सोमवार, 16 जनवरी 2017

ओलंपिक में गोल्ड लाने का सपना पूरा नहीं हुआ तो खोल दिया अखाड़ा

रेलवे की नौकरी के साथ अपने खर्च पर पहलवान तराश रहा नरेंद्र

--देश को मैडल दिलवाने के लिए अखाड़े में बहा रहे हैं पसीना

--कॉमनवेल्थ में गोल्ड मेडल जीत चुका है नरेंद्र

--नरेंद्र की उपलब्धियों को देखते हुए सरकार ने 2000 में भीम अवार्ड से किया सम्मानित

नरेंद्र कुंडू
जींद। ओलंपिक गेम में गोल्ड लाने का सपना पूरा नहीं हुआ तो पहलवान नरेंद्र ने खुद का अखाड़ा शुरू कर दिया। अब देश को ओलंपिक में गोल्ड दिलवाने के लिए अपने खर्च पर पहलवानों को तरास रहा है। हालांकि दो दशक पहले कॉमनवेल्थ गेम में नरेंद्र ने देश की झोली में गोल्ड मैडल डालने का काम किया था। कुश्ती में देश को अधिक से अधिक मैडल दिलवाने के लिए नरेंद्र खिलाडिय़ों के साथ अखाड़े में दिन-रात पसीना बहा रहा है। नरेंद्र का सपना कुश्ती में देश को ओलंपिक में गोल्ड दिलवाने का है। इसलिए पहलवान नरेंद्र बिना किसी प्रकार की सरकारी सहायता के अपने खर्च पर यह अखाड़ा चला रहा है। इस समय नरेंद्र के अखाड़े में दो दर्जन से भी अधिक खिलाड़ी कुश्ती का प्रशिक्षण ले रहे हैं। हाल ही में दिल्ली में आयोजित ग्रेपलिंग चैंपियनशिप में भी नरेंद्र के तीन पहलवानों ने गोल्ड, सिल्वर व रजत पदक जीत कर देश में प्रदेश व जिले का नाम रोशन करने का काम किया है। कुश्ती के क्षेत्र में नरेंद्र की उपलब्धियों को देखते हुए सरकार द्वारा वर्ष 2000  में नरेंद्र को भीम अवार्ड से नवाजा जा चुका है।  
  अपने अखाड़े में खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देते पहलवान नरेंद्र।

पूर्वजों से विरासत में मिले कुश्ती के गुर

गांव पड़ाना निवासी नरेंद्र पहलवान ने बताया कि उसे कुश्ती के गुर अपने पूर्वजों से विरासत में मिले हैं। उसके पिता मीर सिंह तथा चाचा दिलबाग सिंह भी कुश्ती के अच्छे पहलवान थे। नरेंद्र ने अपने चाचा दिलबाग से कुश्ती का प्रशिक्षण प्राप्त कर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहराया। नरेंद्र ने 1984 में पहली बार जिला स्तरीय चैंपियनशिप में प्रतिभागिता की थी और इस प्रतियोगिता में नरेंद्र ने गोल्ड मैडल हासिल किया था। इसके बाद नरेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कुश्ती के क्षेत्र में नरेंद्र के उत्कृष्ट प्रदर्शन को देखते हुए रेलवे ने 1992  में नरेंद्र को चीफ टिकट इंस्पेक्टर (सीटीआई) के पद पर नौकरी दे दी।
अपने अखाड़े में खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देते पहलवान नरेंद्र।

खेल में राजनीति के कारण ओलंपिक में नहीं ले पाया हिस्सा

पहलवान नरेंद्र ने बताया कि खेलों में आज भी राजनीति होती है और पहले भी राजनीति होती थी। कोच अपने चहेतों को आगे बढ़ाने के लिए अच्छे खिलाडिय़ों को नजरअंदाज कर देते हैं। नरेंद्र ने बताया कि अब खेलों में वीडियोग्राफी शुरू होने से पारदर्शिता को बढ़ावा मिला है। जबकि पहले वीडियोग्राफी नहीं होती थी। इसलिए कोच पहले अपनी मनमर्जी चलाते थे। वह खुद भी कई बार कोच की मनमर्जी का शिकार हुए हैं। कोच की राजनीति के चलते ही वह ओलंपिक में भाग नहीं ले पाए। नरेंद्र ने बताया कि खेल में राजनीति के चलते ही उसे इंटरनेशनल कुश्ती में जबरदस्ती हरवा दिया गया था। नरेंद्र ने बताया कि ओलंपिक में देश को गोल्ड दिलवाने के अपने सपने को साकार करने के लिए ही उसने अपना अखाड़ा शुरू किया है। इसलिए वह अखाड़े में खिलाडिय़ों को निशुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं।

यह हैं पहलवन नरेंद्र की उपलब्धियां

1981  में दिल्ली में आयोजित कैडेट चैंपियनशिप में गोल्ड
1992  में कोलंबिया में आयोजित जूनियर वल्र्ड चैंपियनशिप में ब्रांज मैडल
1992  में नेशनल चैंपियनशिप में सिल्वर मैडल
1993  में नेशनल चैंपियनशिप में प्रतिभागिता की
1994  नेशनल चैंपियनशिप में ब्रांज मैडल
1994  में नेशनल गेम्ज में गोल्ड मैडल
1994  में चाइना में आयोजित एशिया चैंपियनशिप में ब्रांज
1995  में दिल्ली में आयोजित नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल
1995  में आस्ट्रेलिया में आयोजित कॉमनवेल्थ में गोल्ड
1996  में नेशनल चैंपियनशिप में गोलड मैडल
1998  में नेशनल चैंपियनशिप में ब्रांज

गांव की पहली एमबीबीएस डॉक्टर बन सपना ने पेश की महिला सशक्तिकरण की मिशाल

गांव का गौरव

--बीडीएस में दाखिला होने के बाद भी कम नहीं हुई एमबीबीएस बनने की चाह, दोबारा से दी परीक्षा और एमबीबीएस के लिए हो गया चयन 

--ग्रामीण परिवेश में रहकर परिस्थितियों का डटकर किया मुकाबला

--सुविधाओं के अभाव को भी नहीं बनने दिया रास्ते का रोड़ा 

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के पिल्लूखेड़ा खंड के छोटे से गांव भूराण निवासी सपना ने एमबीबीएस के लिए अपना चयन करवाकर समाज के सामने यह साबित कर दिखाया है कि आज लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नहीं हैं। लगभग तीन हजार की आबादी वाले इस गांव से एमबीबीएस डॉक्टर बनने वाली सपना गांव की पहली लड़की है। सपना का सपना था एमबीबीएस डॉक्टर बनने का लेकिन जब एमबीबीएस के लिए उसका चयन नहीं हुआ तो उसने बीडीएस में दाखिला ले लिया। बीडीएस में दाखिला लेने के बाद भी सपना की एमबीबीएस बनने की चाह कम नहीं हुई। सपना ने दोबारा मेहनत की और एमबीबीएस में दाखिला लेकर यह साबित कर दिया कि यदि इंसान कुछ हासिल करने की ठान ले और सच्ची लग्न से मेहनत करे तो दुनिया की कोई भी ताकत उसको उसकी मंजिल प्राप्त करने से नहीं रोक सकती। एमबीबीएस डॉक्टर बनकर धन कमाना सपना का लक्ष्य नहीं है। बल्कि सपना डॉक्टर बनकर समाज की सेवा करना चाहती है। इस समय सपना अग्रोहा के मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही और यह उसकी पढ़ाई का तीसरा वर्ष चल रहा है।
सपना ने अपनी दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई गांव के ही एक निजी स्कूल से और मैडिकल संकाय की 12वीं कक्षा की पढ़ाई कन्या गुरुकुल सीनियर सैकेंडरी स्कूल खानपूर कलां से पास की और १२वीं के परीक्षा परिणाम में सपना ने 96.2 प्रतिशत अंक लेकर पूरे गुरूकुल में टॉप किया था। ग्रामीण परिवेश से संबंध रखने वाली सपना ने मैडिकल संकाय में पूरे गुरुकुल में टॉप कर यह साबित कर दिया है कि ग्रामीण क्षेत्र में भी प्रतिभा की कमी नहीं है। सपना ने दिन-रात कड़ी मेहनत कर यह उपलब्धि प्राप्त की है। सपना पिछली कक्षाओं में भी टॉपर रही है। सपना 12वीं कक्षा तथा 10वीं कक्षा में भी 96.2 प्रतिशत अंक हासिल कर क्षेत्र में अपनी सफलता के झंडे गाड़ चुकी है।

ताऊ से मिली प्रेरणा

साधारण परिवार व ग्रामीण परिवेश से संबंध रखने वाली सपना प्रतिभा की धनी है। सपना को डॉक्टर बनने की प्रेरणा अपने ताऊ प्रेम सिंह कुंडू से मिली। प्रेम ङ्क्षसह कुंडू स्वास्थ्य विभाग से हेल्थ निरीक्षक के पद से सेवानिवृत्ति हो चुके हैं। प्रेम सिंह ने एक अच्छे मार्गदर्शक की तरह पथ-पथ पर सपना का मार्ग दर्शन करते हुए उसे निरंतर कड़ी मेहनत करते हुए आगे बढऩे के लिए प्रेरित भी किया। अपने ताऊ से प्रेरणा लेकर सपना लगातार अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ती चली गई। एकलव्य की तरह सपना ने अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर केंद्रीत कर कठोर परिश्रम किया। अपनी मेहनत के बूते ही आज सपना अपने लक्ष्य के बिल्कुल करीब पहुंच चुकी है। एमबीबीएस की पढ़ाई का उसका यह तीसरा वर्ष चल रहा है और आगामी दो वर्षों के बाद सपना के हाथ में एमबीबीएस की डिग्री होगी।

कभी नहीं लिया एक्सट्रा कक्षा का सहारा 

सपना की एक खास बात यह भी है कि सपना ने अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कभी किसी एक्सट्रा कक्षा या ट्यूशन का सहारा नहीं लिया। सपना ने अपनी सफलता का श्रेय अपने अध्यापकों व अपने परिवार के सदस्यों को देते हुए बतया कि उसने कभी भी अतिरिक्त कक्षाओं का सहारा नहीं लिया। सपना ने बताया कि मैडिकल संकाय में सफलता प्राप्त करने के लिए अधिकतर बच्चे ट्यूशन या एक्सट्रा कक्षाएं लगाते हैं, तब जाकर कहीं उन्हें सफलता हासिल होती है। लेकिन उसने अपनी १२वीं कक्षा तक की पढ़ाई के दौरान कभी भी ट्यूशन या एक्सट्रा कक्षा का सहारा नहीं लिया, बल्कि उसने दिन-रात कड़ी मेहनत कर यह मुकाम हासिल किया है।

डटकर किया परिस्थितियों का सामना

सपना ग्रामीण परिवेश के एक साधारण परिवार से संबंध रखती है। सपना की मां गृहणी है और पिता पानीपत में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं। ग्रामीण परिवेश में होने के कारण सपना को पढ़ाई के लिए सही माहोल व उपयुक्त सुविधाएं नहीं मिल सकी लेकिन सपना ने कभी भी न तो माहोल की परवा की और न ही सुविधाओं के अभाव को पढ़ाई पर हावी होने दिया। सपना ने परिस्थितियों का डटकर सामना किया और लगातार कठोर परिश्रम करते हुए पढ़ाई के क्षेत्र में अपना परचम लहराया। 

