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गुरुवार, 30 अगस्त 2012

भय व भ्रम की भूल भूलैया से बाहर निकलने के लिए कीट ज्ञान ही एकमात्र द्वार

खाप पंचायत की 10वीं बैठक में मौजूद खाप प्रतिनिधियों ने किसान-कीट विवाद पर किया मंथन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
हमारे बुजुर्गों से हमें जो मिला है, क्या वह सब कुछ हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को दे पाएंगे? आज यह सवाल हमारे सामने एक चुनौति बनकर खड़ा है। अगर फसलों में पेस्टीसाइड का प्रयोग इसी तरह बढ़ता रहा तो हम आने वाली अपनी पुस्तों को बंजर जमीन व दूषित पानी के साथ-साथ कई प्रकार की लाइलाज बीमारियां पैतृक संपत्ति के तौर पर देकर जाएंगे। देश में बीटी के प्रचलन से पहले किसान के पास देसी कपास की 34 किस्में होती थी। लेकिन 2002 में बीटी के प्रचलन के बाद से अब तक इन 10 वर्षों में हमे अपनी देसी कपास की इन 34 किस्मों को खो चुके हैं। जो भविष्य में हमारे सामने आने वाली एक भयंकर मुसिबत की आहट है। यह बात अखिल भारतीय जाट महासभा के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह ने मंगलवार को निडाना गांव के खेतों में किसान खेत पाठशाला के दौरान पंचायत में किसान-कीट विवाद की सुनवाई के दौरान कही। पंचायत की अध्यक्षता बरहा कलां बारहा के प्रधान एवं सर्व खाप महापंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने की। इस अवसर पर पंचायत में अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष ओमप्रकाश मान, दिल्ली 360 पालम के प्रधान रामकरण सौलंकी, महम चौबिसी के प्रधान धर्मबीर केशव, प्रसिद्ध समाजसेवी देवव्रत ढांडा, राममेहर मलिक, प्रगतिशील किसान क्लब के सदस्य राजबीर कटारिया भी विशेष रूप से मौजूद थे।
पंचायत की शुरूआत के साथ ही किसानों ने अपने रुटीन  के कार्य को जारी रखते हुए कपास के पौधों पर कीटों की गिनती कर कीट बही खाता तैयार किया। आस-पास के गांवों से आए सभी कीट मित्र किसानों ने भी अपने-अपने खेत में मौजूद कीटों का आंकड़ा बही खाते में दर्ज करवाया। किसानों ने बही खाता तैयार कर पंचायत के समक्ष प्रस्तुत किया। बही खाते में दर्ज आंकड़ों के आधार पर कोई भी कीट अभी तक फसल में नुकसान पहुंचाने की आर्थिक स्थित के कागार से कोसों दूर हैं। किसान रामदेवा ने बताया कि कपास की फसल में कृषि वैज्ञानिक रस चूसने वाले कीट सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़े को सबसे खतरनाक मानते हैं। लेकिन अगर वास्तविकता पर नजर डाली जाए तो ये तीनों मेजर कीट कपास के पौधे से सिर्फ रस ही चूसते हैं, जिससे कपास की फसल पर कोई ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। इन कीटों को कंट्रोल करने के लिए किसी कीटनाशक की आवश्यकता नहीं है। इन कीटों को खाने के लिए कपास की फसल में कई किस्म के मासाहारी कीट मौजूद होते हैं। सिवाहा से आए किसान अजीत ने बताया कि किसान भय व भ्रम का शिकार है और इसीलिए भ्रमित होकर डर के मारे फसल में कीटनाशकों का प्रयोग करता है। इस भय व भ्रम को दूर करने के लिए किसानों को कीटों की पहचाना होना जरुरी है। जब तक किसानों के पास अपना खुद का अनुभव या ज्ञान नहीं होगा तब तक किसान कीटनाशकों की इस भूल भूलैया से बाहर नहीं निकल पाएगा। इसी दौराना किसानों ने अपने प्रयोग को आगे बढ़ाते हुए पाठशाला में आए सभी खाप प्रतिनिधियों से पांच पौधों के तीसरे हिस्से के पत्ते कटवाए। पाठशाला के समापन पर सभी खाप प्रतिनिधियों को पगड़ी बांधकर व स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया।

आकाशवाणी की टीम ने भी बांटे किसानों के अनुभव

खाप प्रतिनिधि को स्मृति चिह्न देते किसान 

कपास के पोधे के पत्ते काटे खाप प्रतिनिधि 

आकाशवाणी रोहतक से आए सीनियर अनाउंसर सम्पूर्ण भाई डा दलाल से बातचीत करते हुए 
निडाना के किसानों की आवाज को देश के अन्य किसानों तक पहुंचाने के लिए आकाशवाणी रोहतक की टीम भी किसानों के बीच पहुंची। पंचायत के समापन के बाद आकाशवाणी रोहतक से आए सीनियर अनाउंसर सम्पूर्ण भाई ने सभी किसानों से उनके अनुभव पर बातचीत की। आकाशवाणी ने इस पूरे कार्यक्रम का रेडियो पर 50 मिनट तक लाइव चलाकर देश के अन्य क्षेत्र के किसानों को भी इस मुहिम से रू-ब-रू करवाया। निडाना व ललीतखेड़ा से आई महिलाओं ने कीटों पर तैयार किए गए गीत सुनाकर सभी श्रोताओं का मनोरंजन भी किया और उन्हें भी बिना कीटनाशक रहित खेती के लिए प्रेरित किया। 50 मिनट के इस कार्यक्रम के दौरान निडाना के किसानों ने फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी व मासाहारी कीटों पर गहनता से चर्चा की।

बुधवार, 22 अगस्त 2012

बारिश भी नहीं तोड़ पाई किसानों के बुलंद हौसले

खाप प्रतिनिधियों ने भी किया देसी कपास की फसल का अवलोकन व निरीक्षण

 12 गाँव के किसानों ने चार्ट के माध्यम से प्रस्तुत किये आंकड़े 

नरेंद्र कुंडू
जींद।
हौंसले हो बुलंद तो मंजिल अपने आप कदम चूमने लगती है, और जो अपने हौंसले को तोड़ देता है उससे मंजिल दूर होती चली जाती है, ऐसा ही मानना है गांव निडाना में चल रही खेत पाठशाला के किसानों का। सोमवार रात को हुई बारिश के बाद भी किसानों के हौंसले नहीं टूटे। खेतों में पानी भरा होने के बावजूद भी मंगलवार को किसान खेत पाठशाला के नौंवे स्तर में कीटों व किसानों के बीच चल रहे मुकद्दमें की सुनवाई के लिए खाप प्रतिनिधियों सहित किसान भी वहां पहुंचे। किसान खेत पाठशाला में खाप पंचायत की तरफ से हुड्डाा खाप के प्रधान इंद्र सिंह हुड्डा, राखी बारह के प्रधान राजबीर सिंह, जाट धमार्थ जींद सभा के प्रधान रामचंद्र पहुंचे। खाप पंचायतों के प्रतिनिधि व किसानों ने गांव निडाना निवासी जोगेंद्र के खेत में बैठकर कीट मित्र किसानों के साथ कीटों के बारे में जानकारी हासिल की।

मंगलवार को नहीं हो सका सर्वेक्षण

सोमवार रात को हुई तेज बारिश से खेत में गोड्यां-गोड्यां तक पानी जमा हो गया। जिसके चलते किसान कीटों का सर्वेक्षण नहीं कर सके। हालांकि 12 गांवों के किसानों ने अपने-अपने कीटों के बही खाते को चार्ट के माध्यम से पेश किया। किसी भी गांव में सफेद मक्खी 0.5 प्रतिशत, तेला 0.4 प्रतिशत, चूरड़ा 1.8 प्रतिशत प्रति पत्ता पाया गया। जो कीट वैज्ञानिकों द्वारा तय किए गए मापदंडों से काफी कम है। किसानों की मेहनत के चलते उनके खेतों में एक छटांक भी कीटनाश की आवश्यकता नहीं पड़ी है।

