मंगलवार, 24 जनवरी 2012

बजट के बिना कैसे खिलेगा बचपन

नरेंद्र कुंडू
जींद।
बाल भवन को सरकारी स्कूलों से मिलने वाला चाइल्ड वेलफेयर फंड बंद होने के बाद अब जिला बाल कल्याण परिषद का खजाना खाली होने लगा है। खजाने में आय का स्त्रोत कम होने से बाल भवन में चलने वाली गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। बाल कल्याण विभाग को सरकारी स्कूलों से चाइल्ड वेलफेयर फंड मिलता था। इसी फंड से बाल भवन में होने वाली गतिविधियों का खर्चा उठाया जाता था। जिले में पहले प्रतिवर्ष सरकारी स्कूलों से लगभग 9 लाख रुपए चाइल्ड वेलफेयर फंड हो जाता था, लेकिन अब सिमटकर लगभग दो से तीन लाख रुपए रह गया है। बाल कल्याण परिषद की पोटली में आय कम होने से बहुत से गतिविधियां बंद हो चुकी है और कुछ बंद होने की कगार पर हैं। बाल भवन के खजाने में पैसे की कमी के चलते कर्मचारियों को समय पर वेतन भी  नहीं मिल पा रहा है। इस फंड का कुछ हिस्सा बाल भवन तथा कुछ हिस्सा मुख्यालय भेजा जाता था। सरकारी स्कूलों से चाइल्ड वेलफेयर फंड बंद होने पर बाल भवन की गतिविधियों को सुचारू रूप से जारी रखने के लिए इन खर्चों का बोझ निजी स्कूल के विद्यार्थी पर डालने की योजना बनाई थी। इसके लिए जिला शिक्षा विभाग की तरफ से सभी खंड शिक्षा अधिकारियों को पत्र जारी करते हुए उनके ब्लाक में स्थित स्थायी व अस्थायी मान्यता प्राप्त स्कूलों से 50 रुपए प्रति छात्र वार्षिक लेकर उसे स्कूलों द्वारा बाल कल्याण अधिकारी कार्यालय में जमा कराने के निर्देश जारी किए गए थे। लेकिन निजी स्कूलों के संचालकों द्वारा इस योजना से हाथ पिछे खिंचने के कारण यह योजना भी सिरे नहीं चढ़ पाई।
शिक्षा का अधिकार कानून बना रास्ते का रोड़ा
सरकार ने अप्रैल 2010 से शिक्षा का अधिकार लागू होने के बाद पहली से आठवीं तक निशुल्क शिक्षा लागू कर दी। जिसके बाद से बच्चों से फीस व फंड लिए जाने बंद कर दिए गए। पहले ये फंड दस से बीस रुपए तक लिए जाते थे। जिले के सभी स्कूलों से लगभग 9 लाख रुपए का चाइड वेलेफेयर फंड एकत्रित होता था। जिसे बाद में छोटे बच्चों के विकास के लिए चलाई जाने वाली गतिविधियों पर खर्च किया जाता था। लेकिन अब यह फंड केवल कक्षा नौंवी से 12 तक के छात्रों के कंधों पर ही सिमटकर रह गया है। पहली से आठवीं तक सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या अधिक होने के कारण इनसे ज्यादा फंड मिलता था। लेकिन नौवीं से 12वीं तक छात्रों की संख्या घट जाती है। नौवीं से 12वीं के छात्रों से प्रत्येक माह दो रुपए प्रति बच्चा लिया जाता है। जिस कारण यह फंड अब दो से तीन लाख रुपए तक सिमटकर रह गया है।
सरकारी स्कूलों की गतिविधियां भी प्रभावित
चाइल्ड वेलफेयर फंड बंद होने से बाल कल्याण परिषद के साथ-साथ सरकारी स्कूलों की गतिविधियां भी प्रभावित हुई हैं। बाल कल्याण परिषद में जहां इस फंड के माध्यम से घुमंतू जाति के बच्चों को पढ़ाई का खर्च उठाने व बच्चों के मानसिक विकास के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर खर्च किया जाता था। बच्चों से मिलने वाले इसी फंड से सरकारी स्कूलों में बच्चों के खेलकूद प्रतियोगिताएं, स्कूल की अन्य गतिविधियों पर खर्च होता था। लेकिन फंड बंद होने के कारण सरकारी स्कूलों की गतिविधियां भी प्रभावित हुई हैं।
गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने का किये जा रहे हैं प्रयास
पहले बाल भवन की गतिविधियां सरकारी स्कूलों से मिलने वाले चाइल्ड वेलफेयर फंड से चलाई जाती थी, जिसमें कुछ हिस्सा स्टेट हैड व कुछ उनके पास रहता था। सरकार ने पहली से आठवीं तक निशुल्क शिक्षा करने के बाद फंड समाप्त कर दिए हैं, जिससे खर्चों में दिक्कत आ रही है। बाल भवन की गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए जिला प्रशासन ने स्थायी व अस्थायी निजी स्कूलों के विद्यार्थियों से भी यह फंड लेने की योजना बनाई थी। लेकिन निजी स्कूल संचालक फंड देने के लिए तैयार नहीं हुए। बाल कल्याण परिषद के पास अब आय के ज्यादा स्त्रोत नहीं हैं, जिस कारण कुछ गतिविधियां प्रभावित हुई हैं, लेकिन फिर भी बाल कल्याण परिषद बच्चों की गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने का प्रयास कर रहा है।
सुरजीत कौर आजाद
जिला बाल कल्याण अधिकारी, जींद


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