मंगलवार, 19 अगस्त 2014

बेवजह सफेद मक्खी से भयभीत हो रहे हैं किसान

छेडख़ानी करने से बढ़ती है कीटों की संख्या
सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए फसल में काफी संख्या में मौजूद होते हैं कुदरती कीटनाशी

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कृषि विकास अधिकारी डॉ. कमल सैनी ने कहा कि जिन-जिन खेतों में कपास की फसल में कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग कर छेडख़ानी की गई है, उन-उन खेतों में कीटों की संख्या निरंतर बढ़ रही है लेकिन जहां पर कीटों के साथ कोई छेडख़ानी नहीं की गई है, वहां कीटों की संख्या नुकसान पहुंचाने के आर्थिक स्तर (ईटीएल लेवल) से काफी नीचे है। डॉ. सैनी शनिवार को निडाना गांव में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला में कीटाचार्य किसानों से बातचीत कर रहे थे। पाठशाला के आरंभ में महिला किसानों ने कपास की फसल में कीटों का निरक्षण किया और उसके बाद फसल में मौजूद कीटों के आंकड़े को चार्ट पर उतारा। 
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
डॉ. सैनी ने बताया कि आज पूरे प्रदेश में सफेद मक्खी नामक रस चूसक कीट ने किसानों के मन में भय पैदा कर दिया है। इसलिए अज्ञानतावश किसान सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए लगातार कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। भिरड़-ततैये ग्रुप की मास्टर ट्रेनर महिला सुषमा, जसबीर कौर ने बताया कि सफेद मक्खी के पेशाब में शुगर बहुत ज्यादा होती है। जिस भी पत्ते पर सफेद मक्खी का पेशाब पड़ता है, वह पत्ता काला पड़ जाता है। उन्होंने बताया कि सफेद मक्खी एक ऐसा कीट है जो 600 से भी ज्यादा पौधों पर आती है। इसके बच्चे पानी की बूंद की तरह दिखाई देते हैं और वह पत्ते पर एक जगह पड़े-पड़े ही रस चूसते रहते हैं। यदि मौसम अनुकूल हो तो सफेद मक्खी के अंडे से तीन-चार दिन में बच्चा निकल आता है यदि मौसम अनुकूल नहीं हो तो अंडे से बच्चा निकलने में 15 से 20 दिन भी लग जाते हैं। उन्होंने बताया कि कीटों की सबसे खास बात यह होती है कि यदि कीट को यह अहसास हो जाता है कि उस पर हमला होने वाला है तो वह अपने जीवन को छोटा करके अपने बच्चे पैदा करने कर क्षमता को बढ़ा लेता है। सफेद मक्खी एक ऐसा कीट है जो बिना नर के भी अंडे दे देती है। सुमन, कमल व संतोष ने बताया कि फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप होने पर पत्ते के नीचे की नसें फुल जाती हैं और पत्ते का रंग गहरा हरा हो जाता है। पत्ता प्रकोपित होकर ऊपर की तरफ कटोरे की भांति मुडऩे लग जाता है। उन्होंने बताया कि यह कीट मरोडिय़ा नामक वायरस को फैलाने में सहायक है। जब सफेद मक्खी एक पत्ते से रस चूकर दूसरे पत्ते पर रस चूसने के लिए जाती है तो उसके थूक के माध्यम से मरोडिय़े का वायरस दूसरे पौधे तक पहुंच जाता है। जब फसल में मरोडिय़ा बढ़ जाता है तो पौधा प्रकोपित पत्ते के नीचे एक ओर नया पत्ता निकाल लेता है। क्योंकि पौधे को पता होता है कि मुड़ा हुआ पत्ता अब भोजन नहीं बना पाएगा। इसलिए वह भोजन बनाने के लिए नया पत्ता निकाल लेता है। 
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

सफेद मक्खी की कुदरती कीटनाशी

मास्टर ट्रेनर महिला किसानों ने बताया कि सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए किसी बाजार से खरीदे गए कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ती। बल्कि फसल में सफेद मक्खी के कुदरती कीटनाशी काफी संख्या में मिल जाते हैं। लेडी बर्ड बीटल, लोपा मक्खी, छैल मक्खी, परजीवी इनो, इरो, परभक्षी क्राइसोपे के बच्चे तथा भांत-भांत की मकडिय़ां सफेद मक्खी को खाकर कुदरती कीटनाशी का काम करती हैं। बस जरूरत है किसान को इन कीटों की पहचान करने की। 

पौधे को पर्याप्त खुराक देकर ही पाया जा सकता है मरोडिय़े से पार  

डॉ. कमल सैनी ने बताया कि मरोडिय़े विषाणु से फैलता है और विषाणु न तो जीवित होता है और न ही कभी मरता है। इस विषाणु को अनुकूल मौसम मिलने पर यह जीवित हो जाता है। इस विषाणु के प्रभाव को रोकने के लिए आज तक कोई दवाई नहीं बनी है। यदि हम मरोडिय़े से प्रकोपित पौधे को काट कर जला भी देते हैं तो भी उसकी जड़ों में यह वायरस बच जाता है। इससे पार पाने का केवल एक ही उपाय है कि हम मरोडिय़े से प्रकोपित फसल में जिंक, यूरिया व डीएपी के घाल का फोलियर स्प्रे करते रहें। इससे पौधे को पर्याप्त खुराक मिलती रहेगी और इससे उत्पादन में भी कोई कमी नहीं आएगी। 


महिला किसानों को चार्ट पर कीटों के बारे में जानकारी देती मास्टर ट्रेनर महिला किसान। 




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