शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

महापंचापयत में खापों ने किया किसान-कीट विवाद के समझौते का प्रयास

खाप का सरकार से आह्वान, डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से बनाई जाए नई कृषि नीति 
निडाना गांव में हुई सर्वजातीय सर्वखाप महापंचायत
कीटों ने खाप चौधरियों से लगाई न्याय की गुहार 

महापंचायत में कीटों ने दी किसानों खुली चुनौति, उन्हें मारकर नहीं जीत पाएंगे किसान
कीटाचार्य किसानों ने खाप चौधरियों के सामने रखा कीटों का दर्द
हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज एसएन अग्रवाल ने भी की खाप महापंचायत में शिरकत

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जिले के निडाना गांव में शुक्रवार को आयोजित हुई सर्वजातीय सर्वखाप महापंचायत में खाप चौधरियों ने अनोखे एवं अद्भूत मामले किसान व कीट विवाद की सुनवाई की। खाप महापंचायत में कीटाचार्य किसानों ने बेजुबान कीटों पैरवी की। लगभग तीन घंटे चली महापंचायत में खाप चौधरियों व न्यायिक कमेटी के सदस्यों ने कीटाचार्य किसानों से सवाल जवाब किए। इसके बाद न्यायिक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर खाप प्रतिनिधियों को सौंपी। खाप प्रतिनिधियों ने मामले की गहनता से सुनवाई करने तथा न्यायिक कमेटी की रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद मंच से आह्वान किया कि खाप पंचायत डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से नई कृषि नीति बनाने, कीट ज्ञान की मुहिम को कृषि नीति में शामिल करने, डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से अवार्ड जारी करने तथा दूसरे किसानों को प्रशिक्षत करने के लिए कीटाचार्य किसानों को मास्टर ट्रेनर के तौर पर नियुक्त करने के लिए केंद्र सरकार से पत्र लिखकर मांग करेगी। ताकि फसलों पर बिना वजह प्रयोग हो रहे जहर से मुक्ति दिलवाकर थाली को जहरमुक्त बनाया जा सके। महापंचायत में खाप प्रतिनिधियों ने किसानों से फसलों में पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं करने का आह्वान कर किसान-कीट विवाद में समझौते का प्रयास किया। खाप पंचायत की अध्यक्षता जींद बेहतरा के प्रधान केके मिश्रा ने तथा मंच संचालक सर्वजातीय सर्वखाप महापंचायत हरियाण के संयोजक एवं बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने की। महापंचायत की न्यायिक कमेटी में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्ति न्यायधीश न्यायमूर्ति एसएन अग्रवाल, खाद्य एवं कृषि विशलेषक डॉ. देवेंद्र शर्मा, हरियाणा किसान आयोग के सचिव डॉ. आरएस दलाल को शामिल किया गया था। महापंचायत में जिला कृषि उपनिदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग, हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण, जींद के जिला उद्यान अधिकारी डॉ. रविंद्र ढांडा, मैडम कुसुम दलाल भी मौजूद रही।
जींद के निडाना गांव के एक निजी स्कूल में किसानों और कीटों के बीच पिछले लगभग चार दशकों से चली आ रही लड़ाई की सुलह करवाने को लेकर खाप महापंचायत का आयोजन किया गया। इस महापंचायत में किसानों का पक्ष जहां खुद किसानों ने रखा वहीं कीटों का पक्ष भी उन महिलाओं और पुरूषों ने रखा, जो पिछले लगभग आठ वर्षों से कपास और धान की फसलों में कीटों पर शोध कर रहे हैं और फसलों में बिना कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किए अच्छी पैदावार ले रहे हैं। कीटाचार्य किसानों ने महापंचायत में बेजुबान कीटों की पैरवी करते हुए बताया कि कीट न तो हमारे मित्र हैं और न ही दुश्मन हैं। कीट तो फसलों में अपना जीवन चक्र चलाने के लिए आते हैं और पौध अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर किसानों को अपनी रक्षा के लिए बुलाते हैं। उन्होंने बताया कि उनके आठ वर्षों के अनुभव के दौरान कभी की कोई कीट फसल में नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर को पार नहीं कर पाया है। जब कीट हमारी फसलों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं तो फिर उन्हें बिना कसूर किसानों द्वारा फसलों में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव कर क्यों मारा जा रहा है। उन्होंने बताया कि किसान व कीट की इस लड़ाई में बेजुबान कीटों की जान मुफ्त में जा रही है और इसमें किसान की जेब भी ढीली हो रही है। फसलों में अधिक जहर का प्रयोग होने से हमारा खान-पान भी दूषित हो रहा है। इसका मानव स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कीटाचार्य किसानों के कीट ज्ञान को सुन कर खापों के चौधरियों के साथ-साथ खुद न्यायिक कमेटी के अध्यक्ष पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएन अग्रवाल, सदस्य देवेंद्र शर्मा और हरियाणा किसान आयोग के सदस्य सचिव डॉ. आरएस दलाल भी हैरान रह गए। उन्हें भी लगा कि बिना वजह बेजुबान कीटों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। खाप चौधरियों व न्यायिक कमेटी ने जब अन्य किसानों इसे लेकर सवाल किए तो किसानों ने बताया गया कि उन्हें कीटों के  बारे में इस तरह की जानकारी नहीं थी। वह तो अज्ञानतावश फसल में नुकसान के डर से इन बेजुबान कीटों को मार रहे हैं। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद न्यायिक कमेटी व खाप इस निश्कर्ष पर पहुंचे कि इस लड़ाई में न तो किसानों का दोष है और न ही कीटों का कोई तीसरा पक्ष किसानों के भोलेपन का फायदा उठाकर इस लड़ाई को बढ़ावा दे रहा है। 

रिपोर्ट तैयार कर केंद्र सरकार को की जाएगी सिफारिश 

यह हिंदुस्तान की पहली ऐसी कोर्ट है जिसमें एक अनोखे मुकदमे की सुनवाई हुई है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में जींद जिले के किसानों का नाम इतिहास में लिखा जाएगा। जींद जिले के कीटाचार्य किसानों ने कीटों पर एक अनोखा शोध कर कृषि वैज्ञानिकों को भी पीछे छोड़ दिया है। इन किसानों को कीटों के बारे में काफी गहराई तक जानकारी है। यहां आकर इन किसानों से यह सीखने को मिला कि किस तरह मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करते हैं। हिंदुस्तान के छोटे से गांव में कीटों पर इस तरह का काम हो रहा है यह देख कर मैं दंग रह गया। कीट भी परमात्मा की देन हैं। इसलिए इन्हें भी बचाया जाना चाहिए। प्रकृति ने जो सिस्टम बनाया है किसान पेस्टीसाइड का प्रयोग कर उस सिस्टम के साथ छेडख़ानी कर रहे हैं। पेस्टीसाइड मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। जींद जिले के किसानों के इस काम को कृषि नीति में शामिल करने, डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से अवार्ड जारी करवाने, इन किसानों को विशेष सुविधाएं दिलवाने के लिए के लिए एक रिपोर्ट तैयार कर केंद्र सरकार से सिफारिश की जाएगी। इसे लागू करना या ना करना सरकार का काम है। 
न्यायमूर्ति एसएन अग्रवाल, सेवानिवृत्त न्यायाधीश
हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट

महापंचायत में यह-यह खाप प्रतिनिधि रहे मौजूद 

सर्वजातीय सर्वखाप महापंचायत हरियाणा की महिला विंग की प्रधान डॉ. संतोष दहिया, अखिल भारतीय जाट महासभा के प्रधान ओमप्रकाश मान, कंडेला खाप प्रधान टेकराम कंडेला, पालम 360 के प्रधान रामकर्ण सौलंकी, राठी खाप के प्रधान डॉ. रणबीर राठी, बूरा खाप के वरिष्ठ उपप्रधान दयानंद बूरा, नंदगढ़ (चुढाली) गांव के प्रधान होशियार सिंह दलाल, कुंडू कालवा खाप के प्रधान सुभाष कुंडू, मंडाल तपा के प्रधान जगबीर ढुल, महम चौबिसी के प्रधान मेहर सिंह नंबरदार, दहिया खाप के प्रधान प्रताप सिंह, झाड़सा 360  गुडग़ांव के प्रधान महेंद्र ठाकरान, सतरोल खाप के प्रधान सूबेदार इंद्र सिंह, राखी बारहा खाप के प्रधान सुरेश कोथ, हाट बारहा खाप के प्रधान दयानंद, किनाना बारहा खाप के प्रधान दरिया सैनी, प्रगतिशील किसान क्लब के प्रधान राजबीर कटारिया, नगूरा बारहा खाप के प्रधान राजेंद्र दलाल, ढांडा खाप के प्रतिनिधि ओमप्रकाश ढांडा, किसान सभा हरियाणा के उपाध्यक्ष कामरेड फूल सिंह श्योकंद, खरकरामजी खाप के प्रधान सत्यवान, सफीदों बारहा के प्रधान रणबीर देशवाल, चहल खाप के संरक्षक दलीप सिंह चहल, कुंडू बारहा के प्रधान महाबीर कुंडू, लोहचब खाप के प्रधान ईश्वर लोहचब, राममेहर नंबरदार सहित लगभग 60 खापों के प्रतिनिधि मौजूद थे। 
सहित प्रदेशभर से 60 खापों के प्रतिनिधि व पंजाब के किसान भी मौजूद थे।   
 महापंचायत में अपने अनुभव रखती महिला किसान।

हमें मारकर ये जंग नहीं जीत पाएंगे किसान 

महापंचायत में कीटों ने किसानों को खुली चुनौती देते हुए कहा कि किसान उन्हें जहर से मारकर कभी भी इस जंग को किसान जीत नहीं पाएंगे। कीटाचार्य किसानों ने कीटों की तरफ से पक्ष रखते हुए बताया कि यदि किसान इसी तरह फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग करते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब उनकी आने वाली पीढिय़ों को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। 

मांसाहारी कीट तो फसल में करते हैं कुदरती कीटनाशी का काम 

ललितखेड़ा गांव की महिला किसानों के गु्रप ने मांसाहारी कीट लेडी बर्ड बीटल की तरफ से अपना पक्ष रखते हुए बताया कि बीटल 18 किस्म की हैं और यह व इनके बच्चे सभी मांसाहारी होते हैं। शाकाहारी कीट सफेद मक्खी, हरा तेला, चूरड़ा, मिलीबग जैसे मेजर कीटों को खाकर वह फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करती हैं। वहीं रधाना गांव के पुरुष किसानों ने मांसाहारी कीट हथजोड़े की तरफ से पक्ष रखते हुए कहा कि वह 10 किस्म के होते हैं और सूंडियां उनका प्रमुख भोजन होती हैं। किसान जिसे गादड़ की सूंडी समझता है वह दरअसल उसकी सूंडी होती है और उसकी एक अंडेदानी में 500 से 600 के लगभग बच्चे होते हैं। उसके एक बच्चे को जीवित रहने के लिए प्रतिदिन 10 सूंडियों की जरूरत पड़ती है। ललितखेड़ा गांव के पुरुष किसानों ने बुगड़ों की तरफ से प्रस्तुती देते हुए बताया कि बुगड़े सात प्रकार के होते हैं और डंक की सहायता से दूसरे कीटों का खून चूसकर कीटों का खातमा करते हैं। निडाना गांव की महिलाओं ने मक्खियों की पैरवी करते हुए बताया कि यह मक्खियां भी दूसरे कीटों का मांस खाकर अपना गुजारा करती हैं। कुछ मक्खियां तो अपने वजन से ज्यादा मांस खाती हैं। निडानी के पुरुष किसानों ने दूसरे कीटों के पेट में अंडे देने वाले परपेटियों का पक्ष रखा। 
महापंचायत में मंच पर मौजूद खाप प्रतिनिधि।

