शनिवार, 10 मार्च 2012

मायके में भी कीट प्रबंधन की अलख जगाएंगी निडाना की महिलाएं

धान व कपास के सीजन से शुरू करेंगी अभियान
नरेंद्र कुंडू
जींद।
जब बेटी ब्याह कर घर से बिदा होती है तो मायके वाले उसे सास-ससुर की सेवा करने तथा ससुराल में अपने मायके की साख बनाए रखने की सीख देते हैं, लेकिन अब निडाना महिला किसान खेत पाठशाला की महिलाएं अपने पिहरियों को कीट प्रबंधन की सीख देंगी। कीट प्रबंधन में दक्ष ये महिलाएं अपने मायके में जाकर कीटनाशक रहित खेती की अलख जगाएंगी, ताकि हमारी थाली में बढ़ते इस जहर को कम किया जा सके। धान व कपास के सीजन से ये महिलाएं हर सप्ताह इकट्ठी होकर क्रमवार अपने-अपने मायके में कीट प्रबंधन पाठशाला चलाएंगी। मायके में लगने वाली इस पाठशाला का सारा खर्च मायके वाले उठाएंगे।
कीट प्रबंधन में माहरत हासिल करने के बाद निडाना महिला किसान खेत पाठशाला की महिलाओं ने थाली में बढ़ते जहर को कम करने का बीड़ा उठाया है। अब जल्द ही ये महिलाएं टीचर की भूमिका में नजर आएंगी। चूल्हे-चौके के साथ-साथ ये महिलाएं अब किसानों को कीट प्रबंधन के गुर सीखाएंगी। इस अभियान की शुरुआत ये अपने अपने मायके से करेंगी। डॉ. सुरेन्द्र दलाल ने बताया की इस अभियान को सफल बनाने के लिए इन महिलाओं ने एक समूह बनाया है। इस समूह में कीट प्रबंधन में दक्ष महिलाओं को शामिल किया है। समूह में शामिल सभी महिलाएं क्रमवार अपने-अपने मायके में जाकर वहां के किसानों को कीट प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानकारी देंगी और किसानों को फसल में पाए जाने वाले शाकाहारी व मासाहारी कीटों की पहचान करवाएंगी। अब तक ये महिला किसान फसलों में पाए जाने वाले 77 प्रकार के शाकाहारी व मासाहारी कीटों की पहचान कर फसल पर होने वाले इनके सकारात्मक व नकारात्मक परिणामों के बारे में खोज कर चुकी हैं। इन महिलाओं ने गेहूं व सरसों की फसल में पाए जाने वाली लेडीबिटल, सरफड मक्खी, गिदड़ बुगड़ा के अलावा दो ऐसी संभीरका की खोज की है, जो अल के पेट में अपने बच्चे पलवाती हैं ओर इस प्रकार दूसरे कीट के बच्चों के पालन-पोषण के चक्कर में फसल को हानि पहुंचाने वाला अल अपनी ही जान से हाथ धो बैठता है। इस मुहिम के पीछे इन महिला किसानों का उद्देश्य मित्र कीटों की पहचान कर कीटनाशक रहित खेती को बढ़ावा देना है। ताकि कीटनाशकों के प्रयोग से इंसान के शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को रोक कर इंसान को एक स्वस्थ जीवन प्रदान किया जा सके और यह तभी संभव हो सकता है, जब सभी किसान कीट प्रबंधन के प्रति जागरुक होकर फसल में कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर दें। अपने इस अभियान की शुरुआत ये महिलाएं धान व कपास के अगले सीजन यानि जून व जुलाई से करेंगी। मायके में लगने वाली इस पाठशाला का सारा खर्च उनके मायके वाले उठाएंगे। इस अभियान की शुरुआत से पहले ये मास्टर ट्रेनर महिलाएं निडाना के आस-पास के गांवों की महिलाओं को जागरुक करेंगी। निडाना के पास स्थित ललितखेड़ा की महिलाओं को जागरुक करने की जिम्मेदारी संतोष, सविता, शीला व अनारो को दी गई है तथा निडानी गांव की महिलाओं को जागरुक करने की जिम्मेदारी हरदेई व संतोष को दी गई है।
दूसरे प्रदेशों के भ्रमण के दौरान लिया संकल्प
अपने मायके में कीट प्रबंधन की अलख जगाने का संकल्प इन महिलाओं ने उस समय लिया जब ये महिलाएं कृषि विभाग द्वारा भेजे गए 5 दिवसीय टूर से वापिस आ रही थी। टूर से लौटते वक्त ये महिलाएं जब यमुनानगर से कुरुक्षेत्र की तरफ लौट रही थी तो रास्ते में कुरुक्षेत्र के पास स्थित रतनगढ़ गांव के पास स्थित एक होटल पर खाना खाने के लिए रुकी, वहां पर इन महिलाओं ने देखा की कुछ किसान अपने खेत में ट्रेक्टर चालित पंप से गेहूं की फसल में कीटनाशक दवाइयों का स्प्रे कर रहे थे। किसानों ने जब इन्हें गेहूं की फसल में मौजूद अल के बारे में बताया तो इन महिलाओं ने उन किसानों को अल का उपचार बिना कीटनाशक का प्रयोग किए कीट प्रबंधन में बताया। यहीं से इन महिलाओं ने अपने मायके में भी कीट प्रबंधन की अलख जगाने का निर्णय लिया। 


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