शनिवार, 29 नवंबर 2014

बिल्ली करती हैं राजस्व विभाग के रिकार्ड की रखवाली

रिकार्ड को चूहों से बचाने के लिए कर्मचारियों ने पाली तीन बिल्लियां

रिकार्ड रूम में रखा है जींद की रियासत तक का रिकार्ड

बिल्लियों के लिए हर रोज खरीदा जाता है एक लीटर दूध

नरेंद्र कुंडू       
जींद। आज तक सुरक्षा गार्डों को तो किसी विभाग या कार्यालय की रखवाली करते देखा या सुना था लेकिन जींद जिले में एक ऐसा विभाग भी है जिसकी रखवाली बिल्लियां कर रही हैं। पुलिस अधीक्षक कार्यालय की बिल्डिंग में बने राजस्व विभाग के रिकार्ड रूम में रखे रिकार्ड की रखवाली पिछले दो वर्षों से बिल्लियां कर रही हैं। राजस्व विभाग के कर्मचारियों द्वारा रिकार्ड रूम में रखे गए रिकार्ड को चूहों, छिपकलियों से बचाने के लिए तीन बिल्लियां पाली गई हैं। कर्मचारियों द्वारा बिल्लियों के लिए हर रोज एक लीटर दूध खरीदा जाता है। विभाग के कर्मचारियों की समझदारी के चलते नामात्र के खर्च में बेश कीमती रिकार्ड की सुरक्षा की जा रही है। जिला राजस्व के रिकार्ड रूम में जींद की रियासत के समय का पूरा रिकार्ड रखा हुआ है। पिछले दो वर्षों से तीन बिल्लियां यहां ड्यूटी दे रही हैं।
रिकार्ड रूम में गोद में बिल्ली को बैठाकर काम करते कर्मचारी।
जिला राजस्व के रिकार्ड रूम में जींद की रियासत (1763 ) के समय का रिकार्ड रखा है। इस रिकार्ड रूम में जींद के रियासत बनने से लेकर आज तक का पूरा लेखा-जोखा है। उर्दू में लिखा गया रिकार्ड भी यहां रखा हुआ है। रिकार्ड रूम में कई वर्षों पुराना रिकार्ड रखा होने तथा रिकार्ड काफी ज्यादा होने के कारण चूहों तथा छिपकलियों के कारण रिकार्ड के नष्ट होने की संभावनाएं काफी ज्यादा बनी रहती हैं लेकिन रिकार्ड रूम में कार्यरत कर्मचारियों ने इस रिकार्ड को चूहों तथा छिपकलियों से बचाने के लिए एक अनूठा तरीका निकाला है। इस बेशकीमती रिकार्ड को नष्ट होने से बचाने के लिए यहां के कर्मचारियों द्वारा तीन बिल्लियां पाली गई हैं। यह बिल्लियां 24 घंटे यहां ड्यूटी देती हैं और रिकार्ड रूम में पैदा होने वाले चूहों व छिपकलियों को नियंत्रित करती हैं। पिछले दो वर्षों से यह बिल्लियां यहां ड्यूटी दे रही हैं। इसी के चलते रिकार्ड रूम में रखा रिकार्ड आज भी काफी अच्छी हालत में है।
बिल्ली को दूध पिलाता कर्मचारी।

बिल्लियों के लिए हर रोज खरीदा जाता है एक लीटर दूध

राजस्व विभाग के कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों द्वारा बिल्लियों पर होने वाला सारा खर्च अपनी जेब से किया जाता है। कर्मचारियों द्वारा बिल्लियों के लिए हर रोज एक लीटर दूध खरीदा जाता है। इस नामात्र के खर्च में राजस्व कार्यालय के कर्मचारियों द्वारा रिकार्ड रूम में रखे गए बेशकीमती रिकार्ड की सुरक्षा की जा रही है।

चूहों से करती हैं रिकार्ड की सुरक्षा

रिकार्ड रूम में रखे गए रिकार्ड को दिखाते कर्मचारी
राजस्व कार्यालय के रिकार्ड रूम में कार्यरत पटवार मोहरर सत्यवान, बस्ताबरदार सुखदेव शर्मा तथा जसबीर ने बताया कि पिछले दो वर्षों से वह इन बिल्लियों की देखरेख कर रहे हैं। बिल्लियां पूरी तरह से उनके साथ घुल मिल गई हैं और उनके सभी इशारों को अच्छी तरह से समझती हैं। उन्होंने बताया कि यह बिल्लियां एक सजग परहरी की तरह रिकार्ड की देखरेख करती हैं। इन बिल्लियों के कारण रिकार्ड रूम का पूरा रिकार्ड सही सलामत है। हालांकि चूहे पकडऩे के लिए तीन पिंजरे भी रखे गए हैं लेकिन बिल्लियों को यहां रखने के बाद पिंजरों की कोई जरूरत नहीं पड़ी है। उन्होंने बताया कि इस रिकार्ड रूम में जींद रियासत के समय का रिकार्ड रखा हुआ है।







बुधवार, 26 नवंबर 2014

श्री श्री रविशंकर का खाप पंचायतों से आह्वान आदर्श गांव बनाने के लिए करें प्रयास

कहा, ऑनर किलिंग से नहीं खापों का कोई सरोकार
खाप के सहयोग से ग्रामीण क्षेत्र में शुरू किए जाएंगे कौशल विकास केंद्र
जींद में हुआ खापों और अध्यात्म का ऐतिहासिक मिलन

नरेंद्र कुंडू
जींद। ऑर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक एवं अध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर ने कहा कि ऑनर किलिंग तथा तुगलकी फरमान के लिए देश में खापों की जो छवि खराब हुई है उसे सुधारने के लिए खाप पंचायतें सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर अपना योगदान दें। खाप पंचायतें आदर्श गांव बनाने के लिए प्रयास कर इसकी पहल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि ऑनर किलिंग तथा तुगलकी फरमानों से खापों का कोई सरोकार नहीं है। श्री श्री रविशंकर मंगलवार को जींद के एक निजी होटल में आयोजित समारोह में खापों के प्रतिनिधियों से रूबरू हो रहे थे। सम्मेलन की अध्यक्षता कंडेला खाप के प्रधान टेकराम कंडेला ने की। सम्मेलन में सर्वजातीय सर्व खाप के संयोजक कुलदीप ढांडा, डीपी वत्स, ओमप्रकाश धनखड़, संतोष दहिया, इंद्र सिंह ढुल, धर्मपाल मलिक, अजय कुमार, सुदेश चौधरी, ओपी मान, राजेंद्र चहल, सुनील गुलाटी आईएएस, रामरत्न कटारिया गुर्जर खाप, मेहर सिंह दहिया सहित प्रदेशभर की भिन्न-भिन्न खापों के प्रतिनिधि मौजूद रहे और सभी ने बारी-बारी अपने विचार रखे।
अध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर ने कहा कि खापों के बारे में उन्हें टीवी पर बहुत कुछ देखा तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि इस देश में तालिबानी जैसी कोई संस्था है। इसलिए खापों से मिलने की उनकी इच्छा थी। यहां पर खापों से मिलने के बाद उन्हें यह ऐहसास हुआ है कि खापों में तालिबानी जैसी कोई संभावना नहीं है, बल्कि खापें तो सामाजिक कार्यों से समाज को जोडऩे का काम करती हैं। श्री श्री रविशंकर ने कहा कि देश में खापों की जो छवि खराब की गई है उसे सुधारने के लिए खापों को सामाजिक कार्यों को अधिक से अधिक बढ़ावा देना चाहिए। खाप पंचायतें आदर्श गांव बनाकर इस काम को आगे बढ़ा सकती हैं। उन्होंने कहा कि वह भी खापों के साथ
सम्मेलन में खाप प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते श्री श्री रविशंकर 
मिलकर सामाजिक कार्यों को बढ़ावा देना चाहते हैं। वह खापों के साथ मिलकर कौशल विकास केंद्र स्थापित करेंगे, ताकि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को भी जीवन जीने की कला सीखाई जा सके। इससे ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। उन्होंने कहा कि आज संस्कारों के अभाव में युवा पीढ़ी भारतीय मूल्यो से बिछुड़ रही है। देश में धर्मांतरण के मामले बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश की युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति का ज्ञान जरूरी है। योग व आयुर्वैद भारतीय संस्कृति का ही हिस्सा हैं। योग व आयुर्वैद को गांव तक पहुंचाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि फसलों में रासायनिकों के बढ़ते प्रयोग के कारण खान-पान व वातावरण दूषित हो रहा है और जमीन में पोषक तत्व की कमी होने के कारण जमीन बंजर हो रही है। अगर देश को फिर से सोने की चिडिय़ा बनाना है तो सामाजिक कुरीतियों को खत्म करना होगा। दिशाहीन हो रहे युवाओं को दिशा देने के साथ-साथ जैविक खेती को बढ़ावा देने होगा। श्री श्री रविशंकर ने तनाव मुक्त रहने तथा हमेशा हंसते रहने का संदेश दिया। सम्मेलन के समापन पर खाप प्रतिनिधियों द्वारा सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया गया और सम्मेलन में मौजूद लोगों ने हाथ उठाकर प्रस्ताव का समर्थन किया। सम्मेलन में खाप प्रतिनिधियों ने हिंदू विवाह अधिनियिम 1955 में बदलाव करने की मांग की।  



अनाज मंडियों में नहीं हो रही कृषि मंत्री के आदेशों की पालना

निर्धारित शैड्यूल के अनुसार नहीं होती धान की बोली
कृषि मंत्री के आदेश के बाद भी महज तीन घंटे ही हो पाई बोली
कृषि मंत्री ने हाल ही में मंडी प्रशासन को दिए थे शैड्यूल के अनुसार बोली करवाने के निर्देश

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जिले की अनाज मंडियों में धान की फसल की बिक्री के लिए आने वाले किसानों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। मार्केट कमेटी प्रशासन पर कृषि मंत्री के आदेशों का भी कोई प्रभाव नहीं है। मार्केट कमेटी प्रशासन के लिए कृषि मंत्री के आदेश बेमानी साबित हो रहे हैं। कृषि मंत्री द्वारा गत 20 नवंबर को मार्केट कमेटी के अधिकारियों को आदेश दिए जाने के बाद भी आदेशों पर अमल नहीं हो रहा है। जिले की अनाज मंडियों में धान की फसल की बोली के लिए कोई शैड्यूल तैयार नहीं किया गया है। अनाज मंडियों में महज दो-तीन घंटे ही मुश्किल से बोली हो पाती है। जबकि कृषि मंत्री द्वारा सुबह 9 से पांच बजे तक शैड्यूल के अनुसार बोली करवाने के आदेश दिए गए हैं। कृषि मंत्री के आदेश जारी करने के दूसरे दिन ही मंत्री के यह आदेश जींद की अनाज मंडी में हवा होते दिखाई दिए। शनिवार को जींद की अनाज मंडी में महज तीन घंटे ही धान की फसल की बोली हो पाई। इस तीन घंटे में महज चार दुकानों तक ही यह बोली पहुंच पाई। इसके अलावा ज्यादातर दुकानों पर खरीदारों द्वारा बिना बोली के ही धान की फसल की खरीद की गई। इससे जहां सरकार व मार्केट कमेटी को फीस का चूना लग रहा है, वहीं किसानों को भी उनकी फसल के उचित भाव नहीं मिल पा रहे हैं।

10 दिन बाद हुई फसल की बोली

किसान सूरजमल  

अनाज मंडी में 11 नवंबर को बासमती धान लेकर आया था। खरीदारों द्वारा बिना बोली किए ही 2300 रुपये का रेट लगाया गया था लेकिन मैने मना कर दिया। इसके बाद खरीदार 2700 रुपये के रेट दे रहा था लेकिन मैं बोली की जिद्द पर अड़ा रहा। 11 नवंबर के बाद आज मेरी फसल की बोली हो पाई है। बोली पर मेरी फसल 2899 के भाव बिकी है। 10 दिन बाद जा कर फसल बिक पाई है। खरीदार बोली करने की बजाए उचंती पर खरीद को ज्यादा महत्व दे रहे हैं।
किसान सूरजमल, गांव शाहपुर निवासी

थोड़ी देर ही चल पाई बोली

किसान ओमप्रकाश  

अनाज मंडी में महज दो या तीन घंटे ही बोली चलती है। इस दौरान सिर्फ तीन-चार ही दुकानों पर ही बोली पहुंचती है। इसके बाद बोली बंद कर दी जाती है। पूरा दिन बोली नहीं हो पाने के कारण सभी दुकानों पर बोली नहीं पहुंच पाती है। इस कारण किसान को मजबूरी वस उचंती पर ही अपनी फसल बेचनी पड़ती है।
किसान ओमप्रकाश, गांव मिर्जपूर निवासी

फसल का नहीं मिल पाया उचित रेट

किसान धूप सिंह   

धान की 1121 किस्म की फसल को बेचने के लिए मंडी में लेकर आया था लेकिन काफी देर इंतजार करने के बाद भी बोली नहीं हो पाई। बाद में बिना बोली के ही 2980 रुपये के रेट में अपनी फसल बेचनी पड़ी। बोली नहीं होने के कारण फसल का उचित भाव नहीं मिल पाया।
किसान धूप सिंह, गांव खांडा निवासी

उचंती पर बेचनी पड़ी फसल

अनाज मंडी में सही तरह से धान की फसल की बोली नहीं हो पाती है।
किसान चुडिय़ा राम  
इसके चलते ज्यादातर किसान उचंती पर ही अपनी फसल बेचने को मजबूर हैं। मैं भी सुबह से अपनी फसल लेकर मंडी में बैठा हुआ हूं लेकिन दोपहर बाद भी बोली शुरू नहीं हो पाई है। सुबह महज दो-तीन घंटे ही धान की बोली हुई थी। इसके बाद दोबारा बोली शुरू नहीं हो पाई है। इसके चलते बिना बोली के उचंती पर ही अपनी फसल बेचनी पड़ी।
किसान चुडिय़ा राम, गांव कंडेला निवासी

महज तीन घंटे ही चल पाई बोली

मंडी में सुबह 11 बजे के लगभग बोली शुरू हुई थी। एक बजे लंच का बहाना बनाकर बोली बंद कर दी। इस
 किसान बलराज  
 दौरान महज तीन-चार दुकानों पर ही बोली हो पाई। अब तीन बज चुके हैं लेकिन बोली दोबारा शुरू नहीं हो पाई है। इसके चलते उचंती पर ही अपनी फसल बेचनी पड़ेगी। इससे पहले भी मैने बिना बोली के ही अपनी फसल बेचनी पड़ी थी।
किसान बलराज, गांव शाहपुर निवासी

सुबह से बोली के इंतजार में बैठा हुआ हूं

किसान सुरेश का फोटो। 

नियमों के अनुसार बोली नहीं होने के कारण सभी दुकानों पर बोली नहीं पहुंच पाती है। इसके चलते ज्यादातर किसानों को उचंती पर ही अपनी फसल बेचनी पड़ती है। सुबह से मैं भी बोली के इंतजार में बैठा हुआ हूं लेकिन बोली नहीं आई है। उचंती पर फसल को खरीदने के लिए खरीदार चक्कर काट रहे हैं। बोली नहीं आने के कारण उचंती पर ही फसल बेचनी पड़ेगी।
किसान सुरेश, गांव श्रीरागखेड़ा निवासी

तीन घंटे में चार दुकानों पर ही पहुंच पाई बोली

शनिवार को जींद की नई अनाज मंडी में 105 नंबर दुकान से सुबह 11 बजे बोली शुरू हुई। इस दौरान बोली 104, 102 व 98 नंबर तक ही हो पाई। इन तीन घंटों में अनाज मंडी की 250 दुकानों में से महज चार दुकानों तक ही बोली पहुंच पाई।

अनाज मंडी में रेस्ट हाउस की तरफ भी नहीं किसानों का रूझान

शहर की अनाज मंडी में किसानों के ठहरने के लिए बनाए गए रेस्ट हाउस की तरफ भी किसानों का रूझान नहीं हो रहा है। इसका कारण यह है कि ज्यादातर किसानों को तो मंडी में बने इस रेस्ट हाउस के बारे में जानकारी ही नहीं। अकसर इस रेस्ट हाउस पर ताला ही लटका रहता है। वहीं मंडियों में साफ-साफाई रखने के लिए भी कृषि मंत्री द्वारा विशेष निर्देश जारी किए गए हैं लेकिन इसके बावजूद भी अनाज मंडी में साफ-सफाई की कोई खास व्यवस्था नहीं है। सड़कों पर जगह-जगह गंदगी पड़ी रहती है।

कृषि मंत्री ने यह दिए हैं आदेश

कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने गत 19 नवंबर को मार्केट कमेटी के उच्च अधिकारियों के साथ हुई मीटिंग के बाद 20 नवंबर को जारी लेटर नंबर 568-573 में आदेश दिए हैं कि प्रदेश की सभी अनाज मंडियों के बाथरूम व टायलेटों की साफ-सफाई की तरफ विशेष ध्यान दिया जाए। अनाज मंडियों में किसानों के रूकने के लिए बनाए गए रेस्ट हाउस का अच्छी तरह से रख-रखाव किया जाए। फसल लेकर मंडी में आने वाले किसानों को मंडी में किसी तरह की परेशानी नहीं होनी चाहिए। अनाज मंडियों के गेट पर ही मंडी में आने वाली फसल की रिकोर्डिंग की जाए ताकि मार्केट फीस में किसी प्रकार की गड़बड़ नहीं हो पाए। फसल की बोली को लेकर किसानों को कोई परेशानी नहीं हो, इसके लिए शैड्यूटल के अनुसार सुबह नौ से शाम पांच बजे तक बोली करवाई जाए।

शैड्यूल में नहीं 9 से पांच का टाइम

मार्केट कमेटी के शैड्यूल में नौ से पांच बजे का कोई टाइम टेबल नहीं है। शैड्यूल के अनुसार का मतलब दिन में दो बार बोली से है और हम दिन में दो बार बोली करवाते हैं। सुबह 11 से एक बजे तक तथा एक घंटे के लंच के बाद दोपहर दो से सायं पांच बजे तक बोली करवाई जाती है।
मनोज दहिया, सचिव
मार्केट कमेटी, जींद
कृषि मंत्री द्वारा मार्केट कमेटी सचिवों को भेजा गया आदेश पत्र। 


अनाज मंडी में धान की फसल की सफाई करते मजूदर। 










शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए महिला किसानों ने लिया अच्छा उत्पादन

