गुरुजियों के ये कैसे आदर्श

नरेंद्र कुंडू
जींद।
उत्तर भारत ने कोहरे और बर्फ की चादर ओढ़ ली है। पहाड़ी इलाकों से आने वाली गलन भरी हवाओं ने लोगों को घरों के अंदर कैद कर दिया है। लोग पिछले कई दिनों से ठंड के तीखे तेवर झेल रहे हैं। ठंड के साथ-साथ कोहरा भी कोहराम मचा रहा है। लेकिन उधर स्कूलों में बचपन ठंड में ठिठुर रहा है और शिक्षा विभाग मौन धारण किए हुए है। स्कूलों में अध्यापक खुद पर तो जमकर रहम कर रहे हैं, जबकि विद्यार्थियों पर सितम ढाह रहे हैं। कड़ाके की ठंड में विद्यार्थियों पर शॉल, स्कार्फ व मफलर पहनने पर बैन लगाया जा रहा है, जबकि अध्यापक खुद शॉल, चदरों, मफलरों में लिपटकर स्कूल में पहुंचते हैं। स्कूलों में चदर व मफलर ओढ़कर न आने के नियम सिर्फ बच्चों के लिए बनाए गए हैं। अध्यापकों के लिए इस तरह का कोई नियम नहीं बनया गया है।
 छात्राओं के पीछे शॉल ओढ़कर स्कूल आती अध्यापिका।

ठंड में ठिठुरती स्कूली छात्राएं।
हर रोज ठंड शबाब पर पहुंच रही है। दिनों दिन कोहरे व ठंड का कहर बढ़ रहा है। जनजीवन पूरी तरह से अस्तव्यस्त है। लोग बेहाल हैं और घर से निकलते ही लोगों की कंपकपी बंध रही है। इस सर्दी से बचने के लिए लोग गर्म कपड़ों व अलाव का सहारा भी ले रहे हैं। तापमान लुढ़क कर 3 डिग्री तक पहुंच गया है। अब दिन में भी ठंड का असर दिखाई दे रहा है। लेकिन इस हाड़ कंपकंपाने वाली सर्दी में बच्चे ठिठुरते स्कूलों में पहुंच रह हैं। कहते हैं कि विद्यार्थी जीवन में अध्यापक का दर्जा गुरु से भी बड़ा होता जाता है। क्योंकि अध्यापक विद्यार्थी को भगवान से मिलने का रास्ता दिखाता है। अध्यापक विद्यार्थियों के सामने अपने आप को आदर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं। लेकिन यहां पर तो अध्यापक अपने लिए अलग नियम बनाकर विद्यार्थियों को अलग ही शिक्षा दे रहे हैं। स्कूल प्रबंधन द्वारा स्कूलों में बच्चों को शॉल, चदर, मफलर व स्कार्फ पहने पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। जिससे बच्चे जुकाम, खांसी व अन्य बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं और उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है। सरकारी स्कूलों में शॉल व चदर ओढ़ने पर बैन सिर्फ बच्चों पर ही लगाया गया है। इस तरह का बैन अध्यापकों पर नहीं लगाया गया है। अध्यापक खुद शॉल व चदरों में लिपट कर स्कूल में पहुंच रहे हैं। छात्रा नेहा, रेखा, संतोष, सोनिया, अनिता, ममता, रेनू, सुमन, ने बताया कि स्कूल में शॉल, मफलर या स्कार्फ पहनने पर प्रतिबंध लगया गया है। अगर वे शॉल या स्कार्फ पहनकर स्कूल में आती हैं तो अध्यापक उनकी पिटाई करते हैं। जिस कारण उन्हें मजबूरन बिना शॉल या स्काप में आना पड़ता है और पूरा दिन ठंड में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है। छात्राओं ने बताया कि अध्यापक उन्हें तो बिना चदर या स्कार्फ के स्कूल में आने को मजबूर करते हैं, लेकिन अध्यापक स्वयं स्कूल में चदर व मफलर ओढ़कर आते हैं।
क्या है पेरेंट्स की राय
ठंड में सुबह-सुबह छोटे बच्चों को स्कूल जाने से बीमार होने की आशंका बनी रहती है। ठंड को देखते हुए शिक्षा विभाग द्वारा छोटे बच्चों की छुट्टियां कर देनी चाहिए। इसके अलावा बड़े बच्चों पर स्कूल में शॉल, चदर या मफलर इत्यादि पहन कर आने पर पाबंदी नहीं लगानी चाहिए। अगर स्कूल में बच्चों पर चदर, शॉल या मफलर पहनने पर पाबंदी लगा दी जाएगी तो ठंड के कारण बच्चे बीमारी की चपेट में आ जाएंगे, जिससे बच्चों को शारीरिक परेशानी तो होगी ही, साथ-साथ उनकी पढ़ाई भी बाधित होगी। ठंड के मौसम के देखते हुए स्कूल में शॉल, चदर या मफलर पर पाबंदी लगाना सरासर गलत है।


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