रविवार, 15 दिसंबर 2013

घूंघट के पीछे से किसानों को दिया जहरमुक्त खेती का संदेश

देश की हर क्रांति में पुरुषों के बराबर रही है महिलाओं की भागीदारी : मैडम दलाल

नरेंद्र कुंडू
जींद। इतिहास गवाह है, जब-जब देश में क्रांति हुई है, तब-तब उस क्रांति में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर रही है। यह बात मैडम कुसुम दलाल ने वीरवार को गांव रधाना में आयोजित महिला किसान खेत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि बोलते हुए कही। कार्यक्रम में कृषि विभाग के उप-निदेशक डा. आर.पी. सिहाग, जिला उद्यान अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, कृषि विभाग के एस.डी.ओ. डा. युद्धवीर सिंह, बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा, दलीप सिंह चहल, राजबीर कटारिया, कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी, डा. रवि, डा. राजेंद्र शर्मा तथा डा. युद्धवीर सिंह भी विशेष रूप से मौजूद थे। कार्यक्रम के दौरान महिला कीट कमांडों किसानों ने हरियाणवी संस्कृति को निभाते हुए घूंघट के पीछे से किसानों को जहरमुक्त खेती को बढ़ावा देने का संदेश दिया और अन्य किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा किए। इस अवसर पर किसानों ने डा. सुरेंद्र दलाल के नाम से डायरी का विमोचन भी किया। 
महिला कीट कमांडो किसान अंग्रेजो, कमलेश, कविता, नारो, राजवंती ने कहा कि आज फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान के कारण बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित माने जाने वाले मां के दूध में भी अब जहर की मात्रा मिलने लगी है, जो पूरी मानव जाति के लिए एक गंभीर खतरे की दस्तक है। उन्होंने कहा कि 10 हजार साल पहले खेती की शुरूआत हुई थी और तभी से किसानों, कीटों और पौधों का आपस में गहरा रिश्ता था लेकिन लगभग 30 साल पहले इस रिश्ते को खत्म करने की साजिश रची गई और किसानों को गुमराह करते हुए बताया गया कि कीटों से फसल को 22 प्रतिशत नुक्सान होता है। इसके बाद 

 महिलाओं को सम्बोधित करती मैडम कुसुम दलाल। 

कृषि वैज्ञानिकों ने इस 22 प्रतिशत नुक्सान की रिकवरी के लिए पहले किसानों को कीटों को नियंत्रण करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करना तथा फिर कीटों का प्रबंधन करना सिखाया लेकिन इसके बाद भी कीटों पर 
डा. सुरेंद्र दलाल पर आधारित डायरी का विमोचन करते अधिकारी। 
काबू नहीं पाया जा सका। उन्होंने कहा कि अब खुद कृषि वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार चुके हैं कि कीटनाशकों के प्रयोग से मात्र 7 प्रतिशत ही रिकवरी होती है। मात्र 7 प्रतिशत की रिकवरी के लिए किसान अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर फसल खर्च तो बढ़ा रहा है, साथ-साथ खाने को भी जहरीला बना कर अपने तथा दूसरों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। इस अवसर पर महिला किसानों ने 'खेतैं में खड़ी ललकारुं तू जहर ना लाइए, लैइए खाद का घोल कीडय़ां की जान बचाइए', 'खेती चौपट, कर्जा भारी दिखै घोर अंधेरा' आदि गीतों के माध्यम से कीटनाशकों पर कटाक्ष किए और किसानों को जहरमुक्त खेती कर कीटों को बचाने का आह्वान किया। किसानों ने कार्यक्रम में मौजूद सभी अतिथिगणों को पगड़ी तथा शाल भेंट कर स्वागत किया। महिलाओं के कार्यों को देखते हुए मैडम कुसुम दलाल ने निडाना, निडानी व रधाना गांव की महिलाओं को 1100-1100 रुपए और कुलदीप ढांडा ने 500 रुपए पुरस्कार  स्वरूप दिए। 

163 किस्म के मांसाहारी कीटों की खोज की



महिला किसानों को पुरस्कृत करती मैडम कुसुम दलाल। 
महिला कीट कमांडो किसानों ने बताया कि उन्होंने अभी तक 20 किस्म के रस चूसक, 13 किस्म के पत्ते खाने वाले कीट, 4 किस्म के फूल खाने वाले कीट तथा 3 किस्म के फल खाने वाले कीटों की खोज की है। इसके अलावा इनको कंट्रोल करने के लिए 163 किस्म के मांसाहारी कीटों की पहचान भी की जा चुकी है। 

हरे तेले, चूरड़े व सफेद मक्खी से भयभीत न हो किसान

कीट कमांडों महिला किसानों ने बताया कि जब तक उन्हें कीटों की पहचान नहीं हुई थी, तब तक उन्हें कपास की फसल में मौजूद हरे तेले, चूरड़े व सफेद मक्खी से डर लगता था। क्योंकि यह तीनों कीट कपास की फसल को नुक्सान पहुंचाने वाले मेजर कीटों में शुमार हैं लेकिन जब से उन्हें कीटों की पहचान हुई है तथा इनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हुई है, तब से इनके प्रति इनका भय पूरी तरह से निकल चुका है। 
कार्यक्रम में अपने अनुभव सांझा करती महिला किसान

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

कीट ज्ञान में कृषि वैज्ञानिकों को भी मात दे रहे कीट कमांडो किसान

आज से पहले कीटों पर नहीं हुआ इस तरह का कोई शोध : डी.सी.
निडानी गांव में किया जिला स्तरीय खेत दिवस का आयोजन

नरेंद्र कुंडू
जींद। जींद जिले के किसानों ने कीटों पर जो अनोखा शोध किया है वह वास्तव में काबिले तारिफ है और आज से पहले कीटों पर कहीं भी इस तरह का शोध नहीं हुआ है। कीटों के बारे में जितनी जानकारी कीट कमांडों किसानों को है उतनी तो शायद कृषि वैज्ञानिकों को भी नहीं है। यह बात उपायुक्त राजीव रत्तन ने वीरवार को कृषि विभाग तथा कीट साक्षरता सोसायटी निडानी द्वारा आयोजित खेत दिवस पर निडानी गांव में किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर कार्यक्रम में जिला कृषि उपनिदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, जिला बागवानी अधिकारी डा. बलजीत भ्याण, स्व. डा. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल, विजय दलाल, रोहतक एम.डी.यू. से डा. राजेंद्र चौधरी, पी.जी.आई. रोहतक से सर्जन डा. रणबीर दहिया, बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, ढुल खाप के प्रधान इंद्र सिंह ढुल, जाट धर्मशाला जींद के प्रधान रामचंद्र, होशियार सिंह दलाल, दलीप चहल, प्राचार्य रमेश मलिक, समाजसेवी राधेश्याम, निडानी गांव के सरपंच अशोक, कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी सहित कृषि विभाग के अन्य अधिकारी भी विशेष रूप से मौजूद थे। 
खेत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में मौजूद लोग। 
कार्यक्रम का शुभारंभ उपायुक्त राजीव रत्तन ने कीट साक्षरता के अग्रदूत स्व. डा. सुरेंद्र दलाल को श्रद्धांजलि अर्पित की। डी.सी. ने कहा कि आज जींद जिले के लगभग 14 गांव के अनेकों किसान इस मुहिम से जुड़े हैं। राजपुरा, ईंटल, ईगराह, निडानी, निडाना, ललितखेड़ा, रधाना, चाबरी, भैराखेड़ा, ईक्कस, जलालपुरा कलां समेत कई गांवों के किसान बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए कपास, धान जैसी फसलें पैदा करने लगे हैं। कार्यक्रम में किसानों ने अपने अनुभव रखते हुए बताया कि कीटों और किसानों के बीच जो लड़ाई चल रही है वह आधारहीन है। कीटों को नियंत्रण करने के लिए तो कीट ही सबसे बड़ा शस्त्र है। इसलिए कीटों को नियंत्रण करने की जरूरत नहीं है। अगर जरूरत है तो इनकी पहचान करने की। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार सुगंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं। महिला किसानों ने 'हो पिया तेरा हाल देखकै मेरा कालजा धड़कै हो, तेरे कांधै टंकी जहर की या मेरै कसुती रड़क हो' तथा 'सबतै बढिय़ा हो सै बिना जहर की खेती' गीतों के माध्यम से किसानों की नब्ज को टटोलने का काम किया और कीटनाशकों पर कटाक्ष किए। एम.डी.यू. से आए डा. राजेंद्र चौधरी ने किसानों को गोबर की खाद तैयार करने तथा कुदरती खेती के  बारे में विस्तार से जानकारी दी। जिला उद्यान 
अधिकारी डा. बलजीत भ्याण ने कहा कि उन्होंने सब्जियों में जहर के स्तर की जांच के लिए जो भी सैम्पल लिए उन सभी सब्जियों में जहर की मात्रा शरीर को नुक्सान पहुंचाने के स्तर से काफी ज्यादा पाई गई है। 
कार्यक्रम के दौरान कीटों पर आधारित गीत प्रस्तुत करती महिला किसान।
इससे यह अंदाजा असानी से लगाया जा सकता है कि हमारा खान-पान कितना शुद्ध है। जिला कृषि उपनिदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल ने जो मुहिम शुरू की थी आज वह पूरी गति से प्रदेश में फैल रही है। पूरे कृषि विभाग को डा. सुरेंद्र दलाल पर फकर है। डा. सुरेंद्र दलाल की मौत के बाद इस मुहिम से जुड़े लोगों को बड़ी निराशा हुई थी और किसानों को इस मुहिम के खत्म होने का डर सता रहा था लेकिन डा. सुरेंद्र दलाल के बाद डा. कमल सैनी ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और वह बड़े अच्छे तरीके से इस मुहिम को सफल बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं। 
डी.सी. को सम्मानित करते किसान व विभाग के अधिकारी ।

रक्त में फैले जहर को निकालने के लिए नहीं बनी कोई मशीन

रोहतक पी.जी.आई. से आए सर्जन डा. रणबीर सिंह दहिया ने कहा कि आज तक कोई ऐसी मशीन नहीं बनी जो खाने के माध्यम से हमारे खून में फैले जहर को बाहर निकाल सके। डा. दहिया ने कहा कि रोहतक पी.जी.आई. में भी ऐसे टैस्ट की सुविधा नहीं है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि मरीज के शरीर में जहर का स्तर कितना बढ़ चुका है। उन्होंने कहा कि हरियाणा में इस टैस्ट को शुरू करने के लिए आज से लगभग 20 वर्ष पहले विधानसभा में यह मुद्दा उठा था और विधानसभा में इस टैस्ट को शुरू करने के लिए प्रस्ताव भी तैयार किया गया लेकिन आज तक यह सुविधा शुरू नहीं हो पाई है। डा. दहिया ने सरकारी अस्पतालों में इस टैस्ट को शुरू करवाने के लिए खाप पंचायतों को लड़ाई शुरू करने का आह्वान किया। डा. दहिया ने कहा कि आज लोगों में हड्डियों व पेट के रोगों के फैलेने का मुख्य कारण पेस्टीसाइड के कारण दूषित 
होता हमारा खान-पान है।  

कीट ज्ञान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए पूरा प्रयास करेंगी खाप पंचायतें

बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई थाली को जहर मुक्त बनाने की इस मुहिम को जींद के अलावा पूरे प्रदेश में फैलाने के लिए खाप पंचायतें हर संभव प्रयास करेंगी। उन्होंने कहा कि किसान-कीट की लड़ाई का मामला खाप की अदालत में है और खाप पंचायतों के प्रतिनिधि पिछले 2 वर्ष से इन पाठशालाओं में जाकर अपना रिकार्ड तैयार कर रहे हैं। खाप पंचायतें अगले वर्ष एक बड़ी पंचायत का आयोजन कर इसके खिलाफ लड़ाई की अगली रणनीति तैयार करेंगी। 






शनिवार, 16 नवंबर 2013

माइलार्ड आम जनता के लिए खुलवा दिए गए हैं अस्पताल के टायलट !

