रविवार, 25 सितंबर 2016

'यूपी में भाजपा के चुनावी मुद्दे को रोशन करेगा जींद का दीपक'

चित्रकार दीपक के व्यंगात्मक कार्टूनों को भाजपा ने प्रचार सामग्री में किया शामिल
चित्रकार दीपक ने यूपी बचाओ नाम से तैयार की है कार्टून पुस्तिका 
कार्टूनिस्ट दीपक प्रधानमंत्री के अच्छे दिनों पर भी प्रकाशित कर चुके हैं दो पुस्तकें 

नरेंद्र कुंडू
जींद। उत्तरप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में जींद के युवा चित्रकार दीपक कौशिक के कार्टून अपनी छाप छोड़ेंगे। चुनाव के इस दंगल में विरोधियों को घेरने के लिए भाजपा दीपक कौशिक द्वारा यूपी में हुए भ्रष्टाचार पर तैयार किए गए व्यंगात्मक कार्टूनों को अपनी चुनाव प्रचार सामग्री में शामिल करने जा रही है। चित्रकार दीपक कौशिक द्वारा यूपी बचाओ के नाम से यह कार्टून पुस्तिका तैयार की गई है।   
भजपा के राट्रीय महासचिव अरुण सिंह, भाजपा के उत्तरप्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल और भाजपा के प्रदेश मंत्री गोविंद नारायण शुक्ल उर्फ  राजा बाबू के साथ हुई दीपक कौशिक की मुलाकात के बाद पार्टी पदाधिकारियों ने दीपक के कार्टूनों को चुनाव सामग्री में शामिल करने का फैसला लिया है। भाजपा द्वारा इस पुस्तिका की लाखों प्रतियां तैयार करवाई जाएंगी। 
पुस्तक के लिए कार्टून तैयार करते चित्रकार दीपक
चित्रकार दीपक कौशिक द्वारा कार्टून पुस्तिका में उत्तरप्रदेश की वर्तमान व पूर्वोत्तर सरकार की जन विरोधी नीतियों पर कार्टूनों के माध्यम से व्यंग किए गए हैं। इस पुस्तिका में यूपी के कैराना कांड, मथूरा कांड, रामवृक्ष कांड, यूपी की खस्ता हाल सड़कों, बिजली-पानी की समस्या पर कटाक्ष किए गए हैं। दीपक कौशिक ने बताया कि इस पुस्तिका में विरोधी दलों पर निशाना साधने के साथ-साथ मोदी सरकार की विकासकारी सोच को भी दर्शाया गया है। कौशिक ने बताया कि एक सप्ताह पूर्व दिल्ली के अशोका रोड स्थित भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय में भजपा के राट्रीय महासचिव अरुण सिंह, भाजपा के उत्तरप्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल और भाजपा के प्रदेश मंत्री गोविंद नारायण शुक्ल उर्फ  राजा बाबू के साथ चुनाव प्रचार कैम्पेनिंग के लिए हुई बैठक में पार्टी पदाधिकारियों ने इस पुस्तिका को चुनाव सामग्री में शामिल करने का निर्णय लिया है। 
 भाजपा पदाधिकारियों को पुस्तक भेंट करते चित्रकार दीपक कौशिक।

अच्छे दिनों पर भी लिख चुके हैं पुस्तक

चित्रकार दीपक कौशिक इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के एक साल पूरा होने पर 'अच्छे दिन' और दो साल पूरा होने पर 'अच्छे दिन-2' का प्रकाशन कर चुके हैं। अब यूपी में भी इन पुस्तकों को प्रकाशित किया जाएगा। 

हरियाणा की स्वर्ण जयंती पर निकालेंगे म्हारा हरियाणा पुस्तक

दीपक कौशिक ने बताया कि 'यूपी बचाओ' पुस्तक के प्रकाशन होने के बाद उनकी चौथी पुस्तक के प्रकाशन का काम भी अन्तिम दौर में है। 'म्हारा हरियाणा' नाम से प्रकाशित होने वाली यह पुस्तक विशेष तौर पर हरियाणा की स्वर्ण जयंती वर्षगांठ के उपलक्ष्य में तैयार की जा रही है, जिसमें प्रदेश की कला-संस्कृति, राजनीति, जन-जीवन को महत्व दिया गया है। इस पुस्तक में कार्टूनों के माध्यम से जहां इन सब विषयों को उकेरा गया है। 





65 वर्षीय ओमपति ने 45 लाख खर्च कर बुझाई गांव की प्यास

गांव में पानी की किल्लत को दूर करने के लिए 10 किलोमीटर दूर से दबवाई पाइप लाइन
पाइप लाइन दबाकर घर-घर दिया कनेक्शन

नरेंद्र कुंडू
जींद। छतीसगढ़ के धमतरी जिले की 104 वर्षीय कुंवरबाई द्वारा जहां अपनी बकरियां बेचकर गांव में शौचालय का निर्माण करवाकर एक मिशाल पेश की गई है, वहीं जींद जिले के गोहाना रोड पर स्थित लुदाना गांव निवासी 65 वर्षीय वृद्धा ओमपति ने अपनी पूंजी से 40 से 45 लाख रुपये खर्च कर गांव की प्यास बुझा कर एक नई मिशाल पेश की है। ओमपति ने गांव से 10 किलोमीटर दूर स्थित सुंदर ब्रांच नहर से पाइप लाइन दबाकर गांव के लोगों को पीने के लिए पानी मुहैया करवाया है। ओमपति ने गांव तक पाइप लाइन दबवाने के अलावा निशुल्क घर-घर कनेक्शन दिए हैं। इतना ही नहीं पास के गांव मालश्रीखेड़ा, भंभेवा व मोरखी गांव से होकर गुजर रही पाइप लाइन पर भी कई जगह हैंडपंप भी लगवाए गए हैं, ताकि राहगीर व पास के गांव के लोग भी इनसे अपनी प्यास बुझा सकें। 
पाइप लाइन दबाने के बाद गांव में बनाया गया पानी का टैंक।
जींद जिले के लुदाना गांव में भूमिगत पानी खराब होने के कारण गांव में पानी की भारी किल्लत थी। ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए दूर-दराज के क्षेत्र का रूख करना पड़ता था। गांव की पानी की किल्लत को देखते हुए गांव की 65 वर्षीय ओमपति ने ग्रामीणों को इस किल्लत से निजात दिलवाने का संकल्प लिया। ओमपति ने अपने खर्च से सुंदर ब्रांच नहर की सिवाना माल हैड से गांव तक पाइप लाइन दबवाई। सुंदर ब्रांच नहर से गांव तक दबी लगभग 10 किलोमीटर लंबी इस पाइप लाइन पर ओमपति के 40 से 45 लाख रुपये खर्च हुए। इतना ही नहीं ओमपति ने गांव तक पाइप लाइन दबवाने के साथ-साथ घर-घर तक पानी का कनेक्शन भी दिया। प्रत्येक घर तक पानी का कनेक्शन होने के बाद गांव से पानी की किल्लत दूर हो गई। 
टुंटियों से पानी भरती ग्रामीण महिलाएं।

हर घर तक पानी पहुंचाने के लिए गांव को 24 ब्लॉक में बांटा 

छह हजार की आबदी वाले इस गांव में प्रत्येक घर को पीने के लिए पानी मिल सके इसके लिए गांव को 24 ब्लॉक में बांटा गया है। प्रत्येक ब्लॉक को 20 से 25 मिनट तक पानी की सप्लाई की जाती है। पानी की बर्बादी नहीं हो इसके लिए सीमित समय तक ही पानी की सप्लाई की जाती है। 

पेयजल सप्लाई की देखरेख के लिए दो युवकों 

टुंटियों से पानी भरती ग्रामीण महिलाएं।

को दिया रोजगार

गांव में सही तरीके से पेयजल की सप्लाई सुचारू रूप से हो सके इसके लिए ओमपति ने गांव के ही दो युवकों को जिम्मेदारी दी है। यह दोनों युवक गांव में पेयजल की सप्लाई की देखरेख करते हैं। इससे गांव के दो युवकों को रोजगार मिला है। 

भरापूरा है ओमपति का परिवार

समाजसेवी महिला ओमपति के परिवार में राजकुमार, अनिल व शमशेर नाम के तीन बेटे हैं। तीनों बेटे शादीशुदा हैं। इसके अलावा ओमपति के पांच पौत्री व तीन पौत्र भी हैं। ओमपति के पति बलबीर सिंह का देहांत हो चुका है। 
अपने परिवार के साथ मौजूद वृद्धा ओमपति।








मंगलवार, 6 सितंबर 2016

अध्यापकों की नर्सरी बना जींद जिले का ईक्कस गांव

2700 की आबादी वाले गांव में लगभग प्रत्येक घर में है सरकारी नौकरी, गांव में 100 से भी अधिक हैं अध्यापक

गांव में है सीनियर सेकेंडरी स्कूल व शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान 

शिक्षा के साथ-साथ खेलों में भी गांव की विशेष पहचान

अर्जुन अवार्ड भी हासिल कर चुका है गांव का बास्केटबाल कोच

 गांव के बारे में जानकारी देते हरपाल व अन्य ग्रामीण।
नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले से महज आठ किलोमीटर की दूरी पर हिसार रोड पर स्थित ईक्कस गांव प्रदेश के लिए अध्यापकों की नर्सरी बन चुका है। महज 2700 की आबादी वाले इस गांव में लगभग प्रत्येक घर में एक अध्यापक है। गांव में शिक्षा का अच्छा प्रसार होने के कारण लगभग प्रत्येक घर में सरकारी नौकरी है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या अध्यापकों की है। ईक्कस गांव में 100 से भी अधिक अध्यापक हैं। गांव से निकलने वाले यह अध्यापक आज प्रदेश के भिन्न-भिन्न स्कूलों में अपनी सेवाएं दे कर विद्यार्थियों को शिक्षा व संस्कार देने का काम कर रहे हैं। शिक्षा के साथ-साथ खेलों के क्षेत्र में भी ईक्कस की विशेष पहचान है। इस गांव से राष्ट्रीय स्तर के कई खिलाड़ी भी निकल चुके हैं। इस गांव के एक खिलाड़ी को खेलों के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल करने पर अर्जुन अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। गांव में शिक्षा का स्तर अच्छा होने के कारण जहां ग्रामीणों में आपसी प्यार-प्रेम व भाईचारा बना हुआ है, वहीं गांव का युवा वर्ग में भी जागरूकता होने के कारण वह नशे जैसी सामाजिक कुरीति से दूर है। गांव में शिक्षा के विस्तार का मुख्य कारण यह है कि आजादी से कई वर्ष पहले ही इस गांव में स्कूल की स्थापना हो चुकी थी और आजादी के बाद 1987-88 में ग्रामीणों के प्रयास से गांव में
डिस्ट्रिक इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर की नींव रखी गई थी। यह इसी सेंटर का परिणाम है कि गांव में सरकारी नौकरियों में सबसे ज्यादा संख्या अध्यापकों की है। 