नरेंद्र कुंडू 
जींद। निडाना गांव में शनिवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों ने कीटों का अवलोकन करने के साथ-साथ पैदावार का आंकड़ा भी तैयार किया। कीटों के अवलोकन के दौरान देखने को मिला की इस समय फसल में बिनोलों का रस चूसने वाले कीट लाल व काला बानिया काफी संख्या में फसल में मौजूद हैं। वहीं फसल के उत्पादन के आंकड़ों से यह भी स्पष्ट हो गया कि जिन किसानों ने फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया उनकी पैदावार अन्य किसानों से काफी अच्छी रही।
लोपा मक्खी ग्रुप की कीटाचार्या मुकेश रधाना, कृष्णा निडाना, राजबाला निडाना, प्रमीला रधाना तथा गीता निडाना ने बताया कि कपास की फसल में इस बार पूरे प्रदेश में सफेद मक्खी ने तबाही मचाकर रख दी। सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण इस बार सैंकड़ों एकड़ कपास की फसल खराब हो गई लेकिन जिन-जिन किसानों ने सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया, वहां-वहां सफेद मक्खी नुकसान पहुंचाने के स्तर तक नहीं पहुंच पाई। उन्होंने बताया कि इस बार उनकी फसल में सफेद मक्खी की औसत 3.4 प्रति पत्ता रही है। जबकि चूरड़ा व हरा तेला बिल्कुल नहीं के बराबर हैं। महिला किसानों ने बताया कि इस बार उनकी फसल में शाकाहारी कीट मस्करा बग, भूरिया बग, सलेटी भूंड, मिरड बग, झोटिया बग तथा टिड्डे मौजूद हैं। फूल खाने वालों में पुष्पक बीटल देखी गई है। फसल को नुकसान पहुंचाने वाले सूबेदार मेजर कीट लाल व काला बानिया, माइट, मिलीबग व चेपा इस समय भी फसल में मौजूद हैं। यह कीट पत्तों से रस चूसकर अपना जीवन यापन करते हैं। वहीं इन कीटों को नियंत्रित करने वाले मांसाहारी कीट अंगीरा, चपरो बीटल, हथजोड़ा, मकड़ी, क्राइसोपे के अंडे, सुनहरी, फौजन, इनो, दीदड़, कालो बीटल, कटीया, लोपा मक्खी, लपरो, सिरफड़ो मक्खी के बच्चे, भीरड़, डाकू बुगड़े भी मौजूद हैं। महिला किसानों ने बताया कि फसल में शाकाहारी तथा मांसाहारी कीट काफी संख्या में मौजूद हैं और इसके बावजूद भी उनकी फसल अभी तक कीटों व बीमारी से होने वाले नुकसान से पूरी तरह से सुरक्षित है।
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

महिला किसानों ने फसल के उत्पादन पर की चर्चा 

निडाना निवासी कमलेश ने बताया कि उसकी आधा एकड़ में अभी तक 10 मण कपास की चुगाई हो चुकी है जबकि अभी ओर चुगाई होनी बाकी है। उसके आधा एकड़ में इस बार लगभग 14 मण कपास के उत्पादन की उम्मीद है। कृष्णा निडाना ने बताया कि उसकी एक एकड़ में 22 से 25 मण तक कपास का उत्पादन होने की उम्मीद है। उसने फसल में पूरे सीजन में कीटनाशक का प्रयोग करने की बजाए जिंक, डीएपी व यूरिया खाद के घोल के तीन छिड़काव ही किए हैं। अनिता ललितखेड़ा ने बताया कि इस बार उसके खेत में कपास की फसल पौधों के मामले में बिल्कुल कमजोर थी लेकिन फिर भी उसे एक एकड़ में 18 मण की पैदावार मिली है। रधाना निवासी विजय ने बताया कि उसने खाद के घोल का एक छिड़काव किया था लेकिन इसके बावजूद भी उसे आधा एकड़ में 19 मण कपास का उत्पादन मिला है। निडाना निवासी बिमला ने बताया कि इस बार उसने अपने एक एकड़ में देशी कपास की बिजाई थी और खाद के घोल के दो छिड़काव किए थे। उसे एकड़ में देशी कपास का 20 मण का उत्पादन मिला है। निडाना के पूर्व सरपंच रतन सिंह ने बताया कि वह भी कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़ा हआ है और उसने बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किए अढ़ाई एकड़ में 60 मण कपास का उत्पादन लिया है। जबकि कीटनाशक का प्रयोग करने वाले किसानों का उत्पादन काफी कम हुआ है।


कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

कपास की फसल में मौजूद रस चूसक लाल बानिया नामक कीट।

कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी कीट हथजोड़ा।




रविवार, 5 अक्तूबर 2014

एक दिन पूरे देश में फैलेगी जींद के किसानों की कीट ज्ञान की मुहिम : खटकड़

नरेंद्र कुंडू 
जींद । निडाना गांव में शनिवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। महिला पाठशाला में समाजसेवी रघुबीर खटकड़ ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। पाठशाला में पहुंचने पर महिला किसानों ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट कर उनका स्वागत किया तथा कीट ज्ञान की मुहिम से मुख्यातिथि को बारिकी से जानकारी दी।
रघुबीर खटकड़ ने महिला किसानों की मुहिम की तारीफ करते हुए कहा कि देश से अंग्रेज तो चले गए लेकिन उनकी विचारधारा आज भी देश में है। देश में किसानों के हित के लिए जो योजनाएं बनाई जाती हैं उनमें किसान के हित को ध्यान में रखने की बजाए निजी कंपनियों के हितों को ध्यान में रखा जाता है। इसके चलते किसानों उन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। खटकड़ ने कहा कि देश में जब भी कोई व्यक्ति लीक से
फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
हटकर किसी काम को करता है तो उसके सामने कठिनाइयां आती हैं लेकिन कठिन परिस्थितियों में भी जो अपना हौंसला बुलंद रखता है वह एक दिन जरूर सफल होता है। इसी प्रकार जींद जिले के किसानों ने भी लीक से हटकर कीट ज्ञान की मुहिम शुरू की है। बहुत जल्द उनकी यह मुहिम भी दूर तक फैलेगी। भिरड़-ततैया ग्रुप की मास्टर ट्रेनर सुषमा, संतोष, सुमन, कमल तथा जसबीर कौर ने बताया कि दो सप्ताह पहले फसल में सफेद मक्खी की संख्या बढ़ गई थी लेकिन फसल में मौजूद मांसाहारी कीटों ने बढ़ रही सफेद मक्खी की संख्या को नियंत्रित कर लिया है। इस बार फसल में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 4.4, हरे तेले की संख्या 0.05 तथा चूरड़े की संख्या शून्य है। उन्होंने बताया कि यहां के किसानों द्वारा फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किए जाने के कारण ही सफेद मक्खी ईटीएल लेवल को पार नहीं कर पाई लेकिन पूरे प्रदेश में जहां-जहां पर कीटनाशकों का प्रयोग किया गया, वहां-वहां सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण फसल बुरी तरह से तबाह हो गई।
चार्ट पर गेहूं पर आने वाले खर्च का आंकड़ा तैयार करती महिला किसान।

एक किलो गेहूं के उत्पादन पर आता है 15.27 रुपये का खर्च



 मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करती महिला किसान।
महिला किसानों ने गेहूं के उत्पादन पर आने वाले खर्च का आकलन करते हुए बताया कि यदि खेती के कार्य को बिजनेश की नजर से देखा जाए और खेती में जमीन व किसान की मजदूरी सहित प्रत्येक खर्च को जोड़ा जाए तो खेती किसान के लिए घाटे का सौदा है। क्योंकि एक किलो गेहूं के उत्पादन पर किसान का 15.27 रुपये खर्च होता है लेकिन किसान को सरकार से गेहूं का भाव 14.25 रुपये मिलता है। इस प्रकार प्रति किलो चावल पर किसान को 1.2 रुपये का नुकसान हो रहा है लेकिन किसान खेती को बिजनेश के नजरिये से नहीं देखता और वह खेती में अपनी मजदूरी के पैसे नहीं जोड़ता इसलिए उसका कामकाज ठीकठाक चलता रहता है।






मंगलवार, 23 सितंबर 2014

कीटों पर शोध करेगी यूनिवर्सिटी : वीसी

शाकाहारी कीटों के लिए कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं मांसाहारी कीट

नरेंद्र कुंडू 
जींद। निडाना गांव में शनिवार को  महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। इस पाठशाला में चौ. रणबीर सिंह विश्वविद्यालय के उप कुलपति मेजर जनरल डॉ. रणजीत सिंह ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। इस अवसर पर पाठशाला में राममेहर नंबरदार भी विशेष रूप से मौजूद रहे। राममेहर नंबरदार ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट कर उनका स्वागत किया। पाठशाला के आरंभ में महिलाओं ने कीटों का अवलोकन किया और फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के आंकड़े एकत्रित किए।
उप कुलपति मेजर जनरल डॉ. रणजीत सिंह ने महिला किसानों के कार्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि यहां की महिलाओं ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए एक अनोखी मुहिम की शुरूआत की है। उनकी इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए वह विश्वविद्यालय की तरफ से भी इस पर शोध करवाएंगे। इसके साथ-साथ मुख्यातिथि ने महिलाओं से बच्चों में नैतिक मूल्यों का बीजारोपण कर बच्चों को संस्कारवान बनाने का आह्वान किया। क्राइसोपा ग्रुप की मास्टर ट्रेनर मनीषा ललितखेड़ा, केला निडाना, सुमित्रा ललितखेड़ा, रामरती रधाना तथा प्रमिला रधाना ने मुख्यातिथि को कीटों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कीट दो प्रकार के होते हैं
फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान। 
मांसाहारी तथा शाकाहारी। इसलिए कीटों को नियंत्रित करने की जरूरत नहीं है। इन्हें नियंत्रित करने के लिए फसल में काफी संख्या में मांसाहारी कीट मौजूद होते हैं। पौधे जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर कीटों को आकर्षित करते हैं लेकिन जब किसान फसल में कीटनाशक का प्रयोग कर देता है तो इससे उनकी सुगंध छोडऩे की क्षमता गड़बड़ा जाती है और इससे पौधों और कीटों का आपसी तालमेल बिगड़ जाता है।

मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के लिए करेंगे कुदरती कीटनाशी का काम

कीटाचार्य महिला किसानों ने बताया कि इस बार कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत ज्यादा है। जहां-जहां सफेद मक्खी को काबू करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, वहां-वहां इसके भयंकर परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस बार उनकी फसल में सफेद मक्खी की संख्या ईटीएल लेवल के पार पहुंच गई है लेकिन अभी तक उनकी फसल सफेद मक्खी से पूरी तरह से सुरक्षित है। क्योंकि इस समय उनकी फसल में सफेद मक्खी के बच्चे न के बराबर हैं और प्रौढ़ों की संख्या काफी ज्यादा है। फसल को प्रौढ़ की बजाय बच्चों से ज्यादा नुकसान होता है। उन्होंने बताया कि सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए इस समय उनकी फसल में दीदड़ बुगड़े, बिंदुआ बुगड़ा,
माइक्रोसोप पर कीटों की पहचान करती महिला किसान। 
कातिल बुगड़ा, मटकू बुगड़ा, भिन्न-भिन्न किस्म की बीटल, सिरफड़ मक्खी, लोपा मक्खी, डायन मक्खी, लंबड़ो मक्खी, टिकड़ो मक्खी, श्यामो मक्खी तथा परपेटिये अंगीरा व इनो मौजूद हैं। यह मांसाहारी कीट खुद ही सफेद मक्खी को नियंत्रित कर लेते हैं। इसके अलावा उन्होंने सींगू बुगड़े के अंडे से बच्चे निकलते, हथजोड़े द्वारा लाल बानिये का शिकार करते हुए तथा मकड़ी द्वारा टिड्डे व मक्खी का शिकार करते हुए भी दिखे।



मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करते राममेहर नंबरदार। 




जींद जिले की राह पर बरवाला के किसान

कीटनाशकों से निजात पाने के लिए अपनाई कीट ज्ञान की पद्धति
हर बृहस्पतिवार को किया जाता है किसान खेत पाठशाला का आयोजन
बरवाला के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ा रहे हैं जींद के किसान 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। बरवाला के किसान भी अब जींद जिले के किसानों की राह पर चल पड़े हैं। जींद जिले से लगभग 6 वर्ष पहले शुरू हुई कीट ज्ञान की पद्धति को बरवाला के किसानों ने अपना लिया है। कीट ज्ञान हासिल करने के लिए बरवाला के किसानों द्वारा जींद के किसानों की तर्ज पर किसान खेत पाठशाला की शुरूआत की गई है। हर बृहस्पतिवार को बरवाला के जेवरा गांव के खेतों में यहां के किसानों द्वारा किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया जाता है। इस पाठशाला में बरवाला के किसानों को कीट ज्ञान देने के लिए जींद से कुछ मास्टर ट्रेनर किसान जाते हैं। जेवरा में लगने वाली इस पाठशाला में बरवाला के कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ-साथ उद्यान विभाग के अधिकारी भी भाग लेंगे।
फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को देखते हुए वर्ष 2008 में जींद जिले के किसानों ने डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला की शुरूआत कर कीटों पर शोध का काम शुरू किया था। इस पाठशाला में कीटों पर चले शोध में यह बात निकलकर सामने आई थी कि कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों की जरूरत नहीं है। कीटों को नियंत्रित करने के लिए तो फसल में काफी संख्या में मांसाहारी कीट मौजूद होते हैं, जो शाकाहारी कीटों को खाकर उन्हें नियंत्रित कर फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। इस शोध के दौरान डॉ. दलाल ने इस बात को साबित कर दिया था कि कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों की संख्या कम नहीं होती बल्कि बढ़ती है। इसके बाद से ही यहां के किसानों ने कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल बंद कर दिया था।

इस बार से बंद कर दिया कीटनाशकों का प्रयोग

फसलों को कीटों से बचाने के लिए हर वर्ष कीटनाशकों पर काफी रुपये खर्च होते हैं लेकिन उसके बाद भी कीट नियंत्रित होने की बजाए उनकी संख्या ओर बढ़ जाती है। इस बार उसके खेत में किसान खेत पाठशाला की शुरूआत हुई है, जिस खेत में पाठशाला चल रही है उस खेत में अभी तक एक भी छंटाक कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। अभी तक उसकी फसल कीटों और बीमारी दोनों से सुरक्षित है लेकिन आस-पास के क्षेत्र में जिन-जिन फसलों में कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग हुआ है, उन-उन खेतों में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी बढ़ा है और हालात ऐसे हो गए हैं कि फसल नष्ट होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। जींद से आने वाले मास्टर ट्रेनर किसान खेत पाठशाला में मौजूद अन्य किसानों को कीटों की पहचान करना तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं। इसके चलते अन्य वर्षों की भांति इस वर्ष कीटनाशकों के प्रति किसानों की सोच भी बदल रही है।
दलजीत, किसान
गांव जेबरा, बरवाला

जींद के मास्टर ट्रेनर किसान देतें हैं प्रशिक्षण 

जींद जिले में चल रही कीट ज्ञान की मुहिम को दूसरे जिलों में फैलाने के लिए बरवाला में भी इस बार किसान खेत पाठशाला की शुरूआत की है। यहां के किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए हर सप्ताह जींद के मास्टर ट्रेनर किसान यहां आते हैं। कीट ज्ञान की पद्धति के बारे में जानकारी लेने के लिए यहां के किसान काफी उत्सुक हैं। इससे किसानों को काफी फायदा पहुंच रहा है।
डॉ. बलजीत भ्याण
जिला उद्यान अधिकारी, हिसार
 बरवाला के जेवरा गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में कीटों के बारे में जानकारी लेते किसान। 



तीन एमएम के कीट ने निकाला कीट वैज्ञानिकों व किसानों का पसीना

सफेद मक्खी के प्रकोप से हिसार, भिवानी व जींद में हजारों एकड़ फसल तबाह
चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कीट वैज्ञानिक भी नहीं ढूंढ़ पा रहे सफेद मक्खी का तोड़

नरेंद्र कुंडू 
जींद। महज तीन मिलीमीटर के कीट सफेद मक्खी ने बड़े-बड़े कीट वैज्ञानिकों व किसानों के पसीने निकाल कर रख दिये हैं। चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कीट वैज्ञानिक भी इस कीट का तोड़ नहीं ढूंढ़ पाए हैं। हिसार कृषि विश्वविद्यालय के कीट वैज्ञानिकों के लिए सफेद मक्खी नामक यह कीट चुनौती बनी हुई है। क्योंकि किसान इस कीट को नियंत्रित करने के लिए जितना भी कीटनाशकों का प्रयोग फसल में कर रहे हैं, सफेद मक्खी का प्रकोप उतना ही ज्यादा बढ़ रहा है। हिसार कृषि विश्वविद्यालय की ठीक नाक के नीचे हिसार, भिवानी व जींद में हजारों एकड़ कपास की फसल सफेद मक्खी के प्रकोप से तबाह हो चुकी हैं। जहां-जहां इस कीट को नियंत्रित करने के लिए किसानों ने कीटनाशकों का प्रयोग किया है, वहां-वहां पर इसके उल्टे परिणाम सामने आ रहे हैं। हिसार, भिवानी व जींद के किसानों के सामने ऐसे हालात पैदा हो चुके हैं कि किसान फसलों की हालत को देखकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं लेकिन हिसार कृषि विश्वविद्यालय के कीट वैज्ञानिकों को शायद तीन मिलीमीटर के इस सफेद कीट के काले कारनामे नजर नहीं आ रहे हैं।
सफेद मक्खी के प्रकोप के बाद खराब हो चुकी कपास की फसल।

2001 में अमेरिकन सूंडी और 2005 में मिलीबग ने मचाई थी तबाही

जब-जब भी कीटनाशकों की सहायता से कीटों को नियंत्रित करने के प्रयास किये गए हैं, तब-तब यह कीट बेकाबू हुए हैं। वर्ष 2001 में अमेरिकन सूंडी तथा 2005 में मिलीबग द्वारा मचाई गई तबाही इसका प्रमाण हैं। 2001 में अमेरिकन सूंडी को काबू करने के लिए किसानों ने कपास की फसलों में 30 से 40 स्प्रे किए थे लेकिन उसके बाद भी यह कीट काबू नहीं हुआ और परिणाम शून्य रहे। इस तीन सेंटीमीटर के कीट ने पूरी की पूरी फसलों को तबाह कर दिया था। यही हालात 2005 में किसानों के सामने पैदा हुए थे। 2005 में मिलीबग को नियंत्रित करने के लिए फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया गया था लेकिन महज चार सेंटीमीटर के इस कीट ने उस दौरान कीट वैज्ञानिकों की खूब फजिहत करवाई थी। मिलीबग से प्रकोपित फसलों को किसानों ट्रैक्टर की सहायता से खेत में जोत दिए थे।

नहीं नियंत्रित हो रही सफेद मक्खी

कपास को सफेद मक्खी से बचाने के लिए चार बार कीटनाशक का प्रयोग कर चुका हूं लेकिन सफेद मक्खी का प्रकोप कम होने की बजाये लगातार बढ़ रहा है। पूरी फसल सूख कर काली हो चुकी है। कपास की फसल में बिजाई से लेकर अभी तक खाद तथा पेस्टीसाइड पर लगभग 19000 रुपये खर्च कर हो चुके हैं। अगर फसल की हालात को देखा जाए तो कपास की फसल से महज ८ हजार रुपये की आमदनी की उम्मीद है। यही हालात पिछले वर्ष भी हुए थे। इस प्रकार खेती किसान के लिए लगातार घाटे का सौदा बन रही है। क्योकि खर्च लगातार बढ़ रहा है और उत्पादन कम हो रहा है। कृषि वैज्ञानिकों पूछने पर भी कोई संतुष्ट जवाब नहीं मिल रहा है।
जगविंद्र सिंह, किसान
बरवाला, हिसार 

सफेद मक्खी से परेशान हैं पूरे क्षेत्र के किसान

पिछले वर्ष की तरह इस बार भी कपास में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी ज्यादा है। पूरे क्षेत्र में सफेद मक्खी का प्रकोप है। मेरे पास ६ एकड़ में कपास की फसल है लेकिन 6 की 6 एकड़ की फसल खत्म होने की कगार पर है। सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए चार बार हिसार की मान्यता प्राप्त दुकान से कीटनाशक खरीदकर स्प्रे कर चुका हूं लेकिन सभी स्प्रे बेअसर साबित हो रहे हैं। अगर फसल के हालात को देखा जाए तो इस समय चार क्विंटल कपास भी मुश्किल से मिल पाएगी।  
विवेकानंद, किसान 
बरवाला, हिसार 

सूख रही हैं फसलें

सफेद मक्खी के कारण कपास की फसलें तबाह हो रही हैं। फसलों को तबाह होते देख किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो चुका है। कृषि अधिकारी भी इसका समाधान नहीं बता पा रहे हैं। सफेद मक्खी के प्रकोप से कपास के पत्ते काले पडऩे लगते हैं और उसके बाद फसल सूखने लगती है।
जोरा सिंह, किसान
जींद

कीटनाशकों के प्रयोग से बढ़ रहा है सफ़ेद मक्खी का प्रकोप 

सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए हर वर्ष कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ रहा है लेकिन इसके साथ जितनी छेडख़ानी की जाती है यह उतनी ही तेजी से बढ़ रही है। इससे पहले 2001 में अमेरिकन सूंडी तथा 2005 में मिलीबग ने भी इसी तरह तबाही मचाई थी। अब उनका स्थान सफेद मक्खी ने ले लिया है। पिछले तीन वर्षों से लगातार यही परिणाम सामने आ रहे हैं लेकिन जहां-जहां सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया गया, वहां इसका कोई दुष्प्रभाव नजर नहीं आया है। इसलिए किसानों को चाहिये कि वह सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाए पौधों पर जिंक, डीएपी व यूरिया के घोल का छिड़काव कर पौधों को ताकत देने का काम करें।
डॉ. महावीर शर्मा
कृषि सलाहकार 

मांसाहारी कीट खुद ही कर लेते हैं नियंत्रित 

सफेद मक्खी के प्रौढ़ का जीवन काल 20 से 25 दिन का होता है और यह अपने जीवनकाल में 100 से 125 अंडे देती है। यह पौधे से रस चूसती है। सफेद मक्खी के पेशाब में शुगर होता है। जिस भी पत्ते पर सफेद मक्खी का पेशाब पड़ता है उस पत्ते पर फफूंद लग जाती है और वह पत्ता काला हो जाता है और भोजन बनाना बंद कर देता है। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक की जरूरत नहीं है। इनो, इरो, बीटल नामक मांसाहारी कीट सफेद मक्खी के सबसे बड़े दुश्मन हैं। यह खुद ही इसे नियंत्रित कर लेते हैं। जिस-जिस खेत में कीटनाशक का प्रयोग नहीं हुआ है, वह खेत में सफेद मक्खी का प्रकोप नहीं है लेकिन जहां-जहां कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, वहां-वहां इसका प्रकोप ज्यादा बढ़ रहा है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट इसे खुद ही नियंत्रित कर लेते हैं। किसानों को कीटों को मारने की नहीं, कीटों की पहचान करने की जरूरत है।

रणबीर मलिक, कीटाचार्य किसान
जींद।  

सफेद मक्खी के कारण खराब हो रही फसल को दिखाता बरवाला का एक किसान।



रविवार, 14 सितंबर 2014

अपने अनुभव से अन्य किसानों को भी जागरूक करें महिला किसान

कीटनाशकों के प्रयोग के बाद भी फसल में बढ़ रही है सफेद मक्खी की संख्या

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जिला बाल कल्याण अधिकारी अनिल मलिक ने कहा कि महिला किसानों ने थाली को जहरमुक्त बनाने का जो बीड़ा उठाया है, वह वास्तव में काबिले तारीफ है। कीट ज्ञान की इस मुहिम में यहां के पुरुष किसानों द्वारा महिलाओं को साथ जोडऩा एक सकारात्मक पहल है। क्योंकि पुरुष के शिक्षित होने से एक परिवार को फायदा होता है और महिला के शिक्षित होने से दो परिवारों को फायदा होता है। मलिक ने कहा कि मनुष्य की जिंदगी में अनुभव सबसे ज्यादा काम आता है और कीट ज्ञान में कीटाचार्या महिलाओं का अनुभव बहुत ज्यादा है। 
चार्ट पर महिलाओं को कीटों के बारे में जानकारी देती महिला किसान। 
इसलिए वह अपने इस अनुभव से अन्य किसानों को भी जागरूक करें और अपने इस ज्ञान को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक फैलाएं। मलिक शनिवार को निडाना गांव में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। महिला किसानों ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न देकर मुख्यातिथि का स्वागत किया। इस अवसर पर सिरसा जिले से भी कुछ किसान कीट ज्ञान लेने के लिए किसान खेत पाठशाला पहुंचे। 
कीटाचार्या नवीन रधाना, प्रमीला रधाना, सीता व शीला ललितखेड़ा ने कहा कि जिन-जिन फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग किया गया है, उन-उन फसलों में कीट की संख्या ईटीएल लेवल का आंकड़ा पार कर चुकी है। सबसे ज्यादा प्रकोप सफेद मक्खी का देखने को मिल रहा है। आज जींद जिला ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में यह स्थिति हो चुकी है कि सफेद मक्खी के प्रकोप से कपास की फसलें पूरी तरह से तबाह हो चुकी हैं। अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल करने के बाद भी सफेद मक्खी पर काबू नहीं पाया जा सका है। अंग्रेजो व राजवंती निडाना ने कहा कि जिन किसानों ने फसल में कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है वहां सफेद मक्खी अभी तक नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से कोसों दूर है। अंग्रेजो व राजवंती ने कहा कि उन्होंने फसल में कीटनाशक का प्रयोग करने की बजाय खाद के घोल का छिड़काव कर पौधों को ताकत देने का काम किया है। इसलिए उनकी फसल कीड़ों और बीमारियों से पूरी तरह से सुरक्षित है। 
मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करती महिला किसान।

खत्म होने के कागार पर है फसल

किसान भानीराम
मैं पिछले 20 वर्षों से खेती कर रहा हूं और हर वर्ष मेरा कीटनाशकों का खर्च लगातार बढ़ रहा है। कीटनाशकों पर खर्च बढऩे तथा उत्पादन कम होने के कारण खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। इस बार भी कीटों को नियंत्रित करने के लिए कपास की फसल में कीटनाशकों के 10-12 स्प्रे कर चुका हूं लेकिन कीटों की संख्या नियंत्रित होने की बजाय बढ़ रही है। सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण फसल बिल्कुल खत्म होने के कागार पर पहुंच चुकी है।
भानीराम, किसान
ऐलनाबाद (सिरसा)

किसानों की मुहिम से मिली प्रेरणा

किसान पवन
हमारे क्षेत्र के किसानों द्वारा हर वर्ष कीटों से फसल को बचाने के लिए अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। इससे खेती पर उनका खर्च तो लगातार बढ़ता जा रहा है लेकिन उत्पादन कम हो रहा है। कपास की फसल में अकेले कीटनाशकों पर किसान का 10 हजार रुपये प्रति एकड़ खर्च होता है। इसके अलावा अन्य खर्च अलग से रह जाते हैं लेकिन 10-10 हजार रुपये के कीटनाशकों का प्रयोग करने के बाद भी कीट नियंत्रित नहीं होते हैं। किसानों की मुहिम से प्रेरित होकर वह निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला में कीट ज्ञान हासिल करने के लिए पहुंचे हैं। ताकि हम भी कीटनाशकों पर बढ़ते अपने खर्च को कम कर सकें। 
पवन, किसान 
ऐलनाबाद (सिरसा)








रविवार, 7 सितंबर 2014

बारिश के बाद फसल में कम हुई कीटों की संख्या

फसल में नुकसान पहुंचाने के आर्थिक कगार से काफी दूर हैं शाकाहारी कीट 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। पिछले कई दिनों से हो रही भारी बारिश भी कीटाचार्या महिला किसानों के हौंसले को नहीं तोड़ पाई। गत रात्रि तेज बारिश के कारण खेतों में पानी भरा होने के बावजूद भी निडाना, ललितखेड़ा और रधाना गांव की कीटाचार्या महिला किसान सामान्य दिनों की भांति निडाना गांव में चल रही महिला किसान खेत पाठशाला में शामिल होने के लिए पहुंची। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों ने फसल में कीटों का आंकलन कर कीटों का रिकार्ड तैयार किया। इस अवसर पर निडाना गांव के पूर्व सरपंच रामभगत ने पाठशाला में बतौर मुख्यातिथि तथा अनिल नंबरदार ने विशिष्ठ अतिथि के तौर पर शिरकत की। पूर्व सरपंच रामभगत ने इस मुहिम की तारिफ करते हुए कहा कि महिला किसानों ने थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए चलाई गई इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए एक अच्छी पहल की है। कीटाचार्या महिला किसानों ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट कर उनका स्वागत किया। 
 फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
कीटाचार्या सुषमा, सुमन, ब्रह्मी व कमला ने बताया कि बरसात के बाद फसल में कीटों की संख्या में काफी कमी आई है। उन्होंने बताया कि इस सप्ताह प्रति पत्ता सफेद मक्खी की औसत 1.4, हरे तेले की औसत 0.5 तथा चूरड़े की 0.2 है। इसलिए यह अब नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से काफी दूर हैं। उन्होंने बताया कि इसके अलावा फसल में सूबेदार मेजर लाल बानिया, काला बानिया, चेपा, लाल माइट तथा मिलीबग भी फसल में मौजूद हैं। कीटाचार्या कमल, जसबीर कौर व संतोष ने बताया कि इन कीटों के अलावा फसल में तितली, सलेटी भूंड, टिड्डे, हरा गुबरेला, मधू मक्खी, पुष्पा बीटल, तेलन, होपर, फूदका, नगीना बग, मस्करा बग तथा सड़ांधला बग भी मौजूद हैं लेकिन यहां के किसान इन कीटों की गिनती आल-गोल में करते हैं। क्योंकि यह कीट फसल में नुकसान पहुंचाने के स्तर तक नहीं पहुंच पाते हैं। 

