शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

नार्थ जोन के कृषि वैज्ञानिकों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाएंगे म्हारे किसान

एनसीआईपीएम द्वारा उत्तरप्रदेश में आयोजित करवाया जाएगा दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम
26 से शुरू होने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम में नार्थ जॉन के सब्जेक्ट मेटर स्पेशलिस्ट कृषि वैज्ञानिक लेंगे भाग 

नरेंद्र कुंडू
जींद। थाली को जहरमुक्त करने के लिए जींद जिले से शुरू हुई कीट ज्ञान क्रांति की मुहिम को देशभर में फैलाने के लिए राष्ट्रीय समेकित नाशी जीव प्रबंधन केंद्र नई दिल्ली (एनसीआईपीएम) द्वारा कानपूर (उत्तरप्रदेश) में दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। 26 अगस्त से शुरू होने वाले इस दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में कृषि विभाग के नार्थ जोन के सब्जेक्ट मेटर स्पेशलिस्ट (विषय वस्तु विशेषज्ञ) भाग लेंगे। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में जींद जिले के कीटाचार्य किसान कृषि वैज्ञानिकों को कीट ज्ञान की तालीम देंगे और कृषि वैज्ञानिकों के साथ अपने अनुभव सांझा करेंगे। ताकि देश के अन्य किसानों को भी इस मुहिम से जोड़ा जा सके। शिविर की अध्यक्षता एनसीआईपीएम के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. मुकेश सहगल तथा वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अजनता बिराह करेंगी। 
फसलों में बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग के कारण दूषित हो रहे खान-पान तथा वातावरण को बचाने के लिए जींद जिले के किसानों द्वारा वर्ष 2008 में कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में कीट ज्ञान क्रांति की शुरूआत की गई थी। यहां के किसानों ने फसलों में पाए जाने वाले कीटों की पहचान करने के साथ-साथ कीटों के क्रियाकलापों से फसल में पडऩे वाले प्रभाव पर बारीकी से शोध किया। शोध में सामने आया कि कीट दो प्रकार के होते हैं एक मांसाहारी और एक शाकाहारी। शाकाहारी कीट फसलों के पत्ते, टहनियां, फल, फूल खाकर अपना गुजारा करते हैं और मांसाहारी कीट दूसरे कीटों को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं। इस दौरान किसानों ने देखा कि जब फसल में शाकाहारी कीटों की संख्या बढऩे लगती है तो उन्हें नियंत्रित करने के लिए पौधे भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर मांसाहारी कीटों को बुला लेते हैं। बशर्त यह है कि फसल में किसी प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया गया हो। इस प्रकार प्राकृतिक के इस चेन सिस्टम में मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर फसल में प्राकृतिक कीटनाशी का काम खुद ही कर देते हैं। इस शोध के बाद यहां के किसानों ने खेत पाठशालाओं का आयोजन कर दूसरे किसानों को भी जागरूक करने का काम किया। पिछले लगभग 6-7 वर्षों से यहां के सैंकड़ों किसान बिना कीटनाशकों के खेती कर रहे है। इसकी सबसे खास बात यह है कि कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करने पर भी उनके उत्पादन पर किसी तरह का प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं पड़ा है बल्कि खेती पर उनका खर्च कम ही हुआ है। पुरुष किसानों के साथ-साथ महिला किसान भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। जींद जिले के किसानों की इस मुहिम को देखते हुए एनसीआईपीएम की टीम द्वारा इस बार जींद में कीट ज्ञान की इस पद्धति पर शोध किया जा रहा है। इसी कड़ी के तहत एनसीआईपीएम द्वारा कृषि वैज्ञानिकों को कीट ज्ञान के बारे में प्रशिक्षित करने के लिए कानपूर (उत्तरप्रदेश) में 26 व 27 अगस्त को दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। इस प्रशिक्षण शिविर में कृषि विभाग के नार्थ जोन के सब्जेक्ट मेटर स्पेशलिस्ट वैज्ञानिक भाग लेंगे। इन कृषि वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण देने के लिए शिविर में एनसीआईपीएम की टीम द्वारा जींद जिले के किसानों को मास्टर ट्रेनर के तौर पर बुलाया गया है। शिविर में प्रशिक्षण देेने के लिए जींद जिले से दो किसान 25 अगस्त को यहां से रवाना होंगे और शिविर में कृषि वैज्ञानिकों के साथ अपने अनुभव सांझा करेंगे। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें