शनिवार, 21 जून 2014

अर्जुन स्टेडियम पर आज भी लगी हुई है आचार संहिता

राष्ट्र स्तरीय शूटिंग प्रतियोगिता के लिए प्रशासन नहीं दे रहा अनुमति

प्रशासन के नकारात्मक रवैये से आयोजकों में छाई निराशा
आचार संहिता खत्म होने के बाद भी स्टेडियम की बिल्डिंग पर कब्जा जमाए हुए है प्रशासन
खिलाड़ी भी नहीं कर पा रहे हैं अभ्यास
नरेंद्र कुंडू  
जींद। चुनाव आचार संहिता खत्म हुए एक माह से भी ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन शहर के अर्जुन स्टेडियम में आज भी आचार संहिता लगी हुई है। पिछले तीन माह से अर्जुन स्टेडियम के हॉलों पर आज भी प्रशासन कब्जा जमाए बैठा है, जिस कारण खेल गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं और खिलाड़ी अच्छे तरीके से अभ्यास नहीं कर पा रहे हैं। वहीं अर्जुन स्टेडियम पर प्रशासन का कब्जा होने के चलते प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा एक प्रतिष्ठित संस्था को स्टेडियम में शुटिंग प्रतियोगिता के आयोजन के लिए अनुमति भी नहीं दी जा रही है। प्रतियोगिता के आयोजन के लिए अनुमति देना तो दूर प्रशासनिक अधिकारी संस्था के पदाधिकारियों से ठीक से बात भी नहीं कर रहे हैं। संस्था के पदाधिकारी कई दिनों से स्टेडियम में राष्ट्र स्तरीय 10 मीटर ओपन एयर पिस्टल व राईफल शूटिंग प्रतियोगिता के आयोजन के लिए अनुमति लेने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं लेकिन संस्था के पदाधिकारियों का आरोप है कि प्रशासनिक अधिकारी उनसे सीधे मुंह बात भी नहीं कर रहे हैं। 
वंदेमातरम प्रतिष्ठान के संयोजक अमित निडानी ने शुक्रवार को पत्रकार वार्ता में इस मामले का खुलासा करते हुए बताया कि वंदेमातरम प्रतिष्ठान द्वारा जिले में शुटिंग की खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिए जुलाई माह में जींद के अर्जुन स्टेडियम में राष्ट्र स्तरीय 10 मीटर एयर पिस्टल व राईफल की शूटिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया जाना है। निडानी ने बताया कि जींद जिले में शूटिंग प्रतियोगिता का आयोजन करने का उनका मुख्य उद्देश्य जींद जिले के माथे से पिछड़ेपन के दाग को मिटाकर यहां से शूटिंग के नए खिलाड़ी तैयार करना है। निडानी ने बताया कि इस प्रतियोगिता में कई अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भी भाग लेंगे। जींद के इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी प्रतियोगिता के आयोजन का अध्याय जुडऩे जा रहा है लेकिन यह जींद का दुर्भाग्य है कि जींद का जिला प्रशासन इस आयोजन के बीच में रोड़ा बन रहा है। निडानी ने कहा कि प्रतियोगिता के आयोजन के लिए उन्हें स्टेडियम के हाल की जरूरत है और हाल के अंदर ही प्रतियोगिता का आयोजन होना है लेकिन जिला प्रशासन स्टेडियम के हॉल में उन्हें प्रतियोगिता के आयोजन की अनुमति नहीं दे रहा है। निडानी ने बताया कि प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि इन हॉलों में बीते लोकसभा चुनाव में ईवीएम मशीनें रखने के लिए स्ट्रांग रूम इत्यादि बनाए गए थे, जिन्हें वह अब प्रशासन तोडऩा नहीं चाहता है और इन स्ट्रांग रूमों को विधानसभा चुनाव के लिए सुरक्षित रखना चाहते हैं। प्रशासन के इस रवैये के कारण यहां खेल प्रतिभाएं तो प्रभावित हो रही हैं साथ-साथ प्रतियोगिता के आयोजन में भी पेंच बन गया है। अमित निडानी ने आरोप लगाया कि वह स्टेडियम में प्रतियोगिता के आयोजन के लिए जिला खेल अधिकारी तथा एसडीएम से मिल चुके हैं लेकिन उक्त दोनों अधिकारी इसे अपने बस से बाहर की बात बता रहे हैं। इसके अलावा वह डीसी राजीव रतन तथा सिटीएम से भी मिलने के लिए बार-बार उनके कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं लकिन डीसी और सिटीएम उन्हें मिलने के लिए समय ही नहीं दे रहे हैं। इस अवसर पर उनके साथ निशानेबाजी के प्रशिक्षक नवीन चौहान, सोनू धीमान, नवनीत श्योराण, जगदीप ङ्क्षसह, अजय व पवन सैनी भी मौजूद थे। 
 वोटों की गिनती के बाद भी स्टेडियम के हाल पर लटक रहे ताले।

मंजूरी नहीं मिली तो सड़क पर उतर कर प्रशासन के खिलाफ करेंगे प्रदर्शन 

वंदेमातरम प्रतिष्ठान के संयोजक अमित निडानी ने कहा कि यदि प्रशासन ने उन्हें स्टेडियम में शूटिंग प्रतियोगिता के आयोजन की मंजूरी नहीं दी तो वह जिले के सभी खिलाडिय़ों के साथ सड़क पर उतरकर प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे और अपनी मांग को मुख्यमंत्री तक पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी भेजा जाएगा। 

ऐसे में कैसे तैयार होंगे अभिनव बिंद्रा और गगन नारंग

अमित निडानी तथा निशानेबाजी के प्रशिक्षक नवीन चौहान ने कहा कि आज शूटिंग के खेल में खिलाडिय़ों के लिए काफी संभावनाएं हैं। अमित ने कहा कि शूटिंग के खेल में अभिनव बिंद्रा, गगन नारंग, जसपाल राणा, राज्यवर्धन राठोर सहित कई अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कई खिलाड़ी निकलकर आगे आए हैं, जिन्होंने शूटिंग में देश के लिए मैडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है। अमित ने कहा कि अगर प्रशासन इस तरह खेल प्रतियोगिताओं में अड़ंगा डालेगा तो आखिरी इससे कैसे अभिनव बिंद्रा और गगन नारंग जैसे खिलाड़ी निकलकर आगे आएंगे। 
 वोटों की गिनती के बाद भी स्टेडियम के हाल पर लटक रहे ताले।

पिछले तीन माह से स्टेडियम पर है प्रशासन का कब्जा

जिला प्रशासन ने चुनाव के दौरान ईवीएम मशीनें रखने तथा वोटों की गिनती के लिए मार्च माह के अंतिम सप्ताह में स्टेडियम के तीनों हॉलों को अपने कब्जे में लेकर यहां पर स्ट्रांग रूम का निर्माण करवा दिया था। 10 अप्रैल को चुनाव के बाद यहां पर जींद, जुलाना और सफीदों की ईवीएम मशीनें रखी गई थी। इसके बाद १६ मई को यहां पर वोटों की गिनती का कार्य हुआ था। 16 मई को वोटों की गिनती के बाद 18मई को प्रशासन ने आचार संहिता खत्म होने की घोषणा कर दी थी लेकिन इसके बाद अब भी इन हॉलों पर प्रशासन का कब्जा है और हॉलों के गेटों पर अब भी ताले लटक रहे हैं। 

खिलाडिय़ों के अभ्यास में पहुंच रही है बाधा

स्टेडियम के हॉलों पर ताले लटके होने के कारण खिलाड़ी के अभ्यास में भी बाधा पहुंच रही है। खिलाड़ी हतेंद्र, संदीप, अमरदीप, सचिन, राहुल, रवि, नितिन बूरा, राहुल शर्मा, निक्की का कहना है कि स्टेडियम के हॉल में प्रशासन द्वारा दीवार बनाई जाने के कारण वह हाल में अभ्यास नहीं कर पा रहे हैं। अगर खुले मैदान में अभ्यास करते हैं तो यहां कांग्रेस घास तथा आवारा पशुओं के कारण उनका अभ्यास बाधित होता है। 

जानकारी में नहीं है मामला 

जींद में मेरी नियुक्ति अभी हुई है। इसलिए यह मामला मेरी जानकारी में नहीं है। डीसी साहब कुछ दिन के लिए छुट्टी पर गए हुए हैं। उनके आने के बाद यह मामला उनकी जानकारी में लाया जाएगा। उनके आदेश पर ही आगामी कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। 
यश गर्ग
एडीसी, जींद
पत्रकार वार्ता के दौरान जानकारी देते वंदेमातरम प्रतिष्ठान के संयोजक अमित निडानी व अन्य सदस्य। 



 स्टेडियम के हाल के अंदर खिंची गई दीवार।

 खिलाड़ी नितिन बूरा का फोटो। 

 खिलाड़ी राहुल शर्मा का फोटो।

 खिलाड़ी निक्की का फोटो। 








........मंजिलें उन्हें ही मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है

जींद की बेटी ने वेट लिफ्टिंग में मनवाया अपनी प्रतिभा का लोहा
६ साल के ब्रेक के बाद मैदान में उतरकर लहराया परचम
सीनियर नेशनल प्रतियोगिता में दो बार जीत चुकी है गोल्ड मैडल 
अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मैडल जीतने के लिए उतरेगी मैदान पर 

नरेंद्र कुंडू
जींद। सपने उन्हीं के पूरे होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है। अकेले पंखों से कुछ नहीं होता हौंसलों से ही उडान होती है। यह पंक्तियां जींद जिले के गांव मालवी निवासी वेट लिफ्टिंग की खिलाड़ी कविता देवी पर बिल्कुल स्टीक बैठती हैं। अपने खेल के कॅरियर पर लगे 6 साल के लंबे ब्रेक के बाद भी कविता ने कठिन परिश्रम और मजबूत इरादों के बल पर दोबारा से मैदान में उतरकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। वर्ष 2008 में वेट लिफ्टिंग सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल जीतने के बाद वर्ष 2014 में दोबारा फिर से कविता ने सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड जीतकर इंडिया कैंप में अपना स्थान बनाया है। ३१ वर्ष की उम्र में भी कविता के हौंसले बुलंद हैं। कविता वेट लिफ्टिंग प्रतियोगिता में अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश को गोल्ड मैडल दिलाने का सपना अपनी आंखों में संजो कर पटियाला में चल रहे इंडिया कैंप में जमकर पसीना बहा रही है। जुलाई में स्काटलैंड ग्लास्को में होने वाले कॉमनवैल्थ गेम्स तथा सितम्बर माह में कोरिया में आयोजित होने वाले एशियन गेम्स के लिए कविता का चयन हो चुका है।

