मौत के साये में पढ़ाई

जर्जर हो चुका है स्कूल का भवन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकार द्वारा शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाया जा रहा है, वहीं क्षेत्र के कई स्कूलों के पास या तो भवन की कमी है या भवन जर्जर हो चुके है। ऐसे में गांव भूरायण के राजकीय प्राथमिक पाठशाला का भवन की छत्त टूटने के कगार पर है। जिसके कारण स्कूली छात्र मौत के साये में पढ़ाई करने पर मजबूर हैं। स्कूल स्टाफ द्वारा शिक्षा विभाग को भवन के निर्माण के लिए मौखिक व लिखित शिकायत दी जा चुकी है। लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारी शिकायत मिलने के बाद भी लंबी तानकार सोये हुए हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण लगभग 500 विद्यार्थियों के सिर पर मौत का साया मंडरा रहा है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण यहां कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है, जो स्कूल में पढ़ रहे इन नौनिहालों को मौत के मुहं में धकेल सकता है।
प्रदेश सरकार शिक्षा स्तर को सुधारने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ अनेकों सुविधाएं देने के दावे कर रही है। लेकिन प्रदेश सरकार के यह दावे सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं। सरकार के इन दावों की वास्तविकता कुछ ओर ही होती है। पिल्लूखेड़ा खंड के भूरायण गांव के राजकीय प्राथमिक पाठशाला में भी ऐसा ही मामला सामने आया है। इस पाठशाला में लगभग 500 बच्चे शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं। गांव की प्राथमिक पाठशाला के भवन का निर्माण हुए 5 दशक से भी ज्यादा का समय बीत चुका है। बिल्डिंग ज्यादा पुरानी होने के कारण यह जर्जर हो चुकी है। बिल्डिंग की दीवारों में दरार आ चुकी है। स्कूल की बिल्डिंग जर्जर होने के कारण बच्चे मौत के साये में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। स्कूल के अधिकतर कमरों की छत से लैंटर व कड़ियां टूट चुकी हैं। छत से कड़ियां टूटने के कारण छत कभी भी गिर सकती है। छत के अलावा बिल्डिंग की दीवारों में भी दरार आ चुकी हैं। बिल्डिंग में जगह-जगह दरार आने के कारण यहां कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। इस बारे में स्कूल स्टाफ से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि वे कई बार जिला स्तर पर शिक्षा विभाग के अधिकारियों को मौखिक व लिखित शिकायत दे चुके हैं। लेकिन विभाग ने इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। शिकायत मिलने के बाद विभाग द्वारा बिल्डिंग का जायजा लेने के लिए इंजीनियर तो भेजा गया था, लेकिन इंजीनियर ने यह कह कर अपना पल्ला झाड़ दिया कि जब तक बिल्डिंग गिर नहीं जाती तब-तक वो इस बिल्डिंग का निर्माण नहीं कर सकते। इसके बाद विभाग द्वारा दोबारा इस ओर कोई कार्रवाई नहीं की गई। विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण यहां हर वक्त बड़ा हादसा होने का अंदेशा बना रहता है।
                                                                                            खतरे में बचपन
अगर अधिकारियों की बातों पर विश्वास किया जाए तो बिल्डिंग के निर्माण के लिए काफी लंबी प्रक्रिया चलेगी। इस प्रक्रिया में कई माह का समय लग जाएगा। लेकिन अनहोनी तो विभाग की इस लंबी प्रक्रिया का इंतजार नहीं करेगी। वह तो कभी भी मौत बनकर इन मासूम बच्चों को अपने चुंगल में ले सकती है। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों को तो शायद इस बात का इलम भी नहीं होगा कि अपने कलजे के टुकड़े को वे जहां पढ़ाने के लिए भेज रहे हैं, वहां पढ़ाई के अलावा मौत भी फन फैलाए बैठी है। स्कूल का जर्जर भवन कभी भी बड़े हादसे को निमंत्रण दे सकता है। प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के कारण  आज स्कूल में पढ़ने वाले इन मासूम बच्चों का बचपन खतरे में है।

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