के माध्यम से किसानों को सबसिडी पर गेहूं का बीज दिया जा रहा है। इसके लिए सरकार हरियाणा बीज विकास निगम को गेहूं के बीज पर प्रति क्विंटल पर 500 रुपए की सबसिडी दे रही है। सरकार से गेहूं के बीज पर अनुदान लेने के बाद निगम द्वारा किसानों को सबसिडी पर गेहूं का बीज उपलब्ध करवाना होता है लेकिन सरकार से अनुदान मिलने के बाद भी निगम किसानों को बाजार से कम रेट पर गेहूं का बीज उपलब्ध नहीं करवा पा रही है। निगम द्वारा सबसिडी वाले बीज का रेट 2550 रुपए प्रति क्विंटल रखा गया है। 500 रुपए की सबसिडी के बाद किसानों को यह बीज 2050 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से दिया जा रहा है। इस प्रकार निगम द्वारा किसानों को उन्नत किस्म के गेहूं का 40 किलो का बैग 820 रुपए में मुहैया करवाया जा रहा है। जबकि बाजार में भी किसानों को इसी भाव पर यह बीज मिल रहा है। इसके अलावा निगम द्वारा किसानों को बिना सबसिडी वाला गेहूं का बीज 2150 रुपए प्रति क्विंटल यानि 40 किलो का बैग 860 रुपए के भाव पर दिया जा रहा है। जबकि दोनों किस्मों के बीज निगम खुद ही तैयार करती है और दोनों ही किस्मों के बीज तैयार करने पर खर्च भी एक समान ही आता है। अब यहां सवाल यह उठ रहा है कि जब दोनों ही किस्मों के बीज निगम खुद तैयार करती है और दोनों के तैयार करने पर खर्च भी बराबर ही आता है तो इनके रेटों में इतना अंतर क्यों है? निगम के अधिकारियों के इस दोहरे रवैये के कारण सरकार की किसानों को उन्नत किस्मों की खेती के लिए प्रेरित करने की योजना को करारा झटका लग रहा है। सरकार द्वारा उन्नत किस्म के बीज पर सबसिडी के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी किसानों को सरकार की इस योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। 

गेहूं की इन किस्मों पर दी जा रही है सबसिडी  

पी.बी.डब्ल्यू. 502, 509, डब्ल्यू.एच. 711, डी.बी.डब्ल्यू. 17, पी.बी.डब्ल्यू. 550, डब्ल्यू.एच. 1021, डी.बी.डब्ल्यू. 621, एच.डी. 2851, 2894, पी.बी.डब्ल्यू. 590
बिना सबसिडी के बीज का रेट प्रति क्विंटल 2550 व 500 रुपए की सबसिडी के बाद 2050
बिना सबसिडी वाले बीज
डब्ल्यू.एच. 283, पी.बी.डब्ल्यू. 343, यू.पी. 2338, डब्ल्यू.एच. 542 
प्रति क्विंटल बीज का रेट 2150 रुपए 

ऊपर से होते हैं रेट तय 

सबसिडी व बिना सबसिडी वाले बीज के रेट विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा तय किए जाते हैं। बीज के रेट निर्धारित करते समय कृषि विभाग के उच्च अधिकारियों से भी विचार-विमर्श किया जाता है। बीज की क्वालिटी के आधार पर ही बीज के रेट तय किए जाते हैं। 
राजबीर धनखड़, रीजनल मैनेजर
हरियाणा बीज विकास निगम, हिसार


रविवार, 11 नवंबर 2012

.....मैडम जी म्हारा के कसूर सै ?

पिछले 3 माह से चले आ रहे प्राचार्या व अध्यापाकों के विवाद में बाधित हो रही है बच्चों की पढ़ाई

नरेंद्र कुंडू
जींद। ईंटलकलां गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में पिछले 3 माह से प्राचार्या व अध्यापकों के बीच चले आ रहे विवाद से बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है। इससे बच्चों का भविष्य खतरे में है। प्राचार्या व अध्यापकों के इस विवाद को देखते हुए स्कूल के बच्चों पर तो हरियाणावी कहावत झोटयां की लड़ाई में झूंडां का खो वाली कहावत सटीक बैठ रही है। पिछले 3 माह से चली आ रही इस लड़ाई में प्राचार्या या अध्यापकों को तो शायद ही कुछ नुक्सान उठाना पड़े या ना पड़े लेकिन इसमें बच्चों को तो पढ़ाई का नुक्सान उठाना ही पड़ेगा। 3 माह के लंबे अंतराल के बावजूद भी विभाग प्राचार्या व अध्यापकों के बीच चली आ रही चौधर की इस जंग को शांत नहीं करवा पाया है। दोबारा से प्राचार्या लता सैनी को इसी स्कूल का चार्ज मिलने के बाद अब अध्यापक यहां से अपना तबादला करवाने पर अड़े हुए हैं। उधर प्राचार्या भी इस स्कूल से अपने तबादले की मांग कर रही है। इसके चलते दोनों पक्षों से शुक्रवार को स्कूल में मामले की जांच के लिए पहुंची एस.सी.ई.आर.टी. की निदेशिका स्नेहलता अहलावत को अपने तबादले के लिए लिखित में पत्र सौंपा है। आगामी 20 नवंबर को परीक्षाएं शुरू होने जा रही हैं लेकिन प्राचार्या व अध्यापकों के इस विवाद के कारण बच्चों का सिलेबस अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। ऐसे में अब स्कूल में पढऩे वाले लगभग 400 बच्चों को अपनी पढ़ाई की ङ्क्षचता सताने लगी है। क्योंकि प्राचार्या व अध्यापकों के इस विवाद का नुक्सान तो आखिरी इन बच्चों को ही उठाना पड़ेगा। बिना वजह अपने भविष्य को दाव पर लगाने वाले इन बच्चों के मुहं से एक ही सवाल निकलता है कि मैडम जी म्हारा के कसूर सै? 

कैसे होगा सिलेबस पूरा 

पिछले 3 माह से चले आ रहे प्राचार्या व अध्यापकों केे इस विवाद के बाद अब दोनों पक्ष यहां से तबादले की मांग कर रहे हैं। 15 अध्यापकों के स्टाफ में से विवाद के चलते 3 अध्यापकों के तबादले पहले ही हो चुके हैं और अब बचे 12 अध्यापकों ने भी एस.सी.ई.आर.टी. की निदेशिका को अपने तबादले के लिए लिखित में शिकायत दी है। अगामी 20 नवंबर से परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं और बच्चों का सिलेबस अभी तक पूरा नहीं हो पाया है लेकिन अध्यापक बच्चों का सिलेबस पूरा करवाने की बजाए अपने तबादले पर अड़े हुए हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर यहां से सभी अध्यापकों का तबादला हो जाता है तो क्या विद्यालय में आने वाले नए अध्यापक समय रहते इन बच्चों का सिलेबस पूरा करवा पाएंगे। 

तबादले के लिए लिखित में दिया है पत्र

गांव ईंटलकलां के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में कार्यरत एस.एस. मास्टर ओमप्रकाश, सूरजभान, मैथ मास्टर रामनिवास, वीरभान, संस्कृत मास्टर सत्यवान, ङ्क्षहदी अध्यापिका लक्ष्मी, ड्राइंग अध्यापक महाङ्क्षसह, पी.टी.आई. राजेंद्र ने बताया कि प्राचार्या लता सैनी के कार्यभार संभालते ही स्कूल का शैक्षणिक माहौल बिगड़ गया है। स्कूल में बाहरी लोगों का आवागमन फिर से शुरू हो गया है। इससे अध्यापक सामाजिक असुरक्षा महसूस करने लगे हैं। ऐसे माहौल में वो बच्चों को पढ़ाने में असमर्थ हैं। विभाग की एकतरफा जांच से स्कूल के सभी अध्यापक असुंष्ट हैं और इसलिए वे यहां से अपने तबादले के लिए एस.सी.ई.आर.टी. निदेशक स्नेहलता अहलावत को लिखित में पत्र देकर अपना तबादला करवाना चाहते हैं। 

अध्यापकों को बच्चों की पढ़ाई से नहीं कोई सरोकार
 अपने तबादले के लिए निदेशिका को पत्र लिखती अध्यापिकाएं।

प्राचार्या लता सैनी ने कहा कि अध्यापकों का बच्चों की पढ़ाई से कोई सरोकार नहीं है। इसीलिए उनके बहाल होते ही अध्यापक कक्षाएं छोड़ कर बी.ई.ई.ओ. कार्यालय में चले गए। वे किसी भी सूरत में बच्चों की पढ़ाई को बाधित नहीं होने देना चाहती हैं। चाहे इसके लिए विभाग उनका तबादला कहीं और क्यों न कर दे। उन्हें तो शिक्षा विभाग का काम करना है चाहे वो यहां रह कर करें या कहीं और। वे अपने तबादले के लिए विभाग के अधिकारियों से पहले ही गुहार लगा चुकी हैं।

नहीं है किसी भी पक्ष से सहानुभूति

गांव ईंटल कलां के सरपंच महाबीर ने कहा कि प्राचार्या व अध्यापकों के इस विवाद के कारण पिछले तीन  माह से स्कूल का शैक्षणिक माहौल गड़बड़ा गया है। उन्हें न तो अध्यापकों से कोई सहानुभूति है और न ही प्राचार्या से। उन्हें हर हाल में बच्चों की पढ़ाई सुचारू रूप से चाहिए, चाहे इसके लिए शिक्षा विभाग पूरे स्टाफ का तबादला ही क्यों न कर दे। 

बच्चों की पढ़ाई को नहीं होने दिया जाएगा बाधित

मामले की जांच के लिए शुक्रवार को विद्यालय में पहुंची एस.सी.ई.आर.टी. निदेशिका स्नेहलता अहलावत ने कहा कि दोनों पक्षों को बुलाकर उनकी बात सुनी गई है और दोनों ही पक्षों से लिखित में उनकी शिकायतें ले ली गई हैं। मुख्यालय में जाकर जांच रिपोर्ट तैयार की जाएगी। इसी जांच रिपोर्ट के आधार पर आगामी कार्रवाई की जाएगी। स्कूल की व्यवस्था तथा बच्चों की पढ़ाई को किसी भी सूरत में बाधित नहीं होने दिया जाएगा। बच्चों की पढ़ाई को सुचारू रूप से चलाने के लिए ही वे खुद यहां चलकर आई हैं। 


शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

सावधान ! कहीं सेहत पर भारी न पड़ जाए पनीर व मावे का शौक

त्यौहारी सीजन पर बढ़ी दूध की मांग, सिंथेटिक दूध माफिया सक्रिय

गंदगी में तैयार हो रहा है पनीर, गिरोह के गिरेबान तक नहीं पहुंच रहे अधिकारियों के हाथ