यह है कविता के जीवन का सफर

कविता ने जुलाना के सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं की कक्षा पास की। इसी दौरान कविता के बड़े भाई संजय ने कविता को वेट लिफ्टिंग के खेल के लिए प्रेरित किया। वर्ष 2002 में कविता ने फरीदाबाद में वेट लिफ्टिंग का प्रशिक्षण लेना आरम्भ किया। वर्ष 2003 में कविता ने प्रशिक्षण के लिए बरेली साईं हॉस्टल में दाखिला लिया लेकिन यहां के प्रशिक्षण से कविता संतुष्ट नहीं थी। इसके बाद वर्ष 2004 में कविता ने लखनऊ से अपना प्रशिक्षण शुरू किया, जो 2007 तक जारी रहा। प्रशिक्षण के साथ-साथ कविता ने अपनी पढ़ाई का सफर भी जारी रखा। 2005 में कविता ने बीए की पढ़ाई पूरी की। वर्ष 2007 में उड़ीसा में आयोजित सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप के लिए कविता का चयन हुआ। इस प्रतियोगिता में कविता ने गोल्ड मैडल जीतकर पूरे देश में जिले और प्रदेश का नाम रोशन किया। वर्ष 2008 में कविता का चयन इंडिया कैंप के लिए हुआ। इसी दौरान जापान में आयोजित एशियन चैम्पिशनशिप में प्रतिभागिता करते हुए कविता एक राजनीति का शिकार हुई और यहां कविता को डोपिंग टेस्ट में पॉजीटिव दिखाकर कविता के खेल पर चार साल तक का प्रतिबंध और पांच हजार डॉलर का जुर्माना लगा दिया। वर्ष 2008 में कविता ने एसएसबी में बतौर कांस्टेबल के पद पर नौकरी ज्वाइन की। वर्ष 2009 में कविता की शादी बाडौत (उत्तरप्रदेश) निवासी गौरव से हुई। गौरव भी एसएसबी में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत है और वालीबाल का अच्छा खिलाड़ी है। नौकरी के दौरान वर्ष 2010 में कविता ने विभाग से कॉमनवैल्थ गेम्स की तैयारी के लिए बाहर से प्रशिक्षण दिलवाने की गुहार लगाई लेकिन विभाग की तरफ से उसे कोई सहयोग नहीं मिला। इससे निराश होकर कविता ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कविता यूपी में अपनी ससुराल में रहने लगी। ससुराल के लोगों ने कविता को खेलने के लिए प्रेरित किया और नवंबर 2013 में कविता ने फिर से तैयारी शुरू कर दी। महज चार माह के प्रशिक्षण के दौरान कविता ने मार्च 2014 में नागपुर में आयोजित वेट लिफ्टिंग सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड जीतकर फिर से अपनी प्रतिभा का परचम लहराया। अब कविता पटियाला में चल रहे इंडिया कैंप में रहकर जुलाई में स्काटलैंड ग्लासको में आयोजित होने वाले कॉमनवैल्थ तथा सितम्बर में कोरिया में आयोजित होने वाले एशियन गेम्स की तैयारी कर रही है। 
गोल्ड जीतने के बाद कविता का स्वागत करती ग्रामीण महिलाओं का फाइल फोटो।

6 साल बाद दोबारा मैदान पर उतर कर मनवाया अपनी प्रतिभा का लोहा

कविता का कहना है कि वर्ष 2008 में जब वह जापान में आयोजित एशियन चैम्पियनशिप में प्रतिभागिता कर रही थी तो इसी दौरान वह अपनी ही कोच की राजनीति का शिकार हो गई। कविता ने बताया कि उसकी कोच उससे रंजिश रखती थी और उसने अपनी रंजिश निकालने के लिए एक दिन पीछे से उसके खाने में कोई केमिकल डाल दिया। इससे वह डोपिंग के आरोप में फंस गई और उसके खेलने पर चार साल का प्रतिबंध तथा 5 हजार डालर (लगभग साढ़े तीन लाख) रुपये का जुर्माना लगा दिया गया। इसके बावजूद भी उसने हिम्मत नहीं हारी और वह निरंतर परिश्रम करती रही। आखिरकार ६ साल बाद उसे एक बार फिर से मौका मिला और उसने मार्च 2014 में नागपुर में आयोजित सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। 
पटियाला में चल रहे इंडिया कैंप में तैयारी करती कविता दलाल। 

ससुराल से मिला पूरा सहयोग

कविता का कहना है कि उसकी हर कठिन परिस्थितियों में उसके ससुराल के लोगों ने उसका पूरा सहयोग किया। उसके पति गौरव ने उस पर लगे साढ़े तीन लाख रुपये की डोपिंग के जुर्माने की राशि भरी। इसके बाद वर्ष 2010 में जब उसने नौकरी छोड़ी तो उसके ससुराल के लोगों ने उसे हौंसला दिया और फिर से प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए यमुनानगर भेजा। ससुराल से मिलने अथक सहयोग के कारण ही कविता के कदम तेजी से अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रही है।

डोपिंग के दाग को धोने के लिए ममता की दे दी कुर्बानी

वर्ष 2010 में कविता नौकरी छोड़ ससुराल चली गई थी। वर्ष 2012 में कविता ने एक पुत्र को जन्म दिया। बेटे के जन्म के बाद कविता अपनी घर-गृहस्ती में व्यस्त हो गई लेकिन वर्ष 2008 में कविता के माथे पर लगे डोपिंग के दाग से कविता अंदर ही अंदर घूट रही थी। इस दाग को धोने के लिए कविता ने अपनी ममता की भी कुर्बानी दे दी। महज दो वर्ष के बेटे अभिजीत को ससुराल में अपनी ननद के जिम्मे छोड़कर कविता यमुनानगर में आकर फिर से खेल की तैयारियों में जुट गई। कविता की मेहनत रंग लाई और मार्च 2014 में कविता ने नेशनल प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल जीतकर अपने ऊपर लगे डोपिंग के दाग को धो दिया।   

देश के लिए खेलने वाली कविता को गांव के लोगों से है नाराजगी

कविता का स्वागत करती ग्रामीण महिलाओं का फाइल फोटो।
वेट लिफ्टिंग की खिलाड़ी कविता के पूरा ही कॅरियर का सफर काफी कठिनाइयों से भरा रहा है। अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कविता को कांटों भरे मार्ग से गुजरना पड़ा लेकिन फिर भी उसका हौंसला नहीं टूटा लेकिन उसके परिवार के साथ हुई एक घटना ने कविता के दिल में गांव के लोगों के प्रति नाराजगी जरूर पैदा कर दी। कविता का कहना है कि वर्ष 2010 में उसके परिवार में एक ऐसी घटना घटी कि जिसने उसके परिवार को मुसीबत में डाल दिया लेकिन उसके गांव मालवी के लोगों ने इस मुसीबत की घड़ी में उसके परिवार का साथ नहीं दिया। कविता का कहना है कि वह अपने लिये नहीं बल्कि अपने गांव, जिले, प्रदेश और देश के लिए खेलती है। कविता का कहना है कि जो व्यक्ति अपने निजी हित को छोड़कर गांव, जिले, प्रदेश और देश के लिए खेल रहा है और मुसीबत के समय में यदि उसके गांव के लोग ही उसका साथ छोड़ दें तो ऐसे में गांव के लोगों के प्रति दिल में थोड़ी नाराजगी तो होती ही है।









सोमवार, 16 जून 2014

जहरीले हो रहे खान-पान व दूषित हो रहे वातावरण से हर जीव हो रहा प्रभावित

दुनिया को जहर से मुक्ति दिलानी है तो किसानों को कीटों की तरफ बढ़ाना होगा दोस्ती का हाथ
निडाना में शुरू हुई महिला किसान खेत पाठशाला

नरेंद्र कुंडू 
जींद। राष्ट्रीय समाकेतिक कीट प्रबंधन केंद्र नई दिल्ली (एनसीआईपीएम), कृषि विभाग तथा कीट कमांडो किसानों के सौजन्य से सोमवार को निडाना गांव में पहली महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला का शुभारंभ कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल की पत्नी मैडम कुसम दलाल ने किया। पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर कृषि विभाग के उप-निदेशक डॉ. रामप्रताप, बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा, खंड कृषि अधिकारी राजेंद्र शर्मा, एडीओ डॉ. कमल सैनी, डॉ. रवि कादयान, डॉ. शलैंद्र चहल भी विशेष रूप से मौजूद रहे।

मैडम कुसम दलाल ने पाठशाला में आए किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम अब एक क्रांति का रूप ले चुकी है। क्योंकि जहरीले हो रहे खान-पान तथा दूषित हो रहे वातावरण से हर जीव प्रभावित हो रहा है। उन्होंने कहा कि शुद्ध भोजन तथा स्वच्छ वातावरण प्रत्येक जीव की पहली जरूरत है और यह जरूरत तभी पूरी हो सकती है जब किसान फसल में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने की बजाए कीटों की तरफ मित्रता का हाथ बढ़ाकर जहरमुक्त खेती को बढ़ावा देगा। डॉ. रामप्रताप सिहाग तथा कुलदीप ढांडा ने कहा कि इस धरती पर जितने भी जीव हैं उन सबका इस सृष्टि को चलाने में अहम योगदान है। इसलिए फसल में मौजूद कीटों का भी फसल के लिए बहुत महत्व है। जब तक हम कीटों को पहचान कर कीटों के क्रियाकलापों को नहीं समझेंगे तब तक हम इनका महत्व नहीं समझ पाएंगे। पाठशाला के पहले दिन कीटाचार्य महिलाओं ने अन्य महिला किसानों के साथ ग्रुप बनाकर फसल का अवलोकन किया और कपास के छोटे-छोटे पौधों पर मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान की। फसल के अवलोकन के दौरान महिला किसानों ने फसल में सफेद मक्खी, चुरड़ा तथा हरा तेला नमक कीट दिखाई दिये लेकिन अभी तक यह कीट फसल में नुकसान पहुंचाने के आॢथक स्तर से काफी नीचे थे। मास्टर ट्रेनर महिला किसान मीना, सुषमा, प्रमिला, मनीषा, सविता तथा शीला ने अन्य महिला किसानों को सफेद मक्खी, चुरड़ा तथा हरे तेले के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

मांसाहारी कीटों के नाम पर बनाए महिलाओं के ग्रुप


पाठशाला में आने वाली महिला किसानों को कीटों के बारे में बारीकी से जानकारी देने के लिए पांच-पांच महिलाओं के 6 ग्रुप बनाए गए। प्रत्येक ग्रुप के साथ एक-एक मास्टर ट्रेनर महिला किसान की ड्यूटी लगाई गई। महिलाओं के गु्रप के नाम मांसाहारी कीट हथजोड़ा, लेडी बिटल, क्राइसोपा, परभक्षी बुगड़े, भिरड़-ततैये तथा परमेटिया के नाम से रखे गए।

20 सप्ताह तक चलेगी पाठशाला

सोमवार से निडाना गांव में शुरू हुई महिला किसानों की पाठशाला 20 सप्ताह तक चलेगी। सप्ताह के हर सोमवार को निडाना गांव के बस स्टॉप के पास स्थित खेत में इस पाठशाला का आयोजन किया जाएगा। इस पाठशाला में ललितखेड़ा, निडाना, निडानी तथा रधाना की महिला किसान भाग लेंगी।

डेढ़ एकड़ में कपास की फसल पर होगा शोध

महिला किसान खेत पाठशाला के दौरान राष्ट्रीय समाकेतिक कीट प्रबंधन केंद्र नई दिल्ली (एनसीआईपीएम) की टीम द्वारा कीटों से फसल पर पडऩे वाले प्रभाव पर शोध भी किया जाएगा। इसके लिए एनसीआईपीएम की टीम ने यहां पर डेढ़ एकड़ जमीन पर अपनी निगरानी में फसल की बिजाई करवाई है। यहां आधा एकड़ में एनसीआईपीएम की टीम अपने तरीके से कपास की खेती करवाएगी, आधा एकड़ में कीट कमांडो किसान अपने तरीके से खेती करेंगे तथा आधा एकड़ में किसान अपने तरीके से खेती करेगा। फसल की कटाई के बाद फसल के उत्पादन की समीक्षा की जाएगी और उसके परिणामों पर भी गहन मंथन किया जाएगा।




फसल के अवलोकन के बाद चार्ट पर आंकड़े एकत्रित करती महिला किसान।  

कपास की फसल में सुक्ष्मदर्शी की सहायता से कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।




शुक्रवार, 13 जून 2014

जींद जिले के किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे कीट कमांडो किसान

जिले के पांच ब्लॉकों में चलेंगी किसान खेत पाठशालाएं
कृषि विभाग और कीट कमांडो किसान चलाएंगे पाठशालाएं

नरेंद्र कुंडू 
जींद। थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जिले के लगभग एक दर्जन गांवों में चल रही कीट ज्ञान की मुहिम अब जिले के दूसरे गांवों में भी फैलेगी। कीट ज्ञान की इस मुहिम से जुड़े कीट कमांडो किसान कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर जिले के दूसरे गांवों के किसानों को भी कीटों का ज्ञान देंगे। इसके लिए इस बार कृषि विभाग ने जिले के कॉटन बैल्ट के पांच ब्लॉकों का चयन किया है। कृषि विभाग द्वारा इन पांचों ब्लॉकों में सप्ताह में एक दिन किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया जाएगा। सभी पाठशालाओं के लिए अलग-अलग दिन निर्धारित किए जाएंगे। कीट कमांडो किसान इन पाठशालाओं में मास्टर ट्रेनर के तौर पर शिरकत कर किसानों को कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में बारिकी से जानकारी देंगे। इन पाठशालाओं की एक खास बात यह भी होगी कि इन पांच पाठशालाओं में एक पाठशाला महिला किसानों की भी होगी।
फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशकों के कारण दूषित हो रहे वातावरण तथा खान-पान को दूषित होने से बचाने के लिए वर्ष 2008  में जिले के निडाना गांव में डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में निडाना तथा आस-पास के गांवों के किसानों ने कीट ज्ञान की मुहिम की शुरूआत की थी। यहां के किसानों ने फसलों में पाए जाने वाले शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों की पहचान कर फसल पर पडऩे वाले उनके प्रभाव पर भी बारिकी से शोध किया। किसानों द्वारा पिछले 5 -6  वर्षों से कीटों पर किये जा रहे शोध में एक मुख्य बात यह निकलकर सामने आई की किसानों द्वारा कीटनाशकों का प्रयोग कर बिना वजह बेजुबान कीटों को मारा जा रहा है। जबकि इन कीटों को मारने की कोई जरूरत ही नहीं है। क्योंकि पौधे समय-समय पर अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर अपनी सुरक्षा के लिए कीटों को बुलाते हैं और कीट तो फसल का उत्पादन बढ़ाने में मुख्य सहायक की भूमिका निभाते हैं। ऐसे में किसान बिना जानकारी के इन बेजुबान कीटों की हत्या कर पाप के भागी बन रहे हैं और साथ की साथ वातावरण तथा खान-पान को भी जहरीला बना रहे हैं। अब इन किसानों ने इसी मुहिम के साथ जिले के अन्य किसानों को भी जोडऩे का निर्णय लिया है। इस मुहिम को जिले के अन्य किसानों तक पहुंचाने में कृषि विभाग इनका माध्यम बना है। कृषि विभाग द्वारा जिले के पांच ऐसे ब्लॉकों का चयन किया गया है जहां कपास का उत्पादन होता है। कृषि विभाग इन पांचों ब्लॉकों में सप्ताह में एक-एक दिन किसाना पाठशालाओं का आयोजन करेगा और यह पाठशालाएं लगभग 18 से 20 सप्ताह तक चलेंगी। सभी पाठशालाओं के लिए अलग-अलग दिन निर्धारित किये जाएंगे। इसकी एक खास बात यह भी रहेगी कि इन पांच पाठशालाओं में एक पाठशाला महिलाओं की भी चलाई जाएगी। इसके लिए कृषि विभाग ने पूरी योजना तैयार कर उच्च अधिकारियों से भी इसकी मंजूरी ले ली है जल्द ही इस योजना को अमलीजामा पहना दिया जाएगा।

किसानों के साथ सांझा करेंगे अपने अनुभव

किसान खेत पाठशालाओं में कीट कमांडो किसान मास्टर ट्रेनर के तौर पर शिरकत करेंगे। इस दौरान उनके साथ उस ब्लॉक के दो कृषि अधिकारी भी मौजूद रहेंगे। पाठशाला में मास्टर ट्रेनर किसान अन्य किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा करेंगे और किसानों को फसल में पाए जाने वाले मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। इस दौरान कीट कमांडो किसान अन्य किसानों को यह भी बताएंगे कि कीट आखिर हमारी फसल में क्यों आते हैं और यह किस तरह से उत्पादन बढ़ाने में सहायक हैं।

कहां-कहां चलेंगे किसान खेत पाठशालाएं
ब्लॉक का      नाम गांव का नाम

जींद निडाना (महिला पाठशाला)
जुलाना किनाना
अलेवा अलेवा
उचाना बड़ौदा
सफीदों मुआना

 किसान खेत पाठशाला का फाइल फोटो। 



सोमवार, 26 मई 2014

सावधान ! सस्ते के नाम पर परोसा जा रहा है जहर

बेलगिरी तथा शिकंजी के नाम पर पिलाया जा रहा कैमिकलयुक्त जूस
पाऊडर से तैयार किया जाता है बेलगिरी तथा आम का जूस
प्रवासी मजदूरों ने डाला शहर में डेरा, जगह-जगह लगाई जूस की रेहडिय़ां
स्मेक में प्रयोग होने वाले केमिकल से तैयार होता है बेलगिरी का जूस

नरेंद्र कुंडू 
जींद। सावधान! यदि आप गर्मी के मौसम में बेलगिरी, शिकंजी, मैंगोशेक से गला तर करने की सोच रहे हैं तो आपको सतर्क रहने की जरूरत है। जूस के नाम पर आपको खुले में जहर पिलाया जा रहा है। इन दिनों शहर में खुलेआम लोगों को केमिकल युक्त जूस पिलाकर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है लेकिन स्वास्थ्य विभाग इस तरफ कोई कदम नहीं उठा रहा है। शहर में भारी संख्या में प्रवासी मजदूरों ने डेरा
डाला हुआ है जो खुलेआम इस काम को अंजाम दे रहे हैं। यह प्रवासी मजदूर लोगों को यह जहर पिलाकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।

फलों की कीमत ज्यादा लेकिन जूस की कीमत कम

दुकानदार द्वारा केमिकल से तैयार करके दिखाया गया केमिकलयुक्त जूस।
बाजार में इन दिनों बेलगिरी 60  रुपये किलो तथा आमों की कीमत 80 से 100 रुपये किलो बिक रहे हैं। ऐसे में शहर में महज 10 रुपये में बेलगिरी का जूस या मैंगो शेक पिलाना कई तरह के सवालों को जन्म देता है। घरों में एक किलो बेलगिरी तथा आम में मुश्किल से तीन या चार गिलास जूस बनता है। ऐसे में इतने तामझाम के साथ यह रेहड़ी चालक कैसे दुकान चला रहे हैं। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि यह रेहड़ी चालक ज्यादा कीमत पर फल खरीदकर कम कीमत में लोगों को कैसा जूस पिला रहे हैं।

खुद देखा केमिकल से जूस तैयार करने का लाइव

खुद अपनी आंखों से केमिकल से जूस तैयार करने का लाइव देखा।
एक रेहड़ी चालक ने पॉलीथिन से एक सफेद पाऊडर नूमा केमिकल निकाला और थोड़ा सा पाऊडर संवाददाता के हाथ पर रखकर पाऊडर पर थोड़ा सा पानी डालकर पाऊडर को उंगली से रगडऩे को कहा, जैसे-जैसे संवाददाता ने पाऊडर को उंगली से रंगड़ा तो पाऊडर ने चिपचिपे तरल पदार्थ का रूप धारण कर लिया। इसके बाद इसको बेलगिरी व मेंगोशेक का रूप देने के लिए इसमें थोड़ा सा पीला कलर डाला गया। महज पांच मिनट की प्रक्रिया के बाद बेलगिरी का जूस तैयार था।

स्मैक में प्रयोग होने वाले पाऊडर से तैयार होता है जूस

बेलगिरी तथा मैंगोशेक तैयार करने में प्रयोग होने वाला यह कैमिकल ज्यादातर साहरनपुर (यूपी) से सप्लाई होता है। सूत्रों की मानें तो इस केमिकल से स्मैक पर पॉलिस चढ़ाई जाती है लेकिन यहां पर इस पाऊडर का इस्तेमाल बेलगिरी का जूस तथा मेंगो शेक तैयार करने में किया जाता है। इस पाऊडर को पानी के बर्तन में घोला जाता है। इससे यह जूस तैयार हो जाता है और इस जूस को बेलगिरी या मेंगो शेक का रंग देने के लिए इसमें पीले रंग का पाऊडर मिलाया जाता है। इतना ही नहीं जूस को मीठा करने के लिए चीनी का प्रयोग नहीं किया जाता। चीनी के स्थान पर जूस को स्क्रीन नामक केमिकल का प्रयोग किया जाता है। यह केमिकल सेहत के लिए बेहद खतरनाक माना जाता है। यहां एक खास बात यह भी है कि इस समय सड़क के किनारे जूस की रेहडिय़ां लगाने वालों में सबसे ज्यादा संख्या यूपी के प्रवासी मजदूरों की है।
वह केमिकल जिससे बेलगिरी का जूस तथा मेंगो शेक तैयार किया जाता है।

केमिकल का जूस पिलाकर ले रहे हैं मोटा मुनाफा

एक किलो पाऊडर से 80 लीटर केमिकल युक्त जूस तैयार हो जाता है और एक किलो केमिकल की कीमत महज 200 से 400 रुपये होती है। 80 लीटर जूस में बर्फ इत्यादि मिलाकर यह रेहडी चालक 150 ग्राम के लगभग 550  गिलास जूस तैयार कर लेते हैं। एक गिलास जूस की कीमत 10 रुपये होती है। इस प्रकार यह रेहड़ी चालक महज 200 से 400 रुपये खर्च कर 5500 रुपये की आमदनी करते हैं। जूस को मीठा करने के लिए इसमें चीनी के स्थान पर स्क्रीन नामक केमिकल मिलाया जाता है। एक किलो स्क्रीन की कीमत महज 150 रुपये है और एक किलो स्क्रीन से लगभग 40 लीटर पानी मीठा हो जाता है। इस प्रकार यह रेहड़ी चालक लोगों को खुलेआम जहर पिलाकर मोटा मुनाफा कमाते हैं।