पौधे व शाकाहारी कीटों का है गहरा रिश्ता 

ईगराह गांव के पुरुष किसानों ने रस चूसक कीटों का पक्ष रखते हुए बताया कि यह कीट तो पौधे का बचा हुआ रस चूसकर पौधे की मदद करते हैं। जिस तरह रक्तदान करने से मनुष्य के शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता उसी प्रकार पौधे का रस चूसने से पौधे पर भी कोई दूष्प्रभाव नहीं पड़ता। निडाना गांव के पुरुष किसानों ने पत्तेखाने वाले कीटों की पैरवी करते हुए बताया कि पत्ते खाने वाले कीट ऊपर के पत्तों में छोटे-छोटे सुराख कर देते हैं। इससे नीचे के पत्तों तक भी धूप पहुंच जाती है और नीचे के पत्ते भी पौधे के लिए भोजन बना देते हैं। ईगराह के किसानों ने फूलाहारी कीटों का पक्ष रखते हुए बताया कि कीट तो फसल में परपरागन में सहायता करते हैं। कीटों की सहायता से ही फूल के नर भाग के परागकण मादा तक पहुंच पाते हैं। रधाना गांव के किसानों ने फलाहारी कीटों का पक्ष रखते हुए बताया कि कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पौधा अपना 65 प्रतिशत फल गिरा देता है और इसी फल को खाकर यह कीट पौधे की मदद करते हैं। 
मंच पर किसानों को संबोधित करते सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन अग्रवाल।

फसल को नुकसान से बचाने के लिए करते हैं स्प्रे

निडाना के सुरेंद्र किसान ने आम किसान का पक्ष रखते हुए बताया कि किसान तो अपनी फसल को कीटों के नुकसान से बचाने के लिए फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। कीट किसान के लिए इतने लाभदायक होते हैं, उसके बारे में तो उन्हें जानकारी ही नहीं है। 

हमें सुविधाएं स्वच्छ वातावरण व शुद्ध खान-पान चाहिए

निडाना तथा निडानी के बच्चों ने प्रस्तुति देते हुए बताया कि दूषित हो रहे खान-पान के कारण वह भिन्न-भिन्न किस्म की बीमारियां की चपेट में आ रहे हैं। उन्होंने खाप चौधरियों से गुहार लगाई कि उन्हें सुविधाएं नहीं उन्हें तो वह स्वच्छ वातावरण चाहिए जो उनके पूर्वज उनके लिए छोड़कर गए  थे। 

खाप चौधरियों व न्यायिक कमेटी के सदस्यों किसानों से किए सीधे सवाल

महापंचायत में मौजूद खाप प्रतिनिधियों व न्यायिक कमेटी के सदस्यों ने कीटाचार्य किसानों से सीधे सवाल जवाब किए। खाप चौधरियों ने कहा कि जब किसानों का कोई दोष नहीं है और न ही कीटों का तो फिर यह लड़ाई कैसे शुरू हुई। कीटाचार्य किसानों ने बताया कि पेस्टीसाइड कंपनियों ने किसानों को गुमराह कर इस लड़ाई के मैदान में उतार दिया है। खाप प्रतिनिधि सुरेश कोथ ने जब पिछले दो वर्षों से उनके क्षेत्र में शाकाहारी कीट सफेद मक्खी के प्रकोप का दुखड़ा जब पंचायत में सुनाया तो किसानों ने बताया कि यह सब कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण हो रहा है। कीटनाशकों के प्रयोग से शाकाहारी कीटों की संख्या बढ़ती है। 

99 प्रतिशत कीटनाशक वातावरण व जमीन में बेकार चला जाता है। 

मंच पर मौजूद न्यायिक कमेटी के सदस्य।
खाद्य एवं कृषि विशलेषक डॉ. देवेंद्र शर्मा ने बताया कि उन्होंने कृषि क्षेत्र में शोध के दौरान विभिन्न देशों का दौरा किया है और जो जानकारी उन्हें जींद जिले के किसानों से मिली है वैसी कहीं से भी नहीं मिली। डॉ. देवेंद्र शर्मा ने बताया कि किसान कीटों से फसलों को बचाने के लिए जिस पेस्टीसाइड का प्रयोग करते हैं, उसका ९९ प्रतिशत हिस्सा वातावरण व जमीन में चला जाता है। इससे हमारा वातावरण व खान-पान दूषित हो रहा है। उन्होंने एक साइंस मैगजीन का जिक्र करते हुए बताया कि पिछले साल तीन लाख लोगों ने आत्महत्या की है जिसका कारण पेस्टीसाइड है। उन्होंने बताया कि आज बच्चा मां के गर्भ में भी सुरक्षित नहीं है। गर्भ से ही बच्चे के अंदर पेस्टीसाइड के अंश पहुंच जाते हैं। 
पंचायत में भाग लेती महिला किसान।

  भोलेपन के चलते बेजुबान और बेकसूर कीटों को मार रहा है किसान 

न्यायिक कमेटी के सामने किसान और कीट दोनों का पक्ष अच्छी तरह से रखे जाने के बाद जस्टिस एसएन अग्रवाल की अध्यक्षता वाली ज्यूरी ने मौके पर यह व्यवस्था दी कि कई दशकों से किसानों और कीटों के बीच चली आ रही जंग में कीट बिना कसूर मरता रहा और किसान अपने भोलेपन के चलते अपनी जेब ढीली कर बेजुबान और बेकसूर कीटों को मारता रहा। दोनों में किसी का दोष नहीं था। इसके चलते ज्यूरी ने दोनों पक्षों के बीच समझौता करवाने का प्रयास किया। इसमें किसान ने यह तय किया कि अब वह अपनी फसलों में बिना वजह अंधाधुंध तरीके से कीटनाशक दवाओं का छिड़काव नहीं करेगा। साथ ही महापंचायत ने केंद्र सरकार के लिए एक प्रस्ताव भी पारित किया, जिसमें मांग की गई कि सरकार अपनी कृषि नीति में इस बात को शामिल करे की फसलों पर कीटनाशक दवाओं का अंधाधुंध छिड़काव नहीं हो। पूरे देश में जहर मुक्त थाली को लेकर सरकार एक बड़ा अभियान चलाए। इसके अलावा खाप पंचायतों ने भी अपने स्तर पर पूरे देश में जहर मुक्त थाली का अभियान चलाने का फैसला किया। खाप महापंचायत में हरियाणा के साथ-साथ पंजाब के किसानों ने भी भाग लिया। उत्तर भारत की 60 से ज्यादा खापों के प्रतिनिधि इस महापंचायत में शामिल हुए। 
मंच पर मौजूद खाप प्रतिनिधि।

किसानों ने हाथ उठाकर खाप के निर्णय का किया समर्थन

खाप महापंचायत में न्यायिक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर खाप प्रतिनिधियों को सौंपी। सर्वजातीय सर्वखाप महापंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने किसानों से पूछा कि खाप जो फैसला करेगी किसान उससे मंजूर करेंगे, तो किसानों ने हाथ उठाकर खाप के फैसले को स्वीकार करने का समर्थन किया। खाप पंचायत में फैसला लिया गया कि कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से नई कृषि नीति बनाने, कीट ज्ञान की मुहिम को इस नीति में शामिल करने, डॉ. सुरेंद्र दलाल के नाम से अवार्ड देने, कीटाचार्य किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए खाप पंचायत एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजेगी। 

महापंचायत में मंच पर मौजूद हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायधीश एसएन अग्रवाल, हरियाणा किसान आयोग के सदस्य सचिव डॉ. आरएस दलाल व डॉ. देवेंद्र शर्मा। 












गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

न्यायिक कमेटी के मार्गदर्शन में किसान-कीट विवाद सुलझाएगी खाप पंचायत

खाप पंचायतों के इतिहास में पहली बार बनाई जाएगी न्यायिक कमेटी
20 को निडाना में होगा अनोखी एवं अदभूत खाप महापंचायत का आयोजन

नरेंद्र कुंडू 
जींद। फतवे जारी करने के नाम से जानी-जाने वाली खाप पंचायतें 20 फरवरी को निडाना में आयोजित होने वाली अनोखी एवं अदभूत महापंचायत में न्यायिक कमेटी के मार्गदर्शन में किसान व कीट के विवाद को सुलझाएंगी। खाप पंचायतों के इतिहास में यह पहली बार होगा कि जब किसी विवाद को सुलझाने के लिए पंचायत में अलग से एक न्यायिक कमेटी का गठन किया जाएगा। इस न्यायिक कमेटी का चेयरमैन पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्ति न्यायधीश एसएन अग्रवाल को बनाया जाएगा और कृषि वैज्ञानिक तथा खाद्य विशेषज्ञ को भी इस न्यायिक कमेटी में शामिल किया जाएगा। यह न्यायिक कमेटी अपनी रिपोर्ट महापंचायत को सौंपेगी, इसके बाद महापंचायत अपना फैसला सुनाएगी। निडाना गांव में 20 फरवरी को होने वाली अनोखी सर्वजातीय सर्वखाप महापंचायत की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं।  

यह है पूरा मामला 

डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन से जुड़े कीटाचार्य किसानों ने जून 2012 में खाप प्रतिनिधियों को पत्र लिखकर किसानों और कीटों के बीच चली आ रही इस जंग को समाप्त करने की गुहार लगाई थी। किसानों द्वारा खापों को दिए गए पत्र में बताया गया था कि अधिक उत्पादन की चाह में किसानों द्वारा फसलों में अधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण बेजुबान कीटों की मौत हो रही है और मानव स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। जबकि प्रकृति ने सभी जीवों को इस धरती पर अपना जीवन निर्वाह करने का बराबर का अधिकार दिया है। किसानों ने बताया था कि पौधे भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर अपनी जरूरत के अनुसार कीटों को बुलाते हैं। कीटों का पौधों के साथ गहरा संबंध है लेकिन किसानों को गुमराह कर फसलों में जहर का प्रयोग करवाया जा रहा है। जहर के प्रयोग से मनुष्य के शरीर पर तो बुरा प्रभाव पड़ ही रहा, वहीं फसल में मौजूद बेजुबान कीटों की भी मौत हो रही है। जबकि कीटों का तो कोई दोष भी नहीं है। कीटाचार्य किसानों ने पत्र में गुहार लगाते हुए कहा था कि खाप पंचायतों ने बड़े-बड़े विवादों को आपासी सहमती से निपटाया है। इसलिए खाप पंचायतें किसानों और कीटों के इस झगड़े को भी आपसी सहमती से निपटाकर इस अंतहिन लड़ाई का पटाक्षेप करवाएं। 

कीटाचार्य किसान रखेंगे बेजुबान कीटों का पक्ष 

20 फरवरी को निडाना में आयोजित होने वाली खाप महापंचायत में किसान व कीट विवाद को सुलझाने के लिए किसान अपना पक्ष रखेंगे तो कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े कीटाचार्य किसान बेजुबानों का पक्ष रखेंगे। कीटाचार्य किसान खाप प्रतिनिधियों को बताएंगे कि कीटों का फसल में क्या महत्व है। इसके लिए किसानों ने कीटों को दो ग्रुपों में बांटा है। एक ग्रुप शाकाहारी कीटों का पक्ष रखेगा तो दूसरा ग्रुप मांसाहारी कीटों का पक्ष रखेगा। 

क्यों बनाई जाएगी न्यायिक कमेटी

सर्व जातीय सर्वखाप हरियाणा के संयोजक कुलदीप ढांडा ने बताया कि यह विवाद काफी पेचिदा है। इस विवाद को सुलझाने में खाप प्रतिनिधियों से किसी तरह का कोई गलत फैसला नहीं हो इसके लिए खाप पंचायत में न्यायिक कमेटी बनाने का निर्णय लिया गया है। इस न्यायिक कमेटी का चेयरमैन पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्ति न्यायधिश एसएन अग्रवाल को चेयरमैन बनाया जाएगा। इसके अलावा कृषि वैज्ञानिक तथा खाद्य विशेषज्ञ को इस न्यायिक कमेटी में शामिल किया जाएगा। यह न्यायिक कमेटी किसानों के पक्ष को सुनने के बाद अपना फैसला खाप पंचायत को देंगे। इसके बाद खाप पंचायत अपना फैसला सुनाएगी। इस खाप पंचायत में सुनाया जाने वाला फैसला पूरी तरह से सामाजिक, न्यायिक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर होगा।  

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

लोगों के झगड़े निपटाने वाली खाप सुनेंगी बेजुबानों का दर्द

20 को निडाना में खाप महापंचायत में निपटाया जाएगा किसानों व कीटों का विवाद

खाप पंचायत में कृषि वैज्ञानिक व सेवानिवृत्त न्यायधीशों को भी किया जाएगा आमंत्रित

नरेंद्र कुंडू
जींद।
लोगों के आपसी विवाद सुलझाने के लिए पहचानी जाने वाली उत्तर भारत की खाप पंचायतें अब किसानों और कीटों के बीच पिछले लगभग चार दशकों से चले आ रही लड़ाई में समझौता करवाने की पहल करेंगी। इसके लिए आगामी 20 फरवरी को खाप महापंचायत का आयोजन किया जाएगा। जींद-गोहाना मार्ग पर निडाना गांव के पास स्थित डैफोडिल्स स्कूल में आयोजित होने वाली खाप महापंचायत में उत्तर भारत की विभिन्न खापों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक तथा सेवानिवृत्ति न्यायधीशों को भी शामिल किया जाएगा। इस खाप महापंचायत में शामिल होने वाले खापों के चौधरी पंचायत में बेजुबान कीटों और किसानों का दर्द सुनेंगे। खाप पंचायत के माध्यम से वैज्ञानिक तथा सामाजिक दृष्टिकोण से किसानों और कीटों के इस विवाद को समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों में समझौते का प्रयास किया जाएगा। ताकि इस लड़ाई में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से हर रोज काल का ग्रास बन रहे किसानों व बेजुबान कीटों को बचाकर थाली को जहरमुक्त बनाया जा सके। यह अपने आप में एक अनोखी पंचायत होगी। क्योंकि इससे पहले केवल लोगों के झगड़े निपटाने के लिए ही पंचायतों का आयोजन होता रहा है।

तीन साल पहले किसानों ने खापों से लगाई थी समझौते की गुहार

सर्व जातीय सर्वखाप हरियाणा के संयोजक कुलदीप ढांडा ने सोमवार को यहां पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन से जुड़े कीटाचार्य किसानों ने जून 2012 में खाप प्रतिनिधियों को पत्र लिखकर किसानों और कीटों के बीच चली आ रही इस जंग को समाप्त करने की गुहार लगाई थी। किसानों द्वारा खापों को दिए गए पत्र में बताया गया था कि अधिक उत्पादन की चाह में किसानों द्वारा फसलों में अधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण बेजुबान कीटों की मौत हो रही है और मानव स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। जबकि प्रकृति ने सभी जीवों को इस धरती पर अपना जीवन निर्वाह करने का बराबर का अधिकार दिया है और किसी न किसी रूप में उसका प्रकृति के साथ संबंध हैं। पौधे भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर अपनी जरूरत के अनुसार कीटों को बुलाते हैं। कीटों का पौधों के साथ गहरा संबंध है। बस जरूरत है तो इस संबंध को पहचानने की। कीटाचार्य किसानों ने पत्र में गुहार लगाते हुए कहा था कि खाप पंचायतों ने बड़े-बड़े विवादों को आपासी सहमती से निपटाया है। इसलिए खाप पंचायतें किसानों और कीटों के इस झगड़े को भी आपसी सहमती से निपटाकर इस अंतहिन लड़ाई का पटाक्षेप करवाएं। इस अवसर पर उनके साथ बूरा खाप के महासचिव भलेराम बूरा, चहल खाप के संरक्षक दलीप चहल, बहतरा खाप के प्रधान केके मिश्रा, ढुल खाप के प्रधान इंद्र सिंह  ढुल, कंडेला खाप के प्रधान टेकराम कंडेला, राठी खाप के प्रधान डॉ. रणबीर राठी, राजेंद्र कंडेला, आजाद रेढू, केहर सिंह, पूर्व सरपंच ओमप्रकाश, बलजीत रेढू, बीकेयू के जिला प्रधान रामकुमार, कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक, सुरेश अहलावत, पूर्व सरपंच बलवान राजपुरा, रामभगत पूर्व सरपंच, रामदेवा, अनिल नंबरदार, सत्यवान, सुरेंद्र, देवेंद्र, विक्की जेई मौजूद रहे।

18 जून 2012 को निडाना में हुआ था पहली खाप पाठशाला का आयोजन

ढुल खाप के प्रधान इंद्र ङ्क्षसह ढुल ने बताया कि किसान-कीट विवाद को निपटाने में खाप प्रतिनिधियों से किसी प्रकार का गलत फैसला न हो इसके लिए खाप प्रतिनिधियों ने इस लड़ाई की तह में जाने के लिए बारिकी से इसे समझने का प्रयास किया। इसके लिए 18 जून 2012 को निडाना गांव में पहली खाप पाठशाला का आयोजन किया गया। 18 सप्ताह तक चली इस खाप पाठशाला में प्रदेशभर की भिन्न-भिन्न खापों के 100 से भी ज्यादा प्रतिनिधियों ने भाग लेकर पौधों और कीटों के आपसी संबंध के बारे में जानकारी हासिल की। ढुल ने बताया कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इस मुहिम को मान्यता दिलवाने के लिए खाप पंचायतें पिछले तीन वर्षों से इस मुहिम का अध्यन कर रही हैं। क्योंकि कृषि क्षेत्र में किसी भी प्रयोग को वैज्ञानिक मान्यता दिलवाने के लिए तीन वर्षों तक उस प्रयोग पर अध्यन करना जरूरी होता है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय समाकेतिक कीट प्रबंधन (आईपीएम) व चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कृषि वैज्ञानिक भी इस मुहिम पर अपनी रिसर्च कर रहे हैं।

कृषि वैज्ञानिकों व सेवानिवृत्ति न्यायधीशों को भी किया जाएगा आमंत्रित

पत्रकारों से बातचीत करते खापों के प्रतिनिधि। 
राठी खाप के प्रधान डॉ. रणबीर राठी ने बताया कि 20 फरवरी को जींद-गोहाना मार्ग पर निडाना गांव के पास स्थित डैफोडिल्स स्कूल में आयोजित होने वाली इस खाप महापंचायत में उत्तर भारत की सभी खापों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ आब्जर्वर के तौर पर कृषि वैज्ञानिकों तथा सेवानिवृत्ति न्यायधीशों को भी आमंत्रित किया जाएगा। ताकि सामाजिक तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इस विवाद का समाधान निकाला जा सके। अपने आप में यह एक अनोखी पंचायत होगी। क्योंकि इससे पहले खापों ने केवल मनुष्य की लड़ाई-झगड़ोंं को निपटाया था। कीटों व किसानों का यह पहला मामला खाप के पास आया है। 




मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

'कांधै ऊपर जहर की टंकी मेरै कसूती रड़कै हो'

जहर मुक्त थाली विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित

नरेंद्र कुंडू

जींद। कीट साक्षरता मिशन द्वारा बुधवार को शहर के रोहतक रोड स्थित किसान कृषि प्रशिक्षण केंद्र (हमेटी) में जहरमुक्त थाली विषय पर एक दिवसीय नेशनल सेमिनार का आयोजन किया गया। इसमें निडाना में चलाई गई कीट साक्षरता के परिणामों पर भी चर्चा की गई। कीट साक्षरता का हिस्सा रही निडाना, रधाना व ललितखेड़ा गांव की महिलाओं ने बताया कि अमर उजाला का सहयोग मिलने से उनके अभियान को मजबूती मिली है। इस दौरान महिलाओं ने कीटों पर आधारित गीत भी प्रस्तुत किए, जिसमें 'कांधै ऊपर जहर की टंकी मेरै कसूती रड़कै हो' के माध्यम से कीटनाशकों के प्रयोग से शरीर और पर्यावरण को हो रहे नुकसान के बारे में बताया। गीत के माध्यम से बताया गया कि किस प्रकार कीटनाशकों के कारोबारियों का धंधा जम रहा है और किसान बर्बाद हो रहा है। कार्यक्रम में मौजूद सभी लोगों और कृषि वैज्ञानिकों ने कीट गीत की सराहना की। सेमिनार में हरियाणा किसान आयोग के मैंबर सचिव डॉ. आरएस दलाल, चौ. चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हिसार (एचएयू) से डायरेक्टर रिसर्च डॉ. एसएस सिवाच, जींद के एसडीएम वीरेंद्र सहरावत, जिला कृषि उपनिदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग, हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण, बराह खाप प्रधान कुलदीप ढांडा, अमर उजाला से महाप्रबंधक बजरंग राठौर, न्यूज एडिटर अर्जन निराला, स्वर्गीय डॉ. सुरेंद्र दलाल की पत्नी कुसुम दलाल, हिसार बागवानी से डॉ. भूपेंद्र दूहन, कृषि विभाग से एपीपीओ अनिल नरवाल, एसटीओ डॉ. संत मलिक, ट्रेनिंग इंचार्ज बलजीत लाठर, मास्टर ट्रेनर डॉ. राजेश लाठर, डॉ. सुभाष, एएसओ डॉ.
 कार्यक्रम में दीप प्रजवलित करते अतिथि।
सर्वजीत, एडीओ डॉ. कमल सैनी, कैलिफोर्निया (यूएसए) यूनिवर्सिटी के शोधार्थी हैली, निकोलस, जिला सूचना एवं लोक संपर्क अधिकारी सूबे सिंह, अखिल भारतीय जागरूक किसान मोर्चा के अध्यक्ष सुनील कंडेला सहित कीट साक्षरता मिशन से जुड़े सैंकड़ों महिला व पुरुष किसान मौजूद रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथिगणों द्वारा दीप प्रज्
 कीट ज्ञान का अपना अनुभव बताती कीटाचार्य।
सेमिनार को संबोधित करते बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा।
जवलित कर किया गया। कार्यक्रम के समापन पर अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा सभी अतिथिगणों को स्मृति चिह्न भेंट किए गए। 
हरियाणा किसान आयोग के मैंबर सचिव डॉ. आरएस दलाल ने अपने संबोधन में कहा कि डॉ. सुरेंद्र दलाल ने कीट ज्ञान की एक नई क्रांति को जन्म दिया है। यह मुहिम सरकारी अधिकारियों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत है। कीट ज्ञान की यह मुहिम किसी सरकारी विभाग की मुहिम नहीं होकर सामाजिक मुहिम है। इसी के चलते इस मुहिम ने सरकारी विभागों के अधिकारियों, किसानों, सामाजिक संस्थाओं तथा मीडिया को भी एक छत के नीचे लाकर खड़ा कर दिया है। जब तक किसानों को कीटों के बारे में जानकारी नहीं होगी तब तक जहर से मुक्ति संभव नहीं है। इसलिए कृषि विश्वविद्यालयों को विद्यार्थियों के विषय में शामिल करना चाहिए और कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े किसानों से प्रशिक्षण दिलवाएं ताकि कीट विज्ञान जैसे जटिल विषय को आसानी से विद्यार्थियों को रूबरू करवाया जा सके।
हरियाणा किसान आयोग के सदस्य सचिव डॉ. आरएस दलाल को सम्मानित करते किसान।
कार्यक्रम में पहुंचे कैलिफोरनिया विश्वविद्यालय के शोधार्थी।

कीटनाशकों के प्रयोग से बढ़ा सफेद मक्खी का प्रकोप

एचएयू डायरेक्टर रिसर्च डॉ. एसएस सिवाच ने कहा कि कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े किसानों ने कीटों पर अनोखे शोध किए हैं। एचएयू से इस शोध को वैज्ञानिक मान्यता दिलवाने के लिए इस क्षेत्र में काम चल रहा है। डॉ. सिवाच ने कहा कि इस बार कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप काफी ज्यादा रहा है। जहां-जहां सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया गया वहां-वहां सफेद मक्खी का प्रकोप उतना ही ज्यादा बढ़ा है। 

किसानों के अनुभव से बढ़ा ज्ञान

एसडीएम वीरेंद्र सहरावत ने कहा कि कीट ज्ञान के बारे में जितनी जानकारी यहां के किसानों को है, उतनी जानकारी तो उन्हें भी नहीं है। इस कार्यक्रम को देखकर उन्हें काफी जानकारी हासिल हुई है। इससे पहले उन्हें प्रकृति के इस चक्र के बारे में इतनी बारीकी से जानकारी नहीं थी। किसानों के अनुभव से यह साफ हो गया है कि कीट ज्ञान के बिना थाली को जहरमुक्त बनाना संभव नहीं है।

कृषि विभाग उठा रहा है विशेष कदम

जिला उपकृषि निदेशक डॉ. रामप्रताप सिहाग ने कहा कि इस काम को करीब से नहीं देखा जाए तो इस काम को समझ पाना संभव नहीं है। खेतों में जाकर ही यह ज्ञान अर्जित किया जा सकता है। इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कृषि विभाग की तरफ से विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।
 किसानों को संबोधित करते एचएयू के शोध विभाग के निदेशक डॉ. एसएस सिवाच।

