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बुधवार, 22 अगस्त 2012

बारिश भी नहीं तोड़ पाई किसानों के बुलंद हौसले

खाप प्रतिनिधियों ने भी किया देसी कपास की फसल का अवलोकन व निरीक्षण

 12 गाँव के किसानों ने चार्ट के माध्यम से प्रस्तुत किये आंकड़े 

नरेंद्र कुंडू
जींद।
हौंसले हो बुलंद तो मंजिल अपने आप कदम चूमने लगती है, और जो अपने हौंसले को तोड़ देता है उससे मंजिल दूर होती चली जाती है, ऐसा ही मानना है गांव निडाना में चल रही खेत पाठशाला के किसानों का। सोमवार रात को हुई बारिश के बाद भी किसानों के हौंसले नहीं टूटे। खेतों में पानी भरा होने के बावजूद भी मंगलवार को किसान खेत पाठशाला के नौंवे स्तर में कीटों व किसानों के बीच चल रहे मुकद्दमें की सुनवाई के लिए खाप प्रतिनिधियों सहित किसान भी वहां पहुंचे। किसान खेत पाठशाला में खाप पंचायत की तरफ से हुड्डाा खाप के प्रधान इंद्र सिंह हुड्डा, राखी बारह के प्रधान राजबीर सिंह, जाट धमार्थ जींद सभा के प्रधान रामचंद्र पहुंचे। खाप पंचायतों के प्रतिनिधि व किसानों ने गांव निडाना निवासी जोगेंद्र के खेत में बैठकर कीट मित्र किसानों के साथ कीटों के बारे में जानकारी हासिल की।

मंगलवार को नहीं हो सका सर्वेक्षण

सोमवार रात को हुई तेज बारिश से खेत में गोड्यां-गोड्यां तक पानी जमा हो गया। जिसके चलते किसान कीटों का सर्वेक्षण नहीं कर सके। हालांकि 12 गांवों के किसानों ने अपने-अपने कीटों के बही खाते को चार्ट के माध्यम से पेश किया। किसी भी गांव में सफेद मक्खी 0.5 प्रतिशत, तेला 0.4 प्रतिशत, चूरड़ा 1.8 प्रतिशत प्रति पत्ता पाया गया। जो कीट वैज्ञानिकों द्वारा तय किए गए मापदंडों से काफी कम है। किसानों की मेहनत के चलते उनके खेतों में एक छटांक भी कीटनाश की आवश्यकता नहीं पड़ी है।

किसानों तथा खाप प्रतिनिधियों ने किया कीट अवलोकन

किसान रमेश मलिक ने कीटों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि मटकू बुगड़ा देखने में लाल बणिया कीट जैसा लगता है। लेकिन यह उससे बिल्कुल अलग है और उसका खून पीता है। मटकू बुगड़ा एक रात में छह लाल बणिया कीटों का खून पी लेता है। किसानों ने ध्यान से मटकू बुगड़ा की पहचान की। रमेश मलिक ने बताया कि यह दुर्लभ  पर भक्षियों में से एक है। जो लाल बणिया का खून पीकर उसे खत्म करता है।

सलेटी भूड का शिकार करते मोबाइल पर दिखाया

गांव इंटल कलां के किसान चतर सिंह ने मंगलवार को हुई इस पाठशाला में किसानों को भी मोबाइल युग का अहसास करवा दिया। क्योंकि चतर सिंह ने अपने मोबाइल के माध्यम से खेत पाठशाला में किसानों को डायन मक्खी द्वारा सलेटी भूंड का शिकार करते हुए का वीडि़यो रिकार्ड कर रखी थी, जिसे उसने पाठशाला में मौजूद खाप प्रतिनिधियों व किसानों के समक्ष दिखाया।

किसानों ने किया रणबीर सिंह की देशी कपास का सर्वेक्षण

खाप प्रतिनिधि को स्मृति चिह्न भेंट करता किसान महाबीर पूनिया।

 कपास की फसल में मौजूद लाल बनिए का परभक्षी मटकू बुगड़ा।
किसानों ने रणबीर सिंह की देशी कपास का सर्वेक्षण व अवलोकन किया। सर्वेक्षण के दौरान हर दूसरे पौधे पर डायन मक्खी, कातिल बुगड़ा, सिंगू बुगड़ा, भिरड़, ततैया व इंजनहारी बहुतायात में पाए गए। सर्वेक्षण के दौरान किसान अजीत सिंह ने पहली बार डायन मक्खी को देखा जो अपने पंजे में पतंगे को फंसाए कपास के पत्ते पर बैठी हुई थी। इस मौके पर गांव राजपुरा के पूर्व सरपंच बलवान व धर्मपाल के मुंह से बरबस ही निकल गया कि फसल में इतने कीट हैं, लेकिन कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं। किसान रणबीर ने बताया कि वह सात साल से देशी कपास की खेती कर रहा है। उसने कभी भी अपनी फसल में एक बूंद भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। बाद में किसानों ने पाठशाला में आए खाप प्रतिधिनियों को स्मृति चिह्न भेंट किए।


शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

स्वतंत्रता दिवस पर महिलाओं ने लिया देश को जहर से आजाद करवाने का संकल्प

नरेंद्र कुंडू
जींद।
एक तरफ 15 अगस्त को जहां सारे देश में 66 वें स्वतंत्रता दिवस की खुशियां मनाई जा रही थी। जगह-जगह कार्यक्रमों का आयोजन कर देशभक्ति से ओत-प्रोत भाषणों से युवा पीढ़ी में देशभक्ति का बीज बो कर उन्हें देश सेवा की शपथ दिलवाई जा रही थी, वहीं दूसरी तरफ जिले के ललीतखेड़ा गांव के खेतों में महिला किसान पाठशाला की महिलाएं देश को जहर से मुक्त करवाने का संकल्प ले रही थी। अपने इस संकल्प को पूरा करने के लिए महिलाएं हाथ में कागज-पैन उठाकर भादो की इस गर्मी में कीट सर्वेक्षण के लिए कपास के पौधों से लटापीन होती नजर आई। इस दौरान महिलाओं को प्रेरित करते हुए सर्व खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को हमें राजनीतिक आजादी तो मिली और इससे हमें विकास के लाभ भी हासिल हुए, लेकिन कीटनाशकों से मुक्ति की लड़ाई अभी जारी है। निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाओं ने हिंदूस्तान की जनता को जो रास्ता दिखाया है, इससे एक दिन यह लड़ाई जरुर सफल होगी और जनता को विषमुक्त भेजन भी मिलेगा। जिससे हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित बनेगा। इस अवसर पर महिलाओं ने 6 समूह बनाकर कपास के खेत का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षेण के दौरान महिलाओं ने पांच-पांच पौधों के पत्तों पर कीटों की गिनती की। महिलाओं ने पौधे के ऊपरी, बीच व निचले हिस्से से तीन-तीन पत्तों का सर्वेक्षण कर फसल में मौजूद सफेद मक्खी, चूरड़ा व तेले की तादात अपने रिकार्ड में दर्ज की। इसके बाद महिलाओं ने फसल में मौजूद कीटों का बही-खाता तैयार किया। बही-खाते में महिलाओं ने अपने-अपने खेत से लाए गए आंकड़े भी दर्ज करवाए। महिलाओं ने अपने खेत से दस-दस पौधों से आंकड़ा तैयार किया था, लेकिन सुषमा पूरे 28 पौधों से आंकड़ा तैयार कर लाई थी। खुशी की बात यह थी कि इन महिलाओं ने अभी तक अपने खेत में एक छटाक भी  कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। पाठशाला के दौरान महिलाओं ने कपास के फूलों पर तेलन का हमला देखा। महिलाओं ने पाया कि तेलन द्वारा सिर्फ फूल की पुंखडि़यां व नर पुंकेशर खाए हुए थे, जबकि स्त्री पुंकेशर सुरक्षित था। तेलन द्वारा खाए गए फूलों से फसल के उत्पादन पर कोई प्रभाव पड़ता है या नहीं इसे परखने के लिए महिलाओं ने इन फूलों को धागे बांधकर इनकी पहचान की। ताकि इससे यह पता चल सके की इन फूलों से फल बनता है या नहीं। ललीतखेड़ा में चल रही इस महिला पाठशाला में ललीतखेड़ा गांव से नरेश, शीला, संतोष, कविता, राजबाला, निडानी से संतोष व कृष्णा पूनिया, निडाना से कृष्णा, बीरमती, सुमित्रा, कमलेश, केलो तथा निडाना की मास्टर ट्रेनर मीनी, अंग्रेजो, बिमला, कमलेश व राजवंती मौजूद थी।
 कपास के फूल को खाती तेलन
कपास के पौधे पर कीटों की गिनती करती महिलाएं।