फूड सेफ्टी इंस्पेक्टर एनडी शर्मा से सीधे सवाल

सवाल : शहर में खुलेआम जूस की आड़ में लोगों को जहर परोसा जा रहा है आप कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे।
जवाब : अभी मैं बाहर गया हूं। वापिस लौटने के बाद टीम के अन्य सदस्यों से इस बारे में बातचीत कर आगामी कार्रवाई की जाएगी।
सवाल : अभी तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई।
जवाब : इस बारे में अभी तक किसी ने उन्हें शिकायत नहीं की थी।
सवाल : कुछ दुकानदारों का कहना है कि उन्होंने कई बार इस मामले में शिकायत की है।
जवाब : अभी तक मेरे नोटिस में मामला नहीं आया अगर शिकायत आई है तो इसके बारे में टीम के दूसरे सदस्यों से पूछा जाएगा।
सवाल : तो अब क्या कार्रवाई होगी।
जवाब : कल से टीम के दूसरे सदस्यों के साथ प्लानिंग तैयार कर चेकिंग अभियन चलाया जाएगा।


शहर में सड़क किनारे लगी बेलगिरी के जूस की रेहडिय़ां। 

शहर में सड़क किनारे लगी बेलगिरी के जूस की रेहडिय़ां। 

शहर के रानी तालाब पर लगी शिकंजी की रेहड़ी। 






बुधवार, 21 मई 2014

निडाना गांव में कीटों पर शोध के लिए जमीन फिर तैयार

 डेढ़ एकड़ में एनसीआईपीएम के वैज्ञानिक व कीट कमांडों किसान करेंगे शोध
कपास की फसल पर होगा शोध 

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले के निडाना गांव के खेतों में एक बार फिर से कीटों पर शोध के लिए जमीन तैयार हो गई है। इस बार राष्ट्रीय केंद्र समाकेती कीट प्रबंधन (एनसीआईपीएम) के कृषि वैज्ञानिक यहां कीटों पर शोध करेंगे। इससे पहले वर्ष 2008 में कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल ने यहां पर कीटों पर शोध की शुरूआत की थी। एनसीआईपीएम के कृषि वैज्ञानिकों ने निडाना में डेढ़ एकड़ जमीन पर शोध प्लांट लगाने का निर्णय लिया है। डेढ़ एकड़ जमीन में आधा-आधा एकड़ के तीन अलग-अलग पार्ट तैयार किये गए हैं, जिनमें एनसीआईपीएम के कृषि वैज्ञानिक अपनी निगरानी में कपास की फसल तैयार करवाएंगे। आधा एकड़ में एनसीआईपीएम के कृषि वैज्ञानिक अपने तरीके से कपास की फसल तैयार करवाएंगे और आधा एकड़ में कीट कमांडो किसान अपने तरीके से फसल तैयार करेंगे तथा आधा एकड़ में आम किसान द्वारा कपास की फसल की तैयार करवाई जाएगी। बाद में तीनों प्लांटों के उत्पादन के आंकड़े एकत्रित कर कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कीट ज्ञान क्रांति की इस मुहिम पर आगामी रणनीति तैयार की जाएगी।

कब शुरू हुई थी निडाना गांव में कीटों पर शोध की शुरूआत

फसलों में अंधाधुंध प्रयोग हो रहे कीटनाशकों के कारण दूषित हो रहे खान-पान को बचाने के लिए कृषि विभाग में एडीओ के पद पर कार्यरत डॉ. सुरेंद्र दलाल ने वर्ष 2008 में निडाना गांव के खेतों में पहली बार कीटों पर शोध कर एक नहीं पहल शुरू की थी। 2008 के बाद वर्ष 2010 में डॉ. दलाल ने महिलाओं को भी इस मुहिम में शामिल किया था। इसके बाद वर्ष 2012 में डॉ. दलाल ने इस मुहिम से पूरे प्रदेश के किसानों को अवगत करवाने के लिए खाप पंचायतों को इस मुहिम से जोड़ा था। प्रदेशभर की खाप पंचायतों के प्रतिनिधियों ने हर सप्ताह निडाना गांव के खेतों में पहुंचकर शोध पर कड़ी निगरानी रखी थी। इसके बाद वर्ष 2013 में डॉ. सुरेंद्र दलाल के देहांत के बाद कीट कमांडों किसानों ने इस मुहिम को आगे बढ़ाया और इन किसानों की मुहिम की गूंज दिल्ली तक जा पहुंची। अब एनसीआईपीएम के कृषि वैज्ञानिकों ने भी इस मुहिम की गहराई तक जाने के लिए कीटों पर शोध शुरू करने का निर्णय लिया है। निडाना गांव के खेतों में लगने वाले शोध प्लांट में कृषि वैज्ञानिक फसलों के उत्पादन पर कीटों का क्या प्रभाव होता है तथा कीट फसल में क्यों आते हैं पर गहराई से मंथन किया जाएगा।

आधा-आधा एकड़ के तीन शोध प्लांट किये गए हैं तैयार

एनसीआईपीएम के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कीटों पर शोध के लिए निडाना गांव के खेतों में डेढ़ एकड़ जमीन पर आधा-आधा एकड़ के तीन प्लांट तैयार किये गए हैं। एक प्लांट किसान को दिया गया है। इस प्लांट में किसान अपने तरीके से कपास की फसल तैयार करेगा। आधा एकड़ पर कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े कीट कमांडो किसान अपने तरीके से खेती करेंगे तथा आधा एकड़ में कृषि वैज्ञानिक अपने तरीके से किसान से कपास की खेती करवाएंगे और हर सप्ताह इन तीनों प्लांटों में खड़ी कपास की फसल में कीटों की क्या स्थिति है का आंकड़ा तैयार किया जाएगा। अंत में तीनों प्लांटों से मिलने वाली पैदावार की रिपोर्ट तैयार कर आगामी निर्णय लिया जाएगा।
 निडाना गांव में डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में चल रही किसान खेत पाठशाला का फाइल फोटो। 





मंगलवार, 20 मई 2014

बारिश के बाद बढ़ी कपास के बीजों की काला बाजारी

 खुलेआम किसानों को लूट रहे बीज विक्रेता
 कपास के बीजों में प्रति पैकट हुई 100 से 200 रुपये की बढ़ौतरी
 हर रोज जिले में कपास के बीज का होता है 70 से 80 लाख का कारोबार

नरेंद्र कुंडू 
जींद। पिछले सप्ताह हुई बरसात के बाद से कपास की बिजाई के कार्य ने रफ्तार पकड़ ली है। तापमान में गिरावट होने के साथ ही बीजों के रेटों में बढ़ौतरी हो गई है। कपास के बीजों की मांग बढऩे के साथ बीज विक्रताओं ने बीजों की काला बाजारी शुरू कर दी है। बीज विक्रेता किसानों को बाजार में बीज की कमी होने का भय दिखाकर किसानों से मुंह मांगे दाम वसूल रहे हैं। कपास की बिजाई का सीजन अंतिम चरण में होने के कारण किसानों को मजबूरन महंगे दामों पर बीज खरीद कर बिजाई करनी पड़ रही है लेकिन बीज विक्रेताओं की खुली मनमानी पर रोक लगाने के लिए कृषि विभाग द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। कृषि विभाग की सुस्त कार्य प्रणाली के चलते बीज विक्रेता मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।
जींद जिले में लगभग 62 हजार हैक्टेयर में कपास की फसल की बिजाई होती है। कृषि विभाग के नियमों के अनुसार अप्रैल के अंतिम सप्ताह से २५ मई तक कपास की बिजाई का सबसे उपयुक्त समय होता है। इस समय किसान कपास की बिजाई में पूरी तरह से व्यस्त हैं। पिछले सप्ताह हुई बरसात ने कपास की बिजाई के कार्य को रफ्तार देने का काम किया है। बरसात के साथ ही जिले में कपास की बिजाई के कार्य ने रफ्तार पकड़ी है। जिन किसानों ने बरसात से कुछ दिन पहले ही कपास की बिजाई की थी बरसात के कारण वह फसल खराब होने के कारण किसानों को दोबारा से कपास की बिजाई करनी पड़ रही है। कपास की बिजाई का सीजन अंतिम चरण में होने के कारण बाजार में कपास के बीजों की मांग लगातार बढ़ रही है। बीजों की बढ़ती मांग को देखते हुए बीज विक्रेताओं ने भी बीजों की काला बाजारी शुरू कर दी है। बीज विक्रेता किसानों को बीज की कमी का भय दिखाकर मुंह मांगे रेटों पर बीज बेच रहे हैं। एक सप्ताह पहले तक जिन बीजों की कीमत 800  से 900 तक के बीच थी, अब वह बीज बाजार में 1000  से 1100 रुपए तक प्रति पैकट बिक रहा है। बिजाई का अंतिम चरण होने के कारण हर रोज जिले में 70  से 80  लाख रुपये का कारोबार हो रहा है।
 गांव ईंटल कलां निवासी किसान राजकुमार

कपास की बिजाई के लिए उसने 602 बीज की जरूरत थी लेकिन बाजार में यह बीज नहीं मिल रहा है। बीज विक्रेता कंपनी से इस बीज की सप्लाई नहीं आने की बात कह रहे हैं। 602  बीज नहीं मिलने के कारण उसे मजबूरीवश दूसरी कंपनी का बीज खरीद कर बिजाई करनी पड़ रही है लेकिन दूसरी कंपनी का बीज भी पिछले सप्ताह की बजाए 100  से 200 रुपये ज्यादा कीमत पर मिल रहा है।
राजकुमार किसान
गांव ईंटल कलां

उसे कपास की बिजाई के लिए रासी 776  के बीज की जरूरत थी लेकिन उसे बाजार में यह बीज नहीं मिल रहा है। इस कारण उसे मजबूरीवश दूसरी कंपनी का बीज खरीदना पड़ रहा है। पिछले सप्ताह की बजाए इस सप्ताह बीजों के रेटों में काफी बढ़ौतरी हुई है।
 गांव बिरौली निवासी किसान कर्मबीर
कर्मबीर किसान
गांव बिरौली

25 तक होता है कपास की बिजाई का सीजन

कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो अप्रैल के अंतिम सप्ताह से 25  मई तक कपास की बिजाई का सबसे उपयुक्त समय होता है। इस बार कपास की बिजाई के दौरान बीच-बीच में हो रही बारिश के कारण इस बार काफी किसानों की कपास की फसलें खराब हो गई हैं। इस कारण किसानों को दोबारा से बिजाई करनी पड़ रही है। दोबारा से बिजाई किये जाने तथा बिजाई के सीजन का अंतिम चरण चलने के कारण बाजार में बीजों की मांग लगातार बढ़ रही है।

बीजों की काला बाजारी को रोकने के लिए विभाग द्वारा बीजों की दुकानों की जांच की जा रही है। 16 मई को मतगणना होने के चलते विभाग के कुछ अधिकारियों व कर्मचारियों की ड्यूटी मतगणना में लगाए जाने के कारण उन्हें एक दिन के लिए यह अभियान रोकना पड़ा है। मतगणना के बाद से इस अभियान को दोबारा से शुरू किया जाएगा।
डॉ. युद्धवीर सिवाच
उपमंडल कृषि अधिकारी, जींद





