शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

ईटीएल लेवल को पार करना तो दूर इसके पास भी नहीं पहुंच पाये कपास के मेजर कीट

कीट ज्ञान की मदद से कपास के मेजर कीटों के प्रकोप को कम कर रहे कीटाचार्य किसान
प्रदेश में कपास की फसल में तेजी से बढ़ रहा है सफेद मक्खी का प्रकोप 

नरेंद्र कुंडू 
जींद। कीटाचार्या प्रमिला रधाना ने बताया कि जहां-जहां पर भी सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए किसानों ने कीटनाशकों का प्रयोग किया है, वहां-वहां पर इसके भयंकर परिणाम सामने आ रहे हैं। कई क्षेत्रों में तो सफेद मक्खी के प्रकोप से कपास की फसल बिल्कुल खत्म होने की कगार पर है। हालात ऐसे हो चुके हैं कि सफेद मक्खी का नाम सुनते ही किसानों के पैरों तले से जमीन खिसक रही है लेकिन जहां पर सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए किसी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया गया, वहां पर हालात पूरी तरह से सामान्य हैं। इसका जीता जागता प्रमाण निडाना तथा आस-पास के गांवों में देखा जा सकता है। वह शनिवार को निडाना गांव में चलाई जा रही महिला किसान खेत पाठशाला में महिलाओं के साथ विचार सांझा कर रही थी। 
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।
कीटाचार्या मुकेश रधाना ने बताया कि फसल की बिजाई के बाद से लगातार महिला किसान खेत पाठशालाओं में यहां की महिला किसान कपास के मेजर कीट माने जाने वाले सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़े की हर सप्ताह गिनती कर उनका रिकार्ड तैयार कर रहे हैं। रिकार्ड के अनुसार आज तक तीनों मेजर कीटों में से एक कीट भी ईटीएल लेवल को पार करना तो दूर की बात इसके पास भी नहीं पहुंच पाया है। ऐसा इसलिए संभव हो पाया है कि यहां के किसानों ने इन कीटों को नियंत्रित करने के लिए एक छांटक भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। क्योंकि इन मेजर कीटों को नियंत्रित करने के लिए फसल में काफी संख्या में मांसाहारी कीटों के तौर पर प्राकृतिक कीटनाशी मौजूद रहते हैं। उन्होंने बताया कि प्रति पत्ता सफेद मक्खी की औसत 3.2, हरे तेले की औसत 0.6 तथा चूराड़े की औसत 0.11 है। जबकि ईटीएल लेवल के अनुसार सफेद मक्खी की औसत प्रति पत्ता 6, हरे तेले की प्रति पत्ता 2 तथा चूरड़े की प्रति पत्ता 10 होनी चाहिये लेकिन यह कीट आज तक इस ईटीएल लेवल तक नहीं पहुंच पाये हैं। 
कपास की फसल में कीटों का अवलोकन करती महिला किसान।

इस समय एक पौधे पर तैयार है लगभग 212 ग्राम कपास 

कीटाचार्या मुकेश रधाना तथा गीता निडाना ने बताया कि इस समय कपास के इस आधा एकड़ में टिंड्डों की औसत प्रति पौधा 53, फूल की 4 और बोकी की संख्या प्रति पौधा 30 है। अगर प्रत्येक टिंड्डे से हमें लगभग चार ग्राम कपास का फाव्वा भी मिलता है तो इस समय एक पौधे पर लगभग 212 ग्राम कपास तैयार है। इस आधा एकड़ में पौधों की संख्या लगभग 2500 है। इस प्रकार यदि हम इसका आकलन निकालते हैं तो इस समय इस आधा एकड़ कपास के खेत में लगभग पांच क्विंटल कपास की औसत बनती है। इसके बाद बोकी और फूल अलग से बचते हैं। एक बोकी से फूल बनने में 10-12 दिन का समय लगता है और फूल से टिंड्डा बनने में एक से दो दिन का समय लगता है। इस प्रकार इस पांच क्विंटल के अलावा ओर कपास तैयार होनी अभी बाकी है। उन्होंने बताया कि इस समय इस आधा एकड़ में मौजूद कपास की फसल में किसी प्रकार की बीमारी या किसी कीट का प्रकोप नहीं है और यह खेत में अभी तक कीटनाशकों पर खर्च बिल्कुल नहीं किया गया है। 



कपास की फसल में मौजूद मांसाहारी मकड़ी। 

 कपास की फसल में मौजूद सूंडी व शाकाहारी कीट बग। 





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