नरेंद्र कुंडू
जींद। त्यौहारी सीजन शुरू होते ही दूध की मांग भी बढ़ गई है। दूध की बढ़ती मांग को देख सिंथेटिक दूध माफिया सक्रिय हो गए हैं। सिंथेटिक दूध माफिया कैमीकल की सहायता से ऐसा दूध तैयार कर रहे हैं, जिसकी पहचान आसान नहीं है। ऐसे में फूड सेफ्टी विभाग की टीम के हाथ भी इनके गिरेबान तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। इससे लोगों के स्वास्थ्य पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है।
त्यौहारों की वजह से अचानक बाजार में दूध, घी और मावा की डिमांड कई गुना बढ़ गई है। यही डिमांड मिलावट को जन्म देती है। लोगों की डिमांड को पूरा करने के लिए नकली दूध, घी और मावा बनाने वाले त्यौहारों के मौसम में हरकत में आ जाते हैं। नकली मिठाई और थेटिक दूध से गंभीर बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। फिलहाल दीपावली पर्व को देखते हुए कारीगर दूध से बनने वाली वस्तुओं को बनाने में लगे हुए हैं, वहीं शादी समारोह का सीजन शुरू होने के कारण भी दूध की डिमांड को ओर बढ़ा दिया है। जिसके चलते दूध के उत्पादन व डिमांड में भारी अंतर हो गया है। ऐसे में दूध की बढ़ती डिमांड को पूरा करने के लिए जिले में सिंथेटिक दूध माफिया ने अपने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं। त्यौहारों व शादी के सीजन के कारण इन दिनों पनीर और खोआ की डिमांड अधिक होने लगी है। ऐसे में इस कारोबर से जुड़े लोग लगातार लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। लेकिन फूड सेफ्टी विभाग की टीम के हाथ भी इन माफियाओं के गिरेबान तक नहीं पहुंच रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि विभाग द्वारा भी सैंपल लेने के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है। इससे सिंथेटिक दूध माफियाओं के हौंसले ओर भी बुलंद हो रहे हैं। शहर में जहां पर मावा व पनीर तैयार किया जा रहा है वहां की स्थिति को देखा जाए तो पनीर को खाने के शौकिन लोगों का निवाला गले नहीं उतरेगा। जहां पनीर को बनाने में मिलावट की जा रही है, वहीं इसको असली पनीर का रूप देने के लिए तरह-तरह के रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है। शहर में अमरहेड़ी रोड पर ही सबसे ज्यादा पनीर बनाने का काम किया जाता है। जहां पर एक दर्जन से अधिक पनीर बनाने की दुकानें चल रही हैं। पनीर के इस कारोबार से जुड़े लोगों का दावा है कि वह पूरी तरह से असली दूध से ही और शुद्ध पनीर का निर्माण कर रहे हैं। पनीर के लिए दूध अमरहेड़ी रोड पर चल रही पशु डायरियों से लिया जाता है, लेकिन अगर इन डायरियों की स्थिति देखी जाए तो इन डायरियों में घरों में दूध ले जाने वाले लोगों का ही पूरा दूध नहीं हो रहा है। ऐसे में इन पनीर के कारोबार से जुड़े लोगों के पास दूध कैसे पहुंच सकता है। इसलिए दूध का उत्पादन व डिमांड समान न होने के चलते इस पर शक की सूई घूम रही है।

गंदगी में तैयार किया जा रहा पनीर

शहर के अमरहेड़ी रोड पर चल रही पनीर बनाने की दुकानों के पास गंदगी का आलम है। कारीगरों द्वारा जिन बर्तनों में पनीर बनाया जा रहा है उनमें कई-कई दिनों की गंदगी जमी हुई। ऐसे में इन्हीं बर्तनों में हर रोज पनीर तैयार किया जा रहा है। ऐसे में इन बर्तनों में मक्खियां व मच्छर भिनभिनाने के साथ-साथ दुर्गंध उठी रहती है। ऐसे में दूध व पनीर की मिलावट के साथ-साथ गंदगी भी पनीर के माध्यम से लोगों को परोसी जा रही है। दूध के कारोबर से जुड़े एक व्यक्ति ने नाम ने छापने की शर्त पर बताया कि दीपावली पर्व व शादी समारोह का सीजन शुरू होने के साथ ही नकली दूध व पनीर के कारोबार ने गति पकड़ ली है। सिंथेटिक दूध में पोस्टर कलर, डेस्ट्रीजन पाउडर, रिफाइंड, मिल्क पाउडर, हाइड्रोजन पर ऑक्साइड, फार्मलीन का प्रयोग किया जाता है। इन वस्तुओं का प्रयोग करके लोग मिनटों में ही हजारों लीटर दूध तैयार कर देते हैं। जिसके बाद इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा पनीर बनाने में रसानियक पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। अगर कोई दुकानदार असली दूध से पनीर भी बनाता है तो उसमें रासानिक पदार्थ ज्यादा डाले जाते हैं, ताकि जल्द से जल्द पनीर तैयार हो सके।

सख्ती से निपटा जाएगा मिलावट खोरों से 

इस बारे में फूड इंस्पैक्टर एन.डी. शर्मा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि खाद्य वस्तुओं में किसी भी प्रकार की मिलावट करना कानूनी जूर्म है। मिलावटखोरों पर नकेल डालने के लिए दुकानों पर  छापेमारी की जा रही है। मिठाइयों के अलावा दूध व पनीर के सैंपल लेकर जांच के लिए भेजे गए हैं। मिलावटखोरों से सख्ती से निपटा जाएगा।
फोटो कैप्शन
07जेएनडी 13, 14 व 15 : गंदगी में पनीर व मावा तैयार करते हुए कारीगर। (सुनील)

... ताकि कम हो सके थाली से जहर


निडाना के अलावा जिले के अन्य गांवों के किसानों ने भी कीटनाशक रहित खेती की तरफ बढ़ाए कदम

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर की दूरी पर स्थित निडाना गांव की धरती से 4 साल पहले उठी कीट ज्ञान की चिंगारी अब क्रांति का रूप लेने लगी है। इस क्रांति का प्रभाव जिले के अन्य गांवों में भी देखने को मिल रहा है। निडाना की किसान खेत पाठशाला से कीट ज्ञान हासिल कर जिले के कई गांवों के किसान अब निडाना गांव के किसानों की तर्ज पर कीटनाशक रहित खेती की राह पकड़ चुके हैं और इससे किसानों को सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं। किसान बिना किसी पेस्टीसाइड का प्रयोग किए फसल का अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। मुहिम को मिल रहे अच्छे रिस्पांश से एक बात साफ हो रही है कि लोगों की थाली से जहर कम करने के लिए निडाना के किसानों द्वारा शुरू की गई इस मुहिम का रंग अब जिले के अन्य किसानों पर भी चढऩे लगा है। अब यह किसान अपने-अपने क्षेत्र के किसानों के लिए रोल मॉडल बनकर उभरेंगे और दूसरे किसानों को भी कीटनाशक रहित खेती के लिए प्रेरित करेंगे। 
अलेवा गांव के प्रगतिशील किसान जोगेंद्र ने बताया कि उसने एम.ए. तक पढ़ाई की है तथा एम.ए. के अलावा भिन्न-भिन्न कोर्स के 17 डिप्लोमे भी किए हुए है। जोगेंद्र ने बताया कि वह 1988 से कृषि के क्षेत्र से जुड़ा हुआ है तथा वह अपने खेती-बाड़ी का पूरा लेखाजोखा रखता है। जोगेंद्र ने बतया कि पहले जब उसका परिवार सामूहिक था तो वे 28 एकड़ की खेती करते थे लेकिन अब 2 वर्षों से जमीन का बटवारा हो चुका है और वह अब सिर्फ 5 एकड़ की ही खेती करता है। जोगेंद्र ने खेतीबाड़ी का अपना लेखाजोखा दिखाते हुए बताया कि 1988 से लेकर अब तक उसके परिवार द्वारा पेस्टीसाइड पर खर्च लगभग 74 लाख रुपए खर्च किए जा चुके हैं। जोगेंद्र ने बताया कि उसने निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला से जुड़कर कीट ज्ञान हासिल किया और अब उसे 32 कीटों की पहचान है। निडाना के किसानों से प्रभावित होकर इस वर्ष उसने बिना कीटनाशक खेती की है और उसके उत्पादन में कोई कमी नहीं हुई है। 
वरिष्ठ पशु चिकित्सक राजबीर चहल ने बताया कि वह नौकरी के साथ-साथ 30 एकड़ में खेती करता है। इस बार उसने 30 एकड़ में धान की फसल लगाई हुई है। चहल ने बताया कि पेस्टीसाइड पर हर वर्ष उसका एक लाख रुपए खर्च हो जाते थे लेकिन इस वर्ष उसने 25 एकड़ में एक छटांक भी पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं किया है। इस बार उसने सिर्फ ङ्क्षजक, यूरिया व डी.ए.पी. के मिश्रण का घोल तैयार कर छिड़काव किया है और उत्पादन भी अन्य किसानों के बराबर है। चहल ने कहा कि अगले वर्ष वह अन्य किसानों को भी कीटनाशक रहित खेती के लिए प्रेरित करेंगे। 
राजपुरा भैण निवासी बलवान ने बताया कि वह ढाई एकड़ में कपास की खेती करता है और इसमें उसे हर वर्ष 5 हजार रुपए का खर्च आता था। बलवान ने बताया कि अकेले उसके गांव में हर वर्ष 3 करोड़ रुपए के कीटनाशकों का प्रयोग होता है। वह पिछले 4 वर्षों से किसान खेत पाठशाला से जुड़ा हुआ था लेकिन वह बिना पेस्टीसाइड की खेती के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाता था। इस बार उसने अपनी ढाई एकड़ की फसल में एक बूंद भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। 
फरमाना निवासी संजय ने बताया कि उसने पहली बार कपास की खेती की है। मोर पंजे के कारण उसकी एक एकड़ की फसल खराब हो गई थी लेकिन उसने ङ्क्षजक, यूरिया व डी.ए.पी. का घोल तैयार कर 4 बार इसका छिड़काव किया। इस बार उसकी कपास की फसल में प्रति पौधा 60 से 80 ङ्क्षटड्डे आए, जिनसे उसने 4 बार कपास की चुगवाई कर ली है और कम से कम एक बार ओर कपास की चुगवाई की जानी है।
किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा करते वरिष्ठ पशु चिकित्सक।
निडाना निवासी सुरेश तथा लाखनमाजरा निवासी नारायण ने बताया कि अमरूद का बाग है। पहले फलों को फ्रूट फ्लाई व अन्य बीमारियों से बचाने के लिए वे कीटनाशकों का प्रयोग करते थे। इससे फल का टेस्ट भी बदल जाता और फल की गुणवता में भी कमी आती थी। सुरेश व नारायण ने बताया कि अब वह फलों पर किसी भी प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करते हैं और बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। कीटों की पहचान होने के कारण अब उन्हें कीटों व बीमारी के बीच का अंतर पता चल गया है। इसके अलावा खरक रामजी निवासी रोशन, ईंटल कलां निवासी चत्तर ङ्क्षसह तथा रधाना निवासी जगङ्क्षमद्र ङ्क्षसह भी इन किसानों की तरफ बिना पेस्टीसाइड के अच्छा उत्पादन लिया है। 



मिलावटखोरों के सामने बौना साबित हो रहा फूड सेफ्टी विभाग


पिछले वर्ष लिए गए सैंपलों पर अभी तक नहीं हुई कार्रवाई

नरेंद्र कुंडू
जींद।  त्यौहारी सीजन के दौरान मिलावटखोरों पर नकेल कसने में फूड सेफ्टी विभाग भी बेबस नजर आ रहा है। नई मिलावटी मिठाई बाजार में आ चुकी है लेकिन विभाग अभी तक पिछले वर्ष मिलावटी मिठाई बेचकर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाया है। पिछले वर्ष दीपावली के अवसर पर विभाग द्वारा लगभग 65 सैंपल लिए गए थे। इनमें से अब तक सिर्फ 50 के लगभग सैंपलों की रिपोर्ट ही विभाग के पास पहुंची है, जिनमें से भी सिर्फ 5 ही सैंपल संदेह के घेरे में आए हैं लेकिन विभाग अभी तक इनके खिलाफ भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाया है। एक वर्ष की लंबी अवधि बीत जाने के बाद भी अभी तक इन पांचों सैंपलों का केस अतिरिक्त उपायुक्त के पास ही विचाराधीन हैं। इस प्रकार जांच प्रक्रिया लंबी व धीमी होने के कारण विभाग मिलावटखोरों के सामने बौना साबित हो रहा है। 

त्यौहारी सीजन के दौरान मिलावटखोरी को रोकने के लिए फूड सेफ्टी विभाग हर वर्ष विशेष अभियान चलाता है। इस अभियान के तहत मिठाइयों की दुकानों से सैंपल भी लिए जाते हैं और इन्हें जांच के लिए लैब में भी भेजा जाता है लेकिन इसके बाद क्या होता है किसी को कुछ भी पता नहीं होता। लैब से रिपोर्ट आने में महीनों बीत जाते हैं। अगर लैब से रिपोर्ट आ भी जाती है तो सैंपल फेल होने वाले दुकानदारों पर समय रहते कार्रवाई नहीं हो पाती। फूड सेफ्टी विभाग से मिले आंकड़ों से यह बात साफ हो रही है। विभाग दीपावली पर मिलावटखोरी को रोकने के लिए नए सैंपल लेने में जुटा है लेकिन पिछले वर्ष लिए गए सैंपलों पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। विभाग द्वारा पिछले वर्ष मिठाइयों के 65 के लगभग सैंपल लिए गए थे, जिनमें से अभी तक विभाग के पास लगभग 50 ही सैंपलों की रिपोर्ट पहुंची है। इसमें से सिर्फ 5 ही सैंपल संदेह के घेरे में आए हैं लेकिन अभी तक इनके खिलाफ भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। संदेह के घेरे में आने वाले इन पांचों दुकानदारों के खिलाफ विभाग द्वारा केस तो तैयार कर दिया गया लेकिन अभी तक यह केस अतिरिक्त उपायुक्त की टेबल से आगे नहीं बढ़ पाया है। बाजारा नई मिलावटी मिठाइयों से अटा पड़ा है लेकिन विभाग अभी तक पिछले वर्ष मिलावटी मिठाइयां बेचने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाया है। एक वर्ष की लंबी अवधि बीत जाने के बावजूद अभी तक मिलावटखोरों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं होने के कारण इस बात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि मिलावटखोरों पर नकेल डालने के लिए प्रशासन कितना सक्रिय है। जांच की इस लंबी व धीमी प्रक्रिया के कारण मिलावटखोरों के जहन से विभागीय अधिकारियों का खौफ निकल जाता है।

बिना लाइसैंस के ही चल रही हैं मिठाई की दुकानें 

मिलावटी खाद्य पदार्थों को रोकने के लिए फूड सेफ्टी एक्ट के तहत विभाग ने पंजीकरण सिस्टम शुरू किया हुआ है। इसके तहत दुकानदारों को विभाग की वेबसाइट पर अपना पंजीकरण करवाकर लाइसैंस लेना होता है लेकिन विभागीय अधिकारियों के अनुसार अभी तक शहर में एक भी मिठाई विक्रेता ने लाइसैंस नहीं लिया है। शहर में बिना लाइसैंस के ही मिठाई की दुकानें चल रही हैं और खुलेआम मीठा जहर बिक रहा है। जिला प्रशासन की नाक के नीचे ही बिना लाइसैंस के मिठाई की दुकानें चलने से यह बात साफ हो जाती है कि जिला प्रशासन व विभाग मिलावटखोरी को रोकने के लिए कितना सजग है।