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

मजदूरी कर बेटे को करवाई मुम्बई आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई

तीन हजार की आबादी वाले भूराण गांव से आईआईटी से इंजीनियरिंग करने वाला गांव का पहला छात्र बनेगा रामफल का लड़का नवीन

परिवार की कमजोर परिस्थितियों के बावजूद भी रामफल अपने बेटे को आईआईटी मुंबई से करवा रहा है कैमिकल इंजीनियर की पढ़ाई

बेटों के साथ-साथ बेटियों को भी दिलवा रहा है उच्च शिक्षा 

रामफल अपनी पत्नी सुनीता के साथ।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर जींद-पानीपत मार्ग पर स्थित भूराण गांव वैसे तो अपनी एक अलग पहचान रखता है लेकिन गांव का ही एक 49 वर्षीय रामफल नामक व्यक्ति इस गांव का गौरव है। रामफल समाज के सामने एक अच्छे पिता की मिशाल पेश कर रहा है। रामफल अपनी आर्थिक परिस्थितियों की परवाह किए बिना अपने चारों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाकर समाज को एक सुशिक्षित नागरिक देने का काम किया है। इतना ही नहीं रामफल ने अपने बेटे व बेटियों में भी किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया। वह अपनी बेटियों को भी बेटों की तरह अच्छी शिक्षा दिलवा रहा है। आज जहां रामफल की दोनों बेटियां जीएनएम व बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई कर रही हैं, तो वहीं रामफल का एक लड़का मुंबई आईआईटी से कैमिकल इंजीनियर की पढ़ाई कर रहा है और दूसरा बेटा गांव के ही एक निजी स्कूल से 12वीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा है। इस प्रकार प्रतिदिन महज 250 से 300 रुपये की मजदूरी करने वाला रामफल नाम का यह सख्श हर वर्ष अपने बच्चों की पढ़ाई पर लाखों रुपये खर्च करता है। जबकि रामफल की आर्थिक परिस्थितियां इस बात की इजाजत नहीं देती कि वह अपने बच्चों के लिए इस तरह अच्छी शिक्षा की व्यवस्था कर सके। हर वर्ष ढाई से तीन लाख रुपये तो मुंबई आईआईटी से कैमिकल इंजीनियर की पढ़ाई करने वाले रामफल के बेटे नवीन की पढ़ाई पर खर्च हो रहे हैं। रामफल ने अपने बच्चों को एक कामयाब इंसान बनाने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत की है। जिस तरह से रामफल अपनी परिस्थितियों से जूझ कर अपने बच्चों की हर जरूरत को पूरा कर एक अच्छे पिता का अपना फर्ज अदा कर रहा है तो ठीक उसी प्रकार से पढ़ाई में अव्वल दर्जा हासिल कर उसके बच्चे भी अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरे उतर रहे हैं। रामफल का बड़ा बेटा नवीन दिन-रात कड़ी मेहनत कर अपने माता-पिता के सपने को साकार करने का प्रयास कर रहा है। कैमिकल इंजीनियरिंग में नवीन का यह तीसरा वर्ष चल रहा है और एक वर्ष के बाद यह अपनी इंजीनयरिंग की पढ़ाई पूरी कर तीन हजार की आबादी वाले इस गांव मेें मुंबई जैसे आईआईटी कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाला गांव का पहला छात्र होगा। परिवार की कमजोर परिस्थितियों के बावजूद भी रामफल ने अपने बेटे नवीन को दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद 12वीं की पढ़ाई के लिए राजस्थान के कोटा शहर में भेजा। नवीन ने भी बिना समय गंवाए १२वीं की पढ़ाई के साथ-साथ आईआईटी में दाखिले के लिए कोचिंग भी ली। 12वीं की परीक्षा उतीर्ण करने के बाद नवीन ने आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास की और परीक्षा में अच्छी रैंकिंग हासिल करने के कारण नवीन का दाखिला आईआईटी मुंबई में हुआ। अपने पिता रामफल के साथ-साथ नवीन भी अपने गांव, जिले या प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के युवाओं के लिए एक मिशाल है, जिसने परिवार की कमजोर परिस्थितियों के बावजूद भी इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की है। नवीन अपनी मेहनत के बूते पर अपने नाम के शब्द को बिल्कुल सार्थक सिद्ध कर रहा है। वहीं रामफल की बड़ी लड़की ममता जीएनएम का कोर्स कर रही है और पूजा बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई कर रही है। रामफल का सबसे छोटा लड़का आशीष जो अभी गांव के ही एक निजी स्कूल से 12वीं की पढ़ाई कर रहा है। रामफल की पत्नी सुनीता महज पांचवीं पास है और वह भी बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाकर एक अच्छे समाज के निर्माण करने के अपने पति रामफल के प्रयास में सहयोग कर रही है। 



शनिवार, 26 नवंबर 2016

घर की चारदीवारी में भी महफूज नहीं हैं बच्चे

बच्चों के शोषण व हिंसात्मक मामलों में हो रही बढ़ौतरी
घर के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से छुटकारा पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन का सहारा ले रहे बच्चे
बाल मजदूरी के मामलों पर भी नहीं लग पा रही रोक
एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हिंसा व छेड़छाड़ के 66 मामले

नरेंद्र कुंडू
जींद। भौतिकतावादी इस युग में हमारा सामाजिक ताना-बाना टूटने के साथ-साथ हमारे नैतिक मूल्यों में भी इतनी गिरावट आ चुकी है कि आज घर की चारदीवारी में भी हमारे बच्चे महफूज नहीं हैं। घर के अंदर ही परिवार के सदस्यों द्वारा बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ बच्चों को प्रताडि़त भी किया जा रहा है। घर के अंदर बच्चों पर बढ़ते शोषण व हिंसात्मक मामलों का सबूत दे रही है चाइल्ड हैल्प लाइन। घर की चारदीवारी के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से मुक्ति पाने के लिए बच्चे चाइल हैल्प लाइन का सहारा ले रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन के आंकड़ों पर यदि नजर डाल जाए तो सबसे अधिक मामले बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के सामने आ रहे हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास छेड़छाड़ व हिंसा के 66 तथा बाल मजदूरी के 31 मामले सामने आए हैं। वहीं बाल मजदूरी पर भी प्र्रशासन अंकुश नहीं लगा पा रहा है।  
 चाइल्ड हैल्प लाइन पर बच्चों की शिकायत दर्ज करते अधिकारी।
आज आधुनिकता की चकाचौंध व भागदौड़ भरी इस जिंदगी में अधिक रुपये की चाह में अभिभावक अपने बच्चों से दूर होते जा रहे हैं। समय के अभाव होने का बहाना लेकर अभिभावक अपने बच्चों  के लिए भी वक्त नहीं निकाल पा रहे हैं। ऐसे में अभिभावक अपनी इस जिम्मेदारी से बचने के लिए अपने बच्चों की देखरेख की का जिम्मा परिवार के ही दूसरे सदस्यों या अपने सगे संबंधियों को सौंप देते हैं। बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी परिवार के सदस्यों व सगे संबंधियों को देते समय अभिभावक इस बात की तरफ भी ध्यान नहीं देते कि जिसे वह अपने बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंप रहे हैं, वह किस परिवर्ती का व्यक्ति है। अभिभावकों की यही अनदेखी उनके बच्चों के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है। अभिभावकों की इसी लापरवाही का फायदा उठाकर बच्चों के रक्षक ही उनके भक्षक बन रहे हैं। घर की चारदीवारी के अंदर ही बच्चों के सगे संबंधी बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ उन्हें प्रताडि़त भी कर रहे हैं लेकिन बच्चे अब इस शोषण से मुक्ति पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन 1098  का सहारा ले रहे हैं। 

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आई शिकायतों में शोषण व हिंसात्मक के मामले ज्यादा

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आ रही शिकायतों में सबसे ज्यादा मामले बच्चों पर घर के अंदर हो रही छेड़छाड़ व प्रताडऩा के हैं। अगस्त 2015  से नवंबर 2016 तक बच्चों के साथ छेड़छाड़ या प्रताडऩा के 66  मामले सामने आ चुके हैं। वहीं बाल मजदूरी के 31 मामले सामने आए हैं। वहीं गुमशुदगी के 83  तो बाल विवाह के अभी तक सात मामले ही चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास भिन्न-भिन्न मामलों में कुल 387 शिकायतें आ चुकी हैं। 

शिकायत मिलने के तुरंत बाद बच्चों की मदद की जाती है

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आ रही शिकायतों में सबसे ज्यादा शिकायतें घर के अंदर बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के हैं। इसके साथ ही बाल मजदूरी के मामले भी काफी सामने आ रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन द्वारा शिकायत मिलने के तुरंत बाद बच्चों की मदद की जाती है। गुमशुदा, छेड़छाड़, प्रताडऩा, बाल मजदूरी, बाल विवाह, बच्चों की देखरेख, अध्यापक या रिश्तेदार द्वारा प्रताडि़त किए जाने, बच्चों के लालन-पालन, बच्चों के दाखिले से संबंधित मामलों में बच्चे चाइल्ड हैल्प लाइन की मदद ले सकते हैं। 
विनोद कुमार, सैंटर कोर्डिनेटर
चाइल्ड हैल्प लाइन, जींद

समाज में बढ़ा है अविश्वास

आज हमारे अंदर संस्कारों की काफी कमी हो गई है। मनुष्य स्वार्थी व संवेदनहीन हो गया है। आज मनुष्य अतृप्त व दुखी है। इसलिए वह अपने छोटे से स्वार्थ के लिए भी अपने नाजूक रिश्तों को दांव पर लगा देता है। इससे समाज में अविश्वास की भावना बढ़ी है और गलत बातें ज्यादा निकल कर सामने आ रही हैं। वहीं अभिभावक भी बच्चों को दिल से छूने की अपेक्षा केवल शारीरिक रूप से बच्चे पर अपना हक जताने का दिखावा करते रहते हैं। इससे अभिभावक व बच्चों के बीच प्रेभावना कम हुई है। अभिभावकों को भी चाहिए कि वह अपने बच्चे के दोस्तों को भी अपने बच्चे की तरह समझें। 
नरेश जागलान, मनोवैज्ञानिक

घर की चारदीवारी में भी महफूज नहीं हैं बच्चे

बच्चों के शोषण व हिंसात्मक मामलों में हो रही बढ़ौतरी
घर के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से छुटकारा पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन का सहारा ले रहे बच्चे
बाल मजदूरी के मामलों पर भी नहीं लग पा रही रोक
एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हिंसा व छेड़छाड़ के 66 मामले

नरेंद्र कुंडू
जींद। भौतिकतावादी इस युग में हमारा सामाजिक ताना-बाना टूटने के साथ-साथ हमारे नैतिक मूल्यों में भी इतनी गिरावट आ चुकी है कि आज घर की चारदीवारी में भी हमारे बच्चे महफूज नहीं हैं। घर के अंदर ही परिवार के सदस्यों द्वारा बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ बच्चों को प्रताडि़त भी किया जा रहा है। घर के अंदर बच्चों पर बढ़ते शोषण व हिंसात्मक मामलों का सबूत दे रही है चाइल्ड हैल्प लाइन। घर की चारदीवारी के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से मुक्ति पाने के लिए बच्चे चाइल हैल्प लाइन का सहारा ले रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन के आंकड़ों पर यदि नजर डाल जाए तो सबसे अधिक मामले बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के सामने आ रहे हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास छेड़छाड़ व हिंसा के 66 तथा बाल मजदूरी के 31 मामले सामने आए हैं। वहीं बाल मजदूरी पर भी प्र्रशासन अंकुश नहीं लगा पा रहा है।  
 चाइल्ड हैल्प लाइन पर बच्चों की शिकायत दर्ज करते अधिकारी।
आज आधुनिकता की चकाचौंध व भागदौड़ भरी इस जिंदगी में अधिक रुपये की चाह में अभिभावक अपने बच्चों से दूर होते जा रहे हैं। समय के अभाव होने का बहाना लेकर अभिभावक अपने बच्चों  के लिए भी वक्त नहीं निकाल पा रहे हैं। ऐसे में अभिभावक अपनी इस जिम्मेदारी से बचने के लिए अपने बच्चों की देखरेख की का जिम्मा परिवार के ही दूसरे सदस्यों या अपने सगे संबंधियों को सौंप देते हैं। बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी परिवार के सदस्यों व सगे संबंधियों को देते समय अभिभावक इस बात की तरफ भी ध्यान नहीं देते कि जिसे वह अपने बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंप रहे हैं, वह किस परिवर्ती का व्यक्ति है। अभिभावकों की यही अनदेखी उनके बच्चों के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है। अभिभावकों की इसी लापरवाही का फायदा उठाकर बच्चों के रक्षक ही उनके भक्षक बन रहे हैं। घर की चारदीवारी के अंदर ही बच्चों के सगे संबंधी बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ उन्हें प्रताडि़त भी कर रहे हैं लेकिन बच्चे अब इस शोषण से मुक्ति पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन 1098  का सहारा ले रहे हैं। 

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आई शिकायतों में शोषण व हिंसात्मक के मामले ज्यादा

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आ रही शिकायतों में सबसे ज्यादा मामले बच्चों पर घर के अंदर हो रही छेड़छाड़ व प्रताडऩा के हैं। अगस्त 2015  से नवंबर 2016 तक बच्चों के साथ छेड़छाड़ या प्रताडऩा के 66  मामले सामने आ चुके हैं। वहीं बाल मजदूरी के 31 मामले सामने आए हैं। वहीं गुमशुदगी के 83  तो बाल विवाह के अभी तक सात मामले ही चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास भिन्न-भिन्न मामलों में कुल 387 शिकायतें आ चुकी हैं। 

शिकायत मिलने के तुरंत बाद बच्चों की मदद की जाती है

चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आ रही शिकायतों में सबसे ज्यादा शिकायतें घर के अंदर बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के हैं। इसके साथ ही बाल मजदूरी के मामले भी काफी सामने आ रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन द्वारा शिकायत मिलने के तुरंत बाद बच्चों की मदद की जाती है। गुमशुदा, छेड़छाड़, प्रताडऩा, बाल मजदूरी, बाल विवाह, बच्चों की देखरेख, अध्यापक या रिश्तेदार द्वारा प्रताडि़त किए जाने, बच्चों के लालन-पालन, बच्चों के दाखिले से संबंधित मामलों में बच्चे चाइल्ड हैल्प लाइन की मदद ले सकते हैं। 
विनोद कुमार, सैंटर कोर्डिनेटर
चाइल्ड हैल्प लाइन, जींद

समाज में बढ़ा है अविश्वास

आज हमारे अंदर संस्कारों की काफी कमी हो गई है। मनुष्य स्वार्थी व संवेदनहीन हो गया है। आज मनुष्य अतृप्त व दुखी है। इसलिए वह अपने छोटे से स्वार्थ के लिए भी अपने नाजूक रिश्तों को दांव पर लगा देता है। इससे समाज में अविश्वास की भावना बढ़ी है और गलत बातें ज्यादा निकल कर सामने आ रही हैं। वहीं अभिभावक भी बच्चों को दिल से छूने की अपेक्षा केवल शारीरिक रूप से बच्चे पर अपना हक जताने का दिखावा करते रहते हैं। इससे अभिभावक व बच्चों के बीच प्रेभावना कम हुई है। अभिभावकों को भी चाहिए कि वह अपने बच्चे के दोस्तों को भी अपने बच्चे की तरह समझें। 
नरेश जागलान, मनोवैज्ञानिक

शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

कहाँ खो गई हमारी बेटियां

जिले के 29 गांवों में बेटियों को अब भी समझा जाता है बोझ
जिले का लिंगानुपात सुधरकर 888 पर पहुंचा
अब लिंगानुपात में पिछड़े गांवों पर फोकस करेगा स्वास्थ्य विभाग
पिछले वर्षों के मुकाबले जिले में बढ़ा है लिंगानुपात

नरेंद्र कुंडू
जींद। एक ओर जहां सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान चला रही है, वहीं जिला में अब भी लोगों की सोच बेटियों के प्रति पूरी तरह नहीं बदली है। जिले में 29 गांव ऐसे हैं, जिन गांवों में बेटियों को अब भी बोझ समझा जाता है। यह इसी का परिणाम है कि इन 29 गांवों में इस समय भी लिंगानुपात 550 से नीचे है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले में चलाए गए बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के काफी सकारात्मक परिणा

म सामने आए हैं। इसके चलते पिछले वर्षों की तुलना में इस वर्ष जिले का लिंगानुपात में काफी सुधार हुआ है। इस वर्ष जिले का लिंगानुपात 857 से बढ़कर 888 पर पहुंच गया है। गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा सख्त रुख अपनाया गया है। इसी के चलते स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा जिले ही नहीं बल्कि जिले से बाहर भी 33 ऐसे अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर छापेमारी की जा चुकी है, जिन अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर विभाग को लिंग जांच करने जैसी संदिग्ध गतिविधियों की भनक लगी। 

आधे से ज्यादा गांवों में ही सुधरा लिंगानुपात


जिले में गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा शुरू किए गए अभियान के तहत स्वास्थ्य विभाग द्वारा 39 ऐसे गांवों को चिन्हित किया गया था जिनका लिंगानुपात 555 से कम था। इनमें से 28 गांवों के लिंगानुपात में काफी सुधार है। शेष बचे 11 गांवों में मुहिम का असर खास नहीं रह पाया। इन 11 गांवों के अलावा 18 और गांव ऐसे हैं, जहां बेटियों को बोझ समझा जाता है।  इन 39 गांवों में से अब 11 गांव ही ऐसे बचे हैं जिनका लिंगानुपात 550से कम है। बाकि 28 गांवों के लिंगानुपात में सुधार हुआ है और इन गांवों का लिंगानुपात 550 से ऊपर पहुंच गया है। 

स्वास्थ्य विभाग द्वारा 33 बार की जा चुकी हैं छापेमारी

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा पिछले वर्ष 33 अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर छापेमारी की गई। इनमें 18 बार छापेमारी जींद जिले में, 13 बार दूसरे जिलों में तथा तीन बार प्रदेश के साथ लगते उत्तरप्रदेश व हिमाचल में छापेमारी की गई हैं। 

इस वर्ष इन-इन गांवों का लिंगानुपात 550 से नीचे

गांव का नाम लिंगानुपात 
सेढ़ा माजर 181
रजाना खुर्द 200
खतला 285
कटवाल 285
फैरण खुर्द 333
रोजखेड़ा 333
रजाना कलां 354
जलालपुर खुर्द 363
हसनपुर 363
ऐंचरा कलां 375
श्रीरागखेड़ा 375
जीवनपुर 384
मांडोखेड़ी 428
मंगलपुर 431
डुमरखां खुर्द 433
ढाणी रामगढ़ 470
दुड़ाना 500
किलाजफरगढ़ 509
खेड़ी मसानियां 520
नगूरां         520
खोखरी 521
चंदनपुर 521
कलोदा खुर्द 533
खेड़ी जाजवान 538
जैजवंती 538
देशखेड़ा 545
वर्ष के अनुसार जिले का लिंगानुपात का आंकड़ा
वर्ष लिंगानुपात
2005 860
2006 890
2007 896
2008 894
2009 847
2010 869
2011       837
2012 833
2013 831
2014 863
2015 857
जनवरी से सितंबर 2016 तक 888

उठाए जा रहे हैं कठोर कदम

 जिले में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा कठोर कदम उठाए जा रहे हैं। प्रत्येक  गांव में गर्भवती महिलाओं का रजिस्ट्रेशन किया जाता है, ताकि विभाग इन महिलाओं पर नजर रख सके। समय-समय पर अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर छापेमारी की जाती है। गांवों में एएनएम, आंगनवाड़ी वर्कर, आशा वर्कर, पंचों, सरपंचों व सामाजिक संगठनों के सहयोग से जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। लोगों की मानसिकता बदलने के लिए जिले की तीन नेशनल खिलाडिय़ों को रोल मॉडल बनाया गया है, वहीं जानकी फिल्म के माध्यम से भी लोगों को जागरूक किया जाता है। पिछले वर्षों की तुलना में जिले के लिंगानुपात में काफी सुधार हुआ है। जिन गांवों का लिंगानुपात कम है, उन गांवों पर विभाग का विशेष फोकस रहेगा।  
डॉ. प्रभूदयाल, डिप्टी सिविल सर्जन
नागरिक अस्पताल, जींद

आशा वर्कर रख रहीं हैं नजर 

गांव में आंगनबाड़ी वर्कर व आशा वर्कर नियमित रूप से गर्भवती महिलाओं के संपर्क में रहती हैं। गांव में भ्रूण हत्या की कोई बात नहीं है। यदि लिंगानुपात कम है तो यह कुदरत की ही देन है। गांव व पंचायत इस विषय में बहुत गंभीर है।

कृष्ण कुमार सरपंच रजाना खुर्द।






शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

हॉपर नामक कीट व तना गलन की बीमारी ने दी फसल में दस्तक

हॉपर व तना गलन को रोकने में पेस्टीसाइड भी नहीं है कारगर
चार किस्म के हैं हॉपर नामक कीट
समझदारी की फसल के बचाव का एकमात्र तरीका  

नरेंद्र कुंडू
जींद। खेतों में किसान का पीला सोना (धान) लगभग पक्ककर तैयार है लेकिन धान की इस अंतिम चरण की प्रक्रिया में पहुंचने के साथ धान में हॉपर नामक कीट व तना गलन की बीमारी का प्रकोप बढ़ गया है। धान की फसल में हॉपर से ज्यादा नुकसान तना गलन का है। क्योंकि हॉपर कीट तो खेत में खड़ी फसल के कुछ ही को नुकसान पहुंचाता है लेकिन तना गलन नामक बीमारी के ज्यादा क्षेत्र में फैलने की संभावनाएं हैं। इसमें सबसे खास बात यह है कि हॉपर व तना गलन से फसल को बचाव के लिए पेस्टीसाइड भी कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। इसलिए किसानों को इस तरफ विशेष ध्यान देने की जरूरत है। पेस्टीसाइड पर अपना खर्च करने की बजाए सावधानी के साथ अपनी फसल की तरफ ध्यान देने की जरूरत है।

चार किस्म का है रस चुसक हॉपर कीट 

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार हॉपर एक रस चुसक कीट है और इसकी चार किस्में अभी तक देखी जा चुकी हैं। हॉपर कीट सफेद, हरा, ब्राउन व काले रंग का होता है। ब्राउन व काला हॉपर पौधे के तने का रस चूसता है, वहीं सफेद व हरा हॉपर पौधे के पत्तों का रस चूसता है। पत्ते व तने का रस चूसने के कारण यह काले पड़ जाते हैं। तने व पत्ते का रस चूस लिए जाने के कारण यह काला पडऩे के बाद सुख कर गिर जाता है।

हॉपर के प्रकोप से खेत में इस तरह के दिखाई देंगे लक्षण

जिस खेत में हॉपर का प्रकोप होगा, उस खेत में किसी-किसी स्थान पर गोलाकार, त्रिभुजाकार या अंडाकार के आकार में फसल खराब हुई दिखाई देगी। खेत में जिस क्षेत्र में छाया होगी, वहां से इसकी शुरूआत होगी।

क्या है तना गलन बीमारी

तना गलन बीमारी उन क्षेत्र में आती है, जहां पर जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होती है या पानी हल्का होता है। इसलिए पौधे को जमीन से पर्याप्त मात्रा में फासफोर्स नहीं मिल पाता। यह बीमारी फसल की रोपाई के शुरूआत में व पकाई के समय में आती है। इस बीमारी के आने पर पौधे का तना नीचे से काला पड़ जाता है। पौधे में जाइलम व फ्लोयम नाम की दो नलियां होती हैं। जाइलम नाम की नाली जमीन से पौधे के लिए पानी व खुराक पहुंचाती है। वहीं फ्लोयम नाम की नाली पौधे की पत्तियों में तैयार होने वाले भोजन को पौधे के प्रत्येक हिस्से तक पहुंचाती है लेकिन तने के गलने के कारण यह दोनों नालियां खत्म हो जाती हैं। इससे पौधे तक खुराक व भोजन नहीं पहुंचने के कारण पौधा काला होकर गिर जाता है। ऐसे में पेस्टीसाइड का प्रयोग करना फिजूलखर्ची है।

तना गलन में क्या करें किसान

तना गलन बीमारी उस समय फसल में आती है, जब फसल पकने में एक सप्ताह तक का समय बाकि रहता है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि फसल का पानी सुखा दें और फसल की कटाई कर गिरी में (एक जगह) लगा दें। ऐसा करने से फसल का जो दाना कच्चा है, वह भी पक्क कर तैयार हो जाएगा। हॉपर कीट व तना गलन की बीमारी का कोई उपचार नहीं है। इसलिए किसानों को चाहिए कि वह पेस्टीसाइड पर फिजुलखर्ची नहीं करें। हॉपर कीट से बचाव के लिए किसान प्रति एकड़ में 300 ग्राम डीडीवीपी को दस किलो रेत में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।  इसके अलावा कोई उपचार नहीं हैं। बाकि हॉपर से किसानों को भयभीत होने की जरूरत नहीं है। यह पूरे खेत में नुकसान की बजाए कुछ ही क्षेत्र में नुकसान करता है। वहीं तना गलन बीमारी आने पर किसान फसल को पकाई से दो-तीन पहले काटकर धान को गिरी में लगा सकते हैं।
डॉ. कमल सैनी, कृषि विकास अधिकारी
कृषि विभाग, जींद  

रविवार, 2 अक्तूबर 2016

किसानों के लिए फायदे की खेती है सरसों

कम खर्च में किसान को मिलता है अधिक मुनाफास्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभप्रद है सरसों का तेल

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रबी की फसलों में सरसों की खेती किसानों के लिए सबसे फायदेमंद है। सरसों की खेती में किसान को कम खर्च में अधिक मुनाफा होता है। सरसों की खेती के उत्पादन के लिए किसान को शारीरिक श्रम भी काफी कम करना पड़ता है और कीड़ों व बीमारी के मामले में भी यह फसल काफी सुरक्षित है। वहीं सरसों से निकलने वाला तेल भी स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद होता है। इसलिए किसान सरसों की खेती को अपना कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

यह है सरसों की बिजाई का उपयुक्त समय

सरसों की बिजाई का सबसे उपयुक्त समय 25 सितंबर से 15 अक्तूबर का समय सबसे उपयुक्त है। ड्रील मशीन व हाथ की छांट से भी सरसों की बिजाई की जा सकती है। बिजाई के दौरान 25 किलो यूरिया तथा 40 किलो सिंगल सुपर फासफोर्स खाद डालें। इसके बाद सरसों की फसल में पहला पानी लगाने के बाद 25 किलो यूरिया खाद डालें।

इन-इन किस्मों की कर सकते हैं बिजाई

अधिक पानी वाले क्षेत्र में किसान हिसार कृषि विश्वविद्यालय की आरएच 749, लक्ष्मी व वरूण किस्म की बिजाई कर सकते हैं। कम पानी वाले क्षेत्र में हिसार कृषि विश्वविद्यालय की आरएच 406 व करनाल की 30 नंबर किस्म की बिजाई कर सकते हैं। जहां पर जमीनी पानी खारा है वहां पर किसान करनाल की 88 नंबर किस्म की बिजाई कर सकते हैं। 88 नंबर किस्म में अन्य किस्मों की बजाए तेल की मात्रा अधिक है। वहीं प्राइवेट क्षेत्र की भी कई किस्में इस समय बाजार में हैं। इनमें बायर कंपनी की 5444 व 5450 किस्म, श्रीराम कंपनी की रानी किस्म तथा माइको कंपनी की माइको बोल्ड किस्म भी अच्छी है।

कीटों व बीमारियों के मामले में भी सुरक्षित है सरसों की फसल

रबी की दूसरी फसलों में जहां कीटों व बीमारियों के प्रकोप का ज्यादा भय किसान को रहता है, वहीं सरसों की फसल कीटों व बीमारियों के मामले में काफी सुरक्षित है। क्योंकि सरसों की फसल में कीट व बीमारियां नामात्र ही आती हैं। सरसों की बजाई के समय पेंटिड बग (धोलिया) का थोड़ा बहुत प्रभाव हो सकता है लेकिन सरसों में महज राख का छिड़काव करने से यह कीट अपने आप नियंत्रित हो जाता है।

स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभप्रद है सरसों का तेल

सरसों का तेल स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद माना जाता है। क्योंकि इस फसल में सबसे कम कीटनाशकों का प्रयोग होता है और खाने में सरसों का तेल लेने से शरीर स्वस्थ रहता है। वहीं हार्ट के मरीजों के लिए भी सरसों का तेल काफी लाभदायक है।

सरसों की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद

सरसों की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद है। क्योंकि इस फसल में रबी की दूसरी फसलों से नामात्र खर्च होता है और मुनाफा अधिक होता है। गेहूं की फसल में जहां एक एकड़ में आठ से नौ हजार रुपये का खर्च आता है तो सरसों की फसल में महज तीन से चार हजार रुपये का ही खर्च आता है। कीटों व बीमारियों के मामले में भी यह फसल काफी सुरक्षित है। किसान को इस फसल में शारीरिक मेहनत भी काफी कम करनी पड़ती है। इसलिए किसानों को सरसों की खेती की तरफ अपना रूझान बढ़ाना चाहिए।
डॉ. कमल सैनी, कृषि विकास अधिकारी
जींद। 

रविवार, 25 सितंबर 2016

'यूपी में भाजपा के चुनावी मुद्दे को रोशन करेगा जींद का दीपक'

चित्रकार दीपक के व्यंगात्मक कार्टूनों को भाजपा ने प्रचार सामग्री में किया शामिल
चित्रकार दीपक ने यूपी बचाओ नाम से तैयार की है कार्टून पुस्तिका 
कार्टूनिस्ट दीपक प्रधानमंत्री के अच्छे दिनों पर भी प्रकाशित कर चुके हैं दो पुस्तकें 

नरेंद्र कुंडू
जींद। उत्तरप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में जींद के युवा चित्रकार दीपक कौशिक के कार्टून अपनी छाप छोड़ेंगे। चुनाव के इस दंगल में विरोधियों को घेरने के लिए भाजपा दीपक कौशिक द्वारा यूपी में हुए भ्रष्टाचार पर तैयार किए गए व्यंगात्मक कार्टूनों को अपनी चुनाव प्रचार सामग्री में शामिल करने जा रही है। चित्रकार दीपक कौशिक द्वारा यूपी बचाओ के नाम से यह कार्टून पुस्तिका तैयार की गई है।   
भजपा के राट्रीय महासचिव अरुण सिंह, भाजपा के उत्तरप्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल और भाजपा के प्रदेश मंत्री गोविंद नारायण शुक्ल उर्फ  राजा बाबू के साथ हुई दीपक कौशिक की मुलाकात के बाद पार्टी पदाधिकारियों ने दीपक के कार्टूनों को चुनाव सामग्री में शामिल करने का फैसला लिया है। भाजपा द्वारा इस पुस्तिका की लाखों प्रतियां तैयार करवाई जाएंगी। 
पुस्तक के लिए कार्टून तैयार करते चित्रकार दीपक
चित्रकार दीपक कौशिक द्वारा कार्टून पुस्तिका में उत्तरप्रदेश की वर्तमान व पूर्वोत्तर सरकार की जन विरोधी नीतियों पर कार्टूनों के माध्यम से व्यंग किए गए हैं। इस पुस्तिका में यूपी के कैराना कांड, मथूरा कांड, रामवृक्ष कांड, यूपी की खस्ता हाल सड़कों, बिजली-पानी की समस्या पर कटाक्ष किए गए हैं। दीपक कौशिक ने बताया कि इस पुस्तिका में विरोधी दलों पर निशाना साधने के साथ-साथ मोदी सरकार की विकासकारी सोच को भी दर्शाया गया है। कौशिक ने बताया कि एक सप्ताह पूर्व दिल्ली के अशोका रोड स्थित भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय में भजपा के राट्रीय महासचिव अरुण सिंह, भाजपा के उत्तरप्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल और भाजपा के प्रदेश मंत्री गोविंद नारायण शुक्ल उर्फ  राजा बाबू के साथ चुनाव प्रचार कैम्पेनिंग के लिए हुई बैठक में पार्टी पदाधिकारियों ने इस पुस्तिका को चुनाव सामग्री में शामिल करने का निर्णय लिया है। 
 भाजपा पदाधिकारियों को पुस्तक भेंट करते चित्रकार दीपक कौशिक।

अच्छे दिनों पर भी लिख चुके हैं पुस्तक

चित्रकार दीपक कौशिक इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के एक साल पूरा होने पर 'अच्छे दिन' और दो साल पूरा होने पर 'अच्छे दिन-2' का प्रकाशन कर चुके हैं। अब यूपी में भी इन पुस्तकों को प्रकाशित किया जाएगा। 