जींद के किसानों से प्रेरणा लेकर बरवाला में चलाई पाठशाला

हिसार के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण ने कहा कि कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण खान-पान दूषित हो रहा है और इससे मनुष्य के का शरीर बीमारियों की चपेट में आ रहा है। उन्होंने कहा कि जींद के किसानों से प्रेरणा लेकर उन्होंने बरवाला में भी इसी तर्ज पर किसान पाठशालाएं शुरू करवाई हैं। इन्हीं किसानों ने वहां जाकर किसानों को प्रशिक्षित किया है। डॉ. भ्याण ने कहा कि पेस्टीसाइड खेती को रोकने के लिए उन्होंने हिसार में कीट साक्षरता कमेटी बनाई है।
कार्यक्रम के दौरान कीटाचार्यों को सम्मानित करती कुसुम दलाल।

किसान और कीटों की लड़ाई में खाप बनेंगी मध्यस्थ

कार्यक्रम के दौरान बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कहा कि स्वर्गीय डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा उन्हेें किसानों और कीटों के बीच छिड़ी लड़ाई को समाप्त करने के लिए ज्ञापन दिया था। अब जल्द ही इस विषय पर खाप पंचायत बुलाई जाएगी। उन्होंने कहा कि इस खाप पंचायत में देश भर से कृषि वैज्ञानिकों और कीट विशेषज्ञों को भी बुलाया जाएगा। ढांडा ने कहा कि पिछले 40-50 सालों से किसानों ने कीटों की सैकड़ों पीढिय़ों को नष्ट करके देख लिया, लेकिन हमेशा जीत कीटों की हुृई है। अब समय आ गया है कि कीटों और किसानों के बीच सहयोग होना चाहिए। लड़ाई से जो कुछ नहीं हुआ, अब आपसी मेलजोल से वह किया जाएगा। ढांडा ने कहा कि अमर उजाला फाउंडेशन ने इस लड़ाई को रोकने में महत्वपूर्ण सहयोग दिया है। यह बहुत ही पुण्य का काम है। उन्होंने कहा कि फाउंडेशन के इस प्रयास से यह मुहिम पूरे उत्तर भारत के किसानों तक पहुंची है, जो सबसे बड़ा काम है। अमर उजाला के प्रयास का ही परिणाम है कि पंजाब, हिमाचल तथा अन्य राज्यों के किसान भी इस विधि को देखने के लिए जींद का रूख कर रहे हैं।
किसानों को संबोधित करते एसडीएम विरेंद्र सिंह सहरावत।

पैदावार का तुलनात्मक अध्ययन

कार्यक्रम के दौरान हिसार के जिला उद्यान अधिकारी डॉ. बलजीत भ्याण तथा एडीओ डॉ. कमल सैनी ने पीपीटी के माध्यम से उन खेतों की पैदावार को बताया, जहां कीटनाशकों का प्रयोग नहीं हुआ। इन खेतों में अन्य के मुकाबले अधिक पैदावार हुई और कीटनाशकों का खर्च भी बचा।

बेटा खोकर पता चला कीटनाशकों का नुकसान

अपने अनुभव बताते हुए निडानी गांव के किसान जयभगवान ने कहा कि फसल पर कीटनाशक  के कारण उसका जवान बेटा कैंसर की चपेट में आ गया। राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी बेटे को खोने के बाद उन्हें फसलों पर छिड़के जा रहे जहर के असली नुकसान का पता चला है और पांच साल से वह बिना कीटनाशक की खेती कर रहा है। इससे पैदावान कम होने की बजाय बढ़ रही है।


डॉ. बलजीत सिंह भ्याण को सम्मानित करते अमर उजाला के जीएम बजरंग सिंह राठौर।
कीटों की प्रजंटेशन देती महिला किसान।

कार्यक्रम के दौरान प्रजंटेशन  देते डॉ. बलजीत सिंह भ्याण












रविवार, 18 जनवरी 2015

भाजपा के मंत्रियों को पसंद आया 'म्हारे किसानों का कीट ज्ञान'

केंद्रीय राज्य कृषि मंत्री ने कीटाचार्य किसानों से मांगा कीट ज्ञान का प्रस्ताव
दिल्ली में मुरली मनोहर जोशी के आवास पर भाजपा नेताओं के साथ हुई किसानों की मीटिंग

नरेंद्र कुंडू 
जींद। थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जिले में चल रही कीट ज्ञान की मुहिम को देशभर में फैलाने के लिए अब भाजपा सरकार इस पर मंथन करेगी। भाजपा के मंत्रियों को म्हारे किसानों का यह कीट ज्ञान पसंद आ गया है। कीट ज्ञान की इस मुहिम को देश में कैसे फैलाया जाए और किसानों को इससे क्या फायदा होगा इस विषय पर केंद्रीय राज्य कृषि मंत्री संजीव बाल्याण ने कीटाचार्य किसानों से एक प्रस्ताव मांगा है। कीटाचार्य किसानों द्वारा जल्द ही एक प्रस्ताव तैयार कर कृषि मंत्री को भेजा जाएगा।
मकर संक्रांति के अवसर पर भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी द्वारा दिल्ली के राय सिन्हा रोड पर स्थित अपने निवास पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में भाजपा के केंद्रीय राज्य कृषि मंत्री संजीव बाल्याण, केंद्रीय राज्य पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, भाजपा के केंद्रीय एवं किसान नेता नरेश सिरोही तथा कई अन्य बुद्धिजीवी लोगों को बुलाया गया था। इस कार्यक्रम में जींद जिले के किसानों को भी विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। भाजपा नेताओं के आमंत्रण पर कीटाचार्य रणबीर मलिक के नेतृत्व में महिला किसान सविता, मीना मलिक तथा शकुंतला मीटिंग में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। यहां भाजपा नेताओं के साथ लगभग दो घंटे तक हुई मीटिंग में कीटाचार्य किसानों ने डॉ. सुरेंद्र दलाल द्वारा जींद जिले में शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम से अवगत करवाया। किसानों ने बताया कि फसल में आने वाले शाकाहारी कीटों को नियंत्रण करने की जरूरत नहीं है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट खुद ही शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर किसान के लिए कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। किसानों को तो गुमराह कर कीटनाशकों के दलदल में धकेला जा रहा है। यदि किसानों को कीट ज्ञान से अवगत करवा दिया जाए तो किसानों को कीटनाशकों के
केंद्रीय राज्य मंत्री संजीव बाल्याण के साथ बातचीत करते कीटाचार्य किसान। 
दलदल से निकालने के साथ-साथ खेती पर बढ़ते किसानों के खर्च को कम किया जा सकता है। भाजपा के केंद्रीय राज्य कृषि मंत्री संजीव बाल्याण ने किसानों के कीट ज्ञान के महत्व को स्वीकार करते हुए कीटाचार्य किसानों को इस पूरी मुहिम का एक प्रस्ताव तैयार कर जल्द उन्हें भेजने के लिए कहा। अब किसानों द्वारा जल्द ही एक प्रस्ताव तैयार कर कृषि मंत्री को भेजा जाएगा।

लोकसभा चुनाव से पहले भी भाजपा नेताओं ने किसानों के साथ की थी मीटिंग

देश में लोकसभा चुनाव से पहले भी भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े किसानों के साथ 9 मार्च 2014 को दिल्ली में अपने निवास पर एक मीटिंग की थी। मीटिंग के दौरान किसानों ने मुरली मनोहर जोशी के साथ अपने अनुभव सांझा किए थे। किसानों के कीट ज्ञान से प्रभावित होकर मुरली मनोहर जोशी ने कीटाचार्य किसानों से वायदा किया था कि उनकी पार्टी के सत्ता में आने के बाद इस कीट ज्ञान की मुहिम को देशभर में फैलाया जाएगा। देश के किसानों को कीट से अवगत करवाकर थाली को जहरमुक्त किया जाएगा।




शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

भारत में ऑर्गेनिक उत्पाद की नहीं कोई प्रमाणिकता

अमेरिका में ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए सरकार से लेना पड़ता है प्रमाण पत्र

नरेंद्र कुंडू
जींद। अमेरिका की केलिफोरनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधार्थी हैली तथा निकोलस ने कहा कि भारत में ऑर्गेनिक उत्पाद की प्रमाणिकता के लिए बिक्री केंद्रों पर कोई व्यवस्था नहीं है। जबकि अमेरिका में प्रत्येक बिक्री केंद्र पर ओर्गेनिक उत्पाद की प्रमाणिकता के लिए मशीनों की व्यवस्था होती है। मशीन में ओर्गेनिक उत्पाद की जांच के बाद ही उसे प्रमाणित किया जाता है लेकिन भारत में बिक्री केंद्रों पर यह व्यवस्था नहीं होने के कारण ओर्गेनिक उत्पादों की गुणवत्ता पर संदेह बना रहता है। लोग ओर्गेनिक के नाम पर मिलावटी या रासायनिक उत्पादों को भी बेच देते हैं। ऑर्गेनिक फार्मिंग पर शोध के लिए जींद पहुंचे शोधार्थी शनिवार को जाट धर्मशाला में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।
शोधर्थी हेली तथा निकोलस ने कहा कि अमेरिका में ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए सरकार से प्रमाण पत्र लेना पड़ता है। बिना प्रमाण पत्र के किसान ऑर्गेनिक खेती नहीं कर सकता। इसी के चलते भारत की बजाए अमेरिका में ऑर्गेनिक उत्पाद थोड़े महंगे हैं। अमेरिका में ऑर्गेेनिक उत्पादों की मांग काफी ज्यादा है। वहां बादाम तथा अंगूर की खेती सबसे ज्यादा होती है। उन्होंने कहा कि अमेरिका में खेती का ज्यादातर काम मशीनों द्वारा ही किया जाता है। जबकि भारत में मशीनों से खेती का बहुत कम काम होता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और भारत के किसानों में जो समानता है, वह यह है कि दोनों ही देशों के किसान फसल के अधिक उत्पादन की तरफ ध्यान देते हैं। उन्होंने कहा कि आज ऑर्गेनिक फार्मिंग की काफी जरूरत है। दूषित खान-पान के कारण मनुष्य लगातार बीमारियों की चपेट में आ रहा है। फसलों में अधिक रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण मनुष्य व जमीन दोनों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है।
जाट धर्मशाला में पत्रकारों से बातचीत करते शोधार्थी। 
उन्होंने पंजाब का उदहारण देते हुए कहा कि पंजाब में आज यह स्थिति है कि लगभग प्रत्येक घर में कैंसर का एक मरीज है। भविष्य में इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा देना होगा। इसके लिए किसानों को जागरूक करना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि किसान आम तौर पर यह सोचते हैं कि ऑर्गेनिक फार्मिंग से उत्पादन कम होता है। जबकि यह सही नहीं है। ऑर्गेनिक फार्मिंग से भी उत्पादन में बढ़ोतरी की जा सकती है। उन्होंने कहा कि अपने एक माह के शोध के दौरान वह जिले के अलग-अलग क्षेत्र के फार्मों का दौरा कर यहां के किसानों से ऑर्गेनिक फार्मिंग के गुर सीखेंगे तथा अपने देश में अपनाई जा रही ऑर्गेनिक फार्मिंग की पद्धति के बारे में यहां के किसानों को बताएंगे। ऑर्गेनिक फार्मिंग के क्या लाभ हैं इसके बारे में भी किसानों को बताया जाएगा।