रिपोर्ट के आधार पर होती है कार्रवाई

इस बारे में फूड सेफ्टी विभाग के इंस्पैक्टर एन.डी. शर्मा से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि सैंपल लेने के बाद जांच के लिए लैब में भेज दिए जाते हैं। लैब से रिपोर्ट आने में समय लगता है। रिपोर्ट के आधार पर ही विभाग आगे कार्रवाई करता है। पिछले वर्ष 65 सैंपल लिए गए थे, जिनमें से 50 के लगभग सैंपलों की रिपोर्ट आ चुकी है। इसमें से 5 सैंपलों की रिपोर्ट सही नहीं है। इन पांचों सैंपलों का केस तैयार कर कार्रवाई के लिए ए.डी.सी. को सौंपा गया है। पंजीकरण करवाकर लाइसैंस लेने के लिए विभाग द्वारा समय-समय पर दुकानदारों को जागरूक किया जाता है।  



मंगलवार, 6 नवंबर 2012

अनाज मंडी की सड़कों पर खराब हो रहा धरती पुत्रों का पीला सोना


धान का सीजन शुरू होते ही खुली जिला प्रशासन व खरीद एजैंसियों के दावों की पोल

पिछले 10 दिनों से बंद है पी.आर. धान का खरीद कार्य

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिला प्रशासन व सरकारी खरीद एजैंसियों द्वारा अनाज मंडी में धान की सभी किस्मों की खरीद व उठान कार्य को तीव्रता से करने के सभी दावे खोखले साबित हो रहे हैं। सीजन शुरू होते ही जिला प्रशासन व खरीद एजैंसियों के दावों की पोल खुलनी शुरू हो गई है। शहर की रोहतक रोड स्थित नई अनाज मंडी में लगभग पिछले 10 दिनों से पी.आर. धान की खरीद नहीं हो रही है। खरीद एजैंसियों की लापरवाही के कारण धरतीपुत्रों का पीला सोना अनाज मंडी की सड़कों पर ही खराब हो रहा है। समय पर पी.आर. धान की खरीद नहीं होने के कारण अनाज मंडी में धान के ढेर लगे हुए हैं। फिल्हाल नई अनाज मंडी में लगभग 5 हजार क्विंटल पी.आर. धान बिक्री के लिए पड़ी हुई है लेकिन खरीद एजैंसियां धान की खरीद के लिए आगे नहीं आ रही हैं। खरीद एजैंसियां बारदाने की कमी बताकर खरीद कार्य से अपने हाथ पीछे खींच रही है। 
 फसल की खरीद नहीं होने पर नारेबाजी कर विरोध जताते किसान।
धान की फसल का सीजन जोरों पर है और जिला प्रशासन व सरकारी खरीद एजैंसियां धान की खरीद व उठान कार्य के पुख्ता इंतजाम का दम भर रहे हैं लेकिन वास्तविकता ही कुछ ओर है। अनाज मंडी में लगभग पिछले 10 दिनों से पी.आर. धान की खरीद नहीं हो रही है। जबकि पी.आर. धान की खरीद की जिम्मेदारी सरकारी खरीद एजैंसियों की होती है लेकिन यहां की अनाज मंडी में जिला प्रशासन व सरकारी खरीद एजैंसियों के धान की फसल के खरीद के सभी दावे खोखले साबित हो रहे हैं। समय  पर पी.आर. धान की खरीद नहीं होने के कारण किसानों को मंडी में ही डेरा डालना पड़ रहा है। खरीद एजैंसियों की लापरवाही के कारण किसानों का पीला सोना अनाज मंडी की सड़कों पर ही खराब हो रहा है। 

क्या कहते हैं किसान

पी.आर. धान को दिखाते हुए किसान।

अनाज मंडी  में धान की फसल लेकर आए गांव लजवाना खुर्द के किसान प्रदीप अहलावत व सोनू ने बताया कि उसकी फसल पिछले 10 दिनों से अनाज मंडी में पड़ी हुई है लेकिन खरीद एजैंसियां फसल में नमी का बहाना बनाकर फसल की खरीद से मना कर रहे हैं, जबकि उसकी फसल पूरी तरह से नमी रहित है। गांव कैरखेड़ी से आए किसान जगबीर ने बताया  कि वह एक सप्ताह से अपनी फसल की बिक्री के लिए अनाज मंडी में ही डटा हुआ है लेकिन एक सप्ताह बाद भी खरीद एजैंसियों द्वारा उसकी फसल की खरीद नहीं की गई है। गांव पेटवाड़ से आए किसान रोहताश, अजमेर, गांव खांडाखेड़ी से आए किसान बलवान, गांव लोहचब से आए किसान सतबीर, नगूरां गांव से आए किसान मनोज जोरड़ा ने बताया कि वे पिछले एक सप्ताह से अपनी पी.आर. धान की बिक्री के लिए 
 मंडी में फसल लेकर आए किसान जिनसे बात की गई। 
अनाज मंडी में ही डेरा डाले हुए हैं लेकिन खरीद एजैंसियां धान की खरीद नहीं कर रही हैं। समय पर फसल की खरीद नहीं होने के कारण उनका धान की कटाई व गेहूं की बिजाई के कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। इससे उन्हें आॢथक व मानसिक परेशानियों का समाना करना पड़ रहा है। 

पर्याप्त मात्रा में बारदाना उपलब्ध नहीं करवा रही हैं खरीद एजैंसियां

अनाज मंडिय़ों के कुछ आढ़तियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि खरीद एजैंसियां उन्हें पर्याप्त मात्रा में बारदाना उपलब्ध नहीं करवा रही हैं। बारदाना नहीं मिलने के कारण धान का उठान कार्य भी प्रभावित हो रहा है। आढ़तियों ने बताया कि फिल्हाल अनाज मंडी में अकेले पी.आर. धान का लगभग 5 हजार क्विंटल का स्टोक बिक्री के लिए पड़ा हुआ है। समय पर फसल की खरीद व उठान नहीं होने के कारण अनाज मंडी में पी.आर. धान के ढेर लग गए हैं और किसानों को फसल डालने के लिए पर्याप्त मात्रा में जगह उपलब्ध नहीं हो पा रही है।  

बेलगाम हैं अधिकारी

कांग्रेस सरकार के शासनकाल में अधिकारी बेलगाम हैं। अधिकारियों की लापरवाही के कारण समय पर  फसलों की खरीद नहीं हो रही है। इससे किसानों का सारा समय अनाज मंडी में ही खराब हो रहा है। किसानों को फसल का सही मूल्य नहीं मिल रहा है। जबकि इनैलो के शासनकाल में किसानों को फसल  के अच्छे भाव मिलते थे और मंडी में पहुंचते ही किसान की फसल खरीद ली जाती थी। 
सुनील कंडेला
पूर्व प्रदेश महासचिव, युवा इनैलो
समय पर की जा रही है धान की खरीद
हैफेड द्वारा समय पर धान की खरीद की जा रही है। पी.आर. धान की खरीद के लिए हैफेड के अलावा एग्रो व एफ.सी.आई. के लिए अलग-अलग दिन निर्धारित किए गए हैं। हैफेड के पास बारदाने की कोई कमी नहीं है। आढ़तियों को समय पर पर्याप्त मात्रा में बारदाना उपलब्ध करवाया जा रहा है। फसल में निर्धारित मात्रा से ज्यादा नमी के कारण फसल का खरीद कार्य प्रभावित हो रहा है। 
लक्ष्मीनारायण, डी.एम. 
हैफेड








अब मैडीकल स्टोर के लाइसैंस के लिए नहीं काटने पड़ेंगे सरकारी कार्यालय के चक्कर


ऑन लाइन ही होगी लाइसैंस की सारी प्रक्रिया

नरेंद्र कुंडू
जींद। मैडीकल स्टोर के लिए लाइसैंस लेने वाले आवेदकों के लिए एक अच्छी खबर है। अब आवेदकों को मैडीकल स्टोर के लिए लाइसैंस लेने के लिए फूड एंड ड्रग सेफ्टी विभाग (एफ.डी.ए.) के कार्यलय के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। इसके लिए फूड एंड ड्रग सेफ्टी विभाग ने ऑन लाइन प्रक्रिया शुरू कर दी है। विभाग द्वारा शुरू की गई इस योजना की खास बात यह है कि विभाग आवेदक को एस.एम.एस. के जरिये उसकी फाइल की स्टेट्स रिपोर्ट देगा।
पहले फूड एंड ड्रग सेफ्टी विभाग द्वारा मैडीकल स्टोर का लाइसैंस देने की काफी लंबी व जटिल प्रक्रिया थी। लाइसैंस लेने के लिए आवेदकों को कई-कई दिनों तक विभाग के कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ते थे। इस प्रक्रिया के दौरान विभाग के कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों तक की जेब भी गर्म करनी पड़ती थी तब जाकर कहीं आवेदक को लाइसैंस मिलता था लेकिन विभाग ने अब इस पुरानी प्रक्रिया को बंद कर यह सब प्रक्रिया ऑन लाइन कर दी है। अब विभाग ने मैडीकल स्टोर के लिए लाइसैंस देने की प्रक्रिया को काफी सरल कर दिया है। अब लाइसैंस लेने की सारी प्रक्रिया ऑन लाइन चलेगी। आवेदक को बस विभाग की वैबसाइट डब्ल्यू.डब्ल्य.डब्ल्य. डॉट एफ.डी.ए. हरियाणा डॉट ओ.आर.जी. पर जाकर फार्म सबमिट करना होगा। इसके बाद फाइल की सारी प्रक्रिया नेट पर ही चलेगी। विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से अब आवेदक को तो समय व पैसे की बचत होगी ही साथ-साथ रिश्वतखोरी के मामलों में भी कमी आएगी।

देश का पहला राज्य बना हरियाणा

विभागीय अधिकारियों की मानें तो हरियाणा मैडीकल स्टोर के लाइसैंस की प्रक्रिया ऑन लाइन शुरू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। अभी तक किसी अन्य प्रदेश में ऑन लाइन मैडीकल स्टोर का लाइसैंस देने की योजना लागू नहीं हो सकी है। इस योजना को लागू कर हरियाणा अन्य प्रदेशों के लिए रोल मॉडल बनकर उभरा है।

एस.एम.एस. के माध्यम से मिलेगी फाइल की जानकारी

मैडीकल स्टोर के लाइसैंस के लिए नैट पर फाइल जमा करवाने के बाद आवेदक को फाइल के स्टेट्स के बारे में जानकारी लेने के लिए भी विभाग के कार्यालय के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। फाइल की स्टेट्स रिपोर्ट आवेदक को एस.एम.एस. के माध्यम से मोबाइल पर ही मिलती रहेगी। इसके अलावा विभाग के अधिकारियों द्वारा किस दिन दुकान का निरीक्षण किया जाएगा इसके बारे में भी आवेदक को मोबाइल के माध्यम से सूचित कर दिया जाएगा।


विभाग द्वारा मैडीकल के लाइसैंस के लिए ऑन लाइन आवेदन की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। विभाग द्वारा यह योजना लागू करने के बाद लाइसैंस बनवाने की प्रक्रिया काफी आसान हो गई है। इस योजना से आवेदकों को काफी राहत मिलेगी और सरकारी कार्यालयों से फाइलों का काम भी कम होगा।
सुरेश चौधरी
जिला औषधिय नियंत्रक, जींद

इलैक्ट्रोनिक आइटमों की मार से फीकी पड़ी दीये की चमक

परम्परा को कायम रखने के लिए अपने पुस्तैनी कारोबार को नहीं छोड़ पा रहे हैं कुंभकार

नरेंद्र कुंडू
जींद। आधुनिकता की चकाचौंध व बाजारों में इलैक्ट्रोनिक आइटमों की भरमार के कारण मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगर (कुम्हार) अपने इस पुस्तैनी कारोबार से मुहं मोडऩे पर विवश हैं। पुर्वजों से विरास्त में मिले इस रोजगार से अब वह अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का भी जुगाड़ नहीं कर पा रहे हैं। केवल परम्परा को कायम रखने के लिए ही कुम्हार अपने इस पुस्तैनी कारोबार को चलाए हुए हैं। कारीगरों को बर्तन बनाने के लिए मिट्टी की व्यवस्था से लेकर बर्तनों की बिक्री तक अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कारीगरों को उनकी मेहतन के अनुसार बर्तनों के पैसे नहीं मिल पाते हैं। गर्मी के सीजन के बाद केवल दीपावली पर एक माह तक ही उनका कारोबार चलता है। इसके बाद उनका यह कारोबारा पूरे वर्ष ठप्प रहता है। शहर में लगभग 20 से 25 कारीगर इस काम से जुड़े हुए हैं। इस एक माह के इस सीजन के दौरान एक कारीगर लगभग एक लाख रुपए तक का कारोबार कर लेता है लेकिन इस एक लाख के कारोबार से एक कारीगर को केवल 10 से 15 हजार रुपए की ही बचत होती है। 

क्यों पड़ती है मिट्टी के दीयों की जरूरत

दीपावली पर पूजा में शुद्धता बनाए रखने के लिए तांबा, पीतल, स्टली व अन्य धातुओं से निॢमत वस्तुओं की बजाए मिट्टी को शुद्ध माना जाता है और शुद्धता से ही पूजा पूर्ण मानी जाती है। इसलिए पूजा के दौरान मिट्टी से निॢमत दीयों की जरूरत पड़ती है। लोगों में पूजा में शुद्धता की आस्था के कारण ही कुम्हारों का कारोबार थोड़ा बहुत चल रहा है। 
मिट्टी से तैयार किए गए नए डिजाइन के दीये।

रोजगार बचाने के लिए मॉडर्न पद्धित का लिया सहारा 

अपने पुस्तैनी कारोबार को आगे बढ़ाने तथा अपने रोजगार को बचाने के लिए कुम्हारों ने भी मॉडर्न पद्धित का सहारा लिया है। लोगों का रूझान मिट्टी से निॢमत बर्तनों की तरफ आकॢषत करने के लिए कारीगरों ने दीयों व अन्य बर्तनों में फैंसी डिजाइन डालकर नया लूक दिया जाता है। इस बार कुम्हारों के पास मिट्टी से निर्मित हटड़ी, फैंसी दीये, स्टैंड वाले दीयों के अलावा साधारण दीये तैयार किए गए हैं। 

खाली जगह की तलाश में खाने पड़ते हैं धक्के

कारीगरों के सामने मिट्टी से बर्तन तैयार करने के बाद बर्तनों को पकाने के लिए जगह की कमी भी आड़े आती 
है। बर्तन तैयार होने के बाद बर्तनों को पकाने के लिए भठ्ठ लगाने के लिए खाली जगह की जरूरत पड़ती है। कारीगर बुद्धराम व राजेंद्र ने बताया कि शहर में खाली जगह उपलब्ध नहीं होने के कारण कारीगरों को खाली जगह की तलाश के लिए भी शहर में इधर-उधर भटकना पड़ता है। खाली जगह मिलने के बाद उसे किराये पर लेकर वहां भठ्ठ लगाया जाता है। 

मिट्टी की कमी आती है आड़े

मिट्टी के दीये व बर्तन बनाने के लिए चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है। पहले इस तरह की चिकनी मिट्टी गांव के तालाबों में मिल जाती थी, जिस कारण मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगरों को मिट्टी के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ता था लेकिन अब तालाबों में गंदगी फैलने के कारण चिकनी मिट्टी खत्म हो चुकी है। तालाबों की मिट्टी कीचड़ में तबदील हो गई है। पूरे जिले में सिर्फ कुछ गिने-चुने गांवों जैसे डाहोला, ईक्कस, खटकड़ व निडाना में ही इस तरह की मिट्टी मिलती है। जिस कारण मिट्टी से बर्तन बनाने वाले कारीगरों के सामने मिट्टी की कमी आड़े आ रही है। अब बर्तनों के निर्माण के लिए आस-पास के गांवों से मिट्टी मंगवानी पड़ती है। ग्रामीण क्षेत्र से मिट्टी मंगवाने के लिए कुंभकारों को अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ते हैं। कारीगर विनोद ने बताया कि उन्हें एक मिट्टी ट्राली के लिए 1800 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। इसके अलावा मिट्टी के बर्तनों को पकाने के लिए ईंधन भी खरीदना पड़ता है। इस प्रकार उनके इस कारोबार में लागत ज्यादा होने के कारण आमदनी कम है। 
 चाक पर मिट्टी से दीये बनाता कारीगर।