सोमवार, 5 मार्च 2012

भविष्य के कर्णधारों ने चुनी किताबें

नरेंद्र कुंडू
जींद।
जिले के सरकारी स्कूलों की लाइब्रेरियां अब अध्यापकों की मर्जी से नहीं, बल्कि विद्यार्थियों की मर्जी से सजेंगी। सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) द्वारा जींद में आयोजित दो दिवसीय पुस्तक मेले में जिले से 207 स्कूलों से 1035 विद्यार्थियों ने भाग लिया। स्टेट प्रोजेक्ट डायरेक्टर (एसपीडी) ने जिस उम्मीद से इस बार पुस्तकों के चयन की कमान शिक्षकों के हाथ से छीनकर देश के इन भावी कर्णधारों के हाथों में सौंपी थी, तो इन कर्णधारों ने भी एसपीडी की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए अपनी सुझबुझ का परिचय दिया। एसपीडी द्वारा उठाए गए इस कदम से जहां इस बार बच्चे अपनी मनपसंद की पुस्तकें खरीद सके, वहीं पुस्तक पब्लिसरों व अध्यापकों के बीच होने वाली सांठगांठ पर भी अंकुश लगा। इस बार पुस्तक मेले में एसएसए द्वारा अध्यापकों व अभिवकों के प्रवेश पर पूरी तरह से बैन लगाया गया था। इस दौरान पुस्तक मेले से प्रत्येक हाई स्कूल की लाइब्रेरी के लिए 150 से 200 व सीनियर सेकेंडरी स्कूल की लाइब्रेरी के लिए 200 से 250 पुस्तकें खरीदी गई।
क्या थे पुस्तक मेले के नियम
इस बार पुस्तक मेले में पुस्तकों के चयन की जिम्मेदारी अध्यापकों की जगह विद्यार्थियों को सौंपी गई थी। जिसके तहत प्रत्येक हाई स्कूल से 4, सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 6 विद्यार्थी मेले में भाग ले सकते थे। इसके अलावा को-एजुकेशन स्कूलों में प्रत्येक सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 3 लड़के व 3 लड़कियां तथा हाई स्कूल से 2 लड़के व 2 लड़कियां भाग ले सकती थी। सीनियर सेकेंडरी स्कूल के बच्चे सभी स्टालों से 29 हजार व हाई स्कूल के विद्यार्थी 24 हजार तक की पुस्तकों की खरीदारी कर सकते थे। विद्यार्थी एक स्टाल से एक हजार रुपए तक की खरीदारी कर सकते थे। पुस्तक मेले में पुस्तकों का चयन विद्यार्थियों को स्वयं करना था। पुस्तक मेले में विद्यार्थियों के अलावा अध्यापकों व अभिभावकों को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी।
अंग्रेजी से भाग हुआ विद्यार्थियों का मोह  
पुस्तक मेले में अलग-अलग पुस्तक पब्लिसरों द्वारा कुल 46 स्टाल लगाए गए थे। पुस्तकों के चयन को लेकर विद्यार्थियों में काफी उत्साह था। सभी स्टालों पर विद्यार्थियों की खासी भीड़ नजर आ रही थी। इन सभी स्टालों से विद्यार्थियों ने मनोरंजक, ज्ञान वर्धक, संस्कृतिक, विज्ञान, देशभक्ति, कहानियों की किताबों की जमकर खरीदारी की। लेकिन अंग्रेजी की पुस्तकों की खरीदारी नामात्र ही हो पाई। मेले में अंग्रेजी पुस्तकें विद्यार्थियों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाई। पुस्तक मेले में अंग्रेजी की पुस्तकों की ज्यादा खरीदारी न होना सीधे इस बात की ओर इशारा करता है कि सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों का मोह अंग्रेजी से कम हो रहा है। 
मिलीभगत पर लगी रोक
पुस्तक मेले में पहले पुस्तकों के चयन की जिम्मेदारी अध्यापकों को सौंपी जाती थी। जिस कारण अध्यापक पब्लिसरों के साथ सांठगांठ कर लेते थे और पब्लिसरों से उनके स्टाल से अधिक पुस्तकों के आडर देने की एवज में मोटा कमीशन ऐठते थे। पब्लिसरों व अध्यापकों की मिलभगत के कारण विद्यार्थियों को अच्छी व ज्ञानवर्धक पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो पाती थी। पब्लिसरों व अध्यापकों की इस सांठगांठ पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से इस बार एसपीडी ने पुस्तकों के चयन की जिम्मेदारी अध्यापकों के हाथों से छीनकर विद्यार्थियों को सौंप दी। इस प्रकार एसपीडी द्वारा उठाए गए इस कदम से विद्यार्थियों को जहां अपनी मनपसंद पुस्तकों के चयन की आजादी मिली, वहीं पब्लिसरों व अध्यापकों की इस मिलभगत पर भी रोक लगी। एसएसए ने भी एसपीडी के आदेशों का सख्ताई से पालन किया और पुस्तक मेले में अध्यापकों व अभिभावकों को जाने पर पाबंदी लगा दी।
गड़बड़ाई कंप्यूटर व्यवस्था
पुस्तक मेले में विद्यार्थियों द्वारा जिन पुस्तकों का चयन किया जा रहा था, उस आर्डर को एसएसए द्वारा साथ की साथ कंप्यूटरों में फीड करवा उसका डाटा तैयार करना था। सबसे पहले ब्लॉक वाइज व फिर जिला स्तर पर डाटा तैयार किया जाना था। डाटा फीड के लिए एसएसए द्वारा 15 कंप्यूटर आप्रेटर लगाए गए थे। लेकिन लैब की व्यवस्था सही न होने व लैब में समय पर लाइट का प्रबंध न होने के कारण एसएसए की कंप्यूटर व्यवस्था जवाब दे गई। जिस कारण पुस्तकों के आर्डर की डाटा फीडिंग का काम साथ-साथ नहीं हो पाया और कंप्यूटर आप्रेटरों को रविवार को भी  डाटा फीडिंग का काम जारी रखना पड़ा।


इस बार पुस्तकों के चयन की जिम्मेदारी अध्यापकों की जगह विद्यार्थियों को सौंपी गई थी। इसलिए इस बार पुस्तक मेले में विद्यार्थियों के अलावा अध्यापकों व अभिभावकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया था। एसएसए द्वारा विद्यार्थियों के लिए खाने-पीने की सभी सुविधाएं मुहैया करवाई गई थी।
सेवा सिंह बेनीवाल, डिप्टी सुपरीडेंट
एसएसए, जींद

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