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ऐसे कैसे होगा गांवों का विकास

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--अभी तक 301 में से महज 15 पंचायतों की जीपीडीपी हुई तैयार --बिना जीपीडीपी के पंचायतों को नहीं मिल पाएगी विकास के लिए ग्रांट --छह माह पहले दिए थे जीपीडीपी बनाने के आदेश नरेंद्र कुंडू जींद। गांवों के विकास का खाका तैयार करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) में पंचायत अधिकारी व ग्राम सचिव रूची नहीं दिखा रहे हैं। जीपीडीपी योजना के शुरू होने के छह माह बाद भी अभी तक जिले के 301 ग्राम पंचायतों में से महज 15 ग्राम पंचायतों की ही जीपीडीपी तैयार हो पाई है। ग्राम पंचायजों की जीपीडीपी तैयार नहीं होने के कारण गांव के विकास कार्यों पर ब्रेक लग गए हैं।   यह है जीपीडीपी योजना  ग्राम पंचायतों द्वारा पहले बिना प्लानिंग के ही विकास कार्य करवाए जाते थे। गांव के विकास के लिए किसी तरह की कोई प्लानिंग नहीं होती थी। केवल ग्राम सभा में ही गांव के विकास कार्यों पर चर्चा की जाती थी। पंचायत के पास विकास कार्यों की प्लानिंग नहीं होने के कारण कई बार सबसे जरूरी कार्य नहीं हो पाते थे। इस समस्या को दूर करने तथा गांवों का विकास करवाने के लिए केंद्र ...

ओलंपिक में गोल्ड लाने का सपना पूरा नहीं हुआ तो खोल दिया अखाड़ा

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रेलवे की नौकरी के साथ अपने खर्च पर पहलवान तराश रहा नरेंद्र --देश को मैडल दिलवाने के लिए अखाड़े में बहा रहे हैं पसीना --कॉमनवेल्थ में गोल्ड मेडल जीत चुका है नरेंद्र --नरेंद्र की उपलब्धियों को देखते हुए सरकार ने 2000 में भीम अवार्ड से किया सम्मानित नरेंद्र कुंडू जींद। ओलंपिक गेम में गोल्ड लाने का सपना पूरा नहीं हुआ तो पहलवान नरेंद्र ने खुद का अखाड़ा शुरू कर दिया। अब देश को ओलंपिक में गोल्ड दिलवाने के लिए अपने खर्च पर पहलवानों को तरास रहा है। हालांकि दो दशक पहले कॉमनवेल्थ गेम में नरेंद्र ने देश की झोली में गोल्ड मैडल डालने का काम किया था। कुश्ती में देश को अधिक से अधिक मैडल दिलवाने के लिए नरेंद्र खिलाडिय़ों के साथ अखाड़े में दिन-रात पसीना बहा रहा है। नरेंद्र का सपना कुश्ती में देश को ओलंपिक में गोल्ड दिलवाने का है। इसलिए पहलवान नरेंद्र बिना किसी प्रकार की सरकारी सहायता के अपने खर्च पर यह अखाड़ा चला रहा है। इस समय नरेंद्र के अखाड़े में दो दर्जन से भी अधिक खिलाड़ी कुश्ती का प्रशिक्षण ले रहे हैं। हाल ही में दिल्ली में आयोजित ग्रेपलिंग चैंपियनशिप में भी नरेंद्र के तीन पहलवानों ने गोल...

गांव की पहली एमबीबीएस डॉक्टर बन सपना ने पेश की महिला सशक्तिकरण की मिशाल

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गांव का गौरव --बीडीएस में दाखिला होने के बाद भी कम नहीं हुई एमबीबीएस बनने की चाह, दोबारा से दी परीक्षा और एमबीबीएस के लिए हो गया चयन  --ग्रामीण परिवेश में रहकर परिस्थितियों का डटकर किया मुकाबला --सुविधाओं के अभाव को भी नहीं बनने दिया रास्ते का रोड़ा  नरेंद्र कुंडू जींद। जिले के पिल्लूखेड़ा खंड के छोटे से गांव भूराण निवासी सपना ने एमबीबीएस के लिए अपना चयन करवाकर समाज के सामने यह साबित कर दिखाया है कि आज लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नहीं हैं। लगभग तीन हजार की आबादी वाले इस गांव से एमबीबीएस डॉक्टर बनने वाली सपना गांव की पहली लड़की है। सपना का सपना था एमबीबीएस डॉक्टर बनने का लेकिन जब एमबीबीएस के लिए उसका चयन नहीं हुआ तो उसने बीडीएस में दाखिला ले लिया। बीडीएस में दाखिला लेने के बाद भी सपना की एमबीबीएस बनने की चाह कम नहीं हुई। सपना ने दोबारा मेहनत की और एमबीबीएस में दाखिला लेकर यह साबित कर दिया कि यदि इंसान कुछ हासिल करने की ठान ले और सच्ची लग्न से मेहनत करे तो दुनिया की कोई भी ताकत उसको उसकी मंजिल प्राप्त करने से नहीं रोक सकती। एमबीबीएस डॉक्टर बनकर धन कमान...

मजदूरी कर बेटे को करवाई मुम्बई आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई

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तीन हजार की आबादी वाले भूराण गांव से आईआईटी से इंजीनियरिंग करने वाला गांव का पहला छात्र बनेगा रामफल का लड़का नवीन परिवार की कमजोर परिस्थितियों के बावजूद भी रामफल अपने बेटे को आईआईटी मुंबई से करवा रहा है कैमिकल इंजीनियर की पढ़ाई बेटों के साथ-साथ बेटियों को भी दिलवा रहा है उच्च शिक्षा  रामफल अपनी पत्नी सुनीता के साथ। नरेंद्र कुंडू जींद। जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर जींद-पानीपत मार्ग पर स्थित भूराण गांव वैसे तो अपनी एक अलग पहचान रखता है लेकिन गांव का ही एक 49 वर्षीय रामफल नामक व्यक्ति इस गांव का गौरव है। रामफल समाज के सामने एक अच्छे पिता की मिशाल पेश कर रहा है। रामफल अपनी आर्थिक परिस्थितियों की परवाह किए बिना अपने चारों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाकर समाज को एक सुशिक्षित नागरिक देने का काम किया है। इतना ही नहीं रामफल ने अपने बेटे व बेटियों में भी किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया। वह अपनी बेटियों को भी बेटों की तरह अच्छी शिक्षा दिलवा रहा है। आज जहां रामफल की दोनों बेटियां जीएनएम व बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई कर रही हैं, तो वहीं रामफल का एक लड़का मुंबई आईआईटी से कै...

घर की चारदीवारी में भी महफूज नहीं हैं बच्चे

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बच्चों के शोषण व हिंसात्मक मामलों में हो रही बढ़ौतरी घर के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से छुटकारा पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन का सहारा ले रहे बच्चे बाल मजदूरी के मामलों पर भी नहीं लग पा रही रोक एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हिंसा व छेड़छाड़ के 66 मामले नरेंद्र कुंडू जींद। भौतिकतावादी इस युग में हमारा सामाजिक ताना-बाना टूटने के साथ-साथ हमारे नैतिक मूल्यों में भी इतनी गिरावट आ चुकी है कि आज घर की चारदीवारी में भी हमारे बच्चे महफूज नहीं हैं। घर के अंदर ही परिवार के सदस्यों द्वारा बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ बच्चों को प्रताडि़त भी किया जा रहा है। घर के अंदर बच्चों पर बढ़ते शोषण व हिंसात्मक मामलों का सबूत दे रही है चाइल्ड हैल्प लाइन। घर की चारदीवारी के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से मुक्ति पाने के लिए बच्चे चाइल हैल्प लाइन का सहारा ले रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन के आंकड़ों पर यदि नजर डाल जाए तो सबसे अधिक मामले बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के सामने आ रहे हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास छेड़छाड़ व हिंसा के 66 तथा बाल मजदूरी के 31 मामले सामन...

घर की चारदीवारी में भी महफूज नहीं हैं बच्चे

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बच्चों के शोषण व हिंसात्मक मामलों में हो रही बढ़ौतरी घर के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से छुटकारा पाने के लिए चाइल्ड हैल्प लाइन का सहारा ले रहे बच्चे बाल मजदूरी के मामलों पर भी नहीं लग पा रही रोक एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास आए हिंसा व छेड़छाड़ के 66 मामले नरेंद्र कुंडू जींद। भौतिकतावादी इस युग में हमारा सामाजिक ताना-बाना टूटने के साथ-साथ हमारे नैतिक मूल्यों में भी इतनी गिरावट आ चुकी है कि आज घर की चारदीवारी में भी हमारे बच्चे महफूज नहीं हैं। घर के अंदर ही परिवार के सदस्यों द्वारा बच्चों का शोषण करने के साथ-साथ बच्चों को प्रताडि़त भी किया जा रहा है। घर के अंदर बच्चों पर बढ़ते शोषण व हिंसात्मक मामलों का सबूत दे रही है चाइल्ड हैल्प लाइन। घर की चारदीवारी के अंदर हो रहे शोषण व प्रताडऩा से मुक्ति पाने के लिए बच्चे चाइल हैल्प लाइन का सहारा ले रहे हैं। चाइल्ड हैल्प लाइन के आंकड़ों पर यदि नजर डाल जाए तो सबसे अधिक मामले बच्चों के साथ हो रहे शोषण व प्रताडऩा के सामने आ रहे हैं। पिछले एक वर्ष में चाइल्ड हैल्प लाइन के पास छेड़छाड़ व हिंसा के 66 तथा बाल मजदूरी के 31 मामले सामन...

कहाँ खो गई हमारी बेटियां

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जिले के 29 गांवों में बेटियों को अब भी समझा जाता है बोझ जिले का लिंगानुपात सुधरकर 888 पर पहुंचा अब लिंगानुपात में पिछड़े गांवों पर फोकस करेगा स्वास्थ्य विभाग पिछले वर्षों के मुकाबले जिले में बढ़ा है लिंगानुपात नरेंद्र कुंडू जींद।  एक ओर जहां सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान चला रही है, वहीं जिला में अब भी लोगों की सोच बेटियों के प्रति पूरी तरह नहीं बदली है। जिले में 29 गांव ऐसे हैं, जिन गांवों में बेटियों को अब भी बोझ समझा जाता है। यह इसी का परिणाम है कि इन 29 गांवों में इस समय भी लिंगानुपात 550 से नीचे है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले में चलाए गए बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के काफी सकारात्मक परिणा म सामने आए हैं। इसके चलते पिछले वर्षों की तुलना में इस वर्ष जिले का लिंगानुपात में काफी सुधार हुआ है। इस वर्ष जिले का लिंगानुपात 857 से बढ़कर 888 पर पहुंच गया है। गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा सख्त रुख अपनाया गया है। इसी के चलते स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा जिले ही नहीं बल्कि जिले से बाहर भी 33 ऐसे अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर छापेमारी...