हरियाणा की स्वर्ण जयंती पर निकालेंगे म्हारा हरियाणा पुस्तक

दीपक कौशिक ने बताया कि 'यूपी बचाओ' पुस्तक के प्रकाशन होने के बाद उनकी चौथी पुस्तक के प्रकाशन का काम भी अन्तिम दौर में है। 'म्हारा हरियाणा' नाम से प्रकाशित होने वाली यह पुस्तक विशेष तौर पर हरियाणा की स्वर्ण जयंती वर्षगांठ के उपलक्ष्य में तैयार की जा रही है, जिसमें प्रदेश की कला-संस्कृति, राजनीति, जन-जीवन को महत्व दिया गया है। इस पुस्तक में कार्टूनों के माध्यम से जहां इन सब विषयों को उकेरा गया है। 





65 वर्षीय ओमपति ने 45 लाख खर्च कर बुझाई गांव की प्यास

गांव में पानी की किल्लत को दूर करने के लिए 10 किलोमीटर दूर से दबवाई पाइप लाइन
पाइप लाइन दबाकर घर-घर दिया कनेक्शन

नरेंद्र कुंडू
जींद। छतीसगढ़ के धमतरी जिले की 104 वर्षीय कुंवरबाई द्वारा जहां अपनी बकरियां बेचकर गांव में शौचालय का निर्माण करवाकर एक मिशाल पेश की गई है, वहीं जींद जिले के गोहाना रोड पर स्थित लुदाना गांव निवासी 65 वर्षीय वृद्धा ओमपति ने अपनी पूंजी से 40 से 45 लाख रुपये खर्च कर गांव की प्यास बुझा कर एक नई मिशाल पेश की है। ओमपति ने गांव से 10 किलोमीटर दूर स्थित सुंदर ब्रांच नहर से पाइप लाइन दबाकर गांव के लोगों को पीने के लिए पानी मुहैया करवाया है। ओमपति ने गांव तक पाइप लाइन दबवाने के अलावा निशुल्क घर-घर कनेक्शन दिए हैं। इतना ही नहीं पास के गांव मालश्रीखेड़ा, भंभेवा व मोरखी गांव से होकर गुजर रही पाइप लाइन पर भी कई जगह हैंडपंप भी लगवाए गए हैं, ताकि राहगीर व पास के गांव के लोग भी इनसे अपनी प्यास बुझा सकें। 
पाइप लाइन दबाने के बाद गांव में बनाया गया पानी का टैंक।
जींद जिले के लुदाना गांव में भूमिगत पानी खराब होने के कारण गांव में पानी की भारी किल्लत थी। ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए दूर-दराज के क्षेत्र का रूख करना पड़ता था। गांव की पानी की किल्लत को देखते हुए गांव की 65 वर्षीय ओमपति ने ग्रामीणों को इस किल्लत से निजात दिलवाने का संकल्प लिया। ओमपति ने अपने खर्च से सुंदर ब्रांच नहर की सिवाना माल हैड से गांव तक पाइप लाइन दबवाई। सुंदर ब्रांच नहर से गांव तक दबी लगभग 10 किलोमीटर लंबी इस पाइप लाइन पर ओमपति के 40 से 45 लाख रुपये खर्च हुए। इतना ही नहीं ओमपति ने गांव तक पाइप लाइन दबवाने के साथ-साथ घर-घर तक पानी का कनेक्शन भी दिया। प्रत्येक घर तक पानी का कनेक्शन होने के बाद गांव से पानी की किल्लत दूर हो गई। 
टुंटियों से पानी भरती ग्रामीण महिलाएं।

हर घर तक पानी पहुंचाने के लिए गांव को 24 ब्लॉक में बांटा 

छह हजार की आबदी वाले इस गांव में प्रत्येक घर को पीने के लिए पानी मिल सके इसके लिए गांव को 24 ब्लॉक में बांटा गया है। प्रत्येक ब्लॉक को 20 से 25 मिनट तक पानी की सप्लाई की जाती है। पानी की बर्बादी नहीं हो इसके लिए सीमित समय तक ही पानी की सप्लाई की जाती है। 

पेयजल सप्लाई की देखरेख के लिए दो युवकों 

टुंटियों से पानी भरती ग्रामीण महिलाएं।

को दिया रोजगार

गांव में सही तरीके से पेयजल की सप्लाई सुचारू रूप से हो सके इसके लिए ओमपति ने गांव के ही दो युवकों को जिम्मेदारी दी है। यह दोनों युवक गांव में पेयजल की सप्लाई की देखरेख करते हैं। इससे गांव के दो युवकों को रोजगार मिला है। 

भरापूरा है ओमपति का परिवार

समाजसेवी महिला ओमपति के परिवार में राजकुमार, अनिल व शमशेर नाम के तीन बेटे हैं। तीनों बेटे शादीशुदा हैं। इसके अलावा ओमपति के पांच पौत्री व तीन पौत्र भी हैं। ओमपति के पति बलबीर सिंह का देहांत हो चुका है। 
अपने परिवार के साथ मौजूद वृद्धा ओमपति।








मंगलवार, 6 सितंबर 2016

अध्यापकों की नर्सरी बना जींद जिले का ईक्कस गांव

2700 की आबादी वाले गांव में लगभग प्रत्येक घर में है सरकारी नौकरी, गांव में 100 से भी अधिक हैं अध्यापक

गांव में है सीनियर सेकेंडरी स्कूल व शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान 

शिक्षा के साथ-साथ खेलों में भी गांव की विशेष पहचान

अर्जुन अवार्ड भी हासिल कर चुका है गांव का बास्केटबाल कोच

 गांव के बारे में जानकारी देते हरपाल व अन्य ग्रामीण।
नरेंद्र कुंडू
जींद। जिले से महज आठ किलोमीटर की दूरी पर हिसार रोड पर स्थित ईक्कस गांव प्रदेश के लिए अध्यापकों की नर्सरी बन चुका है। महज 2700 की आबादी वाले इस गांव में लगभग प्रत्येक घर में एक अध्यापक है। गांव में शिक्षा का अच्छा प्रसार होने के कारण लगभग प्रत्येक घर में सरकारी नौकरी है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या अध्यापकों की है। ईक्कस गांव में 100 से भी अधिक अध्यापक हैं। गांव से निकलने वाले यह अध्यापक आज प्रदेश के भिन्न-भिन्न स्कूलों में अपनी सेवाएं दे कर विद्यार्थियों को शिक्षा व संस्कार देने का काम कर रहे हैं। शिक्षा के साथ-साथ खेलों के क्षेत्र में भी ईक्कस की विशेष पहचान है। इस गांव से राष्ट्रीय स्तर के कई खिलाड़ी भी निकल चुके हैं। इस गांव के एक खिलाड़ी को खेलों के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल करने पर अर्जुन अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। गांव में शिक्षा का स्तर अच्छा होने के कारण जहां ग्रामीणों में आपसी प्यार-प्रेम व भाईचारा बना हुआ है, वहीं गांव का युवा वर्ग में भी जागरूकता होने के कारण वह नशे जैसी सामाजिक कुरीति से दूर है। गांव में शिक्षा के विस्तार का मुख्य कारण यह है कि आजादी से कई वर्ष पहले ही इस गांव में स्कूल की स्थापना हो चुकी थी और आजादी के बाद 1987-88 में ग्रामीणों के प्रयास से गांव में
डिस्ट्रिक इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर की नींव रखी गई थी। यह इसी सेंटर का परिणाम है कि गांव में सरकारी नौकरियों में सबसे ज्यादा संख्या अध्यापकों की है। 

1927 में ग्रामीणों ने चंदे से बनवाई थी स्कूल की बिल्डिंग   

ग्रामीण हरपाल सिंह का कहना है कि गांव में आजादी से कई वर्ष पहले ही शिक्षा का अच्छा प्रभाव है। वर्ष 1927 में ग्रामीणों ने चंदा एकत्रित कर स्कूल की बिल्डिंग बनवाई थी। गांव में स्कूलबनने के बाद गांव में शिक्षा को काफी बढ़ावा मिला। इसके बाद 1987-88 में गांव में डिस्ट्रिक इंस्टीच्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर की नींव रखी गई थी।

खेलों में भी है गांव की विशेष पहचान

गांव में शिक्षा के विस्तार के बारे में जानकारी देते मास्टर धज्जाराम।
ग्रामीणों ने बताया कि शिक्षा के साथ-साथ खेलों के क्षेत्र में भी गांव की विशेष पहचान है। मास्टर ओम सिंह, मास्टर धज्जा सिंह, मास्टर भीम सिंह, मास्टर गज सिंह, मास्टर सतबीर सिंह ने कई वर्ष तक हरियाणा व पंजाब की कबड्डी की टीम में खेलते हुए टीम का मार्गदर्शन किया। इस गांव से कबड्डी व स्वीमिंग के कई अच्छे खिलाड़ी निकल चुके हैं।

लड़कों के साथ लड़कियों को भी मिला पढ़ाई का अवसर 

सेवानिवृत्ति मास्टर धज्जाराम का कहना है कि उन्होंने 1963  में गांव के स्कूल में प्राइमरी अध्यापक के तौर पर नौकरी ज्वाइन की थी। उस समय ग्रामीण क्षेत्र में लड़कियों की शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता नहीं थी लेकिन उनके गांव में ही स्कूल होने के कारण गांव की ज्यादातर लड़कियां पढ़ाई के लिए स्कूल आती थी। गांव के लड़कों के साथ-साथ लड़कियों ने भी शिक्षित होकर गांव का नाम रोशन किया।

परिवार से मिली अध्यापक बनने की प्रेरणा

गणित अध्यापिका राजलक्ष्मी का फोटो।
मुझे अध्यापक बनने की प्रेरणा मेरे परिवार से ही मिली। मेरे नाना जी भी अध्यापक थे और मेरे पिता जी भी अध्यापक थे। इसके बाद से ही हमारा पूरा परिवार अध्यापन की लाइन में है। मेरे भाई व भाभी भी अध्यापक हैं। मैं खुद भी गणित अध्यापिका हूं और पास के ही गांव ईंटल कलां के स्कूल में कार्यरत हूं। हमारे गांव में इस समय 100 से भी अध्यापक हैं। 
राजलक्ष्मी, गणित अध्यापिका

शिक्षा का हब बन चुका है गांव

अध्यापिका शालिन्दा का फोटो।
पूरे गांव में शिक्षा के प्रति अच्छा माहौल है। एक तरह से देखा जाए तो पूरा गांव एक तरह से एजुकेशन का हब बन चुका है। गांव में सबसे अधिक सरकारी नौकरी हैं। मेरे पति भी अध्यापक हैं।
शालिन्दा, अध्यापिका

खेलों के क्षेत्र में तराश रहे युवाओं का भविष्य

स्वीमिंग कोच मनोज का फोटो।
गांव के ही डीपीई मनोज कुमार तथा हरियाणा पुलिस में एएसआई के पद पर कार्यरत अशोक कुमार खेलों के क्षेत्र में युवाओं का भविष्य संवार रहे हैं। डीपीई मनोज कुमार स्वीमिंग के कोच हैं तो एएसआई अशोक कुमार कबड्डी के कोच हैं और खेल कोटे से ही पुलिस में भर्ती हुए हैं। गांव से निकल कर जींद शहर में जाने के बावजूद भी यह दोनों कोच प्रतिदिन शाम को गांव में जाकर युवाओं को खेलों का निशुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं। 150  के करीब खिलाड़ी इनसे खेलों का प्रशिक्षण ले रहे हैं। यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर कई खिलाड़ी राज्य व नेशनल स्तर की प्रतियोगिताओं में अपना दमखम दिखा चुके हैं।

अर्जुन अवार्ड हासिल कर चुके हैं कोच ओमप्रकाश

बास्केटबाल कोच ओमप्रकाश का फोटो।
बास्केट बाल कोच ओमप्रकाश ढुल ने बताया कि उन्होंने लगभग साढ़े 22 वर्ष तक आर्मी में सेवा दी और अब जींद में बास्केट बाल के कोच के तौर पर सेवा दे रहे हैं। सेना में रहते हुए 1970-80 तक वह इंडिया टीम में खेले। 1975 में उनकी टीम एशिया की टॉप स्कोरर रही। सेना की तरफ से खेलते हुए लगातार 12 वर्ष तक उनकी टीम इंडिया में पहले स्थान की टीम रही। खेलों में उनकी उपलब्धि को देखते हुए उन्हें 1979-80 में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके बाद १९८५ में राष्ट्रपति द्वारा वशिष्ठ सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया।









रविवार, 28 अगस्त 2016

गांव की सरपंच को भी भा गई महिला किसान खेत पाठशाला

अब बगैर कीटनाशकों के खेती के लिए महिलाओं को करेंगी प्रेरित

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रधाना गांव में चल रही अमर उजाला फाउंडेशन व डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन द्वारा चलाई जा रही महिला किसान खेत पाठशाला अब गांव की सरपंच को भा गई है। महिला सरपंच मंजु प्रत्येक शनिवार को लगने वाली इस पाठशाला में कीट ज्ञान की ताल्लीम ले रही हैं।
रधाना गांव के खेतों में लगी पाठशाला में उपस्थित महिलाएं।
शनिवार को लगी पाठशाला में कीटाचार्य महिला किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन किया। खेत पाठशाला के दौरान महिला कीटाचार्यों ने शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का गिनती कर चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार किया। पिछले सप्ताह की ही तरह इस बार भी फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा मिला। महिला किसान शीला, सविता, शकुंतला, सुदेश, सुषमा, अंग्रेजो, नवीन, प्रमिला, यशवंती, असीम ने बताया कि शाकाहारी और मांसाहारी कीट दोनों ही फसल को फायदा पहुंचाते हैं। शाकाहारी कीट कपास की फसल के पत्तों को काटकर उनमें सुराग बना देते हैं। पत्तों में सुराग होने से नीचे वाले पत्तों पर भी चली जाती है, जो पत्तों द्वारा भोजन तैयार करने में सहायक होती है। किसान के जानकारी के अभाव में फसल पर कीटों को देखकर कीटनाशक स्प्रे कर देते हैं, जिसका उत्पादन पर भी विपरीत असर पड़ता है।

गांव की महिलाओं को भी करुंगी प्रेरित

दूसरी बार महिला किसान खेत पाठशाला में पहुंची रधाना गंाव की सरपंच मंजु ने बताया कि पिछले साल सफेद मक्खी की वजह से उनके यहां प्रति एकड़ दो क्विंटल कपास का उत्पादन हुआ था। महंगे कीटनाशक स्पे्र करने के बावजूद कोई फायदा नहीं हुआ। इस पाठशाला में आकर कीटों के बारे में पता चला है, जिसके बारे में वह गांव की ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को बताएंगी। 

रधाना गांव की सरपंच मंजू का फोटो।  





मंगलवार, 9 अगस्त 2016

'बिग बॉस में शिरकत करेगी म्हारी रेसलर हार्ड केडी'

ग्रेट खली की तर्ज पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डब्ल्यूडब्ल्यूई में तिरंगा लहराना है लक्ष्य
जालंधर में ग्रेट खली की अकेडमी में ले रही है प्रशिक्षण
रेसलिंग की नेशनल खिलाड़ी बुलबुल को रिंग में चटा चुकी है धूल 
कविता की बढ़ती लोकप्रियता को देख बिग बॉस से मिला ऑफर 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। राष्ट्रीय स्तर पर नौ वर्षों तक वेटलिफ्टिंग में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन करने वाली जींद जिले के गांव मालवी निवासी वेट लिफ्टिर कविता दलाल अब कांटीनेंटल वेटलिफ्टर इंटरटेरमेंट (सीडब्ल्यूई) में रेसलर के रूप में धूम मचा रही है। कविता दलाल महज तीन के ही प्रशिक्षण के दौरान दिल्ली की मशहूर रेसलर बुलबुल की चुनौती को स्वीकार कर बुलबुल को रिंग में धूल चटा चुकी है। सीडब्ल्यूई के रिंग में कविता दलाल अब हार्ड केडी के नाम से अपनी एक नई पहचान बना चुकी है। कविता दलाल का अब अगला लक्ष्य देश के मशहूर रेसलर दा ग्रेट खली की तर्ज पर वल्र्ड रेसलिंग इंटरटेनमेंट (डब्ल्यूडब्ल्यूई) में तिरंगा लहराना है। यदि कविता दलाल अपने इस मुकाम तक पहुंचने में कामयाब हो जाती हैं तो वह देश की पहली महिला रेसलर बन जाएंगी। इसके लिए कविता दलाल ने अक्तूबर में दा ग्रेट खली द्वारा गुरुग्राम में आयोजित करवाई जा रही सीडब्ल्यूई में भाग लेने वाले विदेशी रेसलरों को भी चुनौती दी है। डब्ल्यूडब्ल्यूई के रिंग में फाइट करने के लिए कविता जालंधर में स्थित खली की अकेडमी में प्रशिक्षण ले रही है और इसके लिए कविता प्रतिदिन आठ घंटे कठिन अभ्यास कर रही है। सीडब्ल्यूई में लगातार बढ़ रही कविता की लोकप्रियता को देख बिग बॉस के घर में शामिल होने के लिए कविता को निमंत्रण मिल चुका है। कविता ने बिग बॉस के इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है। 
 खली की अकेडमी में एक रेसलर के साथ पंजा लड़ाती कविता।

यह है कविता के जीवन का सफर

जींद जिले के मालवी गांव निवासी कविता ने जुलाना के सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं की कक्षा पास की। इसी दौरान कविता के बड़े भाई संजय ने कविता को वेट लिफ्टिंग के खेल के लिए प्रेरित किया। वर्ष 2002 में कविता ने फरीदाबाद में वेट लिफ्टिंग का प्रशिक्षण लेना आरम्भ किया। वर्ष 2003 में कविता ने प्रशिक्षण के लिए बरेली साईं हॉस्टल में दाखिला लिया लेकिन यहां के प्रशिक्षण से कविता संतुष्ट नहीं थी। इसके बाद वर्ष 2004 में कविता ने लखनऊ से अपना प्रशिक्षण शुरू किया, जो 2007 तक जारी रहा। प्रशिक्षण के साथ-साथ कविता ने अपनी पढ़ाई का सफर भी जारी रखा। 2005 में कविता ने बीए की पढ़ाई पूरी की। वर्ष 2008 में कविता ने एसएसबी में बतौर कांस्टेबल के पद पर नौकरी ज्वाइन की। वर्ष 2009 में कविता की शादी बाडौत (उत्तरप्रदेश) निवासी गौरव से हुई। गौरव भी एसएसबी में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं और वालीबाल के अच्छे खिलाड़ी हैं। नौकरी के दौरान वर्ष 2010 में कविता ने विभाग से कॉमनवैल्थ गेम्स की तैयारी के लिए 
सूट सलवार में दिल्ली की रेसलर बुलबुल की चुनौती स्वीकार करती कविता।
बाहर से प्रशिक्षण दिलवाने की गुहार लगाई लेकिन विभाग की तरफ से उसे कोई सहयोग नहीं मिला। इससे निराश होकर कविता ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कविता यूपी में अपनी ससुराल में रहने लगी। इसके बाद कविता के पति गौरव ने कविता को फिर से खेलों के लिए प्रेरित किया। पति से मिले सहयोग के बाद कविता ने फिर से वेटलिफ्टिंग में अपना अभ्यास शुरू कर दिया। 


ग्रेट खली की अकेडमी में अभ्यास करती कविता दलाल।

वेटलिफ्टिंग में यह रही कविता दलाल की उपलब्धियां

1. वर्ष 2006 में ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। 
2. वर्ष 2007 में नेशनल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता। 
3. वर्ष 2008 में नेशनल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता।
4. वर्ष 2010 में नेशनल वुशू चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता।
5. वर्ष 2011 में राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
6. वर्ष 2013 में नेशनल भारोत्तोलन में स्वर्ण जीता।
7. वर्ष 2014 में नेशनल भारोत्तोलन में स्वर्ण जीता।
8. वर्ष 2015 में केरल में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण जीता।
9. वर्ष 2016 में गुहाटी में आयोजित साऊथ एशियन गेम में स्वर्ण जीता। 

प्रति दिन आठ घंटे अभ्यास करती है कविता दलाल 

वेटलिफ्टिंग के बाद कविता दलाल अब सीडब्ल्यूई के रिंग में कठोर परिश्रम कर रही है। कविता दिन में आठ घंटे अभ्यास करती है। रिंग में उतरने से पहले जिम व एक्सरसाइज करती है। इसके बाद सुबह व शाम को दो से तीन घंटे खली की निगरानी में रिंग में अभ्यास करती है। 
अभ्यास के दौरान कविता का फोटो।

पहली ही फाइट में नेशनल रेसलर को कर दिया चित

कविता दलाल ने सीडब्ल्यूई के रिंग में महज तीन दिन के प्रशिक्षण के बाद ही नेशनल रेसलर बुलबुल की चुनौती को स्वीकार कर लिया। नेशनल रेसलर बुलबुल ने जब रिंग में खड़े होकर फाइट करने के लिए रेसलरों को ललकारा तो ऑडियंश में बैठी कविता ने बुलबुल की चुनौती स्वीकार की। कविता सूट सलवार में ही रिंग में कूद पड़ी। रिंग में सूट सलवार में उतरी कविता को देख सभी दर्शक हैरान थे। कविता ने अपनी पहली फाइट में नेशनल रेसलर बुलबुल को रिंग में चित कर दिया। कविता द्वारा सूट सलवार में रिंग में उतर कर की गई फाइट ने कविता को पूरे देश में प्रसिद्धी दिलवा दी। कविता की इस फाइट का एक विडियो कई दिनों तक सोशल मीडिया पर भी छाया रहा। 

बिग बॉस में भी करूंगी हरियाणा का नाम रोशन

सीडब्ल्यूई से मुझे एक नई पहचान मिली है और इस खेल में मेरी बढ़ती प्रसिद्धी को देखते हुए मुझे बिग बॉस में शामिल होने का ऑफर मिला है। मैने बिग बॉस के ऑफर को स्वीकार कर लिया है। जैसे ही बिग बॉस से कार्यक्रम का शैड्यूल मिलेगा मैं इसमें शामिल होकर यहां पर अपने हरियाणा का नाम रोशन करूंगी। 
कविता दलाल
रेसलर, सीडब्ल्यूई

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करेगी कविता 

कविता बहुत ही मेहनती लड़की है। एक बार यह जो लक्ष्य निर्धारित कर लेती है, फिर उसे पूरा करके ही दम लेती है। वेटलिफ्टिंग के बाद कविता का लक्ष्य सीडब्ल्यूई में विदेशी रेसलरों को धूल चटाकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करना है। हमें उम्मीद है कि जल्द ही कविता इस लक्ष्य को पूरा करेगी। अभी कविता को बिग बॉस में शामिल होने का ऑफर मिला है। बिग बॉस में भी कविता जरूरी विजयी रहेगी। 
संजय दलाल, भाई




फसल में नुकसान पहुंचाने से कोसों दूर है शाकाहारी कीटों की संख्या

रधाना गांव में हुआ महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। रधाना गांव में शनिवार को अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन द्वारा महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में महिला किसानों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। पाठशाला के आरंभ में कीटाचार्य महिला किसानों ने कपास की फसल में मौजूद कीटों का अवलोकन किया। इसके बाद शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों का गिनती कर चार्ट पर कीटों का आंकड़ा तैयार किया। आंकड़े में यह साफ नजर आया कि फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा मिला। 
  फसल में कीटों की संख्या का अवलोकन करती  महिला किसान।
कीटाचार्या महिला किसान शीला, सविता, शकुंतला, सुदेश, सुषमा, नवीन, प्रमिला, यशवंती, असीम ने बताया कि पिछले तीन-चार वर्षों से कपास की फसल में सफेद मक्खी का काफी प्रकोप सामने आया था लेकिन इस बार कपास की फसल में शाकाहारी कीटों की संख्या काफी कम है। फसल में नुकसान पहुंचाने वाली सफेद मक्खी, हरा तेले व चूरड़े की संख्या नामात्र है। उन्होंने बताया कि सफेद मक्खी 0.5, हरा तेला 0.9, चूरड़ा 0.8 रही, जो कि फसल को नुकसान पहुंचाने के आर्थिक हानि कागार से काफी दूर है। वहीं नुकसान पहुंचाने वाले सूबेदार मेजर लाल बानिया, माइट, मिलीबग, चेपा, पत्ते खाने वाले शाकाहारी में स्लेटी भूंड, टिड्डा तथा फूल खाने वाले में तेलन, भूरी पुष्पक कीट भी मिले लेकिन इनकी संख्या भी नामात्र ही मिली। वहीं मांसाहारी में डाकू बुगड़ा, हथजोड़ा, दीदड़ बुगड़ा, क्राइसोपा, बिंदुआ चूरड़ा, लफड़ो मक्खी, सुनहेरी मक्खी, लोपा मक्खी, लाल माइट, मकड़ी लालड़ो बिटल, लफड़ो बिटल भी कपास की फसल में मिली। कीटाचार्या महिला किसानों ने बताया कि फसल में शाकाहारी कीटों की बजाए मांसाहारी कीटों की संख्या ज्यादा है। इससे यह साफ है कि मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को रोकने में एक तरह से कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं। 



गुरुवार, 4 अगस्त 2016

फिजूलखर्ची छोड़ जागरूकता के साथ धान की देखभाल करें किसान

थोड़ी सी सावधानी से ही किसान कर सकते हैं धान की फसल की बीमारियों का ऊपचार 
धान की फसल में ज्यादा पानी खड़ा रहने से पनपती हैं ज्यादातर बीमारियां

नरेंद्र कुंडू 
जींद। हरियाणा प्रदेश में खरीफ  की फसलों में से धान एक मुख्य फसल है। यह पानी की फसल होने के कारण इसमें फफूंद, जीवाणु, विषाणु से संबंधित बीमारियां आने का खतरा भी सबसे ज्यादा होता है। किसान जानकारी के अभाव में फसल को इन बीमारियों से बचाने के लिए अंधाधुंध पेस्टीसाइड का प्रयोग करते हैं। इससे फसल में किसान की लागत बढ़ती चली जाती है और उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जबकि थोड़ी सी सावधानी से ही किसान पेस्टीसाइड पर होने वाले इस फिजूलखर्च से बच सकते हैं। धान की फसल में 16 से 17 किस्म की बीमारियां आती हैं। इनमें जड़ गलन, तना गलन, शीत गलन, शीत बलाइट, बदरा (ब्लास्ट) रोग, बकानी (पद गलन), जीवाणु अंगमारी, बैक्टेरियल लीफ  फलाइट, टुंगरा इत्यादी बीमारियां शामिल हैं। इनमें से कुछ रोग ऐसे हैं, जिन्हें बीज ऊपचार कर तथा कुछ रोग ऐसे हैं, जिन्हें फसल को पर्याप्त खुराक देकर रोका जा सकता है। बस इसके लिए किसानों को जागरूक होने की जरूरत है। 

सीमित मात्रा में करें खाद का प्रयोग 

धान की फसल का अच्छा उत्पादन लेने के लिए किसानों को चाहिए कि वह धान की रोपाई के बाद 40 दिन तक ही फसल में यूरिया खाद डालें। यूरिया खाद डालते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि एक बार में आधा कट्टे से ज्यादा खाद और पूरे सीजन में 110 किलो से ज्यादा यूरिया खाद नहीं डालनी चाहिए। फसल की रोपाई के 40 दिन के बाद फसल में नीचे यूरिया खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए। फसल में चार अनुपात दो अनुपात एक के अनुसार खाद का प्रयोग करें। यानि के अगर फसल को चार किलो नाइट्रोजन देनी है तो उसमें दो किलो फास्फोर्स तथा एक किलो पोटास डालें। ताकि पौधों को पर्याप्त खुराक मिल सके।
धान की फसल के लिए खेत तैयार करता किसान।

फफुंदी से फैलने वाले रोग व उपचार 

धान की फसल में सात से आठ किस्म की ऐसी बीमारियां हैं जो फसल में अधिक पानी खड़ा रहने से होती हैं। इनमें जड़ गलन, तना गलन, पत्त गलन, शीत गलन, बदरा, शीत ब्लाइट नामक रोग फफुंदी से फैलने वाले रोग हैं। यदि फसल में इन रोगों के लक्षण नजर आने लगें तो किसान को फसल में पेस्टीसाइड का प्रयोग करने की बजाए फसल में पानी को कम कर देना चाहिए। फसल में पानी कम कर इन बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है। 

बदरा (ब्लास्ट) रोग की तीन स्टेज

धान की फसल में बदरा (ब्लास्ट) रोग की तीन स्टेज होती हैं। इसकी शुरूआत पत्ते, फिर तने और इसके बाद गर्दन पर होती है। इस रोग की शुरूआत में पत्ते पर आंख की निशान जैसे धब्बे हो जाते हैं। इस रोग का कोई ऊपचार नहीं है। इस रोग से बचने के लिए किसानों को चाहिए कि फसल के निसरते समय खेत में ज्यादा पानी खड़ा करने की बजाए नमी रखें।  

टुंगरा रोग का नहीं कोई उपचार

धान की फसल में आने वाला टुंगरा रोग वायरस से फैलने वाला रोग है और इस रोग का कोई ऊपचार नहीं है। इसलिए किसानों को इस रोग से फसल को बचाने के लिए पेस्टीसाइड पर फिजूलखर्ची नहीं करनी चाहिए। इस रोग में धान की फसल में कुछ पौधे अन्य पौधों से लंबे बढ़ जाते हैं और फिर यह सफेद हो जाते हैं। इस रोग की रोकथाम केवल बीज ऊपचार से ही हो सकती है। 

खुराक की कमी से होने वाले रोग

धान की फसल में पीलिया व खैरा रोग खुराक की कमी से होते हैं। पीलिया रोग लोहे की कमी से होता है और खैरा रोग जिंक की कमी से होता है। इन रोगों से बचाने के लिए फसल को समय पर पर्याप्त मात्रा में खुराक की जरूरत होती है। 

ज्यादातर किसान पेस्टीसाइड पर फिजूलखर्ची करते रहते हैं। जबकि किसान थोड़ी सी सावधानी से ही अधिकतर बीमारियों पर काबू पा सकते हैं। किसानों को धान की नर्सरी तैयार करने से पहले बीज ऊपचार जरूर करना चाहिए। इसके बाद धान की फसल में अधिक पानी खड़ा नहीं करना चाहिए। जहां पर पानी खराब है, उस क्षेत्र के किसानों को फसल में अधिक पानी देने की बजाए केवल नमी रखनी चाहिए। यदि फसल में जड़ गलन, तना गलन, शीत गलन इत्यादि रोग नजर आएं तो खेत का पानी सुखा देना चाहिए। खाद का प्रयोग भी सीमित मात्रा में करना चाहिए।
डॉ. कमल सैनी
कृषि विकास अधिकार, जींद


बुधवार, 20 जुलाई 2016

'देश के किसानों को कुदरती तरीके से सफेद सोने की खेती के टिप्स देंगे म्हारे किसान'

डीडी किसान चैनल की टीम ने कैमरे में कैद किए कीटाचार्य किसानों के अनुभव

दो घंटे तक किसानों व कृषि वैज्ञानिकों के बीच हुए सवाल-जवाब

थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए कुदरती कीटनाशियों को बताया अचूक हथियार

नरेंद्र कुंडू
जींद।
म्हारे कीटाचार्य किसान अब देश के किसानों को कुदरती तरीके से सफेद सोने (कपास) की खेती करने के टिप्स देंगे। ताकि खाने की थाली को जहरमुक्त बनाकर आने वाली पीढिय़ों को अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ अच्छा पर्यावरण मुहैया करवाया जा सके। इसके लिए डीडी किसान चैनल की टीम ने मंगलवार को जिले के रधाना गांव में प्रश्र मंच कार्यक्रम का आयोजन कर कीटाचार्य महिला व पुरुष किसानों के अनुभवों को अपने कैमरे में कैद किया। कार्यक्रम के दौरान लगभग दो घंटे तक किसानों व कृषि वैज्ञानिकों के बीच खूब सवाल-जवाब हुए। कीटाचार्य किसानों ने अपने अनुभव में बताया कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। जहरमुक्त खेती की पद्धति को आगे बढ़ाने के लिए कीट ज्ञान बेहद जरूरी है। कीटनाशकों के प्रयोग को रोकने में कुदरती कीटनाशी ही एकमात्र अचूक हथियार हैं। कार्यक्रम की रिकार्डिंग के दौरान प्राकृतिक रूप से कपास की फसल की देखभाल तथा कुदरती तरीके से फसल में मौजूद कीटों को नियंत्रित करने के मुद्दे पर विशेष फोक्स रहा। कीटाचार्य किसानों ने बड़ी ही बेबाकी के साथ सभी सवालों के जवाब दिए और कार्यक्रम में मौजूद कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के जवाबों पर अपनी सहमति जताकर तकनीकि रूप से मोहर लगाने का काम किया। टीम के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए कीटाचार्य महिला और पुरुष किसानों ने बताया कि वह किस तरह से पिछले आठ-दस वर्षों से बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किए व नामात्र उर्वरकों का प्रयोग कर जहरमुक्त खेती को बढ़ावा देकर अच्छा उत्पादन तो ले ही रहे हैं, साथ-साथ समाज को अच्छा पर्यावरण व शुद्ध भोजन मुहैया करवाने का काम कर रहे हैं। 
 कार्यक्रम में महिला किसानों से सवाल-जवाब करती टीम की एंकर।

यह-यह लोग कार्यक्रम में हुए शामिल

कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र की तरफ से वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक यशपाल मलिक, प्रगतिशील किसान क्लब की तरफ से कुलदीप ढांडा, कीटाचार्य रणबीर मलिक, सविता, अंग्रेजो, जिला पार्षद अमित निडानी, डीडी किसान चैनल से सीनियर प्रोडेक्शन एग्जीकिटिव विकास डबास, एंकर आदिती शर्मा, सीनियर वीडियोग्राफर नरेश गोलिया, विक्रम किशोरी, कैमरामैन शंभुनाथ मिश्रा, इंजीनियर जोगेंद्र कुमार, तकनीशियन हेमंत, वीडियो सहायक अंकित अग्रवाल, हेमंत विष्ठ मौजूद रहे।

इस-इस दिन होगा कार्यक्रम का प्रसारण

कीटाचार्य पुरुष किसानों के कार्यक्रम का प्रसारण बृहस्पतिवार 21 जुलाई शाम को साढ़े सात बजे, शुक्रवार 22 जुलाई को दोपहर तीन बजे किया जाएगा। जबकि महिला किसानों के कार्यक्रम को बृहस्पतिवार 28 जुलाई शाम साढ़े सात बजे तथा शुक्रवार 29 जुलाई को दोपहर तीन बजे प्रसारित किया जाएगा।

 यह हुए सीधे सवाल-जवाब

 कार्यक्रम में पुरुष किसानों से सवाल-जवाब करती टीम की एंकर।
सवाल 01. कपास की अच्छी फसल लेने के लिए क्या सावधानी रखनी चाहिए।
जवाब : अच्छी फसल लेने के लिए सबसे पहले बिजाई से पूर्व धरती की अच्छी जुताई की जाए। बिजाई से पूर्व खेत में देसी खाद का प्रयोग किया जाए। डोलियां बनाकर बिजाई की जाए। बिजाई के बाद समय पर पानी लगाना चाहिए।
सवाल 02. कीटनाशकों के इस्तेमाल में क्या सावधानियां रखनी चाहिए।
जवाब : किसानों ने बताया कि वह पिछले आठ-दस वर्षों से बिना कीटनाशकों के खेती कर रहे हैं और इस दौरान उन्हें कीटनाशकों की जरूरत नहीं पड़ी।
सवाल 03 : कपास की फसल में पहली सिंचाई कब होनी चाहिए।
जवाब : बिजाई के 40 दिन बाद सिंचाई की जा सकती है। सिंचाई से पहले अच्छी तरह से निराई व गुडाई करनी चाहिए। यदि जमीन में नमी कम है तो पहले भी सिंचाई की जा सकती है। पौधों की जरूरत को ध्यान में रख कर सिंचाई करें और सितम्बर माह में सिंचाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि इस माह में पौधे पर फूल व बौकी आनी शुरू हो जाती हैं।
सवाल 04 : क्या कीटनाशकों के बिना खेती संभव है।
जवाब : कीटों को नियंत्रित करने में कीट ही सबसे अचूक शस्त्र हैं। पौधे अपनी जरूरत के अनुसार ही भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं। जब पौधे को शाकाहारी कीट की जरूरत नहीं होती जब पौधे उन्हें नियंत्रित करने के लिए मांसाहारी कीट को बुलाते हैं। इस प्रक्रिया में मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को नियंत्रित कर लेते हैं। इसलिए कीटनाशकों के बिना खेती संभव है लेकिन कीटों के बिना खेती संभव नहीं है। कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों की संख्या कम होने की बजाए बढ़ती है। वहीं कृषि विशेषज्ञ ने भी इस बात पर अपनी सहमति जताते हुए बताया कि कीटनाशकों के प्रयोग से कीट अपना जीवन चक्र कम कर बच्चे देने की क्षमता बढ़ा लेते हैं और इससे फसल में कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है।
सवाल 05 :  कीटनाशकों से मिट्टी को क्या नुकसान होता है।
जवाब : कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म कीट मर जाते हैं तथा इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी नष्ट होती है। कीटनाशकों का प्रभाव जमीन व वातावरण में लंबे समय तक रहता है। जो हवा व खाने के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर बीमारियां पैदा करते हैं।
सवाल 06 : कपास की फसल में किस-किस रोग का खतरा रहता है।
जवाब : कपास की फसल में लीफ करल नामक वायरस का खतरा ज्यादा रहता है और सफेद मक्खी इस वायरस को फैलाने में सहायक है। कुछ कृषि अधिकारियों का मानना है कि लीफ करल वाले पौधे को उखाड़ दें लेकिन पौधे को उखाडऩे की बजाए यदि उसे पर्याप्त मात्रा में खुराक दें तो पौधा अच्छा उत्पादन दे सकता है।
सवाल 07 : क्या कपास में आने वाले कीट भी फसल को फायदा पहुंचा सकते हैं।
जवाब : प्रकृति ने इस धरती पर जिस भी जीव को जन्म दिया है, उसकी कहीं ना कहीं बहुत जरूरत है। ऐसा ही फसल में मौजूद कीटों पर भी लागू होता है। कुछ ऐसे शाकाहारी कीट हैं जो पत्तों में सुराख करते हैं और इस सुराख से ही नीचे के पत्तों पर धूप पहुंचती है तो नीचे के पत्ते भी पौधे के लिए भोजन बनाते हैं। वहीं ब्रिस्टल बीटन (तेलन) नामक शाकाहारी कीट कपास की फसल में पर-परागण का काम करती है। इस प्रकार कीट भी फसल को फायदा पहुंचाते हैं।
सवाल 08 : कपास की फसल में सफेद मक्खी की रोकथाम के क्या ऊपाये हैं।
जवाब : सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए फसल में हथजोड़ा, क्राइसोपा, मकडिय़ां, बीटल नामक मांसाहारी कीट काफी संख्या में मौजूद रहते हैं, जो सफेद मक्खी व इसके बच्चों को खाकर इसे नियंत्रित करने का काम करते हैं। वहीं कुछ ऐसे कीट भी हैं जो इसके अंड़ों में अपने अंडे देकर सफेद मक्खी संख्या को बढऩे से रोकते हैं।
सवाल 09 : औसतन कितनी सफेद मक्खी होने पर कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए।
जवाब : कृषि वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित किए गए आर्थिक हानि कागार (ईटीएल) के अनुसार प्रति पत्ता जब सफेद मक्खी की संख्या 6 से अधिक हो तो ही कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए लेकिन पिछले आठ से दस साल के अनुभव में आज तक सफेद मक्खी ने कभी भी उनकी फसल में यह ईटीएल लेवल पार नहीं किया है। इसलिए उन्हें सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ी।
सवाल 10 : कपास में चुगाई के दौरान क्या सावधानियां रखनी चाहिएं।
जवाब : चुगाई के दौरान साफ कपड़े (पल्ली) का प्रयोग किया जाए, चुगाई के दौरान सिर पूरी तरह से कपड़े से ढका होना चाहिए। पक्के हुए फावे को ही निकालें। औस साफ होने पर ही चुगाई करनी चाहिए। पत्तों व कीटों को फावों से दूर रखें ताकि कपास की गुणवत्ता पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़े।










सोमवार, 4 जुलाई 2016

महिला सशक्तिकरण की मिशाल पेश कर रही कीटाचार्य महिलाएं : एडीसी

रधाना  गांव में हुआ महिला पाठशाला का शुभारंभ

जींद। महिला सशक्तिकरण की जो मिशाल जींद जिले की महिलएं पेश कर रही हैं, ऐसी मिशाल प्रदेश के दूसरे जिलों में उन्हें कहीं पर भी देखने को नहीं मिली है। यह बात एडीसी आमना तसनीम ने शनिवार को रधाना गांव में महिला किसान खेत पाठशाला के शुभारंभ अवसर पर कीटाचार्य महिलाओं को संबोधित  करते हुए कही। इस अवसर पर उनके साथ कृषि विभाग के एसडीओ राजेंद्र गुुप्ता, बराह खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा, दलीप सिंह चहल, प्रगतिशील किसान क्लब के प्रधान राजबीर कटारिया, डॉ. सुरेंद्र दलाल कीट साक्षरता मिशन के प्रधान रणबीर मलिक सहित काफी संख्या में महिल किसान  मौजूद रही। एडीसी ने रिबन काट कर पाठशाला का शुभारंभ किया। महिला किसानों ने पाठशाला में पहुंचने पर एडीसी मैडम का स्वागत किया।
रधाना गांव में रिबन काटकर पाठशाला का उद्घाटन करती एडीसी। 
एडीसी ने कहा कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान, रेवाड़ी, झज्जर, सोनीपत सहित कई जिलों में काम किया है और इस दौरान वह वहां की महिलाओं से भी मिलती रही हैं। लेकिन जिस तरह जींद जिले के निडाना, निडानी, ललितखेड़ा तथा रधाना गांव की महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कृषि के कार्य में अपना योगदान कर रही हैं और फसल में मौजूद कीटों के बारे में इतनी बारिकी से जानकारी रखती है, इस तरह की मिशाल उन्हें दूसरे जिलों में देखने को नहीं मिली है। ललितखेड़ा की कीटाचार्य महिला किसानों ने तेरे कांधे टंकी जहर की मेरै कसुती रड़कै हो तथा रधाना की महिलाओं ने खेत मैं खड़ी ललकारूं देखे हो पिया जहर ना लाइये गीत से फसल में मौजूद कीटों को बचाने का आह्वान किया। कीटाचार्या सविता ने बताया कि यदि फसलों में इसी तरह से कीटनाशकों का प्रयोग होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपनी आने वाली पुस्तों को विरासत में बीमारियां देकर जाएंगे। अंग्रेजों ने बताया कि कीटों को मारने के लिए कीटनाशकों की जरूरत नहीं है। फसल में मौजूद मांसाहारी कीट खुद ही कुदरती कीटनाशी का काम कर देते हैं। वह पिछले आठ वर्षों से बिना कीटनाशकों के ही खेती कर रहे हैं।
रधाना गांव  में महिला पाठशाला को संबोधित करती एडीसी।
उन्होंने बताया कि पौधों को कीटनाशकों की नहीं खुराक की जरूरत होती है। एडीसी ने महिलाओं को कीट ज्ञान पद्धति पर एक पुस्तक तैयार करने का आह्वान किया ताकि कीट ज्ञान को दूसरे जिलों के किसानों तक भी पहुंचाया जा सके।






रधाना गांव में पाठशाला में मौजूद महिलाएं।

 पाठशाला में अपने अनुभव बताती महिलाएं।