किसानों तथा खाप प्रतिनिधियों ने किया कीट अवलोकन

किसान रमेश मलिक ने कीटों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि मटकू बुगड़ा देखने में लाल बणिया कीट जैसा लगता है। लेकिन यह उससे बिल्कुल अलग है और उसका खून पीता है। मटकू बुगड़ा एक रात में छह लाल बणिया कीटों का खून पी लेता है। किसानों ने ध्यान से मटकू बुगड़ा की पहचान की। रमेश मलिक ने बताया कि यह दुर्लभ  पर भक्षियों में से एक है। जो लाल बणिया का खून पीकर उसे खत्म करता है।

सलेटी भूड का शिकार करते मोबाइल पर दिखाया

गांव इंटल कलां के किसान चतर सिंह ने मंगलवार को हुई इस पाठशाला में किसानों को भी मोबाइल युग का अहसास करवा दिया। क्योंकि चतर सिंह ने अपने मोबाइल के माध्यम से खेत पाठशाला में किसानों को डायन मक्खी द्वारा सलेटी भूंड का शिकार करते हुए का वीडि़यो रिकार्ड कर रखी थी, जिसे उसने पाठशाला में मौजूद खाप प्रतिनिधियों व किसानों के समक्ष दिखाया।

किसानों ने किया रणबीर सिंह की देशी कपास का सर्वेक्षण

खाप प्रतिनिधि को स्मृति चिह्न भेंट करता किसान महाबीर पूनिया।

 कपास की फसल में मौजूद लाल बनिए का परभक्षी मटकू बुगड़ा।
किसानों ने रणबीर सिंह की देशी कपास का सर्वेक्षण व अवलोकन किया। सर्वेक्षण के दौरान हर दूसरे पौधे पर डायन मक्खी, कातिल बुगड़ा, सिंगू बुगड़ा, भिरड़, ततैया व इंजनहारी बहुतायात में पाए गए। सर्वेक्षण के दौरान किसान अजीत सिंह ने पहली बार डायन मक्खी को देखा जो अपने पंजे में पतंगे को फंसाए कपास के पत्ते पर बैठी हुई थी। इस मौके पर गांव राजपुरा के पूर्व सरपंच बलवान व धर्मपाल के मुंह से बरबस ही निकल गया कि फसल में इतने कीट हैं, लेकिन कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं। किसान रणबीर ने बताया कि वह सात साल से देशी कपास की खेती कर रहा है। उसने कभी भी अपनी फसल में एक बूंद भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। बाद में किसानों ने पाठशाला में आए खाप प्रतिधिनियों को स्मृति चिह्न भेंट किए।


सोमवार, 13 अगस्त 2012

‘कीड़ों’ की पढ़ाई पढ़ने के लिए निडाना आएंगे पंजाब के किसान

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के निडाना गांव के कीट मित्र किसानों की मेहतन अब रंग लाने लगी है। निडाना गांव के खेतों से शुरू हुई जहरमुक्त खेती की गुंज अब जिले ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों में भी सुनाई देने लगी है। जिससे प्रेरित होकर दूसरे प्रदेशों के किसान भी अब कीटनाशक रहित खेती के गुर सीखने के लिए निडाना की ओर रूख करने लगे हैं। सोमवार को जिला नवां शहर (पंजाब) के 35 किसानों का एक दल कृषि अधिकारियों के साथ दो दिवसीय अनावरण यात्रा पर निडाना की 12 ग्रामी किसान खेत पाठशाला में पहुंच रहा। इस दौरान किसानों का यह ग्रुप निडाना के कीट मित्र किसानों से कीट प्रबंधन पर चर्चा करेगा तथा कीट नियंत्रण व किसान खेत पाठशाला के तौर तरीके सीखेगा। इन किसानों के रहने व खाने का प्रबंध भी निडाना गांव के किसानों द्वारा खुद अपने स्तर पर किया जाएगा। इस दौरान इनके बीच विश्व प्रसिद्ध कीट वैज्ञानिक डा. सरोज जयपाल भी मौजूद रहेंगी।
किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सीखा कर लोगों की थाली में बढ़ते जहर को कम करने के लिए निडाना गांव के किसानों द्वारा शुरू की गई यह मुहिम दूसरे प्रदेशों में भी फैलने लगी है। निडाना के खेतों से शुरू हुई कीटनाशक रहित खेती की इस क्रांति को पंजाब में फैलाने का बीड़ा अब जिला नवां शहर के किसानों ने उठाया है। इस क्रांति को पंजाब में सफल बनाने के लिए पंजाब का कृषि विभाग भी किसानों का पूरा सहयोग कर रहा है। वहां के कृषि विभाग के अधिकारियों ने नवां शहर के किसानों को कीट प्रबंधन तथा कीटनाशक रहित खेती की ट्रेनिंग दिलवाने के लिए 35 किसानों के एक दल का गठन किया है। यह दल अब सोमवार को दो दिवसीय ट्रेनिंग के लिए निडाना में पहुंच रहा है। इस दल में शामिल किसानों के रहने व खाने का प्रबंध खुद निडाना गांव के किसानों द्वारा अपने स्तर पर किया गया है। इसमें खास बात यह है कि पंजाब से आने वाले इन किसानों का रात को ठहरने का प्रबंधन किसी चौपाल, स्कूल या धर्मशाला में नहीं बल्कि निडाना के किसानों ने खुद अपने ही घर में किया है। निडाना के ग्रामीणों द्वारा इन किसानों का चार-चार, पांच-पांच का समूह बनाकर एक-एक घर में ठहराया जाएगा। ताकि नवां शहर के ये किसान खाना खाने के बाद रात को निडाना के किसानों के परिवार के साथ बैठकर उनके खेती के तौर-तरीकों व कीट प्रबंधन पर उनके साथ खुल कर चर्चा कर इसे अच्छी तरह से समझ सकें।