सिविल सर्जन की तरफ से अदालत टायलट के ताले खुलवाने के ब्यान दर्ज करवाए लेकिन दिनभर टायलट पर लटके रहे ताले

स्थायी लोक अदालत में डी.सी. तथा सिविल सर्जन की तरफ से दर्ज करवाए गलत ब्यान 

नरेंद्र कुंडू
जींद। माइलार्ड आम जनता के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में बने टायलट के ताले खुलवा दिए गए हैं और भविष्य में सामान्य अस्पताल प्रशासन द्वारा इसके अच्छे से रखरखाव के इंतजाम भी किए जाएंगे। यह ब्यान शुक्रवार को स्थायी लोक अदालत में सामान्य अस्पताल में बने सार्वजनिक टायलट पर ताले लगाए जाने के मामले की सुनवाई के दौरान उपायुक्त तथा सिविल सर्जन की तरफ से दर्ज करवाए गए लेकिन हकीकत कुछ ओर ही थी। स्थायी लोक अदालत में सार्वजनिक टायलट के ताले खोल दिए जाने का ब्यान दर्ज करवाया गया लेकिन वास्तव में शुक्रवार को भी सामान्य अस्पताल में बने सार्वजनिक टायलट पर ताले लटके हुए थे। इन तालों को खोलने के लिए शुक्रवार को सामान्य अस्पताल प्रशासन की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई लेकिन स्थायी लोक अदालत में सिविल सर्जन की तरफ से गलत ब्यान दर्ज करवाकर अदालत को गुमराह करने का काम जरूर किया गया है। 
गौरतलब है कि डी.आर.डी.ए. ने संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत 11 लाख रूपए की राशि से जींद नगर परिषद के माध्यम से सामान्य अस्पताल में आधुनिक टायलट काम्पलैक्स के निर्माण की योजना बनाई थी। योजना के तहत खुद जींद के डी.सी. ने सामान्य अस्पताल में गोहाना रोड की तरफ की साइट को आधुनिक टायलट काम्पलैक्स के लिए चुना था। गोहाना रोड की तरफ सामान्य अस्पताल में आधुनिक टायलट काम्पलैक्स इसलिए बनाया गया था ताकि राह चलते आम लोग इस टायलट का इस्तेमाल कर सकें। साल 2011 में 11 लाख रूपए की लागत से सामान्य अस्पताल में गोहाना रोड की तरफ आधुनिक टायलट काम्पलैक्स बनकर तैयार हो गया लेकिन आज तक इसका इस्तेमाल शुरू नहीं हो पाया है। इसके निर्माण का कार्य पूरा होने के साथ ही इस पर ताला जड़ दिया गया था और यह ताला आज तक नहीं खुल पाया है। नतीजा यह है कि जिस मकसद से सरकार ने 11 लाख रूपए की राशि सामान्य अस्पताल के टायलट काम्पलैक्स के निर्माण पर खर्च की थी, उस मकसद पर सामान्य अस्पताल प्रशासन की ढील ने पानी फेर दिया है। नगर परिषद के अधिकारियों ने सामान्य अस्पताल में टायलट काम्पलैक्स का निर्माण पूरा करने के बाद सामान्य अस्पताल प्रशासन को इसे हैंडओवर कर दिया था लेकिन सामान्य अस्पताल प्रशासन इसे इस्तेमाल करने में रूचि नहीं दिखा रहा। इस मामले में सामान्य अस्पताल प्रशासन टायलट काम्पलैक्स को अपने लिए बोझ मान रहा है। 
 जींद के सामान्य अस्पताल में बने सार्वजनिक शौचालय पर शुक्रवार को भी लटके ताले।

एडवोकेट विनोद बंसल ने स्थायी लोक अदालत में दायर की थी याचिका

युवा एडवोकेट विनोद बंसल ने 25 अक्तूबर 2013 को जींद की जन उपयोगी सेवाओं की स्थाई लोक अदालत में याचिका दायर कर जींद के सामान्य अस्पताल में 11 लाख रूपए की लागत से साल 2011 में बने इस सार्वजनिक टायलट का ताला खुलवाने की गुहार लगाई थी। याचिका में विनोद बंसल ने कहा है कि टायलट का ताला नहीं खुलने से लोगों और खासकर महिलाओं का भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें खुले में शौच के लिए जाने को मजबूर किया जा रहा है। इससे अस्पताल में गंदगी फैल रही है। विनोद बंसल ने याचिका में उपायुक्त और सिविल सर्जन को पार्टी बनाते हुए अदालत से गुहार लगाई थी कि वह इन दोनों को अस्पताल परिसर में बने सार्वजनिक टायलट पर जड़े गए ताले को खोलने के आदेश जारी करे। शुक्रवार के स्थायी लोक अदालत में इसी मामले की सुनवाई के दौरान उपायुक्त तथा सिविल सर्जन की तरफ से ब्यान दर्ज करवाए गए कि आम जनता के लिए जींद के सामान्य अस्पताल में बने टायलट के ताले खुलवा दिए गए हैं और भविष्य में सामान्य अस्पताल प्रशासन द्वारा इसके अच्छे से रखरखाव के इंतजाम भी किए जाएंगे लेकिन हकीकत में शुक्रवार को भी जींद के सामान्य अस्पताल में बने टायलट पर ताले ज्यों की त्यों लटक रहे थे। 

सामान्य अस्पताल के टायलट इस्तेमाल लायक नहीं

जींद के सामान्य अस्पताल के अंदर बने टायलट इस्तेमाल के लायक नहीं हैं। इनमें हर समय गंदगी रहती है। पानी अपने आप चलता रहता है। आम आदमी अस्पताल के टायलट का इस्तेमाल करने से परहेज करता है। लोग अस्पताल परिसर में ही खुले में लघु शंका और कई बार तो शौच के लिए जाते देखे जा सकते हैं। ऐसे में अगर अस्पताल परिसर में बने आधुनिक टायलट काम्पलैक्स पर 2 साल से लटका ताला खुल जाए तो लोगों को काफी सुविधा होगी। इससे अस्पताल में दाखिल मरीजों के परिजनों के साथ-साथ राह चलते लोगों को भी सुविधा होगी। 

आम जन की परेशानी को देखते हुए स्थायी लोक अदालत का खटखटाया था दरवाजा

आम लोगों की परेशानी को देखते हुए उन्होंने स्थायी लोक अदालत में सामान्य अस्पताल में बने सार्वजनिक शौचालय पर ताले लटकाए जाने के मामले को उठाया था। शुक्रवार को स्थायी लोक अदालत में इसी मामले की सुनवाई थी। सुनवाई के दौरान उपायुक्त तथा सिविल सर्जन की तरफ से सामान्य अस्पताल प्रशासन में बने सार्वजनिक टायलट के ताले खुलवाने का ब्यान दर्ज करवाए हैं। 
विनोद बंसल
एडवोकेट, जींद

ताले खुलवाए जाने के ब्यान करवाए गए हैं दर्ज

शुक्रवार को स्थायी लोक अदालत में सामान्य अस्पताल में बने सार्वजनिक शौचालय पर लगे ताले की मामले की सुनवाई के दौरान उपायुक्त तथा सिविल सर्जन की तरफ से शौचालय के ताले खुलवाए जाने के ब्यान दर्ज करवाए गए हैं। 
विकास देशवाल
एडवोकेट, जींद

शनिवार को खुलवा दिए जाएंगे ताले

आज वह छुट्टी पर हैं। इस कारण आज अस्पताल में बने टायलट का ताला नहीं खुल पाया है। शनिवार से वह टायलट के ताले खुलवाकर भविष्य में इसके रखरखाव के लिए एक सफाई कर्मचारी की यहां पर नियमित रूप से ड्यूटी लगा देंगे। 
डा. धनकुमार, सिविल सर्जन
सामान्य अस्पताल, जींद 


देशभर के कृषि वैज्ञानिकों को कीट ज्ञान की मुहिम से रू-ब-रू करवाएंगे म्हारे किसान

कीट कमांडों किसानों का 8 सदस्यीय दल राष्ट्रीय सैमीनार में भाग लेने के लिए रवाना

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जींद जिले से शुरू हुई थाली को जहर मुक्त बनाने की मुहिम को देशभर में फैलाने के लिए वीरवार को जींद के कीट कमांडों किसानों का 8 सदस्यीय दल कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी के नेतृत्व में उत्तराखंड के पंतनगर के लिए रवाना हुआ। जींद जिले के यह कीट कमांडो किसान पंतनगर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित 2 दिवसीय राष्ट्रीय सैमीनार में मौजूद देशभर के कृषि वैज्ञानिकों को अपने अनुभव से रू-ब-रू करवाएंगे। खाप पंचायत की तरफ से किसानों की इस मुहिम की वकालत करने के लिए बराह तपा बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा भी इस दल के साथ गए हैं।
फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशकों के कारण बेमौत मर रहे बेजुबान कीट और दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को देखते हुए कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेंद्र दलाल ने जींद जिले के किसानों के साथ मिलकर वर्ष 2008 में कीट ज्ञान की अलख जगाई थी। यह किसान पिछले 5 वर्षों से जींद जिले के साथ-साथ प्रदेश तथा आस-पास के प्रदेशों के किसानों को भी कीट ज्ञान की तालीम दे रहे हैं। इसी के चलते इन किसानों को यहां के लोग कीट कमांडों किसानों के नाम से जानते हैं। कीट कमांडों किसानों का कहना है कि कीटों को न तो काबू करने की जरूरत है और न ही नियंत्रित करने की। अगर जरूरत है तो बस कीटों को पहचानने और इनके क्रियाकलापों को जानने की। कीट कमांडों किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढ़ू, सुरेश, जयभगवान, सुरेश, रमेश, बलवान इत्यादि का कहना है कि कीट ही कीटों को नियंत्रण करने में सबसे बड़ा हथियार हैं। इसलिए इनको काबू करने के लिए किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरूरत नहीं है। कीट कमांडों किसानों द्वारा कीटों पर किए गए अनोखे प्रयोग को देखते हुए दूसरे प्रदेश के किसानों के साथ-साथ कई कृषि वैज्ञानिक भी जींद का दौरा कर चुके हैं तथा इन किसानों के इस शोध पर अपनी सहमती की मोहर लगा चुके हैं। इन किसानों की इस अनोखी मुहिम को देखते हुए अब उत्तराखंड के पंतनगर स्थित कृषि विश्वविद्यालय की तरफ से इन किसानों को बुलावा भेजा गया है। पंतनगर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में 15 व 16 नवम्बर को आयोजित 2 दिवसीय राष्ट्रीय सैमीनार में देशभर के कृषि वैज्ञानिक भाग लेंगे। इस सैमीनार में यह कीट कमांडों कृषि वैज्ञानिकों के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए कीटों पर किए गए इस अनोखे प्रयोग से कृषि वैज्ञानिकों को रू-ब-रू करवाएंगे, ताकि देशभर के किसानों को जागरूक कर थाली को जहरमुक्त बनाने की इस मुहिम को शिखर तक पहुंचाया जा सके। वीरवार को जींद से रवाना हुए कीट कमांडों के इस दल का नेतृत्व कृषि विभाग के कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी कर रहे हैं। प्रदेशभर की खाप पंचायतों द्वारा भी किसानों की इस मुहिम को काफी करीब से देखा तथा समझा गया है। इसलिए खापों की तरफ से इस मुहिम की वकालत करने के लिए बराह तपा बारहा के प्रधान कुलदीप ढांडा भी इस टीम के साथ गए हैं। ताकि खाप पंचायत भी जनहित की इस मुहिम में अपना योगदान दर्ज करवा सकें।

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

जहरमुक्त खेती की मुहिम को शिखर पर पहुंचाने के लिए निस्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं किसान : डा. सिहाग


विधिवत रूप से हुआ साप्ताहिक बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला का समापन

कहा, रंग लाने लगी डा. सुरेंद्र दलाल की मुहिम 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कृषि विभाग जींद के उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए कीटनाशक रहित खेती की जो मुहिम शुरू की थी कीट कमांडों किसान उस मुहिम को सफलता के शिखर पर पहुंचाने के लिए निस्वार्थ भाव से दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि आज उनकी यह मुहिम रंग लाने लगी है और जींद जिले के साथ-साथ दूसरे जिलों के किसान भी इन किसानों से कीट ज्ञान हासिल कर जहरमुक्त खेती की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। डा. सुरेंद्र दलाल ने जहरमुक्त थाली का जो सपना देखा था बहुत जल्द वह सपना साकार होगा और जहरयुक्त भोजन से होने वाली शारीरिक बीमारियों से लोगों को छुटकारा मिलेगा, वहीं कीटनाशकों पर अनावश्यक रूप से बढ़ते खर्च से भी किसानों को निजात मिलेगी। डा. सिहाग वीरवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला के समापन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। राजपुरा भैण गांव के पूर्व सरपंच टेकराम ने डा. सिहाग को पगड़ी पहनाकर तथा स्मृति चिह्न भेंट कर किसानों को दिए जा रहे योगदान के लिए उनका आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर उनके साथ बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा, भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के उप-प्रधान बिल्लू खांडा, जिला प्रधान महेंद्र घीमाना, ईश्वर भी मौजूद थे।
कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने बताया कि 22 जून से इस पाठशाला का शुभारंभ हुआ था और हर सप्ताह के शनिवार को पाठशाला का आयोजन किया जाता था। 18 सप्ताह तक चलने वाली इस पाठशाला में दूसरे जिलों के किसानों के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिकों ने भी इस पाठशाला का भ्रमण कर किसानों की मुहिम में अपनी भागीदारी दर्ज करवाई है। डा. सैनी ने पाठशालाओं में किसानों द्वारा किए गए कार्यों तथा पौधों का कीट के साथ क्या रिश्ता है और कीट फसल में क्यों आते हैं आदि विषयों पर विस्तार से जानकारी दी। डा. सैनी ने कहा किकीटों को काबू करने की जरुरत नहीं है। अगर जरुरत है तो कीटों को पहचाने और उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हासिल करने की और यह काम किसानों को खुद ही करना होगा। राजपुरा भैण के किसान रामस्वरूप ने पाठशाला में अपना अनुभव रखते हुए बताया कि उसने कपास का एक एकड़ पाठशाला को समॢपत किया हुआ है और कीट कमांडों किसानों की मानकर उसने अपने इस एक एकड़ में एक छटांक भी जहर का प्रयोग नहीं किया है, जबकि उसके साथ लगते कपास की 2 एकड़ फसल में उसने कीटनाशकों का प्रयोग किया है लेकिन आज भी बिना जहर की कपास की फसल से दूसरी फसलों के बराबर का उत्पादन मिल रहा तथा इस एक एकड़ पर उसका दूसरी फसलों से खर्च भी काफी कम हुआ है। पाठशाला के समापन पर बाहर से आए सभी गणमान्य लोगों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सभी किसानों को अपनी खेती का लेखा-जोखा रखने के लिए डायरी तथा पैन भी भेंट किए गए।

सुप्रीम कोर्ट ने भी लगाई किसानों की मुहिम पर मोहर

बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा ने एक अंग्रेजी न्यूज पेपर का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कीट कमांडों की मुहिम पर अपनी मोहर लगाई है। ढांडा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जनता को जहर रहित खाना उपलब्ध करवाना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार को इस तरफ प्रयास करने की जरुरत है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि देश में पेस्टीसाइड एक्ट की पालना नहीं हो रही है और इस सब के लिए सरकार जिम्मेदार है। ढांडा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह साबित हो गया है कि जींद के किसान जिस मुहिम को पिछले 6 वर्षों से अपने बलबूते पर चला रहे हैं, वह एक दिन बहुत बड़ी क्रांति की शुरूआत है और देश को इसकी बहुत जरुरत है।

भैंस बेच कर उतारा कीटनाशकों पर किए गए खर्च का कर्ज

पाठशाला में अपने अनुभव किसानों के साथ सांझा करते हुए गांव निडाना के किसान सुरेंद्र ने भावूक होते हुए कहा कि एक वह समय था जब उसने अपनी भैंस बेचकर कीटनाशकों पर किए गए खर्च का कर्ज उतारा था। सुरेंद्र ने बताया कि वह पैदावार बढ़ाने के लिए फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करता था। वर्ष 2002 में एक एकड़ कपास की फसल में उसका खर्च 16 हजार था लेकिन इतने ज्यादा कीटनाशकों के प्रयोग के बाद भी उसकी पैदावार महज 10 से 12 मण की होती थी। फसल में अधिक खर्च होने तथा पैदावार कम होने के कारण उस पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रही था। इसी से परेशान होकर उसने फसल में कीटनाशकों का प्रयोग छोड़ दिया था। सुरेंद्र ने बताया कि वर्ष 2012 में वह कीट कमांडों किसानों के संपर्क में आया। अब वह पूरी तरह से जहरमुक्त खेती करता है और उसकी पैदावार भी लगातार बढ़ रही है।

याद आए डा. सुरेंद्र दलाल

पाठशाला के समापन अवसर पर किसान डा. सुरेंद्र दलाल को याद कर भावूक हो गए थे। किसानों ने बताया कि जिस कीट ज्ञान की बदौलत आज उन्होंने जहरमुक्त खेती को अपना कर कीटनाशकों पर होने वाले खर्च से मुक्ति पाई है, उस कीट ज्ञान की खोज डा. सुरेंद्र दलाल ने की थी। सरकारी पद पर रहते हुए उन्होंने कभी भी अपनी नौकरी और स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर किसानों को कीट ज्ञान की तालीम देकर उन्हें जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित किया और आज उनकी यह मेहनत रंग ला रही है।
 पाठशाला के समापन अवसर पर किसानों को सम्बोधित करते डी.डी.ए. डा. रामप्रताप सिहाग।

 डा. कमल सैनी को पगड़ी पहनाकर तथा किसान को डायरी पैन देकर सम्मानित करते बराह तपा के प्रधान कुलदीप ढांडा। 


सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

अज्ञानता के कारण कृषि से भंग हो रहा है किसानों का मोह

कहा, कृषि पर आधारित है देश की जी.डी.पी. और रोजगार  

कपास को कहते हैं कीड़ों का स्वर्ग

नरेंद्र कुंडू
जींद। सफीदों के लैंडमोरगेज बैंक के चेयरमैन एवं नव वैदिक कन्या विद्यापीठ के संस्थापक बलबीर आर्य ने कहा कि देश को 20 प्रतिशत जी.डी.पी. तथा 65 प्रतिशत रोजगार कृषि देती है लेकिन इसके बावजूद भी कृषि बुरे दौर से गुजर रही है और किसानों का कृषि से मोह भंग हो रहा है। कोई भी किसान अपनी फसल की पैदावार से संतुष्ट नहीं है, क्योंकि पैदावार बढ़ाने के लिए उसने खेती पर होने वाले खर्च को भी बढ़ाया है। बलबीर आर्य शनिवार को राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर पाठशाला में बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, चहल खाप के प्रतिनिधि दलीप सिँह चहल, भनवाला खाप के प्रधान महा सिँह भनवाला, जोगेंद्र कुंडू तथा कैथल जिले के कुछ किसान भाग लेने पहुंचे थे। 
बलबीर आर्य ने कहा कि खेती पर खर्च बढऩे का प्रमुख कारण किसान का भयभीत तथा भ्रमित होना है। पहले तो किसान को कीटों का भय दिखाकर उसे भयभीत किया जाता है और फिर उसे भिन्न-भिन्न किस्म के कीटनाशकों से उसकी समस्या के समाधान का सपना दिखाकर उसे भ्रमित किया जाता है। कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने कहा कि कपास की फसल को कीड़ों का स्वर्ग कहा जाता है। क्योंकि कपास की फसल में कीड़ों के लिए हर किस्म का भोजन उपलब्ध होता है। डा. सैनी ने कहा कि जींद जिले के किसानों ने यह सिद्ध करके दिखा दिया है कि बिना कीटनाशक के कपास की फसल हो सकती है। जब कपास की फसल 
 कृषि अधिकारी के साथ सवाल-जवाब करते लैंड मोरगेज बैंक के चेयरमैन व किसान।
बिना कीटनाशक के हो सकती हैं तो फिर दूसरी फसलें भी बिना कीटनाशकों के पैदा हो सकती हैं। डा. सैनी ने कहा कि इसी समय धान की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशक प्रयोग करने की बजाए किसान खेत में नमी की मात्रा बरकरार रखें। इससे बीमारियों को आगे बढऩे का मौका नहीं मिल पाएगा। क्योंकि बीमारियों को फैलाने में कीड़े नहीं जीवानु, विषाणु और फफुंद तथा तापमान सहायक हैं। पाठशाला के अंत में सभी खाप प्रतिनिधियों व अतिथिगणों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। 

राख से हुई थी कीटनाशकों की खोज


पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित करते किसान

डा. सैनी ने कहा कि 1934 में भारत में पेस्टीसाइड का पहला कारखाना स्थापित हुआ था। इससे पहले पेस्टीसाइड दूसरे देशों से मंगवाया जाता था। डा. सैनी ने कहा कि पहले किसान फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए फसल में राख का प्रयोग करते थे। पौधों पर राख डालने से पत्तों का टेस्ट चेंज हो जाता था, जिस कारण कीट पत्तों को नहीं खाते थे। इसके अलावा राख से पौधे को काफी मात्रा में पोषक तत्व भी मिलते थे। यहीं से कीटनाशक की खोज हुई और कृषि वैज्ञानिकों ने राख में मिलाकर फसल में डालने वाली बी.एच.सी. की खोज की थी। यह एक जहरीला कीटनाशक था, जो पौधे में कड़वास पैदा कर देता था। बाद में स्प्रे के माध्यम से कीटनाशकों का छिड़काव फसलों में किया जाने लगा। 1965 के बाद खेती में बाजार का हस्तक्षेप बढ़ता चला गया।

पंजाब बना कैंसर की राजधानी

किसान चतर ङ्क्षसह, बलवान, महाबीर, कृष्ण ने कहा कि खेती की क्षेत्र में दूसरे प्रदेशों की बजाए पंजाब प्रदेश एडवांस है। खेती में जो भी नई तकनीक आई, पंजाब ने सबसे पहले उस तकनीक को अपनाया। चाहे वह कीटनाशकों का प्रयोग हो या नई-नई मशीनरी का प्रयोग। इसके चलते ही पंजाब में फसलों में कीटनाशकों का खूब प्रयोग हुआ और आज परिणाम हमारे सामने हैं। कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण ही आज पंजाब में कैंसर के मरीजों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज देश में पंजाब को कैंसर की राजधानी के नाम से जाना जाता है। अगर कीटनाशकों के प्रयोग का सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो बहुत जल्द यही हालात हरियाणा में भी होने वाले हैं।  

कपास में यह-यह कीट थे मौजूद 

पाठशाला के आरांभ में कीटाचार्य किसानों ने कपास की फसल का अवलोकन किया और फसल में मौजूद कीटों का आकलन कर उनकी संख्या को अपनी बही में दर्ज किया। कीटों के आकलन के दौरान कपास की फसल में सफेद मक्खी की संख्या 0.9, हरा तेला 0.6 तथा चूरड़ा शून्य था, जो कि नुक्सान पहुंचाने के आॢथक कागार से काफी नीचे है। इसके अलावा शाकाहारी कीटों को खाने वाले मांसाहारी कीटों में हथजोड़ा, लेडी बर्ड बीटल, मकड़ी, क्राइसोपा, अंगीरा, इरो, इनो भी काफी संख्या में फसल में मौजूद थी। 


शौक पूरा के लिए सरकारी नौकरी को मार दी ठोकर

आई.टी.बी.पी. की नौकरी छोड़ मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है सिवाहा का रोहताश

नरेंद्र  कुंडू
जींद। महंगाई व बेरोजगारी के इस दौर में लोग जहां नौकरी की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं और अपने शौक के विपरित भी जाकर काम करने को मजबूर हैं, वहीं एक शख्स ऐसा भी है, जिसने अपने शौक को पूरा करने के लिए सरकारी नौकरी को ही ठोकर मार दी। जींद जिले के सिवाहा गांव निवासी रोहताश ने मूर्ति कला के अपने शौक को पूरा करने के लिए आई.टी.बी.पी. की नौकरी छोड़ दी। 
मूर्ति कला के क्षेत्र में रोहताश का आज कोई शानी नहीं है। अपने शौक को पूरा करने के साथ-साथ रोहताश अपनी कला के दम पर ही अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा है। 43 वर्षीय रोहताश पिछले 22 वर्षों से मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है और रोहताश द्वारा निर्मित बहुत सी मूर्तियां तो आज जींद जिले ही नहीं बल्कि जींद जिले से बाहर के मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं।   
गांव सिवाहा निवासी रोहताश को पढ़ाई के  दौरान मूर्ति निर्माण का शौक लगा था। रोहताश के अंदर छिपे एक मूर्ति कलाकार को निखाकर बाहर निकालने में उसकी मदद की उसके ड्राइंग अध्यापक महेंद्र भनवाला ने। रोहताश ने छठी कक्षा में पढ़ाई के दौरान अपने गुरु महेंद्र भनवाला से ड्राइंग की बारीकियों को सीखा और अपने अंदर के कलाकार को पहचान कर कागज के टुकड़ों पर मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया। कागज के टुकड़ों के बाद रोहताश ने कच्चे रंगों से मूर्तियों का निर्माण शुरू किया लेकिन जैसे-जैसे समय ने करवट ली और मिट्टी का स्थान सीमैंट ने लेना शुरू किया तो रोहताश ने भी अपने कार्य में परिवर्तन करते हुए सीमैंट से मूर्तियां बनाना शुरू कर दिया। 12वीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी करने के बाद 1989 में रोहताश ने आई.टी.बी.पी. में सिपाही के पद पर नौकरी ज्वाइन कर ली लेकिन रोहताश के अंदर बैठे मूर्ति कलाकार को यह रास नहीं आया। आई.टी.बी.पी. में एक साल तक देश सेवा करने के बाद 1990 में रोहताश ने नौकरी छोड़ दी। सरकारी नौकरी छोडऩे के बाद रोहताश ने अपने शौक को पूरा करने के लिए मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू कर दिया। 43 वर्षीय रोहताश पिछले 22 वर्षों से मूर्तियों का निर्माण कर रहा है लेकिन इस दौरान रोहताश को कभी भी अपने
मूर्ति को अंतिम रुप देता मूर्ति कलाकार रोहताश सिंह।

मूर्ति कलाकार रोहताश द्वारा निर्मित शिव की मूॢतयां।
नौकरी छोडऩे के फैसले पर रतीभर भी अफशोस नहीं हुआ। रोहताश अपने शौक को पूरा करने के साथ-साथ आज अपनी इसी कला के दम पर अपने परिवार का पालन-पोषण भी अच्छे तरीके से कर रहा है। इतना ही नहीं रोहताश हर किस्म की मूर्तियां बनाने का एक्सपर्ट है। 

एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का लग जाता है समय  

मूर्ति कलाकार रोहताश का कहना है कि मूर्ति निर्माण का कार्य काफी बारिकी से करना पड़ता है। मूर्ति के निर्माण में सीमैंट का प्रयोग होने के कारण मूर्ति का थोड़ा-थोड़ा निर्माण करना पड़ता है। इसलिए एक मूर्ति के निर्माण में काफी समय लग जाता है। एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का समय लग जाता है। 

मुनाफे के नहीं लागत के आधार पर तय होती है कीमत 

मूर्ति कलाकार रोहताश का कहना है कि वह मुनाफे के लिए नहीं बल्कि अपने शौक को पूरा करने के लिए मूर्तियों का निर्माण करता है। रोहताश का कहना है कि शौक की कोई कीमत नहीं होती। इसलिए वह अपनी मूर्तियों की कीमत मुनाफा लेने के लिए नहीं सिर्फ लागत पूरी करने के लिए लागत के आधार पर ही मूर्ति की कीमत तय करता है। 
 


अंधाधुंध कीटनाशकों के इस्तेमाल से बढ़ रहा है कैंसर का प्रकोप

फसल में नुक्सान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से कोसों दूर हैं शाकाहारी कीट

नरेंद्र कुंडू 
जींद। हाल ही में हुए एक ताजा सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में कपास बैल्ट वाले क्षेत्र में हर रोज औसतन 18 लोग कैंसर के कारण काल का ग्रास बन रहे हैं। हरियाणा में तो स्वास्थ्य विभाग के पास कैंसर के वास्तुविक स्थिति का सही रिकार्ड ही नहीं है। यू.एस.ए. की पर्यावरण संरक्षण एजैंसी के अनुसार दुनिया में विभिन्न किस्म के पेस्टीसाइडों में से 68 किस्म के ऐसे फंजीनाशक, फफुंदनाशक, खरपतवार नाशक और कीटनाशकहैं जो कैंसर कारक सिद्ध हो चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी भारत में इन पेस्टीसाइडों का धड़ले से प्रयोग हो रहा है। यह बात कीटाचार्य किसान सुरेश अहलावत ने राजपुरा भैण गांव में चल रही डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला में किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। इस अवसर पर कीटाचार्य किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन भी किया।
अहलावत ने कहा कि तम्बाकू को कैंसरकारक बताकर लोगों को गुमराह किया जा रहा है। जबकि वास्तविकता कुछ ओर ही है। उन्होंने कहा कि पंजाब में तो तम्बाकू का सेवन बिल्कुल नहीं होता और वहां की महिलाएं तो तम्बाकू के सेवन से कोसों दूर हैं लेकिन फिर भी वहां कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसमें पुरुषों की बजाए महिलाओं की संख्या ज्यादा है। पंजाब में एक लाख लोगों के पीछे 359 महिलाएं और 325 पुरुष कैंसर से पीडि़त हैं। किसान सत्यवान ईगराह, कृष्ण ईंटल, प्रकाश भैण, सुरेंद्र निडाना, रणबीर ईगराह, दिनेश रधाना ने फसल में कीटों के अवलोकन के बाद बताया कि कपास के इस खेत में सफेद मक्खी की औसतन संख्या 1.9, हरेतेले की संख्या 0.6 और चूरड़े की संख्या शून्य है, जो कि फसल में नुक्सान पहुंचाने के स्तर से कोसों दूर है। उन्होंने बताया कि इन शाकाहारी कीटों को कंट्रोल करने के लिए इस समय फसल में क्राइसोपा के बच्चे, इनो, इरो, सिंगु बुगड़ा, बिन्दुआ, दीदड़ बुगड़ा, हथजोड़ा, भूरी पुष्पक, बीटल, मकड़ी सिरफड़ मक्खी के बच्चे मौजूद हैं। इसकेअलावा शाकाहारी सूबेदार मेजर कीटों में मिलीबग, अल, माइट, लाल व काला बानिया तथा तम्बाकु वाली सूंडी भी मौजूद हैं। किसानों ने बताया कि सफेद मक्खी के प्रकोप के बाद फसल के पत्ते ऊपर से मुड़ जाते हैं और पत्तों का रंग पीला पड़ जाता है। हरे तेले के प्रकोप से पत्ते नीचे की तरफ मुड़ जाते हैं और पत्ते के चारों तरफ लाल रंग के निशान दिखाई देने लगते हैं। उन्होंने कहा कि आज किसानों के सामने कई गंभीर समस्याएं हैं। जब तक किसान को खुद का ज्ञान नहीं होगा, तब तक किसान इन समस्याओं से पार नहीं पा सकता। इसलिए किसान को खुद का ज्ञान पैदा करना होगा और खुद के ही बीज तैयार करने होंगे।

 फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान। 

कीटों की मास्टरनियां अब गीतों के माध्यम से किसानों को देंगी जहरमुक्त खेती का संदेश

दूरदर्शन पर गीत गाती नजर आएंगी कीटों की मास्टरनियां 

दूरदर्शन की टीम ने गीतों की रिकार्डिंग के लिए महिलाओं को दिया निमंत्रण

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीटों की मास्टरनियां अब गीतों के माध्यम से देश के किसानों को जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित करेंगी। इसके लिए इन मास्टरनियों द्वारा कीटों के पूरे जीवनचक्र पर आधा दर्जन के करीब मार्मिक गीतों की रचना की गई हैं। महिलाओं के गीतों की रिकार्डिंग के लिए दूरदर्शन हिसार के निदेशक द्वारा महिलाओं को हिसार स्थित दूरदर्शन के स्टूडियो में आमंत्रित किया गया है। गीतों की रिकार्डिंग के लिए रविवार को निडानी, निडाना व ललितखेड़ा गांव से 2 दर्जन के करीब महिलाएं स्टूडियों में जाएंगी।
जींद जिले में पिछले लगभग 7-8 वर्षों से जहरमुक्त खेती की मुहिम चल रही है। इस मुहिम को आगे बढ़ाने में पुरुष किसानों के साथ-साथ महिला किसान भी अहम भूमिका निभा रही हैं। निडानी, निडाना, ललितखेड़ा व रधाना गांव से लगभग 100 से भी ज्यादा महिलाएं इस मुहिम के साथ जुड़ी हुई हैं। जींद जिले के लोग इन वीरांगनाओं को कीटों की मास्टरनियों के नाम से जानते हैं। जींद जिले में चल रही जहरमुक्त खेती का मुख्य उद्देश्य किसानों को कीटों के बारे में जानकारी देकर कम खर्च से अधिक पैदावार देने के साथ-साथ खाने की थाली को जहरमुक्त करना है। इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कीटों की इन मास्टरनियों द्वारा कीटों पर अधारित लगभग आधा दर्जन गीत तैयार किए गए हैं। इन गीतों में महिलाओं ने कीट हमारे खेत में क्यों आते हैं?, कीटों का फसल में क्या महत्व है?, कीटों के पूरे जीवनचक्र तथा क्रियाकलापों का विस्तार से वर्णन किया गया है। कीटाचार्या अंग्रेजो, राजवंती, सविता, शीला, नारो, सुषमा, नीलम का कहना है कि किसानों द्वारा जानकारी के अभाव में फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है। इसके चलते आज मानव जाति पर एक बहुत बड़ा खतरा मंडराने लगा है। मनुष्य को भिन्न-भिन्न किस्म की गंभीर बीमारियों ने अपनी चपेट में ले लिया है। कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी के बढऩे के पीछे भी फसलों में पेस्टीसाइड का अधिक प्रयोग करना पाया गया है। उन्होंने बताया कि फसलों में अधिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से जहां हमारा खान-पान व वातावरण दूषित हो रहा है, वहीं किसान के सिर पर फसलों में मौजूद लाखों किस्म के बेजुबान कीटों की हत्या के पाप का बोझ भी बढ़ रहा है। किसान यह सब इसलिए कर रहा है क्योंकि किसान इस चीज की जानकारी नहीं है। किसान के पास आज खुद का ज्ञान नहीं है और दूसरों के ज्ञान केे बूते ही किसान आज इस अंतहीन जंग के मैदान में डटा हुआ है। महिला किसानों का कहना है कि हमारी संस्कृति में महिलाओं के गीतों का बहुत महत्व है। विवाह-शादी जैसे शुभ कार्यों में महिलाओं द्वारा मंगल गीत गाए जाते हैं। बिना महिलाओं के गीतों के इस तरह के शुभ कार्य अधुरे से नजर आते हैं। जींद जिले के किसानों द्वारा जहरमुक्त खेती की जो मुहिम चलाई गई है, वह एक जनहित का कार्य है। इस मुहिम में समस्त मानव जाति की भलाई छिपी हुई है। जनहित के कार्य से शुभ कोई कार्य नहीं होता। इसलिए उन्होंने इस शुभ कार्य को पूरा करने के लिए इन गीतों की रचना की है। गीतों के माध्यम से वह देश के किसानों को जहरमुक्त खेती का संदेश देना चाहती हैं। ताकि अधिक से अधिक किसानों को प्रेरित कर इस मुहिम से जोड़ा जा सके।

