मंगलवार, 15 जुलाई 2014

सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए फसल में कूदरती कीटनशानी कीटों ने दी दस्तक

महिला पाठशाला में स्कूली बच्चों ने भी लिया कीट ज्ञान 

बच्चों ने कहा रोचक और ज्ञानवर्धक रही महिला किसान खेत पाठशाला

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीटों की मास्टरनी गीता व मनीषा ने बताया कि सफेद मक्खी पौधे के पत्तों का रस चूसकर अपना गुजारा करती है लेकिन यह कपास की फसल में लीपकरल (मरोडिया) को फैलाने में एक माध्यम का भी काम करती है। सफेद मक्खी अपने डंक के माध्यम से लीपकरल के वायरस को एक पौधे से दूसरे पौधे तक पहुंचाती है और इस तरह धीरे-धीरे कर लीपकरल को पूरे खेत में पहुंचा देती है लेकिन किसानों को इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसे नियंत्रित करने के लिए फसल में कई किस्म के मांसाहारी कीट मौजूद होते हैं जो सफेद मक्खी को नियंत्रित कर फसल में कूदरती कीटनाशी का काम करते हैं। कीटों की मास्टरनियां शनिवार को निडाना गांव में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला के दूसरे सत्र में मौजूद महिलाओं को फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के बारे में अवगत करवा रही थी। माह के दूसरे शनिवार की छुट्टी होने के कारण कई छोटे-छोटे स्कूली बच्चों ने भी पाठशाला में पहुंचकर कीटों के क्रियाकलापों के बारे में बारीकी से जानकारी ली। पाठशाला में निडाना, निडानी, ललितखेड़ा तथा रधाना गांव की महिलाओं ने भाग लिया।
महिलाओं को जानकारी देती कीटाचार्या महिलाएं।
कीटों की मास्टरनियों ने बताया कि सफेद मक्खी पौधे के पत्ते की निचली सतह पर अंडे देती है। एक सफेद मक्खी अपने जीवन काल में लगभग 100 से 125 अंडे देती है और अंडों से बच्चे निकलने में एक सप्ताह का समय लगता है। 6 से 7 दिन बाद सफेद मक्खी के बच्चे प्यूपे में बंद हो जाते हैं और इसके बाद सफेद मक्खी का प्रौढ़ बनता है। सफेद मक्खी के प्रौढ़ का जीवन काल 20 से 25 दिन का होता है। सफेद मक्खी के बच्चे पंख विहिन होने के कारण एक जगह से रस चूसते हैं। जबकि इसके प्रौढ़ के पंख होने के कारण वह फसल में घूम कर एक पौधे से पौधे पर जाकर रस चूसता है। इस बार पाठशाला में क्राइसोपा ग्रुप की महिलाओं ने मास्टर ट्रेनर की भूमिका निभाई और महिलाओं को मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी दी। मास्टर ट्रेनर गीता, मनीषा, केला, रामरत तथा सुमित्रा ने बताया कि क्राइसोपा भूरे और हरे दो अलग-अलग रंग का होता है। क्राइसोपो के पंख जालीदार होते हैं और इसके बच्चे मांसाहारी होते हैं लेकिन यह प्रौढ़ अवस्था में पहुंचने के बाद मास खाना छोड़ देता है। अपने जीवनकाल में यह 400 से 500 अंड़े देता है। हरे रंग का क्राइसोपा डंडी के शिखर पर एक-एक करके अपने अंडे देता है जबकि भूरे रंग का क्राइसोपा एक ही जगह पर कई-कई अंडे देता है। अंडे से बच्चे निकलने में 6-7 दिन का समय लगता है और 15 दिन बाद प्यूपे में चला जाता है। हथजोड़े का जीवन चक्र 30 से 35 दिन का होता है।
पौधों पर कीटों की पहचान करती महिलाएं।

छुट्टी के दिन छोटे-छोटे स्कूली बच्चों ने ली कीटों के क्रियाकलापों की जानकारी

माह के दूसरे शनिवार को स्कूली बच्चों की छुट्टी होने के कारण कुछ छोटे-छोटे बच्चे भी कीट ज्ञान लेने के लिए महिला पाठशाला में पहुंचे। तीसरी कक्षा की छात्रा मुस्कान, सातवीं कक्षा की छात्रा ममता, छात्र मोहित, दूसरी कक्षा के छात्र निखिल, छठी कक्षा के छात्र मोहित, प्रथम कक्षा के छात्र सचिन व जतिन ने भी कपास की फसल में मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों की पहचान की तथा उनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी ली। बच्चों ने बताया कि उन्हें कपास की फसल में लाल बानिया, सफेद मक्खी, हरा तेला, चूरड़ा तथा अन्य कई तरह के कीट देखे। महिलाओं की यह पाठशाला उनके लिए काफी रोचक व ज्ञानवर्धक रही। इस पाठशाला में उन्हें कीटों के जीवन चक्र तथा फसलों पर पडऩे वाले उनके प्रभाव के बारे में जानकारी हासिल की।

 मांसाहारी कीट फसल में करते हैं कूदरती कीटनाशी का काम

कीटाचार्या महिला गीता का फोटो।
गांव निडाना निवासी कीटाचार्या गीता ने बताया कि इस समय कपास की फसल में सफेद मक्खी, चूरड़े तथा हरे तेले को नियंत्रित करने के लिए फसल में क्राइसोपा, लेडी बर्ड बिटल, दीदड़ बुगड़ा, कातिल बुगड़ा, डाकू बुगड़ा मौजूद हैं। क्राइसोपा शिकार करने के बाद अपनी पहचान छुपाने के लिए शिकार की लाश को अपनी कमर पर डाल लेता है। दीदड़ बुगड़ा, कातिल बुगड़ा तथा डाकू बुगड़ा शाकाहारी कीटों का खून चूसकर उन्हें नियंत्रित करते हैं और लेडी बर्ड बीटल अपने शिकार को चबाकर खाती है। मांसाहारी कीट फसल में कूदरती कीटनाशी का काम करते हैं।

फसल को इस वक़्त है शाकाहारी कीटों की जरुरत

कीटाचार्या मनीषा का फोटो।
गांव ललितखेड़ा निवासी कीटाचार्या मनीषा ने बताया कि इस समय फसल में पत्ते खाने वाले कीट टिड्डे, तम्बाकू वाली सूंडी, सुरंगी सूंडी आई हुई हैं। क्योंकि पौधों को इनकी जरूरत है। इस समय पौधों के पत्ते बड़े-बड़े हो गए हैं। इससे नीचे के पत्तों को धूप नहीं मिल पाती और नीचे के पत्ते बिना धूप के पौधे के लिए भोजन नहीं बना पाते। पत्ते खाने वाले कीट पत्तों के बीच से छेद कर देते हैं और छेद से नीचे के पत्तों तक धूप पहुंच जाती है, जिससे पत्ते प्रकाश संशलेशन कर पौधे के लिए भोजन बना लेते हैं। साथ की साथ इन कीटों को कंट्रोल करने के लिए मकड़ी, हथजोड़े व ड्रेगन फलाई (हेलीकॉपटर) नामक मांसाहारी कीट भी फसल में मौजूद हैं। ड्रेगन फलाई तो उड़ते हुए इन कीटों का शिकार करती है।

लेडी बर्ड बीटल भी मिलीबग को खाकर नियंत्रित कर लेते हैं।

कीटाचार्या केला देवी का फोटो।
गांव निडाना निवासी कीटाचार्या केला देवी ने बताया कि इस समय कपास की फसल में मिलीबग नामक कीट भी आया हुआ है। यह कीट पौधों का रस चूसकर अपना गुजारा करता है लेकिन इसे नियंत्रित करने के लिए फसल में अंगीरा, जंगीरा तथा फंगीरा नामक परपेटिये कीट भी फसल में मौजूद हैं। यह कीट मिलीबग के पेट में अपने बच्चे पलवाते हैं। वैसे तो मिलीबग का रंग सफेद होता है लेकिन जब इसके पेट में अंगीरा, जंगीरा या फंगीरा कीट के बच्चे पल रहे होते हैं तो इसके शरीर से सफेद रंग का पाऊडर उतरने लगता है और इसका रंग चॉकलेटी तरह का हो जाता है। क्राइसोपा का बच्चा तथा लेडी बर्ड बीटल भी मिलीबग को खाकर नियंत्रित कर लेते हैं।

फसल को नुकसान पहुंचाने से काफी दूर हैं शाकाहारी कीट। 
कीटाचार्या रामरती का फोटो।

गांव रधाना निवासी कीटाचार्या रामरती ने बताया कि इस बार कपास की फसल में सफेद मक्खी की प्रति पत्ता औसत 1.2, हरे तेले की 1.5 तथा चूरड़े की प्रति पत्ता औसत 1.2 मिली। जबकि कृषि वैज्ञानिको द्वारा तैयार किये गए ईटीएल लेवल के अनुसार सफेद मक्खी की प्रति पत्ता औसत 6, हरे तेले की 2 तथा चूरेड़े की प्रति पत्ता 10 होनी चाहिये लेकिन अभी तक यह इस ईटीएल लेवल से काफी दूर हैं। इसलिए यह कीट फसल को नुकसान पहुंचाने से काफी दूर हैं।  




महिला पाठशाला में पौधों पर कीटों के क्रियाकलापों की जानकारी लेते बच्चे।


 फसल में मौजूद मांसाहारी कीट हथजोड़ा।

मिलीबग का शिकार करता क्राइसोपा का बच्चा।








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