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समाज के वंचित वर्ग के विद्यार्थियों के लिए उम्मीद की किरण बन रहे सेवा भारती के छात्रावास

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--केवल पढ़े-लिखे नागरिक तैयार करना नहीं है बल्कि पढ़े-लिखे सभ्य, देशभक्त नागरिक तैयार करना सेवा भारती का उद्देश्य  नरेंद्र कुंडू सेवा भारती एक ऐसा संगठन है जो अपने नाम को सार्थक करते हुए समाज के वंचित और निर्धन वर्ग के उत्थान के लिए निरंतर कार्यरत है। सेवा भारती की स्थापना समाज सेवा के उद्देश्य से 1980 में की गई था। सेवा भारती आज समाज में विभिन्न प्रकार के सेवा कार्य कर रही है। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन और सामाजिक समरसता शामिल हैं। किशोरियों के लिए ‘समर्थ किशोरी विकास’ के माध्यम से उनके सर्वांगीण विकास की योजना सेवा भारती करती है। विद्यार्थियों में शिक्षा के साथ-साथ संस्कार व देशभक्ति की भावना पैदा करना ही सेवा भारती का उद्देश्य है। महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए सेवा भारती महिलाओं को स्वदेशी लडिय़ां बनाने, सिलाई केंद्रों के माध्यम से सिलाई सिखाने, सौन्दर्य प्रसाधन का प्रशिक्षण देकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है। सेवा भारती का मुख्य उद्देश्य सेवा कार्यों के माध्यम से वंचित, पीडि़त, अभावग्रस्त व उपेक्षित बंधुओं के जीवन में प्रकाश लाना है। इसके अंतर्गत सेवा भारती का एक महत्

आस्था की पराकाष्ठा है गुरु पूजन की परम्परा

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-डॉ. उमेश प्रताप वत्स   गुरु पूर्णिमा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। भारत के हर गांव-शहर में शिष्य अपने गुरुओं के प्रति अगाध प्रेम का प्रदर्शन करते हैं। गुरु के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पण करने के लिए तत्पर रहते हैं। इस दिन शिष्य अपने गुरु की विशेष पूजा करते हैं, यथाशक्ति दक्षिणा, पुष्प, वस्त्र आदि भेंट करते हैं एवं शिष्य इस दिन अपने सारे अवगुणों को गुरु को अर्पित कर देते हैं। बहुत से लोग इसी दिन गुरु नाम धारण करते हैं तथा गुरु दीक्षा लेते हैं। गुरु पूर्णिमा दिवस के महत्व को समझते हुए कोई भी व्यक्ति किसी विद्वान गुरु से गुरु दीक्षा ले सकते हैं, जो आपके जीवन में किसी भी अवसर पर आपका मार्गदर्शन करने में समर्थ हो। अधिकतर स्थानों पर गुरु पूर्णिमा के दिन भक्त उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु और चंद्र देव से समृद्धि और खुशी के लिए प्रार्थना करते हैं। इस शुभ दिन पर लोग देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु को समर्पित मंदिरों में जाते हैं और सत्यनारायण व्रत रखते हैं। वैदिक शास्त्रों के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य जी को सर्व जगत का गुरु माना गया है। इस दिन शंकराचा

आखिर कौन होते हैं नागा साधु?

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डॉ. विवेक सिंगला अक्सर मुस्लिम और अंबेडकर वादी नागा साधुओं की तस्वीर दिखा कर हिन्दू धर्म के साधुओं का अपमान करने की और हिन्दुओं को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं उन लोगों को नागा साधुओं का गौरवशाली इतिहास पता नहीं होता जानें नागा साधुओं का गौरवशाली इतिहास और उसकी महानता। नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने तथा युद्ध कला में माहिर होने के लिए प्रसिद्ध हैं। ये विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परम्परा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी। भारतीय सनातन धर्म के वर्तमान स्वरूप की नींव आदिगुरू शंकराचार्य ने रखी थी। शंकर का जन्म 8वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था जब भारतीय जनमानस की दशा और दिशा बहुत बेहतर नहीं थी। भारत की धन संपदा से खींचे तमाम आक्रमणकारी यहां आ रहे थे। कुछ उस खजाने को अपने साथ वापस ले गए तो कुछ भारत की दिव्य आभा से ऐसे मोहित हुए कि यहीं बस गए, लेकिन कुल मिलाकर सामान्य शांति-व्यवस्था बाधित थी। ईश्वर, धर्म, धर्मशास्त्रों को तर्क, शस्त्र और शास्त्र सभी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना के लिए कई कदम उठाए जिनमें स

भावी पीढ़ी को विरासत में देना होगा पर्यावरण संरक्षण का ज्ञान

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विज्ञान के क्षेत्र में असीमित प्रगति तथा नए-नए आविष्कारों की स्पर्धा के कारण आज का मानव प्रकृति पर पूर्णतया विजय प्राप्त करना चाहता है। इस कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। वैज्ञानिक उपलब्धियों से मानव प्राकृतिक संतुलन को उपेक्षा की दृष्टि से देख रहा है। दूसरी ओर धरती पर जनसंख्या की निरंतर वृद्धि, औद्योगीकरण एवं शहरीकरण की तीव्र गति प्रकृति के हरे-भरे क्षेत्रों को समाप्त करती जा रही है। प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी दूषित हो रही है और निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है। इस स्थिति को ध्यान में रखकर सन् 1992 में ब्राजील में विश्व के 174 देशों का ‘पृथ्वी सम्मेलन’ आयोजित किया गया। इसके पश्चात् सन् 2002 में जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित कर विश्व के सभी देशों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने के लिए अनेक उपाय सुझाए। वस्तुत: पर्यावरण के संरक्षण से ही धरती पर जीवन का संरक्षण हो सकता है अन्यथा मंगल व अन्य ग्रहों की तरह धरती का जीवन-चक्र भी एक दिन समाप्त हो जाएगा। पर्यावरण प्रदूषण के कुछ दूरगामी दुष्प्रभाव हैं जो बहुत घातक हैं। जैसे आणविक विस्फोटों से रेडियोधर्मिता का अन

जगदीशचंद्र बसु – विज्ञान के आकाश में भारतीय पुरोधा

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' पेड़   पौधों   में   भी   जीवन   होता   है   और   उनमें भी   अनुभूतियाँ   होती   है ' इस बात को वैज्ञानिक आधार पर सिद्ध कर दुनियां को चौकाने वाले   वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु का आज जन्म दिवस है. इनका जन्म 30 नवंबर 1858 को मेमनसिंह गाँव,बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में हुआ था. बसु जी प्रसिद्ध भौतिकवादी तथा पादपक्रिया वैज्ञानिक कहे जाते थे. बसु जी बचपन से ही बहुत विद्वान् और किसी न किसी क्षेत्र में रिसर्च करते रहते. जगदीश चंद्र बसु  ने कई महान ग्रंथ भी लिखे हैं, जिनमें से कुछ निम्न है - सजीव तथा निर्जीव की अभिक्रियाएँ ,वनस्पतियों की अभिक्रिया, पौधों की प्रेरक यांत्रिकी इत्यादि.  जगदीश चंद्र बसु ने सिद्ध किया कि चेतना केवल मनुष्यों और पशुओं, पक्षियों तक ही सीमित नहीं है, अपितु वह वृक्षों और निर्जीव पदार्थों में भी समाहित है. उन्होंने कहा कि निर्जीव व सजीव दोनों सापेक्ष हैं. उनमें अंतर केवल इतना है कि धातुएं थोड़ी कम संवेदनशील होती हैं. इनमें डिग्री का अंतर है परंतु चेतना सब में है. सर जगदीश चंद्र  सबसे प्रमुख पहले भारतीय वैज्ञानिकों में से एक हैं जिन्होंने प्रयोग करके साबित किया कि ज

ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में अंतर

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भारत में प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों का बहुत महत्व रहा है। ऋषि मुनि समाज के पथ प्रदर्शक माने जाते थे और वे अपने ज्ञान और साधना से हमेशा ही लोगों और समाज का कल्याण करते आए हैं। आज भी वनों में या किसी तीर्थ स्थल पर हमें कई साधु देखने को मिल जाते हैं। धर्म-कर्म में हमेशा लीन रहने वाले इस समाज के लोगों को ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी आदि नामों से पुकारते हैं। ये हमेशा तपस्या, साधना, मनन के द्वारा अपने ज्ञान को परिमार्जित करते हैं। ये प्राय: भौतिक सुखों का त्याग करते हैं हालांकि कुछ ऋषियों ने गृहस्थ जीवन भी बिताया है। आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में कौन होते हैं और इनमे क्या अंतर है? ऋषि कौन होते हैं भारत हमेशा से ही ऋषियों का देश रहा है। हमारे समाज में ऋषि परंपरा का विशेष महत्व रहा है। आज भी हमारे समाज और परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज माने जाते हैं। ऋषि वैदिक परंपरा से लिया गया शब्द है जिसे श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने वाले लोगों के लिए प्रयोग किया गया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है वैसे व्यक्ति जो अपने विशिष्ट और विलक्षण एकाग्रता के बल पर वैदिक पर

खेलों के क्षेत्र में सोने की खान बनता हरियाणा

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नरेंद्र कुंडू  'देशां म देश हरियाणा, जित दूध-दही का खाना यह हरियाणा के दूध-दही का ही कमाल है कि जो यहां के खिलाड़ी खेलों के क्षेत्र में विश्व पटल पर भारत का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिख रहे हैं। खेल का मैदान हो या युद्ध का क्षेत्र हरियाणा के युवा हर जगह अपना परचम लहरा रहे हैं। आज खेलों के क्षेत्र में हरियाणा की एक अलग पहचान है। हरियाणा की माटी से निकले खिलाड़ी देश के लिए गोल्ड मैडल ला रहे हैं। हरियाणा अब खेलों का हब बन चुका है। कुश्ती का अखाड़ा हो चाहे कबड्डी का मैदान या फिर एथेलेटिक्स का ट्रैक हर क्षेत्र में हरियाणा के खिलाडिय़ों का दबदबा है। कुश्ती के अखाड़े में तो हरियाणा के पहलवानों का कोई तोड़ नहीं है। इसी प्रकार बॉक्सिंग के रिंग में भी हरियाणा के खिलाड़ी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गोल्डन पंच लगा रहे हैं। खेलों के क्षेत्र में हरियाणा का नाम आज अग्रीम पंक्ति में है।   भारत के कुल क्षेत्रफल का केवल 1.4 प्रतिशत और देश की 2.1 प्रतिशत से कम आबादी के साथ भौगोलिक क्षेत्र के मामले में 22वें स्थान पर होने के बावजूद हरियाणा खेलों के क्षेत्र में नंबर वन राज्य के रूप में उभरा है