यह-यह मांसाहारी कीट भी देखे गए  

 मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करती कीटाचार्या महिला किसान ईश्वंती।
फसल में कुदरती कीटनाशी के तौर पर भांत-भांत की मकडिय़ां, रतना मक्खी, लोपा मक्खी, इनो, लाल माइट, दखोड़ी, आफियाना बीटल, क्राइसोपे का बच्चा, लम्बड़ो, टिकड़ो, हथजोड़ा, दिदड़ बुगड़ा, डाकू बुगड़ा, भिरड़, इंजनहारी, हथजोड़ा भी मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि फसल में मांसाहारी कीट मौजूद होने के कारण फसल में किसी प्रकार के कीटनाशी के प्रयोग की जरूरत नहीं है। पाठशाला के समापन पर महिला किसानों ने 'बिना बाप कै बेटा दुखिया, बिन माता कै बेटी, सबतै बढिय़ा हो सै पिया बिना जहर की खेती' गीत से पाठशाला का समापन किया। 

कीटों के बारे में मास्टर ट्रेनर किसानों के साथ विचार-विमर्श करती महिला किसान।

 चार्ट पर कीटों का रिकार्ड दर्ज करती महिला किसान।






पंजाब के किसानों को भा रहा म्हारे किसानों का कीट ज्ञान

कीट ज्ञान हासिल करने के लिए जींद का रूख करने लगे पंजाब के किसान
पहले भी कई बार जींद का दौरा कर चुके हैं पंजाब के कृषि विभाग के अधिकारी व किसान 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जींद से शुरू हुई कीट ज्ञान की मुहिम अब पंजाब के किसानों को भी भाने लगी है। इसी के चलते अब कीट ज्ञान अॢजत करने के लिए पंजाब के किसान भी जींद का रूख करने लगे हैं। निडाना गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में सोमवार को पंजाब के भटिंडा तथा फरीदकोट से पांच किसानों का एक दल यहां पहुंचा और उन्होंने यहां के किसानों से कीट ज्ञान की तालीम ली। इससे पहले भी पंजाब के कृषि विभाग के अधिकारी तथा किसान कई बार कीट ज्ञान हासिल करने के लिए यहां आ चुके हैं। 
कृषि में नई-नई तकनीकों के इस्तेमाल के मामले में पंजाब हरियाणा से काफी आगे है। इसी के चलते फसलों में पेस्टीसाइड के प्रयोग की शुरूआत भी पहले पंजाब से ही शुरू हुई थी। आज भी पंजाब में हरियाणा की अपेक्षा 
फसल का निरीक्षण करते पंजाब के किसान।  
फसलों में ज्यादा पेस्टीसाइड का प्रयोग किया जा रहा है। इसी के दुष्परिणाम भी आज वहां सामने आने लगे हैं। कैंसर तथा अन्य जानलेवा बीमारियां यहां तेजी से पैर पसार रही हैं। पंजाब के साथ-साथ हरियाणा में भी पेस्टीसाइड के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। इसी के चलते वर्ष 2008 में जींद में कृषि विभाग में एडीओ के पद पर कार्यरत डॉ. सुरेंद्र दलाल ने निडाना गांव से कीट ज्ञान की शुरूआत की थी। डॉ. सुरेंद्र दलाल ने किसानों को फसलों में मौजूद कीटों की पहचान करवाने तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में बारीकी से जानकारी दी। आज जींद जिले में लगभग 100 महिला किसान तथा 200 से ज्यादा पुरुष किसान इस मुहिम के साथ जुड़ चुके हैं। जींद जिले के किसानों की कीट ज्ञान ही यह मुहिम अब जींद ही नहीं बल्कि प्रदेश से बाहर निकलकर दूसरे प्रदेशों में भी फैलने लगी है। पंजाब जैसे प्रगतिशील प्रदेश के किसान भी अब कीट ज्ञान हासिल करने के लिए जींद का रूख करने लगे हैं। सोमवार को पंजाब के भटिंडा तथा फरीदकोट से पांच किसानों का दल निडाना में चल रही किसान खेत पाठशाला में प्रशिक्षण लेने के लिए पहुंचा। 
पाठशाला में पंजाब के किसानों को जानकारी देती महिला किसान।

सबसे अच्छी पद्धति है कीट ज्ञान 

पंजाब से कीट ज्ञान हासिल करने के लिए पहुंचे भटिंडा तथा फरीदकोट के किसान बेअंत सिंह, जगमोहन ङ्क्षसह, हरचरण सिंह, भूपेंद्र ङ्क्षसह तथा गुरमेल ङ्क्षसह ने बताया कि वह खुद भी कुदरती खेती करते हैं तथा पंजाब के दूसरे किसानों को भी कुदरती खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पंजाब में पेस्टीसाइड का ज्यादा प्रयोग हो रहा है लेकिन पेस्टीसाइड के प्रयोग के बाद भी कीट नियंत्रित नहीं हो रहे हैं लेकिन जींद के किसानों का जो कीट ज्ञान है उसकी चर्चा सुनकर वह जींद पहुंचे हैं। उन्होंने यहां के किसानों से सीखा की कीटों को नियंत्रित करने की जरूरत नहीं है, जरूरत है तो केवल कीटों की पहचान करने की। क्योंकि कीटों को नियंत्रित करने के लिए फसल में काफी संख्या में मांसाहारी कीट मौजूद होते हैं। उन्होंने यहां भी कई प्लांटों का निरीक्षण किया और देखा कि जिस प्लांट मेंं पेस्टीसाइड का प्रयोग किया गया है उसकी बजाय बिना पेस्टीसाइड वाले प्लांट की फसल काफी अच्छी है। यहां के किसानों का कीट ज्ञान काफी अच्छा है। अब वह पंजाब के अन्य किसानों को कीट ज्ञान के प्रति जागरूक करेंगे। 





रविवार, 31 अगस्त 2014

पौधों और कीटों के बीच है गहरा संबंध

पौधे अपनी जरूरत के अनुसार बुलाते हैं कीटों को 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीटाचार्या नीता तथा सविता ने कहा कि कीट दो प्रकार के होते हैं, एक शाकाहारी और दूसरे मांसाहारी। फसल में पहले शाकाहारी कीट आते हैं और फिर उन्हें नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट आते हैं। पौधों और कीटों का गहरा संबंध है। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार कीटों को बुलाते हैं। इसलिए पौधों और कीटों के आपसी संबंध को बारीकी से समझना जरूरी है। कीटाचार्या नीता तथा सविता शनिवार को निडाना गांव में चलाई जा रही महिला किसान खेत पाठशाला में महिला किसानों को सम्बोधित कर रही थी। इस अवसर पर खेल गांव निडानी के सरपंच अशोक कुमार ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की तथा महाबीर पूनिया भी विशेष रूप से मौजूद थे। सरपंच अशोक कुमार ने महिलाओं के कार्य के प्रयासों की सराहना करते हुए महिलाओं को समय-समय पर हर तरह की संभव मदद देने का आश्वासन दिया। इस अवसर पर महिला किसानों ने सरपंच को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया। 
महिला किसानों के सामने अपने अनुभव सांझा करती मास्टर ट्रेनर किसान।
कीटाचार्या इश्वंती व नीलम ने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि पौधे 24 घंटे में लगभग साढ़े चार ग्राम भोजन तैयार करते हैं उसको तीन भागों में बांटे हैं। इसका एक तिहाई भाग जड़ों को, एक तिहाई पौधे के ऊपरी भाग को देते हैं तथा एक तिहाई अपने पास रिजर्व के तौर पर रखते हैं। ताकि मुसिबत के समय उस भोजन से अपना काम चला सकें। यदि पौधे पर किसी तरह की मुसिबत नहीं आती है तो पौधो उस जमा किये गए अतिरिक्त भोजन को निकालने के लिए भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को बुलाते हैं और यह शाकाहारी कीट रस आदि चूसकर रिजर्व भोजन को बाहर निकालकर एक तरह से पौधों की मदद करते हैं। जब तक यह शाकाहारी कीट ईटीएल लेवल तक रहते हैं तो पौधे को किसी तरह का नुकसान नहीं होता। यदि यह ईटीएल लेवल से ऊपर निकलते हैं तो पौधे पर इसका नुकसान आता है लेकिन शाकाहारी कीटों को नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर तक पहुंचने से रोकने के लिए पौधे मांसाहारी कीटों को बुलाते हैं। मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर पौधों की सुरक्षा करते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जब पौधे के ऊपरी पत्तों की छाया नीचे के पत्तों पर पड़ती है तो नीचे के पत्ते भोजन बनाना बंद कर देते हैं। ऐसे में पौधो अपनी सुरक्षा के लिए टिड्डों को बुलाता है और टिड्डे पौधे के ऊपरी पत्तों को बीच से खाकर छोटे-छोटे सुराग कर देते हैं। इस प्रक्रिया में टिड्डों का जीवन यापन हो जाता है और पौधे के नीचले हिस्सों तक धूप पहुंच जाती है। इसके बाद जब पौधे के टिंड्डों को धूप की जरूरत होती है तो वह सूंडियों को बुलाता है और सूंंडियां पत्तों को खाकर पूरी तरह से छलनी कर देती है। इससे टिंड्डों तक धूप पहुंच जाती है और टिंड्डे पक जाते हैं। कीटाचार्या नवीन तथा शकुंतला ने बताया कि पौधे के फूलों के रूप में सिंगार करते हैं। इसलिए फूल की पंखुडियां रंग-बिरंगी होती हैं ताकि कीटों को आकर्षित किया जा सके। क्योंकि कपास की फसल में परपरागन में कीटों की अहम भूमिका होती हैं। फूल खाने वाले कीट मादा भाग पर बैठकर फूल की पंखुडियों व नर भाग को खाते हैं और इस प्रक्रिया में कीट के शरीर पर नर के पराग कण मादा तक पहुंच जाते हैं। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने जो भी कीट बनाया है उसकी अपनी अहमियत होती है। 
सरपंच अशोक कुमार को स्मृति चिह्न भेंट करती महिला किसान।

कीटनाशक के छिड़काव वाले प्लांट में बढ़ी कीटों की संख्या

महिला किसानों द्वारा फसल के अवलोकन के दौरान एकत्रित किये गए आंकड़े के अनुसार आईपीएम पद्धति वाले प्लांट में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 5.2, हरे तेले की 0.1 व चूरड़े की 0.1 थी। कीट ज्ञान की पद्धति वाले प्लांट में सफेद मक्खी की 2.2, हरा तेला  व चूरड़ा न के बराबर थे। वहीं जिस प्लांट में कीटनाशकों का चार-चार बार छिड़काव किया गया है उस खेत में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 25 मिल रही है, जबकि हरा तेला 0.7 तथा चूरड़ा न के बराबर है। कीटाचार्या महिला किसानों ने बताया कि कीटनाशक के छिड़काव वाले प्लांट में कपास के सभी पत्ते पूरी तरह से काले हो चुके हैं और इस प्लांट में 65 प्रतिशत नुकसान नजर आ रहा है। 



फसल में मौजूद शाकाहारी कीट झोटिया बग। 

फसल में मौजूद रसचूसक कीट लालड़ी। 






शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

म्हारे किसानों के कीट ज्ञान के कायल हुए कृषि वैज्ञानिक

कानूपर में आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में किसानों ने प्रस्तुत की प्रजंटेशन
कहा, बिना कीटों की पहचान के नहीं संभव होगा थाली को जहरमुक्त करना

नरेंद्र कुंडू 
जींद। राष्ट्रीय समेकित नाशी जीव प्रबंधन केंद्र नई दिल्ली (एनसीआईपीएम) द्वारा कानपूर (उत्तरप्रदेश) में आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में म्हारे किसानों का कीट ज्ञान देखकर कार्यक्रम में मौजूद सभी कृषि वैज्ञानिक उनके कायल हो गये। कार्यक्रम में नार्थ जोन के सब्जेक्ट मेटर स्पेशलिस्ट (विषय वस्तु विशेषज्ञों) के अलावा कई प्रगतिशील किसानों ने भी भाग लिया। कार्यक्रम में जींद जिले के कीटाचार्य किसानों की तरफ से मास्टर ट्रेनर किसान रणबीर मलिक व सुरेश अहलावत प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुए। रणबीर मलिक ने कृषि अधिकारियों के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि किस तरह से फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग की शुरूआत हुई और अब किसानों के सामने क्या स्थिति है तथा वह किस तरह से किसानों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। कीटाचार्य किसानों की कीट ज्ञान की पद्धति को देखकर कार्यक्रम में मौजूद सभी कृषि अधिकारियों ने उनकी पीठ थपथपाई और उन्हें एक तरह से इस कार्यक्रम का हीरो बताया।  
एनसीआईपीएम द्वारा 26 व 27 अगस्त को नार्थ जोन के कृषि वैज्ञानिकों के लिए कानपूर में दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में जींद के कीटाचार्य किसानों को भी उनकी पद्धति के बारे में कृषि अधिकारियों को रूबरू करवाने के लिए बुलाया गया था। मास्टर ट्रेनर किसान रणबीर मलिक ने अपनी प्रस्तुति देते हुए बताया कि किसान और कीट के बीच यह लड़ाई 25 प्रतिशत के नुकसान से शुरू हुई थी। किसानों को बताया गया था कि कीट फसल में 25 प्रतिशत नुकसान करता है और इस नुकसान को बचाने के लिए किसान को कीटों को नियंत्रित करना होगा लेकिन जब कई वर्षों की मेहनत के बाद भी कीट नियंत्रित नहीं हुए तो कृषि अधिकारियों ने किसान को इसका जिम्मेदार बताते हुए इस लड़ाई का नाम बदलकर कीट प्रबंधन रख दिया। वर्ष 2001 में यह प्रबंध उस समय टूट गया जब 30-35 बार कीटनाशकों का छिड़काव करने के बाद भी अमेरिकन सूंडी का प्रबंध नहीं हो पाया। मलिक ने बताया कि अब इस लड़ाई का नाम बदलकर समेकीत कीट प्रबंधन किया गया है और हर तरह से कीट को काबू करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जब तक किसान को कीटों की पहचान नहीं होगी उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी नहीं होगी तब तक यह लड़ाई खत्म होने वाली नहीं है। पौधे के लिए कीट बेहद जरूरी हैं और पौधा अपनी जरूरत के हिसाब से कीटों को बुलाता है। इस दौरान उन्होंने कृषि अधिकारियों को कई तरह के कीटों की सलाइड व वीडियो भी दिखाई। कार्यक्रम में मौजूद सभी कृषि अधिकारियों ने उनके कीट ज्ञान को देखकर उनकी जमकर प्रशंसा की। 

जींद के किसानों की प्रस्तुति काफी सरहानिय रही

जींद जिले के किसानों के प्रतिनिधि के तौर पर कार्यक्रम में पहुंचे मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक की प्रस्तुति काफी सरहानिय रही। इन किसानों द्वारा एक तरह से लीक से हटकर कार्य किया जा रहा है। यह पद्धति को पूरे देश में फैलाने की जरूरत है और इसी उद्देश्य से उन्हें यहां बुलाया गया था। 
डॉ. अजंता बिराह, वरिष्ठ वैज्ञानिक
एनसीआईपीएम, नई दिल्ली




नार्थ जोन के कृषि वैज्ञानिकों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे म्हारे किसान

एनसीआईपीएम द्वारा उत्तरप्रदेश में आयोजित करवाया जाएगा दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम
26 से शुरू होने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम में नार्थ जॉन के सब्जेक्ट मेटर स्पेशलिस्ट कृषि वैज्ञानिक लेंगे भाग 

नरेंद्र कुंडू
जींद। थाली को जहरमुक्त करने के लिए जींद जिले से शुरू हुई कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम को देशभर में फैलाने के लिए राष्ट्रीय समेकित नाशी जीव प्रबंधन केंद्र नई दिल्ली (एनसीआईपीएम) द्वारा कानपूर (उत्तरप्रदेश) में दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। 26 अगस्त से शुरू होने वाले इस दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में कृषि विभाग के नार्थ जोन के सब्जेक्ट मेटर स्पेशलिस्ट (विषय वस्तु विशेषज्ञ) भाग लेंगे। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में जींद जिले के कीटाचार्य किसान कृषि वैज्ञानिकों को कीट ज्ञान की तालीम देंगे और कृषि वैज्ञानिकों के साथ अपने अनुभव सांझा करेंगे। ताकि देश के अन्य किसानों को भी इस मुहिम से जोड़ा जा सके। शिविर की अध्यक्षता एनसीआईपीएम के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. मुकेश सहगल तथा वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अजनता बिराह करेंगी। 
फसलों में बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को बचाने के लिए जींद जिले के किसानों द्वारा वर्ष 2008 में कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में कीट ज्ञान क्रांति की शुरूआत की गई थी। यहां के किसानों ने फसलों में पाए जाने वाले कीटों की पहचान करने के साथ-साथ कीटों के क्रियाकलापों से फसल में पडऩे वाले प्रभाव पर बारीकी से शोध किया। शोध में सामने आया कि कीट दो प्रकार के होते हैं एक मांसाहारी और एक शाकाहारी। शाकाहारी कीट फसलों के पत्ते, टहनियां, फल, फूल खाकर अपना गुजारा करते हैं और मांसाहारी कीट दूसरे कीटों को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं। इस दौरान किसानों ने देखा कि जब फसल में शाकाहारी कीटों की संख्या बढऩे लगती है तो उन्हें नियंत्रित करने के लिए पौधे भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर मांसाहारी कीटों को बुला लेते हैं। बशर्त यह है कि फसल में किसी प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया गया हो। इस प्रकार प्राकृतिक के इस चेन सिस्टम में मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर फसल में प्राकृतिक कीटनाशी का काम खुद ही कर देते हैं। इस शोध के बाद यहां के किसानों ने खेत पाठशालाओं का आयोजन कर दूसरे किसानों को भी जागरूक करने का काम किया। पिछले लगभग 6-7 वर्षों से यहां के सैंकड़ों किसान बिना कीटनाशकों के खेती कर रहे है। इसकी सबसे खास बात यह है कि कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करने पर भी उनके उत्पादन पर किसी तरह का प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं पड़ा है बल्कि खेती पर उनका खर्च कम ही हुआ है। पुरुष किसानों के साथ-साथ महिला किसान भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। जींद जिले के किसानों की इस मुहिम को देखते हुए एनसीआईपीएम की टीम द्वारा इस बार जींद में कीट ज्ञान की इस पद्धति पर शोध किया जा रहा है। इसी कड़ी के तहत एनसीआईपीएम द्वारा कृषि वैज्ञानिकों को कीट ज्ञान के बारे में प्रशिक्षित करने के लिए कानपूर (उत्तरप्रदेश) में 26 व 27 अगस्त को दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। इस प्रशिक्षण शिविर में कृषि विभाग के नार्थ जोन के सब्जेक्ट मेटर स्पेशलिस्ट वैज्ञानिक भाग लेंगे। इन कृषि वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण देने के लिए शिविर में एनसीआईपीएम की टीम द्वारा जींद जिले के किसानों को मास्टर ट्रेनर के तौर पर बुलाया गया है। शिविर में प्रशिक्षण देेने के लिए जींद जिले से दो किसान 25 अगस्त को यहां से रवाना होंगे और शिविर में कृषि वैज्ञानिकों के साथ अपने अनुभव सांझा करेंगे। 

ईटीएल लेवल को पार करना तो दूर इसके पास भी नहीं पहुंच पाये कपास के मेजर कीट

कीट ज्ञान की मदद से कपास के मेजर कीटों के प्रकोप को कम कर रहे कीटाचार्य किसान
प्रदेश में कपास की फसल में तेजी से बढ़ रहा है सफेद मक्खी का प्रकोप 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीटाचार्या प्रमिला रधाना ने बताया कि जहां-जहां पर भी सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए किसानों ने कीटनाशकों का प्रयोग किया है, वहां-वहां पर इसके भयंकर परिणाम सामने आ रहे हैं। कई क्षेत्रों में तो सफेद मक्खी के प्रकोप से कपास की फसल बिल्कुल खत्म होने की कगार पर है। हालात ऐसे हो चुके हैं कि सफेद मक्खी का नाम सुनते ही किसानों के पैरों तले से जमीन खिसक रही है लेकिन जहां पर सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए किसी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया गया, वहां पर हालात पूरी तरह से सामान्य हैं। इसका जीता जागता प्रमाण निडाना तथा आस-पास के गांवों में देखा जा सकता है। वह शनिवार को निडाना गांव में चलाई जा रही महिला किसान खेत पाठशाला में महिलाओं के साथ विचार सांझा कर रही थी। 
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
कीटाचार्या मुकेश रधाना ने बताया कि फसल की बिजाई के बाद से लगातार महिला किसान खेत पाठशालाओं में यहां की महिला किसान कपास के मेजर कीट माने जाने वाले सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़े की हर सप्ताह गिनती कर उनका रिकार्ड तैयार कर रहे हैं। रिकार्ड के अनुसार आज तक तीनों मेजर कीटों में से एक कीट भी ईटीएल लेवल को पार करना तो दूर की बात इसके पास भी नहीं पहुंच पाया है। ऐसा इसलिए संभव हो पाया है कि यहां के किसानों ने इन कीटों को नियंत्रित करने के लिए एक छांटक भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। क्योंकि इन मेजर कीटों को नियंत्रित करने के लिए फसल में काफी संख्या में मांसाहारी कीटों के तौर पर प्राकृतिक कीटनाशी मौजूद रहते हैं। उन्होंने बताया कि प्रति पत्ता सफेद मक्खी की औसत 3.2, हरे तेले की औसत 0.6 तथा चूराड़े की औसत 0.11 है। जबकि ईटीएल लेवल के अनुसार सफेद मक्खी की औसत प्रति पत्ता 6, हरे तेले की प्रति पत्ता 2 तथा चूरड़े की प्रति पत्ता 10 होनी चाहिये लेकिन यह कीट आज तक इस ईटीएल लेवल तक नहीं पहुंच पाये हैं। 
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

इस समय एक पौधे पर तैयार है लगभग 212 ग्राम कपास 

कीटाचार्या मुकेश रधाना तथा गीता निडाना ने बताया कि इस समय कपास के इस आधा एकड़ में टिंड्डों की औसत प्रति पौधा 53, फूल की 4 और बोकी की संख्या प्रति पौधा 30 है। अगर प्रत्येक टिंड्डे से हमें लगभग चार ग्राम कपास का फाव्वा भी मिलता है तो इस समय एक पौधे पर लगभग 212 ग्राम कपास तैयार है। इस आधा एकड़ में पौधों की संख्या लगभग 2500 है। इस प्रकार यदि हम इसका आकलन निकालते हैं तो इस समय इस आधा एकड़ कपास के खेत में लगभग पांच क्विंटल कपास की औसत बनती है। इसके बाद बोकी और फूल अलग से बचते हैं। एक बोकी से फूल बनने में 10-12 दिन का समय लगता है और फूल से टिंड्डा बनने में एक से दो दिन का समय लगता है। इस प्रकार इस पांच क्विंटल के अलावा ओर कपास तैयार होनी अभी बाकी है। उन्होंने बताया कि इस समय इस आधा एकड़ में मौजूद कपास की फसल में किसी प्रकार की बीमारी या किसी कीट का प्रकोप नहीं है और यह खेत में अभी तक कीटनाशकों पर खर्च बिल्कुल नहीं किया गया है। 



कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी मकड़ी। 

 कपास की फसल में मौजूद सूंडी व शाकाहारी कीट बग। 





मंगलवार, 19 अगस्त 2014

किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बना ईगराह का मनबीर रेढ़ू

पिछले 6 वर्षों से बिना कीटनाशक के कर रहा है खेती
पहले उत्पादन का 40 प्रतिशत हिस्सा हो जाता था कीटनाशकों पर खर्च 

नरेंद्र कुंडू
जींद। आज अधिक उत्पादन की चाह में किसान फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। फसलों में अधिक कीटनाशकों के प्रयोग के कारण खेती में खर्च लगातार बढ़ रहा है, वहीं हमारा खान-पान व वातावरण भी दूषित हो रहा है। अधिक उत्पादन के मोह में फंसे किसानों को कीटनाशकों के अलावा कोई अन्य विकल्प नजर नहीं आ रहा है लेकिन जींद जिले के ईगराह गांव के प्रगतिशील किसान मनबीर रेढ़ू ने कीट ज्ञान की पद्धति को अपनाकर खेती पर बढ़ते अपने खर्च को तो कम किया ही है साथ-साथ अपने परिवार को थाली में बढ़ रहे जहर से भी मुक्ति दिलवाई है। मनबीर रेढ़ू आज दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन चुका है। मनबीर की उपलब्धियों को देखते हुए जींद जिला प्रशासन के अलावा गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भी मनबीर को सम्मानित किया जा चुका है।
मनबीर रेढ़ू को गुजरात सरकार के मंत्री।
मनबीर रेढ़ू का कहना है कि पहले वह अधिक उत्पादन की चाह में फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करता था। इससे हर वर्ष उसकी फसल की बिक्री का चौथा हिस्सा कीटनाशकों पर खर्च हो जाता था लेकिन वर्ष 2006 में उसने कृषि विभाग द्वारा गांव में लगी किसान खेत पाठशाला में हिस्सा लिया। इस पाठशाला से कीटनाशकों के प्रति उसकी मानसिकता में थोड़ा परिवर्तन जरूर हुआ लेकिन फसल में आने वाले कीटों के क्रियाकलापों के बारे में उसे पूरी जानकारी नहीं होने के कारण वह कीटनाशकों के प्रयोग को छोडऩे के लिए दिल से दृढ़ निश्चय नहीं ले पा रहा था। इसके बाद वर्ष 2007 में कृषि विभाग के एडीओ डॉ. सुरेंद्र दलाल से उसकी मुलाकात हुई। डॉ. सुरेंद्र दलाल ने उसकी समस्या का हल निकालते हुए उसे कीट ज्ञान लेने के लिए प्रेरित किया। वर्ष 2008 में डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में कृषि विभाग की तरफ से निडाना गांव में शुरू की गई किसान खेत पाठशाला में मनबीर रेढ़ू ने हिस्सा लिया और यहां से उसे कीटों की पहचान करनी शुरू की। जैसे-जैसे कीटों के बारे में उसकी जानकारी बढ़ती गई, वैसे-वैसे कीटनाशकों के प्रति उसकी मानसिकता भी बदलती चली गई। इसके बाद उसने कीटनाशकों से तौबा कर ली और फिर कभी उसने फसल में एक छंटाक जहर का भी प्रयोग नहीं किया। उसने दूसरे किसानों को भी जागरूक करने के लिए किसान खेत पाठशालाओं में जाना शुरू कर दिया। किसान खेत पाठशालाओं में रेढ़ू अपने साथियों के साथ मिलकर दूसरे किसानों को भी कीटों के बारे में बारीकी से जानकारी देता। रेढ़ू की उपलब्ध्यिों को देखते हुए वर्ष 2010 में कृषि विभाग की तरफ से मनबीर रेढ़ू को ब्लॉक स्तर पर पुरस्कृत भी किया गया। इसके बाद वर्ष 2012 में भी जाट धर्मार्थ सभा द्वारा भी जिला स्तर पर मनबीर रेढ़ू व उसके साथियों को पुरस्कृत किया। वहीं सितंबर 2013 में गुजरात में वाइब्रेट गुजरात के नाम से आयोजित राष्ट्रस्तरीय कार्यक्रम में भी तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मनबीर रेढ़ू को प्रगतिशील
मनबीर रेढ़ू का फोटो। 
किसान के तौर पर सम्मानित किया जा चुका है। रेढ़ू का कहना है कि वह खेती में नई-नई तकनीकों में विश्वास रखता है और हर तरह की तकनीक को खेती में प्रयोग कर के देखता है लेकिन कीट ज्ञान हासिल करने के बाद वह आंदरूनी तौर पर संतुष्ट है। वर्ष 2008 के बाद से उसने अपने खेतों में एक छंटाक जहर का प्रयोग भी नहीं किया है। मनबीर का कहना है कि जब तक वह फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग करता था तो हर वर्ष उसकी आमदनी का चौथा हिस्सा कीटनाशकों पर खर्च हो जाता था लेकिन जब से उसने कीटनाशकों का प्रयोग बंद किया है, उसका खेती पर होने वाला यह खर्च बिल्कुल कम हो गया है। वहीं कीटनाशकों का प्रयोग बंद करने के बाद उसकी थाली से भी जहर कम हो गया है। इससे स्वास्थ्य पर होने वाले उसके खर्च में भी काफी कमी आई है। इतना ही नहीं मनबीर रेढ़ू पशुपालन में भी काफी महारत हासिल कर चुका है।

गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हरियाणवी वेशभूषा में खड़ा मनबीर रेढ़ू।