मंगलवार, 24 जनवरी 2012

आगाज से पहले ही दम तोड़ गई योजना

सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण फाइलों में दफन है योजना
नरेंद्र कुंडू
जींद। रास्ट्रीय उपभोक्ता दिवस पर उपभोक्ताओं को अधिकारों के प्रति जागरूक करने वाले सरकारी अधिकारी स्वयं ही उपभोक्ताओं के हितों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए जिला स्तर पर बनाई जाने वाली उपभोक्ताओं सरंक्षण परिषद आज भी फाइलों से बाहर नहीं आ सकी है। सरकारी अधिकारी एनजीओज न मिलने का बहाना बनाकर हाथ खड़े कर रहे हैं। सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के कारण योजना आगाज से पहले ही दम तोड़ गई है। परिषद का गठन न होने के कारण दुकानदार उपभोक्ताओं के अधिकारों पर खुलेआम डाका डाल रहे हैं।  
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने व मिलावट खोरों पर शिकंजा कसने के लिए प्रदेश सरकार ने जिला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद का गठन करने की योजना तैयार की थी। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना तथा उपभोक्ताओं को सही मात्रा व शुद्ध सामान उपलब्ध करवाना ही परिषद का मुख्य उद्देश्य था। उपभोक्ताओं के हितों के साथ-साथ गैस एजेंसियों पर सिलेंडरों व बुकिंग को लेकर होने वाले झगड़ों को रोकने की जिम्मेदारी भी परिषद को सौंपी जानी थी।इसके लिए प्रदेश सरकार द्वारा नवंबर माह में सभी जिला उपायुक्तों को पत्र क्रमांक सीए-1-2011/26067 के माध्यम से जिला स्तर पर उपभोक्त संरक्षण परिषदों का गठन करने के निर्देश दिए गए थे। परिषद का गठन दो वर्ष के लिए किया जाना था, जिसमें कुल 30 सदस्य नियुक्त करने थे, इनमें 14 सरकारी तथा 16 गैर सरकारी सदस्यों को शामिल किया जाना था। परिषद का अध्यक्ष उपायुक्त तथा उपाध्यक्ष अतिरिक्त उपायुक्त को नियुक्त किया जाना था। इसके अलावा जिला परिषद, नगर परिषद के अध्यक्ष सहित सरकारी विभगों से 14 कर्मचारियों, 10 सदस्य पंजीकृत सामाजिक संगठनों से नियुक्त करने तथा 2 महिला प्रतिनिधि, 2 युवा व 2 सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना था। परिषद का मुख्य उद्देश्य बाजार में मिलने वाले सामान के मूल्य, गुणवत्ता व मात्रा की जांच कर उपभोक्ताओं को सही सामान उपलब्ध करवाने के साथ-साथ उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान करना तथा शिकायतों की जांच करना और उन पर कार्रवाई करना भी था। लेकिन योजना को सिरे चढ़ाने के लिए सरकारी अधिकारियों ने किसी प्रकार की कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अधिकारियों की लापरवाही व एनजीओज न मिलने के कारण योजना आज तक फाइलों से बाहर नहीं आ सकी है।
क्या थी योजना
उपभोक्ताओं के हितो की रक्षा तथा उप•ाोक्ता को सही मात्रा तथा शुद्ध सामान उपलब्ध करवाने के लिए सरकार ने जिला स्तर पर उपभोक्ता सरंक्षण परिषद गठन करने का निर्णय लिया था। परिषद में कुल 30 सदस्य नियुक्त करने थे, जिनमें 14 सरकारी तथा 16 गैर सरकारी सदस्यों को शामिल किया जाना था। परिषद का गठन दो वर्ष की अवधि के लिए किया जाना था। परिषद के गठन का उद्देश्य उपभोक्ताओं की समस्याओं का निवारण तथा शिकायतों की जांच करना और उन पर कार्रवाई करना था। इसके लिए प्रदेश सरकार द्वारा सभी जिला उपायुक्तों को पत्र के माध्यम से परिषद का गठन करने के निर्देश दिए गए थे। समय-समय पर परिषद के प्रतिनिधियों को दिशा-निर्देश देने के लिए वर्ष में दो बार परिषद की बैठक होनी निश्चित थी।
क्या कहती हैं डीएफएससी
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए जिला स्तर पर पहली बार उपभोक्ता संरक्षण परिषद का गठन किया जाना था। परिषद के लिए 30 सदस्य नियुक्त किए जाने था, जिनमें कुछ एनजीओज को भी शामिल करना था। लेकिन एनजीओज की कमी के कारण अभी तक परिषद का गठन नहीं हो पाया है। एनजीओज द्वारा परिषद के सदस्य बनने के लिए तैयार होने के बाद ही परिषद का गठन हो सकेगा।
अनिता खर्ब
जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक, जींद

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