मंगलवार, 23 जुलाई 2013

अब कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी कीटों की मास्टरनियां

25 जुलाई को जिला कारागार में लगाई जाएगी किसान खेत पाठशाला

नरेंद्र कुंडू
जींद। महिला किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाने वाली निडाना व ललीतखेड़ा की कीटों की मास्टरनियां अब जिला कारागार में बंद कैदियों व बंदियों को भी कीट ज्ञान की तालीम देंगी। इसके लिए जिला कारागार में 25 जुलाई को किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया जाएगा। इस पाठशाला में निडाना, निडानी तथा ललीतखेड़ा गांव की कीटाचार्या महिलाएं जेल में बंद कैदियों व बंदियों को जहरमुक्त खेती के टिप्स देंगी। जेल में इस कार्यक्रम के आयोजन का मुख्य उद्देश्य कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान के माध्यम से खेती के गुर सिखाकर समाज की मुख्य धारा से जोडऩा है, ताकि जेल में बंद कैदियों व बंदियों को सही दिशा देकर गलत संगत से निकाला जा सके और जेल से छुटने के बाद वे कीट ज्ञान के बूते खेती को व्यवसाय के तौर पर अपनाकर अपने भविष्य को संवार सकें। 
कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा निडाना गांव के खेतों से शुरू की गई कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम अब जिले में तेजी से फैलने लगी है। कीट कमांडों किसानों के स्तही ज्ञान को देखते हुए अब कृषि विभाग के साथ-साथ जिला प्रशासन के अन्य अधिकारी भी इस मुहिम में अपनी भागीदारी दर्ज करवाने लगे हैं। इसी कड़ी के तहत अब जिला कारागार प्रशासन ने कारागार में बंद कैदियों व बंदियों को भी कीट ज्ञान की शिक्षा दिलवाने के लिए योजना तैयार की है। जिला कारागार प्रशासन द्वारा 25 जुलाई को कारागार में किसान खेत पाठशाला का आयोजन करवाया जा रहा है। कीट ज्ञान में महारत हासिल कर चुकी निडाना, निडानी व ललीतखेड़ा गांव की वीरांगनाएं इस पाठशाला में कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगी। महिला किसान सविता, मीनी, अंग्रेजो, बिमला, गीता, कमलेश, राजवंती ने बताया कि आज किसान अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे हमारा खान-पान तो जहरीला हो ही रहा है, साथ-साथ हमारा वातावरण भी दूषित हो रहा है। जबकि बिना कीटनाशकों के भी खेती संभव है और वह पिछले कई वर्षों से कीट ज्ञान के बूते बिना कीटनाशकों के खेती कर अच्छा उत्पादन ले रही हैं। जेल प्रशासन द्वारा कैदियों व बंदियों को कीट ज्ञान सिखाने के लिए जिस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है, वह अपने आप में एक अनोखी पहल है। जेल प्रशासन द्वारा इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बंदियों व कैदियों को बुरी संगत से निकालकर समाज की मुख्य धारा से जोडऩा है, ताकि कारागार से निकलने के बाद बंदी व कैदी खेती को व्यवसाय के तौर पर अपनाकर अपने भविष्य को उज्जवल बना सकें। 
जिला कारागार का फोटो, जहां कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।

कैदियों व बंदियों को मिलेगी नई दिशा

जिला कारागार में बंद ज्यादातर बंदी व कैदी ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। ज्यादातर बंदी व कैदी फसल की बिजाई व कटाई के दौरान छुट्टियां लेकर घर जाते हैं। इसके अलावा कारागार में भी लगभग 32 एकड़ में खेती की जाती है। खेती कार्य में कैदी भी सहयोग करते हैं। अगर बंदियों व कैदियों को कीटों के बारे में जानकारी होगी तो इससे फसलों में उर्वरकों पर बढ़ते खर्च में कमी आएगी तथा थाली में बढ़ते जहर के स्तर को भी कम किया जा सकेगा। इसके अलावा एक सामाजिक मुहिम से जुडऩे के कारण कैदियों व बंदियों की मानसिकता भी सुधरेगी और इन्हें एक नई दिशा मिलेगी। 
डा. हरीश रंगा, सुपरीडैंट
जिला कारागार, जींद


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