कीट ज्ञान की मुहिम की शुरूआत कर डॉ. दलाल ने दिया एक नई क्रांति को जन्म

कीटों की मास्टरनियों ने शहर के लोगों को भी पढ़ाया कीट ज्ञान का पाठ
कहा, जहरमुक्त खान-पान मनुष्य की प्राथमिकता

नरेंद्र कुंडू 
जींद। थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए डॉ. सुरेंद्र दलाल ने कीट ज्ञान की मुहिम शुरू कर एक नई क्रांति को जन्म दिया है। आज जहरमुक्त खान-पान प्रत्येक व्यक्ति की जरूरत है। जहरीले खान-पान के कारण आज मनुष्य निरंतर भिन्न-भिन्न बीमारियों की चपेट में आ रहा है। यह बात पुलिस अधीक्षक बलवान सिंह राणा ने रविवार को डॉ. सुरेंद्र दलाल की पुण्यतिथि पर श्रीराम स्कूल में आयोजित रक्तदान शिविर में बतौर मुख्यातिथि बोलते हुए कही। कार्यक्रम में सीटीएम सतबीर लोहचब, डीएसपी धर्मबीर पूनिया, हिसार डीएचओ डॉ. बलजीत भ्याण, मैडम कुसुम दलाल, बराह तपा प्रधान कुलदीप ढांडा, डॉ. राजेश भोला, श्री राम विद्या मंदिर स्कूल के चेयरमैन प्रदीप भोला, प्राचार्या सविता भोला, चुनाव तहसीलदार रवि शर्मा, राज सिंह दलाल, विजय दलाल, सामान्य अस्पताल के ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. जेके मान, शहर थाना प्रभारी कमलदीप, डॉ. वीरेंद्र मलिक, आवाज जन-जन की संगठन के अध्यक्ष अरविंद मलिक, संरक्षक अनिल देशवाल मौजूद थे। शिविर में 70 यूनिट रक्तदान हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ कीटाचार्य महिलाओं ने 'हे बीटल म्हारी मदद करो हैमनै तेरा एक सहारा है' गीत से की। कार्यक्रम में स्कूली बच्चों ने रंगारंग कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये।
प्रगतिशील किसान क्लब के प्र्रधान कुलदीप सिंह ढांडा ने कहा कि डॉ. सुरेंद्र दलाल ने कृषि विभाग में एडीओ रहते हुए जींद जिले से कीट प्रबंधन की मुहिम शुरू की। धीरे-धीरे यह मुहिम पंजाब तक पहुंच गई। पिछले साल राजपूरा में कीट प्रबंधन पर आयोजित कार्यक्रम में पंजाब के किसान भी कीट प्रबंधन के महत्व को
कार्यक्रम में प्रस्तुति देती छात्राएं। 
स्वीकार चुके हैं।

मुख्यमंत्री के सामने यह रखी जाएंगी मांग

डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम को पूरे प्रदेश में फैलाने के लिए कैंप में एनजीओ तथा कीटाचार्य किसानों और डॉ.सुरेंद्र दलाल के माध्यम से मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भेजने का निर्णय लिया गया। ज्ञापन में चार मांगें प्रमुख रूप से रखी जाएंगी। जींद में चल रहे किसान प्रशिक्षण केंद्र का नाम डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम पर रखा जाए, जिला कृषि उप-निदेशक कार्यालय में डॉ. सुरेंद्र दलाल की प्रतिमा लगाई जाए, डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से प्रदेश स्तर पर कृषि पुरस्कार शुरू किया जाए तथा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के माध्यम से कीट ज्ञान क्रांति की इस मुहिम को आगे बढ़ाया जाए।
कार्यक्रम में गीत प्रस्तुत करती महिला किसान। 

क्या है कीट ज्ञान की मुहिम 

कीटाचार्य किसानों का मानना है कि फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाय कीटों की पहचान करने की जरूरत है। क्योंकि पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर कीटों को अपनी सुरक्षा के लिए बुलाते हैं। महिला किसान राजवंती, अंग्रेजो, कमलेश, बिमला, गीता, सविता, शीला का मानना है कि किसान फसल में कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर फसल के के खर्च को कम कर सकते हैं। अच्छा उत्पादन लेने के लिए कीटनाशकों की नहीं बल्कि पौधों को पर्याप्त खुराक की जरूरत होती है। इसलिए किसानों को चाहिए कि ढाई किलो यूरिया, ढाई किलो डीएपी तथा आधा किलो जिंक का 100 लीटर पानी में घोल तैयार कर हर दस दिन बाद फसलों पर इसका छिड़काव करें। किसानों ने बताया कि इस एक घोल पर महज 83 रुपये का खर्च आता है जबकि कपास के एक स्प्रे पर कम से कम 400 रुपये का खर्च आता है। वहीं धान की फसल के एक स्प्रे पर 700 रुपये का खर्च आता है। किसानों ने बताया कि इस स्प्रे के प्रयोग से फसल की क्वालिटी भी अच्छी आती है और खर्च भी कम होता है। इस बार जींद जिले में लगभग एक हजार एकड़ में कपास तथा लगभग 500 एकड़ में धान की फसल बिना पेस्टिसाइड के पैदा की गई थी।
रक्तदाताओं को बैज लगाती मैडम कुसुम दलाल तथा साथ मौजूद पुलिस अधीक्षक बलवान सिंह राणा।


कुसुम दलाल को स्मृति चिह्न भेंट करती स्कूल प्राचार्या सविता भोला तथा एनजीओ के पदाधिकारी। 









शनिवार, 17 मई 2014

...और आसान हुई रामकिशन की वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज करवाने की डगर

कुरुक्षेत्र म्यूजियम के प्रतिनिधि ने किया विश्वकीर्तिमान के लिए निर्मित केतली का निरीक्षण

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कस्बे के गांव कालवा निवासी मूर्ति कलाकार मास्टर रामकिशन द्वारा वर्ल्ड रिकार्ड के लिए तैयार की गई आठ फीट की केतली के निरीक्षण के लिए रविवार को कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के धरोहर म्यूजियम का एक प्रतिनिधि तथा सफीदों से नोटरी पब्लिक  कालवा पहुंचे और कालवा में निर्मित इस विश्वकीर्तिमान का निरीक्षण किया। मास्टर रामकिशन द्वारा वर्ल्ड रिकार्ड के लिए तैयार की गई आठ फीट की केतली को देखकर धरोहर म्यूजियम के सुपरवाइजर डॉ. कुलदीप आर्य तथा नोटरी पब्लिक एडवोकेट विजय ने मास्टर रामकिशन की पीठ थपथपाते हुए उनकी इस कलाकारी को वर्ल्ड रिकार्ड के योग्य बताया। दोनों अधिकारियों ने मास्टर रामकिशन के नाम यह रिकार्ड दर्ज करवाने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स लंदन के लिए अपनी गवाही देने की सहमती भी दे दी। म्यूजियम के सुपरवाइजर तथा नोटरी पब्लिक द्वारा केतली के निरीक्षण के बाद वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज करवाने के लिए गवाह के तौर पर सहमति दिए जाने के बाद वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज करवाने की मास्टर रामकिशन की यह डगर अब काफी आसान हो गई है। रामकिशन वल्र्ड रिकार्ड में नाम दर्ज करवाने से महज चंद कदम की दूरी पर है।

6 घंटे में तैयार की 8 फीट की चाय की केतली

डीएवी स्कूल थर्मल (पानीपत) में फाइन आर्ट के अध्यापक के तौर पर कार्य कर रहे गांव कालवा निवासी मास्टर रामकिशन ने छह घंटे की मेहनत के बाद आठ फीट दो इंच तथा 40 किलोग्राम की चाय की केतली तैयार की है। रामकिशन ने छह घंटे में आठ फीट दो इंच की चाय की केतली तैयार कर चाइना के रिकार्ड को तोड़ दिया है। इससे पहले हस्तकला में यह रिकार्ड चाइना के नाम था। चाइना के सनबाओ क्सू ने 2006 में 5 फुट 10 इंच ऊंची तथा 60 किलोग्राम की केतली बनाकर यह रिकार्ड अपने नाम किया था।

12 सप्ताह तक गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स लंदन को भेजना है पूरा रिकार्ड

मास्टर रामकिशन द्वारा गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स लंदन में आठ फीट की केतली के निर्माण का रिकार्ड अपने नाम करवाने के लिए 12 सप्ताह के अंदर-अंदर पूरा रिकार्ड तैयार कर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स लंदन को भेजना है। इसके लिए रामकिशन को केतली के निर्माण पूरी वीडियो रिकर्डिंग, नोटरी पब्लिक तथा आर्ट से सम्बंधित एक अधिकारी की गवाही की सभी औपचारिकता पूरी करवाकर पूरा रिकार्ड तैयार कर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड लंदन को भेजना है।

यदि रामकिशन चाहे तो यह कलाकृति बन सकती है म्यूजियम की शोभा

मास्टर रामकिशन का काम वास्तव में काबिले तारीफ है। रामकिशन ने मिट्टी से आठ फीट की केतली तैयार कर अपनी अद्भूत कला का परिचय दिया है। रामकिशन का नाम वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज होने से प्रदेश तथा देश का गौरव बढ़ेगा। यदि रामकिशन अपनी इस कलाकृति से म्यूजियम की शोभा बढ़ाना चाहेगा तो वह इसके लिए तैयार हैं। इसके लिए दो प्रक्रियाएं हैं। पहली यह कि इस कलाकृति को म्यूजियम खरीद ले या फिर कलाकार खुद इसे म्यूजियम को समर्पित कर दे। वैसे तो कला की कोई कीमत नहीं होती यदि फिर भी यूनिवर्सिटी  इस केतली को खरीदना चाहेगी तो इसके लिए एक कमेटी का गठन कर केतली की कीमत निर्धारित की जाएगी। दूसरा रामकिशन इस कलाकृति को खुद म्यूजियम को डोनेट कर सकता है। यदि रामकिशन इसे म्यूजियम को डोनेट करता है तो म्यूजियम में रामकिशन के नाम से इस केतली की प्रदर्शनी लगाई जाएगी और रामकिशन को म्यूजियम की आजीवन सदस्या प्रदान की जाएगी। केतली का आकार बड़ा होने के कारण म्यूजियम में इस केतली को रखने के लिए अलग से शैलटर बनवाना पड़ेगा।
डॉ. कुलदीप आर्य, सुपरवाइजर
धरोहर म्यूजियम, कुरुक्षेत्र  

मास्टर रामकिशन द्वारा तैयार की गई केतली का निरीक्षण करते म्यूजियम के सुपरवाइजर डॉ. कुलदीप आर्य व अन्य।

केतली के निर्माण के बारे में मास्टर रामकिशन से जानकारी लेते म्यूजियम के सुपरवाइजर डॉ. कुलदीप आर्य।




विश्व कीर्तिमान में नहीं प्रशासन की रुचि

प्रशासनिक उदासीनता का शिकार हो रहा कालवा का मूॢत कलाकार
कागजी कार्रवाई पूरी नहीं होने के कारण अभी तक गिनीज बुक में दर्ज नहीं हो पाया नाम
कालवा के रामकिशन ने ६ घंटे में बनाई आठ फिट की केतली

नरेंद्र कुंडू
जींद। हस्तकला में चाइना का रिकार्ड तोड़कर विश्व के मानचित्र पर जींद जिले, हरियाणा प्रदेश और देश का नाम सुनहरी अक्षरों में दर्ज करवाने के प्रयास में लगा कालवा गांव का मूर्ति कलाकार रामकिशन प्रशासनिक उदासीनता के कारण अभी तक गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज नहीं करवा पाया है। विश्व कीर्तिमान स्थापित करने जा रहे कलाकार रामकिशन की राह में प्रशासन की यह उदासीनता रोड़ा बन गई है। प्रशासन द्वारा रामकिशन के इस कार्य में किसी तरह की रुचि नहीं दिखाई जा रही है। मूर्ति कलाकार रामकिशन ने गत 26 अप्रैल को 6 घंटे की मेहनत के बाद आठ फीट 2  इंच तथा 76 किलोग्राम की चाय की केतली तैयार कर चाइना के रिकार्ड को तोड़ दिया है। इससे पहले हस्तकला में यह रिकार्ड चाइना के नाम था। चाइना के सनबाओ क्सू ने 2006 में 5  फुट 10  इंच ऊंची तथा 60 किलोग्राम की केतली बनाकर यह रिकार्ड अपने नाम किया था। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स लंदन द्वारा जारी की गई गाइड लाइन के मुताबिक रामकिशन को 12 सप्ताह के अंदर-अंदर एचएसआईआईडी, सिविल नोटरी, इंटरनेशनल गवर्निंग कमेटी के मैंबर या हैंडी क्राफ्ट आर्ट बोर्ड के अधिकारी से अपने इस मॉडल को प्रमाणित करवाकर इसकी रिकर्डिंग भेजनी है लेकिन रामकिशन के पास समय का अभाव होने के कारण वह अपनी यह औपचारिकताएं पूरी नहीं करवा पा रहा है। इन औपचारिकताओं को पूरी करवाने के लिए वह कई बार प्रशासनिक अधिकारियों के दरवाजे पर दस्तक दे चुका है लेकिन प्रशासन की तरफ से उसे अभी तक किसी तरह का सहयोग नहीं मिला है। ताज्जुब की बात तो यह है कि इस कीर्तिमान को देखने के लिए अभी तक एक भी प्रशासनिक अधिकारी रामकिशन के पास नहीं पहुंचा है। प्रशासन की इस बेरूखी के कारण मूर्ति कलाकार रामकिशन का गिनीज बुक में नाम दर्ज करवाने का यह सपना अधूरा है।

40 किलो मिट्टी से तीन दिन में तैयार की आठ फीट की केतली

चाइना के सनबाओ क्सू ने 2006 में 5 फुट 10 इंच ऊंची तथा 40 किलोग्राम की केतली बनाकर यह रिकार्ड अपने नाम किया था। अब कालवा गांव निवासी मूर्ति कलाकार रामकिशन ने 40 किलो मिट्टी से तीन दिन में आठ फीट दो इंच की केतली तैयार की है। 24 अप्रैल को रामकिशन ने केतली का निर्माण शुरू किया था। रामकिशन ने केतली के निर्माण पर प्रति दिन दो घंटे काम किया। इस प्रकार रामकिशन ने छह घंटे की मेहनत से आठ फीट और दो इंच की ७६ किलो की यह केतली तैयार की है। इसकी चौड़ाई पांच फीट चार इंच है। रामकिशन ने ०केतली के निर्माण की बकायदा वीडियो रिकार्डिंग भी करवाई है।
बॉक्स
आठ फीट की केतली में भरी जा सकती है २८ हजार कप चाय
रामकिशन द्वारा तैयार की गई आठ फीट दो इंच की केतली में २८ हजार चाय के कप या २७०० लीटर पानी भरा जा सकता है। इस केतली की ऊंचाई आठ फीट है और इस पर रखे ढक्कन की ऊंचाई दो इंच है।

कागजी कार्रवाई पूरी नहीं होने के कारण अधर में है नाम दर्ज करवाने का कार्य 

मूर्ति कलाकार रामकिशन का कहना है कि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स लंदन द्वारा जारी गाइड लाइन के अनुसार उसे इस कीर्तिमान को अपने नाम करवाने के लिए एचएसआईआईडी के अधिकारी, सिविल नोटरी, इंटरनेशनल गवर्निंग कमेटी के मैंबर या आर्ट ऑफ क्राफ्ट के किसी अधिकारी से इस मॉडल को प्रमाणित करवा कर वीडियो रिकर्डिंग के साथ प्रमाणित प्रमाण पत्रों को गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड्स लंदन को भेजने होंगे। रामकिशन ने बताया कि इस कार्य में प्रशासन से मदद लेने के लिए वह कई बार पिल्लूखेड़ा नायब तहसीलदार तथा सफीदों एसडीएम से मुलाकात कर चुका है लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों ने उसकी मदद करने की बजाए एक बार भी उसके घर आकर उसके इस मॉडल को देखा भी नहीं है। डीएवी विद्यालय थर्मल (पानीपत) में अध्यापक के पद पर कार्यरत रामकिशन का कहना है कि केतली के निर्माण के दौरान वह स्कूल से पहले की कई छुट्टियां ले चुका है। इसलिए अब वह मॉडल को प्रमाणित करवाने की आगामी कार्रवाई 18 मई को पडऩे वाली स्कूल की गर्मियों की छुट्टियां में आगामी कार्रवाई को अंजाम देंगे।
आठ फीट ऊंची चाय की केतली को दिखाता मूर्ति कलाकार रामकिशन।

गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड्स लंदन द्वारा भेजे गए पत्र दिखाता मूर्ति  कलाकार रामकिशन। 




गेहूं की कटाई के बाद कपास की बिजाई ने पकड़ी रफ्तार

बिजाई के दौरान विशेष बातों का ध्यान रखें किसान
अच्छे उत्पादन के लिए पौधों की पर्याप्त संख्या, खुराक व अच्छा पानी है प्राथमिकता
जिले में ६५ से ७० हजार हैक्टेयर में होती है कपास की खेती

नरेंद्र कुंडू 
जींद। गेहूं की कटाई खत्म होते ही कपास के उत्पादन क्षेत्र के किसान नरमा की बिजाई में जुट गए हैं। जींद जिले में 65  से 70  हजार हैक्टेयर में कपास की खेती होती है और इस बार यह आंकड़ा बढऩे की संभावना है। कपास की अधिक पैदावार लेने के लिए किसान बीज की अच्छी किस्म से लेकर बिजाई के दौरान भिन्न-भिन्न किस्म के तरीके अपना रहे हैं। कपास की बिजाई के सीजन को देखते हुए कृषि विभाग द्वारा भी किसानों को बिजाई के दौरान कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखने के लिए विशेष गाइड लाइन जारी की गई हैं। कृषि विभाग तथा प्रगतिशील किसानों की मानें तो किसी भी फसल के अच्छे उत्पादन के लिए सबसे पहली प्राथमिकता खेत में पर्याप्त पौधों का होना तथा सिंचाई के लिए अच्छा पानी होना है। अगर बिजाई के दौरान किसान खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या पर ध्यान नहीं देंगे तो इससे अच्छे उत्पादन की उम्मीद नहीं लगाई जा सकती। पौधों की पर्याप्त संख्या के बाद पौधों के लिए सही मात्रा में खाद व पानी की आवश्यकता पड़ी है। इसके साथ-साथ किसान अधिक उत्पादन के लिए लंबी अवधि की किस्म की बिजाई भी कर सकते हैं। लंबी अवधि की किस्म की बिजाई कर किसान कपास की फसल में ही रीले क्रापिंग विधि से गेहूं की बिजाई कर सकते हैं। इससे भी कपास के उत्पादन में काफी बढ़ौतरी होगी।

खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या पहली प्राथमिकता 

कपास के अच्छे उत्पादन के लिए खेत में सबसे पहले पौधों की पर्याप्त संख्या जरूरी है। अगर खेत में पौधों की संख्या पर्याप्त नहीं होगी तो इससे उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। एक एकड़ में कपास के पौधों की संख्या 4000  से 4800  के बीच में होनी चाहिए। बिजाई के दौरान पौधों के बीच की दूरी का भी विशेष ध्यान रखें। पौधें के बीच का फासला सही होने से पौधों का धूप सही तरीके  से मिल पाएगी और इससे पौधा आसानी से भोजन बना सकेगा और उससे उत्पादन भी बढ़ेगा। बिजाई के दौरान एक पौधे से दूसरे पौधो के बीच की दूरी अढ़ाई से तीन फीट के बीच होनी चाहिए।

फसल में कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग पर अंकुश लगाकर घटाया जा सकता है खर्च

किसान अधिक उत्पादन की चाह में फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग कर रहा है। इससे किसान का खेती पर खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है और मुनाफा कम हो रहा है। किसान कीटनाशकों के इस बढ़ते प्रयोग को कम कर भी अपनी आमदनी बढ़ा सकता है, क्योंकि कपास की फसल में कीटनाशकों के प्रयोग की जरूरत नहीं होती है। कृषि विभाग के अधिकारियों का मानना है कि कपास की फसल में मांसाहारी तथा शाकाहारी दो किस्म के कीट होते हैं और पौधे समय-समय पर अपनी जरूरत के अनुसार इन कीटों को भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर अपनी सहायता के लिए बुलाते हैं लेकिन किसान जागरूकता के अभाव में कीटनाशकों का प्रयोग कर इनका खात्मा कर देते हैं। इसलिए किसानों को कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाए कीटों के क्रियाकलापों को समझने की जरूरत है। क्योकि कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण पौधों की सुगंध छोडऩे की क्षमता गड़बड़ा जाती है और इससे फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

बीज की किस्म को लेकर असमंजस में न पड़ें किसान

कपास की बिजाई के दौरान किसान बीटी बीज की किस्म को लेकर असमंजस में न पड़ें। क्योंकि इस समय बाजार में कपास की हजारों तरह की किस्म और कृषि विभाग के अधिकारी भी उन किस्मों की सिफारिश नहीं कर रहे हैं। ऐसे में किसान अपने विवेक से काम ले और जो भी बीज उसका जांच व परखा हुआ है और जिस बीज पर उसे विश्वास है उसी बीज की बिजाई करे। नए किस्म के बीजों की बिजाई नहीं करें। किसान बीटी की बजाए देशी बीज की बिजाई भी कर सकते हैं। इसके अलावा कपास की फसल के बीच-बीच में मूंग या बेल वाली सब्जियों की बिजाई भी कर सकते हैं।

सीधे की बजाए डोलियां बनाकर करें बिजाई

मौसम के बिगड़ते मिजात को देखते हुए किसानों को कपास की सीधी बिजाई करने की बजाए डोलियां बनाकर बिजाई करनी चाहिए। अगर किसान कपास की बिजाई हाथ से चौब कर करें तो बीज के साथ गोबर की खाद भी डालें। इसके अलावा बाजार से बीज खरीदते समय किसान विशेष सावधानी रखें। बीज खरीदने के बाद दुकानदार से पक्का बिल अवश्य लें और यदि कोई दुकानदार पक्का बिल नहीं देता है और बीज के साथ टैगिंग करता है तो तुरंत इसकी सूचना कृषि विभाग के अधिकारियों को दें।

बीटी की बिजाई करने वाले किसान रखें ध्यान 

जिले में ज्यादातर किसान अधिक उत्पादन के लिए बीटी बीज की बिजाई करता है। बीटी की बिजाई करने वाले किसानों इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बीटी की किस्म को तैयार होने के लिए ज्यादा खुराक की जरूरत होती है। इसलिए बीटी की बिजाई के लिए एक एकड़ में 20 किलो पोटाश, एक बेग डीएपी, 20 किलो यूरिया तथा 10 किलो जिंक
सल्फेट जरूर डालें। जिस क्षेत्र में पानी ज्यादा खारा है, उस क्षेत्र के किसानों को कपास की बिजाई से पहले प्रति एकड़ के अनुसार कम से कम 8 से 10 ट्राली गोबर की खाद डालनी चाहिए। क्योंकि कपास के पौधे कम नमक को तो सहन कर लेते हैं लेकिन अधिक नमक को सहन नहीं कर पाते। इसके अलावा नरमा की बिजाई के 15 दिन बाद से ही फसल की नुलाई-गुडाई शुरू कर देनी चाहिए। तापमान अधिक होने पर 4-5 दिन के अंतर में हल्के पानी का स्प्रे जरूर करना चाहिए। पौधों को पर्याप्त खुराक देने के लिए 15 दिन के अंतर पर प्रति एकड़ में आधा किलो जिंक, अढ़ाई किलो यूरिया तथा अढ़ाई किलो डीएपी का 100 लीटर पानी में घोल तैयार कर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए।
डॉ. कमल सैनी, एडीओ
कृषि विभाग, रामराय

गुरुवार, 1 मई 2014

जेल में तैयार हो रहा केदियों का भविष्य

जिला कारागार को बना दिया प्रशिक्षण केंद्र 
जेल में स्थित मल्टी आर्ट कल्चर सेंटर में कैदियों व बंदियों को दिया जा रहा है प्रशिक्षण
कैदी तथा बंदियों को आत्म निर्भर बनाने के लिए सिखाए जा रहे हैं हस्त शिल्प के गुर

नरेंद्र कुंडू
जींद। 'कुचले हुए फूल फिर से मुस्करा सकते हैं बस कोई उन्हें सीने से लगाने वाला चाहिए' यह सोच है जिला कारागार के अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा की। डॉ. रंगा ने अपनी इसी सोच की बदोलत जिला कारागार को प्रशिक्षण केंद्र में तब्दील कर दिया है। डॉ. रंगा द्वारा जिला कारागार में मल्टी आर्ट कल्चर विंग स्थापित की है। इस मल्टी आर्ट कल्चर विंग में सैंकड़ों कैदी तथा बंदी अपनी रुचि के अनुसार पेंटिंग, संगीत, हस्त शिल्प, कम्प्यूटर का प्रशिक्षण ले रहे हैं। वहीं जिला कारागार में बंद महिला कैदियों तथा बंदियों को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए हस्त शिल्प का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कैदियों तथा बंदियों को शारीरिक तथा मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए ध्यान तथा राज योग केंद्र भी स्थापित किया गया है, जिसमें योग तथा ध्यान के प्रशिक्षकों द्वारा कैदियों तथा बंदियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसके अलावा जिला कारागार में समय-समय पर खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है। 

एक साल की कड़ी मेहनत लाई रंग

जिला कारागार में स्थित जिस भवन में इस समय मल्टी आर्ट कल्चर विंग चल रही है, उस भवन में एक वर्ष पहले तक गेहूं का गोदाम था और वह भवन बुरी तरह से जर्जर था। जनवरी २०१३ में डॉ. हरीश कुमार रंगा द्वारा जिला कारागार का कार्यभार संभाले जाने के बाद डॉ. रंगा ने यहां कड़ी मेहनत की और जर्जर भवन पर लाखों रुपए खर्च कर इसका कायाकल्प कर यहां मल्टी आर्ट कल्चर विंग स्थापित की। डॉ. रंगा की एक साल की कड़ी मेहनत के बाद आज जिला कारागार पूरी तरह से प्रशिक्षण केंद्र का रूप धारण कर चुकी है और सैंकड़ों कैदी तथा बंदी यहां प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने भविष्य को उज्जवल बनाने में लगे हुए हैं।

मल्टी आर्ट कल्चर विंग में यह-यह हैं सुविधाएं    

जेल परिसर में मल्टी आर्ट कल्चर विंग बनाया गया है, जिसमें संगीत में रूचि रखने वाले कैदियों तथा बंदियों को संगीत की विद्या सिखाई जाती है। इस सरगमशाला में संगीत के पीएचडी डॉ. राजेंद्र कुमार निशुल्क सेवाएं दे रहे हैं। इसी प्रकार मन की शांति के लिए कैदियों तथा बंदियों को आध्यातम की ओर आकॢषत करने के लिए ध्यान कक्ष बनाया गया है। मल्टी आर्ट कल्चर विंग में कैदियों तथा बंदियों को योग क्रियाएं भी करवाई जा रही हैं। यहां समय-समय पर विभिन्न धर्म प्रचारकों को आमंत्रित कर प्रेरक व्याख्यान दिलवाए जाते हैं। वहीं इसी सेंटर में कैदियों तथा बंदियों की पढ़ाई के लिए क्लाश रूम, कम्प्यूटर रूम तथा पुस्तकालय स्थापित किया गया है। इसी प्रकार इस सैंटर में बारबर की दुकान स्थापित की गई है। जेल परिसर में रोजगारोन्मुखी व्यवसायों का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है ताकि जेल से बाहर निकलने परकैदी तथा बंदी अपना स्वयं का व्यवसाय चलाकर समाज में सम्मानजनक तरीके से जीवन व्यतित कर सकें। इसके अलावा 
जिला कारागार में मल्टी आर्ट कल्चर सेंटर में संगीत का प्रशिक्षण लेते कैदी व बंदी।

महिलाओं को भी दिया जा रहा है स्वरोजगार का प्रशिक्षण

महिलाओं को टेडी बीयर व अन्य हस्त निर्मित खिलौने बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। महिला विंग परिसर में एक मंदिर का निर्माण भी करवाया जा रहा है। इस परिसर में भी मल्टी कल्चर आर्ट विंग स्थापित की गई है, जहां महिलाओं को संगीत, आध्यात्म, स्वरोजगार प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है। महिलाओं के साथ रह रहे बच्चों के लिए पढ़ाई तथा खाने-पीने के लिए फल-फ्रूट की भी विशेष व्यवस्था की गई है। जेल परिसर के अंदर दीवारों पर महान पुरूषों के चित्र बनाए गए हैं और उनके नीचे सुविचार लिखे गए हैं। 
जिला कारागार में मल्टी आर्ट कल्चर सेंटर में हस्त शिल्प कक्षा का मुआयना करते गणमान्य लोग। 

कैदियों औॅर बंदियों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है उद्देश्य 

मल्टी आर्ट कल्चर सेंटर के पेंटिंग कक्ष का निरीक्षण करते जेल अधीक्षक डॉ. हरीश  कुमार रंगा।

कई बार इंसान से जाने-अनजाने में गलतियां हो जाती हैं। इसलिए उन्हें एक बार सुधरने का अवसर अवश्य प्राप्त होना चाहिए। जिला कारागार में बंद कैदी तथा बंदी हमारे समाज का ही हिस्सा हैं। इसलिए हमें इन्हें एक अच्छा नागरीक बनाकर समाज की मुख्यधारा से जोडऩे का प्रयास करना चाहिए। इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने जिला कारागार में मल्टी आर्ट कल्चर विंग स्थापित किया है, ताकि कैदी तथा बंदी यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर यहां से निकलने के बाद सम्मानजनक जीवन व्यतित कर सकें। 
डॉ. हरीश कुमार रंगा
जिला कारागार अधीक्षक, जींद

जिला कारागार अधीक्षक डॉ. हरीश कुमार रंगा का फोटो। 













बुधवार, 23 अप्रैल 2014

चाइना का रिकार्ड तोड़ेगा म्हारा मूर्ति कलाकार

वर्ल्ड रिकार्ड बनाने के लिए आठ फुट की केतली बना रहा कालवा का रामकिशन
इससे पहले चाइना के नाम है सबसे बड़ी केतली बनाने का रिकार्ड 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। पिल्लूखेड़ा खंड के गांव कालवा निवासी मूर्ति कलाकार रामकिशन (43) हस्तकला में चाइना का रिकार्ड तोडऩे जा रहा है। रामकिशन मिट्टी से आठ फुट की केतली बनाकर वर्ल्ड रिकार्ड बना कर गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज करवाने की तैयारी कर रहा है। इससे पहले यह रिकार्ड चाइना के नाम है। चाइना के सनबाओ क्सू ने 2006  में 5  फुट 10  इंच ऊंची तथा 60 किलोग्राम की केतली बनाकर यह रिकार्ड अपने नाम किया था। अब रामकिशन 60 किलोग्राम वजन में ही 8 फीट की केतली तैयार कर चाइना के इस रिकार्ड को तोड़कर वर्ल्ड रिकार्ड को अपने नाम करने जा रहा है। रामकिशन 7 घंटे में आठ फीट की केतली तैयार करेगा। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स लंदन द्वारा जारी की गई गाइड लाइन के अनुसार रामकिशन द्वारा केतली के निर्माण की बकायदा वीडियो रिकार्डिंग भी करवाई जा रही है। इससे पहले रामकिशन अंगूठे के नाखून पर 05 सेंटीमीटर की मट्टी बनाकर भी खुब सुॢखयां बटोर चुके हैं।
हस्तकला में महारत हासिल कर चुका गांव कालवा निवासी रामकिशन डीएवी स्कूल थर्मल पानीपत में फाइन आर्ट के अध्यापक हैं और उन्हें वर्ल्ड रिकार्ड बनाने की यह प्रेरणा डीएवी संस्था के निदेेशक डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी से ही मिली है। डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी की प्रेरणा से प्रेरित होकर रामकिशन ने हस्तकला में नया रिकार्ड बनाने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स लंदन को ईमले भेजकर अप्लाई किया था। गिनीज बुक ऑफ  वर्ल्ड रिकार्ड के इवा नोरोय जो इस रिकार्ड को निर्देशित कर रहे हैं ने रामकिशन को नया रिकार्ड बनाने की अनुमति दे दी। गिनीज बुक में अब तक यह रिकार्ड चाइना के नाम है। 
वर्ल्ड रिकार्ड के लिए 8 फुट की केतली तैयार करता कालवा निवासी रामकिशन।
चाइना के सनबाओ क्सू ने 2006 में 5  फुट 10 इंच ऊंची और 60 किलोग्राम भार की चाय की केतली बनाकर यह रिकार्ड बनाया था। इस बर्तन में एक साथ 10 किलोग्राम सुखी चाय आ सकती है। गांव कालवा निवासी रामकिशन अब 60 किलोग्राम भार में 8 फुट ऊंची चाय की केतली बनाकर चाइना के इस रिकार्ड को तोडऩे जा रहा है। यदि रामकिशन इस रिकार्ड को तोड़ देता है तो विश्व के मानचित्र पर जींद जिले ही नहीं बल्कि हरियाणा का नाम सुनहरी अक्षरों में लिखा जाएगा। 

