शनिवार, 3 मार्च 2012

निजी अस्पतालों में लुट रहे मरीज


सामान्य अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड कक्ष के बाहर लटकता ताला।
सामान्य अस्पताल में कई माह से बंद पड़ी है अल्ट्रासाऊंड मशीन
नरेंद्र कुंडू
जींद।
सामान्य अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड मशीन व मरीजों को डॉ. का इंतजार है। अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट का पद खाली होने के कारण लाखों रुपए की अल्ट्रासाऊंड मशीन पिछले लगभग 6 माह से धूल फांक रही है। अल्ट्रासाऊंड मशीन बंद होने के कारण मरीज निजी अस्पतालों में लुटने को मजबूर हैं। इसमें सबसे ज्यादा परेशानी तो बीपीएल परिवारों व गर्भवती महिलाओं को हो रही है। सरकारी अस्पतालों में लचर स्वास्थ्य सेवाओं और विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण निजी अस्पताल संचालकों की पौ-बारह हो रही है।
शहर के सामान्य अस्पताल में मरीजों को अल्ट्रासाऊंड की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए जिला रेडक्रॉस सोसाइटी द्वारा 2003 में ब्लैक एंड व्हाइट मशीन रखी गई थी। रेडक्रॉस द्वारा अस्पताल में अल्ट्रासऊंड के लिए आने वाले मरीजों से जो फीस ली जाती थी, उसका कुछ हिस्सा सोसाइटी अस्पताल प्रबंधन को देती थी। अस्पताल में सामान्य चार्ज पर अल्ट्रासाऊंड की सुविधा मिलने के कारण सोसाइटी को मरीजों का अच्छा रिस्पांश मिल रहा था। जिसके चलते सोसाइटी ने 2007 में अस्पताल में क्लर ओपलर मशीन उपलब्ध करवा दी। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग द्वारा 2011 में अस्पताल को नई अल्ट्रासाऊंड मशीन उपलब्ध करवा दी गई और अस्पताल प्रशासन ने रेडक्रॉस सोसाइटी की मशीन को यहां से नरवाना शिफ्ट कर दिया। जब तक यहां अल्ट्रासाऊंड की जिम्मेदारी रेडक्रॉस सोसाइटी ने संभाली तब तक तो सब कुछ ठीक ठाक चला, लेकिन अल्ट्रासाऊंड का कामकाज अस्पताल प्रबंधन के हाथों में आते ही यह सुविधा दम तोड़ती चली गई। स्वास्थ्य विभाग द्वारा अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड मशीन भेजे जाने के बाद अस्पताल प्रबंधन ने सप्ताह के तीन दिन की ड्यूटी नरवाना के डा. राजेश गुप्ता को और सप्ताह के तीन दिन की ड्यूटी अस्पताल की डा. मंजुला को सौंपी। बाद में डा. राजेश गुप्ता प्रमोट होकर कैथल चले गए और डा. मंजुला ने भी कामकाज के बढ़ते दबाव के कारण यहां से अपनी सेवाएं बंद कर दी। अब लगभग 6 माह से अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड सुविधा ठप पड़ी है। 6 माह से मशीन बंद होने के कारण लाखों रुपए की मशीन जंग खा रही है।
प्राइवेट अस्पतालों में लुट रहे हैं मरीज
सामान्य अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड की फीस 120 रुपए निर्धारित की गई है। अस्पताल में फीस कम होने के कारण यहां हर रोज लगभग 60 से 70 मरीज अल्ट्रासाऊंड के लिए आते थे। लेकिन अस्पताल में यह सुविधा बंद होने के कारण मरीजों को मजबूरन प्राइवेट अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड के लिए 500 से 600 रुपए खर्च करने पड़ रहे है। अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के कारण प्राइवेट अस्पताल संचालक जमकर चांदी कूट रहे हैं।
निजी अस्पताल संचालकों से हो सकती है सांठगांठ
जब से अल्ट्रासाऊंड का कार्यभार रेडक्रॉस सोसाइटी के पास से अस्पताल प्रबंधन के हाथों में आया है, उस वक्त से अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड की सुविधा ठप  होती चली गई है। इस प्रकार अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड की दम तोड़ी सुविधा अस्पताल प्रबंधन के निजी अस्पताल संचालकों के साथ सांठगांठ होने के संकेत पैदा कर रही है। सूत्रों की मानें तो निजी अस्पतालों के साथ सांठगाठ के कारण ही जानबुझ कर अस्पताल में अल्ट्रासाऊंड की सुविधा बंद कर दी गई है।
नरवाना में भी धूल फांक रही मशीन
सामान्य अस्पताल नरवाना में भी यही स्थिति है। लग•ाग 6 लाख रुपए की अल्ट्रासाऊंड मशीन होने के बावजूद भी यहां के मरीजों को इधर-उधर धक्के खाने पड़ रहे हैं। पिछले कई माह से यह मशीन क्षेत्र के लिए सफेद हाथी साबित हो रही है। अल्ट्रासाउंड का डाक्टर नहीं होने के कारण मशीन से किसी भी मरीज का अल्ट्रासाउंड नही किया जा रहा। बीमारी का निदान करवाने वाले मरीजों को अल्ट्रासाऊंड करवाने के लिए प्राइवेट अस्पतालों में जाना पड़ रहा है।
बीच में डा. मंजुला की तबीयत ज्यादा खराब होने के कारण वे छुट्टी पर चली गई थी, जिस कारण मशीन को बंद करना पड़ा था। अब डा. मंजुला प्रमोट होकर डिप्टी सीएमओ बन गई हैं। जिस कारण अब वे यहां अपनी सेवाएं नहीं दे पा रही हैं। अस्पताल में चिकित्सकों की भारी कमी है। रेडियोलॉजिस्ट का पद भी खाली पड़ा है। जिस कारण अस्पताल मं मजबूरन अल्ट्रासाऊंड की सुविधा को बंद किया गया है।
डा. धनकुमार
सिविल सर्जन, जींद

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