किस-किस किसान के घर में होगा रात्रि ठहराव

पंजाब से आने वाले किसानों के रात्रि ठहराव व खाने की व्यवस्था की जिम्मेदारी निडाना गांव के दस किसानों को सौंपी गई है। जिसमें वीरेंद्र मलिक, रतन सिंह, रघुवीर सिंह, सत्यवान, कप्तान, राजेंद्र सिंह, रमेश मलिक, बलराज, विनोद, राजवंती। रात्रि के भोजन के पश्चात इन किसानों को कीटों की पहचान के लिए लैपटॉप पर कीटों के चित्र भी दिखाए जाएंगे।

क्या रहेगा किसानों का शैड्यूल

दो दिवसीय यात्रा पर आने वाले किसानों का समय व्यर्थ न जाए इसके लिए निडाना के किसानों ने पहले से ही पूरा शैड्यूल तैयार कर रखा है। पंजाब के किसान सोमवार सायं 5-6 बजे के करीब निडाना पहुंचेगे। यहां पहुंचने के बाद रात को खाना खिलाने के बाद इन किसानों को लैपटॉप पर कीटों की पहचान के लिए कीटों के चित्र दिखाए जाएंगे। इसके बाद मंगलवार सुबह आठ बजे ये किसान निडाना गांव की किसान खेत पाठशाला में कीट सर्वेक्षेण में भाग लेंगे तथा यहां कीट-बही खाता तैयार करना सीखेंगे। इसके बाद निडानी गांव के किसानों के घर लंच करेंगे। यहां पर लंच के बाद निडानी के जयभगवान व महाबीर पूनिया के खेतों का सर्वेक्षण कर इनके द्वारा बोई गई कपास व मुंग की मिश्रित खेती तथा घर से तैयार कर बोई गई बीटी कपास की फसल का निरीक्षण करेंगे। इसके बाद अलेवा में प्रगतिशील किसान जोगेंद्र सिंह लोहान के खेत में जाकर कीटनाशक रहित धान की फसल की तुलना आस-पड़ोस की फसलों के साथ करेंगे। यहां पर जलपान कर वापिस पंजाब के लिए रवाना होंगे।

मुख्य कृषि अधिकारी ने पहले स्वयं किया था निरीक्षण

निडाना गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला के चर्चे सुनने के बाद नवां शहर (पंजाब) के मुख्य कृषि अधिकारी डा. सर्वजीत कलंदरी मई माह में यहां स्वयं निरीक्षण के लिए आए थे। ताकि इस पाठशाला की वास्तविकता को परखा सकें। मुख्य कृषि अधिकारी ने निडाना के किसानों के कीट ज्ञान को खुब झाड़-परखने के बाद ही अपने जिले के किसानों की टीम को यहां भेजने का निर्णय लिया था।