देश में जहरमुक्त खेती के लिए होगी तीसरी क्रांति

ऑर्गेनिक खेती और स्वास्थ्य विषय पर किया सेमिनार का आयोजन 


नरेंद्र कुंडू 
जींद। दूषित खान-पान के कारण बढ़ रही बीमारियों को देखते हुए जिले में ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए शनिवार को जाट धर्मशाला में भारतीय जागरूक किसान मोर्चा द्वारा ओर्गेनिक खेती और स्वास्थ्य विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार की अध्यक्षता मोर्चा के अध्यक्ष सुनील कंडेला ने की। सेमिनार में मुख्य रूप से अमेरिका की केलिफोरनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधार्थी हैली तथा निकोलस विशेष रूप से मौजूद रहे। कृषि विकास अधिकारी डॉ. कमल सैनी ने किसानों को आर्गेनिक खेती के बारे में विस्तार से जानकारी दी। वहीं ओर्गेनिक खेती के अभियान से जुड़े प्रगतिशील किसानों ने भी सेमिनार में अपने विचार सांझा किए।
डॉ. कमल सैनी ने सेमिनार में मौजूद किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि देश में हरित तथा श्वेत क्रांति के बाद तीसरी क्रांति जहरमुक्त खेती के लिए आएगी। उन्होंने कहा कि किसान का सबसे ज्यादा खर्च कीटनाशकों पर होता है और फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के कारण हमारा स्वास्थ्य स्तर लगातार गिर रहा है। कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं। डॉ. सैनी ने कहा कि बड़ी-बड़ी पेस्टीसाइड कंपनियों द्वारा किसानों को गुमराह करने के लिए एक बाजार तैयार किया गया है। कीटों को मारने के लिए कीटनाशक, बीमारियों की रोकथाम के लिए फंजीसाइड तथा उत्पादन बढ़ाने के नाम पर रासायनिक उर्वरक तैयार किए जा रहे हैं। जबकि वास्तव में किसानों को इनकी जरूरत नहीं होती है। उन्होंने कहा कि अधिक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने से हमारे साथ-साथ हमारी जमीन की सेहत भी खराब हो चुकी है। आज जमीन का पीएच आठ से ज्यादा पर पहुंच चुका है। जबकि उपजाऊ जमीन का पीएच सात के आस-पास ही रहता है। उन्होंने कहा कि अगर थाली में बढ़ते जहर को रोकना है तो किसानों को जागरूक करना होगा। किसानों को फसल में आने वाले कीटों के महत्व के बारे में बताना होगा। अमेरिका से आए शोधार्थी हैली और निकोलस ने कहा कि किसान ऑर्गेनिक खेती से अच्छी पैदावार ले सकते हैं, जैसा की उनके देश के किसान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पेस्टीसाइड के अधिक प्रयोग के कारण हमारे खान-पान के साथ-साथ भू-जल तथा वातावरण भी दूषित हो रहा है। उन्होंने कहा कि 80 प्रतिशत बीमारियां दूषित खान-पान के कारण हो रही हैं। एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 20 से 25 साल के युवाओं में जो हड्डियों से संबंधित बीमारियां बढ़ रही हैं, वह सब दूषित खान-पान की ही देन है। सुनील कंडेला ने कहा कि उनका उद्देश्य लोगो को जहरमुक्त खान-पान मुहैया करवाना है और इसकी शुरूवात वह अपने जींद जिले से ही करेंगे। आने वाले समय में लोगों को ऑर्गेनिक गेहूं की 306 किस्म उपलब्ध करवाने का प्रयास किए जाएंगे। इस अवसर पर सेमिनार में ऊधम सिंह राणा, जागरूक किसान शीशपाल लाठर, अनिल कपूर, कर्मबीर श्योकंद, प्रदीप बडोदी, सुरेंद्र रेढू अधिवक्ता, आनंद ढुल अधिवक्ता, अमरजीत ढुल, राजसिंह  शाहपुर  मौजूद रहे।

सेमिनार में किसानों से बातचीत करते शोधार्थी हैली तथा निकोलस भी मौजूद रहे। 




रविवार, 14 दिसंबर 2014

आयुष को अभी ओर करना पड़ेगा संजीवनी का इंतजार

आयुष विभाग की पंचकर्मा की ज्यादातर मशीनें खराब
निदेशक ने कहा बजट की कमी के चलते अभी नहीं खरीदी जा सकेंगी नई मशीनें

नरेंद्र कुंडू 
जींद। सामान्य अस्पताल में स्थित जिला आयुर्वेदिक एवं पंचकर्म विभाग को अभी 'संजीवनी' के लिए ओर इंतजार करना पड़ेगा। विभाग के पास बजट की कमी के चलते आयुष को अभी नई मशीनों की सौगात नहीं मिल पाएगी। आयुष विभाग के चिकित्सकों को कंडम मशीनों के सहारे ही यहां आने वाले मरीजों का उपचार करना पड़ेगा। वहीं जोड़ों, गठिया बॉय व सरवाइकल इत्यादि के मरीजों को शरीर की मालिश के लिए ऑयल भी खुद बाजार से ही लेकर आना पड़ेगा। बजट की कमी के चलते अभी आयुष विभाग मरीजों को अच्छी सुविधाएं नहीं दे पाएगा।  
आयुर्वेदिक, पंचकर्म एवं योग पद्धति की सहायता से मरीजों के उपचार के लिए कई वर्ष पहले स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिला स्तर पर सामान्य अस्पताल में आयुष सैंटर स्थापित किए गए थे। आयुष सैंटरों की स्थापना के बाद ही यहां मरीजों के उपचार के लिए सिरोधारा, स्टीम बॉथ, हैंडव्हील, जोगर मशीन, वैक्सबॉथ, एल्ट्रावायलर लैंप, इंफरा रेड लैंप जैसी आधुनिक मशीनें खरीदी थी लेकिन विभाग द्वारा मशीनें खरीदने के बाद समय पर इन मशीनों की रिपेयरिंग नहीं करवाने या रखरखाव के अभाव में ज्यादातर मशीनें जवाब दे गई। पिछले लगभग दो वर्षों से यह मशीनें खराब पड़ी हुई हैं। मशीनें खराब होने के कारण मरीजों को सही विधि से उपचार नहीं मिल पा रहा है। इससे मरीजों को पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। वहीं पिछले दो-तीन माह से आयुष सैंटर में मरीजों की मालिश के लिए ऑयल व मोम भी नहीं है। इसके चलते मरीजों को बाजार से ऑयल खरीद कर लाना पड़ रहा है।

मशीनों के लिए अभी लगभग दो माह ओर करना पड़ेगा इंतजार 

आयुष विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा गत पांच दिसंबर को जिला स्तर के सभी आयुष अधिकारियों को पंचकुला में मीटिंग के लिए बुलाया था। मीटिंग में उच्च अधिकारियों द्वारा सभी सैंटरों के अधिकारियों से उनकी समस्याएं मांगी थी। मीटिंग में सभी सेंटरों की तरफ से उपचार के लिए रखी गई मशीनें खराब होने की समस्या उच्च अधिकारियों के समक्ष रखी गई थी। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मीटिंग में विभाग के उच्च अधिकारियों ने विभाग के पास बजट का अभाव होने की दुहाई देकर अभी नई मशीनें खरीदने से मना कर दिया है। विभाग के उच्च अधिकारियों ने आगामी दो-तीन माह के अंदर-अंदर नई मशीनें खरीदने का आश्वासन सैंटर के अधिकारियों को दिया है। 
 सामान्य अस्पताल में स्थित आयुष विभाग के सैंटर का फोटो।

हर 6 साल में बदलनी होती हैं मशीनें

सामान्य अस्पताल में आयुष सैंटर को खुले हुए कई वर्ष बीत चुके हैं। विभाग द्वारा आयुष के सैंटर में पंचकर्म के लिए खरीदी गई मशीनों को आठ साल से भी ज्यादा का समय बीत चुका है। मशीनों की मियाद खत्म होने के कारण ज्यादातर मशीनें कंडम हो चुकी हैं। जबकि नियम के अनुसार पंचकर्म के लिए रखी गई मशीनों को हर 6 साल बाद बदलना या रिपेयर करवाना होता है। 

यह-यह मशीनें हैं खराब 

जिला आयुर्वेदिक एवं पंचकर्म केंद्र पर मरीजों के उपचार के लिए सिरोधारा, स्टीम बॉथ, हैंडव्हील, जोगर मशीन, वैक्सबॉथ, एल्ट्रावायलर लैंप, इंफरा रेड लैंप मशीनें रखी गई हैं। इनमें से स्टीम बॉथ, सिरोधारा, जोगर मशीन, एल्ट्रावायलर लैंप खराब स्थिति में हैं। जब से यहां पंचकर्म केंद्र की स्थापना हुई है उसके बाद से इनकी एक बार भी रिपेयरिंग नहीं हो पाई है। पिछले कई वर्षों से यह मशीनें खराब हालत में स्टोर रूम में पड़ी हुई हैं। वहीं सरवाइकल, जोड़ों के दर्द आदि का उपचार तेल की मालिश से किया जाता है लेकिन पिछले कई माह से यहां तेल नहीं है। वहीं घुटनों के दर्द के उपचार में प्रयोग होने वाल मोम भी कई वर्ष पुराना है। आज तक इस मोम को भी नहीं बदला गया है। 

जिला अधिकारी के पास नहीं होता बजट 

पंचकर्म सेंटर पर किसी भी प्रकार की कोई परेशानी होती है तो उसके लिए उच्च अधिकारियों को शिकायत भेजनी पड़ती है। इससे समस्या के समाधान में काफी लंबा वक्त लग जाता है। इस बार विभाग के उच्च अधिकारियों के साथ हुई मीटिंग में इस बात को प्रमुखता से रखा गया है कि जिला अधिकारी को भी कुछ बजट उपलब्ध करवाया जाए ताकि पंचकर्म सेंटर पर आने वाली छोटी-मोटी समस्याओं का तुरंत समाधान करवाया जा सके। मीटिंग में विभाग के उच्च अधिकारियों के समक्ष सभी समस्याएं रखी गई हैं। विभाग के उच्च अधिकारियों ने जल्द ही सभी समस्याओं के समाधान का आश्वासन दिया है। 
डॉ. धर्मपाल
जिला आयुर्वेदिक अधिकारी

विभाग के पास बजट की कमी 

विभाग के पास बजट की कमी चल रही है। पांच दिसंबर को अधिकारियों के साथ हुई मीटिंग में इस बात पर चर्चा हुई थी। जिन सैंटरों पर ज्यादा परेशानी थी वहां के लिए कुछ बजट तैयार भी किया गया था लेकिन जींद के सैंटर के लिए इस मीटिंग में कुछ बजट तैयार किया गया था या नहीं इसके बारे में रिकार्ड चैक करने के बाद ही कुछ बताया जा सकेगा।
डॉ. संगीता नेहरा, डायरेक्टर
आयुष विभाग


शनिवार, 13 दिसंबर 2014

झुग्गी-झोपडिय़ों में जला रहा अक्षर ज्ञान का दीप

सेवानिवृत्त प्राचार्य गरीब बच्चों को कर रहा शिक्षित
झुग्गी-झोपडिय़ों में ही शुरू की पाठशाला
शिक्षा देने के साथ-साथ खुद ही उठा रहा कापी-किताबों का खर्च

नरेंद्र कुंडू
जींद। आज आधुनिकता तथा भौतिकवाद के इस युग में लोग बिना स्वार्थ के एक कदम भी नहीं रखते हैं लेकिन वहीं एक शख्स ऐसा भी है जो निस्वार्थ भाव से झुग्गी-झोपडिय़ों में अक्षर ज्ञान का दीप जला कर गरीब बच्चों के जीवन को रोशन करने का काम कर रहा है। हम जिक्र कर रहे हैं शहर के अर्बन एस्टेट निवासी सेवानिवृत्त प्राचार्य कृष्णचंद शर्मा का। कृष्णचंद शर्मा इन गरीब बच्चों को झुग्गी-झोपडिय़ों में जाकर कखघग सीखा रहे हैं। इतना ही नहीं शर्मा इन बच्चों को शिक्षित करने के साथ-साथ इनके किताबों व कापियों का खर्च भी स्वयं ही
 झुग्गी-झोपडिय़ों को पढ़ाते पूर्व प्राचार्य कृष्णचंद शर्मा। 
उठा रहे हैं। इनके इस प्रयास से झुग्गी-झोपडिय़ों में रह रहे इन गरीब बच्चों को एक नई दिशा मिल रही है।
शहर के अर्बन एस्टेट निवासी कृष्णचंद शर्मा ने अध्यापक के पद पर रहते हुए वर्षों तक स्कूलों में विद्यार्थियों को शिक्षित करने का काम किया। इसके बाद वह पदौन्नत होकर प्राचार्य के पद तक पहुंचे। प्राचार्य के पद पर पहुंचने के बाद भी इन्होंने नियमित रूप से कक्षाओं में जाकर विद्यार्थियों को शिक्षित करने का काम किया। 31 मार्च 2014 को सोनीपत जिले के नूरणखेड़ा गांव के राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय से प्राचार्य के पद से सेवानिवृत्ति होने के बाद कृष्णचंद शर्मा ने समाजसेवा करने करने की ठानी। कृष्णचंद शर्मा ने एक नई व अनुठी पहल शुरू करते हुए शहर के सफीदों रोड के पास झुग्गी-झोपडिय़ों में रह रहे गरीब बच्चों को शिक्षित करने की पहल शुरू। हालांकि शुरूआत में इन बच्चों के माता-पिता को बच्चों की पढ़ाई के लिए तैयार करने में काफी मुश्किलें आई लेकिन जब कृष्णचंद शर्मा ने झुग्गी-झोपडिय़ों में जाकर इन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया तो इनके अभिभावक भी इसके लिए तैयार हो गए। शर्मा ने झुग्गी-झोपडिय़ों में जाकर ही पाठशाला शुरू कर दी और लगभग दो दर्जन बच्चों को पढ़ाई के लिए तैयार किया लेकिन झुग्गी-झोपडिय़ों में शोर-शराबा ज्यादा होने के कारण बच्चों को पढ़ाने में परेशानी होने लगी। इसके बाद कृष्णचंद शर्मा ने झुग्गी-झोपडिय़ों के पास निर्माणाधीन जिमखाना क्लब में बच्चों की कक्षा लगानी शुरू कर दी। कृष्णचंद शर्मा इन बच्चों को अक्षर ज्ञान देने के साथ-साथ इनकी पढ़ाई के खर्च की व्यवस्था भी स्वयं कर रहे हैं। इनके इस प्रयास से झुग्गी-झोपडिय़ों में रहने वाले बच्चों को एक नई दिशा मिल रही है। पढ़ाई शुरू होने से बच्चे काफी उत्साहित हैं। यहां इन बच्चों को काफी कुछ नया सीखने को मिल रहा है। शर्मा ने एक माह के समय में ही इन बच्चों को उठने-बैठने तथा बोल-चाल में परिपक्कव कर दिया।
झुग्गी-झोपडिय़ों के बच्चों के साथ मौजूद पूर्व प्राचार्य कृष्णचंद शर्मा।

