शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

कीटों की मास्टरनियों के अनुभवों को किया कैमरे में कैद

दूरदर्शन की टीम ने ललितखेड़ा के खेतों में पहुंचकर 4 घंटों तक सांझा किए महिलाओं के अनुभव 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। खाने की थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए ललितखेड़ा गांव की महिलाओं द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को देश के अन्य किसानों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की टीम महिलाओं के क्रियाकलापों की रिकर्डिंग करने के लिए वीरवार को ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची। दूरदर्शन की टीम ने लगभग 4 घंटे तक खेतों में बैठकर महिलाओं के क्रियाकलापों को देखा और उनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। इस दौरान टीम के सदस्यों ने महिलाओं द्वारा कीटों पर आधारित गीतों को भी शूट किया। टीम द्वारा शूट किए गए कार्यक्रम का प्रसारण 24 सितंबर को दिल्ली दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कृषि दर्शन कार्यक्रम में सुबह के शैड्यूल में किया जाएगा।  
दिल्ली दूरदर्शन की टीम प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना के नेतृत्व में लगभग 1 बजे ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची। इस दौरान उनके साथ प्रसारण कार्यकारी अधिकारी विकास डबास तथा कैमरामैन डी.पी. सिंह भी थे। टीम के सदस्यों ने महिलाओं से उनके क्रियाकलापों पर विस्तार से बातचीत की। कीटों की मास्टरनियां राजवंती, अंग्रेजो, नीलम, सविता, नारो, शीला, मिनी मलिक, कमलेश ने बताया कि वह 5-5 के ग्रुप बनाकर फसल में मौजूद कीटों की पहचान करती हैं और उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाती हैं। कीटों का आकार काफी छोटा होता है। इसलिए वह इनकी पहचान के लिए सुक्ष्मदर्शी लैंसों का सहारा लेती हैं। इसके बाद पौधों पर मौजूद कीटों की गिनती कर उनकी समीक्षा करती हैं। इस दौरान महिलाओं ने टीम के सदस्यों को फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान करवाई। कीटों को नियंत्रण करने की जरुरत नहीं है। क्योंकि फसल में मांसाहारी तथा शाकाहारी 2 किस्म के कीट होते हैं। शाकाहारी कीट पौधों, पत्तों और फल-फूल को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं। उसी तरह मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खा कर अपना जीवन यापन करते हैं। कीट न हमारे मित्र हैं और न ही हमारे दुशमन। कीट किसान को हानि या लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से फसल में नहीं आते हैं। इस प्रकार दोनों के जीवन यापन की इस प्रक्रिया में किसान को लाभ पहुंचता है। उन्होंने बताया कि ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं होने के कारण उन्हें कीटों के नाम याद रखने में परेशानी होती थी। इसलिए उन्होंने इनके नाम याद रखने के लिए इनके क्रियाकलापों के आधार पर इनके आम बोलचाल के नाम रख लिए हैं। अंग्रेजो ने बताया कि जब वह अपनी कपास की फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करते थे तो कपास की चुगाई के वक्त उन्हें एलर्जी, सिरदर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती थी लेकिन जब से उन्होंने कीटनाशकों का प्रयोग बंद किया है, तब से उन्हें कपास की चुगाई के दौरान एलर्जी व सिरदर्द की समस्या नहीं होती है और उनके उत्पादन पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। कीटनाशकों का इस्तेमाल छोड़कर उन्हें 2 फायदे हुए हैं। एक तो उनकी थाली से जहर कम हुआ है और दूसरा उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहने लग है। इससे बीमारियों पर खर्च होने वाला उनका पैसा बच रहा है। रधाना से आई महिला किसान कमला व सरोज ने बताया कि उनके गांव में इस वर्ष से महिलाओं की क्लाश शुरू हुई है। ललितखेड़ा की महिलाएं उनके गांव में पढ़ाने के लिए आती हैं। इस मुहिम से जुडऩे से पहले वह इस काम से बिल्कुल अनभिज्ञ थी लेकिन अब उन्हें कीटों की पहचान व उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हुई है। कीट ज्ञान के बल पर ही इस बार वह जहरमुक्त खेती कर रही हैं। जहरमुक्त खेती करने से उनका परिवार बेहद खुश हैं। कीटों की मास्टरनियों ने बताया कि चूल्हे-चौके के साथ-साथ अब वह भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेतीबाड़ी का भी पूरा कार्य संभालती हैं। 
 महिलाओं के क्रियाकलापों को कैमरे में कैद करती दूरदर्शन की टीम।

कीटों पर की है गीतों की रचना 

कीटों की मास्टरनियों के नाम से ख्याति प्राप्त कर चुकी ललितखेड़ा की महिलाओं की मुहिम यहीं खत्म नहीं होती। इन महिलाओं ने अपने मनोरंजन के साथ-साथ दूसरे किसानों को भी इस मुहिम की तरफ आकर्षित करने के लिए कीटों पर दर्जनभर से भी ज्यादा गीतों की रचना भी की है। महिलाओं की मुहिम की कवरेज के लिए ललितखेड़ा गांव पहुंची दूरदर्शन की टीम को महिलाओं ने कीटों पर आधारित गीत 'हे बिटल म्हारी मदद करो, हामनै तेरा एक सहारा है। 'पिया जी तेरा हाल देख कै मेरा कालजा धड़कै हो, तेरे कांधै टंकी जहर की या मेरै कसुती रड़कै हो' गीत भी सुनाए। दूरदर्शन की टीम ने महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किए गए इन दोनों गीतों की रिकर्डिंग भी की।
ग्रुप में कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती कीटों की मास्टरनियां।


कृषि दर्शन पर देश के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी कीटों की मास्टरनियां

कीटों की मास्टरनियों के क्रियाकलापों को शूट करने के लिए आज जींद पहुंचेगी दिल्ली दूरदर्शन की टीम

नरेंद्र कुंडू
जींद। ललितखेड़ा गांव की कीटों की मास्टरनियां अब दिल्ली दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कृषि दर्शन कार्यक्रम के माध्यम से देशभर के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी। इस कार्यक्रम के दौरान कीटों की मास्टरनियां देशभर के किसानों को कीट ज्ञान हासिल कर खेती में उर्वरकों और कीटनाशकों पर अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ते खर्च को कम करने तथा खाने की थाली को जहरमुक्त करने का संदेश देंगी। इसके लिए वीरवार को दिल्ली दूरदर्शन की टीम प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना के नेतृत्व में ललितखेड़ा गांव में पहुंचेगी। ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंचकर टीम द्वारा कीटों की मास्टरनियों के क्रियाकलापों तथा खेती के तौर तरीकों को कैमरे में कैद किया जाएगा। इसके बाद शुक्रवार को टीम के सदस्य राजपुरा भैण गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर किसानों के कार्यों को भी कैमरे में शूट किया जाएगा।    
खाने की थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए ललितखेड़ा गांव की वीरांगनाओं द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को देशभर के किसानों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की एक टीम वीरवार को 2 दिन के लिए जींद के दौरे पर आ रही है। दूरदर्शन की टीम द्वारा 2 दिन तक यहां के कीटाचार्य किसानों तथा कीटों की मास्टरियों के अनुभव को कैमरे में कैद किया जाएगा। इस दौरान महिलाओं द्वारा कीटों पर अधारित गीतों को भी शूट किया जाएगा। दिल्ली दूरदर्शन की टीम के प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना तथा प्रसारण कार्यकारी विकास डबास का कहना है कि आज किसानों द्वारा फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों तथा उर्वरकों के प्रयोग के कारण खेती में खर्च लगातार बढ़ रह है। इसलिए खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है। फसलों में कीटनाशकों के अत्याधिक प्रयोग के कारण आज हमारा खान-पान तथा वातावरण भी दूषित हो रहा है तथा बेजुबान जीवों की हत्या भी हो रही है। खान-पान तथा दूषित होते वातावरण के कारण इंसान लगातार भिन्न-भिन्न प्रकार की लाइलाज बीमारियों की चपेट में आ रहा है। देश के किसानों को इस बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से ही उनकी टीम द्वारा 2 दिन तक यहां के किसानों के क्रियाकलापों को कैमरे में कैद किया जाएगा। विकास डबास का कहना है कि खेती के कार्यों में अभी तक महिलाओं का 70 प्रतिशत योगदान होता था लेकिन ललितखेड़ा गांव की महिलाओं ने कीट ज्ञान की इस मुहिम को आगे बढ़ाकर चूल्हे-चौके के साथ-साथ खेती में अपना 100 प्रतिशत योगदान दर्ज करवाया है। इससे समाज के सामने महिलाओं का एक नया चेहरा उभर कर सामने आया है। महिलाओं ने कृषि क्षेत्र में अपनी 100 प्रतिशत भागीदारी दर्ज करवाकर यह भी साबित कर दिया है कि आज महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। डबास ने बताया कि टीम द्वारा वीरवार को ललितखेड़ा गांव की महिलाओं तथा शुक्रवार को राजपुरा भैण गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में आने वाले किसानों के अनुभवों को कैमरे में शूट किया जाएगा। 
 कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती कीटों की मास्टरनियों

15-15 मिनट के 2 कार्यक्रम होंगे शूट

दिल्ली दूरदर्शन की टीम द्वारा वीरवार और शुक्रवार को महिलाओं तथा पुरुष किसानों के 15-15 मिनट के 2 अलग-अलग कार्यक्रम शूट किए जाएंगे। इसके बाद मंगलवार सुबह दिल्ली दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कृषि दर्शन कार्यक्रम में इन कार्यक्रमों को प्रसारित किया जाएगा। पहले कार्यक्रम का प्रसारण 24 सितंबर तथा दूसरे कार्यक्रम का प्रसारण 1 अक्तूबर को होगा। 


हमारी जीवनदायनी वस्तुएं हो चुकी हैं जहरीली

एक दिवसीय किसान संगोष्ठी में किसानों ने सांझा किए अपने अनुभव

नरेंद्र कुंडू
जींद।  दूरदर्शन हिसार के तकनीकि डिप्टी डायरैक्टर जिले सिंह जाखड़ ने कहा कि किसी भी जीव को जीवित रहने के लिए 2 चीजें सबसे ज्यादा जरुरी हैं। एक स्वच्छ वातावरण और दूसरा शुद्ध भोजन लेकिन आज हमारी ये जीवनदायनी दोनों ही वस्तुएं जहरयुक्त हो चुकी हैं। जाखड़ सोमवार को कृषि विभाग तथा ईंटल कलां के किसानों द्वारा ईंटल कलां गांव में आयोजित एक दिवसीय विचार संगोष्ठी में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। इस अवसर पर कार्यक्रम में जिला कृषि उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, आल इंडिया रेडियो रोहतक से सम्पूर्ण, कृषि विभाग के बी.ई.ओ. जे.पी शर्मा, ए.डी.ओ. राजेंद्र, रमेश, डा. कमल सैनी, बराह खाप प्रधान कुलदीप ढांडा, मैडम कुसुम दलाल, अक्षत दलाल, आई.पी.एम. सैंटर फरीदाबाद से डा. एस.सी. शर्मा, डा. विनोद, बी.पी. सिंह जगपाल, सुनील कंडेला तथा ईंटल कलां के सरपंच महाबीर सिंह विशेष रूप से मौजूद थे। किसानों ने अतिथिगणों को पगड़ी पहनाकर स्वागत किया।
जाखड़ ने कहा कि आज हालात ऐसे हो गए हैं कि इंसान को पैसे देने के बावजूद भी शुद्ध भोजन नहीं मिल रहा है, यानि इंसान पैसे देकर भी जहर खाने पर मजबूर है। इसका मुख्य कारण जागरूकता के अभाव में किसानों द्वारा फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया जाना है। अधिक मात्रा में फसलों में कीटनाशकों के 
मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान तथा कार्यक्रम में मौजूद किसान।
प्रयोग से वातावरण और खाद्य वस्तुओं का जहरयुक्त होना पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों के लिए एक गंभीर खतरे का संकेत है। डा. कमल सैनी और कीटाचार्य रणबीर मलिक ने कहा कि आज खेती में खर्च ज्यादा बढऩे के कारण किसान पैदावार से संतुष्ट नहीं है। जहां पैदावार बढ़ रही है, वहीं कीटनाशकों और उर्वरकों के अधिक प्रयोग के कारण खर्च भी बढ़ा है। उन्होंने कहा कि कीटों को लेकर किसान भ्रमित है। कीटों और बीमारियों के बीच के अंतर के बारे में किसान को जानकारी नहीं है। इसलिए सबसे पहले किसानों को इस भ्रम को दूर करना होगा। उन्होंने कहा कि आज के दिन कपास की फसल में किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मरोडिय़े (लीपकरल) की है। पूरी दुनिया में इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। यह एक वायरस है और सफेद मक्खी इसको फैलाने में वाहक का काम करती है। एक सफेद मक्खी भी इस बीमारी को पूरे खेत में फैला सकती है। इसका तो सिर्फ एक ही समाधान है और वह है पौधों को समय पर पर्याप्त खुराक देना। पौधे को समय पर पर्याप्त खुराक मिलने से पौधा इस बीमारी से लडऩे की क्षमता पैदा कर लेता है। मलिक ने कहा कि पौधों और कीड़ों का गहरा रिश्ता है। मनबीर रेढ़ू ने कीड़ों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कीड़े न तो हमारे मित्र हैं और न हमारे दुश्मन। कीड़े तो अपना जीवन यापन करने के लिए पौधों पर आते हैं और उनके जीवन यापन के इस चक्र में किसान का फायदा हो जाता है। उन्होंने बताया कि अगर किसान को 20 कीटों की पहचान भी हो जाती है तो वह कभी भी फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करेगा। इस अवसर पर विभिन्न गांवों से आए किसानों ने भी अपने अनुभव रखे। जिला कृषि उप-निदेशक ने किसानों को हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया। इस अवसर पर किसानों ने अतिथिगणों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित भी किया। 

 मंच पर मौजूद अतिथिगण तथा सम्बोधित करते मुख्यातिथि जिले सिंह जाखड़। 



शौक को बना लिया रोजगार

मूर्ति कला के दम पर प्रदेशभर में मनवाया प्रतिभा का लोहा

नरेंद्र कुंडू
जींद। आधुनिकता के इस युग में एक तरफ जहां मूर्ति कला का कार्य दम तोड़ रहा है और बड़े-बड़े मूर्ति कलाकर मूर्ति निर्माण के अपने पुस्तैनी कार्य को छोड़कर अपनी इच्छा के विपरित काम करने को मजबूर हैं, वहीं गांव बुराडहर-बुआना निवासी मूर्ति कलाकार अजमेर जांगड़ा अपनी कला के दम पर दूर-दूर तक अपना लोहा मनवा चुका है। अजमेर जांगड़ा मूर्ति कला के क्षेत्र में आज भी अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए है। पूर्वजों से विरासत में मिली मूर्ति निर्माण की कला को अजमेर जांगड़ा आज भी पूरे उत्साह के साथ संजोए हुए है। अपनी मूर्ति कला के बूते आज अजमेर जांगड़ा मूर्ति निर्माण का अपना शौक पूरा करने के साथ-साथ अपने परिवार का पालन-पौषण भी ठीक तरह सेकर रहा है। 26 वर्षीय अजमेर पिछले 10 वर्षों से मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है और अजमेर द्वारा निर्मित बहुत सी मूर्तियां तो आज प्रदेश के भिन्न-भिन्न जिलों में मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं।  
गांव बुराडहर-बुआना में एक गरीब परिवार में जन्मे अजमेर जांगड़ा को बचपन से ही मूर्ति निर्माण का शौक था। अजमेर को यह कला अपने पूर्वजों से विरासत में मिली थी। अजमेर के पड़दादा (दादा के पिता) कन्हैया राम मूर्ति निर्माण का कार्य करते थे। इसके बाद अजमेर के दादा और फिर पिता सतपाल जांगड़ा तथा अब खुद अजमेर मूर्ति निर्माण का कार्य कर अपने पूर्वजों से विरासत में मिली इस कला को आधुनिकता के इस युग में भी संजोए हुए है। फर्क सिर्फ इतना है कि उस समय मूर्तियों का निर्माण मिट्टी से होता था लेकिन अब आधुनिकता के कारण मूर्तियों का निर्माण सीमैंट से होता है। अजमेर अपने चाचा रामपाल को अपना गुरु मानते हैं और उन्होंने अपने चाचा रामपाल से ही मूर्ति निर्माण का यह हुनर सीखा है। गांव के सरकारी स्कूल से 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अजमेर ने 2004 में मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू किया। 2004 से अब तक अजमेर कुरुक्षेत्र, जींद, पानीपत, करनाल, कैथल, फरीदाबाद, अंबाला, हिसार, सोनीपत सहित कई जिलों में अपनी मूर्ति कला का प्रदर्शन कर चुका है। इस अवधी के दौरान अजमेर ने हजारों मूर्तियों का निर्माण किया। इनमें ज्यादातर मूर्तियां आराध्य देवों की हैं। धार्मिक मूर्तियों के अलावा अजमेर ने शहीदों की मूर्तियों का निर्माण भी किया है। इस तरह अजमेर द्वारा बनाई गई आराध्य देवों की मूर्तियां आज हरियाणा प्रदेश के विभिन्न जिलों में मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं। अपनी कला के बूते फिलहाल अजमेर धार्मिक नगरी कुरुक्षेत्र के मंदिरों के लिए मूर्तियों का निर्माण कर रहा है। इस प्रकार अजमेर जांगड़ा अपनी कला के दम पर अपना शौक पूरा करने के साथ-साथ अपने परिवार पेट भी भर रहा है।
 मूर्ति निर्माण का कार्य करता कलाकार अजमेर जांगड़ा।

एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का लग जाता है समय  

मूर्ति कलाकार अजमेर जांगड़ा का कहना है कि मूर्ति निर्माण का कार्य काफी बारिकी से करना पड़ता है। मूर्ति के निर्माण में सीमैंट का प्रयोग होने के कारण मूर्ति का थोड़ा-थोड़ा निर्माण करना पड़ता है। इसलिए एक मूर्ति के निर्माण में काफी समय लग जाता है। एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का समय लग जाता है।

सरकार को करनी चाहिए मदद

मूर्ति कलाकार अजमेर जांगड़ा का कहना है कि आज बढ़ती महंगाई तथा आधुनिकता के कारण मूर्तियों की कम होती मांग के कारण मूर्ति निर्माण का कार्य दम तोडऩे लगी है। इसके चलते कलाकारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो रहा है। आर्थिक तंगी तथा सरकार द्वारा कलाकारों की कोई आर्थिक मदद नहीं दिए जाने के कारण मूर्ति कला दम तोड़ रही है। मूर्ति कलाकार आर्थिक परेशानी के चलते अपना पुस्तैनी कार्य छोडऩे को मजबूर हैं। सरकार को चाहिए कि वे इस तरह के कलाकारों को आगे बढ़ाने के लिए कलाकारों की आर्थिक मदद करे। ताकि लुप्त होती कला को बचाया जा सके।

मूर्ति कलाकार अजमेर द्वारा तैयार की जा रही मूर्तियां । 



रविवार, 8 सितंबर 2013

कीटनाशकों से होती है महज 7 प्रतिशत ही रिकवरी

अज्ञान के कारण किसान फसलों में कर रहा है अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक ने कहा कि अगर कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो किसान फसलों में कीटों को नियंत्रित करने के लिए अर्थार्त कीटों से फसल को होने वाले नुक्सान को रोकने के लिए जो कीटनाशकों का प्रयोग करता है, उससे महज 7 प्रतिशत की ही रिकवरी होती है लेकिन इस 7 प्रतिशत अधिक उत्पादन से जो आमदनी किसान को होती है, उससे ज्यादा पैसे तो किसान इन कीटनाशकों पर खर्च कर देता है। इस तरह बिना जानकारी के किसान को दोहरा नुक्सान होता है। एक तो किसान का पैसा बर्बाद होता है और दूसरा उसकी थाली में जहर का स्तर बढ़ रहा है। रणबीर मलिक शनिवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला में मौजूद किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर पाठशाला में कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी तथा मल्टीपलैक्स फर्टीलाइजर कंपनी के एस.आर. संजय कुमार भी मौजूद थे। 
 कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान।
रणबीर मलिक ने कहा कि किसान के पास न तो खुद का ज्ञान और न ही खुद के औजार हैं। इसलिए तो किसान और कीटों के बीच पिछले 4 दशकों से यह अंतहीन जंग चली आ रही है। किसान तो दूसरों के ज्ञान और पराए हथियारों के दम पर ही किसान इस जंग को जीतने के सपने संजोए हुए है, जो कि संभव नहीं है। अगर यह लड़ाई इसी तरह चलती रही तो वह दिन दूर नहीं, जब समस्त मानव जाति एक गंभीर संकट में फंस कर खड़ी हो जाएगी और देश की बड़ी-बड़ी कीटनाशक कंपनियां तथा कृषि से सम्बंधित दूसरे विभाग भी इसके लिए किसानों को ही दोषी ठहराएंगे। मलिक ने कहा कि जब फसल में मौजूद कीटों को नियंत्रित करने की जरुरत नहीं है तो फिर किसानों को कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करने के लिए क्यों गुमराह किया जा रहा है। डा. कमल सैनी ने किसानों को बताया कि गांव राजपुरा भैण में किसान रामस्वरूप के जिस खेत में पाठशाला का आयोजन किया जा रहा है। इस फसल में शुरूआत से ही मरोडिय़ा (लीपकरल) का प्रकोप है और यह अब तक बरकरार है लेकिन इसके बावजूद कपास की यह फसल पूरी बढ़ौतरी कर रही है और इसमें टिंड्डे भी पूरे हैं। इस फसल में टिंड्डों की औसत प्रति पौधा 40-45 इस वक्त दर्ज की गई है। जबकि मरोडिय़ा के प्रकोप के चलते दूसरे जिले के किसानों ने तो कपास की खड़ी की खड़ी फसल को ट्रैक्टर से जुतवा दिया। इसका कारण यह है कि एक तो यहां के किसानों ने एक छटांक भी 
 एक-दूसरे के साथ अपने विचार सांझा करते किसान। 
कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया और दूसरा यह कि इन किसानों ने फसल को समय पर जिंक, डी.ए.पी. और यूरिया के घोल की पर्याप्त खुराक दी है। पौधों को समय पर पर्याप्त खुराक मिलने के कारण मरोडिय़े से होने वाले नुक्सान की भरपाई पौधों ने इस घोल से पूर कर निरंतर अपनी वृद्धि की है और इसका परिणाम यह रहा कि यहां के किसानों को दूसरे जिलों के किसानों की तरह खेतों में खड़ी फसल को जोतने की नौबत नहीं आई। 




बुधवार, 4 सितंबर 2013

रेप जैसे संगिन आरोपों के कारण धूमिल हो रही साधु-संतों की छवि

नरेंद्र कुंडू
जींद। भारत की धरती सदियों से संत-महात्माओं की धरती रही है। यहां लोग भगवान की तरह संत-महात्माओं की पूजा करते हैं। यहां पर संत-महात्माओं को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है लेकिन समय के साथ-साथ हो रहे इस बदलवा में संत-महात्माओं का रुप भी बदलता जा रहा है। आए दिन संतों पर लगे रहे रेप जैसे संगिन आरोपों के कारण संत-महात्माओं की छवि भी लगातार धूमिल होती जा रही है। हाल ही में आशाराम पर एक नाबालिग के साथ रेप के आरोप ने फिर से साधु-संतों का एक अलग रुप समाज के सामने पेश किया है। लोग जगह-जगह आशाराम के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और पुतले फूंक रहे हैं। इससे यह बात साफ हो रहा है कि कभी संत-महात्माओं की धरा के नाम से जानी जाने वाली यह धरती अब धीरे-धीरे अपनी पहचान खो रही है। जिन संत-महात्माओं को कभी यहां के लोग सम्मान की दृष्टि से देखते थे आज उन संत-महात्माओं को लोग हीन दृष्टि से देखने लगे हैं।

सबके लिए समान हो कानून

आम आदमी हो या कोई संत या नेता कानून सबके लिए एक समान होने चाहिएं। आशाराम पर रेप के आरोप लगने के बावजूद आशाराम को समन देकर बुलाने का कोई औचित्य नहीं बचता, क्योंकि कानून में कहीं भी रेप के आरोपी को समन देने जैसा कोई प्रावधान नहीं है। रेप के आरोपी को बिना समन दिए पुलिस सीधे
 एडवोकेट विनोद बंसल
गिरफ्तार कर सकती है। जैसा की मुम्बई और दिल्ली के रेप कांड में हुआ था। जब मुम्बई और दिल्ली रेप कांड के सभी आरोपियों को बिन समन दिए गिरफ्तार किया गया है तो फिर आशाराम को समन क्यों दिया गया। इससे जनता के बीच यह संदेश जाता है कि आम आदमी और प्रतिष्ठित व्यक्ति के लिए कानून अलग-अलग है। अगर पुलिस चाहती तो आशाराम को भी बिना समन दिए गिरफ्तार कर सकती थी। सरकार को चाहिए कि आशाराम के मामले की सुनवाई भी फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो, ताकि आशाराम को इस मामले के गवाहों की लाबिंग करने का वक्त नहीं मिले। अगर सुनवाई के दौरान आशाराम पर आरोप तय होते हैं तो आशाराम को सख्त से सख्त सजा दी जाए।
विनोद बंसल
एडवोकेट, जींद

आंख बंद कर साधु-संतों पर विश्वास न करे जनता 

सरकार को चाहिए कि इस तरह के मामलों को गंभीरता से ले और आरोपियों के खिलाफ बिना देरी किए सख्त से सख्त कार्रवाई करे, ताकि इस तरह के मामलों को कम किया जा सके। लोगों को भी चाहिए कि वे इस तरह के मामलों पर गंभीरता से विचार-विमर्श करें। किसी भी साधु-संत पर आंख बंद करके विश्वास नहीं करें।
 श्यामलाल गुप्ता का फोटो। 
क्योंकि भगवा वस्त्र धारण करने वाला हर व्यक्ति साधु-संत नहीं होता। साधु-संत के वेश में कोई पाखंडी भी हो सकता है। सरकार को चाहिए कि कानून व न्याय प्रणाली में लोगों का विश्वास बनाए रखने के लिए आशाराम के मामले की निष्पक्ष व जल्द से जल्द जांच पूरी कर आगामी कार्रवाई करे। अगर आशाराम पर आरोप सिद्ध होते हैं तो सजा भी सख्त से सख्त दी जाए, ताकि दूसरा कोई व्यक्ति इस तरह का कदम उठाने की हिम्मत नहीं करे।
श्यामलाल गुप्ता, समाजसेवी

इस तरह के मामलों को गंभीरत से ले संत समाज

आरोप लगाना और आरोप तय होनों दोनों अलग बात हैं। आशाराम पर अभी आरोप लगा है, आरोप तय होना बाकी है। आरोप तय हुए बिना कुछ भी कहना ठीक नहीं है। पुलिस को चाहिए कि मामले की निष्पक्ष जांच करे, ताकि सच्चाई जनता के सामने आ सके। अगर आशाराम ने ऐसा घिनोना कार्य किया है तो इसके लिए उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए, अगर आरोप झूठा है तो शिकायतकत्र्ता के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए। आए दिन साधु-संतों पर लग रहे ऐसे आरोपों को संत समाज को गंभीरता से लेना चाहिए। अगर संत समाज ने इस तरफ कोई ठोस कदम नहीं उठाए तो आने वाली पीढिय़ां संत समाज को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगी।
 स्वामी धर्मदेव का फोटो। 
स्वामी धर्मदेव
गुरुकुल कालवा 

दाल में कुछ न कुछ काला जरुर है

यह एक गंभीर विषय है। हां लेकिन एक बात साफ है कि दाल में कुछ काला जरुर है। क्योंकि आशाराम का समाज में एक ऊंचा स्थान है और इतने ऊंचे स्थान पर बैठे व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाना आसान काम नहीं है। वैसे अभी मामले की जांच चल रही है। सच्चाई का पता तो जांच पूरी होने के बाद ही लग पाएगा। अगर आशाराम दोषी सिद्ध होते हैं तो उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। इस तरह के मामलों के लिए कहीं ना कहींअभिभावक भी दोषी हैं। अभिभावकों को भी धर्म में इतना अंधा नहीं होना चाहिए कि उसे अच्छे और बुरे की जानकारी ही नहीं रहे। धर्म की भी कुछ सीमाएं होती हैं। आंखें बंद कर धर्म के पथ पर चलना कहां की समझदारी है। भगवान को प्राप्त करने के लिए जरुरी नहीं कि सत्संग, तीर्थ या किसी गुरु के पास जाना जरुरी है। भगवान तो हर इंसान के अंदर होता है। बस जरुरत है उसे ढूंढऩे की। भगवान को प्राप्त करने के लिए कोई ढोंग करना जरुरी नहीं है।
 प्रो. वजीर सिंह का फोटो। 
प्रो. वजीर सिंह
राजकीय महिला कालेज, जींद

मकडिय़ों ने किया फसलों से हर किस्म के कीटों का सफाया

पाठशाला में किसानों ने की शाकाहारी कीटों पर चर्चा

नरेंद्र कुंडू 
जींद। इस समय धान व कपास की फसल में आने वाले मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों से किसानों को भयभीत होने की जरुरत नहीं है। क्योंकि इस समय फसलों में मकडिय़ों की संख्या काफी ज्यादा है। कपास की फसल में इस समय मकडिय़ों की औसत प्रति पौधा 4-5 दर्ज की जा रही है और मकडिय़ां हर प्रकार के कीटों को अपना भोजन बना लेती हैं। बशर्त यह की किसान द्वारा अपनी फसल में किसी प्रकार के कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया गया हो। यह बात कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने शनिवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। पाठशाला के आरंभ में किसानों ने कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का अवलोकन कर कीटों का बही खाता भी तैयार किया। पाठशाला में किसानों ने कपास की फसल में अब तक देखे गए शाकाहारी कीटों पर भी विस्तार से चर्चा की।
फसल में पाई जाने वाली मकडिय़ों का फोटो।
डा. कमल सैनी ने कहा कि मकड़ी किसी भी कीट को खाने से परहेज नहीं करती है। यह हर प्रकार के कीट को आसानी से अपना शिकार बना लेती है। इस समय धान व कपास की फसल में मकडिय़ों की संख्या काफी ज्यादा है। उन्होंने परीक्षण वाले खेत का जिक्र करते हुए कहा कि इस खेत में कपास के 4325 पौधे हैं और प्रति पौधे पर 4-5 मकडिय़ों की संख्या दर्ज की जा रही है। इस प्रकार कपास के इस खेत में 17 से 18 हजार मकडिय़ां हैं। एक मकड़ी एक समय में 10 से 12 तेलों, 18 से 20 सफेद मक्खी के बच्चों तथा 30 से 35 चूरड़ों का खात्मा कर देती है। इस प्रकार अगर एक खेत में इतनी ज्यादा संख्या में मकडिय़ां हैं तो किसानों को फसल में किसी तरह के कीटनाशक का प्रयोग करने की जरुरत नहीं है। मकडिय़ां खुद ही किसान के खेत में कीटनाशक का काम कर देती हैं। डा. सैनी ने साप्ताहिक कीट समीक्षा का जिक्र करते हुए कहा कि अगर साप्ताहिक कीट समीक्षा पर नजर डाली जाए तो अभी तक जींद ब्लाक में कहीं पर भी सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े नुक्सान पहुंचाने के आॢथक स्तर पर नहीं पहुंच पाए हैं। साप्ताहिक कीट समीक्षा के आधार पर सफेद मक्खी की औसत 1.7, हरा की तेला 0.8 और चूरड़े की संख्या 0.1 दर्ज की गई है। इस दौरान कीटाचार्य किसानों ने शाकाहारी कीटों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने अभी तक 20 किस्म के रस चूसक कीटों की पहचान की है। इन 20 कीटों में से सिर्फ सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को ही यहां के किसान मेजर कीट मानते हैं, जो फसल में कुछ नुक्सान पहुंचा सकते हैं लेकिन जिन-जिन किसानों ने अपनी फसलों में
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान।
कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया है, उन फसलों में अभी तक इन कीटों का नुक्सान सामने नहीं आया है और जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, वहां इन कीटों ने खूब हाहाकार मचाया हुआ है। इनके अलावा लाल बानिया, काला बानिया, माइट, मिलीबग व अल को यहां के किसान सूबेदार मेजर मानते हैं। लाल व काला बानिया कपास के बिनोले का रस चूसकर किसानों को नुक्सान पहुंचाता है लेकिन किसान को लाल व काले बानिये का नुक्सान कभी नजर नहीं आता है। मटकु बुगड़ा लाल व काले बानिये का पक्का ग्राहक होता है। मटकु बुगड़ा लाल व काले बानिये को अपना शिकार बनाकर फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करता है। इसी प्रकार बिटल अल तथा अंगीरा, जंगीरा और फंगीरा मिलीबग को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाते हैं।



गुरुवार, 29 अगस्त 2013

कीटनाशकों का प्रयोग कर हर रोज सैंकड़ों बेजुबान की हत्या कर रहा है किसान : ए.डी.सी.

दूरदर्शन की टीम ने कीटाचार्य किसानों के शोध पर बनाई डाक्यूमैंट्री फिल्म

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीट साक्षरता एवं कीट प्रबंधन विषय पर जिले के ललित खेड़ा गांव की महिला किसानों द्वारा गांव के खेतों में मंगलवार को एक खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। खेत पाठशाला में बाहर से आए गणमान्य लोगों के साथ महिला कीटाचार्या किसानों ने अपने विचार सांझा किए तथा कीटों पर किए गए अपने शोध और अनुभव भी उनके समक्ष रखे। इस अवसर पर दूरदर्शन केंद्र हिसार के निदेशक जिले सिंह जाखड़ के नेतृत्व में पाठशाला में पहुंची दूरदर्शन की टीम ने खेत पाठशाला की एक डाक्यूमैंट्री फिल्म भी तैयार की। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्यातिथि अतिरिक्त उपायुक्त जयबीर सिंह आर्य ने विधिवत् रूप से किया। इस अवसर पर पाठशाला में विशिष्टि अतिथि के तौर पर जिला कृषि उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, जिला बागवानी अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, कबड्डी फैडरेशन ऑफ इंडिया के उपप्रधान समरवीर कौशिक, एच.सी.एल. कंपनी के मैनेजर सुभाष कौशिक, डा. सुरेंद्र दलाल की धर्मपत्नी मैडम कुसुम दलाल, अक्षत दलाल, बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा भी मौजूद थे। कार्यक्रम का शुभारंभ महिलाओं ने 'हे बीटल म्हारी मदद करो हमनै तेरा एक सहारा है' तथा समापन 'हो पिया तेरा हाल देखकै मेरा कालजा धड़क, तेरे कांधे पै जहर की टंकी मेरै कसुती रड़क' गीत से किया।
अतिरिक्त उपायुक्त जयबीर सिंह आर्य ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों द्वारा अंधाधुध कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे मनुष्य का शरीर भिन्न-भिन्न प्रकार के घातक रोगों की चपेट में आ रहा है। इतना ही नहीं फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल कर किसान हर रोज सैंकड़ों बेजूबान जीवों की हत्या भी कर रहा है। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढिय़ों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए खेती में दवाइयों एवं खाद के अंधाधुंध प्रयोग पर रोक लगानी होगी लेकिन यह तभी संभव हो पाएगा, जब किसानों को कीटों के क्रियाकलापों तथा कीटों की पहचान होगी। उन्होंने कहा कि कीट प्रबंधन की जानकारी हर किसान को उपलब्ध करवाने के लिए ब्लॉक स्तर पर खेत पाठशालाएं लगाने का कार्यक्रम तैयार किया जाएगा। इसके बाद इन पाठशालाओं को ग्राम स्तर पर भी आयोजित किया जाएगा। हिसार दूरदर्शन के केन्द्र निदेशक जिले सिंह जाखड़ ने महिलाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि कीट प्रबंधन एवं कीट साक्षरता अभियान चलाने वाला जींद जिला पूरे विश्व में अग्रणी है। इसके लिए अभियान के जनक स्व. डा. सुरेन्द्र दलाल का उन्होंने धन्यवाद किया और कहा कि डा. सुरेन्द्र दलाल ने लोगों को जहर मुक्त थाली प्रदान करने का जो सपना देखा था। उसे पूरा करने में दूरदर्शन की टीम पूरा सहयोग करेगी। उन्होंने कहा कि कीट प्रबंधन विषय पर महिलाओं द्वारा बनाए गए गीतों को रिकार्ड कर दूरदर्शन पर प्रस्तुत कर दूरदर्शन के लाखों दर्शकों को कीट प्रबंध एवं कीट साक्षरता बारे जागरूक किया जाएगा। कबड्डी फैडरेशन ऑफ इंडिया के उपप्रधान समरवीर कौशिक और एच.सी.एल. कंपनी के मैनेजर सुभाष कौशिक ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने उन्हें एक नई राह दिखाने का काम किया है। यहां से कीटों के बारे में उन्हें जो जानकारी मिली है, वह इस जानकारी को आगे बढ़ाने का काम करेंगे तथा अपने क्षेत्र के किसानों को भी इन पाठशालाओं में शामिल कर इस मुहिम को आगे बढ़ाने का काम करेंगे।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते ए.डी.सी. तथा गीत प्रस्तुत करती महिलाएं।
कीट प्रबंधन अभियान का नेतृत्व कर रहे कमल सैनी ने कहा कि अगर किसान 20-25 कीटों के बारे मेंं भी जानकारी प्राप्त कर लें तो फसल पर हजारों की लागत में खर्च होने वाले दवाई एवं खाद के पैसे को बचाया जा सकता है और इसके साथ-साथ ही अनेक बीमारियों से भी लोगों को बचाकर मानवता की सेवा की जा सकती है। उन्होंने कहा कि कीट प्रबंधन अभियान के तहत अब तक 161 किस्म के मांसाहारी तथा 43 किस्म के शाकाहारी कीटों की पहचान की जा चुकी है। उन्होंने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल हमेशा कहते थे कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटो के बिना खेती संभव नहीं है।
महिला कीटाचार्य अंग्रेजो देवी, मनीषा देवी, कमलेश देवी, मीना मलिक, कविता, संतोष देवी, गीता, राजवंती, अनारोदेवी व अन्य महिला कीटाचार्य किसानों ने अपने विचार सांझा करते हुए बताया कि उन्होंने किस तरीके से कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाई और अब वह बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए किस तरह से अच्छा उत्पादन लेकर अपने परिवार को जहरमुक्त भोजन उपलब्ध करवा रही हैं। पंजाब से आई जसबीर कौर ने इस पाठशाला से मिली जानकारी को पंजाब प्रांत में भी पहुंचाने की बात कही। उन्होंने कहा कि वे कीट साक्षरता विषय पर पंजाब में एक अभियान चलाएंगी। कार्यक्रम के उद्घाटन के अवसर पर मुख्य अतिथि जयबीर सिंह आर्य तथा अन्य अतिथिगणों को किसानों द्वारा मांसाहारी कीट हथजोड़ा का चित्र भेंट किया गया। इस अवसर पर कृषि विभाग से ए.पी.पी.ओ. अनिल नरवाल, एस.डी.ओ. देवेन्द्र बजवा, ए.डी.ओ. शैलेंद्र चहल भी मौजूद थे।
फोटो कैप्शन
 कबड्डी फैडरेशन ऑफ इंडिया के उपप्रधान को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान तथा कार्यक्रम में मौजूद किसान। 




लकीर का फकीर बना जींद का जिला प्रशासन

एक सप्ताह बाद भी नहीं शुरू हो पाया आवारा पशुओं को पकडऩे का अभियान
कृष्ण जन्माष्टमी पर प्रशासनिक अधिकारियों की अनदेखी का शिकार हुई सड़कों से पकड़ी गई बेसहारा गायें 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। शहर की सड़कों पर लोगों के लिए मुसिबत बनकर घूम रहे आवारा पशुओं को तथा बेसहारा गायों को पकड़कर गौशाला में छोडने के लिए जिला प्रशासन द्वारा 23 अगस्त से शुरू किए जाने वाला अभियान अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाया है। वहीं जिला प्रशासन की मदद के लिए सामाजिक संगठनों द्वारा 23 अगस्त से अपने स्तर पर शुरू किया गया आवारा पशुओं तथा बेसहारा गायों को पकडऩे का अभियान भी प्रशासन के सहयोग के बिना दम तोड़ रहा है। सामाजिक संगठनों द्वारा पिछले एक सप्ताह से अपने स्तर पर आवारा पशुओं और बेसहारा गायों के लिए चारे व पीने के पानी की व्यवस्था की जा रही है। यहां तक की कृष्ण जन्माष्टी पर भी जिला प्रशासन को बेसहारा गायों की याद नहीं आई। जिला प्रशासन द्वारा इस मुहिम से हाथ पीछे खींचने के कारण अब सामाजिक संगठनों में भी जिला प्रशासन के खिलाफ रोष पनपने लगा है। जिला प्रशासन की तरफ से हो रही इस अनदेखी के चलते अब सामाजिक संगठनों ने प्रशासनिक अधिकारियों की नींद तोडऩे के लिए पूरे जिले में इस अभियान को शुरू करने तथा पकड़े गए आवारा पशुओं को सरकारी कार्यालयों में रोकने की रणनीति तैयार की है।
 तालाब में रोकी गई सामाजिक संगठनों द्वारा सड़कों से पकड़ी गई बेसहारा गायें।

शहर की सड़कों पर घूम रहे आवारा पशु तथा बेसहारा गायें शहर के लोगों तथा राहगीरों के लिए भय का प्रयाय बने हुए हैं। इसके चलते कई बार शहर में बड़े हादसे भी हो चुके हैं। लोगों को इस भय से मुक्त करवाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा 23 अगस्त से शहर में आवारा पशुओं तथा बेसहारा गायों को पकडऩे के लिए विशेष अभियान चलाने का निर्णय लिया गया था। इसकी जिम्मेदारी नगर परिषद को सौंपी गई थी लेकिन जिला प्रशासन द्वारा इस अभियान चलाने के लिए रणनीति तैयार किए हुए आज एक सप्ताह बीत चुका है और अभी तक जिला प्रशासन की तरफ से इस तरफ कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। जिला प्रशासन के इस अभियान को सफल बनाने के लिए शहर के कई सामाजिक संगठन भी आगे आए थे और इन सामाजिक संगठनों ने इस अभियान को सफल बनाने के लिए 23 अगस्त से ही आवारा पशुओं तथा बेसहारा गायों को पकडऩे की मुहिम शुरू कर दी थी। पकड़े गए आवारा पशुओं तथा बेसहारा गायों को रोकने के लिए  कोई स्थान नहीं होने के कारण सामाजिक संगठनों ने सभी गायों तथा सांडों को शहर के ऐतिहासिक स्थल रानी तालाब में रोका था। गायों के लिए चारे तथा पानी की व्यवस्था भी सामाजिक संगठनों ने अपने स्तर पर ही की थी। सामाजिक संगठनों द्वारा इस अभियान को शुरू किए आज एक सप्ताह बीत चुका है लेकिन अभी तक जिला प्रशासन की तरफ से इन संगठनों को कोई सहयोग नहीं मिला है। जिला प्रशासन की अनदेखी के कारण सामाजिक संगठनों के सामने अब गायों के लिए खाने के लिए चारे की व्यवस्था का संकट खड़ा हो गया है। जिला प्रशासन की अनदेखी के चलते अब सामाजिक संगठनों का यह अभियान भी दम तोडऩे लगा है। प्रशासनिक अधिकारियों की अनदेखी के चलते सामाजिक संगठनों में गहरा रोष पनपने लगा है।

कृष्ण जन्माष्टमी पर प्रशासन ने नहीं ली गायों की सुध

जिला प्रशासन द्वारा आवारा पशुओं तथा बेसहारा गायों को पकडऩे के लिए 23 अगस्त से शुरू किए जाने वाला यह अभियान एक सप्ताह बाद भी धरातल पर नहीं उतर पाया। एक तरफ जहां जिले में बुधवार को हर्षोल्लास के साथ कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा था, वहीं दूसरी तरफ गोपाल की गायें जिला प्रशासन की अनदेखी का शिकार बनी हुई थी। जिला प्रशासन द्वारा गायों के चारे तथा पानी के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के चलते गौभक्तों में गहरा रोष था।

प्रशासन का नहीं मिल रहा सहयोग

अन्ना टीम के संयोजक हितेष हिंदुस्तानी ने कहा कि जिला प्रशासन द्वारा इस अभियान में पूरी तरह से सामाजिक संगठनों की अनदेखी की जा रही है। जिला प्रशासन की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। गायों के लिए चारे की व्यवस्था भी उन्हें खुद ही करनी पड़ रही है। हिंदुस्तानी ने कहा कि जिलेभर की गौशालाओं के सदस्यों की बुधवार को बैठक हुई है और बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया है कि प्रसाशनिक अधिकारियों को नींद से जगाने के लिए नरवाना, उचाना, जुलाना, पिल्लूखेड़ा, सफीदों में बेसहारा गायों को पकडऩे के लिए अभियान चलाया जाएगा और अभियान के दौरान पकड़ी गई गायों को सरकारी कार्यालयों के प्रांगण में रोका जाएगा। हिंदुस्तानी ने आरोप लगाया कि 26 अगस्त को जिला प्रशासन के साथ सभी गौभक्तों की बैठक हुई थी लेकिन बैठक में प्रशासनिक अधिकारियों की तरफ से उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला है।

गौभक्तों के साथ दोबारा होगी बैठक

इस बारे में जानकारी लेने के लिए जब उपायुक्त राजीव रत्न से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि अभी वह किसी दूसरे मामले में फंसे हुए हैं। इस अभियान को सही तरीके से शुरू करने के लिए वीरवार को दोबारा से सभी गौभक्तों की बैठक बुलाई गई है और इस बैठक में गौभक्तों से विचार-विमर्श करके अभियान की अगली रुपरेखा तैयार की जाएगी।

कच्छा चोर गिरोह की दस्तक की चर्चाओं ने उड़ाई लोगों की नींद

पुलिस प्रशासन ने कहा कोरी अफवाह

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जींद जिले में पिछले कई दिनों से कच्छा चोर गिरोह द्वारा दस्तक दिए जाने के चर्चे जोर-शोर से चल रहे हैं। कच्छा चोर गिरोह की दस्तक की चर्चों ने लोगों की रातों की नींद उड़ा दी है। सबसे ज्यादा हलचल ग्रामीण क्षेत्र में मची हुई है। कच्छा चोर गिरोह की दस्तक की चर्चाओं के कारण ग्रामीण क्षेत्र के लोग असमंजस की स्थिति में हैं। ग्रामीण क्षेत्र में तो हालात ऐसे हो गए हैं कि लोगों ने रात को बाहर सोना छोड़ दिया है और लोग अकेले-अकेले खेतों में जाने से भी कतराने लगे हैं। कई गांवों में तो ग्रामीणों ने रात को लोगों की सुरक्षा के लिए ठीकरी पहरे भी बैठाने शुरू कर दिए हैं। जिले में कच्छा चोर गिरोह की दस्तक के चर्चों के कारण ग्रामीणों द्वारा हर बाहरी व्यक्ति को शक की निगाह से देखा जा रहा है। कई गांवों में तो ग्रामीणों द्वारा संदिग्ध दिखने वाले लोगों की पिटाई करने के मामले भी सामने आए हैं लेकिन पुलिस प्रशासन कच्छा चोर गिरोह की दस्तक की चर्चाओं को केवल अफवाह करार दे रहा है।
पिछले कई दिनों से जिले में कच्छा चोर गिरोह की दस्तक की चर्चाओं का दौर चल रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में तो हर रोज कच्छा चोर गिरोह के सदस्यों के देखे जाने के नए-नए किस्से सुनने को मिल रहे हैं। इस तरह के चर्चों के कारण ग्रामीण क्षेत्र में दहस्त का माहौल बना हुआ है। कच्छा चोर गिरोह की दस्तक के चर्चों के कारण ग्रामीण क्षेत्र में तो ग्रामीणों ने ठीकरी पहरे लगा दिए हैं। रात के अंधेरे में ग्रामीण लटठों, डंडों, तेजधार हथियारों के साथ पहरा देने को मजबूर हैं। कच्छा चोर गिरोह के भय के कारण ग्रामीणों ने रात को बाहर सोना भी छोड दिया है। लोग रात को दरवाजे बंद कर मकानों के अंदर सोने को मजबूर हैं। इतना ही नहीं ग्रामीण खेतों में भी अकेले जाने से कतराने लगे हैं। कच्छा चोर गिरोह के डर के मारे लोग खेतों में काम पर जाते समय भी डंडों के साथ ग्रुप में निकलते हैं। कच्छा चोर गिरोह के भय के चलते ग्रामीणों द्वारा गांव में आने-जाने वाले हर व्यक्ति पर कड़ी नजर रखने के साथ-साथ गहनता से पूछताछ भी की जा रही है। कई गांवों में तो संदिज्ध दिखने वाले व्यक्तियों की ग्रामीणों द्वारा पिटाई करने के मामले भी प्रकाश में आए हैं।

पिल्लूखेड़ा और बिघाना में कच्छा चोर गिरोह के सदस्यों के चर्चे भी बने अफवाह

गत दिनों पिल्लूखेड़ा खंड के ढाठरथ गांव में कच्छा चोर गिरोह के एक सदस्य के पकड़े जाने तथा अलेवा खंड के बिघाना में भी कच्छा चोर गिरोह के 2 सदस्य पकड़े जाने के कारण यहां काफी बवाल रहा। ग्रामीणों द्वारा पकड़े गए इन व्यक्तियों की पहले तो जमकर छितर परेड़ की गई और बाद में इन्हें पुलिस के हवाले कर दिया गया। इस तरह 2 अलग-अलग स्थानों पर कच्छा चोर गिरोह के सदस्य पकड़े जाने की यह किस्से जल्द ही पूरे जिले में फैल गए लेकिन अलगे ही दिन यह किस्से केवल कोरी अवफवाह बनकर रह गए। पिल्लूखेड़ा पुलिस के अनुसार ढाठरथ गांव से कच्छा चोर गिरोह के सदस्य के नाम से पकड़ा गए युवक की पहचान यू.पी. के साहरनपुर जिले के निवासी के रूप में हुई, जो मानसिक रोगी निकला और उसके परिजनों ने उसके मानसिक रोगी होने के सबूत भी पुलिस के सामने पेश किए। वहीं बिघाना गांव से कच्छा चोर गिरोह के सदस्यों के नाम से ग्रामीणों द्वारा पकड़े गए दोनों युवकों की पहचान भी पास के गांव के युवकों के रुप में हुई और बाद में अलेवा पुलिस ने पंचायत में हुए समझौत के आधार दोनों युवकों को छोड़ दिया।

संदिग्ध दिखने वाले व्यक्तियों पर रखें नजर

वरिष्ठ नागरिक श्यामलाल गुप्ता का कहना है कि लोगों को बाहरी व्यक्तियों पर कड़ी नजर रखनी चाहिए। कुछ बाहर से आने वाले लोग रात को चोरी की घटनाओं को अंजाम देने के लिए दिन में गांव में रेकी करते हैं। दिन में गांव में रेकी करने के बाद रात को चोरी की घटनाओं को अंजाम देते हैं। रात को चोरी की घटनाओं को अंजाम देने वाला यह कोई यू.पी. का बड़ा चोर गिरोह हो सकता है, जो दिन में गांव में किसी न किसी रुप में घूसकर गांव की रेकी करता है और रात को चोरी की घटनाओं को अंजाम देता है। चोरी की घटना को अंजाम देते समय यदि कोई व्यक्ति बीच में रोड़ा बनता नजर आता है तो यह चोर गिरोह के सदस्य उस व्यक्ति पर हमला करने से भी नहीं चुकते। इसलिए लोगों को इस तरह के लोगों पर नजर रखनी चाहिए।

झूठी अफवाह न फैलाएं लोग

पुलिस अधीक्षक बलवान सिंह राणा ने कहा कि जिले में किसी कच्छा चोर गिरोह ने कोई दस्तक नहीं दी है। यह केवल कोरी अफवाह हैं। अभी तक जिले में केवल 2 मामले इस तरह के सामने आए हैं और दोनों के दोनों खाली अवफवाह थे। दोनों मामलों में पकड़ा गया कोई भी व्यक्ति इस गिरोह का सदस्य नहीं था। इसलिए लोगों को इस तरह की अफवाह नहीं फैलानी चाहिएं और बाहर से आने वाले व्यक्तियों को भी बिना किसी वजह के परेशान नहीं करना चाहिए।
 काला कच्छा चोर गिरोह के सदस्य के रुप में पकड़े गए युवक को घेरे हुए भीड़ तथा पुलिस हिरासत में मौजूद पकड़े गए युवक का फाइल फोटो, जो बाद में मानसिक रोगी निकला।

रविवार, 25 अगस्त 2013

अच्छे उत्पादन के लिए किसान फसल को समय पर दें पूरे पोषक तत्व

कीट ज्ञान अर्जित करने के लिए आदमपुर तथा लाखनमाजरा से भी पहुंचे किसान

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस समय कपास की फसल में फूल से टिंड्डे बन रहे हैं। इसलिए इस समय कपास की फसल को पोषक तत्व की सबसे ज्यादा जरुरत है। अगर इस समय फसल को पूरी मात्रा में पोषक तत्व दे दिए जाएं तो फसल से अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। डा. सैनी शनिवार को राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी कीट साक्षरता पाठशाला में मौजूद किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। पाठशाला में किसानों के अनुभव जानने के लिए आल इंडिया रेडियो के रोहतक स्टेशन से सम्पूर्ण भाई भी किसानों के बीच पहुंचे थे। इसके अलावा आदमपुर तथा लाखनमाजरा के किसान भी कीट ज्ञान अर्जित करने के लिए पाठशाला में पहुंचे थे। आदमपुर तथा लाखनमाजरा से आए किसानों ने कीटाचार्य किसानों से कीटों के क्रियाकलापों तथा बिना कीटनाशक का प्रयोग किए फसल से अच्छा उत्पादन लेने के गुर सीखे। 
डा. कमल सैनी ने बताया कि इस समय कपास की फसल में रस चूसक कीट सफेद मक्खी तथा हरे तेले का प्रकोप बहुत ज्यादा है। यह कीट पौधे से रस चूसते हैं। इससे पौधे की ताकत कम हो जाती है, जिस कारण पौधा सही ढंग से टिंड्डे को विकसित नहीं कर पाता है और इससे उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। डा. सैनी ने 
 पाठशाला में पत्रकार सम्पूर्ण भाई को अपने अनुभव बताते किसान।
कहा कि ऐसे समय में पौधे को पोषक तत्व देने के लिए किसानों को चाहिए कि वह 100 लीटर पानी में आधा किलो जिंक, अढ़ाई किलो डी.ए.पी. तथा अढ़ाई किलो यूरिया का घोल तैयार कर पौधों पर हर सप्ताह इसका छिड़काव करें। तीनों रासायनिक खादों को छिड़काव करने से एक दिन पहले मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन में पानी में भिगो दें, ताकि वह पानी में अच्छी तरह से घूल सके। डा. सैनी ने कहा कि इसके अलावा किसानों को किसी भी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग करने की जरुरत नहीं है। कीटाचार्य किसान जोगेंद्र, महाबीर, मनबीर, सुरेश, जयभगवान, चतर सिंह ने आदमपुर तथा लाखनमाजरा से आए किसानों को बताया कि वह इस घोला का छिड़काव दोपहर बाद करें। क्योंकि सुबह का समय पौधों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। पौधे द्वारा बीज बनाने की प्रक्रिया ज्यादातर सुबह के समय में की जाती है। इसलिए इस समय में पौधे के साथ ज्यादा छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। आदमपुर से आए किसान कुलदीप, दलीप, दलसुख, सुंदर, राजेश, नरेश ने पाठशाला में मौजूद कीटाचार्य किसानों के समुख अपनी समस्या रखते हुए बताया कि उन्होंने अपनी कपास की फसल में सफेद मक्खी को कंट्रोल करने के लिए 2-2 बार कीटनाशकों का छिड़काव किया है लेकिन इसके बाद भी उनकी फसलों में सफेद मक्खी का प्रकोप कम होने की बजाए निरंतर बढ़ता जा रहा है और आज उनके क्षेत्र में स्थिति ऐसी हो चुकी है कि किसान खड़ी की खड़ी फसलों को ट्रैक्टर से जोतने को मजबूर हैं। कीटाचार्य किसानों ने बाहर से आए किसानों की दुविधा को दूर करते हुए बताया कि जहां-जहां कीटों को कीटनाशक के माध्यम से काबू करने का प्रयास किया गया है, वहां-वहां आज इसी तरह की स्थिति बनी हुई है। इसलिए कीटों के साथ छेड़छाड़ करने की बजाए पौधों को पोषक तत्व देने की तरफ किसान अपना ध्यान दें और साथ-साथ कीटों की पहचान करें तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हासिल करें, ताकि उनके मन से भय व भ्रम की स्थिति को दूर किया जा सके। फसल का निरीक्षण करते समय कीटाचार्य किसानों ने बाहर से आए किसानों को कपास की फसल में मौजूद मकड़ी को एक शाकाहारी कीटों का शिकार करते हुए दिखाया।
 कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी मकडिय़ां शाकाहारी कीटों का शिकार करते हुए।

यह-यह मांसाहारी कीट थे फसल में मौजूद

शनिवार को किसानों ने कपास की फसल का मुआयना किया और कीटों की गिनती कर कीट बही खाता तैयार किया। इस दौरान किसानों को कपास की फसल में हथजोड़ा, तुलसा मक्खी, लोपा मक्खी, लेडी बर्ड बीटल, क्राइसोपा तथा मकड़ी की उपस्थिति दर्ज की। कीटाचार्य किसानों ने बताया कि इस समय कपास की फसल में शाकाहारी कीटों से ज्यादा मांसाहारी कीट मौजूद हैं,जो स्वयं ही शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर फसल में प्राकृति कीटनाशी का काम करते हैं।

किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही खेती

आल इंडिया रेडियो के रोहतक स्टेशन से आए सम्पूर्ण भाई ने किसानों से तहर-तरह के सवाल-जवाब किए और उनके अनुभव को रिकोर्ड किया। सम्पूर्ण ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने यह जो मुहिम शुरू की है यह वास्तव में एक अनोखी पहल है। आज उनके पास फसल में आने वाली बीमारियों व कीटों के बारे में जानकारी लेने के लिए प्रदेशभर के सभी जिलों के किसानों के फोन आते हैं और उनमें ज्यादातर ऐसे किसान होते हैं, जिनका कीटनाशकों से विश्वास उठ चुका है। सम्पूर्ण ने कहा कि कीट ज्ञान और जहरमुक्त खेती आज हर किसान की जरुरत बन चुका है, क्योंकि खेती में अप्रत्यक्ष रुप से बढ़ रहे खर्च से आज खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बनती जा रही है। 

यह है भिन्न-भिन्न गांव की साप्ताहिक कीट समीक्षा

गांव का नाम सफेद मक्खी हरा तेला  चूरड़ा
रामराय 0.4              1.1       0
रधाना 0.5              0.2 0.3
ईगराह 0.6              0.7 0.05
निडानी 0.5              0.6 0.2
ललीतखेड़ा              0.6              0.7 0.1




जिला प्रशासन सुस्त, सामाजिक संगठन चुस्त

डी.सी. के आदेशों के बाद भी नहीं शुरू हुआ आवारा पशुओं को पकडऩे का अभियान
शहर के सामाजिक संगठनों ने दिया अभियान को अंजाम

नरेंद्र कुंडू
जींद। जींद शहर में सड़कों पर घूम रहे आवारा पशुओं को सड़कों से हटाने का जो काम जिला प्रशासन को करना था, वह काम जिला प्रशासन की बजाए शहर के कुछ सामाजिक संगठनों के कार्यकत्ताओं ने किया है। सामाजिक संगठन के कार्यकत्ताओं ने शनिवार को एक विशेष अभियान चलाकर शहर में घूम रहे आवारा पशुओं को एक स्थान पर एकत्रित कर शहर की गौशालाओं में छोडऩे का काम किया है। जबकि शहर के आवारा पशुओं को सड़कों से हटाकर गौशालाओं में छोडऩे का काम जिला प्रशासन द्वारा किया जाना था। इसकी जिम्मेदारी जिला प्रशासन ने नगर परिषद के अधिकारियों को सौंपी थी और 23 अगस्त से इस अभियान का श्रीगणेश किया जाना था। इस अभियान की शुरूआत के लिए खुद उपायुक्त राजीव रत्न द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों को आदेश जारी किए गए थे लेकिन उपायुक्त के आदेशों के बाद भी 23 अगस्त से इस अभियान की शुरूआत नहीं हो पाई।  
शहर की सड़कों पर आवारा पशुओं के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए तथा आवारा पशुओं से शहर के लोगों, दुकानदारों तथा वाहन चालकों होने वाली परेशानी को दूर करने के लिए जिला प्रशासन ने आवारा पशुओं को सड़कों से पकड़ कर गौशालाओं में छोडऩे के लिए योजना तैयार की थी। इस योजना को अमल में लाने के लिए उपायुक्त राजीव रत्न ने प्रशासनिक अधिकारियों को 23 अगस्त से इस अभियान की शुरूआत करने के आदेश जारी किए थे। इस अभियान को अमलीजामा पहनाने की जिम्मेदारी नगर परिषद को सौंपी गई थी। नगर परिषद के अधिकारियों द्वारा आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए एक टीम का गठन किया जाना था। अभियान को शुरू करने से पहले पशुपालकों को सूचना देने के लिए एक सप्ताह तक नगर परिषद द्वारा शहर में मुनादी भी करवाई जानी थी, ताकि कोई भी पशुपालक अपने पशुओं को शहर में आवारा न छोड़े। नगर परिषद द्वारा 23 अगस्त से इस अभियान की शुरूआत की जानी थी लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों पर उपायुक्त के आदेशों को कोई प्रभाव नहीं हुआ और इसके चलते 23 अगस्त से इस अभियान की शुरूआत नहीं हो पाई। जिला प्रशासन के अधिकारियों की सुस्ती को देखते हुए शहर के सामाजिक संगठन आगे आए और सामाजिक संगठनों के कार्यकत्ताओं ने इस मुहिम को अंजाम दिया। गौरक्षा दल, बजरंग दल, आर्य समाज, हरियाणा तकनीकी संघ, विश्व हिंदू परिषद, अन्ना टीम तथा कई अन्य सामाजिक संगठनों ने मिलकर शहर की सड़कों पर घूम रहे आवारा पशुओं को पकड़कर रानी तालाब में एकत्रित किया। यहां से सभी गायों को शहर की गौशालाओं में भेजा गया। इस प्रकार जो काम जिला प्रशासनिक अधिकारियों को करना चाहिए था, वह काम शहर के सामाजिक संगठनों ने किया।

पशुओं को छोडऩे वाले पशुपालकों के खिलाफ भी होनी थी कार्रवाई

जिला प्रशासन द्वारा आवारा पशुओं को सड़कों से पकड़कर गौशालाओं में छोडऩे के लिए जो योजना बनाई गई थी। उस योजना के अनुसार पशुओं का दूध दोह कर पशुओं को खुला छोडऩे वाले पशु पालकों के खिलाफ कार्रवाई अमल में लाने का प्रावधान था। इस योजना के अनुसार जिस पशु पालक का पशु आवारा घूमते पकड़ा जाए उस पशुपालक को पशु को छुड़वाने के लिए जुर्माना भरना पड़ेगा। जुर्माने के तौर पर पशु पालक को गौशाला में 2100 रुपए तथा चारा जुर्माने के तौर पर देने का प्रावधान किया गया था लेकिन जिला प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के कारण यह योजना तय समय सीमा में शुरू नहीं हो पाई।

केवल मुनादी तक ही सिमटा अभियान 

जिला प्रशासन द्वारा आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए जो योजना तैयार की गई थी उस योजना के अनुसार अभियान शुरू करने से पहले नगर परिषद द्वारा शहर में एक सप्ताह तक मुनादी करवाई जानी थी। मुनादी के एक सप्ताह बाद इस अभियान की शुरूआत करनी थी, ताकि कोई भी पशु पालक अपने पशुओं को आवारा छोडने की बजाए अपने घरों में बांध ले। नगर परिषद द्वारा शहर में मुनादी तो करवा दी गई लेकिन पशुओं को पकडऩे के लिए अभियान की शुरूआत नहीं की गई। इस प्रकार जिला प्रशासन के अधिकारियों की लापरवाही के चलते यह अभियान केवल मुनादी तक ही सिमट कर रह गया।

सड़कों से हटा मौत का सामान

शहर की सड़कों पर घूम रहे आवारा पशु राहगीरों तथा वाहन चालकों के लिए किसी मौत के सामान से कम नहीं हैं। आवारा पशुओं के कारण रात के अंधेरे में कई बार बड़े हादसे हो चुके हैं। सड़कों पर एक दम से वाहनों के सामने आवारा पशु आने के कारण वाहन चालक के दुर्घटनाग्रस्त होने के साथ-साथ कई बार पशु भी चोटिल हो जाता था। इसके अलावा 24 मार्च 2012 में जींद के इनैलो विधायक डा. हरिचंद मिढ़ा भी 2 सांडों की चपेट में आने के कारण गंभीर रुप से घायल हो गए थे, वहीं कई माह पूर्व सांडों की लड़ाई के दौरान चपेट में आने के कारण वार्ड 15 के एक व्यक्ति की मौत भी हो चुकी है। इस प्रकार से सड़कों पर घूम रहे आवारा पशु राहगीरों और वाहन चालकों के लिए बड़ी मुसिबत बने हुए हैं। सामाजिक संगठनों द्वारा आवारा पशुओं को सड़कों से पकड़कर गौशाला में छोड़े जाने का अभियान चलाने के बाद से सड़कों से मौत का सामान हट गया है।

पशु तस्करी पर भी लगेगी रोक

शहर में आवारा पशुओं की बढ़ती तादात के कारण शहर में पशु तस्कर गिरोह भी काफी सक्रीय है। यह गिरोह रात के अंधेरे में तस्करी की घटनाओं को अंजाम देते हैं। जिला प्रशासन द्वारा आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए अभियान चलाए जाने के बाद शहर में बढ़ रही पशु तस्करी की घटनाओं पर भी अंकुश लगेगा।

गायों को रानी तालाब में किया गया एकत्रित

गौरक्षा दल के साथ-साथ शहर के सामाजिक संगठनों द्वारा आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए शहर में चलाए गए अभियान के दौरान पकड़े गए आवारा पशुओं तथा गायों को शहर के रानी तालाब में अस्थाई तौर पर रोका गया। यहां पर गायों तथा आवारा पशुओं के लिए पीने के पानी तथा चारे की व्यवस्था की गई। पशुओं के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करने के लिए फायर ब्रिगेड के अधिकारियों ने सामाजिक संगठनों की मदद की। फायर ब्रिगेड की गाड़ी के माध्यम से रानी तालाब में पशुओं के लिए पानी भरवाया गया। बाद में सभी गायों को शहर की गौशालाओं में भेजा गया। अभियान की शुरूआत करने से पहले गौरक्षा संघ हरियाणा के प्रधान योगेंद्र आर्य की अध्यक्षता में एक बैठक का आयोजन भी किया गया। बैठक में गायों को पकड़कर गौशालाओं में छोडने का निर्णय लिया गया।

जिला प्रशासन कर रहा अनदेखी

गौरक्षा दल के नगर प्रमुख संजय ने बताया कि शहर की सड़कों पर आवरा हालत में घूम रही गायों तथा अन्य आवारा पशुओं को पकडऩे के लिए वह कई बार जिला प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं। उनकी मांगों पर ही उपायुक्त द्वारा 23 अगस्त से यह अभियान चलाने के निर्देश जारी किए गए थे और उनके संगठन के कार्यकत्र्ता भी जिला प्रशासन के सहयोग के लिए आगे आए थे। उन्होंने तो अपना काम कर दिया लेकिन जिला प्रशासन की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिला। संजय ने कहा कि अब उनका संगठन जींद में गौचरण भूमि को मुक्त करवाने के लिए अभियान चलाएगा अगर जिला प्रशासन ने इस दौरान भी उनकी अनदेखी की तो वह अनशन पर बैठ कर अपना विरोध दर्ज करवाएंगे।
 अभियान को शुरू करने से पहले पत्रकारों से बातचीत करते गौरक्षा दल के सदस्य। 

 रानी तालाब में गायों के लिए पानी की व्यवस्था करते सामाजिक संगठन के कार्यकत्ता । 




सफेद मक्खी को कंट्रोल करने में मांसाहारी कीट सबसे कारगर हथियार : डा. सिहाग

जिंक, यूरिया व डी.ए.पी. का घोल तैयार कर फसल पर निरंतर करें छिड़काव

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कृषि विभाग के जिला उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि प्रदेश में कपास की फसल में जहां-जहां किसानों ने सफेद मक्खी को कीटनाशकों की सहायता से कंट्रोल करने के लिए का प्रयास किया है, वहां-वहां सफेद मक्खी का प्रकोप निरंतर बढ़ता जा रहा है। कई जिलों में तो स्थिति ऐसी हो चुकी है कि सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण कई-कई एकड़ में खड़ी कपास की फसल पूरी तरह से तबाह हो गई है लेकिन जींद जिले के कीटाचार्य किसानों ने डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा दिए गए कीट ज्ञान के बूते पर फसल में मौजूद मांसाहारी कीटों की सहायता से ही सफेद मक्खी को कंट्रोल कर यह सिद्ध कर दिया है कि किसी भी प्रकार के शाकाहारी कीट को नियंत्रित करने के लिए किसी कीटनाशक की जरुरत नहीं है, बल्कि शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए फसल में मौजूद प्राकृति कीटनाशी ही काफी हैं। इसी का परिणाम है कि अभी तक जींद ब्लाक में कहीं पर भी सफेद मक्खी की संख्या कपास की फसल में नुक्सान पहुंचाने के कागार पर नहीं पहुंच पाई है। डा. सिहाग बुधवार को निडानी तथा रधाना गांव में चल रही डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशालाओं में फसल का निरीक्षण करने के लिए पहुंचे थे। इस अवसर पर उनके साथ कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी, डा. रमेश, डा. शैलेंद्र चहल भी मौजूद थे।
डा. सिहाग ने किसान पाठशालाओं में मौजूद किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि जहां-जहां किसानों ने सफेद मक्खी के साथ छेडख़ानी की है, वहां-वहां स्थिति आज बहुत भयंकर रुप धारण कर चुकी है। हिसार जिले में इसके ताजा परिणाम देखने को मिल रहे हैं। आज हिसार जिले में सफेद मक्खी का प्रकोप चरम पर है और इसके प्रकोप के कारण सैंकड़ों एकड़ फसल नष्ट हो चुकी है। डा. सिहाग ने निडानी के किसानों की पीठ थपथपाते हुए कहा कि निडानी के किसानों ने स्कूली विद्यार्थियों को इस मुहिम से जोड़कर एक नई पहल शुरू की है। इससे आक्रोषित होकर आज हिसार जिले के किसान रोड जाम कर रहे हैं। कीटाचार्य किसान महाबीर पूनिया, जयभगवान, सुरेंद्र, जगमेंद्र, सुरेश ने बताया कि किसानों को फसल में मौजूद किसी भी शाकाहारी कीट के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए और न ही कीटनाशक के माध्यम से उसे नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए। किसान कीट के साथ जितनी भी छेड़छाड़ करेगा या उसे नियंत्रित करने की कोशिश करेगा, उस कीट की संख्या उतनी ही ज्यादा बढ़ेगी। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए फसल में काफी संख्या में मांसाहारी कीट मौजूद रहते हैं, जो इसका शिकार कर इसे कंट्रोल कर लेते हैं। फिलहाल कपास की फसल में मकडिय़ां, क्राइसोपा, लेडी बीटल काफी संख्या में मौजूद हैं। यह सभी मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के परभक्षी हैं और बड़े ही चाव से सफेद मक्खी का शिकार करते हैं। उन्होंने अपनी फसलों का उदहारण देते हुए बताया कि उनकी फसलों में भी सफेद मक्खी है लेकिन उन्होंने कभी भी उसे नियंत्रित करने के लिए किसी भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया। उन्होंने कहा कि कपास की फसल में मौजूद सफेद मक्खी एक रस चूसक कीट है और यह रस चूसकर अपना जीवन चक्र चलाता है। इसलिए किसानों को चाहिए कि वे फसल की खुराक पर ज्यादा ध्यान दें। ऐसी समय में पौधों को पौषक तत्वों की ज्यादा जरुरत होती है। इसलिए किसानों को चाहिए कि वे 100 लीटर पानी में आधा किलो जिंक, अढ़ाई किलो यूरिया तथा अढ़ाई किलो डी.ए.पी. का घोल तैयार कर प्रति एकड़ में इसका छिड़काव करें। हर 10 दिन बाद इस घोल का छिड़काव बेहद जरुरी है। इससे पौधे को पर्याप्त मात्रा में खुराक मिलती रहेगी और पौधा निरंतर अपनी बढ़वार करता रहेगा। कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि जींद जिले के कीटाचार्य किसानों ने अपने प्रयोगों से यह सिद्ध कर दिया है कि किसी भी कीट को नियंत्रित करने के लिए किसी कीटनाशक की जरुरत नहीं है। जींद ब्लाक के अलावा अन्य जिलों में सफेद मक्खी के बढ़ते प्रकोप का यह ताजा उदहाराण इनकी इस सफलता का गवाह है। क्योंकि दूसरे क्षेत्र के किसानों ने सफेद मक्खी को कंट्रोल करने के लिए बेइंताह कीटनाशकों का प्रयोग किया है लेकिन वहां सफेद मक्खी कंट्रोल होने की बजाए निरंतर बढ़ती जा रही है। इस दौरान निडानी गांव के राजकीय हाई स्कूल के 2 दर्जनभर से भी ज्यादा विद्यार्थी भी कीट ज्ञान अर्जित करने के लिए किसान खेत पाठशाला में पहुंचे थे। 
 स्कूली बच्चों को कीटों की पहचान करवाता किसान तथा कीट ज्ञान हासिल करने के लिए पाठशाला में भाग लेते बच्चे।

शनिवार, 10 अगस्त 2013

कीटों की मास्टरनियों ने अनोखे ढंग से मनाया तीज का त्यौहार

खेतों में पहुंचकर कीटों को झुलाया झूला और कीटों पर आधारित गीत गाए

नरेंद्र कुंडू 

जींद। एक तरफ जहां शुक्रवार को प्रदेशभर में तीज का पर्व परंपरागत रीति-रिवाज के साथ मनाया गया, वहीं दूसरी तरफ कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम से जुड़ी ललीतखेड़ा, निडाना, निडानी की विरांगनाओं ने तीज के पर्व को एक अनोखे ढंग से मना। कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम से जुड़ी इन विरांगनाओं ने तीज पर्व के पावन अवसर पर खेतों में जाकर पेड़ों पर झूल डाली तथा वहां फसल में मौजूद कीटों को झूला झुलाया और कीटों के जीवन चक्र पर तैयार किए गए गीत गाए। झूला झूलाने की शुरूआत महिलाओं ने हथजोड़े नामक मांसाहारी कीट को झूला झुलाकर की। कीटों की मास्टरनियों ने एक अनोखे ढंग से तीज का पर्व मनाकर किसानों को जहर मुक्त खेती के लिए प्रेरित कर पर्यावरण बचाने का संदेश दिया।
हरियाणा की संस्कृति के साथ जुड़े त्यौहारों में तीज का पर्व अपना विशेष स्थान रखता है और तीज के पर्व को अन्य त्यौहारों का जनक भी कहा जाता है। क्योंकि हरियाणा की संस्कृति में तीज के पर्व के बाद ही अन्य त्यौहारों की शुरूआत होती है। इसलिए कहा जाता है कि 'आई तीज बो गई त्यौहारों का बीज'। तीज का त्यौहार विशेष रूप से महिलाओं का त्यौहार होता है। इस दिन महिलाएं सजधज कर एक साथ एकत्रित होकर झूला झूलती हैं और मंगल गीत गाती हैं। इस दिन महिलाएं घर में गूलगूले, सुवहाली, पूड़े तथा अन्य मीठे पकवान भी तैयार करती हैं। पूरे प्रदेश में महिलाएं इसी तरीके से तीज का पर्व मनाती हैं लेकिन कीट ज्ञान की क्रांति से जुड़ी निडाना, निडानी व ललीतखेड़ा की वीरांगनाओं ने शुक्रवार को तीज का पर्व बिल्कुल अलग अंदाज में मनाया। यह सभी वीरांगनाएं सुबह-सुबह सजधज कर ललीतखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची और यहां पर पेड़ों पर झूल डाली। तीज की शुरूआत महिलाओं ने मांसाहारी कीट हथजोड़े को झूला झुलाकर की। इस अवसर पर महिलाओं ने कीटों के जीवनचक्र से जुड़े गीत 'कीडय़ां का कट रहया चाला ऐ मैने तेरी सूं, देखया ढंग निराला ऐ मैने तेरी सूं', 'मैं बीटल हूं मैं कीटल हूं, तुम समझो मेरी मैहता को', हे बीटल म्हारी मदद करो हमनै तेरा एक 

सहारा है, जमीदार का खेत खा लिया तमनै आकै बचाना सै' आदि गीत सुनाए। महिला किसान सुनीता, अनिता, मीनी, अंग्रेजो, राजवंती, बिमला, यशवंती, पूजा, गीता, कमलेश ने बताया कि तीज का त्यौहार सावन के महीने में आता है। इस त्यौहार का हरियाणा की संस्कृति में विशेष महत्व है। यह त्यौहार सीधे-सीधे हरियाली का प्रतिक है और पर्यावरण के साथ हरियाली का विशेष संबंध है लेकिन आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों और उर्वरकों का प्रयोग होने के कारण हमारा पर्यावरण दूषित हो रहा है। पर्यावरण दूषित होने के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। मनुष्य लगातार गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहा है। उन्होंने बताया कि किसान अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर तथा अज्ञानता के कारण इस कीटनाशक रूपी दलदल में फंसा हुआ है। किसान अपनी अज्ञानता के कारण ही बेजुबान कीटों को मार रहा है। जबकि खेती में कीटों का विशेष महत्व होता है। महिलाओं ने बताया कि त्यौहार एक तरह से खुशियों का प्रतिक होता है लेकिन आज मनुष्य के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आने और पर्यावरण दूषित होने के कारण मनुष्य की यह खुशियां भी बिखरती जा रही हैं। अगर हमें अपनी खुशियां बरकरार रखनी हैं और अपने त्यौहारों की परम्परा को बचाए रखना है तो हमें सबसे पहले अपने पर्यावरण को बचाना होगा लेकिन यह तभी संभव है जब हम सभी मिलकर कीट ज्ञान हासिल कर जहरमुक्त

खेती की तरफ अपने कदम बढ़ाएंगे। इसलिए किसानों को चाहिए कि वे वर्षों से कीटों के साथ चली आ रही इस अंतहीन लड़ाई को खत्म कर कीटों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाएं। क्योंकि बिना कीट ज्ञान के जहरमुक्त खेती संभव नहीं है। निडाना, निडानी और ललीतखेड़ा की महिलाओं ने एक अनोखे ढंग से तीज का पर्व मनाकर किसानों को पर्यावरण को बचाने के लिए जहरमुक्त खेती का संदेश दिया। 


शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

छात्राओं के लिए मर्ज बन गई नीली गोली

सामान्य अस्पताल प्रशासन को नहीं छात्राओं के स्वास्थ्य की फिक्र

चिकित्सक की बजाए ट्रेनिंग नर्सों के हाथ में थी छात्राओं के उपचार की कमान

नरेंद्र कुंडू
जींद। छात्राओं में खून की कमी दूर करने के लिए दी जा रही नीली गोलियां अब छात्राओं के लिए मर्ज बन चुकी हैं। मारे दर्द के छात्राओं का दम निकला जा रहा है लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी छात्राओं के इस दर्द को नजरअंदाज कर रहे हैं। जींद के सामान्य अस्पताल में तो आलम यह है कि यहां मौजूद चिकित्सक आयरन
सामान्य अस्पताल में उपचाराधीन छात्राएं दर्द के मारे बिलखती हुई।
की गोलियां लेने के बाद बीमार होकर आने वाली छात्राओं के उपचार की तरफ ध्यान देना भी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहे हैं। अस्पताल प्रशासन के अधिकारी भी इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। अस्पताल प्रशासन के अधिकारियों की लापरवाही के कारण नीली गोलियों का खौफ छात्राओं के जहन में लगातार बढ़ता जा रहा है। सामान्य अस्पताल के एमरजैंसी वार्ड में तैनात चिकित्सकों की लापरवाही वीरवार को उस समय फिर उजागर हुई, जब आयरन की गोलियां लेने के बाद तबीयत बिगडऩे पर गांव धनखड़ी के राजकीय उच्च विद्यालय की 11 छात्राओं को उपचार के लिए यहां लाया गया। एमरजैंसी वार्ड में तैनात चिकित्सक द्वारा इन छात्राओं का ठीक से उपचार करना तो दूर, चिकित्सक ने एक बार भी इन छात्राओं के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी लेने की जहमत तक नहीं उठाई। एमरजैंसी वार्ड में मौजूद ट्रेङ्क्षनग नर्सों द्वारा इन छात्राओं का उपचार किया गया।
धनखड़ी गांव के राजकीय उच्च विद्यालय में बुधवार को छात्राओं को आयरन की गोलियां बांटी गई थी। स्वास्थ्य विभाग की टीम की मौजूदगी में सभी छात्राओं को आयरन की गोलियां खिलाई गई। गोलियां लेने के बाद बुधवार को तो छात्राएं ठीक-ठाक घर चली गई लेकिन जैसे ही वीरवार सुबह स्कूल में पहुंची तो कई छात्राओं को पेट दर्द, सिर दर्द की शिकायत हुई। स्कूल प्रशासन ने मामले को गंभीरता से लेते हुए सभी छात्राओं को उपचार के लिए सी.एच.सी. कंडेला में पहुंचाया लेकिन यहां मौजूद स्टाफ ने छात्राओं का उपचार करने की बजाए छात्राओं को जींद के सामान्य अस्पताल में रैफर कर दिया। इसके बाद स्कूल स्टाफ के सदस्य सभी छात्राओं को उपचार के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में ले आए लेकिन यहां स्थिति वहां से भी बुरी थी। यहां मौजूद स्टाफ ने छात्राओं के साथ आए अध्यापकों से छात्राओं की पर्ची के पैसे की मांग की। इसके बाद अध्यापकों ने अपनी जेब से पैसे खर्च कर छात्राओं की पर्ची बनवाकर छात्राओं का उपचार शुरू करवाया।

ट्रेनिंग नर्सों ने किया छात्राओं का उपचार

सामान्य अस्पताल के एमरजैंसी वार्ड में मरीजों के उपचार के लिए चिकित्सक तो मौजूद था लेकिन ड्यूटी पर मौजूद इस चिकित्सक ने एक बार भी दर्द से करहा रही छात्राओं के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी लेने की जहमत नहीं उठाई। वार्ड में मौजूद चिकित्सक द्वारा छात्राओं का उपचार शुरू नहीं करने पर वार्ड में मौजूद ट्रेनिंग नर्सों ने ही छात्राओं का उपचार किया।

जबरदस्ती खिलाई गोलियां

राजकीय उच्च विद्यालय धनखड़ी की 9वीं कक्षा की छात्रा अंजू, माफी, मन्नू, छात्र अंकित, 8वीं कक्षा की छात्रा नीतू, रेनू, रीतू, 7वीं कक्षा की छात्रा अंजू, अन्नू, ज्योति, तथा छठी कक्षा की छात्रा मोनिका ने कहा कि आयरन की गोलियां देने आए स्वास्थ्य विभाग की टीम के सामने ही उन्होंने गोलियां लेने से मना कर दिया था लेकिन स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जबरदस्ती उन्हें गोलियां खिलाई।

पैसे लेकर बनाई पर्ची

धनखड़ी गांव के राजकीय उच्च विद्यालय के पी.टी.आई. अध्यापक सतबीर ने बताया कि जब वह स्कूल की 11 छात्राओं को उपचार के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में लेकर पहुंचा तो यहां मौजूद चिकित्सक ने उसे छात्राओं की पर्ची बनवाने को कहा। जब वह पर्ची बनवाने के लिए खिड़की पर पहुंचा तो वहां मौजूद कर्मचारी ने उससे पर्ची के पैसे मांगे। अध्यापक सतबीर ने बताया कि उसने खिड़की पर मौजूद कर्मचारी को पूरे मामले से अवगत करवाया लेकिन वह फिर भी पैसे लेकर पर्ची बनाने की जिद पर अड़ा रहा। इसके बाद उसने अपनी जेब से पैसे देकर पर्ची बनवाई। सतबीर ने बताया कि जब उसने मीडिया के सामने यह मामला रखा तो इसके बाद उसे पैसे वापिस दिलवाए गए।
सामान्य अस्पताल में पिछले 17 दिनों से उपचाराधीन नगूरां की छात्राएं।

सी.एच.सी. कंडेल पर नहीं दिया गया छात्राओं को प्राथमिक उपचार

छात्राओं के साथ आए अध्यापकों ने बताया कि जब वह छात्राओं को उपचार के लिए सी.एच.सी. कंडेला पर लेकर गए तो वहां मौजूद स्टाफ ने छात्राओं का प्राथमिक उपचार करना भी वाजिब नहीं समझा। वहां मौजूद स्टाफ ने बिना प्राथमिक उपचार के ही सभी छात्राओं को जींद के सामान्य अस्पताल में रैफर कर दिया। जबकि वहां छात्राओं के उपचार के लिए वह सभी दवाइयां मौजूद थी जो जींद के सामान्य अस्पताल में छात्राओं को दी
गई।
मीडिया के सामने अपनी बेटी को सरकारी स्कूल नहीं भेजने की जानकारी देते नगूरां की महिला।

स्टाफ नर्स ने बीमार छात्राओं पर झाड़ा रौब

सामान्य अस्पताल में उपचार के लिए आई छात्राएं उस समय बहुत डर गई जब वहां मौजूद स्टाफ नर्स ने उन पर अपना रौब झाडऩा शुरू किया। वहां मौजूद स्टाफ नर्स ने छात्राओं को डांटते हुए कहा कि तुम्हें कुछ नहीं हुआ है, तुम जानबुझ कर यह ड्रामा कर रही हो। स्टाफ नर्स ने छात्राओं पर बरसते हुए कहा कि अगर अब कि बार किसी भी छात्रा ने पेट दर्द की शिकायत की तो वह उनकी नाक में नलकी डाल देगी। स्टाफ नर्स की इस धमकी के बाद तो छात्राओं की हालत और पतली हो गई। अब वह न तो अपने दर्द को छूपा सकती थी और न ही बयां कर सकती थी।

एक बैड पर हुए 11 छात्राओं का उपचार

आयरन की गोलियां लेने से धनखड़ी गांव के स्कूल की 11 छात्राओं की तबीयत बिगड़ गई। इसके बाद इन छात्राओं को उपचार के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में लाया गया। यहां पर इन छात्राओं को लेटने के लिए तो क्या ठीक से बैठने के लिए भी जगह नहीं मिली। 11 छात्राओं का उपचार एक बैड पर ही किया गया। एक बैड पर 11 छात्राएं होने के कारण वह इस पर लेट तो क्या ठीक से बैठ भी नहीं पा रही थी।

बाहर से लानी पड़ रही हैं दवाइयां

लगभग 17 दिन पहले आयरन की गोलियां लेने के बाद बीमार हुई नगूरां स्कूल की 2 छात्राओं की तबीयत में अब तक भी कोई सुधार नहीं है। नगूरां स्कूल की 9वीं कक्षा की छात्रा मनीषा के पिता कपूर ङ्क्षसह तथा ताऊ हरकेश ने बताया कि लगभग 17 दिनों से वह अपनी बच्ची का उपचार करवा रहे हैंं लेकिन उसकी तबीयत में कोई सुधार नहीं है। मनीषा के परिजनों ने आरोप लगाया कि यहां मौजूद चिकित्सकों द्वारा उपचार के लिए उनसे बाहर से दवाइयां मंगवाई जा रही हैं। कपूर सिंह ने कहा कि वह मजदूरी कर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा है। उसकी आॢथक स्थित काफी कमजोर है। इसलिए वह बाहर से दवाइयां लाने में सक्षम नहीं है। वहीं नगूरां गांव की 9वीं कक्षा की छात्रा मोना की मां सावित्री ने कहा कि लगभग 17 दिन पहले उसकी बेटी ने भी आयरन की गोली ली थी और उसी दिन से वह भी बीमार चल रही है। पिछले 17 दिनों से अस्पताल में ही दाखिल है लेकिन इतना लंबा समय बीत जाने के बाद भी उसकी बेटी की हालत में कोई सुधार नहीं है। सावित्री ने कहा कि अब वह कभी भी अपनी बेटी को सरकारी स्कूल में नहीं भेजेगी।

मानसिक रुप से कमजोर हैं छात्राएं

छात्राओं को ज्यादा दिक्कत नहीं है। उन्होंने खुद एमरजैंसी में जाकर छात्राओं से बातचीत की है और उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली है। गोलियों के कारण थोड़ा बहुत साइडिफेक्ट हो जाता है। यह इतनी ज्यादा गंभीर समस्या नहीं है लेकिन कुछ छात्राएं मानसिक रुप से कमजोर होने के कारण ज्यादा डर जाती हैं। नगूरां की जो लड़की पिछले कई दिनों से अस्पताल में दाखिल है, वह भी मानसिक रुप से कमजोर है। इसलिए वह ज्यादा डरी हुई है। उसे उपचार से ज्यादा एकांत की जरुरत है। यहां वह लोगों की ज्यादा भीड़ को देखकर भी भयभीत हो जाती है। सी.एच.सी. कंडेला में तैनात स्टाफ ने इस मामले में लापरवाही की है। इसलिए उनके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
डा. दयानंद, सिविल सर्जन
सामान्य अस्पताल जींद

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

'कपास के खेत में कीडों के बीच लगी विद्यार्थियों की क्लाश'

किताबी ज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थियों ने ली कीट ज्ञान की तालीम

अब स्कूल की बजाए सप्ताह के हर बुधवार को खेतों में लगेगी विद्यार्थियों की पाठशाला 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। बुधवार को निडानी गांव के राजकीय हाई स्कूल के 8वीं और 9वीं कक्षा के विद्यार्थियों की क्लाश स्कूल के बजाए कपास के खेत में कीडों के बीच लगी। स्कूल में मिल रहे किताबी ज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थियों ने बुधवार को कपास के खेत में पहुंचकर कीट ज्ञान की तालीम ली। निडानी स्कूल के 8वीं और 9वीं के विद्यार्थी अब सप्ताह के हर बुधवार को इसी तरह खेतों में पहुंचकर कीट ज्ञान का पाठ पढ़ेंगे। स्कूली बच्चों को कीट ज्ञान की इस मुहिम से जोडऩे का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को जहरमुक्त खेती के गुर सिखाकर खेती के प्रति बच्चों में रुचि पैदा करना है, ताकि बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेती कार्य में अपने अभिभावकों का हाथ बटा सकें और लोगों की थाली को जहरमुक्त करने की इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा सके। पाठशाला का शुभारंभ विद्यार्थियों को राइटिंग पैड तथा पैन देकर किया गया। इस अवसर पर पाठशाला में कृषि विभाग की तरफ से कृषि विकास अधिकारी यशपाल, रमेश, शैलेंद्र तथा डा. कमल सैनी भी मौजूद थे।
 विद्यार्थियों को राइटिंग पैड व पैन देते कृषि विकास अधिकारी।
किसानों को जागरुक कर कीटों और किसानों के बीच लगभग 4 दशकों से चली आ रही अंतहीन जंग को खत्म करवाने तथा खाने की थाली को जहरमुक्त करने के लिए डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम में अब एक नया अध्याय जुड़ गया है। किसानों के साथ-साथ अब विद्यार्थियों ने भी इस मुहिम में रुचि दिखाई है। निडानी गांव के राजकीय हाई स्कूल के 8वीं और 9वीं कक्षा के विद्यार्थियों ने बुधवार को स्कूल की बजाए

 कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते विद्यार्थी। 
निडानी गांव के खेतों में चल रही डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर क्लाश लगाई और यहां कीटाचार्य किसानों के साथ कपास की फसल के खेत में खड़े होकर कीट ज्ञान का पाठ पढ़ा। स्कूली विद्यार्थियों ने सुक्ष्मदर्शी लैंसों की सहायता से कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का अवलोकन किया और उनके जीवन चक्र के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल की। कीटाचार्य किसान महाबीर पूनिया, रमेश, जयभगवान, रणबीर, पवन, जयभगवान, जसबीर, पालेराम ने विद्यार्थियों को बताया कि पिछले सप्ताह तक कपास की फसल में मेजर कीटों के नाम से जाने जाने वाले सफेद मक्खी, हरा तेला और चूरड़े की उपस्थिति दर्ज की गई थी। इन कीटों के साथ-साथ इन्हें खाने वाले मांसाहारी कीट हथजोड़ा, अंगीरा, लेडी बिटल, बुगड़े, भिरड़, ततहीए, मकडिय़ां, लोपा मक्खी सहित कई प्राकृति कीटनाशी भी काफी संख्या में मौजूद थे। फसल में मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा होने के कारण इस बार कपास के इस खेत में शाकाहारी कीटों का पूरा सुपड़ा साफ हो चुका है। इससे यह बात साफ होती है कि शाकाहारी कीटों को खत्म करने के लिए कीटनाशकों किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं है।

विद्यार्थियों में खेती के  प्रति रुचि पैदा करना है मुख्य उद्देश्य

आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल होने के कारण हमारा पर्यावरण दूषित हो रहा है और इससे मानव के स्वास्थ्य पर भी दूष्प्रभाव पड़ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में पढऩे वाले ज्यादातर विद्यार्थियों के अभिभावकों का व्यवसाय खेतीबाड़ी है। पढ़ाई के साथ-साथ विद्यार्थियों को कीट ज्ञान की मुहिम से जोडऩे का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों में खेती के प्रति रुचि पैदा करना है, ताकि विद्यार्थी खेतीबाड़ी के काम में अपने अभिभावकों का हाथ बटा सकें और उनको भी कीट ज्ञान की मुहिम से जोड़कर थाली को जहरमुक्त करने की इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा सके। विद्यालय के 8वीं और 9वीं के विद्यार्थियों को अब सप्ताह के हर बुधवार को किसान खेत पाठशाला में भेजा जाएगा, ताकि विद्यार्थी भी कीट ज्ञान की तालीम हासिल करे सकें।
शिवनारायण शर्मा, मुख्याध्यापक 
राजकीय हाई स्कूल, निडानी