शुक्रवार, 30 मार्च 2012

यहां सरकारी बाबू ही तय करते हैं नियम.....

परिचालक लाइसेंस के लिए आवेदन करने वालों से जमा करवाए जाते हैं मूल प्रमाण पत्र

नरेंद्र कुंडू
जींद।
सरकारी कार्यालयों में कायदे-कानून तोड़ना तो अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए स्टेट्स सिम्बल हो गया है। आम आदमी भले ही कायदे-कानूनों को तोड़ने से हिचकिचा जाए, लेकिन सरकारी बाबू इसकी कतई परवाह नहीं करते हैं। फिलहाल इसकी बानगी एसडीएम कार्यालय में देखने को मिल रही है। यहां कर्मचारियों द्वारा परिचालक लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले आवेदकों से फर्स्ट एड के मूल प्रमाण पत्र जमा करवाए जा रहे हैं, जबकि नियम के अनुसार इसके लिए फोटो कॉपी ही तय की गई है। एसडीएम कार्यालय में फर्स्ट एड के मूल प्रमाण पत्र जमा होने के कारण युवा सही रूप में इसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं, जिससे उनका फर्स्ट एड के लेक्चरार बनने के सपने पर भी ग्रहण लग गया है।   
एक तरफ तो सरकारी बाबुओं का रौब, दूसरी तरफ कामकाज की लंबी प्रक्रिया खुद-बे-खुद ही कामकाज के लिए सरकारी कार्यालय में आने वाले लोगों को तोड़ देती है। यहां के सरकारी कार्यालयों में तो कर्मचारियों पर •ोड चाल की नीति लागू होती है। एक बार जो प्रक्रिया शुरू कर दी जाए बस फिर तो वह प्रक्रिया नियम ही बन जाती है। इसी तरह का नजारा यहां के एसडीएम कार्यालय में हर रोज देखने को मिलता है। एसडीमए कार्यालय में परिचालक लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले आवेदकों से फर्स्ट एड के मूल प्रमाण पत्र ही जमा करवाए जा रहे हैं। इन युवाओं के लिए यह प्रमाण पत्र केवल परिचालक लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया का ही अंग बनकर रह गए हैं। इसके अलावा यह प्रमाण पत्र इनके किसी काम में प्रयोग नहीं हो पा रहे हैं। प्रकार युवाओं के फर्स्ट एड का लेक्चरार बनने के सपने पर तो ग्रहण ही लग रहा है। जबकि प्रदेश के अन्य जिलों में ऐसे नियम नहीं हैं। दूसरे जिलों में परिचालक लाइसेंस बनवाते समय आवेदकों से फर्स्ट एड के मूल प्रमाण पत्रों की जगह फोटो कॉपी ही जमा करवाई जा रही हैं। कहीं भी ऐसा नियम नहीं है कि किसी प्रकार का लाइसेंस या अन्य कागजात तैयार करवाते समय आवेदक से मूल प्रमाण पत्र जमा करवाया जाए। यहां पर एसडीएम कार्यालय में फर्स्ट एड के मूल प्रमाण पत्र जमा होने के कारण रेडक्रॉस के अधिकारियों के माथे पर भी चिंता की लकीरें बढ़ने लगी हैं। क्योंकि अगर युवाओं के पास फर्स्ट एड के प्रमाण पत्र ही नहीं होंगे तो वे फर्स्ट एड के लेक्चरार कहां से तैयार करेंगे। जिससे भविष्य में रेडक्रॉस को भी फर्स्ट एड के लेक्चरारों की कमी झेलनी पड़ सकती है।
किस काम आ सकता है फर्स्ट एड प्रमाण पत्र
कैंडेक्टरी लाइसेंस बनवाने से पहले रेडक्रॉस में दाखिला लेकर एक सप्ताह की ट्रेनिंग ली जाती है। एक सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद प्रशिक्षुओं का टेस्ट लिया जाता है। टेस्ट लेने के बाद भारत सरकार स्वास्थ्य एवं गृह मंत्रालय द्वारा प्रशिक्षुओं को फर्स्ट एड का प्रमाण पत्र दिया जाता है, जो कि तीन साल तक मान्य होता है। फर्स्ट एड के प्रमाण पत्र को तीन साल से पहले रिन्यू करवाना होता है। रिन्यू करवाने के बाद प्रमाण पत्र पांच साल तक के लिए मान्य होता है। पांच साल से पहले इस प्रमाण पत्र को फिर से रिन्यू करवाना पड़ता है। दोबारा से रिन्यू करवाने के बाद रेडक्रॉस द्वारा आवेदक को एक प्रमाण पत्र दिया जाता है। जिसके बाद आवेदक फर्स्ट एड के लेक्चरार की ट्रेनिंग ले कर फर्स्ट एड लेक्चरार का प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकता है।
मूल प्रमाण पत्र की जगह फोटो कॉपी जमा करवाना ही उचित
परिचालक लाइसेंस बनवाते समय एसडीएम कार्यालय में आवेदकों से फर्स्ट एड के मूल प्रमाण पत्र जमा करवाने के मामले उनके सामने आ रहे हैं। रेडक्रॉस के कर्मचारी भी एसडीएम कार्यालय की इस कार्यप्रणाली से सकते में हैं। सही नियम क्या है यह तो एसडीएम कार्यालय से ही पता लग सकते हैं, लेकिन इस तरह की प्रक्रिया के दौरान मूल प्रमाण पत्र की जगह आवेदकों से फोटो कॉपी ही लेनी चाहिए। ताकि मूल प्रमाण पत्र आवेदक के पास ही रह सकें और भविष्य में वो उनका किसी दूसरे क्षेत्र में प्रयोग कर सके।
रणदीप श्योकंद, सचिव
रेडक्रॉस सोसाइटी, जींद

मूल प्रमाण पत्र जमा करवाने का है नियम
सरकारी नियम के अनुसार ही कैंडेक्टरी लाइसेंस बनवाने वाले आवेदकों से मूल प्रमाण पत्र जमा करवाए जा रहे हैं। मूल प्रमाण पत्र की जगह फोटो कॉपी जमा करवाने का नियम नहीं है। अगर इस प्रक्रिया से आवेदकों या रेडक्रॉस के अधिकारियों व कर्मचारियों को किसी प्रकार की परेशानी होती है तो वे इसके लिए उनसे बातचीत करेंगे।
जीएल यादव
एसडीएम, जींद

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