मंगलवार, 20 मार्च 2012

तेरी याद ‘जा’ रही है.....

नरेंद्र कुंडू
जींद।
परीक्षा का भूत विद्यार्थियों पर इस कदर हावी हो चुका है कि वे अच्छे अंक प्राप्त करने, याददाशत बढ़ाने और एनर्जी लेवल मेनटेन रखकर तनाव कम करने के लिए दवाओं कार निर्भर हो चुके हैं। कंपीटीशन का दौर है, लिहाजा वे पिछे नहीं रहना चाहते। आगे निकलने की होड़ में वे अपने ही स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्हें नहीं पता कि एनर्जी बढ़ाने के लिए जिन दवाओं का सहारा लेने की वे नादानी कर रहे हैं, वही उनके •ाविष्य को गहन अंधकार में डुबो देगी। ऐसी दवाओं का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव दिमाग व लिवर पर पड़ता है। तनाव से मुक्ति दिलाने वाला यह धीमा जहर धीरे-धीरे उनकी रगों में फैलकर खोखला कर रहा है। दवा निर्माता कंपनियां अवसर को भुनाने से नहीं चूक रही हैं। तनाव कम करने तथा याददाशत बढ़ाने के भ्रामक प्रचार कर रही हैं और भावी पीढ़ी लुट रही है। समय की मांग है कि लिहाजा अभिभावकों का दबाव भी कम नहीं है। उज्जवल भविष्य के लिए परीक्षा में अच्छे अंक लाने की अनिवार्यता जाहिर है। यह महत्वाकांक्षा और प्रतिस्पर्धा छात्रों के रास्ते का कांटा बन गई है। वे गहरे अवसाद में जा रहे हैं। तनाव के चलते याद किया टॉपिक भी भूल रहे हैं। समस्या से निजात पाने के लिए वे बाजारों का रुख करते हैं और याददाशत और एनर्जी लेवल बढ़ाने वाली दवाइयों की मांग कर रहे हैं। अच्छी काउंसलिंग की कमी के कारण विद्यार्थी पथभ्रष्ट होकर अपनी बची-खुची प्रतिभा भी खो रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो 60 प्रतिशत से ज्यादा विद्यार्थी ऐसी दवाओं पर निर्भर हो चुके हैं। दवा निर्माता कंपनियां अपनी जेब भरने के चक्कर में पहले तो हौव्वा पैदा करती हैं, फिर उनसे निजात दिलाने के लिए प्रलोभनों के जाल में फंसा लेती हैं। हालांकि तनाव कम करने तथा याददाशत बढ़ाने की दवाएं प्राय: प्रतिबंधित होती हैं और इन्हें बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं लिया जा सकता। इसके बावजूद हर मेडिकल स्टोर पर इन्हें बेहिचक बेचा जा रहा है। एक केमिस्ट ने बताया कि परीक्षा करीब आते ही याददाशत बढ़ाने वाली दवाइयों के खरीदारों की संख्या में इजाफा हो जाता है। शहर में याददाशत के साथ-साथ एनर्जी बढ़ालने वाले पाउडर, कैप्सूल व सीरप की बिक्री भी 40 फीसदी तक बढ़ गई है। मेमोरी में इजाफा करने के चाहवान विद्यार्थियों में सर्वाधिक संख्या साइंस संकाय या प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रतिभागियों की होती है। सूत्रों के अनुसार जिलेभर में सालाना लगभग 50 लाख रुपए की ऐसी दवाओं का कारोबार हो जाता है। स्वास्थ्य विभाग इन पर लगाम लगाने में बेबस है।
बढ़ जाती हैं रोगों की संभावनाएं
याददाश्त बढ़ाने की कोई दवाइया नहीं आती। दवा कंपनियां झूठा प्रचार कर लोगों को गुमराह करती हैं। इस तरह के भ्रामक प्रचार से बचना चाहिए। इस तरह की दवाइयां शॉर्ट टर्म के लिए भले ही फायदा करती हों, लेकिन इनके लांग टर्म साइड इफेक्ट काफी देखे जा रहे हैं। वैज्ञानिक तौर पर ये दवाइयां अपडेट नहीं होती, साथ ही इनमें स्टीरॉयड की मात्रा रहती है, जिससे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, चिड़चिड़ापन होना, नींद न आना व आंखें भारी होना तथा हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती हैं। अंदर ही अंदर इन दवाइयों का धीमा जहर शरीर को खोखला कर देता हैं। जिसका सबसे ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव दिमाक व लीवर पर पड़ता है।
डा. विकास फौगाट, मनोचिकित्स
सामान्य अस्पताल, जींद
बच्चों पर न दे ज्यादा दबाव
परीक्षा का समय छात्रों के लिए बेहद संवेदनशील होता है, इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि उनपर पढ़ाई का जरूरत से अधिक दबाव नहीं डालें बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करने का प्रयास करें। अभिभावक बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार बनाएं ताकि वे तनावमुक्त होकर परीक्षा दे सकें। अभिभावक अपने बच्चों की मानसिक क्षमता को समझें। दूसरे के बच्चों से अपने बच्चों की तुलना ना करें। यदि बच्चा गुमसुम रहता हो तो उसकी तुरंत काउंसिलिंग कराएं। समय-समय पर बच्चे को दूध, जूस, फल, बादाम मिल्क और मिल्क से बने प्रोडक्ट दें, क्योंकि ये प्रोडक्ट बच्चे की याददाश्त के साथ एनर्जी लेवल भी बढ़ाते हैं।
नरेश जागलान, मनोवैज्ञानिक
नहीं बिक सकती ऐसी दवाएं
ऐसी दवाएं दुकानों पर नहीं बेची जा सकती हैं। इनकी बिक्री पर प्रतिबंध है। सरकार से लाइसेंसशुदा दवाएं ही बिक सकती हैं। समय-समय पर मेडिकल स्टोरों की चेकिंग की जाती है। आने वाले समय में अभियान तेज किया जाएगा।
डा. धनकुमार
सिविल सर्जन, जींद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें