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दोहरी नीति का शिकार हो रही हिन्दी

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नरेन्द्र कुंडू  जब से मानव अस्तित्व में आया तब से ही भाषा का उपयोग कर रहा है चाहे वह ध्वनि के रूप में हो या सांकेतिक रूप में। भाषा हमारे लिए बोलचाल व संप्रेषण का माध्यम होती है। भाषा राष्ट्र की एकता, अखंडता तथा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। देश में प्रचलित विविध भाषाएं व बोलियां हमारी संस्कृति, उदात्त परंपराओं, उत्कृष्ट ज्ञान एवं विपुल साहित्य को अक्षुष्ण बनाये रखने के साथ ही वैचारिक नवसृजन हेतु भी परम आवश्यक है। विविध भाषाओं में उपलब्ध साहित्य की अपेक्षा कई गुना अधिक ज्ञान गीतों, लोकोत्तिफ़यों तथा लोक कथाओं की मौखिक परंपरा के रूप में होता है। यदि राष्ट्र को सशक्त बनाना है तो एक भाषा होनी चाहिए। प्रत्येक विकसित तथा स्वाभिमानी देश की अपनी एक भाषा अवश्य होती है। किसी भी देश की राष्ट्रभाषा उसे ही बनाया जाता है जो उस देश में व्यापक रूप में फैली होती है। हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी भारत के ज्यादातर राज्यों में प्रमुख रूप से बोली जाती है। हिन्दी भाषा के विकास में संतों, महात्माओं तथा उपदेशकों का योगदान भी कम नहीं आंका जा सकता। क्योंकि वह आम जनता के अत्यंत निकट होते हैं। इनका जनता प