मंगलवार, 20 मार्च 2012

निडाना के किसान ने खोजा नया परजीवी खरपतवार

 सरसों की फसल में मौजूद खरपतवार को दिखाता किसान व मौजूद कृषि अधिकारी।
नरेंद्र कुंडू
जींद।
खेतीबाड़ी की समझ के मामले में निडाना के किसान अच्छे-अच्छे वैज्ञानिकों को मात दे रहे हैं। कीटनाशक रहित खेती को बढ़ावा देने तथा फसल में मौजूद कीटों के जीवनचक्र के बारे में अधिक से अधिक जानकारी जुटाने की इनकी यह जिज्ञासा हर रोज किसी न किसी नई खोज को जन्म दे रही है। अब निडाना गांव के एक जागरुक किसान ने सरसों की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले एक ऐसे परजीवी ख्ररपतवार को ढूंढा है, जिसके बारे में कृषि वैज्ञानिक भी ज्यादा जानकारी नहीं रखते हैं। इतना ही नहीं अब इस किसान ने रुखड़ी (ओरबंकी) नामक इस खरपतवार का तोड़ भी खुद ही ढूंढ़ लिया है। निडाना गांव के रणबीर मलिक द्वारा खोजे गए इस नए परजीवी खरपतवार पर सर्च करने के लिए उनके साथ खेत में मौजूद उपमंडल कृषि अधिकारी ने इसका सेंपल भी लिया है। ताकि इस खरपतवार के बारे में पूरी जानकारी जुटाकर किसानों को इसके बारे में जागरुक किया जा सके।
खेतीबाड़ी के क्षेत्र में निडाना गांव के किसान आज देश में अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं। इन किसानों की सफलता के चर्चेआज दूर-दूर तक फैल चुके हैं। कीट प्रबंधन में माहरत हासिल करने वाले इस गांव के रणबीर मलिक नामक एक किसान ने अब सरसों की फसल में मौजूद एक नई खरपतवार को ढुंढ निकाला है। सरसों की फसल में पाई जाने वाली यह खरपतवार पूरी तरह से परजीवी है। रुखड़ी (ओरोबंकी) नामक यह खरपतवार सरसों के पौधे की जड़ से ही अपना भेजन तैयार कर अपना जीवन चक्र चलाती है। किसान रणबीर मलिक ने बताया कि सरसों के पौधे की जड़ पर निर्भर होने के कारण यह परजीवी खरपतवार सरसों की जड़ों से खुराक खींचती है। जिस कारण सरसों की फसल पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मलिक ने बताया कि बीज से पैदा होने वाला यह खरपतवार अपना आधा जीवन चक्र जमीन के अंदर ही चलाता है और सरसों के पौधे से अपना कनेक्शन जोड़कर उससे खुराक व पानी ग्रहण करता है। इसके बाद अपनी वंशवृद्धि या बीज पैदा करने के लिए ही यह खरपतवार जमीन से बाहर निकलता है। रणबीर को भी इस खरपतवार का पता उस वक्त लगा जब वह अपनी पत्नी अनिता के साथ खेत में सरसों की फसल की कटाई कर रहा था। सरसों की फसल में मौजूद इस नए परजीवी खरपतवार को देख कर रणबीर मलिक इस खरपतवार के जीवन चक्र की खोज में जुट गया और आखिरकार उसने सफलता हासिल कर ही ली। रणबीर मलिक द्वारा की गई इस नई खोज को देखकर मौके पर मौजूद उपमंडल कृषि अधिकारी डा. सुरेंद्र मलिक ने भी इस पर सर्च करने के लिए इसका सैंपल लिया। ताकि इस खरपतवार के बारे में विस्तार से जानकारी जुटाकर किसानों को जागरुक किया जा सके।
खेत में सरसों की जगह करें अन्य फसलों की बिजाई।   
सरसों की फसल में पाया जाने वाला यह खरपतवार पूरी तरह से सरसों की जड़ों पर निर्भर करता है। इसका बीज बहुत बारीक होता है तथा सरसों पकने से पहले ही खेत में बिखर कर अगली पीढ़ी के रास्ते खोलता है। यह परजीवी खरपतवार सरसों की फसल में दादरी, झज्जर, लोहारू, रिवाड़ी व  बावल आदि इलाकों में पाया जाता है। वहां के किसान इस का प्रयोग पशुओं के चारे के तौर पर करते हैं। क्योंकि यह खरपतवार पशुओं का दूध बढ़ाने के काम आती है। यहां के खेतों में यह खरपतवार पहली बार ही दिखाई दिया है। किसान इसे रुखड़ी (ओरोबंकी) के नाम से जानते हैं। इसे मरगोजा भी कहा जाता है। इस खरपतवार को नष्ट करने के लिए कोई खरपतवारनाशी नही बना है। इस खरपतवार पर केवल बीजमारी के जरिए ही काबू पाया जा सकता है। इस पौधे के बीज बन्ने से पहले ही इसे काट करके इक्कठा करें व जला दें या फिर उस खेत में सरसों की जगह चन्ना, जों व गेहूं की खेती करें। इसके अलावा इसकी पैदावार को रोकने के लिए किसान सरसों के बीज को सोयाबीन या अरंडी के तेल में भिगो कर बिजाई करें।
डा. सुरेंद्र दलाल  
कृषि विशेषज्ञ, जींद



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