सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

नौकरी के साथ-साथ जिंदगी भी खतरे में

अधिकारियों द्वारा सेंक्शन खत्म होने के बाद भी दबाव बना कर लिया जाता है काम
नरेंद्र कुंडू
जींद।
बिजली निगम में डीसी रेट पर कार्यरत एएलएम इन दिनों अनाथ हो गए हैं। प्रदेशभर में कार्यरत लगभग 6 हजार एएलएम की सेंक्शन एक फरवरी से खत्म हो गई है और बिजली निगम मुख्यालय द्वारा अब तक कोई नई सेंक्शन नहीं भेजी गई है। सेंक्शन खत्म होने के बाद भी बिजली निगम डीसी रेट के कर्मचारियों से पहले की तरह काम ले रहा है। नौकरी खोने के भय से ये कर्मचारी दबाव में काम करने के लिए मजबूर हैं। यदि इस दौरान डीसी रेट के किसी कर्मचारी के साथ कोई हादसा हो जाता है तो उसका जिम्मेदार तो भगवान ही होगा, क्योंकि निगम को इस हादसे से पल्ला झाड़ने में कोई परेशानी नहीं होगी।
हरियाणा बिजली वितरण निगम ने कर्मचारियों की तंगी से राहत पाने के लिए 2008 में 6 हजार असिस्टेंट लाइनमैन (एएलएम)6 माह के लिए डीसी रेट पर भर्ती किए थे। 2008 के बाद बिजली निगम मुख्यालय द्वारा हर 6 माह बाद डीसी रेट के कर्मचारियों के लिए नई सेंक्शन तैयार की जाती थी। मुख्यालय से नई सेंक्शन मिलने के बाद इन कर्मचारियों को दोबारा से काम सौंपा जाता था। लेकिन इस बार बिजली निगम द्वारा इस तरह की कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है। बिजली निगम मुख्यालय द्वारा डीसी रेट के कर्मचारियों के लिए भेजी गई 6 माह की सेंक्शन एक फरवरी को समाप्त हो चुकी है, लेकिन अब तक बिजली निगम मुख्यालय की ओर से कर्मचारियों के लिए कोई नई सेंक्शन नहीं भेजी गई है। मुख्यालय से नई सेंक्शन न मिलने के कारण डीसी रेट के कर्मचारी अनाथ हो गए हैं। बिजली निगम के अधिकारी सेंक्शन खत्म होने के बाद भी इन कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का दबाव बनाकर काम ले रहे हैं। बेरोजगारी के इस दौर में अपनी नौकरी बचाने के चक्कर में ये कर्मचारी मुफ्त में काम करने को मजबूर हैं। खुदा ना खास्ता अगर इस दौरान इनके साथ किसी प्रकार का हादसा हो जाता है तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी। क्योंकि बिजली निगम को तो इस हादसे से पल्ला झाड़ने में किसी प्रकार की कोई परेशानी नही होगी। निगम के अधिकारी तो सेंक्शन खत्म होने का बहाना बनाकर हादसे का ठिकरा उल्टा कर्मचारी के सिर पर ही फोड़ देंगे। अब तो नई सेंक्शन आने तक इन कर्मचारियों की सुरक्षा का जिम्मा भगवान भरोसे ही है। 
क्या है नियम
बिजली निगम ने कर्मचारियों की कमी को दूर करने के लिए 2008 में डीसी रेट पर नए कर्मचारी भर्त्ती करने की योजना बनाई थी। योजना पर अमल करते हुए निगम ने 6 माह के लिए डीसी रेट पर 6 हजार कर्मचारी भर्त्ती किए थे। निगम ने इस भर्त्ती के लिए जो नियम बनाए थे, उनके मुताबित इन कर्मचारियों को सिर्फ 6 माह के लिए भर्त्ती किया गया था। इसके बाद अगर निगम इन कर्मचारियों को काम पर रखना चाहती है तो निगम को उसके लिए दोबारा से नई सेंक्शन तैयार करनी होगी। डीसी रेट पर काम कर रहे कर्मचारियों की सेंक्शन एक फरवरी को खत्म हो चुकी, लेकिन बिजली निगम मुख्यालय द्वारा अब तक डीसी रेट के कर्मचारियों के लिए कोई नई सेंक्शन नहीं भेजी गई है। सेंक्शन खत्म होने के बावजूद भी निगम के अधिकारियों द्वारा डीसी रेट के कर्मचारियों पर दबाव बनाकर काम लिया जा रहा है। 
कौन होगा इनका जिम्मेदारी
पिछले तीन सालों में डीसी रेट पर कार्यरत 93 कर्मचारी काम के दौरान हादसों का शिकार होकर अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं। ड्यूटी पर जान गंवाने वाले इन कर्मचारियों के परिजनों को निगम या सरकार की ओर से किसी प्रकार का मुआवजा नहीं दिया गया है। काम के दौरान इन कर्मचारियों को निगम द्वारा कोई टूल किट भी नहीं दी जाती, जिस कारण हादसे की आशंका ओर भी ज्यादा बढ़ जाती है। इस दौरान अगर निगम मुख्यालय से नई सेंक्शन आने से पहले डीसी रेट के कर्मचारी के साथ कोई हादसा हो जाता है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें