गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

पंचायतों में गड़बड़झाला

नरेंद्र कुंडू
जींद।
प्रदेश में ग्राम पंचायतें नियमों व कायदों पर खरी नहीं उतर रही हैं। पंचायत को अपने कार्यकाल के दौरान कम से कम तीन बार ग्राम सभा की बैठक अवश्य करनी होती है और इसकी विडियोग्राफी करवाकर इसकी रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजनी होती है, लेकिन प्रदेश की ग्राम पंचायतें इसकी जहमत नहीं उठाती हैं। सरपंच ग्राम सभा के नाम पर खानापूर्ति कर उच्च अधिकारियों के सामने झूठी रिपोर्ट पेश कर देते हैं। सरपंचों के इस भ्रष्टाचार में उच्च अधिकारियों भी संलिप्त होते हैं। सरकारी अधिकारी भी चुपचाप अपना कमिशन ऐंठकर बिना किसी जांच पड़ताल के सरपंचों के प्रस्ताव पर अपनी मोहर लगा देते हैं। अधिकारियों व सरपंचों की लापरवाही के कारण ग्राम पंचायतें आज भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा बनी हुई हैं।
कहने को तो गांवों में पंचायती राज लागू है। सरकार पंचायती राज के आंकड़े गिनाते-गिनाते नहीं थकती। लेकिन अधिकारी अपने निजी स्वार्थ के चक्कर में सरकार की सारी योजनाओं को पलिता लगा रहे हैं। कानून के मुताबिक पंचायत के पांच साल के कार्यकाल में तीन ग्राम सभा की बैठकें होनी अनिवार्य हैं और इन ग्राम सभा की वीडियोग्राफी करवा उच्च अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट भेजनी भी  जरूरी है। इसके अलावा जिला प्लान के तहत गांव के विकास के लिए ग्रांट पास करने से पहले ग्राम सभा में उसका प्रस्ताव पास होना भी अनिवार्य है। अगर ग्राम सभा में प्रस्ताव पास न हो तो उस गांव को ग्रांट नहीं दी जा सकती। लेकिन सरपंच अपने कुछ भ्रष्ट साथियों के साथ मिलकर ग्राम सभा के नाम पर खानापूर्ति कर देते हैं। दूसरी तरफ  अगर कोई प्रधान ईमानदारी से काम करना चाहे तो उसे इलाके के बीडीपीओ, एसडीओ व सीडीपीओ काम नहीं करने देते। गांव के फंड पर इन लोगों का शिकंजा इतना खतरनाक है कि वे चाहें तो गांव की ओर एक पैसा न जाने दें। सरपंच अगर इनके साथ मिलकर बेईमानी करे तो सब कुछ आसान है और अगर ईमानदारी से काम कराना चाहे तो ये उसकी फाइल आगे न बढ़ाएं। इसीलिए ईमानदार से ईमानदार सरपंच भी अपने गांव के फंड को इन अफसरों के चंगुल से नहीं छुटा सकता। ऐसा नहीं है कि देश में ईमानदार लोग सरपंच नहीं चुने जाते हैं। लेकिन देश भर के अनुभवों से यह देखा गया है कि सिर्फ  वही ईमानदार सरपंच इन अफसरों की मनमानी पर अंकुश लगा पाए हैं, जो वास्तव में अपने सारे फैसले ग्राम सभा में लेते हैं। हालांकि ऐसे प्रधानों की संख्या बेहद सीमित है, लेकिन इनके उदाहरण यह समझने के लिए पर्याप्त हैं कि पंचायती राज को सफल बनाने के लिए उसमें ग्राम सभाओं को किस तरह की कानूनी ताकत चाहिए।
एचआईआरडी की होती है जिम्मेदारी
सरपंच एसोसिएशन के प्रधान सुनील जागलान ने बताया कि प्रदेश की 6700 पंचायतों में से अधिकतर पंचायतों को तो नियमों की जानकारी ही नहीं होती। इसलिए वे ग्राम सभा के नाम पर खानापूर्ति करते हैं और फिर सरकारी अधिकारियों के चुंगल में उलझ जाते हैं। पंचायतों को ग्राम सभा की पूरी जानकारी देने की जिम्मेदारी एचआईआरडी की होती है। एचआईआरडी के अधिकारियों को पंचायत के गठन के बाद पंचायत को ग्राम सभा का पूरा डेमो सिखाना होता है। लेकिन एचआईआरडी के अधिकारी इस तरह की कोई कार्रवाई अमल में नहीं लेते हैं।
क्या है नियम
एक पंचायत के पांच साल के कार्यालय काल में तीन बार ग्राम सभा होनी जरूरी हैं। ग्राम सभा में गांव के कुल वोटरों में से 10 प्रतिशत वोटर बैठक में होने अनिवार्य हैं। बैठक का एजेंडा सचिव द्वारा तय किया जाएगा और बैठक से एक सप्ताह पहले ग्राम सभा के सभी लोगों के बीच इसे वितरित किया जाएगा। ग्राम सभा के सदस्य यदि किसी मुद्दे को एजेंडे में डलवाना चाहें तो बैठक से पहले लिखित या मौखिक तौर पर सचिव को दे सकता है। ग्राम सभा में जो प्रस्ताव पास होता है, उस प्रस्ताव पर बैठक में मौजूद सभी सदस्यों के हस्ताक्षर होने भी जरूरी होते हैं। इसके अलावा ग्राम सभा करने से पहले उच्च अधिकारियों को सूचित करना भी जरूरी है। ग्राम सभा की वीडियोग्राफी करवा बीडीपीओ, डीडीपीओ, एडीसी, डीसी व डायरेक्टर पंचायती राज को देनी होती है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें