सोमवार, 28 जनवरी 2013

टपका सिंचाई की तरफ नहीं बढ़ रहा किसानों को रूझान


किसानों की बेरूखी के कारण टारगेट पूरा नहीं कर पाया बागवानी विभाग

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिला बागवानी विभाग लाख प्रयासों के बावजूद भी जिले के किसानों का रूझान टपका सिंचाई (ड्रिप सिस्टम) की तरफ आकॢषत नहीं कर पाया है। किसानों की बेरूखी के चलते बागवानी विभाग अपने ड्रिप सिस्टम के टारगेट के नजदीक भी नहीं पहुंच पाया है। इस प्रकार जिला बागवानी विभाग द्वारा टारगेट को पूरा नहीं कर पाने के कारण विभाग की जल संरक्षण की मुहिम को बड़ा झटका लगा है। 
किसानों द्वारा कृषि कार्यों में पानी के अंधाधुंध दोहन के कारण गिरते भूजल स्तर को रोकने के लिए बागवानी विभाग ने जल संरक्षण के लिए एक खास योजना तैयार की थी। इसके लिए विभाग द्वारा किसानों को कृषि कार्यों में टपका सिंचाई का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया जाना था। अधिक से अधिक किसानों को ड्रिप सिस्टम के प्रति आकर्षित करने के लिए विभाग द्वारा किसानों को ड्रिप सिस्टम पर 90 प्रतिशत सबसिडी दी जा रही है। ताकि अधिक से अधिक किसान टपका सिंचाई को अपना कर पानी की बचत कर सकें और अच्छी पैदावार ले सकें। योजना को सफल बनाने के लिए विभाग की तरफ से जिला बागवानी विभाग को टारगेट दिया गया था। जिला बागवानी विभाग के अधिकारियों को टारगेट के अनुसार 100 हैक्टेयर में मिनी स्प्रींग कलर तथा ड्रिप एंड फोगिंग सिस्टम इन पोली हाऊस के तहत 44 हजार सुकेयर मीटर में पोली हाऊस में ड्रिप सिस्टम लगाने थे। ताकि अधिक से अधिक किसानों को ड्रिप सिस्टम के लिए प्रेरित किया जा सके। लेकिन विभाग लाख प्रयासों के बावजूद भी किसानों को ड्रिप सिस्टम लगवाने के लिए राजी नहीं कर पाया। अभी तक विभाग अपने मिनी स्प्रींग कलर के 100 हैक्टेयर के टारगेट में से सिर्फ 10 हैक्टेयर तथा ड्रिप एंड फोगिंग सिस्टम इन पोली हाऊस के 44 हजार सुकेयर मीटर के टारगेट में से सिर्फ 1440 सुकेयर मीटर ही टारगेट पूरा कर पाया है। इस प्रकार ड्रिप सिस्टम के प्रति किसानों की बेरूखी के चलते जिले में विभाग की जल संरक्षण की मुहिम को कड़ा झटका लगा है। 

योजना का नाम   टारगेट   पूरा किया

मिनी स्प्रींग कलर  100 हैक्टेयर            10 हैक्टेयर
ड्रिप एंड फोगिंग   इन पोली हाऊस  44 हजार सुकेयर मीटर  1440 सुकेयर मीटर

ड्रिप पर 90 तथा तालाब पर 100 प्रतिशत सबसिडी देता है विभाग

बागवानी विभाग द्वारा ड्रिप सिस्टम को अधिक कामयाब बनाने के लिए किसानों को खेत में तालाब बनाने के लिए भी प्रेरित किया जाता है। ताकि कृषि कार्यां में किसान को पानी की किल्लत न हो। इसके लिए विभाग द्वारा ड्रिप सिस्टम पर 90 तथा तालाब के निर्माण पर 100 प्रतिशत सबसिडी दी जाती है। 

किसानों को किया जाता है प्रेरित

बागवानी में ड्रिप सिस्टम सबसे ज्यादा कारगर साबित होती है। जींद में बाग का क्षेत्र कम होने के कारण किसान ड्रिप सिस्टम में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। फिर भी विभाग के अधिकारियों द्वारा किसानों को ड्रिप सिस्टम के बारे में पूरी जानकारी देकर प्रेरित किया जाता है। विभाग के अधिकारी टारगेट को पूरा करने के लिए प्रयासरत हैं।
डा. बलजीत भ्याण
जिला उद्यान अधिकारी

स्मार्ट कार्ड के नाम पर हो रही लूट


फार्म भरने की एवज में डिपो होल्डर उपभोक्ताओं से वसूल रहे हैं फीस

नरेंद्र कुंडू
जींद। डिपो होल्डरों द्वारा स्मार्ट कार्ड बनाने के नाम पर लोगों के साथ जमकर लूट की जा रही है। डिपो होल्डर उपभोक्ता से फार्म भरने की एवज में पैसे वसूल रहे हैं लेकिन उपभोक्ताओं को खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की स्मार्ट कार्ड की योजना की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी नहीं होने के चलते उपभोक्ता चुपचाप डिपो होल्डर की जालसाजी का शिकार हो रहे हैं। हालांकि खाद्य एवं आपूॢत विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड बनाने का कार्य प्राइवेट कंपनी को ठेके पर दिया हुआ है और स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने की जिम्मेदारी भी खाद्य एवं आपूर्ति विभाग तथा संबंधित कंपनी की ही है। डिपो होल्डर के पास फार्म भरने की आथोरिटी नहीं है लेकिन खाद्य एवं आपूॢत विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड के इस कार्य में केवल मदद के तौर पर डिपो होल्डर को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है और डिपो होल्डर विभाग की मदद करने की आड में लोगों की जेबें तरास रहे हैं। जबकि विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने की कोई फीस ही निर्धारित नहीं की गई है। विभाग द्वारा उपभोक्ताओं के फार्म निशुल्क भरवाए जाने हैं।   
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग द्वारा राशन वितरण प्रणाली में पारदर्शिता लाने तथा डिपो होल्डरों पर नकेल कसने के लिए राशन वितरण के पूरे कार्य को कम्प्यूटरिकृत करने की योजना तैयार की गई है। इस योजना के तहत सभी राशन कार्ड धारकों के स्मार्ट कार्ड बनाए जाने हैं। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड बनाने का कार्य मुम्बई की वकरांगी साफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को ठेके पर दिया गया है। विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड बनाने के लिए राशनकार्ड धारकों से फार्म भरवाए जा रहे हैं। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों द्वारा फार्म भरने के झंझट से पिंड छुटवाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में फार्म भरवाने का कार्य डिपो होल्डरों को सौंप दिया गया है। जबकि स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने की जिम्मेदारी खुद विभाग के अधिकारियों व सम्बंधित कंपनी के कर्मचारियों की है। इस प्रकार विभाग की मदद की आड में डिपो होल्डर खुलेआम उपभोक्ताओं की जेबों पर कैंची चला रहे हैं। उपभोक्ताओं के फार्म भरने के लिए डिपो होल्डरों ने अपनी मनमर्जी के मुताबिक फीस निर्धारित की हुई है। हालांकि विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरकर जमा करवाने तक की पूरी प्रक्रिया निशुल्क है लेकिन लोगों को विभाग की पूरी पॉलिसी की जानकारी नहीं होने के कारण उपभोक्ता बड़ी आसानी से डिपो होल्डरों के इस जाल में फंस रहे हैं। सूत्रों से प्राप्त जानकारी पर विश्वास किया जाए तो अलग-अलग डिपो होल्डरों द्वारा फार्म भरने के लिए अलग-अलग फीस निर्धारित की गई है। कई डिपो होल्डर फीस के तौर पर 20 रुपए ले रहा है तो कोई डिपो होल्डर उपभोक्ता से 50 रुपए फीस के वसूल रहा है। चूंकि फार्म भरवाने की जिम्मेदारी खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों की है। इसलिए शिकायत मिलने पर विभाग के अधिकारी भी शिकायत को गोल कर देते हैं, ताकि वो खुद फार्म भरने के इस पचड़े से बचे रह सकें। इस प्रकार विभाग के अधिकारियों की इस लापरवाही के चलते ही डिपो होल्डर उपभोक्ताओं की जेबें तरास कर जमकर चांदी कूट रहे हैं और उपभोक्ता चुपचाप इनका शिकार हो रहे हैं। 

पुराने राशन कार्डों की बढ़ाई गई है अवधि

स्मार्ट कार्ड बनाने की प्रक्रिया काफी लंबी होने के कारण उपभोक्ताओं को स्मार्ट कार्ड मुहैया करवाने में विभाग को काफी वक्त लगेगा। हालांकि विभाग ने स्मार्ट कार्ड बनाने का कार्य प्राइवेट कंपनी को ठेके पर दिया गया है लेकिन फिर भी इस प्रक्रिया में लंबा वक्त लगने के कारण विभाग ने पुराने राशन कार्डों की अवधि एक साल तक बढ़ाई गई है। ताकि उपभोक्ताओं को राशन खरीदने में किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं आए। 

समय पर पूरा नहीं हो पाएगा फार्म भरने का कार्य

खाद्य एवं आपूर्ति विभाग द्वारा स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने की तिथि 31 दिसम्बर तक तय की गई है लेकिन अभी फार्म भरने की प्रक्रिया कछुआ चाल से चलने के चलते 31 दिसम्बर तक यह कार्य पूरा होना संभव नहीं है। इसलिए विभाग को स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने की अपनी समयावधि में बदलाव करना होगा। 

शिकायत मिलने पर डिपो होल्डर के खिलाफ होगी सख्त कार्रवाई

स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने की पूरी प्रक्रिया निशुल्क है। इसके लिए विभाग द्वारा कोई फीस निर्धारित नहीं की गई है। अगर कोई डिपो होल्डर फार्म भरने की एवज में फीस ले रहा है तो शिकायत मिलने पर उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। स्मार्ट कार्ड के लिए फार्म भरने के कार्य को समयावधि में पूरा करने के लिए डिपो होल्डरों की मदद ली जा रही है। 
अशोक कुमार
खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक, जींद 

सरकार के चहेतों ने बिगाड़ी जाट आंदोलन की चाल


मुख्यमंत्री पर लगाए खाप प्रतिनिधियों की लाबिंग के आरोप

नरेंद्र कुंडू
जींद। अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के प्रदेशाध्यक्ष धर्मपाल छोत ने कहा कि सरकार के चहेतों ने जाट आंदोलन की चाल बिगाड़ी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने खाप के कुछ प्रतिनिधियों को अपना प्यादा बनाकर पहले से ही आंदोलन के इस चक्रव्यहू को तोडऩे की पूरी प्लाङ्क्षनग तय कर रखी थी। छोत ने हुड्डा सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने 13 सितम्बर को नरवाना के दनौदा गांव के ऐतिहासिक चबूतरे पर हुए सर्व जाट खाप की पंचायत के बाद से ही खाप प्रतिनिधियों की लाबिंग करनी शुरू कर दी थी। ताकि समय आने पर आंदोलन को बीच में ही बाधित करवाया जा सके। छोत ने सर्व जाट खाप के प्रधान नफे ङ्क्षसह नैन व समिति के पूर्व जरनल सैक्रेटरी कुलदीप ढांडा पर आरोप लगाते हुए कहा कि आंदोलन की बागडोर ऐसे नेताओं को हाथों में सौपी गई थी जो मुख्यमंत्री के काफी करीबी थे। उन्हें तो पहले ही इन पर विश्वास नहीं था। छोत ने पंजाब केसरी से विशेष बातचीत में कहा कि खाप प्रतिनिधियों ने अपने निजी स्वार्थों व मुख्यमंत्री के दरबार में अपने नंबर बनाने की फेर में यह फैसला लिया है। उन्होंने कहा कि खाप प्रतिनिधियों ने अपनी कौम के साथ गद्दारी की है। अगर उन्होंने मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में इतना अच्छा फैसला लिया था तो उन्हें जत्थों में शामिल लोगों के बीच जाकर अपना फैसला सुनाना चाहिए था। मुख्यमंत्री के साथ बैठक के लिए 21 सदस्यों की कमेटी का गठन किया गया था लेकिन बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने पहले से ही अपने लोगों को वहां शामिल किया हुआ था। बैठक में ऐसे लोग मौजूद थे जिनका आंदोलन से कोई लेना-देना ही नहीं था। छोत ने कहा कि वे अपनी कौम के लोगों का विश्वास नहीं टूटने देंगे। इसके लिए चाहे उन्हें दोबारा से आंदोलन क्यों ना शुरू करना पड़े। आगामी कार्रवाई की रूपरेखा तैयार करने के लिए आगामी 30 दिसम्बर को जींद की जाट धर्मशाला में अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति की राज्य स्तरीय बैठक बुलाई जाएगी। बैठक में सभी प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श करने के बाद ही अगला फैसला लिया जाएगा। छोत ने कहा कि आरक्षण की अलगी लड़ाई में खापों को आंदोलन से दूर रखा जाएगा और यह लड़ाई हरियाणा की धरती पर ही लड़ी जाएगी। उन्होंने कहा कि अब उनका विश्वास खापों से उठ चुका है, क्योंकि कुछेक समाज के ठेकेदारों ने उनको गुमराह कर उनका फायदा उठाया है। उन्होंने कहा कि उनका मुख्य उद्देश्य गुरूनाम ङ्क्षसह आयोग की रिपोर्ट के अनुसार जाटों को प्रदेश व केंद्र में दोबारा से आरक्षण दिलवाना है। भविष्य में अगर आंदोलन हुआ तो वह अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के बैनर तले ही होगा। 
उधर सर्व जाट खाप आरक्षण समिति के प्रधान नफे ङ्क्षसह नैन ने सभी आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि उन्होंने 21 सदस्यीय कमेटी के सदस्यों की सहमती के बाद ही यह फैसला लिया है। जिस वक्त फैसला हुआ उस वक्त धर्मपाल छोत भी वहीं मौजूद थे लेकिन उस वक्त उन्होंने इस फैसले से इंकार क्यों नहीं किया। नैन ने कहा कि कमेटी में सभी पाॢटयों के लोग शामिल थे और उन्होंने बैठक में हुए फैसले के बाद सभी जत्थों को फोन के माध्यम से सूचना दे कर वापिस लौटने का निर्णय किया था। 
धर्मपाल छोत का फोटो।



सुविधाओं के अभाव में बिगड़ रही कलाकारों के कैरियर की लय

सोनू निगम ने जींद की धरती से ही शुरू किया था कैरियर का पहला पड़ाव

नरेंद्र कुंडू
जींद। जींद जिला विकास के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि संगीत के क्षेत्र में भी पिछड़ चुका है। जिले में संगीत के उभरते कलाकारों को अच्छा प्लेटफार्म नहीं मिलने के कारण कलाकारों के कैरियर की लय बिगड़ रही है। बिना सुर-ताल के जिले के कलाकारों का जीवन रूपी राग बेसुरा हो रहा है। हालांकि संगीत की दुनिया में जींद जिले का विशेष महत्व है और जिले के कई गांवों के नाम संगीत के रागों व तालों के नाम पर ही रखे गए हैं। इसके अलावा संगीत के आसमान पर सोनू निगम जैसे चमकते सितारे ने भी अपने कैरियर का पहला पड़ाव जींद की धरती से ही शुरू किया था। जींद के इतिहास में संगीत रचा-बसा हुआ है लेकिन सुविधाओं के अभाव के कारण संगीत के कई उभरते सितारे टूट कर बिखर चुके हैं। 

निगम ने जींद की धरती से ही शुरू किया था जीवन का पहला पड़ाव। 

लगभग 4 दशक पहले जींद के रॉयल क्लब द्वारा लोगों के मनोरंजन के लिए हर वर्ष जींद में एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया जाता था। इस कार्यक्रम में हर वर्ष देश के बड़े-बड़े कलाकारों को आमंत्रित किया जाता था। सोनू निगम के पिता अगम कुमार निगम उस वक्त रंगरंगीला नामक पार्टी चलाते थे और हर वर्ष वो भी जींद के कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुती देने आते थे। इसी बीच 1976 में अगम कुमार निगम के साथ उनका बेटा सोनू निगम भी जींद आया था। सोनू निगम ने 1976 में आयोजित एक कार्यक्रम में ही 'क्या हुआ तेरा वादा' गीत गाकर अपने कैरियर का पहला पड़ाव शुरू किया था। जिस वक्त सोनू निगम ने जींद में अपनी पहली परफोरमैंश दी थी उस वक्त सोनू निगम की उम्र लगभग 4 वर्ष थी। 

संगम कला ग्रुप जगा रहा है उम्मीद की किरण

भले ही जिले में कलाकारों के लिए संगीत की दुनिया में उतरने के लिए कोई प्लेटफार्म नहीं हो लेकिन ऐसे में जिले के उभरते कलाकारों के लिए संगम कला ग्रुप उम्मीद की किरण जगाए हुए है। वर्ष 2005 से संगम कला ग्रुप द्वारा मां सरस्वती की अराधना के इच्छुक असमर्थ व गरीब बच्चों को निशुल्क संगीत की शिक्षा दिलवाकर उन्हें परफोरमैंश के लिए बड़े-बड़े कार्यक्रमों तक पहुंचाने के लिए एक अच्छा प्लेटफार्म दे रहा है। संगम कला ग्रुप द्वारा हर वर्ष जिला स्तर पर कार्यक्रम का आयोजन कर सुरों के बादशाहों का चयन कर उन्हें परफोरमैंशन के लिए राज्य से बाहर भी कार्यक्रमों में भेजा जाता है। 
सुविधाओं के अभाव में टूट रहे हैं संगीत के तारे
संगम कला ग्रुप के कोर्डिनेटर विनय अरोड़ा ने बताया कि उन्हें भी बचपन से संगीत का शौक था। विनय ने बताया कि वे सुविधाओं के अभाव के बावजूद भी अपने बलबूते पर 'सारे गामा' व 'इंडियन आइडल' जैसे कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुती दे चुके हैं लेकिन समय के अनुसार उन्हें अच्छी सुविधा व सही प्लेटफार्म नहीं मिलने के कारण उनकी प्रतिभा ने बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया। विनय ने बताया कि  अब वे संगम कला ग्रुप के साथ जुड़कर दूसरे बच्चों को संगीत की दुनिया में आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। ताकि सुविधाओं के अभाव में उनकी तरह संगीत की दुनिया का कोई ओर तारा नहीं टूटे। प्रधान नरेश शर्मा ने बताया कि गांव पोकरी खेड़ी निवासी अमित ढुल व शहर की टपरीवास कालोनी निवासी खन्ना भी आज आर्थिक कमजोरी व सुविधाओं के अभाव के कारण अच्छा मुकाम हासिल नहीं कर पाए हैं। फिलहान उनके ग्रुप द्वारा शहर के रूद्र शर्मा व जय रोहिल्ला को भी संगीत की दुनिया के लिए तरासने का काम किया जा रहा है। शर्मा ने कहा कि सरकार को चाहिए कि जिले में भी संगीत सिखाने के लिए अच्छे इंस्टीच्यूट की व्यवस्था करे तथा आर्थिक कमजोरी के कारण पिछड़ रहे कलाकारों की फाइनैंस मदद कर उन्हें आगे बढऩे के लिए अवसर मुहैया करवाए। 

जींद के इतिहास में संगीत रचा-बसा हुआ है।

जींद के इतिहास में संगीत किस तरह से रचा-बसा हुआ है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिले के कई गांवों के नाम संगीत के राग व तालों के नाम पर रखे हुए हैं। गांव का नाम राग का नाम
पिल्लूखेड़ा पिल्लू 
जैजवंती जैजवंती 
श्रीराग खेड़ा राग
भैरोखेड़ा भैरवी 
कलावती कलावती
नोट इसके अलावा भी कई गांवों के नाम संगीत के तालों के नाम पर भी रखे गए हैं। 
जींद में आयोजित कार्यक्रम में अपने पिता अगम कुमार निगम के साथ सोनू निगम का फाइल फोटो। 


 जी.टी.वी. के सैट पर प्रस्तुति देती जींद की कलाकार का फाइल फोटो।

सारे गामा कार्यक्रम में सोनू निगम के साथ मौजूद जींद के विनय अरोड़ा व उनके साथी का फाइल फोटो। 




मंगलवार, 8 जनवरी 2013

एस.एस.ए. की योजना पर लगा बजट के अभाव का ग्रहण


बजट के अभाव के कारण नहीं हो सका पेरैंट्स अवेयरनैस कैंपों का आयोजन

नरेंद्र कुंडू
जींद।  सर्व शिक्षा अभियान द्वारा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए उनके अभिभावकों को जागरूक करने के लिए शुरू की गई योजना पर बजट के अभाव का ग्रहण लग गया है। बजट के अभाव के कारण एस.एस.ए. विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के अभिभावकों के लिए अभी तक जागरूकता कैंप नहीं लगा पाया है। जबकि विभागीय आदेशों के अनुसार यह कैंप 15 दिसम्बर तक आयोजित किए जाने थे।
डिफैंस कॉलोनी स्थित एस.एस.ए. का कार्यालय।
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के अच्छे लालन-पालन तथा उनको प्रोत्साहित कर समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए सर्व शिक्षा अभियान द्वारा उनके अभिभावकों के लिए जागरूकता कैंप लगाने की योजना तैयार की गई थी। एस.एस.ए. द्वारा तैयार की गई इस योजना के तहत खंड स्तर पर इन कैंपों का आयोजन किया जाना था। इसके लिए हरियाणा स्कूल शिक्षा परियोजना परिषद् के स्टेट परोजैक्ट डायरेक्टर द्वारा एस.एस.ए. के सभी जिला परियोजना अधिकारियों को 3 दिसंबर को पत्र जारी कर कैंपों के आयोजन के निर्देश दिए गए थे। स्टेट परोजैक्ट डायरेक्टर द्वारा भेजे गए पत्र में जिला परियोजना अधिकारियों को हर हालत में 15 दिसम्बर तक इन कैंपों के आयोजन का उल्लेख किया गया था। खंड स्तर पर लगने वाले इन 2 दिवसीय कैंपों पर विभाग द्वारा लगभग 30 हजार रुपए खर्च किए जाने थे। इन 2 दिवसीय कैंपों में प्रत्येक खंड से विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के अभिभावकों को उनके बच्चों को प्रोत्साहित करने, सरकार द्वारा उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं की विस्तार से जानकारी देने तथा उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया जाना था। ताकि इस तरह के बच्चों के अंदर हीन भावना घर ना कर सके और वे किसी भी क्षेत्र में अपने-आप को दूसरों से कमजोर ना समझें लेकिन विभाग द्वारा तैयार की गई योजना के धरातल पर आने से पहले ही इस पर बजट के अभाव का ग्रहण लग गया। बजट के अभाव के कारण अभी तक इन कैंपों का आयोजन नहीं किया जा सका।

हर रोज 100 अभिभावकों को देना था प्रशिक्षण

एस.एस.ए. द्वारा तैयार की गई इस योजना के तहत जिले के सभी खंडों पर 2 दिनों तक कैंप का आयोजन किया जाना था। इन कैंपों में हर रोज मास्टर ट्रेनरों द्वारा लगभग 100 अभिभावकों को उनके बच्चों को प्रोत्साहित कर समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के टिप्स दिए जाने थे लेकिन बजट के अभाव के कारण इन कैंपों का आयोजन नहीं हो सका।

बजट आने के बाद किया जाएगा कैंपों का आयोजन

विभाग द्वारा अभी तक कैंपों के आयोजन के लिए सिर्फ गाइड लाइन जारी की गई हैं। अभी तक विभाग द्वारा कैंपों के आयोजन के लिए बजट जारी नहीं किया गया है। बजट जारी होने के बाद ही कैंपों का आयोजन किया जाएगा।
भीम सैन भारद्वाज, जिला परियोजना अधिकारी
एस.एस.ए., जींद


सबसिडी के नाम पर लुट रहे किसान


सबसिडी के बाद भी बाजार से महंगे भाव पर मिल रहा है बीज

नरेंद्र कुंडू
जींद। उद्यान विभाग द्वारा सबसिडी के नाम पर प्रदेश के किसानों के साथ जमकर लूट की गई है। एक तरफ तो उद्यान विभाग किसानों को मसालेदार खेती के प्रति प्रेरित करने के  लिए सबसिडी पर लहसुन का बीज मुहैया करवाने का ङ्क्षढढोरा पीट रहा है लेकिन दूसरी तरफ विभाग द्वारा किसानों को सबसिडी देने के बाद भी बाजार से महंगे भावों पर लहसुन का बीज दिया गया है। विभाग द्वारा किसानों को बाजार से 400 से 500 रुपए प्रति ङ्क्षक्वटल महंगे भाव पर बीज दिया गया है। इस प्रकार विभागीय अधिकारियों ने इस दोहरी नीति के कारण प्रदेश के किसानों की जेब पर जमकर डाका डाला है।   
 उद्यान विभाग कार्यालय में रखा बचा हुआ लहसून का बीज। 
उद्यान विभाग ने प्रदेश के किसानों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने के लिए परम्परागत खेती के अलावा मसालेदार खेती के प्रति आकॢषत करने के लिए 50 प्रतिशत सबसिडी पर लहसुन का बीज मुहैया करवाने की योजना तैयार की थी। विभाग ने अपनी इस योजना के तहत प्रदेश के किसानों के लिए लगभग 5 हजार ङ्क्षक्वटल लहसुन का बीज खरीदकर सभी जिलों के उद्यान अधिकारियों के पास भेजा था। योजना के तहत विभाग के अधिकारियों द्वारा किसानों से बीज की पूरी कीमत लेकर लहसुन का बीज दिया गया था तथा बिजाई के बाद ही किसानों को सबसिडी दी जानी थी। लेकिन विभाग द्वारा किसानों को जिस कीमत पर बीज दिया गया वह कीमत बाजार से काफी ज्यादा थी। विभाग द्वारा किसानों को 50 प्रतिशत सबसिडी देने के बाद 1450 रुपए प्रति ङ्क्षक्वटल के रेट पर किसानों को बीज मुहैया करवाया गया। जबकि बाजार में किसानों को यह बीज बिना सबसिडी के भी 900 से 1000 रुपए प्रति ङ्क्षक्वटल के भाव पर मिल रहा था। इस प्रकार विभाग द्वारा सबसिडी के नाम पर किसानों के साथ जमकर लूट की गई। विभाग ने किसानों से 400 से 500 रुपए पर ङ्क्षक्वटल ज्यादा रुपए वसूले। विभागीय अधिकारियों की इस दोहरी प्रणाली के कारण विभाग की यह योजना किसानों के गले की फांस बन गई और किसानों को मसालेदार फसलों की खेती की तरफ नहीं खींच पाई है। 

पहले मुफ्त दिया जाता था बीज

उद्यान विभाग द्वारा लगभग 2 साल पहले किसानों को मुफ्त में बीज मुहैया करवाया जाता था। किसान द्वारा जितने एकड़ में लहसुन की बिजाई की जाती विभाग उसका आधा बीज किसान को मुफ्त में देता था लेकिन ज्यादातर किसान विभाग से मुफ्त में बीज लेकर उसे बाजार में बेच देते थे। इस प्रकार विभाग किसानों को मुफ्त बीज देने के बावजूद भी अपना टारगेट पूरा नहीं कर पाता था। बाद में विभाग ने अपनी नीति में बदलाव कर किसानों को 50 प्रतिशत सबसिडी पर बीज देना शुरू कर दिया। अब विभाग द्वारा किसानों से पूरे बीज के पैसे लेकर फसल की बिजाई के बाद आधे पैसे चैक के माध्यम से वापिस कर दिए जाते हैं।

बाजार में सस्ता मिला किसानों को बीज 

उद्यान विभाग से सबसिडी के बाद जहां किसानों को एक ङ्क्षक्वटल बीज 1450 रुपए में मिल रहा है, वहीं यह बीज किसानों को बाजार में सस्ते दामों पर मिल रहा है। विभाग द्वारा जहां किसानों को 1450 रुपए प्रति ङ्क्षक्वटल के भाव पर बीज दिया जा रहा है, वहीं किसानों को यह बीज बाजार में 900 से 1000 रुपए प्रति ङ्क्षक्वटल मिल रहा है। लहसुन के बीज में विभाग व बाजार के भावों में भारी अंतर के कारण किसानों ने उद्यान विभाग के कार्यालय से बीज खरीदने की बजाए बाहर से ही बीज लेना बेहतर समझा। 

अच्छी क्वालिटी के बीज करवाया जाता है मुहैया

फसल व बीज के भावों के भाव ऊपर-नीचे होते रहते हैं। विभाग द्वारा एन.एच.आर.डी.एफ. से अच्छी क्वालिटी का बीज खरीद कर किसानों को दिया जाता है। जिस वक्त विभाग ने एन.एच.आर.डी.एफ. के साथ बीज खरीद के रेट तय किए थे उस वक्त बाजार में भी लहसुन के रेट हाई थे। विभाग द्वारा किसानों को 14.50 रुपए प्रति किलो के रेट पर बीज खरीदने पर भी यह बाजार से सस्ता पड़ता है क्योंकि विभाग 50 प्रतिशत सबसिडी के अलावा किसानों को फसल की बिजाई के लिए प्रति एकड़ पर 2125 रुपए की राशि भी दे रहा है।  
डा. बलजीत भ्याण
जिला उद्यान अधिकारी, जींद

जिला टारगेट

अम्बाला 250 क्विटल
भिवानी 800 क्विटल
फतेहाबाद 175 क्विटल
गुडग़ांव 100 क्विटल
हिसार 400 क्विटल
झज्जर 150 क्विटल
जींद 200 क्विटल
करनाल 750 क्विटल
कुरुक्षेत्र 110 क्विटल
मेवात 150 क्विटल
नारनौल 150 क्विटल
पलवल 60 क्विटल
पंचकूला 150 क्विटल
पानीपत 60 क्विटल
सिरसा 305 क्विटल
सोनीपत 150 क्विटल
यमुनानगर 1000 क्विटल
कुल 4960 क्विटल



सोलर लालटेन बनी उपभोक्ताओं के गली की फांस


घटिया बैटरी के कारण जल्द ही बुझ गए अक्षय ऊर्जा विभाग के शिक्षा दीप

नरेंद्र कुंडू
जींद। अक्षय ऊर्जा विभाग द्वारा लोगों को रियायती दर पर बेची गई सोलर लालटेन अब उनके लिए गले की फांस बन गई हैं। सोलर लालटेन की खरीद-फरोखत में विभाग द्वारा की गई लापरवाही का खामियाजा अब उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है। कंपनी द्वारा विभाग को नकली बैटरी वाली सोलर लालटेन सप्लाई करने के कारण ये अक्षय ऊर्जा विभाग की लालटेन जल्द ही बुझ गई हैं। इस प्रकार सोलर लालटेन सप्लाई करने वाली कंपनी ने जहां नकली बैटरी वाली सोलर लालटेन विभाग को देकर विभाग को करोड़ों रुपए का चूना लगाया है, वहीं अब रियायती दर पर सोलर लालटेन खरीदने वाले उपभोक्तओं को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जेब से पैसे खर्च करने के बाद भी उपभोक्ताओं को सोलर लालटेनों को ठीक करवाने के लिए अक्षय ऊर्जा विभाग कार्यालय के चक्कर काटने पड़ रहे हैं लेकिन अक्षय ऊर्जा विभाग के कार्यालय पर भी उपभोक्ताओं की परेशानी का समाधान नहीं हो रहा है। अक्षय ऊर्जा विभाग के अधिकारी कार्यालय में आने वाले उपभोक्ताओं को विभाग के उच्चाधिकारियों की तरफ से निर्देश मिलने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। इस प्रकार पैसे खर्च कर सोलर लालटेन खरीदने वाले उपभोक्ता अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं, वहीं अक्षय ऊर्जा विभाग की योजना को भी गहरा झटका लगा है।

यह था मामला

प्रदेश सरकार की हाई पावर परचेज कमेटी ने गुजरात की गांधीनगर बेस्ड कंपनी आर.जी.वी.पी. एनर्जी सोर्सेस को पिछले साल अक्षय ऊर्जा विभाग के लिए करीब 60 हजार सोलर लालटेन सप्लाई करने का ठेका दिया था। विभाग द्वारा कंपनी को ठेका देते वक्त तय किए गए नियमों के अनुसार सभी सोलर लालटेन में ल्यूमिनस ब्रांड की बैटरियां लगानी थी लेकिन लालटेन सप्लाई करने वाली कंपनी ने ल्यूमिनस ब्रांड की बैटरियां लगाने की बजाए नकली बैटरियां लगाकर अक्षय ऊर्जा विभाग को यह लालटेन सप्लाई कर दी और विभाग के अधिकारियों को इसकी भनक तक नहीं लगी। विभाग के अधिकारियों ने भी इन सोलर लालटेनों की जांच किए बिना ही आगे बच्चों को यह सोलर लालटेन अनुदान पर दे दी। विभाग द्वारा लोगों को अनुदान पर लालटेन देते वक्त 2 साल की वारंटी भी दी गई थी। बाद में जब सोलर लालटेनों ने समय से पहले ही जवाब देना शुरू कर दिया तो विभाग के पास इसकी शिकायतें पहुंचने लगी तो विभाग ने अधिकारियों ने इसे गंभीरता से लेते हुए पूरे मामले की जांच करवाई। इस जांच में ही इस पूरे मामले से पर्दा उठा और लालटेन सप्लाई करने वाली कंपनी का असली चेहरा विभाग के सामने आया।

2350 रखी गई थी लालटेन की कीमत

अक्षय ऊर्जा विभाग द्वारा सोलर लालटेन की कीमत 2350 रुपए रखी गई थी। विभाग द्वारा अधिक से अधिक लोगों को सौर ऊर्जा की इन लालटेनों के प्रयोग के लिए प्रेरित करने के लिए अनुदान पर लालटेन देने की योजना शुरू की गई थी। विभाग की योजना के अनुसार एस.सी. वर्ग के बच्चों को एक लालटेन पर 1400 रुपए का अनुदान तथा सामान्य वर्ग के बच्चों को एक हजार रुपए का अनुदान दिया गया था। इसके अलावा विभाग द्वारा शिक्षा दीप योजना के तहत 5वीं, 8वीं व 10वीं कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले बच्चों को पूरे अनुदान पर यह लालटेन दी गई थी।

जींद में आई थी 888 लालटेन

जींद जिले में अक्षय ऊर्जा विभाग द्वारा 888 सोलर लालटेन मंगवाई गई थी। इनमें से 208 लालटेन एस.सी. वर्ग के बच्चों, 195 लालटेन सामान्य वर्ग के बच्चों तथा शिक्षा दीप योजना के तहत 5वीं, 8वीं तथा 10वीं कक्षा में प्रथम आने वाले 485 बच्चों को यह लालटेन दी गई थी।

विभाग द्वारा करवाया जा रहा है सर्वे

विभाग द्वारा लालटेन सप्लाई करने वाली कंपनी के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करवाकर विभाग को कार्रवाई के लिए पत्र भेजा गया है। विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। अब विभाग द्वारा डोर-टू-डोर जाकर सर्वे करवाया जा रहा है। जिन लालटेनों में शिकायत मिल रही है उनकी लिस्ट तैयार की जा रही है। ताकि उच्चाधिकारियों के पास लिस्ट भेजकर उपभोक्ताओं की समस्या का समाधान करवाया जा सके।
ओ.डी. शर्मा, प्रोजैक्ट आफिसर
अक्षय ऊर्जा विभाग, जींद


सर्दी के साथ ही गौतस्करों ने दी दस्तक


गौतस्करी को रोकने के लिए जिला प्रशासन द्वारा नहीं उठाए जा रहे हैं ठोस कदम
पिल्लूखेड़ा में तस्करी को अंजाम देते वक्त गौतस्करों ने गौरक्षकों पर बोला हमला

नरेंद्र कुंडू
जींद। सर्दी की शुरूआत के साथ ही जिले में गौतस्करों ने भी दस्तक दे दी है। इसके लिए गौतस्करों ने जींद जिले को अपना निशाना बनाया है लेकिन जिला प्रशाासन ने अभी तक गौतस्करी को रोकने के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। जिला प्रशासन की लचर कार्यप्रणाली के कारण ही गौरक्षक दल के सदस्य अपनी जानी की बाजी लगाकार गौतस्करी को रोकने के प्रयास में जुटे हुए हैं। जिला प्रशासन के सुस्त रवैये के कारण ही जिले में गौतस्करों के हौंसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि वह उनका पीछा करने वालों को खुले में चुनौति देने से पीछे नहीं हटते हैं। ऐसा ही मामला सोमवार रात्रि पिल्लूखेड़ा कस्बे में सामने आया जब गौतस्करों ने पीछा कर रहे गौरक्षक दल के सदस्यों पर हमला कर घायल कर दिया। इस दौरान गौतस्करों ने गौरक्षक दल के सदस्यों की गाड़ी टाटा 407 को टक्कर मारकर क्षतिग्रस्त कर दिया और मौके से फरार हो गए। 
गुरूकुल कालवा तथा राष्ट्रीय गौशाला धड़ौली के गौरक्षक सेवा दल के सदस्य सोमवार रात्रि पिल्लूखेड़ा क्षेत्र में गौतस्करों को पकडऩे के लिए क्षेत्र के अलग-अलग रास्तों पर घात लगाकर बैठे हुए थे। दल के सदस्य ब्रह्मचारी ज्ञानप्रकाश ने बताया कि इसी दौरान रात्रि साढ़े 12 बजे के करीब खेड़ी से रोड से बिना नंबर की एक सफेद रंग की पिकअप गाड़ी आई। इस गाड़ी में गौतस्कर 2 गायों को डाले हुए थे। जिसे वहां घात लगाकर बैठे उनके साथियों ने देख लिया और उन्होंने गौरक्षक दल के अन्य सदस्यों को इसी सूचना दी। इसके बाद उक्त गौतस्करों ने रेलवे फाटक के बाद गाड़ी खड़ी कर अन्य गायों को पकडऩे के लिए कार्रवाई शुरू कर दी। इसी बीच गौतस्करों को गौरक्षक दल के सदस्यों के आने की खबर लग गई। जब गौरक्षक दल के सदस्यों ने गौतस्करों की गाड़ी के सामने अपनी गाड़ी खड़ी की तो गौतस्करों ने उन पर हमला बोल दिया और अपनी गाड़ी से गौरक्षक दल की गाड़ी को टक्कर दे मारी। इस घटना में गौरक्षक दल की गाड़ी क्षतिगस्त हो गई तथा गौरक्षक दल के कई सदस्य जख्मी हो गए। इसके बावजूद जब गौरक्षक दल के सदस्यों ने गौतस्करों का पीछा किया तो गौतस्करों ने हवा में बंदूक लहराते हुए दल के सदस्यों को ललकारते हुए उन पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए और मौके से फरार हो गए। इस हमले में गौरक्षक दल के कई सदस्य जख्मी हो गए। गौरक्षक दल के सदस्यों ने बताया कि गौतस्करी को रोकने में उन्हें पुलिस प्रशासन की तरफ से भी कोई खास सहयोग नहीं मिलता। पुलिस प्रशासन के सुस्त रवैये के कारण ही जिले में गौतस्करों के हौंसले बुलंद हैं। जिसके चलते गौतस्कर आसानी से अपने काम को अंजाम देकर निकल जाते हैं। इसके बाद गौरक्षक दल के सदस्यों ने पिल्लूखेड़ा पुलिस को शिकायत देकर कार्रवाई की मांग की। 

हैल्मेट ने बचाई जान

सोमवार रात्रि जब गौतस्कर गौरक्षक दल की गाड़ी को क्षतिग्रस्त कर अपनी पिकअप गाड़ी में बैठकर भाग रहे थे तो इसी दौरान गौरक्षक दल के कुछ सदस्यों ने बाइक पर गाड़ी का पीछा किया लेकिन उधर से गौतस्करों ने दल के सदस्यों पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। इस दौरान गौतस्करों द्वारा फैंके गए पत्थरों में एक पत्थर बाइक चालक के सिर पर आकर लगा लेकिन गनीमत यह रही कि बाइक चालक ने हैल्मेट पहना हुआ था। पत्थर लगते ही हैल्मेट तो टूट गया लेकिन बाइक चालक जख्मी होने से बच गया। 
 गौतस्करों द्वारा क्षतिगस्त की गई गौरक्षक दल की गाड़ी।

 गौतस्करों द्वारा फैंके गए पत्थर। 

गौतस्करों द्वारा के साथ हुई झड़प में टूटे हैल्मेट को दिखाता गौरक्षक दल का सदस्य।

 विरोध जताते गौरक्षक दल के सदस्य। 

पूरे साज-बाज के साथ देते हैं तस्करी को अंजाम

गौतस्कर तस्करी के दौरान पूरे साज-बाज के साथ दस्तक देते हैं। इस दौरान वह हर प्रकार की परिस्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार रहते हैं। गौरक्षकों के साथ टक्कर लेने के लिए वह गाड़ी में पत्थर, डंड़े, बंदूक व अन्य हथियार भी रखते हैं। गौरक्षकों के साथ झड़प के दौरान गौतस्कर पत्थर व डंडे बरसाने के अलावा जरूरत पडऩे पर गोली चलाने से भी नहीं चुकते हैं।

लोकल रास्तों को बनाते हैं अपनी सीढ़ी

गौतस्करी को अंजाम देते वक्त गौतस्कर मुख्य रास्ते से जाने की बजाए लोकल रूट को अपनी सीढ़ी बनाते हैं। ताकि लोकल रास्ते से गुजरते वक्त वह पुलिस व गौरक्षकों की नजरों से बचकर निकल सकें। जींद व पिल्लूखेड़ा से गौतस्करी के बाद गौतस्कर भूरायण, कालवा, कलावती के लोकल रास्ते निकल कर पानीपत या गोहाना निकल कर मेवात का रूख करते हैं।

तस्करी से पहले मुखबीर से लेते हैं पूरी जानकारी

गौतस्कर तस्करी को अंजाम देने से पहले वहां के नुमाइंदे को कुछ पैसे देकर अपना मुखबीर तैयार करते हैं। उसके बाद वह मुखबीर गौतस्करों को गायों के बैठने के ठिकानों व गायों की तादत के बारे में पूरी जानकारी देता है। इसके अलावा वहां से निकलने के सभी रास्तों से भी अवगत करवाता है। मुखबीर की सक्रीयता के कारण ही गौतस्कर आसानी से बच निकलते हैं।

गाय को गाड़ी में डालने से पहले करते हैं बेहोश

गौरक्षक दल के सदस्यों ने बताया कि गौतस्कर गायों को गाड़ी में डालने से पहले बेहोशी का इंजैक्शन लगाकर बेहोश कर देते हैं। इसके बाद हाथों पर गरीश लगाते हैं, ताकि गाय को गाड़ी में डालते वक्त हाथ फिसले नहीं और पकड़ मजबूत बन सके। इस प्रकार गौतस्कर गाय को बेहोश कर आसानी से तस्करी की घटना को अंजाम देते हैं। 

कठोर कानून की है जरूरत

राष्ट्रीय गौशाला धड़ौली के प्रधान सुधार देशवाल ने बताया कि जब तक गौतस्करी को रोकने के लिए काठोर कानून की जरूरत है। जब तक कठोर कानून नहीं बनाया जाएगा तब तक गौतस्करों पर पूरी तरह से नकेल नहीं डाली जा सकती।
फोटो कैप्शन





विवाह-शदियों के सीजन में बढ़ी नोटों की कालाबाजारी


नोटों के कारोबार से जुड़े लोग सरेआम उड़ा रहे हैं आर.बी.आई. के नियमों की धज्जियां

नरेंद्र कुंडू
जींद। 
विवाह-शादियों के सीजन के चलते इन दिनों शहर में नए नोटों की कालाबाजारी जोरों पर है। नोटों के कारोबार से जुड़े लोग सरेआम भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। इस कारोबार से जुड़े लोग नोटों की कालाबाजारी के साथ-साथ करंसी को भी खराब करने पर तुले हुए हैं। 
 स्टैपल करके बनाई गई नोटों की माला दुकानों के आगे लगी हुई।
विवाह-शदियों के दौरान नए नोटों की कालाबाजारी को रोकने तथा करंसी को खराब होने से बचाने के लिए आर.बी.आई. ने देश के सभी बैंकों को आदेश जारी किए हुए हैं कि नोटों को स्टैपल नहीं किया जा सकता और न ही नोटों पर किसी भी प्रकार का पदार्थ लगाया जा सकता है लेकिन नोटों के कारोबार से जुड़े लोग खुलेआम आर.बी.आई. के नियमों को ठेंगा दिखा रहे हैं। दुकानदार आर.बी.आई. के नियमों के विपरित जाकर नोट को स्टैपल करने से लेकर उसे धागे में पिरोकर माला बनाने का कार्य कर रहे हैं। जबकि आर.बी.आई. के कायदे कानूनों के अनुसार यह एक दंडनीय अपराध है। इससे न केवल नोट फट जाते हैं, बल्कि खराब भी हो जाते हैं। इसकेे बाद भी बिना किसी रोक टोक के नोटों का यह व्यापार जोरों से चल रहा है लेकिन इस कारोबार पर रोक लगाने वाले जिम्मेदार अधिकारी इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। वहीं इस कारोबर से जुड़े लोग मोटी कमाई कर रहे है और प्रत्येक नोटों की माला व नए नोटों पर 15 से 20 प्रतिशत ज्यादा राशि वसूल रहे हैं। दूसरी तरफ शादी-विवाह में दूल्हे के परिजन व रिश्तेदार भी दूल्हे के स्वागत में हजारों रुपए से बने नोटों की मालाओं का प्रयोग कर रहे हैं। इस प्रकार दुल्हे के नोटों की माला डालने की परंपरा आर.बी.आई. के नियमों पर भारी पड़ रही हैं। दूल्हे के स्वागत की इस परम्परा को पूरा करने के लिए जहां दूल्हे के परिजनों व रिश्तेदारों को अपनी जेब ढीली करनी पड़ रही है, वहीं शादी का सीजन पूरी चरम पर होने के कारण नोटों के कारोबारियों का धंधें ने भी गति पकड़ ली है। शादी के इस सीजन में नोटों का करोड़ों रुपए का कारोबार होना है, एेसे में नोटों की कालाबाजारी करने के कारण इस धंधे से जुड़े लोगों की जेब में लाखों रुपए चले जाएंगे। हालांकि बैंकों में स्टैपल होकर आने वाली नोटों की गड्डियों को लेने से बैंक कर्मचारी मना कर देते हैं और उनकी पिनों को निकालकर रबड् के छल्लों में डालकर लाने की हिदायत देते हंै। नोटों के स्टैपल के प्रति बैंकों द्वारा कड़ा रुख अपनाने के कारण नोटों की गड्डियां तो स्टैपल होनी बंद हो गई, लेकिन नोटों की माला बनाने के कारोबार से जुड़े लोग इन नियमों को पलीता लगाकर करंसी को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। शहर में नोटों की माला का कार्य सबसे ज्यादा पटियाला चौक व मेन बाजार में होता है। नोटों का यह कारोबार शहर में किसी से छुपा नहीं है, क्योंकि पिनों व धागों में पिरोई गई यह नोटों की मालाएं खुलेआम दुकानों के बाहर दुकान की शोभा बढ़ती रहती हैं लेकिन सरेआम हो रहे इस धंधे पर रोक लगाने के लिए जिम्मेदार बैंक अधिकारी सामने नहीं आ रहे है।  

नए नोटों के लेन-देन पर तय होता है कमीशन

नोटों की कालाबाजारी से जुड़े लोग पुराने नोटों के बदले नए नोट लेने पर भी मोटा कमीशन ऐठ रहे हैं। शहर में नए नोट लेने पर 100 रुपए पर 15 से 20 रुपए अतिरिक्त कमीशन लिए जा रहा है। वहीं शहर से दूर के कस्बों में यह कमीशन बढ़कर 25-30 प्रतिशत हो जाता है। ऐसे में दूल्हे व दुल्हन को माला पहनाना लोगों को महंगा पड़ रहा है। इसके अलावा नोटों की बड़ी माला को 10 रुपए की नोटों से बनाया जाता है तो उस पर कमीशन ओर भी ज्यादा बढ़ जाता है। नोटों के ये कारोबारी बैंक अधिकारियों व कर्मचारियों से सांठ-गांठ करके नए नोट ले लेते हैं और उन्हें भी कमीशन के तौर पर कुछ प्रतिशत दे दिया जाता है। इसके अलावा नोटों से बनी मालाओं के धंधे में नोटों की खरीद-फरोख्त का काम भी सरेआम होता है। जो आर.बी.आई. के नियम कानूनों के खिलाफ  है। नोटों को किसी भी तरह से स्टैपल करने व उन्हें धागे में पिरोने पर रोक है। ऐसा करने से नोट फट जाते हैं। इसे करंसी खराब हो जाती है। इसके अलावा आर.बी.आई. के नियमों के अनुसार नोट को फाडऩा व हवा में लहराना अपराध की श्रेणी में आता है। 
निर्धारित किया हुआ कमीशन

माला मूल्य 

100 115
500 550
1000 1100
5000 5500



बुधवार, 5 दिसंबर 2012

लोगों को गैस किल्लत से निजात दिलवाएगा कृषि विभाग


अनुदान पर दी जाएंगी बायोगैस बनाने वाली रेडीमेड टैंकियां

नरेंद्र कुंडू 
जींद। आम आदमी को गैस की किल्लत से छुटकारा दिलवाने के लिए कृषि विभाग ने खास योजना तैयार की है। विभाग द्वारा नैशनल बायोगैस मैकरो मैनेजमैंट प्रोग्रमा के तहत अब आम आदमी को बायोगैस के प्रति आकॢषत करने के लिए सबसिडी पर बायोगैस की रेडीमेड टैंकियां उपलब्ध करवाई जाएंगी। इस 
टैंकी की खास बात यह है कि गोबर व अन्य वैस्ट से गैस बनाने के वाले सभी उपकरण इस टैंकी के अंदर ही स्थापित किए गए हैं और इसे लगाने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत भी नहीं पड़ती है। विभाग की इस योजना के तहत 20 सुत्रीय कार्यक्रम के तहत जिले में 90 टैंकियां अनुदान पर देने का टारगेट रखा गया है। 

पहले सरकार द्वारा घरेलू वैस्ट व गोबर का सही उपयोग करने के लिए किसानों को दीनबंधू बायोगैस प्लांट लगाने के लिए प्रेरित किया जाता था लेकिन इन प्लांटों के निर्माण में खुदाई, चिनाई, लेबर व निर्माण के लिए ज्यादा जगह की जरूरत होने के कारण सरकार की यह योजना लंबी रेस का घोड़ा नहीं बन पाई। इन बायोगैस प्लांटों के निर्माण में झंझटों को देखते हुए किसानों ने सरकार की इस योजना में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। क्योंकि इन बायोगैस प्लांटों के निर्माण के बाद भी इनमें गैस लिकेज व साफ-सफाई का ज्यादा झंझट रहता था। अब कृषि विभाग ने किसानों को गैस किल्लत से छुटकारा दिलवाने व आम आदमी को भी बायोगैस प्लांटों के प्रति अकर्षित करने के लिए नैशनल बायोगैस मैकरो मैनेजमैंट प्रोग्राम के तहत बायोगैस बनाने वाली रेडीमेड टैंकियां देने की योजना बनाई है। अधिक से अधिक लोगों को इस योजना के प्रति आकर्षित करने के लिए विभाग द्वारा जिले में 90 बायोगैस वाली यह टैकियां अनुदान पर दी जाएंगी। विभागीय अधिकारियों की मानें तो एक टैंकी की कीमत 32 हजार रुपए है। विभाग द्वारा एक टैंकी पर किसानों को 8 हजार रुपए की सबसिडी दी जाएगी। 
 कृषि यांत्रिकी विभाग के प्रांगण में रखी टैंकी।

किसानों को झंझटों से मिलेगा छुटकारा

विभाग द्वारा किसानों को 2 क्यूबिक मीटर की क्षमता वाली टैंकियां सबसिडी पर दी जा रही हैं। इस टैंकी की खास बात यह है कि गोबर व अन्य वैस्ट से गैस बनाने के लिए जरूरी सभी यंत्र इस टैंकी के अंदर ही फिट हैं। इस टैंकी को रखने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं पड़ी,जबकि दीनबंधू बायोगैस प्लांटों को लगाने के लिए किसानों को चिनाई, मिस्त्री, लेबर व अन्य झंझटों का सामना करना पड़ता है और इन प्लांटों के निर्माण के बाद भी किसानों के सामने गैस लिकेज जैसी समस्याएं आती रहती थी। इसके अलावा इन प्लांटों की साफ-सफाई का झंझट भी रहता था लेकिन अब विभाग द्वारा किसानों को अनुदान पर दी जाने वाली इन रेडीमेड टैंकियों में चिनाई, लेबर, मिस्त्री व साफ-सफाई का सारा झंझट खत्म हो जाएगा। किसान कम जगह में इसे आसानी से स्थापित कर सकेंगे और जरूरत पडऩे पर इसे एक जगह से दूसरे स्थान पर भी आसानी से बदला जा सकेगा।   

लैटरिन अटैच करवाने पर मिलेगी 1 हजार की अलग से सबसिडी

कृषि विभाग द्वारा किसानों को अनुदान पर दी जाने वाली रेडीमेड टैंकी की कीमत 32 हजार रुपए है तथा विभाग इस टैंकी पर किसान को 8 हजार रुपए की सबसिडी देगा। इसके अलावा जो किसान इस टैंकी के साथ अपने घर की लैटरिन अटैच करवाएगा उसे 1 हजार रुपए की सबसिडी अलग से दी जाएगी। 

किसानों के लिए कारगर सिद्ध होगी योजना

कृषि यांत्रिकी विभाग के सहायक कृषि इंजीनियर जिले सिंह वर्मा ने बताया कि विभाग की यह योजना किसानों के लिए काफी कारगर सिद्ध होगी। क्योंकि इन टैंकियों के निर्माण व रखरखाव का काम काफी आसान है। किसान इसे अपनी जरूरत के अनुसार एक जगह से दूसरी जगह पर भी स्थानांतरीत कर सकते हैं। इस टैंक में गैस बनाने के लिए किसान को ज्यादा वैस्ट की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। किसान को इसके लिए प्रति दिन सिर्फ 2 किलो वैस्ट की जरूरत पड़ेगी। 



किसानों के लिए मददगार साबित नहीं हो रहे हैं पॉली हाऊस


मार्कीटिंग की व्यवस्था न होने के कारण किसानों को नहीं मिल रहे हैं उत्पादों के अच्छे भाव

नरेंद्र कुंडू 
जींद। सरकार द्वारा किसानों को परम्परागत खेती से हटाकर आधुनिक खेती की तरफ आकर्षित करने के लिए बागवानी विभाग के माध्यम से अनुदान पर पॉली हाऊस लगाने के लिए शुरू की गई योजना को मार्कीट के अभाव के कारण करारा झटका लग रहा है। बागवानी विभाग ने पॉली हाऊस में बेमौसमी सब्जियां उगाकर अच्छी आमदनी लेने के लिए किसानों को ऊंचे सपने तो दिखा दिए लेकिन विभाग द्वारा सब्जियों की बिक्री के लिए उचित व्यवस्था नहीं करने के कारण किसानों के इन सपनों पर कुछ ही समय में ग्रहण लग गया है। बागवानी विभाग द्वारा किसानों के लाखों रुपए खर्च करवाकर पॉली हाऊस तो खड़े करवा दिए लेकिन लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद भी यह पॉली हाऊस किसानों के लिए मददगार साबित नहीं हो पा रहे हैं। विभाग द्वारा सब्जियों की मार्कीटिंग की उचित व्यवस्था नहीं किए जाने के कारण किसानों को महंगे भाव की सब्जियां मजबूरन कौडिय़ों के भाव बेचनी पड़ रही हैं। किसानों द्वारा विभाग के अधिकारियों के पास अलग से मार्कीटिंग की व्यवस्था की बार-बार गुहार लगाने के बावजूद भी अधिकारी इस ओर से अपने हाथ पीछे खींच रहे हैं। इस प्रकार अधिकारियों की बेरूखी के कारण अब पॉली हाऊस भी किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहे हैं।

सब्जियों के नहीं मिल रहे हैं अच्छे भाव

अलेवा के किसान जोगेंद्र ने बताया कि घरौंडा स्थित उत्कृष्ट केंद्र के अधिकारियों की मानकर उसने अपने पॉली हाऊस में अंजलि यैलो व आदित्यी रैल किस्म की शिमला मिर्च की फसल तैयार की थी। उत्कृष्ट केंद्र के अधिकारियों ने इस फसल के लिए उसे प्रेरित किया था और उसे बताया गया था कि यह बेमौसमी फसल है और फसल तैयार होने के बाद मार्कीट में किसानों को इसके 135 रुपए प्रति किलो के हिसाब से भाव मिलेंगे। लेकिन उनकी इस फसल के साथ ही हिमाचल से भी शिमला मिर्चों की सप्लाई शुरू हो चुकी है। इस कारण उनकी उन्हें उनकी फसल के अच्छे भाव नहीं मिल पा रहे हैं। 135 रुपए प्रति किलो की उनकी यह सब्जी अब मार्कीट में 8 रुपए किलो के भाव बिक रही है। इसके अलावा पॉली हाऊस में तैयार किया गया टमाटर भी सिर्फ 208 रुपए प्रति करेट बिक रहा है। जोगेंद्र ने बताया कि इस फसल पर उसके लगभग 12 हजार रुपए खर्च हुए हैं लेकिन अभी तक इससे उसे सिर्फ 4 हजार रुपए की आमदनी ही हुई। जबकि बिना कीटनाशक व न्यूनतम उर्वकों के प्रयोग के बावजूद भी उसकी एक एकड़ की कपास की फसल 70 हजार व धान की पी.आर. की फसल से 35 हजार की आमदनी हुई है।
 पॉली हाऊस में सब्जियां दिखाते किसान।

मार्कीटिंग की नहीं है कोई व्यवस्था

पॉली हाऊस से जुड़े किसानों की मानें तो बागवानी विभाग द्वारा जिले में कहीं भी पॉली हाऊस में तैयार सब्जियों की बिक्री के लिए स्पेशल मंडी की व्यवस्था नहीं है। इसलिए उन्हें अपनी फसल बेचने के लिए दूसरे जिलों का रूख करना पड़ रहा है। इससे उन पर ट्रांसपोर्ट का अतिरिक्त खर्च तो पड़ता ही है लेकिन वहां भी उन्हें फसलों के अच्छे भाव नहीं मिल पा रहे हैं। किसानों का कहना है कि सब्जियों के अच्छे भाव नहीं मिलने के कारण पॉली हाऊस में फसल तैयार करने पर उन्होंने जो खर्च किया है उनका वह खर्च भी पूरा नहीं हो पा रहा है। 

बैट्री चालित मोबाइल वैन भी हुई ठप्प

किसानों को पॉली हाऊस में तैयार उत्पादों को शहर में बेचने के लिए सरकार द्वारा जिले में ट्रायल पर एक बैट्री से चलने वाली ए.सी. मोबाइल वैन चलाई गई थी। ताकि किसान शहरों में जाकर अच्छे रेटों पर अपने उत्पाद बेच सकें। इस वैन की कीमत लगभग एक लाख 40 हजार रुपए थी। लेकिन इस मोबाइल वैन को शुरू हुए अभी ठीक से एक माह भी नहीं हुआ था कि ट्रायल पर चलने वाली यह वैन भी जवाब दे गई। लाखों रुपए कीमत की यह वैन अब कंडम हालात में खड़ी है। 
कंडम अवस्था में खड़ी बैट्री चालित ए.सी. मोबाइल वैन।

किसान खुद तैयार करें अपनी मार्कीट

प्रगतिशील किसान राजबीर कटारिया ने कहा कि मार्कीटिंग की कमी के कारण किसानों को पॉली हाऊस में तैयार उत्पादों के अच्छे भाव नहीं मिल पाते हैं। कटारिया ने कहा कि किसानों को अगर पॉली हाऊस में तैयार उत्पादों के अच्छे भाव लेने हैं तो उन्हें इसके लिए खुद ही मार्कीटिंग की व्यवस्था करनी पड़ेगी। बिना मार्कीट के फसलों के अच्छे भाव मिलने संभव नहीं है। कटारिया ने कहा कि किसानों को अपने उत्पादों को खुद बेचने में किसी प्रकार की शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए। 

560 एस.क्यू. मीटर में शिमला मिर्च की फसल पर हुए खर्च का विवरण
मद का नाम खर्च का विवरण

शिमला मिर्च की पौध 3200 रुपए
पौध लाने व लेबर खर्च 1700 रुपए
सुतली व लेबर खर्च 3700 रुपए
खाद 900 रुपए
कङ्क्षटग 400 रुपए
स्प्रे 450 रुपए
कीटनाशक व फफुंदनाशक 900 रुपए
पालीथिन 400 रुपए
कुल  खर्च            11,650 रुपए
नोट इसके अलावा सब्जियों की बिक्री के लिए ट्रांसपोर्ट खर्च अलग है।


  


अब सहज व सुहाना नहीं रहा रोडवेज का सफर


सिकुड़ रहा रोडवेज का बेड़ा
महज 150 बसों के सहारे साढ़ 13 लाख आबादी का सफर

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जिले में आबादी बढ़ रही है लेकिन रोडवेज के जींद डिपो का बेड़ा तेजी से सिकुड़ता जा रहा है। डिपो में नई बसों की इंट्री इतनी रफ्तार से नहीं हो रही है, जितनी रफ्तार से कंडम बसें बेड़े से बाहर हो रही हैं। इस वक्त जींद डिपो के बेड़े में 150 बसें दौड़ रही हैं। इन बसों के दम पर ही जिले की साढ़े 13 लाख की आबादी का सफर तय हो रहा है। कभी जींद डिपो के बेड़े में 275 से ज्यादा बसें होती थी, जो इतिहास बन चुकी हैं। 
अब जिले के लोगों के लिए रोडवेज का सफर सहज व सुहाना नहीं रह गया है। इसका कारण है कि रोडवेज के बेड़े में इतनी बसें नहीं बची हैं, जो यात्रियों के सफर को सुहाना व आरामदायक बना दें। जिस रफ्तार से जिले में आबादी बढ़ रही है उससे तेज रफ्तार से रोडवेज बेड़े से बसें कंडम होकर बाहर हो रही हैं। रोडवेज में सफर करना यात्रियों के जी का जंजाल बन जाता है। बसों में इतनी भीड़ होती है कि महिलाओं व बच्चों की जान सांसत में आ जाती है। इतना ही नही बसें ओवरलोड होकर चलती हैं। विद्यार्थी रोजाना बसों की छतों पर सफर करते देखे जा सकते हैं। इससे रोडवेज का सफर खास विद्यार्थियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। इसके लिए रोडवेज डिपो में बसों के टोटे को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। पिछले 20 सालों के दौरान जींद डिपो का बेड़ा तेजी से सिकुड़ता गया है। वर्ष 1986 में रोडवेज बेड़े में 275 बसें सड़कों पर दौड़ती थी। वर्ष 1995 में रोडवेज बेड़े से बसें कम होकर 250 रह गई। वर्ष 1995 तक बेड़े से करीबन 100 बसें बाहर हो चुकी थी। इसके बाद तो बेड़े से बसों के हटने का सिलसिला तेज रफ्तार पकड़ गया। वर्कशॉप कर्मचारियों की मानें तो हर माह 10-12 बसें कंडम होकर बेड़े से बाहर हो रही हैं। आलम यह है कि आज इस बेड़े में महज 150 बसें रह गई हैं। खास बात यह है कि इस दौरान जिले की आबादी तेजी से बढ़ी। आबादी में करीब-करीब दोगुनी बढ़ौतरी दर्ज की गई है। आज जिले की आबादी साढ़े 13 लाख तक पहुंच चुकी है। साफ है कि जितनी रफ्तार से जिले की आबादी बढ़ी, उससे ज्यादा तेजी से बसों की तादाद कम होती गई। लेकिन आबदी की रफ्तार के साथ नई बसें बेड़े में शामिल नहीं हुई। इसका परिणाम यह है कि आज रोडवेज का बेड़ा सिकुड़़कर 150 बसों पर आ टिका है। जिले के साढ़े 13 लाख लोगों को 150 बसें ही जैसे-जैसे ढोह रही हैं। 

2 परिवहन मंत्रियों के बाद भी हाथ मलता रह गया डिपो 

इसे जींद जिले के लोगों की भाग्य की विडंबना ही कहा जा सकता है कि 2-2 परिवहन मंत्री देने के बावजूद भी बेड़े में सुधार आने की बजाय घटता ही गया। वर्ष 2005 के दौरान प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और जिले के नरवाना हलके से रणदीप ङ्क्षसह सुरजेवाला विधायक बने। सुरजेवाला को परिवहन विभाग का मंत्री बनाया गया। उनके मंत्री बनने के बाद जिले के लोगों को उम्मीद बंधी थी कि शायद अब मंत्री जी कम से कम जींद डिपो की सुध जरूर लेंगे। जींद डिपो में पर्याप्त बसें शामिल होंगी और उनका मुश्किलों भरा सफर कुछ हद तक सुहाना होगा। लेकिन जिला वासियों की आस जल्द ही टूट गई, क्योंकि मंत्रीजी ने जींद डिपो की सुध लेने की जहमत नहीं उठाई और उस वक्त भी जींद डिपो बसों के लिए तरसता रहा। इसके बाद जींद के विधायक मांगेराम गुप्ता मंत्री बने तो उनको भी परिवहन विभाग दिया गया। लोगों ने गुप्ता से भी उम्मीदें लगाई, जो पूरी नहीं हो पाई। इस दौरान भी जींद डिपो की स्थिति पहले वाली रही। डिपो में चंद नई बसें शामिल हुई होंगी, लेकिन कंडम बसें उससे ज्यादा बाहर हुई। 

ग्रामीण क्षेत्रों की यातायात व्यवस्था हो रही है प्रभावित

रोडवेज बेड़े में बसों की कमी के कारण सबसे ज्यादा दिक्कत ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को हो रही है। बसों की कमी के चलते ग्रामीण क्षेत्रों की सेवाएं बंद पड़ी हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्र से शहर में नौकरी के लिए आने वाले व्यक्तियों व पढ़ाई के लिए स्कूल व कालेजों में आने वाले विद्याॢथयों को सबसे ज्यादा दिक्कत उठानी पड़ती है। ग्रामीण क्षेत्रों की यातायात व्यवस्था दुरुस्त नहीं होने के कारण ज्यादातर लोग या तो अपना निजी वाहन लेकर शहर में आते हैं या फिर प्राइवेट वाहनों का सहारा लेते हैं।

छात्रों के लिए जानलेवा साबित हो रहा सफर 

बस की छत पर सवाहर होकर सफर करते स्कूली बच्चों का फोटो।

रोडवेज का सिकुड़ता बेड़ा छात्रों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। बसों के टोटे का खामियाजा सबसे ज्यादा इन्हीं को भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि आम यात्री तो बसों का मोह छोड़कर मैक्सी कैबों का रूख कर लेते हैं। लेकिन छात्रों ने पास बनवाए होते हैं और निजी वाहनों में किराए की परेशानी से बचने के लिए वे हर हाल में रोडवेज बस के सफर को ही वरीयता देते हैं। बसों के अंदर जगह नहीं मिलने से छात्र छतों पर चढ़ जाते हैं। इसमें कई बार छात्र नीचे गिर जाते हैं और अपनी जान तक गंवा देते हैं। 

शैड्यूल बनाकर सभी रूटों पर चलाई जा रही हैं बसें : टी.एम.

इस बारे में रोडवेज के यातायात प्रबंधक रघुबीर ङ्क्षसह से बात की गई तो उन्होंने बताया कि इस वक्त जींद डिपो में 150 के लगभग बसें हैं, जो सड़कों पर दौड़ रही हैं। समय-समय पर बेड़े में नई बसें शामिल हो रही हैं। जींद डिपो को भी कोटे के अनुसार बसें मिल रही हैं। फिर भी यात्रियों की सुविधा के लिए सही शेडयूल बनाकर विभिन्न रूटों पर बसें चलाई जा रही हैं। रोडवेज का प्रयास है कि ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को बसों की सुविधा मुहैया हो सके।


रविवार, 2 दिसंबर 2012

एच.आई.वी. जिन्न के जबड़ों में फंस रही जिंदगियां


पिछले 10 माह में 100 का आंकड़ा पार कर चुका है एच.आई.वी. का वायरस

नरेंद्र कुंडू
जींद। एड्स जैसी लाइलाज बीमारी को कंट्रोल करने के लिए एड्स कंट्रोल सोसायटी व स्वास्थ्य विभाग की सारी मेहनत बेकार हो रही है। एड्स कंट्रोल सोसायटी व स्वास्थ्य विभाग के लाख प्रयासों के बावजूद भी एच.आई.वी. का जिन्न बोतल में बंद होने का नाम नहीं ले रहा है। विभाग द्वारा हर वर्ष जागरूकता अभियानों पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भी जिले में एड्स का ग्राफ नीचे आने की बजाए लगातार ऊपर की ओर बढ़ रहा है। अब तो एच.आई.वी. का वायरस गर्भवती महिलाओं को भी अपनी चपेट में ले रहा है। जिले में पिछले 10 वर्षों में एच.आई.वी. के पाजीटिव केसों का आंकड़ा 100 के पार पहुंच गया है। एच.आई.वी. के केसों में हो रही बढ़ौतरी से यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि सरकार व स्वास्थ्य विभाग जागरूकता अभियानों पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भी एच.आई.वी. के इस जिन्न को बोतल में बंद करने में नाकाम है। एड्स के आंकड़ों की रफ्तार को देखते जिले में स्थित काफी भयानक और चिंताजनक है। 

ड्राइवरों के सबसे ज्यादा पाजीटिव केस 

एच.आई.वी. पाजीटिव पुरुषों के मामलों में सबसे ज्यादा तादाद ड्राइवरों की है। सूत्रों के अनुसार पुरुषों में करीबन 60 प्रतिशत तक ड्राइवर पाजीटिव मिले हैं। ये लोग असुरक्षित यौन संबंधों के चलते इस खतरनाक वायरस की चपेट में आ रहे हैं। जिले में एच.आई.वी. के फैलाव का बड़ा कारण इसे ही माना जाता है। 

पुरुष ज्याद आ रहे हैं एच.आई.वी. संक्रमण की चपेट में 

स्वास्थ्य विभाग के पास पिछले 10 माह में करीबन 3500 से ज्यादा लोग एच.आई.वी. की जांच के लिए पहुंचे। इनमें 100 से ज्यादा लोग एच.आई.वी. पाजीटिव मिले हैं। इसमें लगभग 34 मामले महिलाओं के व 73 मामले पुरुषों के पाजीटिव पाए गए हैं। इसमें 5 गर्भवती भी पाजीटिव पाई गई हैं। आंकड़ों के अनुसार एच.आई.वी. संक्रणम की चपेट में सबसे ज्यादा पुरुष आ रहे हैं।

एच.आई.वी. के पिछले आठ माह के आंकड़े
माह             कुल टेस्ट        पाजीटिव पुरुष     पाजीटिव महिला     गर्भवती       

जनवरी          270                  3                   3                    1
फरवरी         307                   3                  4                     0
मार्च            561                   7                  8                    1
अप्रैल          373                   6                  4                    0
मई             476                   9                  7                    2
जून             455                   4                  5                    0
जुलाई          503                  10                  4                    1
अगस्त          374                   6                  4                    0
कुल            3319                 48                 39                   5
जिले में वर्ष 2010 में 139 तो 2011 में 92 केस रहे पाजीटिव पाए गए।

वर्ष 2010 में पाए गए सबसे ज्यादा पाजीटिव केस

इससे पहले वर्ष 2010 के दौरान भी एच.आई.वी. के आंकड़े काफी भयानक रहे हैं। वर्ष 2010 में 5100 लोग टेस्ट करवाने के लिए सामान्य अस्पताल तक पहुंचे। इनमें से 139 लोग एच.आई.वी. वायरस से ग्रस्त पाए गए। इसमें 88 पुरुष पाजीटिव रहे तो 51 महिलाएं भी पाजीटिव पाई गई। इसके अलावा वर्ष 2011 में 92 पाजीटिव केस सामने आए। इनमें 48 पुरुष तो 44 महिलाएं पाजीटिव पाई गई।  

पर्याप्त संतुलित आहार व नशे से दूरी बढ़ा सकती है लाइफ

एच.आई.वी. की रिपोर्ट पाजीटिव आने पर पीडि़त को रोहतक मैडीकल कालेज स्थित ए.आर.टी. सैंटर में रैफर कर दिया जाता है। वहां पर उसके कुछ और टेस्ट किए जाते हैं। इसके बाद उसका उपचार शुरू कर दिया जाता है। एड्स एक लाइलाज बीमारी है। अभी तक इस बीमारी का कोई स्थाई उपचार नहीं है। पीडि़त रेगूलर दवाइयां लेता रहे तो उसको काफी आराम मिलता है। इसके साथ ही नशे से दूर रहकर तथा पर्याप्त संतुलित आहार लेने से पीडि़त एच.आई.वी. वायरस से लड़ कर अपने जीवन की डोर को काफी लंबा ङ्क्षखच सकता है। 

जागरुकता अभियानों में रहे छेदों को करना होगा बंद 

करोड़ों रुपए बहाकर चलाए जा रहे एड्स विरोधी अभियान की सच्चाई इन आंकड़ों के सामने दम तोड़ जाती है। एचआई की रफ्तार सरकार, स्वास्थ्य विभाग व समाज तीनों के लिए ङ्क्षचता की बात है। जहां समाज का एक बड़ा हिस्सा एच.आई.वी. की चपेट में आता जा रहा है, वहीं सरकार व स्वास्थ्य विभाग करोड़ों खर्च कर भी लोगों को इससे नहीं बचा पा रहा है। एच.आई.वी. की ओवरस्पीड सरकार व विभाग के अभियान में छेद की ओर साफ इशारा कर रही है। यदि वास्तव में समाज को जानलेवा एच.आई.वी. से बचाना है तो सरकार व स्वास्थ्य विभाग को अपने अभियान में रहे इन छेदों को बंद करना होगा। 

एच.आई.वी. को रोकने के लिए विभाग करता है हर संभव प्रयास : सिविल सर्जन

इस बारे में जब सिविल सर्जन डॉ. राजेंद्र प्रसाद से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि पिछले वर्षों की बजाए इस वर्ष स्थित काफी नियंत्रित है। जिले में सी.एच.सी. स्तर पर 5 सैंटर खोले गए हैं। इन सैंटरों में एक काऊंसलर की नियुक्ति की गई है, जो एच.आई.वी. के बारे में पूरी जानकारी देता है। इसके अलावा नुक्कड़ नाटकों के जरिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है। गर्भवतियों, टी.बी. के मरीजों के अलावा जो भी मरीज आप्रेशन के लिए आता है उसका भी टैस्ट किया जाता है। पाजीटिव मिलने पर विभाग का वर्कर उसके घर पर जाकर चेकअप करता है। विभाग एच.आई.वी. को कंट्रोल करने के लिए हर संभव प्रयास करता है। 

अधिकारियों की लापरवाही के कारण जंग की भेंट चढ़ रहे हैं लाखों के कृषि यंत्र



विभाग के पास नहीं  है कृषि यंत्रों के उचित रख-रखाव की व्यवस्था

नरेंद्र कुंडू

जींद। यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के चलते कृषि कार्यों को बढ़ावा देने वाली लाखों रुपए की मशीनें जंग की भेंट चढ़ रही हैं लेकिन विभाग के अधिकारियों के पास इनकी देखरेख के लिए फुरस्त नहीं है। इस प्रकार विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण कृषि विभाग द्वारा किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू की जाने वाली योजनाएं बीच रास्ते में ही दम तोड़ रही हैं। सरकारी उपकरणों के प्रति विभागीय अधिकारियों की इस बेरूखी का खामियाजा किसानों के साथ-साथ विभाग को भी भुगतना पड़ रहा है। किसानों को जहां सही समय पर विभाग की योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिलता है तो मशीनें खराब होने के कारण विभाग को भी लाखों रुपए का नुक्सान उठाना पड़ता है। अधिकारियों द्वारा मशीनों के उचित रख-रखाव की व्यवस्था नहीं करने के कारण लाखों रुपए की मशीनें खुले आसमान के नीचे ही जंग की भेंट चढ़ रही हैं और अधिकारी इन मशीनों को ठीक करवाने की बजाए मुक दर्शक बने हुए हैं। अधिकारी मशीनों के रख-रखाव के लिए विभाग के पास पैसे की कमी का रोना रो रहे हैं।

क्या है विभाग की योजना

कृषि विभाग ने कृषि कार्यों में पानी की बचत कर किसानों को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ कृषि कार्यों को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2009 में प्रमोशन एंड स्ट्रैथिंग ऑफ एग्रीकल्चर मैकाइनजैशन स्कीम शुरू की थी। इस स्कीम के तहत किसानों को कृषि कार्यों में पानी की बचत के लिए लेजर टैक्नोलाजी से चलने वाली लेजर लैंड लेवलर मशीन के साथ जमीन को समतल करने के लिए प्रेरित किया जाना था। इससे उबड़-खाबड़ जमीन को भी आसानी से समतल कर कृषि योज्य बनाया जा सकता है। इससे किसान को समय के साथ-साथ लगभग 40 प्रतिशत पानी की बचत भी होती है। 

किसानों को ढीली करनी पड़ रही है जेब  

कृषि यांत्रिकी विभाग कार्यालय के बाहर पड़ी मशीनें। 

विभाग द्वारा अधिक से अधिक किसानों तक इस योजना को पहुंचाने के लिए किसानों को 10 घंटे के लिए 1 हजार रुपए पर मशीन उपलब्ध करवाई जाती है। इसके अलावा विभाग द्वारा किसान से 3 रुपए प्रति किलोमीटर व ट्रैक्टर का डीजल भी लिया जाता है। विभागीय अधिकारियों की मानें तो एक एकड़ पर किसान को लगभग 350 रुपए प्रति घंटे का खर्च आता है, जबकि प्राइवेट ट्रैक्टर चालक किसान से 600 से 700 रुपए प्रति घंटा वसूल रहे हैं। विभाग द्वारा टारगेट कम करने व मशीनें खराब होने के कारण किसानों को मजबूरीवश अपनी जेब ढीली कर प्राइवेट ट्रैक्टर चालकों का सहारा लेना पड़ रहा है। 
 टै्रक्टर जिसकी हवा निकली हुई है 

घट रहा है विभाग का टारगेट

सरकार द्वारा लेजर लैंड लेवलर के माध्यम से जमीन को समतल करने के लिए कृषि यांत्रिकी विभाग को 2 ट्रैक्टर व 9 लेजर लैंड लेवलर मशीनें उपलब्ध करवाई गई थी। सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम का मुख्य उद्देश्य कृषि कार्यों में पानी की बचत करना था। ताकि किसान को समय के साथ-साथ पैसे की बचत भी हो। अधिक से अधिक किसानों को इस योजना के तहत लाभ देने के लिए कृषि विभाग द्वारा कृषि यांत्रिकी विभाग को हर वर्ष टारेगट दिया जाता था। लेकिन विभाग पैसे की कमी बताकर हर बार इस टारगेट को कम कर रहा है। विभाग द्वारा इन मशीनों के माध्यम से वर्ष 2009 से अब तक जिलेभर में सिर्फ 8 हजार एकड़ जमीन को ही समतल किया गया है। इस योजना के तहत कृषि यांत्रिकी विभाग को 2011 में 4 हजार एकड़ का टारगेट दिया गया था। योजना को किसानों से मिल रहे अच्छे रिस्पांश के कारण विभाग ने 2011 में समय रहते इसे पूरा कर लिया लेकिन विभाग द्वारा 2012 में इस टारगेट को बढ़ाने की बजाए कम कर दिया गया और 4 हजार की बजाए सिर्फ 3 हजार एकड़ का टारगेट विभाग को दिया गया। लेकिन विभाग के नकारा कृषि यंत्रों के कारण किसानों ने भी सरकारी मशीनों से मुहं मोड़ कर प्राइवेट मशीनों की तरफ अपना रूख कर लिया। किसानों की बेरूखी के कारण विभाग अब तक 3 हजार एकड़ के टारगेट तक नहीं पहुंच पाया। अब तक विभाग 3 हजार में से सिर्फ 2500 एकड़ का टारगेट ही पूरा कर पाया है। 

लाखों रुपए की मशीनरी हो रही है खराब 

कृषि यांत्रिकी विभाग के पास लेजल लैंड लेवलर को चलाने के लिए 2 ट्रैक्टर व 9 लेजर लैंड लैवलर मशीनें हैं। इसके अलावा विभाग के पास वैजीटेबल वाशर व अन्य कृषि यंत्र भी हैं लेकिन विभाग के अधिकारियों की लापरवाही से लाखों रुपए के यह यंत्र जंग की भेंट चढ़ रहे हैं। यहां विभाग के पास कृषि यंत्रों के लिए सबसे बड़ी कमी शैड की है। विभाग के पास यंत्रों को रखने के लिए शैड नहीं है। इस कारण यंत्र खुले आसमान के नीचे ही पड़े रहते हैं। लोहे के ये यंत्र खुले आसमान के नीचे पड़े रहने के कारण धूल व पानी लगने के कारण जंग की भेंट चढ़ रहे हैं। अधिकारियों द्वारा मशीनों के सही रख-रखाव की उचित व्यवस्था नहीं करवाने के कारण लेजर लैंड लेवलर मशीन को चलाने के लिए जो ट्रैक्टर विभाग के पास हैं वह भी खराब हो रहे हैं। इन दोनों ट्रैक्टरों में से एक ट्रैक्टर के टायरों की हवा निकली हुई है। इससे हजारों रुपए कीमत के टायर खराब हो रहे हैं।

शैड के निर्माण के लिए उच्चाधिकारियों को भेजा जाएगा प्रपोजल

इस बारे में कृषि यांत्रिकी विभाग के सहायक कृषि इंजीनियर जिले सिंह वर्मा से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि जल्द ही कृषि यंत्रों को ठीक करवाने का काम किया जाएगा। बजट के अभाव के कारण शैड का निर्माण नहीं हो पाया है। शैड के निर्माण के लिए विभाग के उच्चाधिकारियों को प्रपोजल तैयारकर भेजा जाएगा। 



फाइलों में ही दम तोड़ गई जिला प्रशासन की गौ रक्षक योजना


डी.सी. के आदेशों के 10 माह बाद भी नप ने योजना पर नहीं किया अमल

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले में गऊ कल्याण योजना फाइलों में ही सिमटकर रह गई। उपायुक्त के आदेशों के लगभग 10 माह बाद भी योजना पर अमल नहीं हुआ है। शहर में आवारा घूम रही पूजनीय गऊ माता की दुर्गति हो रही है। प्रशासन की तरफ से जिले में आवारा घूम रही गायों के लिए योजना बनाकर नगर परिषद को इसका जिम्मा सौंपा गया था। लेकिन नगर परिषद तक यह योजना पहुंचते ही फैल हो गई और नप की तरफ से इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया। नगर परिषद की इस लापरवाही का फायदा गौ तस्कर उठा रहे हैं और रात्रि के समय बेजुबान इन गायों को वाहनों में भरकर गौकसी के लिए लेकर जा रहे हैं। ऐसे में प्रशासन की इस लापरवाही से गौभक्तों में लगातार विरोध हो रहा है। हालांकि शहर में आवारा गायों की तदाद बढऩे से सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि होने की आशंका भी बनी रहती है। ऐसे में सड़क दुर्घटनाएं के एक मुख्य कारण को जनाने के बावजूद भी प्रशासन केवल गऊ माता के कल्याण की योजनाएं बनाने तक ही सीमित रह गया है और योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। हालांकि आवारा घूम रही इन गायों में सबसे ज्यादा दुधारू गायें हैं। जिनके मालिक सुबह व शाम के वक्त इन गायों का दूध निकालकर बाहर घूमने के लिए छोड़ देते हैं। बाद में गाय शहर में फल फ्रूट व सब्जी का कार्य करने वालों के लिए परेशानी बढ़ा देती हैं।

10 माह बाद भी उपायुक्त के आदेशों पर नहीं हुआ अमल

 शहर की सड़कों पर आवारा घूम रही गायें।
जिले में गऊ माता के बढ़ रहे अनादर को देखते हुए फरवरी 2011 को उपायुक्त डा. युद्धबीर ख्यालिया ने जिले के गऊशालाओं प्रबंधकों व नगर परिषद के अधिकारियों की बैठक लेकर इन आवार गायों को पकड़कर गऊशाला में छोडऩे के आदेश दिए थे। आदेशों में कहा गया था कि आवारा घूमने वाले पशुओं को गऊशालाओं में छुडवाएं। पकड़ी हुई गायों को जो भी मालिक छुड़वानें के लिए आएगा उसे 3 हजार रुपए की राशि जुर्माने अथवा खर्च के रूप में अदा करनी होगी और यदि गाय का मालिक बार-बार गायों को आवारा छोड़ता है तो उसके खिलाफ आपराधिक मामला भी दर्ज किया जाएगा। इसमें भिवानी रोड पर स्थित श्री गऊशाला ने आवारा गायों को अपनी गऊशाला में रखने का जिम्मा दिया गया था लेकिन लगभग 10 माह बीत जाने के बावजूद भी उपायुक्त के आदेशों की आज तक पालना नहीं हुई है। 

गौ संरक्षण के लिए प्रशासन को उठाने चाहिएं ठोस कदम

बजरंग दल गऊ रक्षा संघ के जिला प्रमुख नरेन्द्र शर्मा ने कहा कि सर्दी के साथ ही जिले में गऊओं की तस्करी के मामले बढऩे लगे हैं। तस्करी पर लगाम लगाने के लिए 4 दिसम्बर को हिसार में संगठन की बैठक होगी। बैठक में गौ तस्करी को रोकने के लिए रणनीति तैयार की जाएगी। उन्होंने बताया कि संगठन द्वारा धुंध का मौसम शुरू होते ही जगह-जगह पर नाके लगाकर वाहनों की जांच की जाती है और तस्करी के लिए जा रही गायों से भरे हुए वाहनों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया जाता है। लेकिन पुलिस प्रशासन की तरफ से उन्हें सहयोग नहीं मिलता है। गायों की तस्करी के कारण इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। अगर इसी प्रकार चलता रहा तो 15 से 20 वर्षों में गाय का नामो-निशान ही मिट जाएगा। इसलिए प्रशासन की तरफ से गायों की संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।



..यह सफर नहीं आसान


कंडम सामान के सहारे दौड़ रही हैं रोडवेज की बसें

नरेंद्र कुंडू
जींद। आरामदेह एवं सुखद यात्रा का दम भरने वाले हरियाणा रोडवेज विभाग की बसें कंडम स्पेयर पार्ट्स के सहारे चल रही हैं। कंडम बसों के लिए नया स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध नहीं होने के कारण वर्कशॉप में कल-पूर्जों का भारी टोटा बना हुआ है। स्पेयर पार्ट्स की कमी के चलते नई बसों में तकनीकि खराबी आने पर कंडम बसों के स्पेयर पार्ट का सहारा लिया जा रहा है। रोडवेज विभाग की इस लापरवाही का खामियाजा यात्रियों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ सकता है। रोडवेज की कार्यशाला में समय पर स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध न होने के कारण बसें कई-कई दिनों तक कार्यशाला में ही खड़ी रहती हैं। इससे रोडवेज को लाखों रुपए के राजस्व का चूना लग रहा है। 

ज्यादातर किस सामान का होता है प्रयोग

कार्यशाला में समय पर नया स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध नहीं होने के कारण मैकेनिकों को मजबूरन कंडम स्पेयर पार्ट्स का सहारा लेना पड़ रहा है। सूत्रों के अनुसार कंडम बसों से बैरंग, गियर बक्सा, इंजन का सामान, हैड, डिफैंसर, धूर्रा, कमानी, डैनमो, एस्टीलेटर, लाइट, स्टेयरिंग, टायर, रिम, बॉडी पार्ट और जो प्रयोग के लायक हो उस बस की बैटरी भी बदल कर प्रयोग में ले ली जाती है। 

2 माह से वर्कशॉप में ही खड़ी है बस

मामले की पूरी सच्चाई जानने के लिए जब टीम ने वर्कशॉप का मुआयना किया तो वर्कशॉप में काम कर रहे कर्मचारियों ने डिपो की बस एच.आर. 37 सी 1953 में लगभग 2 माह पहले रोहतक बस स्टैंड के बाहर वायरिंग शॉट के कारण आग लग गई थी। इसके बाद बस को यहां वर्कशॉप में रिपेयरिंग के लिए लाया गया था लेकिन वर्कशॉप में सामान की कमी के कारण यह बस पिछले 2 माह से इसी तरह खड़ी है। 

 सामान के अभाव में पिछले 2 माह से वर्कशॉप में खड़ी बस। 


पुराने सामान का लिया जाता है सहारा : नेहरा 

प्रधान अजीत नेहरा। 
रोडवेज कर्मचारी यूनियन के डिपो प्रधान अजीत नेहरा ने कहा कि कार्यशाला में समय पर नया स्पेयर पार्ट्स  पलब्ध नहीं होने के कारण मजबूरीवश कंडम बसों से स्पेयर पार्ट्स निकाल कर प्रयोग में लाया जाता है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों की लापरवाही के कारण रोडवेज को लाखों रुपए का चूना लग रहा है। स्टोर में स्पेयर पार्ट्स पलब्ध नहीं होने के कारण बस कई-कई दिनों तक कार्यशाला में खड़ी रहती है। नेहरा ने आरोप लगाते हुए कहा कि विभाग के अधिकारी अपनी जेब भरने के चक्कर में आवश्यकता के अनुसार सामान नहीं खरीदते हैं। पुराने सामान का प्रयोग कर कागजों में नया दिखाकर विभाग को चूना लगा रहे हैं। 
 वर्कशॉप में खड़ी कंडम बसें जिनका स्पेयर पार्ट्स निकाला गया है।

स्पेयर पार्ट्स की नहीं है कमी : डब्ल्यू.एम.

इस बारे में जब वर्कशॉप मैनेजर (डब्ल्यू.एम.) से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि वर्कशॉप के स्टोर में किसी भी स्पेयर पार्ट्स की कमी नहीं है। किसी भी बस को स्पेयर पार्ट्स की कमी के कारण वर्कशॉप में खड़ा नहीं रहने दिया जाता। अगर स्टोर में कोई स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध नहीं हो पाता तो समय रहते मुख्यालय पर उसके लिए प्रपोजल भेज कर जल्द से जल्द उसको मंगवा लिया जाता है। यूनियन के पदाधिकारी जानबुझकर रोडवेज के अधिकारियों को बदनाम करने की साजिश रचते रहे हैं। 

अधिकारियों को बदनाम करने की रच रहे हैं साजिश

इंटक यूनियन के डिपो सचिव वीरेंद्र कुमार ने कहा कि वर्कशॉप में किसी भी सामान की कमी नहीं है। रोडवेज यूनियन का डिपो प्रधान व उसके कुछ साथ जान बुझकर अधिकारियों को बदनाम करने की साजिश रचते रहते हैं। यूनियन के पदाधिकारी अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कर्मचारियों को गुमराह करते रहते हैं। 
 डिपो सचिव वीरेंद्र कुमार




दुकानदारों के सामने बौना साबित हो रहा फूड सेफ्टी एक्ट


विभाग के पास अभी तक पहुंचे महज 100 आवेदन

नरेंद्र कुंडू 
जींद।जिले के दुकानदारों के सामने फूड सेफ्टी एक्ट बौना साबित हो रहा है। दुकानदारों के लिए यह एक्ट बेमानी साबित हो रहा है। लोगों की सेफ्टी के लिए फूड सेफ्टी एक्ट तो बन गया और लागू भी हो गया लेकिन जनता की सेफ्टी अभी तक नहीं हो सकी है। एक्ट के प्रति न तो अधिकारी ही रुचि दिखा रहे और न ही दुकानदार परवाह कर रहे हैं। इस एक्ट को लागू हुए एक साल से ऊपर चुके हैं, लेकिन अभी तक महज 100 लाइसैंस के लिए आवेदन पहुंचा है। अधिकारियों की लापरवाही व जागरुकता के अभाव से यह एक्ट बेमौत मरने के कगार पर है। अगस्त 2011 में केन्द्र व राज्य सरकार ने खाद्य वस्तुओं में बढ़ रही मिलावट को रोकने तथा लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले लोगों पर लगाम कसने के लिए फूड सेफ्टी कानून बनाया। इसके तहत एक दूध विक्रेता से लेकर खाद्य वस्तुओं का बड़ा कारोबार करने वाले तक लाइसैंस बनाना अनिवार्य किया गया है। जिसका मुख्य मकसद खाद्य वस्तुओं की बिक्री करने वाले दुकानों व अन्य उत्पादों का निर्माण करवाने वाले प्रतिष्ठानों की पहचान करना था, ताकि समय-समय पर उनकी जांच की जा सके। लेकिन जिले में इस एक्ट का कोई असर होता दिखाई नहीं दे रहा है। जिले में इस समय खाद्य वस्तु से संबंधित लगभग सात हजार से अधिक दुकानें चल रही है, लेकिन केवल 100 दुकानदारों ने ही इस एक्ट के प्रति रूचि दिखाई है। जिले में फूड सेफ्टी एक्ट केवल कागजों में ही सिमटकर रह गया है। हालांकि केन्द्र सरकार ने लाइसैंस बनाने की इस प्रक्रिया को मार्च 2012 माह तक पूरा करने के दिए थे, लेकिन इस दौरान कार्य पूरा न होने के चलते बाद में इसकी तिथि को बढ़ाकर अगस्त 2012 तक का समय दे दिया था। लेकिन एक्ट को लागू होने के एक साल तीन माह बीत गए है, लेकिन लाइसैंस बनाने की जो रफ्तार नहीं पकड़ी। शहर के खाद्य विक्रेता पंजीकरण से दूर रहना चाहते हैं। 

7 हजार से अधिक चलती है दुकानें

सरकारी आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो जिले में सात हजार से अधिक दुकानों के अलावा हजारों ऐसे लोग हैं, जो दूध बेचने से लेकर दूसरी खाद्य वस्तुओं की बिक्री बड़े से छोटे स्तर पर कर रहे हैं। लेकिन मात्र 100 दुकानदार ही ऐसे है, जिसने फूट सेफ्टी एक्ट का समर्थन करते हुए लाइसैंस लिया है। खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 31 के तहत सभी खाद्य कारोबार करने वालों को लाइसैंस अथवा पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। अधिनियम के प्रावधान के अनुसार खाद्य कारोबार चाहे लाभ के लिए हो या न हो, सार्वजनिक व निजी रूप से खाद्य पदार्थों का निर्माण, पैकेज, भंडारण, वितरण या आयात करता है तो इस अधिनियम के तहत लाइसैंस या पंजीकरण जरूरी है। इसके अतिरिक्त खाद्य सेवा कैटङ्क्षरग खाद्य संघटक की बिक्री भी पंजीकरण के प्रावधानों में है। छोटा फुटकर विक्रेता, फेरी वाला, अस्थायी स्टाल धारक, कैटरर, कार्यक्रम में खाद्य वस्तुओं के वितरण को भी इस अधिनियम के तहत शामिल किया गया है।

क्यों जरूरी है लाइसैंस

राज्य और केन्द्र सरकार की ओर से फूड सेफ्टी एक्ट के तहत फूड लाइसैंस देने का प्रावधान है, ताकि संबंधित व्यापारी से यह गारंटी ली जा सके कि वह ऐसी कोई खाने, पीने की चीजें नहीं बेचेगा जो तय मापदंडों पर खरी नहीं उतरती, मिलावटी और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो। अगर खानपान का व्यापार करने वाला कोई भी व्यापारी मसलन परचून वाले, होटल, रेस्तरां, दुकानें आदि यह लाइसैंस नहीं लेता है तो फूड सेफ्टी एक्ट के सेक्शन 63 के अनुसार उसके 5 लाख रुपए तक का जुर्माना और छह महीने तक की जेल हो सकती है।

फूड सेफ्टी एक्ट की कैटेगरी

1. सालाना 12 लाख से कम का टर्नओवर या फिर प्रतिदिन 100 किलोग्राम से कम की सेल वाले छोटे व्यापारियों के लिए 100 रुपए का डी.डी. देकर रजिस्ट्रेशन। 
2.  12 लाख से ज्यादा के टर्नओवर या प्रतिदिन सौ किलोग्राम से ज्यादा की सेल करने वाले व्यापारियों को लाइसैंस के लिए 2 हजार रुपए का डी.डी.।
3.  उत्पादन के लिहाज से 1 हजार किलोग्राम से कम उत्पादन करने वाले व्यापारियों के लिए 3 हजार रुपए का डी.डी.।
4.  एक हजार किलो से ज्यादा उत्पादन करने वालों के लिए 5 हजार रुपए का डिमांड ड्राफ्ट।
5.  जिन व्यापारियों का 2 हजार किलो से ज्यादा का उत्पादन है, उन्हें लाइसेंस देने का अधिकार केन्द्र सरकार का है। इसके लिए डिमांड ड्राफ्ट भी 7 हजार रुपए का होगा।

चलाया जाता है जागरूकता अभियान

जे.एफ.आई. एन.डी. शर्मा ने कहा कि खाद्य पदार्थों की बिक्री करने वाले सभी दुकानदारों लाइसैंस लेना अनिवार्य है। अब तक उनके पास केवल 100 दुकानदार का ही लाइसैंस बनवाने के लिए आवेदन किया है। सरकार ने अब रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए फरवरी 2013 तक का समय दिया गया है। इसके लिए विभाग की तरफ से विशेष जागरूकता अभियान चलाया जाएगा और प्रत्येक दुकानदार को रजिस्ट्रेशन करने के लिए प्रेरित किया जाएगा। अगर उसके बाद भी कोई दुकानदार रजिस्ट्रेशन नहीं करवाता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।