हर रोज तीन घंटे लगती है पाठशाला

सेवानिवृत्त प्राचार्य कृष्णचंद शर्मा बच्चों को शिक्षित करने के लिए नियमित रूप से पिछले लगभग एक माह से इन बच्चों की पाठशाला चला रहा है। शर्मा द्वारा हर रोज तीन घंटों तक यह पाठशाला चलाई जाती है। पाठशाला के दौरान बच्चों को अक्षर ज्ञान देने के साथ-साथ बोल-चाल तथा रहन-सहन का तरीका भी सिखाया जाता है।

छोटे बच्चों को पढ़ाने का मिल रहा नया अनुभव 

 पूर्व प्राचार्य कृष्णचंद शर्मा का फोटो।   

सेवानिवृत्त प्राचार्य कृष्णचंद शर्मा ने कहा कि अध्यापन के दौरान उनका अनुभव बड़े बच्चों को पढ़ाने का रहा है। शर्मा का कहना है कि सोनीपत जिले के नूरणखेड़ा गांव के राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय से सेवानिवृत्त होने के बाद उनके मन में समाजसेवा करने की इच्छा थी। जब उन्होंने यहां झुग्गी-झौपडिय़ों में रह रहे बच्चों को देखा तो उन्होंने इन बच्चों को शिक्षित करने की सोची। शर्मा ने कहा कि बड़े बच्चों को पढ़ाने के बाद छोटे बच्चों को पढ़ाने का एक नया अनुभव हुआ है।






बुधवार, 3 दिसंबर 2014

'आयुष' को संजीवनी का इंतजार


कंडम मशीनों के सहारे चल रहा मरीजों का उपचार

--मशीनें खराब होने के कारण सही विधि से नहीं हो पा रहा मरीजों का उपचार

--मरीजों को बाजार से खुद खरीदकर लाना पड़ता है तेल

नरेंद्र कुंडू 
जींद। सामान्य अस्पताल में स्थित जिला आयुर्वेदिक एवं पंचकर्म विभाग 'आयुष'  को संजीवनी का इंतजार हैं। यहां मरीजों के उपचार के लिए रखी ज्यादातर मशीनें कंडम हो चुकी हैं। कंडम मशीनों के सहारे ही मरीजों का उपचार चल रहा है। मशीनें खराब होने के कारण मरीजों का सही ढंग से उपचार नहीं हो पा रहा है। पचंकर्म केंद्र की ज्यादातर मशीनें खराब होने के कारण यहां मौजूद चिकित्सकों को जैसे-तैस कर काम चलाना पड़ रहा है लेकिन सही विधि से मरीजों को उपचार नहीं मिल पाने के कारण मरीजों को पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। पंचकर्म केंद्र के हालात ऐसे हो चुके हैं कि मरीजों की मालिश में प्रयोग होने वाला तेल भी खत्म हो चुका है। इसके चलते यहां गठिया बॉय, सरवाइकल, जोड़ों के दर्द इत्यादि बीमारी का उपचार करवाने के लिए आने वाले मरीजों को बाजार से तेल खरीद कर लाना पड़ता है। हालांकि पंचकर्म केंद्र के चिकित्सकों द्वारा कई बार लिखित में उच्च अधिकारियों को इस समस्या से अवगत करवाया जा चुका है लेकिन विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा इस तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
पंचकर्म केंद्र की बिल्डिंग का फोटो।

पंचकर्म केंद्र पर इन-इन बीमारियों का होता है उपचार 

सामान्य अस्पताल परिसर में स्थित जिला आयुर्वेदिक एवं पंचकर्म केंद्र पर सरवाइकल, कमर दर्द, जोड़ों के दर्द, गठिया बॉय, नजला, जुखाम, सिर दर्द, लकवा, मनोरोग सहित अन्य जटिल बीमारियों का उपचार आयुर्वेदिक पद्धित, पंचकर्म, होमोपेथिक तथा योग से किया जाता है। जिला पंचकर्म केंद्र पर हर रोज 30 से 40 मरीज उपचार के लिए पहुंचते हैं।

यह-यह मशीनें हैं खराब

जिला आयुर्वेदिक एवं पंचकर्म केंद्र पर मरीजों के उपचार के लिए सिरोधारा, स्टीम बॉथ, हैंडव्हील, जोगर मशीन, वैक्सबॉथ, एल्ट्रावायलर लैंप, इंफरा रेड लैंप मशीनें रखी गई हैं। इनमें से स्टीम बॉथ, सिरोधारा, जोगर मशीन, एल्ट्रावायलर लैंप खराब स्थिति में हैं। जब से यहां पंचकर्म केंद्र की स्थापना हुई है उसके बाद से इनकी एक बार भी रिपेयरिंग नहीं हो पाई है। पिछले कई वर्षों से यह मशीनें खराब हालत में स्टोर रूम में पड़ी हुई हैं। वहीं सरवाइकल, जोड़ों के दर्द आदि का उपचार तेल की मालिश से किया जाता है लेकिन पिछले कई माह से यहां तेल नहीं है। वहीं घुटनों के दर्द के उपचार में प्रयोग होने वाल मोम भी कई वर्ष पुराना है। आज तक इस मोम को भी नहीं बदला गया है।

मशीन खराब होने से सही विधि से नहीं हो पा रहा उपचार

बखताखेड़ा निवासी चंद्र सिंह का फोटो।
कमर दर्द व घुटनों में काफी दर्द था। पिछले आठ-दस दिन से यहां उपचार करवा रहा हूं। यहां उपचार करवाने से काफी राहत मिली है। दर्द की वजह से पहले चलने फिरने में काफी दिक्कत होती थी लेकिन अब काफी आराम है। जोड़ों के दर्द के उपचार में प्रयोग होने वाली स्टीमबॉथ नामक मशीन खराब पड़ी है। इसके चलते सही विधि से पूरा उपचार नहीं मिल पा रहा है। यदि यह मशीन ठीक होती तो सही विधि से उपचार मिलने से बीमारी में जल्द आराम मिल जाता।
चंद्र सिंह, बखताखेड़ा निवासी

अपनी जेब से खरीद कर लाना पड़ता है तेल

मिर्चपुर निवासी राजेश का फोटो।
पिछले एक माह से पंचकर्म केंद्र पर कमर दर्द का उपचार करवा रहा हूं। उपचार से काफी राहत मिली है। यहां मौजूद चिकित्सकों द्वारा अच्छी तरह से उपचार किया जाता है लेकिन पिछले कई दिनों से मालिश में प्रयोग होने वाला तेल खत्म है। अपनी जेब से बाजार से तेल खरीद कर अपना उपचार करवाना पड़ता है। बाजार में यह तेल काफी महंगे रेट पर मिलता है। यदि विभाग द्वारा यहां तेल भी मुहैया करवा दिया जाए तो मरीजों को बाजार से महंगे रेट पर तेल नहीं खरीदना पड़ेगा।
राजेश मिर्चपुर निवासी

बांए कंधे में पिछले काफी दिनों से हो रहा हैं दर्द 

पटियाला चौक निवासी देवीचंद का फोटो।
दर्द के कारण काफी परेशान था। 10-12 दिन पहले ही यहां से उपचार शुरू करवाया है। उपचार के बाद काफी राहत मिली है लेकिन उपचार में प्रयोग होने वाला तेल खत्म होने के कारण बाजार से अपने पैसों से तेल खरीद कर लाना पड़ रहा है। वहीं घुटनों के दर्द के उपचार में प्रयोग होने वाला मोम भी काफी पुराना है। यदि विभाग द्वारा यहां पूरी सुविधाएं उपलब्ध करवा दी जाएं तो पंचकर्म विधि मरीजों के लिए रामबाण सिद्ध हो सकती है और मरीजों को बिना पैसा खर्च किए यहां अच्छा उपचार मिल सकता है।

देवीचंद पटियाला चौक निवासी

उच्च अधिकारियों को लिखित में भेजा गया है पत्र

पंचकर्म केंद्र के चिकित्सकों की तरफ से नई मशीनों के लिए जो रिक्वायरमेंट भेजी जाएगी, उसके आधार पर नई मशीनें मंगवाई जाएंगी। पंचकर्म केंद्र पर ऑयल खत्म होने की सूचना मिली थी। ऑयल मंगवाने के लिए उच्च अधिकारियों को लिखित में पत्र भेजा गया है। उपर से जैसे ही ऑयल आ जाएगा पंचकर्म केंद्र पर ऑयल मुहैया करवा दिया जाएगा।
डॉ. धर्मपाल सिंह
पंचकर्म केंद्र में खराब हालत में रखी जोगर मशीन।
जिला आयुर्वेदिक अधिकारी, जींद





 पंचकर्म केंद्र में खराब हालत में रखी स्टीमबॉथ की मशीन।





शनिवार, 29 नवंबर 2014

बिल्ली करती हैं राजस्व विभाग के रिकार्ड की रखवाली

रिकार्ड को चूहों से बचाने के लिए कर्मचारियों ने पाली तीन बिल्लियां

रिकार्ड रूम में रखा है जींद की रियासत तक का रिकार्ड

बिल्लियों के लिए हर रोज खरीदा जाता है एक लीटर दूध

नरेंद्र कुंडू       
जींद। आज तक सुरक्षा गार्डों को तो किसी विभाग या कार्यालय की रखवाली करते देखा या सुना था लेकिन जींद जिले में एक ऐसा विभाग भी है जिसकी रखवाली बिल्लियां कर रही हैं। पुलिस अधीक्षक कार्यालय की बिल्डिंग में बने राजस्व विभाग के रिकार्ड रूम में रखे रिकार्ड की रखवाली पिछले दो वर्षों से बिल्लियां कर रही हैं। राजस्व विभाग के कर्मचारियों द्वारा रिकार्ड रूम में रखे गए रिकार्ड को चूहों, छिपकलियों से बचाने के लिए तीन बिल्लियां पाली गई हैं। कर्मचारियों द्वारा बिल्लियों के लिए हर रोज एक लीटर दूध खरीदा जाता है। विभाग के कर्मचारियों की समझदारी के चलते नामात्र के खर्च में बेश कीमती रिकार्ड की सुरक्षा की जा रही है। जिला राजस्व के रिकार्ड रूम में जींद की रियासत के समय का पूरा रिकार्ड रखा हुआ है। पिछले दो वर्षों से तीन बिल्लियां यहां ड्यूटी दे रही हैं।
रिकार्ड रूम में गोद में बिल्ली को बैठाकर काम करते कर्मचारी।
जिला राजस्व के रिकार्ड रूम में जींद की रियासत (1763 ) के समय का रिकार्ड रखा है। इस रिकार्ड रूम में जींद के रियासत बनने से लेकर आज तक का पूरा लेखा-जोखा है। उर्दू में लिखा गया रिकार्ड भी यहां रखा हुआ है। रिकार्ड रूम में कई वर्षों पुराना रिकार्ड रखा होने तथा रिकार्ड काफी ज्यादा होने के कारण चूहों तथा छिपकलियों के कारण रिकार्ड के नष्ट होने की संभावनाएं काफी ज्यादा बनी रहती हैं लेकिन रिकार्ड रूम में कार्यरत कर्मचारियों ने इस रिकार्ड को चूहों तथा छिपकलियों से बचाने के लिए एक अनूठा तरीका निकाला है। इस बेशकीमती रिकार्ड को नष्ट होने से बचाने के लिए यहां के कर्मचारियों द्वारा तीन बिल्लियां पाली गई हैं। यह बिल्लियां 24 घंटे यहां ड्यूटी देती हैं और रिकार्ड रूम में पैदा होने वाले चूहों व छिपकलियों को नियंत्रित करती हैं। पिछले दो वर्षों से यह बिल्लियां यहां ड्यूटी दे रही हैं। इसी के चलते रिकार्ड रूम में रखा रिकार्ड आज भी काफी अच्छी हालत में है।
बिल्ली को दूध पिलाता कर्मचारी।