1927 में ग्रामीणों ने चंदे से बनवाई थी स्कूल की बिल्डिंग   

ग्रामीण हरपाल सिंह का कहना है कि गांव में आजादी से कई वर्ष पहले ही शिक्षा का अच्छा प्रभाव है। वर्ष 1927 में ग्रामीणों ने चंदा एकत्रित कर स्कूल की बिल्डिंग बनवाई थी। गांव में स्कूलबनने के बाद गांव में शिक्षा को काफी बढ़ावा मिला। इसके बाद 1987-88 में गांव में डिस्ट्रिक इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर की नींव रखी गई थी।

खेलों में भी है गांव की विशेष पहचान

गांव में शिक्षा के विस्तार के बारे में जानकारी देते मास्टर धज्जाराम।
ग्रामीणों ने बताया कि शिक्षा के साथ-साथ खेलों के क्षेत्र में भी गांव की विशेष पहचान है। मास्टर ओम सिंह, मास्टर धज्जा सिंह, मास्टर भीम सिंह, मास्टर गज सिंह, मास्टर सतबीर सिंह ने कई वर्ष तक हरियाणा व पंजाब की कबड्डी की टीम में खेलते हुए टीम का मार्गदर्शन किया। इस गांव से कबड्डी व स्वीमिंग के कई अच्छे खिलाड़ी निकल चुके हैं।

लड़कों के साथ लड़कियों को भी मिला पढ़ाई का अवसर 

सेवानिवृत्ति मास्टर धज्जाराम का कहना है कि उन्होंने 1963  में गांव के स्कूल में प्राइमरी अध्यापक के तौर पर नौकरी ज्वाइन की थी। उस समय ग्रामीण क्षेत्र में लड़कियों की शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता नहीं थी लेकिन उनके गांव में ही स्कूल होने के कारण गांव की ज्यादातर लड़कियां पढ़ाई के लिए स्कूल आती थी। गांव के लड़कों के साथ-साथ लड़कियों ने भी शिक्षित होकर गांव का नाम रोशन किया।

परिवार से मिली अध्यापक बनने की प्रेरणा

गणित अध्यापिका राजलक्ष्मी का फोटो।
मुझे अध्यापक बनने की प्रेरणा मेरे परिवार से ही मिली। मेरे नाना जी भी अध्यापक थे और मेरे पिता जी भी अध्यापक थे। इसके बाद से ही हमारा पूरा परिवार अध्यापन की लाइन में है। मेरे भाई व भाभी भी अध्यापक हैं। मैं खुद भी गणित अध्यापिका हूं और पास के ही गांव ईंटल कलां के स्कूल में कार्यरत हूं। हमारे गांव में इस समय 100 से भी अध्यापक हैं। 
राजलक्ष्मी, गणित अध्यापिका

शिक्षा का हब बन चुका है गांव

अध्यापिका शालिन्दा का फोटो।
पूरे गांव में शिक्षा के प्रति अच्छा माहौल है। एक तरह से देखा जाए तो पूरा गांव एक तरह से एजुकेशन का हब बन चुका है। गांव में सबसे अधिक सरकारी नौकरी हैं। मेरे पति भी अध्यापक हैं।
शालिन्दा, अध्यापिका

खेलों के क्षेत्र में तराश रहे युवाओं का भविष्य

स्वीमिंग कोच मनोज का फोटो।
गांव के ही डीपीई मनोज कुमार तथा हरियाणा पुलिस में एएसआई के पद पर कार्यरत अशोक कुमार खेलों के क्षेत्र में युवाओं का भविष्य संवार रहे हैं। डीपीई मनोज कुमार स्वीमिंग के कोच हैं तो एएसआई अशोक कुमार कबड्डी के कोच हैं और खेल कोटे से ही पुलिस में भर्ती हुए हैं। गांव से निकल कर जींद शहर में जाने के बावजूद भी यह दोनों कोच प्रतिदिन शाम को गांव में जाकर युवाओं को खेलों का निशुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं। 150  के करीब खिलाड़ी इनसे खेलों का प्रशिक्षण ले रहे हैं। यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर कई खिलाड़ी राज्य व नेशनल स्तर की प्रतियोगिताओं में अपना दमखम दिखा चुके हैं।

अर्जुन अवार्ड हासिल कर चुके हैं कोच ओमप्रकाश

बास्केटबाल कोच ओमप्रकाश का फोटो।
बास्केट बाल कोच ओमप्रकाश ढुल ने बताया कि उन्होंने लगभग साढ़े 22 वर्ष तक आर्मी में सेवा दी और अब जींद में बास्केट बाल के कोच के तौर पर सेवा दे रहे हैं। सेना में रहते हुए 1970-80 तक वह इंडिया टीम में खेले। 1975 में उनकी टीम एशिया की टॉप स्कोरर रही। सेना की तरफ से खेलते हुए लगातार 12 वर्ष तक उनकी टीम इंडिया में पहले स्थान की टीम रही। खेलों में उनकी उपलब्धि को देखते हुए उन्हें 1979-80 में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके बाद १९८५ में राष्ट्रपति द्वारा वशिष्ठ सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया।









रविवार, 28 अगस्त 2016

गांव की सरपंच को भी भा गई महिला किसान खेत पाठशाला

अब बगैर कीटनाशकों के खेती के लिए महिलाओं को करेंगी प्रेरित

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रधाना गांव में चल रही अमर उजाला फाउंडेशन व डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन द्वारा चलाई जा रही महिला किसान खेत पाठशाला अब गांव की सरपंच को भा गई है। महिला सरपंच मंजु प्रत्येक शनिवार को लगने वाली इस पाठशाला में कीट ज्ञान की ताल्लीम ले रही हैं।
रधाना गांव के खेतों में लगी पाठशाला में उपस्थित महिलाएं।
शनिवार को लगी पाठशाला में कीटाचार्य महिला किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन किया। खेत पाठशाला के दौरान महिला कीटाचार्यों ने शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का गिनती कर चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार किया। पिछले सप्ताह की ही तरह इस बार भी फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा मिला। महिला किसान शीला, सविता, शकुंतला, सुदेश, सुषमा, अंग्रेजो, नवीन, प्रमिला, यशवंती, असीम ने बताया कि शाकाहारी और मांसाहारी कीट दोनों ही फसल को फायदा पहुंचाते हैं। शाकाहारी कीट कपास की फसल के पत्तों को काटकर उनमें सुराग बना देते हैं। पत्तों में सुराग होने से नीचे वाले पत्तों पर भी चली जाती है, जो पत्तों द्वारा भोजन तैयार करने में सहायक होती है। किसान के जानकारी के अभाव में फसल पर कीटों को देखकर कीटनाशक स्प्रे कर देते हैं, जिसका उत्पादन पर भी विपरीत असर पड़ता है।

गांव की महिलाओं को भी करुंगी प्रेरित

दूसरी बार महिला किसान खेत पाठशाला में पहुंची रधाना गंाव की सरपंच मंजु ने बताया कि पिछले साल सफेद मक्खी की वजह से उनके यहां प्रति एकड़ दो क्विंटल कपास का उत्पादन हुआ था। महंगे कीटनाशक स्पे्र करने के बावजूद कोई फायदा नहीं हुआ। इस पाठशाला में आकर कीटों के बारे में पता चला है, जिसके बारे में वह गांव की ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को बताएंगी। 

रधाना गांव की सरपंच मंजू का फोटो।  





मंगलवार, 9 अगस्त 2016

'बिग बॉस में शिरकत करेगी म्हारी रेसलर हार्ड केडी'

ग्रेट खली की तर्ज पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डब्ल्यूडब्ल्यूई में तिरंगा लहराना है लक्ष्य
जालंधर में ग्रेट खली की अकेडमी में ले रही है प्रशिक्षण
रेसलिंग की नेशनल खिलाड़ी बुलबुल को रिंग में चटा चुकी है धूल 
कविता की बढ़ती लोकप्रियता को देख बिग बॉस से मिला ऑफर 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। राष्ट्रीय स्तर पर नौ वर्षों तक वेटलिफ्टिंग में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन करने वाली जींद जिले के गांव मालवी निवासी वेट लिफ्टिर कविता दलाल अब कांटीनेंटल वेटलिफ्टर इंटरटेरमेंट (सीडब्ल्यूई) में रेसलर के रूप में धूम मचा रही है। कविता दलाल महज तीन के ही प्रशिक्षण के दौरान दिल्ली की मशहूर रेसलर बुलबुल की चुनौती को स्वीकार कर बुलबुल को रिंग में धूल चटा चुकी है। सीडब्ल्यूई के रिंग में कविता दलाल अब हार्ड केडी के नाम से अपनी एक नई पहचान बना चुकी है। कविता दलाल का अब अगला लक्ष्य देश के मशहूर रेसलर दा ग्रेट खली की तर्ज पर वल्र्ड रेसलिंग इंटरटेनमेंट (डब्ल्यूडब्ल्यूई) में तिरंगा लहराना है। यदि कविता दलाल अपने इस मुकाम तक पहुंचने में कामयाब हो जाती हैं तो वह देश की पहली महिला रेसलर बन जाएंगी। इसके लिए कविता दलाल ने अक्तूबर में दा ग्रेट खली द्वारा गुरुग्राम में आयोजित करवाई जा रही सीडब्ल्यूई में भाग लेने वाले विदेशी रेसलरों को भी चुनौती दी है। डब्ल्यूडब्ल्यूई के रिंग में फाइट करने के लिए कविता जालंधर में स्थित खली की अकेडमी में प्रशिक्षण ले रही है और इसके लिए कविता प्रतिदिन आठ घंटे कठिन अभ्यास कर रही है। सीडब्ल्यूई में लगातार बढ़ रही कविता की लोकप्रियता को देख बिग बॉस के घर में शामिल होने के लिए कविता को निमंत्रण मिल चुका है। कविता ने बिग बॉस के इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है। 
 खली की अकेडमी में एक रेसलर के साथ पंजा लड़ाती कविता।

यह है कविता के जीवन का सफर

जींद जिले के मालवी गांव निवासी कविता ने जुलाना के सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं की कक्षा पास की। इसी दौरान कविता के बड़े भाई संजय ने कविता को वेट लिफ्टिंग के खेल के लिए प्रेरित किया। वर्ष 2002 में कविता ने फरीदाबाद में वेट लिफ्टिंग का प्रशिक्षण लेना आरम्भ किया। वर्ष 2003 में कविता ने प्रशिक्षण के लिए बरेली साईं हॉस्टल में दाखिला लिया लेकिन यहां के प्रशिक्षण से कविता संतुष्ट नहीं थी। इसके बाद वर्ष 2004 में कविता ने लखनऊ से अपना प्रशिक्षण शुरू किया, जो 2007 तक जारी रहा। प्रशिक्षण के साथ-साथ कविता ने अपनी पढ़ाई का सफर भी जारी रखा। 2005 में कविता ने बीए की पढ़ाई पूरी की। वर्ष 2008 में कविता ने एसएसबी में बतौर कांस्टेबल के पद पर नौकरी ज्वाइन की। वर्ष 2009 में कविता की शादी बाडौत (उत्तरप्रदेश) निवासी गौरव से हुई। गौरव भी एसएसबी में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं और वालीबाल के अच्छे खिलाड़ी हैं। नौकरी के दौरान वर्ष 2010 में कविता ने विभाग से कॉमनवैल्थ गेम्स की तैयारी के लिए 
सूट सलवार में दिल्ली की रेसलर बुलबुल की चुनौती स्वीकार करती कविता।
बाहर से प्रशिक्षण दिलवाने की गुहार लगाई लेकिन विभाग की तरफ से उसे कोई सहयोग नहीं मिला। इससे निराश होकर कविता ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कविता यूपी में अपनी ससुराल में रहने लगी। इसके बाद कविता के पति गौरव ने कविता को फिर से खेलों के लिए प्रेरित किया। पति से मिले सहयोग के बाद कविता ने फिर से वेटलिफ्टिंग में अपना अभ्यास शुरू कर दिया। 


ग्रेट खली की अकेडमी में अभ्यास करती कविता दलाल।

वेटलिफ्टिंग में यह रही कविता दलाल की उपलब्धियां

1. वर्ष 2006 में ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। 
2. वर्ष 2007 में नेशनल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता। 
3. वर्ष 2008 में नेशनल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता।
4. वर्ष 2010 में नेशनल वुशू चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता।
5. वर्ष 2011 में राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
6. वर्ष 2013 में नेशनल भारोत्तोलन में स्वर्ण जीता।
7. वर्ष 2014 में नेशनल भारोत्तोलन में स्वर्ण जीता।
8. वर्ष 2015 में केरल में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण जीता।
9. वर्ष 2016 में गुहाटी में आयोजित साऊथ एशियन गेम में स्वर्ण जीता। 

प्रति दिन आठ घंटे अभ्यास करती है कविता दलाल 

वेटलिफ्टिंग के बाद कविता दलाल अब सीडब्ल्यूई के रिंग में कठोर परिश्रम कर रही है। कविता दिन में आठ घंटे अभ्यास करती है। रिंग में उतरने से पहले जिम व एक्सरसाइज करती है। इसके बाद सुबह व शाम को दो से तीन घंटे खली की निगरानी में रिंग में अभ्यास करती है। 
अभ्यास के दौरान कविता का फोटो।

पहली ही फाइट में नेशनल रेसलर को कर दिया चित

कविता दलाल ने सीडब्ल्यूई के रिंग में महज तीन दिन के प्रशिक्षण के बाद ही नेशनल रेसलर बुलबुल की चुनौती को स्वीकार कर लिया। नेशनल रेसलर बुलबुल ने जब रिंग में खड़े होकर फाइट करने के लिए रेसलरों को ललकारा तो ऑडियंश में बैठी कविता ने बुलबुल की चुनौती स्वीकार की। कविता सूट सलवार में ही रिंग में कूद पड़ी। रिंग में सूट सलवार में उतरी कविता को देख सभी दर्शक हैरान थे। कविता ने अपनी पहली फाइट में नेशनल रेसलर बुलबुल को रिंग में चित कर दिया। कविता द्वारा सूट सलवार में रिंग में उतर कर की गई फाइट ने कविता को पूरे देश में प्रसिद्धी दिलवा दी। कविता की इस फाइट का एक विडियो कई दिनों तक सोशल मीडिया पर भी छाया रहा। 

बिग बॉस में भी करूंगी हरियाणा का नाम रोशन

सीडब्ल्यूई से मुझे एक नई पहचान मिली है और इस खेल में मेरी बढ़ती प्रसिद्धी को देखते हुए मुझे बिग बॉस में शामिल होने का ऑफर मिला है। मैने बिग बॉस के ऑफर को स्वीकार कर लिया है। जैसे ही बिग बॉस से कार्यक्रम का शैड्यूल मिलेगा मैं इसमें शामिल होकर यहां पर अपने हरियाणा का नाम रोशन करूंगी। 
कविता दलाल
रेसलर, सीडब्ल्यूई

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करेगी कविता 

कविता बहुत ही मेहनती लड़की है। एक बार यह जो लक्ष्य निर्धारित कर लेती है, फिर उसे पूरा करके ही दम लेती है। वेटलिफ्टिंग के बाद कविता का लक्ष्य सीडब्ल्यूई में विदेशी रेसलरों को धूल चटाकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करना है। हमें उम्मीद है कि जल्द ही कविता इस लक्ष्य को पूरा करेगी। अभी कविता को बिग बॉस में शामिल होने का ऑफर मिला है। बिग बॉस में भी कविता जरूरी विजयी रहेगी। 
संजय दलाल, भाई




फसल में नुकसान पहुंचाने से कोसों दूर है शाकाहारी कीटों की संख्या

रधाना गांव में हुआ महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रधाना गांव में शनिवार को अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन द्वारा महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में महिला किसानों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। पाठशाला के आरंभ में कीटाचार्य महिला किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन किया। इसके बाद शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का गिनती कर चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार किया। आंकड़े में यह साफ नजर आया कि फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा मिला। 
  फसल में कीटों की संख्या का अवलोकन करती  महिला किसान।
कीटाचार्या महिला किसान शीला, सविता, शकुंतला, सुदेश, सुषमा, नवीन, प्रमिला, यशवंती, असीम ने बताया कि पिछले तीन-चार वर्षों से कपास की फसल में सफेद मक्खी का काफी प्रकोप सामने आया था लेकिन इस बार कपास की फसल में शाकाहारी कीटों की संख्या काफी कम है। फसल में नुकसान पहुंचाने वाली सफेद मक्खी, हरा तेले व चूरड़े की संख्या नामात्र है। उन्होंने बताया कि सफेद मक्खी 0.5, हरा तेला 0.9, चूरड़ा 0.8 रही, जो कि फसल को नुकसान पहुंचाने के आर्थिक हानि कागार से काफी दूर है। वहीं नुकसान पहुंचाने वाले सूबेदार मेजर लाल बानिया, माइट, मिलीबग, चेपा, पत्ते खाने वाले शाकाहारी में स्लेटी भूंड, टिड्डा तथा फूल खाने वाले में तेलन, भूरी पुष्पक कीट भी मिले लेकिन इनकी संख्या भी नामात्र ही मिली। वहीं मांसाहारी में डाकू बुगड़ा, हथजोड़ा, दीदड़ बुगड़ा, क्राइसोपा, बिंदुआ चूरड़ा, लफड़ो मक्खी, सुनहेरी मक्खी, लोपा मक्खी, लाल माइट, मकड़ी लालड़ो बिटल, लफड़ो बिटल भी कपास की फसल में मिली। कीटाचार्या महिला किसानों ने बताया कि फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा है। इससे यह साफ है कि मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को रोकने में एक तरह से कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। 



गुरुवार, 4 अगस्त 2016

फिजूलखर्ची छोड़ जागरूकता के साथ धान की देखभाल करें किसान

थोड़ी सी सावधानी से ही किसान कर सकते हैं धान की फसल की बीमारियों का ऊपचार 
धान की फसल में ज्यादा पानी खड़ा रहने से पनपती हैं ज्यादातर बीमारियां

नरेंद्र कुंडू 
जींद। हरियाणा प्रदेश में खरीफ  की फसलों में से धान एक मुख्य फसल है। यह पानी की फसल होने के कारण इसमें फफूंद, जीवाणु, विषाणु से संबंधित बीमारियां आने का खतरा भी सबसे ज्यादा होता है। किसान जानकारी के अभाव में फसल को इन बीमारियों से बचाने के लिए अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग करते हैं। इससे फसल में किसान की लागत बढ़ती चली जाती है और उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जबकि थोड़ी सी सावधानी से ही किसान पेस्टीसाइड पर होने वाले इस फिजूलखर्च से बच सकते हैं। धान की फसल में 16 से 17 किस्म की बीमारियां आती हैं। इनमें जड़ गलन, तना गलन, शीत गलन, शीत बलाइट, बदरा (ब्लास्ट) रोग, बकानी (पद गलन), जीवाणु अंगमारी, बैक्टेरियल लीफ  फलाइट, टुंगरा इत्यादी बीमारियां शामिल हैं। इनमें से कुछ रोग ऐसे हैं, जिन्हें बीज ऊपचार कर तथा कुछ रोग ऐसे हैं, जिन्हें फसल को पर्याप्त खुराक देकर रोका जा सकता है। बस इसके लिए किसानों को जागरूक होने की जरूरत है। 

सीमित मात्रा में करें खाद का प्रयोग 

धान की फसल का अच्छा उत्पादन लेने के लिए किसानों को चाहिए कि वह धान की रोपाई के बाद 40 दिन तक ही फसल में यूरिया खाद डालें। यूरिया खाद डालते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि एक बार में आधा कट्टे से ज्यादा खाद और पूरे सीजन में 110 किलो से ज्यादा यूरिया खाद नहीं डालनी चाहिए। फसल की रोपाई के 40 दिन के बाद फसल में नीचे यूरिया खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए। फसल में चार अनुपात दो अनुपात एक के अनुसार खाद का प्रयोग करें। यानि के अगर फसल को चार किलो नाइट्रोजन देनी है तो उसमें दो किलो फास्फोर्स तथा एक किलो पोटास डालें। ताकि पौधों को पर्याप्त खुराक मिल सके।
धान की फसल के लिए खेत तैयार करता किसान।

फफुंदी से फैलने वाले रोग व उपचार 

धान की फसल में सात से आठ किस्म की ऐसी बीमारियां हैं जो फसल में अधिक पानी खड़ा रहने से होती हैं। इनमें जड़ गलन, तना गलन, पत्त गलन, शीत गलन, बदरा, शीत ब्लाइट नामक रोग फफुंदी से फैलने वाले रोग हैं। यदि फसल में इन रोगों के लक्षण नजर आने लगें तो किसान को फसल में पेस्टीसाइड का प्रयोग करने की बजाए फसल में पानी को कम कर देना चाहिए। फसल में पानी कम कर इन बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है। 

बदरा (ब्लास्ट) रोग की तीन स्टेज

धान की फसल में बदरा (ब्लास्ट) रोग की तीन स्टेज होती हैं। इसकी शुरूआत पत्ते, फिर तने और इसके बाद गर्दन पर होती है। इस रोग की शुरूआत में पत्ते पर आंख की निशान जैसे धब्बे हो जाते हैं। इस रोग का कोई ऊपचार नहीं है। इस रोग से बचने के लिए किसानों को चाहिए कि फसल के निसरते समय खेत में ज्यादा पानी खड़ा करने की बजाए नमी रखें।  

टुंगरा रोग का नहीं कोई उपचार

धान की फसल में आने वाला टुंगरा रोग वायरस से फैलने वाला रोग है और इस रोग का कोई ऊपचार नहीं है। इसलिए किसानों को इस रोग से फसल को बचाने के लिए पेस्टीसाइड पर फिजूलखर्ची नहीं करनी चाहिए। इस रोग में धान की फसल में कुछ पौधे अन्य पौधों से लंबे बढ़ जाते हैं और फिर यह सफेद हो जाते हैं। इस रोग की रोकथाम केवल बीज ऊपचार से ही हो सकती है। 

खुराक की कमी से होने वाले रोग

धान की फसल में पीलिया व खैरा रोग खुराक की कमी से होते हैं। पीलिया रोग लोहे की कमी से होता है और खैरा रोग जिंक की कमी से होता है। इन रोगों से बचाने के लिए फसल को समय पर पर्याप्त मात्रा में खुराक की जरूरत होती है। 

ज्यादातर किसान पेस्टीसाइड पर फिजूलखर्ची करते रहते हैं। जबकि किसान थोड़ी सी सावधानी से ही अधिकतर बीमारियों पर काबू पा सकते हैं। किसानों को धान की नर्सरी तैयार करने से पहले बीज ऊपचार जरूर करना चाहिए। इसके बाद धान की फसल में अधिक पानी खड़ा नहीं करना चाहिए। जहां पर पानी खराब है, उस क्षेत्र के किसानों को फसल में अधिक पानी देने की बजाए केवल नमी रखनी चाहिए। यदि फसल में जड़ गलन, तना गलन, शीत गलन इत्यादि रोग नजर आएं तो खेत का पानी सुखा देना चाहिए। खाद का प्रयोग भी सीमित मात्रा में करना चाहिए।
डॉ. कमल सैनी
कृषि विकास अधिकार, जींद


बुधवार, 20 जुलाई 2016

'देश के किसानों को कुदरती तरीके से सफेद सोने की खेती के टिप्स देंगे म्हारे किसान'

डीडी किसान चैनल की टीम ने कैमरे में कैद किए कीटाचार्य किसानों के अनुभव

दो घंटे तक किसानों व कृषि वैज्ञानिकों के बीच हुए सवाल-जवाब

थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए कुदरती कीटनाशियों को बताया अचूक हथियार

नरेंद्र कुंडू
जींद।
म्हारे कीटाचार्य किसान अब देश के किसानों को कुदरती तरीके से सफेद सोने (कपास) की खेती करने के टिप्स देंगे। ताकि खाने की थाली को जहरमुक्त बनाकर आने वाली पीढिय़ों को अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ अच्छा पर्यावरण मुहैया करवाया जा सके। इसके लिए डीडी किसान चैनल की टीम ने मंगलवार को जिले के रधाना गांव में प्रश्र मंच कार्यक्रम का आयोजन कर कीटाचार्य महिला व पुरुष किसानों के अनुभवों को अपने कैमरे में कैद किया। कार्यक्रम के दौरान लगभग दो घंटे तक किसानों व कृषि वैज्ञानिकों के बीच खूब सवाल-जवाब हुए। कीटाचार्य किसानों ने अपने अनुभव में बताया कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। जहरमुक्त खेती की पद्धति को आगे बढ़ाने के लिए कीट ज्ञान बेहद जरूरी है। कीटनाशकों के प्रयोग को रोकने में कुदरती कीटनाशी ही एकमात्र अचूक हथियार हैं। कार्यक्रम की रिकार्डिंग के दौरान प्राकृतिक रूप से कपास की फसल की देखभाल तथा कुदरती तरीके से फसल में मौजूद कीटों को नियंत्रित करने के मुद्दे पर विशेष फोक्स रहा। कीटाचार्य किसानों ने बड़ी ही बेबाकी के साथ सभी सवालों के जवाब दिए और कार्यक्रम में मौजूद कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के जवाबों पर अपनी सहमति जताकर तकनीकि रूप से मोहर लगाने का काम किया। टीम के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए कीटाचार्य महिला और पुरुष किसानों ने बताया कि वह किस तरह से पिछले आठ-दस वर्षों से बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किए व नामात्र उर्वरकों का प्रयोग कर जहरमुक्त खेती को बढ़ावा देकर अच्छा उत्पादन तो ले ही रहे हैं, साथ-साथ समाज को अच्छा पर्यावरण व शुद्ध भोजन मुहैया करवाने का काम कर रहे हैं। 
 कार्यक्रम में महिला किसानों से सवाल-जवाब करती टीम की एंकर।

यह-यह लोग कार्यक्रम में हुए शामिल

कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र की तरफ से वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक यशपाल मलिक, प्रगतिशील किसान क्लब की तरफ से कुलदीप ढांडा, कीटाचार्य रणबीर मलिक, सविता, अंग्रेजो, जिला पार्षद अमित निडानी, डीडी किसान चैनल से सीनियर प्रोडेक्शन एग्जीकिटिव विकास डबास, एंकर आदिती शर्मा, सीनियर वीडियोग्राफर नरेश गोलिया, विक्रम किशोरी, कैमरामैन शंभुनाथ मिश्रा, इंजीनियर जोगेंद्र कुमार, तकनीशियन हेमंत, वीडियो सहायक अंकित अग्रवाल, हेमंत विष्ठ मौजूद रहे।

इस-इस दिन होगा कार्यक्रम का प्रसारण

कीटाचार्य पुरुष किसानों के कार्यक्रम का प्रसारण बृहस्पतिवार 21 जुलाई शाम को साढ़े सात बजे, शुक्रवार 22 जुलाई को दोपहर तीन बजे किया जाएगा। जबकि महिला किसानों के कार्यक्रम को बृहस्पतिवार 28 जुलाई शाम साढ़े सात बजे तथा शुक्रवार 29 जुलाई को दोपहर तीन बजे प्रसारित किया जाएगा।

 यह हुए सीधे सवाल-जवाब

 कार्यक्रम में पुरुष किसानों से सवाल-जवाब करती टीम की एंकर।
सवाल 01. कपास की अच्छी फसल लेने के लिए क्या सावधानी रखनी चाहिए।
जवाब : अच्छी फसल लेने के लिए सबसे पहले बिजाई से पूर्व धरती की अच्छी जुताई की जाए। बिजाई से पूर्व खेत में देसी खाद का प्रयोग किया जाए। डोलियां बनाकर बिजाई की जाए। बिजाई के बाद समय पर पानी लगाना चाहिए।
सवाल 02. कीटनाशकों के इस्तेमाल में क्या सावधानियां रखनी चाहिए।
जवाब : किसानों ने बताया कि वह पिछले आठ-दस वर्षों से बिना कीटनाशकों के खेती कर रहे हैं और इस दौरान उन्हें कीटनाशकों की जरूरत नहीं पड़ी।
सवाल 03 : कपास की फसल में पहली सिंचाई कब होनी चाहिए।
जवाब : बिजाई के 40 दिन बाद सिंचाई की जा सकती है। सिंचाई से पहले अच्छी तरह से निराई व गुडाई करनी चाहिए। यदि जमीन में नमी कम है तो पहले भी सिंचाई की जा सकती है। पौधों की जरूरत को ध्यान में रख कर सिंचाई करें और सितम्बर माह में सिंचाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि इस माह में पौधे पर फूल व बौकी आनी शुरू हो जाती हैं।
सवाल 04 : क्या कीटनाशकों के बिना खेती संभव है।
जवाब : कीटों को नियंत्रित करने में कीट ही सबसे अचूक शस्त्र हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार ही भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं। जब पौधे को शाकाहारी कीट की जरूरत नहीं होती जब पौधे उन्हें नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट को बुलाते हैं। इस प्रक्रिया में मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। इसलिए कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों की संख्या कम होने की बजाए बढ़ती है। वहीं कृषि विशेषज्ञ ने भी इस बात पर अपनी सहमति जताते हुए बताया कि कीटनाशकों के प्रयोग से कीट अपना जीवन चक्र कम कर बच्चे देने की क्षमता बढ़ा लेते हैं और इससे फसल में कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है।
सवाल 05 :  कीटनाशकों से मिट्टी को क्या नुकसान होता है।
जवाब : कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म कीट मर जाते हैं तथा इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी नष्ट होती है। कीटनाशकों का प्रभाव जमीन व वातावरण में लंबे समय तक रहता है। जो हवा व खाने के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर बीमारियां पैदा करते हैं।
सवाल 06 : कपास की फसल में किस-किस रोग का खतरा रहता है।
जवाब : कपास की फसल में लीफ करल नामक वायरस का खतरा ज्यादा रहता है और सफेद मक्खी इस वायरस को फैलाने में सहायक है। कुछ कृषि अधिकारियों का मानना है कि लीफ करल वाले पौधे को उखाड़ दें लेकिन पौधे को उखाडऩे की बजाए यदि उसे पर्याप्त मात्रा में खुराक दें तो पौधा अच्छा उत्पादन दे सकता है।
सवाल 07 : क्या कपास में आने वाले कीट भी फसल को फायदा पहुंचा सकते हैं।
जवाब : प्रकृति ने इस धरती पर जिस भी जीव को जन्म दिया है, उसकी कहीं ना कहीं बहुत जरूरत है। ऐसा ही फसल में मौजूद कीटों पर भी लागू होता है। कुछ ऐसे शाकाहारी कीट हैं जो पत्तों में सुराख करते हैं और इस सुराख से ही नीचे के पत्तों पर धूप पहुंचती है तो नीचे के पत्ते भी पौधे के लिए भोजन बनाते हैं। वहीं ब्रिस्टल बीटन (तेलन) नामक शाकाहारी कीट कपास की फसल में पर-परागण का काम करती है। इस प्रकार कीट भी फसल को फायदा पहुंचाते हैं।
सवाल 08 : कपास की फसल में सफेद मक्खी की रोकथाम के क्या ऊपाये हैं।
जवाब : सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए फसल में हथजोड़ा, क्राइसोपा, मकडिय़ां, बीटल नामक मांसाहारी कीट काफी संख्या में मौजूद रहते हैं, जो सफेद मक्खी व इसके बच्चों को खाकर इसे नियंत्रित करने का काम करते हैं। वहीं कुछ ऐसे कीट भी हैं जो इसके अंड़ों में अपने अंडे देकर सफेद मक्खी संख्या को बढऩे से रोकते हैं।
सवाल 09 : औसतन कितनी सफेद मक्खी होने पर कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए।
जवाब : कृषि वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित किए गए आर्थिक हानि कागार (ईटीएल) के अनुसार प्रति पत्ता जब सफेद मक्खी की संख्या 6 से अधिक हो तो ही कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए लेकिन पिछले आठ से दस साल के अनुभव में आज तक सफेद मक्खी ने कभी भी उनकी फसल में यह ईटीएल लेवल पार नहीं किया है। इसलिए उन्हें सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ी।
सवाल 10 : कपास में चुगाई के दौरान क्या सावधानियां रखनी चाहिएं।
जवाब : चुगाई के दौरान साफ कपड़े (पल्ली) का प्रयोग किया जाए, चुगाई के दौरान सिर पूरी तरह से कपड़े से ढका होना चाहिए। पक्के हुए फावे को ही निकालें। औस साफ होने पर ही चुगाई करनी चाहिए। पत्तों व कीटों को फावों से दूर रखें ताकि कपास की गुणवत्ता पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़े।










