शनिवार, 13 जुलाई 2013

सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े से भयभीत ना हों किसान

कीटाचार्य किसानों ने कीट ज्ञान से निकाला शाकाहारी कीटों का तोड़

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कपास की फसल में मौजूद शाकाहारी कीट सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े से किसानों को भयभीत होने की जरुरत नहीं है। कीट साक्षरता की मुहिम में जुड़े कीटाचार्य किसानों ने इन शाकाहारी कीटों का तोड़ ढूंढ़ निकाला है। जींद जिले के लगभग आधा दर्जन गांवों में चल रही किसान खेत पाठशालाओं में कपास की फसल की साप्ताहिक कीट तंत्र समीक्षा से प्राप्त हुए आंकड़ों के अनुसार अभी तक उक्त शाकाहारी कीट कहीं भी नुक्सान पहुंचाने के आर्थिक सत्र तक नहीं पहुंच पाए हैं। यह बात कृषि विकास अधिकारी डा. कमल सैनी ने शनिवार को राजपुरा भैण गांव में आयोजित डा. सुरेंद्र दलाल किसान खेत पाठशाला में मौजूद दर्जनभर गांवों के किसानों को सम्बोधित करते हुए कही। 
डा. कमल सैनी ने कहा कि कपास की फसल में पाई जाने वाली सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े नामक कीट की गिनती किसान मेजर कीटों में करते हैं और कपास की फसल में इन कीटों की उपस्थिति को देखकर किसान भयभीत होकर इन्हें नियंत्रित करने के लिए अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। किसानों का मानना है कि उक्त कीट कपास की फसल के लिए बेहद हानिकारक हैं लेकिन वास्तविकता इसके विपरित है। किसानों को कीटों और बीमारी के बीच का अंतर पता नहीं है। जानकारी के अभाव में किसान भ्रम के जाल में फंसे हुए हैं। ज्यादातर किसान तो कपास की फसल में मौजूद सलेटी भूंड को ही सफेद मक्खी समझ लेते हैं। जबकि सफेद मक्खी बिल्कुल सुक्ष्म कीट है, जिसे सुक्ष्मदर्शी लैंस के माध्यम से ही स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। इसी तरह चूरड़े और हरेतेले को भी सुक्ष्मदर्शी लैंस की सहायता से देखा जा सकता है। सफेद मक्खी, हरा तेला और चूरड़ा तीनों ही कीट शाकाहारी हैं और कपास के पत्तों से रस चूसकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। डा. सैनी ने कहा कि कपास की खेती करने वाले किसानों को अब उक्त कीटों से भयभीत होने की जरुरत नहीं है। क्योंकि जिले के कीटाचार्य किसानों ने कीट ज्ञान के माध्यम से इन कीटों का तोड़ ढूंढ़ लिया है। यहां के किसानों ने शाकाहारी कीट सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़ेका खातमा करने वाले मांसाहारी कीटों की खोज की है, जो प्राकृतिक तौर पर ही कपास की फसल में काफी तादात में पाए जाते हैं। कीटाचार्य किसान रणबीर मलिक, सुरेश, महाबीर पूनिया, रामदेवा, मनबीर रेढ़ू, बलवान लौहान ने किसानों के साथ अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े नामक शाकाहारी कीट को कीटनाशकों के माध्यम से नियंत्रित करने की जरुरत नहीं है। उक्त कीटों को नियंत्रित करने के लिए फसल में क्राइसोपा नामक मांसाहारी कीट
किसानों द्वारा ढूंढ़े गए कुदरती कीटनाशी क्राइसोपे का अंडा, क्राइसोपे का बच्चा तथा प्रौढ़।

पाठशाला के दौरान कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करते किसान।
अकेला ही काफी है, जो सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को खत्म करने में कुदरती कीटनाशी का काम करता है। उन्होंने बताया कि क्राइसोपे का पूरा जीवनचक्र 35 से 40 दिन का होता है और यह फसल में एक स्थान पर अंडे देने की बजाए अलग-अलग स्थानों पर ऊंचाई पर अपने अंडे देता है। 5 से 7 दिन में इसके अंडों से बच्चे निकलने शुरू हो जाते हैं। क्राइसोपा का एक बच्चा 8 घंटे में 10 से 15 हरे तेले, चूरड़े और सफेद मक्खी के बच्चों को चट कर जाता है। उन्होंने बताया कि अगर कपास की फसल में प्रति पौधा एक क्राइसोपा मौजूद है तो किसानों को सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को काबू करने की कोई जरुरत नहीं है। 

फसल को नुक्सान पहुंचाने के आर्थिक स्तर से कोसों दूर हैं शाकाहारी कीट 

डा. कमल सैनी ने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े द्वारा कपास की फसल में नुक्सान पहुंचाने के लिए एक स्तर निर्धारित किया गया है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो अगर सफेद मक्खी की औसत प्रति पत्ता 6, चूरड़े की औसत 10 और हरे तेले की औसत 2 है तो इसके बाद भी किसानों को फसल में कीटनाशक के स्प्रे के बारे में सोचना चाहिए लेकिन जींद जिले के आधा दर्जन गांवों में चल रही किसान खेत पाठशालाओं से जुड़े लगभग 2 दर्जन गांवों के किसानों द्वारा पूरे सप्ताह की जो समीक्षा पेश की गई है, वह अभी किसानों के पक्ष में है। किसानों द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में सफेद मक्खी की प्रति पत्ता औसत 2.3, हरेतेले की 1.8 और चूरड़े की 5.6 औसत आई है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा उक्त कीटों की नुक्सान पहुंचाने की दर के साथ अगर किसानों की रिपोर्ट की समीक्षा की जाए तो अभी तक कहीं पर भी सफेद मक्खी, हरा तेला और चूरड़ा नुक्सान पहुंचाने के आर्थिक स्तर को छू भी नहीं पाए हैं। इसलिए किसानों को अभी इन कीटों से भयभीत होने की जरुरत नहीं है।




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