केतली के निर्माण के लिए अलग से किया 4 फुट का चॉक

रामकिशन ने वर्ल्ड रिकार्ड के लिए 8 फुट की केतली के निर्माण के लिए अलग से स्पेशल सीमेंट का 4 फुट का चॉक तैयार किया है। रामकिशन द्वारा 40 किलो मिट्टी से यह 8 फुट की केतली तैयार की जाएगी। केतली के निर्माण के लिए रामकिशन द्वारा कोई स्पेशल मिट्टी का प्रबंध नहीं किया गया है, बल्कि साधारण मिट्टी से ही रामकिशन द्वारा यह केतली तैयार की जा रही है।

इससे पहले अंगूठे पर मटकी बना कर सुर्खियां बटोर चुका है रामकिशन 

वैसे तो हस्तकला में रामकिशन को कोई मुकाबला नहीं है। देश के बड़े-बड़े क्रांतिकारियों, महापुरुषों, नेताओं, खिलाडिय़ों सहित रामकिशन भिन्न-भिन्न किस्म की मूर्तियां बना चुका है लेकिन रामकिशन ने अंगूठे पर 0.5  सेंटीमीटर की मटकी बनाकर खूब सुर्खियां बटोरी थी।


वर्ल्ड रिकार्ड के लिए 8 फुट की केतली तैयार करता कालवा निवासी रामकिशन।


वर्ल्ड रिकार्ड्स लंदन द्वारा जारी किये गए अनुमति पत्र को दिखाता रामकिशन। 





गूंजने से पहले ही शांत हो रही किलकारियां

जननी एवं शिशु सुरक्षा योजना पर लगा सवालिया निशान
आरटीआई से मिली सूचना से हुआ खुलासा

नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले में शिशु मृत्युदर का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। अगर स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो स्वास्थ्य विभाग शिशु मृत्यु दर को कम करने में नाकाम साबित हो रहा है। शिशु मृत्युदर के मामलों में हो रही बढ़ौतरी के कारण स्वास्थ्य विभाग द्वारा शुरू की गई जननी एवं शिशु सुरक्षा योजना पर सवालिया निशान लग गया है।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा डिलिवरी के दौरान महिला तथा शिशु की मृत्युदर के मामलों में कमी लाने के लिए जननी एवं शिशु सुरक्षा योजना शुरू की गई थी। जननी शिशु सुरक्षा योजना के तहत सरकारी अस्पताल में डिलिवरी के लिए आने वाली गर्भवती महिलाओं को सभी स्वास्थ्य सुविधाएं निशुल्क मुहैया करवाई जाती हैं लेकिन स्वास्थ्य विभाग लाख प्रयास के बावजूद भी शिशु मृत्युदर के मामलों में कमी लाने में नाकाम साबित हो रहा है। आरटीआई कार्यकत्र्ता सुरेश पूनिया द्वारा आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना के तहत स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए गए आंकड़े वास्तव में चौंकाने वाले हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों पर यदि नजर डाली जाए तो सामान्य अस्पताल में डिलिवरी के दौरान शिशु मृत्युदर का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। इससे स्वास्थ्य विभाग की जननी एवं शिशु सुरक्षा योजना पर सवाल उठने लगे हैं।
 जींद के सामान्य अस्पताल का फोटो।

जिले के सरकारी अस्पतालों में नहीं नर्सरी की सुविधा

जिले में जींद, नरवाना तथा सफीदों में तीन सामान्य अस्पताल हैं लेकिन तीनों अस्पतालों में कहीं पर भी नवजात बच्चों के उपचार के लिए नर्सरी की सुविधा नहीं है। जींद के सामान्य अस्पताल में कागजों में तो नर्सरी तैयार हो चुकी है लेकिन अभी तक इस नर्सरी में बच्चों के उपचार का कार्य शुरू नहीं हो पाया है। सरकारी अस्पतालों में नर्सरी की सुविधा नहीं होने के कारण परिजनों को नवजात बच्चों के उपचार के लिए या तो पीजीआई में जाना पड़ता है या फिर शहर के निजी अस्पतालों का रूख करना पड़ता है।

जींद के सामान्य अस्पताल में नवजात शिशुओं के लिए यह नहीं हैं सुविधाएं 

जींद के सामान्य अस्पताल में नवजात शिशुओं के उपचार के लिए कृत्रिम श्वांस, सैंटर लाइन ऑक्सिजन, नवजात शिशुओं के मुख्य टैस्टों तथा बच्चों के अल्ट्रासाऊंड की सुविधा नहीं है। सामान्य अस्पताल में यह सुविधाएं नहीं होने के कारण भी शिशु मृत्युदर के मामलों में लगातार बढ़ौतरी हो रही है।

मरीजों को समय पर नहीं मिल पाता उपचार 

अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण सामान्य अस्पताल में डिलिवरी के लिए आने वाली गर्भवती महिलाओं को समय पर पूरी सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। मरीज इलाज के लिए भटकते रहते हैं। सामान्य अस्पताल में जच्चा-बच्चा के लिए आधुनिक सुविधाएं नहीं हैं। सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों की भारी कमी है लेकिन जितना भी स्टाफ यहां फिलहाल मौजूद है, वह भी अच्छे तरीके से अपनी ड्यूटी नहीं निभाता है। यहां पर मौजूद स्टाफ मरीज का सही तरीके से उपचार करने की बजाए मरीज को यहां से रैफर करने में ज्यादा विश्वास रखता है। सही समय पर पूरा उपचार नहीं मिल पाने के कारण ही सरकारी अस्पतालों से लोगों का विश्वास दिन-प्रतिदिन कम हो रहा है और लोग मजबूरीवश निजी अस्पतालों का रुख करने पर मजबूर हैं।
सुरेश पूनिया
आरटीआई कार्यकर्ता  

आरटीआई के तहत प्राप्त जुलाना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के आंकड़े

वर्ष कुल डिलिवरी लड़के लड़कियां मृत बच्चे
2012  1935  1024     911       21 
2013  1725  927       798        20

आरटीआई के तहत प्राप्त सामान्य अस्पताल जींद के आंकड़े

वर्ष कुल डिलिवरी लड़के  लड़कियां मृत बच्चे 
2010      2381  1341     1102        62
2011      2809  1359     1286        18
2012      2532  1325     1169  77
2013      3381  1809      1522  79

आरटीआई के तहत प्राप्त सामान्य अस्पताल नरवाना के आंकड़े

वर्ष कुल डिलिवरी      लड़के  लड़कियां मृत बच्चे 
2010         1098  615          483            18 
2011         1350   727  623             26 
2012         1408   747  661            19  
2013         1657           854  775            28

आरटीआई के तहत प्राप्त सामान्य अस्पताल सफीदों के आंकड़े

वर्ष कुल डिलिवरी लड़के  लड़कियां मृत बच्चे
2010 1481 774 707      15
2011   731 391          340 5
2012   804 429          375      5
2013   659 345            14 5




शनिवार, 19 अप्रैल 2014

कागजों में ही सिमटी पायका खेल योजना

ऐसे में कैसे तैयार होंगे खिलाड़ी
जिला खेल कार्यालय द्वारा 2009 -10 में ग्राम पंचायतों को भेजा गया था खेल का सामान
चार साल बाद भी मैदान में नहीं लग पाए बास्केट बाल और वालीबाल के पोल

नरेंद्र कुंडू
जींद। भारत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई पंचायत युवा क्रीडा योजना (पायका) कागजों तक ही सिकुड कर रह गई है। जिला खेल कार्यालय द्वारा 2009-10 में ग्राम पंचायतों को भेजे गए बास्केट बाल तथा वालीबाल के पोल आज तक मैदान में नहीं लग पाए हैं। जिला खेल विभाग तथा ग्राम पंचायतों की बेरुखी के चलते चार साल से बास्केट बाल तथा वालीबाल के पोल जमीन पर ही जंग की भेंट रहे हैं लेकिन न तो ग्राम पंचायतें इनकी सुध ले रही हैं और न ही खेल विभाग इन पोलों को मैदान में लगवाने में रुचि दिखा रहा है। जिला खेल विभाग की लापरवाही के चलते ग्रामीण क्षेत्र के खिलाडिय़ों को सरकार की इस योजना का कोई लाभ नहीं मिल पाया है।
भारत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में छिपी खेल प्रतिभाओं को निखार कर ग्रामीण आंचल से अच्छे खिलाड़ी तैयार करने के उद्देश्य से पंचायत युवा क्रीड़ा योजना (पायका) शुरू की है। सरकार की इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिए सभी गांवों में कोच व खेल किटें उपलब्ध करवाई जा रही हैं। सरकार खेल प्रतिभाओं को बढ़ाने के लिए पायका योजना के माध्यम से करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। पायका योजना के तहत खेल विभाग द्वारा गांवों में खिलाडिय़ों के लिए खेल का सामान उपलब्ध करवाने के लिए प्रत्येक गांव में एक-एक लाख रुपए खर्च कर बास्केट बाल, वालीबाल, रेसलिंग मैट तथा वेट ट्रेनिंग सेट दिए जा रहे हैं। पायका योजना के तहत 2009-10 में जिले से 50 गांवों को चुना गया था। खेल विभाग द्वारा इन 50 गांवों में खिलाडिय़ों के लिए खेल का सामान उपलब्ध करवाने के लिए 35 गांवों को वालीवाल व बास्केटबाल का सामान तथा 15 गांवों को रेसलिंग के मैट दिए गए थे। इसके अलावा इन सभी 50 गांवों में वेट ट्रेनिंग सैट भी दिए गए थे।

यह था प्रावधान

पायका योजना के तहत 2009-10 में गांवों को भेजे गए बास्केट बाल तथा वालीबाल के पोलों को मैदान में सैट करवाने की जिम्मेदारी खेल विभाग ने गांव के लिए नियुक्त किए गए कोच, गांव के सरकारी स्कूल के मुख्याध्यापक तथा ग्राम पंचायत को सौंपी थी। बास्केट बाल तथा वालीबाल के पोल को मैदान में सैट करवाने के बाद कोच व ग्राम पंचायत को इस पर आने वाले खर्च का बिल तैयार करवाकर जिला खेल कार्यालय को देना था। इसके बाद जिला खेल कार्यालय द्वारा इस खर्च का भुगतान किया जाना था लेकिन न तो कोच व ग्राम पंचायत ने इस तरफ ध्यान दिया और न ही खेल विभाग ने। कुछ गांवों में तो कोच व ग्राम पंचायत ने अपने स्तर पर इन पोलों को मैदान में लगवा दिया लेकिन विभाग की अनदेखी के चलते ज्यादातर गांवों में आज भी बास्केट बाल तथा वालीबाल के यह पोल खुले आसमान के नीचे जंग खा रहे हैं।

 विभाग की लापरवाही के कारण पिल्लूखेड़ा खंड के भूराण गांव में पड़ा बास्केट बाल का पोल।