सोमवार, 4 जुलाई 2016

महिला सशक्तिकरण की मिशाल पेश कर रही कीटाचार्य महिलाएं : एडीसी

रधाना  गांव में हुआ महिला पाठशाला का शुभारंभ

जींद। महिला सशक्तिकरण की जो मिशाल जींद जिले की महिलएं पेश कर रही हैं, ऐसी मिशाल प्रदेश के दूसरे जिलों में उन्हें कहीं पर भी देखने को नहीं मिली है। यह बात एडीसी आमना तसनीम ने शनिवार को रधाना गांव में महिला किसान खेत पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर कीटाचार्य महिलाओं को संबोधित  करते हुए कही। इस अवसर पर उनके साथ कृषि विभाग के एसडीओ राजेंद्र गुुप्ता, बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा, दलीप सिंह चहल, प्रगतिशील किसान क्लब के प्रधान राजबीर कटारिया, डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन के प्रधान रणबीर मलिक सहित काफी संख्या में महिल किसान  मौजूद रही। एडीसी ने रिबन काट कर पाठशाला का शुभारंभ किया। महिला किसानों ने पाठशाला में पहुंचने पर एडीसी मैडम का स्वागत किया।
रधाना गांव में रिबन काटकर पाठशाला का उद्घाटन करती एडीसी। 
एडीसी ने कहा कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान, रेवाड़ी, झज्जर, सोनीपत सहित कई जिलों में काम किया है और इस दौरान वह वहां की महिलाओं से भी मिलती रही हैं। लेकिन जिस तरह जींद जिले के निडाना, निडानी, ललितखेड़ा तथा रधाना गांव की महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कृषि के कार्य में अपना योगदान कर रही हैं और फसल में मौजूद कीटों के बारे में इतनी बारिकी से जानकारी रखती है, इस तरह की मिशाल उन्हें दूसरे जिलों में देखने को नहीं मिली है। ललितखेड़ा की कीटाचार्य महिला किसानों ने तेरे कांधे टंकी जहर की मेरै कसुती रड़कै हो तथा रधाना की महिलाओं ने खेत मैं खड़ी ललकारूं देखे हो पिया जहर ना लाइये गीत से फसल में मौजूद कीटों को बचाने का आह्वान किया। कीटाचार्या सविता ने बताया कि यदि फसलों में इसी तरह से कीटनाशकों का प्रयोग होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपनी आने वाली पुस्तों को विरासत में बीमारियां देकर जाएंगे। अंग्रेजों ने बताया कि कीटों को मारने के लिए कीटनाशकों की जरूरत नहीं है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट खुद ही कुदरती कीटनाशी का काम कर देते हैं। वह पिछले आठ वर्षों से बिना कीटनाशकों के ही खेती कर रहे हैं।
रधाना गांव  में महिला पाठशाला को संबोधित करती एडीसी।
उन्होंने बताया कि पौधों को कीटनाशकों की नहीं खुराक की जरूरत होती है। एडीसी ने महिलाओं को कीट ज्ञान पद्धति पर एक पुस्तक तैयार करने का आह्वान किया ताकि कीट ज्ञान को दूसरे जिलों के किसानों तक भी पहुंचाया जा सके।






रधाना गांव में पाठशाला में मौजूद महिलाएं।

 पाठशाला में अपने अनुभव बताती महिलाएं।

रविवार, 17 जनवरी 2016

आने वाली पीढिय़ों को अच्छा स्वास्थ्य देने के लिए कीट ज्ञान एकमात्र उपाय : डॉ. प्रेमलता

म्हारे किसानों के कीट ज्ञान के कायल हुए कृषि वैज्ञानिक 
कीटाचार्य किसानों से रूबरू होने के लिए निडानी पहुंचा कृषि वैज्ञानिकों का दल   

नरेंद्र कुंडू 
जींद। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रेमलता ने कहा कि कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े पुरुष व महिला किसान किसी कृषि वैज्ञानिक से कम नहीं हैं। कीटों के बारे में जितना भी व्यवहारिक ज्ञान यहां के कीटाचार्य किसानों को है, उतना ज्ञान तो वैज्ञानिकों को भी नहीं है। आने वाली पीढिय़ों को यदि अच्छा स्वास्थ्य व अच्छा वातावरण मुहैया करवाना है तो उसके लिए फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग को पूरी तरह से बंद करना होगा और यह तभी संभव है जब किसानों को फसल में मौजूद कीटों की पहचान व उनके क्रियाकलापों की जानकारी होगी। कीट ज्ञान के मॉडल को लागू किए बिना खाने की थाली को जहरमुक्त बनाना संभव नहीं है। डॉ. प्रेमलता शुक्रवार को कृषि वैज्ञानिकों के एक दल के साथ खेल गांव निडानी में आयोजित कार्यक्रम में कीटाचार्य किसानों से रूबरू हो रही थी। इस दौरान उनके साथ गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, केरला, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान सहित 11 प्रदेशों के लगभग 22 कृषि वैज्ञानिकों का दल मौजूद था। कार्यक्रम के दौरान कीटाचार्य किसानों की प्रस्तुतियों से कृषि वैज्ञानिकों का पूरा दल किसानों के कीट ज्ञान का कायल हो गया। 
 कार्यक्रम में मंच पर मौजूद वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक।
कार्यक्रम के दौरान कीटाचार्य किसानों ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से बताया कि जब से कीड़े व किसान की लड़ाई शुरू हुई है, तब से इस लड़ाई में हार का सामना किसान को ही करना पड़ा है। क्योंकि किसान को कीड़ों की पहचान ही नहीं है और जब तक जंग में दुश्मन की पहचान नहीं होगी तब तक जंग जीतना संभव नहीं है। कीटनाशकों से कीटों को नियंत्रित करना संभव नहीं है। इसका ताजा उदाहरण पिछले वर्ष कपास की फसल में हुआ सफेद मक्खी का प्रकोप है। जहां-जहां पर किसानों ने सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया, वहां-वहां इसके भयंकर परिणाम सामने आए हैं। कीटाचार्य किसानों ने बताया कि उन्होंने सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए किसी भी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया और इसी के चलते उनकी फसलों में सफेद मक्खी ईटीएल लेवल को पार नहीं कर पाई। कीटों को नियंत्रित करने के लिए फसल में मांसाहारी कीट प्रर्याप्त मात्रा में मौजूद होते हैं और मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर फसल में किसान के लिए कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय की कृषि वैज्ञानिक डॉ. कुसुम राणा ने कहा कि यहां के किसानों ने डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में कीटों पर अनोखा शोध किया है और देश के प्रत्येक किसान को इस ज्ञान की जरूरत है। क्योंकि कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से आज हमारा खान-पान व वातावरण पूरी तरह से दूषित हो चुका है और कीटनाशक ही कैंसर जैसी घातक बीमारियों की जड़ हैं। 
कार्यक्रम में कीटाचार्य किसानों के विचार सुनते कृषि वैज्ञानिक।

कुए के पास खुद ही चलकर आता है प्यासा 

उड़ीसा से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. धर्मबीर ने प्यासे के कुए के पास आने वाली कहावत का उदाहरण देते हुए कहा कि अभी तक जिस ज्ञान को उन्होंने केवल किताबों में ही पढ़ा था उस ज्ञान के आज उन्होंने व्यवहारिक रूप से दर्शन कर लिए हैं। किसानों से यह ज्ञान हासिल करने के लिए ही वह इतनी दूर चलकर आए हैं। झारखंड से आई कृषि वैज्ञानिक डॉ. माया ने महिला किसानों से घर के कामकाज को संभालने के साथ-साथ खेत का काम करने के लिए उनके समय प्रबंधन की जानकारी ली। जम्मू से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. जसबीर मनास ने कहा कि यहां उन्होंने अपनी जिंदगी का यह पहला अनुभव देखने को मिला है कि किस तरह से महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर पुरुषों का सहयोग करती हैं। झारखंड से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार ने कहा कि इस काम पर कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा भी रिसर्च किए जाने की जरूरत है। महाराष्ट्र से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. संतापुरी ने किसानों से ग्रुप में काम करने के अनुभव पर चर्चा की। 




आने वाली पीढिय़ों को अच्छा स्वास्थ्य देने के लिए कीट ज्ञान एकमात्र उपाय : डॉ. प्रेमलता

म्हारे किसानों के कीट ज्ञान के कायल हुए कृषि वैज्ञानिक
कीटाचार्य किसानों से रूबरू होने के लिए निडानी पहुंचा कृषि वैज्ञानिकों का दल
अमर उजाला ब्यूरो
जींद। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रेमलता ने कहा कि कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े पुरुष व महिला किसान किसी कृषि वैज्ञानिक से कम नहीं हैं। कीटों के बारे में जितना भी व्यवहारिक ज्ञान यहां के कीटाचार्य किसानों को है, उतना ज्ञान तो वैज्ञानिकों को भी नहीं है। आने वाली पीढिय़ों को यदि अच्छा स्वास्थ्य व अच्छा वातावरण मुहैया करवाना है तो उसके लिए फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग को पूरी तरह से बंद करना होगा और यह तभी संभव है जब किसानों को फसल में मौजूद कीटों की पहचान व उनके क्रियाकलापों की जानकारी होगी। कीट ज्ञान के मॉडल को लागू किए बिना खाने की थाली को जहरमुक्त बनाना संभव नहीं है। डॉ. प्रेमलता शुक्रवार को कृषि वैज्ञानिकों के एक दल के साथ खेल गांव निडानी में आयोजित कार्यक्रम में कीटाचार्य किसानों से रूबरू हो रही थी। इस दौरान उनके साथ गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, केरला, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान सहित 11 प्रदेशों के लगभग 22 कृषि वैज्ञानिकों का दल मौजूद था। कार्यक्रम के दौरान कीटाचार्य किसानों की प्रस्तुतियों से कृषि वैज्ञानिकों का पूरा दल किसानों के कीट ज्ञान का कायल हो गया।
कार्यक्रम के दौरान कीटाचार्य किसानों ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से बताया कि जब से कीड़े व किसान की लड़ाई शुरू हुई है, तब से इस लड़ाई में हार का सामना किसान को ही करना पड़ा है। क्योंकि किसान को कीड़ों की पहचान ही नहीं है और जब तक जंग में दुश्मन की पहचान नहीं होगी तब तक जंग जीतना संभव नहीं है। कीटनाशकों से कीटों को नियंत्रित करना संभव नहीं है। इसका ताजा उदाहरण पिछले वर्ष कपास की फसल में हुआ सफेद मक्खी का प्रकोप है। जहां-जहां पर किसानों ने सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया, वहां-वहां इसके भयंकर परिणाम सामने आए हैं। कीटाचार्य किसानों ने बताया कि उन्होंने सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए किसी भी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया और इसी के चलते उनकी फसलों में सफेद मक्खी ईटीएल लेवल को पार नहीं कर पाई। कीटों को नियंत्रित करने के लिए फसल में मांसाहारी कीट प्रर्याप्त मात्रा में मौजूद होते हैं और मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर फसल में किसान के लिए कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। चौधरी चरण ङ्क्षसह कृषि विश्वविद्यालय की कृषि वैज्ञानिक डॉ. कुसुम राणा ने कहा कि यहां के किसानों ने डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में कीटों पर अनोखा शोध किया है और देश के प्रत्येक किसान को इस ज्ञान की जरूरत है। क्योंकि कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से आज हमारा खान-पान व वातावरण पूरी तरह से दूषित हो चुका है और कीटनाशक ही कैंसर जैसी घातक बीमारियों की जड़ हैं।
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कुए के पास खुद ही चलकर आता है प्यासा
उड़ीसा से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. धर्मबीर ने प्यासे के कुए के पास आने वाली कहावत का उदाहरण देते हुए कहा कि अभी तक जिस ज्ञान को उन्होंने केवल किताबों में ही पढ़ा था उस ज्ञान के आज उन्होंने व्यवहारिक रूप से दर्शन कर लिए हैं। किसानों से यह ज्ञान हासिल करने के लिए ही वह इतनी दूर चलकर आए हैं। झारखंड से आई कृषि वैज्ञानिक डॉ. माया ने महिला किसानों से घर के कामकाज को संभालने के साथ-साथ खेत का काम करने के लिए उनके समय प्रबंधन की जानकारी ली। जम्मू से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. जसबीर मनास ने कहा कि यहां उन्होंने अपनी जिंदगी का यह पहला अनुभव देखने को मिला है कि किस तरह से महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर पुरुषों का सहयोग करती हैं। झारखंड से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार ने कहा कि इस काम पर कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा भी रिसर्च किए जाने की जरूरत है। महाराष्ट्र से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. संतापुरी ने किसानों से ग्रुप में काम करने के अनुभव पर चर्चा की।
फोटो कैप्शन
15जेएनडी 01 : कार्यक्रम में मंच पर मौजूद वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक।
15जेएनडी 02 : कार्यक्रम में कीटाचार्य किसानों के विचार सुनते कृषि वैज्ञानिक।

रविवार, 13 दिसंबर 2015

देश को कीट ज्ञान के मॉडल की सख्त जरूरत : डॉ. जेसी कत्याल

म्हारे किसानों के कीट ज्ञान का कायल हुआ किसान आयोग  
निडाना में आयोजित हुई किसान संगोष्ठी 

नरेंद्र कुंडू
जींद। किसान आयोग के चेयरमैन एवं हिसार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी डॉ. जेसी कत्याल ने जींद जिले के किसानों द्वारा शुरू की गई कीट ज्ञान की मुहिम की प्रशंसा करते हुए कहा कि यदि हमें अपनी आने वाली पुस्तों को बचाना है तो कीट ज्ञान के इस मॉडल को प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में लागू करना होगा। आज देश के किसानों को कीट ज्ञान के इस मॉडल की सख्त जरूरत है। आज प्रकृति के साथ जिस तरह से खिलवाड़ हो रही है, वह हमारे आने वाली पीढ़ी के लिए एक बड़े खतरे का संकेत है। डॉ. जेसी कत्याल बृहस्पतिवार को निडाना गांव के डैफोडिल्स स्कूल में आयोजित किसान संगोष्ठी में कीटाचार्य महिला एवं पुरुष किसानों को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उनके साथ किसान आयोग के सचिव डॉ. आरएस दलाल, डॉ. एएम नरूला, डॉ. आरबी श्रीवास्तव भी मौजूद रहे। कार्यक्रम में पहुंचने पर कीटाचार्य किसानों, किसाल क्लब के प्रधान राजबीर कटारिया, राममेहर नंबरदार, स्कूल के प्रिंसीपल ने किसान आयोग के सदस्यों का स्वागत किया।
किसान आयोग के चेयरमैन डॉ कत्याल को पगड़ी पहना कर स्वागत करते राममेहर नंबरदार
किसानों को सम्बोधित करते किसान आयोग के चेयरमैन डॉ कत्याल
कार्यक्रम में मौजूद कीटाचार्या महिलाऐं
डॉ. कत्याल ने कहा कि जींद जिले के किसानों के अनुभव के सामने उनका 40-45 का अनुभव बिल्कुल नहीं के बराबर है। यहां के किसानों ने डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में बड़े कठिन परिश्रम के बाद यह ज्ञान हासिल किया है और अब वह निस्वार्थ भाव से जींद व दूसरे जिलों के किसानों को जागरूक करने का बीड़ा उठाये हुए हैं। डॉ. कत्यान ने कहा कि किसानों द्वारा अधिक उत्पादन की चाह में फसल में जिस पेस्टीसाइड का प्रयोग किया जाता है, उसका महज एक प्रतिशत ही पौधों पर प्रयोग होता है। बाकि 99 प्रतिशत पेस्टीसाइड जमीन, हवा व पानी में घुलकर हमारे वातावरण को दूषित करता है। आज देश में 90 हजार करोड़ रुपये फर्टीलाइजर पर खर्च होते हैं। उन्होंने कहा कि जींद जिले के जो किसान अपने खर्च पर कीट ज्ञान की मुहिम को चलाए हुए हैं, वह इन किसानों के लिए आयोग की मार्फत सरकार को मानदेय देने तथा जहरमुक्त खेती को बढ़ावा देने वाले किसानों को अवार्ड देने की सिफारिश करेंगे। कीट ज्ञान की इस मुहिम को पूरे देश के किसानों तक पहुंचाने के लिए इसे एक कैंपेन बनाने की जरूरत है। इस दौरान कीटाचार्या महिला किसानों ने 'हो पिया तेरा हाल देख कै मेरा कालजा धड़कै हो, कांधे ऊपर जहर की टंकी मेरै कसुती रड़कै हो' गीत के माध्यम से फसलों में बढ़ रहे जहर तथा 'हे बीटल म्हारी मदद करो तेरा एक सहारा सै, जमींदार का खेत खा लिया आकै तनै बचाना है' गीत के माध्यम से फसल में कीट के महत्व के बारे में बताया। वहीं 'खेत में खड़ी ललकारूं देखे हो तू जहर ना लाइये' गीत के माध्यम से फसल में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करने का आह्वान किया।

कीटों का पौधे के साथ होता है गहरा संबंध

महिला किसान सविता, अंग्रेजो, शकुंतला ने बताया कि कीटों और पौधों का गहरा रिश्ता होता है। उन्होंने 43 किस्म के शाकाहारी कीटों की पहचान की है। शाकाहारी कीट पौधों के अतिरिक्त भोजन को बाहर निकालने का काम करते हैं, वहीं मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर फसल में कूदरती कीटनाशी का काम करते हैं। रणबीर मलिक ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार हर वर्ष लगभग छह करोड़ लोगों की मौत होती है। इनमें से अकेले 76 लाख लोगों की मौत कैंसर के कारण तथा दो लाख 20 हजार लोगों की मौत प्रति वर्ष जहर के सेवन से होती है। देश में फसलों पर हर वर्ष 25 लाख टन पेस्टीसाइड का प्रयोग होता है। इस प्रकार हर वर्ष 10 हजार करोड़ रुपये खेती में इस्तेमाल होने वाले पेस्टीसाइडों पर खर्च हो जाते हैं। मलिक ने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कीट से फसल को 22 प्रतिशत नुकसान होता है और कीटनाशकों से 22 प्रतिशत में से महज सात प्रतिशत नुकसान की रिकवरी ही की जा सकती है। इस सात प्रतिशत रिकवरी के चक्कर में किसान का इससे ज्यादा खर्च कीटनाशक पर हो जाता है।  

अकेले ईगराह में प्रति वर्ष होती है साढ़े चार करोड़ के कीटनाशकों की बिक्री 

ईगराह गांव निवासी मनबीर रेढ़ू ने मांसाहारी कीटों पर चर्चा करते हुए बताया उनके द्वारा अभी तक 161 किस्म के मांसाहारी कीटों की पहचान की जा चुकी है। उन्होंने सभी कीटों के नाम उनके क्रियाकलापों व शारीरिक बनावट के आधार पर रखे हुए हैं। रेढू ने बताया कि उनके गांव में कुल १९ हजार बीघे जमीन है और अकेले उनके गांव में साढ़े चार करोड़ रुपये का जहर बिकता है। कीड़े द्वारा फसल में किए गए 22 प्रतिशत नुकसान में से सात प्रतिशत की रिकवरी के लिए अकेले उनके गांव में 13 लाख 30 हजार रुपये के कीटनाशकों का प्रयोग होता है। 

500 में से 150 के लग चुके हैं चश्में

डैफोडिल्स स्कूल की छात्रा अंजू ने आयोग के सदस्यों को बताया कि उनके स्कूल में 500 विद्यार्थी हैं और आज दूषित खान-पान के कारण इन 500 में से 150 विद्यार्थियों को चश्में लग चुके हैं। छात्रा ने कहा कि आज दूषित खान-पान के कारण उनका भविष्य खतरे में है। 

 

सोमवार, 7 दिसंबर 2015

केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता ने फिर उठाए मैरिट की भर्ती पर सवाल

कहा जींद के युवा नौकरी की उम्मीद छोड़ लोन लेकर शुरू करें स्वरोजगार

कोई मैनेजर लोन से इंकार करे तो बताएं, करूंगी सीधा 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के बाद अब उनकी पत्नी एवं उचाना कलां से विधायक प्रेमलता ने भी लोगों के काम नहीं करने वाले अधिकाररियों को खुली चेतावनी दी है। वहीं उन्होंने एक बार फिर सरकार की मैरिट लिस्ट के आधार पर नौकरी देने की प्रक्रिया पर फिर सवाल उठाए हैं। प्रेमलता का कहना है कि मैरिट के आधार पर नौकरियां मिली तो जींद के युवा पिछड़ जाएंगे। विधायक प्रेमलता का कहना है कि जींद शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। यहां पर शिक्षा के प्रर्याप्त संसाधन व अच्छे शिक्षण संस्थान नहीं है। इसलिए मैरिट सूची के आधार पर नौकरी देने से जींद के युवा नौकरी से वंचित रह जाएंगे। प्रेमलता शनिवार को विश्व मृदा दिवस पर जाट धर्मशाला में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि शिरकत करने पहुंची थी।   
कार्यक्रम के दौरान मंच पर मौजूद विधायक प्रेमलता।
प्रेमलता ने कहा कि मैरिट के आधार पर तो जींद के युवाओं को नौकरी नहीं मिल पाएगी। इसलिए जींद के युवाओं को नौकरी की उम्मीद छोड़कर अपना स्वरोजगार स्थापित करना चाहिए। स्वरोजगार स्थापित करने के लिए सरकार द्वारा बहुत ही रियायती ब्याज दरों पर युवाओं को लोन देने के लिए योजनाएं शुरू की गई हैं। युवा सरकार की इन योजनाओं का लाभ उठाकर बैंक से लोन लेकर अपना स्वारोजगार स्थापित कर सकते हैं। प्रेमलता ने कहा कि यदि कोई बैंक मैनेजर उन्हें लोन देने से मना करता है और वह लोन के लिए पात्र हैं तो वह इसकी शिकायत सीधे मुझे करें। मैं खुद ऐसे बैंक मैनेजरों को सीधा करुंगी। उन्होंने किसानों से भी आह्वान किया कि बैंक से लोन लेने के बाद वह नियमित रूप से लोन को चुकता करते रहें। ताकि बैंकों के साथ किसानों का लेन-देन बना रहे। 

पीएम मोदी के विदेशी दौरों को लेकर विपक्ष पर साधा निशाना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेशी दौरों को लेकर सवाल उठाने वाले विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए विधायक प्रेमलता ने कहा कि विश्व मृदा दिवस प्रधानमंत्री की सोच की ही देन है। प्रधानमंत्री विदेशों में घुमने के लिए नहीं बल्कि देश के किसानों के लिए नई-नई तकनीकों की खोज के लिए जाते हैं। विदेशों से नई-नई तकनीक की जानकारी लेकर वह उन तकनीकों को देश में लागू करवा रहे हैं। ताकि हमारा देश हर क्षेत्र में तरक्की कर सकें।  
  

किसानों के साथ बीज व दवाइयों के नाम पर हो रहे धोखे के लिए विभाग जिम्मेदार : प्रेमलता

अंग्रेजी भाषा में जारी किए गए सॉयल हैल्थ कार्ड पर भी उठाए सवाल
किसानों से किया प्राकृतिक पद्धति से खेती करने का आह्वान
अनाज मंडी में धान की बिक्री के दौरान किसानों के साथ हुई लूट का मुद्दा भी उठाया
कृषि विभाग द्वारा जाट धर्मशाला में विश्व मृदा दिवस पर किया गया जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन

नरेंद्र कुंडू 
जींद। विधायक प्रेमलता ने कहा कि फसलों में साल दर साल बढ़ रही बीमारियों व कीटों के प्रकोप का मुख्य कारण बाजार में बिक रहे निम्र श्रेणी के बीज व घटिया क्वालिटी की दवाइयां हैं। बीज व दवाइयों के नाम पर किसानों के साथ जो धोखा हो रहा है उसके लिए विभाग जिम्मेदार है। जींद के बिल्कुल साथ लगते हिसार जिले में एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी है। विभाग के अधिकारियों व कृषि विशेषज्ञों को चाहिए कि वह इस यूनिवर्सिटी से किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज व दवाइयां मुहैया करवाएं। ताकि किसानों को फसल की अच्छी पैदावार मिल सके और फसलों में आने वाली बीमारियों व कीटों को नियंत्रित किया जा सके। विधायक प्रेमलता शनिवार को कृषि विभाग द्वारा जाट धर्मशाला में विश्व मृदा दिवस पर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि शिरकत करने पहुंची थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता उपायुक्त विनय ङ्क्षसह ने की। इस अवसर पर कृषि उपनिदेशक आत्मराम गौदारा समेत कृषि विभाग व कृषि विज्ञान केंद्र पांडू पिंडारा के अधिकारी व कर्मचारी मौजूद थे।
मंच पर मौजूद विधायक प्रेमलता व डीसी विनय सिंह
प्रेमलता ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि जमीन व मनुष्य की सेहत एक तरह की होती हैं। जिस तरह हम अपनी सेहत का ध्यान रखते हैं वैसे ही हमें जमीन की सेहत का भी ध्यान रखना चाहिए। अगर किसान फसलों में सही मात्र में खाद एवं दवाइयों का प्रयोग करें तो खेती मुनाफे का सौदा बन सकती है। उन्होनें किसानों से अपील की वे फसलों में अधिक खाद एवं दवाइयों का प्रयोग न करें। खाद एवं दवाइयों का अधिक मात्र में प्रयोग करने से खेती की लागत तो बढ़ती ही है, साथ ही अनेक बीमारी भी पैदा होती हैं। उन्होनें फसलों में देशी खाद के प्रयोग पर बल देते हुए कहा कि ऐसा करने से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी और पैदावारी में भी खासी बढ़ौतरी होगी। उन्होंने किसानों को आह्वान करते हुए कहा कि किसान कृषि में नवीन तकनीकों का प्रयोग करें। कृषि विभाग के अधिकारियों से कहा कि वे किसानों को नई-नई तकनीकों के बारे में जागरूक करने के लिए समय-समय पर जागरूकता शिवरों का आयोजन करें और किसानों को साधारण भाषा में पूरी जानकारी दें। डीसी विनय सिंह ने कहा कि पूरे जिले की मिट्टी जांच कर रिकोर्ड तैयार करने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी गई है। राष्ट्रीय कृषि मिशन योजना के तहत फिलहाल जींद तथा जुलाना खंड में मिट्टी जांच के लिए सैंपल लिए जा रहे हैं। आगामी एक अप्रैल से उचाना तथा नरवाना खंडों में मिट्टी जांच का कार्य शुरू करवाया अलेवा, सफीदों तथा पिल्लूखेड़ा खंडों में मिट्टी जांच का कार्र्य प्रारम्भ होगा। इस अवसर पर विधायक प्रेमलता तथा डीसी विनय सिंह ने किसानों को सॉयल हैल्थ कार्ड भी वितरित किए। कार्यक्रम में जाट धर्मार्थ सभा के प्रधान आजाद पवार, संजीव डूमरखां, हरेंद्र डूमरखां भी मौजूद रहे। इस अवसर पर कृषि विभाग के अधिकारियों ने विधायक व डीसी से शहर के रोहतक रोड पर स्थित हमेटी में बॉयो फर्टीलाइजर लैब स्थापित करने की मांग भी की।

सॉयल हैल्थ कार्ड की भाषा पर उठाए सवाल 

कृषि विभाग द्वारा कार्यक्रम के दौरान किसानों को सॉयल हैल्थ कार्ड वितरित किए गए। कृषि विभाग द्वारा जारी इन सॉयल हैल्थ कार्ड को अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित करवाया गया था। विधायक प्रेमलता ने कृषि विभाग द्वारा जारी किए गए सॉयल हैल्थ कार्ड की भाषा पर सवाल उठाते हुए कहा कि हमारे किसान ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं और इन्हें अंग्रेजी भाषा की जानकारी भी नहीं है। ऐसे में कृषि विभाग द्वारा किसानों को अंग्रेजी भाषा में छपे सॉयल हैल्थ कार्ड जारी किए जाने से किसानों को कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि किसान इस कार्ड पर दी गई जानकारी को समझ नहीं पाएंगे।

डीसी की थपथपाई पीठ

विधायक प्रेमलता ने डीसी विनय ङ्क्षसह की पीठ थपथपाते हुए कहा कि उनकी आधी से ज्यादा चिंता तो इसलिए दूर हो गई है कि विनय ङ्क्षसह जैसे ईमानदार अधिकारी ने उनके जिले की कमान संभाल ली है। विधायक ने कहा कि डीसी विनय ङ्क्षसह जिले से भ्रष्टाचार को पूरी तरह से खत्म कर जिले के विकास को नई गति देेंगे। क्योंकि वह एक ईमानदार व धरातल से जुड़े हुए अधिकारी हैं।

धान के भाव बढऩे से किसानों को नहीं हुआ फायदा

विधायक प्रेमलता ने कहा कि उन्होंने इस बार विधानसभा में सीजन के अंत में बढ़े धान के भाव को लेकर अपना सवाल उठाया था लेकिन विधानसभा में किसी के पास भी उनके इस सवाल का जवाब नहीं था। उन्होंने कहा कि धान के भाव उस समय बढ़े जब किसानों की ज्यादातर धान मंडियों में बिक चुकी थी। इसलिए इसका फायदा किसान को नहीं आढ़तियों को सबसे ज्यादा हुआ है।
कार्यक्रम में मौजूद किसान।

जींद को बना रखा है रैली स्थल

विधायक प्रेमलता ने कहा कि जिले के विकास में कोई कसर बाकी नहीं रखी जाएगी। जिले के सभी हलकों में सम्मान रूप से विकास कार्य करवाये जाएंगें। उन्होंने मुख्यमंत्री के सामने 22 मांगें रखी थी और मुख्यमंत्री ने उनकी सभी मांगें पूरी कर दी हैं। जींद के बाईपास के निर्माण को लेकर भी मुख्यमंत्री से बातचीत की गई है। मुख्यमंत्री ने जल्द ही बाईपास का निर्माण करवाने का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा कि राजनेताओं ने तो जींद को रैली स्थल बनाकर रख दिया है। रैली करने के लिए तो यहां आ जाते हैं लेकिन विकास के नाम पर कोई भी यहां एक ईंट तक नहीं लगवाता। इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश ने चौटाला नरवाना से विधायक बनने के बाद भी यहां कोई विकास नहीं करवाया, वहीं हुड्डा सरकार के शासन काल में भी पूरी तरह से जींद की अनदेखी हुई। विधायक ने कहा कि यहां तो गोपाल कांडा जैसे लोग भी रैली करके चले गए जिनका जींद के साथ कोई लेना देना नहीं है। इसलिए यहां के लोगों को जागरूक होना चाहिए और किसी राजनेता के रैली, जलसों में नहीं जाना चाहिए।
 किसानों का पंजीकरण करते कृषि विभाग के अधिकारी।

'डीएपी और स्प्रे करकै मेरी काढ़ ली जान तनै'

कार्यक्रम के दौरान खेड़ी निवासी लीला कवि ने धरती पर आधारित अपनी कविता 'डीएपी और स्प्रे करकै मेरी काढ़ ली जान तनै' तथा 'आज छिड़क कै जहर जमीन-जीवाणु सारे मार दिए हैं' के माध्यम से फसलों में प्रयोग हो रहे अंधाधुंध स्प्रे के बारे में किसानों को जागरूक किया।







विश्व मृदा दिवस के लिए विशेष

न मशीन, न स्टाफ कैसे होगी सैंपलों की जांच
कृषि विभाग की मिट्टी-पानी की जांच के जागरूकता अभियान को झटका
16 हजार में से महज 400  सैंपलों की ही हो पाएगी जांच 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कृषि विभाग आज विश्व मृदा दिवस मना रहा है और किसानों को मिट्टी-पानी की जांच करवाने के लिए जागरूक करने का काम कर रहा है लेकिन हकीकत यह है कि कृषि विभाग की प्रयोगशाला में मिट्टी-पानी की जांच के लिए न तो पर्याप्त संसाधन हैं और न ही पूरा स्टाफ है। ऐसे में विभाग के इस जागरूकता अभियान को करारा झटका लग रहा है। क्योंकि विभाग की लैब में किसान जांच के लिए अपने खेत से मिट्टी-पानी तो लेकर आ रहे हैं लेकिन यहां पर किसानों के सैंपलों की जांच नहीं हो पा रही है। क्योंकि जिला कृषि विभाग की
कृषि विभाग की प्रयोगशाला में जांच के लिए आए मिट्टी के सैंपल।   
प्रयोगशाला में मिट्टी-पानी के सूक्ष्म तत्व की जांच के लिए रखी गई मशीन पिछले काफी लंबे अर्से से खराब पड़ी है। ऐसे में यहां जांच के लिए आने वाले सैंपलों की सूक्ष्म तत्वों की जांच नहीं हो पा रही है। वहीं प्रयोगशाला को संभालने के लिए विभाग के पास पर्याप्त स्टाफ भी नहीं है। लैब में न तो अधिकार है और न ही सैंपलों की जांच करने वाले एक्सपर्ट। महज एक कर्मचारी के सहारे विभाग की लैब चल रही है।

16 हजार सैंपल में से जांच के लिए भेजे गए सिर्फ 400

कृषि विभाग की प्रयोगशाला में जिले के विभिन्न गांवों से किसानों द्वारा लगभग १६ हजार सैंपल मिट्टी-पानी की जांच के लिए भेजे गए हैं लेकिन प्रयोगशाला में सैंपलों की जांच के लिए कोई सुविधा नहीं है। यहां पर सिर्फ न तो सैंपलों की जांच के लिए मशीन की सुविधा है और न ही सैंपलों की जांच करने वाले अधिकारी। विभाग की प्रयोगशाला में आए १६ हजार सैंपलों में से महज 400 सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। यहां पर जांच के लिए सुविधा नहीं होने के कारण इन 400 सैंपलों को भी दूसरे जिलों की प्रयोगशाला में भेजा गया है।

फसल की अच्छी पैदावार के लिए 16 पोषक तत्व की होती है जरूरत 

फसलों की उचित पैदावार के लिए जमीन में 16 पोषक तत्व की आवश्यकता होती है। इनमें जिंक, आयरन, मैगनीज व तांबा जो सूक्ष्म पोषक तत्व हैं। इसके अलावा दूसरे पोषक तत्व नाइट्रोजन, पोटास, फासफोर्स, पोटाश, कैलशियम, मैगनिशियम, सल्फर, बोरोन, मोलीबिडनम व क्लोरीन शामिल हैं। इनमें से कार्बन, हाईट्रोजन, ऑक्सीजन को पौधा हवा व पानी से प्राप्त कर लेता है तथा अन्य पोषक तत्वों को जमीन से ग्रहण करता है। किस पोषक तत्व की जमीन में कमी यह जानने के लिए मिट्टी की जांच करवाई जाती है।

खेत में जिंक की कमी के लक्षण 

खेत में पोषक तत्व की कमी के कारण फसल पर अलग-अलग लक्षण नजर आते हैं। ऐसे में यदि खेत में जिंक की कमी है तो फसल के पत्तों के नीचे लाल चितके जंग के रूप के निशान हो जाते हैं।

खेत में बढ़ रही ऑर्गेनिक कार्बन की कमी 

किसानों द्वारा खेतों में फसलों के बचे हुए अवशेषों को जला दिया जाता है। फसल के बचे हुए अवशेष ऑर्गेनिक कार्बन का सबसे बड़ा स्त्रोत हैं लेकिन किसानों द्वारा यह अवशेष जला देने के कारण ऑर्गेनिक कार्बन भी नष्ट हो जाती है। इससे जमीन की पानी रोकने की क्षमता कम हो जाती है और जमीन के अंदर के सूक्ष्म पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। जमीन की विद्युत चालकता भी कम होती है। इससे जमीन में नमक की मात्रा भी बढ़ जाती है।

खेत में ऑर्गेनिक कार्बन बढ़ाने की विधि 

जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन बढ़ाने के लिए किसान गोबर की खाद, बॉयोगैस की खाद, हरी खाद का अधिक से अधिक प्रयोग करें। इन खादों के प्रयोग से जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा बढ़ाई जा सकती है।

नमूना लेने की विधि 

भूमि परीक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण मिट्टी का सही प्रकार से नमूना लेना होता है। नमूना लेने की सही विधि निम्न प्रकार है।
1. जिस खेत का नमूना लेना हो उसमें 5-6 अलग-अलग स्थानों से 15 सैंटीमीटर  का गड्ढ़ा खोदकर खुरपे या कस्सी से नीचे तक की मिट्टी लें।
2. इस मिट्टी को कागज या ट्रे में अच्छी तरह से मिला कर इकठा कर लें। अब मिट्टी को चार भागों में बांटकर आमने-सामने के दो भाग की मिट्टी रख कर बाकी मिट्टी फैंक दें।
3 . आमने-सामने की मिट्टी के दो भागों की मिट्टी को अच्छी तरह मिला कर उसमें से लगभग 250  ग्राम मिट्टी का नमूना थैली में भरकर उस पर अपना नाम, पूरा पता खेत का नंबर व मोबाइल नंबर लिखकर प्रयोगशाला में भेजें।

नमूना लेने में यह रखें सावधानी 

1. नमूना रूढ़ी या कंपोस्ट खाद व खेत की मेढ़ के पास से बिल्कुल न लें।
2. नमूना खेत में उगे किसी पेड़ की जड़ के पास व खड़ी फसलों वाले खेत से नहीं लें।
3. नमूना ऊंची-नीची जगह से न लेकर समतल स्थान से लें।
4. यदि खेत कल्लर से प्रभावित हो तो नमूना तीन फुट गहराई तक, पहले दो नमूनें छह-छह इंच की गहराई से व अगले दो नमूने एक-एक फुट की गहराई से लें
5. बागवानी के लिएखेत से नमूने छह फुट की गहराई तक के गड्ढ़े से सात नमूने इकठा करें।
6. मिट्टी के साथ अपने खेत के पानी के नमूने की जांच भी करवाएं। ट्यूबवैल को आधा घंटा चलाकर प्लास्टिक या कांच की साफ बोतल में नमूना भरें।
बॉक्स
किसान एक-दूसरे की देखादेखी फसल में जरूरत से ज्यादा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। जबकि किसान को जमीन की जरूरत के अनुसार ही रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। विश्व मृदा दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में किसानों को इस बारे में ही जागरूक किया जाएगा और किसानों को मिट्टी हैल्थ कार्ड भी दिए जाएंगे। ताकि किसान अपनी जमीन की आवश्यकता अनुसार ही उसमें रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर सकें। जींद की लैब में सूक्ष्म पोषक तत्व की जांच की मशीन खराब है। इसके लिए विभाग के उच्च अधिकारियों को लिखित में शिकायत दी गई है। सरकार द्वारा मिट्टी-पानी की जांच के लिए चलाए गए अभियान को देखते हुए यहां तैनात स्टाफ को उन लैबों में भेज दिया गया जहां पर सूक्ष्म पोषक तत्व की जांच की सुविधा है। ताकि उन लैबों में आ रहे सैंपलों की समय पर जांच की जा सके।
डॉ. धर्मपाल बजाज, सहायक मृदा परीक्षण अधिकारी
मिट्टी-पानी जांच प्रयोगशाला, जींद 



कृषि विभाग की प्रयोगशाला में जांच के लिए आए मिट्टी के सैंपल।   


जींद-पानीपत रेलवे लाइन पर अंडर पास बनने का रास्ता साफ

12 करोड़ ३९ लाख से बनेगा अंडर पास
अंडर पास बनाने के लिए रेलवे ने जिला प्रशासन को भेजा एस्टीमेट
अंडर पास की प्रथम प्रक्रिया के लिए जिला प्रशासन को जमा करवाने होंगे 19 लाख
अंडर पास बनने से शहरवासियों को जाम से मिलेगी निजात

नरेंद्र कुंडू 
जींद। शहर के मिनी बाईपास पर जींद-पानीपत रेलवे लाइन पर अंडर पास बनने का रास्ता साफ हो गया है। रेलवे ने अंडर पास बनाने का एस्टीमेट तैयार कर जिला प्रशासन को सौंप दिया है। अंडर पास के निर्माण पर लगभग 12 करोड़ 39 लाख रुपये का खर्च आएगा। अंडर पास के निर्माण की प्रक्रिया शुरू करवाने के लिए जिला प्रशासन को रेलवे को 19 लाख रुपये जमा करवाने होंगे। इसके बाद रेलवे द्वारा अंडर पास के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। अंडर पास का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद शहर के लोगों को जाम से निजात मिलेगी और पिछले दो वर्षों से अंडर पास का निर्माण नहीं होने के कारण रद्द पड़े मिनी बाईपास पर वाहनों का आवागमन शुरू हो पाएगा।

यह है पूरा मामला 

जींद शहर के लोगों को जाम से निजात दिलवाने के लिए तीन जून 2012 को जींद की नई अनाज मंडी में हुई कांग्रेस की विकास रैली में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा ने मिनी बाईपास के निर्माण की घोषणा की थी। शहर के सफीदों रोड से बस स्टैंड के पास से रजवाहे के ऊपर से होते हुए यह मिनी बाईपास भिवानी रोड पर निकाला गया है। मार्च २०१३ में इस मिनी बाईपास का निर्माण कार्य पूरा हो गया था लेकिन मिनी बाईपास के बीच में पडऩे वाली जींद-पानीपत तथा दिल्ली-जींद रेलवे लाइन पर अंडर पास या ओवर ब्रिज नहीं बनाए जाने के कारण यह आज तक शुरू नहीं हो पाया है। मिनी बाईपास पर अंडर पास बनवाकर इसे शुरू करवाना शहर के लोगों की मुख्य मांग थी।

अब ऐसे चलेगी आगामी कार्रवाई  

रेलवे द्वारा जींद-पानीपत रेलवे लाइन पर अंडर पास बनाने के लिए प्रोजैक्ट तैयार कर जिला प्रशासन को भेज दिया गया है। रेलवे द्वारा अंडर पास बनाने के लिए 12 करोड़ 39 लाख रुपये का एस्टीमेट तैयार किया गया है। जिला प्रशासन को रेलवे के पास अभी 19 लाख रुपये जमा करवाने है। अब जिला प्रशासन द्वारा सरकार से 19 लाख रुपये की ग्रांट लेने के लिए प्रोजैक्ट को बीएंडआर के एसई को भेजा जाएगा। यहां से इस प्रोजैक्ट को चंडीगढ़ भेजा जाएगा। इसके बाद सरकार द्वारा इस प्रोजैक्ट को मंजूर कर रेलवे को ग्रांट भेजी जाएगी।

प्रदेश सरकार को ही उठाना होगा अंडर पास का पूरा खर्च

रेलवे के नियमों के अनुसार यदि रेलवे ट्रैक पर कोई फाटक हो तो वहां पर अंडर पास या ओवर ब्रिज बनाने का आधा खर्च सरकार को देना पड़ता है और आधा खर्च रेलवे उठाता है लेकिन मिनी बाईपास पर कोई फाटक नहीं लगती और यहां पर अंडर पास बनाने का प्रोजैक्ट प्रदेश सरकार का है। इसलिए इस अंडर पास के निर्माण पर आने वाला पूरा खर्च प्रदेश सरकार को ही उठाना पड़ेगा।

जल्द से जल्द अंडर पास का निर्माण करवाना हमारी प्राथमिकता 

जींद-पानीपत रेलवे लाइन पर अंडर पास बनाने के लिए रेलवे द्वारा प्रोजैक्ट तैयार कर भेजा गया है। अंडर पास के निर्माण पर 12 करोड़ 39 लाख रुपये का खर्च आएगा। इसके निर्माण की प्रथम चरण की प्रक्रिया शुरू करवाने के लिए जिला प्रशासन की तरफ से रेलवे को 19 लाख रुपये जमा करवाए जाने हैं। इसके लिए प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। जल्द ही सरकार से यह ग्रांट मंजूर करवाकर रेलवे को भेज दी जाएगी और अंडर पास का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया जाएगा। अंडर पास पर जल्द से जल्द निर्माण कार्य शुरू करवाना हमारी प्राथमिकता है।
विनय कुमार, डीसी
जींद

अन्ना टीम के प्रयास लाए रंग 

मिनी बाईपास पर अंडर पास बनवाने के मामले को अन्ना टीम काफी प्रमुखता से उठा रही थी। अन्ना टीम द्वारा इस मांग को लेकर जिला प्रशासन के आला अधिकारियों से लेकर प्रदेश के मंत्रियों से लेकर रेलवे मंत्री तथा रेलवे विभाग के आला अधिकारियों तक को कई बार ज्ञापन दिए गए थे। वहीं अन्ना टीम द्वारा अंडर पास के निर्माण के लिए मिनी बाईपास पर धरना भी दिया गया था। अन्ना टीम व शहर के लोगों के कड़े प्रयासों के बावजूद अंडर पास का प्रोजैक्ट तैयार हो पाया है।
हितेश, हिंदुस्तानी, कार्यकत्र्ता
अन्ना टीम

 जींद-पानीपत रेलवे लाइन से होकर गुजरते वाहन चालक।
 डीसी विनय ङ्क्षसह का फोटो।
 अन्ना टीम के कार्यकत्र्ता हितेश हिंदुस्तानी का फोटो।
स्थानीय निवासी अमित का फोटो।