बिल्लियों के लिए हर रोज खरीदा जाता है एक लीटर दूध

राजस्व विभाग के कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों द्वारा बिल्लियों पर होने वाला सारा खर्च अपनी जेब से किया जाता है। कर्मचारियों द्वारा बिल्लियों के लिए हर रोज एक लीटर दूध खरीदा जाता है। इस नामात्र के खर्च में राजस्व कार्यालय के कर्मचारियों द्वारा रिकार्ड रूम में रखे गए बेशकीमती रिकार्ड की सुरक्षा की जा रही है।

चूहों से करती हैं रिकार्ड की सुरक्षा

रिकार्ड रूम में रखे गए रिकार्ड को दिखाते कर्मचारी
राजस्व कार्यालय के रिकार्ड रूम में कार्यरत पटवार मोहरर सत्यवान, बस्ताबरदार सुखदेव शर्मा तथा जसबीर ने बताया कि पिछले दो वर्षों से वह इन बिल्लियों की देखरेख कर रहे हैं। बिल्लियां पूरी तरह से उनके साथ घुल मिल गई हैं और उनके सभी इशारों को अच्छी तरह से समझती हैं। उन्होंने बताया कि यह बिल्लियां एक सजग परहरी की तरह रिकार्ड की देखरेख करती हैं। इन बिल्लियों के कारण रिकार्ड रूम का पूरा रिकार्ड सही सलामत है। हालांकि चूहे पकडऩे के लिए तीन पिंजरे भी रखे गए हैं लेकिन बिल्लियों को यहां रखने के बाद पिंजरों की कोई जरूरत नहीं पड़ी है। उन्होंने बताया कि इस रिकार्ड रूम में जींद रियासत के समय का रिकार्ड रखा हुआ है।







बुधवार, 26 नवंबर 2014

श्री श्री रविशंकर का खाप पंचायतों से आह्वान आदर्श गांव बनाने के लिए करें प्रयास

कहा, ऑनर किलिंग से नहीं खापों का कोई सरोकार
खाप के सहयोग से ग्रामीण क्षेत्र में शुरू किए जाएंगे कौशल विकास केंद्र
जींद में हुआ खापों और अध्यात्म का ऐतिहासिक मिलन

नरेंद्र कुंडू
जींद। ऑर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक एवं अध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर ने कहा कि ऑनर किलिंग तथा तुगलकी फरमान के लिए देश में खापों की जो छवि खराब हुई है उसे सुधारने के लिए खाप पंचायतें सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर अपना योगदान दें। खाप पंचायतें आदर्श गांव बनाने के लिए प्रयास कर इसकी पहल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि ऑनर किलिंग तथा तुगलकी फरमानों से खापों का कोई सरोकार नहीं है। श्री श्री रविशंकर मंगलवार को जींद के एक निजी होटल में आयोजित समारोह में खापों के प्रतिनिधियों से रूबरू हो रहे थे। सम्मेलन की अध्यक्षता कंडेला खाप के प्रधान टेकराम कंडेला ने की। सम्मेलन में सर्वजातीय सर्व खाप के संयोजक कुलदीप ढांडा, डीपी वत्स, ओमप्रकाश धनखड़, संतोष दहिया, इंद्र सिंह ढुल, धर्मपाल मलिक, अजय कुमार, सुदेश चौधरी, ओपी मान, राजेंद्र चहल, सुनील गुलाटी आईएएस, रामरत्न कटारिया गुर्जर खाप, मेहर सिंह दहिया सहित प्रदेशभर की भिन्न-भिन्न खापों के प्रतिनिधि मौजूद रहे और सभी ने बारी-बारी अपने विचार रखे।
अध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर ने कहा कि खापों के बारे में उन्हें टीवी पर बहुत कुछ देखा तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि इस देश में तालिबानी जैसी कोई संस्था है। इसलिए खापों से मिलने की उनकी इच्छा थी। यहां पर खापों से मिलने के बाद उन्हें यह ऐहसास हुआ है कि खापों में तालिबानी जैसी कोई संभावना नहीं है, बल्कि खापें तो सामाजिक कार्यों से समाज को जोडऩे का काम करती हैं। श्री श्री रविशंकर ने कहा कि देश में खापों की जो छवि खराब की गई है उसे सुधारने के लिए खापों को सामाजिक कार्यों को अधिक से अधिक बढ़ावा देना चाहिए। खाप पंचायतें आदर्श गांव बनाकर इस काम को आगे बढ़ा सकती हैं। उन्होंने कहा कि वह भी खापों के साथ
सम्मेलन में खाप प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते श्री श्री रविशंकर 
मिलकर सामाजिक कार्यों को बढ़ावा देना चाहते हैं। वह खापों के साथ मिलकर कौशल विकास केंद्र स्थापित करेंगे, ताकि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को भी जीवन जीने की कला सीखाई जा सके। इससे ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। उन्होंने कहा कि आज संस्कारों के अभाव में युवा पीढ़ी भारतीय मूल्यो से बिछुड़ रही है। देश में धर्मांतरण के मामले बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश की युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति का ज्ञान जरूरी है। योग व आयुर्वैद भारतीय संस्कृति का ही हिस्सा हैं। योग व आयुर्वैद को गांव तक पहुंचाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि फसलों में रासायनिकों के बढ़ते प्रयोग के कारण खान-पान व वातावरण दूषित हो रहा है और जमीन में पोषक तत्व की कमी होने के कारण जमीन बंजर हो रही है। अगर देश को फिर से सोने की चिडिय़ा बनाना है तो सामाजिक कुरीतियों को खत्म करना होगा। दिशाहीन हो रहे युवाओं को दिशा देने के साथ-साथ जैविक खेती को बढ़ावा देने होगा। श्री श्री रविशंकर ने तनाव मुक्त रहने तथा हमेशा हंसते रहने का संदेश दिया। सम्मेलन के समापन पर खाप प्रतिनिधियों द्वारा सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया गया और सम्मेलन में मौजूद लोगों ने हाथ उठाकर प्रस्ताव का समर्थन किया। सम्मेलन में खाप प्रतिनिधियों ने हिंदू विवाह अधिनियिम 1955 में बदलाव करने की मांग की।  



अनाज मंडियों में नहीं हो रही कृषि मंत्री के आदेशों की पालना

निर्धारित शैड्यूल के अनुसार नहीं होती धान की बोली
कृषि मंत्री के आदेश के बाद भी महज तीन घंटे ही हो पाई बोली
कृषि मंत्री ने हाल ही में मंडी प्रशासन को दिए थे शैड्यूल के अनुसार बोली करवाने के निर्देश

नरेंद्र कुंडू 
जींद। जिले की अनाज मंडियों में धान की फसल की बिक्री के लिए आने वाले किसानों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। मार्केट कमेटी प्रशासन पर कृषि मंत्री के आदेशों का भी कोई प्रभाव नहीं है। मार्केट कमेटी प्रशासन के लिए कृषि मंत्री के आदेश बेमानी साबित हो रहे हैं। कृषि मंत्री द्वारा गत 20 नवंबर को मार्केट कमेटी के अधिकारियों को आदेश दिए जाने के बाद भी आदेशों पर अमल नहीं हो रहा है। जिले की अनाज मंडियों में धान की फसल की बोली के लिए कोई शैड्यूल तैयार नहीं किया गया है। अनाज मंडियों में महज दो-तीन घंटे ही मुश्किल से बोली हो पाती है। जबकि कृषि मंत्री द्वारा सुबह 9 से पांच बजे तक शैड्यूल के अनुसार बोली करवाने के आदेश दिए गए हैं। कृषि मंत्री के आदेश जारी करने के दूसरे दिन ही मंत्री के यह आदेश जींद की अनाज मंडी में हवा होते दिखाई दिए। शनिवार को जींद की अनाज मंडी में महज तीन घंटे ही धान की फसल की बोली हो पाई। इस तीन घंटे में महज चार दुकानों तक ही यह बोली पहुंच पाई। इसके अलावा ज्यादातर दुकानों पर खरीदारों द्वारा बिना बोली के ही धान की फसल की खरीद की गई। इससे जहां सरकार व मार्केट कमेटी को फीस का चूना लग रहा है, वहीं किसानों को भी उनकी फसल के उचित भाव नहीं मिल पा रहे हैं।

10 दिन बाद हुई फसल की बोली

किसान सूरजमल  

अनाज मंडी में 11 नवंबर को बासमती धान लेकर आया था। खरीदारों द्वारा बिना बोली किए ही 2300 रुपये का रेट लगाया गया था लेकिन मैने मना कर दिया। इसके बाद खरीदार 2700 रुपये के रेट दे रहा था लेकिन मैं बोली की जिद्द पर अड़ा रहा। 11 नवंबर के बाद आज मेरी फसल की बोली हो पाई है। बोली पर मेरी फसल 2899 के भाव बिकी है। 10 दिन बाद जा कर फसल बिक पाई है। खरीदार बोली करने की बजाए उचंती पर खरीद को ज्यादा महत्व दे रहे हैं।
किसान सूरजमल, गांव शाहपुर निवासी

थोड़ी देर ही चल पाई बोली

किसान ओमप्रकाश  

अनाज मंडी में महज दो या तीन घंटे ही बोली चलती है। इस दौरान सिर्फ तीन-चार ही दुकानों पर ही बोली पहुंचती है। इसके बाद बोली बंद कर दी जाती है। पूरा दिन बोली नहीं हो पाने के कारण सभी दुकानों पर बोली नहीं पहुंच पाती है। इस कारण किसान को मजबूरी वस उचंती पर ही अपनी फसल बेचनी पड़ती है।
किसान ओमप्रकाश, गांव मिर्जपूर निवासी

फसल का नहीं मिल पाया उचित रेट

किसान धूप सिंह   

धान की 1121 किस्म की फसल को बेचने के लिए मंडी में लेकर आया था लेकिन काफी देर इंतजार करने के बाद भी बोली नहीं हो पाई। बाद में बिना बोली के ही 2980 रुपये के रेट में अपनी फसल बेचनी पड़ी। बोली नहीं होने के कारण फसल का उचित भाव नहीं मिल पाया।
किसान धूप सिंह, गांव खांडा निवासी

उचंती पर बेचनी पड़ी फसल

अनाज मंडी में सही तरह से धान की फसल की बोली नहीं हो पाती है।
किसान चुडिय़ा राम  
इसके चलते ज्यादातर किसान उचंती पर ही अपनी फसल बेचने को मजबूर हैं। मैं भी सुबह से अपनी फसल लेकर मंडी में बैठा हुआ हूं लेकिन दोपहर बाद भी बोली शुरू नहीं हो पाई है। सुबह महज दो-तीन घंटे ही धान की बोली हुई थी। इसके बाद दोबारा बोली शुरू नहीं हो पाई है। इसके चलते बिना बोली के उचंती पर ही अपनी फसल बेचनी पड़ी।
किसान चुडिय़ा राम, गांव कंडेला निवासी

महज तीन घंटे ही चल पाई बोली

मंडी में सुबह 11 बजे के लगभग बोली शुरू हुई थी। एक बजे लंच का बहाना बनाकर बोली बंद कर दी। इस
 किसान बलराज  
 दौरान महज तीन-चार दुकानों पर ही बोली हो पाई। अब तीन बज चुके हैं लेकिन बोली दोबारा शुरू नहीं हो पाई है। इसके चलते उचंती पर ही अपनी फसल बेचनी पड़ेगी। इससे पहले भी मैने बिना बोली के ही अपनी फसल बेचनी पड़ी थी।
किसान बलराज, गांव शाहपुर निवासी

सुबह से बोली के इंतजार में बैठा हुआ हूं

किसान सुरेश का फोटो। 

नियमों के अनुसार बोली नहीं होने के कारण सभी दुकानों पर बोली नहीं पहुंच पाती है। इसके चलते ज्यादातर किसानों को उचंती पर ही अपनी फसल बेचनी पड़ती है। सुबह से मैं भी बोली के इंतजार में बैठा हुआ हूं लेकिन बोली नहीं आई है। उचंती पर फसल को खरीदने के लिए खरीदार चक्कर काट रहे हैं। बोली नहीं आने के कारण उचंती पर ही फसल बेचनी पड़ेगी।
किसान सुरेश, गांव श्रीरागखेड़ा निवासी

तीन घंटे में चार दुकानों पर ही पहुंच पाई बोली

शनिवार को जींद की नई अनाज मंडी में 105 नंबर दुकान से सुबह 11 बजे बोली शुरू हुई। इस दौरान बोली 104, 102 व 98 नंबर तक ही हो पाई। इन तीन घंटों में अनाज मंडी की 250 दुकानों में से महज चार दुकानों तक ही बोली पहुंच पाई।

अनाज मंडी में रेस्ट हाउस की तरफ भी नहीं किसानों का रूझान

शहर की अनाज मंडी में किसानों के ठहरने के लिए बनाए गए रेस्ट हाउस की तरफ भी किसानों का रूझान नहीं हो रहा है। इसका कारण यह है कि ज्यादातर किसानों को तो मंडी में बने इस रेस्ट हाउस के बारे में जानकारी ही नहीं। अकसर इस रेस्ट हाउस पर ताला ही लटका रहता है। वहीं मंडियों में साफ-साफाई रखने के लिए भी कृषि मंत्री द्वारा विशेष निर्देश जारी किए गए हैं लेकिन इसके बावजूद भी अनाज मंडी में साफ-सफाई की कोई खास व्यवस्था नहीं है। सड़कों पर जगह-जगह गंदगी पड़ी रहती है।

कृषि मंत्री ने यह दिए हैं आदेश

कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने गत 19 नवंबर को मार्केट कमेटी के उच्च अधिकारियों के साथ हुई मीटिंग के बाद 20 नवंबर को जारी लेटर नंबर 568-573 में आदेश दिए हैं कि प्रदेश की सभी अनाज मंडियों के बाथरूम व टायलेटों की साफ-सफाई की तरफ विशेष ध्यान दिया जाए। अनाज मंडियों में किसानों के रूकने के लिए बनाए गए रेस्ट हाउस का अच्छी तरह से रख-रखाव किया जाए। फसल लेकर मंडी में आने वाले किसानों को मंडी में किसी तरह की परेशानी नहीं होनी चाहिए। अनाज मंडियों के गेट पर ही मंडी में आने वाली फसल की रिकोर्डिंग की जाए ताकि मार्केट फीस में किसी प्रकार की गड़बड़ नहीं हो पाए। फसल की बोली को लेकर किसानों को कोई परेशानी नहीं हो, इसके लिए शैड्यूटल के अनुसार सुबह नौ से शाम पांच बजे तक बोली करवाई जाए।

शैड्यूल में नहीं 9 से पांच का टाइम

मार्केट कमेटी के शैड्यूल में नौ से पांच बजे का कोई टाइम टेबल नहीं है। शैड्यूल के अनुसार का मतलब दिन में दो बार बोली से है और हम दिन में दो बार बोली करवाते हैं। सुबह 11 से एक बजे तक तथा एक घंटे के लंच के बाद दोपहर दो से सायं पांच बजे तक बोली करवाई जाती है।
मनोज दहिया, सचिव
मार्केट कमेटी, जींद
कृषि मंत्री द्वारा मार्केट कमेटी सचिवों को भेजा गया आदेश पत्र। 


अनाज मंडी में धान की फसल की सफाई करते मजूदर। 










शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

बिना कीटनाशकों का प्रयोग किए महिला किसानों ने लिया अच्छा उत्पादन

नरेंद्र कुंडू 
जींद। निडाना गांव में शनिवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों ने कीटों का अवलोकन करने के साथ-साथ पैदावार का आंकड़ा भी तैयार किया। कीटों के अवलोकन के दौरान देखने को मिला की इस समय फसल में बिनोलों का रस चूसने वाले कीट लाल व काला बानिया काफी संख्या में फसल में मौजूद हैं। वहीं फसल के उत्पादन के आंकड़ों से यह भी स्पष्ट हो गया कि जिन किसानों ने फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया उनकी पैदावार अन्य किसानों से काफी अच्छी रही।
लोपा मक्खी ग्रुप की कीटाचार्या मुकेश रधाना, कृष्णा निडाना, राजबाला निडाना, प्रमीला रधाना तथा गीता निडाना ने बताया कि कपास की फसल में इस बार पूरे प्रदेश में सफेद मक्खी ने तबाही मचाकर रख दी। सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण इस बार सैंकड़ों एकड़ कपास की फसल खराब हो गई लेकिन जिन-जिन किसानों ने सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया, वहां-वहां सफेद मक्खी नुकसान पहुंचाने के स्तर तक नहीं पहुंच पाई। उन्होंने बताया कि इस बार उनकी फसल में सफेद मक्खी की औसत 3.4 प्रति पत्ता रही है। जबकि चूरड़ा व हरा तेला बिल्कुल नहीं के बराबर हैं। महिला किसानों ने बताया कि इस बार उनकी फसल में शाकाहारी कीट मस्करा बग, भूरिया बग, सलेटी भूंड, मिरड बग, झोटिया बग तथा टिड्डे मौजूद हैं। फूल खाने वालों में पुष्पक बीटल देखी गई है। फसल को नुकसान पहुंचाने वाले सूबेदार मेजर कीट लाल व काला बानिया, माइट, मिलीबग व चेपा इस समय भी फसल में मौजूद हैं। यह कीट पत्तों से रस चूसकर अपना जीवन यापन करते हैं। वहीं इन कीटों को नियंत्रित करने वाले मांसाहारी कीट अंगीरा, चपरो बीटल, हथजोड़ा, मकड़ी, क्राइसोपे के अंडे, सुनहरी, फौजन, इनो, दीदड़, कालो बीटल, कटीया, लोपा मक्खी, लपरो, सिरफड़ो मक्खी के बच्चे, भीरड़, डाकू बुगड़े भी मौजूद हैं। महिला किसानों ने बताया कि फसल में शाकाहारी तथा मांसाहारी कीट काफी संख्या में मौजूद हैं और इसके बावजूद भी उनकी फसल अभी तक कीटों व बीमारी से होने वाले नुकसान से पूरी तरह से सुरक्षित है।
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

महिला किसानों ने फसल के उत्पादन पर की चर्चा 

निडाना निवासी कमलेश ने बताया कि उसकी आधा एकड़ में अभी तक 10 मण कपास की चुगाई हो चुकी है जबकि अभी ओर चुगाई होनी बाकी है। उसके आधा एकड़ में इस बार लगभग 14 मण कपास के उत्पादन की उम्मीद है। कृष्णा निडाना ने बताया कि उसकी एक एकड़ में 22 से 25 मण तक कपास का उत्पादन होने की उम्मीद है। उसने फसल में पूरे सीजन में कीटनाशक का प्रयोग करने की बजाए जिंक, डीएपी व यूरिया खाद के घोल के तीन छिड़काव ही किए हैं। अनिता ललितखेड़ा ने बताया कि इस बार उसके खेत में कपास की फसल पौधों के मामले में बिल्कुल कमजोर थी लेकिन फिर भी उसे एक एकड़ में 18 मण की पैदावार मिली है। रधाना निवासी विजय ने बताया कि उसने खाद के घोल का एक छिड़काव किया था लेकिन इसके बावजूद भी उसे आधा एकड़ में 19 मण कपास का उत्पादन मिला है। निडाना निवासी बिमला ने बताया कि इस बार उसने अपने एक एकड़ में देशी कपास की बिजाई थी और खाद के घोल के दो छिड़काव किए थे। उसे एकड़ में देशी कपास का 20 मण का उत्पादन मिला है। निडाना के पूर्व सरपंच रतन सिंह ने बताया कि वह भी कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़ा हआ है और उसने बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किए अढ़ाई एकड़ में 60 मण कपास का उत्पादन लिया है। जबकि कीटनाशक का प्रयोग करने वाले किसानों का उत्पादन काफी कम हुआ है।


कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

कपास की फसल में मौजूद रस चूसक लाल बानिया नामक कीट।

कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी कीट हथजोड़ा।




रविवार, 5 अक्तूबर 2014

एक दिन पूरे देश में फैलेगी जींद के किसानों की कीट ज्ञान की मुहिम : खटकड़

नरेंद्र कुंडू 
जींद । निडाना गांव में शनिवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। महिला पाठशाला में समाजसेवी रघुबीर खटकड़ ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। पाठशाला में पहुंचने पर महिला किसानों ने मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट कर उनका स्वागत किया तथा कीट ज्ञान की मुहिम से मुख्यातिथि को बारिकी से जानकारी दी।
रघुबीर खटकड़ ने महिला किसानों की मुहिम की तारीफ करते हुए कहा कि देश से अंग्रेज तो चले गए लेकिन उनकी विचारधारा आज भी देश में है। देश में किसानों के हित के लिए जो योजनाएं बनाई जाती हैं उनमें किसान के हित को ध्यान में रखने की बजाए निजी कंपनियों के हितों को ध्यान में रखा जाता है। इसके चलते किसानों उन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। खटकड़ ने कहा कि देश में जब भी कोई व्यक्ति लीक से
फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
हटकर किसी काम को करता है तो उसके सामने कठिनाइयां आती हैं लेकिन कठिन परिस्थितियों में भी जो अपना हौंसला बुलंद रखता है वह एक दिन जरूर सफल होता है। इसी प्रकार जींद जिले के किसानों ने भी लीक से हटकर कीट ज्ञान की मुहिम शुरू की है। बहुत जल्द उनकी यह मुहिम भी दूर तक फैलेगी। भिरड़-ततैया ग्रुप की मास्टर ट्रेनर सुषमा, संतोष, सुमन, कमल तथा जसबीर कौर ने बताया कि दो सप्ताह पहले फसल में सफेद मक्खी की संख्या बढ़ गई थी लेकिन फसल में मौजूद मांसाहारी कीटों ने बढ़ रही सफेद मक्खी की संख्या को नियंत्रित कर लिया है। इस बार फसल में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 4.4, हरे तेले की संख्या 0.05 तथा चूरड़े की संख्या शून्य है। उन्होंने बताया कि यहां के किसानों द्वारा फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किए जाने के कारण ही सफेद मक्खी ईटीएल लेवल को पार नहीं कर पाई लेकिन पूरे प्रदेश में जहां-जहां पर कीटनाशकों का प्रयोग किया गया, वहां-वहां सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण फसल बुरी तरह से तबाह हो गई।
चार्ट पर गेहूं पर आने वाले खर्च का आंकड़ा तैयार करती महिला किसान।

एक किलो गेहूं के उत्पादन पर आता है 15.27 रुपये का खर्च



 मुख्यातिथि को स्मृति चिह्न भेंट करती महिला किसान।
महिला किसानों ने गेहूं के उत्पादन पर आने वाले खर्च का आकलन करते हुए बताया कि यदि खेती के कार्य को बिजनेश की नजर से देखा जाए और खेती में जमीन व किसान की मजदूरी सहित प्रत्येक खर्च को जोड़ा जाए तो खेती किसान के लिए घाटे का सौदा है। क्योंकि एक किलो गेहूं के उत्पादन पर किसान का 15.27 रुपये खर्च होता है लेकिन किसान को सरकार से गेहूं का भाव 14.25 रुपये मिलता है। इस प्रकार प्रति किलो चावल पर किसान को 1.2 रुपये का नुकसान हो रहा है लेकिन किसान खेती को बिजनेश के नजरिये से नहीं देखता और वह खेती में अपनी मजदूरी के पैसे नहीं जोड़ता इसलिए उसका कामकाज ठीकठाक चलता रहता है।