शनिवार, 21 जून 2014

कीटनाशक नहीं कीट ज्ञान ही फसलों को कीटों से बचाने का सबसे बड़ा हथियार

मांसाहारी कीट करते हैं फसल में कूदरती कीटनाशी का काम 

नरेंद्र कुंडू
जींद। कपास खरीफ सीजन की एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है जिसका रकबा साल दर साल बढ़ता चला आ रहा है। जिस प्रकार नकदी फसलों में कपास की फसल अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है ठीक उसी प्रकार कीटों के लिहाज से भी कपास की फसल की अपनी एक पहचान रही है, क्योंकि हमारी फसलों में सबसे ज्यादा कीट कपास की फसल पर ही आते हैं। हमारे कीट वैज्ञानिकों के अनुसार कपास की फसल के सीजन में समय-समय पर लगभग 1300 प्रकार के कीट आते हैं। इसलिए फसल को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशक नहीं बल्कि कीट की पहचान करना तथा कीटों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हासिल करना ही एक कारगर हथियार है। क्योंकि कीट की कीट का दुश्मन होता है। 

बीटी कपास कीट प्रबंधन का विकल्प नहीं

आमतौर पर हम ये मान लें कि बीटी कपास आने से एक तरफ कपास के चार महत्वपूर्ण कीटों जैसे अमेरिकन सुंडी, गुलाबी सुंडी, चितकबरी सुंडी एवं तम्बाकू वाली सुंडी जहां  कम हुई हैं, वहीं दूसरी तरफ कपास की फसल में बहुत सारे माईनर कहे जाने वाले कीट मुख्य श्रेणी में आ खड़े हुए हैं। इसलिए हम कपास की फसल में बीटी तकनीक को पूर्ण रूप से कीट प्रबंधन का विकल्प नहीं मान सकते। 
कपास की फसल में पाया जाने वाला हथजोड़ा (प्रेंगमेंटिस)नामक मांसाहारी कीट।

कपास की फसल में रस चूसक कीटों की भूमिका 

रस चूसक कीटों की बात करें तो कपास की फसल रस चूसक कीटों के लिए स्वर्ग की तरह होती है, जिसमें बिजाई से लेकर कटाई तक रस चूसक कीटो की भरमार रहती है जो समय-समय पर कपास की फसल में आते रहते हैं। रस चूसक कीटों की बात करें तो कपास की फसल में तीन मुख्य श्रेणी जैसे चूरड़ा, सफेद मक्खी और हरा तेला कीट आते हैं तथा पांच द्वितीय श्रेणी जैसे मिलीबग, माईट, लाल बाणिया, काला बाणिया व चेपा नामक कीट आते हैं। इनके साथ-साथ कुछ अन्य श्रेणी के रस चूसक कीट जैसे मिरिड बग, मकसरा बग, स्टिलट बग आदि भी आते हैं। पौधे समय-समय पर अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर कीटों को बुलाते हैं।
कपास के पौधे पर मौजूद अल नामक शाकाहारी कीट को खाता सिरफड मक्खी का बच्चा।

कपास में कीटों की रोकथाम कैसे करें

आमतौर पर जब कीटों की रोकथाम की बात आती है तो हमारे दिमाक मेंं केवल एक ही विकल्प सुझता है कि कीटनाशकों का छिड़काव लेकिन हम आमतौर पर देखते हैं कि किसान कीटनाशक का प्रयोग कर लेते हैं जो कि आज कल शायद शुरू भी हो गया होगा क्योंकि नरमा की फसल का सीजन शुरू हो चुका है। फिर भी कीटों की रोकथाम नहीं हो पाती और हमारी जेब पर निरंतर कीटनाशकों का खर्च बढ़ता ही जाता है। दूसरी तरफ यदि हम कीटों के प्रबंधन के लिए दूसरे विकल्पों की तरफ सोचें तो वो बहुत ज्यादा किफायती एवं सस्ते साबित होते हैं जैसे इस समय कपास की फसल में चूरड़ा नामक रस चूसक कीट आ चुका है जो कि अधिक तापमान पर ही आता है, जिस पर कोई भी कीटनाशक सही तरीके से किफायती नहीं लेकिन फिर भी किसान चूरड़े पर कंट्रोल करने के लिए अंधाधुंध कीटनाशक का प्रयोग कर रहे हैं। यदि इस समय किसान कपास की फसल में कसोले (फावड़े) से गुडाई करके तथा 250 ग्राम जिंक, एक किलो यूरिया तथा एक किलो डीएपी का १०० लीटर पानी में घोल तैयार कर फसल में छिड़काव करें तो कपास के पौधों को चूरड़े नामक रस चूसक कीटों से बचा सकते हैं। इसके साथ-साथ सफेद मक्खी एवं हरे तेला नामक कीट के लिए भी हम समय-समय पर जिंक, यूरिया तथा डीएपी के घोल का छिड़काव कर सकते हैं। 
बरिस्टल बिटल का शिकार करती मकड़ी।

कपास की फसल में सफेद मक्खी एवं मिलीबग की रोकथाम

कपास की फसल में यदि सफेद मक्खी एवं मिलीबग नामक कीटों की बात करें तो ये दो कीट ऐसे हैं जिन्होंने कीटनाशकों के ग्राफ को दोबारा से ऊंचा उठा दिया है। सफेद मक्खी और मिलीबग ने कई बार तो किसानों के सामने ऐसे हालात खड़े कर दिये हैं कि किसानों को खड़ी बीटी कपास जोतनी पड़ी है। यह दोनों कीट हैं जिनकी रोकथाम के लिए दर्जनों कीटनाशकों की लिस्ट समय-समय पर आती रहती है लेकिन कीट कमांडो किसानों की मानें तो हम उपरोक्त दोनों ही कीटों पर जितने ज्यादा कीटनाशकों के विकल्प प्रयोग करते हैं, इनकी संख्या उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाती है। इसलिए मिलीबग एवं सफेद मक्खी नामक कीटों के लिए यदि हम बाजारी विकल्पों को छोड़कर प्राकृतिक विकल्पों को अपनाएं तो ज्यादा किफायती एवं फायदेमंद साबित होते हैं। प्राकृतिक विकल्पों से हमारा मतलब है कपास में आने वाले मांसाहारी कीट जैसे लेडी बर्ड बीटल, मांसाहारी बुगड़े (बग) क्राइसोपा, दिखोड़ी, परपेटिये एवं मकडिय़ां जो कि सभी के सभी मिलीबग एवं सफेद मक्खी के लिए कपास के पौधों पर आते हैं और इनके लिए हमें कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता यह हमारी फसल में काफी संख्या में मिल जाते हैं, बशर्त यह है कि फसल में कीटनाशकों का ज्यादा प्रयोग नहीं किया गया हो। दूसरी तरफ स्प्रे के तौर पर हम जिंक, यूरिया, डीएपी के घोल का छिड़काव करे सकते हैं, जिससे पौधों को पर्याप्त उर्वरा शक्ति मिलती है। कीटनाशकों के खर्च को यदि कम करना है तो किसानों को कपास में आने वाले शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों की पहचान करनी होगी। कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों को जानकर ही हम कीटों की रोकथाम कर सकते हैं क्योंकि जिस संख्या में हमारी फसल पर शाकाहारी कीट आते हैं, उससे कहीं ज्यादा संख्या में मांसाहारी कीट आते हैं। कपास की फसल में निरंतर १०-१५ दिन के अंतराल में जिंक, यूरिया, डीएपी के घोल का छिड़काव करें। फसल की बढ़वार के साथ ही जिंक, यूरिया तथा डीएपी की मात्रा में बढ़ौतरी कर आधा किलो जिंक, अढ़ाई किलो यूरिया तथा अढ़ाई किलो डीएपी का १०० लीटर पानी में घोल तैयार कर छिड़काव करें। 
कपास की फसल में मौजूद बिटल नामक मांसाहारी कीट।





कपास की फसल में मौजूद सुंदरो नामक मांसाहारी कीट। 

मक्खी का शिकार करती मांसाहारी डायन मक्खी। 

कपास की फसल में शाकाहारी कीट का खून चूसता बिंदुआ बुगड़ा।


कपास की फसल में पाए जाने वाली रस चूसक कीट सफेद मक्खी का फोटो। 








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