यह है महिलाओं द्वारा रचित गीत

'पिया जी तेरा हाल देख कै मेरा कालजा धड़कै हो, तेरे कांधे ऊपर जहर की टंकी मेरै कसुती रड़कै हो'। 'किडय़ां का कट रहया चालाए ए' मैनै तेरी सूं देखया ढंग निराला ए मैनै तेरी सूं'। 'म्हारी पाठशाला में आईए हो-हो नंनदी के बीरा तैनै न्यू तैनै न्यू मित्र कीट दिखाऊं हो हो नंनदी के बीरा'। 'मैं बिटल हूं मैं किटल तुम समझो मेरी महता को'। 'ए बिटल म्हारी मदद करो हामनै तेरा एक सहारा है, जमीदार का खेत खालिया तनै आकै बचाना है'। 'निडाना-खेड़े की लुगाइयां नै बढ़ीया स्कीम बनाई है, हमनै खेतां में लुगाइयां की क्लाश लगाई है'।  'अपने वजन तै फालतु मास खावै वा लोपा माखी आई है' इत्यादि।

दूरदर्शन के इतिहास में जुड़ेगा नया अध्याय 

जींद जिले के किसानों ने एक अनोखी मुहिम शुरू की है। इस मुहिम में महिलाओं का अहम योगदान हैं। महिलाओं द्वारा आज तक जितने भी गीत गाए जाते थे, वह सभी हमारे आम जीवन पर आधारित थे लेकिन यहां की महिलाओं ने कीटों के जीवन पर गीत लिखकर एक अलग तरह की शुरूआत की है। इन गीतों में महिलाओं ने यह दर्शाया है कि कीटों का हमारी फसलों में क्या महत्व है। महिलाओं की जनहित की भावना को देखते हुए दूरदर्शन ने उन्हें गीतों की रिकार्डिंग के लिए आमंत्रित किया है। इस तरह के गीतों की रिकार्डिंग कर दूरदर्शन के इतिहास में भी एक नया अध्याय जुड़ेगा। इसेस पहले दूरदर्शन पर इस तरह के किसी कार्यक्रम की रिकार्डिंग नहीं की गई है।
जिले सिँह जाखड़, डायरैक्टर
दूरदर्शन, हिसार 

विदेश से आई हिंदी कवि को तर्क-वितर्क की खुली चुनोती

कुमार विश्वास द्वारा फेसबुक पर जाट समुदाय और खापों के प्रति की जा रही हैं गलत टिप्पणियां

नरेंद्र कुंडू 
जींद। मशहूर हिंदी कवि एवं आप पार्टी के कार्यकर्त्ता कुमार विश्वास द्वारा रोहतक में हुई ऑनर किलिंग के मामले में सोशल नैटवॢकंग साइट फेशबुक पर जाट समुदाय और खाप पंचायतों पर की जा रही उल-जुलुल टिपणियों के खिलाफ कड़ा संज्ञान लेते हुए फ्रांस में ई-मार्कीटिंग कंसलटैंट के पद पर कार्यरत जींद जिले के गांव निडाना निवासी फूलकुमार ने कुमार विश्वास को पब्लिक स्टेज पर तर्क-वितर्क के लिए आमंत्रित किया है। फूलकुमार का कहना है कि किसी परिवार विशेष की गलती के कारण पूरे समुदाय के खिलाफ गलत टिपणियां ठीक नहीं हैं।
फूलकुमार ने फ्रांस से इंटरनैट के माध्यम से भेजी एक ई-मेल में कहा कि वह न तो प्रेम विवाह के खिलाफ  हैं और न ही ऑनर किलिंग के समर्थक हैं लेकिन जब समाज में एक सभ्य छवि तथा महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले कुमार विश्वास जैसे कविता पाठक, जिसके वह खुद कायल हैं भी ऐसे गैर जिम्मेदाराना ब्यान-बाजी कर रहे हैं तो, वह खुद को उन्हें खुले तौर पर तर्क-वितर्क से रोक नहीं पाए। फूलकुमार ने कहा कि पिछले दिनों रोहतक में हुई एक ऑनर किलिंग की घटना पर कुमार विश्वास द्वारा फेसबुक पर जाट समुदाय और खापों के खिलाफ गलत टिप्पणियां की जा रही हैं। रोहतक में हुई ऑनर किलिंग समाज के लिए बेहद शर्मनाक है लेकिन इस तरह की घटना के साथ किसी जात या किसी समुदाय को जोडऩा उससे भी ज्यादा शर्मनाक है।
 फूलकुमार का फोटो।   
फूलकमार ने देश की राजधानी दिल्ली में हुए आरुषी हत्याकांड तथा विगत वर्ष पानीपत में हुई इंदू शर्मा की ऑनर किलिंग के मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि यह दोनों कांड भी तो ऑनर किलिंग थे, जो अभी तक अदालत में विचाराधीन है। शायद यह दोनों घटनाएं एक समाज विशेष में नहीं हुई। इसलिए इनको ले किसी ने जाति या सामाजिक संस्थाओं पर टिप्पणी नहीं की। उक्त दोनों घटनाओं से यह साफ हो रहा है कि ऑनर किलिंग जैसी घटना किसी विशेष कास्ट या वर्ग की नहीं बल्कि छोटी मानसिकता या मामले का सही तरीके से नहीं संभाल पाने का परिणाम है। अगर इस तरह के मामालों को ठंडे दिमाग व सही सोच से निपटाने की कोशिश की जाए तो इसका आसानी से हल निकाला जा सकता है। उन्होंने कहा कि रोहतक में हुई ऑनर किलिंग की घटना न तो जाट समुदाय की देन है और न ही किसी खाप पंचायत की। यह घटना दोनों परिवारों की अपनी अल्पमति और मामले को ठीक से नहीं संभाल पाने का नतीजा है। जाट समाज और खाप पंचायतें प्रेम विवाह के खिलाफ नहीं हैं। किसी परिवार विशेष की नादानी के कारण पूरे जाट समाज या खापों को बदनाम करना कहां तक ठीक है? फूलकुमार ने कुमार विश्वास को चैलेंज करते हुए कहा कि अगर वह वास्तव में प्रेम विवाह के पक्षधर हैं और ऑनर किलिंग के खिलाफ हैं तो विवाह के समय लड़का-लड़की की कुंडली मिलाने और गौत्र मिलाने की रीति-रिवाज को, समाचार पत्रों में ब्याह-शादी के जाति धर्म की प्राथमिकता के आधार पर दिए जाने वाले विज्ञापनों को क्यों नहीं बंद करवाते। फूलकुमार ने कहा कि कुमार विश्वास किसी भी समय, किसी भी माध्यम से उसके साथ तर्क-वितर्क कर सकते हैं। वह हर वक्त इसके लिए तैयार हैं। निडाना हाइट्स वैबसाइट के ऑनर फूलकुमार ने कहा कि खाप पंचायतों का एक सामाजिक चेहरा भी है। अगर खाप पंचायतों के इतिहास पर नजर डाली जाए तो खापों ने बड़े-बड़े विवादों को भी सुलझाया है। खाप पंचायतों का पूरा इतिहास उन्होंने अपनी वेबसाइट पर भी डाला हुआ है। खाप एक संस्था नहीं, बल्कि एक सामाजिक गुण भी है, ऐसा गुण कि जो बुद्धिजीव जनता की नब्ज पकडऩे का हुनर रखते हैं। उन्होंने कहा कि जनता की इस नब्ज को पकडऩे के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तक सारी उम्र शोध करते रह जाते हैं लेकिन कभी पकड़ नहीं पाते।

अब दूरदर्शन में भी सुनाई देगा जींद के किसानों का जहरमुक्त खेती का संदेश

दूरदर्शन की टीम ने किसानों के अनुभव की रिकार्डिंग के कार्यक्रम को दिया फाइनल टच

नरेंद्र कुंडू  
जींद। जिले के किसानों द्वारा शुरू की गई जहरमुक्त खेती की मुहिम से देशभर के किसानों को रू-ब-रू करवाने के लिए कीटाचार्य किसानों के अनुभव को कैमरे में कैद करने के लिए जींद पहुंची दिल्ली दूरदर्शन की टीम ने राजपुरा भैण गांव के खेतों में जाकर कीटाचार्य किसानों के अनुभवों और क्रियाकलापों को शूट किया। इस दौरान किसानों ने दूरदर्शन की टीम को कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों क्रियाकलाप भी दिखाए। जींद जिले के किसानों द्वारा शुरू की गई इस अनोखी मुहिम को देखकर दिल्ली दूरदर्शन की टीम भी इन किसानों की कायल हो गई। इस अवसर पर कृषि विभाग से सेवानिवृत्त एस.डी.ओ. राजपाल सुरा भी हांसी से किसानों की एक टीम के साथ यहां पहुंचे थे।
जींद जिले के किसानों द्वारा कीट ज्ञान के दम पर की जा रही जहरमुक्त खेती के चर्चे सुनकर दिल्ली दूरदर्शन की टीम प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना के नेतृत्व में वीरवार को ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची। यहां पर टीम के सदस्यों ने महिलाओं से कीटों के बारे में विस्तार से चर्चा की और उनके क्रियाकलापों को कैमरे में कैद किया। इसके बाद टीम शनिवार को राजपुरा भैण गांव के खेतों में पहुंची और यहां कीटाचार्य किसानों से भी कीट ज्ञान पर चर्चा की। टीम के सदस्यों ने शनिवार देर सायं तक किसानों के क्रियाकलापों को सांझा करते हुए दर्जनभर से भी ज्यादा किसानों के अनुभवों को कैमरे में कैद किया। कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक, मनबीर ईगराह, बलवान, ईंटलकलां के जयभगवान, रणधीर सिंह ने बताया कि वह पिछले 5 वर्षों से कीटनाशक रहित खेती कर रहे हैं। बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए उनकी पैदावार उन किसानों से ज्यादा आ रही है, जो कीटनाशकों का
कीटों का बही खाता तैयार करते टीम के सदस्य। 
अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस तरह वह कम खर्च से अधिक पैदावार तो ले ही रहें हैं, साथ-साथ अपने परिवार की थाली से जहर के स्तर को कम करने का प्रयास भी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह अब तक 204 किस्म के कीटों की पहचान कर चुके हैं, जिनमें 43 किस्म के शाकाहारी तथा 161 किस्म के मांसाहारी शामिल हैं। फसल में शाकाहारी कीटों की तादाद मांसाहारी कीटों से काफी कम होने के कारण मांसाहारी कीट अपने खुद ही शाकाहारी कीटों को कंट्रोल कर लेते हैं। इसलिए उन्हें फसल में कीटनाशकों के प्रयोग की जरुरत नहीं है। किसानों ने बताया कि कीटनाशकों का व्यापार भय व भ्रम के दम पर चल रहा है। पहले तो किसान को कीटों से फसल में होने वाले नुक्सान का झूठा भय दिखाया जाता है और फिर उन्हें भ्रमित कर फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल करना सिखाया जाता है लेकिन जींद जिले के लगभग 2 दर्जन गांवों के किसानों ने अपना खुद का ज्ञान पैदा कर इस भय व भ्रम के जाल को तोडऩे का काम किया है। आज जींद जिले में 200 से ज्यादा पुरुष किसान और 100 से ज्यादा महिला किसान इस मुहिम के साथ जुड़ी हुई हैं। जींद जिले में एक हजार एकड़ कपास और एक हजार एकड़ के लगभग धान की ऐसी खेती की जा रही है, जिसमें एक छटांक भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया गया है। कीट ज्ञान के बल पर उन्होंने यह सिद्ध कर के दिखा दिया है कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। सिरसाखेड़ी गांव से आए किसान कर्मबीर ने बताया कि वह भी इस वर्ष से इस मुहिम के साथ जुड़ा है और उसने इन पाठशालाओं में आकर ऐसी काफी ज्ञानवर्धक जानकारियां हासिल की हैं, जिनके बारे में एक आम किसान कभी सोच भी नहीं सकता। इस दौरान किसानों ने दूरदर्शन की टीम को कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के क्रियाकलाप भी दिखाए। बाद में टीम के सभी सदस्यों को स्मृति चिह्न भेंट कर जींद पहुंचने पर उनका आभार व्यक्त किया।
 कीटाचार्य किसानों के अनुभव शूट करते दूरदर्शन की टीम के सदस्य।


शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

कीटों की मास्टरनियों के अनुभवों को किया कैमरे में कैद

दूरदर्शन की टीम ने ललितखेड़ा के खेतों में पहुंचकर 4 घंटों तक सांझा किए महिलाओं के अनुभव 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। खाने की थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए ललितखेड़ा गांव की महिलाओं द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को देश के अन्य किसानों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की टीम महिलाओं के क्रियाकलापों की रिकर्डिंग करने के लिए वीरवार को ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची। दूरदर्शन की टीम ने लगभग 4 घंटे तक खेतों में बैठकर महिलाओं के क्रियाकलापों को देखा और उनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। इस दौरान टीम के सदस्यों ने महिलाओं द्वारा कीटों पर आधारित गीतों को भी शूट किया। टीम द्वारा शूट किए गए कार्यक्रम का प्रसारण 24 सितंबर को दिल्ली दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कृषि दर्शन कार्यक्रम में सुबह के शैड्यूल में किया जाएगा।  
दिल्ली दूरदर्शन की टीम प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना के नेतृत्व में लगभग 1 बजे ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंची। इस दौरान उनके साथ प्रसारण कार्यकारी अधिकारी विकास डबास तथा कैमरामैन डी.पी. सिंह भी थे। टीम के सदस्यों ने महिलाओं से उनके क्रियाकलापों पर विस्तार से बातचीत की। कीटों की मास्टरनियां राजवंती, अंग्रेजो, नीलम, सविता, नारो, शीला, मिनी मलिक, कमलेश ने बताया कि वह 5-5 के ग्रुप बनाकर फसल में मौजूद कीटों की पहचान करती हैं और उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाती हैं। कीटों का आकार काफी छोटा होता है। इसलिए वह इनकी पहचान के लिए सुक्ष्मदर्शी लैंसों का सहारा लेती हैं। इसके बाद पौधों पर मौजूद कीटों की गिनती कर उनकी समीक्षा करती हैं। इस दौरान महिलाओं ने टीम के सदस्यों को फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान करवाई। कीटों को नियंत्रण करने की जरुरत नहीं है। क्योंकि फसल में मांसाहारी तथा शाकाहारी 2 किस्म के कीट होते हैं। शाकाहारी कीट पौधों, पत्तों और फल-फूल को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं। उसी तरह मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खा कर अपना जीवन यापन करते हैं। कीट न हमारे मित्र हैं और न ही हमारे दुशमन। कीट किसान को हानि या लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से फसल में नहीं आते हैं। इस प्रकार दोनों के जीवन यापन की इस प्रक्रिया में किसान को लाभ पहुंचता है। उन्होंने बताया कि ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं होने के कारण उन्हें कीटों के नाम याद रखने में परेशानी होती थी। इसलिए उन्होंने इनके नाम याद रखने के लिए इनके क्रियाकलापों के आधार पर इनके आम बोलचाल के नाम रख लिए हैं। अंग्रेजो ने बताया कि जब वह अपनी कपास की फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करते थे तो कपास की चुगाई के वक्त उन्हें एलर्जी, सिरदर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती थी लेकिन जब से उन्होंने कीटनाशकों का प्रयोग बंद किया है, तब से उन्हें कपास की चुगाई के दौरान एलर्जी व सिरदर्द की समस्या नहीं होती है और उनके उत्पादन पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। कीटनाशकों का इस्तेमाल छोड़कर उन्हें 2 फायदे हुए हैं। एक तो उनकी थाली से जहर कम हुआ है और दूसरा उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहने लग है। इससे बीमारियों पर खर्च होने वाला उनका पैसा बच रहा है। रधाना से आई महिला किसान कमला व सरोज ने बताया कि उनके गांव में इस वर्ष से महिलाओं की क्लाश शुरू हुई है। ललितखेड़ा की महिलाएं उनके गांव में पढ़ाने के लिए आती हैं। इस मुहिम से जुडऩे से पहले वह इस काम से बिल्कुल अनभिज्ञ थी लेकिन अब उन्हें कीटों की पहचान व उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हुई है। कीट ज्ञान के बल पर ही इस बार वह जहरमुक्त खेती कर रही हैं। जहरमुक्त खेती करने से उनका परिवार बेहद खुश हैं। कीटों की मास्टरनियों ने बताया कि चूल्हे-चौके के साथ-साथ अब वह भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेतीबाड़ी का भी पूरा कार्य संभालती हैं। 
 महिलाओं के क्रियाकलापों को कैमरे में कैद करती दूरदर्शन की टीम।

कीटों पर की है गीतों की रचना 

कीटों की मास्टरनियों के नाम से ख्याति प्राप्त कर चुकी ललितखेड़ा की महिलाओं की मुहिम यहीं खत्म नहीं होती। इन महिलाओं ने अपने मनोरंजन के साथ-साथ दूसरे किसानों को भी इस मुहिम की तरफ आकर्षित करने के लिए कीटों पर दर्जनभर से भी ज्यादा गीतों की रचना भी की है। महिलाओं की मुहिम की कवरेज के लिए ललितखेड़ा गांव पहुंची दूरदर्शन की टीम को महिलाओं ने कीटों पर आधारित गीत 'हे बिटल म्हारी मदद करो, हामनै तेरा एक सहारा है। 'पिया जी तेरा हाल देख कै मेरा कालजा धड़कै हो, तेरे कांधै टंकी जहर की या मेरै कसुती रड़कै हो' गीत भी सुनाए। दूरदर्शन की टीम ने महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किए गए इन दोनों गीतों की रिकर्डिंग भी की।
ग्रुप में कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती कीटों की मास्टरनियां।


कृषि दर्शन पर देश के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी कीटों की मास्टरनियां

कीटों की मास्टरनियों के क्रियाकलापों को शूट करने के लिए आज जींद पहुंचेगी दिल्ली दूरदर्शन की टीम

नरेंद्र कुंडू
जींद। ललितखेड़ा गांव की कीटों की मास्टरनियां अब दिल्ली दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कृषि दर्शन कार्यक्रम के माध्यम से देशभर के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी। इस कार्यक्रम के दौरान कीटों की मास्टरनियां देशभर के किसानों को कीट ज्ञान हासिल कर खेती में उर्वरकों और कीटनाशकों पर अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ते खर्च को कम करने तथा खाने की थाली को जहरमुक्त करने का संदेश देंगी। इसके लिए वीरवार को दिल्ली दूरदर्शन की टीम प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना के नेतृत्व में ललितखेड़ा गांव में पहुंचेगी। ललितखेड़ा गांव के खेतों में पहुंचकर टीम द्वारा कीटों की मास्टरनियों के क्रियाकलापों तथा खेती के तौर तरीकों को कैमरे में कैद किया जाएगा। इसके बाद शुक्रवार को टीम के सदस्य राजपुरा भैण गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर किसानों के कार्यों को भी कैमरे में शूट किया जाएगा।    
खाने की थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए ललितखेड़ा गांव की वीरांगनाओं द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम को देशभर के किसानों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की एक टीम वीरवार को 2 दिन के लिए जींद के दौरे पर आ रही है। दूरदर्शन की टीम द्वारा 2 दिन तक यहां के कीटाचार्य किसानों तथा कीटों की मास्टरियों के अनुभव को कैमरे में कैद किया जाएगा। इस दौरान महिलाओं द्वारा कीटों पर अधारित गीतों को भी शूट किया जाएगा। दिल्ली दूरदर्शन की टीम के प्रोड्यूशर श्रीकांत सैक्शेना तथा प्रसारण कार्यकारी विकास डबास का कहना है कि आज किसानों द्वारा फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों तथा उर्वरकों के प्रयोग के कारण खेती में खर्च लगातार बढ़ रह है। इसलिए खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है। फसलों में कीटनाशकों के अत्याधिक प्रयोग के कारण आज हमारा खान-पान तथा वातावरण भी दूषित हो रहा है तथा बेजुबान जीवों की हत्या भी हो रही है। खान-पान तथा दूषित होते वातावरण के कारण इंसान लगातार भिन्न-भिन्न प्रकार की लाइलाज बीमारियों की चपेट में आ रहा है। देश के किसानों को इस बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से ही उनकी टीम द्वारा 2 दिन तक यहां के किसानों के क्रियाकलापों को कैमरे में कैद किया जाएगा। विकास डबास का कहना है कि खेती के कार्यों में अभी तक महिलाओं का 70 प्रतिशत योगदान होता था लेकिन ललितखेड़ा गांव की महिलाओं ने कीट ज्ञान की इस मुहिम को आगे बढ़ाकर चूल्हे-चौके के साथ-साथ खेती में अपना 100 प्रतिशत योगदान दर्ज करवाया है। इससे समाज के सामने महिलाओं का एक नया चेहरा उभर कर सामने आया है। महिलाओं ने कृषि क्षेत्र में अपनी 100 प्रतिशत भागीदारी दर्ज करवाकर यह भी साबित कर दिया है कि आज महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। डबास ने बताया कि टीम द्वारा वीरवार को ललितखेड़ा गांव की महिलाओं तथा शुक्रवार को राजपुरा भैण गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में आने वाले किसानों के अनुभवों को कैमरे में शूट किया जाएगा। 
 कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती कीटों की मास्टरनियों

15-15 मिनट के 2 कार्यक्रम होंगे शूट

दिल्ली दूरदर्शन की टीम द्वारा वीरवार और शुक्रवार को महिलाओं तथा पुरुष किसानों के 15-15 मिनट के 2 अलग-अलग कार्यक्रम शूट किए जाएंगे। इसके बाद मंगलवार सुबह दिल्ली दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कृषि दर्शन कार्यक्रम में इन कार्यक्रमों को प्रसारित किया जाएगा। पहले कार्यक्रम का प्रसारण 24 सितंबर तथा दूसरे कार्यक्रम का प्रसारण 1 अक्तूबर को होगा। 


हमारी जीवनदायनी वस्तुएं हो चुकी हैं जहरीली

एक दिवसीय किसान संगोष्ठी में किसानों ने सांझा किए अपने अनुभव

नरेंद्र कुंडू
जींद।  दूरदर्शन हिसार के तकनीकि डिप्टी डायरैक्टर जिले सिंह जाखड़ ने कहा कि किसी भी जीव को जीवित रहने के लिए 2 चीजें सबसे ज्यादा जरुरी हैं। एक स्वच्छ वातावरण और दूसरा शुद्ध भोजन लेकिन आज हमारी ये जीवनदायनी दोनों ही वस्तुएं जहरयुक्त हो चुकी हैं। जाखड़ सोमवार को कृषि विभाग तथा ईंटल कलां के किसानों द्वारा ईंटल कलां गांव में आयोजित एक दिवसीय विचार संगोष्ठी में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। इस अवसर पर कार्यक्रम में जिला कृषि उप-निदेशक डा. रामप्रताप सिहाग, आल इंडिया रेडियो रोहतक से सम्पूर्ण, कृषि विभाग के बी.ई.ओ. जे.पी शर्मा, ए.डी.ओ. राजेंद्र, रमेश, डा. कमल सैनी, बराह खाप प्रधान कुलदीप ढांडा, मैडम कुसुम दलाल, अक्षत दलाल, आई.पी.एम. सैंटर फरीदाबाद से डा. एस.सी. शर्मा, डा. विनोद, बी.पी. सिंह जगपाल, सुनील कंडेला तथा ईंटल कलां के सरपंच महाबीर सिंह विशेष रूप से मौजूद थे। किसानों ने अतिथिगणों को पगड़ी पहनाकर स्वागत किया।
जाखड़ ने कहा कि आज हालात ऐसे हो गए हैं कि इंसान को पैसे देने के बावजूद भी शुद्ध भोजन नहीं मिल रहा है, यानि इंसान पैसे देकर भी जहर खाने पर मजबूर है। इसका मुख्य कारण जागरूकता के अभाव में किसानों द्वारा फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया जाना है। अधिक मात्रा में फसलों में कीटनाशकों के 
मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करते किसान तथा कार्यक्रम में मौजूद किसान।
प्रयोग से वातावरण और खाद्य वस्तुओं का जहरयुक्त होना पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों के लिए एक गंभीर खतरे का संकेत है। डा. कमल सैनी और कीटाचार्य रणबीर मलिक ने कहा कि आज खेती में खर्च ज्यादा बढऩे के कारण किसान पैदावार से संतुष्ट नहीं है। जहां पैदावार बढ़ रही है, वहीं कीटनाशकों और उर्वरकों के अधिक प्रयोग के कारण खर्च भी बढ़ा है। उन्होंने कहा कि कीटों को लेकर किसान भ्रमित है। कीटों और बीमारियों के बीच के अंतर के बारे में किसान को जानकारी नहीं है। इसलिए सबसे पहले किसानों को इस भ्रम को दूर करना होगा। उन्होंने कहा कि आज के दिन कपास की फसल में किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मरोडिय़े (लीपकरल) की है। पूरी दुनिया में इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। यह एक वायरस है और सफेद मक्खी इसको फैलाने में वाहक का काम करती है। एक सफेद मक्खी भी इस बीमारी को पूरे खेत में फैला सकती है। इसका तो सिर्फ एक ही समाधान है और वह है पौधों को समय पर पर्याप्त खुराक देना। पौधे को समय पर पर्याप्त खुराक मिलने से पौधा इस बीमारी से लडऩे की क्षमता पैदा कर लेता है। मलिक ने कहा कि पौधों और कीड़ों का गहरा रिश्ता है। मनबीर रेढ़ू ने कीड़ों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कीड़े न तो हमारे मित्र हैं और न हमारे दुश्मन। कीड़े तो अपना जीवन यापन करने के लिए पौधों पर आते हैं और उनके जीवन यापन के इस चक्र में किसान का फायदा हो जाता है। उन्होंने बताया कि अगर किसान को 20 कीटों की पहचान भी हो जाती है तो वह कभी भी फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करेगा। इस अवसर पर विभिन्न गांवों से आए किसानों ने भी अपने अनुभव रखे। जिला कृषि उप-निदेशक ने किसानों को हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया। इस अवसर पर किसानों ने अतिथिगणों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित भी किया। 

 मंच पर मौजूद अतिथिगण तथा सम्बोधित करते मुख्यातिथि जिले सिंह जाखड़। 



शौक को बना लिया रोजगार

मूर्ति कला के दम पर प्रदेशभर में मनवाया प्रतिभा का लोहा

नरेंद्र कुंडू
जींद। आधुनिकता के इस युग में एक तरफ जहां मूर्ति कला का कार्य दम तोड़ रहा है और बड़े-बड़े मूर्ति कलाकर मूर्ति निर्माण के अपने पुस्तैनी कार्य को छोड़कर अपनी इच्छा के विपरित काम करने को मजबूर हैं, वहीं गांव बुराडहर-बुआना निवासी मूर्ति कलाकार अजमेर जांगड़ा अपनी कला के दम पर दूर-दूर तक अपना लोहा मनवा चुका है। अजमेर जांगड़ा मूर्ति कला के क्षेत्र में आज भी अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए है। पूर्वजों से विरासत में मिली मूर्ति निर्माण की कला को अजमेर जांगड़ा आज भी पूरे उत्साह के साथ संजोए हुए है। अपनी मूर्ति कला के बूते आज अजमेर जांगड़ा मूर्ति निर्माण का अपना शौक पूरा करने के साथ-साथ अपने परिवार का पालन-पौषण भी ठीक तरह सेकर रहा है। 26 वर्षीय अजमेर पिछले 10 वर्षों से मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा है और अजमेर द्वारा निर्मित बहुत सी मूर्तियां तो आज प्रदेश के भिन्न-भिन्न जिलों में मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं।  
गांव बुराडहर-बुआना में एक गरीब परिवार में जन्मे अजमेर जांगड़ा को बचपन से ही मूर्ति निर्माण का शौक था। अजमेर को यह कला अपने पूर्वजों से विरासत में मिली थी। अजमेर के पड़दादा (दादा के पिता) कन्हैया राम मूर्ति निर्माण का कार्य करते थे। इसके बाद अजमेर के दादा और फिर पिता सतपाल जांगड़ा तथा अब खुद अजमेर मूर्ति निर्माण का कार्य कर अपने पूर्वजों से विरासत में मिली इस कला को आधुनिकता के इस युग में भी संजोए हुए है। फर्क सिर्फ इतना है कि उस समय मूर्तियों का निर्माण मिट्टी से होता था लेकिन अब आधुनिकता के कारण मूर्तियों का निर्माण सीमैंट से होता है। अजमेर अपने चाचा रामपाल को अपना गुरु मानते हैं और उन्होंने अपने चाचा रामपाल से ही मूर्ति निर्माण का यह हुनर सीखा है। गांव के सरकारी स्कूल से 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अजमेर ने 2004 में मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू किया। 2004 से अब तक अजमेर कुरुक्षेत्र, जींद, पानीपत, करनाल, कैथल, फरीदाबाद, अंबाला, हिसार, सोनीपत सहित कई जिलों में अपनी मूर्ति कला का प्रदर्शन कर चुका है। इस अवधी के दौरान अजमेर ने हजारों मूर्तियों का निर्माण किया। इनमें ज्यादातर मूर्तियां आराध्य देवों की हैं। धार्मिक मूर्तियों के अलावा अजमेर ने शहीदों की मूर्तियों का निर्माण भी किया है। इस तरह अजमेर द्वारा बनाई गई आराध्य देवों की मूर्तियां आज हरियाणा प्रदेश के विभिन्न जिलों में मंदिरों की शोभा बढ़ा रही हैं। अपनी कला के बूते फिलहाल अजमेर धार्मिक नगरी कुरुक्षेत्र के मंदिरों के लिए मूर्तियों का निर्माण कर रहा है। इस प्रकार अजमेर जांगड़ा अपनी कला के दम पर अपना शौक पूरा करने के साथ-साथ अपने परिवार पेट भी भर रहा है।
 मूर्ति निर्माण का कार्य करता कलाकार अजमेर जांगड़ा।

एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का लग जाता है समय  

मूर्ति कलाकार अजमेर जांगड़ा का कहना है कि मूर्ति निर्माण का कार्य काफी बारिकी से करना पड़ता है। मूर्ति के निर्माण में सीमैंट का प्रयोग होने के कारण मूर्ति का थोड़ा-थोड़ा निर्माण करना पड़ता है। इसलिए एक मूर्ति के निर्माण में काफी समय लग जाता है। एक मूर्ति के निर्माण में एक से दो माह तक का समय लग जाता है।

सरकार को करनी चाहिए मदद

मूर्ति कलाकार अजमेर जांगड़ा का कहना है कि आज बढ़ती महंगाई तथा आधुनिकता के कारण मूर्तियों की कम होती मांग के कारण मूर्ति निर्माण का कार्य दम तोडऩे लगी है। इसके चलते कलाकारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो रहा है। आर्थिक तंगी तथा सरकार द्वारा कलाकारों की कोई आर्थिक मदद नहीं दिए जाने के कारण मूर्ति कला दम तोड़ रही है। मूर्ति कलाकार आर्थिक परेशानी के चलते अपना पुस्तैनी कार्य छोडऩे को मजबूर हैं। सरकार को चाहिए कि वे इस तरह के कलाकारों को आगे बढ़ाने के लिए कलाकारों की आर्थिक मदद करे। ताकि लुप्त होती कला को बचाया जा सके।

मूर्ति कलाकार अजमेर द्वारा तैयार की जा रही मूर्तियां । 



रविवार, 8 सितंबर 2013

कीटनाशकों से होती है महज 7 प्रतिशत ही रिकवरी

अज्ञान के कारण किसान फसलों में कर रहा है अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक ने कहा कि अगर कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो किसान फसलों में कीटों को नियंत्रित करने के लिए अर्थार्त कीटों से फसल को होने वाले नुक्सान को रोकने के लिए जो कीटनाशकों का प्रयोग करता है, उससे महज 7 प्रतिशत की ही रिकवरी होती है लेकिन इस 7 प्रतिशत अधिक उत्पादन से जो आमदनी किसान को होती है, उससे ज्यादा पैसे तो किसान इन कीटनाशकों पर खर्च कर देता है। इस तरह बिना जानकारी के किसान को दोहरा नुक्सान होता है। एक तो किसान का पैसा बर्बाद होता है और दूसरा उसकी थाली में जहर का स्तर बढ़ रहा है। रणबीर मलिक शनिवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल बहुग्रामी किसान खेत पाठशाला में मौजूद किसानों को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर पाठशाला में कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी तथा मल्टीपलैक्स फर्टीलाइजर कंपनी के एस.आर. संजय कुमार भी मौजूद थे। 
 कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान।
रणबीर मलिक ने कहा कि किसान के पास न तो खुद का ज्ञान और न ही खुद के औजार हैं। इसलिए तो किसान और कीटों के बीच पिछले 4 दशकों से यह अंतहीन जंग चली आ रही है। किसान तो दूसरों के ज्ञान और पराए हथियारों के दम पर ही किसान इस जंग को जीतने के सपने संजोए हुए है, जो कि संभव नहीं है। अगर यह लड़ाई इसी तरह चलती रही तो वह दिन दूर नहीं, जब समस्त मानव जाति एक गंभीर संकट में फंस कर खड़ी हो जाएगी और देश की बड़ी-बड़ी कीटनाशक कंपनियां तथा कृषि से सम्बंधित दूसरे विभाग भी इसके लिए किसानों को ही दोषी ठहराएंगे। मलिक ने कहा कि जब फसल में मौजूद कीटों को नियंत्रित करने की जरुरत नहीं है तो फिर किसानों को कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करने के लिए क्यों गुमराह किया जा रहा है। डा. कमल सैनी ने किसानों को बताया कि गांव राजपुरा भैण में किसान रामस्वरूप के जिस खेत में पाठशाला का आयोजन किया जा रहा है। इस फसल में शुरूआत से ही मरोडिय़ा (लीपकरल) का प्रकोप है और यह अब तक बरकरार है लेकिन इसके बावजूद कपास की यह फसल पूरी बढ़ौतरी कर रही है और इसमें टिंड्डे भी पूरे हैं। इस फसल में टिंड्डों की औसत प्रति पौधा 40-45 इस वक्त दर्ज की गई है। जबकि मरोडिय़ा के प्रकोप के चलते दूसरे जिले के किसानों ने तो कपास की खड़ी की खड़ी फसल को ट्रैक्टर से जुतवा दिया। इसका कारण यह है कि एक तो यहां के किसानों ने एक छटांक भी 
 एक-दूसरे के साथ अपने विचार सांझा करते किसान। 
कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया और दूसरा यह कि इन किसानों ने फसल को समय पर जिंक, डी.ए.पी. और यूरिया के घोल की पर्याप्त खुराक दी है। पौधों को समय पर पर्याप्त खुराक मिलने के कारण मरोडिय़े से होने वाले नुक्सान की भरपाई पौधों ने इस घोल से पूर कर निरंतर अपनी वृद्धि की है और इसका परिणाम यह रहा कि यहां के किसानों को दूसरे जिलों के किसानों की तरह खेतों में खड़ी फसल को जोतने की नौबत नहीं आई। 




बुधवार, 4 सितंबर 2013

रेप जैसे संगिन आरोपों के कारण धूमिल हो रही साधु-संतों की छवि

नरेंद्र कुंडू
जींद। भारत की धरती सदियों से संत-महात्माओं की धरती रही है। यहां लोग भगवान की तरह संत-महात्माओं की पूजा करते हैं। यहां पर संत-महात्माओं को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है लेकिन समय के साथ-साथ हो रहे इस बदलवा में संत-महात्माओं का रुप भी बदलता जा रहा है। आए दिन संतों पर लगे रहे रेप जैसे संगिन आरोपों के कारण संत-महात्माओं की छवि भी लगातार धूमिल होती जा रही है। हाल ही में आशाराम पर एक नाबालिग के साथ रेप के आरोप ने फिर से साधु-संतों का एक अलग रुप समाज के सामने पेश किया है। लोग जगह-जगह आशाराम के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और पुतले फूंक रहे हैं। इससे यह बात साफ हो रहा है कि कभी संत-महात्माओं की धरा के नाम से जानी जाने वाली यह धरती अब धीरे-धीरे अपनी पहचान खो रही है। जिन संत-महात्माओं को कभी यहां के लोग सम्मान की दृष्टि से देखते थे आज उन संत-महात्माओं को लोग हीन दृष्टि से देखने लगे हैं।

सबके लिए समान हो कानून

आम आदमी हो या कोई संत या नेता कानून सबके लिए एक समान होने चाहिएं। आशाराम पर रेप के आरोप लगने के बावजूद आशाराम को समन देकर बुलाने का कोई औचित्य नहीं बचता, क्योंकि कानून में कहीं भी रेप के आरोपी को समन देने जैसा कोई प्रावधान नहीं है। रेप के आरोपी को बिना समन दिए पुलिस सीधे
 एडवोकेट विनोद बंसल
गिरफ्तार कर सकती है। जैसा की मुम्बई और दिल्ली के रेप कांड में हुआ था। जब मुम्बई और दिल्ली रेप कांड के सभी आरोपियों को बिन समन दिए गिरफ्तार किया गया है तो फिर आशाराम को समन क्यों दिया गया। इससे जनता के बीच यह संदेश जाता है कि आम आदमी और प्रतिष्ठित व्यक्ति के लिए कानून अलग-अलग है। अगर पुलिस चाहती तो आशाराम को भी बिना समन दिए गिरफ्तार कर सकती थी। सरकार को चाहिए कि आशाराम के मामले की सुनवाई भी फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो, ताकि आशाराम को इस मामले के गवाहों की लाबिंग करने का वक्त नहीं मिले। अगर सुनवाई के दौरान आशाराम पर आरोप तय होते हैं तो आशाराम को सख्त से सख्त सजा दी जाए।
विनोद बंसल
एडवोकेट, जींद

आंख बंद कर साधु-संतों पर विश्वास न करे जनता 

सरकार को चाहिए कि इस तरह के मामलों को गंभीरता से ले और आरोपियों के खिलाफ बिना देरी किए सख्त से सख्त कार्रवाई करे, ताकि इस तरह के मामलों को कम किया जा सके। लोगों को भी चाहिए कि वे इस तरह के मामलों पर गंभीरता से विचार-विमर्श करें। किसी भी साधु-संत पर आंख बंद करके विश्वास नहीं करें।
 श्यामलाल गुप्ता का फोटो। 
क्योंकि भगवा वस्त्र धारण करने वाला हर व्यक्ति साधु-संत नहीं होता। साधु-संत के वेश में कोई पाखंडी भी हो सकता है। सरकार को चाहिए कि कानून व न्याय प्रणाली में लोगों का विश्वास बनाए रखने के लिए आशाराम के मामले की निष्पक्ष व जल्द से जल्द जांच पूरी कर आगामी कार्रवाई करे। अगर आशाराम पर आरोप सिद्ध होते हैं तो सजा भी सख्त से सख्त दी जाए, ताकि दूसरा कोई व्यक्ति इस तरह का कदम उठाने की हिम्मत नहीं करे।
श्यामलाल गुप्ता, समाजसेवी

इस तरह के मामलों को गंभीरत से ले संत समाज

आरोप लगाना और आरोप तय होनों दोनों अलग बात हैं। आशाराम पर अभी आरोप लगा है, आरोप तय होना बाकी है। आरोप तय हुए बिना कुछ भी कहना ठीक नहीं है। पुलिस को चाहिए कि मामले की निष्पक्ष जांच करे, ताकि सच्चाई जनता के सामने आ सके। अगर आशाराम ने ऐसा घिनोना कार्य किया है तो इसके लिए उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए, अगर आरोप झूठा है तो शिकायतकत्र्ता के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए। आए दिन साधु-संतों पर लग रहे ऐसे आरोपों को संत समाज को गंभीरता से लेना चाहिए। अगर संत समाज ने इस तरफ कोई ठोस कदम नहीं उठाए तो आने वाली पीढिय़ां संत समाज को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगी।
 स्वामी धर्मदेव का फोटो। 
स्वामी धर्मदेव
गुरुकुल कालवा 

दाल में कुछ न कुछ काला जरुर है

यह एक गंभीर विषय है। हां लेकिन एक बात साफ है कि दाल में कुछ काला जरुर है। क्योंकि आशाराम का समाज में एक ऊंचा स्थान है और इतने ऊंचे स्थान पर बैठे व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाना आसान काम नहीं है। वैसे अभी मामले की जांच चल रही है। सच्चाई का पता तो जांच पूरी होने के बाद ही लग पाएगा। अगर आशाराम दोषी सिद्ध होते हैं तो उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। इस तरह के मामलों के लिए कहीं ना कहींअभिभावक भी दोषी हैं। अभिभावकों को भी धर्म में इतना अंधा नहीं होना चाहिए कि उसे अच्छे और बुरे की जानकारी ही नहीं रहे। धर्म की भी कुछ सीमाएं होती हैं। आंखें बंद कर धर्म के पथ पर चलना कहां की समझदारी है। भगवान को प्राप्त करने के लिए जरुरी नहीं कि सत्संग, तीर्थ या किसी गुरु के पास जाना जरुरी है। भगवान तो हर इंसान के अंदर होता है। बस जरुरत है उसे ढूंढऩे की। भगवान को प्राप्त करने के लिए कोई ढोंग करना जरुरी नहीं है।
 प्रो. वजीर सिंह का फोटो। 
प्रो. वजीर सिंह
राजकीय महिला कालेज, जींद

मकडिय़ों ने किया फसलों से हर किस्म के कीटों का सफाया

पाठशाला में किसानों ने की शाकाहारी कीटों पर चर्चा

नरेंद्र कुंडू 
जींद। इस समय धान व कपास की फसल में आने वाले मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों से किसानों को भयभीत होने की जरुरत नहीं है। क्योंकि इस समय फसलों में मकडिय़ों की संख्या काफी ज्यादा है। कपास की फसल में इस समय मकडिय़ों की औसत प्रति पौधा 4-5 दर्ज की जा रही है और मकडिय़ां हर प्रकार के कीटों को अपना भोजन बना लेती हैं। बशर्त यह की किसान द्वारा अपनी फसल में किसी प्रकार के कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया गया हो। यह बात कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने शनिवार को गांव राजपुरा भैण में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। पाठशाला के आरंभ में किसानों ने कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों का अवलोकन कर कीटों का बही खाता भी तैयार किया। पाठशाला में किसानों ने कपास की फसल में अब तक देखे गए शाकाहारी कीटों पर भी विस्तार से चर्चा की।
फसल में पाई जाने वाली मकडिय़ों का फोटो।
डा. कमल सैनी ने कहा कि मकड़ी किसी भी कीट को खाने से परहेज नहीं करती है। यह हर प्रकार के कीट को आसानी से अपना शिकार बना लेती है। इस समय धान व कपास की फसल में मकडिय़ों की संख्या काफी ज्यादा है। उन्होंने परीक्षण वाले खेत का जिक्र करते हुए कहा कि इस खेत में कपास के 4325 पौधे हैं और प्रति पौधे पर 4-5 मकडिय़ों की संख्या दर्ज की जा रही है। इस प्रकार कपास के इस खेत में 17 से 18 हजार मकडिय़ां हैं। एक मकड़ी एक समय में 10 से 12 तेलों, 18 से 20 सफेद मक्खी के बच्चों तथा 30 से 35 चूरड़ों का खात्मा कर देती है। इस प्रकार अगर एक खेत में इतनी ज्यादा संख्या में मकडिय़ां हैं तो किसानों को फसल में किसी तरह के कीटनाशक का प्रयोग करने की जरुरत नहीं है। मकडिय़ां खुद ही किसान के खेत में कीटनाशक का काम कर देती हैं। डा. सैनी ने साप्ताहिक कीट समीक्षा का जिक्र करते हुए कहा कि अगर साप्ताहिक कीट समीक्षा पर नजर डाली जाए तो अभी तक जींद ब्लाक में कहीं पर भी सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े नुक्सान पहुंचाने के आॢथक स्तर पर नहीं पहुंच पाए हैं। साप्ताहिक कीट समीक्षा के आधार पर सफेद मक्खी की औसत 1.7, हरा की तेला 0.8 और चूरड़े की संख्या 0.1 दर्ज की गई है। इस दौरान कीटाचार्य किसानों ने शाकाहारी कीटों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने अभी तक 20 किस्म के रस चूसक कीटों की पहचान की है। इन 20 कीटों में से सिर्फ सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को ही यहां के किसान मेजर कीट मानते हैं, जो फसल में कुछ नुक्सान पहुंचा सकते हैं लेकिन जिन-जिन किसानों ने अपनी फसलों में
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान।
कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया है, उन फसलों में अभी तक इन कीटों का नुक्सान सामने नहीं आया है और जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, वहां इन कीटों ने खूब हाहाकार मचाया हुआ है। इनके अलावा लाल बानिया, काला बानिया, माइट, मिलीबग व अल को यहां के किसान सूबेदार मेजर मानते हैं। लाल व काला बानिया कपास के बिनोले का रस चूसकर किसानों को नुक्सान पहुंचाता है लेकिन किसान को लाल व काले बानिये का नुक्सान कभी नजर नहीं आता है। मटकु बुगड़ा लाल व काले बानिये का पक्का ग्राहक होता है। मटकु बुगड़ा लाल व काले बानिये को अपना शिकार बनाकर फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करता है। इसी प्रकार बिटल अल तथा अंगीरा, जंगीरा और फंगीरा मिलीबग को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाते हैं।